Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 25
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 384
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३६९ २.पे. नाम. शांतिनाथजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. ऋषभकुशल शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: श्रीसाहिब शांतिजिणंद; अंति: ऋषभकुशल० तुं ईस, गाथा-७. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. लायककुशल, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन गुण गावता; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११३८२१ (#) मौन एकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १०४३२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्या रे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११३८२२. आदिजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२६४११,११४३२). आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सफल भव आपणो गिणी, ढाल-४, गाथा-५२, (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण से है.) ११३८२३. (+#) बृहत्क्षेत्रसमास-पदार्थ विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, २२४५०). बृहत्क्षेत्रसमास-पदार्थ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: खर कंडेरा १६ भेद १रतनकंड; अंति: (-), (पू.वि. माहेन्द्राभ्यंतरपर्षदा देवायु विचार अपूर्ण तक है., वि. १६ प्रकार के रत्नकुंड, वैताढ्य सिद्धायतन स्थित १०८ प्रतिमा व चमरेन्द्रादि की पर्षदाओं का वर्णन.) ११३८२५. (+#) औपदेशिक सज्झाय संग्रह व चोघडीया चक्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १५४३६). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-वनमाली, पृ. १अ, संपूर्ण.. म. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: कायारी वाडी कारणी सीचंताइ; अंति: पदमतलक० रखे खटज लागै काट, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कायाविषे, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मनभमरा काई भम्य; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-९. ३. पे. नाम. चोघडीया चक्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: रविदिने उद्वेगवेला चलवेला; अंति: कलहवेला लाभवेला. ११३८२६. (+) तिजयपहत्त स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ७४३८-४२). तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण्य जगनुं प्रभू; अंति: पूजाइ सर्व कार्य सीही. ११३८२७. (+) पार्श्वजिन स्तवन, पार्श्वजिन पद व नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १२४४०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. चिमन, मा.गु., पद्य, वि. १९७०, आदि: सफल दिवस थयो आज अमारो; अंति: चिमनमुनि सुखकर अलवेसर, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. चिमन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर स्वामी तुं; अंति: चिमन करो कल्याणाजी, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन गहुंली, मु. चिमन, मा.गु., पद्य, आदि: वरषो वरषो नेमीश्वरलाल तूं; अंति: प्रत पोबहु ससनूर, गाथा-७. ११३८२८. (+#) प्रव्रज्या कुलक सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. आणंदयश (गुरु ग. महीकलश); गुपि.ग. महीकलश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,७-११४३९). For Private and Personal Use Only

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