Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 25
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 443
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समस्या श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: एकद्वित्रिचतुः पंचतुः पंच; अंति: विनाशकौ अमरौ दुरितं हरतां, श्लोक-९, (वि. श्लोक-१ व ५ देववोधाचार्यकृत दोनों एक ही है. श्लोक-२ व ४ अज्ञात. श्लोक-३ काव्यलता वृत्तिगत.) समस्या श्लोक संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: मयि देवबोधे क्रुद्धे सति; अंति: पाप स्फेटकः अकलः अज्ञेयः, (वि. अन्त में "इयं समस्या रामव्यासेन पृष्टा श्वेताम्बरशिष्येण पूरिता" उल्लिखित है.) ११४४६०. पार्श्वजिन ढालिया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४१०.५, १२४४०-४३). पार्श्वजिन ढालिया-गोडीजी, पं. वीरविजय, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. "गिरी आसन उग्यो पतंग रे" पाठ से "गो पयमांहि देस्ये काजल जेहरे"पाठ तक है, वि. ढाल संख्या नहीं लिखी है.) ११४४६५. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४३५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२६ अपूर्ण तक व श्लोक-५३ अपूर्ण से श्लोक-७८ अपूर्ण तक है.) ११४४६८. सागरचंदमुनि रास व सुरप्रियमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(२ से ५)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४४२). १. पे. नाम. सागरचंदमुनि रास-सामायिकविषये, पृ. १अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. मु. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १६७९, आदि: सारद सार सदा दीयइं; अंति: विजयशेखर कहि० गाता रली, ढाल-८, ___ गाथा-१२८, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१९ से ढाल-७ गाथा-१० अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. सुरप्रियमुनि सज्झाय, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देव सदा मनि धरूं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११४४७५ (+) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४४०-४४). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६८ अपूर्ण से ११० अपूर्ण तक है.) ११४४८२. (#) औपदेशिक हरियाली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४३५-३९). औपदेशिक हरियाली, मा.ग., पद्य, आदि: डूंगर कडखे घर करे सरली; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२३ तक लिखा है.) ११४४८५. तीर्थमाला-सम्मेतशिखरादि तीर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११, ११४३७). तीर्थमाला-सम्मेतशिखरादि तीर्थ, मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. गाथा-३० अपूर्ण से ५३ अपूर्ण तक है.) ११४४८६. (+#) महावीरजिन पूजाविधि स्तवन व २४ जिन स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १७४५१). १. पे. नाम, महावीरजिन पूजाविधि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पूजाविधि दिल्लीमंडन, मु. गुणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पणिमिय वीर जिणेसर देव; अंति: गुणविमल जयो जगदीस, गाथा-२७. २. पे. नाम. २४ जिन स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक-८. ११४४८९ (+) वाग्भटालंकार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, ११४३९). For Private and Personal Use Only

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