Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 25
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 467
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४८९५ (+#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१० (१ से १० ) = ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी : दश., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५x१२, १२x२८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ५ गाथा - २१ अपूर्ण से ७८ अपूर्ण तक है.) ११४८९७ (५) पद्मावती स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११.५, १२X४०). १. पे नाम गाथा संग्रह जैन, पृ. १अ, संपूर्ण. . पद्मावतीदेवी स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनशासन सामिनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १४ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४८९८. गाथा संग्रह जैन, विविध जीव आयुष्य विचार व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पे. ३, जैदे., (२५x१२, ५-१४X६-५०). गाथा संग्रह जैन, प्रा., मा.गु.से., पद्य, आदि: तक्रं तैलं च दुग्धं फल दल, अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे नाम. विविध जीव आयुष्य विचार, पृ. १आ, संपूर्ण विविध जीव आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि मनुष्यनुं आउषु वर्ष १२० अंतिः सिंहनुं वर्ष १०० नं. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: समवसरणे मृत्यु जन्म; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ९ तक लिखा है.) ११४८९९ (#) औपदेशिक सज्झाय- परलोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५x११.५, ११४२५). औपदेशिक सज्झाय- परलोक, मा.गु., पद्य, आदि मानव तु परलोक रो कर साधन; अति नही पामसो अहो नर वेह रतन, गाथा- १०. " ११४९००. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४३-४१(१ से ४०, ४२) = २, प्र. वि. हुंडी: उत्त० कथा. दे., (२५.५X११.५, १७x४९). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., ब्राह्मणी कथा अपूर्ण से अध्ययन-८ कथा-१ अपूर्ण तक है.) ११४९०१. (+४) फाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, ज्योतिष श्लोक व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, वे (२८x१२, १५x२२-४०). . पे नाम. फाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. १अ संपूर्ण. आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य वि. १७८२, आदि: नत्वा पार्श्वजिनेशाय अति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. पाठ- पुष्यमरणिशिशुमधुका देत्याज्यं प्रावृषितंडू" तक लिखा है.) २. पे नाम ज्योतिष लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मस्तक हस्त रवी कहें मंदो; अंति: हस्त केतो को बंधावे. ३. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- आत्मबोधगर्भित, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि में तो नजरें रहेवु जी; अंति: उदयरतन० जय श्रीमहावीर गाथा ६. ११४९०२. (+) महावीरजी की निसाणी, अपूर्ण, वि. १९०३ भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३- २ (१ से २) = १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२४.५x१२, १६४३२). " महावीरजिन निसाणी, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति मांगे मनवंछित पुरंदा है, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा- २३ अपूर्ण से है.) ११४९११. (#) औपदेशिक श्लोक व दानशीलतपभावना प्रभाती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे. (२४.५x११.५ ९४३६). " For Private and Personal Use Only

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