Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 25
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Catalog link: https://jainqq.org/explore/018082/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रांथसूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.२५) KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts यह उमाणडणा ब्रागांवरादयणी ਬਰਸੀ।ਸਿਰਸ वादमाजगरावति।। एनामा डिणाएं डि आचार्य श्री गावडे महावीर । For Private and Personal Use Only 3G (Vol 1.1.25) कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर म कोबा तीर्थ हमको परमनारा श्रीयादी QUISH Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.२५) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची से आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी भी अपतं तव प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५४४ ० वि.सं. २०७४ ० ई. २०१८ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २५ Āacārya Śhrī Kailāsasāgarasūri Smộti Granthasūcī - Ratna 25 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.२५ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī:1.1.25 *संपादक मंडल * पं. संजयकुमार आर. झा पं. नवीनभाई वी. जैन पं. अरुणकुमार झा पं. राहुल त्रिवेदी डॉ. जागृति बी. प्रजापति पं. रामप्रकाश झा पं. गजेन्द्रभाई शाह पं. भाविन पंड्या पं. पंकज शर्मा सुश्री मीनाक्षी शिंदे * संयोजक * डॉ. हेमन्त कुमार * संपादन सहयोग * परबत ठाकोर संजय गुर्जर * कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग * केतन डी. शाह For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २५ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथाना विस्तृत सूची विभाग - १: हस्तप्रत सूची • वर्ग - १ : जैन साहित्य खंड - २५ - आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Śrī Dēvarddhigani Kșamāśramaņa Hastaprat Bhāņdāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir (Jain, Indological Oriental Research Institute and Library) under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I : Manuscripts Catalogue * Class - I: Jain Literature Volume - 25 Blessings & Inspirations Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Publishers Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India 2018 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 25 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī: 1.1.25 Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.25 Preserved in Śrī Dēvarddhigani Kşamāśramaņa Hastaprat Bhāndāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir ००:Publisher O Vir Samvat 2544, Vikram Samvat 2074, A.D. 2018 O Edition : First ० प्रकाशन सौजन्य : शेठ श्री नरेन्द्र लालचंदजी महेता परिवार, देसुरी (राज.) हाल - मीरा, भायंदर, मुंबई Sheth Shree Narendra Lalchandji Maheta Parivar, Desuri (Raj.) migrated to Meera, Bhayandar, Mumbai O Available at: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth OPublisher: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel: (079)23276204,23276205,23276252, What'sApp : 07575001081 Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir @kobatirth.org OPrice: Rs. 1500/OISBN: 81-89177-00-1 (Set) 978-93-85803-26-0 (Vol.25) o Printer : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad * उपलक्ष * श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के ८४ वें जन्मोत्सव के पुनीत प्रसंग पर वि.सं. 2074, भाद्रपद सुद, 13, रविवार दि. 23-09-2018 For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अर्हम् नमः ॥ 卐 मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है। ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋणस्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस खंड से पूर्व की सूचियों में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का जो भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. डॉ. हेमन्त कुमार, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, श्री नवीनभाई जैन, श्री गजेन्द्रभाई शाह, श्री अरुणकुमार झा, श्री भाविन पंड्या, श्री राहुल त्रिवेदी, श्री पंकज शर्मा, डॉ. जागृति बी. प्रजापति, सुश्री मीनाक्षी शिंदे आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के अध्यक्ष श्री सुधीरभाई मेहता, ज्ञानमंदिर में चल रही विविध गतिविधियों की देख-रेख करनेवाले अन्य ट्रस्टीगण व कारोबारी सदस्य सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत २५वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले शेठ श्री नरेन्द्र लालचंदजी महेता परिवार, देसरी (राज.) हाल मीरा, भायंदर, मंबई के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों के अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का २५वाँ खंड प्रकाशित हो रहा है, जो ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वज्जन इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. पमालागर हरि For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org * प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के २५वें खंड को चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रंथालय ) में हस्तलिखित ग्रंथों का बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है. यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में राष्ट्रसंत पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरिजी के अधिकतर शिष्य - प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी तथा यहाँ के पंडितवर्गों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंडितों के साथ-साथ करीब पचास कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो इस कार्य को आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में चल रहे श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण एवं कारोबारी सदस्य तो अत्यन्त उत्साही व सक्रिय रहे ही हैं, साथ-साथ ज्ञानमंदिर को आज की ऊँचाईयों तक पहुँचाने में भूतपूर्व ट्रस्टियों एवं कारोबारी सदस्यों का भी जो महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस २५वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता शेठ श्री नरेन्द्र लालचंदजी महेता परिवार, देसुरी (राज.) हाल मीरा, भायंदर, मुंबई के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस २५ वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर II For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ॥ पितृदेवो भवः ।। www.kobatirth.org स्व. श्री लालचंदजी मोतीलालजी महेता श्री नरेन्द्रभाई लालचंदजी महेता श्री टक्षील नरेन्द्रभाई महेता Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ मातृदेवो भवः ।। स्व. श्रीमती धनवंतीबाई लालचंदजी महेता For Private and Personal Use Only श्रीमती सुमन नरेन्द्रभाई महेता श्री चैम्प नरेन्द्रभाई महेता Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *प्राक्कथन* कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में प्रकाशित हो रहे इस २५वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं की आगमिक साहित्य, कर्मसिद्धान्त की मूल, टीका, अवचूरि आदि महत्त्वपूर्ण कृतियों के अतिरिक्त देशी भाषाओं की रास, कथा, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि अनेक कृतियाँ भी अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. जिसमें रत्नशेखरसूरि रचित प्राकृत छंदकोष, भावप्रभसूरि कृत फाल्गुन चातुर्मासिक व्याख्यान. सुमतिविजय कृत रघुवंश-सुगमान्वयाप्रबोधिका टीका, चारित्रवर्धनसूरि की रघुवंश-शिशुहितैषिणी टीका आदि. पुण्यकीर्ति रचित पुण्यसार रास, सहजसुंदर कृत आत्मराजा रास, ज्ञानसागर का आदिजिन बाललीला स्तवन, श्रीसार रचित आनंदश्रावक संधि. हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थीं, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है... जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ विविधस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व परासामग्री; इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची खंड-२५ से पूर्व के सभी खंडों में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी का अनुसरण करते हुए हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. तथा श्रुताराधक आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; फलतः हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. __प्रतों की प्राथमिक सूचनाओं की कम्प्यूटर में प्रविष्टि तथा सन्दर्भ हेतु पुस्तकें आदि शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध कराने हेतु ज्ञानमन्दिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है. फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह गई होंगी. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें, जिससे भविष्य में प्रकाशित होनेवाले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल III For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रमणिका मंगलकामना. प्रकाशकीय ....................11 ................ iii प्राक्कथन ............................................................................. अनुक्रमणिका ..................................................................... .............iv प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत........................................ तपूना सदानपतपत............................................................................................ V-VI हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण.................... .....vii-viii हस्तप्रत सूची...................... ............................................ ...................१-४७२ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या..... ...४७३-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १. ........... ४७३-५१९ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २. ....... ५२०-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ VI एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ 454 पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें. प्रस्तुत खंड २५ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. * प्रत क्रमांक - १०६४५६ से ११५२४५ * इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से इस खंड में __ ३३६७ प्रतों की सूचनाओं का समावेश हुआ है. * समाविष्ट प्रतों में कुल ३८५७ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. * इन परिवारों की कुल ४३६० कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. * सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६१६७ बार आई हैं. ___IV For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra * प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत * कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. . कृति / प्रत/पेटांक नाम के बीच का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक (-) .......... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. (+)......... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में- प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्त्ता कर्त्ता के शिष्य प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित शुद्धप्राय टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद संधि सूचक वचन विभक्ति क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. . कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान यथा आवश्यकसूत्र सह निर्युक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. ($) - www.kobatirth.org - उपा. . उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) (#) .......... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप............. प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) ********. गा. गु.. गृही.. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. *******... कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में ऊर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक, अपूर्ण, लुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--) ......... आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप........... अपभ्रंश (कृति भाषा ) अंति:......... अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ............. आचार्य (विद्वान स्वरूप) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋ............. ऋषि (विद्वान स्वरूप) क............. कवि (विद्वान स्वरूप) कुं.. कुल ग्रं. ....... कुंडली (कृति स्वरूप) . मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथास परिमाण प्रत व पेटाकृति विशेष में. ....... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) कुल पे. क्रीत ........... प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को............. कोष्टक (कृति स्वरूप) ग.. ........ गणि (विद्वान स्वरूप) गडी. ...........गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य.......... गद्यबद्ध (कृति प्रकार) . गाथा (कृति परिमाण) . गुजराती (कृति भाषा ) ...... गृहीत . आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) V - For Private and Personal Use Only - Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गोटका. गोल, ग्रं. जै... जै.. जैदे. ते. दत्त.. दि... देना.. पं..... पं. पठ. पद्य. पा. पु. हिं.. पू. वि. पूर्व. पृ.. पे. नाम. पे. वि.. पै. प्र. वि..... प्रले.. . बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) क्वचित् | प्रे. गोटका शब्द भी प्रयुक्त होता है. ... . गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) . ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) . जैन कृति (कृति परिशिष्ट ) . जैन कवि (विद्वान स्वरूप) . जैन देवनागरी (प्रत लिपि) प्र. सं. प्रा. प+ग.......... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) . पद्यबद्ध (कृति प्रकार) . पाठक (विद्वान स्वरूप) . जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) . आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) . जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) . देवनागरी (प्रत लिपि) www.kobatirth.org .... पंजाबी (कृति भाषा ) . पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) . पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) कृतिमाहिती स्तर) . कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि. 'श' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक... . पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर) . प्रतगत पेटाकृति नाम ..... प्रतगत पेटाकृति विशेष म. महा. मा. प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की - (प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) ('सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धता सूचक.) प्र.ले.श्लो.... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) . प्रति संशोधक . प्राकृत (कृति भाषा ) मा.गु. मु.. मु.. मूपू.. यं.. रा.. रा.. . पुरानी हिंदी (कृति भाषा ) . पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व विक्र.. वी.. वा. वि.. . राजा (विद्वान स्वरूप) . राजस्थानी (कृति भाषा ) राज्ये. राज्यकाल ... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. . जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो. . प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) लिख. ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) . वाचक (विद्वान स्वरूप) . विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष) . विक्रेता प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान ) . वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी'. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष) वै. व्या.प. श.... श्राव. श्रावि.. . पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) प्रत विशेष. प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, श्रु.. पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) वे. सं.. सम. सा. स्था. हिं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) . बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) मराठी (कृति भाषा ) VI . महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा ) . मागधी प्राकृत (कृति भाषा) . मारुगुर्जर (कृति भाषा) . मुनि (विद्वान स्वरूप) . मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) . जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) . यंत्र (कृति स्वरूप) . वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) . व्याख्याने पठित - विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान ) . शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र. ले. पु. कृति रचना वर्ष ) श्रावक (विद्वान स्वरूप) श्राविका (विद्वान स्वरूप) . श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान ) . जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) . संस्कृत (कृति भाषा ) . समर्पक ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) . साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) . जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) . हिंदी (कृति भाषा ) For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (*सुकृत केसहभागी*) * हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली * ट, मुंबई मुंबई मुंबई १.शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), २५. श्री जुह स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई पालडी अहमदाबाद |२६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व., २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार, अहमदाबाद | | बावन जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई २७. श्री जैन पंच महाजन मांडाणी (राज.) ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, २८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर (राज.) __ वालकेश्वर मुंबई २९. श्री संभवनाथ जैन ट्रस्ट बिसलपुर (राज.) ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ मुंबई ३०. श्री पुष्पदंत श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ |३१. श्री सेटेलाईट श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया ३२. श्री वेपेरी श्वे. मू. पू. जैन संघ चेन्नई ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव मुंबई ३३. श्री शाहीबाग-गीरधरनगर जैन श्वे. मू. पू. संघ अहमदाबाद ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका ३४. श्रीमद यशोविजय जैन संस्कृत पाठशाला महेसाणा १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद ३५. श्री जैन सोसायटी जैन संघ अहमदाबाद ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल |१२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट मुंबई |३६. शेठ नवलचंद सुप्रतचंद जैन देवकी पेढी पाली-राज. |१३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ ३७. श्री माटुंगा जैन श्वे. मू. पू. तपगच्छ संघ मुंबई अमेरिका, 'जैना' हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका ३८. श्री दशापोरवाड सोसायटी जैन संघ अहमदाबाद १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन मुंबई ३९. श्री विले पार्ले (वे.) श्वे. मू. पू. संघ मुंबई १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई ४०. श्री जैन श्वे. मू. पू. संघ, शिव, सायन मुंबई १६. श्री सांताक्रूज़ जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ |४१. श्री सीमंधरस्वामी जिनमंदिर पेढी महेसाणा । जैन देरासर मार्ग, सांताक्रुज (वे.) | ४२. श्री अदाणी फाउन्डेशन अहमदाबाद |१७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद | ४३. श्री शेढुंजय तीर्थधाम, भुवनभानु मानसमंदिर मुंबई १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, सुरत ४४. श्री घाटलोडीया जैन श्वे.मू.पू.संघ अहमदाबाद १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद |४५. श्री नवजीवन जैन श्वे.मू.पू. संघ, लेमीग्टन २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, ४६. श्री बोरीवली जैन श्वे.मू.पू.तपा.संघ मुंबई आरे रोड, गोरेगाँव मुंबई |४७. श्री एरोमा केमीकल एजन्सी (इ) प्रा.ली. पारले २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर ४८. श्री पार्श्वनाथ जैन श्वे. टेम्पल बेल्लारी |२२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट, | ४९. श्री शांतिनाथ जैन संघ, मलाड (पू.) । २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी | ५०. आ.बुद्धिसागरसूरि समुदायना पू.ज्योतिप्रभाश्रीजी तथा २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, मुंबई | पृ.जयरक्षिताश्रीजीना सदउपदेशथी भक्तगणो तरफथी मुंबई मुंबई मुंबई बेंग्लोर मुंबई * हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली * १. श्री नितिनभाई अशोकजी महेता २. श्री पंकजकुमार ज्ञानचंदजी गांधी, चार्टर्ड स्पीड प्रा. लि. कोईम्बतूर अहमदाबाद VII For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra : १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार सन्स नोवी, हाल शिवगंज * सुकृत के सहभागी # हस्तप्रत सूचीकरण में १ से २५ भाग के 9 आर्थिक सहयोगियों की नामावली एस. देवराजजी जैन ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ www.kobatirth.org २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई (राज.) मेवानगर चेन्नई मेवानगर ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा मोहनलालजी रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई मेवानगर ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर मेवानगर ९. शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद १०. श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार कोलकाता १२. श्री सांताक्रुज़ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मुंबई १३. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु. एस. ए. १४. डॉ. विनय के. जैन प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु. एस. ए. अहमदाबाद VIII १५. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार १६. श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज, पायधुनी १७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ १८. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार १९. श्रीमती छगनकंवर अमृतलालजी गांधी परिवार Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिरोही-जोधपुर २०. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद २१. शेठ श्री देवीचंद, विकासकुमार, अनिलकुमार चोपड़ा परिवार (बच्छराज डेवलपर्स) २२. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार २३. शेठ श्री सोहनराजजी बच्छराजजी सिंघवी परिवार * सादर समर्पण * कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में.... २५. शेठ श्री नरेन्द्र लालचंदजी महेता परिवार देसुरी (राज.) हाल मीरा भायंदर, जिनके द्वारा यह श्रुतपरंपरा अक्षुण्ण रही. O O मुंबई मेवानगर अहमदाबाद २४. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ बावन जिनालय तीर्थ पेढी, भायंदर, For Private and Personal Use Only मुंबई अहमदाबाद कोलकाता मुंबई मुंबई Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री महावीराय नमः॥ ॥श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची __ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०६४५६. निरियावलिकादिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ६२, कुल पे. ५, ले.स्थल. हरिदुर्ग, प्र.वि. हुंडी:निरावलिका. अंत में 'निरावलिक०सूत्रार्थ कालुराम ब्रह्माण बेची करणमलजी शाह ने अजमेर मध्ये सं०१९०८ का चैत्र वध तिज' लिखा हुआ मिलता है., दे., (२६.५४१३.५, ७४३९-४३). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२५अ, संपूर्ण.. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: भणियव्वो तहा, अध्ययन-१०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० उसर्पिणीनो चउथउ आरउ; अंति: पूर्व पाठकी ज्यो कहण. २. पे. नाम. कल्पावतंसिका सह टबार्थ, पृ. २५अ-२७अ, संपूर्ण. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० दोच्चस्स णं; अंति: वा सेज्झिहिंति, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जदि जोहे पूज्य तपस्वी; अंति: महाविदेहइ सीझस्ये. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २७अ-५२अ, संपूर्ण. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जौ हे पूज्य श्रमण भगवंत; अंति: वनज्यो संग्रहणीने गाथा मै. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५२अ-५५अ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जद्यपि जौ हे पूज्य श्रमण; अंति: जंबू पूर्ववत्पाठ कहणा. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५५अ-६२अ, संपूर्ण.. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं; अंति: पंचमवग्गे बारस उद्देसगा, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो हे पूज्य तपस्वी भगवंत; अंति: के विषै दस उद्देशा कह्या. १०६४५७. (+) राजप्रश्नीयसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५२, वैशाख शुक्ल, ५, मध्यम, पृ.८०, ले.स्थल. अह्मदाबाद, उप. आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनहंससूरि, खरतरगच्छ); राज्यकालरा. अकबर; लिख. श्राव. सोमजी संघपति; श्रावि. राजलदे सोमजी संघपति; श्राव. रतनजी सोमजी संघवी; श्राव. रूपजी सोमजी संघवी; श्राव. खीमजी सोमजी संघवी; श्राव. सुंदरदास संघवी; अन्य. श्रावि. बाचू राजा दोशी; श्रावि. नाकू साईया दोशी; श्रावि. जसमादे जोगी दोशी, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:राजप्रवृत्ति०. श्रीशत्रुजयतीर्थ छरिपालित यात्रा संघ आयोजन निमित्त ज्ञानभंडार में रखने हेतु प्रत लिखवाई गई., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१२.५, १५४५०). राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंति: ताडनानि कशादिघाताः, ग्रं. ३७००. १०६४५८. (+) रघुवंश सह सुगमान्वयाप्रबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:र०.स०., संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (३०x१३, १-३४३१-५३). रघुवंश, क. कालिदास, सं., पद्य, आदि: वागर्थाविव संपृक्तौ; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-६ श्लोक-२ तक है.) रघुवंश-सुगमान्वयाप्रबोधिका टीका, मु. सुमतिविजय पंडित, सं., गद्य, वि. १६३०, आदि: प्रणम्य जगदाधीशं गुरुं; अंति: (-). १०६४६० (+) लीलापतझणकारा चरित्र, अपूर्ण, वि. २००७, श्रेष्ठ, पृ. १५६-११८(१ से ११८)=३८, प्रले. श्राव. प्यारेलाल कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१४.५, १२४२०-२८). For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लीलापतझणकारा चरित्र, कालू, हिं., पद्य, वि. १९६८, आदि: (-); अंति: सती झणकार का नारी जी, गाथा-३४, (पू.वि. प्रारंभिक गाथा-२ अपूर्ण से है.) १०६४६१ (+) मुनिवंदना प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२०(१ से १८,२३ से २४)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिये गये हैं., संशोधित., जैदे., (२९४१३, ९-१०४२८-३२). मुनिवंदना प्रकरण, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३४१ अपूर्ण से ४०६ अपूर्ण तक है व आगे क्रमांक ५९ अपूर्ण से ६७ तक है.) १०६४६२. (+#) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह स्वोपज्ञ भाष्य, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. ३२-४(२१ से २४)=२८, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२९४१३, १२-१५४४५-५०). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-७ सूत्र-८ तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-स्वोपज्ञ भाष्य, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनं सम्यग्; अंति: (-). १०६४६३. (#) २३ पदवी व २७ अल्पबहुत्वादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, गुरुवार, पे. ६, ले.स्थल. पारानयर, प्रले. उदयचंद ब्राह्मण; पठ. श्राव. राजाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७.५४१३, १७४३६). १.पे. नाम. पदवी द्वार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पदविद्वार. २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात एकेंद्रीरत्ननां नाम; अंति: धणि थाय एक समदृष्टी वध्यो. २. पे. नाम. दिसाणउवाइना बोल, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:दिशांणओ. २७ द्वार अल्पबहत्व विचार-दिशा आदि, मा.ग., गद्य, आदि: समचे जीव१ पांणि२ वनास्पति: अंति: पश्चिमें विसे साहिया. ३. पे. नाम. वडी गतागत, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वडिगता०, गतागतब०. जीवगतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जीवरा भेद ५६३ भेदनी; अंति: १७९ एकसोगुणीयासिरि लडरी ज. ४. पे. नाम. सातनय विस्तार, पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:७नयविचा०, ७नयविस्तार. सप्तनय विवरण-नैगमादि, मा.गु., गद्य, आदि: सातनयरा नाम कहे छै प्रथम; अंति: लज्या राखे ते कयडो माने. ५. पे. नाम. ४ निक्षेपारो विस्तार, पृ. ८आ-११अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:४निषेपावि०. ४ निक्षेप विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नीक्षेपो कहे तांणाहर; अंति: कोईनो छे ते नीषेपो जांणवो, गाथा-१. ६. पे. नाम. ४ निक्षेपा सज्झाय, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:४निषेपा. मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सीध ने आयरिया; अंति: देखी थापना भुला भरम संसार, ढाल-२, गाथा-३३. १०६४६७. (+) नवस्मरण-१ से ६, अपूर्ण, वि. १८२८, ज्येष्ठ शुक्ल, १, सोमवार, मध्यम, पृ. १२-५(१ से ५)=७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१३, १२४२६). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. संतिकर स्तोत्र गाथा-८ से है व तिजयपहुत्त, नमिऊण व अजितशांति स्तोत्र है.) १०६४६८.(+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०२, ले.स्थल, पाली, प्रले. सा. अरज्याजी (गुरु सा. अजवाजी); गुपि.सा. अजवाजी (परंपरा सा. महासत्याजी); सा. महासत्याजी (गुरु सा. उदाजी); सा. उदाजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:राजप्रस्नि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २१७९, जैदे., (२९x१३.५, ९४३२-३६). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: अरहंता पससु पस्सवणाए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००, (वि. १८२८, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, सोमवार) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार हो वी०; अंति: तेह भणी नमस्कार थाउ, (वि. १८२८, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, शुक्रवार) For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०६४७२. (+) उत्तमकुमारचरित्र रास, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी:उत्तमकुमाररासपत्र., संशोधित., जैदे., (२७४१४, १२-१४४३०). उत्तमकुमारचरित्र रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: चरमजिणेसर चित्त धरूं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२९ की मात्र अंतिम गाथा नहीं है.) १०६४७३. (+#) रामविनोद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१(१)=२६, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, १६४३५-४४). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. समुद्देश-१ शुभशकुनलाभ विचार ___ अपूर्ण से समुद्देश-३ पित्त अतिसार अपूर्ण तक है.) १०६४७६. (+) प्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८८९, पौष शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ८२-१(१)=८१, प्र.वि. हुंडी:पडिक०बा०, पडि०बा०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१३, ११४३६-४०). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: संघस समुन्नइनिमित्तं, (पू.वि. नमस्कार मंत्र अपूर्ण से है.) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय का बालावबोध, मु. सहजकीर्ति कवि, मा.गु., गद्य, वि. १७०४, आदिः (-); अंति: (१)बेउं आर्यानो अर्थ जाणिवओ, (२)मणनतो ग्रंथमानं समस्तकम्, (पू.वि. नमस्कार मंत्र का बालावबोध अपूर्ण से १०६४७७. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(४)=५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१४, १४४२८). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: (-), (पू.वि. १८ पापस्थानक आलोयणा तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६४७९ (+) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३०-२(८ से ९)=२८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७७१३, १२४४७). पर्यषणाष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: स्मृत्वा पार्श्वसहस; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पाठ नहीं हैं.) १०६४८२ (+#) महीपालनरेंद्र चतुष्पदिका, संपूर्ण, वि. १९२९, आश्विन कृष्ण, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९९, ले.स्थल. वीदासर, प्रले. मु. सिखरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:महीप., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३.५, १७-१८४५५-५८). महीपालराजा चौपाई, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनाभेय युगादिजिन; अंति: श्रीसंघरंग वधामणी, खंड-४, ग्रं. ५५०४, (वि. ढाल १२३.) १०६४८५ (#) अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १२-१(९)=११, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. ग. रंगकुशल पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में पठनार्थे हेतु "सुश्रावक मनजीरी वहु" ऐसा लिखा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१३, १२४२१-२३). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं, संपूर्ण. १०६४८७. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय व स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१०(१ से १०)-७, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८४१३, १२४३६). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, पृ. ११अ-१४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वारे तीन मांडला कीजै, (पू.वि. पोरसि पच्चक्खाण ग्रहण विधि अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. संस्तारक विधि, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: चउगई हरणा सरणं लहइ धन्नो, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. बावन्न सत्तासत्ति सज्झाय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. ___ भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जासिं जसपढओ तिहूणे सयले, गाथा-१३. ४. पे. नाम, वर्द्धमानजिन स्तुति, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम, श्लोक-४. ५. पे. नाम. शुक्लपंचम्या स्तुति, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १६आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ७. पे. नाम. पंचतीर्थीजिन स्तुति, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढमं जिणं; अंति: अंब सया पसत्था, गाथा-४. ८. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १७अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. ९. पे. नाम, भगवद्वाग्वर्णनमयी स्तुति, पृ. १७अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराज्ञः पदपद्मसेव; अंति: भावदातृ भवतात् स्वयं वः, श्लोक-१. १०६४८८. नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:जी०.वि०. वस्तुतः कृति नवतत्त्व प्रकरण है., जैदे., (२८x१३, १४४४२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ तक है., वि. प्रथम गाथा सांकेतिक रूप में नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: एतानि नवानां तत्वाना; अंति: (-). १०६४९१. आश्चर्ययोगमाला सह विवृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. हुंडी:आश्चर्य वृ., दे., (२६४१३, १३४३४). योगरत्नावली, आ. नागार्जुनाचार्य, सं., पद्य, आदि: विमलमति किरणनिकर; अंति: को न स्खलति प्रमादनिवहेन, श्लोक-१४०. योगरत्नावली-टीका, मु. गुणाकर भिक्षु, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: गुरुचरणकमलमंगलं प्रणम्य; अंतिः श्वेतांबरभिक्षुणा जयति, ग्रं. ७८०. १०६४९२. सिद्धांतागम स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९४८, माघ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. हुस्यारपुर, प्रले. मु. चंदनविजय (गुरु मु. बुद्धविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिद्धांतागमस्तव., त्रिपाठ., दे., (२९x१३.५, १२४३०-४९). सिद्धांत स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा गुरुभ्यः श्रुतदेवता; अंति: श्रीमत्समागमनोत्सवम्, श्लोक-४६. सिद्धांत स्तव-टीका, आदिगुप्त, सं., गद्य, आदि: ध्यायति श्रीविशेषाय; अंति: विवृत्तिलिखितामिता. १०६४९४. प्रतिक्रमणसूत्र व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, कुल पे. १२, दे., (२८.५४१३, १०४२५). १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-१६अ, संपूर्ण.. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: प्राण भाजां श्रुतागी. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ संखेश्वरनो स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कृष्णविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो ते लागो पासजी रे; अंति: इम कृष्णविजयनो सीस, गाथा-६. ३. पे. नाम. शत्रुजयनो स्तवन, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. श@जयतीर्थ स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारे शेजो मुन; अंति: आवागुण निवार हो, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४. पे. नाम. नववाडनी सज्झाय, पृ. १७अ-२१अ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: सगुरु चरणे नमी समरी सारदा; अंति: हो तेने जाओ भामणेजी, ढाल-१०, गाथा-४४. ५. पे. नाम. महावीरजी विचार स्तवन, पृ. २१अ-३४आ, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रावण शुक्ल, १४. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, __ आदिः प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: नइ गुरु आणा सिर बहस्यइजी, ढाल-६, गाथा-१४८, ग्रं. २२८. ६. पे. नाम, पांचमनु स्तवन, पृ. ३४आ-३९अ, संपूर्ण.. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, म. गणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर प्रेमसु; अंति: श्रीगुणविजय रंगे मुणी, ढाल-६, गाथा-४९. ७. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३९आ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहजानंदी थयो; अंति: जिन विजयानंद सभावे, गाथा-५. ८. पे. नाम. सीतानी सज्झाय, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अलगोरे नेरे ने अलगोरे ने; अंति: नित नित होजो परिणाम, गाथा-९. ९. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: देजो सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. १०. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजीतजीणंदसं प्रीतडी; अंति: वाचक यस० गुण गाय के, गाथा-५. ११. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर वीनती; अंति: साईसं फलस्यै मन साचुरे, गाथा-५. १२. पे. नाम, अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ४२अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दीठी हो प्रभु दीठी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) १०६४९५. गौतमपच्छा सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रावण शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ४०, ले.स्थल. भाणपुर, प्रले. मु. लालचंद (गुरु मु. गणेश, विजयगच्छ); गुपि. मु. गणेश (गुरु मु. पेमचंद, विजयगच्छ); मु. पेमचंद (गुरु मु. माना, विजयगच्छ); मु. माना (गुरु आ. विनयसागरसूरि, विजयगच्छ); आ. विनयसागरसूरि (विजयगच्छ); आ. गुणसागरसूरि (गुरु वा. पद्मसागर, विजयगच्छ); अन्य. मु. हरचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:गोतमप्रच्छा., जैदे., (२७७१३.५, १७४३६-४०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: वीर जिनं प्रणम्यादौ; अंति: नगर्यां च शुभे दिने, ग्रं. १६८२. १०६५०० (+) २० स्थानकतप उच्चारण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)-४, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १४४२१-३७). २० स्थानकतप उच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सिद्धपद गुणवर्णन से ज्ञानपद गुणवर्णन बोल-४ तक है.) १०६५०१ (+) निरयावलिकादि पंचोपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९७, मध्यम, पृ. ७१, कुल पे. ५, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१३,७४३५-३९). For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नीरीयावलीका. ___ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: भणियव्वो तहा, अध्ययन-१०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालइ उसर्पणीनो; अंति: पूर्व पाठनी परि कहवउ. २.पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २९अ-३१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कप्पवडंसिया. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वा सेज्झिहिंति, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जउ भं० हे पूज्य; अंति: महाविदेहइ सीझस्यइ. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३१आ-६०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पुप्फीया. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जओ हे पूज्य तपस्वीइ; अंति: गाथाई कह्या तिम. ४. पे. नाम. पुष्पचलिका सह टबार्थ, पृ.६०आ-६४आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:पुप्फीचुलीका. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: खलु जंबू निक्खेवउ, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जउ हे पुज्य तपस्वीइ; अंति: जंबू पूर्व पाठ कहिवउ. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ६४आ-७१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वन्हिदसा. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जउ हे पूज्य तपस्वीइ; अंति: वर्गि बारइ उदेसा. १०६५०२ (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. बिंदासर, प्रले. मु. शिवराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७७१३, ७४१७-३०). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: सह परभवगा न सेसट्ट, गाथा-७७. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व० पापतत्त्व; अंति: शेष ८ सागै नहीं चालै. १०६५०३. (+) प्रकीर्णक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६४-१(१) ६३, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७७१३, १६-१९४३९-४३). १.पे. नाम. कुसुलाणुबंध अध्ययन, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६६, (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, आउरपच्चक्खाण, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेस विरउ सम्म; अंति: दिसउ खयं सव्वदरियाणं, गाथा-६०. ३. पे. नाम. भक्तिपरिज्ञा प्रकीर्णक, पृ. ५आ-११अ, संपूर्ण. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महाइसयं महाणुभावं; अंति: सोक्खं लहइ मोक्खं, गाथा-१७३. ४. पे. नाम, संस्तार प्रकरण, पृ. ११अ-१४आ, संपूर्ण. संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमोक्कारं जिणवर; अंति: सुहसंकमणं मम दिसंतु, गाथा-१२२. ५. पे. नाम. महापच्चक्खाण, पृ. १४आ-१८आ, संपूर्ण. महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: एस करेमि पणामं तित्थयराणं; अंति: हविज्ज अहवा वि सिज्झेज्जा, गाथा-१४२. ६. पे. नाम. तंदलवेयालिय पइन्नग, पृ. १८आ-२८आ, संपूर्ण. तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निज्जरिय जरामरणं; अंति: (१)मुच्चह सव्वदुक्खाणं, (२)कारणं लहइ सिवसुक्खं. For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७. पे. नाम वीरस्तव प्रकार्णक, पृ. २८आ-२९आ, संपूर्ण. , वीरस्तव प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण जिणं जयजीवबंधव अति सिवगयमणहत्थिरं वीर गाथा-४३. ८. पे. नाम गणिविज्जा प्रकीर्णक, पृ. २९ आ-३२अ, संपूर्ण. गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि बुच्छे बलाबलविहि; अति: नायव्वो अप्पमत्तेहि, गाथा-८५. ९. पे. नाम. चंदाविज्झय पयन्नय, पृ. ३२अ - ३६आ, संपूर्ण. चंद्राध्यक प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि जगमत्थयत्थेयाणं वियसिय; अंति: दुग्गाइविणिवायगमणाणं, गाथा-१७४. १०. पे. नाम. देविंदत्थओ, पृ. ३६आ-४४अ, संपूर्ण. देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., पद्य, आदि: अमर नरवंदिए वंदिऊण; अंति: इह सम्मत्तो अपरिसेसो, गाथा - २९५. ११. पे. नाम. अजीवकप्पो, पृ. ४४-४५आ, संपूर्ण. अजीवकल्प प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि आहारे उवहिम्मिय उवस्सए अंति: बुच्छामि अहाणुपुव्वीए, गाथा-४५. १२. पे. नाम. गच्छायार पइन्नग, पृ. ४५आ-४९अ, संपूर्ण. गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण महावीर; अति इच्छंता हियमप्पणो गाथा- १३७. " १३. पे. नाम. मरणसमाधि प्रकीर्णक, पृ. ४९अ - ६४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: तिहुयण सुरासुरविंदं संघ, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ६१६ अपूर्ण तक है.) १०६५०४ जीवविचार प्रकरण, नवतत्त्व प्रकरण व लघुसंघयणी चोविश दंडक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १०-२ (१,३)=८, कुल पे. ३, ले.स्थल. आणंदपुर, प्रले. मु. हर्षसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २८.५X१३.५, १२x२६). १. पे नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. २अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं है. आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि (-) अंति उद्धरिउ रूदाउ सुय समुदायो, गाथा ५१ (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण " से २४ अपूर्ण तक व ४१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ४आ-८अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: लहीउ मणीरयणासुरिहें, गाथा- ६०. ३. पे नाम. लघुसंघयणी चोवीश दंडक, पृ. ८अ १० आ, संपूर्ण दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि नमिउं चौवीस जिणे; अंति विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-५०. १०६५०५. (+) सुरप्रिय व मदनधनदेव कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५x१२.५, ११४३२) १. पे. नाम. सुरप्रिय कथा, पृ. १-६आ, संपूर्ण. सुरप्रिय कथा- आत्मनिंदाविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य वि. १६५६, आदि प्रणम्य महिमागारं अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-११९ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. मदनधनदेव कथा, पृ. ७अ, संपूर्ण. मदनधनदेव कथा-चंडाप्रचंडाविषये, सं., गद्य, आदि: (-); अंतिः क्रमेण सेत्स्यंति, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंडप्रचंडमदनधनदेव की कथा अपूर्ण से लिखी है.) १०६५०६. (+) सूक्ति संग्रह - औपदेशिक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२७.५४१२.५, १०४२८). युक्त " सूक्ति संग्रह - औपदेशिक, सं., पद्य, आदि भुवनांभोजमार्तंड अंति: (१) निर्वृतानंदहेतो:, (२) स्थिती स्वप्नेपि दुर्घटा, गाथा - ६१. १०६५०७. सीमंधरजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ८. प्र. वि. हुंडीवाला भाग खंडित है. दे., (२७४१३, ११४३०-३४) १. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा हु; अति होज्यो मुज चित्त हो, गाथा ९. For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम शिव लावणी, पू. १आ-२अ संपूर्ण. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: देखो सोनारत आडती लावते; अंति: चितानंद० मरण सेवक टाले, गाथा-८. ३. पे. नाम. शिव आरती, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि इंद्रजि आडति लेकर आये रे अति चितानंद० समयजा धुम मची, गाथा- ७. ४. पे. नाम. शिवशाल लावणी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण चिदानंद, पुहिं, पद्य, आदि पाट बिछा दो बेठो हरजी जल; अति चितानंद चोकी ए खडा रे, गाथा-१०. ५. पे नाम. काशीविश्वनाथ लावणी, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि विश्वनाथ विस्वशर होए रे, अंति काशी के उपर दल मेरा रे, गाथा- १०. ६. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पू. ४अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि गिरुआ रे गुण तुम तणा; अंति जस० प्राण आधारो रे, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - ५. ७. पे नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक ४आ पर किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई कृति का भाग है तथा इस पत्र को अपनी कृति लिखने हेतु उपयोग में लिया है. प्रेम प्रकार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुमतिनाथ गुण शुं मलीजी; अंति: जश० मुज (+) गाथा - ५. ८. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. पत्रांक ५आ पर किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखित विजयचंद्रकेवली चरित्र कृति का प्रारंभिक भाग है तथा इस पत्र को अपनी कृति लिखने हेतु उपयोग किया है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसुपास जिनराज तूं अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) १०६५०८. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७८०, श्रावण शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ५५-१ (१)+१ (४३)=५५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीर-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२७४१३, ६४३१-३४). "" दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: अप्पणा गई गइ त्तिबेमि, (पू.वि. अध्ययन-२ से है.) " " १०६५०९. पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२ (१ से २ =४, पू.वि. बीच के पत्र हैं. दे. (२७.५X१३, १०x२६). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. शकुन संख्या १३२ अपूर्ण से २४२ अपूर्ण तक है.) । चतुः शरण प्रकीर्णक व सुभाषित श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २६-१० (१ से ५,१२ से १६) = १६. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित. वे. (२७४१३ ७४२६-३०). POBUDO १. पे. नाम चतुः शारण प्रकीर्णक, पृ. ६अ ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि सावज्जजोग विरई अति (-), (पू.वि. गाथा ५९ अपूर्ण तक है.) 1 २. पे नाम. सुभाषितानि, पृ. १७-२६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सुभाषित श्लोक संग्रह*, मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३१ अपूर्ण से है व श्लोक १०५ अपूर्ण तक लिखा है.) १०६५११ (+#) बृहत्संग्रहणी सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) = ६, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६.५४१३, १५४४५-५०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से ९ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी- टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only १०६५१२. बर्द्धमान देशना, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२६.५x१३, १०x२८-३२). वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: (१) नमः श्रीपार्श्वनाथाय, ( २ ) अस्मिन् जंबूद्वीपे; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-१ प्राणातिपातविरमण व्रतोपरि श्री हरिबलकथा अपूर्ण पाठ तक है.) Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०६५१३. (+) नारचंद्र ज्योतिषशास्त्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०८, फाल्गुन शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३२, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. उपा. तत्त्वप्रधान गणि (खरतरगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नारचंद्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१३, ८-१५४४५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा; अंति: व्ययकरः रविजः सुतीक्ष्णं, श्लोक-२९४. ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो श्रीअरिहंत; अंति: वर्जिवौ चंद्रमानीपरै, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) १०६५१४. (+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १७४४५-४८). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२८ तक है.) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वादमंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, श. १२१४, आदि: यस्य ज्ञानमनंतवस्तु; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२८ की टीका अपूर्ण तक है.) १०६५१५. (+) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९-२८(१ से २७,३७)=११, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३.५, १२४३४-४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३३ अपूर्ण से १८८ अपूर्ण तक व श्लोक-१९९ अपूर्ण से २३३ अपूर्ण तक है., वि. यंत्र सहित.) १०६५१६. (#) सूक्तमाला, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रावण शुक्ल, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. ग. सौजन्यसागर (गुरु ग. हेतुसागर); गुपि. ग. हेतुसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपद्मप्रभु प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४४). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, श्लोक-१७६. १०६५१७. (+) सिंदरप्रकर सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १३४३८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७७ तक है.) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: (-). १०६५१९. सत्तरभेदपूजा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-३(१ से २,४)=५, दे., (२३.५४१४, ११४३०). सत्तरभेदी पूजा, मु. साधुकीर्ति, पुहि.,प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सच लीला सुख साजै, पूजा-१७, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पूजा-१ अपूर्ण "अंग उचंगुए लाछभवनअतिवासिया" से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६५२० (#) सिद्धांतधर्मोपदेश रत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, चैत्र शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. जावदनगर, प्रले. मोतीराम सेवक; अन्य. पंडित. लछीराम; आ. रामकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिद्धांत., सिद्धांत ध०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१३.५, ५४३७). षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जिणंतु जंतु सिवं, गाथा-१६१, संपूर्ण. षष्ठिशतक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हन् देव सुगुरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२८ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) १०६५२१. भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. हुंडी:भौवण०., जैदे., (२६४१४, ६४२४-३०). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७६. १०६५२२. नारचंद्र ज्योतिष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नारचंद्रटबो०., दे., (२६४१३.५, ६x२२-३२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६४ अपूर्ण तक है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्री अरिहंत भगवंतने; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०६५२३. मानतुंगमानवती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:मानतुग., जैदे., (२५४१४, १३४३६). मानतंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३९ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १०६५२६. (+#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१२, १०४३४-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. साधु सामाचारी अपूर्ण पाठ-"मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेइ से केणटेणं" तक है.) १०६५२७. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र सविधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १२४३३). प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि अपूर्ण से दस पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) | १०६५२८. (+) व्याश्रयमहाकाव्य सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७२-१(२२)=१७१, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:द्वाश्रयमहाकाव्यटीकापाद., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७X१२.५, १४४३३-४५). व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अर्हमित्यक्षरं ब्रह; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-५ श्लोक-८७ तक है व बीच का पाठांश नहीं है.) व्याश्रयमहाकाव्य-टीका, ग. अभयतिलक, सं., गद्य, वि. १३१२, आदि: श्रीभूर्भुवः स्वस्त्रितया; अंति: (-). १०६५३०. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१२, आश्विन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. विदासर, प्रले. मु. केवलचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जीव०., संशोधित., दे., (२५४१२.५, ४-७७२१-२७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुदाउ सूयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भुवन विषइं; अंति: थकी उद्धर्यो ए विचार. १०६५३१ (+) रत्नपालऋषि रास, संपूर्ण, वि. १८३८, कार्तिक कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५८, ले.स्थल. पादरानगर, प्रले. मु. विवेकविजय (गुरु पंन्या. डुंगरविजय, तपागच्छ); गुपि. पंन्या. डुंगरविजय (गुरु मु. मुक्तिविजय, तपागच्छ); मु. मुक्तिविजय (गुरु आ. विजयदयासूरि, तपागच्छ); आ. विजयदयासूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीवासुपूज्य प्रसादात्., संशोधित. कुल ग्रं. १२८५, जैदे., (२७४१२.५, १३४३७-४०). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: लच्छी ___ मोहनविजय विलास जी, खंड-४ ढाल ६६, गाथा-१३७२. १०६५३२. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८७, कार्तिक कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. १७९+१(७८)=१८०, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. हिंदूमल्ल ऋषि (गुरु मु. शिवदासजी ऋषि, लोंकागच्छ-बृहन्नागपुरीय); गुपि.मु. शिवदासजी ऋषि (गुरु मु. जुहारमल्लजी ऋषि, लोंकागच्छ-बृहन्नागपुरीय); मु. जुहारमल्लजी ऋषि (गुरु आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, लोंकागच्छ-बृहन्नागपुरीय); आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि (लोंकागच्छ-बृहन्नागपुरीय); राज्यकाल रा. रत्नसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, ६-१६४३९-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल जे अवसर्पिणी; अंति: उपदेश्यौ कह्यो. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं०; अंति: हिवई समाचारी २५ कहइ छइं. १०६५३३. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८८०, माघ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ७०, पठ. मु. अमरहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १३४२७-३२). For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा- १८२५, (वि. ढाल - ४१.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६५३४. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०४, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २४, प्रले. य. अबीरचंद्र ऋषि (गुरु मु. इंद्रचंद्र, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सज्झाय. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५x१३, १४X३७). १. पे. नाम. ११ अंग सज्झाय- प्रथमांग सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. " ११ अंग सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: पहिलो अंग सुहामणों; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहजो चतुरनर ते कुण; अंति: रूप कहै बुध सारी रे, गाथा ५. ३. पे नाम. प्रसन्नचंदराजर्षि सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्री राज्य छोडि रलियामणो; अंति: रूपविजय० प्रणम् निशदीश गाथा- ६. ४. पे नाम. मेतार्थ सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. तारजमुनि सज्झाव, मा.गु., पद्य, आदि समद गुणना आगरुजी पंचमहा; अंति सेवताजी साधु तणी रे सिझाय, ११ गाथा - १३. ५. पे. नाम. बेलणा सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अति चेलणाजी पामीओ भव तणो पार, गाथा- ७. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- माया परिहार, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो ज्ञान भमरा कांई; अंति: महम्मद० लेखो साईं के हाथ, गाथा - ११. ७. पे नाम. खंडणऋषि सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि ढंढणरिषनै वंदणो हुंवारी अति कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा- ९. ८. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण. . मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: साधु नै कुण तोले हो, ढाल-३, गाथा-११. ९. पे नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पू. ३आ, संपूर्ण मु. मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरु पाय नमी कहुं, अंतिः शील पाली सुखिया थया, गाथा-१३. १४. पे नाम, सीतासती सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लाधो जी, गाथा-१३. १०. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने अंतिः ते मुनिवरना पाया, गाथा- १९. ११. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि जिनवाणी रे धन्ना अमीय अंति: गाया है मनमै गहगही, गाथा-२२. १२. पे नाम, धन्नामुनि सज्झाय, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. धन्नाकाबंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि धन धन्नो ऋषि बंदीयै; अति विद्या० निस्तार रे, गाथा- ७. १३. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only सीतासती सज्झाय शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि जलजलती मिलती घणी रे, अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा - ९. १५. पे नाम औपदेशिक सज्झाय तृष्णा, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध मान मद मछर माय; अति विधन विना निरवाणे, गाथा- ११. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६. पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण.. मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आरति सवि दरई करी; अंति: हरखचंद० गमते सूर, गाथा-७. १७. पे. नाम. आठ कर्म सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. ८ कर्म सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: आठ करम जिणवर कह्या; अंति: ब्रह्म० मारग पालो रे, गाथा-७. १८. पे. नाम. बावीस अभक्ष्य बत्रीस अनंतकाय सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मु. समरसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पय नमी कहिस्युं; अंति: श्रीसमरसिंघ इम उच्चरइ ए, गाथा-७. १९. पे. नाम, विषय सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-विषय, आ. पद्मचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विषयतणां फल पाडुआ; अंति: प्राणीने पजिबोहे सदीव रे, गाथा-९. २०. पे. नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चेतना राणी रे रायजी; अंति: हुं तर्यो रे संसार, गाथा-५. २१. पे. नाम, अवंतीकुमार सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जगचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो अयवंती सुकुमालने रे; अंति: जगचंद० त्रिकाल रे, गाथा-५. २२. पे. नाम. अढार पापस्थानक सज्झाय-१८वां पापस्थानक, पृ. ८आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक परिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वंदियो भवियण प्राणी, ग्रं. ३५०, प्रतिपूर्ण. २३. पे. नाम. साधुगुणअनुमोदन सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. साधगण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, रा., पद्य, आदि: पांचेइंद्रीरे अहनिस; अंति: इम भणइ विजयदेवसूरोजी, गाथा-९. २४. पे. नाम. सिद्धनी सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम पृच्छा करे; अंति: नय कहै सुख अथाग हो, गाथा-१६. १०६५३५ (#) सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. १९३०, पौष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. उज्जैन, प्र.वि. वास्तविकरूप में यह नवस्मरण है परंतु प्रतिलेखक ने इसका नाम सप्तस्मरण दिया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७७१३, १४४३७). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: जैनं जयति शासनं, स्मरण-९. १०६५३६. चतुर्विंशतितीर्थंकर संस्कृत पूजा, अपूर्ण, वि. १९५७, माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४४-३७(१ से ३७)=७, प्रले. बजरंगलाल शर्मा; लिख. पंडित. चंदालालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चतु०., दे., (२७४१३, १०४३२-३५). २४ जिन पूजा, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: सुविमलं कल्याणकोटिप्रदम्, (पू.वि. पार्श्वनाथ पूजा से है.) १०६५३७. (+#) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १८८२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४८+१(३६)=४९, ले.स्थल. मेडता, प्र.वि. हुंडी:सूयगडां., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४१३.५, ८४३३). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झेज्झ; अंति: भयं तारोत्ति बेमि, अध्ययन-१६. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छकाय जीवना स्वरूप जाणइ; अंति: एकर्वोक्त अर्थशास्त्र. १०६५३८. प्रत्याख्यानसूत्र व औपदेशिक श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ११, पठ. मु. हेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३.५, ११४२७). १. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: महत्तरागारेणं वोसिरे. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह-वर्णमालागर्भित, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: टः पुमान् वामने पादे; अंति: दर्शनमिति स्मृतं, श्लोक-१६ For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३. पे. नाम. प्रास्तविक श्लोक संग्रह, पृ.५अ-६आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: नारी नितंबजघनस्तनभूरिभारा; अंति: कनकलतिका वा किमवला, श्लोक-१७. ४. पे. नाम. महावीराष्टक, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. म.शांतिसरि, सं., पद्य, आदि: कंदक दृढोवीरः येन; अंति: शांतिसरि प्रणोदितं. श्लोक-९. ५. पे. नाम, गणधर स्तोत्र, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण... मु. शांतिसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीगौतम चिरं जियात्; अंति: शांति शांतिसूरिश्वरस्य, श्लोक-१२. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ८अ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोकानुक्रम क्रमशः १ से २ है. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यः संसार विगाहमान; अंति: सौख्यं करो पातु माम्, श्लोक-२. ७. पे. नाम. नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोकानुक्रम क्रमशः ३ से ५ है. सं., पद्य, आदि: यस्मिन सदा पक्षिगणा; अंति: नित्यं जिनचंद्र नेमि, श्लोक-३, (वि. अंत में 'अपारे संसारे...' श्लोक प्रारंभ करके छोड दिया है.) ८. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ.८आ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोकानक्रम क्रमशः ६ है. सं., पद्य, आदि: सुवर्ण वर्णा सुखरा च; अंति: धृता सा मम मोक्षदा नमो, श्लोक-१. ९. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोकानुक्रम क्रमशः १ से २ है. सं., पद्य, आदि: श्रीनाभेय जिनेश्वरस्य जयत; अंति: गवल श्यामला कुंतलाली, श्लोक-२. १०. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. ९अ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोकानुक्रम क्रमशः ३ से ५ है. सं., पद्य, आदि: मूर्तिस्ते जगतां महार्ति; अंति: वांछितफलं० वीतरागो जिनः, श्लोक-३. ११.पे. नाम. जिनवर स्तोत्र, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. १०६५५७. (+) दीपमालिका कथा व पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. ६०-४४(१ से ४४)=१६, कुल पे. २, ले.स्थल, अजिमगंज, प्रले. मु. रामचंद्रजी (गुरु आ. देवचंद्रजी); पठ. मु. गुलाबचंद्र (गुरु मु. रामचंद्रजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२३४१४, १६४२८-३२). १. पे. नाम. दीपमालिका कथा, पृ. ४५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दीपावली व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: उत्तमा भविष्यंति, (पू.वि. 'एषां राग द्वेषौनस्त सर्वे तुल्या' पाठ से है.) २.पे. नाम. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, पृ. ४५आ-६०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अष्टा., अष्टाहिप., अ. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: पद्यबंधं विलोक्य तत्. १०६५५८. (+) बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१४.५, १२४१८-२२). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जिनेश्वरे सर्वमंगलमागल्यं. १०६५६० (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८४, भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१४.५, ८x२०-२४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४८. १०६५६१. (+) देवाकी पूजा जयमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१४, ९४२२-२६). जिनपूजा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: जय जय जय नमोस्तु नमोस्तु; अंति: पणमवि अर्हता वलिहिं. १०६५६२. (+) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पसू., सूत्रकल्प., संशोधित., दे., (२२.५४१५, १८x२४). कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: प्रणम्य प्रणता शेषं वीरं; अंति: (-), (पू.वि. नागकेतु कथा अपूर्ण तक १०६५७०. (+) मौनएकादशीपर्व कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:मोनएकादशी., मोनएकाशी., मोनएकादिशी., संशोधित., दे., (२४.५४१३, ५४२९). For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमेरीशानो; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०० अपूर्ण तक है.) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एक दिन के समे नेमनाथ; अंति: (-). १०६५७६.(+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१३.५, १२४१९). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. १०६५८१ (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. चतुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१४, १२४१८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. १०६५९५ (+#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७७-२(७३,७६)=७५, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सो०वघादेवा०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, ९४२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. महावीर चरित्र अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) १०६५९६. (+) लीलावती का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३८-१(१०२)+१(११६)=१३८, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, ११४२५-३६). लीलावती-पद्यानुवाद, पं. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपारस परमेश्वर; अंति: (-), (पू.वि. भागाकार विवरण अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६६०३. नववाड सज्झाय व नववाड रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२३४१२.५, १२४३९). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहने जाउ भामणे, __ ढाल-१०, गाथा-४३. २. पे. नाम. नववाडी रास, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९वाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीश्वर चरणयुग; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१ ___ अपूर्ण तक है.) १०६६०६. पंचप्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति, स्तवन व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-१२(१ से १२)=५, कुल पे. ६, दे., (२४४१२, १३४३०). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १३अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १९१२, वैशाख कृष्ण, ६, शनिवार, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: सर्व मंगल मांगल्यं, (पू.वि. श्रावक १४ नियम गाथा से है.) २.पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. १५अ, संपूर्ण. हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त; अंतिः सततं वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १५अ-१७आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-४९. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १७आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शनात् दुरितध्वंसी; अंति: साक्षात् सुरद्रुमः, गाथा-१. ५. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १७आ, संपूर्ण. मु. मुनिसुंदर, प्रा., पद्य, आदि: जयश्रीजिणवर तिहुअण जयमण; अंति: मुनिसुंदर०पय सुहदाणओ अइरा, गाथा-५. ६.पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १७आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०६६०० (+४) सं., पद्य, आदि: श्री आदिनाथ जगन्नाथ अति (-), (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) | कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४१-१०१(१ से ७८,८६ से १०७,१२५)+१(१२४)=४१. पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है जैदे. (२४.५X१२, १५X३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति: (-). (पू.वि. त्रिशलाराणी द्वारा सिद्धार्थराजा को स्वप्नकथन वर्णन से पार्श्वजिन चरित्र अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र - बालावबोध", मा.गु., रा., गद्य, आदि (-); अति: (-). "" १०६६१२. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२०x१२.५, १०x१७-१९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं समणे, अति: (-). (पू.वि. महावीरजिन दीक्षा वर्णन अपूर्ण तक है.) ० आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि अति मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ६अ -६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १०६६१३. चतुःशरण विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५X१३, १८X३४-३८). ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतजी को सरणो; अंति: (-), (पू.वि. शरणा-३ अपूर्ण तक है.) १०६६१४. सारस्वत धातुपाठ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : धातुपाठ., जैदे., (२६X११, २१X५७-६०). सारस्वत व्याकरण धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १६६३, आदि श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा, अंति: (-), (पू.वि. घट धातु वर्णन अपूर्ण तक है.) १०६६१५. भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२७१२.५, ११x२४-२७). .पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पू. १अ ६अ, संपूर्ण आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि अंति (-) (पू.वि. श्लोक ८ अपूर्ण " १५ तक है.) १०६६१६. (+) वंकचूल कथानक, संपूर्ण, वि. १९१२, पौष शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. विदासर, प्रले. मु. केवलचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : श्रीवकचूलक, संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें - प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. दे. (२५४१३, १३४४३). कचूल कथा, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: चौरस्यापि शीलकणिका; अंति: गृहस्थोपि स वकचूलः, श्लोक-१०९. १०६६१७ सूक्तावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., ( २४४१३, १३X२७-३१). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलकुशलवल्लि, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १० अपूर्ण तक लिखा है.) " १०६६१८ (१) रामविनोद, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ९३- १ ( १ ) +२ (५१ से ५२ ) =९४ ले स्थल वदनोर प्रले. पं. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१३.५, १३-१६x३५-५१). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: रामविनोद विनोदसु, समुद्देश- ७, गाथा-१६१७, ग्रं. ३३२५, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा - १५ से है.) १०६६१९. गमा यंत्र व सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., गुटका, ( २४१२, १७३१). १. पे. नाम. गमा यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. गम्मा यंत्र-जीवादि चोविसदंडक, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक २४ घर ४४; अंति: ३ गमा १२ गमा ५१ गमा. २. पे. नाम. सती सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सहु सरिसा नर नही नही सरीख; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १ गाथा-२२ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०६६२०. (+) सिंदूरप्रकर, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १२४२१-२७). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९८ ___ अपूर्ण तक है.) १०६६२१. (+#) वीरसेनत्रैलोक्यसुंदरी कथा, संपूर्ण, वि. १८२१, श्रावण शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. पाटण, पठ. मु. पुन्यवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सालवीवाडे नेमनाथप्रसादात् अंचलगच्छ., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१२.५, १५४२९-३२). वीरसेनत्रैलोक्यसुंदरी कथा, सं., गद्य, आदि: पत्नी प्रेमवती सुतश्च; अंति: निजभार्यायुतो देवलोक जगाम. १०६६२२. (+) प्रथम कर्मविपाक ग्रंथ व द्वितीय कर्मग्रंथ स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:कर्मग्रं०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४१३, १४४२३-२७). १.पे. नाम. प्रथम कर्मविपाक ग्रंथ, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लहिउ देविंदसूरिहिं, गाथा-६२. २. पे. नाम. द्वितीय कर्मग्रंथ स्तव, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण.. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३५. १०६६२३. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रावण कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. जेनगर, प्रले. पं. रत्नचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१३, १५४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं तेणं; अंति: भुज्जो उवदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. १०६६२४. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०५, कार्तिक कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १७४+१(२३)=१७५, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्रट., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५.५४१२, ७-१५४३४-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल जे अवसर्पिणी; अंति: कह्यो एहवो भगवंत उयदीस्यो. कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत; अंति: सामाचारीयची संपूर्ण थई. १०६६२५. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६४-१४३(२ से १३८,१४१ से १४५,१५०)=२१, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:राजप्रश्नीयसूत्र., जैदे., (२६४१३, ६४३३). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम सूत्र-१७५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवउ० चउथा; अंति: (-). १०६६२६. (+#) भक्तामर स्तोत्र की टीका, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, १५४३४-३७). भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: किलेति सत्ये अहमपि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४३ की टीका अपूर्ण तक है., वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) १०६६२७. (-) सामाइकप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४१३, ९४३९). पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. अढढाईजेसु सूत्र अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १७ १०६६२८. (#) सीलवती चोपी, अपूर्ण, वि. १८३०, पौष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २१-१(१५)=२०, प्रले. मु. कल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखनपुष्पिका खंडित होने से स्थानादि का स्पष्ट बोध नहीं हो पा रहा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १५४३९). शीलवती चौपाई, म. देवरतन, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पुरिसादाणी परगडउ परतिष; अंति: देवरतन० लक्ष्मी तणा किलोल, खंड-३, (पू.वि. खंड-२ ढाल-६ गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-७ दोहा-१ अपूर्ण तक नहीं है.) १०६६२९. दीपोत्सवकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३३, मध्यम, पृ. २५, लिख. मु. न्यालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:दीपोत्सवक., दे., (२५४१३, ६-९४३७-४०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, वि. १३८७, आदि: पणमिय वीरं वुच्छं; अंति: समठीउ एस अत्थ करो, (वि. १९३३, आश्विन कृष्ण, ५, शुक्रवार) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: १२ बारसके रोज समाप्त किया, (वि. १९३३, आश्विन कृष्ण, ९, वि. प्रथम पत्र खंडित होने से आदिवाक्य अपठनीय है. प्रतिलेखक द्वारा भूल से वर्ष १९२३ दिया १०६६३०. कल्पसूत्र का व्याख्यान-१ से ७, अपूर्ण, वि. १९७४, माघ कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १७७-१४३(१ से १४३)=३४, प्रले. श्राव. कर्मचंद्रेण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, ११४२८). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. मात्र ७वाँ व्याख्यान है.) १०६६३२. दीपोत्सव व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१३, ११४४०). दीपावलीपर्व व्याख्यान, पा. उमेदचंद्र, सं., गद्य, वि. १८९६, आदि: श्रीनेमीशं जिनं; अंति: (-), (पू.वि. विष्णुकुमार गजपुरप्राप्ति वर्णन तक है.) १०६६३३. (+) प्रश्नोत्तरसमच्चय-१ से ३ प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१३, १६x४०). हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय , सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रियो निदान; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०६६३४. (+) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. हुंडी:पट्टावली., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१३, १५४३९-४४). पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३०, आदि: प्रणिपत्य जगन्नाथं; अंति: __ संघकृतोत्सवेनसूरिपदंजातं. १०६६३५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१-२(१ से २)=४९, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्येन०., संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १४४५८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: भवसिद्धिय संवुडे, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा-६ अपूर्ण से है.) १०६६३६. (+) सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १५४४०-४३). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: जिनेंद्र देवता तत्र; अंति: वसुदेवं न के जनाः, श्लोक-१३५. १०६६४०, नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२.५, ९४२६). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. भक्तामर स्तोत्र श्लोक-४० अपूर्ण तक है.) १०६६४२. (+) सूरसेन चौपाई-दयाधिकारे, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१)=१६, ले.स्थल. नागार, प्रले. मु. जेठमल मात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२.५, २३४४७-५०). सूरसेन चौपाई, ऋ. हीराचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९६२, आदि: (-); अंति: कहे जन्म सफलो होय ए, ढाल-४१, (पू.वि. ढाल-१ अपूर्ण से है.) १०६६४३. हितशिक्षा सज्झाय, बत्रीसदोष सज्झाय व सिद्धाचल तीर्थमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २०-६(१ से ६)=१४, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१२.५, १०४३२). For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पृ. ७अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय, म. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजयभद्र० नही अवतरे, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, बत्रीसदोष सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. ३२ सामायिकदोष सज्झाय, म. ज्ञानविमल, मा.ग., पद्य, आदि: संयमे धीर सुगुरु पाय; अंति: ञानविमल गुण वादे नुर, गाथा-१०. ३. पे. नाम, सिद्धाचल तीर्थमाला, प. ९अ-२०अ, संपूर्ण. शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारू; अंति: नित नमो __गिरिराया रे, ढाल-१०, गाथा-१५२. १०६६४४. कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., जैदे., (२५.५४१३, ८x२०-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)तेणं कालेणं० समणे, (२)नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. २७ भववर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमोइहा त्रीणवात प्रथम नमो; अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं मांहरो; अंति: (-). १०६६४५. चतुर्मासिकत्रयव्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९५४, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. धोरा, प्रले. य. विनेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७७१३, १२४३३). आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वसुखमागारं; अंति: तत सर्वेष्यर्थ सिद्धि. १०६६४६. (+) वीसस्थानकतप विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १४४३५). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)तिहां प्रथम सुमनिर्दोष, (२)श्रीमद् अर्हतमानस्य; अंति: (-), (प.वि. पद-१४ अपूर्ण तक है.) १०६६४८. कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-३(७,१६,१९)=२२, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२.५, १३४३३). कयवन्ना चौपाई, म. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२४ गाथा-११ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६६४९ (+) नवपदकलश पूजा, संपूर्ण, वि. १९४४, आषाढ़ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. व्यालपुर, पठ. मु. अचलदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवपदपूजा., संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १२-१७४२७-४७). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)परम मंत्र प्रणमी करी, (२)उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: पंचामृतं जल यजामहे स्वाहा, पूजा-९, (वि. अंत में नवपदयंत्र मांडला बनाने की विधि दी गई है.) १०६६५०. शालिभद्रमनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:शालिभद्र., जैदे., (२५.५४१३, १५४३६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीइं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७१ तक है.) १०६६५५. (+#) २४ दंडक भेदगमा विस्तार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५-३८(१ से ३८)=२७, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१३, १२४३५). २४ दंडक भेदगमा विस्तार, रा., गद्य, आदिः (-); अंति: विमाणिकनो २४ मो उद्देशो, (पू.वि. रत्नप्रभा नरक जघन्यगमा वर्णन अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०६६५८. (+४) प्रज्ञापनासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९६ + २ (५९, १०१) २९८, प्र. वि. हुंडी: पन्नवणा., पन्नवणासूत्र.. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे. (२९x१३, ५-८*५५). • प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: सुही सुहं पत्ता, पद- ३६, सूत्र-२१७६. प्रज्ञापनासूत्र - टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि (अपठनीय) अति सुखी सुख पाम्या छे. १०६६५९ (+) सामायिकाध्ययननियुक्ति सह विशेषावश्यकभाष्य व निर्युक्तिभाष्य की शिष्यहिता टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६६६+१ (१५२)= ६६७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (३०.५४१३.५, १५४४७-५४). आवश्यक सूत्र निर्मुक्ति का हिस्सा सामायिक अध्ययन निर्बुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि " आभिणिबोहियनाणं सुचना अति जं चरणगुणडिओ साहू, संपूर्ण विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि कयपवयणप्पणामो वोच्छं; अंतिः जोग्गो " १०६६६१. ७X१९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेसाणुओगस्स, अध्ययन-१, गाथा- ३६०३, संपूर्ण. विशेषावश्यकभाष्य-शिष्यहिता बृहट्टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य वि. १९७५, आदि श्रीसिद्धार्थनरेंद्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. उपसंहार पाठ "मदीयशिक्षां कुर्वाणस्तुमक्षेपेणैव" तक है.) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे ७. प्र. वि. हुंडी सिज्झाय., संशोधित, जैदे., (२७४१३ १. पे नाम. प्रथमांगजी सिज्झाय, पृ. १आ-३अ संपूर्ण ११ अंग सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि पहिलो अंग सुहामण; अंति: लाल एहिज अंग आधार रे. २. पे. नाम. नवकारवाली सिज्झाय, पू. ३-४अ संपूर्ण नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि कहिज्यो चतुर नर ते कुण; अति रूप कहे बुध सारी रे, गाथा ५. ३. पे नाम. प्रश्नचंदराजर्षि स्वाध्याय पू. ४अ ५अ, संपूर्ण, प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: राज्य छडी रलियामणोजी जाणी; अंति: रूपविजय० प्रणमुं निशदीश, गाथा-६. ४. पे. नाम. मेतार्यमुनि सिज्झाय, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण. मेतारजमुनि सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरुजी; अंति: रंगे० साधुतणी ए सिज्झाय, गाथा - १३. ५. पे. नाम. चेलणा स्वाध्याय पू. ७आ-८आ, संपूर्ण. . चेलणासती सज्झाय, उपा. समबसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि वीर वखाणी राणि चेलणा; अंतिः समय० पाम्यो भवनो पार, गाथा- ७. ६. पे नाम. आत्महेतु हितोपदेश सिज्झाय, पृ. ८आ - ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मन भमरा कांइ; अंति: महमद कहे० सांई के हाथ, गाथा - १३. १९ ७. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. ११अ - १२आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि ढंढण ऋषिने वंदना है; अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ८ अपूर्ण तक लिखा है.) १०६६६२. (*) सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७.५x१३, १२४३५). For Private and Personal Use Only , १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य वि. १६९८ आदि भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: सब लीला शिवसुख साजै, ढाल १७. १०६६६३. (+#) स्वरोदय शास्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३.५, १४४३१). Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्वरोदयसार, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: नमो आदि अरिहंत देव, अंतिः शर वरष चिदानंद चितधार, गाथा -४५२. १०६६६४ (+) नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ७. प्र. वि. संशोधित, जै, (२७.५X१३, १५- १८x४९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: माहरो निमस्कार हुवै, (वि. मूल की मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " १०६६६५. (+) सालभद्रजी सज्झाय व इलाचीकुमारनो चोढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८-९ (१)=७, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२८४१३, १२४३९). "" १. पे. नाम. शालभद्रजी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. शालिभद्रमुनि सज्झाय, ग. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति समयसुंदरनी वांण, गाधा- ३४ (पू.वि. गाथा- २३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. इलाचीकुमारनो चोढालीयो, पृ. २आ-८अ, संपूर्ण इलाचीकुमार छडालि, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि मात मया करो सरसती अंतिः मालमुनि गुण गाय, ढाल - ६. १०६६६६. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. हुंडी : साधु०प्र०बा., साधु०बा., संशोधित, जैवे. (२६४११.५, ११-१४४४४). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि पडिक्कमिङ अति: वंदामि जिणे चउवीस, पगामसज्झायसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: निवर्तिवा वांछउ प्रकाम; अंति: चोबीस तीर्थंकर वांदठ, १०६६६७. सिंदूरप्रकर सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., (२७४१३, १३x४४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः अंति (-) (पू.वि. श्लोक-४ तक सिंदूरकर- बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु. सं., गद्य, आदि: शारदाचरणयुग्ममतीतपापं अंति: (-), (पू.वि. चक्र दृष्टांत कथा अपूर्ण तक है.) १०६६६८. (-) लावणी व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४८-२ (१५ से १६) = ४६, कुल पे २४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., (२७.५x१३, ११-१४४२४-२९). १. पे नाम. पार्श्वनाथ लावणी, पृ. १अ २आ, संपूर्ण . o प्रभु पार्श्वजिन लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: पारसनाथ माहाराज आपकी महीम; अंति: हिरालाल संपतसारी, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे नाम शालिभद्रमुनि लावणी, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण मु. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९५६, आदि: सालभद्र माहाराज आपकी; अंति: हीरालाल० संपत पायो, गाथा-५. ३. पे. नाम. चंद्रराजा लावणी, पृ. ५आ-१०अ संपूर्ण. मु. . हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९५६, आदि: मुनिसुव्रत माहाराज; अंति: श्रावगलोग वसे ग्यानी, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. कृष्णमुरारी लावणी, पृ. १०अ १२आ, संपूर्ण. कृष्णमहाराजा लावणी, मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि कीसन मुरारी माहाराज सधारी; अंति हीरालाल०सोपी नीज भ्रातगरे, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ५. पे. नाम. अमरकुमार लावणी, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण. अमरकुमार लावणी-नवकार प्रभाव, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: देखो जगत की रीत; अंति: हीरालाल० भव होजो सुखकारी, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. पे. नाम. धर्मरुचि अणगार लावणी, पृ. १३आ-१४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी धर्मघोष अति (-), (पू.वि. "महावीदेहे क्षेत्र में मिटसी" पाठ तक है.. वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ७. पे नाम. श्रेणिकराजा लावणी, पृ. १७-१८आ, संपूर्ण. श्रेणिकराजा लावणी-सम्यक्त्व, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: कीधो धर्म तरो उद्योत होवा; अंति: हीरालाल० डढ समगत धारीजी, गाथा-४. ८. पे. नाम. भरतेश्वर बाहुबली लावणी, पृ. १८ आ-२०अ, संपूर्ण. मु. . हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९६२, आदि: या करी तपस्या भाग उद; अंति: हीरालाल कहे जश सवायो जी, गाथा- ६. ९. पे. नाम. मदनकुमार लावणी, पृ. २०अ २१आ, संपूर्ण. मदनकुमार लावणी - शीलव्रत, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९६२, आदि: ये सील वरत अरथ मोक्ष को; अंति हीरालाल कहे जीपता हरनीजी, गाथा ५. १०. पे. नाम. परदेशीराजा केशीकुमार संवाद, पू. २९आ- २४आ, संपूर्ण मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य वि. १९६२, आदि ये मुनिराज महाराज; अंति: हीरालाल० भक्तारी करीवाजी गाथा ६. , ११. पे. नाम. सम्यक्त्व लावणी, पृ. २४आ२६आ, संपूर्ण मु. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९६२, आदि शुभ समगत ओर धर्म दलाली जो अति हीरालाल गुण गावैगा. १२. पे. नाम. कृष्णवासुदेव लावणी, पृ. २६ आ-२७आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९६२, आदि: एक दया धर्मकी जाहाज पार; अंति: हीरालाल० आतम सुब करना, गाथा-४. १३. पे. नाम. मंदोदरी लावणी, पृ. २७-२८आ, संपूर्ण , मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि तुम सुणों पियाजी अर्ज एक अंति हीरालाल० होवन हारी, गाथा-५. १४. पे. नाम नमिराजर्षि लावणी, पृ. २८आ- ३१आ, संपूर्ण - मु. हीरालाल, पु,ि पद्य, आदि: बीदेहदेस ओर मधानगरी नेमी; अति हीरालाल० भागदशा जागी, ढाल २. १५. पे नाम, धन्नाशालिभद्र चरित्र, पृ. ३१आ-३३आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र लावणी, मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, वि. १९५७, आदि: श्रीसालभद्र महाराज जगतमें अति: चोथमल गावे० ममता मारी, गाथा- ७. १६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- शीलपालन, पृ. ३३आ-३७आ, संपूर्ण. मु. चौथमलजी मु. खूबचंद, पुहिं, पद्य, आदि सिलरतन्न का करो, अंति चोधमल० चरणे चीत लावे, गाथा १०. १७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३७-३८आ, संपूर्ण. मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि तुम सुणो मुगत का पंथ संत अति मुजे सतगुर के सरनाजी, गाथा ५. " २१ १८. पे. नाम. ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती लावणी, पृ. ३९-४१अ, संपूर्ण. मु. खूबचंद, पुहिं, पद्य, आदि: (१) ये धर्मदत दुवादसमो चक्री, (२) वे ब्रह्मदत दुवादसमो चक्र, अति खूबचंद० हीतकर समजायाजी गाथा ७. १९. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ४१-४२अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: दयाधर्म केरे परभाव मे सुख; अंति: करमा को रोग मीटावेगा, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) २०. पे नाम, मेघरथराजा लावणी, पृ. ४२आ-४४आ, संपूर्ण मु. खूबचंद मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, वि. १९५४, आदि: मुनीराज प्रथम देवलोग के; अति: खूबचंद० जोतमे जोत समावेगा (वि. गावांक नहीं लिखा है.) २१. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. ४५ ४५आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि एस मुनीराज माहाराज जीव अंति हीरा० उर्ध्वगती का म्यान. " २२. पे नाम, दानशीलतपभावना लावणी, पू. ४५आ-४७अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: ये दान सितलत भाव; अंति: हीरालाल ग्यानीदेव फूरमाया, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) २३. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण. मु. देवीलाल, पुहिं., पद्य, वि. १९६०, आदि: श्रीत्रिसलादे के नंद बसत; अंति: देवीलाल० सयल ग्यानके बनमे, गाथा-४. २४. पे. नाम. सातव्यसन लावणी, पृ. ४७आ-४८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७व्यसन निवारण लावणी, पुहि., पद्य, आदि: कहे संत सुणो इसी जगतमे; अंति: (-), (प.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १०६६६९ (#) भवणद्वार विचार व भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२८.५४१३, १३४३८). १.पे. नाम. भवण द्वार विचार, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण, प्रले. मु. सामाजी ऋषि; पठ. सा. माहुजीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:महादंडक भवण. भवणद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नरक सातना भवण सास्वता; अंति: इकतीस गुणो करी संयुक्त छै. २. पे. नाम. भगवतीसूत्र-शतक-२५ उद्देश-७ प्रतिसेवानादिसूत्र सह टबार्थ, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक २५ उद्देश ७ प्रतिसेवनादिसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: दसविहा पडिसेवणा पन्नंता; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. आलोयणा योग्यता ८ प्रकार सूत्र अपूर्ण तक है.) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक २५ उद्देश ७ प्रतिसेवनादिसूत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: द० दस प्रकारना प०; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १०६६७० (+#) पुन्यपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९४८, आषाढ़ शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. नौतनपुर, प्रले. मु. रत्नचंद ऋषि (गुरु मु. रंगलालजी); गुपि. मु.रंगलालजी (गुरु मु. रेखराजजी महाराज); मु. रेखराजजी महाराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पुन्यपालचरि. शांतिजिन प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८.५४१३.५, १८४५५). पुण्यपाल चरित्र-दानाधिकारे, म. रामदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९०९, आदि: शांतिनाथ शाता करन; अंति: राम० __ अवगुण गुण ग्रहै, ढाल-३५. १०६६७२. (+) लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्रले. मु. चतुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१३, १२४२९). लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: श्रीमानदेवश्च० जयति शासनं, श्लोक-१८, (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से है.) १०६६७३. (+) सुयहीलुप्पत्ती अज्झयण, संपूर्ण, वि. १९०७, आश्विन शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. विष्णुचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उवांगचूलीया सूत्र., उ०चूली०., उवा०चूलि०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३.५४१३, ११४३०-३५). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभर नमिर सुरनर; अंति: दढचित्तो होह पइदियह. १०६६७४. सोलह कारण पूजा व दश लक्षण व्रत पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४१३, १६x४६). १.पे. नाम. सोलह कारण पूजा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १६ कारण पूजा, अप., पद्य, आदि: ऐंद्रं पदं प्राप्य परं; अंति: सिद्धवर गणहिय हरा. २. पे. नाम. दश लक्षण व्रत पूजा, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १० लक्षणपूजा विधि, म. ब्रह्मजिनदास, अप., पद्य, आदि: उत्तमादिक्षमाद्यंत; अंति: (-), (पू.वि. अर्घपूजा अपूर्ण तक १०६६७६. (+) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. चतुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., अ., (२३४१४, १२४२२-२५). ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०६६८५ (+) मुहूर्त्तमुक्तावली सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१ (१) - १८, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२१.५x१४, ४x२३). २३ मुहूर्त्तमुक्तावली, आ. परमहंस परिव्राजक, सं., पद्य, आदि (-); अति पादपलतीषधिरोपणं च श्लोक-४५, (पू.वि. लोक १ अपूर्ण से है.) मुहूर्त्तमुक्तावली - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. श्लोक-२७ तक का टबार्थ लिखा है.) १०६६९६ (+) नवतत्त्व प्रकरण व चतुः शरण प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७. कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२२x१३.५, ५X४०). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, पृ. १अ - ७अ संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवा१जीवार पुण्णं ३ पावा४ अंति: अनंतभागो य सिद्धि गओ गाधा-५५. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नवतत्त्वना नाम कहे; अंति: श्रीभगवाननाथा श्रावक कहिइ. २. पे. नाम चतुः शरण प्रकीर्णक सह टवार्थ, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. चतुःश्‍ तुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग वरई उकित्तण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि सपाप व्यापारा थकी विरति अंति: (-). १०६६९८ (+) दानशीलतपभावना संवाद, अवंतिसुकुमाल चौपाई, १६ सती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७०-५९(१ से ५३,५५ से ५८,६८ से ६९) = ११, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. जैवे. (२३४१३.५, १३x२७). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. ५४अ-५४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय अति (-) (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण तक है.) २. पे नाम, अवंतिसुकुमाल चौपाई, पृ. ५९अ ६७आ, संपूर्ण अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्त किणहेक; अंति: जिनहर्ष० घर आवि इम भाषइ, ढाल - १३, गाथा - १०९. ३. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. ७०अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मु. . त्रिकम, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीरिषभ तणी धुया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १४ अपूर्ण तक लिखा है.) ४. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. ७०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मु. . त्रिकम, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीऋषभ तणी ब्राह्मी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) १०६७०२. (+) गौतम रास, स्नात्रपूजा विधिसहित व अष्टप्रकारी पूजादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९६ श्रावण कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ३०-१(२९)=२९, कुल पे. १७, ले. स्थल. दुर्ग, प्रले. पं. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३x१४, ११x१९). १. .पे. नाम, गौतम रास, पृ. १अ ७आ, संपूर्ण वि. १८९६ श्रावण कृष्ण, ४, ले. स्थल, दुर्ग, प्रले. पं. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. गौतमस्वामी रास- बृहत् मु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर चरणकमल कमला; अंति: भोजन संपजे कुरला करै कपूर, ढाल-६, गाथा-५५. For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित पृ. ८अ १६अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०. ३. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १६अ-२२आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख पूरवा अंति: अमर पद पावे, ढाल ८, गाथा- ६६. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर. पू. २२-२३अ, संपूर्ण. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: जिणचंद सकलरिपु जीततो, गाथा-५. ५. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: मुगति तणां फल तांहि, गाथा-६. ६. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण. मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी गौतम प्रणमी; अंति: उदय प्रगट्यो परधान, गाथा-८. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-नाकोडामंडण, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी पार्श्वजिन छंद-नाकोडामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपणे घेर बेठा लील; अंति: कहै गुण जोडो, गाथा-८. ८. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: प्रह उगमते सूर जी, गाथा-५. ९.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा मंडण, पृ. २५आ-२६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी पार्श्वजिन छंद-नाकोडामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपणे घेर बेठा लील; अंति: कहै गुण जोडो, गाथा-८. १०. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. २६आ-२७आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंग; अंति: जास अपार री माई, गाथा-९. ११. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही राउ; अंति: सेवइ बेकर जोड रे, गाथा-५. १२. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. म. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: कागलीय करतार भणी; अंति: रे इणि घर छे आ रीत, गाथा-५. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, पृ. २८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणि पास जिनेसर; अंति: जिनमहेंद्रसूरि०पूरो सारी, गाथा-५. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आज दिहाडौ रूवडौ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक १५. पे. नाम. जिनकुशलसूरिगुरुगुण गीत, पृ. ३०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राज०बेर बेर बलिहारी, गाथा-२, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) १६. पे. नाम, गुरुगुण पद, पृ. ३०आ, संपूर्ण. आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कीजिये प्रतिपाल सद्गुरु; अंति: जिमहेंद्र०अपनो संभाल, गाथा-३. १७. पे. नाम. जिनकुशलसूरिगुरुगुण गीत, पृ. ३०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: विघनहरण संपतिकरण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १०६७१० (#) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-४(१ से २,५ से ६)=६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७.५४१३.५, ११-१४४२६). जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भयहर मंत्रविधि अपूर्ण से घंटाकर्ण मंत्रयंत्र तक है.) १०६७१७. (#) प्रतिक्रमण हेतु स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(३ से ४)=१०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१३.५, १३-१४४३३). For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी; अंति: जस० देयो मंगल कोडि, ढाल-१९, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं है.) १०६७१८. (+) प्रास्ताविक काव्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९०३, आश्विन कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०-७(६ से ९,३१ से ३३)=३३, ले.स्थल. भुज नगर, प्रले. कल्याणजी जोशी; लिख. श्राव. ओटाराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:काव्य०, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, ४४२५-२८). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: राज्यंनिः सचिवंगतः प्रहरण; अंति: नमतीवान संजीवनं पुस्तकां, गाथा-१४०, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१५ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक व १०३ अपूर्ण से ११४ अपूर्ण तक नहीं है.) सुभाषित श्लोक संग्रह- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: राज्य प्रधान विना न सोभे,; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१३७ तक टबार्थ लिखा है.) १०६७२१. आत्मानुशासन सह भावार्थ व भाषाटीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६२-१८०(१ से १७९,२०८)-८२, प्र.वि. हुंडी:आ०भा०., दे., (२१४१२.५, १०४२१-२४). आत्मानुशासन, आ. गुणभद्र, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: (-); अंति: कृतिरात्मानुशासनं, श्लोक-२७१, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१ से १७१ तक व १९३वा नहीं है.) आत्मानशासन-भावार्थ, पंडित. टोडरमल , पुहि., गद्य, वि. २०वी, आदि: (-); अंति: ए दो अर्थ प्रमाण है, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आत्मानुशासन-भाषाटीका, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: इह आत्मानुशासन का वर्णन, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १०६७२६. (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. सिरदार शहर, प्रले. मु. छोटुलाल (लुकागच्छ-बृहन्नागोरी); पठ. श्राव. पोकरचंद (पिता श्राव. अमेदमल); गुपि. श्राव. अमेदमल (पिता श्राव. जयकरमदास); श्राव. जयकरमदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:साधुवंदना., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२०.५४१३, १६४२५-२८). साधवंदना तेरहढाला, म. देवमनि, मा.ग., पद्य, आदि: पंचभरत पंचएरव जाण; अंति: देवमुनि गुण संथण्या, ढाल-१३, गाथा-१६०. १०६७३१ (+) नवतत्त्व प्रकरण की व अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(११)=१४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१३,१५४३९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टीका, मु. रत्नचंद्र, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पादौ जिनराज; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मोक्ष तत्त्व वर्णन अपूर्ण तक है.) १०६७३२. (4) प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१३, आषाढ़ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. तितडवाड, प्रले. मु. चंदनलाल (गुरु मु. गुलजारीमल); गुपि. मु. गुलजारीमल; पठ. मु. रुडमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:पडकमणा साधु का., मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, २१४५५-६०). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: आवसही इच्छाकारेण; अंति: (अपठनीय), (वि. अंतिमवाक्य वाले पत्र चिपके हुए हैं.) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), (वि. किनारी खंडित है व पत्र *चिपके हुए हैं.) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रहबालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जे जिन वचन समासरदहां; अंति: (अपठनीय), (वि. अंतिम वाक्य वाले पत्र चिपके हुए हैं.) १०६७३५. (+) अभिधानचिंतामणिनाममाला-कांड १ से २, संपूर्ण, वि. १८३६, आषाढ़ शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. पं. हंसविजय (गुरु पंन्या. गजविजय); पठ. मु. भांणाजी (गुरु मु. वणारसी); गुपि. मु. वणारसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथजी प्रसादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४२७) जहां सूरज जहां चंद्रमा, जैदे., (२५४१३, ११-१५४३३). For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), ग्रं. १४५२, प्रतिपूर्ण. १०६७३६. गुरुस्तूपप्रतिष्ठा व ज्ञानपूजा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:श्रीदादाजीस्तूपप्रतिष्ठा., दे., (२३.५४१३, ११४३५). १.पे. नाम. गुरुस्तूपप्रतिष्ठा विधि, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरिचरणपादुकाप्रतिष्ठा विधि-दिल्लीनगर, पुहिं.,सं., प+ग., आदि: प्रथम दिन ७ पहली अथवा दिन; अंति: जन अपने अपने स्थानकू जाय. २.पे. नाम. ज्ञानपूजा विधि, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. शास्त्रपूजा अष्टक, आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: प्रकटितपरमार्थे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अक्षतपूजा तक है.) १०६७३७. ढोलामारवणरी वात, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, दे., (२४४१३, १८४३२-३९). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर सामिनी; अंति: (-), गाथा-७००, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७६ अपूर्ण तक लिखा है.) । १०६७३९ (+) ऋषिमंडल व चतुर्विंशतिजिनस्तव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१३, ९४२३). १.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण, प्रले. उपा. क्षमाकल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:ऋषि०. ऋषिमंडल स्तोत्र-लघु, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमुत्तमम्, __ श्लोक-६३. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनस्तव स्तोत्र, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव-चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी __ निवासम्, श्लोक-८. १०६७४०. चंदनमलयागिरिरी बात, संपूर्ण, वि. १८८०, माघ शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. कलकत्ता, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३८). चंदनमलयागिरि रास, म. भद्रसेन, पुहि., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: पुन्यते भए सुख सवंछित भोग, अध्याय-५, गाथा-१०२. १०६७४१ (+) गोराबादलरी वात व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, ले.स्थल. सिरोही, प्रले. श्राव. ओटाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में वर्षादि का उल्लेख दो बार किया है तिथि भिन्न है., संशोधित., दे., (२४४१३, ११४२३-२६). १. पे. नाम. गोराबादलरी वात, पृ. १अ-१८अ, संपूर्ण. गोराबादल रास, श्राव. जटमल नाहर, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: चरण कमल चितलाय कै; अंति: (१)जटमल० विघन न होज्यो कोई, (२)जटमल० लेज्यो सुकसुधार, गाथा-१३०. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: राजा पढै तो राजनीत मंत्री; अंति: मंदिर महल० मीलायो कंथ. १०६७४३. होली की कथा, संपूर्ण, वि. १८६२, चैत्र कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल, मक्सुदावाद, प्रले. पंडित. धीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१३, १३४२९). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे ऋषभैक; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक-६५. १०६७४४. जसराज बावनी व केशवबावनी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४१३, १४४३४). १.पे. नाम. जसराज बावनी, पृ. १अ, संपूर्ण. अक्षरबावनी, मु. जसराजजी; मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, वि. १७३८, आदि: ॐकार अपार जगत आधार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-१ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २. पे. नाम. केशव बावनी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: ॐकार सदा सुख देत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) १०६७४६. ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२३.५४१३, ७४१५-२०). ऋषिमंडल स्तोत्र-लघु, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४२ अपूर्ण तक है.) १०६७४९ कर्मदहन पूजा व सिद्ध स्तुति, संपूर्ण, वि. १८३२, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २, ले.स्थल. रानेल बंदिर, प्रले. आ. देवेंद्रकीर्ति (गुरु आ. त्रिलोकेंद्रकीर्ति, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); गुपि. आ. त्रिलोकेंद्रकीर्ति (गुरु आ. विजयकीर्तिदेव, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); आ. विजयकीर्तिदेव (गुरु आ. भुवनभूषणदेव, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१३, १४-१७४३०-३३). १. पे. नाम. कर्मदहन पूजा, पृ. १अ-१४अ, संपूर्ण. आ. वादिचंद्रसूरि, सं., प+ग., आदि: (१)ॐ ह्रीं णमो अरिहंताणं० ॐ, (२)ॐ ऊर्ध्वाधोरयुतं स बिंद; अंति: वादिचंद्र० पूजेयनमाददा. २. पे. नाम. सिद्ध स्तुति, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: यस्यानुप्रैतो दुराग्रह; अंति: सुकृतः सिद्धे तृतीये भवे, श्लोक-१०. १०६७५१ (+#) समवसरण चरचा, नरक वर्णन व स्वर्गानिके सुखनिका वर्णनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१-१(२२)=५०, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१३, १०४३०). १.पे. नाम. समवसरण चरचा, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:समरच०. २४ जिन समवसरण विचार, रा., गद्य, आदिः (१)असरनसरन जिनेशकौ समवसरन, (२)अथ प्रथमही समवसरण कीजे; अंति: तो आकश विषै विहार करै हैं. २. पे. नाम. नरक वर्णन, पृ. १४आ-१९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नर्क०. नरक विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीगुरां पासि सिश्य प्रश; अंति: करलै नाममैं दोस नाही. ३. पे. नाम. स्वर्गानिके सुखनिका वर्णन, पृ. १९आ-३५आ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:स्वर्ग०. स्वर्ग वर्णन, पुहि., गद्य, आदि: हे परम उपगारी हे संसार; अंति: शास्त्रने अनुसार वणाया है. ४. पे. नाम, मोक्ष सुखन का वर्णन, पृ. ३५आ-५१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मोक्ष स्वरूप वर्णन, पुहिं., गद्य, आदि: (१)श्रीगुरां पासि शिष्य प्रश, (२)हे प्रभू हे स्वामिन्; अंति: (-), (पू.वि. ऐसे शिष्य प्रश्न किया० सुभव्यजीव० वर्णन तक है.) १०६७५२. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१३, १५४३८). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: अनंत सुखनो सदा रे, स्तवन-२४, (पू.वि. अभिनंदनजिन स्तवन-४ गाथा-२ अपूर्ण से है.) १०६७५३. (+) दिवाली कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. लक्ष्मणपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, ११४२८). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, वि. १३८७, आदि: पणमिय वीरं वुच्छं; अंति: समथिओ एस सत्थिकरो. १०६७५४. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४१३, ११४३४-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (प.वि. महावीर चरित्र भद्रासन रचना सूत्र-६३ अपूर्ण तक है.) १०६७५८ (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-अध्ययन १ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ८४३८). For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (१) प्रणम्यश्री महावीरं, (२) तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: (-), प्रतिपूर्ण ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टबार्थ * मा.गु., गद्य, आदि (१)नमो श्रीजिना गमाय, (२) तेण कालइ चउथह आरइ अंति: (-), प्रतिपूर्ण. " १०६७५९ पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२०x१३, ७X२२). पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि स्मृत्वा पार्श्व अति (-), (पू.वि. पाठ "विधेवा पूर्वकृत् क्रोधेपि मीथ्यादुःकृत" तक है.) १०६७७० कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १६२, प्रले. मु. चंदनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी कल्पसूत्र टीका, श्रीदेवगुरु प्रसाद त्रिपाठ. कुल ग्रं. ६१०३, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे. (२६.५x१३, १३-१६४३८-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेनं० समणे अति: भुज्जो उवदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य वि. १६९६ आदि प्रणम्य परमश्रेयस्करं; अति . (१) विद्वज्जनैराश्रिता ( २ ) प्रतीयमुवाचेति प्र. ६५८०. . १०६७७४ (+) आराधनासार सह छाया व बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६५. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है.. प्र.वि. हुंडी:आ.द्वना., संशोधित., जैदे., ( २६१३, १२X३५-४०). आराधनासार, आ. देवसेन, प्रा. पद्य वि. ९९०, आदि: विमलयरगुणसमिद्धि: अंति: हुज्जइ पक्वण विरुद्धा, गाथा - ११५, संपूर्ण. आराधनासार- छाया, सं., गद्य, आदि विमलतर गुण समुद्र सिद्ध: अति: जइ पवयण विरुद्ध, संपूर्ण. आराधनासार बालावबोध, पुहिं., गद्य, आदि: श्रीमत्तदेवसेनाचार्या ग्रंथ, अंति: (-), (पूर्णं, पू. वि. प्रशस्तिभाग प्रारंभिक अपूर्ण तक है.) १०६७७५. (+) २४ दंडक ३० द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१ (३) =५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी द्वार, संशोधित, जै.. (२६.५१४, १५४३६). , २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: (-), (पू.वि. द्वार - १८ पंचेद्रीना पांच भेद तक है व अवगाहना द्वार अपूर्ण से समुद्धात वर्णन अपूर्ण तक नहीं है.) १०६७७६. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीर संशोधित, जै, (२५.५x१३, ६४३५-३९). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउलेज्ज; अंति (-), प्रतिपूर्ण सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छकायनउ स्वरूप जाणी नई; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०६७७९ अठपुहरीयापोसानी विधि व पाक्षिकापडिकमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., For Private and Personal Use Only (२६.५X१३.५, १५X४४). १. पे नाम. अठपुहरीयापोसानीविधि, पृ. १अ ५अ संपूर्ण. पौषधविधि- अष्टप्रहरी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि राजने पाछे जे बि घडीये अंतिः शेष आहार आप की. २. पे. नाम. पाक्षिकापडिकमणविधि, पृ. ५अ-६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. " पंचप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय पक्खीचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि गाथा, संबद्ध, प्रा. पद्य, आदिः तिहां प्रथम वंदेतू सूत्र अति (-) (पू.वि. अजितशांति व लघु स्तवन कहने तक है.) १०६७८०. (+) आतमराजानो रास, पंचभावना व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११६- ९६ (१ से ८५,१०५ से ११५)=२०, कुल पे. ३९, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१३.५, १७x४८). १. पे. नाम. आतमराजानो रास, पृ. ८६ अ- ८६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आत्मराज रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५८८ आदि (-) अति सहिजसुंदर० भोगवई भोग गाथा- १०१, (पू.वि. ढाल - ९ गाथा-१ से है.) Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २. पे. नाम, पंचभावना, पृ. ८६आ-८९अ, संपूर्ण. पंचभावनागर्भितसीमंधरजिनस्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ती श्रीमंदइ परम धरम; अंति: सुख संपति गृह थावोजी, ढाल-६. ३. पे. नाम. आत्महित सिज्झा कथन स्वाध्याय, पृ. ८९अ-८९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे; अंति: विजयभद्र० नही अवतरे, गाथा-२५. ४. पे. नाम. पोसह सज्झाय, पृ. ८९आ-९०अ, संपूर्ण. पौषधव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली समरस आणीयै तजो पाप; अंति: गुणलाभ० खपै करमनी कोडिरे, गाथा-१४. ५.पे. नाम. कर्मशुभाशुभफल सज्झाय, पृ. ९०अ-९०आ, संपूर्ण. शुभाशुभकर्म सज्झाय, मु. मोहनरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: कर्मशुभाशुभ होय ऐ जाणी; अंति: मोहनरु० मुक्तिनी सांणी रे, गाथा-१३. ६.पे. नाम, अवंताऋषी सज्झाय, पृ. ९०आ-९१अ, संपूर्ण. अइमत्तामनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसरि, मा.ग., पद्य, आदि: वीरजिनवर वांदीने गौतम; अंति: लक्ष्मीविज० तेह मनि संतो, गाथा-१८. ७. पे. नाम, चौत्रीस श्रावक क्रिया स्वाध्याय, पृ. ९१अ-९१आ, संपूर्ण. ३४ क्रिया श्रावक सज्झाय, मु. मोहनरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: सुण भवीयण है चररमजदिणै; अंति: मोहनरुचि अणगार, गाथा-१७. ८. पे. नाम, बत्रीस दोषसामायक स्वाध्याय, पृ. ९१आ-९२अ, संपूर्ण. ३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जीयमें धीर सुगुरु पय नमी; अंति: ज्ञानविमल० वाधे नूर, गाथा-१०. ९.पे. नाम, थानिककाउसग स्वाध्याय, पृ. ९२अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप काउसग्ग सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत प्रथम पदे; अंति: कहे तप शिवसुख दातार, गाथा-५. १०. पे. नाम. आत्मसीष्या स्वाध्याय, पृ. ९२आ, संपूर्ण. आत्महितशिक्षा सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु सुदेव सुधर्मा; अंति: द्ध मारग अनुसरीये रे, गाथा-१५. ११. पे. नाम. नवकार स्वाध्याय, पृ. ९२आ-९३अ, संपूर्ण. नवकार सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ए नवकार तणुं फल; अंति: ज्ञान० गुण धरीये हो, गाथा-१४. १२. पे. नाम, अष्टदृष्टिसमुच्चय सज्झाय, पृ. ९३अ-९३आ, संपूर्ण.. ८ दृष्टि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंद परमात्मरूप; अंति: विमलसूरि कहइ भवि हेत, गाथा-१४. १३. पे. नाम, अष्टभंगी स्वाध्याय, पृ. ९३आ, संपूर्ण. ___ अष्टभंगी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुगुरुदेव सुधर्मनु; अंति: तेहनी जीन आण धरंता, गाथा-११. १४. पे. नाम. पनरतीथी स्वाध्याय, पृ. ९४अ, संपूर्ण. १५तिथि सज्झाय, म. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आतम अनुभव चित्त धरो; अंति: ज्ञानविमल० नमे सुरनर भुप, गाथा-१२. १५. पे. नाम, विगयनिवीगइ सिज्झाय, पृ. ९४अ-९४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विगयनिविगय सज्झाय, आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदिः श्रुत अमरी समरी शारद; अंति: कविनयविमल कहे सज्झाय, गाथा-२३. १६.पे. नाम. पडिलेहण सज्झाय, पृ. ९४आ, संपूर्ण. मुहपत्तिपडिलेहण सज्झाय, आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पडिलेहण मुहपत्ति; अंति: विनयविमल कहे सुजगीश, गाथा-११. १७. पे. नाम. २१ श्रावकगुण सज्झाय, पृ. ९४आ-९५अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रुतदेवी; अंति: नयविमल कहे निशदिस, गाथा-१५. १८. पे. नाम, काउसग्ग उगणीस दोष सज्झाय, पृ. ९५अ, संपूर्ण. काउसग्ग १९ दोष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव समरी अरिहंत; अंति: नयविमल कहे सुजगीश, गाथा-१४. १९. पे. नाम. देवसीपखीपडीकमणविधी सिज्झाय, पृ. ९५अ-९६अ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमणविधि सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु गणधर पाय प्रण; अंति: धि होय भवि जेह सुणंत, गाथा-२२. २०. पे. नाम. राइपडिकममविधी सीज्झाय, पृ. ९६अ-९७अ, संपूर्ण. राइ प्रतिक्रमणविधि सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जागी जागी थई वधान; अंति: शिष्य लहे नयविमलजगीश, गाथा-२६. २१. पे. नाम. सुंदरी सज्झाय, पृ. ९७अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: रुडे रुपें शीळ सोहाम; अंति: बेटी प्रणमुं हुं करजोडी, गाथा-१०. २२. पे. नाम. सप्तव्यसन सज्झाय, पृ. ९७अ-९७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सात व्यसनत्याग, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वार तुं वार तुं; अंति: जिम लहो सुख समूहा, गाथा-१०. २३. पे. नाम. सुमतिसीख आतमा सीज्झाय, पृ. ९७आ, संपूर्ण. सुमतिकुमति सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सदा सुलेणी वीनवे; अंति: सेवक नय कहे आज सुहंकर, गाथा-१३. २४. पे. नाम. कायाकामिनीसीख सज्झाय, पृ. ९७आ-९८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायाकामिनीबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुगुण सोभागी हो; अंति: नय० संगति सुजस भलाये, गाथा-१७. २५. पे. नाम. सीमंधर गणधर सिज्झाय, पृ. ९८अ, संपूर्ण. सीमंधर गणधर सज्झाय, म. ज्ञानविमल, मा.ग., पद्य, आदि: गणधर गुणमणी रोहण भूधर; अंति: ज्ञानविमल० नाम संभारु हो, गाथा-८. २६. पे. नाम, कुंजर राजरिषि सज्झाय, पृ. ९८अ, संपूर्ण. देवकुंजर राजऋषि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सुंदर मुनिपुरंदर; अंति: ज्ञानविमल महंत रे, गाथा-८. २७. पे. नाम. महसेनमुनि सिज्झाय, पृ. ९८अ-९८आ, संपूर्ण. महासेनमुनि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सहेज सोभागी हो साधु; अंति: ज्ञानविमल०एहवा __मुनिवर योध, गाथा-९. २८. पे. नाम, जयभूषणमुनिनी सज्झाय, पृ. ९८आ, संपूर्ण. जयभूषणसाधु सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो जयभूषण मुनि; अंति: ज्ञानविमल० भव्य प्राणी है, गाथा-८. २९. पे. नाम, पद्मनाभ नप स्वाध्याय, पृ. ९८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ पद्मनाभ नृप सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मावती सम पद्मपुरी; अंति: ज्ञानविमल० परमानंद निधान, गाथा-१०. ३०.पे. नाम. सीमंधरजिन ३२शिष्य केवली सिज्झाय, पृ. ९८आ-९९अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन ३२शिष्य केवली सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पोतनपुरी पृथ्वीपति; अंति: ज्ञानविमल० ध्यान रै, गाथा-१२. ३१. पे. नाम, पंचबंधन गुण भंडार, पृ. ९९अ, संपूर्ण. ५ बांधव सज्झाय-रत्नमाला, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: रत्नवती नयरी भली; अंति: ज्ञानविमल० सुख थाय रे, गाथा-९. ३२. पे. नाम, चतुर्विध आहार परिज्ञान सज्झाय, पृ. ९९अ-९९आ, संपूर्ण. पच्चक्खाणफल सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पगलां प्रणमी; अंति: ज्ञानविम० समुद्रनै तरज्यो, गाथा-८. ३३. पे. नाम. सुदर्शनश्रेष्टी केवली सज्झाय, पृ. ९९आ-१०१अ, संपूर्ण. सुदर्शनसेठ सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संयमीधीर सुगुरुपय; अंति: उदय हुइ सुजस सवाय रे, ढाल-६, गाथा-६८. ३४. पे. नाम. पापस्थानिक अष्टादश वर्जन स्वाध्याय, पृ. १०१अ-१०४अ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलं का; अंति: पयसेवक वाचक जस इम आखै जी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११.. ३५. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १०४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवेरे; अंति: (-), (पू.वि. महाव्रत-५ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ३६. पे. नाम. शीतोपरि सिज्झाय, पृ. ११६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्री शिखामण, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदयरत्न जस वीस्तरे, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ३७. पे. नाम. रहनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. ११६अ-११६आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, म. श्रीदेव, पुहिं., पद्य, आदि: देवर दर खडो रहो कें; अंति: श्रीदेव०वेग त्रिकाला, गाथा-८. ३८. पे. नाम. आत्मशिक्षा स्वाध्याय, पृ. ११६आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: विणझारा रे वालिम; अंति: राजसमुद्र० सोभागी रे, गाथा-७. ३९. पे. नाम. गुणस्थानिक स्वाध्याय, पृ. ११६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मुक्तिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: निजगुरु केरा प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) १०६७८१. खेतसीस्वामी की ढाल, नवकार सज्झाय व गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१३.५, १३४३२). १.पे. नाम. खेतसीस्वामी की ढाल, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण, वि. १९१०, आषाढ़ शुक्ल, ७, सोमवार, पे.वि. हंडी:खेतसीजी. खेतसीस्वामी ढाल, रा., पद्य, वि. १९०५, आदि: नितप्रति धर्म ध्यान चित; अंति: सतजुगी आपईसा उपगारी, ढाल-१३. २. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंतिः प्रभुसुंदर सीस रसाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ११आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गौतम तणा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ तक लिखा है.) " . १०६७८२. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी: श्रीपासरास, जैदे. (२४.५४१३.५, १५X३८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी अति: (-) (पू.वि. खंड-१ ढाल ४ गाथा १९ अपूर्ण तक है.) " १०६७८५ (४) अध्यात्मवत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१३, १५४२४). अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि शुद्ध वचन सदगुरु की अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १९ तक लिखा है.) १०६७८६. सम्मेतशिखरतीर्थ रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२- १६(१ से ६९ से १४,१७ से २०) = ६, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी: सि० दे.. (२१४१३.५, ९४२१). "" सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. सत्यरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. डाल- ३ दोहा-४ अपूर्ण से दाल-७ गाथा १६ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६७८७ (+) आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२५x१४, ८४२५). "" आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते परमलभमाना; अंति: (-), (पू. वि. श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) १०६७९३. (#) मनोरथ भावना, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६×१३.५, १०x३६ ). मनोरथ भावना, मु. हुकमचंद मा.गु., प+ग. वि. १९०५, आदि समरी सरस्वती भगवती, अंति: (-), (पू.वि. भावना - ३ दोहा-३ अपूर्ण तक है.) १०६७९५. (+#) । कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९३५, चैत्र शुक्ल, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. ८६, प्रले. छोगमल पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२८१३, ९५२७). "" कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (१) नमो अरिहंताणं नमो, (२) तेणं कालेणं० समणे, अति: भुज्जो उवदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान - ९, ग्रं. १२५०. १०६७९६. लोकप्रकाश, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४२७-९३ (१ से ९३ ) = ३३४, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जैये.. " (२८x१२, १६x४६-५०). लोकप्रकाश, उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७०८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग -१३ श्लोक-२७ अपूर्ण से प्रशस्तिश्लोक-२३ अपूर्ण तक है.) 3 १०६७९९. (+#) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३८-३२ (१ से २६, ३१ से ३४, ३६ से ३७) = ६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२.५, १४X३५-३७). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चाणक्य कथा अपूर्ण से अजा कथा अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) , १०६८००. अभिधानचिंतामणिनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे., (२८.५४१३, ९३२-३६). अंति: अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि प्रणिपत्यार्हतः; (-). (पू.वि. कांड-२ श्लोक-३९ अपूर्ण तक है.) १०६८०३. (+#) नवतत्त्व चोपाई, संपूर्ण, वि. १९०१, पौष शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. चांणोद, प्रले. मु. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३०७ अक्षरों की स्याही फेल गयी है, वे., (२७.५४१३.५, १४४३१). For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमी; अंति: गुणतां संपति कोडि, ढाल-९. १०६८०४. ब्रह्मदत्त चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२+१ (७५)=८३, दे., (२७.५X१३, १४X४७). ब्रह्मदत्त चौपाई, मु. कनीराम, मा.गु. पच, वि. १९०२, आदि प्रथम देव युगादधर अति कठै कांनरिष गुण नीलो, खंड-४. १०६८०६. (+) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९२५, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, पाटण, प्रले. नरभेराम अमुलख: प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीऋषभदेव प्रसादातुं, संशोधित. वे. (२६.५४१३, १३४३५-३८). अलख ठाक नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि : उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नये न अधूरी रे, पूजा- ९. १०६८०७. (+) २४ दंडक २९ बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., दे., (२७X१२.५, १०X३५). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम नामद्वार १ बीज अति (-) (पू.वि. द्वार- २९ अपूर्ण तक है.) १०६८०८. (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : श्रीपालरास., संशोधित., जैदे., (२७.५X१३, १४X३८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. पद्य वि. १७३८ आदि कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल -५ गाथा-२७ अपूर्ण तक है., वि. पत्र- २८अ आ पर ढाल ४ दोहा-८ व ढाल-५ गाथा-८ व ९ का विस्तृत अर्थ दिया है.) १०६८१० (+) ३५ बोल, संपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ९, प्रले. पं. विनयचंद्र (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. अभैकरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : बोल ०., संशोधित., प्र.ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, वे. (२४.५४१३, ९x१७). ३३ ३५ बोल-गत्यादि थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले गति ४ नरगगति १; अंति: मात्र कह्या ते जाणवो, (वि. अंत में जीवभेद कोष्ठक दिया है.) १०६८११. विद्याविलास चौपाई दानाधिकार, संपूर्ण, वि. १८८०, पौष शुक्ल १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३१, ले. स्थल, रतलाम, प्रले. मु. नीतितिलक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७१३, १३x४०). विद्याविलास चौपाई, मु. यशोवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: सरसति सामणि करि सदा; अंति: यशोवरधन० धरे प्रथिमाद, दाल- ४८. १०६८१६. (+) वैद्यवल्लभ व वैद्यक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : वै०व०., संशोधित., जैदे., (२७X१२.५, ८X३६-३९). १. पे. नाम. वैद्यवल्लभ सह टवार्थ, पृ. १आ-१७आ, संपूर्ण. वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि सरस्वतीं हृदि, अति सुरसेषु विशेष एष, विलास-९. वैद्यवल्लभ-टबार्थ, मा.गु. गद्य, आदि: श्रीशारदा प्रति हृदिय; अति एवंगेश्वर नाम रस. ', २. पे. नाम. वैद्यक दोहा, पृ. १७आ, संपूर्ण. .. औषधवैद्यक संग्रह, पु,ि प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि फूल तिलाका गोखरु गोघृत; अति कीजीये बहुरित आवै वाल. १०६८२२. (+) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित व ज्ञानपंचमीपर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी: पंच० देव०वं, संशोधित. जैदे. (२६.५४१३.५, १३४४१-४५). " १. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजोठ उपरि तथा; अंति: लक्ष्मीसूरि० सयल सुखदायरे. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व व्याख्यान, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., स्‍ .सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ तक है.) १०६८२३. श्रावकना अतिचार, संपूर्ण, वि. १९४०, पौष कृष्ण, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. छावणी, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी अतिचा०, वे. (२४४१३, १२x२१) For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि नार्णमिदंसणंमि अ चरणमि, अंतिः कावाड़ करी मीच्छामी दुकडं. १०६८२५ (०) वसुदेवहिंडी, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २७६ ४९ (१०९,१२७ से १२९,१३६ से १४९,२०२, २०५, २०९,२१२ से २३१,२३९,२४७,२४९,२६२ से २६४, २६६, २७२ ) + २ (१२५, २४८) = २२९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२८x१२, १३४४५-५०). वसुदेवहिंडी, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण; ग. धर्मसेन, प्रा., प+ग, आदि नमो विणयपणवसुरिंदविंद अंति: (-), (पू.वि. उपालंभ २१ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६८२६ (+) आत्मप्रबोध सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६८-२ (१ से २) = १६६, प्र. वि. संशोधित-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ, जैदे. (२८१३.५, १३४५१). "" आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदि: (-); अंति: भवंति ते स्वल्प संसाराः, प्रकाश-४, श्लोक-१८१ (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्लोक-२ से है.) आत्मप्रबोध- स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनलाभसूरि, सं., गद्य वि. १८३३, आदि (-); अंति: (-). (पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रशस्तिश्लोक-१५ अपूर्ण तक है.) १०६८२८. (+#) चंद चरित्र, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १०४, ले. स्थल. किसनगढ़, प्रले. जमुनादास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी चंदरा०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित कुल ग्रं. ४०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१३. १६४३७). चंद्रराजा रास. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि प्रथम धराधव तिम अति मोहनविजवे० गुण चंदना, उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा - २६७९. १०६८३२. (+०) कल्पसूत्र सह बालावबोध व्याख्यान १ से ८, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १५९, प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०X१४.५, १५X३०-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अति (-) प्रतिपूर्ण कल्पसूत्र - बालावबोध", मा.गु. रा., गद्य, आदि प्रणम्य श्रीमहावीरं अंति (-), प्रतिपूर्ण १०६८३९ (१) श्रावकाचार आवसगसूत्र पडीकमनो, संपूर्ण, वि. १९१४, भाद्रपद कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३८, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१४, ७२९-३५). " देवसिवराईय प्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, गु., प्रा., मा.गु., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंति वंदना देवी पछे आगना मागवी. १०६८५६ (+) प्रतिक्रमणसूत्र व शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८३४-१८३८, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२७X१२.५, १४X३९-४३). १. .पे. नाम प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-७अ संपूर्ण वि. १८३४, भाद्रपद शुक्ल, ६, शुक्रवार, ले. स्थल. पाली नगर, पठ. मु. जेठमल; अन्य. मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. हुंडी : श्रीसुतरां . देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं. २. पे नाम. शांति स्तोत्र, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण, वि. १८३८, पौष शुक्ल १०, मंगलवार. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनं, श्लोक-१९. १०६८५७. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५X१२.५, ७X२९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवन पइवं वीरं नमीऊण; अंति : रुद्दाओ सुय समुदाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः कथं भूतंवीरं भुवने प्रदीप अंति: विस्तराधा श्रुतसमुद्रात्. For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३५ १०६८५८.(+#) ओघनिर्यक्ति सह टीका, संपूर्ण, वि. १९४०, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९१, ले.स्थल. कुजरावाला, प्रले. बेलीराम मिश्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ओघनि. जिनमंदिरे पार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित. कुल ग्रं. ९२८५, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२८.५४१३, १५४४३). ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरहताणं० हवइ; अंति: अहिएहिं संगहिआ, गाथा-११४८, ग्रं. १४६०. ओघनियुक्ति-टीका #, आ. द्रोणाचार्य, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अर्हद्भ्यस्त्रिभुवनराज; अंति: वट्टिकासंहननो सिद्ध्यतीति, ग्रं. ७८२५. १०६८५९ (+#) ज्ञानार्णव की तत्वत्रयप्रकाशिनी टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१२.५, ९४२६-३२). ज्ञानार्णव-तत्वत्रयप्रकाशिनी टीका, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., गद्य, आदि: शिवोयं वैनतेयश्च; अंति: जनितं दयादमेयं सुखं. १०६८६० (+#) पगामसज्झायसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २०-६(१ से ६)=१४, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४४६). पगामसज्झायसूत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. तीन शल्य की टीका अपूर्ण से अड्ढाईज्जेसुसूत्र की टीका तक है.) १०६८६१ (+) अंतगडसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२४, कार्तिक कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, प. ४०, ले.स्थल. नकोदर, प्रले. ऋ. मनसा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, ७४५२). अंतकद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा नायाधम्मकहाण, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिसी चौथेकाल तिसीचौथे; अंति: कथा कही त्योंही जाणणा. १०६८६२.(+) चारित्रमनोरथमाला का बालावबोध व उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन २९ के बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१५(१ से २,५ से १३,१५ से १७,२०)=६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १६x२८-३२). १.पे. नाम. चारित्रमनोरथमाला का बालावबोध, पृ. ३अ-२१अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. चारित्रमनोरथमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: केवलज्ञान सिद्धि पदने वरै, (पू.वि. 'आदते नहीं आदरे तो ताहरो सर्व माल जास्ये' पाठ से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन २९ के बोल, पृ. २१अ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: संवेग१ ते मोक्षनो अभिलाष; अंति: (-), (प.वि. बोल-११ अपूर्ण तक है.) १०६८६५ (+) बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-५(१,५,१० से ११,१३)=१४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१३, १५४२३-४६). बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठ 'शरीरइंद्रनो ज्ञान' से 'केवली आगास' तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६८६६. देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रावण शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. नयानगर, प्रले. पंडित. शंकरलाल शर्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथजी प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२९x१२.५, ६-९४२९-३३). देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिक्कमी० लोगल; अंति: सर्वमंगलमांगल्यं०. १०६८७४. (+) गणस्थानक प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, वैशाख शुक्ल, रविवार, मध्यम, पृ.५, प्रले. मु. चंदनविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:गुणस्थानक. श्री जिनपार्श्वनाथ प्रसादात्. प्रतिलेखन पुष्पिका में वर्ष हेतु "संवत् १९" ऐसा लिखा है., संशोधित., दे., (२८.५४१२.५, १४४३८). For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: (अपठनीय); अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, ___ श्लोक-१३६. १०६८७५. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९-७(१ से २,८,२०,३१ से ३२,३७)=३२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:दसमी०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२, ८४४०-४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. क्षुल्लिकाचार कथा से सभिक्षु सूत्र-१० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०६८७६. (+#) श्रावकाचार, षोडशदस पार्श्वनाथ स्तोत्र व जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२९.५४१३, १८४३७-५०). १.पे. नाम. धर्मोपदेशपीयूषवर्ष श्रावकाचार, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पिपनाखा. मु. नेमिदत्त ब्रह्मचारी, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रणम्य; अंति: शास्त्रमिदं शुभं, अधिकार-५, ग्रं. ४६०. २. पे. नाम. षोडशदल पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ११आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-षोडशदल, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जिनपारसतारनतरनं पारसनाम; अंति: तमहरपारस वंछित करन, गाथा-४. ३. पे. नाम. जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: तिन्नि लाखजोजन सोलहजार; अंति: (-), (पू.वि. पांच नरकवास वर्णन तक है.) १०६८८२. मौनएकादशी गणj, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४२७). मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गणj, सं., को., आदि: श्रीमहाजश सर्वज्ञाय; अंति: श्रीआरण्यकनाथाय नमः. १०६८८३. ताजिकसार सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१२, १६-२२४४०-४४). ताजिकसार, हरिभट्ट, सं., पद्य, श. ११०५, आदि: श्रीरामस्य पदारविंद; अंति: (-), (पू.वि. शनि भावफल अपूर्ण तक है.) ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७७, आदि: श्रीसूर्यचंद्रारबुधे; अंति: (-). १०६८८७. (+#) प्रतापसिंहजी की चउपई, अपूर्ण, वि. १९४२, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ले.स्थल. मकसूदावाद, प्रले. श्राव. मुन्नीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १३४३८). प्रताप चरित्र, य. अबीरचंद्र ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९४२, आदि: सिद्धचक्र सव दुख हरै सुख; अंतिः अबीरचंद० ए __ हित की वाणी, खंड-६, संपूर्ण. १०६८८८.(+) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १९००, पौष शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २९+१(१)=३०, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले. मु. मनसुखदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४१३, ५-८x२२). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक-१६६. १०६८९५ (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९३३, आषाढ़ शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. बिदासर, प्रले. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १२४३८-४२). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय; अंति: देवमुनी० संथुण्यां. १०६८९६. (#) शील रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-४(१,३ से ५)=५, प्रले. श्रावि. लाडाजी कुनणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २५, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१२, १४४३१-३९). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: (-); अंति: इम श्रीविजयदेवसूरि, गाथा-७९, ग्रं. २५१, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है व गाथा-१८ अपूर्ण से ४६ अपूर्ण तक नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०६९०० (+) सूर्यप्रज्ञप्ति की टीका, संपूर्ण, वि. १९६३, पौष कृष्ण, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. २६९, ले. स्थल, पाटण, प्रले. मणीलाल हरिनंद ओझा ( पिता हरिनंद त्रीकमराम ओझा); गुपि हरिनंद त्रीकमराम ओझा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सूर्यप्रज्ञप्ति टीका. १४८४ मे जिनभद्रसूरी के उपदेश से लिखी हुई प्रत की प्रतिलिपि है, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X१२.५, १४४३). सूर्यप्रज्ञप्ति टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदिः यथास्थितं जगत्सर्वमीक्षते अंति (अपठनीय), ग्रं. ९०००. १०६९०१ (+) पज्जोसवणा कप्पो, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६०-५० (१ से ५० ) - १० प्र. वि. संशोधित, जै, (२७.५४१३, १०X३१-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-) अति भुज्जो उवदसेइ त्तिचेमि, व्याख्यान- ९ . १२१६. (पू.वि. सामाचारी अधिकार सूत्र- २ अपूर्ण से है.) १०६९०२. (+) पुराणहुंडी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९००, वैशाख कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल. दमणबिंदर, प्रले. मु. अमरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री आदिश्वरजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२७.५X१३, १७३८-४१). पुराणहुंडी, मा.गु., सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्म्म: अंति: पारणं चाष्ट वर्जयेत्, श्लोक - २००. पुराणहुंडी - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म सघलोइ सांभलीइ; अंति: तजे ते विष्णव सुद्ध कहीइ, (वि. अंत में दसमी, एकादशी व द्वादशी के रोज वर्जनीय २९ वस्तुओं के नाम एवं षड्दर्शन नाम दिये गये हैं.) १०६९०३ दशवैकालिकसूत्र अध्ययन ४, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. हुंडी दसवि० पा०, जैवे. (१५x१०, १४X३७)दशवेकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि (-); अति (-), प्रतिपूर्ण १०६९०४ (+४) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६- १ ( १ ) = १५, प्र. वि. संशोधित टिप्पण 'युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२८x१३, ५X३३). ३७ नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: दुचक्की केशव चक्कीय, गाथा २९, संपूर्ण नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वासुदेव अनुक्रमे एवम्, (अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभिक पाठ नहीं है., वि. प्रतिलेखक ने बीच-बीच में टबार्थ नहीं लिखा है. ) १०६९०५. सिरिसिरिवाल कहा सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी: श्री०. श्रीपाल, जैदे., (२८x१३, ७X३७). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८ आदि अरिहाइ नवपयाइं झायित: अंति (-), (पू.वि. गाथा - १९३ अपूर्ण तक है.) सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, आ. हेमचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: ध्यात्वा नवपदीं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९२ अपूर्ण तक लिखा है., वि. टबार्थ शैली में अवचूरि लिखी है.) १०६९०६. (+४) संघपट्टक सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी सं. चूर्णि., सं०वृत्ति., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१३, ११x२८). संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि वह्निज्वालावलीढं कुपथ; अंति (-), (पू.वि. श्लोक-२३ तक है.) संघपट्टक-अवचूरि, वा. साधुकीर्ति, सं., गद्य, वि. १६१९, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंति: (-). १०६९०७ (+) सूत्रकृतांगसूत्र- श्रुतस्कंध २ सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९१४ आश्विन शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८५, प्र. वि. हुंडी सुयगडांगसूत्रपत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. नो. (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२८x१२.५, ६-८X३३-४५). For Private and Personal Use Only सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अति विहरति त्ति बेमि ग्र. २१०० प्रतिपूर्ण, , सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जंबू प्रते इम कह्यो, प्रतिपूर्ण. १०६९०८ (+०) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६ प्र. वि. प्रत के अंत में कृतिनाम लघुसंग्रहणी उल्लिखित है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X१३, ११x२५-२८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठे अरिहंताई ठिइ अति जा वीरजिण तित्थे, गाथा- ३६६. बृहत्संग्रहणी-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चतुर्विंशति जिनं नत्वा, अंति (-) (वि. आवश्यकतानुसार टवार्थ लिखा है.) " Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०६९०९. जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.५, दे., (२४.५४१२, ६x२४-२७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण भणामि; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३७ अपूर्ण तक लिखा है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कइ ए तीन भवन स्वर्ग; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) १०६९१० (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०१-८९(१ से ८९)=१२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्ययनं., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१३, ६x४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. अध्ययन-२८ गाथा-३५ अपूर्ण से अध्ययन-२९ गाथा-७२ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०६९१४. (+) निर्वाणकांड सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९२९, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ.७, प्रले. श्राव. नेमिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:निर्वा०., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२९x१४, ४४२३).. निर्वाणकांड, प्रा., पद्य, आदि: अट्ठावयम्मि उसहो; अंति: पछा सोलहिए णिव्वाणं, गाथा-३२. निर्वाणकांड-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अष्टापदे कैलासे वृषभः; अंति: पश्चात् सः लभते निर्वाणं. १०६९१९. रघुवंश सह शिशुहितैषिणी टीका, संपूर्ण, वि. १८९७, मुनिनंदावसुचंद्र, पौष कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १३९, ले.स्थल. रामदुर्ग, प्र.वि. हुंडी:रघुवंश.टी०., त्रिपाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (३७) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (१४२६) तैल रक्षं जलात् रक्षं, जैदे., (२८x१३.५, ३-७४४०-४५). रघुवंश, क. कालिदास, सं., पद्य, आदि: वागर्थाविव संपृक्तौ; अंति: दशिष्यद्भर्तुरव्याहताज्ञा, सर्ग-१९. रघवंश-शिशहितैषिणी टीका, आ. चारित्रवर्धनसरि, सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: प्रत्यूहव्यूहनाशं दिशतु; अंति: वृत्तमिति भद्रम्. १०६९२० (+#) भुवनभानुकेवली चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०१, फाल्गुन शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. १४२, ले.स्थल. खंभातबिंदर, प्र.वि. हुंडी:भुवनभानुचरीत्र.टबा., संशोधित. कुल ग्रं. ६०००, मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२८x१३, ६४३२-३५). भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदि: अस्तीह जंबूद्वीपे; अंति: नरेंद्रर्षिः केवली, ग्रं. २०००. भुवनभानुकेवली चरित्र-टबार्थ, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., गद्य, वि. १८०१, आदि: एहीज जंबूद्वीपने; अंति: तस्य तत्वहंसेन धीमता, ग्रं. ४०००. १०६९२२. (#) गुणस्थानक्रमारोह सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १९४७, आषाढ़ शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. मुर्शिदाबाद, पठ. मु. मयाचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२९४१३, १४-१६x४८). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हतमोहं; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३७. गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: अर्ह पदं हृदि; अंति: प्रकटित इत्यर्थः. १०६९२५. (+#) प्रज्ञापनासूत्र-पद ५ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. हुंडी:पन्नवणासूत्र., संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, दे., (२९x१३, ८४६३). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्रपाठ- "तेउकाइयाणं पुच्छागो अण्णत्ता" अपूर्ण से है व सूत्रपाठ- "एवं सुयणाणं उहिणा" अपूर्ण तक लिखा प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपर्ण. For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०६९३० (+) समकित सडसठ बोलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:समकि०., संशोधित., दे., (२८.५४१३, १२४३४). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. १०६९३४. (+#) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५९-२४(१ से २४)=३५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १२४३१-३५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकरण-२ श्लोक-१२३ अपूर्ण से प्रकरण-४ श्लोक-८९ अपूर्ण तक है.) १०६९३५ (+) सत्तरिसयट्ठाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. हुंडी:सत्तरिसय०., संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, १४४३८-४३). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसरि, प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणिंदे; अंति: जाइ सो सिद्धिठाणे, गाथा-३५९. १०६९३७. मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.६, ले.स्थल. बारेजा, प्रले. मु. रिद्धीविजय; पठ. श्रावि. रंगुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, ८४२१). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४, गाथा-४२. १०६९४१. (+) आनंदश्रावक संधि व धर्मजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९०७, आषाढ़ कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. बालूचर, प्रले. मु. शिवदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, १३४३६). १. पे. नाम, आनंदश्रावक संधि, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण. म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमान जिनवर चरण; अंति: इम कहै पभणै मनि श्रीसार. ढाल-१५. गाथा-२५२. २.पे. नाम, धर्मजिन स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, म. केसर, पुहिं., पद्य, वि. १८४२, आदि: धर्मजिनेस्वर साहिवा; अंति: केसर० अंतरगत हित आण, गाथा-७. १०६९४२. (+) घंटाकर्णकल्प व घंटाकर्ण साधनविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. शिवराज (गुरु मु. उदेराज); गुपि. मु. उदेराज (गुरु पं. भीमराज); पं. भीमराज; मु. लालराज, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१३, १३४२८-४७). १.पे. नाम. घंटाकर्ण बृहत्कल्प, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १९७५, माघ कृष्ण, ६, ले.स्थल. गुंदवच. __ घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य गिरिजाकांतं; अंति: क्षमस्व परमेश्वर. २. पे. नाम. घंटाकर्ण साधनविधि, पृ. ६आ, संपूर्ण, वि. १९७६, कार्तिक कृष्ण, १०, ले.स्थल. वाललाई. घंटाकर्ण मंत्रसाधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: हस्तार्के तथा मूलार्के; अंति: या चोरनो उपद्रव न हुवै. १०६९४६. अभिधानचिंतामणि नाममाला-कांड १, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.६, दे., (२८x१३, १२x२३-२६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०६९४७. (+) २५ क्रिया-साधु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२८x१३.५, १३४४५-४८). २५ साधुक्रिया बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: काइय अहिगरणीया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चिंतनबोधि भावना तक लिखा है.) १०६९४९ (#) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, ४४१९-३७). For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि नमिठे चौवीस जिणे अति (-). (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०६९५० (+) हरिवंशपुराण अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०६-१३१ (१ से १३१) =७५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रले. श्राव. कान्हजी ब्रह्मचारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक- ५९ पर प्रतिलेखक का नाम है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे. (३०x१३.५, १४४४६). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरिवंशपुराण, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं., पद्य वि. १६वी, आदि (-) अति (-) (पू.वि. सर्ग २७ श्लोक-२ अपूर्ण से सर्ग-३९ श्लोक-४४ अपूर्ण तक है.) १०६९५१. योगोद्वहनादि विधि संग्रह ४५ आगम गणणु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, प्र. वि. अद्यतन प्रत. पत्रानुक्रम-१ से ४ प्रत पद्धति से दिया है तथा क्रम - १ से २८ पुस्तकवत् दिया है. अतः कुल पत्र प्रत की भाँति ही गिना गय है. गु., (२५x१४, १४-१७३९-५२). १. पे. नाम. योगोद्वहन विधि, पृ. १अ - १७आ, संपूर्ण. योगविधि कालमांडलादि-साधु, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि आवश्यक श्रुतस्कंधे दिन ८ अति भागे तो कालग्रहण जाय, (वि. कोष्ठक यंत्र सहित ) २. पे. नाम. ४५ आगम गणणु, पृ. १८अ १८आ, संपूर्ण. ४५ आगमतप गणणुं, मा.गु. सं., गद्य, आदि प्रथम श्रीनंदीसूत्र; अंति: ४४ विपाकसूत्र ४५ महानिशीथ (वि. १४ पूर्व की विधि भी संलग्न है.) १०६९५२. (०) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण वि. १८५०, ज्येष्ठ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल रत्नपुरी, प्रले. मु. शीलनंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: संघयणसू., संशोधित., जैदे., (२८.५x१३.५, १३x४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिओ अरिहंताई ठिई भवणो; अंति: जा वीरजिणमयं लोए, गाथा - ३०८. १०६९५३. (+) नवतत्त्व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५५-५ (२१ से २४,५१) +२ (४७ से ४८) =५२ प्र. वि. संशोधित. वे., (२९x१३.५, ३१x१२-१६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा - बोल संग्रह, संबद्ध, श्राव. दलपतराय, मा.गु., गद्य, वि. १८१२, आदि: प्रथम जीवतत्त्व नर्क; अति लीया टालदेणा गति ५६३ की (पू.वि. ६७ गुणठाणा उत्कृष्ट देखना पूर्व कोडि स्थिति वर्णन व असज्झाय विधि अपूर्ण है., वि. यंत्र कोष्टकबद्ध है.) 1 .... १०६९५५ (०) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. ९. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें.. (२८x१३.५, ४x२२). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा. पद्य वि. १५७९, आदि नमिठ चउवीस जिणे अति विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा- ३९. दंडक प्रकरण-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि नमस्कार करके चोवीस अंति: आत्मा के हेत के वास्ते. " १०६९६२. धर्मोपदेश काव्य, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९ - १ (१) = १८, प्र. वि. हुंडी : धर्मोपदेश., दे., (२७X१३, ५x२८-३१). धर्मोपदेश काव्य, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-२ अपूर्ण से है व श्लोक ८३ तक लिखा है.) १०६९६३. (*) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०-१ (१) ९. पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है.. प्र. वि. हुंडी : कल्वा०. मंद, पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२७.५X१३.५, ४X३०-३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से श्लोक-४२ अपूर्ण तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). १०६९६४. गौतमपृच्छा सह टवार्थ व कथा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, जै, (२८x१३.५, १५X३३-३७). For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१ गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तित्खनाहं अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ३७ तक लिखा है.) 5 गौतमपृच्छा-बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि तीर्थनाथ श्रीमहावीर, अंति (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गौतमपृच्छा-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे परमेसुरनी वाणी केहवी; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०६९६५. (४) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे... (२७X१३, १०X३२-३६). गौतमस्वामी रास, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण कमला; अति: (-). (पू.वि. ढाल ४ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १०६९८०. रघुवंश की विशेषार्थबोधिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे. (२७४१४, " १६x४९). रघुवंश - विशेषार्थबोधिका वृत्ति, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य वि. १६४६, आदि: ध्यात्वा तां ब्रह्म अति: (-), (पू. वि. प्रथम श्लोक की टीका अपूर्ण तक है.) १०६९८९. स्थुलिभद्र सज्झाय व श्रावकना २१ गुण नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्रले. पं. विवेकवर्द्धन, पठ. सा. जतनश्रीजी (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७X१४, १४४४२). १. पे नाम. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि श्रीबुलिभद्र मुनिगुणमांहि अंतिः नित नित करीये वंदना जो, गाथा- १६. २. पे नाम श्रावकना २१ गुण, पृ. १आ, संपूर्ण श्रावक २१ गुण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अक्खुदो के० तुछतानहि; अंति: कामउ परे दृष्टीवान ते गुण. १०६९८२. कल्पसूत्र-महावीरजिनजन्माधिकार का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ५-१ (१) =४, पू. वि. बीच के पत्र हैं. दे. (२८x१३.५, १४४३०). कल्पसूत्र - हिस्सा महावीरजिनजन्माधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. त्रिशलामाता के १४ स्वप्न वर्णन अपूर्ण से पुन्यपाल राजा के चतुर्थस्वप्न वर्णन अपूर्ण तक है.) १०६९८६. चौमासी देववंदनविधि अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १६-२ (१४ से १५) १४ वे. (२६४१४, १२४३७). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि विमलकेवलज्ञान कमला; अति: पाश सामलनु चेई रे, (पू.वि. पंचतीर्थ स्तवनगत शत्रुंजयतीर्थ स्तवन गाथा-५ अपूर्ण से अष्टापदगिरि स्तवन तक के पाठ नहीं है.) १०६९८९. स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. हुंडी: देवस्ना०., दे., (२७.५X१४, १८x४५-४९). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८बी, आदि प्रथम हुंती निस्सिही; अंति यथाशक्ति दान बीजे, ढाल-८, गाथा- ६०. १०६९९२. पुद्गल गीता व महासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, वे. (२७४१४, १३x२८). १. पे. नाम. पुगल गीता, पृ. १अ-७अ संपूर्ण वि. १९१३, पीष शुक्ल, ४ बुधवार, प्रले. दोलतराम हरखचंद भोजक; पठ. श्रावि. जवलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. श्रीऋषभदेव प्रसादात्. पुगलगीता, मु. चिदानंद, पुर्हि, पद्य, आदि संतो देखिये वे परगट; अति अतिउपयोगी चिदानंद सुखकार, गाथा- १०८. २. पे नाम. महासती सज्झाय, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम महासती सज्झाय दिया है. भरसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि भरहेसर बाहुबली अभय अंति: पडहो तिहुअणे सबले, गाथा- १३. १०६९९३ () अध्यात्मपच्चीशी, साधारणजिन पद व आध्यात्मिकादि पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२-१७(१ से ८,१० से १८) =५, कुल पे. १३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैवे. (२६.५x१३.५, ८-१२४३१). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. अध्यात्मपच्चीशी, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि (-); अंति दीप० जीवहि देव चउ संघह जयो, गाथा - २५, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम, आध्यात्मिक जकडी, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन ग्याइ कहो तुम निज पद; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम गाथा के एक दो शब्द मात्र नहीं हैं.) ३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद-अनुभव, पृ. १९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: दीप० हुवै समये मै सारा, गाथा-४, (पूर्ण, पू.वि. प्रथम गाथा नहीं है.) ४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद-योगी, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अरे हूँ तो सहज स्वरस भोगी; अंति: दीप० शिवपद परम नियोगी रे, गाथा-४. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद-परिणति राणी प्रीत, पृ. १९आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, म. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: असाडे प्रीतम ऐसी जैनी राग; अंति: दीप०अति सुखदाई निति है नी, गाथा-४. ६.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेर प्यारा मन का भावता; अंति: दीप० हुवै कीना मन भाया, गाथा-४. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद-परिणति, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, म. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मोरी अदभूत महिमा की जानै; अंति: कहै दीप० लखी है निज येने, गाथा-४. ८. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मोरे पिया काहे के वैरागी; अंति: दीप० संगि भई महा वडभागी, गाथा-४. ९.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २१अ, संपूर्ण. मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मन जिनवर जिनवर भजि रे; अंति: दीप० सेवा है ता कौ सजि रे, गाथा-४. १०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सिव तिया वरजी को बेगिल; अंति: दीप० लखि जग के नाथ कहीईये, गाथा-४. ११. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनवर मोहि लागे; अंति: दीप० हौ अविनाशी सुखधारा, गाथा-४. १२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मैं कब परमातम पाउंगा सकल; अंति: दीप०मय है सिद्ध कहाउंगा, गाथा-४. १३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २२आ, संपूर्ण. मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: संतो आपा अंदर दरसौ; अंति: दीप० यह लहौ घरे गुण भरसो, गाथा-४. १०६९९४. (+) चौमासी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९४२, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. २६, प्रले. हरसुख तिवाडी; पठ. श्राव. हेमचंद्रजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, दे., (२७७१३.५, १०४३०). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सांभलनु चेइ रे. १०६९९५ (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. वाघ, प्रले. श्रावि. चेपा बाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१४, ५-८x२१-२६). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२. १०६९९६. (+) विक्रमराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१३.५, १३४२६-२९). विक्रमराजा चौपाई,ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: प्रणमु पासजिणंद पय; अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल-१ गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०६९९९ (+) आत्मबोध व नीयतबतीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३.५, ६-१३४२७-३२). १.पे. नाम. आत्मबोध, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १९०३, आदि: आद नम अरिहंत न चोवीस; अंति: चाहकर पंचमी दिवस प्रकास, गाथा-१२१. २. पे. नाम. नीयतबत्तीसी, पृ. ८अ-११आ, संपूर्ण. श्राव. बदन सूरतराम मेहता, पुहिं., पद्य, वि. १८९९, आदि: रमयति राम कहे रे भाइ; अंति: पारणदीने सफल फली मन आस, गाथा-३८. १०७००१ (+) प्रश्नोत्तर-जिनपूजा विषये, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३.५, १०४३२). प्रश्नोत्तर-जिनपूजा विषये, पुहि.,प्रा.,सं., प+ग., आदि: केसरि करि लिप्त अर फूलमाल; अंति: पक्षितजिहोहु समकति जू. १०७००२. बुढारो, गणसागर व मोहजीतराजा चोढाल्यो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. ३, ले.स्थल. लुणार, दे., (२७४१३.५, १८४३९-४३). १. पे. नाम. बुडाल्या को चोढाल्यो, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बुडा को चोढालो. बढ़ापा रास, श्राव. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया ज माता वीनवं; अंति: नही माव बुडाने परणति को, ___ ढाल-२२. २. पे. नाम. गुणसागर को चोढाल्यो, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण, प्रले. पं. रूगनाथ ऋषि (गुरु मु. फूलचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हंडी:गुणसागरनो चोढाल्यो. गुणसागर चोढालियो, मु. इंदचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: वनीता नगरी हुती अरीसेण; अंति: रे इंदरचंद गुण गाय रे, ढाल-५. ३. पे. नाम. मोहजीत राजारो चोढाल्यो, पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण, वि. १९६३, आश्विन कृष्ण, ६, रविवार, प्रले. मु. रामचंद्र (गुरु मु. फूलचंद); गुपि. मु. फूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:मो.जीतराजाको.चो. मोहजीतराजा चौढालियो, मु. जीतमल, पुहि., पद्य, वि. १९३७, आदि: सुधर्म सुरग सुधर्म सभा; अंति: कीयो विस्तार हो राजेसर, ढाल-५. १०७००३. चैत्रीपूनम की विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, दे., (२६.५४१३.५, १५४२८-३६). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदनविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम पवित्र स्थानकै; अंति: स्तवना कीजै. १०७००४. (+) अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र.वि. हुंडी:अष्टोत्तरी०.वि०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१३, १३४३७-४०). प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वपादाब्जं; अंति: हि कंकु माक्षते वधावइ. १०७००५. (#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७९-४०(१ से ४०)=३९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञ०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, ६४३१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ सूत्र-२८ ___ अपूर्ण से ३७ अपूर्ण तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०७००९ (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९८-९३(१ से ९३)=५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१३.५, ५४३२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कांड-६ श्लोक-१३२ अपूर्ण से है व १७८ अपूर्ण तक लिखा है.) १०७०१०.(+) स्थूलिभद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, १२४३३-४५). स्थलिभद्र चरित्र, आ. जयानंदसरि, सं., पद्य, आदि: वीरोवर्यः श्रिये; अंति: शद्धशीलप्रवृद्धिं, श्लोक-६८८. For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०७०११ (+) विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१२, कार्तिक कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ.७, प्रले. मु. केवलचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. २००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६४१२.५, ५४२३-२६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ, ग. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ प्रमुख; अंति: आपणे आतमाने हितकारिणी. १०७०१२. ज्ञानपंचमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९०७, कार्तिक शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:ज्ञानपंचमी. श्री चिंतामणिजी प्रसादात्., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२६.५४१३, २१४३९-४४). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५०. १०७०१३. आहार के ९६ दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१५, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. भारमल ऋषि (स्थानकवासी); पठ. मु. लछीरामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, ३-६४१३-२१). आहार के ९६ दोष, प्रा., गद्य, आदि: आहाकम्मं १ उदेसियं २; अंति: निसिहिए पारिसीरिसीय९६. आहार के ९६ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आहा आधाकरमी ते कहीये जे; अंति: कल्पसूत्र वेदेकल्पइं. १०७०१४. (+) मदनधनदेव कथा-चंडाप्रचंडाविषये, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ११४३८). मदनधनदेव कथा-चंडाप्रचंडाविषये, सं., गद्य, आदि: विचार्य कुरुते कार्य; अंति: क्रमेणसेत्स्यति. १०७०१५ (+#) गौतमपृच्छा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९१५, चैत्र शुक्ल, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, ले.स्थल. गढी, प्रले. बलदेवदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४८०) जले रक्षं स्थले रक्षं, दे., (२६.५४१३, ६४३९). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पुछा नाम महा मोटा अर्थ छइ. १०७०१६ (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्प., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१३, १०४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-१ सूत्र-१८ अपूर्ण तक है.) १०७०१७. (+) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १०, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, २१४४२). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६२ अपूर्ण तक - १०७०१८ (+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९६१, चंद्ररसांकभू, फाल्गुन कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्रले. गौरीदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चोमासीनी कथा., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ४०१, दे., (२७.५४१२.५, ९४३२). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरज्ज्ञा; अंति: ___ व्याख्यानमाख्यानभृत्, ग्रं. ४०१. १०७०१९ पर्यंताराधना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:आराधना., जैदे., (२६.५४१३, १४४३७-४०). पर्यंताराधना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: जहत्त नायव्वो वीरियायारो. १०७०२०. जीतकल्पसूत्र व निशीथसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, दे., (२६४१३, २७४४८-६७). १. पे. नाम. जीतकल्पसूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: कयपवयणप्पणामो; अंति: सुपरिच्छिय गुणम्मि, गाथा-१०४. २. पे. नाम. निशीथसूत्र, पृ. २अ-१०आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थकम्म; अंति: सिस पसिसोव भोद्यच्छं, उद्देशक-२०, ग्रं. ८१५. For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४५ १०७०२१ (+) धर्मोपदेश रत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६२, माघ शुक्ल, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२.५, ६४३८). षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू सुद्धं; अंति: भव्वा पढंतु जणंतु सिवं, गाथा-१६१. षष्ठिशतक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हतदेव सुगुरु सुद्ध; अंति: मुक्ति तथा चारित्र. १०७०२२. (+) कलिकुंड पूजा व पद्मावती स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ६, ले.स्थल. सवाईजयपुर, प्रले. नंदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१३, १२४४०). १. पे. नाम. कलिकुंड पूजा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: ॐ हुँकारं ब्रह्मरूद्धं; अंति: वर्द्धमानार्द्ध सिद्ध्यैः . २.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ पूजा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन पूजा विधि-चिंतामणि, सं., गद्य, आदि: शांतं विंदद्धरफं; अंति: स्वेष्टसिद्धिं प्रयांति. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पूजा जयमाला-चिंतामणि, आ. सोमसेन, सं., पद्य, आदि: श्रीसारदाधारमुखारविंद; अंति: स प्रयाति प्रधानम्, श्लोक-९. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ जयमाला स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणि पार्श्वनाथ, श्लोक-७. ५. पे. नाम. पद्मावतीपूजामय स्तोत्र, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथजिन; अंति: पूजयामीष्टसिद्ध्यै, श्लोक-११. ६.पे. नाम. पद्मावतीपूजा स्तोत्र, पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: जानामि क्षमस्व परमेश्वरि, श्लोक-२८. १०७०२३. (+) चतुर्विंशति पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-१(२८) ३६, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:चतुर्विंशति पूजा., संशोधित., जैदे., (२७७१३.५, १०४३६-४०). २४ जिन पंचकल्याणक पूजा, पुहि.,प्रा.,सं., प+ग., आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं लब्ध; अंति: (-), (पू.वि. पार्श्वनाथ पूजा अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०७०२४. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९००, श्रावण शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ११, प्रले. पं. हेमचंद्र (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. श्राव. गिरधारीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १३४३८-४२). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: कुसलरंगमयं __ पसिद्धं, अधिकार-६, गाथा-२६७. १०७०२५ (+) यशोधर चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:यशोधर.चरि., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, ९४३२-३५). यशोधर चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं वृषभं वंदे; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-५ श्लोक-५२ तक १०७०२७. अभिगमन छपई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७७१३, ५४५५). अभिगमन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम करे पेसाब उपासरा; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) १०७०२८. (+#) ८४ आशातना स्तवन व सिद्धपद दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२६.५४१३, ३४४२२). १.पे. नाम. चौरासी आशातनारो स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४ आशातनापरिहार स्तवन-जिनभवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर प्रणमे पाय ते; अंति: वीर जिनेसरनी ए बांण, गाथा-२८. २. पे. नाम. सिद्धपद दोहा-गूढार्थगर्भित, पृ.१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कवण लभै कवण लभै सिद्धनो; अंति: लोपता संपजे सदा प्रणाम, दोहा-१. १०७०२९ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्वसूत्र०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१३.५, १०४२७-३०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: सह परभवगा न सेसट्ट, गाथा-७७. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ अजीवतत्व २; अंति: शेष ८ सांगे नहीं चाले. १०७०३० (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, प्रले. श्राव. मिलापचंद; पठ. श्राव. गुलाबचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, ६४१३-१६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. १०७०३१ (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, त्रिकालभाव वंदना व २० विहरमान नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३.५, ७४३१-३४). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.प.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहण; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. त्रिकालभाव वंदना, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. नवकारमंत्र छंद, मा.गु., पद्य, आदि: पढो मंत्र नवकार ताप; अंति: प्राणी काई पढे, पद-१. ३. पे. नाम. २० विहरमान नाम, पृ. ११आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर स्वामी१ युगमंधर; अंति: १९ अजितवीर्य २०. ४. पे. नाम. ११ गणधर नाम, पृ. ११आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रभूति अग्निभूति वायु; अंति: मेतार्य १० प्रभास ११. १०७०३२. (+#) कल्पसूत्र सह कल्पद्रमकलिका टीका व पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९०७, श्रावण कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. १५१-५७(५४ से ६०,७९ से ८८,९९ से १२७,१३० से १३७,१४६ से १४८)=९४, कुल पे. २, ले.स्थल, मकसूदावाद, प्रले. मु. शिवचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्पद्रुमक.लि., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (११९) यावल्लोकेत्र वर्तेते, (२८६) भग्ना पृष्टि कटि ग्रीवा, (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, दे., (२६.५४१३, १७४४८-५४). १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, पृ. १आ-१५०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, (पू.वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं., वि. अंत में ७४ श्री लब्धिचंद्रसूरि तक की पट्टावली दी है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: कल्पसूत्रस्य चेमाम्. २. पे. नाम. पट्टावली, पृ. १५०आ-१५१अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी तेहने; अंति: प्रधान श्रीलब्धिचंद्रसूरि. १०७०३३. (+#) श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले.पं. चिमनसागर; पठ. मु. केसरीचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:क्रियागुप्ताः., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, दे., (२७.५४१३, १०४३९). श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्री शांतिनाथ देवेश विश्व; अंति: तदा तस्य गेहं विनष्टं, श्लोक-४०. १०७०३४. (+) उपदेशमाला की कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. हुंडी में मुनि जयविजय स्वस्ति लिखा है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१३.५, ११४२७). For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा वीरजिन अति (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, रत्नसार शेठ के पुत्र की कथा तक लिखा है.) १०७०३५. कल्पसूत्र की वाचना, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६२-४२ (१ से ४२ ) + १ (४८) = २१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्र, जैवे. (२७.५४१३, १०x३०). कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-) अंति (-) (पू.वि. व्याख्यान २ अछेरा १ अपूर्ण से व्याख्यान- ३ प्रारंभिक पाठ अपूर्ण तक है.) १०७०३६. (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४७-३ (३,४४ से ४५ ) = ४४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X१२.५, ३x२२-२६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण आ. रत्नशेखरसूरि प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपव पइडिअं पण अति: (-). 1 (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१० अपूर्ण से ११ अपूर्ण तक, गाथा-१७० अपूर्ण से १७२ अपूर्ण तक गाथा - १८० अपूर्ण से नहीं हैं.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि जगतनो शिखर जे मस्तक तेहि, अंति: (-). (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १७० अपूर्ण तक लिखा है.) १०७०३७ (+-०) पद व स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ११-१ (२) = १०, कुल पे. १० प्र. वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१३, ११x२१-२४). १. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: हरियालो डुंगर प्यारो; अंति: चंद कहे० भव भव पार उतारो, गाथा - ३. २. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खुवचंद, पुहिं, पद्य, आदि कहो रि माइ केसे छूट अति अरज करत हैं अनुभव रस लूटे, गाथा ४. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ४७ मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि मुनरो हमारो लीजो जिनराज अंति नाथ निरंजन सरणे आपकी लाज, गाथा- ३. ४. पे. नाम साधारणजिन पद, पू. १आ, संपूर्ण, साधारणजिन स्तवन, जै.क. खूब, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु चरण मेरे काज हमसे; अंति की वंछित पूरण सिवराज, गाथा-५. ५. पे नाम. संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भ्रातं पुरे मे वंछित नाथ, श्लोक - ५, (पू.वि. अंतिम श्लोक -५ अपूर्ण है.) ६. पे. नाम. परमात्मद्वात्रिंशिका, पृ. ३अ -६अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐकाररूपः परमेष्टि; अंति: यात्यसौ पदमव्ययं, श्लोक-३३. ७. पे. नाम. कुरुकुल्लदेवी स्तुति, पृ. ६ अ-७आ, संपूर्ण. कुरुकुल्लादेवी स्तवन- सम्मेतशिखर, आ. वादिदेवसूरि, सं., पद्य, आदि प्रणवहृदि यदीयं नाम; अति केवलज्ञानलक्ष्मीः, श्लोक - ९. ८. पे. नाम सर्वजिन स्तुति, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण, २४ जिन स्तवन, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि सिरिरिसहेसर अजियजिण अंतिः भवियण पामु सुह० वेवि, गाधा- १३. ९. पे नाम. वीतराग स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण वीतराग अष्टक, आ. जैत्रसूरि, सं., पद्य, आदि: शीतं शिवं शिवपदस्य; अंतिः सनाधर गुरु गुरु सेषनाथं, श्लोक ९. १०. पे. नाम. शत्रुंजय चैत्यपरिपाटी स्तोत्र, पृ. ९अ - ११आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटिका, सं., पद्म, आदि: नवेंद्रमंडलमणिमयमौलिमाल अति स लभते तत्तीर्थयात्राफलम्, श्लोक-२४. For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०७०३८. (+) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:मेरुत्रयोदशी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १४४३६). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. गुणस्थान वर्णन अपूर्ण तक है.)। १०७०३९ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१३, १०४२९-३२). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७३ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीव; अंति: (-), (वि. प्रतिलेखक ने कहीं-कहीं टबार्थ लिखा है.) १०७०४० (#) आगमसारोद्धार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १२४३१). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: प्रथम भव्य जीवनै; अंति: (-), (पू.वि. तत्त्व विवरण अपूर्ण तक है.) १०७०४२. (+) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, १३४२७-३४). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: हिवे पूर्वोक्त भला; अंति: रात्रि जागरण करे. १०७०४३. (#) अनुयोगद्वार की सूचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:अनुयोगद्वारसूचनिका., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, २१४२३-६०). अनुयोगद्वारसूत्र-बीजक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आचारांगादि बिंदूसार १४; अंति: नयप्रमाणरा वर्णन करै है. १०७०४४. कर्मछत्रीसी, मांगलिक श्लोक व अध्यात्मबत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२७४१३, १२४३१). १.पे. नाम. कर्मछत्रीसी-गाथा ३१ से ३६, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. २०वी, आश्विन शुक्ल, ७, शनिवार, ले.स्थल. सोजत, प्रले. मु. वनीतसागर; पठ. श्राव. ओटाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीघृतकल्लोलपार्श्वनाथ प्रसादात्. कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: (-); अंति: लेस्यो धरमतणो परिमाणजी, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: पायाद्व करणोरणे रणरणो; अंति: मम फलासाधुर्जन सेवता, श्लोक-२, (वि. श्लोक-१ विष्णु स्तुति व श्लोक-२ सुभाषित है.) ३. पे. नाम. अध्यात्मबत्तीसी-गाथा २० से ३३, पृ. १आ, संपूर्ण. __ अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: बनारसी ए तत ले पावे भवपार, प्रतिपूर्ण. १०७०४५ (+) शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. १७-३(१,१२ से १३)=१४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४१३, १८४३६-४२). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११अपूर्ण से गाथा-४९२ तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०७०४८. महाबलमलयासुंदरी चौपाई व पुन्यपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१४(१ से १४)=१३, कुल पे. २, ले.स्थल. वडायली, प्रले. मु. रविमल (गुरु मु. रेखराजजी); गुपि. मु. रेखराजजी (गुरु मु. सूजजी); मु. सूजजी (गुरु मु. कनीरामजी); मु. कनीरामजी, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२६४१२.५, २२४५८-६४). १.पे. नाम. महाबलमलयासुंदरी चौपाई, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १९५७, श्रावण शुक्ल, २, शनिवार. मु. भक्तविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदिः (-); अंति: माहरी पूछ मनरी कोड रे, खंड-४, (पू.वि. खंड-४ गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पुन्यपाल चरित्र, पृ. १५अ-२७आ, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रावण शुक्ल, ९, रविवार, पे.वि. हुंडी:पुन्यपाल.च. For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ पुण्यपाल चरित्र-दानाधिकारे, मु. रामदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९०९, आदि: संतिनाथ साता करन अरति हरन; ___ अंति: राम० अवगुण गुण ग्रहै, ढाल-३५. १०७०४९. पुण्यपाल चोपाई, अपूर्ण, वि. १९२७, श्रावण कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, ले.स्थल. कीट्ठल, प्रले. सा. दियालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पुन्यपाल.चौ०., दे., (२६४१३, २१४६८-८४). पुण्यपाल चौपाई, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पामसीजी कमुणा न रहै काय, ढाल-१९, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., ढाल-६ गाथा-८ अपूर्ण से है.) १०७०५० (#) उत्तमकुमार चतुःपदी, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रावण कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ३२, ले.स्थल. आउवा, प्रले. ग. खुशालहस गणि (गुरु ग. युक्तिहंस); गुपि.ग. युक्तिहंस (गुरु पंन्या. कनकहंस), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १८४४३). उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सरसति सामण पय नमी; अंति: सुणीयो सहु मन रंग रे, ढाल-५१, गाथा-१२४५, ग्रं. १६३६. १०७०५२. (+) श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, ११४३२). श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि अचरणंमि; अंति: (-), (पू.वि. वीर्याचार स्थूल अपूर्ण तक है.) १०७०५४. भक्तामर स्तोत्र सह ऋद्धिवृद्धिमंत्र व यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:भक्तामरमंत्रयंत्र०., दे., (२६.५४१३, १५४३७-४१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३५ तक है.) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहणमो; अंति: (-). भक्तामर स्तोत्र-यंत्र, अज्ञा., यं., आदि: (-); अंति: (-). १०७०५८. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७.५४१३, ९४२९-३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणित मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. १०७०५९ (+) विविधविचार संग्रह, प्रत्याख्यान फल व ५६३ जीव भेद गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १३४२६-२८). १.पे. नाम. विविधविचार संग्रह, पृ.१अ-१२आ, संपूर्ण, प्रले. मु. भारमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रा., पद्य, आदि: बारस गुण अरिहंता सिद्धा; अंति: पूरओ होइ अबीओ नरो बीयं, गाथा-२०४. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान फल, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान कुलक, मु. दानसूरिशिष्य, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सुगुरुचरणं; अंति: कुणसु सुहं पच्चक्खाणाई, गाथा-११. ३. पे. नाम. ५६३ जीव भेद गाथा, पृ. १३अ, संपूर्ण. जीवभेद गाथा, प्रा., प+ग., आदि: नारयतिरिनरदेवा चउद्द; अंति: नीर्यापथिक्याः, गाथा-५. १०७०६० (+#) नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-१(१)=२८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१३, १४४२९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जीवतत्त्व के १४ भेद अपूर्ण से सिद्ध के १५ भेद वर्णन अपूर्ण तक है.) १०७०६३. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७०-६१(१ से ५४,५९ से ६३,६५ से ६६)=९, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सुयगडांग., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४१२.५, ६४४१). For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-३ अपूर्ण से अध्ययन-४ अपूर्ण व अध्ययन-६ अपूर्ण तक है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०७०६७. अध्यात्मगीता सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदे., (२७X१२.५, ११४४२). अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीयै विश्वहित जिनवाणी; अंति: देवचंद्रे० सुप्रतीता, गाथा-४९. अध्यात्म गीता-बालावबोध, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदि: संवेगी सिरदार सिरोमणि जिन; अंति: कुंयर० कहै निज रूप, ग्रं. १२५०. १०७०६८. संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-१(३)=८, जैदे., (२६.५४१३, २-६x२५-२९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण से गाथा-११ अपूर्ण तक नहीं है व गाथा-२५ अपूर्ण तक लिखा है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करके अरिहंत; अंति: (-), पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०७०६९ (+) आवश्यकसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८८९, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १७१-८३(४२ से ५५,७२ से १३०,१३३ से १३६,१५१ से १५६)=८८, ले.स्थल. दिल्ली , प्रले. पं. देवचंद्र (खरतरगच्छ); पठ. श्राव. मथुरादास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १४४२५-४०). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: इअ सम्मत्तं मए गेहियं, अध्ययन-६, सूत्र-१०५, (अपूर्ण, पू.वि. नमुत्थुणं अपूर्ण तक, आयरियउवज्झायसूत्र से देशावगासिकपचक्खाण अपूर्ण तक, कल्लाणकंदं से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) आवश्यकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बार गणे सहित श्रीअर; अंति: मने करी आदर्य, अपर्ण. आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: बारसगूण अरिहंता; अंति: प्रवर्त्तते इति तत्त्वं, संपूर्ण. १०७०७१ (+) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति सह शिष्यहिता टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९८,प्र.वि. हुंडी:आ०.सू०.टीका., त्रिपाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २२५००, जैदे., (२६४१२.५, १९-२१४५०-५७). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, गाथा-२५५०, ग्रं. ३१००. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: मस्या उद्देशतः कृतं, ग्रं. २२०००. १०७०७५ (+#) योगदृष्टि स्वाध्याय सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८६७, पौष कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१)=१९, प्रले. ग. वल्लभविजय (गुरु पं. जीवणविजय); गुपि.पं. जीवणविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५४१२.५, २-४४३८-४७). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणे जी, ढाल-८, गाथा-७६, संपूर्ण. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: निरुपद्रव्य सुखनुं कारण; अंति: अनुग्रहने हेते लिख्यो छे, संपूर्ण. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भावनाना विचार पद कह्या __छै, अपूर्ण. १०७०७६. नारचंद्र-बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२.५, ११-१२४२९-३४). For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: विघ्नराज्यं नमस्कत्यं; अंति: (-), (पू.वि. नवग्रह ___ फल वर्णन अपूर्ण तक है.) १०७०७९. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, दे., (२६४१२.५, १३४२८-३१). कल्पसूत्र-बालावबोध, उपा. रामविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८१९, आदिः (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)इहां जे श्रीकल्पसूत्रनो; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम व्याख्याने १० कल्पे ऋजु-प्राज्ञादि विवरण अपूर्ण तक लिखा है.) १०७०८० २४ दंडक २६ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., (२६४१२.५, १५४४०). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम चोबीस दंडकारा नाम; अंति: एवं पंच दंडका माहे ऊपजे. १०७०८१ (+) स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१३, ११४२९-३३). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूर्वदिशा तथा उत्तर; अंति: उलस्यो संघ सकल आनंदो रे, ढाल-८, गाथा-५७. १०७०८३. ज्योतिषसारोद्धार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२७७१२.५, १५४३६). ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: तं नमामि जिनाधीशं; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-२ श्लोक-१८ अपूर्ण तक लिखा है.) १०७०८४. (#) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२.५, १३४३३). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदेसह भगवन; अंति: (-), (पू.वि. पगाम सज्झाय अपूर्ण तक है.) १०७०८५. (+) सिद्धचक्रपूजनोद्यापन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १५४३८). सिद्धचक्रपूजाविधान नवपदमहिमा मंत्राह्वान विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सुलग्ने प्रथम उद्यापनकर्म; अंति: संतर्पितास्तु स्वाहा. १०७०८६.(+) कर्मग्रंथ-१ से ६ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रावण कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ७४, कुल पे. ६, पठ. मु. अमरचंदजी ऋषि (गुरु मु. भागचंदजी ऋषि); गुपि. मु. भागचंदजी ऋषि (परंपरा मु. पूरणमलजी ऋषि); मु. पूरणमलजी ऋषि (परंपरा मु. परमानंदजी ऋषि); मु. परमानंदजी ऋषि (परंपरा मु. चतुरभुजजी ऋषि); मु. चतुरभुजजी ऋषि (परंपरा मु. कानजी ऋषि); मु. कानजी ऋषि (परंपरा आ. कल्याणसागरसूरि); आ. कल्याणसागरसूरि, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२.५, ४४३१-३६). १. पे. नाम, कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१ सह टबार्थ, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६२. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउतीस अतीसय करी विराजमान; अंति: शास्त्र जोइ ने लिख्यो. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२ सह टबार्थ, पृ. ११आ-१७अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तिमहि ज श्री महावीरस्वामि; अंति: नमस्कार करै सत्ता पूरी थइ. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३ सह टबार्थ, पृ. १७अ-२१आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: कर्मना बंध जीवने प्रदेसे; अंति: ए कर्मबंधस्तवना ए सांभली. For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४ सह टबार्थ, पृ. २१आ-४०अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८८. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे चोथा कर्मग्रंथने; अंति: सुविहित गच्छनायक लिख्यो. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५ सह टबार्थ, पृ. ४०अ-५९अ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतराग प्रते वांदि जे; अंति: वास्ते ए सतक नामे. ६. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६ सह टबार्थ, पृ. ५९आ-७४आ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: चंद० एगूणा होई नउईओ, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध पाम्या छै जे निश्चल; अंति: सहित एके ऊणी ते गाथा हुवै. १०७०८८. नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८८५, आषाढ़ कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. १७-३(२,६,१२)=१४, ले.स्थल. साहेपुरा, प्रले. मु. जगराम (गुरु मु. कनीराम); गुपि. मु. कनीराम (गुरु मु. गाढमल); मु. गाढमल (गुरु मु. सांमीदास); मु. सांमीदास (गुरु मु. दीपचंद); मु. दीपचंद (अज्ञा. मु. लालचंदजी); मु. लालचंदजी (गुरु मु. जीवराजजी); मु. जीवराजजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:नंदीसूत्र., जैदे., (२७.५४१२, २१४३६). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (१)से तं नंदी सम्मत्ता, (२)वीसरमणुसाइं नामाइं, सूत्र-५७, गाथा-७००, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से गाथा-५२ अपूर्ण तक व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) १०७०८९ (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १५४३९-५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पृ.वि. महावीरजिन गर्भापहार प्रसंग तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कारो अरिहंताणं; अंति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति: (-). १०७०९०. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सुयगडांग., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४१२, ५-७४४५). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झेज्ज तिउद्देज्जा; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुज्झे० छ जीवनकाय; अंति: (-). १०७०९१ (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२.५, १३४४१). चातुर्मासिक व्याख्यान, प्रा.,सं., प+ग., आदि: प्रणम्य श्रीमदर्हतं; अंति: (-), (पूवि. पौषध अतिचार वर्णन अपूर्ण तक १०७०९२. (+) २४ जिन १७० द्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, १३-२०४४३-४८). २४ जिन १७० द्वार ,भव, पूर्वभव, आयु, देहमान,चक्रि,वासुदेव समयादि कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १०७०९३. सम्यक्त्वकौमुदी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:सम्यक्त्वकौ., दे., (२५.५४१२.५, ६x४०). For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., प+ग., वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम कथा अपूर्ण तक लिखा है.) सम्यक्त्वकौमुदी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमान चतुविश; अंति: (-), पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०७०९४. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५-५१(१ से ५१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ५४३२-३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५८ अपूर्ण से गाथा-३९० अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०७०९५ (+#) गुणस्थानक्रमारोह प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ३,५ से ७)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, ३-१८४४१). गणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१० से १३ अपूर्ण तक व श्लोक-२७ से ३१ अपूर्ण तक हैं.) गणस्थानक्रमारोह प्रकरण-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०७०९६ (+#) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१२.५, २१-२३४३०-५६). १.पे. नाम. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमोक्कारो आगारा; अंति: चरिमेय८ अभिग्गहे९ विगई१०, गाथा-३. २. पे. नाम. ५६० अजीव भेद विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ५६० अजीव भेद, मा.गु., गद्य, आदि: जीव१४ अरूपी उपादे अजीव१४; अंति: ५६० भेद अजीवरा जाणिवा. ३. पे. नाम. ५६३ जीवभेद विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: १५ परमाहमीया १० भुवनपति; अंति: सर्व ५६३ भेद जाणिवा. ४. पे. नाम. षद्रव्यनी विगत, पृ. १अ, संपूर्ण. ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय द्रव्य थकी ए; अंति: ४ गुण थकी वत्तणगुणे ५. ५. पे. नाम. १४ गुणस्थानकस्थिति काल, पृ.१आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक स्थितिकाल, मा.गु., गद्य, आदि: १ पहिला गुणठांणारी स्थित; अंति: चेव कथितं मुनि पुंगवैः. ६.पे. नाम. ५ शरीर ६ पर्याप्ति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पांच शरीरना लक्षण५ औदारिक; अंति: १ समय ऊदारिक शरीर आश्री१. ७. पे. नाम, ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ कर्म१५८ प्रकृति विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी५ दर्शनावरणी९; अंति: १५८ प्रकृति हुवइ सामान्यइ. ८. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: तिगुणा तिरूव अहिआ; अंति: जिणेहिं जिअ रागदोसेहिं, श्लोक-२. ९. पे. नाम. ५६३ भेद जीवराशि क्षमापना, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ५६३ भेदनै अभीषादि१० दसगुण; अंति: १२२४१२० मि० दुक्कडं कह्या. १०. पे. नाम, गाथा संग्रह जैन, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सो लद्धि अपज्जत्तो जो मरइ; अंति: सो पुण जेणंता पूरिआ हुंति, (वि. गाथा-२) ११. पे. नाम. ८४ लाख पूर्वमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ८४ लाख वरस तेहनइ पूर्वांग; अंति: ७०५६ ० पूर्वनु माण जाणवू. १०७०९७. (+) कालिकाचार्य अष्टक व ग्रहशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२.५, १३४३७). For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. कालिकाचार्य अष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः प्रवरसेखाग्रे चर्णि; अंति: तुषार्थां द्विकरेण अंब, श्लोक-९. २. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र-लघ. आ. भद्रबाहस्वामी. सं.. पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कत्य: अंति: पर्वाग्रहसांतिवितवत्ते, श्लोक-११. १०७०९८. आदिजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६.५४१२.५, ११४२९). आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) १०७०९९. भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य व उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडार गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२.५, ११४४२). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, प. १आ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररविपुरि; अंति: गुणैः प्रयोज्यः, श्लोक-४. २.पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा *, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: ॐ नट्ठट्ठमयठाणे पणठ; अंति: नीलकंठपसाएणं, गाथा-४, (वि. गाथा-२+२*४) १०७१००. १८ हजार शीलांगरथ यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. हुंडी:रथ पत्र. प्रतिलेखकने पत्रांक न.१ लिखा है परंतु कृति के आधार से यह पत्र बीच का है., दे., (२६४१२, २६x४३-४७). १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सामाचारीरथ-५ से इर्यापथिकीरथ-१२ तक १०७१०१. दंडक चर्चा, संपूर्ण, वि. १९५६, कार्तिक शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. हीरुबाई (गुरु सा. जीवीबाई महासती); गुपि. सा. जीवीबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, १९४५१). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ नरकनी गतीमां एक दंडक; अंति: शरीरमां चौवीस दंडक लाभे. १०७१०२ (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासूत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, ५-८४४५-४८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१० अपूर्ण पाठ-"समोसरणं जावपरिसा पज्जुवासइ ते" से है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (वि. आदिवाक्य खंडित है.) १०७१०४. बृहत्संग्रहणी बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८५, भाद्रपद कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७१-४२(१ से ३३,३५ से ३६,४० से ४१,४६ से ४७,६०,६८ से ६९)=२९, ले.स्थल. कृष्णगढनगर, प्रले. जसकर्ण मथेन; लिख. म. फतेंद्रविजय (गुरु पंन्या. भूपविजय, तपागच्छ); गुपि. पंन्या. भूपविजय (गुरु पंन्या. भावविजय, तपागच्छ); पंन्या. भावविजय (गुरु उपा. ऋद्धिविजय, तपागच्छ); उपा. ऋद्धिविजय (गुरु पंन्या. प्रमोदविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्री फतेंद्रविजयजी के लिए अंत में "श्रीहरिदुर्गस्थिता चतुमसिकृता स्थितात् सिद्धगिरजात्रा आगतास्थि" ऐसा उल्लिखित है., जैदे., (२५४१२, १३४२०-३०). बृहत्संग्रहणी-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: २३वेद३ ऐ २४ द्वार कह्या, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अंग-उपांग संस्थानवर्णन अपूर्ण से है.) १०७१०५. चंद्रोन्मीलन शास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५६-१(३१)=५५, जैदे., (२६४१३, ९४२०-३०). चंद्रोन्मीलन शास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदि चूडामणिसारं स्वयं; अंति: स्वानः सप्तजन्मानि शूकर, प्रकरण-५५, (पू.वि. उदाहरणार्थ कोष्ठक का मध्य भाग नहीं है.) १०७१०७. (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५८, भाद्रपद शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ११५, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. मयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, ९४३५-३८). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायांति; अंति: हर्षकीर्ति चिंतामणिश्चिरं, अध्याय-७. For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ योगचिंतामणि टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जब वित्रासनह; अंतिः प्रवर्त्ती घणा काल तांइ. १०७१०८. (+) सूक्तावली सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८३६, वैशाख शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८९-१ (१४) = ८८, ले. स्थल. इलोलनगर, प्रले. ग. विद्याविजय (गुरु पंन्या. रूपविजय); गुपि. पंन्या. रूपविजय (गुरु पंन्या. कृष्णविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५x१२, १६५३६). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि सकलसुकृतवल्लीवृंद, अंति: मनोविनोदाय बालानां, वर्ग ४, श्लोक-१४६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूक्तमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: तदनुक्रम संग्रहो यथा; अंति: विचारणीय क० विचारवु, (पू.वि. चाणक्य दृष्टांतकथा ४ अपूर्ण से दृष्टांतकथा ५ अपूर्ण तक है.) १०७१०९ (+४) सम्यक्त्वसार प्रतिमाचर्चा, संपूर्ण, वि. १८९०, चैत्र शुक्ल, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १६, ले. स्थल, दिल्ली नगर, प्रले. श्राव. किसनचंद श्रीमाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१३, २२x२३-५४). सम्यक्त्वसार प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: भस्मग्रह उतर्यांनो अति बाई ते मध्ये जाणज्यो. १०७११३. (+) कर्मग्रंथ यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९ - २ (२१ से २२ ) = ४७, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X१३.५, १५-१९X२३-३८). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - १, पृ. १अ - १२आ, संपूर्ण, वि. १८९४, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, सोमवार, प्रले. मु. शिवदास ऋषि (गुरुमु, कुशालचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. हुंडी : प्र०कर्म ०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १ यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा. यं आदि श्रीवीरजिन प्रते अंतिः अंतराय कर्म बांधे. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - २, पृ. १३अ - २०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : द्वितीयकर्मग्रंथ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - २-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., पं., आदि बंध प्रकृतिओ छे; अंतिः प्रकृति ८ विच्छेदप्रकृति. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: तृतीयकर्मग्रंथ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., पं., आदि ध्रुवबंधीप्रकृति जिणां अति (अपठनीय), (वि. अंतिमवाक्य अपूर्ण एवं अस्पष्ट है.) ५५ ४. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५- यंत्र, पृ. २५अ- ४९आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८९४, आश्विन कृष्ण, १३, ले. स्थल. नागोर, प्रले. मु. शिवदास ऋषि (गुरु मु. कुशालचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. हुंडी : पंचकर्मग्रंथ. " शतक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, पंन्या. सुमतिवर्धन, मा.गु, गद्य वि. १८७५, आदि: (-) अति देवेंद्रसूरि लिख्यो, ग्र. ९००. १०७११४. ज्योतिषसार की भाषा- योगनीदशा पर्यंत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-५ (१ से ५) = ७, प्र. वि. हुंडी : जोश., दे., (२५.५X१२.५, १२-२४X६१-६४). . ज्योतिषसार भाषा, क. कृपाराम, मा.गु., पद्य वि. १७९२, आदि (-); अंति (-), (प्रति अपूर्ण, पू. वि. गाथा - १४० अपूर्ण से है.) १०७११६. पंचपरमेष्ठि पूजन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६-१ (१५) १५, प्र. वि. हुंडी: पंचपर०पू०. जैये. (२५.५x१३, ११X३८-४२). पंचपरमेष्ठि पूजन, सं., प+ग., आदि: कल्याण कीर्त्ति कमला कमला; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. आचार्यपद पूजन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) 1 १०७११७. कल्पसूत्र-व्याख्यान २, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६X१३, ६X३५). (प्रति अपूर्ण, पू. वि. सप्तम अछेरा वर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र व्याख्यान, सं. गद्य, आदि (-); अति (-) 1 १०७११८. (#) नरक विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१)=२, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४१२.५, १२४२६-३२). १. पे. नाम. नरक विचार, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: रत्नप्रभा १ शर्करप्रभा २; अंति: ८४ लाख नरक का वासा हुवा. २. पे नाम. १० भुवनपतीदेव नाम भवनादि वोल, पू. २आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: असुरकुमार १ नागकुमार २; अंति: लाभै कृ० नी० कपो० तेज० ४. ३. पे. नाम. ६ लेश्या नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: कृष्ण लेश्या १ नील; अंति: शुक्ल लेश्या ६. ४. पे. नाम. ५ शरीर, ६ संघयण, १० संज्ञा नामादि बोल संग्रह, पृ. २आ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदि: उदारिक १ वैक्रिय २ आहारिक; अंति: (-), (पू.वि. असत्यमृषावचन बोल अपूर्ण तक है.) १०७११९. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, दे., (२४.५४१३, १७X४३-४६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२३ तक लिखा है.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. खेम, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं देवं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. १०७१२०. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, प्र.वि. हुंडी:उपासकदश०, प्र.ले.श्लो. (१११) भग्नपृष्टिकटीग्रीवा, जैदे., (२४४१२.५, ७४३६-४०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु उद्दिसंति, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणइ का० कालिइ; अंति: उपदिसे साधु. १०७१२७. (+#) चौमासरो वखाण, संपूर्ण, वि. १९१८, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ.१५, प्रले. मु. सालगरामजी (गुरु मु. जीवराजी); गुपि. मु. जीवराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १५४४५). चातुर्मासिक व्याख्यान *, रा., गद्य, आदि: तिहा प्रथम श्रीमहावीर; अंति: मिच्छामि दुक्कडं देवै. १०७१२८ (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१६, ?, रविवार, मध्यम, पृ. ९, प्रले. सोमचंद कचराणी ठाकर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ७४१७-२४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. १०७१३० (+#) आवश्यकनिर्यक्ति की टीका, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. २९०-२८४(१ से १९९,२०१ से २४९,२५१ से २६९,२७२ से २८०,२८२ से २८९)=६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिये गये हैं., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९.५४११, १४४६३-७०). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की टीका, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नवकार, लोगस्स, अरिहंतचेइयाणं, पुक्खरवरदीवड्ढे, सिद्धाणंबुद्धाणं सूत्रों की टीका के कुछेक अंश उपलब्ध हैं.)। १०७१३१ (+#) कृतकर्म कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १४-१(१)=१३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x१०.५, १४४३८-४२). कर्मभूपाल चरित्र, उपा. चारित्रसुंदर, सं., पद्य, वि. १५११, आदि: (-); अंति: भूप चरितं नानातिवारोत्तरा, ___ (पू.वि. श्लोक-३९ अपूर्ण से है.) १०७१३६. हरिवंशपुराण की भाषाटीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८५-१५१(१ से १५१)=१३४, जैदे., (२६४१०, १३४३८). हरिवंशपुराण-भाषाटीका, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. पवनवेग राजा प्रसंग से है तथा नेमिजिन मोक्षगमन प्रसंग तक लिखा है.) १०७१३८. अभिधानचिंतामणिनाममाला, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२०.५४९.५, १०x२३-२६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. कांड-२ श्लोक-१७० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ५७ १०७१३९ (+) शारदा स्तोत्र व अंबिकादेवि स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१०(१ से १०)=२, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सारदा., संशोधित., दे., (२१.५४१०.५, ९४३२). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण, वि. १९३२, आषाढ़ कृष्ण, ले.स्थल. खीचसर. आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, वि. १५२७, आदि: कमलभूतनया मुखपंकजे; अंति: (१)दुरितां भुवि भारती, (२)बुद्धिवर्द्धयति निर्मलं, श्लोक-१४. २. पे. नाम. अंबाजी स्तोत्र, पृ. १२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐ कुरुकुंडं दंड; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) १०७१४२. चैत्यवंदन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४१०.५, ८x२२). चैत्यवंदनसूत्र-विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमोत्थुणं अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जावंत केवि साहु तक है.) १०७१४५. दोसकेवली, संपूर्ण, वि. १८२८, आषाढ़ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. बाहुलपुर, प्र.वि. हुंडी:दोसकेव, जैदे., (२२.५४१०.५, ८-१२४२०-२७). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: तेहनी मानवट जात देणी. १०७१५३ (+) विजयक्षमासूरि को पर्युषणापर्व आराधना पत्र व साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०,११४३९). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्र के उपरी भाग में लिखी हुई है. सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखकारं सकल; अंति: नियूंढ चारु चरण सारान्, श्लोक-५. २.पे. नाम, विजयक्षमारि को पर्यषणापर्व आराधना पत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: तीर्थावतंस तीर्थेशे विमले; अंति: स्वरूपं श्रीमद्भिरवसेयम्. १०७१६४. (+#) पार्श्वजिन स्तवनद्वय, औपदेशिक सज्झाय व छींक शकुन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०, १४४४०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडी, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ग. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: गोडी चारे एक करूं; अंति: जिनहरख० धवल धींग गोडी धणी, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडी, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर मुझ विनती; अंति: इम जपे जिनराज हो, गाथा-७. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मु. भुवनकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: चतुर विहारी आतम माहरा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ४. पे. नाम. छींक शकुन विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अंत में स्तंभन यंत्र दिया है.) १०७१६५ (+#) गजसिंहनप कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०, ५४३४). गजसिंहनप रास-सीलमहात्म्ये, मु. देवरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८१५, आदि: प्रथम इष्ट पदेष्ट; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ तक लिखा है.) गजसिंहनप रास-सीलमहात्म्ये-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमथी पार्श्वदेवने; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०७१७५ (+) पार्श्वनाथ स्तवन व जिनकशलसूरि गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४९.५, ११४३४). १. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: सयल रिपु जीपतो, गाथा-५. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दादोजी दीठां दोलत; अंति: करै दादाजीरी होडि, गाथा-८. १०७१८० (+#) कर्म उपर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वर्ण, प्रले. मु. हेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१०, ९४३०). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१९. १०७१८२. माणिभद्र पूजा व पद्मावतीदेवी मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (१५४९.५, ११४१७-२१). १. पे. नाम. माणिभद्र पूजा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. माणिभद्र पूजा विधि, मा.गु., प+ग., आदि: ॐनमो भगवउ अल्तसिद्ध; अंति: रुपियो १ रोजीनो आपे. २. पे. नाम. पद्मावतीदेवी मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐहीं पद्म पद्मावति; अंति: राजद्वारे वार ३ मोहनं, (वि. विधियुक्त.) १०७१८५. औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१.५४९.५, १४४३८). औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: इह१ परलोयार याण३ सकह्या४; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२० तक लिखा है.) १०७१८६. (#) मन्हजिणाण सज्झाय, प्रतिलेखन विधि व अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२.५४९.५, १०४२८). १. पे. नाम, मन्नहजिणाणं सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्नह जिणाण आणं; अंति: निच्चं सुगुरुवएसेणं, गाथा-५. २. पे. नाम. प्रतिलेखन विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पडलेहणवज्जणह जे सज्झाय; अंति: दुरीय पणासह दरि. ३. पे. नाम. साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार-श्वे.म.पू., पृ.१आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संथारा आओट्टणकी परि; अंति: मिच्छा मि दुक्कडं. १०७१८७. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:बीजीवाणी, जैदे., (२२.५४९.५, १०४३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ तक है.) १०७१८८. सुखडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सुखडी, दे., (२१४९.५, १३४३६). सुखडी सज्झाय, मा.गु., गद्य, आदि: रमता रमता रंग ढोलडी; अंति: नाणी गुरु एम प्रकाशै. १०७१९०. नेमराजलरा झीला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:नेमराजुलराजला., दे., (१९.५४९.५, १६४३०). नेमिजिन लावणी, म. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: में अबला हुं अजाण; अंति: जुर जुर काया सुकी, गाथा-६. १०७१९१. दयाचंदगुरुगुण गीतद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२०४९.५, १४४२७). १. पे. नाम, दयाचंदगुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. सा. पानाबाई महासती, मा.गु., पद्य, वि. १९७७, आदि: मेहं सीरसती सीवरु माता; अंति: पानाजी हीरदे धारी जी, गाथा-११. २.पे. नाम. दयाचंदगुरुगुण गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सा. पानाबाई महासती, मा.गु., पद्य, वि. १९७०, आदि: हां रे जीवा सरसती सीमरु; अंति: सती पानजी केवे कर जोडी हो, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ५९ १०७१९२ (+) पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक-१४२=१ गिनके माहिती भरी गई है., संशोधित., दे., (२२४९.५, २३४१५). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान; अंति: श्री भुवनकीर्तिसरि. १०७१९६. (+) शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १०४२७). शीतलजिन स्तवन, पंडित. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता वीनवु हो लाला; अंति: प्रेमविजय० आपो सुखनो कंद, गाथा-११. १०७१९७. गौतमाष्टक व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०.५४९.५, १५४३८). १. पे. नाम, गौतमाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी गौतम प्रणमी; अंति: उदय प्रगट्यौ प्रधान, गाथा-८. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंतजी लेइन; अंति: सीस नमे जिनचंद रे, गाथा-१३. १०७१९८. नेमराजिमती गीत, सज्झाय व आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१.५४१०, ९४३६). १. पे. नाम. नेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. मेडता. नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नेम कांइ फिर चाल्या; अंति: जिनहरख पयंपे हो, गाथा-९. २. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: कबहिं मिलै जो मुज; अंति: या करम जहि करतारा रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर, मा.ग., पद्य, आदि: प्रिउ विन कुं सखी रयण; अंति: समैसुद्र० ताप बुजावइ रे, गाथा-३. १०७१९९. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१.५४९.५, ७X२२). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देत समानने अरथ समान जे; अंति: विमल गुण गावे रे, गाथा-८. १०७२०१. अभिनंदन स्तवन, धरणेद्रपद्मावती मंत्र व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्राव. परसोतमदास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०x१०, ८x२४). १.पे. नाम, अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तुम दर्सण मलियो; अंति: मान० रस मलिओ एक टांणि, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं; अंति: पूरे पूरे मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. १०७२०३. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. ऋ. ताराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०४९.५, १३४३२). औपदेशिक सज्झाय, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: आलै जनम महारो रे कीजै; अंति: सबलदासजी करै अभ्यासौ, गाथा-१५. १०७२०४. (#) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४९.५, १५४४६). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ तक लिखा है.) १०७२०५. (#) महावीरजिन स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६४, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सिरोही, प्रले.पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०, ५४२४). पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६० www.kobatirth.org पाक्षिक स्तुति-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि न्हबराज्यो निरुपम छे मेरु; अंतिः सिद्धिक० मोक्ष प्रति , १०७२०६ (४) लघु अजित शांति स्तव, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२३४१०, ९४३४-३६) " अजितशांति स्तव लघुखरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि उल्लासिक्कमनक्ख; अति दरियमखिलंपि धुणंतह, गाथा- १७. १०७२०८. (#) पार्श्वनाथ स्तोत्र व उपसर्गहर स्तोत्र की भंडारगाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (१३.५४९.५, १३x२७). १. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पू. १अ संपूर्ण उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं पासं; अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. २. पे. नाम. उपसर्गहर स्तोत्र की भंडार गाथा, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. *, उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ की भंडारगाथा संबद्ध, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा. पद्य, आदिः ॐ नमो तुह दंसणेण सामिय; अंति: पासजिनिंद नम॑सामि गाथा- २ (वि. मन्त्रसाधना विधि सहित ) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७२१०. गौतमाष्टक, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. पंन्या. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (१६.५४१०, १०x२८). " गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति, अंति लभते नितरां क्रमेण श्लोक -९ १०७२१३. (+) पद्मावतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १७७३, चैत्र कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. लाहा, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२१.५X१०, १४X३२). १०७२३२. सुपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०x१०, ७X२६). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मावतीदेवी छंद, हीरो, मा.गु., पद्य, आदि देवीतो दीवाणं अनंत अति तवई पासनाह पद्मावती, गाथा-३९. १०७२१७. मेघकुमार पंचढालिया- ढाल १, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २१x१०, १०X३७-४०). मेघकुमार पंचढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: मेघकवर धारणी माता अंति: (-), प्रतिपूर्ण १०७२३९ जीवदया सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, वे. (२१.५x१०, १३x२९). सुपार्श्वजिन स्तवन-जयपुर मंडन, मु. रत्नविजय, पुहिं., पद्य, वि. १९००, आदि: हो जिनवरजी मरजी करनै; अंति: रत्नविजय शीर धारे छे, गाथा १०. जीवदया सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्म, आदि रे जीवदया पालज्यो; अंतिः कवियण० पालजो जु पावजी मोख, गाथा - १३. १०७२४० (+) बंदिसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२१.५x१०, १२X३१-३५). मा.गु., पद्य, आदि : आज आव्या रे हरि दावमा भला; अंति: राजेन० स्याने वेठीइ जी रे. ४. पे. नाम औषध संग्रह, पू. १अ, संपूर्ण. वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-४१. १०७२४६. सरस्वती छंद, प्रास्ताविक कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ९, प्र. वि. पत्र १x२= १ है., जैदे., (१९.५X१०.५, ५४x२०-२२). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी कवित्त, पृ. १अ संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु, पद्म, आदि ओपै ओपे मोतीनो हार जिसउ अति सहिजसुंदर पूजो सरस्वती. २. पे. नाम. विष्णु स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में "गलाबपनजी भूद लखीयररौ" ऐसा लिखा है. सं., पद्य, आदि जराकर्णमूलेकृतं तस्य अंति: भजध्वं भजध्वं रमाकंतमंतां. .पे. नाम. हरिभक्ति गीत, पू. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: संखीयो सोमन पा टांक काथो; अंति: किरीया मूलगी फिरंगवाय जाय. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि धीर कह्यो वीर कह्यो भारी अति मन मेलो बेटी चोद को, का. - १. For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ६. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त-विनाश के स्थान, प. १आ, संपूर्ण. क. नारायणदास, पहिं., पद्य, आदि: नीच को नेह अनाथ को जीवन; अंति: दासनारायण ते होत विनासा, का.-१. ७. पे. नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्तविक पद, पुहिं., पद्य, आदि: दरीयो खारो सब कहत को करहै; अंति: रहत सुजन सीप के पास्य, गाथा-१. ८. पे. नाम. भावसारपुत्र कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कुल भावसार के वंस मै भये; अंति: लंपट लबाड लंड धर मारी है, का.-१. ९.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: माकडु चोर्यु माहीं; अंति: वार गलता मम लोचनाभ्यां. १०७२४९. कालीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०४१०, १३४२९). कालीसती सज्झाय, मु. नंदलाल शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: काली हो राणी सफल किय; अंति: सेती वरत मंगलाचार, गाथा-८. १०७२६५. (+) सरस्वतीदेवी छंद व वर्षाज्ञान विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१.५४१०.५, ९४३२). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धुरा उच्चरणं; अंति: कर वदे हेम इम वीनती, गाथा-१६. २. पे. नाम. वर्षाकाढण विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). १०७२६७. ८५ मूर्ख लक्षण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:सीख., दे., (२२४१०.५, १०४३२). ८५ लक्षण-मूर्ख, रा., गद्य, आदि: बालकरो संग करे ते मूर्ख; अंति: रज्या करो सौ नर मूढ गंवार. १०७२७९. सिचियादेवी स्तुति- ओसिया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२.५४१०.५, १०४३६). सिचीयायदेवी स्तुति-ओसिया, मु. जुगति पाठक, पुहिं., पद्य, वि. १७७२, आदि: आज सफल दिन आया गढ; अंति: तू सैसाचल मात भवानी, गाथा-७. १०७२८३. संख्यावाची शब्द कवित्त, औपदेशिक पद व दोहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, कल पे.७, जैदे., (२१.५४१०, ११४३२). १. पे. नाम, संख्यावाची शब्दकोश कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: प्रथमपंकजा कमल विहंगा गरड; अंति: भलां भूपा सरससवाहर भूप, गाथा-५. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अरे भववासी जीव जड को; अंति: राख साचे भगवान कू, गाथा-४. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: मन मै कर विचार चलत न लागै; अंति: तडभडहड चित पग धरो, गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में उल्लिखीत पाठ- "कृपालभट्ट धुहडचितचनमग१ इण पद मै समझणो" पुहिं., पद्य, आदि: निसपादन साधु को संग भज्यो; अंति: मन हंत जो विषया ज मदा, गाथा-४. ५. पे. नाम, ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नामं दसगुणं प्रोक्तं; अंति: भागं सेषांकेन फलं वदेत्, गाथा-१. ६. पे. नाम. संख्यावाची शब्द, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. संख्यावाची शब्दकोश, सं., गद्य, आदिः द्वौर चार्क१२ बाण५ तिथय१५; अंति: ग्रहा९० कथतं सभटचोरपख. ७. पे. नाम, दोहा संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: जदपतमोह नरसक छबीली; अंति: रह न सकै कछु अथ ६बल काया, दोहा-१. For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०७२८५. नक्षत्र शकुनावली, संपूर्ण, वि. १८३७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सीरीयारी, प्रले. मु. रुपसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४४७). नक्षत्र शुकनावली, मा.गु., गद्य, आदि: नवकार तीन कहीने सोपारी; अंति: धन लाभ सुख संतोष होय. १०७२८६. पल्लीविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०,१३४५४). गृहगोधा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: घिरोली जो माथै पडि तो; अंति: पगना नख उपर पडे तो धन लाभ. १०७२९० (-) मूर्तिपूजामतखंडन सज्झाय व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:चरब., अशुद्ध पाठ., दे., (२०.५४१०.५, १५४२९). १. पे. नाम. मूर्तिपूजामतनिरसन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: धरम कारण जीव हणन कहो न; अंति: (अपठनीय), गाथा-१०, (वि. अशुद्ध पाठ के कारण अंतिम वाक्य नहीं लिया.) २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: सबम रतन सिल हा सब ही रतना; अंति: कसाकट आव्या रुर जालम रोग. १०७३०६. टाकरिया पच्चीसी व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४१०, १५४४०). १. पे. नाम. टाकरिया पच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___टाकरियापच्चीसी, मा.ग., पद्य, आदि: लांबा जुहार करे; अंति: निरख्या नजरि मजरि नावइं, गाथा-२५. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. प्रा.,सं., पद्य, आदि: हरइजरातारुण्यं इंदिअचोरा; अंति: दखाणसमपिउअप्पा, गाथा-३. १०७३०७. नेमराजुल पच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२४१०.५, १०४३५-३८). नेमराजिमतीपच्चीसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत्त सांमण विनउ सारद; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) १०७३१९ (+) शांतिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७१, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ.१, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. रंगविजय (गुरु पंन्या. रूपविजय),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२३.५४१०, १३४४७). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकरण श्रीय शांति; अंति: रंगविजय गुण गाय रे, गाथा-५. २.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु; अंति: अविचल पद निरधार, गाथा-७. १०७३२०. पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रावण शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. देवगढ, प्रले. मु. धीरजमल स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०, १०४२७). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुण्ये; अंति: निसदिन करो वधाइजी, गाथा-४. १०७३२१. बोल विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, दे., (२३४१०, १३४२८-३२). १. पे. नाम. सात भय नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ७ भय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: इहलोक भय १ परलोक भय २; अंति: गुप्तभय ६ आकस्मिक भय ७. २. पे. नाम. आठ मद नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ८मद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: जातमद कुलमद बलमद; अंति: श्रुतज्ञानमद ८. ३. पे. नाम. ५ दान नाम, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: अभयदान १ अनुकंपादान २; अंति: कीर्तिदान ४ सुपात्रदान ५. ४. पे. नाम. ६ द्रव्य नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जीवद्रव १ अजीवद्रव २; अंति: अधर्म द्रव्य ६. ५.पे. नाम. बोल विचारादि संग्रह, प. १अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ विचार संग्रह-विविधविषयक, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: धरमरो बाप जाणपण १; अंति: पीडालु ३१ छेद्यो उगे ३२. १०७३२२. (+) गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१०, १४४३३). १.पे. नाम. औपदेशिक बारमासा, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लघुद, पुहि., पद्य, आदि: आज सखी आसुर अथिर संसार; अंति: लघुद कहे सिरनामी, गाथा-१२. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: दीधी लाभि लिखमी घणीए; अंति: लावण्यसमय० रे कोई करतारी, गाथा-७. ३. पे. नाम. हनुमान गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: कपी कहि सुनि रे कट्ठीयार; अंति: सोमतणि० होड हारी रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: दमणो रे दमणो नेमजी जाए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) १०७३२३. पार्श्वजिन गीत व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१५.५४१०, ९४२२). १.पे. नाम, पार्श्वजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन, म. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मन भावन जिन तनमन तोसे; अंति: रूपचंद०मुजराह माराल्यो रे, गाथा-५. २. पे. नाम, औपदेशिक कवित्त-गुरुभक्ति, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कलियुग के पाखंड भक्ति सब; अंति: श्रीमहाराज गोविंदशरण. १०७३४५. (+) शुकनावली, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रावण कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. केवलराम व्यास (पिता प्रह्लाद व्यास); गुपि. प्रह्लाद व्यास (पिता जागेश्वर व्यास), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०.५, १०x४२-४६). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: सजण लाभ होसी सही कर मानजो. १०७३६९ (+) उपसर्गगण की उपसर्गदीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३४११, ९४३१). उपसर्गगण-दीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: सर्वविश्वशब्दौ समस्तस्य; अंति: आविस प्राकट्ये२३. १०७३७१ (+#) पंचांगविधि दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२.५४१०.५, १७X४७). पंचांगविधि दोहा, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: गवरीनंद आनंद करि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७६ अपूर्ण तक लिखा है.) १०७३७२ (#) सरस्वती स्तोत्रद्वय व मास दिशा फल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १२४३२-३८). १.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: विपुलसौक्षमनंतधनागमं; अंति: प्रतिदिनं हृदये कमलापति, श्लोक-१५. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. बप्पभट्टसरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ३. पे. नाम, मास दिशा फल, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भास्करे रोग शोक संताप; अंति: शुक्रे राज्य न संसय, श्लोक-२. १०७३७५ (+) ग्यानप्रदिप, संपूर्ण, वि. १९३६, आश्विन अधिकमास शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२४११, ११४२७). ज्ञानप्रदीप, सं., पद्य, आदि: चरे लग्ने चरे सूर्ये; अंति: सर्व सौख्यं जयं जय, श्लोक-३०, (वि. अंत में विषयोचित कुछ अन्य श्लोक भी लिखे हैं.) १०७३८१. शकुनावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४१०.५, १७२३२-५३). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: यत्सत्यंत्रिषुलोकेषु; अंति: कीर्तिमायुर्यशस्तथा, श्लोक-१९६. For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०७४०६. (+#) ज्ञानप्रदीप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १२४३४). ज्ञानप्रदीप, सं., पद्य, आदि: चरे लग्ने चरे सर्य; अंति: सर्व सौख्यं जयं जय, श्लोक-३०. १०७४१३. सवैया, गीत स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२२४१०, १३४३६). १.पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: अकल बड़ी संसार अकल आपदा; अंति: जिम तरुअर ऊपरहं, सवैया-१. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेजेसिखर समोसर्या; अंति: समयसुंदर कहै एम, गाथा-१७. ३. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, उपा. कुशलसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामलिया रे सोभागी तुझ मुख; अंति: थया कुशलसागर पद भोगी रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरे रलीयामणो रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १०७४५३. (#) सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १७५९, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ४, सम. मु. यशोविजय (गुरु ग. रविविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. रविविजय (गुरु पं. रूपविजय, तपागच्छ); पं. रूपविजय (गुरु पं. अमरविजय गणि, तपागच्छ); पं. अमरविजय गणि (गुरु आ. विजयानंदसरि, तपागच्छ); आ. विजयानंदसरि (तपागच्छ); प्रे. श्राव. जसवंती; श्रावि. केसरबाई, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. श्राविका जसवंती व श्रा.केसरभाई की प्रेरणा से यशोविजयजी द्वारा विजापुर के ज्ञानभंडार में प्रत को रखा गया., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४१०.५, १३४२८). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीपार्श्वनाथ प्रतइ; अंति: भवद्भिरद्भुतः, श्लोक-१५०. १०७४५४(+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४१०.५, १३४२८). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. १०७४६०. () थरादनरेश भीमसिंहराजा गरबो व सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१०.५, १०४२५). १. पे. नाम. भीमसिंहराजा गरबो, पृ. १अ, संपूर्ण.. थरादनरेश भीमसिंहराजा गरबो, मा.गु., पद्य, आदि: रूडा थरादगामे राज्य; अंति: (अपठनीय). २.पे. नाम. १७ भेदी पूजा, पृ.१आ, संपूर्ण. वा. सकलचंद्र, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पूजा-३ की ढाल गाथा-१ अपूर्ण से पूजा-४ की गीत गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) १०७४८१ (#) पार्श्वजिन स्तवन व दयाछत्तीसी, संपूर्ण, वि. १७५९, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. ग. सुमतिविमल; पठ. श्यामाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१६४११, ११४१५-२२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोहन मूरति ताहरी जी; अंति: राम० काइ पस पूगी दाव हो, गाथा-५. २. पे. नाम. दयाछत्तीसी, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ६५ दयाछत्रीसी, मु. साधुरंग, मा.गु., पद्य, वि. १६८५, आदि: दयाधर्म मोटो जिन, अंति: साधुरंग० अहमदावाद मझार जी, गाथा - ३६. www.kobatirth.org १०७४९२. जिनचैत्य स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२१x१०.५, १४४३२). , . तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके रविशशि; अंति: सततैवेत्रमानंदकारै, श्लोक - ११. १०७४९५ (०) पार्श्वजिन स्तवन- मनमोहन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२१.५x१०.५, २०X१४-१७). पार्श्वजिन स्तवन- मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि मनमोहन पावन देहडीजी, अंति हुं ताहरो जीवनदास हो, गाथा-५. " १०७४९९. कंसकृष्ण विवरण लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. पत्र १४५ = १ है. पत्र के एक ही ओर लिखा गया है. पत्रांक- ३अ पर नवकार मंत्र व चौबीस तीर्थंकरों के नाम पार्श्वजिन तक लिखा गया है. दे., ( २०x१०.५, २९४१५). कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गाफल मत रहे रे मेरी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ३९ अपूर्ण तक लिखा है.) " १०७५०५. अंगफरकण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२१x१०.५, ११x१५) अंगस्फुरण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: माथो फूरकतो राज्य लाभ करै; अंति: पग फरक तां चालण हां. १०७५१५. (A) पाशाकेवली भाषा, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२२.५x१०.५, १४४४१). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ११ महा उत्तम अहो वृक; अंति: पूजा करे० सही करी मानजे. १०७५१६. आचार्यविज्ञप्तिपत्र पद्धति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२३.५x१०, १४४३५). आचार्यविज्ञप्तिपत्र पद्धति, प्रा.सं., गद्य, आदि: ॐ स्वस्ति श्रीपासं पणमिऊण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सकल धुभोपमा विराज पाठ तक लिखा है.) י १०७५१७. तपागच्छ पट्टावली, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, जैदे. (२४४१०.५, ३९४७-२१). " " पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धनामस्वामि श्रीसुध; अंति: श्री विजयकल्याण चंद्र.. १०७५१८. वरकाणा पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२३४१०.५, १३x२३). पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कांई रे जीव तुं मनमे कसके; अंतिः श्रीपार्श्व पसाइ रंगरलि, गाथा- ९. १०७५४७. (A) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१३४१०.५, १७X१९). יי औपदेशिक सज्झाय-आत्मा, पं. विजयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: इम सद्गुरु जीवने समज, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १२ अपूर्ण तक लिखा है.) १०७५५९. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, दे., (२२x११.५, १०x१८). י सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बण्यभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३, (वि. अंत में स्तोत्र विधि भी दी है.) १०७५६०. (#) सरस्वतीदेवी छंद व सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जीवे. (२०x१०.५, ११४२८). १. पे. नाम सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अति सदा सोइ पूजो सरस्वति, ढाल ३, गाथा १४. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: नमस्ते सारदादेवी; अंति: देवी सारदा वरदायनी, श्लोक-६. For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६६ www.kobatirth.org २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजो सिद्ध; अति जिनवर करुं प्रणाम, गाथा-३. ३. पे नाम ज किचिसूत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जंकिचि नामतित्थं अति: ताई सव्वाई वंदामि गाथा- १. १०७५८८ (१) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६२३ कार्तिक शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ३ ले स्थल. सोहीग्राम, प्रले. श्राव. रामदास; अन्य. ग. संघमाणिक्य (गुरु ग. संघविमल) गुपि आ. सोमविमलसूरि (गुरु आ सौभाग्यहर्षसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२.५x१०.५, १३४३६-४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलिमणि अतिः समुपिति लक्ष्मीः, श्लोक-४२. १०७६०७. शनिश्चर छंद, चैत्यवंदन व जं किंचिसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३x११, १०x२८). १. पे. नाम शनिश्चर छंद. पू. १अ २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जग जयो रवि; अंतिः सदा वली वली वखाणीइ, गाथा- १६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०७६१६. (#) एकाक्षरनाममाला, संपूर्ण, वि. १७४३, आषाढ़ कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. पुंजपुर, प्रले. मु. अमृतसागर (गुरु मु. क्षीरसागर); गुपि मु. क्षीरसागर (गुरु ग. गजेंद्रसागर); ग. गजेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. बि. हुंडी नाममाला. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२४.५X१०.५, १४४३३-३५). " एकाक्षर नाममाला, मु. सुधाकलश मुनि; आ. हिरण्याचार्य, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंतिः सुधाकलश० मालिकामतनोत् श्लोक ५०. १०७६१७. (+) कथा संग्रह व सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., ( २४.५X१०.५, १८४६३). १. पे नाम. कथा संग्रह, पू. १अ १आ, संपूर्ण, सं., गद्य, आदि: क्वापि ग्रामे श्रेष्टिनो; अंति: केवलज्ञानमापेति लोभपिंडे, (वि. रोहिणी कथा के लिये बाद में ज्ञाताधर्मकथासूत्र का संदर्भ दिया गया है.) २. पे नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित लोक संग्रह, मा.गु. सं., पद्य, आदि दासेरकस्य दासीय बदरी यदि अंति ज्यु पीनई परिहरिवांहिं. १०७६१८. सुभाषित संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १ ले. स्थल तीलोडा, जैदे. (२४४११, १८४३६). सुभाषित श्लोक संग्रह *, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वीसं जीवोती च जीवो जीवो; अंति: असाहू हि साधमं पयासंति, श्लोक-२९. १०७६३७. धर्मोपदेश, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैवे. (२१.५x१०.५, १३-१५X३८). १०७६२२. गांगेयभंग प्रकरण की चयनित गाथाएँ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैये. (२१.५x१०.५, ९४२७)गांगेयभंग प्रकरण-चयनित गाथा, मु. श्रीविजय, प्रा., पद्य, आदि: एगंमि उ नरगंमि भंगा सग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक लिखा है. वि. गाथाक्रम-५ से ११ दिया है, किंतु मूलगाथाक्रम अलग-अलग है.) " तत्त्वविचार लोकसंग्रह - विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (१) तत्त्वानि ९ व्रत १२ धर्म १० (२) जीव १ अजीव २ पुण ३ अंतिः १ लाख योजन हवे. १०७६४२. नारिपरिहार पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ५, दे. (२२x११.५, १२४३३). १. पे नाम औपदेशिक पद-नारीपरिहार, पृ. १अ संपूर्ण मु. भद्रसेन, मा.गु., पद्य, आदि कांमनी की बात माने जाकै; अंति भद्रसेन० मुंहडे धूल जी, पद- १. २. पे नाम औपदेशिक पद-नारीपरिहार, पू. १अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only मा.गु., पद्य, आदि: नाक नकेल गलै दीया फंदा; अंति: मार कै मुंज कुं भीख मंगाई, पद-२. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद-नारीपरिहार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. क. गद, मा.गु., पद्य, आदि धानरो करे कुधांन पीसती; अंति: गद कहे०रांड थकी रंडवो भलो, पद- १. Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org ४. पे नाम औपदेशिक पद-नारीपरिहार, पू. १आ, संपूर्ण क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: वीसभुजा दशसीस कुं धारी; अंति जैत कहे० रेख टी नही टाली, पद- १. ५. पे नाम औपदेशिक पद-नारीपरिहार, पु. १ आ. संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि नारी के कारण रावण कुं; अंति: लाव सीरख पधर ऐक आंण, पद- २. जैदे., " १०७६४०. लघुजातक का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) = १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३.५X१०.५, २५४६८-७६). लघुजातक - बालावबोध, उपा. मतिसागर, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. अरिष्टाध्याय ४ अपूर्ण से अध्याय ६ अपूर्ण तक है.) १०७६५१. अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी : सातेसमरण., दे., (२२x१०, ९४२५-२९). अजितशांति स्तव लघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. पद्य, आदि उल्लासिक्कमनक्ख; अति: दुरियमखिलंपि धुणंतह गाथा - १७. " १०७६५२. पार्श्वजिन स्तुति व फलवर्धी पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., । १०x३५). ९. पे नाम पार्श्वजिन स्तुति, पू. १अ संपूर्ण सं., पद्य, आदि: अमरगिरिशिरस्थस्फार, अंतिः सा श्रुतं नः श्रुतांगी, श्लोक-४. २. पे नाम. पार्श्वजिन पद-फलवर्द्धिपुर मंडण, पृ. १आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: भयभंजण श्रीजिनवरपास टालै; अंति: स्वामी केरी हरखसुंदर वाणए, गाथा-५. १०७६६३. (४) एकादशगणधरसंदेहसंदोहभंजक वेदपदानि सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२x१०.५, १८४५५). गाथा - ९. १०७६८७. पद्मावती शतनाम, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२२x१०, ८X३६). " ११ गणधर संदेहभंजक वेदपद, सं., गद्य, आदि: स वै अयमात्मा ज्ञानमय; अंति: अतो मोक्षो वस्तु स्वरूप. ११ गणधर संदेहभंजक वेदपद- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आत्मनास्तित्व पक्षे; अंति: तत्संभवो मोक्षश्च. १०७६६४. (+) उपसर्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२१.५x१०.५, १०x२३). उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पास पास अंति भवे भवे पास जिणचंद, , " " (२४X१०, १५X४७). १. पे नाम प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पृ. १अ संपूर्ण, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि दो नवकारसी छ पोरसी अंति: विगड़ नियमिट्ट, गाथा-२. (२१.५X१०.५, पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, मु. ब्रह्मजिनदास, सं., पद्य, आदि ॐ नमो विश्वनाथाय युगादि; अंति देवी पद्मावती नमः, गाथा - १७. १०७६८८. (+) संबोधसप्ततिका सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. जैदे. (२१.५४१०.५, ३X२५). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन लोकनो घणी एहवा महावीर; अंति : (-). १०७६९६. पच्चक्खाण व आगार संख्या गाथा संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी: पच्चक्खाणं., जैदे.. , " ६७ २. पे नाम पच्चक्खाण, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि उग्गए सूरे नमुक्कारसहिअं अंतिः वत्तियागारेणं बोसिरह. १०७६९७. पार्श्वनाथ स्तवन - समस्या पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३X१०, १३X५१). For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, म. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्व किल चित्रसम; अति: श्रीपार्श्वचितामणिः, लोक-१५. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०७६९८. औपदेशिक लावणी व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६९, वैशाख कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वागेडा, प्रले. श्राव. चंद्रकांत वनेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भवा., दे., (१९.५४१०, १६४३३). १.पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-दःख सुख, मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: वणी वणी के सबे कोई साथी: अंति: ज्ञान केह हरदे मानो मेरी, गाथा-५. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-शीलगुण, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पराणी पांच इंद्री वस कीजी; अंति: जे परमाय जडाव वखानी, गाथा-९. १०७७०३. (#) प्रत्याख्यानसूत्र व आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. प्रेमविजय (गुरु ग. सिहविजय); गुपि. ग. सिहविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १३४४५). १.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १६६०, पौष कृष्ण, ३०, शुक्रवार. ___ संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: सह०२ मह०३ सव्व०४ वोसिरइ. २.पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: आदिनाथ जगन्नाथ विमला; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. १०७७१० (+) गौतमाष्टक व नागपंचकदोषादि श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०, १०४३३). १. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूत वसुभूतपुत्र; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. २. पे. नाम. नागपंचकदोषादि श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तिथवारार्षि लग्नांकाम्ये; अंति: (-). १०७७१७. नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नवतत., जैदे., (२३४११, १२४३१). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) १०७७२२. (+) भक्तामर स्तोत्र, तिजयपहत्त व शांतिकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. ग. चारित्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२४११, १५४३८). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. मानतंगसरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम, तिजयपहुत्त स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्तयासं अट्ठम; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३. पे. नाम. शांतिकर स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मनिसंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: मुणिसुंदर० पयं परमं, गाथा-१३. १०७७२३. (+#) पार्श्वनाथ स्तोत्र, पार्श्वनाथ स्तवन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. १, कल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, १३४३०-३३). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ.१अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकंड, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं तं नमह; अंति: इय नाउं सरह भगवंतम, श्लोक-४. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-समंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: शुभगतामपि वांछितानि, श्लोक-९. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कलीगानीले पडे सराब चोखो; अंति: पछेतावीये हेम थाय सत्यं. For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०७७२४. (+) पंचमी स्तुति, बीजतिथि स्तुति व दयाधर्म माहात्म्य श्लोक, संपूर्ण, वि. १९११, फाल्गुन शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२४११, २५४२९). १.पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. ज्ञानपंचमीपर्व स्तति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसप्रपंचपरमानंद: अंति: सा सिद्धायिका त्राकिया. श्लोक-४. २. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: इम लब्धबीजै० मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. दयाधर्म माहात्म्य श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दया जसु खरी वेलडी; अंति: दया तणै परमाण, गाथा-१. १०७७२५. (#) महावीरजिनशासन ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक-१आ पर कुछ हिसाब-किताब लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (४१.५४२१, ७०४४४). महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्ष, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्य एक लक्ष; अंति: (-). १०७७२८. (+) शल्यछत्रीशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:सलनोसंमद., संशोधित., दे., (२३.५४११, १७४४०). शल्यछत्रीशी सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरीय; अंति: सांहमो देखो रे, गाथा-३७. १०७७२९ (#) तुरुकी सुकनावली, संपूर्ण, वि. १८०५, कार्तिक कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. खोखरा, प्रले. मु. मनोज्ञ सौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुक०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १७४३५). रमल शुकनावली, पुहि., गद्य, आदि: अरे यार बहुत दिन का चिंता; अंति: नही तो तेरी फते होइगी. १०७७५२ (#) मौनएकादशीपर्व गणणुं व पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४११, १६४३९). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व गणj, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: श्री नमि सर्वज्ञाय नमः; अंति: श्री अरनाथाय नमः, (वि. विशेषण नामयुक्त गुरु की प्रशस्त्यादि दी है.) २.पे. नाम. पाशाकेवली, प. १आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: यत्सत्यं त्रिलोकेषु; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११ तक है.) १०७७५७. अंगस्फुरण विचार व लग्ननिर्णय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १५४२३-२६). १. पे. नाम. अंगस्फुरण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: माथो फुरके तो राज्य लाभ; अंति: डावो फ़के तो भलो. २. पे. नाम. लग्ननिर्णय, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: चरे लग्ने समायाता पुमान; अंति: मीने चिंता चला चल. १०७७७७. (+) शकुनावली, संपूर्ण, वि. १९०८, आषाढ़ शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. अहीपुर, प्रले. मु. कस्तुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शकुनाव., शुकना०., संशोधित., दे., (२२.५४११, १६x४२). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: उत्तम छइ सही सत्यमेव. १०७७८० (+) गुरु स्तूप प्रतिष्ठा विधि, दिग्पाल विसर्जन मंत्र व धर्म पुण्य भेद बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:चरणन्यासप्रतिष्ठाविधि., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२२४११, १३४३९). १. पे. नाम. गुरु स्तूप प्रतिष्ठा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुप्रतिमा प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ननु गुरूणां स्तूपस्य; अंति: शीलव्रतं च पालयति. २. पे. नाम. दिग्पाल विसर्जन मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९३९, वैशाख शुक्ल, २, बुधवार, ले.स्थल. जयनगर, प्रले. मु. पद्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७० 3 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु. सं., पग, आदिः ॐ हिं इंद्राय सायुधाय; अंतिः गच्छ गच्छ स्वाहा. ३. पे. नाम धर्म पुण्य भेद बोल, पू. २अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: केतलाक जीव धर्म पुण्यनें; अंति: पूण्यनो भेद छे ते जाणवा. १०७७८३. (+१) भारती स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२२x१०, १०x२६). www.kobatirth.org सरस्वतीदेवी स्तोत्र मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि ॐ नमस्त्रिदशवंदित अंतिः मधुरोज्ज्वलागिरः, श्लोक- ९. , १०७७९०. (+) अष्टोत्तरीमहादशा श्लोक सह बालावबोध व भुक्तभोग्य करणविधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे. (२२.५४१०.५, १८४३६-४२). " १. पे. नाम. अष्टोत्तरीमहादशा श्लोक सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. जन्मपत्री पद्धति - हिस्सा अष्टोत्तरीमहादशा श्लोक, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: स्फुटतरो हिमगुः कलिकात्मक; अंतिः वह्नित्रितयेकुदखा २१, श्लोक-३. जन्मपत्री पद्धति-हिस्सा अष्टोत्तरीमहादशा श्लोक का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इष्टजन्मकालनौ स्पष्टचंद्र; अंति: पाडीजै शेषं भोग्यदशा. "" २. पे. नाम. अष्टोत्तरीमहादशाभुक्तभोग्य करणविधि, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि आयुषो अष्टादशे भागे लब्धं; अंतिः शत्रुमित्र० जोयने मांडीजै, (वि. अंत में योगिनीदशा दी गई है.) १०७७९२. माजीरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२०X१४, १७१४). " औपदेशिक सज्झाय-वृद्धा, मु. विनयचंद्र ऋषि, रा., पद्य, आदि: आतो नाम धरावे माजी अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १० तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७७९६. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. नेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २१.५X११, १४X३०). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य वि. ९वी आदि कलमरालविहगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, , श्लोक-१३. १०७८०१ नेमिजिन फाग, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ये. (२३.५x११, १८४३९). नेमिजिन फाग, मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: भोगी रे मन भावतां रे आयो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२९ तक लिखा है.) १०७८४२. आदिजिन स्तवन, भरतबाहुबलि सज्झाय व रखनेमराजिमती गीत, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४) = १, कुल पे. ३, दे., (२३x११.५, १८X३०). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. चोथमल, पुहिं., पद्य, आदि (-); अति: चौथमल० ऐसे ऋषभ कन्हैया, गाथा-४, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे नाम भरतवाहुबलि सज्झाय, पू. ५अ, संपूर्ण मु. चौथमलजी, मा.गु., पद्य, वि. १९६६, आदि: हो मुझ बंधव प्यारा कुरणा; अंति: चौथमल० वर्ते लीलविलास हो, गाथा-८. जैवे. (१५.५x११.५, १२x२० ). १. पे नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, ३. पे. नाम. रथनेमराजिमती गीत, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती गीत, रा., पद्य, आदि: कहती है राजुलनार ह्मांरी; अंति: पिऊं से पहली गई निरवानी, गाथा-४. १०७८६३. (#) महावीरजिन व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, मा.गु., पद्य, आदि बालपणे डाबो पाय; अंति: मेलै मुक्ति साथ, गाथा-४. २. पे नाम आदिजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषेंद्राय युगादि अंति कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०७८७१ (+) देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२०.५४११.५, ११४१७). देववंदन विधि-प्रतिष्ठादि विधान अंतर्गत, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही० प्रगट; अंति: देवता सुप्रतिष्ठमिदं. १०७८८५ (+) सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. हंडी:सरस्वतीदेवी स्तोत्र., संशोधित., दे., (२२४११, ११४३२). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: वाग्वादिनी नमस्तुभ्यं; अंति: निर्मलबुद्धिमंदिरैः, श्लोक-७, (वि. अंत में विधि सहित सरस्वती मंत्र दिया गया है.) १०७८९०. चोविसतीर्थंकर गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (१७.५४१०.५, १५-२०४३१-३५). स्तवनचौवीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: (अपठनीय); अंति: जिनहर्ष० होवत प्रभु बरदाई, स्तवन-२४. १०७८९१. नवकार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३४११, १६४१७). नमस्कारमहामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरिहंतदेवा; अंति: मंत्रजी को ध्यान करो, गाथा-१४. १०७८९९ पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२२.५४११, १४४३०). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ऊँ नमो भगवति; अंति: रम्या लील विलास नित्यं. १०७९०८. (+) पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. वा. बुधविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:स्तोत्र., संशोधित., जैदे., (२०.५४११.५, ११४३०). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसरि, सं., पद्य, आदि: महानंदलक्ष्मीघना; अंति: श्रीहंसरत्नायितं, श्लोक-११. १०७९१८. तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०३, भाद्रपद शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. हर्षविजयगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११.५, १२४२९). २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुजै रिषभ समोसर्या; अंति: समयसुंदर कहे एम की, गाथा-१८. १०७९३१ पल्ली विचार व अंगस्फुरण विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११.५,१५४३६). १. पे. नाम. पल्ली विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पल्लीपतन विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मस्तक उपर पडे तो छत्र भंग; अंति: शुभ कुंभे हानि मीने शुभ. २. पे. नाम. अंगस्फुरण विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: मस्तक फुरके तो राज्य मान; अंति: (-), (पू.वि. 'कान स्फुरण फल अपूर्ण तक है.) १०७९३३. (+) सुभाषित श्लोक संग्रह, महावीरजिन पद व सुमतिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. ज्ञानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४११, १३४२४). १. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: किमर्थं बुर्वराकार; अंति: न मोक्षेस्ति वांछा यदि, श्लोक-५. २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नहि रे कोइ जिनजी सो मीता; अंति: हरखचंद० सोहि परम पुनीता, गाथा-४. ३. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजी जो तुम तारक; अंति: हरखचंद गहै की नीवइये, गाथा-४. १०७९३८. नलदमयंती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:नालादोवदी साझा०., दे., (२३४११, १४४३५). नलदमयंती सज्झाय, आ. हीरानंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आजोध्यानगरि रो राजियो; अंति: हिरानदसुर०पुरषसु मिलतो है, गाथा-२०. १०७९७२ (+) अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, स्तवन व औषधादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४११, १८४३७-४३). For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतिने चरणे; अंति: वाचक देव सुसीस, गाथा-७. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु, पद्य, आदि जिणंदा तारी वाणीइ अंति: भाखरे इम कवि कंत रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. हींगलु पचावणविधि आदि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औषधवैद्यक संग्रह, पु,ि प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि अकलकरोटा २ अफीणटा १ अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., हींगलु पचावण विधि तक लिखा है.) १०७९८१. सरस्वती स्तोत्रं प्रभात स्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. हुंडी: सरथती जीरो छंद, जैदे. (२४४११, " १२X३५). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कमलरालविहंगम चाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, लोक-१३. १०७९८४ (४) शनैश्चर छंद, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे.. (२३X११.५, १४X३४). शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि अहि नर असुर सुरपति, अति (-) (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) १०७९९७. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २३११.५, १४४१८-३७). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ शरीर वेदन छै दोस; अंति: होम जाप सर्व विध करणी, (वि. पाशाकेवली के साथ में यंत्र भी दिये हैं.) १०८०२६. (४) महावीरजिन निसाणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२.५x११.५, ३८x२५-३०). महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाता सरसती सेवक, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक -२० तक लिखा है.) १०८०२८. वीवापनतीसूत्र शतक ९ - जीववलीयाकर्मवलीया, संपूर्ण वि. १९६२ आषाढ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. आणंदपुर, प्रले. मु. जडावचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : भगवती सूत्र., दे., (२४.५X११, १७X३८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०८०४१. आध्यात्मिक व अविनाशी लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, दे. (२०.५X१०.५, १०X३७). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक लावणी पद, श्राव. जयरामदास, पुहिं., पद्य, आदि: कर कर भजन सजन साहेब से; अंति: भजन में आसक अजराजर्ला हैं, गाथा- ६. २. पे. नाम अविनाशी लावणी पद. पू. १२.१आ, संपूर्ण, १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि मागडधाम् धी धंसगरंग, अंतिः पास की० आवती बजे तोगडधं, पद- १. २. पे. नाम नेमराजिमती पद. पू. १अ संपूर्ण. " श्राव. जयरामदास, पुहिं., पद्य, आदि: चमक चमक चीम वीजली चमकै; अंति: दीन० सब डर की फांसी तोडी, गाथा-७. १०८०४२. पार्श्वजिन छंद व नेमजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२०X१०.५, १०x२२). For Private and Personal Use Only नेमिजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: घरे आवो तो पुछं एक; अंति: रूपचंद सुखसातडी, गाथा-३. ३. पे. नाम. कमला मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह उ., पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदिः ॐनमो कमलो कमलवंश ऊपनो; अंति: फलो मंत्र इश्वरोवाचाः, ४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि मोल चडी मारा नाथनी; अंति रूपचंद धाइ सुखसाली रे, गाथा- ३. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०८०४३. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि वेणीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४११, १०x२५)सिद्धचक्र स्तवन, मु. कुशलसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि बीर जिणेसर वाणी इम अति: तस सीस जंपइ सुख थाय, " गाथा - १२. १०८०५१. सरस्वती स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्रले. मु. दीपचंद (गुरु मु, भुवनलाभ); गुपि. मु. भुवनलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि. १७५४ में लिखे गए ग्रंथ की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., जैदे., (२४X११, ८-१२x२८-३२). सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अति: निःशेषजाड्यापहा श्लोक १२. १०८०५२. प्रहेलिका संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६६, आषाढ़ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. सिरोहीनगर, प्रले. पं. सरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२२.५X१०.५, १३३० ). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: धुर काति फागुण विचै; अंति: नीक खुदा केरे सो होय, दोहा - २४. १०८०५८. (+) शकुनावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. दे. (२३.५x११, १५x२२-३३). पाशाकेवली भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अति बंधाई कल्याणवृद्धि हुवै. १०८०६८. नेमराजिमती व गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (१८.५x११, २०x२३). १. पे नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी नेमकुमार. मा.गु., पद्य, आदि: वाला समुद्रविजय सुत लाडला; अंति: हुवा नेमकुमर का, गाथा- १४. २. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाच, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जंबूद्वीप सारासीरजी भरत; अंति: अतका मुजजी ज्यां जगत, गाथा-१६. १०८०७१. लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५x११.५, १३x४५). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांतिशांतिनिशांत अंति जैन जयति शासनम्, श्लोक १९. १०८०७२ (+) पार्श्वजिन स्तव व जिनकुशलसूरि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित दे. (२३४११.५, ३४४४८-५२ ). 1 " १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तव-मंत्र गर्भित सह अवचूरि, पृ. १अ २अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी पार्श्वजिन. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा., सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: जसु सासणदेवि वएसकया; अंतिः ह्रीं नमस्सं कुणंती, गाथा-३७. पार्श्वजिन स्तव स्तंभन मंत्रगर्भित स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदि: जं संघवणं विहिय तस्स, अंतिः तवं होउ जगि सुक्खयं. २. पे. नाम जिनकुशलसूरि स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीमज्जिनाधीश अंति: गणैः संसेव्यमानः सदा श्लोक-२२. १०८०७३. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. प्रीतिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२३४१२, ११-१४X३०). ऋषिमंडल स्तोत्र वृहद् आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आद्येताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं अति लभते पदमुत्तमम्, श्लोक - ६३, ग्रं. १५०. १०८०७९. चतुःशरणपइन्नं, संपूर्ण, वि. १९७३, भाद्रपद शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. देवसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, (२३.५x१२, ११x२६-३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई अतिः कारणं निद्दुयसुहाणं, " गाथा- ६३. १०८०८० वृद्धशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ४, प्र. वि. हुंडी सांतवडी, दे. (२३.५X१२, १०x२४). बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., पग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंति जैनं जयतु शासनम् १०८०९७ (७) वर्षराजा निर्धारण विधि, वर्षराजा फल व ध्रुवांक यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक- १*८ = १. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५X११.५, ५X१०). १. पे नाम वर्षराजा निर्धारण विधि, पू. १अ संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि उजैणीना ध्रुवंका दिशा; अंति: ग्रह आवै तेहनी दशा जाणवी, For Private and Personal Use Only ७३ 会い Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. वर्षराजा फल, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: आइच्चे आरोगं लोआणं हवेसि; अंति: छायो वासासु नह वैदैसौ, गाथा-९. ३. पे. नाम. विविध ग्रामनगरादि ध्रुवांक यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., यं., आदिः (-); अंति: (-). १०८१०७. आत्मनिंदाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:आत्मनिंदाष्टक., दे., (२१४११.५, १०४२९-३३). आत्मनिंदाष्टक, आ. जिनप्रभसूरि *, सं., पद्य, आदि: श्रुत्वा श्रद्धाय; अंति: कार्यं हहा कर्मभिः, श्लोक-१०. १०८१३२. (+) बीजो मंगल, संपूर्ण, वि. १८५७, कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. श्रीचंद (गुरु मु. लिखमाचंद); गुपि.मु. लिखमाचंद; पठ. सा. दयाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१२४११.५, १८४२०). सिद्धमंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमा गुण आदर एहनी; अंति: जेमल जो चाहो जय जयकारजी, गाथा-१६. १०८१४८. सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५४११.५, १०४३०). सरस्वतीदेवी छंद, म. दयानंद, मा.ग., पद्य, आदि: मा भगवती विद्यानी; अंति: हं जाउं तोरी बलिहारी, गाथा-९. १०८१५२. (#) उवसग्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, ५४१०). __उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-१३. १०८१५८. (+#) जिनकुशलसूरि व सरस्वतीदेवी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११.५, १०४२६-३२). १.पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. २०वी, आषाढ़ शुक्ल, २, ले.स्थल. उदेमिंदर, प्रले. मु. सूरजमल, __प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:दादाजीरो छंद. मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीमज्जिनाधीश; अंति: गणैः संसेव्यमानः सदा, श्लोक-२२. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ सं., पद्य, आदि: राजती श्रीमतीदेवता भारती; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) १०८१६४. उवसग्गहर स्तोत्र व श्रावक के चौद नियम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१२.५४११, १०४२२). १.पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. २. पे. नाम. श्रावक के चौद नियम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ नियम नाम-श्रावक, मा.गु., गद्य, आदि: १सचित्त २ दव्व ३ विगई; अंति: न्हाण १३ भत्तेसु १४. १०८१६५. श्रावक के चौद नियम व शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१५.५४११.५, ७४२०). १.पे. नाम. श्रावक के चौद नियम, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ नियम नाम-श्रावक, मा.गु., गद्य, आदि: (१)दिन प्रति सवारि संभारेवा, (२)१ सचित्त २ दव्व ३ विगई; अंति: (१)न्हाण १३ भत्तेसु १४, (२)सरीरार्थे घर कांमै जयणा, (वि. विवरण सहित.) २.पे. नाम, शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-उदयापुरमंडन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहज सुरंगा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) १०८१६७. अंबिकादेवी छंद, दोहा संग्रह व साधारणजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१२, ९४२७). १. पे. नाम. मधुमालतिना दहा, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: नहि चंपा नहि केतकी नहि; अंति: कारणे भसम लगावत अंग, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २.पे. नाम. अंबाइ छंद-कलशगाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १८६८, ले.स्थल. आणंदपुरनगर, पठ. पं. मानसुंदर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. अंबिकादेवी छंद, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: जितचंद० सुख आपो परमेसरी, प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. __जिनस्तुति प्रार्थना, सं., पद्य, आदि: प्रशमरसनिमग्नं दृष्ट; अंति: जगति देवो वितरागस्त्वमेव, श्लोक-१. १०८१८८. पापपरिवार, औपदेशिक सज्झाय व औपदेशिक पदादि सग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(२,४)=४, कुल पे. ७, प्रले. मु. वछराज, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:स्तवन, वरमसी, वा रामसी. प्रतिलेखक द्वारा योग्य क्रम में न लिखे जाने के कारण पेटांक के पत्रांक सुविधानुसार दर्शाए गए हैं. पत्रांक-१आ पर २२ तारीख का उल्लेख किया गया हो ऐसा लगता है., दे.. (२१.५४११.५, ११४२६). १.पे. नाम. ८ बोल-पापपरिवार विषयक, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि.,रा., गद्य, आदि: पाप को बाप लोभ पाप की मात; अंति: रीस पाप को गीर्दपतो. २. पे. नाम. ८ बोल-धर्मपरिवार, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: धरम को बाप ज्ञान धर्म री; अंति: धर्म की आस्त्र क्षीमा. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कलियुग, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. हिं., पद्य, आदि: जमाना आ गया खोटा वदी काम; अंति: करते है सो भारते है. ४. पे. नाम. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. यह पेटांक प्रतिलेखक द्वारा उल्लिखित पत्रांक-३अ पर है. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: हाथ जोडी उभा रहीने वार ५, (पू.वि. मंत्र-३ की विधि अपूर्ण से है.) ५. पे. नाम. राम चौपाई, पृ. ३अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पे.वि. यह पेटांक अधिकतर पत्रों में दूसरी तरफ क्रमशः है. पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: नर तु जी नही तरसे अनधन को, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-घडी, पृ. ५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कुंजी ले दे घडी के चालने; अंति: गफलत से तुझ को जगाने को. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कनई कसे दे घरा जी पातु तो; अंति: मान लिया केसे लाल और कला. १०८१९४. भयहरस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७२, माघ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२१x१०, १२४२५). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. १०८१९५. शनिश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४९.५, १४४५०). शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: तुं प्रसन्न सनीसर, गाथा-१८. १०८१९७. (#) सामायिकदोषपरिहारोपदेश स्वाध्याय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४९.५, १७X४३-४९). १. पे. नाम. सामायिकदोषपरिहारोपदेश स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, म. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिय श्रीगौतम; अंति: श्रीकमलविजय गुरु शीष, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि जीवडा रे; अंति: मानव भव तणा फल लीजइ, गाथा-४. १०८२०१ (#) राज बत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११, १९४४०). चेतनबत्रीसी, मु. राज, मा.गु., पद्य, वि. १७३९, आदि: चेतन चेत रे अवसर मत; अंति: बोलै राजबत्तीसी, गाथा-३२. १०८२०५. कल्पसूत्र-जिनेश्वर गर्भकाल व महावीरजिन जन्मवांचन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०, १२४४३-४६). For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-जिनेश्वर गर्भकाल व महावीरजिन जन्मवांचन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)यदि सत्यमिदं यक्षे, (२)जेह कारण भणी अभागीया; अंति: जिं पछी लीजिंसिइं. १०८२०६. (#) ८ कर्म १४८ प्रकृति व ८ प्रकृति की स्थिति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०, १२४३६-४०). १.पे. नाम. ८ कर्म १४८ प्रकृति, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीना भेद ५; अंति: ९२ कार्मणसंघात २० को० ९३. २. पे. नाम. ८ कर्म स्थिति, पृ. २आ, संपूर्ण. ८ कर्मस्थिति विचार, मा.ग., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीनी स्थिति; अंति: ३० कोडाकोडि सागरोपम ८. १०८२१० (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१०, १३४४२-४५). प्रास्ताविक श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: परत्रिय से मन की कहै सो; अंति: विना धर्मं नरः शस्यते, श्लोक-१४. १०८२१४. (+) चौवीस तीर्थंकर माता पिता नाम व शीघ्रबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., ., (२४.५४१०.५, १८४३४). १. पे. नाम. २४ जिन नाम वर्ण लंछन माता-पितादि, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नाभिश्च १ जितशत्र २; अंति: क्रमतः पितरो मातरोहतां. २. पे. नाम. शीघ्रबोध, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. काशीनाथ भट्ट, सं., पद्य, आदि: भासयंतं जगद्भासा०; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२६ तक है.) १०८२१५. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१०.५, ६४३२). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. १०८२२९. ज्ञानप्रदीप, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१०, १३४४७). ज्ञानप्रदीप, सं., पद्य, आदि: पढमो बारसमत्तो बीओ; अंति: विद्यालाभं धनागमम्, श्लोक-२७, (संपूर्ण, वि. अंत में आगामीवर्षराजा विचार लिखा है.) १०८२३८. पत्रपद्धति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. पं. जसवंतसागर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०, ३८x२९). पत्रपद्धति-संस्कृत पत्राचार पत्र संग्रह, सं., प+ग., आदि: स्वस्तिश्रीश्रीश्रीमत्सर; अंति: आशीर्वादपर्वकं लिखंति. पत्र-७. १०८२३९ प्रास्ताविक सपखरो गीत, औपदेशिक पद व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१०.५, ११-१५४३५). १.पे. नाम. प्रास्ताविक सपखरो गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. चतुरा भोजक, प्र.ले.प. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: दाता झाली यासै यसौ नेकी; अंति: देख हवा दीदै वैतणा हाथ, गाथा-५. २.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त, मु. नंद, पुहिं., पद्य, आदि: को सरनौ जग मै किसकौ वस; अंति: नंद कहै० रे झठौ गुसाई, गाथा-४. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथानुक्रम पूर्व से जारी है. पुहिं.,मा.ग., पद्य, आदि: हेरन नाद सवाद भर्यो नस; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) १०८२४२. नेमराजिमति व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१०, १२४३६). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमति स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सांवलिया घर आवके राजुल; अंति: जे निसदिस कै सीवपद काजनी, गाथा-७. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे वासुपूज्य; अंति: उत्तमविजय० में वारे, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ७७ १०८२४५. (#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय व अवंतीकुमार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४९.५, ११४४१). १. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न किजीये; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-७. २. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल रास, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) १०८२४६. बीस बोल असमाधि व इक्कीस बोल सबल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०, १६४३२). १. पे. नाम. २० बोल असमाधि, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: उतावलो उतावलोचाले; अंति: आहारनी गवैखना करे तो २०, कडी-२०. २. पे. नाम. २१ बोल-सबल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २१ बोल-सबल दोष, मा.गु., गद्य, आदि: हस्तकर्म करै तो सबल दोष; अंति: वैरागिया मुगत पहेता रे. १०८२४७. जांजरियामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:जांजरी., दे., (२४४१०, १७X४६). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: सांभल लोजो सुरनर विडदा रे, ढाल-४, गाथा-४३. १०८२४८. ऋषभदेव अष्टक व प्रमाद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४९.५, १५४५३). १. पे. नाम, ऋषभदेव अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन छंद-धलेवामंडन, आ. गणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोदरंगकारणी कला; अंति: षडदेस आदिदेव ध्याइए. गाथा-८. २.पे. नाम, प्रमाद सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-प्रमाद, आ. अजितदेवसरि, मा.गु., पद्य, आदि: दस दृष्टांते दोहिलो; अंति: अजितदेवसरि०पडै रे संसार, गाथा-१३. १०८२४९. गजसुखमाल व मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५४१०, १४४२६). १. पे. नाम. गजसुखमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: हर्ष करी गाई, गाथा-२३. २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १९३६, आदि: त्यागी बरागी मेहा जीन; अंति: देवसुर्त०इम गुण गाया हो, गाथा-१४. १०८२५१ (+) अध्यात्म पद व कपटी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल, रूपनगर, प्रले. श्राव. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शझा, संशोधित., दे., (२५.५४९.५,१६x४२). १.पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. कुशल, पुहि., पद्य, आदि: चितानंद मन कहारे; अंति: चेतना निजगुण सूधहेरा, गाथा-१०. २.पे. नाम. कपटी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कपटोपरि, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: कपटी माणसरो विश्वास; अंति: दया नइ आई जी, गाथा-१९. १०८२५२. ५६३ जीव ल थोकडा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१०,५४१०). ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंदीये काए; अंति: (-), (पू.वि. पर्याप्ता द्वार तक है.) १०८२५३. पार्श्वजिन स्तवन, सुमतिजिन स्तवन व शत्रुजयतीर्थ पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४३५). For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ.१अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आज सुदिन भाइ मे जिन; अंति: अजर अमरपद देज्यो, गाथा-९. २. पे. नाम. समतिजिन स्तवन, प. १अ-१आ, संपूर्ण. वा. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति जिणेसर साहेबारे; अंति: भोजसागर०तुम्ह दीठा आणंदजी, गाथा-८. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: क्युं न भऐ हम मोर; अंति: धरमसीह करत अरज करजोड, गाथा-३. ४. पे. नाम. ५ परमेष्टि आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: इणविध मंगल आरती कीजै; अंति: भणत गुणत सीवसु दिनो, गाथा-८. १०८२५४. (#) पार्श्वनाथ स्तवन व वैराग्य गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४९.५, ११४३२). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, म. विमलचारित्र, मा.गु., पद्य, आदि: दीठा पास जिणेसर आज; अंति: विमलचरित्र हरखै तम नाम, गाथा-४. २. पे. नाम, वैराग्य गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय-आत्महित, म. राजसमद्र, मा.ग., पद्य, आदि: सण वहिनि पीउडो परदेशि आज; अंति: राज० नारि विण सोभागी रे, गाथा-७. १०८२५५ (#) अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०, ११४२९). अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतिने चरणे; अंति: वाचक देव सुसीस, गाथा-७. १०८२५६. पर्युषणपर्व माहात्म्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४९.५, ११४३६). पर्युषणपर्व माहात्म्य, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वसाधु मांहि श्री केवली; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ "११ अंग १२ उपांग" पाठ तक लिखा है.) १०८२५७. दानशीलतपभावना गीत व दीपालिका स्तति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०,११४३६). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. __मा.ग., पद्य, आदि: दानशीयलतपभावना च्यारे; अंति: विस्तरइ जउं पामइ भवपार रे, गाथा-५. २. पे. नाम. दीपालिका स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: सुर असुर कोडि हाथ जोडी; अंति: देवि भक्त सेविक पालती, गाथा-४, (वि. अंत में नवकारमंत्र लिखा है.) १०८२५९. (+) ढंढणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४९.५, १०x२९). ढंढणऋषि सज्झाय, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कह जिनहरख सुजाण रे, गाथा-९. १०८२६१. (+#) महावीरजिन स्तुति, नेमिनाथजी की थई व मिठाई की थई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४९.५, १०x४५). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जिनानामनाम स्फुरद्गामगाम; अंति: तिर्भयं स्वर्णकांति, श्लोक-४. २.पे. नाम, नेमिनाथजी की थई, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे डाबो पाय; अंति: मेलइ मुगति साथ, गाथा-४. ३. पे. नाम. मिठाई की थुई, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: तुंसे देवी अंबाई, गाथा-४. १०८२६४. (+) सर्वज्ञविज्ञप्तिका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४९.५, १०४३६). रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०८२६५ (+) शारदादेवी छंद व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४९.५, १४४५०). १. पे. नाम. शारदादेवी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. विजयसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: सोही पुजो सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४. २.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोकादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जम्मो कुलिंग देशै आगमणं; अंति: काकुस्य पृथ्वी वेदना, श्लोक-२. १०८२६८. (+) सुलसाश्राविका सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४९.५, १२४३२). सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन सुलसा साची; अंति: विमल गुण गाय रे, गाथा-१०. १०८२७२. पोसानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. गंगादास आत्माराम साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१८.५४९.५, ९४२२). मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सगरूवएसेणं, गाथा-५. १०८२७३. आदिनाथ के पुत्र पुत्री नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:आदिनाथ पुत्र सं., दे., (२०.५४९.५, १४४४९). आदिजिन १०२ पुत्र-पुत्री नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथनइ बिस्त्री; अंति: ब्राह्मी १ सुंदरी २. १०८२७४. अध्यात्मरंगरंगित श्रीऋषभदेवादि २४ जिन स्तोत्र व चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८७, वैशाख शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२१४१०, १४४३०). १. पे. नाम. अध्यात्मरंगरंगित श्रीऋषभदेवादि २४ जिन स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. २.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधबीजं ददाती, श्लोक-११. १०८२७५. औपदेशिक सज्झाय-व्यसनमुक्ति, संपूर्ण, वि. १९६४, वैशाख कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (१५.५४१०, ९x१७). औपदेशिक सज्झाय-व्यसनवर्जनविषये, म. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी मन धरी; अंति: कहे ___ माणिक मनोहार, गाथा-२३. १०८२७६. महावीरजिन समसंस्कृतमय स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२१.५४१०, ९४२२-२८). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: विशदां दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. १०८२७७. अभव्यकलक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२.५४१०, ९४३२). संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: जह अभविय जीवेटिं; अंति: तेसिं न संपत्ता, गाथा-९. १०८२८७. महावीरजीरी सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. चनणा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४९.५, ६४२४). महावीरजिन स्तवन-जन्ममहोत्सव, मा.गु., पद्य, आदि: सपना तीसलादेजी थेहंव लहया; अंति: जीमक माहावीरजी पदार्याजी, गाथा-६. १०८२८८. आध्यात्मिक पदद्वय, औपदेशिक पद व रथनेमिराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. भदवाड, प्रले. मु. जीवनदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४९.५, १५४५१). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. AN८). For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कबीरदास संत, पहिं., पद्य, आदि: काम क्रोध दिल लोभ निवारो; अंति: कहत कबीर जीवतराम रहे हवो, गाथा-५. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ब्रजमल दास, मा.गु., पद्य, आदि: समरण को लिखीयो हर आगै इस; अंति: ब्रजमलव्हरख गुण गायो रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. त्रिलोचन, पुहिं., पद्य, आदि: रे मन पंछीया म पडिस; अंति: त्रिलोचन रामसु चितलाय रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: देखी मन देवर का; अंति: रिदा रुद्धहरख कहै एम, गाथा-१९. १०८२८९ (+) शांतिजिन व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४९, १२४४२). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. कीर्तिसूरि, पुहिं., पद्य, वि. १७२३, आदि: सकल मुरत श्रीशांतिजिणंदा; अंति: कीर्तिसूरि उच्छाहै, गाथा-११. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कनककीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिनराय मन; अंति: सुणतां सुख लहोजी, गाथा-१८. १०८२९० (#) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८१२, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१३४९, १२४२४). ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: विदधाति सुवस्त्र पूजा, श्लोक-१०. १०८२९१ पार्श्वजिन स्तोत्र व शब्दरूपावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४९, ८४५२). १. पे. नाम. शब्द रूपावली, पृ. १अ, संपूर्ण.. शब्दसंचय, सं., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सखि शब्द से ईकारांत श्री शब्द तक लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. १०८२९२ (-#) नेमनाथराजिमती बारेमासीयो, रावणमंदोदरी पद व ज्योतिष संग्रहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४९.५, ९-१३४४५). १. पे. नाम. नेमनाथराजिमती बारेमासीयो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि; अंति: पाले अविहड प्रीत रे, गाथा-१३, (वि. कृति के प्रारंभ में किसी अज्ञात कृति का पाठ लिखकर अपूर्ण छोड दिया है.) २. पे. नाम. रावण-मंदोदरी पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. रावण मंदोदरी पद, मु. कवि, पुहि., पद्य, आदि: तुझ रसोइ रवि तपै अगनि आई; अंति: एम सोची करै कवि रावण कीयो, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. ज्योतिष*, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: आदित्यवारे संग्रत घोडा; अंति: (-). ४. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तार करतार संसार सागर; अंति: ते तरै जे रहै पासे, गाथा-४. १०८२९५ (#) पार्श्वनाथ स्तवन व नेमिनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१७.५४९.५, १३४३१). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: नमो देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणि पार्श्वनाथ, श्लोक-७. २. पे. नाम. नेमिनाथ स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हरिहर विश्वनाथो वंदितो; अंति: मम हरित सपापं नेमिनाथो, श्लोक-४. १०८२९६. चेलणा सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:चेलणासीज्झा, दे., (१९.५४९, ११४२५). For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: समयसुंदर० भवतणो पार, गाथा-७. १०८३०० (+) लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१६.५४९, ९४२६). शांतिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ विश्वातस्यायमयमौज्वलतेज; अंति: शांतिनाथसेवाकरे मयि, श्लोक-५. १०८३०१ (+) दानाधिकार व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१६४८, १७४२६). १. पे. नाम. दानाधिकार, पृ. १अ, संपूर्ण. दानाधिकार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अभयं१ सुपत्तदानं२; अंति: दुखं बालयबालोसि किं भणिमो, श्लोक-१५, (वि. गाथा क्रमांक अलग अलग दिया है.) २.पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पियवयणं१ गुरुतयणं २; अंति: देवाणविवल्लहो होई, (वि. अंत में एक गूढार्थगर्भित सुभाषित श्लोक है.) १०८३०४.(-) सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१९.५४९, १०४२७). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणि; अंति: शांतिकुशल० आस फले ताहरी, गाथा-३५. १०८३०५. १४ गुणस्थानके मार्गणादियंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक-१४८१ पत्रांक गिनकर लिखा गया है., दे., (२२.५४९, १५४१५). १. पे. नाम, १४ गुणस्थानक मार्गणा द्वार, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानके ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. १४ गणस्थानक बंधउदय यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०८३०६. औपदेशिक व आध्यात्मिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१०४९.५, १८x२३). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु बिन पालक कोइ नहीं; अंति: भुधर० मरना निपट निदान, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: बीते काल अनंत अरे वेवरा; अंति: एही बनारसी सार, गाथा-५. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक होली पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहि., पद्य, आदि: होरी खेलीये चितानंद; अंति: डारो पावो सिवपुर बास हो, गाथा-४. १०८३०७. भमरगीता व मेहगीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. विजावानगर, प्रले. सुखजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४९, १५४४०-४३). १.पे. नाम. भमरगीता, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: समुद्रविजयनृप कुलतिल; अंति: प्रभु थुण्या सानुकूल, गाथा-२७. २. पे. नाम. मेह गीत, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मेह इंद्रराजा गीत, रा., पद्य, आदि: मेहकरि मेहकरि मेहमोटा; अंति: बुझ बे वरस धरा लाडा, गाथा-५. १०८३०९. भूतबलि मंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. लहूजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ११४२८). भूतबलि मंत्र, प्रा., गद्य, आदि: ॐनमोअरिहंताणं ॐनमो; अंति: पछी गछंतु गछंतु स्वाहा. १०८३१० (#) चोवीस मांडला, विधिपक्षगच्छ प्रतिक्रमण व मुहपत्तीना ५०बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १२४४०). १.पे. नाम. २४ मांडला, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ स्थंडिल, प्रा., गद्य, आदि: आगाढे आसन्ने उच्चारे; अंति: दरे पासवणे अहियासे. For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे नाम प्रतिक्रमण सामाचारी - विधिपक्षगच्छीय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आवश्यक सूत्र- प्रतिक्रमण सामाचारी विधिपक्षगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., गद्य, आदि तत्रादावनगारस्य देवस; अंति (-), (पू.वि. साधु अतिचार गाथा ३ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे नाम. मुहपत्तीना ५०बोल, पू. १आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: विराधना परिहरु. १०८३११ (+#) मनुष्यतिर्यंचादि जीवोत्पति विचार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४१०.५, २५x७०). " समूर्च्छिमजीवोत्पत्ति विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि सुक्क पिउणो माऊए सोणियं अति: (-). (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण तक है.) समूर्च्छिमजीवोत्पत्ति विचार गाथा - बालावबोध, रा., गद्य, आदि: जिवारी पुरुषस्त्रीनुं; अंति: (-). १०८३१२. विविध विचार गाथा संग्रह, जैनधर्मप्रभावक श्लोक व पंचजिन पूर्वभवनमस्कार स्तवन अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., ( २५X१०.५, १५x५७). १. पे नाम. विविध विचार गाथा संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण विचारगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि तिन्नेवय कोडिसया इवासीय, अंति: वयणाओ हिंसा जीवाण इय पढमा गाथा-१२, (वि. विविध ग्रंथों से उद्धत जीवादि विषयक गाथाओं का संग्रह है.) २. पे. नाम जैनधर्मप्रभावक श्लोक संग्रह, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. प्रा. सं., पद्य, आदि जिनो देवः कृपाधर्मो गुरुव; अति: कंदान् कुर्यादिति मनोरथा, श्लोक ८. "" ३. पे नाम. पंचजिन पूर्वभवनमस्कार स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि प्रामेशस्त्रिदशोमरीचिरमर अंतिः श्रीपार्श्वनाथः श्रिये श्लोक ६. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदिः समुच्छपणिदिय धलहरुग भुयग; अंति: ( ) ( पू. वि. गाथा -५ अपूर्ण तक है., वि. विचारसार, त्रैलोक्यदीपिका, गाथासहसी आदि ग्रंथों से संकलित गाथाएँ हैं.) १०८३१३. (#) मनुष्यसंख्या स्तव व पूर्वपूर्वां गमनुष्यसंख्या विचार गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, २-५X४८). १. पे नाम मनुष्यसंख्या स्तव सह अवचूरि, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मनुष्यसंख्यास्तव, प्रा., पद्य, आदि: जिणवृत्त चरित्तेणं; अंति: बहुहातो पसिय चरणेण, गाथा- ११. मनुष्यसंख्यास्तव अवचूरि, सं., गद्य, आदि जिनोक्तचारित्रेण; अंतिः प्रसादं कुरु. २. पे. नाम. पूर्वपूर्वांगमनुष्यसंख्या विचार गाथा सह अवचूरि, पृ. २अ, संपूर्ण. मनुष्यसंख्या विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि मणुआण जहन्नपए: अति: एवइया वेगला मणुआ, गाथा-५. मनुष्यसंख्या विचार गाथा- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: एतेषां च पूर्वोक्ता; अंति: प्रणीता गाथा. १०८३१४. सम्यक्त्वस्वरूप स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५X१०.५, ६X५३). सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि जह सम्मत्तसरूवं अंतिः हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा २५, संपूर्ण. सम्यक्त्वपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम सम्यक्त्वनुं स्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १७ अपूर्ण तक लिखा है.) १०८३२९. (+) स्थानांगसूत्र- १० सुखवर्णन गाथा सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०.५, २०x४५). स्थानांगसूत्र- हिस्सा १० सुखवर्णन गाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि दसविहे सोक्खे पण्णत्ते तं; अंति निक्खम्ममेव तत्तो अणावाहं, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र - हिस्सा १० सुखवर्णन गाथा की टीका, सं., गद्य, आदि प्राग्वनवासिनो देवा उक्ता अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. "सेयं भंते २ शतक१४ उदेसु९" पाठ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०८३२४. (+) शनिश्चर स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १७४६६). १. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति; अंति: तु सुप्रसन्न शनिस्वर, गाथा-१७. २.पे. नाम. शनि स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: यत्पुरा राज्यभ्रष्टाय; अंति: पीडा नभवेश्व कदाचन, श्लोक-९. ३. पे. नाम. शंभुनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मुगट गंग खलहलै चंद ललाटे; अंति: क्या कर राख बंध इक तार, गाथा-१. ४. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंतिः प्रितस्तस्य जायते, श्लोक-५. १०८३३० (#) भरटकद्वात्रिंशिका के श्लोक व सुभाषितादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, ४७४२३). १. पे. नाम. भरटकद्वात्रिंशिका के श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण.. भरटकद्वात्रिंशिका-श्लोक, संबद्ध, ग. आनंदरत्न, सं., पद्य, आदि: देवदेवं नमस्कृत्य; अंति: (-), (वि. अंतिमभाग खंडित है, श्लोक-३१ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सभाषित श्लोक संग्रह , मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: संसारभीता न करोति पापम्, (वि. उपरी भाग खंडित होने से आदिवाक्य नहीं लिया है.) ३. पे. नाम. पंचाख्यान वार्ता-सभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचाख्यान कथानक संग्रह, सं., पद्य, आदि: दिवानिरिक्षेवक्तव्यं; अंति: मयापिमुंडितं शिरं, (वि. वार्ता-२.) ४. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दूर वतन दुर सज्जण हियाइ; अंति: धन्यास्तेन भवाद्रशाः, गाथा-३. १०८३३१. (+) शारदाष्टक व नेमिजिन करखा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ११४४१). १. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८२१, श्रावण शुक्ल, ७, ले.स्थल. वेलासर, प्रले. मु. विनयहेम, प्र.ले.पु. सामान्य. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल रुप भगवान; अंति: वनारसी० संसार कलेस, गाथा-१०. २.पे. नाम. नेमिजिन करखा, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, श्राव. महमद जैन, पहिं., पद्य, आदि: तोंसौं कोन सरवर करै काम; अंति: करै राख सरनाय देवाधिदेवा, गाथा-४. १०८३३३ (+) हिंसानिवारक साक्षीपाठादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १८४५७-६०). १. पे. नाम. हिंसानिवारक साक्षीपाठ संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ हिंसानिवारण गाथा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: हंतूणपरमाणे अप्पाणं ये; अंति: पुंसां मधुबिंदेक भक्षणात्, गाथा-६. २. पे. नाम, गुरुशिष्यसंवाद श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुशिष्यप्रश्नोत्तर विचार, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू असणाईदिज्जा; अंति: उद्दिठकडंपि सो भुजे. ३. पे. नाम, श्रुतसेवाजिनपूजादि श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: ये लेखयंति जिनशासन; अंति: मध्ये महाजन्म कृतं निशि, गाथा-६. ४. पे. नाम. लोकोक्तिगर्भित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्लोक संग्रह-लोकोक्तिगर्भित, सं., पद्य, आदि: भाभी देवर शालाए काका मामा अंति: ज्ञातावगतात एव पंडिताः, लोक-८. ५. पे. नाम. प्रास्ताविकश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: श्रिष्टे संग ः श्रुते; अंति: धर्म्म एकोपि निश्चल, श्लोक ५. १०८३४० (+०) शिक्षा कुलक, २१ मिध्यात्व भेद व अष्टभंगी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५४१०.५, ७४५३-६१ ). "" १. पे. नाम. शिक्षा कुलक सह टवार्थ, पू. १अ २अ, संपूर्ण गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्यपरा, अंति सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा २०. गौतम कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि लोभीवा मनुष्य अर्थनइ अति जिनधर्म हुने पायें. २. पे. नाम. २१ मिथ्यात्व भेद सह टबार्थ, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१ मिथ्यात्व भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: लौकिक देवगति मिथ्यात्व; अंति: मुत्तसन्ना २१. २१ मिध्यात्व भेद-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: राग द्वेष सहित एहवा लोकना; अंति: अमुत्ते मुत्त सन्ना कही. ३. पे. नाम. अष्टभंगी सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. जाण आदर पालन अष्टभंगी, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: न जाणइ न आदरइ न पालइ; अंति: जाणइ आदर इ पालइ. ज्ञान आदर पालन अष्टभंगी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुद्ध देव सुद्ध गुरु; अंति: सुश्रावक सुश्राविका जाणवा १०८३४१. कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १६२० आश्विन शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पू. ३२-२९ (२ से ३०)= ३, ले. स्थल स्तंभनतीर्थ, जैवे. (२४.५४१०.५, ११४३९). कल्पसूत्र- अंतर्वाच्य, आ. जयसुंदरसूरि, प्रा.सं., गद्य, आदि: मंत्रे श्रीपरमेष्टिमंत्र; अंति : (१)भाविज्जत्तित्तिजिण वुन्नं, (२) जयसुंदरसूरिणा विरचि (पू. वि. महावीरजिन कल्याणकवर्णन अपूर्ण से समाचारीवर्णन अपूर्ण तक नहीं है.) १०८३४२. (+) २४ जिन नाम, आयु विचारादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, ११३१-३४). १. पे नाम. २४ जिन नाम, आयु, देहमान, चक्रि, वासुजिन समय विचार- वर्तमान, पृ. १अ, संपूर्ण २४ जिन, चक्रवर्त्ती, वासुदेव नाम, आयु, शरीर, समयादि विचार - वर्तमान, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे नाम ज्योतिष श्लोक संग्रह राशि पू. १आ, संपूर्ण. 1 ज्योतिष लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि अला चुचेचो मेष उबाइ विष, अति: कुंभ राशि दोचाचिज्ञथ मीनयोः, श्लोक-३. ३. पे. नाम. पुरुष द्वात्रिंशत् लक्षण, पृ. १आ, संपूर्ण. पुरुष ३२ लक्षण लोक, से, पद्य, आदि प्रमाण‍ सुकृतंर सील अंतिः पुरुषानेति लक्षणं, लोक-४, ४. पे. नाम. चौदहपूर्व नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ पूर्व नाम, प्रा., गद्य, आदि उपायं च मगोणिय अंति ते बिंदुसारं च१४. ५. पे नाम, अभव्यजीव गाधा, पू. १आ, संपूर्ण प्रा., पद्य, आदि: संगमय१ कालसूरय२ कविला ३; अंतिः अभव्वजीवेहिं नोपत्तं, गाथा - २. ६. पे नाम, चौदहनियम गाथा, पू. १आ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त दव्व विगइ; अंति: न्हाण१३ भत्तिसु१४, गाथा-१.. ७. पे. नाम. नववाडि, पृ. १आ, संपूर्ण. ९ वाड सवैया ब्रह्मचर्यविषयक, मु. रुघपति, पुडिं, पद्म, आदि एक ठामि स्त्रीपुरुष; अति: सौभा विभूषा न करइ, गाथा - १. ८. पे. नाम. चउदभेद जीवना, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ जीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इकेंद्री सूक्ष्म १ वादर २; अंति: अनए सात अपर्याप्त. १०८३४७ (+) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२४४१०.५, १५४४८). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३५, आदि सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक १६६. "" For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०८३५२. महावीरजिन पद, आदिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०, १०४३०). १. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद-पावापुरमंडन, मा.गु., पद्य, आदि: पावापुर महावीररी सखि; अंति: सब मिल आए बोलो जयजय वीररी, गाथा-३. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम प्रभुजी; अंति: हरखचंद० सुख संपति बधाइयें, गाथा-४. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: निर्मल होय भजे ले प्रभु; अंति: भवभव पार उतारनहारा, गाथा-३, (वि. अंतिम तीसरी गाता में "करमचंद प्रभु चरण पसाय" किसी अन्य कृति का पाठ प्रतीत होता है.) १०८३७२. (+#) जिनदत्तसूरिसु गुरुराजाष्टक व शब्दनित्यत्वमनंतत्ववादस्थल विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४८). १.पे. नाम. जिनदत्तसूरिसु गुरुराजाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि अष्टक, पं. चारित्रोदय, सं., पद्य, आदि: अस्तिस्वस्तिसमस्त; अंति: वसते कल्याणमालाप्रदं, श्लोक-९. २. पे. नाम. शब्दनित्यत्वमनंतत्त्ववादस्थल विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में सूक्ष्माक्षरमय लिखा है. ___ सं., गद्य, आदि: द्वयोर्विवादिनोर्विप्रति; अंति: जयपराजयतेर्विवाद.. १०८३७४. (+#) शारदा स्तोत्र, सरस्वतीदेवी स्तुति व भैरवाष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३५). १.पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शारदादेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अविरलशब्दमहौघा प्रक्षालित; अंति: मम सदा निर्मलं ज्ञानरत्नं, श्लोक-९. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वादीमकतिरंकति क्षतियति; अंति: कल्याणि तुभ्यं नम, श्लोक-२. ३. पे. नाम. भैरवाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. क्षेत्रपाल छंद, सं., पद्य, आदि: ॐ जं जं जं यस्यरावं; अंति: दिहस चितितं तस्य सिद्धि, श्लोक-९. १०८३७६. (#) पार्श्वजिन स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, २०४५२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: निधिमितकरमानं; अंति: निहतकुनयवादा मेघगंभीरनादा, श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र मंत्र गर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७०१, फाल्गुन कृष्ण, ७, ले.स्थल. वगडीनगर, प्रले. वा. रत्नहर्ष (गुरु पं. सुमतिहर्ष पंडित, अंचलगच्छ); गुपि.पं. सुमतिहर्ष पंडित (गुरु गच्छाधिपति कल्याणसागरसूरि, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: सुप्रभातं सुदिवस; अंति: विजयं वांछित फलं, श्लोक-१. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., पद्य, आदि: आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण; अंति: मे यदि मेरुधीरम्, श्लोक-५. १०८३७७. (+) चतुरशीत्याशातना काव्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, ९४५२). जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं १ केलि २ कलिं ३; अंति: वज्जे जिणिंदालये, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिन ८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्लेष्मा अंदोलनादि क्रीडा; अंति: एवमादिक स पाप कार्य. १०८३७८. पारसनाथ बारैमासीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,ले.स्थल. कुचामण, प्रले. श्राव. सुखा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, १६x४५). पार्श्वजिन बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सांवण पावस उलस्यो सखी; अंति: जिनहर्ष सदा आणंद रे, गाथा-१३. १०८३८१ (#) सप्ततिशतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्राव. रवजी गोविंद मोदी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में सप्ततिशतजिन यन्त्र है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १२४४४). तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४, (वि. यंत्र सहित.) १०८३८५. (#) दोसावली व बारह राशि दोष, संपूर्ण, वि. १७९१, आषाढ़ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जालोर, प्रले. पं. लावण्यहर्ष गणि (गुरु उपा. नेममूर्तिगणि); गुपि. उपा. नेममूर्तिगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४६०). १.पे. नाम. दोसावली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, आदि: १११ शरीरे वेदना छे दोस; अंति: जात्र कीधा सुख होसी. २. पे. नाम. बारह राशि दोष, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. दोषावली, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मेषे च देव्यादोषं वृषे; अंति: दोषं मीने मुशाणदोषकं. १०८३९१. पर्युषणापर्व स्तुति व ज्योतिष विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०, ११४२६). १. पे. नाम. पर्युषणापर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थुइ. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बलि बलि हुं ध्यावु गाउ; अंति: कहै जिनलाभसूरिंद, गाथा-४. २. पे. नाम. ज्योतिष विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. उपरी भाग में सरस्वती बीज मंत्र जाप की विधि दी गई है. मा.गु., गद्य, आदि: पोहुर अगनि दक्षिण पोहुर; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०८३९२. (#) नेमराजुल गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०, ११४२३). नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी; अंति: रामविजय० कोडि कल्याण, गाथा-७. १०८३९७. (+) लघुनमिऊण बालावबोध व जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. सा. वरजुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नमिउण०बा., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१४३०) अतिवृष्टि अनावृष्टि, जैदे., (२५४१०, १३४५०). १. पे. नाम, लघुनमिऊण बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमा स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊणं नमीनइ सर्व जिन; अंति: विछोहउ करउ भव्य जीवनइ, (वि. अंत में जंबुद्वीप मेरुपर्वत योजनमान संख्या दी है.) २. पे. नाम. जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण... मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीपनी परिधि च्यारे; अंति: भागे धरती मांहि उंडा हुइ. १०८३९८ (+) पद्मावति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४३). पार्श्वजिन मालामंत्र स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते पार्श्व; अंति: धरणेंद्र आज्ञापयति स्वाहा. १०८४०३. शारदा स्तुति, संपूर्ण, वि. १७९८, भाद्रपद कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०, १३४४४). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: विपुलसोख्यमनंतधनागमं; अंति: प्रतिदिनं रिदये कमलापति, श्लोक-१५. १०८४०४. (+) औपदेशिक सज्झाय, महावीरजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४x७६). For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org १. पे नाम औपदेशिक सज्झायनिंदात्याग, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: म करि हो जीव परताति दिन; अंति: एह हित सीख माने, गाथा - ९. २. पे नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीगुरुपाय जगजीवन चरम; अंति: जिनविजय० सफल फली मन आस, गाथा - १३. ३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण मु. जिनविजय, मा.गु, पद्य वि. १४७१, आदि: अश्वसेन नरपतिराय अंतिः जिनविजय जिनगुण गाया रे, गाथा १५. १०८४०५ (+) औपदेशिक व मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. सीता (गुरु सा. गुमानाजी); गुपि. सा. गुमानाजी (गुरु सा. चनणा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५X१०.५, १४X३५). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. गाथा क्रम का उल्लेख नहीं है. मु. मलुकचंद, रा., पद्य, आदि पांच सुखी मीलि मोहियो हो, अंति: मलुकचंद० समजो का न सुजाण, गाथा- १०. २. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि रिषभजी वनवास वेसह अंतिः कल्याण गुण गावइ रे, गाथा- १४. १०८४०७ (+) नेमिजिन व वीस विहरमान स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे २ प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- संशोधित, जैवे. (२४४१०.५, १३४४९). . १. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि: श्रीमदैवतमौलिमंडनमणि अंति भगवन निजसेवा प्रदानत, श्लोक ९. २. पे. नाम बीस विहरमान स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, उपा. अनंतहंस, मा.गु, पद्य, आदि सरसति देवि नम अति इम जंपइ जिनमाणिकसीस, गाथा - ९. १०८४०९ (१) दोषावली, संपूर्ण वि. १८१८ माघ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३ ले, स्थल, मुडडी, प्रले, मु. खुशालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४१०.५, ११x१८-३२). दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, आदि: १११ शरीर वेदना छे दोस; अति तेहनी मानवट जान देज्यो. १०८४१४. () ज्वालामालिनीदेवता स्तुति, पार्श्वनाथजिन स्तुति व सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४४१०, १०X३२). १. पे नाम ज्वालामालिनीदेवता स्तुति सबीज, पृ. १अ २आ, संपूर्ण, वि. १८२४ वैशाख कृष्ण, १३. , ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवते श्रीचंद, अति: मालिनी ज्ञापयति स्वाहा. २. पे नाम पार्श्वनाथ जिन स्तुति, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र- चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु श्लोक-११. ३. पे. नाम सरस्वती स्तोत्र, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि शुभ्राकार मनोहरारतिकरा अति भाग्यादपि ते प्रसादात् श्लोक- ९. १०८४१७. (+#) ज्योतिष मुहूर्त संग्रह व दिनमान दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २४.५X१०.५, १८x२२-५६). ८७ १. पे नाम ज्योतिष मुहूर्त संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जैन ज्योतिष मुहूर्त विचार*, प्रा.सं., प+ग., आदि: राज्याभिषेक मूहुर्त्त; अंति: ममृह स्वामू अनुरे रोउ. २. पे नाम, दिनमान दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: हीर की सत्तांगुली तुली, अंतिः वधे पल लहो सूर्य प्रकास, गाथा-४. १०८४१९. शनिस्वरजीरो छंद, नवग्रह कवित्त व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, जैदे. (२४४१०.५, १७५५). For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. शनीस्वरजीरो छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति अमर; अंति: हेम० सनीसरवर, गाथा-१७. २. पे. नाम. नवग्रह कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ नवग्रह पद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसूर्यदेव सवाडुयौ; अंति: वाडुआ नवग्रह हुवै सवाडुया, पद-१. ३. पे. नाम, मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: अनमोल का कोट समुद्र; अंति: (-). १०८४२१. बीज स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. मोती, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ११४३९). बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: श्रीश्रुतदेवि पसाउले; अंति: गणेशरूचि० वंदु पाय, गाथा-१९. १०८४४२. (+) २४ जिनानुपूर्वी स्तुति-नवग्रहगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सत्यरत्न शिष्य (गुरु मु. सत्यरत्न गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्त में "पूज्याराध्यध्येय पं. सत्यरत्न गणि पादै कृतः तच्छिष्येणा लेखि" उल्लिखित है., पदच्छेद सूचक लकीरें-कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४२). २४ जिनानपूर्वी स्तुति-नवग्रहगर्भित, म. सत्यरत्न गणि, सं., पद्य, आदि: भास्वंतसोममहंत; अंति: प्राप्नोति सर्वा श्रिय, श्लोक-१२. १०८४४३. (+) चैत्यवंदनभाष्य, संपूर्ण, वि. १७२२, चैत्र कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. सा. महिमा सिद्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१०,१३४३४-३८). __ चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: परमपयं पावइ लहुं सो, गाथा-६३. १०८४४५. वरकाणापार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, ११४३५). पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मु. देवरतन, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी मनि ध्यावओ मन; अंति: जिणवर नमिय इ श्रीवरकांणइ, गाथा-९. १०८४४९ (#) सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १०४३४-३९). सभाषित श्लोक संग्रह *, मा.ग.,सं., पद्य, आदि: अवश्यं भाविनो भावा भवंति; अंति: (-), (प.वि. श्लोक-२२ तक है.) १०८४५१. कार्तिकपंचमीमहात्म्यविषये वरदत्तगुणमंजरी कथा व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १६४५६). १.पे. नाम. कार्तिकपंचमीमहात्म्यविषये वरदत्तगणमंजरी कथा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, प्रले. पं. मोहनविजय गणि (गुरु ग. कमलविजय); गुपि. ग. कमलविजय (गुरु ग. केसरविजय, तपागच्छ); ग. केसरविजय (गुरु ग. दानविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: प्रपाल्य मुक्तिं गतः. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, पहिं., पद्य, आदि: मलज्याजो रे साहिब ध्यान; अंति: होवे एही अखय सुख चैन मे, गाथा-६. १०८४५७. (+#) महावीरजिन स्तुति व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १४४५४). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नानंदोद कलेशलंपटपुटं; अंति: वशतो जिननिर्वृत्ति मे, श्लोक-२. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: न पुनव्रीडामंगलातंकदायिभि; अंति: भगवान धन्यैस्सदा ध्यायते, श्लोक-५, (वि. विविध ग्रन्थोद्धृत व व्याख्यान पीठिकोपयोगी.) १०८४६३. वीरस्तुति अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:विरत्थुई., जैदे., (२५४१०.५, १२४४५). For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समणा माहणा; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. १०८४६८. (+) जातकपद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १७७५२). जातकपद्धति, म. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य द्विरदं देवं; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३४ तक लिखा है.) १०८४७५. सप्तशतजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४११.५, १४४३५). १.पे. नाम. सप्तशतजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र सहित. तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४, (वि. यंत्र सहित.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर विहारी रे आतम माहरा; अंति: हुं बलिहारी रे नाम तुहारी, गाथा-८. १०८४७६. (+) चिंतामणिपार्श्व स्तवन व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १२४४२). १.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. २.पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मन मंजुसमही गुणरत्न; अंति: खोलीये कुवी शब्द रसाल. १०८४८५. (+#) चतुशरण, संपूर्ण, वि. १६४६, आषाढ़ कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नागपुर, अन्य. श्रावि. तारादे, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में पद्यबद्ध वर्ष "संवत सोलएकावनइ फागुणमास वखाणि" का भी उल्लेख है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १३४३८-४२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: वंब्भकारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. १०८५०२ (+) नयचक्र व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४११, १७४४६-५०). १.पे. नाम. नयचक्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तरं; अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: विहख एवि सुअणो सेवइ; अंति: नरा हि वा सठवि समिद्धा. १०८५०८. (#) उदयापुर वर्णन, संपूर्ण, वि. १८२५, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, प. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४२७). उदयपुरनगर वर्णन छंद, मु. जसवंतसागर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: समरी मातासरसती मांगु; अंति: जसवंतसागर० उदयपूर नगरवर, गाथा-४०. १०८५०९. पंचपरमेष्ठि स्तवन, चतुषष्ठिदेव्याष्टक व पद्मावत्यष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले.पं. भैरुदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १५४३३). १. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: परमेट्ठिमंतसारं सारं; अंति: आरुग्गं देह सुहपन्नो, गाथा-७. २. पे. नाम. चतुषष्ठिदेव्याष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चतुषष्ठिदेव्याष्टक स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ईश्वरी विजया गौरी; अंति: प्राप्नोति न संशयः, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम पद्मावत्यष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी अष्टक, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि चिदानंदसंपद्विलासैकदक्षः, अंति भवंति ते शुद्धसमृद्धिभाजः, लोक- ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८५११ (+#) अझारी सरस्वती व पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३X११, ११x२५ ). १. पे. नाम. अझारी सरस्वती छंद, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण, प्रले. मु. खुसाल, प्र.ले.पु. सामान्य. शारदामाता छंद. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल वचन समता मन आणी अतिः शांतकुशल ० आस फलस् ताहरी, गाथा- ३४. २. पे नाम पार्श्वजिन छंद, पू. ३आ, संपूर्ण 3 पार्श्वजिन छंद - नाकोडामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १७वी, आदि आपणे घेर बेठा लील; अंति: सुंदर जोडो, गाथा-८. १०८५१२. सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२४.५x११.५, १३x२६). सीतासती सज्झाय - शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि झल झलती वलति थकी रे लाल; अंति नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा - ९. " १०८५१४. दोषावली व शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैवे. (२४४११, १२४३५). १. पे. नाम. दोषावली, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रावण कृष्ण, १२. लग्नानुसार क्षेत्रपालादि दोषज्ञान, सं., पद्य, आदि लग्नेष्टमे व्यये सूर्ये अति मित्रे स्वजन संभव, लोक-१२, (वि. यंत्र सहित.) २. पे. नाम शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पु,ि पद्य, आदि आगे पूरब बार निवाणु अंति: (-) (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) १०८५१५ (+) सर्वजिन स्तुति, गौतमाष्टक व सुभाषित लोक, संपूर्ण, वि. १८६० फाल्गुन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले. स्थल, बीकानेर, प्रले. मु. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि., संशोधित, जैदे., (२३.५x१०.५, ११४२८-३४). १. पे नाम सर्वजिन स्तुति, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि सद्भक्त्या देवलोके रविशशि, अंति: मनसां चित्तमानंदकार, श्लोक १०. २. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु, अंति: लभंते सुचिरं क्रमेण, श्लोक - ९. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: उधारणं नैव कदापि देयं; अंति: दातव्यकाले भृकुटि करोति, श्लोक-१. , १०८५१७ (५०) विचार, सवैया व श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ८. प्र. वि. हुंडी : गीरोलीविचार.. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, ११४३३). १. पे नाम, नक्षत्रविचार श्लोक, पृ. १९अ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक सं., पद्य, आदि आद्रा द्वादश रूपाणं; अंति: भरणी चत्वारी तापशा, श्लोक २. २. पे. नाम, मंत्र संग्रह, पृ. ९अ, संपूर्ण, मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदिः ॐ चक्रेश्वरी देवी अंतिः ईत्यादीक आमनाय मोहनी वस्य ३. पे. नाम. गिरोली विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. गरोली विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मस्तक उपर पडे तो दुख होय; अंति: प्रहरे पडे तो अगनिदाह कहै. ४. पे. नाम. शृंगारीक सवैया, पू. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. गावा क्रमशः १ है. मु. मान, पुहिं, पद्य, आदि चंदबदन माहामृगलोचन मान; अंतिः खोल दे गुंघट देखण दे री, गाथा-१. ५. पे. नाम. शृंगारीक सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. गाधा क्रमशः २ से ३ है. For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ मु. सुरूपचंद, पुहिं., पद्य, आदिः आवतथी अलबेल अकेली के; अंति: सुरूपचंद ० कालजै खटकी है. ६. पे नाम प्रस्ताविक श्लोक, पू. ३अ, संपूर्ण. भोजराजा श्लोक, सं., पद्य, आदिः येषां न विद्या न; अंति: मनुष्यरूपेण मृगाश्चरंति, श्लोक-१. ७. पे नाम. आवक षट्कर्म श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: देवपूजा दयादानं; अंति: मृत्युजन्मफलाष्टकम्, श्लोक-१. ८. पे. नाम ज्योतिष संग्रह. पू. ३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिष, पुहिं. मा. गु. सं., प+ग, आदि रवी वीस भणै सहु कोइ चंद्र, अति वरसे धूल न वरसे पाणी. १०८५३२. (+) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८-१७(१ से १७) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X११, १०X२६-३७). अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी १३वी आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-७ श्लोक-८ अपूर्ण से प्रकाश-९ श्लोक-१ तक है.) १०८५३९. (+*) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी नव., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २१.५X१०.५, ९२६-३०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुन्नं; अंतिः बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा ४८. १०८५४२. नवकार व युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८९६ कार्तिक शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी: श्रीमदर, जैदे., (२३.५x११, १६४३२). १. पे नाम. नवकार स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नमस्कारमहामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि पहल पद अरिहंतदेवा जारी अंति रायचंद० जतन करो, गाथा - १२. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३७, आदि: महावदे में परभुरो बासो; अंति: आवागमण अलगी कीजे, गाथा- ९. १०८५५३. महालक्ष्मी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी कार्तिक कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १. ले. स्थल, सूरखंड, जैदे., (२२x१०.५, १०X२७). मा.गु., गद्य, आदि आलस १ मोह २ वना ३ अंतिः चखेव ११ कतूहला१२ रमणा १३. ५. पे. नाम अक्षौहिणीसैन्यमान प्रमाण संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण, ९१ महालक्ष्मीस्तव, सं., पद्य, आदि आद्यं प्रणवस्ततः अति सर्वदा भूतिमिच्छता, श्लोक १०. १०८५६६. (#) पार्श्वजिन पद, १८ भार वनस्पति मान व १३ काठिया नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. . मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., ( २४.५X१०, ४X४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- फलवद्धिं, मु. ज्ञानहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि फलवधि पासजिनंदा मनमोहन; अति: ज्ञानहरख० दुरति निकंदा, गाथा-४. २. पे. नाम. अढारभार वनस्पतिमान श्लोक, पृ. १अ संपूर्ण १८ भार वनस्पति मान श्लोक, सं., पद्य, आदि: दसकोटि दसलक्षाणी अठ्यासी; अंति: वनस्पती मिलै एक भार हुवै, लोक-३. ३. पे. नाम. साधु के १४ उपकरण नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पात्रो १ झोली २ बिछावणरी; अंति: मात्रौ १३ चोलपट्टो. ४. पे. नाम. १३ काठिया नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. अक्षौहिणी सैन्यमान श्लोक, प्रा., सं., पद्य, आदि: नव सहस्स गयवरेहि नव हिय; अंति: कोडा कोडि कोडि कोडी, गाथा - १, (वि. यंत्र - कोष्टक सहित ) For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०८५६७. (७) पार्श्वजिन स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२४.५X११.५, २७X१६-१९). १. पे नाम भद्रामुखादि ज्योतिषविचार संग्रह. पू. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिष विचार, मा.गु., सं., पग, आदि: कृष्णपक्षे तृतीयायां मुखं अंति नहींवर देस परदेस जान. २. पे. नाम, नगरजनसंख्या बोल. पू. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). ३. पे. नाम. राजावंशावली बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. दंतधावणफल कोष्ठक, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ५. पे नाम प्रहेलिका संग्रह, पू. २आ, संपूर्ण प्रहेलिका दोहा, मा.गु., पद्य, आदि पंचायण तीजो प्रगट, अंतिः तव सुख पावे गाव, गाथा २. ६. पे नाम. पार्श्व स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण, पार्श्वजिनाष्टक - शंखेश्वर, आ. भावप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसद्यपद्यापतिपूजितांगं; अंतिः भावप्रभ० पार्श्वनाथम्, श्लोक- ९. ७. पे नाम, औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह*, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: संखरो गरभथी अढीगुण हींगलो; अंति: वाटीजे पछे मणका बालीजे, १०८५६८. (+) ) एकाक्षर नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५x११.५, १२४५१). एकाक्षर नाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: विश्वाभिधानकोशानि; अंति: नानार्थैकाक्षराणामियं मया, श्लोक-२०. १०८५८६. (७) चक्रेश्वरी मंत्राराधन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२२.५x११.५, ९४३१). चक्रेश्वरीमंत्राराधन विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: अयं जपः सिद्धविनयः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अन्तिम भाग अपूर्ण तक लिखा है.) १०८५९०. (७) पाशाकेवली शकुनावली, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१०.५, १६- १९३९-५२). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम ए शकुन भला छइ; अंति: ए सकुन श्रीकार छई. १०८५९१. (+४) वीसस्थानक तप, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५x११, 1 १२x२७). २० स्थानकतप सज्झाय, मु. शिवसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि समरु माया अति: शिवसागर ० शिवसुख लहरे, गाथा - १३. १०८५९६. (+#) नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५X११, १६X३३-४०). नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनानून मानेनानोन्; अंति: परिरंभ योग्याः, श्लोक-९. नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र-व्याख्या, सं., गद्य, आदि : आनुमः स्तुमः के; अंति: उत्कीर्तनमित्यर्थः. " १०८६०० (+०) प्रत्याख्यानसूत्र, अणाहारीवस्तु नाम व प्रत्याख्यानफल कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १३३५). १. पे. नाम, प्रत्याख्यानसूत्र, पू. १अ ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: तस्स मिछामि दुक्कडं.. २.पे. नाम. अणाहारीवस्तु नाम, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, वि. १८६३, वैशाख कृष्ण, ११, ले.स्थल. खोडाडानगर, अन्य. मु. खांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., गद्य, आदि: हरडै १ बहेडा २ आंवला; अंति: तिण वस्तुसुं भंग नही. ३. पे. नाम. प्रत्याख्यानफल कलक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पच्चक्खाणफल कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सुगुरु चलणं; अंति: कुणसु सया पच्चक्खाणाई, गाथा-७. १०८६०६ (+) ज्ञानप्रदीपिका, संपूर्ण, वि. १८९३, पौष कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. ज्येष्ठमल दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:लग्नदी०, संशोधित., जैदे., (२३.५४११,७४२८-३२). १. पे. नाम. ज्ञानप्रदीपिका, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ज्ञानप्रदीप, सं., पद्य, आदि: चरे लग्ने चरे सूर्ये; अंति: सर्व सौख्यं न संशय, श्लोक-३०. २.पे. नाम, औपदेशिक श्लोकसंग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदिः यस्य प्रसुचनखामय; अंति: सिद्धिः कथितो मनींद्रैः, श्लोक-२. १०८६११. (-) महावीर जन्मकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११.५, १९४४१). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: येक मन वंदु स्वामी; अंति: वंदत द्यो ___मनबंछयत धणी, गाथा-२८, (वि. कर्ता का उल्लेख नहीं है.) १०८६१८ (+#) भुवनदीपक का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २०४५८-६३). भुवनदीपक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: सारस्वतं कहता सरस्वती; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५८ तक बालावबोध लिखा है.) १०८६२० (+#) महामंत्र निबद्ध सिद्धसारस्वत स्तव, सरस्वतीदेवी व शारदा मंत्र, संपूर्ण, वि. १८६२, चैत्र कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, कल पे. ३, ले.स्थल. वाल्हीनगर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १२x२७). १.पे. नाम, महामंत्र निबद्ध सिद्धसारस्वत स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक; अंति: भवत्युत्तम संपदः, श्लोक-९. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वद; अंति: ए मंत्र बेसता उठतां केहवो. ३. पे. नाम. शारदा मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, आदि: ऐं क्लीं श्रीं ह्रीं ह्यौ; अंति: कार्यं वार १०८ जपित्वा. १०८६२१. लघुवसुधारा, संपूर्ण, वि. १९९४, आश्विन कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. माणिक्यसागर (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में साधनविधि का नियम दिया गया है., दे., (२४४११, १४४३८-४२). वसुधारा-लघु, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते वज्रधर; अंति: आर्या वसुधारा ज्ञेया. १०८६२२. षोडश पच्चक्खाण आगार विवरण, साधारणजिन स्तति व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४४१२, १७४३६). १. पे. नाम, षोडश पच्चक्खाण आगार विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-पच्चक्खाण आगार विवरण, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नौकारसीना आगार२; अंति: बित्तीकंत्तारेणं६ वो०. २.पे. नाम. ८ प्रकारी पूजा दहा, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा दोहा, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सयं पमज्जणे पुणे सहस्स; अंति: अणंतगीयवाइए, गाथा-१. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शनात् दुरितध्वंसी; अंति: साक्षात् सुरद्रुमः, गाथा-१. ४. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जब लग यह संसार मै; अंति: सफलं तस्य जीवनं, गाथा-४. १०८६२३. लघुशांति व संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, १५४४०). १. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. २. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र-८ से १२ गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. प्रतिलेखक ने गाथांक-१ से ५ लिखा है.) १०८६२४. (-#) गजसिंहकमार चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४३०). गजसिंघकमार चरित्र, आ. विनयचंद्रसरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भारतीदेवीं; अंति: (-), (प.वि. राजा प्रति विप्रवचन ___ "पुण्येन राज्यसन्मानं प्राप्यते मानुषं ध्रुवं" पाठ तक है.) १०८६३० (#) औपदेशिक दहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४३४). औपदेशिक दोहा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि., पद्य, आदि: हित हुं की कहिये नही जो; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-२५ तक है.) १०८६३१. जैनधार्मिक श्लोक सह टबार्थ व स्वार्थ श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १६x४५). १. पे. नाम, जैनधार्मिक श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्लोकसंग्रह-जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: आर्यदेश कुलरूप बलायु; अंति: जीव ए जलबिंदु चंचले, गाथा-१०. श्लोकसंग्रह-जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आर्यदेश भलो कूल भलो रूप; अंति: बिंदु जेहवो आयुखो चंचल. २. पे. नाम. स्वार्थ श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वृक्ष क्षीणफलं त्यजंति; अंति: सरर्वे एकोपि अन्नं विना, श्लोक-४. १०८६३२ (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पत्रांक ३ अलग-अलग कर्म में है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३६). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. १०८६४६. (#) धर्मोपदेश व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. दलिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ७४४१).. १.पे. नाम. धर्मोपदेश श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धर्मोपदेश श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आर्यदेशकुलरूपबलायु बुद्धि; अंति: कुरुत भो धर्मो महानिश्चलं, श्लोक-८. धर्मोपदेश श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आर्यदेश भलो कुल भलो रूप; अंति: एक महा मोटो निश्चल छई. २. पे. नाम, सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वृक्षं क्षीरफलं त्यजंति; अंति: शृणु सखे एकोपि अन्नं विना, श्लोक-५. १०८६५०. अनाथीमनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४११, १२४३९-४६). अनाथीमनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक सुखकारी; अंति: इम बोले मुनि राम के, गाथा-३०. १०८६५५ (#) जिननामादि शुकनावली व औषधवैद्यक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १८४५२). १. पे. नाम. जिननामादि शुकनावली, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: २४ तीर्थंकरमांहि १ चिंतवइ; अंति: थांगथी आवई ते कहीइं. २.पे. नाम, औषधवैद्यक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ औषधवैद्यक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: महिषमूत्र पल ६४ गोमूत्र; अंति: (-). १०८६५७ (#) वर्षाज्ञान विचार व रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १८x२८). १.पे. नाम. वर्षाज्ञान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:वर्षाविचार. ___मा.गु., गद्य, आदि: पुरव दिस वाई तो दुकाल१; अंति: दुर्भिक्षं धुलिवर्षणं. २.पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरसती माय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) १०८६६०. औपदेशिक पद व कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १६, दे., (२४.५४११, १४-१९४३४). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दीन, पुहिं., पद्य, आदि: बंदा बाजी झूठ हे मत साची; अंति: दीन० झठ हे बाजी बंदा, गाथा-२. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दीन, पुहिं., पद्य, आदि: इंद्र के अगराज आगे; अंति: सेख दिन० अर्थ कहा लडाइइ, गाथा-३. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद-धन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. दीन, पुहिं., पद्य, आदि: रीपीआं तौकुं रंग है भगत; अंति: कहे दीन० रंग तौकु रुपीया, गाथा-२. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दीन, पुहिं., पद्य, आदि: भडवा भेख लजावत है सौजन; अंति: दीन० भेख लजावत है भडवा, गाथा-२. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. दीन, पुहिं., पद्य, आदि: तंत न जाण्यो नाह पीछाण्यौ; अंति: दीन० फेर पाछा पिसतावेगा, गाथा-२. ६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ब्रह्म, पुहि., पद्य, आदि: वह रत्तीयै छत्त अवत्तीयै; अंति: ब्रह्म किपत्त विपत करी, गाथा-२. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयराज, पुहिं., पद्य, आदि: खंजन माम कुरंग अंखीयां; अंति: उदै० दाद फिरां दन ही हरकै, गाथा-२. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. म. दीन, पहिं., पद्य, आदि: कमर कटारी ग्यांनकी; अंति: दीन० ग्यान की कमर कटारी, गाथा-२. ९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दीन, पुहिं., पद्य, आदि: कनक कामनी जोर है कीआ; अंति: कहै दीन० कनक अरु कामनी, गाथा-२. १०.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: मौलाहक मालकजी सै मै; अंति: मार कहा लौठेकुं नीचा जौगै, गाथा-२. ११. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. दीन, पुहिं., पद्य, आदि: दैह आज पडौ भावै काल पडौ; अंति: दीन० जीवै तो बीदेह पडेगी, गाथा-२. १२. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. दीन, पुहिं., पद्य, आदि: तनमद धनमद जवानीमद है; अंति: दीन० राह सो सांइ सदल है, गाथा-२. १३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. दीन, पुहि., पद्य, आदि: जम झपटो दैन है दिन मै; अंति: दीन० दैत है जम झपटां, गाथा-२. १४. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. २अ, संपूर्ण. क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: गंग तरंग प्रवाह चहै तब; अंति: गंग० कुड सै दूर सदा वसीयै, दोहा-२. १५. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. २अ, संपूर्ण. क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: वाल सै ख्याल वडा सै विरोध; अंति: गंग० कुड सै दूर सदा वसीऐ, गाथा-२. १६. पे. नाम. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. . For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९६ www.kobatirth.org भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., प्रा., मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चोरां कुत्ती मिल गई पोहरा; अंति: सुकवि होय पंडित सरस, (वि. गिरधर, गंग आदि रचित कवित्तादि संग्रह.) יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 . " १०८६६३. पार्श्वजिन स्तुति व महावीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२६११.५ १२४३३). १. पे. नाम. स्नातस्या समस्या स्तुति, पू. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति- स्नातस्यापादपूर्ति, मु. उदयविजय, सं., पद्म, आदि स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः सद्बुद्धिवृद्धिप्रधाना, लोक-४. २. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पू. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि वचोति सुंदर्यगुणेपटीर, अंति (-), (पू.वि. लोक-२ अपूर्ण तक है.) १०८६७०. प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२४.५x११, ११४२८). कैलास श्रुतसागर प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि उग्गए सूरे नमुक्कारसहीअं; अंति: असित्थेण वा वोसिरह १०८६७२ (+#) आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x११, १२४४८) " " आध्यात्मिक पद, मु. दीन, पुहिं, पद्य, आदि सच के वेद की ते वह सचकै अति दीन० कमर मै गांन कटारी, गाथा- ९. १०८६८७ पोरसी मान, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी पोरसीमां, जैदे. (२४४११.५, १५२८-३२). पच्चक्खाण कल्पमान-पोरसी, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: सावण वद ७ मने दो पगने १; अंति: पूनमने २ पगां पोरसी छै. १०८६८९. (#) आदिजिन स्तुति व चतुर्विध मेघ विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x११.५, १३४३७). " श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पू. १अ संपूर्ण आदिजिन स्तुति - प्रबंधकोश, सं., पद्य, आदि राज्याभिषेके कनकासनस्था: अंतिः कल्पः प्रथमो जिनेंद्र:, श्लोक १. २. पे नाम चतुर्विध मेघ विचार सह अवचूरि व वालावबोध, पू. १अ संपूर्ण, स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक ४ उद्देश ४ मेघपद से परिनिंदिता पद, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: चत्तारि मेहा प० तं०; अंति: परिभावेइवानवा गोयम्मा. स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक ४ उद्देश ४ मेघपद से परिनिंदिता पद की अवचूरि, सं., गद्य, आदि प्रथमोमेघः श्रीऋष्भात्; अंति: चतुर्थो मेघो वर्तते. सं., पद्य, आदि: मेधां पिपीलिका हंति यूका; अंति: निशि भोजनमिदं दोषः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. १६ कोष्ठकयंत्र विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक ४ उद्देश ४ मेघपद से परिनिंदिता पद का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि : आ चुवीसी ४ महामेघ; अतिः पुष्करा वर्त मेघ समान छे. ३. पे. नाम. भगवतीसूत्रे पोरसिमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: वांछा कृतार्द्धं कृतरूप; अंति: षट६ अष्ट८ कुवेद४ बांणै५, श्लोक-१. ६. पे. नाम. पूजा प्रकरण श्लोक ७-८, पृ. १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक ११ उद्देशक ११ - पोरसी औपदेशिकमान विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि आसाढ सुद१५ में १८ मूहूर्त: अंति: रात्रमान मांहे वधारवो. ४. पे. नाम रात्रिभोजन परिहारलोक संग्रह पृ. १आ. संपूर्ण For Private and Personal Use Only पूजा प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ७. पे. नाम औपदेशिक लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ० पु. प्रा. मा.गु., सं., पद्य, आदिः यः कोपि कोप कुरुते; अंति: कपरोहं यथा पुरा, श्लोक-१. १०८६९० (+) मुमुर्षुजीव कालमर्यादा कोष्ठक, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५४११.५, ५२x१४). मुमुर्षुजीव कालमर्यादा कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०८७०४. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४१६-४२). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: गौतम० स्तोत्रमुत्तमम्, श्लोक-६८, ग्रं. १५०. १०८७०६ (+) आदिनाथको चौढाल्यो, संपूर्ण, वि. २०वी, भाद्रपद शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रुपनगढ, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रीषभ., संशोधित., दे., (२५४१०.५, १३४३५). आदिजिन चौढालिया, ग. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: रूप मनोहर जुगतानंदण सबही; अंति: तपज कीना बे बीसुर नामना, ढाल-४, गाथा-२४. १०८७०७. (+) वीसस्थानक जाप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाडलीपुर, प्रले. मु. रुपचंद; पठ. मु. उदयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ५४१०). २० स्थानकतप गणणं, प्रा.,मा.गु., को., आदि: ॐ नमो अरिहंताणं २०००; अंति: नमो तिथयस्स लोगस्स ५. १०८७०८. स्तवन व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११.५, १६४३५). १.पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. लीबो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला स्वामी श्रीमंधिर; अंति: राज सरो भविकना काज, गाथा-७. २. पे. नाम. ९६ जिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी करु प्रणाम; अंति: तुम्हे तो चउगति निवारण. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आदिमराया पोहोत लाजमा; अंति: वरत्यां छै मंगल च्यार, गाथा-९. ४. पे. नाम, वरकन्या आशीर्वाद पद, पृ. १आ, संपूर्ण. _मा.गु., पद्य, आदि: सुरज उग्या पछि जमवो कंसार; अंति: लाडीने मन काहान गोवालो, पद-३. १०८७१६. (+-) बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. कलाणजी; अन्य श्राव. मनराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका के शेषनाम अवाच्य है., संशोधित-दर्वाच्य., जैदे., (२४.५४११, १०४२७). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सर्वकल्याणकारणे. १०८७२६. एकाक्षर नाममाला व एकाक्षर कोश, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२३.५४११.५, ११४३७). १.पे. नाम, एकाक्षर नाममाला, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. अमरचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: विश्वाभिधानकोशानि; अंति: माला प्राक्सरिसंमता, श्लोक-२०. २. पे. नाम. एकाक्षर कोश, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अकारो वासुदेव स्याद; अंति: क्षितीशः क्षितिध्वनि, श्लोक-३०. १०८७३२. पार्श्वनाथ नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८०७, माघ शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. विश्वतारणी, प्रले. पं. पासचंद्र; पठ. मु. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १३४३२). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तियणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेवे विन्नवै आणंदिइ, गाथा-३०. १०८७३४. प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: पचखावणो., जैदे., (२३४११.५, ११४२७). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए अभत्तट्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पोरसी पच्चखाण अपूर्ण तक लिखा है.) १०८७३५. (+) अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४३३-३५). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: दिसेण०० जिणवयणं आयरं कुणह, गाथा-४०. For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०८७३६. (+#) भरहेसरबाहबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५.५४११.५, ११४३९). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. १०८७४२. (+#) अनिट्कारिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २, प्रले. गुमानीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२१.५४१०.५, ५४३८). सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अनिट् स्वरांतो भवति; अंति: विद्ध्यनिट्स्वरान्, श्लोक-११.। सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, सं., गद्य, आदि: वृङ् संभक्तौ याद; अंति: संचनेतौदादिकः उभयपदी. १०८७४५. (+) जिनचतुर्विंशति स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३५.५४११.५, १६४५७). चतुर्विंशतिजिन स्तवन-यमकालंकारगर्भित, आ. जिनप्रभसरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयशोचिर्निचयैर्निरस्ते; अंति: स्वचेतसो दरय वर्धमान, श्लोक-२४. १०८७४७. (+#) सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १२४३०). सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धुरा उच्चरणं वेद; अंति: वंदै हेम इम वीनती, गाथा-१६. १०८७४८. (4) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११.५, ५६x६-३२). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: ७१श्रीजिनभक्तिसूरि. १०८७५१ (#) विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १८४३७-४१). बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: साते जायगा मोती नीपजै; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'इगसट्ठि मायाणं तेसट्ठि सिलीग पुरिसाणं' पाठ तक लिखा है.) १०८७५४. (+) एकाक्षर नाममालिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३६-४८). एकाक्षर नाममाला, मु. सुधाकलश मुनि; आ. हिरण्याचार्य, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: नाममालिकामतनोत्, श्लोक-५०, (वि. अंत में वासुपूज्यजिन चरित्र का श्लोक-१ दिया है.) १०८७५५. अनिट्कारिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:अ०., त्रिपाठ., जैदे., (२४.५४११, १०४३०). सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अनिट् स्वरांतो भवति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-९ तक लिखा है.) सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, सं., गद्य, आदि: स्वरांतो सर्वो धातुरागण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१० की टीका अपूर्ण तक लिखा है.) १०८७५८. (-) स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११, १६x४५). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जग रे जीवन जगवाल हो; अंति: जस० सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ थोय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. पं. लब्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेāजो तीरथसार; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन-नवपल्लव, मु. हरख, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: हरष० पाय के पासजी जयकरु ए, गाथा - ९. ४. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ. संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन- मंगलपुर, मा.गु, पच, आदि शांति जिणेसर सोलमा ए मंगल अति सामि के कहक भवी दुस्तर ए. गाथा-७. १०८७५९. (-) २० विहरमानजिन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जै.... (२४.५४११, २३४४६). १. पे नाम २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण मु. जीवणजी, मा.गु, पद्य वि. १८२२, आदि सिमदर सांमी नम जुगमिदर अति जीवणजी० वैरमान जीन बीस, गाथा - १२. २. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि नगर हथिणापुर अतिहि; अंति: जैमलजी० जिणेसर संत करी, गाथा - २४. १०८७६८. चित्तोडगढ की गजल, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२५x११. १७४५). चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति पुहिं., पद्य, वि. १७४८ आदि चरण चतुरभूज धार, अंति: (-), (अपूर्ण, " पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२२ अपूर्ण तक लिखा है.) १०८७६९. (+) पार्श्वजिन स्तोत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., ( २४.५X११, १६x४३). पार्श्वजिन स्तव स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.सं., पद्य, वि. १४वी, आदि जसु सासणिदेवि वएसिकया अंति (-) (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण तक है.) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जं संथवणं विहिअ तसे; अंति: (-). १०८७७१. २८ नक्षत्राकार चोपाड़ व दशा कुंडलीकरण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दत्त. पं. उपेचंद्र अन्य. मु. रूपराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २४.५X११.५, १४४४१). १. पे. नाम. २८ नक्षत्राकार चोपड़, पृ. १अ, संपूर्ण. ९९ नक्षत्रतारा विचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेश्वर चलण नमेवि; अंति: पठनक्रिया आराधउ सही, गाथा १५. २. पे. नाम. दशा कुंडलीकरण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष *, पुहिं., मा.गु., सं., प+ग., आदि: रविर्मध्यमोसौ; अंति: लग्रं साध्यं ग्रहादि देयं. १०८७७५. (+) पोषदशमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३ ले. स्थल. जेशलमेर, प्रले. पं. कांतिरत्न प्र. ले. पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पोषदशमी., संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, ११×३८). पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: स्मरणादानंदमाला भवतु. १०८७८४. (+#) मौनएकादशीपर्व गणणुं, संपूर्ण, वि. १८०७, चैत्र कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. खमणोर, प्रले. मु. अचलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १२४३६). मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., गद्य, आदि: जंबूद्वीपे भर्तक्षेत; अंति: श्रीअरिण्यनाथनाथाय नमः . १०८७८५. नमस्कार महामंत्र महिमा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५X११, ११X५५). नमस्कार महामंत्र महिमा, प्रा., पद्य, आदि जिण सासणस्स सारो चउदस; अंति चिंतियमित्तं सुहं देई, गाथा-१५. १०८७८७ (+) पंचम्यादि तपोग्रहण विधि व २० विहरमानजिन विवरण, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैये. (२५x११.५, १४४३९-४७). " १. पे नाम. पंचम्यादि तपोग्रहण विधि, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, तपग्रहण विधि-पंचमीअष्टमीएकादशी आदि, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम इरियावही पडिक्कमावी; अंति: अहं मिच्छामि दुक्कमं तस्स. २. पे नाम. २० विहरमानजिन विवरण, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०० मा.गु., गद्य, आदि: ४ विहरमान जंबूदीप ने विषे अति बीचे मुगत नें विषै जासी. १०८७८८. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२५.५४११.५, ९४३९). www.kobatirth.org पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: नमोद्देवनागेंद्रवृंदारु; अंति: चिंतामणीपार्श्वनाथम्, श्लोक - ७. १०८७८९. (+) पडिकमणारी विधि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४. प्र. वि. संशोधित, जै, (२५.५X११.५, 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६x४६). १. पे नाम पखिप्रतिक्रमण सह टवार्ध, पृ. ९अ, संपूर्ण, पे.वि. श्रीरषभदेवजी प्रसादात्, पंचप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय पक्खीचीमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि मुपत्तिवंदणिय समुदाखामणं; अंति: एस वे पक्खिपडिकमणं, गाथा-३. पंचप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय पक्खीचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि गाथा-टबार्थ, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह अति तो पाट पाट विसन, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. राईप्रतिक्रमणारी विध सह टबार्थ, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, पे.वि. श्रीपद्मप्रभुजी प्रसादात्. रात्रिप्रतिक्रमणविधि गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कुसमण दुसमण राईय सोल; अंति: भगवानहं त्तिबेमि, गाथा-५. राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदि०; अंति: भगवन् बहुवेल करस्यूं. ३. पे नाम. पोसह पारवा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पोसहपारवा विधि, प्रा., पद्य, आदि इरिया० नो० ४का० पडे अंति: सामाइक विधि लीधो. सूचक लकीरें जैये. (२५.५४११, १४४३८). " ४. पे नाम साधु श्रावक पडिलेहण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. आवश्यक सूत्र- प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि इरिया० नो० ४ लोग० सामायिक अति उपधि पडि० पछे काजो काहीजे. יי १०८७९०. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २, ले. स्थल. सूरतिबंदर, जैदे., (२५.५x११.५, ११x२९-३४). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांतिं शांतिनिशांत अंतिः श्रीमानदेव० शासनम्, श्लोक १९. १०८७९८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ३५, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. कृपाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण १०८८०३. (+) आचार्यनिह्नव कथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जीवाजी ऋषि (गुरु मु. उत्तमजी); गुप. मु. उत्तमजी (गुरु मु. हापाजी); मु. हापाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - त्रिपाठ., जैदे., (२५X१०.५, १६४४७). नंदमुनि कक्षा, प्रा., पद्य, आदि: अहेव जंबूदीवे दाहणभरहसु; अंति: गच्छइ नरयतिरिएसु, गावा- १९. नंदमुनि कथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपनी विषइ दक्षिणा; अंति: नरक तिर्यंचनइ विषइ. १०८८०५. (#) नलदमदंती चउपई, अपूर्ण, वि. १७९२, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४४-४१ (१ से २९, ३२ से ४३)=३, ले. स्थल. थिरपद्र, प्रले. मु. दर्शन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नलदवदंती रा०., कुल ग्रं. ९७६, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५X३५). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: चतुरमाणस चित वसी, खंड-६, गाथा-९३१, ग्रं. १३५०, (पू. वि. खंड-५ ढाल - २ गाथा - ११ अपूर्ण से ढाल -३ गाथा-४ अपूर्ण तक व खंड-६ ढाल-९ गाथा- १ अपूर्ण से है., वि. ढाल-३९.) १०८८०९. (+) संख्याविनिर्णय, संपूर्ण वि. १६५७, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, बुधवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. धर्मसिंह (गुरु For Private and Personal Use Only आ. अमरकीर्तिसूरि, नागपुरीव-तपागच्छ); गुपि, आ. अमरकीर्तिसूरि (गुरु आ. मानकीर्तिसूरि, नागपुरीय तपागच्छ); पठ. श्राव. रामसिंह (पिता श्राव. डुंगरसी शाह); गुपि श्राव. डुंगरसी शाह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैये. (२५x१०.५, १३४३८). संख्यारूप विचार, उपा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: एक: एका एक द्वौ अतिः कृतसंख्याविनिर्णयः. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०१ १०८८११. (#) थंभणजिन पार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३१). पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपर, म. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपर श्रीपासजिणंदो; अंति: पार्श्वनाथ चोसालो. गाथा-८. १०८८१२. (+#) वर्द्धमानजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. मूली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४७). १. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन स्तवन, मु. धरमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सिवसुखकारण दुख निवारण; अंति: धरमचंद० हरखइ बेकर जोड, गाथा-१९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविनय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणराय जगता नमियइ सदा; अंति: श्रीलिक्ष्मीविनइ यम बोलइ, गाथा-७. १०८८१३. वैराग्य सिज्झाइ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सज्झाइ, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४४६). औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर इम उपदिसै आगै; अंति: इम पभणै रूपचंद रे, गाथा-२१. १०८८१६. छींकविचार सज्झाय व छींकदिशाफल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:छींकविचार., जैदे., (२४४१०.५, १४४३८). १. पे. नाम. छींकविचार सज्जाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: छींकशकुननो कहं विचार; अंति: पगि पगि संपद पामइं तेह, गाथा-१६. २. पे. नाम. छींकदिशाफल विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.ग., गद्य, आदि: पहिलई पूर्व दिशि छींक; अंति: ४ प्रहर हु ताव तु फल जइ. १०८८२९. वरदत्तगणमंजरी कथा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, दे., (२४.५४११,१०x२२). वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: शुक्लकार्तिकपंचम्यां; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-५ तक वरदत्तगुणमंजरी कथा बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: कार्तिक शुदि पंचमी तेहर्नु; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., बालावबोध श्लोक-१ अपूर्ण तक है.) १०८८३० (+) आत्मशिक्षाशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १३४४३). आत्मशिक्षाशतक, मु. रामचंद्र यति, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमानंद चिद्धनं; अंति: स स्वयं शुद्धबोधः, श्लोक-१११, (वि. अंत में नीतिपरक १ श्लोक है.) १०८८३१. लीलावती भाषा-अध्ययन १, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. कण्णाणनगर, प्र.वि. श्रीपार्श्वजिन प्रसादात., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३४). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०८८३२. गौतम रास छोटा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११,७४२९). गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष्य; अंति: गौतम तुठे संपति कोड, गाथा-९. १०८८३५. नेमिगीत, कामाख्या मंत्र व औषधसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०, १३४४५). १.पे. नाम, नेमराजिमती बारमासा, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि; अंति: जो पालै प्रीत उदार रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. कामाख्यादेवी-गणपति मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो कांमरुक देस; अंति: दिस उछीली जे पछै जिमीइ. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: अबले कीबकली १९ गोरखमुंडी; अंति: सब खाइ औषध देव रुप छै. For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सदारंग आचार्य गीत, मु. खेमदास, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सरसत हो तु वरदेह गाबु अति: मुनि खेमदास १०८८४१. सदारंगजी गीत संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२४.५x१०.५, ११४४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुखकार, गाथा- ९. १०८८४५. (+#) होलीरजःपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १५०४, फाल्गुन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. राणपुर, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६x१०.५, १९५५). होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदि: प्रणम्य सम्यक्; अंतिः पुण्यराज० वाच्यताम्, श्लोक-३४. १०८८४६. (+४) आगमिक विचार संग्रह व २६ क्रियाविधि बोल, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. हेममंदिर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१०.५, १९-२१४५८-६३). १. पे. नाम. आगमिक विचार संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: संपुन्नचंदवयणो सीहासणि; अंति: भयवं वीरो भणइ महारंभया ए. २. पे नाम. २६ क्रियाविधि बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि स्थापनाचार्य पडिलेही; अंति विधि कर्त्तव्य बोल जाणिवा, गाथा-२६. १०८८४७. (+#) स्तवन व मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६×१०.५, २८X४८-५३). १. पे नाम साधारणजिन चैत्यवंदन सह अवचूरि, पू. १अ संपूर्ण साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयश्रीजिनकल्याणवल्लि; अंतिः श्रेयः सुखास्पदम्, लोक- ५. साधारणजिन चैत्यवंदन- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-). २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: तं नमह पासनाहं धरणिं; अंति: अनाउ सरह भगवंतं, गाथा- ४. , ३. पे नाम. आदिजिन स्तव सह अवचूरि, पृ. १अ संपूर्ण शत्रुंजयतीर्ध चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंतिः शासनं ते भवे भवे, श्लोक ५ शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). ४. पे नाम. पंचपरमेष्ठि विवरण, पू. १अ १आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठिपद आम्नाय, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं; अंति: मारण निउणा साहूसयासरह. ५. पे. नाम मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, आदि ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अघोर अति: तणी आज्ञा फुरइ जा जा जा . १०८८५८. भद्रापुच्छ श्लोक सह बालावबोध व जिनप्रतिमा स्थापना, दीक्षा तथा विवाह मुहुर्त श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, ६X३०-३५). १. पे. नाम. भद्रा पुछं श्लोक सह बालावबोध, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. भद्रापुच्छ लोक, सं., पद्य, आदि दशम्यांमष्टम्यां प्रथम घट अति तिथि १४ चतुर्थोश्च विगलत् श्लोक-१. भद्रापुच्छ श्लोक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि दसमि१० आठमि८ पांचघडी पछि अंति: १३ एतला प्रवेशइ शुभ, (वि. कोष्टक सहित) २. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्थापना, दीक्षा तथा विवाह मुहुर्त श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि दीक्षा वारी गुरु शनी अंति: सह पंचदशमूहर्तानि (वि. मुहुर्त कोष्टक सहित ) १०८८६१. जिनभवने ८४ आशातना विचार व तेरकाठिया विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. ले. स्थल. दुहीयनगर, प्रले. ग. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५४१०.५, ७४३२). १. पे. नाम. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं १ केलि २ कलि ३; अंति: जुओ जिनिंदालये, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्लेश्मा- नाखq१; अंति: रहित वरजै देहरामाहइं. २. पे. नाम. तेरकाठिया गाथा सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण... १३ काठिया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आलस्स१ मोह२ अवन्ना३ थंभा४; अंति: कोउहला१२ रमणा१३, गाथा-१. १३ काठिया गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मनी वेला आलस्स न करइं; अंति: रमतिरमनो धर्म न करी सके. १०८८६६. (#) तप संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१०, २०४५९). विविधतपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुरिमड्ढ१ एकासणु२ नीवी०; अंति: इति अष्टापद पावडी तप, (वि. तप संख्या-३०.) १०८८६८. कृष्ण सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२५४१०, २०४५४). १. पे. नाम, कृष्ण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नंदलाल शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रशोत्म प्रगट्या अवतारि; अंति: नंद० जोड करी त्यारी, गाथा-७. २.पे. नाम. आत्मा उपरे वैराग्य गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक गीत, म. राज, रा., पद्य, आदि: आतममृग तम आफले पडिसि; अंति: पद पामसि राज वयण संभारि, गाथा-८. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, रा., पद्य, आदि: आदजनेसर देव भलो सुखकारण; अंति: जनराज० चाहत चांदर ढेवो, पद-१. ४. पे. नाम. वक्ता वर्णन गुण, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ गुण वर्णन-वक्ता, रा., पद्य, आदि: आगम माय कया गुण सोडस बोल; अंति: चांदण श्रोत सदा सुख पावे, पद-२. ५. पे. नाम, श्रोता गुण वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुण वर्णन-श्रोता, रा., पद्य, आदि: चोदश है गुन श्रोता तणा नर; अंति: वक्ता श्रोता गुण जे कया, पद-१. १०८८६९ (+) पार्श्वनाथ स्तवन व उपदेशमणिमाला कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पंडित. वासण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०,११४३७-४१). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन, म. शिवसंदर, मा.गु., पद्य, आदि: भगति पास जिणेसर गाईय; अंति: सुगुरु सोम पसाय करी नवी, गाथा-१३. २. पे. नाम. उपदेशमणिमाला कलक- गाथा १, पृ. १आ, संपूर्ण. उपदेशमणिमाला कुलक, आ. जिनेश्वरसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जीवदयाइ रमिज्जइ इंदियवग्ग; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०८८७१ (+) सामुद्रिकशास्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सामद्रक०, संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, ११४३४). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-१ श्लोक-१६ तक लिखा है.) १०८८७४. संथारा की आमना व ज्योतिषादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२४.५४१०.५, ४०x१०-२६). १. पे. नाम. संथारा की आमना विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. आयष्य विचार-संथारा की आमना, रा., गद्य, आदि: आउखारा तीन दीन बाकि रहै; अंति: दिखवा लागै हाडका गलता जाय. २. पे. नाम. अधिकमासफल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: चैत्र २ समो भलो मेह घणो; अंति: आसोज २ चोर भय समो सुकाल. ३. पे. नाम, वार दिनमान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चैत्रमाससु डोढा किजै; अंति: तब वार होय सो जाणीजै. ४. पे. नाम. आयुर्वेदिक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५.पे. नाम. २८ नक्षत्र विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २८ नक्षत्र यंत्र, मा.गु., को., आदि (-): अंति: (-). १०८८७८. (+#) भगवतीसूत्र - शतक - १२ उद्देश-४, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x१०.५, २१X७६-८४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-). (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. "विंतरजोइसवेमाणिया० असंखेज्जा वा अनंता वा" पाठ तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८८८६. (+) नंदीश्वर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. समयनंदि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६X१०.५, १३५०). " नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: वंदिय नंदियलोअं जिणविसर; अंति: बत्तीसं सोलसयं वंदे, गाथा - २५. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र- टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य वि. १५९१, आदि (१) नत्वा निजगुरुचरणान्, (२) वंदित्वा प्रणम्य; 1 अंतिः विहिता नंदिताच्चिरं. १०८८८९. (+#) महावीरजिन २७ भववर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पक् पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैवे. (२५.५४१०.५, १५४५२). " २७ भवनिबद्ध संक्षिप्त महावीरजिन चरित्र, सं., गद्य, आदि: (१) तत्र प्रथमं श्रीमहावीर, (२) पश्चिम महाविदेहे; अंति: (-), (पू.वि. कार्तिकश्रेष्टी संबंध तक है. वि. ६ आरा, १८ पुराणादि वर्णन भी संलग्न है.) १०८८९५. (+#) नवकार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जै., (२५.५४९.५, १५४५२). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि पहिलो लीजि; अति भुवनमाहे एही ज सार, गाथा २०. १०८८९६. सुगुरुपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २६४९.५, १०-१६X३५-४०). सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू पिछाणो एणे; अंति: प्रसादा चत हरेष उलास जी, गाथा-२३. १०८८९७. (+#) नरकत्रास व रामचंदतपसी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५९, चैत्र शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. खेमचंद ऋषि (गुरु मु. उग्रसेन ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२५.५x१०, १५x५०). १. पे. नाम. नरकत्रास सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नरकदुखवर्णन सज्झाय, मु. सोमकलस, मा.गु., पद्य, आदि टंक० धरंत छेदंत देह विल; अति: सोमकलस साख बोलत सिद्धत, गाथा १५. - गाथा - १९. १०८८९८. चैत्यवंदनचीवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२५.५x१०, ७४३४). २. पे. नाम तपसीरामचंदजी की ढाल, पू. १अ १आ, संपूर्ण. रामचंदतपसी सज्झाय, मु. देव, मा.गु., पद्य, वि. १८५४ आदि करीज्या कुमी नहि, अंतिः देव० गुण ही दरसाइ, चैत्यवंदन चौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम नमुं श्रीआदि अंति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अजितजिन चैत्यवंदन तक लिखा है.) गाथा-७. १०८९०० नेमराजिमती गीत संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैये. (२५.५x१०, १३x४६-५३). १०८८९९. पार्श्वनाथ आरती, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५५९.५, ७३६). 1 पार्श्वजिन आरती - खंधोरपुरमंडन, म, पद्य, आदि जयदेव जयदेव जय करम च हरणा; अंतिः विसंभर खंधारपुर एसा, नेमराजिमती गीत, मु. कपूरचंद, पुहिं., गद्य, वि. १९३५, आदि: चंद्रवदन दिल में दिलगिरि, अंति: चंदकपूर० चरण बलिहारी. १०८९०१ (+) आदिजिन पद व नवपद दूहा, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल, मेडतानगर, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५४९.५ ९४३२-३८). १. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण, वि. १९९४, प्रले. मु. युक्तविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०५ आदिजिन पद-शत्रुजयतीर्थ, बाल, मा.गु., पद्य, आदि: डुंगर जास्युं म्हारे; अंति: वाल कहे० सुख लसवुरे, गाथा-४. २.पे. नाम. नवपद दहा, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९१५, चैत्र कृष्ण, २, प्रले. पं. हुकमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. नवपद दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: परममंत्र प्रणमी करी; अंतिः सदा निर्मल धरीयै ध्यान, गाथा-९. १०८९०२. १८ पापस्थानक परिहार कुलक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०, १२४४२). १८ पापस्थानक परिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर रूप विचार चतुर; अंति: (-), (पू.वि. असत्यपरिहार भाषा तक है.) १०८९०३. (-) चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:चंदापु०, अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४९.५, ८४५४). चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चंदपुरी नगरी अतिसुंदर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६ तक लिखा है.) १०८९०५. सिद्धचक्र जयमाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०, ९४३१). सिद्धचक्र जयमाल, आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: त्रीलोक्येश्वर वंदनीय चरण; अंति: पद्म० सोम्येति मुक्तिम्, श्लोक-११. १०८९०६. (#) औपदेशिक पद व पंजाबी बोलीशब्द संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४९.५, ५४३३). १. पे. नाम. करगसारी वीनती, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कर्कशानारी परिहार, श्राव. भगो साह, मा.गु., पद्य, आदि: करगसानारी कु वीनतीजी; अंति: भगो सा० परहरज्यो एसी नार, गाथा-१५. २. पे. नाम. पंजाबी बोलीशब्द संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं., गद्य, आदि: त्रीषो वेगो१ त्रोकै अबके२; अंति: बुढीलुगाइ१०० कुडी छोरी१०१, (वि. कुल शब्द-१०१.) १०८९०७. (+-) ९ वाड सज्झाय, सामवेद मंत्र व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७४१०, १२४४५). १.पे. नाम. ९ वाड सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पठ. मु. जसा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि: आदिहि आदि जिणेसर नमू मयण; अंति: धरमहंस० वृद्धि रे मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-५५. २. पे. नाम. सामवेद मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोक क्रमशः १ से २ है. सामवेदसंहिता-चयन, सं., पद्य, आदि: सर्वान्नं कामन्नं न अशि; अंति: दुस्तरान्नं हाहूर. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोक क्रमशः ३ से ७ है. __ सं., पद्य, आदि: अकरेकरकर्ता च; अंति: वनितां सीतां जहाराश्रुयत, (वि. अंत में नारी आसतिपरक दृष्टांत दिया है.) १०८९१३. साधारणजिन स्तवन, सज्झाय व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२६४१०, १५४३१-४४). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पुण्यमहोदय, पुहिं., पद्य, आदि: नयनों की गति न्यारी जिनंद; अंति: पुण्यमहोदय० पंक निवारी हो, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: (१)सद्गुरु काजु बनावे रे, (२)समझ कहा सदगुरु की कहनी; अंति: किस विध नाथ लखावै रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: हम आए हो महाराज तौरे बंद; अंति: द्यानत० सभाव जैसे नंदकुं, गाथा-३. ४. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तें गुन आगर साहिबा गोडी; अंति: किर्तिसागर० वास वसायो री, गाथा-६. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि कैसे चलु महाराज कैसे चलु अति रूपचंद० धनधन श्रीवरधमान, गाथा-६, ६. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुंजयतीर्थ पद-औपदेशिक, मु. माणिक, मा.गु., पद्य, आदि : आवो आवो जी ओरा रे कहु; अंति: माणिक० जिनधर सा हैं. गावा-४. ,जैदे., १०८९१४. मेघकुमार, विजयप्रभसूरीश्वर स्वाध्याय व आदीसर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ( २६x१०, १२X४६). .पे. नाम. मेघकुमार स्वाध्याय, पृ. १अ संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि धारणी मनावे रे मेघ अति प्रीतविजय० छूटी जड़ भव पास, गाथा-५. २. पे नाम. विजयप्रभसूरीश्वर स्वाध्याय पू. १अ १आ, संपूर्ण, 1 विजयप्रभसूरि सज्झाय, मु. कृपाविजय, मा.गु., पद्य, आदि सूरि सिर ताज मुनिराज मोटे अंति: गछपति श्रीविजयप्रभसूरीस, गाथा- ९. ३. पे. नाम, आदीसर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि सरस सुंदर ताहरी गुण भरी अति तणो सेवक द्यो दीदार, , गाथा - ११. "" १०८९१५. उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ अनगारमार्गाध्ययन ३५, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. १, जैदे (२५x१०, ९५५५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण " उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०८९१६. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३. ले. स्थल, जयतारणनगर, जैदे. (२५.५x१०, १३३७-४०). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअसव्वभयं संति; अंति: रोगा पुव्वुपन्ना विनासंति, गाथा ३९. १०८९२८ (+४) मलयसुंदरी रास खंड २ ढाल १, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४११, १४X३९). मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि (-); अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १७ तक लिखा है.) C १०८९२९ (+०) साधारणजिन, पार्श्वजिन व नेमिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, १३५५). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. 1 साधारणजिन नमस्कार-स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि निर्विघ्नायिघ्ननिघ्नान अति कोर्हन्नाभिभूर्व श्रिये श्लोक ६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त अतिः श्रेयसे पार्श्वदेव, (२५.५X११, १३x४८). १. पे नाम, संधारा विधि, पू. १अ संपूर्ण ३. पे नाम, नेमजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: राज्यं यो न समीहते गजघटा; अंतिः स्वजयते योगींद्रचूडामणि, श्लोक-१. १०८९३०. घन करवा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५X११, १६X३५-४६). घनकरण विधि क्षेत्रमान, रा., गद्य, आदि: २५६ दोइसै छपननै दोइसै छपन; अंति: भाग आया २५६ आंक मूलगा आया, (वि. अंत में कोष्टक दिया गया है.) १०८९३२. संधारा विधि, प्रास्ताविक श्लोक व रथनेमिराजिमती सज्झाय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, जै.. For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०७ संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.. ___ सं., पद्य, आदि: हारितं यौवनं रत्नं; अंति: हले भूपतिर्भोजदेवः, श्लोक-३. ३. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल घरथी नीसरी रे; अंति: गया हे सुख बोले स्याबास, गाथा-१०. १०८९३३ (+) पोरससंथारा विधि व वीसस्थानकतप नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १०४३५). १. पे. नाम. पोरससंथारा विधि-भणावण, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअ समत्तं मए गहिअं. २. पे. नाम. वीसस्थानकतप नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानक नाम, प्रा., गद्य, आदि: अरिहंत १ सिद्ध २ पवयण ३; अंति: सुयनाण १९ तित्थठांण २०, (वि. अंत में ९९ देव भेद का उल्लेख दिया गया है.) १०८९३८. आराधनासूत्र, संपूर्ण, वि. १६७२, कार्तिक कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. बेनातटपुर, प्रले. पंन्या. जससोम (गुरु पा. हर्षसोम, तपागच्छ); गुपि. पा. हर्षसोम (गुरु उपा. सोमनिर्मल); पठ.मु. हर्षविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आरा०सू., जैदे., (२६४११, ११४२७). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भवइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. १०८९३९. कल्पसूत्र का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११६-११५(१ से ११५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., __ जैदे., (२५.५४११, १४४४७). कल्पसूत्र-व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भगवान महावीर के उपसर्ग वर्णन से तपवर्णन तक है.) १०८९४७. (#) गरोलीपल्ली विचार-अंगस्पर्शन, संपूर्ण, वि. १८१५, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३८). पल्ली विचार, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हीरकलस० कह्यो एण पर उपगार, प्रतिपूर्ण. १०८९५०. सामायक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४८). १. पे. नाम. सामायक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक व्रत शुद्ध; अंति: सामायक सुज्ञान रे, गाथा-१४. २. पे. नाम, भो आमंत्रणे सिद्धिसूत्र विवरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ भो आमंत्रणे सिद्धसूत्र विवरण, सं., गद्य, आदि: ननु भो आमंत्रणे सिद्धि; अंति: स्फुरिष्यति इत्यलम्. ३. पे. नाम. रघुवंश मंगलाचरण श्लोक सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. रघुवंश-हिस्सा प्रथम श्लोक, क. कालिदास, सं., पद्य, आदि: वागर्थाविव संपृक्तौ; अंति: वंदे पार्वतीपरमेश्वरौ. रघवंश-हिस्सा प्रथम श्लोक की टीका, सं., गद्य, आदि: अस्यार्थो वाच्य कथनांतरं; अंति: चांचल्यान्नघर्षितमस्माभि. ४. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वृक्षं तिष्टति कानने; अंति: हे वृक्ष किं पश्यसि, (वि. विभक्ति ___ गर्भित.) १०८९५२. (#) दोषपृच्छा व हीरविजयसूरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३५-४०). १. पे. नाम. दोषपृच्छा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. लग्नदोषावली, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मेष लग्ने क्षेत्रपाल; अंति: तिल होम कीजै समाधि थाय. २. पे. नाम. हीरविजयसूरि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनमुंसार; अंति: होजो मुझ आणंद, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०८९५५. शारदा स्तोत्र व सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४७, माघ कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. बडोद, प्रले. मु. हमीरविजय (गुरु मु. माणिक्यविजय): गुपि. मु. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०.५, ९४३४). १. पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. दानसूरि, सं., पद्य, आदि संपूर्णशीतद्युति, अंतिः यस्या निसर्गः फलम्, श्लोक -९२. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र सह संक्षिप्त टीका, पृ. १आ- ४आ, संपूर्ण त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि ऐंद्रस्यैव शरासनस्य अति यस्मान्मयापि ध्रुवम् श्लोक-२१. त्रिपुराभवानी स्तोत्र ज्ञानदीपिका टीका, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य वि. १३७९, आदि सर्व्वशं पुंडरीक, अंति (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८९५७. (+#) कालिककुमार गुणवर्णन पद व संग्रामवर्णन पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११, १५४४६). " १. पे. नाम. कालिककुमार गुणवर्णन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., सं., पद्य, आदिः उच्चै सूर इति हि मनोहर इस अति: कालिककुमार० सरस्वती स्वास, श्लोक ८. २. पे. नाम. संग्रामवर्णन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथाक्रम का उल्लेख न होने से गिनकर गाथा लिखी गयी है. मा.गु., सं., पद्य, आदि: मादल बाज्या जड़ ढक वाजी; अति पड्या ऊठइ धा धाइ एक पूठि गाथा १०. १०८९६२ (+) पक्खि पडिक्कमणसत्तरी, संपूर्ण, वि. १६७२, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. धर्मरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६x११, १३X३७-४०). आवश्यकसप्तति, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: देविंदविंदवंदिअपयपउमं; अंति: तिजुअं परेसि संबोहणत्थं च गाथा ७२. " १०८९६७ प्रत्याख्यान व जीवगर्भस्वरूप कुलक, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२६.५x११, १६५४-६५). " १. पे. नाम. प्रत्याख्यान कुलक, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं सिद्ध; अंति: तम्हा उवावासमिच्छंत्ति, गाथा-२५. २. पे. नाम. जीवगर्भस्वरूप कुलक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीर किंचि सरूवं; अंति: उक्कोसेणिं चउवीसंवत्सराई, गाथा- १९. १०८९६८ चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६४११, १८४५०-५३). चतुर्विंशतिजिन स्तुति, आ. धर्मघोषसूरि, सं. पद्य वि. १४वी आदि जय वृषभजिनाभिष्ट्रयसे; अंतिः इत्यादि कृधुरंगी लोक-२८. , १०८९७०. (+) लुद्धानरा सह टबार्थ व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६×१०,५, ७X४० ). १. पे. नाम लुद्धारा सह टबार्थ, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: धम्मं मिलेवंति सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-ट -टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नर धन मेलवानइ तत्पर; अंति: धर्मनि सेवीनइ सुखनि पांमि, ( पठ. मु. अखा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य ) २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. पद क्रमशः १ है. क. बनारसीदास, पहि., पद्य, आदि भेद विग्यान भयो जिन कै; अति: करजोरि बनारसी वंदन, पद- १. ३. पे. नाम. साधुस्तुति सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. पद क्रमशः २ है. जै.. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि ग्यान्न को उजागर; अंतिः नमस्कार कर्यो है, पद-१ " ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पू. २आ, संपूर्ण, पे.वि. पद क्रमशः ३ है. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्म, आदि जैन करे न पक्ष विवाद घरे, अंति: अनंत ग्यान सुधारस चाखे, पद-१. १०८९७८ सूर्यदेवजीरो सलोको व औपदेशिक दुहा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जै, (२५.५४११, १२x२६). For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०९ १. पे. नाम. सूर्यदेवजीरो सलोको, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८६१ कृष्ण, ५, ले.स्थल. सीरोही नगर, प्रले. पं. क्षमाविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. सूरजदेव सलोको, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंशारदा गुणपती; अंति: ऋषभ० होज्यो दोलतदाया, गाथा-२७. २.पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंडित सरसी गोठडी मुज न; अंति: जे करे सोमे एक न दीठ, गाथा-२. १०८९७९ (+#) मौनएकादशी व पर्युषणापर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३०). १.पे. नाम. मौनएकादशी स्तति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. अहिमननगर, प्रले. ग. लक्ष्मीविजय (गुरु पं. कमलविजय गणि, तपागच्छ); गुपि.पं. कमलविजय गणि (गुरु ग. दयाविजय पंडित, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. मौनएकादशीपर्व स्तुति, म. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिजिणंद श्रीपति आगलि; अंति: रत्नविमल० बोलइ संघ जयकारी, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणापर्व स्तति, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुषण पुण्ये; अंति: अमरनइ निसदिन करो वधाइ जी, गाथा-४. १०८९८३. (+#) नाभेय स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. हर्षवल्लभ गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १३४३२-३६). आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलं पणमीय देव; अंति: विजयतिलक निरंजणो, गाथा-२१. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-अवचरि, सं., गद्य, आदिः (१)श्रीविजयतिलकमहोपाध्याय, (२)पहिलं० पूर्वं विमलाचलं; अंति: स पक्षे कविनाम निष्कलंक. १०८९८५ (+) वीरथूई अज्झयण व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. चतुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सकडा., संशोधित., दे., (२६४१०.५, १३४३१). १. पे. नाम. वीरथूई अज्झयण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति: देवाहिव आगमिस्संति, गाथा-२९. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: मोखपहीसा छडीसगभूयं, गाथा-३. १०८९९१ लीलावती ज्योतिष का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १५४४७). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-२ गाथा-८ तक लिखा है.) १०९००० (#) नमस्कार महामंत्र सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. डाही, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४७). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवइ मंगलं, पद-९. नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरु नमस्कार अरिहंत; अंति: जीव मोक्ष पद पामई. १०९००४. (+) विधिपंचविंशतिका व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:विधि२५सी., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४४०). For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. विधिपंचविंशतिका सह टबार्थ, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण, वि. १७५०, ले.स्थल. विरावल, प्रले. मु. हरजी ऋषि (गुरु मु. मनोहरजी ऋषि); गुपि. मु. मनोहरजी ऋषि (गुरु मु. दीपाजी ऋषि); मु. दीपाजी ऋषि (गुरु मु. इंदराजजी ऋषि); मु. इंदराजजी ऋषि; अन्य. मु. मुकुंदजी ऋषि (गुरु मु. हरजी ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम. विधिपंचविंशतिका, म. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदिः यदकुलांबरचंद्रक नेम; अंति: मा पठतीह सुनिश्चय, श्लोक-२६. विधिपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: य० यादवना कुलरूपीया; अंति: निश्चय पामे ज्ञान. २.पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जरादंड प्रहारेण कटी भग्नो; अंति: जममरणे उवथ विभोयणं भूया, गाथा-१५. १०९००६ (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १३४४७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: सिरिसंति __सूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. १०९००७. सरस्वती अष्टक व पंचांगलीदेवी मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४०). १.पे. नाम. सरस्वतिअष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमति देवता भारती; अंति: मेधामावहंति सततमिदं, श्लोक-९. २. पे. नाम. पंचांगलि मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचांगुलीदेवी मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐपंचांगुली पर सर२ परसर; अंति: ॐ ठः ठः ठः स्वाहा, (वि. पद्मावतीदेवी यन्त्र सहित.) १०९००८. शारदा स्तुति-प्रथमश्लोक, संपूर्ण, वि. १९३७, माघ कृष्ण, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, ४४२०). शारदादेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अविरलशब्दमहोघा प्रक्षालित; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०९०१० (+#) महावीरजिन स्तवन व तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १३४५०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-राजनगरमंडण, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुगुण सनेही रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) २. पे. नाम, तीर्थमाला स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके रविशशि; अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. १०९०१७. पाशाकेवली-भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. हर्षचंद्र; पठ. सा. हर्षसिद्धि, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १०४३४-५०). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ॐ नमो भगवति, (२)१११ सोभगसवण जे काम मंडिसि; अंति: मांहि कार्यसिद्धि होसी. १०९०२२ (+) जंबूद्वीपपरिधि विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १९४४८). जंबुद्विपपरिधि विचार, प्रा., गद्य, आदि: विक्खंभवग्रदह गुण मूलं; अंति: पंचाशदत्तराणि १४६८८५०. १०९०२३. (+) चंद्रसूर्यसंख्या विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७०७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:विचारपत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १९४५५). १. पे. नाम. चंद्रसूर्यसंख्या विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रसूर्यसंख्या विचार-विविध द्वीपसमुद्रे, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप जो० २; अंति: जो०७३२३०५२९ सूर्यचंद्र. २. पे. नाम, मेरुपरिधिमान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: मेरोश्चतुसृषुदिक्ष पंचास; अंति: तथा पांडु केममि. For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १११ ३. पे. नाम. नदी परिवार विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ___गंगादि नदी परिवार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गंगा नदी परिवार १४०००; अंति: भणीयमिण पुष्कर वहिगामिणी. ४. पे. नाम. ५ सम्यक्त्व नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ खयोसमकित; अंति: ५ स्वास्वादन समकित. ५. पे. नाम. मेरु १० दशा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: पांडुकवनं सोमनसवनात्; अंति: जन्म महोत्सवेस्थोप्पंते. १०९०२६. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. भणजी मेदाजी; पठ. आ. भागचंद्र; अन्य. सा. वागाजी; सा. पदमाजी; सा. सांपाजी; सा. मनजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३१७, जैदे., (२५४१०.५, ९४३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. १०९०२८. (+#) पूर्वांगादि विचार, द्रव्य परीक्षा व गण विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६-१९७५७-६२). १. पे. नाम. द्रव्य परीक्षा, पृ. १अ, संपूर्ण. भूमिगत द्रव्य परीक्षा, सं., पद्य, आदि: वर्गं वर्णं स्वरं चैव; अंति: मध्य हस्तमात्रो ज्ञेयं, श्लोक-९, (वि. यंत्र सहित.) २. पे. नाम. खंजरीट प्रथमदर्शन फल, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: मेषलग्ने प्रथम दृष्टः; अंतिः सुखं हानेरभाव सौभाग्यं च, श्लोक-१२. ३. पे. नाम. गृहकोकिला विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. पल्लीपतन विचार, सं., पद्य, आदि: पल्ली भुजेपसव्ये तु मस्तक; अंति: सर्वत्र भूमौ भयं, श्लोक-८. ४. पे. नाम. माथरीवल्लभीवाचनायां पूर्वांगादि वर्षसंख्या प्रमाण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. माथरीवल्लभीवाचनागत पूर्वांगादि वर्षसंख्याप्रमाण विचार, सं., गद्य, आदि: माथुरवाचनायां यथा; अंति: अग्रे चत्वारिंशं शून्यशतं. ५. पे. नाम. गण विचारणा, पृ. १आ, संपूर्ण. छंदगण विचार, सं., गद्य, आदि: मोभूमिस्त्रि गुरुः शुभं; अंति: चिराय फलं करोति. १०९०३२ (#) प्रज्ञापनासूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२५-२२४(१ से २२४)=१, प्र.वि. हुंडी:प्रज्ञापना., कुल ग्रं. ६८६८, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४५५). प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: जिनवचन सद्बोधम्, पद-३६, ग्रं. १६०००, (पू.वि. पद-३६ सूत्र-६२१ का पाठांश 'पूर्व निवर्तिताभि' से है.) १०९०३३ (+#) नारचंद्रस्य द्वितीयं प्रकीर्णकं, संपूर्ण, वि. १६१९, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३, प्रले. वा. देवसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: परिचयरुचिरावासराः संभवंति, प्रतिपूर्ण. १०९०३५ (+) पार्श्वपद्मावती छंद, सरस्वतीदेवी मंत्र व औषधादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-५(१ से ३,५,७)=३, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, ७४३३). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी जाप मंत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण. __ सं., गद्य, आदि: ॐ अर्हन्मुखकमलवासिनी; अंति: वद वद वाग्वादिनी नमः, (वि. संस्कृतभाषाबद्ध विधि सहित.) २. पे. नाम. नैषध चरित्र-सर्ग १४ श्लोक ८५ सारस्वतचिंतामणीमंत्रगर्भित, पृ. ४अ, संपूर्ण. नैषध चरित्र, क. श्रीहर्ष, सं., पद्य, ई. ११वी, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. माहात्म्य सहित.) ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थ; अंति: माघे संति त्रयो गुणा, श्लोक-१. ४. पे. नाम, औषधमंत्रादि संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं कमलोकमलो; अंति: उपसमे श्री:०मंगलं वर्तते. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन-कलिकुंड पद्मावतीदेवी छंद, पृ. ४आ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु. हेम, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीकलिकुंडतुंडः; अंति: हेम० पूजै सुखकारणी, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से ६ अपूर्ण तक नहीं है.) ६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में विधि लिखी हुई है. सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं तं नमह; अंति: (१)श्री इय नाउ सरह भगवंतं, (२)क्लीं कलिकुंडस्वामिने नमः, श्लोक-४, (वि. विधि सहित.) ७. पे. नाम. औषध+संग्रह, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अग्नि प्रदान अपूर्ण से तांबाखुरगुडपानी प्रयोग अपूर्ण तक है.) १०९०४०. पार्श्वजिन १० गणधर व महावीरजिन ११ गणधर आराधनाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, २३४१६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन १० गणधर आराधनविधि, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. वडेचउटे, पठ. सा. गंगाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीसुभ स्वामि गणधराय नमः; अंति: श्रीविजयस्वामी गणधरायन्म. २. पे. नाम. महावीरजिन ११ गणधर आराधनाविधि, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति गणधराय; अंति: श्रीप्रभास गणधराय नम. १०९०४५. जंगमस्थावर जीव सवैया व ६३ शलाकापुरुष विचार गाथा सह नामयंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १६४३९). १. पे. नाम. जंगमस्थावर जीव सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. बनारसी, पुहि., पद्य, आदि: जे ते जगवासी जीव थावर जंग; अंति: वानारसी०सज्योगी गुनथान हे, सवैया-२. २. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. बनारसी, पुहि., पद्य, आदि: जगत के प्राणी० गुमानी एसो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सवैया-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम.६३ शलाकापुरुष विचार गाथा सह नामयंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उत्तमा शरीर सट्ठि जीवा; अंति: त्रिसहिसिलाकपुरिसाणं, गाथा-१. ६३ शलाकापुरुष विचार गाथा-नामयंत्र, मा.ग., को., आदि: (-); अंति: (-). १०९०४८. (+) भावट्विंशिका व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. १८८४, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. परमसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४.५४११.५, १२४२८). १. पे. नाम. भावषट्त्रिंशिका, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, वि. १८६५, आदि: क्रिया अशुद्धता कछु; अंति: मुनिज्ञानसार मतिमंद, गाथा-३९. २.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रस्ताविक-दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: जो कछु लिक्षो ललाट मै; अंति: एक निरधन दो दो धका म मार, गाथा-२. १०९०५३. (+) दोषावली व बारह दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७४४५). १. पे. नाम. दोसावली, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, रविवार, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. पं. दीपसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, आदि: १११ शरीरे वेदना छे दोस; अंति: जात्र कीधा सुख होसी. २. पे. नाम. बारह दोष, पृ. २अ, संपूर्ण. १२ राशि दोष, सं., पद्य, आदि: मेषे च देव्या दोष वृषे; अंति: देवी शाकनी दोष मीने० दोषक, श्लोक-२. १०९०५५. रंभाशुक संवाद व नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १६४४२). १. पे. नाम. रंभाशुक संवाद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org रंभाशुकसंवाद, सं., पद्य, आदि: मृगा मृगे संगमनु व्रजति अति त्वमेव देव मम देव देव, श्लोक-१६. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवा१ अजीवार पुन्नं३ अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) १०९०५८ (+) संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२५.५४११, १४४३८). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निसीहि निसीहि निसीहि अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा- १७. १०९०५९ पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अंत के "विद्याशाला" लिखा है. जैवे. (२५४११.५, ८४१९-२२). , पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु. सं., प+ग, आदि इच्छामि खमासमणो बंदिठे अति (-). (पू.वि. श्रावक देवसी प्रतिक्रमण तक है.) १०९०६० (+१) लोकनालिद्वात्रिंशिकासूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, मांधातृपुर, प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६११, २०x३१-५१). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि जिणदंसणं विणा जं; अंति: धम्मकिति० इह भिसं गाया-३२. 3 लोकनालिद्वात्रिंशिका व्याख्या, सं., गद्य, आदि जिनदर्शन विना जन्मम; अंतिः शं अत्यर्थं न भ्रमत. १०९०६२ (+) दोषाकेवली, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. हुंडी दोषावली संशोधित, जैदे. (२५५११.५, " " १५-१८x४५-५०). दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, आदि: १११ शरीर वातादि कष्ट अति लीजै देवी दोष भैरव पूजीये. , १०९०६३ (+) द्रुमपुष्फिकाध्ययन, एकासणा, सिद्धाणबुद्धाणं सूत्र व गुरुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, कुल पे. ४. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x११.५ ११५३०). , १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र - द्रुमपुष्पिका अध्ययन १, पृ. ५अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि प्रा. पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्कि अति (-), प्रतिपूर्ण, 13 २. पे. नाम. एकासणा-बेआसणानुं पच्चक्खाण, पृ. ५अ, संपूर्ण. आवश्यक सूत्र-हिस्सा एकासणा बेआसणानुं पञ्चक्खाण, प्रा., गद्य, आदि सूरे उगे नमोकार सहीयं अंतिः हिवति यागारेणं बोसिरामि ३. पे. नाम. सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि सिद्धाणं बुद्धाणं पारगयाण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ३ तक लिखा है.) ४. पे नाम. गुरुवंदना, पृ. ५आ, संपूर्ण प्रा., पद्य, आदि: तित्थयरे भगवंते; अंति: गणहर वंसं वायगवंस पवयणं च, गाथा- ३. ११३ १०९०६४ (+) दोषाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११.५, १४X१९-२५). दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, आदि: १११ शरीरे वेदना छे दोस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंक-३२४ तक लिखा है.) १०९०६७. (+#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-वचन विभक्ति संकेत- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५X११, १३X४०). For Private and Personal Use Only भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि अति (-). (पू.वि. श्लोक-३५ अपूर्ण तक है.) १०९०६८ (+) ऋषभदेव स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., " (२६x११.५, १२X३८-४२). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु, मेरुविजय, सं., पद्य, आदि ऋषभदेवमहं महिमालयं अंतिः शिवरमा वरमानवमानिताः, श्लोक-२८. Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०९०७१. (+) ११ गणधर संदेहभंजक वेदपद सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. गणेश व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. १६७० में लिखी प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १८४४२-४६). ११ गणधर संदेहभंजक वेदपद, सं., गद्य, आदिः स वै अयमात्मा ज्ञानमय; अंति: अतो मोक्षो वस्तु स्वरूप. ११ गणधर संदेहभंजक वेदपद-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आत्मनास्ति च पक्षे विज्ञा; अंति: तत्संभवो मोक्षाश्च. १०९०७८. पल्लीपतन विचार, छींक विचार व चरणसित्तरी करणसित्तरी के ७० बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. पंन्या. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३७-४०). १. पे. नाम. पल्लीपतन विचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मस्तके उपरे पडे तो दुख; अंति: मस्तक भागै राज्य लाभ. २. पे. नाम. छींक विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पूर्व छिका भवेत्मृत्यु; अंति: हानिमृत्युदरवावहाः, श्लोक-४. ३.पे. नाम. चरणसित्तरी करणसित्तरी के ७० बोल, प. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत मे कोष्टक दिया गया है. चरणसित्तरी के ७० व करणसित्तरी के ७०बोल, मा.गु., गद्य, आदि: ५ महाव्रत १० जतिधर्म; अंति: करणसित्तरीना जाणवा. १०९०८० (+) न्यायसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १४४४३). न्यायसंग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: स्वं रूपं शब्दस्याशब्द; अंति: शास्त्रप्रवृत्तिः, सूत्र-५७. १०९०८५ (2) १४ गुणस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. लाली आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:०ढाणे० स्तव., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १२४३८). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पय नमी; अंतिः कर्मसागर सीसइ० आत्मा, गाथा-१७. १०९०८६. (+) सिद्ध स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. भाणजी ऋषि; पठ. श्रावि. तेजकुवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, ७४४५). सिद्धपद स्तवन, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जगतभूषण विगतदूषण; अंति: पूज्या देव निरंजनं, गाथा-१५, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० चौद राजलोकन भू०; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) १०९०९७. लंघनपथ्य निर्णय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हुंडी:लं०पथ्य., जैदे., (२५.५४११, १३४४०-४५). लंघनपथ्य निर्णय, म. दयातिलक शिष्य, सं., पद्य, वि. १७९२, आदि: श्रीसर्वज्ञं नमस्कृत्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२८ अपूर्ण तक लिखा है.) १०९१०५. २५ क्रियाविचार व स्थानांगसूत्र का चयनित सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. रुपचंद्र ऋषि; पठ. मु. पेमजी; अन्य. मु. पुजाजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:किरीया., जैदे., (२६४११.५, ६४२७). १. पे. नाम. २५ क्रिया भेद बोल संग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २५ क्रिया भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: काईया किरीया १ अहिगरणिया; अंति: इरियावही किरीया २५. २५ क्रिया भेद बोल संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: काय शरीर अजयआइ प्रवर्त्ता; अंति: पणइ पिण लागइ केवली नइ तेइ. २. पे. नाम. स्थानांगसूत्र के चयनित सूत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र-चयनित सूत्र संग्रह, प्रा., गद्य, आदि: सत्तहिं ठाणेहिं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठांश 'मणो सुहया वइ सुहया' तक लिखा है.) । १०९१०६. ४२ गोचरी दोष व भवनदेवी स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११, २४१९). १. पे. नाम. ४२ दोष आहारना सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, प्रले. पंडित. दुर्लभराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि : आहाकमु १ देसिय २; अंति: (१)रसहेउं दव्व संजोगा, (२)भुंजइ नरूव रस हेतु, गाथा-७. ४२ गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सोल १६ उद्गम दोष दोष; अंति: ते संयोजना जांणवा... २. पे. नाम. छिंक थोय, पृ. ३आ, संपूर्ण. १२x३०). १. पे नाम. आवक कर्तव्य लोक सह वालाववोध, पू. १अ, संपूर्ण. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि सर्वं यक्षांबिकाद्या ये अति ते तं द्रुतं द्रावयंतु व श्लोक-१. ३. पे. नाम. भवनदेवी स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ज्ञानादिगुणयुतानां अंतिः शिवं सदा सर्वसाधुनाम्, श्लोक १. १०९११३. आवक कर्तव्य लोक व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. द्विपाठ., जैदे., (२५.५४११, २. पे नाम. पार्श्वजिन पद. पू. १अ संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्यान श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि जिनेंद्रपूजा गुरू; अंतिः जन्मवृक्षसफलान्नमूनि, गाधा-१, संपूर्ण. व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: अरिहंत भगवंत असरण सरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'जे जिनवर पूजतं एकण पुन्ये' पाठांश तक लिखा है.) पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: निरमल होय भज ले प्रभु; अंति: क्षमाकल्याण उदारा, गाथा-५. १०९११६. सर्वज्ञस्यमहिम्न स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पु. २, जैदे. (२६४११, १४५४९). "" सर्वज्ञमहिम्न स्तोत्र- समस्या गर्भित, पं. चंद्रराजगणि, सं., पद्य, आदि: महिम्न पारंते परम विदुषो अतिः स्तुत्वा समस्यास्तवात्, श्लोक-३२. १०९११० (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, सुमतिजिन स्तुति व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., ( २६ ११, १५X४५). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: आदिनाथं महादेवं; अंति: दुरापा न महोदयश्री, श्लोक-२४. २. पे नाम. सुमतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि: सुमतिनाथमनंतसुखालयं जनित; अंति: प्रतिदिन संघस्य सद्धर्मिण, श्लोक - ४. ३. पे नाम औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. ११५ सं., पद्म, आदि ध्यानं दुःखलु कर्तव्यं अंति: पंडितैस्तु विशेषत. १०९११८. (+) जीवविचारसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, अम्हदपुर, प्रले. ग. विद्याचंद्र, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, १४४३४-४०). " जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी आदि भुवण पईवं वीरं नमुऊण; अंतिः रूद्धाओ सूअ • समुद्धाओ, गाथा-५१. १०९१२४. विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६ (१ से ६ ) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५X११, ११३७). विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-१५ गाथा - ३ पूर्ण से स्तवन-१७ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only १०९१२६. गुरु स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैये. (२५x१०.५, १२४३८). " " प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., पद्य, आदि गोयम सोहम जंबू पभवो; अति हवई मंगल पंचमं हवइ मंगलं, गाथा-१४. १०९१३२. (+) सरस्वत्यष्टक, संपूर्ण, वि. १९१७, आश्विन कृष्ण, १ अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. चाणोद, प्रले. मु. गंभीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतीनाथजी प्रसादात्., संशोधित., दे., ( २४.५X११.५, १३४३३). सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: प्राक् त्वं देवि जगज्जन; अंति: वश्य मे सरस्वती, श्लोक ९. Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०९१३८. (+) साधारणजिन स्तुति सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. वीरचंद्र; पठ. मु. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३६). साधारणजिन स्तुति-नैवेद्यगर्भित, सं., पद्य, आदि: घात्या घेवर लापसीमरमते; अंति: श्लोके रसोयि प्रभो, श्लोक-१. साधारणजिन स्तुति-नैवेद्यगर्भित-टीका, सं., गद्य, आदि: अयीति को० हे प्रभो; अंति: जानंतीति वृत्तार्थः. १०९१४०. (+) स्थानांगसूत्र स्थान-१ से ४ सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १८४६२). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थान-४ उद्देशक-४ सूत्र-३४४ तक लिखा है.) स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०९१४२. (+) आदिजिन स्तोत्र महावीरजिन स्तवन व इंद्रकवच, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १२४४५). १. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: महेंद्रादिदेवावलीसेवितां; अंति: तत्पादयोर्निर्मलम्, श्लोक-९. २. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, आ. विजयदानसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसिद्धिदं सत्पथ सार्ध; अंति: सोमविमलक्रमसेवकस्य, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. इंद्र कवच, पृ. १आ, संपूर्ण. इंद्र कवच-आत्मरक्षा, सं., पद्य, आदि: ॐनमोअरिहंताणं क्रौं हृदय; अंति: पढम हवइ मंगलं. १०९१४६. विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे.८, ले.स्थल. सेरपुरा, पठ. सा. राजबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४३०). १. पे. नाम, बादरजीव पर्याप्तापर्याप्त विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: बादर मध्ये जीव पर्याप्ता; अंति: तेणइ प्रमाणइ होइ. २. पे. नाम. चउमासामांहि वीहार करवो कल्पइ, पृ. १आ, संपूर्ण. चातुर्मास में ५ प्रकार से साधविहार कल्प, मा.गु., गद्य, आदिः (१)तथा पांचे प्रकारे चउमासाम, (२)दकाल वास्तइ१ सूत्र भणवा; अंति: पाणीनइ कोपइ ५. ३. पे. नाम. मनुष्यगति से देवगति में उत्पत्ती विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तथा मनुष्य देवता थाई; अंति: कोडनो आउखानो धणी मरी थाइ. ४. पे. नाम. संसारीजीव सूता जागता विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. संसारीजीव सूता जागता विचार-पन्नवणा, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमाही जीव सूता घणा; अंति: सूताथी जागता जीव घणा. ५. पे. नाम. यूगलीक जीवोत्पत्ती विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. युगलिक जीवोत्पत्ति विचार-जंबूद्वीपपन्नती, मा.गु., गद्य, आदि: यूगलीयानो छ मासनो आउ थाक; अंति: छ मास जीवइ पछइ देवता थाइ. ६. पे. नाम. स्पर्शेद्रिय एवं कालबल विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तथा फरसेंद्री ते सं अने; अंति: कायबल ते वेयवारूप छइ. ७. पे. नाम. २४ जिन प्रथमदेशना पर्षदासंख्या मान, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: महावीरदेवनइ आठ परषदा; अंति: तीर्थंकरनइ १२ परषदा मली. ८. पे. नाम. परमाणुमान गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११७ प्रा.,सं., पद्य, आदि: पूढवाईयासत्ता सव्वरूक्खा; अंति: चउहा पंचेंदिया जीवा, गाथा-१. १०९१४७. पंचमहाव्रत सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. सुखा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४४६). १.पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरतरुनी परे दोहिलो; अंति: विजयदेव चितप्राणीया. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, प. १आ, संपूर्ण. आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी सुणो श्रीजिनवर केरी; अंति: दया विहुणो धर्म कीसो, गाथा-७. १०९१५५. साधुवंदना चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११, ९४३७). साधुवंदना, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक है.) १०९१५८. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२-४१(१ से ४१)=१, जैदे., (२६४१०.५, १९४७०). __कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: विस इक्खुरस एवड अंतर होइ, (पू.वि. सिद्धिबुद्धिरा उलाणी प्रबंध अपूर्ण से है.) १०९१६१. (+) जैन पारिभाषिक संख्यावाचकशब्द व धर्ममूल श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १७-२०४६५). १.पे. नाम. जैन पारिभाषिक संख्यावाचकशब्द काव्य सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जैन पारिभाषिक संख्यावाचकशब्द, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्वानि९ व्रत५ धर्म१०; अंति: ३४ ज्ञेयाः सुधीभिस्सदा. जैन पारिभाषिक संख्यावाचकशब्द-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तत्वानि नवतत्व जीव१; अंति: अतिशय जाणिवा. २.पे. नाम. धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट, सं., पद्य, आदि: (१)त्रैकाल्यं द्रव्यषड्कं, (२)त्रैकाल्यं३ द्रव्यषङक६; अंति: स च वैशुद्धदृष्टि, __ श्लोक-१. धर्ममल श्लोक-जिनोपदिष्ट-अवचरि, सं., गद्य, आदि: त्रैलोक्यं त्रिकाल३ अतीत१; अंति: भाविज्ज तहत्ति जिण वृत्तं. १०९१६३. नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:नारचंद्र., जैदे., (२५.५४११, १३४५४). ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)श्रीअर्हतंजिनं नत्वा, (२)प्रणम्य भारती सम्यक्; ____ अंति: जाणवी ए लग्न स्पष्ट जाणवु. १०९१६५. (+) नेमिजिन चौमासो, सरस्वती स्तोत्र व पार्श्वजिन पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२, ९-१२४३१-३५). १.पे. नाम. सरस्वति स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, ब्रह्मा, सं., पद्य, आदि: रविरूद्रपितामह विष्णुनुतं; अंति: अभिचष्टे पुनः पुनः, श्लोक-८. २. पे. नाम. नेमिजिन चौमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः श्रावण मास सुहामणो रे; अंति: घेर घेर मंगलचार सौनि, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-फलोधीमंडन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, श्राव. दानमल्ल, मा.गु., पद्य, आदि: पास पीयारो लागो पीयारो; अंति: भवजल पार उतारो रे जीइरी, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १९२१, आदि: चांदी रे बंगले वीराजे; अंति: (अपठनीय), गाथा-४, (वि. अंतिम पंक्तिवाला भाग खंडित १०९१७१. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रावण कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. मोरसीमनगर, जैदे., (२५४११.५, १२४९-४१). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामी; अंति: ६६ धर्मसरिः. For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०९१७३. सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९३६, आश्विन अधिकमास कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५४११.५, १४४४२-५०). सुभाषित श्लोक संग्रह *, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आदौ रूपविनाशिनी कृसकरी; अंति: नीच कर्माणि समाचरंति, श्लोक-३७. १०९१८२. महत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १६x२०-३६). प्रतिष्ठादीक्षादि विधिमुहर्त संग्रह, सं., प+ग., आदि: गृहारंभे मुहुर्त छईं; अंति: पुन पुष्य अनु र चं० गु बु. १०९१९० (+#) २० स्थानक तपविधि, सज्झाय व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १६x४२). १.पे. नाम. २० स्थानक तपविधि, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनी भक्ति त्रिकाल; अंति: कीजे नमो तित्थस्स. २.पे. नाम. वीस स्थानिक स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप सज्झाय, म. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचरणे करी प्रणाम; अंति: वीस श्रीसंघ आराधो निसदीस, गाथा-७. ३. पे. नाम, बोल संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा- वांदवू; अंति: (-), (पू.वि. राजप्रश्नीयसूत्रगा सूर्याभदेव दृष्यन्तोल्लेख तक है.) १०९१९१. (+) मूत्रपरीक्षा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४२५). १. पे. नाम, मूत्रपरीक्षा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पश्चात् रजनीयामे घटि; अंति: निरामे च ज्वरो भवेत्, श्लोक-२८. २.पे. नाम, मूत्रपरीक्षा, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वजिनमानस्य; अंति: ज्ञेयं उषधं तस्य कारयेत्, श्लोक-२५. १०९१९२. (+) पार्श्वजिन स्तव सटीक व पार्श्वजिन स्तवन सावचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५.५४११.५, १४४३८). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तव सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तोत्र, उपा. पद्मराज, सं., पद्य, आदि: समानो समानोऽसमानो; अंति: तनो वितनोतु सातं, श्लोक-६. पार्श्वजिनलघुस्तोत्र-टीका, उपा. पद्मराज, सं., गद्य, आदि: समानो गमामा इत्यादि; अंति: इति स्वनाम सूचितम्. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तव सह अवचूर्णि, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-एकस्वरवर्णवृत्त, ग. पद्मराज, सं., पद्य, आदि: अमल कमल समतमकमल घन; अंति: पद्मराज० मनोहारिणी, श्लोक-७. पार्श्वजिन स्तवन-एकस्वरवर्णवृत्त-अवचूर्णि, उपा. पद्मराज, सं., गद्य, आदि: अमल० अत्र सर्वाण्यपि; अंति: सज्जनानां शेष व्यक्तं. १०९१९३. (+) ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:नारचंद्र पत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२४.५४११, १५४४२-४५). ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वारोपरि राहुवास अधिकार से गर्भज्ञान तक है.) १०९१९५ (+#) सारस्वत प्रक्रिया, सिद्धांतचंद्रिका व उत्तमादि विवरण श्लोक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १५-२०४४३-५०). १. पे. नाम. सारस्वत व्याकरण का धातुपाठ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण का धातुपाठ, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य० बालधीव्युत्पत्ति; अंति: उदात्ता स्वरितेतः. २. पे. नाम. सिद्धांतचंद्रिका की टीका, पृ. ४आ, संपूर्ण. सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका का हिस्सा मंगलाचरण श्लोक की अर्थलेश टीका, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य प्रणयात्पूर्वे; अंति: कुर्वे इत्यर्थः. ३. पे. नाम. उत्तमादि पद विवरण श्लोक सह टीका, पृ. ४आ, संपूर्ण. उत्तमादि पद विवरण श्लोक, सं., पद्य, आदि: उत्तमैरिक्ष्यसेनत्वं; अंति: वेदार्था आपदंसद्धचोहरिः. उत्तमादि पद विवरण श्लोक-टीका, सं., गद्य, आदि: आउत्तमः उत्तम इतीपदर्थे; अंति: अडितत्वासंधिर्न भवति. १०९१९६. (+#) शुकनावली, संपूर्ण, वि. १८७५, माघ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. ताजपुर, प्र.वि. धर्मनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १५४५२-५८). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ॐ नमो भगवति, (२)१११ एह सुकन दूज का चंद्र; अंति: लागै धमैं जय पापो क्षय. १०९२०० (4) साढेसातसौ गोत ओसवाल का, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक-१४३=१., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ३२४१५). ७५० ओसवालगोत्र कवित्त, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: सरस्वती देओ सुमति गुण मुझ; अंति: जैमल० मिल मीठा कर मोडीयै, पद-१. १०९२०२. नवपद जाप गणणु, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४१२, १३४४८). नवपद जाप गणण, मा.ग., गद्य, आदि: स्वर्णसिंहासणस्थिताय०१; अंति: (१)उत्सर्ग तपसे नमः, (२)१३००० गुणनो नवपदांरो छै. १०९२०३. (+) महाविदेहक्षेत्र महपत्तीपात्रा विचार व सभाषितानि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १८४४८-६१). १.पे. नाम. महाविदेहक्षेत्र मुंहपत्तीपात्रा विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. आहारादिमान गाथा-भरतादिक्षेत्रे, प्रा., पद्य, आदि: बत्तीसं कवलाहारो; अंति: एयं मुहणतय पमाणं, गाथा-३. २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सिझंति जत्तिआ खलु इहय; अंति: यस्य तनयसत्वादि नाथश्रिये, गाथा-४९. १०९२०६. (+) अनानुपूर्वी विधि व कवित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १७४४३). १. पे. नाम, अनानुपूर्वी विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अनानुपूर्वी विधिसहित, मा.गु., गद्य, आदि: त्रसकाय १२३४५६; अंति: मिल्या ३६२८८० कोठा हुआ. २. पे. नाम, अनानुपूर्वी कवित्त, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं परमातमा कर पद; अंति: चतुर्विचक्षण इस विधि लही. १०९२०९ (+) एकाक्षर नाममाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १३४४०). एकाक्षर नाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: विश्वाभिधानकोशानि; अंति: माला प्राक्सूरिसंमता, श्लोक-२०. १०९२२२. (+) हितशिक्षा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. जसरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११.५, १३४३७-३९). योगविलास मालोपधान क्रिया, सं., पद्य, आदि: श्रीवीरं प्रणिपत्य; अंति: द्विश्वेशितुः स्याछत्रं, श्लोक-३०. १०९२२३. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र- अध्ययन-६ वीरथुई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:पुच्छिसुणं, संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ६x६६). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०९२२६. (+#) भाव प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४७, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. विशलनगर, प्रले. दुर्लभराम रायचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ६४३५). भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: आणंदभरिय नयणो आणंद; अंति: विजयविमल० पुव्वगंथाओ, गाथा-३०, संपूर्ण.. भाव प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: आनंदइ करि भरिय कहतां; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कहीं-कहीं टबार्थ लिखा गया है.) १०९२२७. (#) वैद्यवल्लभ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १९४६४). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. समुद्देश-३ श्लोक-८ से समुद्देश-४ श्लोक-१८ तक है., वि. ग्रंथगत अध्यायों को विलास व समुद्देश के नाम से भी जाना जाता है.) वैद्यवल्लभ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०९२२९ (#) विद्वद्गोष्ठी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३९). विद्वद्गोष्ठी, पंडित. सधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदिः (१)श्रीभोजराज सभायां, (२)येषां न विद्या न तपो; अंति: नैव च किदृशाः स्युः, श्लोक-२१. । १०९२३३. साधुप्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. १८५१, भाद्रपद शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जावालनगर, प्रले. ग. नायकविजय; पठ. श्राव. किसना (गुरु ग. नायकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पगामसज्झाय, जैदे., (२५४१२, १३४२५). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. १०९२३४. (+#) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १७६८, श्रावण कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१,३)=३, ले.स्थल. पत्तनपुर, प्रले. पं. महिमासागर (गुरु ग. खेमकलश, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११,१६x४८-५२). पाशाकेवली, म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१८४, (पृ.वि. श्लोक-३७ अपूर्ण से ७९अपूर्ण तक व १२० अपूर्ण से है.) १०९२३७. कर्पूरचक्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४१२, १४४३८-४३). कर्पूरचक्र, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय पयारवंदे तिलुक; अंति: रूद्दषकरियसमिदसं, गाथा-३१, (वि. यंत्र सहित.) कर्पूरचक्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. बालावबोध कहीं-कहीं है.) १०९२३८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १६ ब्रह्मचर्यसमाधि स्थान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्ययनसूत्र, संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १४४४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०९२३९. (+) अध्यात्मपद स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. बालोतरा, प्रले. पं. कुनणमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, ३-४४२६). औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठि सवारें सामायक किधुं; अंति: थइए शिवपद भोगी जी, गाथा-४. औपदेशिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहीमाप्रभसुरीने नमीने; अंति: एक थल अध्यात्मोपयोगी छै. १०९२४०. नवग्रह स्तोत्र व प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:नवग्रह, दे., (२५.५४११.५, १३४२८). १. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिस्तवः, श्लोक-११. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उद्यमे नास्ति दालिद्रं; अंति: सद्य प्रांणहरांणि षट्, श्लोक-८. For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १२१ १०९२४३ (#) आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. श्राव. मगनलाल शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में मगनलाल शाह आदि द्वारा प्राप्त की हुई प्रतों की सूची दी गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ९४३०). आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत नमो भगवंत __ नमो; अंति: ज्ञानविमलसूरीश नमो, गाथा-८. १०९२४६. पंचसंग्रह-४ गतिजीव उदयबंधादि गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १६४५०). पंचसंग्रह-४ गतिजीव उदयबंधादि गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि२ वीस२० सोलस१६ भंग; अंति: पणनउइ सहसा पय संखा, गाथा-२२. १०९२४७. (#) वासुपूज्यजिन पूजाष्टक व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४२३, २७४४६). १.पे. नाम, वासुपूज्यजिन पूजाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.ग.,सं., पद्य, आदि: वरोशील शीतलपणु सत्य आप; अंति: नित्य अमृततणां शर्म आपदं, श्लोक-८. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन-पूजागर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवरसिरि वसुपूज्य; अंति: शिवपद हेतु भवोदधि तीर छे, गाथा-२८. १०९२४८. चतुर्विंशतिजिनानां जमकबंध स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४८.५, ९४३८). २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र युगादि; अंति: पूज्यतमा मम मंगलं, श्लोक-९. १०९२४९ (#) हितशिक्षाषट्त्रिंशिका व साधुभेद विचार श्लोक सह साधुआचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४५७). १. पे. नाम. हितशिक्षाट्त्रिंशिका, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. योगविलास मालोपधान क्रिया, सं., पद्य, आदि: श्रीवीरं प्रणिपत्य; अंति: द्विश्वेशितुः स्याच्छुभम्, श्लोक-३६. २. पे. नाम. साधु अविहित आचार, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. साधु अविहित आचार-संदर्भ पाठ संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ये सिद्धांतनिषिद्धवेष; अंति: कहा ओढइ मलिन पटी, गाथा-१८. १०९२५०. आत्मशिक्षा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११.५, १४४४०). औपदेशिक सज्झाय-आत्मशिक्षा, मु. पासचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मानुष्यजन्म दुर्लभ हे; अंति: जे नर भणे तसु मन धरम सनेह, गाथा-५९. १०९२५१. बृहत्शांति स्तवन व नमस्कारमहामंत्र पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२५४११, १४४३०-३७). १. पे. नाम, बृहत्शांति स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. २. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१ अपूर्ण तक लिखा है.) १०९२५२ (+) ज्वालामालिनी स्तोत्र व पंचांगुलीदेवी मंत्र, संपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. वडनगर,मालवदेश, प्रले. पं. शिवचंद (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १०४३१-३८). १.पे. नाम. ज्वालामालिनी स्तोत्र, प. १अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:ज्वालादेविस्तोत्र. ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: प्रयोगमहं करिष्ये. २. पे. नाम, पंचागुलीदेवी मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पंचांगुलीमंत्र. पंचांगुलीदेवी मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ पंचागुली २ परिसर; अंति: कुरु कुरु ठः ठः स्वाहा. For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०९२५५ (+) स्त्री व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८७७, श्रावण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्रले. मु. रुपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३५). १. पे. नाम. स्त्री शिक्षा, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय-शील, म. कमदचंद, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: कुमुदचंद्र कहे समजि लिओ, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्री शिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम शिखामण कही; __अंति: ओघ पामें उदयरतन इम उच्चरे, गाथा-९. १०९२५७. उवसग्गहरं यंत्रपूजन विधि व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ८४४६). १. पे. नाम. उवसग्गहरं यंत्रपूजन विधि, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. उवसग्गहरं यंत्र पूजन विधि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पार्श्वनाथजिनबिंब स्थापनाधिकार से है व अष्टदल अधिकार अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: बवलीयारी पापडी से.१ गुंदी; अंति: नीब की लकडी सुं दीजै पतति. १०९२६१ (+) वीसस्थानकतप गणना, प्रास्ताविक गाथा संग्रह व साधु उपकरण गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६४४०). १. पे. नाम. वीसस्थानकतप गणना, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं २००० गणीइं; अंति: २० स्थानके लोगस्स ५. २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अठेवगयामुखो बंभोसुहमोअसत; अंति: चक्री दुग केसवो चक्री, गाथा-२. ३. पे. नाम, साधु उपकरण गाथा, पृ.१आ, संपूर्ण. साधुसाध्वी उपकरण, प्रा., पद्य, आदि: पत्तं पत्ताबंधो पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखी है) १०९२६७. (+) जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार यंत्र, वास्तुमंडल देवस्थान श्लोक व गृहद्वार अष्टमंगल स्थापन श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, २२४३७). १.पे. नाम. जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. वास्तमंडल देवस्थान श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: चतुःषष्टापदैर्वास्तू पुरै; अंति: द्वात्रिंशद्वयकोष्टसथाः, श्लोक-१४, (वि. यंत्र सहित.) ३. पे. नाम. गृहद्वार अष्टमंगल स्थापन श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: नंद्याआवर्त मलिंदे शाला; अंति: कार्ज द्वारैश्चतुरभिरपि, श्लोक-४. १०९२६८. (+) भगवती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. जिनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४२). सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकलसिद्धिदातारं; अंति: होउ सया संघकल्लाणम्, गाथा-४४. १०९२७२. पार्श्वनाथ विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३३-३९). पार्श्वजिन स्तवन-विचारगर्भित, आ. जिनचंद्रसरि, मा.ग., पद्य, आदि: पणमिय पास जिणंद; अंति: जिणचंद० संघह मणवंछिय, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १२३ १०९२७७. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३८). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. १०९२७८. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३६, भाद्रपद कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. हुंडी:भक्तामर, प्र.ले.श्लो. (१५०३) पोथी प्यारी प्राणथी, दे., (२५४११, १५४३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. १०९२७९ (+#) संविग्नसाधुनियम कुलक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. वि.१४९७ वैसाख सुद ९मी कर्कराग्राम में लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १८४५०). संविज्ञसाधुयोग्यनियमकुलक, आ. सोमसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: भुवणिक्कपइवसमं वीरं; अंति: सहला सिवसुहफलं देइ, गाथा-४४. १०९२८८.(+) लघुजातक सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:लघुजातकवृत्त., लघुजातिक., पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ६x४७-५२). लघुजातक, वराहमिहिर, सं., पद्य, आदि: यस्योदयास्तसमये; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-३ श्लोक-८ तक है.) लघुजातक-अवचूरि, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, वि. १७१५, आदि: यस्येति यस्य सूर्य; अंति: (-). १०९२९५. सिद्धनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४३०). सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम पृच्छा करे; अंति: कहे सुख अथाग हो गौतम, गाथा-१६. १०९२९७. (+) पच्चक्खाण व मुंहपत्ति पडिलेहण के ५० बोल, संपूर्ण, वि. १९३६, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. सा. रूपश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १६४३२-४९). १. पे. नाम, पत्याख्यानसूत्र, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए स अंति: तस्स मिछामि दक्कडं, (वि. विधि सहित.) २. पे. नाम. मुंहपत्ति पडिलेहण बोल, पृ. ४आ, संपूर्ण. मुहपत्ति पडिलेहण ५० बोल, रा., गद्य, आदि: सूत्र अरथ साचो सरद हु; अंति: ३ वेपासानी ४ एवं १० टली. १०९३०१ (#) जलयात्रा व कलशस्थापन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३७-४३). १.पे. नाम, जलयात्रा विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: चामरध्वज रंगमादिगज सभग; अंति: दीयते वादित्राणि वाद्यंते. २. पे. नाम. कलशस्थापन विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं भूः स्वाहा ॐ अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., क्षेत्रपाल मंत्र तक लिखा है.) १०९३०५ (#) पाशाकेवली ढालन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १३४४७). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ॐ नमो भगवति, (२)श्री सर्वज्ञं नमस्कृत्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंक-१२३ अपूर्ण तक लिखा है.) १०९३०६. सरस्वतीज्ञान पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, १२४३८-३९). सरस्वती पूजा, सं., पद्य, आदि: जनममृत्युजराक्षयकारण; अंति: वितरामहे समयसार कल्पद्रवे, श्लोक-१०. १०९३०८.(+) ७२ स्वप्न विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, १०४२५). ७२ स्वप्न विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वपनशास्त्रे हे राजेंद्र; अंति: इम सुपनाना विचार घणा छै. १०९३०९ बिंबप्रवेश विधि व वासक्षेप मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. नित्यवर्द्धन (गुरु पं. क्षेमवर्द्धन); गुपि. पं. क्षेमवर्द्धन (गुरु पं. हीरवर्द्धन), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १६४५३). १.पे. नाम. बिंबप्रवेश विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम उतम सुभ मुहूर्त जोइ; अंति: शुक्र सन्मुखो वर्जनीयः. For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२४ www.kobatirth.org २. पे नाम. वासक्षेप मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, सं., गद्य, आदिः ॐ नमो शांतये० ॐ नमो खीरा, अंति: सोमणसे महूमधुरे० स्वाहा. १०९३१९. पार्श्वनाथ स्तोत्र, क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति व सामायिक पौषध महिमा गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३. जैवे. (२५.५x१२, ११४३०). २. पे नाम क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या; अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " १. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र. पू. १अ १आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: नमो देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणीपार्श्वनाथम्, श्लोक - ७. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. सामायिक पौषध महिमा गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. पौषध पारने की विधि, प्रा., पद्य, आदि सामाइय पोसह संठीयस्स अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा - १ तक लिखी है.) १०९३२४. सुभाषित श्लोक व अंगफुरकण विचार, संपूर्ण वि. १९०९, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. मु. पुण्यविजय पठ. पंन्या. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५४११.५, १२४३४-४३) " १. पे नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण, सुभाषित श्लोक संग्रह*, मा.गु. सं., पद्य, आदि: अनुलोमो विनीतश्च; अंति: देवार्चनं सद्गुरुसेवनं च श्लोक-६. २. पे. नाम. अंगफुरकण विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अंगस्फुरण चौपाई, पं. हेमाणंद, मा.गु., पद्य, वि. १६३९, आदि: श्रीगुरु पाय न नित; अंति: आगम वाण जिसी गुरू भणी, गाथा- २३. १०९३२६. (*) श्रीपाल रास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. ४८-४७ (१ से ४७) = १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, ७४४७). ३. पे नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ. ८५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: प्रथमं भारती नाम अंति (-), (पू.वि. श्लोक ६ अपूर्ण तक है.) " श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-४ ढाल १० गाथा ४ अपूर्ण से ढाल ११ दोहा १ अपूर्ण तक है.) श्रीपाल रास-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: (-). १०९३२७. (+) पंचपरमेष्टि महामंत्र स्तोत्र, सरस्वतीदेवी स्तोत्र व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८५-८४ (१ से ८४)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, १२X३०). १. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिमहामंत्र स्तोत्र, पृ. ८५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि (-); अति: तणी सेवा देज्यो नित गाथा-१३, (पू.वि. अंतिम गाथा-१३ अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ८५अ - ८५आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजती श्रीमतीदेवता भारती; अंति: मेधामाह्वयति विभवेन, श्लोक - ९. १०९३३१ (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९२८, चैत्र शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अंत में शकुन अंकों की सूचि है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५X१२, १३X२७). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ॐ नमो भगवती, (२) १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: महारीषी कृ For Private and Personal Use Only महाज्ञान मया. १०९३३४ (१) २४ जिन धारणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२५.५४११.५, ५X१०). २४ नाम, जिन राशि, नक्षत्र, योनि, गण, वर्ग, हंसक विवरण कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १२५ १०९३३८. (+) अरिष्टाध्याय, वासुपूज्य विद्या व मृत्युज्ञाननिर्णय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले. स्थल. योधनयर, प्रले. पं. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : मृत्युचिकित्सा., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैवे. (२५४१२.५, २४-२५४२८-४२). १. पे. नाम. अरिष्टाध्याय, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. मु. कुमारसेन, सं., पद्य, आदि शरीरं प्रथमं लिंग अंतिः कुमारसेन मुनिना० संयोजितं श्लोक-३८. २. पे नाम द्वादशाक्षर विधि, पू. २अ २आ, संपूर्ण, वासुपूज्य मंत्र-जाप विधि, सं., गद्य, आदि: कुंकुमकर्पूरादि सुगंध; अंति: विनश्यति नात्र संदेहः. ३. पे नाम. विद्यानुशासने यंत्र व्याकरणे मृत्युज्ञान निर्णय, पृ. २आ, संपूर्ण. आर्षविद्यानुशासन, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 १०९३४४ (+) स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६१२.५, १२x१४). १. पे नाम. शनिवर स्तोत्र, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, मु. केसरकीर्ति, सं., पद्य, आदि सुखदमर्च्चकृतं च शनिचर, अति: विफलं वांछित फलं श्लोक-१७. २. पे. नाम. वेंकटाष्टक, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, वि. १८६१ ज्येष्ठ शुक्ल, ४. व्यंकटाष्टक, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: मुखे चारु हास्यं करे; अंति: मुकंद मुरारे भजे वेंकटेशं, गाथा-९. ३. पे. नाम. गंगाष्टक, पृ. २आ-३अ संपूर्ण क्र. वाल्मीकि, सं., पद्य, आदि: मातः शैलसुता सपत्निवसुधा; अंति: पतति नैव पुनर्भवाब्धौ श्लोक ९. ४. पे. नाम. भवानी अष्टक, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण, वि. १८६१, ज्येष्ठ शुक्ल, ९. गयी है, जैदे., (२५X१२.५, १३३५). १. पे. नाम भडलीपुराण, पू. १अ ४आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि न तातो न माता न बंधुर्न; अंतिः त्राहिमान् यो नमस्ते, श्लोक ९. १०९३५१. (+#) सासुबहु कीरत, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५.५x११, १२x२९) औपदेशिक सज्झाय सासुवहु मु. देवाब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि सासु कठै बहुसूं बाता सुणी; अंतिः नरनार साची वात कहु छुजी, गाथा- १७. १०९३५२. (A) भडलीपुराण व प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ४. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल मा.गु., गद्य, आदि तित्थयरा गणहारी सुर अंतिः कल्याण मंगलीकमाला संपजे. २. पे. नाम. उठमणारो श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सारद मात पसाव करि; अंति: जाणजो एक रुपीयै जोय, गाथा - १११. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तक, सं., पद्य, आदि: चैत गया वैशाख ज होसी अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक ६ अपूर्ण तक लिखा है.) १०९३५३. (*) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५X१२.५, ९X३६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल -५ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १०९३६१. (A) तीर्थंकर चक्रवर्ती रिद्धि वर्णन व उठमणारो लोक संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. कृष्णचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : उठामणश्लो., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५X१२.५, १६×३८). १. पे नाम तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only व्याख्यान पीठिका, मा.गु. सं., प+ग, आदि चलं लक्ष्मी चला प्राणा; अंति कल्याण मंगलिकमाला संपजे. १०९३७४ (+) नेमिजिन चोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६.५X१२.५, १३×३५). Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमि निरंजन बाल; अंति: मुनि गावे लावणी मनने कोडे, ढाल-४, गाथा - १६. " , " १०९३७७ (४) एकादशी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१२.५, ९४२७). एकादशीतिथि सज्झाय, उपा, उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि आज महारे एकादसी रे अति उदयरतन० लीला लेसी, गाथा - १२. १०९३७८. (+) प्रभंजनानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. जामनगर, प्रले. जयगोपाल मारवाड़ी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सज्झायमाला., संशोधित., दे., ( २६.५X१२, १३X३५-४० ). प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि गिरि वैताद्यने उपरे; अंति: मंगललील सदाई रे, ढाल- ३, गाथा ४९. 7 १०९३८९ (+) रोहिणीपंचमीज्ञान सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्रले. मोहनदास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२.५, ११४३३) " " ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्म, आदि श्रीवासुपूज्य जिणेसर वयण अंति: संघ सकल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक- २आ पर कृति का अंतिम भाग पुनः लिखा है.) १०९३९८ (+) प्रतापसिंघ चंद्रायणा चतुर्दशरत्नगर्भितसमुद्रवद्धचित्र, संपूर्ण वि. १८५२ माघ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित, जैवे. (२५.५X१२.५, ५x१०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. יי प्रतापसिंघ चंद्रावणा चतुर्दशरत्नगर्भितसमुद्रवद्धचित्र, पुहि., पद्य, वि. १८५२, आदि सारद श्रीधर समर के इष्ट अति " रत्न की सिंधुबंध श्रीकार. मु. कांति 3 २. पे. नाम चोध स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण १०९४०४. (#) रोहीणीतप व चोथ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६४१४.५, १०४३७). मा.गु., पद्य, आदि शिवसुखदायक नायक ए; अंतिः कांति० जिनभक्ति राजें जी, गाथा-४. चतुर्थीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सरवारथ सिद्धथी चवी; अंति: नय धरीने नेह निहालतो, गाथा- ४. १०९४०५. (+) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. आ. रामचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत, दे., (२५.५X१४.५, ११X१९). शांतिजिन स्तवन, मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: श्रीशांति प्रभूजी शांति; अंतिः शांति प्रभुजीने ध्यावैजी, गाथा-४. १०९४०६ (४) स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैये. (२६४१४.५, " १४X३४). १. पे नाम. जिनगुणप्रशस्ति बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि व्याख्या नमी धुर मंगलाजी; अति शुद्ध श्रद्धाइ करी सांभले. २. पे. नाम. पजुसण थुई, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंति: मानविजय० देवी सीधइजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-मगसीतीर्थ मंडन, पुहिं., पद्य, आदि पूरो मेरी आस हो मगसीपास, अंति: गुणगावे आयो मोख्य बीलास. ४. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पू. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-मगसीतीर्थ मंडन, मु. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: मगसीरो सांमी प्यारो लागे; अंति: लाल कहे० त्रिभुवन साब छाजे, गाथा-४. १०९४०७. मुद्रा विधि व शतोषधी नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६X१४, १५X४०). १. पे नाम. मुद्रा विधि, पू. १अ २अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १२७ सं., पद्य, आदि: वाम हस्तोपरि दक्षिण; अंति: प्रवेशनेन श्रृंखलामुद्रा, श्लोक-३६. २.पे. नाम. शतोषधी नाम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. शतौषधि नाम, मा.ग., गद्य, आदि: मोरशिखा सहदेवी तुलसी; अंति: कांची मुलं यव सर्षप. १०९४०८. (#) पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१४, १३४३१). पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: भवि तुम्हने सेवे रे, गाथा-९. १०९४०९ (+) जीवरासी आलोयण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रावण शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. बूलाखी गणपतराम क्षत्री; पठ. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जीवआ०, जीव०आ०., संशोधित., दे., (२६४१४, १२४२८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० छुतइ तत्काल, गाथा-३३. १०९४१०. आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१४, १४४३०). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेजा; अंति: रे देजो परमानंद रे, गाथा-२०. १०९४११. (+) पार्श्वजिन स्तुति, नववाड व ऋतुवंती असज्झाय निवारक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४०, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१४, १८४४२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कुशल, सं., पद्य, आदि: ३ ३ क धपमप धुधम; अंति: शं दिशतु शासन देवता, श्लोक-४. २. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. ९ वाड सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नववाड मुनिसर मनधरो; अंति: भावे ते साधुस सनेह रे, गाथा-११, (वि. अंतिम १२वी गाथा विनयविजय रचित किसी अन्य कृति का भाग है.) ३. पे. नाम. ओपटीनी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ऋतवंती असज्झायनिवारण सज्झाय, म. ऋषभविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सरसती माता आदि नमीने; अंति: रीषभविजय० वरस्यो सिद्धि, गाथा-११. १०९४१२. थुलीभद्रमुनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४७, भाद्रपद कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. दयानंद विजय; पठ. मु. मोहनलाल; अन्य. श्राव. जयचंद; श्राव. वजेचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२६४१४, १२४३५). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथुलिभद्र मुनिगुण; अंति: ऋषभ० तेने होजो वंदणा जो, गाथा-१७. १०९४१३. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१३.५, ११४२५). १.पे. नाम, पारसनाथजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनचंद्र, पहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल विराज गाज; अंति: जिनचंद० फली सहु आस, गाथा-९. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुद्धे मन आणि आसता; अंति: समयसुंदर कहे सुख भरपुर, गाथा-६. ३. पे. नाम. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुजै रिषभ समोसर्या; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-१६. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सहिया सेजगिरि; अंति: स्तवीओ मननइ उलासइ, गाथा-६. ५. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन-छिपियापुरमंडण, मु. विद्यारत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभ जिणेसर राजीयो; अंति: विद्या० निज मन उमही, गाथा-९. १०९४१४. (+#) आत्मानी आत्मता, संपूर्ण, वि. १९२८, कार्तिक शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्र.वि. श्रीमहावीरस्वामी प्रसादात् जैनशालानीज विद्यार्थी पठनार्थे., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१४, १६४३०). ६५ गुण-आत्मा के, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी अनंत; अंति: करवानो उद्यम करवू. १०९४१५. मूर्ख व परनारीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१३.५, १३४३९). १. पे. नाम. मूर्ख सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, म. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: मायाने वश खोटं बोले; अंति: नीतलाभ कहे अनुभव लईये रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. परनारीनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चतुर सुजाण परनारीसुं; अंति: रूपविजय० जैननु धन साचु छे, गाथा-१०. १०९४१६. चौवीसी पांच बोल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:चौ०., दे., (२५४१३.५, ९४२५). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयलजिणेसर पणमुं पाय; अंति: तास शिस पभणे आणंद, गाथा-३०. १०९४१७. अबोला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४३, कार्तिक शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. स्वरूपचंद जेठा गांधी; पठ. श्रावि. दोलीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुवीधीनाथस्वामी प्रसादे, दे., (२५.५४१३.५, १५४३४). साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव जीवन जिनराज अबोला; अंति: जय० अनंतगुणी गुणवंता, गाथा-११. १०९४१८. समाधिपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१३.५, १५४३०). समाधिपच्चीसी, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: अपूरव जीव जिनधर्म; अंति: ऋषि रायचंद० तणो ___अभ्यास रे, गाथा-२५. १०९४१९ (+) षट् आरास्वरूप महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५८, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह; अन्य. श्रावि. समरतबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१४, १०४३७). महावीरजिन स्तवन-छट्टाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.ग., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाए नमी; अंति: देवीदास० संघ मंगलकरो, ढाल-५, गाथा-६४. १०९४२० (#) सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १०४३०). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: चालो सखी सिद्धाचल; अंति: शीवरूप लखमी सुख मेवा, गाथा-१०. १०९४२१. (#) सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१४, १३४३८-४०). १.पे. नाम. पांचमाआरानी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. ओपा साकरचंद धामी, प्र.ले.पु. सामान्य. __ पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: ते करी भाषे वयण रसाल, गाथा-२१. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-असार संसार, पं. सोमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आ संसार असार छे रे; अंति: सोमविजय० जे नर ने तार रे, गाथा-८. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-तमाकत्याग, म. आणंद, मा.ग., पद्य, आदि: प्रीतम सती वीनवे ने अंति: आणंद० कोडि कल्याण मेरे, गाथा-१८. ४. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १२९ मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचलमंडण सांमी रे जग; अंति: एम हरष० सिद्धाचल गुण गाया, गाथा-१२. १०९४२२. महावीरजिन पंचकल्याणक चौढालियो व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२४४१४, १५४३६). १.पे. नाम, महावीरजिन पंचकल्याणक चौढालियु स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. महावीरजिन पंचकल्याणक चोढालियं, म. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: प्रेमे प्रणमं सरसति; अंति: नित्यलाभ वंछित लहे, ढाल-४, गाथा-५८. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर साहिब मेरा; अंति: ऋषभ० ग्रह्यानी लाज हो, गाथा-११. १०९४२३. (+) गुरुगुण गुहली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१३.५, १४४३७). गुरुगुण गहुंली, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रोता रे सुणो गुरु गुणना; अंति: शांतिविजय०मुक्ति तणा मेवा, गाथा-१३. १०९४२४. (+) १४ पूर्व तप खमासमण दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१४, ११४३२). १४ पूर्व तप खमासमण दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: पूजो प्रेम विशुद्धथी धुरि; अंति: घट उदयथी लहिये शिवसुख सार, गाथा-१५. १०९४२५ (+) साध्वी समाधिमरण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१३, १०४३७). समाधिमरण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वस्त्र साधविने; अंति: सांति केवी लोगस केवो. १०९४२६. (#) पूजा अधिकार श्लोक व मुहपती पडीलेहण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१३.५, १३४३०). १.पे. नाम, पूजा अधिकार श्लोक, पृ.१अ, संपूर्ण. नवअंगपूजा दोहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भर संपत्य पत्रना; अंति: कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा-१०. २.पे. नाम. मुहपती पडीलेहण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पडिलेहण कुलक-हिस्सा गाथा १-५, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: सुत्तत्थत्तदीठी; अंति: मणमक्कड निजतणत्थ जीणाबिती, गाथा-५. १०९४२७. (#) जिन स्तुति व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१४, १३४२९). १.पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापदगिर जात्रा करणकुं; अंति: नरनारी गुण गावै, गाथा-८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी प्रभु पासजी पासजी; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) १०९४२८. (#) लुंपकलोपकतपगच्छजयोत्पत्ति रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पाटण, प्रले. पं. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, १५४३५-४५). ढंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरसती चरण नमी करी; अंति: अविचल पद लीला रे, ढाल-७. १०९४२९. जीव, अजीव भेद व वीस विहरमान नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१४, १३४३६). १. पे. नाम. जीवना ५६३ भेद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ५६३ जीवभेद विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: देवता का १९८ भेद मनुष्य; अंति: भेद हुवै हां गुरुजी हुवै. २. पे. नाम. अजीवना ५६० भेद, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६० अजीव भेद विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: रुपी अजीव का पांचसे ५३०; अंति: इतने करी अजीवरा भेद कहे. ३. पे. नाम. वीस विहरमान नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसीमंधरजी श्रीजुगंधरजी; अंति: देवजसाजी श्रीअजीतविर्ज. १०९४३० (+) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८९४, पौष कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:मौनएकाद०., मौनएका०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४१४, १६x४६). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: (१)अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन, (२)अन्यदा नेमिरीशाने; अंति: हरमीरपुरसंस्थितै, श्लोक-११९. १०९४३१. पंचमीतप स्तवन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२६४१३.५, १४४३०). १. पे. नाम. पंचमीतपविषये गुणमंजरीवरदत्तकथाप्रसंगगर्भित वीरविभो स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७९३, आदि: सूत सिद्धारथ भपनो; अंति: सकल भवि मंगल करे, ढाल-६, गाथा-६८. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पंन्या. कीर्तिविजय , मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सुण दयानिधि तुज पदपं; अंति: रूपकीर्ति० जीवविजे, गाथा-७. १०९४३३. सीमंधरजिन व बाहजिन गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१३.५, ११४२७). १. पे. नाम. सीमंधरजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुष्कलवइ विजये जयो; अंति: यशोविजय०भयभंजन भगवंत, गाथा-७. २. पे. नाम. बाहुजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. बाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साहिब बाहु जिणेसर; अंति: जस कहे सुख अनंत हो, गाथा-५. १०९४३४. पंचम्यादि सर्वतप विधि, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हंडी:तपस्या०., दे., (२६४१३.५, ११४३३-३९). तपविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पंचमी तप अष्टमि तप; अंति: प्रतिक्रमण कराय देना. १०९४३५. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१३.५, १२४३५). सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, आदि: धन ते मुनीवरा जे चाले; अंति: ते पहले गुण ठाणे, गाथा-२३. १०९४३६. महावीरजिन गहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय गणि; अन्य. पं. देव, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६४१३, १२४४४). महावीरजिन गहुँली, मु. अमृतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे जिनवर वचन; अंति: अमरित सिव निसान रे, गाथा-९. १०९४३७. (+) दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन ९, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. सा. उमंगश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:दशवैका० नव०अ., संशोधित., दे., (२४.५४१३, १३४३३-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०९४३८ (+#) दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९३१, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. श्राव. रुपैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दंडकसू., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३, १३४२७-३३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिया, गाथा-४०. १०९४३९. सिद्धचक्र यंत्रोद्धार मूलमंत्र पूजनविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१३, १५-१७४३५-३७). सिद्धचक्र यंत्रोद्धार मूलमंत्र पूजनविधि, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अरिहंताय नमः; अंति: (१)सनेश्वराय० राहु स्वाहा ९, (२)पूजा करनी तिसकी विधि लखीह. For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १०९४४०. जिन पूजाष्टक, संपूर्ण, वि. १९९३, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. पद्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में कूर्म व जिनबिंबपीठ यन्त्र है., दे., (२५.५४१३.५, १५४३९). आचारोपदेश-अष्टप्रकारीपूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: तीर्थोदकैधुतमलैरमल; अंति: सुवासमचिराल्लसते शिवेपि, श्लोक-९. १०९४४१. स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, दे., (२५४१३.५, ११४३९-४३). १.पे. नाम. वीसस्थानक नाम चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: पहेले पद अरिहंत नमु; अंति: नमता होए सुखखाण, गाथा-५. २. पे. नाम. २० स्थानिक काउसग्ग चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप चैत्यवंदन-कायोत्सर्गसंख्यागर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: चोवीस पन्नर पीस्तालसनो; अंति: पद्मने नमि निज कारिज साधे, गाथा-५. ३. पे. नाम, वीसस्थानक स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे प्रणमुं; अंति: कांति० सोहामणुं रे लो, गाथा-८. ४. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. वा. विनयविजय, सं., पद्य, आदि: श्रीमरुदेव्यास्तनुजन्मानं; अंति: नाभेस्तनुजमुदाज्ञं रे, श्लोक-५, (वि. अंत में अंतिम प्रशस्ति गाथा नहीं लिखी है.) ५. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __महावीरजिन स्तवन, म. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जिणेसर साहिब मेरा; अंति: बाह्य ग्रह्यानी लाज, गाथा-११. १०९४४२. (+) शांतिजिन स्तवन व आदिजिन पारj, संपूर्ण, वि. १९४२, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पक्ष-कृष्ण तिथि द्वादशी भी उल्लिखित है., संशोधित., दे., (२६४१३.५, १२४३४-३६). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो संतिजिणंद सोभागी; अंति: इम उदयरत्ननी वाणी, गाथा-१०. २. पे. नाम. आदिजिन पारj, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आहे जस घरे जावुजी वोरवा; अंति: सूर बोले जय जयकार, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गिनकर लिखा है.) १०९४४३. संथारादि विधि संग्रह व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१३, १६४३७-४१). १. पे. नाम. समय संथारा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम जगै प्रमार्जा डाभ; अंति: वोसिरामि युं पचखे. २. पे. नाम, मुहपत्ती विधि, पृ. १आ, संपूर्ण... महपत्ति पडिलेहण ५० बोल, रा., गद्य, आदि: मुहपत्ती पडिलेहण २५; अंतिः कषाय ए १० कम होय. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ग. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान जिनवर तणाज; अंति: वल्लभ गिण कही, गाथा-१५. ४. पे. नाम. छिंक विल्लायी दोष निवारण विधी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. छींक निवारण विधि, मा.ग., प+ग., आदि: देवसीराई पाखी चउमासी; अंति: छीक वरस तांइ विसेष तप करण. १०९४४४. (+) आत्मभावना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१३.५, १३४३५). धर्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि: धन हो प्रभु संसार; अंति: करिने वंदणा होज्यो. १०९४४५ (#) अढार नातरा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१३, १४४३०). १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वेद न सही मानव भव लह्यो; अंति: वधु जिम लीले वरो, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पापा. १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०९४४७. साधुवंदना- ढाल ५, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१३.५, १७४४५). साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०९४४८. मौनएकादशी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. विजीबाई,प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३, १२४३७). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: लालविजय० विघन नीवार, गाथा-४. १०९४४९. मौनएकादशीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, ले.स्थल. लिंबडी, प्रले. श्राव. व्रजलाल ईश्वर परिख, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१४, १२४३२). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: लालविजय० विघन नीवारी, गाथा-४. १०९४५० (+) शक्र स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३, १२४३४). शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते परमात्म; अंति: सिद्धसेनेन लिलेखे संपदादी. १०९४५१. नमिऊण स्तोत्र, संपर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ३, दे., (२५४१३, ८x१९-२३). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: सयल भवणच्चिय चलणो, गाथा-२१. १०९४५२. होलीचातुर्मास व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८८५, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. लेह, प्रले. मु. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. कांतिसागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१३.५, १६-१९४३५-३७). होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: फाल्गुन चतुर्मास काश्चित; अंति: क्षमाकल्याण युग्मम्. १०९४५३. (+) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३, १३४३०). नेमिजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवादेवी सुत सुंदरू; अंति: खुस्यालमुनि गुण गाये, गाथा-७. १०९४५४. नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१३.५, ११४३३). नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरीहंत पद ध्यातो थको; अंति: जस तणी कोइ न कहे अधूरी रे, गाथा-१४. १०९४५५. असज्झाय स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१३, १४४३९). असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी समरी मात केसु; अंति: ज्ञान शीवलछी ते वरे, गाथा-१६. १०९४५६. (+) अध्यात्म गीता, औपदेशिक दोहा व ऋषिमंडन स्तोत्र मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१३.५, १२४३०). १.पे. नाम, अध्यात्म गीता, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीइ विश्वहित जैन; अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४९. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: बहु चतुराई देख के नीफट न; अंति: तेणे वेधीउ दुहो नाम लहंत, गाथा-४. ३. पे. नाम. ऋषिमंडन स्तोत्र मंत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रां ह्री हूं ह्र; अंति: चारित्रेभ्यो ह्रीं नमः. १०९४५७. (+) खेमाछत्रीशी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. श्रावि. लाडकी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१३.५, १३४२८). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरी जीव खेमा गुण आद; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा-३६. १०९४५८. नमिऊण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४१३, ८x२०-२६). For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १३३ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: सयल भुवणच्चिअ चलणो, गाथा-२१. १०९४६०. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन २७, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१३, १०४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०९४६१ (+#) आयंबिलतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, १६४३०). आयंबिलतप सज्झाय, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमुनिचंद्र मुनिसर; अंति: सुरतरू समो आपे सुख सदैव, गाथा-१३. १०९४६२ (+) जीवरास, संपूर्ण, वि. १९५२, चैत्र कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. उदयापुर, प्रले. मु. इश्वरचंद्र (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३, ८४३२). पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: कहै पापथी छुटै ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. १०९४६३. (-#) आदिजिन राज्यस्थापन विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १२४३२). १. पे. नाम. आदिजिन राज्यस्थापना विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रे रीसभदेव भगवानने; अंति: सीखवीने श्रेष्टी नवि करी. २.पे. नाम, ६ दर्शन वर्णन सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अंति: शाब्दिकारे उदर भरण उपाय. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___ मा.गु.,सं., पद्य, आदि: किं दीपतैलं सूत सेवितं; अंति: नीच प्रकृति न मुच्यते, श्लोक-२. ४. पे. नाम. कृष्णजन्म कवित्त-कटिबंध, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जदा अवतरि यदुराज्ये तब; अंति: ऐ त्रिभुवन पालणवाला. १०९४६४. वर्धमानस्वामीनु पारगुं, संपूर्ण, वि. १८९९, माघ शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीसलनगर, प्रले. ग. जीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १७४३४). महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशलाई पुत्र रत्न; अंति: कहे थास्ये लीला लहेर, गाथा-१८. १०९४६५ (+#) थूलभद्ररी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१३, १३४२७). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रितडली न कीजै रे नारी; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-७. १०९४६६. (+) संखेसरापार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. प्रमोदविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१३, १२४२९). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: मुदा प्रसन्नः, गाथा-३२. १०९४६७. २४ जिन च्यवनादि २१ स्थान बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४१३, १५४३०-३५). २४ जिन च्यवनादि २१ स्थान बोल, मा.गु., गद्य, आदि: चवण नगरी पिता माता; अंति: हाथ वअत्तर वरष हेम वरत. १०९४६८. हितोपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१३, १०४३१). औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.ग., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांइ; अंति: लेखें साहेब हाथ, गाथा-११. १०९४६९. श्रावक आचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२.५, १४४३१). For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावक आचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भीन भीन जाण श्रावक जीवन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा है.) १०९४७०. सुगुरु विनती, संपूर्ण, वि. १८७५, चैत्र शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ.१, प्रले. पं. प्रतापविजय (गुरु पं. कांतिविजय); गुपि.पं. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१३, १६४३६). कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी सदा; अंति: तिर्यंच नरग निगोदे जायसी, गाथा-३२. १०९४७१ (+#) कर्मनी सज्झाय व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६९ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. हंसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १६x४६). १.पे. नाम, कर्मनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१८. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आपणी आनंदघन पद येह, गाथा-६. १०९४७२ (#) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:अतीचार., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १७४३०). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरीयावही कही तस उतरी अनथा; अंति: पछे सामायक पारीई पडिकमणा, (वि. संक्षिप्त विधि.) १०९४७३. (+) चित्तौडगढ गजल, संपूर्ण, वि. १८९३, आषाढ़ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. अजिमगंज, अन्य. पं. चिमनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१३, १४४२५). चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहिं., पद्य, वि. १७४८, आदि: गढ चित्तोड हे वंकाक मानु; अंति: तेरीक कीनी गजल पढीयो ठीक, गाथा-५६. १०९४७४. (#) आषातीज का व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४३, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. लक्ष्मणापुर, प्रले. मु. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आखाति.व्या., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१३, १२४३०). अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: श्रेय कल्याण मंगलीक संपजे. १०९४७५. १४ थाननी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१३, ११४२८). १४ समूर्च्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम गुरुना प्रणमु पाय; अंति: सुणे तस लील विलास, गाथा-१३. १०९४७६. (+) संतनाथजीरो तवन, संपूर्ण, वि. १९६५, पौष कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २, प्रले. गट्टलाल भभूतराम व्यास श्रीमाली (पिता भभूतराम व्यास); गुपि. भभूतराम व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संतनाथ., संशोधित., दे., (२६४१३, १०४३५). शांतिजिन स्तवन, मु. सुखलाल, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा जिनजी संतनाथ; अंति: सुखलाल० संतइ संतवर तावे, गाथा-२३. १०९४७७. असिज्झायरी विगत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:असिज्झा०, दे., (२६४१३, १४४२९). ३५ बोल असज्झाय, मा.गु., गद्य, आदि: घुअरि पडतै असिज्झाई; अंति: गाथा-३५. १०९४७८. सीखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१३, १२४३३-३५). उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अंति: शुभवीर० मोहन वेली, गाथा-३६. १०९४७९. वीरजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१३, ११४२५). महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिसलानंदन चंदन शीत; अंति: वीरकहे पछे देजो आसीस, गाथा-११. १०९४८०. सर्वेषां तीर्थंकराणां अंतरकाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४१३, १५४४४). For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: २२ तीर्थंकर श्रीनेमिश्वर; अंति: कल्पसूत्र पुस्तके लिखाणो. १०९४८१ (+) हरियाली सज्झाय संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५६, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,, ले.स्थल. बिलाडा, पठ. मु. फतेचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१३, ५४३४). १. पे. नाम. हरियाली सज्झाय सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहियो पंडित ते कुण नारी; अंति: जस कहि ते सुख लहिस्यो, गाथा-१४, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देखीइं जाणीइं ते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. हरियाली सज्झाय सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसै कावलि भीजइ पाणी; अंति: मुरख कवि देपाल वखाणे, गाथा-६. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबलि क० काया रूपणी; अंति: देपाल हवै नामइ वखाणे छे. १०९४८२. शंखेश्वरपार्श्वनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:स्तवन., दे., (२५.५४१३, ११४३२). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. वीरविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८७८, आदि: नित्य समरूं साहिब सयणां; अंति: शुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा-१३. १०९४८३. (+) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१३, १२४३७). सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारी विनतडी अवधारो; अंति: अगरचंद कहे० पद वंदन भास, गाथा-२१. १०९४८४. (+) नवस्मरण १से २ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:नवकार., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१३, ५४३६). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ कर्म रूपी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०९४८५ (+#) भक्तामर स्तोत्र व दशश्रावक स्तुति, संपूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. लब्धिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भक्तामर., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३.५, १५४३३). १.पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. दशश्रावक स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. १० श्रावक सज्झाय, म.गढमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आनंदै आनंद हवे; अंति: गढमल कहे स्वामीजी आपो सेव, गाथा-५. १०९४८८.(+) २५ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. शिवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१३, १२४४५). २५ बोल थोकडा-जीवगती शरीरादि, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले गति च्यार ४; अंति: सूक्ष्मसंपराय४ यथाख्यात५. १०९४८९ (+) चैत्यवंदनभाष्यना छुटा बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३, १२४२९). चैत्यवंदनभाष्य-छूटक बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: तीन ठेकाणे निसीही २; अंति: सपणे जिन देरा माही वरजधार. १०९४९० (+) गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हंडी:गोडीपार्श्व०., संशोधित., दे., (२६४१२.५, १२४४४-४७). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंति: प्रीतविमल० नाम अखर समरंते, ढाल-५, गाथा-५५. For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०९४९१. (+) लुंपकगण गच्छपतिगुण भास, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ दे., (२५X१३, " "" ११x२७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमृतचंद्रसूरि लुंपकगच्छाधिपति भास, मा.गु., पद्य, आदि सारद मात नमी करी सद्गुरु; अंतिः अधिपती रे प्रतपो कोड वरीश गाथा- १९. १०९४९२. (+) नववाड्या सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३४, ज्येष्ठ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. मांडल, प्रले. श्राव. मोहन डामरसी; अन्य. श्रावि. डोसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नववाडि., संशोधित., दे., (२५.५X१३.५, १३X२५). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: उदयरतन० तेहने भामणेजी, ढाल १०, गाथा ४३. " " १०९४९३. (+) सौभाग्यपंचमी चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, दे.. (२४.५X१३.५, १३X२४-२८). सौभाग्यपंचमी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि परम पंचपरमेष्टीना वंदू, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५० तक है.) १०९४९५ (+) अष्टक व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्रले. आ. रामचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:छूटकर स्तोत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., ( २६.५X१३, १०X२७). १. पे. नाम. महावीराष्टक, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. महावीरजिन अष्टक, मु. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्सुधीरं प्रणिपत्य; अंति: नेत्रसिंह० मम जन्मसारं, श्लोक- ९. २. पे. नाम. शत्यिष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शांतिजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि भक्त्या क्रमाब्जे अति देहि देवेशसमीहितं मे श्लोक ८. ३. पे नाम सर्वजिन मिश्रित स्तोत्र, पृ. २अ ३अ, संपूर्ण २४ जिन स्तोत्र- पंचषष्ठियंत्रगभिंत, मु. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: बंदे धर्मजिनं सदा, अंतिः संग्रंथितः सौख्यदः, लोक-४. ४. पे नाम. नवग्रह शांति स्तोत्र, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. श्लोक-११. ग्रहशांति स्तोत्र - लघु, आ. भद्रवाहस्वामी, सं., पद्य, आदि जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अति भद्रबाहुवाचेदं० श्रुतः, १०९४९६. लघुसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २६१३, १२३५). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २९ अपूर्ण तक लिखा है.) १०९४९७. (+) मागशीर्षशुक्लएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे., " (२६.५X१३, ११X३४). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंति: सोद्यमा समभवन्निति. १०९४९८. (+) सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५४१३, ९४२४-२७). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: प्रक्षालनजलोपमाः, श्लोक-३०. १०९४९९. (+) सकलार्हत्स्तव चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९२९ भाद्रपद शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल नाणानगर, प्रले. पं. सरूपचंद्र प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५X१३.५, ९x१८-२४). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति भावतोहं नमामि श्लोक-३०. १०९५०० (+) आदिजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैये., (२५.५X१३, १३X२३). आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोद रंग धारणी, अंति: (-), (पू. बि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १०९५०१. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ऋ. दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६x१३, १०x२३). For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १३७ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १९४८, आदिः ये तो पारस प्राण आधार रे; अंति: नाथ भगति आधार रे, गाथा-१८. १०९५०३. (+) २४ जिन स्तवन, कवित्त व अरिहंतादि नाम, गुण वर्णनादि बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१३, १६४३९). १. पे. नाम. देव चरित्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदेश्वर सुमरियै प्रथम; अंति: वांचीये चेतन को इह ज्ञान, गाथा-३१. २. पे. नाम. अरिहंतादि नाम, गुण वर्णनादि बोलसंग्रह, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदेस्वर१ संभव३ सुमति५; अंति: देवतत्व गुरुतत्व धर्मतत्व, (वि. बीच में एक दोहा कमलबंध में ३. पे. नाम, २४ जिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन कवित्त, मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: आदजिन संभव सुमति सुपारस; अंति: समझ बूझ अंत आतमरामी है, गाथा-१६, (वि. गाथांक क्रमशः नहीं है.) १०९५०४. सिद्धप्राभूत, संपूर्ण, वि. १९७४, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:सिद्धपाहुडो, दे., (२६४१३, १७४५५). सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: तिहुयणपणए तिहुयणगुणा; अंति: सुयाणुसारेण णेयव्वं, गाथा-१२०, ग्रं. १३५. १०९५०५. आदिजिन स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१९, कार्तिक कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, प्रले. मथुरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ८x२९). आदिजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: सिरिसिद्धचक्कनवपयमहल्लपढ; अंति: जीयपाय तुज्झ नमो, गाथा-१०. आदिजिन स्तव-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र का नवपद; अंति: पानो मे लगावे हे नाथ. १०९५०६. (+#) अष्टापदतीर्थ व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५२, फाल्गुन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वडोदरा, प्रले. म्. प्रहर्षमंदिर; श्राव. निहाला; श्राव. नेतु; पठ. मु. चंद्रभाण (गुरु मु. प्रहर्षमंदिर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२.५, १६४५६). १. पे. नाम, अष्टापदतीर्थ स्तवन सह टिप्पण, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन-षड्भाषामय, अप.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., पद्य, आदि: सानंदमुद्यत्पुलाकेः; अंति: तं सर्वसमृद्धयश्च, श्लोक-११. अष्टापदतीर्थ स्तवन-षड्भाषामय-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: ०महागजेंद्रघटाविनिर्घात; अंति: (-). २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जयतिलक, प्रा., पद्य, आदि: पणमिर सुरवरसेहर विलसिरमणि; अंति: सिवगयमहं संति देहि जगतिलय, गाथा-९. १०९५११ (+#) वैद्यवल्लभ का बालाववोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, १६४२०). वैद्यवल्लभ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वातज्वर चिकित्साविधि अपूर्ण तक है., वि. प्रारंभिक मूल श्लोक मात्र १ से ६ है तथा श्लोक-७ से मात्र बालावबोध है.) १०९५१३. पद्मावतीरानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६९, फाल्गुन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल, वीनातट, प्रले. मु. न्यालचंद ऋषि (गुरु मु. सदाराम ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, १४४४०-४३). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० छुतइ तत्काल, ढाल-३, गाथा-७५. १०९५१४. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४०, आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४१२.५, ८४३०). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति __भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५. १०९५२४ (+#) अभिधानादि व अजिरादि एकाक्षरनाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५५-६२). १. पे. नाम, एकाक्षरीनाममाला, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभिधानादि एकाक्षरी नाममाला, सं., पद्य, आदि अभिधानं प्रवक्ष्यामि, अंतिः न कथितं बुधसंस्तुतम्, श्लोक-३७. २. पे. नाम. मातृकाया उपरि एकाक्षरीनाममाला, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. अजिरादि एकाक्षरी नाममाला, सं., पद्य, आदि: अजिरे कथितोकारो हरिहर कमठ; अंति: निर्भय तट कालकूटेषु, श्लोक-४६. 1. १०९५२९. (०) सिचियादेवी, आइजी छंद व औपदेशिक कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४११, १२४३८). "3 १. पे. नाम. साचलमातारी चरचा, पृ. १अ संपूर्ण. सच्चियायदेवि छंद, हेम, मा.गु., पद्य, आदि: सानिधि साचल मात तणी; अति: हेम कहे सिचियाय तणा, गाथा ६. २. पे. नाम. आइजीरी चर्चा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ओसियामाता छंद, मु. हेम, मा.गु., पद्य, आदि देवी सेवी कोड कल्याण; अंति: करजोडी सेवक हेम कहे, गाथा-५. ३. पे नाम औपदेशिक कवित्त संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण, औपदेशिक कवित्त संग्रह", पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि सोइ सपत सुलक्षण सुंदर, अंति: सुख उपजैं अधरपान की ओर, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा ५. १०९५३१. (+#) सिद्धदंडिका स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पंचपाठ- संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे. (२५x१०.५, २९४४८). " सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: वंदिया दितु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि आदित्ययशोनृपप्रभृतयो; अतिः नाम्ना रूढत्वादिति. १०९५३५. राइप्रतिक्रमणरूपक गाथा व पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X१०.५, ४-१४X३२-४०). १. पे. नाम राइप्रतिक्रमणरूपक गाथा सह टवार्थ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. रात्रिप्रतिक्रमणविधि गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कुसुमिण दुसुमिण राईय; अंति भगवानहं तिबेमि, गाधा-५. राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदि०; अंति: वेलकर सुबहु मुंहपत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि सह टबार्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: मुहपत्तिवंदणयं; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १ तक है.) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-स्वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह भगवन्; अंति: (-). १०९५३६. (+) इरियावही कुलक, भिक्षुप्रतिमा व आवक प्रतिमादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६ १०.५, १४४५० ). १. पे. नाम. इरियावही कुलक, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि देवा अडतिऊअसयं चउदस नेरइ अति रे जीव निच्चपि, गाथा- ११. ४. पे नाम. १४ अभ्यंतरग्रंथि गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि मिच्छतं वीय तिगं; अति चउदश अभिंतरा गंठी, गाथा- १. ५. पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. " २. पे. नाम. गाथा कुलवर्णन गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा विचार गाथा, अप., पद्य, आदि: गाहाणं कवण कुलौ कवण बप्पो; अंति : (१) कचवग्ग तवग्गा निहणाई, (२) सत्तावीस्साए पच्छट्ठे, गाथा-४. ३. पे नाम. भिक्षुप्रतिमा गाथा सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. बालावबोध अन्तभाग में लिखा गया है. भिक्षुप्रतिमा गाधा, प्रा., पद्य, आदि मासाए सत्तता पढमा बीया अति राई भिक्खू पडिमा बारसंगं, गाथा-१. भिक्षुप्रतिमा गाथा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम प्रतिमा १एक मास लगी; अंति: धणी अंगीकार करइ न तु बीजउ. For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १३९ श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दंसण वय सामाई पोसह; अंति: वज्जए समणभूयाए, गाथा-१. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: सुद्ध समकित आराधइ मास१; अंति: परि विचरइ मास ११मइ. ६. पे. नाम. ५३ क्रिया गाथा सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावक ५३ क्रिया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: गुण८ वय१२ तप१२ सम१ पडिमा; अंति: किरिया तेवन्न सावया भणिया, गाथा-१. श्रावक ५३ क्रिया गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: गुण८ तेहना नाम मद्य१ मांस; अंति: श्रावक सास्त्रि कह्या. १०९५३८ (+) लघुसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०, १५४५३). लघसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नू; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. १०९५४२. (#) पुण्यलाभ कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४२). पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वाससय होइ; अंति: धम्मम्मि उज्जमह, गाथा-१६. १०९५४४. (+#) सिद्धांतरत्निका व्याकरण की अनिट्कारिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पंन्या. विद्याकुशल गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अनिट्कारिका विवरणं., संशोधित-संधि सूचक चिह्न. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १७X४१-५१). सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिटकारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: अनिट स्वरांतो भवति; अंति: मृजिं१५ विद्यनिट्स्वरान्, श्लोक-११. सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, उपा. समयसंदर गणि, सं., गद्य, आदि: कारिकानिट स्वरांतस्य; अंति: समयसुंदर० निर्णयं. १०९५४७. (+) जिनकुशलसूरि अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१०, ११४३२). जिनकुशलसूरि अष्टक, सं., पद्य, आदि: पद्मकल्याणविद्याकमल; अंति: स्याद्भोक्ता च वक्ता च, श्लोक-९. १०९५५० (#) गुरु स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०, १६४५९). गुरु सज्झाय, ग. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सयल मनोरथ पूरवे सुरत; अंति: मानसागर० गुरु सीस, गाथा-१६. १०९५५१ (+#) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५४१०, ५४३९-४६). दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने चोवीस; अंति: आपणा जीवनइ हितकारिणी. १०९५५५ (+) भगवतीसूत्रे रत्नप्रभापृथ्वी, परमाणुपुद्गल व जीवादि का चरमाचरम अधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:धातुतरंगणी., संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १९४५५). १.पे. नाम. भगवतीसूत्र शतक-८ उद्देशक-३ सूत्र-३९९ रत्नप्रभापृथ्वी चरमाचरम प्रश्नोत्तराधिकार सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. भगवतीसूत्र शतक-१४ उद्देशक-४ सूत्र-६१० परमाणुपुद्गल चरमाचरम प्रश्नोत्तराधिकार की टीका, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. भगवतीसूत्र शतक १८ उद्देशक १ सूत्र ७२४ जीवनारकवैमानिकसिद्ध चरमाचरम प्रश्नोत्तराधिकार की टीका, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. भगवतीसूत्र टीका, आ. अभयदेवसूरि सं. गद्य वि. ११२८ आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण. 1 "" १०९५५६. (+) प्रत्याख्यानसूत्र, पाक्षिक खामणा व नमस्कार महामंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. मु. रतना ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x१०.५, १२४५२). १. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र- देसावगासिक, पृ. १अ संपूर्ण प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. प्रारंभ में विपाकसूत्र, श्रुतस्कंध - २ अध्ययन- १ का प्रारंभिक पाठ लिखकर छोड़ दिया है.) २. पे. नाम. पाक्षिक खामणा, पृ. १आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि पियं च मे जं भे; अंति मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप ४. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद- ९. १०९५५९. (४) तपावली, संपूर्ण वि. १५५८, आश्विन कृष्ण, ११ रविवार, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी तपश्चरणग्रंथ. कुल ग्रं. २०४ मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x१०.५. १५४५०-५५). तपावली, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि : उली९ उपवास९५ पद्मोदरतपः; अंति: उद्यापने पंचपरमेष्टि पूजा, तप-८३. १०९५६०. उपासकदशांगसूत्र- आनंदश्रावक सम्यक्त्व अध्ययन सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी आलापक पत्र, आगमिक सन्दर्भ पाठ सहित दे., (२५.५X१०.५, १४४५०). " उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. समण भगवं महावीर तिखुत्तो वदति इत्यादि" पाठ तक लिखा है.) उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १११७, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. अंत में अन्य आगमों से संबंधित उल्लेख किया है.) १०९५६१. (+) पच्चक्खाण आगार यंत्र, कल्पमान यंत्र व छायामान गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०.५, १४४४३). १. पे. नाम. पच्चक्खाण आगार यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-पच्चक्खाण आगार यंत्र, संबद्ध, प्रा., मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. पच्चक्खाणछायामान गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पोसेय तणुछाया नवहिं पएहिं; अंति: रयणीयजाम परिमाणं, गाथा-४. १०९५६२ (+) चौवीस दंडक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., १७४५२). वे. (२४.५४१०.५, दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि नमिठं चीवीस जिणे; अंति: लिहिया एसा विनति अप्पहिया, गाथा-४४. १०९५६३. (+) चिंतामणि पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४१०५ १३x४२). पार्श्वजिन स्तव - चिंतामणि, सं., पद्य, आदि किं कर्पूरमयं सुधारस अंति: बीजं बोधिचीजं ददातु श्लोक-११. १०९५६४. महावीरजिन स्तुति व सचियादेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. वे., (२५.५x१०.५, १३४४२). १. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पू. १अ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only आ. रत्नप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि श्रीमद्वीरजिनस्य उहडकृते, अंतिः संघस्य भूयात्सदा, श्लोक-४. २. पे. नाम. सच्चिक स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सच्चीयादेवी स्तवन, प्रा., पद्य, आदि गिरिकूडतडनिविडा, अंति: सच्चादेवी सुहं दिसउ, गाथा- १२. Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १४१ १०९५६६. (+) सूक्तमाला व निर्मोही दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सुक्तमुक्ता., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१०.५, २०-२४x७५). १.पे. नाम. सूक्तमाला, पृ.१अ-४आ, संपूर्ण. मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: तेइ मोक्ष साधे जिकेइ, वर्ग-४. २.पे. नाम. निर्मोही दहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. निर्मोही दोहा संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गावंती गोपी वाजंती वेणा; अंति: चलावीयो यो दुख लागो मोहि, (वि. गाथांक क्रमशः नहीं है.) १०९५७४. भारती अष्टोत्तरशतनाम व सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १२४५१). १. पे. नाम, भारती अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-१०८ नाम गर्भित, सं., पद्य, आदि: धिषणा धीर्मतिर्मेधा; अंति: बंभ्रम्य तत्वंतिकावयो यशः, श्लोक-१५. २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: निःशेष जाड्यापहा, श्लोक-१०. १०९५७९ (+) पुण्यपापकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ७४४८). पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वाससय होइ; अंति: धम्मम्मि उज्जमह, गाथा-१६. पुण्यपाप कलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवै सो वर्षना दिन; अंति: विषे उद्यम करो. १०९५८१. आधाशीशी निवारण मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. विधिसहित., जैदे., (२४.५४१०.५, ६४२७). ___ आधाशीशी निवारण मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: खडा रह करी आधाशीशी जाइ. १०९५८९ (#) महावीरजिन स्तव, जीवकाया व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७६१-१७८२, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४५६). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १७६१, आश्विन शुक्ल, १३, शनिवार, पठ. सा. राजा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भगवं; अंति: एअं पढह कय अभयसूरीहि, गाथा-२२. २.पे. नाम. जीवकाया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १७८२, आषाढ़ कृष्ण, ३, ले.स्थल. मोडी. मु. रंगविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतमनो मुझ उपरै रंग हुं; अंति: रंगविजै० ए दीनदयाल, गाथा-८. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: अवगुण अंग न आणीयै; अंति: जिम पांमो भवपार रे, गाथा-५. १०९५९३. (+#) विचारषट्त्रिंशिकारूपा अर्हद्विज्ञप्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४११, ११४३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. १०९५९४. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १६x४१). २४ जिन स्तवन, म. ऋद्धिविजय, सं., पद्य, आदि: प्रणयतः प्रणिपत्य सरस्वती; अंति: ऋद्धि० महिता महितांवरैः, श्लोक-२९. For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०९५९५ (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३,प्र.वि. वि.१६३२ ज्येष्ठ वदि ५ रविवार को देवजी द्वारा लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, ११४३३-३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. १०९५९६. (#) चतुर्विंशतिजिनकल्याणक स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x६८). २४ जिनकल्याणक स्तव, जै.क. आशाराज, सं., पद्य, आदि: तिथिक्रमाज्जिनेंद्रा; अंति: आशाराज०पूरयंतु जिनाः, श्लोक-३२. १०९५९७. (#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १२४३६). पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमयं; अंति: सुंदरतरं सत्यवचो वादिनी, श्लोक-८. १०९५९८ (+) प्रश्नोत्तररत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. इटावा, प्रले. मु. बलू ऋषि (गुरु मु. पांचाजी ऋषि); गुपि. मु. पांचाजी ऋषि (गुरु मु. रुपाजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नोत्तररत्न, संशोधित. कुल ग्रं. १९२, जैदे., (२६४१०.५, ५४३९). प्रश्नोत्तररत्नमाला, सं., पद्य, आदि: भगवं किमुवादेयं गुरुवयणं; अंति: वरइ अचिरेण कालेण, श्लोक-२९, (वि. १७३१, आश्विन शुक्ल, ४, बुधवार) प्रश्नोत्तररत्नमाला-सह टबार्थ, मु. उत्तम ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: हे पूज्य किसु आदरीइं; अंति: (१)वरइ पामइं थोडइं कालिइं, (२)नोपहास्यं च कार्यतां, (वि. १७३१, आश्विन शुक्ल, ९, सोमवार) १०९५९९. प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४११, १०४२६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: निस्सही निस्सही नमो; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. १०९६०३. (#) संख्या निर्णय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४९, १४४३८). संख्यारूप विचार, उपा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: एकः एका एकं द्वौ; अंति: एवं यावत एतावंत इयत. १०९६०६. (#) अर्घकांड, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०४३६). अर्घकांड, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तियसिउ नरिंद पणमिति जिण; अंति: जाणह सो सव्वन्न न संदेहो, गाथा-१९. १०९६०७. (+#) पार्श्वनाथ स्तवन संग्रह सह टीका व अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६५७, वैशाख कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. सोजितनगर, प्रले. पं. शंकरसौभाग्य गणि- शिष्य (गुरु पं. शंकरसौभाग्य गणि), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ३४४२). १. पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन सह टीका, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक-९. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित-टीका, आ. मनिशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि: लक्ष्मी इत्यादि; अंति: सूरिः श्रीमुनिशेखरः. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन सह अवचूरि, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्, श्लोक-७. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरं प्रधाना संवरस्य; अंति: शिवसुंदर सौख्यभर:तं. For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १४३ १०९६१४. घंटाकर्ण मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, ४४३४). घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. १०९६१७. (+) दानशीलतपभावना कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ११४३८). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रज्जसारो; अंति: देविंद० सिद्धिसहं, वक्षस्कार-४, गाथा-८१. १०९६१८. (+#) औपदेशिक गीत, नेमिराजिमती गीत व चतुःशरण प्रकीर्णकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: संसार मै रे जीव दुख अपार; अंति: हरखकीरति जिणराज सहाय, गाथा-१०. २. पे. नाम, नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. विनयसरि, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणथी रथ फेरीयो सखी विनओ; अंति: विनयसुरि० एक संगरी सखी, गाथा-६. ३. पे. नाम. चउसरण, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, प्रले. मु. सहसवीर; गुपि. मु. माणिक्यचंद्र (गुरु उपा. रत्नचंद्र, तपागच्छ); पठ. उपा. रत्नचंद्र (गुरु उपा. शांतिचंद्र, तपागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: वंझकारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६१. ४. पे. नाम, चरणकरणसप्तति गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय ५ समण धम्म १०; अंति: अभिग्गहा ४ चेव करणंतु, गाथा-२. ५. पे. नाम. पंच आसवदारा, पृ. ३आ, संपूर्ण. व्रत उच्चार अधिकार, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सतरविहा संजमो होइ, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र अंतिम गाथा लिखी है.) । १०९६२४. विवाहपडल भाषा, संपूर्ण, वि. १८६९, पौष कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, पठ. मु. परमानंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १५४४०-४३). विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरु वाणी; अंति: भाषा रची ज्योतिष तणो मरम, गाथा-३८. १०९६३०. आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १४४३४). औपदेशिक गीत, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: मेरा मन का प्यारा जो मिलइ; अंति: यह परमारथ पंथ निदान. १०९६३२. (+) उपसर्गार्थ प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. ग. विचारसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६-१९४४८-५६). उपसर्गार्थ प्रकरण, सं., गद्य, आदि: प्रादीनामुपसर्गाणां; अंति: प्रणये अभिमंत्रितोग्निः. १०९६३८. (+#) पार्श्वजिनादि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १२४५०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ३ दें गि धपमप; अंति: कुसल० तुझ सासनदेवता, __ श्लोक-४. २. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अव्याद्धो नाभिजातजितसुमति; अंति: जलरुचिर्नंदनं पार्श्वदेवः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अंह्री कूर्मयुगं करौ; अंति: शकुनानीक्षध्वमेनं जिनम्, श्लोक-१. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: सिद्धोविज्जायचक्की; अंति: विमल० तित्त्थमेवं नमामि, गाथा-१. ५. पे. नाम. मांगलिक स्तुति संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: विलीणा जेय जिणा जे; अंति: नित्यं मनोवांछितं, गाथा-८. १०९६४० (+) आठ सिद्धि विचार व दान कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १२४५१). १. पे. नाम. आठ सिद्धि विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ सिद्धि नाम, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अणिमा १ महिमा २; अंति: शक्ति ते वशत्व सिद्धि, श्लोक-३. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक-दान कुलम्, पृ. १आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना कलक, म. अशोकमनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: (-), प्रतिपर्ण. १०९६४२. (+) पच्चक्खाणसूत्र व प्रत्याखानगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, ५४४८-५२). १. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गएसरे नवकारसहियं; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: सूरिजना उदय हूंती; अंति: अनेरइ थानकि बोसिरइ. २.पे. नाम. प्रत्यखान गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण आगार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नवकार १ पोरसी २; अंति: छप्पाणे चरिम चत्तारि, (वि. कोष्टकसहित.) १०९६४३. (#) गुरु आग्रह गीत व अरिहंत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १०४३६). १. पे. नाम. गुरु आग्रह गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनराजसरि गुरुगण गीत, आनंदकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनसिंह सूरीसरू रे; अंति: आनंदकीर्ति० मननी आस सगुरु, गाथा-७. २. पे. नाम, अरिहंत सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. अरिहंतपद सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नवलउ नवलइ वेस वहिरण; अंति: राजसमुद्र० कहइ ए, गाथा-१४. १०९६४४. (#) औपदेशिक सज्झाय व कलजुगनी निसानी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४३५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: पांचप्रमाद तजी पडिकमणो; अंति: तेजसिंह० भव सायर तिरसी, गाथा-८. २. पे. नाम. कलजगनी नीसाणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... कलियुग सज्झाय, म. करमचंद, पुहिं., पद्य, आदि: यारो कडो कलजग आयो बाप; अंति: दीपै सदाई सवायौ रे, गाथा-११. १०९६४५ (#) महावीरजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सिद्धारथ., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १२-१८४३६). महावीरजिन सज्झाय-उपसर्ग, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धार्थकुल उपना; अंति: तणा पावै सुख अनंत, गाथा-२८. १०९६४७. (+#) वंदित्तु सूत्र, संपूर्ण, वि. १८४२, पौष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. न्यानविमल (गुरु पं. सुमतिविमल); गुपि.पं. सुमतिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, ११४३५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे धम्म; अंति: वंदामी जिणे चउवीसं, गाथा-५०. १०९६५१. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४१). For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १४५ पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ महाउत्तम श्रीथानिक; अंति: मन ही होवै सही करे मानइ. १०९६५३. (+#) मजलस, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५४). खरतरगच्छराज जिनसुखसूरि मजलस, पुहिं.,रा., पद्य, आदि: अहो आवौ वे यार बेठौ दरबार; अंति: गीरचंद दुआ वैत कहणा. १०९६५४. (+) अवयदी पाशककेवली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:अवयदी., संशोधित., जैदे., (२५४१०, १५४५८-६२). अबयद सुकनावली, मा.गु., गद्य, आदि: अनंतमुत्तरापंथे तथा; अंति: भविष्यति नात्र संदेहः, प्रकरण-४. १०९६५९ (+) गुरुलघुक्रियामात्रा छंदोविषयक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, २१४५८-६६). गुरुलघक्रियामात्रा छंदोविषयक विचार, सं., प+ग., आदि: संख्यांकर्तृत्यजेत्पृष्ट; अंति: एवमग्रेपि ज्ञेयं, (वि. अंत में ___ अंकतालिका दी गई है.) १०९६६४. (+#) पार्श्वजिन स्तवन सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:श्री पार्श्वस्तवटीका., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १७४४८-५२). पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं तमहं; अंति: (-), (वि. श्लोक का क्रमशः पाठ है बाद में कहीं-कहीं संकेत पाठ दिया है. अन्त में व्याकरण विषयक ऋवत विवरण अपूर्ण भाग लिखा है.) पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध-टीका, सं., गद्य, आदि: अहं श्रीपार्श्वनाथं; अंति: अभीष्टलब्ध्यै स्यात्. १०९६६९ (+#) चउसरण सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. ग. विमलकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१०, १२४३४-४५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक-टिप्पण*, सं., गद्य, आदि: सावधो योग विरति सामायकं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६२ तक टिप्पण लिखा है.) १०९६७६. (+) कुंडलियाबावनी, संपूर्ण, वि. १७८६, आषाढ़ शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. दुलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कुडलीयो बा०., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, १५४४७-५३). कुंडलियाबावनी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: ॐनमो कहि आदिथी अक्षरे रै; अंति: चुपकरि आदि दे बावन आखर, गाथा-५७. १०९६७७. शुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१०.५, १३४३०). दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, आदि: १११ शरीरे देवता दोस कोई; अंति: (-), (पू.वि. १४२ संख्या तक है.) १०९६७९ (+) अहिवलय चक्र, अहिवलय चौपाई व मृत्युज्ञानादि प्रश्न संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ८,प्र.वि. अंत में कूर्मचक्र का अपूर्ण रेखाचित्र है., संशोधित., जैदे., (२६४१०, २४४६९). १.पे. नाम. नरपतिजयचर्या-अहिवलय चक्रं, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. नरपतिजयचर्या, श्राव. नरपति, सं., प+ग., वि. १२३२, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. श्लोक-१८ अपूर्ण से २. पे. नाम. अहिवलय चौपाई, पृ. ३अ, संपूर्ण. आ. सोमकलशसरि, मा.गु., पद्य, आदि: रवि उदयादिक गई घडी; अंति: सोमकलशसरि इणि परि कहइ, गाथा-१२. ३. पे. नाम. रोगी प्रश्न गाथा सह टीका, पृ. ३अ, संपूर्ण. रोगी प्रश्न गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आइचआइ धुर विभु अंगह पनर; अंति: जीविअमरण फुडा जाणिज्झइ, गाथा-१. रोगी प्रश्न गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: यस्मिन्नक्षत्रे रविः; अंति: शेषेषु द्वादशसु आरोग्यं. ४. पे. नाम. मनुष्यमृत्यु ज्ञान, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., गद्य, आदि: प्रश्नाक्षरमात्रा; अंति: भागाहार्यः शेष नक्षत्रं. ५. पे. नाम. आधान ज्ञानं, पृ. ३अ, संपूर्ण. गर्भाधानज्ञान विचार, सं., प+ग., आदि: यदा कश्चित्पृच्छति अस्याः; अंति: विलोक्यंते जन्मदिनं भवति. ६. पे. नाम. आउखानी निरती, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रारंभ में लेनदेन जानने की गाथा लिखी गई है. आयुर्ज्ञान श्लोक, सं., प+ग., आदिः (१)ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूँ, (२)लक्षं लक्षण लक्षितेन पयसा; अंति: आयुः प्रमाण बुधैः, गाथा-१. ७. पे. नाम. नष्टद्रव्य चक्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: न ह घड ब य ल्ल म ज्झे; अंति: (१)प्राप्नोतिमिहमादिशेत्, (२)मकीयइ द्रव्यशल्य जाणीयइ, श्लोक-१२, (वि. मंत्र विधि सहित.) ८. पे. नाम. अर्घ विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: मेष संक्रांति वेलायइ जे; अंति: हुइ तु ऊग्या धान्य मूकइ. १०९६८३. औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:सवैया., जैदे., (२५४११, १९४३८). औपदेशिक सवैया, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: सास बता सब आस करै सासमि; अंति: रामगुण गुण बोल सुचा, गाथा-३१. १०९६९२ (+#) अर्घकांडद्वय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, १५४५१). १.पे. नाम. अर्घकांड, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तियसिउ नरिंद पणमिति जिण; अंति: जाणह सो सव्वन्नू न संदेहो, गाथा-१९. २. पे. नाम. अर्घकांड, पृ. १अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अर्घकांड प्रवक्षामि; अंति: (-), (पू.वि. फाल्गुन ग्रहराजा फल तक है., वि. संभव है कि यह कृति संपूर्ण हो सकती है.) १०९६९३. श्राविकागुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १२४३०). श्राविकागुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरव सुलक्षण रूप रसाल; अंति: ते सरज्या कैलासधणी, गाथा-११. १०९६९४. (+) सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सरस्वति छंद., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४५). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकर जिनकर समुज्ज्व; अंति: सोहै पुजोनी सरस्वती, ढाल-३, गाथा-२०, (वि. कृति के अंत में अन्य कृति का प्रारंभिक भाग दो श्लोक तक लिखा है.) १०९६९६. आराधनासूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४१०, १९x४५-४९). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: लहंति ते सासयं सुखं, गाथा-७०, ग्रं. २४५. पर्यंताराधना-गाथा ७०-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करीनइ० भगवन अवसरोचित; अंति: लहइ ते शाश्वतउं सुख. १०९६९७. (+#) कल्याणमंदिर स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पतननगर, प्रले. श्राव. श्यामलदास संघवी; अन्य. मु. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३६-४६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. १०९७१२. पद, गाथा व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२६.५४१०.५, १८४६६). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, आदि: परम गुरु जैन कहो; अंति: गोहो जैनदशा जस उची, गाथा-१०. २.पे. नाम, मोक्षपैडी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org मोक्षपयडी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य वि. १७वी, आदि इक्क समय रुचिवंतनो अति मूढ़ न समुझे लेश, गाथा- २३. ३. पे नाम औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि किरिआकाय कलेसे; अंति दयाबीणा छीरं बणा त्रस ४. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण गाथा-५. २. पे. नाम जिनाज्ञा कुलक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. + Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन-छट्टाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाय नमी; अति: देवीदास०] संघ मंगलकरो, ढाल ५, गाथा- ६६. १०९७१८. (+) धारणागतियंत्रकाम्नाय व ज्योतिष श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, १५X६४). १. पे. नाम. धारणागतियंत्रकाम्नाय पृ. १अ १आ, संपूर्ण. 1 धारणागति यंत्र, मा.गु. सं., गद्य, आदि: इह देवस्य तद्विबकार अति लिखितानि संतीति ज्ञेयं. २. पे नाम ज्योतिष लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि नैव गोचरविधिं न चाष्टमं अति तद्भिरश्विनी वारुणं तथा, श्लोक ५. १०९७२० (+) श्रावकविधि कुलकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६x१०.५, ११४३८). १. पे नाम श्रावकविधि कुलक, पृ. १अ, संपूर्ण. महजिणाणं सज्झाय तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि मन्नह जिणाणमाणं मिच अंति: निच्चं सुगुरुवएसेणं, प्रा., पद्य, आदि: धन्नाविहि पक्खजुआ विहि; अंति: पालहं आणं पयत्तेणं, गाथा-६. ३. पे नाम औपदेशिक कुलक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि हयं नाणं कियाहीणं हया अंति: निगिण्हाइ तवेणं परिसुज्झई, गाथा-५. ४. पे. नाम. द्रुमपुष्पिका अध्ययन, पृ. १आ, संपूर्ण. " दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, आदि धम्मो मंगलमुक्कि; अंति साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५, (वि. अंत में एक प्राकृत गाथा लिखी है.) १०९७२१. सरस्वतीदेवी स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२५.५X११, ८x२६). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि : करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, - २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी मंत्र, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि ॐ ह्रीं क्लीं छू श्री अति हीं नमइति त्रयोविंशत्यः, " १०९७२६. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ४, दे., (२५.५X१०, १४X३३). १. पे नाम वीजतिथि हुई. पू. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आठमरी थुई, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव, अंति: रीषभदास गाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. शत्रुंजयतिथि स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि : आगे पूरव वार नीवाणु; अंतिः सिद्धि हमारी जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. चौवीसजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only १४७ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: फलवर्धिपुर मंडण फलदाई; अंति: मीठी जस मरदाई, गाथा-५. १०९७३१. (+) दोधकचंद्रिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:दोधकचंद्रिका., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, २०-२३४६८). दोधकचंद्रिका, उपा. राजसोम पाठक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सरसतिमाता समरिनइ प्रणमी; अंति: राजसोम गणि० ए ___पंडितजन आधि, अधिकार-३. १०९७३३ (-2) आर्यवसधारा, संपूर्ण, वि. १७४४, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:वसुधारा., अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५४). वसधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. १०९७३४. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. प्रारंभ में ज्योतिष की किसी अज्ञात कृति की पुष्पिका लिखी हुई., जैदे., (२६४१०.५, १३४५३). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: भगवती निःशेषजाड्यापहा, श्लोक-१४. १०९७४३. (+#) सम्यक्त्वपच्चीसी सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ३४४८). सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक है.) सम्यक्त्वपंचविंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा येन औपशमिकत्वादि; अंति: (-). १०९७४४. (#) रिषभनाथजीरो छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४११, १३४४०). आदिजिन छंद, म. लाल कवि, मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंति: एम लाल कवि उच्चरै, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) १०९७४५. शकुनावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२५४११.५, १३४४४-५४). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: चिंतीत कार्य सिद्ध थासी. १०९७४६. दोषावली युगल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६४११, १५४४६). १. पे. नाम. दोषावली, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, आदि: १११ शरीर वेदना छे; अंति: जात्र कीधा सुख होसी. २.पे. नाम. दोषावली, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.ग.,सं., गद्य, आदि: मेषे च देव्यादोषं वृषे; अंति: दोषं मीने मुशाणदोषकं. १०९७४७. केशीप्रदेशी राजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१०.५, १२x२९). केशीप्रदेशीराजा सज्झाय, पहिं., पद्य, आदि: जैसे लोहे पारस मिल्या जी; अंति: भव भव गराजी को सेवजी, गाथा-१४. १०९७४८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.१, जैदे., (२६४११, १४४४३). पार्श्वजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: कस्तूरीतिलकं भुवः; अंति: दद्यास्त्रिलोकी विभो, श्लोक-१६. १०९७५३. पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १०x४२). पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). १०९७६३. (+) षडशीति कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १५५९, वैशाख, ५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. नंदगोकुलनगर, प्रले. ग. धर्मउदय (गुरु उपा. कल्याणचंद्र, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. उपा. कल्याणचंद्र (गुरु आ. कीर्तिरत्नसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); आ. कीर्तिरत्नसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनहंससूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३२). षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-४, आ. जिनवल्लभसरि, प्रा., पद्य, आदि: निच्छिन्नमोहपास; अंति: सुणंतु गुणंतु जाणंतु, गाथा-८६. For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १४९ १०९७६५ (+#) गुरुपारतंत्र्य स्मरण व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. भावहर्ष (गुरु मु. धर्मसी, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०.५, ८४३३-३६). १. पे. नाम, गुरुपारतंत्र्य स्मरण सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. गुरुपारतंत्र्य स्मरण-खरतरगच्छीय, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: मयरहियं गुणगणरयणसायर; अंति: जिनदत्त० पणयमुणितिलओ, गाथा-२१. गुरुपारतंत्र्य स्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: महइकी रहित गुणज्ञानादिक; अंति: नमइ जेहनि मुनितिलक. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिग्घमवहरउ विग्धं; अंति: नमामि साहम्मिआ तेवि, गाथा-१४. पार्श्वजिन स्तोत्र-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: शीघ्र अपरउपरहारकरउ; अंति: वांदउ सारुम्मीपिणि तेहइज. १०९७७९. औपदेशिक श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, ११४३७-४०). औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: येसां न विद्या न तपो; अंति: गुणि विहिनं बहू भासयंति, श्लोक-१०. १०९७८० (+#) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४११.५, १३४३२). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३४ अपूर्ण तक लिखा है.) १०९७८१ (+) नंदीसूत्र-स्थविरावली व दस श्रावक कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १४४४०). १.पे. नाम. नंदीसूत्र- स्थविरावली, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८३९, माघ शुक्ल, ५, गुरुवार, पठ. श्राव. बालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी विआणओ; अंति: केवलनाणं च पंचम, गाथा-५०. २. पे. नाम. दस श्रावक कुलक, पृ. २आ, संपूर्ण, ले.स्थल. जालौर. १० श्रावक कुलक, प्रा., पद्य, आदि: जव्वयणामयसित्ता; अंति: भणियं सुसाहुधीरेहिं, गाथा-१७. १०९७८२. (+) लघुसंग्रहणी व कर्णिका गणना श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४४५-४८). १. पे. नाम. लघुसंग्रहणी सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय क० नमस्कार करीने जिन; अंति: श्रीहरिभद्रसूरीश्वरे. २. पे. नाम. कर्णिका गणना श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. कर्णिकागणना विचार, सं., गद्य, आदि: विषमात्पदतसत्यक्त्वा; अंति: ततोत्छेद्विगुणी कृतंदलयेत. १०९७८५. गुणावलीराणी का चंदराजा के नाम पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११.५, १६x४२-४६). गुणावलीराणी लिखित पत्र, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवरदा जगदंबिका शारदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ तक लिखा है.) १०९७८६ (+) शनिश्चरदेव छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सांडेराव नगर, प्रले. श्राव. किशनचंद जैन, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११.५,१०४२८-३२). शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: कहे हेम० अलगी टाले आपदा, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५० www.kobatirth.org श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०९७९१. (+) प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२६११.५, १९४६२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १०९७९२. (+) वैकुंठपंथ सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४११.५, " १८४५५) वैकुंठपंथ सज्झाय, मु. भीम, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि वैकुंठ पंथ बीहामणो अति (-) (पू.वि. गाथा ५५ अपूर्ण तक है.) १०९७९३. विचाररत्नसार, संपूर्ण, वि. १८७८, माघ कृष्ण, ७ मंगलवार, श्रेष्ठ, पू. २ ले स्थल राजनगर ( अहमदाबा प्र. वि. हुंडी. विचाररत्नसार, जैये. (२६.५x११.५, १५४४७). विचाररत्नसार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर अतिः कारणभूतं मुणेयव्वं. १०९७९४ (+) पुण्यकुलक व कायोत्सर्ग के १९ दोष, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७X११, २१x४४). १. पे. नाम. पुण्यकुलक सह टबार्थ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि संपुन्न इंदिअत्तं अंतिः ते सासयं सुक्खे, गाथा १०. , " पुण्य कुलकक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पंचेंद्रियपणडं सुमानपणडं; अंति: लहइं शासुत सुख मोक्ष लखैण. २. पे. नाम. कायोत्सर्ग के १९ दोष सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. चैत्यवंदन भाष्य- हिस्सा १९ कायोत्सर्गदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि घडग १ लआय २ खंभे ३ अति य वारणी १८ पेहा १९, गाथा - २. चैत्यवंदभाष्य- हिस्सा १९ कायोत्सर्गदोष गाथा का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: घोडानी पहि विषम पग न राखइ अंति: दोष आचार्यनै नला०. १०९८०७. (+) गौतमकुलक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. (२५x१०.५, ५४२६-३०). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लु० लोभियान० नरमनुष्य अ०: अंतिः पामइअ सर्व श्रावकनी पर. १०९८०८. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे. (२५.५४१०.५, ११४४३-५३). " ऋषिमंडल स्तोत्र- बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, " श्लोक ८२ . १५०. १०९८०९. (+) नमिऊण स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६४११, , ६X३७). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण पणय सुरगण, अंतिः परमपयत्थं फुडं पासं, गाथा- २३. नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करीनई नमतां; अंति: पार्श्वनाथ प्रति इणि परि १०९८१० (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १६७६, चैत्र शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. मंगलपुर, प्रले. मु. ऋद्धिविजय (गुरु मु. मेरुविजय); गुपि. मु. मेरुविजय (गुरु मु. जयविजय ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६११, ११४३०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६३. १०९८१२. (+) भावसप्ततिका व दीपमालिका वधु प्रवेश विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १५x५८-६२). १. पे नाम भावसप्ततिका, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. पं. यशस्वत्सागर, सं., पद्य, वि. १७४०, आदि: तात्कालिकः स्पष्टदिन; अंति: चारसत्सागरवाचनार्थम्, गाथा - ७१. २. पे नाम दीपमालिका वधु प्रवेश विचार, पू. ३अ-३आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ दीपावली वधप्रवेश विचार, सं., गद्य, आदि: न शक्रास्तादिकं चिंत्यं; अंति: सहितं वर्षमेकं हि यावत, (वि. अंत में अल्प इष्टसाधन विचार दिया गया है.) १०९८१६. (-) २२ अभक्ष्य गाथा, १४ श्रावकनियम गाथा व जीवभेद विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११, ३४२७). १.पे. नाम. २२ अभक्ष्य गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. मु. मूलचंद ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य. २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पचंबर चउवीगई हीमं वीस; अंति: वज्जाहा अभष बावीसं, गाथा-२. २२ अभक्ष्य गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वड पीपला गुलरा कचुंबर; अंति: ते अभष ए बावीस अभष जाणवा. २. पे. नाम. १४ श्रावकनियम गाथा सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सचत द्रव्य वीगे वाहाण; अंति: दीस नाहण भत्तेसु, गाथा-१, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकाची हरित रकारी काचो धान; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र सचित्त नियम का ही टबार्थ लिखा है.) ३. पे. नाम. जीवभेद विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वी पाणी तेउ वाउ; अंति: (-), (पू.वि. जीव के छः भेद तक है.) १०९८१९ पद्मिनीपत्र चक्र, ज्योतिष श्लोक व आयुर्वेद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२६४११, ६४३७). १.पे. नाम. पद्मिनीपत्रचक्र विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: कत्तिअ चउक्कए जइ फिरंति; अंति: सयला धणधन्न समाउला निच्चं, गाथा-३, (वि. यंत्रयुक्त.) २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: माघ सत्तमि न गज्जिओ मुहगो; अंति: पुनर्वसू तेतो कण नीपाय, गाथा-१०. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: जसद वार २१ कृष्णअश्वना; अंति: बराबरि रू' घालीइ. १०९८२१. (+) वीतराग स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, २१४६५). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-११ श्लोक-३ अपूर्ण से प्रकाश-१८ तक है.) १०९८२२ (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४७). महावीरजिन स्तवन-वडलीमंडण, ग. नगा, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरणो; अंति: नगा गणि मंगल करो, गाथा-५३. १०९८२३. भयहर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११,५४४२). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणइ सुरगण चूडामणि; अंति: लिहि नासइ दूरेण, गाथा-२४, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा पणमामि देवसमूह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२१ तक लिखा है., वि. टबार्थ शैली में अवचूरि लिखी है.) १०९८२५. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४११, ८४४०). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमामि भारति देवी; अंति: लभते स्त्रियम्, श्लोक-९. १०९८२७. पर्युषणपर्व नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४११, १०x१०). पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमंडणो; अंति: तणौ धीर करे गुणग्यान, गाथा-७. १०९८२८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ९, संपूर्ण, वि. १८८०, आषाढ़ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्रावि. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तरा., संशोधित., जैदे., (२६४११, १७-२०४३८). For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०९८३० (+#) खड्गबंधादि श्लोक संग्रह व छंद विवरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, २२४७३). १.पे. नाम. खड्गबंधकमलबंधादिचित्रकाव्य श्लोक संग्रह, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. खड्गबंधादि चित्रयुक्त. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भावनीया सतांगणैः, श्लोक-६, (पू.वि. खड्गबंध से है.) २. पे. नाम. छंदरूचाक्षर संख्या विवरण, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र कोष्ठक युक्त. सं., गद्य, आदि: श्रीस्त्रिंशन्नवविंशति; अंति: अर्द्धगत प्रत्यागतादीति. १०९८३१. (+#) नक्षत्रयोनि वैर-मित्र विचार, २४ जिन नामादि विवरण व कलश चक्र श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४१०). १. पे. नाम, नक्षत्रयोनि वैरमित्रादि विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ सं., गद्य, आदि: मकरवृषमीनकन्यावृश्चिक; अंति: गुरु क्षुल्लयोः, (वि. शत्रु-मित्र कोष्टक दिया है.) २. पे. नाम. २४ नाम, जिन राशि, नक्षत्र, योनि, गण, वर्ग, हंसक विवरण कोष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम, कलशचक्र श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: गण योनि राशि भेदा हिंसक; अंति: उदे रोगं विनिर्देशात, श्लोक-३, (वि. अंत में एक कालसर्प चक्र दिया हुआ है.) १०९८३५. (+#) रमल शुकनावली, पाशाकेवली ढालन विधि व औषधादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४२). १. पे. नाम. रमल शुकनावली, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: अरे यार वहुत दिन चिंता; अंति: भली होयगी घरा आनंद होयगा. २. पे. नाम. पाशाकेवली ढालन विधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पाशाकेवली-पाशा ढालन विधि, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवति कुष्मांडिनी; अंति: ज्ञेयं येन शुभाशुभं, श्लोक-५. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: जोरावर होइ मुगली दारुहे. ४. पे. नाम, राम शकनावली, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सर्व सिधकरं रामस्य सीताय; अंति: मधुकेतु नारद कुलक्षय, श्लोक-३, (वि. शकुन चक्र दिया है.) १०९८३८. (+#) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. हुंडी:नारचंद्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२-१६४१०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., तिथि श्लोक १२ अपूर्ण से श्लोक-८६ अपूर्ण तक है.) १०९८४० (+#) होलिकापर्व प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११, १९४५३-५६). होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदि: प्रणम्य सम्यक्; अंति: फलं धर्मकल्पद्रुमस्य, श्लोक-३३. १०९८५५ (+#) ज्योतिकसार दहा, संपूर्ण, वि. १८०६, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. गंगविजय (गुरु ग. विनयविजय); गुपि.ग. विनयविजय; पठ. मु. भावविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६४३३-३६). पंचांगविधि दोहा, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: गवरीनंद आनंद करि; अंति: क्षत्री गोवर्धन काज, गाथा-५६. For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १५३ १०९८५६. (+) संसक्तिनियुक्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, २१४६९). संसक्तनियुक्ति, प्रा., पद्य, आदि: उसभाइवीरचरिमे सुरासुर; अंति: करेइ साहू परिहरंतो, गाथा-६१. १०९८६२.(+) आरंभसिद्धि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १९४५५-६०). आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: ॐ नमः सकलारंभसिद्धि; अंति: (-), (पृ.वि. विमर्श-२ श्लोक-५५ अपूर्ण तक है.) १०९८६९ (+) एकाक्षरश्लोक व सरस्वतीदेवी कंठ मणिमालादि श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १९४६५). १.पे. नाम. एकाक्षरं विचित्रकाव्य सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. एकाक्षर विचित्रकाव्य, सं., पद्य, आदि: रोरारेरां ररीरीर रैर; अंति: रुरो रारिरुरारिर, श्लोक-२. एकाक्षर विचित्रकाव्य-टीका, सं., गद्य, आदिः (१)कोपि पुमान् निज भक्ति, (२)कश्चिद्वि पश्चित; अंति: (१)हे इर हे खेद रहित इत्यर्थ, (२)संदामंत्रण हे उरारिर. २.पे. नाम. विष्णुस्तुति-समस्या गर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोक क्रम ३ से ५ है. विष्णु स्तुति-समस्यागर्भित, सं., पद्य, आदि: कोध्येय कुटिल भुवां नयनयो; अंति: निर्दहंतु भवता मरिराजसेन, श्लोक-३. ३. पे. नाम. गौरीदेवी आवरण प्रमाण श्लोक सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. गौरीदेवी आवरण प्रमाण श्लोक, सं., पद्य, आदि: षत्रिका पंच षट्काश्च; अंति: कृत्य गौर्याभरणमादिशेते, श्लोक-१. गौरीदेवी आवरण प्रमाण श्लोक-अवचरि, सं., गद्य, आदि: ३३३३३३६६६६६७ गुणा ३३; अंति: ३३ जात १११००००००००१११. ४. पे. नाम. सरस्वतीदेवी कंठ मणिमाला प्रमाण श्लोक सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी कंठ मणिमाला प्रमाण श्लोक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस आठावीसक सत्तावन्नासय; अंति: गुणिया सरस्यई कंठमणिमाला, श्लोक-१. सरस्वतीदेवी कंठ मणिमाला प्रमाण श्लोक-अवचूरि, प्रा., गद्य, आदि: १००००००००१ अयं विधिर पर; अंति: गुणने सदशाका समायांति. १०९८७४ (+) राजुलपच्चीसी व नेमजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १८४४८). १. पे. नाम. राजुलपचीसी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम समरू अरिहंतदेव सारद; अंति: सर्व संघ कुं मंगल करै, गाथा-२६. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहि., पद्य, आदि: तोरण आया हे सुखी; अंति: पीव पहली मुक त्यां गई जी, गाथा-१५. १०९८७६. भगवतीसूत्रांतर्गत त्रायस्त्रींशकदेव अधिकार व मृषाभाषा पाठ अधिकार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, ११४३७). १.पे. नाम. भगवतीसूत्रांतर्गत त्रायस्त्रींशकदेव अधिकार सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१० उद्देशक-४ चमरेंद्र त्रायस्त्रींशकदेव अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं२ वाणियगामेनगर; अंति: देवत्ताए उववण्णा. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१० उद्देशक-४ चमरेंद्र त्रायस्त्रींशकदेव अधिकार टीका, सं., गद्य, आदि: त्रायस्त्रिंशामंत्रिकल्पा; अंति: छंदे अभिप्रायो येषां ते. २. पे. नाम. मृषाभाषा अधिकार पाठ, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., गद्य, आदि: अप्पणो इच्छाए सुयं; अंति: तत्तो इरेसि मद्दाहं जणेइ. १०९८७७. (+) केसरियापारसनाथजीरो बारेमासियो व सिद्धाचल स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १२४४४-४८). १. पे. नाम. केसरीयानाथजीरो बारेमासी, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन बारमासा-धुलेवामंडन, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणंद प्रणमुं पाया; अंति: मूलचंद० देवतणा देवा रे, गाथा-१४. २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल वंदो रे नर्नारी; अंति: ग्यानउद्योत० करूं एक तारी, गाथा-६. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: प्रभुजी मेतो थारो दरसण; अंति: दीजे हो पुन्यधारी माहाराज, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पहिं., पद्य, आदि: अहि नकला नेहो जह नय नेहो; अंति: ज्या घट कसल में खेम. १०९८८९ (+) पंचासरापार्श्वजिन स्तवन व रेषर ग्रह ज्योतिषादि श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११.५, १०x४४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातिम परमेश्वरु; अंति: पदमविजय ० अविचल अनुपमराज, गाथा-७. २. पे. नाम. रेषदग्रह ज्योतिषादि श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पातालबर पंच धि नव लग्ने; अंति: दुषण हौवै ए पाण टालो दुर, गाथा-७. १०९८९२. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १०४२८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. १०९८९३. (#) रत्नाकरपच्चीसी व सम्यक्त्वगर्भित श्रीवीरस्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१०.५, ५४४२-४८). १. पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: श्रीरत्नाकर० पुष्पतु, श्लोक-२५, (पू.वि. श्लोक-२४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सम्यक्त्वगर्भित श्रीवीरस्तव सह टबार्थ, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्त, गाथा-२५. सम्यक्त्वपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम सम्यक्तव स्वरुप; अंति: भाव भणी नथी लखीतउं. १०९८९५. सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४४०). सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.ग., पद्य, आदि: ॐकार धुर धरा उद्वरणं वेद; अंति: वदे हेम इम वीनती, गाथा-११. १०९९१६. (2) विवाहपटल सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ३४४४-५१). १. पे. नाम. विवाहपटल सह टबार्थ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. विवाहपटल, मु. क्षेम, सं., पद्य, आदि: नत्वादेवीं सुबोधाय; अंति: पापास्तर्केधनेशशी, गाथा-२४, संपूर्ण. विवाहपटल-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा क० नमस्कार करी देवी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ तक टबार्थ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १५५ २. पे. नाम. मुहूर्त संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. महतसंग्रह, सं., पद्य, आदि: पीतालांबर पंचमाद्विनवमा; अंति: कर्मणेगते राहोचकेततथा. १०९९१७. (+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., दे., (२६४११.५, ६x२५-२७). सरस्वतीदेवी स्तोत्र-अष्टोत्तरशतनामयुक्त, श्राव. वस्तुपाल महामात्य, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: धिषणा धीर्मतिर्मेधा; अंति: तस्मिन् देवी सरस्वती, श्लोक-१३. १०९९२०. तिजयपहुत्त व कल्याणमंदिर, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. श्राव. तूलजाराम बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १२४४२). १. पे. नाम. सप्ततिशत जिनस्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. १०९९२१ (+) नवतत्त्वानि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. पं. केसरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीभगवंतजी सत्य छैजी., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४४१-४४). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा२ पुण्णं३ पावा४; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५४. १०९९३० (+) चौवीसजिन कल्याणक व ग्यारह गणधर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, ११४४०). १.पे. नाम. चौवीसजिन कल्याणक, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९७०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, शुक्रवार, प्रले. जयगोपाल पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमी जिन चोवीशने; अंति: इम थुणिआ श्रीजिनरायो रे, ढाल-७, गाथा-४९. २.पे. नाम. ११ गणधर सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर पटोधर वंदीयें; अंति: विरविमल० शासन शणगार, गाथा-५. १०९९३१. पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-४(१ से २,४ से ५)=३, दे., (२६.५४११.५, ५४१०). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कालसीराडे चडस्ये भलु थाए, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., १४१ उत्तम से २१४ मध्यम तक व ३३१ उत्तम से है.) १०९९३७. (+#) ज्योतिषसार व ज्योतिष दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. भवान ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५,१६४३६-५१). १.पे. नाम. ज्योतिषसार, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: श्रेष्ट शोधवासेविचिंतयेत्, श्लोक-२९४. २.पे. नाम. ज्योतिष दोहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पडवे छढ इगारस नंवी; अंति: सर्व कार्य करी घरे आवे, गाथा-३. १०९९३९ (+) षडावश्यक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १०४३७). ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीशे जिनवर नमुं; अंति: विनयविजय० तेह सिवसंपद लेह, ढाल-६, गाथा-४४. १०९९४० (+) खरतराणां व्युत्पत्त्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४११.५, १७X५३). १. पे. नाम. खरतराणां व्युत्पत्ति, पृ. १अ, संपूर्ण. खरतरशब्द व्युत्पत्ति, सं., गद्य, आदि: शाब्दिक प्रष्टाव्रप; अंति: अतिशयेन खराः खरतराः. २. पे. नाम. तपागच्छशब्द व्युत्पत्त्यर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., गद्य, आदि: तपानां तान् तस्करान; अंति: क्रोधाध्मात चित्तत्वादिति. ३. पे. नाम. ओकेशोपकेशपदद्वय दशार्थी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उपकेशगच्छीया पट्टावली-ओकेशोपकेशपदद्वय दशार्थी, संबद्ध, उपा. श्रीवल्लभ वाचक, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: ईशिक ऐश्वर्ये उकेषु; अंति: नाम्नीयार्थे घटां प्राचतः. ४. पे. नाम. गुरुस्वरलक्षण श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: संयुक्ताद्यं दीर्घ; अंति: गुरु पादां तस्थं विकल्पेन, श्लोक-१. ५. पे. नाम. स्वरलक्षण कवित्त-ह्रस्वगुरु, पृ. २आ, संपूर्ण. पं. जसवंत, पुहि., पद्य, आदि: टप टप टप क्यौ जात है जैसे; अंति: का सरै कहिता है जसवंत, गाथा-५, (वि. अंत में औपदेशिक गाथा दी है.) ६.पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा क्रमशः ६ से है. __ औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हरदी जरदी ना तजै मुगता; अंति: वयं काकाः वयं काकाः, गाथा-७. १०९९४८. (+#) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७५७, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. महेवडा, प्र.वि. हुंडी:वसुधारा, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४९-७२). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंतिः शृणोति भोगं च करोति. १०९९५६. (+#) कल्पसूत्र पीठिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४११.५, १०४५७). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: देवाणं जिणदेवो; अंति: हवंति अणंत सुहाइ, गाथा-१६. कल्पसूत्र-पीठिका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरना चरित्र वृक्ष; अंति: (-). १०९९६०. वरडाख्य स्तवन व सूर्याष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, १३४४२). १.पे. नाम, वरडाख्य स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. बरडावीर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमदसुरसुराली मौलीकोटार; अंति: श्रेयांसि भूयांसि वः, श्लोक-९. २.पे. नाम. सूर्याष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ सं., पद्य, आदि: सप्ताश्वसमारुढं अरूण; अंति: भुक्तिमुक्तिफलप्रदम्, श्लोक-९. १०९९६५ () पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८०२, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १४४४६). पाशाकेवली-भाषा , संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सुणोहो पृछक स्थानलाभ; अंति: लाभ छे गर्ग ऋषि भाषते. १०९९६९. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-४५(१ से ४४,४८)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:चोथीवा०., जैदे., (२४.५४११, १२४३५-४६). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अष्टांग निमित्त भेद वर्णन से स्वप्नफलाफल विचार अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०९९७० (+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:गज, संशोधित., दे., (२६.५४११, १८४४२). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देश मझार; अंति: समर्या ले सुखसासता जी, गाथा-३८. १०९९७१. औपदेशिक व इलाचीपुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, १७४३५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-गुरुगण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: परमहंस कु चेत नार सुगर कह; अंति: साचो अरथ विचार, गाथा-१०. २. पे. नाम. इलाचीपुत्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १५७ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुत्र जाणिये; अंति: इम लबधविजै गुण गाय, गाथा-९. १०९९७८. आशिकपचीसी, संपूर्ण, वि. १८१४, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वडनगर, प्रले. मु. कानजी (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १५४५१). आशिकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आसिक उभो तुझ रुप देखी; अंति: जीतचंद्र० घणुं लहेस्यै, गाथा-२५. १०९९८३. (+) पुराणहंडी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., दे., (२६४११.५, १४४२७). पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्म सर्वस्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३१ तक लिखा है.) पुराणहुंडी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म सघलोइ सांभलीइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०९९९०. हेमीनाममाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, ३०४४९). अभिधानचिंतामणि नाममाला-बीजक, सं., गद्य, आदि: २४ जिनेश्वर नाम १; अंति: २७४ शिश्नअंडक गुदनाम. १०९९९४. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला का टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, २४४५५-६२). अभिधानचिंतामणि नाममाला-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: प्रणि० अहं मालां अभिधान; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२३ तक टिप्पण लिखा है.) १०९९९५. महादेव द्वात्रिंशिका व अपराजितवास्तुशास्त्रगत जिनमूर्ति श्लोक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १८४६५). १.पे. नाम. महादेव द्वात्रिंशिका, पृ. १अ, संपूर्ण. महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांत दर्शनं यस्य; अंति: जिनो वा नमस्तस्मै, श्लोक-३४. २. पे. नाम. अपराजितवास्तुशास्त्रगत जिनमूर्तिश्लोक, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. हिस्सा, विश्वकर्मा, सं., पद्य, आदि: सुमेरुशिखरं दृष्ट्वा गौरी; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२२ अपूर्ण तक है.) १०९९९८ (#) सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १५४५४-५९). सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: कार्यो भवद्भिरतं. १०९९९९ (+) नव निह्नव स्वरूप, संपूर्ण, वि. १७४५, चैत्र कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. फलवर्द्धिका, प्रले. ग. गजानंद (गुरु उपा. सुखलाल गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०,१५४५३-६२). ९निह्नव स्वरूप, प्रा.,सं., गद्य, आदि: तिसगुत्त १ रोहगुत्ते २; अंति: मिथ्यादर्शनं प्रवृत्तं. ११०००२ (#) माताजी रो अष्टक, अहिराव राठोर कीर्ति कवित्त गाथा व दिनमान दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ३०४२१). १. पे. नाम. माताजी रो अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुध विमलकरणी विबुधवरणी; अंति: नित नमेवी जगपती, गाथा-९. २.पे. नाम. अहिराव राठोर कीर्ति कवित्त गाथा, प. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अभेपुरा जेवंत सुखा; अंति: तेरे साख राठोड भड, गाथा-१. ३. पे. नाम, दिनमान दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ऐन मयादि न दसमे लेवा; अंति: दिनमान कहेवो इनी दिनमान, गाथा-१. ११०००३. २० स्थानकतप गणj, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ५४१०). २० स्थानकतप गणणं, प्रा.,मा.गु., को., आदि: नमो अरिहंताणं लो० १२ नो; अंति: २७ रोहणरी गुणणो. For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११०००४. (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४०). १. पे. नाम. द्वितीयातिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: भारई देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. २. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यं मम मंगलेभ्यः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. अर्बुदाचल स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगुणं; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ४. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: संति कल्याणदाता, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसुरंद, गाथा-४. ८. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. ९.पे. नाम. नेमनाथजी स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदू पाय पंकज; अंति: जिनवर मंगलाकर देवियै, गाथा-४. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, म. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथ सारथसारं; अंति: सूनुमचंडं यूयमखंडम्, श्लोक-५. ११०००५. (+) महालक्ष्मी स्तोत्र व दक्षिणावर्त्तशंख पूजन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ७-१०x२२-२५). १. पे. नाम, महालक्ष्मी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यं प्रणवस्तथा; अंति: सौभाग्यं द्रव्यमिच्छता, श्लोक-९. २. पे. नाम. दक्षिणावर्त्तशंख पूजन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. दक्षिणावर्त्तशंख विधि, सं., गद्य, आदि: दक्षिणावर्तः शंखो वृत्तः; अंति: सुखिनो भवतीति, (वि. प्रत में कंशांडि विधि का प्रारंभिक भाग लिखा है.) ११००१० (+) उपसर्गगण सह दीपिका टीका व प्रास्ताविक श्लोक दहा ह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १६x४४-५१). १. पे. नाम. उपसर्गगण सह दीपिका टीका, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उपसर्गगण, सं., पद्य, आदि: प्रपरापसमन्ववनिर्दरभिः; अंति: स्थानादिकर्मण्यपि, श्लोक-२२. उपसर्गगण-दीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: अयं उपसर्ग गणः प्राक्तनैः; अंति: आविर प्राकट्ये आवि: करोति. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दहा श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तक, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: देह मैं वन कसी है लंक मैं; अंति: कहां प्यारी करि के रहो. ११००१२ (+) योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४३६). योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदि: आवश्यकश्रुतस्कंधे; अंति: पवेह खमासमण इच्छा०. For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १५९ ११००१५ (#) सरस्वतीदेवी छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३९). सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकलसिद्धिदातारं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ तक है.) ११००१७. (#) तिथी चक्र, संपूर्ण, वि. १८२४, माघ शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३६). तिथी चक्र, सं., पद्य, आदि: अथात संप्रवक्ष्यामी पुष्प; अंति: फलं चैक्यं सदा बुधैः, गाथा-१३, (वि. अंत में तिथिचक्र कोष्टक दिया है.) ११००२०. नवग्रह प्रतिष्ठा विधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. जेठा चुनीलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ग्रहप्र०वि०., कुल ग्रं. ८०, ., (२६४१२.५, ५४३८). नवग्रह प्रतिष्ठा विधि, सं., गद्य, आदि: पूर्वं प्रासादे वा ग्रहे; अंति: शेषोविधिम्रहवत्. नवग्रह प्रतिष्ठा विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पेहली जिनमंदिरमां अथवा; अंतिः सर्वतारारो बाकीनां० पेरे. ११००२२. पार्श्वजिन स्तव, ज्वरनाशन मंत्र व ज्वर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१२.५, १७X५१). १. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पढे या सुनावै जुर नासन; अंति: आपो अंग कुनो पासजिनो वार, गाथा-३. २.पे. नाम. ज्वरनाशन मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ ज्वर मंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो धरि; अंति: सारमंत्र गिनियै सदा. ३. पे. नाम. ज्वर छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नमो आनंदपुरनगर अजयपा; अंति: लहसी लक्ष्मी लीला भोगो, गाथा-१२. ११००२४. (+) चंदनबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १२४३६). चंदनबालासती गीत, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कौशांबि ते नगरी; अंति: जावां सतगुरू, गाथा-३६. ११००३० (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १४४४२). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ११००३१ (+) काग विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. हुंडी:कागविचार., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, १३४४३). कागस्वरसकुन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., काग मेघ वर्णन अपूर्ण से कुत्ता सकुन विचार अपूर्ण तक है.) ११००३२. पद्मावती संथारा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव. मिलापचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पद्मावती., दे., (२६.५४१२,१७४३६). पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० छुतइ तत्काल, ढाल-३, गाथा-३५. ११००४३ (#) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. जयराम ऋषि; पठ. सा. चैना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, २७४१६). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: जीव गइ इंदिय काए जोए वेदे; अंति: (-). ११००४६ (+) नाडीपरीक्षा व मूत्रपरीक्षा, संपूर्ण, वि. १९३५, माघ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. इंद्रचंद शिष्य (गुरु मु. इंद्रचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, ८x२४). १.पे. नाम. नाडीपरीक्षा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नाडीप्रक्षा. __ सं., पद्य, आदि: करस्यागुष्टमूलेया; अंति: नाडी सम्यक् न भुध्यते, श्लोक-१२. २.पे. नाम. मत्रपरीक्षा, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: विकासितं तैलमता च मूत्रे; अंति: नैव कृता परीक्षा, श्लोक-१. ११००६४. हितशिक्षा छत्रीसी व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, ११४३६-३९). १.पे. नाम, हितशिक्षा छत्रीसी, प. १अ-३अ, संपूर्ण. उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सांभलजो सजन नरनारि; अंति: शुभवीर० मोहन वेली, गाथा-३६. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामि तुमे कांइ; अंति: जस कहे हेजे हलसु, गाथा-५. ११००८०. दानशीलतपभावना कुलक, संपूर्ण, वि. १६३५, आश्विन शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वटपद्र, प्रले. मु. रूपा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १८४३५-३९). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रज्जसारो; अंति: सो लहइ सिद्धिसुहं, वक्षस्कार-४, गाथा-८१. ११००८१. शुकनावली यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, ५४१०). शुकनावली यंत्र, अज्ञा., को., आदि: (-); अंति: (-). ११००८४. करगता सज्झाय व कलजुगनारी लक्षण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, २०४५७). १.पे. नाम. करगत्ता सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सासुवहु, मु. देवाब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: सासू कहै बहूसुं बाता; अंति: सेवा कीज्यो कुलवंता नरनार, गाथा-१७. २.पे. नाम, कलजुगनारी लक्षण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति के अंत में वीरबल कवि संबंधित २ दोहे दिये हैं. कलियुग लक्षण, मा.गु., पद्य, आदि: घर की कह्या न माने साधो; अंति: गाथा-१२. ११००८६. (+#) अंगफरकन विचार व मणिका कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. म. गोकुलचंद्र ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १६x४४). १. पे. नाम, अंग फुरकण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. अंग स्फुरण फल, सं., पद्य, आदि: सिरसः स्यंदने राज्य; अंति: योज्यं अंगे स्फुरणजं फलं, गाथा-७. २.पे. नाम, मणिका कल्प, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मणि कल्प, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: अथो वक्ष्ये मणेः; अंति: लक्षणो नाम गुरुत्व मानंदः, श्लोक-६१, (वि. अंत में मणिका कल्प का कोष्टक दिया है.) ११००८८.(+) गणिविद्या सह बालावबोध व अंग फरकण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ११४३८-४२). १.पे. नाम. गणिविद्या प्रकीर्णक-गाथा-२३ ज्ञानवृद्धि कारक नक्षत्र गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. गणिविद्या प्रकीर्णक-हिस्सा गाथा-२३ ज्ञानवृद्धि कारक नक्षत्र गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दस नक्खत्ता नाण बुढिकरा; अंति: तहा दस बुढिकराय नाणस्स, गाथा-१. गणिविद्या प्रकीर्णक-हिस्सा गाथा-२३ ज्ञानवृद्धि कारक नक्षत्र गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: दश नक्षत्र ज्ञानना वृद्धि; अंति: कांही विघ्न उपजे नहि. २. पे. नाम. अंग फरकण विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अंगस्फुरण विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती गोयम गुरुवंदे; अंति: मरे कारज सर्व घर बेठा सरे, गाथा-१३, (वि. अंत में एक दहा दिया है.) ११००९०. (4) अइमुत्तामुनि, साधुमहिमा व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, १७X४९). १. पे. नाम, अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कहानजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन रति वरसातनी आवी; अंति: एम बोलि सेवक कान्ह रे, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २. पे. नाम. साधुमहिमा सज्झाय, प. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: साध चरण नित्य वांदीइ रे; अंति: माहरि जीवजी प्राणाधार रे, गाथा-३. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.ग.. पद्य, आदि: जेहवा वक्ष सेवीइ तेहवा: अंति: सेवज्यो समरथ साधनि जाणी. गाथा-५. ११००९१ (+) आदिजिन लावणी, नगरथ ऋषि सज्झाय व पार्श्वजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१०, वैशाख शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. माडलगढ, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:लावणी., संशोधित., दे., (२६४११.५, १६४३७). १.पे. नाम, आदिजिन लावणी, पृ.१अ-२आ, संपूर्ण. म. जयमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: श्रीआद० श्रीआदि जिणेसर; अंति: लक्ष्मी अजर अमर पद पाउं, गाथा-६९. २. पे. नाम. नगरथ ऋषि सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. जयमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अणमती कोउ वास हस्या म; अंति: जमल कहे व पाम्या सुख अंत. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. जयमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीकासीदेस वाराणसी नगरी; अंति: जयमल० तुम चंतामण दल वसीयो, गाथा-२५. ११००९२. देवानंदा सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. उदेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १०४३३). १. पे. नाम. देवानंदामाता सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन हरखी; अंति: सकलचंद० उलटे मनमां आणी, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: देख्या दोयसीन्या सीये माय; अंति: फल हय जासि हे माय, गाथा-५. ११००९४. (+) जयतिहअण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७४१२, ९४३५). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव विण्णिवइ आणिंदिय, गाथा-३०. ११०१०७. (#) ज्योतिषग्रहभावफल व जिनभवानी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:भाव., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, ६-१०x४५). १. पे. नाम. ज्योतिषग्रहभावफल सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ज्योतिषग्रहभावफल, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: धन मार्क फलं कुजोक्तं, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीय भाव से लिखा है.) ज्योतिषग्रहभावफल-टबार्थ, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: शनि भौम फल भौम वत जाणवो, अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. जिनभवानी स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: जिनादेशजाता जिनेंद्र; अंति: परम सुख तजि संसार कलेश, श्लोक-१०. ११०११०. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १४४३७). महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: समयसुदर०त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९. ११०११३. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८६९, आश्विन शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, पठ. सा. मया आर्या (गुरु सा. रूपा आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १७४३६). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ऊँ नमो भगवति; अंति: कल्याणनी कोड थास्यै सही. ११०११६. (#) योगचिंतामणि का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-२७(१ से ४,६ से १६,१८ से २९) ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, २१४५४). For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची योगचिंतामणि- टवार्थ, पं. नरसिंह मुनि, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्रथम पाकाधिकार अपूर्ण से अंतिम मिश्रिकाध्याय नाडीवात वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. टबार्थ बालावबोध शैली में लिखा है.) ११०११७. (+४) शाकुनसारोद्धार, विष्णु १० व २४ अवतार श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, , प्र. वि. पत्रांक- १x२= १. पत्रांक गिनकर लिखे गए हैं. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४१२, ४२०३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम. शाकुनसारोद्धार, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. माणिक्यसूरिजी सं., पद्य, आदि उपास्महे परं ज्योति अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., " प्रकरण २ गाथा २४ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे नाम. विष्णु १० अवतार श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: वनजो वनजो खर्व त्रीरामी; अंति: कल्याण अवतारा हरेर्दश, श्लोक - १. ३. पे. नाम विष्णु २४ अवतार श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीमत्मत्स वराह कूर्म्म; अंति: भृगुजो वद्रीपति पातुवः, श्लोक-१. ११०१२१ (+) नक्षत्रदिनघटीपला यंत्र व नवतत्त्व बोल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X१२, ५X१०). १. पे. नाम. नक्षत्रदिनघटीपला यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. नक्षत्रदिनघटीपलायंत्र, अज्ञा., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे नाम. नवतत्त्व बोल, पू. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जीव की द्रब थकी तो अनंता; अंति: काल थकी आद अंत सहित. ११०१२२. (*) पंचांगगणित विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१२, १३x४०). पंचांगगणित विधि, उपा. महिमोदय, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: परम ज्योति प्रभुकुं नमु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २१ तक लिखा है., वि. अंत में इष्टदंड बनाने की विधि दी गई है.) ११०१२३ (#) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८१३ शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पासाकेवली., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, २२X७०). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी, अंति: भक्ति करे शुकन श्रीकार. ११०१२५. (+) ज्वरतावनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल विद्युत्पुर, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५x१२, ११५२६). ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि ॐ नमो आणंदपुर नगर अजयपाल, अंति: कांति० मंत्र गहिये सदा, गाथा १६. ११०१२८. (४) पाशाकेवली, संपूर्ण वि. १८२१ शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. सूर्यपुर, प्रले. पं. कुशलरत्न (गुरु पंन्या. कल्याणरत्न, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: पासाकेवली., टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११.५, २४X५२-६३). , पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी, अंति: भक्ति करे शुकन श्रीकार. शुकन ११०१२९. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३, प्र. वि. हुंडी सुकनावलि, जै (२६४११.५, १६४३९-४२). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: १११ उत्तम सुण हो प्रीछक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शकुन संख्या २२२ तक लिखा है.) ११०१३४. (+) देहस्थज्ञान विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. हुंडी स्वरोदय., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X११.५, १३-१६x४७). देहस्थज्ञान विवरण, सं., पद्य, आदि नत्वा वीरं प्रवक्ष्यामि अंतिः कुर्याद्धर्मोद्यमं सूधी, श्लोक ७७. ११०१४१. सिद्धदंडिका स्तव, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पू. १, दे. (२६.५४११.५, ८४३४). , , For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाउ अंतमहुतेण; अंति ने: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है., वि. यंत्र सहित.) ११०१४५ (+) वीरत्थुतीनामध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हुंडी:पूच्छिण., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १७४३४). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति: आगमिसंति त्तिबेमि, गाथा-२९. ११०१४७. विवाहपडल व ज्योतिष श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, ले.स्थल. मलसीसर, प्रले. पं. सदासुख, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४२९). १.पे. नाम. विवाहपडल का पद्यानुवाद, पृ. ३अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अभयकुशल० मंगल प्रदाः, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मीने मेषे च द्वे नारी; अंति: नारी सूतका ज्ञान मुच्यते, श्लोक-१. ११०१४८.(+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., अ., (२६४१२, ७४३३-३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१९ अपूर्ण तक लिखा है) भक्तामर स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: कांसा भक्ताः अध्दषिताः; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१० तक टिप्पण लिखा है.) ११०१५४. (+#) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९५९, श्रावण शुक्ल, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, ले.स्थल. जावाल नगर, प्रले. श्राव. मोहन गिरधर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२.५, १२४३२). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: उतम श्रीगोडीजी साइ छ जी, (पू.वि. शकुन अंक-२२४ से है.) ११०१५६. स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३०). १. पे. नाम. ओसियामाता छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सेवी कोड कल्याण; अंति: करजोडी सेवक हेम कहै, गाथा-५. २. पे. नाम. सचियादेवी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: साची देवी साचल कहियै अरज; अंति: तुमारो शरण गही है तेरी, गाथा-३. ३. पे. नाम. अंबामाता स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: माताजी हो आठमने रविवार के अंति: देवी बहुत खुस भई रे लो, गाथा-६. ११०१५७. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, २२४१५). औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: चली जाय कागद कीसी गुडिया; अंति: इस नगर का चेतन राजा, गाथा-१०. ११०१६१. पद्मावती आराधना व गुरुवाणी गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, १९x४२-४५). १.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८९६, पौष शुक्ल, १०, ले.स्थल. पीपाड, पे.वि. हुंडी:पद्मावतीरीढाल. उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: कहे पापथी छटि ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. २. पे. नाम. गुरुवाणी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८९९, कार्तिक शुक्ल, ९, ले.स्थल. पीपाड. मु. शंभुनाथ, पुहिं., पद्य, आदि: पुजजीरी वाणी प्यारी घटा; अंति: गुणधारी शंभुनाथ पलपल वारी, गाथा-५. ११०१६३. (#) व्याख्यान पीठिका व वैराग्यबोध सवैया-रावण दृष्टांतगर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:उंठाणा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १२४२९). For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. व्याख्यान पीठिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: चला लक्ष्मी चला प्राणं चल; अंति: सार पदार्थ छे ओ नह चले है. २. पे. नाम. वैराग्यबोध सवैया-रावण दृष्टांतगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रही नंदन की न वदन रही; अंति: वेला मुलायो मुठी भर, गाथा-१. ११०१६८. चमत्कारचिंतामणि का पद्यानुवाद व द्वादशलग्न विचार, संपूर्ण, वि. १९२२, वैशाख कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. रवेणी, प्रले. मु. माणक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १४४३६-३८). १.पे. नाम, चमत्कारचिंतामणि का पद्यानुवाद, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. चमत्कारचिंतामणि-पद्यानवाद, म. श्रीसार, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: युं विचार ज्योतिष; अंति: सकोमलमति मायावंत उदास, दोहा-१०८. २. पे. नाम. द्वादशलग्न विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. पहिं., गद्य, आदि: मेष लगन मंद करै १; अंति: मीन काम अरथ दौर १२. ११०१६९. बंधेज गुटिका रेखता, काला औषध गाथा व चोरपरीक्षा गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. राजेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रारंभ में 'पंडित न्यांनविजयजी कृत आम्नाय छे' उल्लिखित है. यह सभी कृतियों के लिए है या मात्र प्रथम कृति के लिए, यह संशोधनीय है., जैदे., (२६४१२.५, १४४३५). १. पे. नाम. बंधेजगुटिका रेखता सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. बंधेजगुटिका रेखता, मु. न्यानविजय, पुहिं., पद्य, आदि: दारू ऐक बंधेज का कहूं; अंति: सारी रात ही नोबत वाजती रे, ___ गाथा-१. बंधेजगुटिका रेखता-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जायफल टांक१ जावंत्री टां१; अंति: घटिका ६नो बंधेज होवे सही३. २. पे. नाम, काला ओसधनो पाठ सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. काला औषध गाथा, सं., पद्य, आदि: सूतकं गंध मिरचं टंकणं; अंति: युक्तं कमेत्तिरगुणं भवेत्, श्लोक-१. काला औषध गाथा-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: पारो टां४ गंधकआंवलसारो; अंति: मकी ते खवरावीइ रेच बंधाई. ३. पे. नाम, सभाचौरज्ञानं सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. चोरपरीक्षाज्ञान गाथा, सं., पद्य, आदि: चिंतितमंकं पंचगुणं दशसहित; अंति: नामानि परिपाट्या लिख्यते, श्लोक-४. चोरपरीक्षाज्ञान गाथा-बालावबोध, सं., गद्य, आदि: ततश्चौरनामांक पंचगुणं; अंति: तृतीय ऐवं सर्वत्र ज्ञेयं. ११०१७१ (#) पार्श्वनाथ अष्टक व मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, ७-१४४३६-४२). १.पे. नाम. कलिकुंडपार्श्वनाथ अष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवेंद्रवंदा; अंति: तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक-९. २.पे. नाम, पार्श्वजिनमंत्र विधान, पृ. २आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिनमंत्र विधान-कलिकंड, सं., गद्य, आदि: ॐह्रीं श्रीं तं नमहपासना; अंति: (-). ३. पे. नाम, पंचपरमेष्ठी मंत्र-असियाउसा, पृ. ३अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐहीं०अर्ह असियाउसा; अंति: सव्वसाहुणं नमस्वाहा. ४. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गाथा १७, प्रा.,सं., पद्य, आदि: ॐउवसग्गहरं पासं पास; अंति: (१)संकित्तएएं पसमंति सव्वाइं, (२)भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-१३. ११०१७३ (#) समकित पचवीसी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१,४)=३, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. मु. जगवल्लभ; पठ. श्रावि. मेनाकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०, १२४३३-३६). समकित पच्चीशी स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्मविजय० माहरी जागी रे, ढाल-१०, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-८ से ढाल-७ गाथा-२ अपूर्ण तक व ढाल-१० गाथा-५ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १६५ ११०१७६. (#) अठारानाताको चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९१४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बगरा, प्रले. सा. चंपाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नात्र, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२, १७४३५). १८ नातरा चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: मनुषा भव पायो जी उंच कुल; अंति: नातातणो जी लोटयो बखाण रे, ढाल-४. ११०१८३. (#) मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ११४३०). मृगापुत्र सज्जाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तुमे वंदो रे; अंति: राम०० धन तस मात ने तात, गाथा-१४. ११०१८४. (+) संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२७४१२, १४४५४). संतिकरं स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: एतत्स्तोत्रं त्रिकाल; अंति: सर्वाभ्युदय हेतु. ११०१८६. जैनकेवली सुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४१२.५, १४४३७). जैनकेवली सकनावली, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहँ सर्वज्ञाय; अंति: (-), (पू.वि. अंक-४७ का फलादेश अपूर्ण तक है.) ११०१९४. (+) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, ११४३८). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व गर्भित, मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, ई. १९वी, आदि: सरसतीस्वामीने विनवू; अंति: माणेकमुनिनावं गर्भ आवास, गाथा-१६. ११०१९५ (+) दशवैकालिकसूत्र व माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १०४२१). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-द्रुमपुफियाध्ययन, पृ. १अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ११०१९६. नमस्कार महामंत्र, उवसग्गहर स्तोत्र व संतिकर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३८). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवइ मंगलं, पद-९. २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ३. पे. नाम. संतिकर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. संतिकरं स्तोत्र, आ. मनिसंदरसरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतीकर संतिजिणं जगचरणं; अंति: स लहइ सुअ संपयं परमं, गाथा-१३. ११०१९७. (#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका-अध्ययन-२९, सूत्र-२ व ३, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, २२४६३-६८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८५, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११०१९८. पार्श्वचिंतामणि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रावण शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मेवाड, प्रले. अमरदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, ९x४२). पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणिः पार्श्वः, श्लोक-७. ११०१९९ (+) कुगुरुपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:कुगुरुप०., संशोधित., दे., (२७४१२.५, ११४: कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी; अंति: भणे तेजपाल सुखदाय, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११०२०३. नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२६.५४१२.५, ५४३४). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२५ अपूर्ण तक लिखा है.) ११०२०४. पाक्षिकादि प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १२४३०). प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: इच्छ देवसियं आलोयना; अंति: चालीस लोगस्सनो काउसग्ग. ११०२०६. भीलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:भीलीनीस., जैदे., (२७४१२.५, ११४४५). भीलडी सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सांमीने वीनवू; अंति: छ पुरी वन छे अति रुयरुं, गाथा-१७. ११०२०७. १२ पर्षदा समवसरण विचार, संपूर्ण, वि. १९१९, भाद्रपद कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वीसलपुर, प्रले. श्राव. जुगभाई डाह्याभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रषदा., दे., (२६४१२, १५४३८). १२ पर्षदा समवसरण विचार, मा.ग., गद्य, आदि: चमरेंद्रना चोसठ हजार; अंति: करोडने बोतेर लाख भवन थीआ, (वि. अंत में एक औपदेशिक दोहा लिखा गया है.) ११०२१२ (+#) आदिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. सुथरी, प्रले. मु. कर्मचंद; पठ. श्राव. मोवनलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १०-१३४३२). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण, वि. १९६४, माघ शुक्ल, ७, सोमवार. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: नही मानू रे रीखब विन आण; अंति: कहे मुझ पापी कू करीए जाण, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण, वि. १९६६, फाल्गुन शुक्ल, ८, बुधवार. पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपूर श्रीपासजिणंदो; अंति: पार्श्वनाथ चोसीलो, गाथा-१३. ११०२१३. पर्युषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३६). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमुं सरसति पाय; अंति: तस सुत जगवल्लभ गुण गाय, गाथा-१६. ११०२१४. (+-#) औपदेशिक सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:मनपंखी., अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १५४३३). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: नवो लोक जाणी करी कीजो जो; अंति: परीहरो नारी मोटो विकार रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: आणंदजी कहत जोडी वनणा करूं; अंति: सेटा रआ प्रसंसा महावीर हो, गाथा-९. ११०२१५ (-) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४१२.५, ११४३१). महावीरजिन स्तवन, म. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: के आज मारे देरासर दीवाली; अंति: ज्ञानविमलजी ये निहाली रे, गाथा-९. ११०२१६. (#) रथनेमिराजिमती गीत व स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३७). १.पे. नाम. रथनेमिराजिमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहनेमी राजुल दीयर; अंति: गुणीजन दोयने गावशे रे, गाथा-१३. २. पे. नाम, स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: शुद्ध स्वरूप धारवा१ ज्ञान; अंति: काया गुप्ति सहित. ११०२१७. महावीरजिन स्तुति, ११ गणधरनी व जंबुस्वामीनी सज्जाय, संपूर्ण, वि. १९१५, फाल्गुन कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. गंगादास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, ११४३२). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १६७ महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारे माहावीर जिणंदा; अंति: जसविजय जयकारी, गाथा-४. २. पे. नाम. ११ गणधरनी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ११ गणधर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतमस्वामीजी के चौदे; अंति: नाम लीया सहु सुख चावो, गाथा-११. ३. पे. नाम. जंबुस्वामीनी सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: ए आठोइ कामणी जंबु अवसर रे; अंति: रे जाया भले लो रे संजमभार, गाथा-१३. ११०२१८. (+#) पर्यषणपर्व सज्झाय व जोगीसर की सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रमपचुसणा., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १६४३८). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण आवीयो रे; अंति: लाल मतिहंस नमै करजोड रे, गाथा-११. २. पे. नाम, योगसंग्रह सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. उदयसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: श्रीजिणवर प्रणमु; अंति: जिणआज्ञा शिवपुर वास रे, गाथा-१४. ११०२१९. थावचानुं चौढालियो व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१२.५, १८४४४). १. पे. नाम, थावचा- चौढालियो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. थावच्चाकमार चौढालियो, म. हर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि द्वारामति नगरी वसे थावचा; अंति: श्रीसंघ कोडी वधामणा, ढाल-४, गाथा-५६. २. पे. नाम. थावचापुत्र सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. तेजमुनि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीजिन नेम समोसर्या; अंति: रे ऋषि थावचा गाया रे, ढाल-३. गाथा-२१. ३. पे. नाम. अर्जुनमाली सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. कानजी, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: सद्गुरु चरण नमी कहुं सार; अंति: सेवक गणी कान्हा गुणगाय, गाथा-१६. ४. पे. नाम, नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तवन, म. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालीने पीली वादली रे राजन; अंति: गया हो कति नमे वारो वार, गाथा-७. ११०२२०. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३७). आदिजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे आपण ससनेहि; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-७. ११०२२६. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. सरस्वती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१२.५४४.५, १४४२९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ११०२२८. (+) २० विहरमानजिन, आदिनाथ व १७० जिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१२.५, १०४३०). १. पे. नाम. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जीव, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर युगमंधर प्रभु; अंति: वंदता जीव लहे भव पार, गाथा-६. २. पे. नाम, आदिनाथ चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: आदिनाथ जगन्नाथ विमला; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ३. पे. नाम. १७० जिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७० जिन स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: सोलजिणेसर सामला रात; अंति: ध्यानथी माणक भव नीस्तार, गाथा-५. ११०२२९ (+) संभवजिन विज्ञप्ति छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ११४३७). संभवजिन विज्ञप्ति छंद, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो संभव स्वामी; अंति: हंसनुं चीत थाये सुधीर, गाथा-११. ११०२३६. (#) औपदेशिक सज्झाय व नेमिराजिमती पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१३, ७४१९). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-संवर, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गोयमनै; अंति: मुगत हेलां यु तिरो, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमिराजिमती पद-केशरीया, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद-केशरीया, मु. वल्लभकुशल, रा., पद्य, आदि: जो थे चालो सिवपुरी रे; अंति: वल्लभकुसल०वीनवैरे साहिबा, गाथा-४. ११०२३८. मौनएकादशीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. पुन्यकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मौनएकादशी कथा., जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४३). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिणं नत्वा; अंति: रीहेरुद्धिवृद्धिसात, (वि. अंत में एक सुभाषित श्लोक दिया गया है.) ११०२३९. द्वितीयानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६०, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. फतेविजय; पठ. श्रावि. मेनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ८४३५). बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: विजयलबधि०विविध विनोद, गाथा-८, (वि. अंत में पांच मेरुनं गरणं लिखा है.) ११०२४१. पायाभरण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६.५४१२.५, ७X३८). भूमिपूजन विधि, पुहिं., गद्य, आदि: प्रथमसें नींव खोदी गई है; अंति: (१)पीछे सब दिन काम चलु रखणा, (२)कलशध्वजादि स्थापनं विधेयं. ११०२४४. (#) नेमिजिनबहत्तरी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३४, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जामनगर, प्रले. मु. गुलाबचंद ऋषि (गुरु मु. कृष्णचंद्र ऋषि); पठ. सा. पार्वती बाई; श्रावि. इंदरबाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नेमबहुत्तेरी., कुल ग्रं. १२५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१२८७) जीहा लगे मेरू महीधरा, दे., (२६४१२.५, १६४४४). नेमिजिनबहुत्तरी स्तवन, मु. मूलचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रथम जिणेसर पाए नमी; अंति: तस घर होवे जयजयकार, गाथा-७४. ११०२४५. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खेटकपुर, जैदे., (२६४१२.५, ११४२८). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, कविअण, मा.गु., पद्य, आदि: एहवा एहवा मुनीवर मे; अंति: भणे खेमा सुरीतणो छे आधार, गाथा-५. ११०२४६. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४१२, १५४३०). आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: जिम तिम मद्यो वरमुत्ति, गाथा-२७. ११०२४७. स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ११, जैदे., (२७४१२.५, १४४३९). १. पे. नाम. दादाजी स्तवन-नागोरीगच्छ, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: दोलत द्यो दादा सद्गुरु; अंति: गुण गावै परमानंद, गाथा-९. २. पे. नाम. दादाजी स्तवन-नागोरीगच्छ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: देव सकल सिर सेहरो हो; अंति: वीरनो० जंपै परमानंद, गाथा-९. ३. पे. नाम, ऋषभनाथजी रो स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ आदिजिन स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: उजल सिखरी दिणंदो प्रभु; अंति: दिन दिन तेज सवाया हो, गाथा-११. ४. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, म. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज बधाई नाभराय घर मरुदेवा; अंति: दीजे तुम चरणं की सेवा, गाथा-५. ५. पे. नाम, थंभणपार्श्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-स्थंभनपुर, मु. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर प्रभु पासजी तेवीस; अंति: दीजिये अबचल लिल विलाश जी, गाथा-७. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु सांभल अरज सेवग केरी; अंति: पसाये लहिये पदवी सिध केरि, गाथा-१०. ७. पे. नाम. सम्मेतसिखर स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: सम्मेतसिखर गिरराज दिठो; अंति: परमानंद० मनरंग सो, गाथा-९. ८. पे. नाम. सम्मेतशिखर स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज बधाई मेरे आज बधाई; अंति: भगति पामे सुख साली, गाथा-३. ९. पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सांवलिया, म. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: चालो भविजन चालो भविजन; अंति: दिशे सुख सप्तनि पेटा, गाथा-३. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. टीकमचंद, मा.ग., पद्य, आदि: जिनवरजी भाषे नित दया; अंति: टीकमचंद० नेश्चै मनधार रे, गाथा-४. ११. पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: हां रे कांई धर्मजिण; अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-६. ११०२४९ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे.७, दे., (२७४१२.५, १२४४२). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___ मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सेजा सिणगारहार; अंति: आराधिइं आगमवाणी वनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्री देवाधिदेव जि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: सुपन लहे उपजे विनय वनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम, पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, म. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बेहेनी सुदर्शन; अंति: धरे सुणज्यो एक चित्त, गाथा-३. ६.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: जिन सारखी वंदु सदा वनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवछरी दिन दिन; अंति: विनयविजय० चरणे नामु शीस, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वन, संपूर्ण, वि. १९३७, कातिक नवपदवीसथांनक., दे., (२६.५४१२, सारे लोल, गाथा-८ १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११०२५०. २० स्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३७, कार्तिक कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण; पठ. सा. सौभाग्यश्रीजी (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवपदवीसथानक., दे., (२६.५४१३, ११४३६). २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे प्रणमु; अंति: कंति तवन सोहामणोरे लोल, गाथा-८. ११०२५१. १५ तिथि जिनकल्याणक गणणु विचार व सिद्धाचलनी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१३.५, १२४४०). १. पे. नाम. १५ तिथि जिनकल्याणक गणण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: १ने दिवसे श्रीकुंथुनाथ; अंति: ते तिथी ये एवी रीते करवो. २. पे. नाम. सिद्धाचलनी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल निला मुनी; अंति: सारी चकेसरी रखवाली, गाथा-४. ११०२५२. अभिनंदनजिन स्तवन, पंचमहाव्रत व रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२७४१२, १६x४५). १. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. __पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुम्हे जोज्यो जोज्यो; अंति: तजीने पामे शिवपुर सद्य, गाथा-९. २. पे. नाम, पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवइ रे; अंति: ए सज्झाय भणे ते सुख लहि, ढाल-५, गाथा-३१. ३. पे. नाम, रात्रिभोजन त्याग सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरमर्नु सार ते; अंति: पाले तस धन अवतारो रे. गाथा-७. ११०२५४. रथनेमिराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सीझाय., दे., (२७७१३, ११४३१). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रह्यो नेमी; अंति: इम महापद केवल लहेसे रे, गाथा-१३. ११०२५५ (+) महादेव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, प्र.वि. अनुमानित पत्रांक दिया है., संशोधित., दे., (२७.५४१३, १७४३९). महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांतं दर्शनं यस्य; अंति: जिनो वा नमस्तस्मै, श्लोक-४०. ११०२५६. नेमराजिमती लेख, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२७७१३, १४४२९). नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्री रेवंतगिरि; अंति: शिष्य रूप सदा तुम दास, गाथा-१९. ११०२५७. आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६५, भाद्रपद शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ., (२६४१३, १३४३६). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेजा; अंति: देजो परमानंद, गाथा-२०. ११०२५८. रुक्मणीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ., (२६४१३, ११४३४). रुक्मणीसती सज्झाय, म. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गांमो गांम नेम; अंति: जाय राजविजय रंगे भणे, गाथा-१४. ११०२६०. ८ प्रकारी पूजा श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, दे., (२६.५४१३, १२४४५). ८ प्रकारी पूजा श्लोक, म. देवचंद्र, सं., पद्य, आदि: विमलकेवल भासनभास्करं; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, श्लोक-९. ११०२६१. (-#) नेमिजिन व स्नातस्या थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. नाहालचंद खेमचंद दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, १३४३७). १. पे. नाम, नेमिजिन थोय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २. पे. नाम, स्नातस्या थोय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १७१ पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ११०२६२ (+) जीवदया छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, १३४३०). जीवदया छंद, म. भूधर, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीजिनवाणी पाए नमी; अंति: भणे वीतराग वाणी एम कही, गाथा-११. ११०२६३. (#) रहनेमी राजेमति संवाद, संपूर्ण, वि. १९४०, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. नरेंद्रसागर; पठ. श्रावि. दोलतबाई माणकचंद; अन्य. श्राव. माणकचंद रायचंद मेता; श्राव. रायचंद मेता, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:राजेमति. श्रीनवपलवजी माहाराज प्रसादात्., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, ११४२३). रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः रहनेमि अंबर विण; अंति: विवेके नित्य वंदन करे जो, गाथा-४०. ११०२६४. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१३, ११४३४). सीमंधरजिन स्तवन, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे साचा छो सिव परगामी; अंति: चंदा निरवाण बुध जगीस, गाथा-५. ११०२६५. दीपोत्सवपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. मोतीचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, १०x२८). दीपावलीपर्व स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारे दीवाली थई आज; अंति: वंदे प्रभु भवनो फेरो टाल, गाथा-६. ११०२६६. चौवीसजिन आंतरा स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:आंतरातवः., ., (२६.५४१३, १२४३८). २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सारद सारदना सुपरे; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ तक लिखा है.) ११०२६७. आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१४, २५४५०). आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो सिधाणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., यात्रा संबंधी आलोयणा तक लिखा है.) ११०२६८. दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:दं०क., जैदे., (२७७१३, ११४३७). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिओ चोवीसजिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-३९. ११०२६९ (#) संथारापोरसीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२१, चैत्र कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पादरा, प्रले. मु. हीरविमल; अन्य. पं. प्रेमविमल; पठ. श्राव. माणकचंद सेठ, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंभवनाथजी प्रासादात्., मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२६.५४१३, ५४३०-३३). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिकरण शुधी पाप निषेध; अंति: ए सम्यक्त मे ग्रहिओ लाधो. ११०२७०. (+#) नवाणुप्रकारी पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८८५, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वटपद्र, प्रले. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १८४४४). ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: आतिम आप ठरायो रे, ढाल-११. ११०२७१. शांतिकरस्तोत्र कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बोरसद, अन्य. पं. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, १९४४३). संतिकरं स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: एतत्स्तोत्रं त्रिकाल; अंति: सर्वाभ्युदयहेतुरिति. ११०२७२. स्थापनाचार्यजी परीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१०.५, १०४२४). स्थापनाचार्यजी परीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभद्रबाहस्वामि; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आवर्तनी भयनाश वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ११०२७३. (+) सूतक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१३, १४४४२). सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम कोईने घेर जन्म थाय; अंति: समुर्छिम जीव उपजे छे. For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " " ११०२७५ (+) ककाबत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी ककाबत्ती, संशोधित. दे. (२५.५x१३, १८३५). ककबत्तीसी, मा.गु., पद्य, आदि कका कहा कहुं किरतारसुं अंतिः पाने पडी गोरख पूजी बार, गाथा- ३३. ११०२७७. ६ अट्ठाइपर्व स्तवन, महावीरजिन स्तवन व वज्रस्वामी गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६X१३.५, १२X३०-४० ). १. पे. नाम. ६ अट्ठाइपर्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. www.kobatirth.org मा.गु., पद्य, आदि परम पजुसणमां सदा अमारो अंति प्रभु शासनना एमे वारे, गाथा ५. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण, प्रले. मु. लखमीचंद्र ऋषि (पाचंद्रसूरिगच्छ); पठ. श्रावि. डोसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. श्रीगाडलीया पार्श्वनाथस्वामि प्रसादात्, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि त्रिसलानंदन चंदन शीत, अंति वीर कहे० देज्यो आशीश गाधा- ११. ३. पे. नाम. वज्रस्वामी गहुंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सखी रे में तो कौतुक वीतुं अंतिः रे श्रीशुभवारना वालडा रे, गाथा-८. ११०२७८. नमस्कार महामंत्र, नमस्कारमहामंत्र व गुरुस्थापना गाथा सह अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६.५X१३.५, १२X३२-३८). १. पे. नाम नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ संपूर्ण, पे.वि. वह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवइ मंगलं, पद- ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सह अर्थ, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि नमो अरिहंताणं; अतिः पदमं हवइ मंगलं, पद- ९. नमस्कार महामंत्र-सूत्रार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: रागादिक वेरि प्रते हणन; अंति: मंगलीक कल्याणकार कहवइ. ३. पे. नाम. गुरुस्थापना गाथा सह अर्थ, पू. २अ-२आ, संपूर्ण " गुरुस्थापना सूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पंचिंदिय संवरणो तह; अंति: गुणो गुरु मज्झ, गाथा-२. गुरुस्थापना सूत्र-सूत्रार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पंचिंदियक० फर्सनरसन; अंति: रूंधे ते गुरु कहिए. ११०२७९. (+) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५४१३.५, ५X१०). " ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को. आदि देवगति मनुष्य, अति अनंत भागे सिध पदमें. ११०२८०. दीपावलीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३४, माघ कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. हर्षविजय, पठ. श्रावि. बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी तवनदी. वे., (२५.५४१३.५, १०x३०). " दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि दुःखहरणी दीपालिका रे; अंति: ज्ञानविमल ० सकल गुण खाणी, गाथा-९. ११०२८१ ( औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे ९. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२६.५४१३.५, १२x२७). १. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित सानमा राख्य मन; अंति: परमारथ नहि रूप ठास्यू, गाथा-५. २. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. . सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: छांड्य मन कुटिलता भजे; अंति: अखंड तारु तप तपे छे, गाथा-६.. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कपट कु भांडथी नासीइ वेगला अति: सौभाग्य० पदरंगनो नास थासे, गाथा ५. . ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. . सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि ओलखे अनाथ परजीवनी प्राणी; अंति: सौभाग्य० मरण ना भय नावो, गाथा ५. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि स्वादधी जीवने चटाल वाध्यो; अंति: सौभाग्य स्वाद रीठ रीठो, गाथा-४. ६. पे. नाम औपदेशिक पद, पू. ३४-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १७३ मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आप अपलक्षण जोइने चालये; अंति: ओलखे सौभाग्य पद निवासे, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. म. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धिख तुझ तातने धिख तुझ मात; अंति: सौभाग्य जीवस्यूं कमायो, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानदसा तो जाण्यूं नांहि; अंति: सौभाग्य० लाल चर्ना हछाजी, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वली-वली कहिए जीवसु तुझने; अंति: कहै सौभाग्य थया धूल धाणि, गाथा-६. ११०२८२. समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७७१३.५, २०४३०). समवसरण स्तवन, मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तुम समवसरण भारी देख; अंति: बाल जगति जिनशासन जयकारी, गाथा-१०. ११०२८३. (+) पंचमीअष्टमीएकादशी आदि पारणे की विधि, संपूर्ण, वि. १९५५, आषाढ़ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:पंचमीपारणे की विधि. प्रत के अंत में "ये पुस्तक भंडार की पुस्तक से शुद्ध की हुई है" ऐसा लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१३.५, ९४३९). तपग्रहण विधि-पंचमीअष्टमीएकादशी आदि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पंचमीतवं अष्टमीतवं; अंति: पुण्यरित्यद्भूनाटकम्. ११०२८४. हेतसिक्षाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९४१, पौष कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६.५४१३.५, १२४४०). उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सजना नरनारी हेत; अंति: शुभवीर० मोहन वेली, गाथा-३६. ११०२८५ (+) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-८ कर्मबंध कारण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १,प्र.वि. हंडी:बोल., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७७१३.५, ४४४६). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-हिस्सा ८ कर्मबंध कारण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: ___पडिणीयत्तण निन्हव उवघाय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-हिस्सा ८ कर्मबंध कारण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै ग्यानावरणी दरसणावरणी; अंति: आठकर्म नेयो जीव बांधे. ११०२८६. (+) तपोटमतकट्टनशत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१३, १६४३७). तपोटमतकुट्टनशत, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: निर्लोठित शठ कमळं; अंति: बुधजनो विधिमार्ग विचक्षणः, गाथा-९९, ग्रं. ११०. ११०२८७. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१३, १५४२६). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ११०२८८. चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रावण कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. विशालनगर, दे., (२६४१३.५, १३४३५). चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: न कओ हा हारिओ जम्मो, गाथा-६३. ११०२८९ बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्राव. अमीचंद लक्ष्मीचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३.५, ११४३६). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ११०२९०. अर्जुनजयपताका यंत्र विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पनरो यंत्र., दे., (२७४१३.५, १२४३२). For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जयपताकायंत्र कल्प, संबद्ध, सं., प+ग., आदि: पूर्वनैऋत्यचोत्तरा वायू; अंति: (-), (पू.वि. दीपपूजा श्लोक अपूर्ण तक ११०२९१. चंदनबालासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. वीरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, १३४२५). चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुंवारी चंदनबाला बोले; अंति: कुंवर कहे करजोडि रे, गाथा-१३. ११०२९२ (+) केशीगौतमगणधर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५६, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. अंबादत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३.५, १५४३७). केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमिये; अंति: पाम्या भवजल पार हो, गाथा-१६. ११०२९३. सीझण द्वार व जिनवाणी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२७७१३.५, १७४३१). १. पे. नाम. सीझण द्वार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सिद्धगतिद्वार विचार कोष्टक, मा.गु., को., आदि: नरक नानी कल्पादस १० सिझे अंति: केवली एक सो आठ सिझे. २. पे. नाम. जिनवाणी स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: जिनादेशजाता जिनेंद्र; अंति: परम सुख तजि संसार कलेश, श्लोक-१०. ११०२९४. (+) रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७५, पौष शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. मुबीबंदर, प्रले. मु. लाभकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. गोडीपार्श्वनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१३, १३४३१). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज्यनो; अंति: रोहिणी गुण गाईया, ढाल-६, गाथा-३१. ११०२९५ (-) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१३.५, १८x१३-१७). शांतिजिन स्तवन-पाटण, म. रतनरूप, मा.गु., पद्य, आदि: नमो अचिरादेवीनो नंद; अंति: देख रे जगजन मोहे रे, गाथा-५. ११०२९६. पुच्छिसुण, संपूर्ण, वि. १९३९, कार्तिक कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सिद्धपुर, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. श्रावि. चुनीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीपुच्छिसु., दे., (२६.५४१३.५, १५४३८). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. ११०२९७. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६.५४१३, १३४४१). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: दीक्षा लेतां एतला; अंति: रही एक नोकार वाली गणावीइ. ११०२९८. (+) पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१३, १२४३३). पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., पद्य, वि. १८५७, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: रचित लिखितो मोदभरतः, श्लोक-४१. ११०२९९ जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४१३, १३४३९-४४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. ११०३०० समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:समयसार., दे., (२७७१३.५, १४४४४-४८). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १७५ ११०३०१. ५६३ जीवभेद विचार, संपूर्ण, वी. २४३३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. खेवालीया-मोरबी, दे., (२६.५४१३, १२४३५). ५६३ जीवभेद विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: देवतानी गति आगती १५; अंति: तीर्थंकर मोक्षने विषे जाय. ११०३०२. पंचम आराभाव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७X१३.५, १४४४०). पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहंस, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गौतम सुणो पंचमा; अंति: देखीइं भाषा वयण रसाल, गाथा-२१. ११०३०४ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र व औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३.५, ५-८x२०-४२). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७० अपूर्ण से है व ७२ अपूर्ण तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२१ अपूर्ण मात्र है.) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११०३०५. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१३.५, ११४३१). शत्रंजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल लिलाड निधान; अंति: मुरत रसाली चकेसरी रखवाली, गाथा-४. ११०३०६. चतुर्विंशती तीर्थ प्रतिमा स्थापन यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१३.५, ११-१४४४०-४५). २४ जिन प्रतिमा स्थापन यंत्र, सं., गद्य, आदि: अंति: कर्क कन्या वृश्चिक धन मकर. ११०३०७. गुरुगण स्तुति व शांतिजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:संतनाथजी, जैदे., (२७७१३.५, १७४३३). १.पे. नाम. गुरुगुण स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में साधुविजय के द्वारा रचित किसी कृति का अन्तिम भाग दिया गया है. मु. जसरूप ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा करजर भाया पुनजोग; अंति: रष जसरूप० भाबीयण समजावा, गाथा-७. २. पे. नाम. शांतिजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: संतजीणेसर संत करो सभ; अंति: सरण तुमार संसार तार, गाथा-१२. ११०३०८ (+#) परमानंदपंचविंशतिका स्तोत्र सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९३६, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. लखनेउ, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, ९-१४४३९). परमानंद स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमानंदसंपन्नं; अंति: परमं पदमात्मनः, श्लोक-२५, (संपूर्ण, वि. अन्त में "आ.श्री हेमचंद्रसूरि विरचितः पूर्णतल्लगच्छे" ऐसा उल्लेख है.) परमानंद स्तोत्र-अर्थ, गु., गद्य, आदि: श्री सुधर्मास्वामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठांश एहवो जांण भाव आनंद ध्यावे' तक लिखा है.) ११०३०९ (+) चौरासी आशातनां रो तवनं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१३, १३४३८). ८४ आशातनापरिहार स्तवन-जिनभवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर प्रणमैं पाय; अंति: वीर जिनेसरनी ए बांण, गाथा-२९, (वि. अंत मे एक दोहा लिखा है.) ११०३१०. चैत्रीपुनमरी थुइ, संपूर्ण, वि. १९७१, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. रेवाशंकर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, १०४३०). चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, पं. लब्धिविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल सुंदरजाण ऋषभ; अंति: लब्धी विजय गुण गाय, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११०३११. नेमिजिन स्तुति-विलोम पाठ गर्भित व आध्यात्मिक पदादि सग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. सीधपुर, प्रले. मु. उकाघेलचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३, १०४३३). १. पे. नाम, आध्यात्मिक पद-साधु, पृ. १अ, संपूर्ण. म. प्रेम, मा.ग., पद्य, आदि: मनिवर खेल रह्या एतो आतम; अंति: जगावे प्रेम सुधारश पावे, गाथा-४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुमता संग रमीजे हो चेतन; अंति: प्रेम सुख वारुहो चेतन, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तति-विलोम पाठ गर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: तं भु सता मुरती मुदार हा; अंति: संहार दामुग्ती मुतास भुतं, श्लोक-१. ११०३१२. मुनिगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१३.५, १६x२३). मुनिगुण सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: वे मुनि मेरे मन वस्या आतम; अंति: वंदणा करे विनयजी सोय, गाथा-१४. ११०३१३. (+) शीयल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पंचासर, पठ. श्रावि. दीवालीबाई; प्रले. गिरधर हेमचंद भोजक, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. महावीरजिन प्रासादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१३, १५४३३). औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्री शिखामण, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम सीखामण खरी; अंति: ओघ पामे उदय महायश विस्तरे, गाथा-१०. ११०३१४. (#) शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९०४, कार्तिक शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३.५, ११४२७). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणसागर० फल हवे पावै, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ११०३१५. श्रावकना अतीचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१३.५, १०-१३४२१-२८). श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि अ चरणंमि; अंति: (-), (पू.वि. स्थूल मृषावाद विरमणव्रत अपूर्ण तक है.) ११०३१६. (+) मौनएकादशीपर्व गणगुं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३.५, ५४१०). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजस सर्वज्ञाय; अंति: आरणनाथाय नमः. ११०३१८. (#) भासनी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३.५, ११४३०). तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नीसिही त्रण प्रदक्षणा; अंति: जंपे सांसन सुर संभालो जी, गाथा-४. ११०३१९ (+) आठमनो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३.५, १२४३६). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंच तिरथ प्रणमं सदा; अंति: श्री संघने कोड कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४. ११०३२०. कीर्तिध्वजराजा ढाल व विजेकुवरनो चौढाल्यो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२७४१३, २३४६३). १. पे. नाम. किरतधज सोकौसल मुनीकी ढाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कीरत धजरा०ढाल. कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९३१, आदि: श्रीश्रीआदजिनेसरु; अंति: हीरालाल० हुवा सीद्रहो, __गाथा-६९. २. पे. नाम. विजेकुवरनो चौढाल्यो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:विजेकुमर. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रामचंद, पुहिं., पद्य, वि. १९१०, आदि: आदिनाथ आदिसरो सकल; अंति: रामचंद० मिछामी दुकडोमोय, ढाल-४. For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १७७ ११०३२१. २४ तीर्थंकर नाम राशि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:राशिजोवानो विचार., जैदे., (२७७१३.५, ५४१०). २४ तीर्थंकर नाम राशि विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ११०३२२. (+-) सिद्धशिलानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१३.५, १३४३५). सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम पृच्छा करे; अंति: गौतम सीवपुरन रे सुहोमणु, गाथा-१६. ११०३२३. एकादशांग सज्झाय व काया सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.६४१२.५, १४४२६-३०). १. पे. नाम. एकादशांग सज्झाय ढाल-१२ वीं, पृ. १अ, संपूर्ण. ११ अंग सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: (-); अंति: विनय० अंग अग्यारे सज्झाय, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. काया सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: एक काया अरु कामनी परदेशी; अंति: राजसमुद्र० कौ संसारमी, गाथा-७. ११०३२४. अरिहंतजाप गणवू, शत्रुजयतीर्थ छट्ठ अट्ठम गुणनु व छींक निवारण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१३, ५४१०). १. पे. नाम, अरिहंतजाप गणवू, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ अरिहंतजाप गणणु, सं., गद्य, आदि: श्रीअनंतज्ञानगुणधारकाय; अंति: वीर्यगुणधारकाय नमः. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ छट्ठ अट्ठम गुणर्नु, पृ. १अ, संपूर्ण. ___सं., गद्य, आदि: श्रीपुंडरीकगणधराय; अंति: श्रीकोडिगणधराय नमः. ३.पे. नाम. छींक निवारण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., प+ग., आदि: पाखिपडीकमणामां छीक थाय ते; अंति: तेनि आवधी आसातना आलोवि. ११०३२६. ३२ विजयजिन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१३.५, ५४१०). अढीद्वीप १७० उत्कृष्टजिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जयदेव स्वामी सर्वज्ञान; अंति: सर्व० पुष्करार्ध २ एरवते. ११०३२७. नेमराजूलनो वीझणो, संपूर्ण, वि. १९३९, वैशाख कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वीसनगर, प्रले. पं. हरखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३.५, १४४३८). नेमराजिमती विंझणो, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आव्या आव्या उनालाना; अंति: अमरविजे० सुखकारी कें, गाथा-१३. ११०३२८. (+) ग्यान की आरती व ज्ञानपंचमी विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१३.५, १७४३८). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी क्रीया विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पवित्र; अंति: श्रीकेवलज्ञानाय नमः. २.पे. नाम, पंचमी लेवा विधि, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.. पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम गुरु आगल आवी; अंति: लोगस्स कही निस्तरे. ३. पे. नाम. पंचमी पारण विधि, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, वि. १९०५, कार्तिक शुक्ल, १०. पंचमीतप पारने की विधि, मा.गु., गद्य, आदि: तपकरी उजमणो कीजै; अंति: याचकानें दान दीजै. ४. पे. नाम. धर्मोपदेश व्याख्यान संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: शरीर अनित्य छै शरीर माहै; अंति: सदाइ शरीर माहै हुवै छै. ५. पे. नाम. ग्यानकी आरती, पृ. ४आ, संपूर्ण.. ज्ञानगुण आरती, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: जयजय आरती ज्ञान; अंति: चिदानंद तेज अमंदा, गाथा-५. ११०३२९. भुवनभानुकेवली चरित्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (३९x१३, १३४३७). For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मा.गु., गद्य, आदिः (१)सिरिवीरं नमीअ जिणं, (२)श्रीवीरवर्द्धमानस्वामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंद्रमोली राजा को धर्मोपदेश वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ११०३३० (+) चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१३, १७४३६). चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रभीमे ललितवर; अंति: दसने आहिमां देवी चक्रे, श्लोक-८. ११०३३१. ककाबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९३६, आषाढ़ शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; अन्य. मु. केवलचंद; पठ. श्राव. माणकचंद करसनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ककाबत्रिसि., प्र.ले.श्लो. (१९८३) जाद्रसं पुस्तकं द्रष्टा, दे., (२८x१३.५, १२४२८). कक्काबजीसी, म. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: सीस जीनवरधन एम भणे, गाथा-३३. ११०३३२. उवसग्गहर स्तोत्र, प्रास्ताविक गाथा व अकडम विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२९४१३, ५४१०). १. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण.. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १०, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवस्सग्गहरं पास; अंति: इयसंथुअ महायस, गाथा-८, (वि. मात्र प्रतीक पाठ दिया गया है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा, प. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धम्मो मंगल मुक्किट्ठ; अंति: (-). ३. पे. नाम. अकडमचक्र विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक-१अ पर अकडमचक्र यंत्र दिया गया है. अकडमचक्र विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जेने विशे अरी पड्यो तो; अंति: महाकष्ट वास्ते सुधी जोवी. ११०३३३. चतुर्थव्रतउच्चरावण विधि, संपूर्ण, वि. १९१२, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. झोटाणा, दे., (२८x१३.५, ११४३७). ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्रावक श्राविका वागीत; अंति: वाजतां घेरे जाई आंबिलकरइ. ११०३३४. (+) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३.५, १२४३६). पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: ऋद्धि वृद्धि ददातुम्, श्लोक-९. ११०३३५ (+) आदिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १२४३४). आदिजिन स्तोत्र-शत्रंजयतीर्थमंडण, सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: नाभिजन्मा जिनेंद्रः, श्लोक-१०. ११०३३७. (+) ग्रहस्पष्टानयन विधि व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.२, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१३, १२४४३). १. पे. नाम. ग्रहस्पष्टानयन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. खेटसिद्धि शुद्धिकरण उपाय, मु. महिमाउदय, पुहिं., पद्य, वि. १७३१, आदि: चिदानंद चित मै धरी; अंति: महिम० सांगाजी कै हेत, गाथा-४६. २.पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: रस बीहु २६ नवाक्षि २९ भूत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठांश 'नंदाक्षि शराक्षि भूतादेवा इशे' तक लिखा है.) ११०३३८. (#) कुमतीनो रास, संपूर्ण, वि. १९३८, आषाढ़ शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. मगनकुशल (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १५४४२). महावीरजिन स्तवन-कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: श्रीश्रुतदेवी तणे सुपसायै; अंति: मुजने सदगुरू तूठो रे, गाथा-४०. For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १७९ ११०३३९ (+) श्रीवीरजिन स्तवन व पार्श्वनाथनो वीवाहलो, अपूर्ण, वि. १९३३, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्रले. यमुना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. दो श्लोको में प्रतिलेखन पुष्पिका है., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१४३७) पास कुमर महीमा नीलो, दे., (२८x१३.५, १३४२५). १. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: विवेके० दर्श तेरो, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथनो वीवाहलो, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वकुमार विवाहलो, पं. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: पासकुमर महीमानीलो गुणमणी; अंति: देवकुसल उलट अंगे रे, गाथा-८. ११०३४०. (+) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र शुक्ल, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. बालुचर, प्रले. आ. लब्धिचंदसूरि (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अमुत्तरोचवाइ वृत्ति., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२.५, १७X४५). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंति: न क्षायमिति क्षमा, वर्ग-३. ११०३४१. मौनएकादशीपर्व स्तवन व सीद्धगीरी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. कुल ग्रं. ४१, जैदे., (२६४१३, १६४३५). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. म. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: शांतिकरण श्रीशांतजी विघन; अंति: गुण गाया जी, ढाल-५, गाथा-४२. २. पे. नाम. सीद्धगीरी स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आव्या रे; अंति: पद्मविजय सुप्रमाण, गाथा-७. ११०३४२. (+) ८४ गच्छ नाम, सर्वार्थसिद्ध स्तवन व विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४१३, १७४५०). १.पे. नाम. चतरशीति गच्छस्य नामानि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ओसवालगच्छ १ जीरावलागच्छ २; अंति: ८३ नाडोलागच्छ ८४. २. पे. नाम, रत्नप्रभापृथीवी विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. रत्नप्रभापृथ्वी विचार, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: एक लाख असीहजार योजन; अंति: पिंड को विवरण कह्यो. ३. पे. नाम. अधिकमास विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अधिकमासवृद्धि विचार, रा., गद्य, आदि: चंद्रमा का मंडला १५; अंति: अढाई वरस माहै मास एक वधै. ४. पे. नाम. चारित्र विधि, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम सचित्त वस्तु त्याग; अंति: संतो पाठ कम्मन्नवधइ. ५. पे. नाम. सर्वार्थ सिद्ध स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पं. धर्महर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वारथसीद्धने चंद्र; अंति: हर्ष० इए परि वाणी, गाथा-११. ११०३४३. नवपद व सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१३, १२४३९). १. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदना गुन गावो तुम अनुपम; अंति: एम चंद हीया मांहै आंणी रे, गाथा-६. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंधरजी सुणजो म्हारी; अंति: लालचंद० एह अरदासजी, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११०३४४. (+) पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१३, १३४३५). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. भावलब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पुनवंता पोसालै आवो पर्व; अंति: भाव० सिद्धायिका दुःखहरणी, गाथा-४. ११०३४५. श्रीमंधरजिन विनती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, अन्य. सा. हेमसरीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३, ९४३३). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सूण सूण सरसति भगवति ताहरि; अंति: पूरव पुण्ये पायो रे, ढाल-७, गाथा-४०. ११०३४६. (+) श्रीवीरजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१३.५, १५४२७). महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो वीरने चित्तमां; अंति: आज म्हें दास तेरो, गाथा-१५. ११०३४७. हुतासनी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७७१३, १२४४२-४५). हुतासनी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: एवे सुगुरु पधार्या त्यां; अंति: अज्ञानदशा काढि नाखवी. ११०३४८. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:रिषिमं०., जैदे., (२६४१३, ९४३२). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: ॐ णमो अरहंताणं णमो; अंति: गौतमऋषि० स्तोत्रमुत्तमम्, श्लोक-७७, ग्रं. १५०. ११०३४९ (+) श्लोक उठामणा कथा, संपूर्ण, वि. १८८४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जेसलमेर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७७१३, १५४३७). तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.ग., गद्य, आदि: तित्थयरा गणहारी सर; अंति: शांतिनाथ सोलमा जिणंद. ११०३५०. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१३, ११४४१). औपदेशिक पद-वैराग्य, म. अमरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: इस तन पिंजरे को छोड; अंति: अमरचद० मिल्या दख खोता, गाथा-४. ११०३५१ (+) श्रमणसूत्र व पांचम स्तुति, र्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१३, ११४३२). १.पे. नाम. श्रमणसूत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. प्रा., प+ग., आदि: इच्छामि पडिक्कमिउं; अंति: वंदामि जीण चोवीसं. २. पे. नाम. पांचम स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व मतिज्ञान चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौभाग्यपंचमीतणो सयल; अंति: करी केवल लक्ष्मी निधान, गाथा-३. ११०३५२. वीरजिनवर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५५, पौष कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:सतावीस भव., दे., (२६.५४१३, ११४३२). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: रामविजय० लहे अधिक जगीस रे, ढाल-३, गाथा-५४. ११०३५३. (+) समकितदीपमालिका सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४१३, १३४२५). दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: प्रगटे सकल गुणखाण. ११०३५४. (+) सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ऋ. लाभचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१३-१७.०, १७४४०). सुभाषित श्लोक संग्रह *, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्माजन्मकुले शरीरपटुता; अंति: पंथसाधनविना नरतिरजंच समान, श्लोक-४६. For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १८१ ११०३५५ (+) वैराग्यभावना, सुभाषित श्लोक व प्रतिक्रमणशब्दार्थ विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१३, १७४४४). १. पे. नाम. वैराग्यभावना श्लोक सह अन्वय, पृ. १अ, संपूर्ण. वैराग्यभावना श्लोक, सं., पद्य, आदि: यादृक् संध्यारागः; अंति: द्रुततरं वैराग्य रंगालयम्, श्लोक-२. वैराग्यभावना श्लोक-अन्वय, सं., गद्य, आदि: सकलरूपं आयुः कुटुंबं; अंति: शीघ्रमेवाश्रयं अंगीकुरु. २.पे. नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु.,सं., पद्य, आदि: यावन्नीरुक् शरीरं प्रचुर; अंति: मस्तक शूलानि चत्वारि, श्लोक-८. ३. पे. नाम. प्रतिक्रमणशब्दार्थ विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-प्रतिक्रमणशब्दार्थ विचार, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: यदाह पुनरुक्ति दोषना; अंति: प्रतिक्रमणमुच्यते. ११०३५६. सम्यक्त्व ६७ भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:समगत., जैदे., (२७४१३, १३४३६). सम्यक्त्व ६७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: समक्तनी सर्वना ४ नवतवना; अंति: मोक्ष साधवानो उपाय छे. ११०३५७.(+) मार्गणास्थानक द्वार, संपूर्ण, वि. १९१५, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, प्रले. अमरचंद्र ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१३, १२४१६). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति १ मनुष्यगति २; अंति: आहारी अनाहारि. ११०३६० (+) दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१३, ११४३०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्सुत्तव; अंति: गजसागरेण अप्पहिया. गाथा-४०. ११०३६१. मौनएकादशी सज्झाय व महावीरजिन गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सरदारपुर, प्रले. मु. जीतविजय; पठ. श्रावि. पाना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३, १४४३०). १.पे. नाम. मौनएकादशी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज मारे एकादशी रे; अंति: उदयरत्न०लीला लहेस्ये, गाथा-७. २. पे. नाम. सुधर्मास्वामि गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहुँली, मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे गुणसील चैत्य; अंति: राजेंद्र सुखकार रे, गाथा-८. ११०३६२. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रावण शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. अमृतचंद्रसूरि; पठ. श्राव. शिखरचंदजी (पिता श्राव. धर्मचंदजी); गुपि. श्राव. धर्मचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१३, १३४३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपइवं वीरं नमिउण भणामि; अंति: सिरिसंति सूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ११०३६३. सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पुना, प्रले. मु. रविविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३५). सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: नित्य होजो प्रणाम, गाथा-८. ११०३६४. संप्रतिराजा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१३, १३४३२). पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: कनक० भव भव सेवरे, गाथा-९. ११०३६५ (+) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:अष्टापद०., संशोधित., दे., (२७.५४१३.५, ११४३७). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद उपरे; अंति: भाववि० हो फले संघणी आश, गाथा-२३. २.पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: धरणेंद्रमुखानागा पाताल; अंति: लप्स्यते फलमुत्तमम्, श्लोक-१३. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तोत्र-श्लोक १, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र-शत्रंजयतीर्थमंडण, सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: (-), प्रतिपर्ण. ११०३६६. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, २२४४८). महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: मगध देस कै मांहि; अंति: रायचंद कहे०महल में जासीजी, गाथा-१९. ११०३६७. पजूसणापर्व सज्झाय व शाश्वतजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:तवन., दे., (२६४१३, ११४४२). १.पे. नाम. पजूसणापर्व सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजुसण आवियां रे; अंति: मतिहंस नमै करजोड रे, गाथा-११. २.पे. नाम. शाश्वतजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९पू, आदि: ऋषभ चंद्रानन वंदन; अंति: पद्मविजय नमे पाया जी, गाथा-४. ११०३६८. रत्नाकरपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८७३, फाल्गुन शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. लक्ष्मीरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३, ७४२९-३२). रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयश्रियां मंगलकेलिसद्म; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. ११०३७०. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हंडी:श्री महावीर स्वामीजीन स्तवन., जैदे., (२७४१३, १४४३९). महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माताजी तुमे धन धन रे; अंति: शुभवीर० भगवान रे, गाथा-११. ११०३७२. पजुषण चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१३, १३४३५). पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजेजो सिणगार; अंति: वीनयवीजय० चरणे नमुंशीश, चैत्यवंदन-७, गाथा-२१. ११०३७३. (+) महावीरस्वामी- चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९३५, वैशाख कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ४, प्रले. श्राव. पानाचंद आणंदजी दोशी; पठ. श्रावि. हीरुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ११४३५). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सीधार्थ कुले तुं उपनो; अंति: महावीर सामीनो चौढालीयो, ढाल-४, गाथा-५२. ११०३७५. सोल सतियोनी मांगलीक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७७१३.५, १३४३३). १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदे जिनवर; अंति: उदयरत्न० लहसे सुखसंपदा ए, गाथा-१७. ११०३७६. (#) वीर २७ भववर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.४, प्रले. मु. मोतिचंदजी; पठ. सा. सोभागश्री, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सत्ताविभवस्त०., सतावि०, सताविभव., मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२७७१३, १२४३२). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदि: श्रीशुभविजय सुगुरू; अंति: सेवक वीरविजयो जयकरो, ढाल-५, गाथा-५२. ११०३७७. पार्श्वनाथप्रभु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१३, १०४३१). पार्श्वजिन स्तवन-सारंगपरमंडन, म. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी पास जिणेश्वर; अंति: मणिउद्योत० शं केवरावो रे, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११०३७८. (+) स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., । (२६X१३, १३-१६X३३-४३). १. पे. नाम. गौतम स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि सिरिवसुभूइ पुत्तो माया अंतिः फलं सद्यो लभंतेतराम्, गाथा - १७. २. पे नाम. १६ सती स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा क्रमशः १८ है. सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलं, श्लोक-१. ३. पे. नाम मांगलिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा क्रमशः १९ से है Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्लोक संग्रह-मांगलिक, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: साहुर्वतु वो मंगलं, श्लोक-३. ४. पे नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पू. १आ- २अ, संपूर्ण, पे. वि. गाथा क्रमशः २३ से है. पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो पार्श्वनाथाय अंतिः पूर्व मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. ५. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४४. ६. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र- शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि गंभीरताररवपूरित अति: परिणतगुणैः प्रयोज्या, लोक-४. ११०३७९. सरस्तवी स्तोत्र, मोक्ष सज्झाय व शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ३, दे. (२६४१३, , १८३ ११x४०). १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मा भगवती विद्यानी; अंति: दयानंद० जाउं तोरि बलिहारी, गाथा- ७. २. पे नाम. मोक्ष सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मोक्षनगर माहरु सासरु, अंतिः छे मुगतिनुं ठाम रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पु. १ आ. संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, आ. मुक्तिसागरसूरि, मा.गु. पद्य वि. १८९८ आदि शांतिप्रभु वीनती एक अति सुरि मुगति पदना आधार रे, गाथा-८. ११०३८०. (+) साढापच्चीस देशनाम, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जै.. (२६.५X१३, ८x२८). साढापच्चीसदेशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्र मध्ये सर्व देश; अंति: ए साढा २५ देश छे. ११०३८१. (*) जीवउत्पत्ति विचार, संपूर्ण, वि. १९०८, वैशाख कृष्ण ७, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२५.५X१२.५, १६x४५). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोज्यो आपणी मन; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा- ७१. ११०३८२. उपधानक्रिया विधि व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. मोहनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५X१३, १७X५०). १. पे नाम. उपधानक्रिया विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १८६९, कार्तिक कृष्ण, ९. For Private and Personal Use Only महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरे; अंति: विनय० मुज ते भव भवइ, गाथा २४. २. पे नाम. अजितजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण वि. १८६९ वैशाख कृष्ण, १३, बुधवार, ले. स्थल. नाडोलनगर. अजितजिन स्तवन-तारंगागढ, मु. आगम, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा अजितजिणेसर; अंति: भवी गुणगाव ज्यो रे लो, गाथा-७. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९८४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११०३८४. शत्रुंजयतीर्थ १०८ नामावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, अन्य. मु. संतोषमुनि प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२६.५४१३, ९X३०). शत्रुंजयतीर्थ १०८ नामावली, सं., पद्म, आदि: श्रीशत्रुंजय पर्वताय नमः अति महोदयगिरि पर्वताय नमः, सूत्र - १०८. ११०३८७. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण; पठ. सा. केसरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: पजूसणचे., दे., (२६X१३, ११×३३). पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल पर्व श्रृंगारहार, अतिः प्रमोदसागर० होवे जय जयकार, गाथा - १३. ११०३८८ २० विहरमानजिन परिवारादि कोष्टक व ६ दर्शने ९६ पाखंडी नाम, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल. दातानगर, प्रले. मु. सेवाराम (गुरु मु. दोलतराम ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२७४१३, ५x१०). १. पे नाम. २० विहरमानजिन परिवारादि कोष्टक, पू. १अ संपूर्ण. , को., आदि: (-); अंति: (-). मा.गु., २. पे. नाम ६ दर्शने ९६ पाखंडी नाम पू. १आ, संपूर्ण. 1 ६ दर्शन ९६ पाखंडी नाम, सं., पद्य, आदि: जैन सांख्यं तथा बोध; अंति: दो मक्कडी उच्चेव अन्नाणि, श्लोक-१०, (वि. कोष्टक दिया है.) ११०३८९ (+) लघुसहस्रनाम, संपूर्ण, वि. १९३८, फाल्गुन कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ३, प्रले. वंसी रतोंणी व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: सहस्र, सहखना., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२६४१३, ९३३). जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि नमस्त्रिलोकनाथाय अंति: मुच्यते नात्र संशयः, लोक-४१. ११०३९२. बारव्रत पूजाविधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, वे. (२६.५४१३, १२४५०-५४). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ व्रतपूजा विधिसहित पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य अंति (-), (अपूर्ण, 3 पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ४ तक लिखा है.) ११०३९५ (४) पाशाकेवली विधि, संपूर्ण वि. १८५२ शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी सुकनाव, सूकना०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१३, १५X३५). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: सही माने श्रीकार सुकन छे. ११०३९६ (+) ५६३ जीवभेद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२७.५X१३, २६४५७). " " ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं., मा.गु., गद्य, आदि: पहिली नरक में ०; अंति: दर्पण २ चारित्र ३ तप४. ११०३९७. ४ शरणा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२७१२.५, १०x२७). ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुझने चार सरण होजो अरिहंत; अंति: समयसुंदर० भवनो हुं पाराजी, गाथा - १२. ११०४०० अइमुत्तामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२७४११, १७३५). अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु, पद्य, आदि श्रीवीरजिणंद बांदीने अंतिः वंदे अहमतो अणगार, , गाथा - २०. ११०४०१. पंचकल्याणक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. जैवे. (२७४१२.५, १२४३०). " "" महावीरजिन स्तवन- पंचकल्याणक मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण बंदु 1 अंति: (-), (पू.वि. डाल-३ गाथा २७ अपूर्ण तक है.) ११०४०२. (#) मनुष्य क्षेत्र पर्वत नद्यादि विचार कोष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. कोटारामपुरा, प्रले. श्राव. माणकचंद; पठ. श्रावि. लक्ष्मीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल है, दे., (२७४१२.५, ५X१०). मनुष्य क्षेत्र पर्वत नद्यादि विचार कोष्टक, मा.गु., को, आदि (-); अंति: (-). ११०४०३. ढंदणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६.५x१२.५, १२४३४). וי For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८५ . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ढंढणऋषि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कृष्णनरेसर पुंछीयो जी; अंति: पहुंते मुंक्त मंझार, गाथा-९. ११०४०४. (#) धूर्ताख्यान का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.२,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १५४३७-४१). धूर्ताख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सदुपनिषदनेकग्रंथसंदर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कुंडरीक कथा अपूर्ण तक लिखा है.) ११०४०५. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४४०). शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद; अंति: इम उदयरत्ननी वाणी, गाथा-१०. ११०४०६. पार्श्वजिन स्तवन, वीर स्तुति व औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२६.५४१३, १९४४६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. साणंद. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आंगी अनोपम श्रीजिनवर की; अंति: शुभवीर० दीवस दील ध्याउरे, गाथा-१०. २.पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, म. दीप कवि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनौ से बंदगी करना जीया; अंति: दाई खुदावंत दीपके सांई, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सायं से दिल्लगा प्रानी; अंति: कर उठे सदा शुभवीर घर बेठे, गाथा-५. ४.पे. नाम. नेमीजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: तुम बिन मेरी कुन खबर; अंति: पद देई राजुल की गुनखानी, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. रंगविजय, पहिं., पद्य, आदि: तुम बिन कोन खबर ले गोडी; अंति: अब साहेब रंग सदा सुख कंदा, गाथा-५. ६. पे. नाम. ऋषभ लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी, श्राव. ऋषभदास, मा.ग., पद्य, आदि: सुं वीर बातां सदा सिवजी; अंति: ऐसा देख तमासा फजुरो मे, गाथा-८. ७. पे. नाम. रेटिया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावि. रतनबाई, मा.गु., पद्य, वि. १६३५, आदि: बाई रे अमने रेंटीयो; अंति: ज दीधू मही आलम जस लीधोरे, गाथा-१०. ११०४०७. (+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन व लघुरोहिणी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, ७X१९). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सद्गुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रसंसियो, ढाल-३, गाथा-२०. २.पे. नाम, लघरोहिणीरो स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. रोहिणीतप स्तवन, मु. भूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रोहणी तप भ०; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण है.) ११०४०९. महावीरजिन गहंली, पार्श्वजिन-नवखंडा व पार्श्वजिन-भीलडी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५६, ?, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. खेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१४, १४-१६४३५-५०). १. पे. नाम. महावीरजिन गहंली, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारो भोग करम; अंति: पालिने कारज सिधोरे, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन-नवखंडा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि: घन घटा भुवन रंग छाया; अंति: एम वीरविजय गुण गाया, गाथा-६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-भीलडी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १९५०, आदि: वामादेवीना जाया रे; अंति: परखी प्रभुजी चरणे रहो रे, गाथा-६. ११०४१०. सूतक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४१४, १६x४१). सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जेहने घरे जन्म थाये; अंति: आभडे तो पहर १२ सूतक. ११०४११ (+) देवनारकी बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पत्र१४८१., संशोधित., जैदे., (२६४१४, ५४१०). देव-नारकी बोल संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ११०४१२. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४१४, १७४३९). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, म. गणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: तवन भाषि गुणविजय रंग मुनि, ढाल-६, गाथा-४९. ११०४१३. औपदेशिक हरियाली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१४, ८४४६). औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहेयो रे पंडित ते; अंति: जसविजय जंपै ते सुख लहेसे, गाथा-७. ११०४१४. ऋषभदेव, सिद्धाचल व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४४, कार्तिक शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. महेश्वर व्यास सांकला, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१४, १४४३८). १. पे. नाम, ऋषभदेव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. उदयरत्न, मा.ग., पद्य, आदि: ते दिन क्यारे आवस्ये; अंति: उचरे क्यारे निर्मल थासं, गाथा-८. २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बापलडा रे पातकडा तुमे; अंति: सेवक बांहि ग्रहीने रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आवो भविक सेव॒जेगिर जइए; अंति: सहेजे शिवसुख साधोरे, गाथा-७. ११०४१५. (#) प्रश्नोत्तररत्नमालिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१४, १८४३५). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य वर्द्धमानं; अंति: सुधियां सदलंकृतिः, श्लोक-२९. ११०४१६. (+) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१४.५, १२४२९). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मुहपत्ति वंदणय; अंति: पक्खियं पडीकमणं. ११०४१७. तिजयपहत्त स्तोत्र व भयहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२७४१४.५, ८x२२). १. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ___ आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण... __ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: नासइ तस्स दरेण, गाथा-२४. ११०४१८. पार्श्वनाथस्वामिनू व जिनशासनमहिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५३, माघ शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. दशाडां, प्रले. पं. मणिविजय (गुरु पं. मोतिविजय); गुपि. पं. मोतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथजी प्रसादते., दे., (२६.५४१४, १३४३५). १.पे. नाम. पार्श्वनाथस्वामिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १८७ पार्श्वजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी पास जिणेश्वर; अंति: शुं झाझं केवरावो रे, गाथा-१०. २.पे. नाम. जिनशासनमहिमा स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.., पद्य, आदि: अरिहंत सिधनी गांठडीलि; अंति: नथी कोइ जिनशासन ने तोले, गाथा-६. ११०४२१ (+) महावीर चरित्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१४.५, ११४२५). दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. ११०४२२. नवपद स्तवन व नवपद थुई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (४२४१४, ३३४१७). १.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ.१अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, म. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सांभलो; अंति: विनोद० भव आधार कें, गाथा-५. २. पे. नाम. नवपदनी थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अति अलवेसर; अंति: सानिध करज्यो मायजी, गाथा-४. ११०४२३. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१४, १४४३६). जिनप्रतिमामंडन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिके उद्धारज; अंति: राखो वाचक जसनी वाणी हो, गाथा-१०. ११०४२४. (#) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२२, चैत्र शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. खेतसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:केश०तंव०., मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१४३५) मम मती अलप जुकेतहु, दे., (२७.५४१३.५, ८x२७). आदिजिन स्तवन-केशरियाजी, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, वि. १९२२, आदि: सरसती भगवती श्यामनी देवी; अंति: सुमति० पातीक दुर पलाआ, गाथा-११. ११०४२५. पार्श्वजिन चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४१३.५, ११४३३). पार्श्वजिन चौढालियो-गोडीजी, म. लावण्यचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणंद प्रसिद्ध सिद्ध; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-१ तक लिखा है.) ११०४२६. (+) क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९४५, फाल्गुन कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. महेश्वर व्यास सांकला; पठ. श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.५५, दे., (२६४१४, १४४३६). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण आदर; अंति: संघ जगीश जी, गाथा-३६. ११०४२९. साधारणजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१४, २२४१९). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. कृति के अंत में एक प्रास्ताविक श्लोक अर्थ सहित दिया है. पुहिं., पद्य, आदि: तुम तो मेरे सचे शाइं साचि; अंति: तेरो ध्यान लिन महिमा अपार, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: पारसमणि साचो रे फरसे लोह; अंति: रे जाण गुण किम विसरे, गाथा-५. ११०४३० ५६३ जीव बोल थोकडा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१३, ३३४१५-१७). ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंदीये काए; अंति: (-). ११०४३१. (#) सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९६५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २, प्रले. हठीसिंग बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१४, ११४३८). सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: लील करजे आस फले ताहरी, गाथा-३५. ११०४३२. प्रायश्चितप्रदान विधि व वृद्धवचनआलोयण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२७X१४, १७४२८-४३). १. पे. नाम. प्रायश्चितप्रदान विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आलोयणाप्रदान बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान आसातनाइं जघन्य; अंति: अल्पपीडाइं आंबिल. २. पे. नाम. वृद्धवचनआलोयण विधि, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम गृहसथी अविरत; अंति: आलोयण तप फेर दीजे. ११०४३३. महावीरजिन गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. चतुरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३.५, १०४३१). महावीरजिन गहुँली, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारो दिए छे देशना; अंति: नाय० दरीसण जय जयकार, गाथा-६. ११०४३४. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९२५, माघ कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१३.५, ११४१३-४०). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-४९. ११०४३५. जलयात्रा विधि उपकरण सूचि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१४, १२४३१). जलयात्रादि विधि उपकरण सूचि, मा.गु., गद्य, आदि: घडा४ कालोदाग विनाना; अंति: सोपारीयो पंचामृत मोहोपतीइ. ११०४३६. (#) आदिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३.५, ११४२९). आदिजिन लावणी, पुहिं., पद्य, वि. १८६०, आदि: सरसती माता सुमति की; अंति: सहर सलुंबर माहे प्यारी, गाथा-२५. ११०४३७. गोरख महर्तयात्रातिथि पत्र व अमृतवेली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२७४१४.५, ३१४२२). १. पे. नाम. गोरख मुहूर्तयात्रातिथि पत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: एकमथी ते बारस सधी दिवस; अंति: सर्वे कार्यमा निषेध छे. २.पे. नाम. अमृतवेली सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अमृतवेल सज्झाय-बृहत्, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान अजुआलीये; अंति: लहे सुजश रंग रेल रे, गाथा-२९. ११०४३८. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र-चित्रबंधकाव्य, संपूर्ण, वि. १९८०, आषाढ़ शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. विक्रमपुरनगर, प्रले. जयगोपाल पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१४३६) जल से जतन कर राखजो, दे., (२७४१४, १३४३९). चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र-चित्रबंधकाव्य, मु. सत्यसागर, सं., पद्य, आदि: दिवादिवादेवविदेवदेवं; अंति: रसादासा ददरं सुसुरं ददम्, श्लोक-२५. ११०४३९ (+) आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १९८१, आश्विन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. अर्जुनदास शर्मा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१४, १८४३३-४०). आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: देववंदन अकरणे पुरिमढ; अंति: तो उपवास १ तथा २, ग्रं. ११७. ११०४४१. (2) शेव्रुजय रास, संपूर्ण, वि. १८८७, मध्यम, पृ.४, प्रले. मु. लालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सेजारा०., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२८x१४.५, १६x४२). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: समयसुंदर० आनंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२. ११०४४२. मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७.५४१४, १२४३६-३७). मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्या रे; अंति: लहि मंगल अतिघणो, ढाल-३, गाथा-२५. ११०४४३. (#) ११ गुणस्थानक क्रमारोह चौपाई-१४ गुणस्थानकगत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३.५, १४४४१). ११ गणस्थानक क्रमारोह चौपाई-१४ गणस्थानकगत, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: करम कलंक खपाई कै भए; अंति: तेयाते सुख लहि सदीव, दोहा-२१. For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १८९ ११०४४४. आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, प्रले. महेश्वर व्यास सांकला; पठ. श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.३०, दे., (२८x१४,१३४३५). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेत्रंजा; अंति: देज्यो परमानंद रे, गाथा-२०. ११०४४५. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७X१४, १४४४१). १. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज सफल दिन उग्यो; अंति: कवि रूपविजय कहे आज, गाथा-५. २. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो हे सहेली जावा; अंति: ए छे परम निमत्त, गाथा-१०. ११०४४६ (-#) महावीरजिन हालर९ व १८ पौषध दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३.५, १२४२५). १.पे. नाम. महावीरजिन हालरडु, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पालण. पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रीसला झुलावे; अंति: होजो दीपविजय कविराज, गाथा-१८. २. पे. नाम. १८ पौषध दोष, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: अण पोसीतानो आण्यो पाणी; अंति: पोसाना पोसीमहा विवेके गहे. ११०४४७. कोटिशिलातीर्थ विधि, संपूर्ण, वि. १९७३, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वीरमा, प्रले. मु. माणिक्यविजय (गुरु मु. त्रिलोक्यविजय); गुपि.मु. त्रिलोक्यविजय, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२७.५४१४, ८४३५). कोटिशिलातीर्थ विधि, मा.ग., प+ग., आदि: श्रीशांतिनाथने शासने; अंति: धरे सीझे वंछित काज, गाथा-६. ११०४४८. सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. मु. दीपसागर यति (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१४, ९४२४). सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.ग., पद्य, आदि: जी हो प्रणमं दिन प्रते; अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४, गाथा-२५. ११०४४९ (+) ७२ सीख नाम व प्रास्ताविक चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१३, १४४४९). १.पे. नाम. ७२ सीख नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ७२ शिक्षा नाम-श्रावकसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: इष्टदेवता उपरी मति दृढ; अंति: सीख सूणी पछे कारज न करणा. २. पे. नाम. प्रास्ताविक चौपाई-विशेषताजन्य बातें, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक चौपाई-व्यक्तिवस्त उपमा, मा.गु., पद्य, आदि: दाता कवीता उगरे मतवाले; अंति: सीधा आपणा हसे देखाडे दंत, गाथा-४. ११०४५०. विजयकुंवरनो चोढाल्यो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सुजानगढ, जैदे., (२६.५४१३.५, १४४२७-३७). विजयकुंवर सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: आदिनाथ आदेसरो सकल; अंति: धरने ज्ञानादिक विचारिये, ढाल-४. ११०४५३. आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१४, १२४३६). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: सण जिनवर शेत्रंजा; अंति: देज्यो परमानंद रे, गाथा-२०. ११०४५४. (#) गमा २८०५ की आमना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१४, ५४१०). गम्मा यंत्र-जीवादि चोविसदंडक, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. गमा-२८०५) ११०४५५ (-) ऋषभदेवजी की लावणी, संपूर्ण, वि. १९२९, पौष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ४, पठ. मु. भेरचंद (गुरु मु. दलीचंद); गुपि.मु. दलीचंद (गुरु आ. दयालचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७.६४१४, १०-१२४३५). आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: आदि करन आदि जगत आदि; अंति: सुरनर सब कीरत कहे, गाथा-६३. For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११०४५६. (#) देवकी६ पुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३.५, १३४३२). देवकी ६ पुत्र सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिजिणंद समोसर्याजी; अंति: करे जी जिनहर्ष समकित लीध, गाथा-२२. ११०४५७. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:पाश०., जैदे., (२६.५४१४, १६४३८). पाशाकेवली, म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवत्यै कूष्मांडिनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-८२ अपूर्ण तक लिखा है.) ११०४५८. पंचषष्टि स्तोत्र व पार्श्वजिन मंत्रविधान, संपूर्ण, वि. १९५५, माघ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. विसनगर, प्रले. पं. सौभाग्यविजय (तपागच्छ); पं. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१४.५, १४४३२). १. पे. नाम. पंचषष्टि स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. २४ जिन स्तव-चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नत्वा; अंति: सोम्य लक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्रविधान-नमिऊण, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमीऊण; अंति: सुखी राखे मनकामना सिद्धि, मंत्र-१. ११०४५९ पार्श्वनाथ स्तव-समस्याबंध सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२७७१३.५, १५४३७-४५). पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं तमहं; अंतिः कृताभ्यर्चनोभीष्टलब्ध्यै, श्लोक-१३, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध-टीका, सं., गद्य, आदि: अहं श्रीपार्श्वनाथं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-९ अपूर्ण तक टीका लिखी है.) ११०४६०. अंबिकाष्टक स्तुति, अंबिकादेवी-मूलमंत्र व अंबिकादेवी मंत्रजाप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२७४१४, १५४३०). १.पे. नाम. अंबिकाष्टक स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अंबिकादेवी स्तोत्र-मलमंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: ॐ महातीर्थ रेवंतगिरिमंडने; अंति: देवि कल्याणि अंबालये, श्लोक-८. २. पे. नाम. अंबिकादेवी-मूलमंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अंबिके हाँ; अंतिः सः ह क्लीं नमः. ३. पे. नाम. अंबिकादेवी मंत्रजाप विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं आम कूष्मांडिनी; अंति: अंबइ सुहा सुहंतं फुडं होय, श्लोक-२०. ११०४६१. (+) मौनएकादशीपर्व गणj, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१४, १२४१८-२१). ___ मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीप प्रथम भरते; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ११०४६२. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपाचारसे, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१४, १२४३२). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, प्रतिपूर्ण. ११०४६३. बोल संग्रह-जीवादि भेद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, दे., (२७४१४, १४४२८). बोल संग्रह-जीवादि भेद, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अनुभाग करमनो रस ए ६ बोल, (पू.वि. घनवात तनवात विवरण अपूर्ण से है.) ११०४६४. (+) नववाड सीलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. प्रतापविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३.५, १५४३०-३७). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुचरणे नमी समरी; अंति: हो तेहने जाउं भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३. For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११०४६५. नारकीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. आगलोल, प्रले. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री सुमतीनाथ प्रसादात्., जैवे. (२६.५४१४, १४४३०). " नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि वर्द्धमानजिन विनवु अति रलियामणो परम कृपाल उदार, ढाल ६, गाथा- ३५. ११०४६६. (४) नमस्कार महामंत्र, बीजतिथि व पंचमीतिथिनु चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, . मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६१३, १४X३६). प्र. वि. १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ संपूर्ण. शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि नमो अरिहंताणं अंति पढमं वह मंगलं, पद- ९. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. बीजतिथिनुं चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि दुविध धर्म जिणे, अंति: नमता होय सुख खाण, गाथा-७. ३. पे. नाम. पंचमीतिथिनुं चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्म, आदि त्रिगडे बेठा वीर अति परे रंगविजय लहो सार, गाथा ९. ४. पे नाम. अष्टमीतिथिनु चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि महा सुद आठम दिने; अंतिः सेव्याथी सिववास, गाथा- ७. ११०४६७. (+) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९००, आषाढ़ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. विजयराम दवे; पठ. श्रावि. मोतीकोर सेठाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२६४१३.५, ५x१०). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को. आदि देवगति १ मनुष्यगति २: अंति असन्नी आहारक अणाहारी. ११०४६८. सिद्धपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२६.५४१३.५, ११४३२). " सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीगीतम पृच्छा करे; अंतिः वरे नय कहे सुख अधाग हो, गाधा- १६. ११०४६९. शांतिनाथजी व शीतलनाथजी से स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, जै. (२६४१४, १३४२९). " १. पे नाम. शांतिनाथजी रो स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर साहीचा अति: मोहन जय जयकार, गाथा ७. २. पे. नाम. शीतलनाथजी रो स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सितलजिननी सेवना; अंति: तु प्राण आधार हो, गाथा- ७. ११०४७०. भगवतीसूत्र - प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. ४, प्रले. लक्ष्मीधर व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पठनायें अवाच्य है. वे. (२६४१३.५, १५X३०-३४). भगवतीसूत्र-प्रश्नोत्तर, संबद्ध, मा.गु., गद्य, वि. २०वी, आदि: भगवती सूत्रमां एक; अंति: थापे तो दुर्गतिमां जाए, गाथा - ९०. ११०४०१. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २, जैदे. (२८४१३.५, १४४३६). ऋषिमंडल स्तोत्र- बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि आद्यताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं अंतिः जाप्या लभते सुखसंपदं श्लोक ८० ग्रं. १५०. " ११०४७२. (+) देवलोक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी देवलोकनीसज्झाय., संशोधित, जैये. (२७४१३.५, १६x४५). देवलोक सज्झाय, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: देया पडह वजडावीयो तुमे; अंति: उदयरतन० तास सुध सुख, गाथा - ३२. ११०४७३. (४) पार्श्वनाथ स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२५, २, भाद्रपद शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, कुल पे ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७१४, १९५८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अति प्राप्नोति स श्रियम्, श्लोक-३३. For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. शिवनाग, सं., पद्य, आदि: धरणोरगेंद्र सुरपति; अंति: तस्यैतत् सफलं भवेत्, श्लोक-३९. ३. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वंदे श्रीशांतीनाथं च; अंति: चंद्र शांतीनाथौ जिनेंद्र, श्लोक-६. ४. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-भंडार गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा *, संबद्ध, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: ॐ थंभेई जलण जलेणं; अंति: तुहदसणेण सफलिया होई, गाथा-४. ५. पे. नाम. शंखपूजा विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ सं., गद्य, आदि: प्रथम तीन बाजोठ तस्योपरि; अंति: तस्य फलम् शुभदिने क्रियते. ११०४७४. देवकी ६ पुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२८x१३.५, १३४३२). देवकी ६ पुत्र सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिजिणंद समोसर्याजी; अंति: करे जी जिनहर्ष समकित लीध, गाथा-२२. ११०४७६. (#) साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १९५७, वैशाख शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:साधूअति०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३.५, १३४३८). साधुपाक्षिकअतिचार-म.प., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दक्कडं. ११०४७८. चंद्रप्रभजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. लखनउ, प्रले. श्राव. ग्यानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३.५, १०४३१). १.पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु प्राह; अंति: वंछित चढे प्रमाणे रे, गाथा-५. २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही रह्यउ; अंति: सेवे ते बे करजोडी रे, गाथा-५. ११०४७९. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१३.५, ९४२६). सीमंधरजिन स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी सुणज्यो; अंति: प्रेमविजय० अरदासजी, गाथा-७. ११०४८० सूतक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१,प्र.वि. अनुमानित पत्रांक दिया गया है., दे., (२७.५४१३.५, ६४३६). सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जेहने घरे जन्म थाये; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., साधु गोचरी निषेध तक लिखा है.) ११०४८१. उपधानतपविधिगर्भित-महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२८x१३.५, १६x४०). महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरें; अंति: मुझ देज्यो भवो भवे, गाथा-२७. ११०४८२. (+) आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रावण शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. बूलाखी गणपतराम क्षत्री; पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १३४३६). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेजा; अंति: देज्यो परमानंद रे, गाथा-२०. ११०४८३. शतक नव्य कर्मग्रंथ का प्रकृति यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१४, १२४२१-२७). शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-प्रकृति यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्मारी बंध में; अंति: निजगुण प्रगटाववो. ११०४८४. जिनकुशलसूरि गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१३.५, १२४४४). जिनकशलसरि गीत, पा. साधकीर्ति, मा.ग., पद्य, आदि: विलसै रिद्धि समृद्धि भलि; अंति: साधकीरति पाठिक भाखड़, गाथा-१५. ११०४८५. सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. जोगीदास मारवाडी, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३.५, १२४३७). For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ सरस्वतीदेवी छंद, मु. खुशालकपूर, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन आपे सदा तुं; अंति: वेणा पुस्तकधारिणी, गाथा-१५. ११०४८६. पजूसण स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२८x१३.५, १०४३७). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुण्ये; अंति: निसदिन करो वधाइजी, गाथा-४. ११०४८७. १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५४१३.५, १५४३९). १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्यादवादमत श्रीजिनवरनौ; अंति: श्रीसार० रतन बहुमोल, गाथा-२१. ११०४८८. पाक्षिकदिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९३५, बाणवन्हिग्रहचंद्रे, कार्तिक कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. मुंबई, प्रले. श्राव. ललुभाई; पठ. पं. हीरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सकलार्हत्., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४९८) जावत्तिजिलमिहिरौ वर्ततै, दे., (२८x१३.५, ७४३३). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-३०. ११०४८९. नेमिजिन स्तवन व सीमंधरस्वामी गीत, संपूर्ण, वि. १८७७, माघ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. कृष्णगढमहादुर्ग, प्र.वि. हुंडी:सुखाकोहे., जैदे., (२७.५४१४, १६४४५). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म. तीकम, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल कर रे नरवर नेमि; अंति: टीकम०करो कुसल शरीर ए, गाथा-३१. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. नेत, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर रे जिणवर पय प; अंति: मन सुध सोम दिन सुखसंपदा, गाथा-९. ११०४९०. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२८x१३.५, ९४२१-२६). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी कर्म दर्शनावर; अंति: मली कुल प्रकृति १५८ जाणवी. ११०४९१. छ आवश्यक विचार, साधारणजिन व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्रले. मगनलाल खुशालचंद जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१३.५, ११४३९). १.पे. नाम. छ आवश्यक विचार, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विनयविजय०शिवसंपद लहे, (प.वि. मात्र रचनाप्रशस्ति वाली अंतिम गाथा अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: लागी लगन मने तारी जिणंद; अंति: चंदन सुरुते सेवकजी साधुरी, गाथा-९. ३. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति देउ मति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११०४९२ (+) २४ दंडक ३० द्वार विचार-देवादि अपेक्षित द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ३, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. लालजी शवजी ठकर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ह द्वार., संशोधित., दे., (२८x१२.५, १३४४३). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११०४९७. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व., दे., (२८x१३.५, १४४४०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५३. ११०४९८. ३४ असज्झाय काल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:अ०पत्र., जैदे., (२८x१३.५, ५४१०). ३४ असज्झाय काल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धूअरिपडे तै असिज्झाई; अंति: सिज्झाई प्रहर १२ सीम. ११०४९९. नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२५, वैशाख कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पादरु, प्रले. पं. दोलतरुचि; अन्य. मु. जोधराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवपदस्तवन. जोधराजजी के पत्रों से प्रतिलिपि की गई है., दे., (२८x१३, २५४५९). For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवपद स्तवन, आ. जिनपद्मसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: अरिहंतपद आराधीयै आणी ऊलट; अंति: पद्मसूरि० मान महातम मोडि, स्तवन-९. ११०५०० (+) चतुर्विंशतिजिनस्तव सकलार्हत् चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, १२४३१). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: मलप्रक्षालनं जिनोत्तमा, श्लोक-२९. ११०५०१ (#) बृहच्छांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७७१३.५, ११४२५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयतु शासनम्. ११०५०२. महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८x१३, १६x४०). महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरे; अंति: मुझ देज्यो भवोभवे, गाथा-२७. ११०५०३. पर्युषणपर्व व सीमंधरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. विद्याविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३, १३४३०). १.पे. नाम. पजुसननी थोय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्व पजुसण पुण्ये; अंति: ज्ञानविमल०महोदय लीजे, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक पनोति पदमणि पभणइं; अंति: पद्म कहे प्रणमीजे जी, गाथा-४. ३. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी केवला; अंति: आवागमण निवार निवार, गाथा-१. ११०५०५. ८ कर्म १५८ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२७.५४१३, १०४२०-२३). ८ कर्म १५८ प्रकृति बोल, मा.ग., गद्य, आदि: ८ कर्मनी मूल प्रकृति; अंति: १५८ प्रतिकृति जाणवी. ११०५०६. सुरप्रियमुनि पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रावण शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:सुरपीयरीढा०, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४३४) करकट ग्रीवा नयनपद, दे., (२५४१२, १३४३०). सुरप्रियमुनि पंचढालियो, मु. कुशलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: वरतमांन बरते खरा श्रीबीर; अंति: ऋषकुशलचंदजी जोडी मनहलास, ढाल-५. ११०५०७. पालामान विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१३.५, ३०४२१). पालामान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पाला ४नां नाम पेलो; अंति: उत्कृष्ट परीता अनंतु थाय. ११०५०८. (#) गौतम प्रश्नोत्तर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. पुरुषोत्तम जयमलदास महेता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४१३.५, १९४३५). १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सरसति भगवति भारती; अंति: कही तपगछ मंगल करु, ढाल-१२, गाथा-७७. ११०५१०. (+) दस दिक्पाल आह्वान व विसर्जन तथा शांतिपूजा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१३, १५४४६). १.पे. नाम. दस दिक्पाल आह्वान व विसर्जन विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तिहां प्रथम उत्तम; अंति: (१)इम करीने नमस्कार करे, (२)दंड० इत्यादिसर्वेषां, पद-१०. २. पे. नाम, शांतिक पूजा, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. शांतिपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नन संघादीनां विघ्नो; अंति: दरतो यांति. ११०५११. संकटहरण विनती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. आ. रामचंद्रसूरि, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२७४१३, १३४३८). For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org महावीरजिन विनती चौपाई - संकटहरण, मा.गु., पद्य, आदि: शारद दीजे ज्ञान अपार; अंति: शुद्ध चेतन सो तरे, गाथा - ३७. ले. स्थल. सुज्ञाननगर, ११०५१२. नेमराजिमती स्तवन व आऊखो सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. मु. रतनचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, ८४२३). १. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रा., पद्य, आदि समुद्रविजजीरो लाडलो; अंति: महारी ले गया हे माय, गाथा- ६. " २. पे नाम, आऊखो सज्झाय, पृ. २अ- ३अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय आयुष्य, मु. चोधमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि आउखु तुट्याने सांधो; अति: मोक्षतणा श्रीकार रे, गाथा- ७. ११०५१३ (०) शत्रुंजयतीर्थं गजल, संपूर्ण, वि. १८६६ वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. रतनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८४१३, १५X४४). शत्रुंजयतीर्थ गजल, उपा. कल्याणविजय गणि, मा.गु., पद्म, श. १६२३, आदि: शारद मात कीशेवाक कल्याण ० ० रूप लछी वरे, गाथा-४६. ܕ १९०५१४. अतीत अनागत वर्त्तमान चौवीशी चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे (२८x१३, १०x३१). अतीत अनागत वर्त्तमान चौवीशी चैत्यवंदन, मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूद्वीपना भरतमां तिन; अंतिः प्रभु जीवने आपे अविचल वास, गाथा १५. ११०५१७. (+) वर्द्धमानजिन सत्तावीस भव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. नवापरा, प्रले. मु. मोहनसागर; पठ. सा. डाहीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२८x१३, १५X३३). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंतिः शुभविजय शिष्य जय करो, ढाल ६. ११०५१८. आठ मद व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५X१३, १४४४०). १. पे. नाम. आठ मद सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनि वारिये; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे, गाथा - ११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि मारग वहे रे उतावलो उडे अंति भीमविजय० पामसो मोक्ष, गाथा- १३. ११०५१९. शांतिजिन, चंद्रप्रभजिन स्तवन व अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२८x१३, १५X४२). १. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, יי मु. चिमन, मा.गु., पद्य, आदि सुखकारीजी जगपति शांति, अंति: अरज चिमन अवधारी, गाथा-८, २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. १९५ For Private and Personal Use Only दूजा; अंतिः मु. चिमन, मा.गु., पद्य, आदि श्रीचंदाप्रभु० आइजो मोह; अंति: अरज चिमन अवधार रे, गाधा- ६. ३. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पू. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तिर्थोदकैर्मिश्रित, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंदन पूजा अपूर्ण तक लिखा है.) ११०५२०. जिनदर्शन स्तुति व ४ मंगल पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२८X१३, ११X३८). १. पे नाम, जिनदर्शन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक- १आ पर भी यही कृति अपूर्ण लिखी है. जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, सं., पद्म, आदि परमेष्ठिनमस्कारं सारं अतिः विक्षस्व परमेश्वरी, श्लोक-४. २. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु. पद्य वि. १८वी, आदि धर्म उच्छव समे जिनपद कारणे अति: देवचंद्रह पद अनुसरे ए. गाथा-४. Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११०५२१ (#) चउप्रहरी पोसा विधि, संपूर्ण, वि. १८८९, पौष कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पाली, प्रले. पं. रुपचंद; उप. आ. जिनकीर्तिसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीनवलखाजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १३४३६). आवश्यकसूत्र-पौषध विधि-चउप्रहरी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जिस श्रावकणीने उपवास; अंति: साधुनै विहरावी पारणो करै, (वि. खरतरगच्छीय.) ११०५२२. वीसस्थानकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४५, भाद्रपद कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सरदारपुरग्राम, प्रले. श्राव. नगीनदास डुंगरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२.५, १३४४२). २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे प्रणमुं; अंति: भणे शुभे मने रे, गाथा-८. ११०५२३. अध्यात्मबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२७.५४१३.५, १३४३२). अध्यात्मबत्तीसी, म. बालचंद मनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ११०५२४. (+) २३ पदवी गति आगति, संपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. पत्र १४२, संशोधित., ., (२७X१२.५, १६४२०). २३ पदवी गतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: रत्नप्रभा सकरप्रभा वालुक; अंति: श्री श्री श्री श्री, (वि. सारिणीयुक्त.) ११०५२५. (+) शांतिजिन जन्माभिषेक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:शांतिजि०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३, १२४४२). १.पे. नाम. शांतिजिन जन्माभिषेक कलश, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजयमंगलकृत्स्न; अंति: श्रीशांतिजिन जयकार, गाथा-४४. २. पे. नाम. साधारणजिन अभिषेक श्लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: चक्रे देवेंद्रराजै; अंति: जैनेंद्र बिंब, श्लोक-१, (वि. जिनबिंब प्रतिष्ठानुसार यह काव्य लिखा गया है.) ११०५२६. (+) १४ स्वप्न सज्झाय, आदिजिन स्तवन व ३ मनोरथ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१३, १८४५०). १. पे. नाम. चौद स्वप्न सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सुपन१४नी संझाय. १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देवतिर्थंकर केरडि; अंति: लावनसमे इम भणे ए, ढाल-४, गाथा-४६. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:तवन रीखवदेवन. मु. महानंद, रा., पद्य, आदि: प्यारो लागे प्यारो; अंति: माहानंद० थाहरी सेव, गाथा-७. ३. पे. नाम. त्रण मनोर्थ सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:३मनोर्थनी संझाय. ३ मनोरथ सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर वांदिने पुछे गौतम; अंति: वाससांमी छेले सासोसास, गाथा-१२. ११०५२७. (+) व्याख्यान संग्रह, अतीतअनागतजिन नाम व १२ देवलोक नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १४४३६). १.पे. नाम. व्याख्यान संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: दानं सुपात्रे विशदं; अंति: कुर्वंतु वो मंगलं. २.पे. नाम. अतीतअनागतजिन नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. अतीतअनागतवर्तमान २४ जिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीकेवलज्ञानी१ निर्वाणी२; अंति: २४ एते भाविजिनाः. ३. पे. नाम. १२ देवलोक नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्म १ ईशान २; अंति: आरणै ११ अच्युत १२. ११०५२८. नेमिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७४१३, ११४३३). नेमिजिन लावणी, म. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमि निरंजन बाल; अंति: माणेक० मनने क्रोडे, ढाल-४, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११०५२९ (+४) लघुशांति स्तव सह टवार्थ व प्रास्ताविक काव्यसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८५३, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पू. २, कुल पे. २, ले.स्थल. धानेरानगर, पठ. मु. लखमीचंद (गुरु ग. मुक्तिविजय); प्रले. ग. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१२.५, ६x२६). १. पे. नाम, लघुशांति स्तव सह टवार्थ, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत, अति सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. लघुशांति टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि शांतिनाथ सोलमा तीर्थ; अंतिः शांतिपद स्थानक पाम्यो. २. पे. नाम. प्रास्ताविक काव्यसंग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: गर्व्वं मा कुरु; अंति: भेदकथनं तद्वत्नृपोपासनं, श्लोक - ५. १९१०५३०. (०) शनिश्चर स्तवन, स्तुति व श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५. प्र. वि. मूल पाठ का अंश १९७ खंडित है, दे. (२६.५४१२.५, १९३०). १. पे. नाम शनिश्चर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शनिश्चर छंद, पंडित, धर्महंस, मा.गु., पद्म, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अति हंस० सर्व सिद्धि लहे, (वि. गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) २. पे नाम साधु प्रतिक्रमणसूत्र गाथा संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पडिकमण १ गमण २ भोअण३; अंति: साहु साहुणी हिय, गाथा - १. ३. पे नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, ले. स्थल हैदराबाद. सं., पद्य, आदि इति सुकृति विपाका शांति अंतिः मद्भुतां स्वस्य मेत्र श्लोक-१. ४. पे. नाम. मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-मांगलिक, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि धर्मात्सुखं भवभ्रताभ; अति जीवोह० मेत्सु सिध्यै श्लोक-२. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जयो शांतिजिन चंद्रमा; अंति: धवल० प्रकट्यो केवलज्ञान, गाथा-१०. " ११०५३१. अतीत २४ जिन स्तवन व अनागत २४ जिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२.५, १०-१५X३८). १. पे नाम. २४ जिननाम स्तवन- अतीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. . राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी ध्याइइं; अंति: राज० करुं प्रणाम, गाथा- ९. २. पे. नाम अनागतचतुर्विंशती चैत्यवंदन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन- अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि पदमनाभ पहिला जिणंद, अंति: नय वंदे सुजगीस, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने तीन गाथा को एक गिना है व गाथा के लिए -२१ से २५ अंक लिखा है.) ११०५३३. (+) तीर्थसेवायां नागदत्त दृष्टांतकथा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे., (२८x१३, १५X४२-४५). " नागदत्त दृष्टांतकथा-तीर्थसेवाविषये, प्रा., पद्य, आदि: सुरवर नयरायारे कुसुमपुरे; अंति: रासि तरिव्वाणसिरि लहेह, गाथा - ११८. ११०५३४. (+) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८x१३, १२x२२). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० छुतइ तत्काल, ढाल -३, गाथा-३४. For Private and Personal Use Only ११०५३५. ध्वजारोपण विधि, संपूर्ण, वि. १९६२, माघ शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. मुंबई, प्रले. श्राव. हरगोविंद मोती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: ध्वजारोपण०, दे. (२८४१३, १३४३५) ध्वजारोपण विधि, आ. गुणरत्नसूरि, मा.गु., प+ग, आदि: तथाही भूमि शुद्ध गंगोदक, अति: श्रीगुणरत्नसूरि विरचित. ११०५३६. (+) शांतसुधारस - प्रकाश १ से ४, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, दे., (२८x१३, १६x४२-५०). शांतसुधारस, उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७२३, आदि: नीरंध्रे भवकानने परिगलत् अंति: (-), प्रतिपूर्ण. Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११०५३७. नंदिषेण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पत्रांक दोनों ओर लिखे हैं., दे., (२७४१३, १०४२४-२८). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: नही कोई तोले हों, ढाल-३, गाथा-१६. ११०५३८. दस पच्चक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. भक्तिविलाश; पठ. सा. जीतश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, १२४४०). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ११०५३९ (+) पार्श्वजिन व नेमजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे.४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १२४२४-२७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., पद्य, आदि: माई रंगभर खेलेगे; अंति: भक्ति रमे जिनवर सहाय, गाथा-४. २.पे. नाम. नेमजिन फाग, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमिजिन धमाल, मु. सुमतिसागर, पुहि., पद्य, आदि: सात पाच सखियन की टोली; अंति: सुमतिसागर जिनचंद, गाथा-६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. क्षेमप्रकाश, पुहि., पद्य, आदि: ऐसै संत वसंत खेलत; अंति: परमाणंद क्षेमप्रकास, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे नेम कुंवर खेले; अंति: भक्ति रमे उपजत आनंद, गाथा-५. ११०५४०. संतिकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. पाना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३.५, १३४२९). संतिकरं स्तोत्र, आ. मनिसंदरसरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: शांतिकरं शांतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ११०५४१. (4) पार्श्व व नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १६४३३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-नारंगामंडन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विषय त्रेवीस नीवारी; अंति: पद्मविजय कहे शुभमति, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी तोरण आवी कंथ; अंति: जिननेम अनुभव फलीआ रे, गाथा-१५. ११०५४२. पांच स्थानक जीव विचार, संपूर्ण, वि. १९४१, माघ कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२८x१३, ११४४२). १. पे. नाम. जीव पांचेस्थानके निकले, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ स्थान जीवगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जेहनो जिव पगे निकले ते; अंति: अंगे निकले ते मोक्ष जाये. २. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पालखी वेसे अथीरआसणे बेसे; अंति: दूसण सामयकना टालवा. ११०५४३. चौवीशजिन स्तति, संपूर्ण, वि. १९५७, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. महवा, प्रले. गिरजाशंकर हरजीवन दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२.५, ११४३५-४३). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता गिर्वाणी सुमति; अंति: नय० भाव धरीने भणो नरनारी, गाथा-२९. ११०५४४. श्रीपाल रास-खंड २ ढाल ७, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२८x१३, १२४३७). For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११०५४६. बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७.५४१३, ८४२२). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ-"शांतिरेव सदा तेषां येषां शांतीगुहेगृहे" तक लिखा है.) ११०५४८. (#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२,१२४३५). १.पे. नाम. पर्यषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय शृंगार; अंति: आराधीए आगमवाणी विनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम, पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: सुपन लहे उपजे विनय वनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: धरे सुणज्यो एक चित्त, गाथा-३. ६.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सरखी वंदु सदा वनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवत्सरी दिन; अंति: विनयविजय० चरणे नामु शीस, गाथा-३. ८. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वडा कल्प पुरव दिने; अंति: सुणे तो पामे भव पार, गाथा-४. ९. पे. नाम. पर्यषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नव चोमासी तप कर्या; अंति: लहीए नितु कल्याण, गाथा-६. ११०५५०. अक्षयनिधि तप गर्भित पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रावण शुक्ल, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. दीपविजय शिष्य (गुरु ग. दीपविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १३४३४). पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: तपवर कीजे रे अक्षयनिधि; अंति: पद्मविजय फल लीधो, गाथा-१२. ११०५५३. (+#) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, ८४३७). भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररविपरि; अंति: गुणैः प्रयोज्यः, श्लोक-४, (वि. पत्र-१अ पर भी यही कृति श्लोक-३ अपूर्ण तक लिखी है.) ११०५५५ (+#) आहारना ९६ दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:बोल, संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२७.५४१२.५, ४४४६-५२). आहार के ९६ दोष, प्रा., गद्य, आदि: आहाकम्मे१ उद्देसिक२; अंति: स्साए९५ पारियासियए९६. आहार के ९६ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आहा आधाकरमी ते कहीये जे; अंति: घणी वार राखी करइ ते. ११०५५६. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२७४१२.५, १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजो शिणगार; अंति: आराधीइं आगमवाणी वनित, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: सुणज्यो एकहि चित, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर नेमनाथ; अंति: सरखी वंदु सदा वनीत, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवत्सरी दिन; अंति: विनयविजय० चरणे नामु शीस, गाथा-३. ११०५५९ (+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, संपूर्ण, वि. १९३४, मार्गशीर्ष शुक्ल, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. रुपचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७७१३, १२४३८-४०). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपो शारदा मया; अंति: पुण्यतवी छंद देशंतरी, गाथा-४६. ११०५६०. धन्नाकाकंदीरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७.५४१३, १०x२८). धन्नाअणगार सज्झाय, पं. प्रमोदसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन वीरवाणी सुणी; अंति: प्रमोदसु० तस अवतार, गाथा-२८. ११०५६३. (+) रुक्मिणी सज्झाय, आदिजिन व दिवालीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , दे., (२७.५४१२.५, १७४५५). १.पे. नाम. रुक्मिणी स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. __ रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामोगाम नेमि; अंति: जाइ राजविजे रंगे भणे, गाथा-१५. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९४१, पौष शुक्ल, १३, ले.स्थल. पाली नगर. आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन; अंति: बीकानेर मझारो रे, गाथा-११. ३. पे. नाम. दिवाली स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व सज्झाय, पं. हर्षविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मंगळ सकल तरेस; अंति: हरखे हरखे गाइ रे, गाथा-८. ११०५६४. इरियावहीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२८x१२, ११४४०). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: इरियावही पडिक्कमशुं; अंति: मुक्तिफल अनुभवशे रे, गाथा-१८. ११०५६५. चौविसजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७.५४१२.५, ११४३०). २४ जिन छंद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आर्या ब्रह्मसुता; अंति: भाव धरीने भणो नरनारी, गाथा-२९. ११०५६६. आंतरानुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७.५४१३, ११४३७). २४ जिन आंतरा स्तवन, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सारद सारदना सुपरे; अंति: राम० वर्यो जयकार, ढाल-४, गाथा-३५. ११०५६७. (#) आशिकपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, प्रले. पंन्या. खुशालसुंदरजी (तपा पक्ष); पठ. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३.५, १५४४२). आशिकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आसिक मोह्यो तुझ रूप; अंति: सौख्य घणु लहेस्ये, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २०१ ११०५६८.(+) तिजयपहत्त स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१३, ३४२७-२९). तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन जगत्रन प्रभुताना; अंति: नित्यइअचेहक० पूजो. ११०५६९ (+) अढार लिपि, बहत्तर कला-पुरुष व चौसठ कला-स्त्री के नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१३, १६४४४). १. पे. नाम. अढार लिपि नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ लिपि नाम, मा.ग., गद्य, आदि: हंसलिपि १ भूयलिपि २; अंति: मूलदेवी लिपि१८. २. पे. नाम. बहत्तर कला-पुरुष, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ७२ कला नाम-पुरुषसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: लिखतकला१ गणितकला२; अंति: रोपणकला ७१ युद्धकला ७२. ३. पे. नाम. ६४ कला-स्त्री, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ६४ कला नाम-स्त्रीसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: नृत्यकला१ उचितकला२; अंति: शुक्रोत्पत्तिकला६४. ११०५७३. (+) मायाबीज स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:मायाबी., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३, ११४३४). मायाबीज स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुवर्णपार्श्व लयमध्य; अंति: पदं लभते क्रमात्सः, श्लोक-१६. ११०५७६. (#) जिनपूजा धि, पर्युषणपर्व व शत्रुजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७७१३, १६४३४). १.पे. नाम. जिनपूजा विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. म. वीरविमल, मा.ग., पद्य, आदि: सरसति भगवति दे मात चंग; अंति: कहइ भविया ए बत्रीसी सह, गाथा-३३. २.पे. नाम. पर्यषणपर्व स्तति, प. २आ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. जीतमल भंडारी, प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. यह कृति बादमें लिखि है. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद जिन पूजा रचिने; अंति: पुरो देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बादमें लिखि है. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय; अंति: सौभाग्य० सुखकंदा जी, गाथा-१. ११०५७८. (+) छिनाल पच्चीसी, औपदेशिक सज्झाय व सवैया, संपूर्ण, वि. १९०८, आषाढ़ कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल, लखनउ, प्रले. मु. बालचंद्र जति, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. गंगायांगोमतिस्तटे., संशोधित., दे., (२६.५४१३, १५४४६). १. पे. नाम. छिनालपच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: परमुख देखी अपण मुख; अंति: लालचंद आखर समजावै, गाथा-२६. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नारी, मा.गु., पद्य, आदि: नांनी सीक नाजकपना शाहजादी; अंति: तुम हंस बोलो हम लाख पाया, गाथा-१२. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: घटा घनघोर जामै चमकत है; अंति: बरखा को रुप अटा चढ देखीय, सवैया-१. ११०५७९ अनागतचोविसी नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, ११४३२). २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मनाभ पहेला जिणंद; अंति: कहे ज्ञानविमलसूरीश, गाथा-१५. ११०५८२. रोहिणीतप व पर्यषण पर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२७.५४१२.५, १५४४९). १. पे. नाम. रोहिणी तप चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. रोहीणीतप चैत्यवंदन, म. हंसविजयजी म., मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य जिन वंदी; अंति: तेहना हंस कहे कर जोड, गाथा-९. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०२ www.kobatirth.org पं. वीरविजय, मा.गु., पद्म, आदि पर्व पर्युषण गुणनीलो अति शासने पामो जयजयकार, गाथा- ९. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकलपर्व शृंगारहार; अंति: प्रमोद० जय जयकार, गाथा-१३. ११०५८३. सुबाहुकुंवर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२७४१३, १३४३४-४०). יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि हवे सुबाहु कुवर इम; अंति: जय गुरु सम्म आद, गाथा- १५. ११०५८७. भरतबाहुबली सज्झाय व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, जैवे. (२७४१२, १२४३६)१. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: तव भरतेसर वीनवे रे; अंति रामवीजे जय सीरीवरे, गाथा- १२. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकम्रत्रिदशपति; अंति: भवतां विघ्नमर्दी कपर्दी, श्लोक-४. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११०५९३. (+) सोल सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. गुमानचंद शिष्य (गुरु मु. गुमानचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७.५x१२.५, ८-१०३०-३७). "" १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आदिनाथ आदि जिनवर अंति उदयरत्न० सुख संपदा ए, गाथा - १७. १९०५९४ भगवतीसूत्र का थोकडा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, वे. (२६.५४१२, १६x४६-४८). भगवतीसूत्र थोकडा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगौतमस्वामी हाथजोडी अति (अपठनीय), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. लवणसमुद्र वर्णन तक लिखा है.) ११०५९५. (+) आत्मप्रदीप शतक, संपूर्ण, वि. १९६२, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. पेथापुर, प्रले. श्राव. जेठालाल चुनीलाल शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : आत्मप्रदीप०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८x१२.५, १३x४८). आत्मप्रदीप शतक, आ. बुद्धिसागरसूरि सं., पद्य वि. १९६१, आदि हृदि ध्यात्वा गिरामीश; अति श्रोतारस्युश्चसिद्धिगा, लोक-१०३. ११०५९६. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, प्र. वि. हुंडी : स्तवन, दे., (२७.५X१२.५, ११४३८-४१). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. . विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेत्रुंजो सीणगार; अंति: आगमवाणी विनीत, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक १ से ३ क्रमशः लिखा है.) २. पे. नाम. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. . विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक ४ से ६ क्रमशः लिखा है.) ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरु सम कल्पसूत्र अंति: लहे उपजे विनय विनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आदि मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ५. पे. नाम. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: घरे सुणजे एके चित्त, For Private and Personal Use Only सुपन विधि कहे सुत; अति वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. गाथा - ३. .पे. नाम. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पू. १आ, संपूर्ण, मु. . विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि पास जिणेसर नेमनाथ, अंति सरखी बंदु सदा वनीत, गाथा- ३. : ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २०३ मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवत्सरी दिन; अंति: विनयविजय० चरणे नामु शीस, गाथा-३. ११०५९९ (+) मदनरेखासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६५, आषाढ़ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. सडवाड, प्रले. मु. वीरा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मयण०, संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, १८४४७). मदनरेखासती चौपाई, मा.ग., पद्य, आदि: विसन सातमो परनारिनो; अंति: राजवीयानइ राज पियारो, गाथा-१५८. ११०६०१ (#) अरणकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १०-१२४३३). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन अरणिक जाम; अंति: कीर्तिसूरि इण पर भणे ए, गाथा-२६. ११०६०५. ब्रह्मचर्य उच्चार विधि, वीसस्थानक उच्चार विधि, ज्ञानपंचमीतप उच्चार विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३३-४४). १.पे. नाम, ब्रह्मचर्य उच्चार विधि, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: महामहोत्सव पूर्वकः; अंति: प्रदक्षिणा देवरावीइं. २. पे. नाम. वीसस्थानक उच्चार विधि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप उच्चारविधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नांदि सर्व उपधान समकित; अंति: उचरावीइं नित्थारपारगा होह. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीतप उच्चार विधि, पृ. ४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इच्छाकारि भगवन तुझे; अंति: उचरावीइ नित्थारपारगा होह, (वि. इस प्रकार अन्य तपों की उच्चारविधि का उल्लेख किया गया है.) ११०६०९ (+) अक्षयतृतीया व चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११, १२४३१-३८). १.पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८९६, वैशाख शुक्ल, १, प्रले.पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः, ग्रं. ८०. २. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान-नमिविनमि संबंध, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, प्रले. मु. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, आदि: तीर्थराजं नमस्कृत्य; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११०६१६. (+) मुहपत्ति ५० बोल, स्थापनाचार्यना बोल व साधुपंचप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (१५४१०, १३४३२). १. पे. नाम. मुहपत्ति ५० बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व करी; अंति: त्रसकायनी वीराधना परीहरु. २. पे. नाम, स्थापनाचार्यना १३ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. ___स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सुध स्वरूपे १ ज्ञानसहित २; अंति: कायगुप्ति१३. ३. पे. नाम. साधुपंचप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: तस्स मिच्छामिदक्कडं. ११०६१७. सिद्धदंडिका स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. मोतिचंदजी; अन्य. सा. चतुरश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२.५, ३४३४). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाउ; अंति: वंदिया दितु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: जं के० जे उसभ के०; अंति: सुख ते प्रते आपो. ११०६१९ (+) परमानंदपच्चीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. जोधपुर मारवाड, प्रले. अनराज बालमुकनजी बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:परमानंद२५सी. गुंदीकामोला. शांतीनाथजीके मंदिरपास., संशोधित., दे., (२८x१२.५, ६४५६). For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची परमानंद स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमानंदसंयुक्तं; अंति: परमं पदमात्मनः, श्लोक-२५. परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: परमानंद क० मो तेणे; अंति: एहवी स्थिति रहेता, (प्र.ले.श्लो. (१४९९) मन जो मूरख मूल है) ११०६२०. (#) पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२७.५४१२.५, १४४४३). पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., पद्य, वि. १८५७, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: लिखितो मुमोद भरतः, श्लोक-४१. ११०६२२. (+) प्रतिष्ठाविधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२७४१२.५, ६४३४). नवग्रह प्रतिष्ठा विधि, सं., गद्य, आदि: पूर्वं प्रासादे वा ग्रहे; अंति: शेषोविधिहवत. नवग्रह प्रतिष्ठा विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पेहली जिनमंदिरमा अथवा; अंति: विध ग्रहानी परे करवो. ११०६२४. (#) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र व २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१२.५, २१४२३). १.पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं घंटाकर्णो; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. २. पे. नाम, २४ जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर संभव साम सुबध; अंति: श्रीजिनवर मुज करो कल्याण, गाथा-७. ११०६२५ (+) सवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९३, चैत्र शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, प. ३, कुल पे. ५, प्रले. श्राव. नोनीधराम पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्लोकका., सवैया., संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १७X४९). १. पे. नाम. नेमराजीमती सिलोको, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती श्लोक, म. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: समरु सारद4 गणपति; अंति: कुसल० कवीयण सबरो गुण गायो, गाथा-२०. २. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सेव करुं चित्तलाय कंचन; अंति: गुण गाथ सेवै सुर इहज, पद-१. ३. पे. नाम. नवकारमंत्र सवैया, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नवकार महिमा सवैया, ग. रूपवल्लभ, पुहिं., पद्य, आदि: ॐ कार बडो सब अक्षर मे; अंति: रुघपति सदा बरदाई, गाथा-११. ४. पे. नाम. सोलसती सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. १६ सती सवैया, ग. रूपवल्लभ, पुहिं., पद्य, आदि: अडगबनगरी की धुस बजै; अंति: सोलसती जिन जांणी, गाथा-२. ५. पे. नाम. चौवीस तीर्थंकर सवैया, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. २४ जिन सवैया, ग. रूपवल्लभ, पुहि., पद्य, वि. १८०२, आदि: उरधार महाव्रत पंच उचार; अंति: सरस्वति बचनां सिद्ध, गाथा-२७. ११०६२८. आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १२४३७). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेजा; अंति: देजो परमानंद, गाथा-२०. ११०६३०. संथारापोरसी विधि, संपूर्ण, वि. १८५७, आषाढ़ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १०४३२-३६). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: खमाविआ मज प्रते ते खमंत, गाथा-१६. ११०६३१. प्रज्ञापनासूत्र-पद-१ गाथा-९२ से ११३, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२.५, १७४३८). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. अंत में विषयसंबद्ध सामान्य परिचय अपूर्ण रूप से लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ " ११०६३४ गौतमस्वामी अष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, जै. (१७९, ८x२० ). गीतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि प्रह उठी गीतम समरीजे अंति (-), (पू.वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) "" ११०६३५. गौतमस्वामी छंद व बृहस्पति स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैवे. (१६.५४९.५, ९४१५-१८). १. पे. नाम गौतमस्वामी छंद. पू. १अ २अ संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेसर केरो शीश; अंति: लावन्य० नामे संपत कोड, गाथा - ९. २. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः ॐ ब्रहस्पती, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ११०६३६. विविध मंत्रसाधनविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५-१ ( २ ) = ४, प्र. वि. बंदीमोचन, शत्रुनिवारणादि काम्यप्रयोग संबंधी वैदिक, जैन मंत्रादि संग्रह. जै (२०.५४९, १२४३९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह", उ., पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अंत में मंत्रविधि अपूर्ण तक है.) ११०६४९. (#) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, कुल पे. ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंड है, जैसे. (२१.५४९, ७X२४). " २०५ १. पे. नाम. अनाधिमुनिराज सज्झाच, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. अनाधीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति समयसुंदर रे बे करजोडि, गाथा-१०. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, मु. कांति, पुहिं., पद्य, आदि: जिणंदा तारी वाणीय मन; अंति: भाखे म कांत रे, गाथा-५. ३. पे नाम, पद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पदमप्रभु जिन ताहरो; अति: सह प्रभुना गुण गावे, गाथा-३. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पू. ३अ, संपूर्ण. " मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि देख्या दरस तुमारे मै वारी; अति रूपचंद० वार हजारा रे, गाथा-३. ११०६५० दशार्णभद्र सवैया व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, दे. (१८.५४९, ८४३०). १. पे नाम. दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन सवैया, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " मा.गु., पद्य, आदि चोसठ सहस गयंद इंद्र विकुरः अतिः सुकृत ही खोयो गयो, सवैया-३, २. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि जब फलास फूलन कु आवे पातर; अति सो मन पेला मिल जाय, गाथा- ३. ११०६५१. २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१७x९, १२X३०). स्तवनचौवीसी, आ. दयासागरसूरि, मा.गु, पद्य, आदि सेबो रे श्रीरीषभ जिणेसर, अंति: (-), (पू. बि. अरजिन स्तवन तक है.) ११०६५५. पतिस्वागत गीत व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्र १x२०१, जैवे. (१७४१५.५, २३X३०). १. पे नाम. पतिस्वागत गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मारुजी गेंद नेणा रे वचः अति: चालो तो रोटाने दाल हो, पद-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत-गोडीमंडन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: उभी तो राण्यां अरज कर्डेजी; अति रहीजो इवचल राज जी गाथा ६. ११०६६३. नवतत्त्ववर्णन दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक १४४=१. वे. (४४४८.५, २७-३८४१४). नवतत्त्ववर्णन दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: चेतनवंत अनंतगुण पर्य; अंति: मोक्षतत्व सो जानि, दोहा-९ For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११०६६४. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. मोतीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक १x२=१., जैदे., ( १५X१४.५, १७X२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. हस्तसागर ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौडी प्रभु पास; अंति: निज हसतैसागरर्षिपरा मुदा, गाथा- ७. ११०६६५. देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (१६x८.५, ७X२४). देववंदन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि आए; अंति: (-), (पू.वि. 'जावंत केवि साहु उवसग्ग' पाठ तक है.) " युक्त विशेष साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि नेत्रानंदकरी भवोदधीतरी अतिः भवतु श्रेयस्करी देहिनां गाथा - १. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह- बालावबोध, मा. गु, गद्य, आदि: अहो मानुभाव श्रीजिनपुंगव अति जित्वरी क० जीपणहारी जाणवी. ११०६८८. गौतमस्वाम्याष्टक व गौतमस्वामी स्तुति, संपूर्ण, वि. १८१२, फाल्गुन कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे, २, ले. स्थल. वीरमगाम, जैदे., (१२४८, १३x२२). १. पे. नाम. गौतमस्वाम्याष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि श्रीइंद्रभूतिं वसु अंति: लभते नितरां क्रमेण श्लोक -९२. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: कणयमयसहस्सपत्ते कमलंमिति; अंति: झायवो गोयम मुणिंदो, गाथा-१. ११०६८९. सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) =१, जैदे., (२०.५X१५, १२x२०). आदिः त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. श्लोक-१७ से ३१ अपूर्ण तक है. ) ११०६९०. औपदेशिक पद व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. बीलाडा, प्र.वि. हुंडी: उपदेसी., दे., (१५X७.५, १४x२९). १. पे. नाम औपदेशिक पद, पू. १.अ. संपूर्ण. 1 " ११०६८५. (+) साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह सह वालाववोध, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. टिप्पण पाठ-संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जैये. (१४.५४८.५, १५४३१). औपदेशिक पद-ममता त्याग, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: (१) मै मते मत किज्यो राज मन, (२) ममत मत किज्यो राज; अति खेम कहे० सुख दाने दिने मे, गाथा ५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. हीरा, मा.गु., पद्य, आदि: नवघाटी उलंगनेर पायो है; अंति: इम हीरो जी भाईजी जीयो जी, गाथा - ७. ११०६९१. (+) सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. पत्रांक १x४ = १. संशोधित. वे., ( २१४८, ७X२५). १. पे नाम. जिनकुशलसूरिगुरुगुण गीत, पू. १अ संपूर्ण. मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि श्रीगणधर गुरु कुसलसूरिद, अंतिः राज० बेर बेर बलिहारी, गाथा-२. २. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. १अ संपूर्ण. पुहिं., पद्म, आदि: कैसे कैसे अवसर मै प्रभुः अति: तेरा वडा भरोसा भारी, गाथा-४. ३. पे. नाम. अभक्ष्य अनंतकाय सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, ले.स्थल, कलिकोठ, प्रले. चमनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि जिनशासन रे शुद्धि: अंतिः प्राणी से शिवसुख लहे, गाथा - १०. ४. पे. नाम. सुभाषित दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २०७ सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वपु पवित्री कुरु तीर्थ; अंति: पवित्रे कुरु सत्य चरित्र. ५. पे. नाम. जैन धार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण... श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: गुरु उपदेशा श्रुत मंडनानी; अंति: समये बुध्या परित्यज्यते. ११०६९२. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. रूपजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१५४८.५, ११x१९). शांतिजिन स्तवन, पं. कांतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेशर मुरति; अंति: कांतीविमल जस गाजै रे, गाथा-८. ११०६९३. नेमिनाथ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (१७X९, १२४३३). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पुण्यरत्न नेमि जिणंद, गाथा-७०, (पू.वि. गाथा-५९ __अपूर्ण से है.) ११०६९९ कुगुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जीतमल; पठ. श्राव. इसरदास कोजूरामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४८, ७४४६). कुगुरु सज्झाय, मु. साधुजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु तोरे ज्यारा आधा दीसे; अंति: ऋष साधु० महा दुख खानो रे, गाथा-६. ११०७१०. (+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. पत्रांक १४८१., संशोधित., दे., (५१४१७, २३-६०४१७). १. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुखलाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: भवि भेटो रे समेतशिखरगिरकु; अंति: सुखलाल० मांगे सिवपुरकुं, गाथा-६. २. पे. नाम, कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. क. नरसिंह महेता, पुहिं., पद्य, आदि: गुजरी बोलाइ न बोले हो; अंति: नरसि० हस हस गुगट खोले, गाथा-३. ३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक रेखता, जादुराय, पुहिं., पद्य, आदि: खलक इक रेनदा सुपना समज; अंति: जादुराय मोहि तारा, गाथा-५. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___ मु. कपूरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जबसै सुना अनघट का माहातम; अंति: चंदकपूर कहे० अगमनिगम, गाथा-४. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पानसुपारचुनाकत्थाकलह पद, पुहिं., पद्य, आदि: पान केहे फुला सेती मे जुग; अंति: तिनु फीका जाणे घास चबाया, गाथा-४. ६. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: राजा भोज माहावलि; अंति: एसो दिठो पूछ पीछे दोय कान, गाथा-१. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थमंडन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अजयराज, मा.गु., पद्य, वि. १९३४, आदि: समेतशिखर गिरराज आज; अंति: अजयराज सिवसुख आपज्यौ, गाथा-६. ११०७२४. शत्रुजयतीर्थउद्धार स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., दे., (१३४७.५, ८x२२). शत्रुजयतीर्थउद्धार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ____गाथा-१० से है व गाथा-१६ अपूर्ण तक लिखा है.) ११०७२५. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२१४७.५, १२४३१). औपदेशिक सज्झाय-साधधर्म, म. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६२, आदि: मगत जावणारो रे मारग; अंति: चौथमलजी० कइयौ केवली, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११०७३९ (4) आध्यात्मिक सज्झाय व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०, १३४४३). १.पे. नाम. कयसीदेरी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय-कयसीदा, म. ग्यानचंद, पुहि., पद्य, आदि: हजी करैरै कयसीदै गिनकौ; अंति: गिनचद कहे। कोय उतमै प्रणी, गाथा-९. २. पे. नाम, कृष्णरुक्मणी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कृष्णराधारुक्मणी गीत, पुहिं., पद्य, आदि: हे देखौ म्हरे० राधाजीरौ; अंति: महरे सइ हे कन्हजी० धुतीइ, गाथा-७. ३. पे. नाम, जिनसखसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनसुखसूरि गीत-खरतरगच्छाधिपती, मा.गु., पद्य, आदि: सहुधरमां सिरसेहरौ रे; अंति: अधिकै भाव भलइ आवी रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. जिनचंदसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनचंदसूरि गच्छाधिपति गुरुगीत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदसुरिंदजी रे सैह; अंति: चढीती रेख जी गछनायकजी रे, गाथा-५. ११०७४० (#) अजितनाथ स्तवन व पार्श्वनाथ लघु स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४९.५, १४४२६). १.पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. अजितजिन स्तवन, मु. उदैराज, मा.गु., पद्य, वि. १७९६, आदि: श्रीअजितजिणेसर भेटीयै; अंति: उदराज० थकी सिवपुर सवोरे, गाथा-१०. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १७५३, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, प्रले. म. विजयचंद्र; पठ. पं. श्रीराम (गुरु पं. गणेश), प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन लघ स्तवन, म. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: आजनै वधावो हे सहीयर माहरइ; अंति: जुहारता आज भलै सविहांण, गाथा-७. ११०७४१. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६०, वैशाख, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सवाइजपुर, प्रले. सा. लाछां आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४९.५, १५४३९). औपदेशिक सज्झाय-साध्वी, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: थे सुणज्यो हे साधवि; अंति: रायचंद०कोइ नही राग न रीसम, गाथा-२५. ११०७४३. (#) चंदनमलयागिरि दहा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०, १८४४२). चंदनमलयागिरि रास, म. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) ११०७४४.(-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रावण कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बलुदा, प्रले. चूनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१९४९.५, १०४२६). औपदेशिक सज्झाय-श्रावक, मा.गु., पद्य, आदि: सनी सरावका चोपरी धारीक; अंति: धारी तीणरी भातकउ नीसतारी, गाथा-५. ११०७४५. सामायिक थूई व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१४१०, ८x२१). १. पे. नाम. सामायिक थूई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायेक मन सुघे करो नंदा; अंति: सामायिक पालो निसदीस, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-दुर्गत निवारक पंच दकार, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक, सं., पद्य, आदि: माता पुजोजी नवनव जसु दया; अंति: कुवंति दुरगति न इव गछति, श्लोक-१. ११०७४६. अमृतवेल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१६.५४१०, १०x२४). For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २०९ अमृतवेल सज्झाय-बृहत्, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान अजुवालीए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ११०७४७. (+) श्रेयांसजिन स्तवन व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०.५४९.५, ११४२४). १.पे. नाम, श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडुं ते सहियां मोरु मोहि; अंति: हे कांतिविजय सुख थाय, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: मन धरी सारदमातजी वली; अंति: मानविजय० भाव्यो रे मारो०. ११०७४८. (#) पंचतीर्थी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४९.५, ८x२५). कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: सया अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ११०७४९. १० पच्चक्खाणसूत्र व १० पच्चक्खाण नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०४९.५, ११४२८). १. पे. नाम. १० पच्चक्खाण सूत्र-एकासणा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. १० पच्चक्खाण नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नवकारसी सागार पोरसी; अंति: इति विगइ० अभिग्रह ४. ११०७५१. अजारीमाता स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८८३, वैशाख शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११-८(१ से ८)=३, जैदे., (१७४१०, १३४२३). सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: लील करी आस रहैसी ताहरी, गाथा-३५, संपूर्ण. ११०७५२. (+) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९१२, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. खमणोल, प्रले. किसन, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४१०,१४४३२). औपदेशिक सज्झाय-निंदक, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: (-); अंति: सहर जोधपुर चोमासे ए, गाथा२७, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-७ अपूर्ण से है.) ११०७५३. (+) भीखनजीगुरु गहुँली संग्रह व २४ जिन २० विहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-३३(१ से ३३)२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०x१०, ८४२८). १.पे. नाम. भीखनजीगुरु गहुँली, पृ. ३४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वरणवुजी तो ही पार न थायजी, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, भीखनजीगुरु गहुँली, पृ. ३४अ-३५अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: भीखू थेतो वालपण वुधवंता; अंति: केकडी आयो जस गुण गायोरा, गाथा-१५, (ले.स्थल. केकडी) ३. पे. नाम. २४ जिन २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. ३५अ-३५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रा., पद्य, आदि: प्रणमो ऋषभ अजत संभव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११०७५४. (+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४१०, १०४३३). १.पे. नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, पृ. १अ, संपूर्ण. म. शिवसंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्, श्लोक-५. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनकुशलसरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: पातु पूज्योपचासः, श्लोक-६. ११०७५५ (+#) दशवकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१०.५, १०४२९). For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि प्रा. पद्य, वी. रवी, आदि (-); अति (-) (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा- ९ अपूर्ण से अध्ययन-३ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११०७५६. अभयकुमारमंत्री सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) -१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., जैदे., ( १६.५X१०, १३X२३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभयकुमारमंत्री सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ गाथा ४३ अपूर्ण से ढाल ४ गाथा- ५६ अपूर्ण तक है., वि. ढालों का गाथा परिमाण क्रमशः प्रतीत होता है.) ११००६४ (-) गाय अर्जी व औपदेशिक पद संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ.. . दे.. (२०x१०.५, ११x२३). १. पे नाम गाय अर्जी-अंग्रेज, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. - पुहिं., पद्य, आदि सुणो सुणो अंगरेज बार गउ; अंतिः मतक सीर आजमवी नाहाक मरती, गाथा- १०. " २. पे नाम औपदेशिक पद-वृद्धावस्था, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि दांत डाड सब हालण लागा; अंति: पीछसु होला होली रे, गाथा-५. ११०७६५. दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (१६४१०, ६x२४). दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति समयसुंदर भवनो जी पार रे, गाथा-६. १९०७६६. (#) २४ जिन नाम, ५ तीर्थ स्तुति व २० विहरमान मातापिता नामादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ७-३ (१, ५ से ६) =४, कुल पे. ११, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२०.५x१०, ११x२७). १. पे. नाम. २४ जिननाम- अतीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम- अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीकेवलज्ञानी० निर्वाणी; अंतिः श्रीअनंतवीर्य श्रीछत्रति. २. पे नाम. ५ तीर्थ स्तुति-गाथा १. पू. २आ, संपूर्ण. ५ तीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: आबु अष्टापद गिरनार, अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. २० विहरमान मातापिता सहित नाम, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहिं., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर २ बाहु३; अंति: सर्वभूती राजा राजपाल राजा. ४. पे नाम. ४ शाश्वतजिन नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि ऋषभ१ चंद्रानन२: अंति: वारिषेण३ वर्द्धमान४. ५. पे नाम. २० स्थानकगुण नाम, पू. ३आ-४अ, संपूर्ण. २० स्थानक गुणनाम, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंतना गुण१२ सिद्धना अंतिः श्रीतीर्थपदना गुण४८. ६. पे नाम, नवपद नाम गुण संख्या, पृ. ४अ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतना गुण १२ सिद्धनागुण; अंति: चारित्रना गुण७० तपनागुण १२. ७. पे. नाम. ६२ मार्गना बोल, पृ. ४-४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु.. को.. आदि देवगति मनुष्यगति अति (-), (पू.वि. ७ संजम बोल तक है.) ८. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. साधारणजिन चैत्यवंदन- पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८पू, आदि (-); अति नय प्रणमे नितसार, गाथा-३, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) ९. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ७अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि शत्रुंजय सिद्ध, अंतिः जिनवर करुं प्रणाम गाथा ३. १०. पे. नाम. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि आज देव अरिहंत नमः अति: पहोंचे मननी आश, गाथा-५. ११. पे नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २११ २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगभिंत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि पद्मप्रभुने वासुपुज, अंतिः तणो ज्ञानविमल कहे सीस, गाथा - ३. ११०७६७ (#) ज्ञानपच्चीसी व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५X१०, १०X३२). १. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. जै.. बनारसीदास, पु,ि पद्य, वि. १७वी आदि सुरनर तिर्लंग योनि मई अति चित आपको उदयकरण कुं हेत, गाथा - २५. २. पे नाम औषध संग्रह, पू. २आ, संपूर्ण औषधमंत्रादि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि सूरोखार पर रिक्त चीनी अंति: बीज गोली चिणामां ११०७६८. चरखा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी चरखानी. वे. (१७४१०, ९४२३). चरखा सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चरखा वालि चरखो; अति कातो उतारे भवपार रे, गाथा-५, ११०७६९. (+#) अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (१३x१०, ११५१६). " अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रकंति चंद्रप्रभुदेव, अंतिः सुख देहि अखंडित, गाथा-४. ११०७७९. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., दे., (१२७.५, ११x१४). औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: हो जी आली जाने थारी चाहि; अंति: प्रीते अंतर कोन भणी छै, गाथा - ३. ११०८२५ (४) जालंधरनाथ व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., ( १७.५x९, १५X३३). १. पे. नाम. जलंधरनाथ कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि मुंस मुंगट करसल वदत; अति उत्तम० नृपत मान सेवत सदा, गाथा - २. २. पे नाम औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जसराज, रा., पद्य, आदि जिहांरा घर में धन गोहीडा, अंति जसराज० भलप्रताप हरीभजन रा. १९०८२६. शनिश्चरदेव छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (१७९ ९ १२x२१-२४). " शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि अहि नर असुर सुरपति, अंतिः कहे हेम० अलगी टाले आपदा, गाथा -१७११०८६७ (#) कालभैरवाष्टक, संपूर्ण, वि. १७६४, पौष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. धोराजी, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (१६४९.५, १८४४१). कालभैरवाष्टक - काशीखंडे, सं., पद्य, आदिः यं यं यं यं यक्षस्वरूपं; अंति: देवं भैरवाय नमाम्यहं, श्लोक-११. ११०८९८. सीमंधरजिन स्तवन व सीमंधरवीरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. खेमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (१९x१०.५, ११x२५). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १आ-२अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. प्रमोदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि ब्रह्माणी बरवाणी मुझ दियो अति सीस कहि प्रमोदचंद्र रे, गाथा-७. २. पे. नाम. सीमंधरवीरमान स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. प्रमोदचंद्र, मा.गु, पद्य, आदि अरज सुणो सीमंधर साहबा हो; अंतिः प्रमोदचंद्र कहइ जयकार, गाथा - ९. , ११०९०७ पट्टावली तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., जैदे., (२०x१०.५, १४४४० ). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरनै पाटि, अंति: (-), (पू.वि. हरिभद्रसूरि पाट तक है.) ११०९०८. (+) २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३- २ (१ से २ ) = १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (१९x१०, १०x२५). For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ११०९०९ (#) तीरथमाला स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६०-५७(१ से ५७)=३, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४१०, १२४३२). १.पे. नाम. तीरथमाला स्तवन, पृ. ५८अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर कहै एम, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ज्ञानचौपडरी सज्झाय, पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-चौपटखेल, आ. रत्नसागरसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम असुभ मल झाटकी चतुर; अंति: रत्नसागर कहै सूर रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. अनाथीराजर्षि स्वाध्याय, पृ. ५८आ-५९अ, संपूर्ण. अनाथीमनि सज्झाय, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रेणक रयवाडी चढ्यो; अंति: समयसुंदर बे कर जोडि, गाथा-१०. ४. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. ५९अ-६०आ, संपूर्ण, वि. १८५३, पौष शुक्ल, ४. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, आ. कल्याणरत्नसरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेवी देवी रे सरसति पय; अंति: जै प्राण सुख अनंता ते लहै, गाथा-७. ५. पे. नाम. दविहार तिविहार चोविहार प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ६०आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: अप्पाणं वोसरामि, प्रतिपूर्ण. ११०९१०. औपदेशिक सज्झाय-परनारी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५४१०, १४४२९). औपदेशिक सज्झाय-परनारी, मु. सेवाराम, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: रावण मोटो राया कहिजे; अंति: सेर भले रो रामपुरो गढ को, गाथा-१५. ११०९४१ औपदेशिक कथा-सिंहवानर, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१.५४८, ८x२७-३६). औपदेशिक कथा-सिंहवानर, मा.गु., पद्य, आदि: एक समै सुणि सिंघकुं; अंति: साथमै वले न आवु पास, गाथा-११. ११०९४९ चंदनमलयागिरि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:चंदनचो., जैदे., (२२.५४११.५, ८x२६-३०). चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहि., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ११०९५०. आदिजिन व चोत्रीसअतिशय स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १३४४७). १.पे. नाम. आदीश्वर स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन स्तवन, मु. धर्मसिंह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सततमेतत्सर्वतोभद्रमद्रं, श्लोक-२५, (पू.वि. श्लोक-१८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. चोत्रीस अतिशय स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिण नाह बह भाव नमियै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११०९५१. धम्मोमंगल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. थराद, प्रले. माणेकचंद मेयाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१५४१०, ९४२४). दशवकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगल मुक्किठं; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ११०९५२. बृहद् आलोचना व औपदेशिक पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२०.५४११, ११-१४४२५-४१). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २१३ पुहि., पद्य, आदि: जो जग वसत हसत तुम जेम; अंति: का चरण नमु नमु मे देवए, पद-१. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: एक गर हरख वदावो केइ लाग; अंति: परवार कोइ वरज कोण वयो, पद-१. ३. पे. नाम. बृहद् आलोचना, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. श्राव. रणजीतसिंह लालाजी, मा.गु., प+ग., आदि: सिद्ध श्रीपरमात्मा अरि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ११०९५३. (#) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२२.५४११, १७X४९). पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: जसु सासण देवि वएसकया; अंति: पार्श्वस्तोत्रमेतत्, गाथा-३७. ११०९५४. (#) गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१३४११, १४४२०). गौतमस्वामी स्तवन, म. पण्यउदय, मा.ग., पद्य, आदि: प्रह उठी गौतम प्रणमी; अंति: प्रगट्यो परधान, गाथा-८. ११०९५५. सीमंधरजिन विनती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२०.५४१०.५, १२४२७). सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: त्रिभवन साहेब अरज सुणीजे; अंति: (-), ___(पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ११०९५६. वीसस्थानक गुण व काउसग्ग प्रमाण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३८-३५(१ से ३०,३३ से ३७)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे., (२०४११, ९४२४). २० स्थानक गुण व काउसग्ग प्रमाण, प्रा.,हिं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मृषावादविरमण चारित्रगुण अपूर्ण से । स्याद्वाद त्रिभंग अपूर्ण तक व सिद्धगुण गणना १७ अपूर्ण से २० स्थानक गणना अपूर्ण तक है.) ११०९५७ (२) १२ तपभेद विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१०, १४४३९). १२ तपभेद विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रेय कल्याण संपजे, (पू.वि. "ते पछी तवो कहतां तपस्या" पाठांश से है.) ११०९५८ (2) नववाड सज्झाय व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १२४२८). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. ३अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ९ वाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: जिनहरख० जुगती नववाडि, ढाल-११, गाथा-९७, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-५ से है.) २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहि., पद्य, आदि: संतो दो पख दोन वाटे आदि; अंति: कबीरा० सब घट एक है रामा, गाथा-५. ११०९५९. दानसियलरो चौढाल्यो, अपूर्ण, वि. १९००, वैशाख शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, ले.स्थल. बाबरानगर, प्रले. मु. सिद्धविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चौढा०., ., (२३४११, ९४२३). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: सुंदर० सुप्रसादा रे, ___ ढाल-४, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-६ अपूर्ण से है.) ११०९६०. (+) सूक्तमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११, १३४३४). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-१ श्लोक-११ अपूर्ण से श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.) ११०९६१ (+) आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४११, १०४३०). For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: सरसति गुण गावु मांगु एक; अंति: (-), (पू.वि. पाठांश 'घर सामू वलता होस्ये जीमण वारे' तक है.) ११०९६२. अष्टमीनी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. लवजी मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१०.५, ८x२०). अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जिन आगल; अंति: नय० तपथी कोड कलांणांजी, गाथा-४. ११०९६४. (#) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ३,५)=२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १०४२७). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ के दोहा-१ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-५ अपूर्ण तक व ढाल-४ के दोहा-४ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११०९६५ (+) आदिजिन स्तुति व नेमिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१.५४१०.५, ६x२०). १.पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथिपर्व, सं., पद्य, आदि: उद्यत्सारं शोभागार; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा ११०९६६. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०x१०.५, १४४३४). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: मूरत मननी मोहनी सखी सुंदर; अंति: धरी हेत कहै धरमसीह रे, गाथा-७. ११०९६७. (+) पंचपरमेष्ठि आराधना विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१,प्र.वि. हंडी:नवकार., संशोधित., दे., (२०.५४११, १२४२९). पंचपरमेष्ठि आराधना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम भलो दिन देखीनै गुरु; अंति: सेवा पुस्तकरी न्यानपूजा. ११०९६८. (-) नमस्कार महामंत्र स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., १९४२५). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तुति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:नबका. मु. लालचंद, रा., पद्य, आदि: असुभ करमकु हरणकु; अंति: रीष लालचंद० नमो नमो नवकार, गाथा-६, (वि. दो गाथाओं को एक गिनकर लिखा है.) २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सवैया, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सतुती. मु. लालचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: साध सुपतर बाडे सोदागर; अंति: लालचंद० गुण गाऊंगा, सवैया-५. ३. पे. नाम. जिनवाणीमहिमा स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: जय जिनराया सुत्र सुणाया; अंति: बेठा जाव नरनारी, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.. म. चंद्रभाण, मा.ग., पद्य, आदि: समुद्रविजयरा नंद बाइसमा; अंति: चंदभाण० धराया महा सुखदाय, गाथा-५. ५. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि वंदना, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नबक. मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नमु श्री अरिहंत करमाको; अंति: राजता कु वंदणा हमारी है, स्तुति-७, गाथा-५. ११०९६९ (+) २० विहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१९.५४१०.५, १९४३३). २०विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पेला बांदु श्रीमींदर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २१५ , ११०९७० (+०) एकादशी व चतुर्दशी स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १०-९ (१ से ९) = १ कुल पे. २, प्र. बि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २१.५x१०.५, १२X३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १०अ अपूर्ण. पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुण० संघ तणा निसदीस, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे नाम चतुर्दशी स्तुति, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: बालचंद्र० कार्येषु सिद्धि, श्लोक-४. ११०९७१ (७) नेमराजिमती रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२१x१०.५, १२x२४) नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सारदा पाय परणमी करी नेम अति (-) (पू.वि. गावा १२ अपूर्ण तक है.) ,י ११०९७२. (+) साधु व श्रावक पत्रलेखन पद्धति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २ ) = २, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक उल्लेख नहीं है. संशोधित. वे. (२२.५x१०.५, ११४३५). " १. पे. नाम. साधु पत्रलेखन पद्धति, पृ. ३अ -४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पत्रलेखन पद्धति-जिनचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: महाव्रतभारसमुद्धरणधीरान्, (पू. वि. प्रारंभिक पाठांश नहीं है., वि. उदाहरणरूप में जिनचंद्रसूरि का नाम है.) २. पे. नाम. श्रावक पत्रलेखन पद्धति, पृ. ४आ, संपूर्ण. पत्रलेखन पद्धति श्रावक प्रति, सं., गद्य, आदि: सदाचारचतुरान् देवशास्त्र; अंतिः परम सुश्रावक इत्यादिक. ११०९७३. संसारदावानल स्तोत्र, एकादशी व चतुर्दशी स्तुति, अपूर्ण, वि. १८७३ माघ शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. कर्मवाटी, प्रले. मु. सिद्धविजय, पठ. श्राव. उमेदमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २२x१०.५, १३x३६). १. पे नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ८अ अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणहर्ष० तणा निशदिश, गाथा-४, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चतुर्दशी स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: बालचंद्र० सिद्धिम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. संसारदावानल स्तोत्र, पृ. ८आ, संपूर्ण. . संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि संसार दावानल दाहनीरं समूह; अंति: विरहवरं देहि मे देहि सारं, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only ११०९७४. रीषभदेव स्तवन, धर्मरुचिअणगार सज्झाय व औपदेशिक दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. झमकुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२२.५x१०.५, १७४४०). १. पे. नाम. रीषभदेव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले. स्थल. पाली. आदिजिन स्तवन, मु. मनरूप ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८५४, आदि नगरी बनीता हो सोभे अती अति मनरूप मे धर्म को प्रमो, गाथा - १०. " " २. पे. नाम धर्मरुचि अणगार सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण, ले. स्थल, रायपुर, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि : चंपानगर नीरोपम सुहु जठे; अंति: रतनचद० नाम थकी सीव वासोयो, गाथा - १४. ३. पे नाम औपदेशिक दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, पुहि मा.गु., पद्य, आदि अंतरगत कछु ओर है मुखपर, अंतिः प्रीत पडे आदी आधीवार, गाथा-३. ११०९७५. (+) औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., ( १८x१०, १५x२८). Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपता त्याग, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापलडी हे जीभडली तु काइ; अंति: लबधि कहै सुण प्रराणी है, गाथा-१०. २. पे. नाम. भूमिका फासु के भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: आंगुल ३ फासु अवावर खेत्र; अंति: इटवाहनी भूमि अंगुल १०८. ३. पे. नाम, चेडाराजा की सात पुत्री नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: चेडा माहारायनि सात बेटी; अंति: वीरनउ भाइ क्षत्रीकुंडणनगर. ४. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: चिंतातुराणां न सुखं न; अंति: न च भूमि सेज्जा, श्लोक-२. ११०९७६. आदिनाथ नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:नमसकार., जैदे., (२०x१०.५, ८x२४). शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: आदिनाथं जगन्नाथं विमलाचल; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ११०९७७. पार्श्वजिन व आबूजी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. जालोरनगर, प्रले. मु. कीर्तिविजय (तपागच्छ); पठ. मु. नारण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८.५४१०, १४४२९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: मन मोहनगारो साम सही; अंति: जसवर्धन० आपणो कीयोजी लो, गाथा-१०. २. पे. नाम. आबूजी स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आबूगढ तीरथ ताजा आष्टापद; अंति: गाया जिनेंद्रसागरे, ____ गाथा-८. ११०९७८. शांतिजिन लेख स्तवन, अजितजिन स्तवन व नंदिषेणमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४४८). १. पे. नाम. शांतिजिन लेख स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: (-); अंति: मोहन करे गुण ग्यानए, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी अजित जिणंदनी; अंति: नामे जयकार नवनिध के, गाथा-७. ३. पे. नाम. नंदिषेण स्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, क. चतुरंग, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर महीअल विचरे; अंति: कवि चतुरंग वीनवी, गाथा-६. ११०९९१. राजवंशवर्णन छंद, आदिजिन पद व सैन्यसज्जतावर्णन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१x१०.५, १०x२८-३२). १.पे. नाम. राजवंशवर्णन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रतनसिंह राजवंशवर्णन छंद, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिय मात ओकत दीय बहुभत; अंति: रवि चंद समान उत्तम भणै. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राजसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: लगी हो लगन कहो केसै; अंति: नायक नाभि दुलारै सै, गाथा-३. ३. पे. नाम. सैन्यसज्जतावर्णन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ढोल गीडगड ढोल गीडगड आयो; अंति: अलंग कषाग खत्र बटखेली. ११०९९२ (+) महावीरजिन स्तवन, प्रास्ताविक व ३२ लक्षण कवित्त, संपूर्ण, वि. १९३६, चैत्र कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. घाणेराव, प्रले. केशवराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४१०, ९-१२४३२-४२). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर जगउपगारी; अंति: नेमकुशल० नीज कीज्योजी, गाथा-९. २.पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २१७ मा.गु., पद्य, आदि: छत्रहि कनिया जान मिल आइ; अंति: आठं जुगल पाईऐ, गाथा-१. ३. पे. नाम. ३२ लक्षण कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बत्तीस लक्षण को हंस० मीन; अंति: उचरे सोई राज काजा करे, गाथा-१. ११०९९३. दानशीलतपभाव संवाद व नणदभोजाई झगडो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-४(१ से ४)=४, कुल पे. २, प्रले. पं. हीरकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१x१०,१६x४०). १. पे. नाम. दानशीलतपभाव, पृ. ५अ-८अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. २. पे. नाम. नणदभोजाई झगडो, प. ८अ-८आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-ननदभौजाई, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि: देहु देहु नणद हठीली कहु; अंति: आनंदवरुधन० सखीय सयांनी री, गाथा-११, (वि. २ गाथा को १ के क्रम से गिनी गई है.) ११०९९४. वासुपूज्यजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०४११, ११४२१-३२). वासुपूज्यजिन स्तुति, म. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवास ज्यजीए; अंति: जिमवरो ऋषभविजय कहे भाव, गाथा-४. १११०६३. (+) ज्ञानपंचमी स्तवन व पार्श्वनाथ छंदद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४१०.५, १०४३०). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: समयसुंदर० प्रसंसीउ, ढाल-३, गाथा-२५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरतरु जग जाण सुज; अंति: मेधराज० त्रीभुवनतीलो, गाथा-५. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी प्रणमे पास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) १११०६८ (#) साधु अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पठ. म. तिलकविजय (गुरु म. फतेविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२.५४१०, ७४४३). साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: मिच्छा मि दुक्कडं, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "कंबली तणा बेहडामा वरान कीधा वनस्पतिकाय" पाठ से है.) १११०६९ (#) औपदेशिक पद, क्षेत्रपाल छंद व नमस्कार महामंत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८५३, वैशाख कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, पठ. पं. चतुरसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, ८-९४२४-२९). १.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. जगतराम, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: जगतराम० जीव तात रे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गोराजी छंद, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. क्षेत्रपाल छंद, माधो, मा.गु., गद्य, आदि: धूवै मादली मृदंग ध्वाक्; अंति: भणे वाह वाह देववाह, गाथा-५. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंति: हे मंत्र नवकार को, गाथा-७, (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र अंतिम गाथा लिखी है.) For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १११०७७. (+) शंखेश्वर व गोडीजी पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२२.५४१०.५, १२४२६) "" १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्म, आदि सेवक अरज करै छै हो राज; अति जिनहर्ष० सागरथी तारो, गाथा-५. २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल विराजे; अंतिः जिनचंद० फली सह आस, गाथा- ९. १९१०७८. (+) महावीरजिन स्तवन, मेतारजमुनि सज्झाय व संखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-३ (१ से ३)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी : सझाय., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३x१०.५, १२x२८). १. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. भावप्रभसूरि पु,ि पद्य, आदि (-); अति दूरी जिन वातडीया बे, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक राजा तणौ रे; अंति: जिनहर्ष० त्रिकाल जी, गाथा- ९. ३. पे. नाम. संखेसरा पारसजिन स्तवन, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमी श्रीसंखेसर पास अति तत्वहंस नित दिये आसीस, गाथा - ९. १११०७९ (#) बीज तिथिनी धोय, संपूर्ण वि. १९१०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, मंगलवार, मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, वे (२२.५x१०, १x२३). वीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज; अंति कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४, १११०८०. गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २१.५x१०, १३X३०). गुरुगुण सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि : आज नैणभर मुख निरख्यो; अंति: रतनचंद० सो वारो ए माय, गाथा - १०. " १११०८४ (+१) विचारपंचाशिका सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४-३ (१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२२.५४१०, ५४४८). विचारपंचाशिका. ग. विजयविमल, प्रा., पद्म, आदि (-); अति (-), (पू.वि. गाथा- ३७ अपूर्ण से ४४ तक है.) विचारपंचाशिका - स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-) १११०८६. (+#) ३२ असज्झाय गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२२.५४१०, ५x२१-२४). ३२ असज्झाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि उक्काबाई ते तारो दिसावा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ तक लिखा है.) ३२ असज्झाय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि उका० तारा तुटै ते अंति: ठाणंग समयवायगमे कहीजे, संपूर्ण. १११०८७. गौतमस्वामी छंद व युगमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४३, ५, रविवार श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, ले. स्थल, जयपुर, प्र. मु. गंगाजी (गुरुमु. लाछाजी); गुपि. मु. लाहाजी (गुरु मु. लखमी); मु. लखमी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (१७४९.५, १८X३१). १. पे. नाम गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ संपूर्ण. , मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि इंद्रभूति गौतमस्वामी; अति रायचंद० तमे छिटकावो, गाथा-१५. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : जगमेद. मु. चंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि वे कर जोडी हो; अति मोय आवागमन निवार, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २१९ १९१०८९. (d) भक्तामर स्तोत्र का शेषकाव्य, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्रले. मु. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२०.५x९.५, १०x२५). भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररविपुरि; अंति: परिणतगुणैः प्रयोज्या, श्लोक-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १११०९० (+#) गौतमस्वामी रास व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८- २ (१, ३) = ६, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (१९.५x१०, ८-११४२४). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. २अ-८अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं., अन्य. मु. सौख्यविजय (गुरु मु. गुलाल विजय); गुपि. मु. गुलालविजय (गुरु मु. बल्लभविजय): मु. वल्लभविजय (गुरु मु. लब्धिविजय); मु. . लब्धिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम. मु. उदयवंत, मा.गु., पद्म, आदि (-); अंति: नित उच्छव उदौ करो, गाथा-५२ (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से गाथा-८ अपूर्ण तक व गाथा-१५ अपूर्ण से है.) २. ये नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर माहारा तेवीसमा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) १११०९१. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी: तवन. दे. (१२.५४१०, १८४१९). महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, बि. १८३०, आदि सासणनायक समरीये रे; अंतिः सुत्त भगोतीरी साख, गाथा - १३. १११०९६. (+) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७९ माघ शुक्ल, ७, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ६-५ (१ से ५) १, प्रले. पं. उदयविजय पठ. श्रावि. मीठा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२२.५४१०, ९३०). "" पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: संपद सयल मंगल करो, ढाल ५, गाथा ५५, (पू.वि. मात्र कलश है.) १११०९७. नागश्री सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : नागसिरी. वे. (१९.५x१०, ११४३०). नागश्री सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि धर्मघोष आचार्यना; अंति: सब दुख जात परेरा रे, डाल-२, " गाथा ४६. ६- ९x११-१६). १. पे नाम औपदेशिक लावणी, पू. १अ संपूर्ण. १११०९८. औपदेशिक लावणी व मौनएकादशीपर्व गणणुं, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( १६x१०, मु. नंदलाल, पुहिं., पद्य, आदि: जो भव सायर तिरै वृथा ही; अंति: नंदलाल तुजै सीवनारी वरै, गाथा-३. २. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व गणणु धातकीखंड पश्चिमभरतक्षेत्र अतीतचोवीसी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., को., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्रीमगधाधिपनाथाय नमः तक है.) १११०९९ (+) अजितजिन, अनंतजिन पद व औपदेशिक सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. २-२ (१)-१, कुल पे. ४. प्र. वि. संशोधित, दे. (२१x१०, १२४३४). १. पे नाम अजितजिन पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: नित प्रत गुण गाय के, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अनंतजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अनंतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतजिनशुं करो सहेलडीया; अंति: जस० प्रेम प्रसंग रेगुण, गाथा-५. ३. पे. नाम औपदेशिक सवैया पुण्य पाप. पू. २आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सवैया-पुण्य-पाप, मु. ध्रमसीह, पुहिं., पद्य, आदि: एक कै पाव अनेक परै अरु एक; अंति: पाप प्रत्यक्ष फिरै है, सवैया-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: मधुमाखी बहु बाल रातिदिन; अंति: गद्द कहै। कृपण माया कसै, सवैया-१. ११११०० (#) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४१०, १०४३१). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११११०३. औपदेशिक सज्झाय व आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:तवन., जैदे., (२०.५४९.५, १६x४२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-साधधर्म, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६२, आदि: मुगत जावणारो रे मारग; अंति: चोथमल० सारो आतम काज, गाथा-१३. २. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. हीरालाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज वदावो वाज्यां नगार; अंति: हीरालाल जीनराज वदावो, गाथा-७. १११११४. (+#) रत्नाकरपच्चीसी, प्रास्ताविक श्लोक संग्रह व ८ कर्मबंध भेदविचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १६४३६-४०). १. पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी सह टबार्थ, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: रत्नाकर० प्रार्थये, श्लोक-२५, __(पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण से है.) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्री रत्नकरणदव नाम. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ६अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जल रेणु पुढवी पच्चयारिइ; अंति: खंजण कदमकिमिएगस माणोय, श्लोक-२. ३. पे. नाम. ८ कर्मबंध भेदविचार, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८ कर्मबंध भेदविचार कोष्टक, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. नाम कर्म के भेद ४९ तक है.) १११११५. (+-) बीजतिथि स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कुल पे. ५,प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२१.५४१०, १५४४३). १. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लब्धिविजय० मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसार दावानल दाहनीरं समोह; अंति: भवविरहवरं दह मे देवि सार, श्लोक-४. ४. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: निवारो संघतणा निशदिश, गाथा-४. ५. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. संबद्ध, आ. बालचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २२१ १११११६. (-) नित्यकर्म मंत्र व ऋषिमंडल स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-५(१ से ४,७)=३, कुल पे. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१७४१०, १३४२३). १. पे. नाम. ऋषिमंडल आदिनाथ स्तोत्र, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८८२, पौष शुक्ल, १४. ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-१०१, ग्रं. १५०, (पू.वि. श्लोक-१०० अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नित्यकर्म मंत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण. नित्य प्रातःकर्म मंत्र, सं., पद्य, आदि: अश्वकांते रथकांते विष्णु; अंति: शिखामुक्ति करोम्यहं, श्लोक-४. ३. पे. नाम. धूपमंत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण.. धूपपूजा श्लोक, सं., पद्य, आदि: ॐ वनस्पति रसोपेतं गवाढ्यो; अंति: श्लोक-१. ४. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ५आ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२७ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. ग्रहाणां शांति स्तोत्र, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८८३, वैशाख शुक्ल, ३, बुधवार. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भद्रबाहु० जिन नामत्त, श्लोक-१३, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ८आ, संपूर्ण, वि. १८८३, वैशाख शुक्ल, ३, बुधवार. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरापल्ली, सं., पद्य, आदि: जीरावल्ली प्रभु पार्श्व; अंति: सर्वसिद्धिं लभेत् ध्रुवम्, श्लोक-३. १११११८. (+) सामायिकग्रहण विधि व सामायिक पारवा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४९.५, ११४३२). १.पे. नाम, सामायिक ग्रहण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सामायिक लेने की विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: विधि पूर्वक पडिलेह्यां; अंति: कहीय छै० संदि सावेमि. २. पे. नाम. सामायक पारवा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक पारने की विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकाण० सामायक पारु; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ११११२८. भगवंतरी मातारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (११.५४९.५, १५४२३). देवानंदामाता सज्झाय, सा. लछमा, रा., पद्य, वि. १९१८, आदि: शासणनायक श्रीविरजीणंदा भव; अंति: लछमा० गोत्म सुण अतो मोरीअ, गाथा-११. ११११२९ (#) एलापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. हरकवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१५.५४९.५, ११४२३). इलाचीकुमार सज्झाय, म. लब्धिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: नामेलापत्र जाणीयै; अंति: लब्धिविजे गुण गाय, गाथा-९. ११११३०. संतिकरं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१६.५४९.५, १२४२१). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: सुंदरसूरि० सुअ संपयं परमं, गाथा-१३. ११११३४. (+) पडिक्कमणाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४९.५, १०४३५). देवसिप्रतिक्रमण विधि-संक्षिप्तविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदेसह भगवनजी; अंति: श्रुतदेवता निमर्त करे. ११११३६. पार्श्वजिन स्तुति व सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१x१०, ११४३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ.१अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति-प्रार्थना संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तक, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंति: शलभ० दीप्रदीपा कुराय ते, श्लोक-९. २. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त; अंतिः सततं वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. ११११३७. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२१४९.५, २४२४-३२). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मुहपत्तिवंदणयं; अंति: (-), (पू.वि. पाठांश 'समाप्त खांमेमी अभुठीओ' तक है.) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह भगवन्; अंति: (-). ११११३८. जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिए गए हैं., दे., (२०४९.५,७४२३). जैन प्रश्नोत्तर संग्रह , पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: क्या लिखा है देख लिजीएगा, (पू.वि. जगदुत्पत्ति व प्रलय प्रश्नोत्तर अपूर्ण से है.) ११११३९ (+#) रोहणीयाचोर प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५-३(२ से ४)=२, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१९४९.५, १६४२७-३१). रोहिणीयाचोर प्रबंध, मा.गु., पद्य, आदि: जिण चउवीसइ पय प्रणमेवि; अंति: कारुणा सार ए समकीत निस०, गाथा-११८, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से १०० अपूर्ण तक नहीं है.) ११११४० (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४९, १६४५१). औपदेशिक सज्झाय-साधु दान, मु. धीर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: नहीं आरंभ गृह काजि नही; अंति: कवि धीर० सवि __ हूं अख्यरतेह, गाथा-१२. ११११४१. चिंतामणि स्तवन व वीरधमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (११४९, १५४१९). १. पे. नाम. चिंतामणि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चीतांमणी. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुद्धे मन आणि आसता; अंति: समयसुंदर कहे सुख भरपुर, गाथा-९. २. पे. नाम. वीरधमान स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सिद्धारथ कुल सिणगार; अंति: धर्मसी मुनीवर भाव प्रधान, गाथा-५. ११११४४. साधु गुणवर्णन सज्झाय व स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. २, दे., (२१.५४९.५, ११४२५). १. पे. नाम. साधु गुणवर्णन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. रा., पद्य, आदि: साधुजीरी संगति रे भवियण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. स्थूलिभद्र कोशा सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. स्थलिभद्रकोशा सज्झाय, रा., पद्य, आदि: आवौ रे थुलभद्र आंगणै आंखै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ११११४५. रोहिणी थोई, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१५.५४९.५, १२४३०). रोहिणीतप स्तुति, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगलउजल सूखदायक; अंति: करज्यो देवविजयनी वाणीजी, गाथा-४. ११११४८. आगारसंख्या गाथा, लोच विधि व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.१, कुल पे. ३, जैदे., (२२४९, ११४३२). १. पे. नाम. आगारसंख्या गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २२३ प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नवकार१ पोरसी२ परिमड; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-४. २. पे. नाम. लोच विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ध्रुव चर क्षिप इणां च्यार; अंति: जीजा नक्षत्र लोच कीजे. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अब्जेचंद मराल चात्र कपिके; अंति: ते सारंग सब्दा इमे, श्लोक-१. ११११५२. महावीरजिनशासन ऐतिहासिक प्रसंगवर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. हुंडी:पाटला., जैदे., (२०४९, १९४३६). महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्ष, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: गोतम पछउ हो सामि; अंति: (-), (प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गौतमस्वामी केवलज्ञान वर्णन अपूर्ण से गुरुसामैयादि वर्णन अपूर्ण तक है.) ११११५३. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (११.५४८.५, १४४१६). २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक-८, (वि. अंत में यंत्र दिया हुआ है.) ११११५४. ८ प्रवचनमाता व गृहस्थधर्म स्वरूप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१०.५४८.५, १९४२८). १. पे. नाम, ८ प्रवचनमाता, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ब्रह्म स्त्री भ्रूण गो; अंति: मातरोष्टौ प्रकीर्तिता, श्लोक-१२. २. पे. नाम. गृहस्थधर्म स्वरूप, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: सम्यक्त्वमूलानि; अंति: मिथ्यात्वं द्विपर्यया. ११११५५. गौतमस्वामी अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१०.५४८.५, १४४१७). गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वस; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ११११५६. पांचजिन स्तुति व साधारणजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९२८, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. २, ले.स्थल. रादणपुर, दे., (१२.५४८.५, ८x१३). १. पे. नाम. पांचजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. २४ जिन स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: यत्राखिलश्रीः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुदिताः कुशलानि कामम्, श्लोक-८, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से है.) ११११५७. (+) चेलणासती चौपाई व २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:तवन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., अ., (२०.५४९, १२४३०). १. पे. नाम. चेलणासती चौपाई-ढाल १० वीं, पृ. १अ, संपूर्ण. चेलणासती चौपाई, म. दयाचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम, २४ जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भगवानदास ऋषि, रा., पद्य, आदि: ऋषभ अजत संभव अरजी अवधार; अंति: कुचेरा गांव में मारा लाल, गाथा-१५. ११११५८. (+) लघुवसुधारा मंत्र व पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. पीतांबरनगर, प्रले. पं. परमसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:स्तोत्रमंत्रस्य., संशोधित., जैदे., (१३.५४८.५, ९४२५). १. पे. नाम. लघुवसुधारा मंत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. वसुधारा-लघु, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ अंति: आर्या वसुधारा ज्ञेया. २. पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित, म. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महंतत्य; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११११६० (+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४९.५, ८x२८). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-५ अपूर्ण तक है.) ११११६१. पुष्पमाला प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-२९(१ से २९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२०.५४९, ९४२७). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४७४ अपूर्ण से ४९० तक है.) ११११६२ (+) रतनगुरु सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१,पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१९४९, १४४३०). रतनगुरु सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण आगला रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ११११६३. भगवतीसूत्र शतक ८ उद्देश ६ सूत्र १, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. धनजी ऋषि; पठ. मु. वाघा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (११.५४८.५, ११४२१). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११११६४. गुरुणी गुण लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१०.५४८.५, १६४१७). गुरुणी गुण लावणी, रा., पद्य, वि. १९००, आदि: सांसणरा सिरदार मुगत का; अंति: धर्म करो नरनारी, गाथा-५. ११११६६. यवराजर्षि बोध गाथा व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१४४८.५, ७४१७). १. पे. नाम. यवराजर्षि बोध गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: उआवसि पोआवसि मम्मं चेव; अंति: दिग पसाउ तम्म भयं, गाथा-३. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मन भगं चीत उतरो; अंति: तरुवरा तेवल गेडाल, दोहा-१. ११११६७. (+) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१७४८.५, १२४३२). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोज्यो आपणी मन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ तक है.) ११११६८. (#) नेमिजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४४८.५, ९४२०). नेमिजिन विवाहलो, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से १५ अपूर्ण तक है.) ११११७०. योगशास्त्र व प्रास्ताविक श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ४, दे., (२१.५४१०, ३८-४१४२८-३५). १. पे. नाम. योगशास्त्र-प्रकाश १ चयनितगाथा, पृ. २आ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. यह कृति कॉलम-१ में लिखी है. योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्लोक-७ से १६ तक है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविक सुभाषित संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति कॉलम-२ में लिखी है. प्रास्ताविक श्लोकादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वसंते वासंती तरु कुसुम; अंति: तथापि विषया न परित्यजंति, श्लोक-१२, (वि. श्लोकांक क्रमशः ८ से १९.) ३. पे. नाम. चोरासी तकार काव्य, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति कॉलम-२ में लिखी है. ८४ तकार काव्य-गढार्थश्लोक, सं., पद्य, आदि: तातांतातीततेतांतततिततत; अंति: तुतितुत्तातितांतंततोताम्, श्लोक-१, (वि. श्लोकांक क्रमशः-२० वाँ.) ४. पे. नाम. १४ विद्यानाम श्लोक, प. ४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति कॉलम-२ में लिखी है. For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १४ विद्या नाम, मा.गु., प+ग, आदि: ब्रह्मज्ञान रसायनं सुरधरं; अंतिः कुर्वंतिनो मंगलम्, श्लोक-१. ११११९४ (+) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४. प्र. वि. संशोधित, दे. (२०x११, १६३०). १. पे. नाम. श्रेणिक दृष्टांत पद, पृ. १अ, संपूर्ण. "" मु. सूर्यमुनि, पु,ि पद्य, आदि पूछे श्रेणिक अति अति सूर्यमुनि० ज्ञान दिया, गाथा ७. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. साधुमनोरथ पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हजारीमल, पुहिं., पद्य, आदि: तीन मनोरथ धारो साधु; अंति: हजारीमल० मोक्ष पधारो रे, गाथा-४. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. हजारीमल, मा.गु., पद्य, आदि: भग जावो रे कर्म सब दूर; अंति: हजारीमल० सदा सुख पावा दो, गाथा-४. ४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक पद- नवकारवाली, मु. हजारीमल, पुहिं., पद्य, आदि: माला प्यारी रे माला; अंति: हजारीमल ० है हर वारी रे, गाथा- ४. " ११११९५ (+) सीमंधरजिन विनती पत्र, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे., (२२x१०.५, १२x२९). יי सीमंधरजिन विनती पत्र, क, नर, मा.गु, गद्य, आदि स्वस्तिश्री महाविदेह अति (-) (पू.वि. ते माटे स्वामी अवगुणीरा पाठांश तक है.) " ११११९६. औपदेशिक सज्झाय व २४ जिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२२x११, ११४३०). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विसनचंद, पुहि., पद्य, आदि समझ बूझ मन खोज पिया रे; अंति बिसनचंद० रोना वि क्या रे, गाथा-८. " २. पे नाम. २४ जिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. टोडर ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: श्री अरिहंत जिनेंद्र जगत, अतिः ऋष टोडर० भव पार करो. ११११९७. आदिजिन गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२ (२ से ३ ) = २, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी आ०स०, जैदे. (२०x१०.५, १०x२२). २२५ आदिजिन सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता द्यो मुज वाणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक व गाथा २४ से ३३ अपूर्ण तक हैं.) ११११९८. (#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३- १ (१) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., ( २१x११, १०x२५). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: ( ) ( पू. वि. गाथा १५ अपूर्ण से ५० तक है.) १११२०३ (+) सत्तीयारी सजाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैये., , For Private and Personal Use Only ( २०x१०.५, १८x२९). १. पे. नाम. सतीबारी सजाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी सतीयांरी. १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांनके औढणौ; अंति: प्रसन्न सदा पद्मावती, गाथा-१४. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. - " मु. रायचंद, पुहिं, पद्य, आदि इधर संसार मर जावैणो मानवी अति रायचंद० चेलो तो वलभ लागे, गाथा १०. १११२०४. (+) १४ राजलोक परिमाण विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९-८ (१ से ८) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११, १३x४३). " १४ राजलोक परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम नरक वर्णन अपूर्ण से तिरछालोक वर्णन अपूर्ण तक है.) १९१२०५ वृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १४-१३ (१ से १३) १ ले. स्थल ढाका- बंग्लादेश, प्रले. ग. कनकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५X११, १३x३२). Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयतु शासनम्, (पू.वि. "मानविवैरोट्याअच्छुत्तामानसी" पाठांश से है.) १११२०६ (#) ज्ञानभद्रगणि पत्र, संघयात्रा स्तव व व्यभिचारभावादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, प. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४११,११४१३). १.पे. नाम. ज्ञानभद्र गणि प्रति पत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्री मिश्रिभूत; अंति: श्रीमतामदं भवतां भवतां. २. पे. नाम. दृष्टांतकथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तटाक गुडवड डबाकभे इति; अंति: उपरि कथा साहुकार०कथा, (वि. विषय व कथा निर्देश मात्र.) ३. पे. नाम. गोडी स्तवः, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पारकरतीर्थमंडन गोडीजी, मु. हर्षनंदनजी, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: पारकर काने सुण्यउ नयणे; अंति: दिनइ हर्षनंदन जयकार रे. ४. पे. नाम. व्यभिचारिभाव विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.. ___ सं., पद्य, आदि: हासश्च शोकश्च क्रोध; अंति: संयुक्ता व्यभिचारिणः, श्लोक-६. १११२१७.(#) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन व ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०.५, १३४४२). १. पे. नाम, अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धरम; अंति: कांति र मे घणं, ढाल-२, गाथा-२४. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जनेशर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-४ तक है.) १११२१८. (#) साधारणजिन स्तवन, नेमराजिमती गीत व २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९x१०, १८x२६). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. नथमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज थे तो तीनलोक का; अंति: नथमल० गावो गणणणणण, गाथा-५. २. पे. नाम, नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. थूलचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: चालो जलदी वहिली गिरवर; अंति: थूलचंद्र०शिवपुर वासो कीनो. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: श्रीचौविसजिनंदजी को बनणा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) १११२१९ (4) ऋषभनाथ स्तवन व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १७५२४). १.पे. नाम. ऋषभनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७९९, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. महिमानंद, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज भलै दिन उगो हो; अंति: राम सफल अरदास, गाथा-५. २.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीनवै राजलबावा वीनतडी; अंति: मुगति महले पावडीए हो, गाथा-७. १११२२० (+#) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१०.५, १५४३०). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति मात; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २२७ १११२२१. (+) बोलसंग्रह, साधअतिचार व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:सासउसासरो., संशोधित., दे., (२०.५४११, १७४३१). १. पे. नाम. सासउसासरो थोकडो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९४२, वैशाख कृष्ण, ८, ले.स्थल. नीबाज ग्राम, पठ. सा. सीरकुंवरजी (गुरु सा. जैडावजी), प्र.ले.पु. सामान्य. श्वासोश्वास बोल संग्रह-प्रज्ञापनासूत्रगत, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: मध्ये मगधदेस राजग्री; अंति: मठेरा सुख भोगवे छै. २. पे. नाम, भगवतीसूत्र बोल संग्रह-शतक-१२ उदेश-५, पृ. २अ, संपूर्ण.. ___ भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधु अतिचार-१२१ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अठार पाप ८ कर्म मनरो जोग; अंति: ४ वीर्जपुसाकार ५ प्राकर्म. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. संग्रामदास, रा., पद्य, आदि: कहै दास संग्राम काम; अंति: काम मच्छरको करडो, गाथा-१. १११२२२. (#) जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १२४३०). जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूधीप एक लाख जोजननों; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठांश '१९० महावदै नीकलै' तक लिखा है.) १११२२३. चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२-८०(१ से ८०)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२२४१०.५, १०४३२). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-३ ढाल-८ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-९ गाथा-१० अपूर्ण तक है.) १११२२४. (+) महावीरसिद्धांतविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४६, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वीसनगर, अन्य. पं. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४१०.५, १९४४९-५३). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: गुरुआणा शिर बहेशेजी, ढाल-६, गाथा-१४८, ग्रं. २२८. १११२२५. साधारणजिन पद, औपदेशिक सवैया व आदिनाथजीरो स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९-७८(१ से ७८)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:आदनाथजीरो स्तोत्र., दे., (१४४१०.५, १०४२३). १. पे. नाम, साधारणजिन पद, पृ. ७९अ, संपूर्ण. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: भेदवग्यांन जग्यो जिन; अंति: रे करजोर बनारसी बंदन. २. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. ७९अ, संपूर्ण. ____ पुहिं., पद्य, आदि: स्वारथ कै साचै परमारथ कै; अंति: जीव ऐसें जीव समकीति है. ३. पे. नाम. आदिनाथजीरो स्तोत्र, पृ. ७९आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आदिजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: परमज्योति प्रकाश कारण; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) १११२२६. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२०.५४१०.५, ६४३९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८, (पू.वि. श्लोक-१७ अपूर्ण से १११२२७. बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हंडी:बडी शांति., जैदे., (१९.५४१०, ९४२०). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. २४ जिन नाम अपूर्ण तक है.) १११२२८. (#) अरिहाण स्तोत्र व शांतिक पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२१(१ से २१)=३, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४१०.५, १०४२२). १.पे. नाम. अरिहाण स्तोत्र, पृ. २२अ-२३अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रक्खसरणरायभयाइ भावेण, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, शांतिक पूजा, पृ. २३अ-२४आ, संपूर्ण.. शांतिपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गोपांगाः सभार्याः सुशीलाः; अंति: ऋद्धिवृद्धिसिद्धिर्भवतु. १११२२९. वैराग्य स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४११, १३४३३). ५महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो; अंति: श्रीविजयदेवसूर, गाथा-१६. १११२३० (+) तपपद सज्झाय, सोलसती स्तवन व जंबूस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११.५, १६x४३). १. पे. नाम. तपपद सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: हिरालाल० चडीयो वेराग, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सोलसती स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदनाथ आदेसर वंदू सकल; अंति: उदयरत्न० सुख संपदा ए, गाथा-१७. ३. पे. नाम, जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रीनरि भली इंद्रपुरि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) १११२३१. (#) श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४९.५, १२४४३). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: कहे जिनहर्ष०दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. १११२३२. (4) कल्याणमंदिर स्तोत्र व भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०.५, ११४३७). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-४२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१३ तक है.) १११२३३. सिखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. प्रीतसोमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०.५, ८x२३). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुंण सुंण कंता रे सीख सोह; अंति: कुमुदचंद सम ओजलो, गाथा-१०. १११२३४. गोडीजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०, ११४२७). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: गोडी पासजिको दरसण प्यारो; अंति: इम जंपइ जोतिनी पूरो आस रे, गाथा-५. १११२३५. पद्मप्रभजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०, १४४४३). १.पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८२२, ले.स्थल. बिनातटनगर, प्रले. मु. उत्तमचंद्र ऋषि; पठ. मु. चेलाराम, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, म. जिनेंद्रसागर, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीपद्मप्रभु जिनराय; अंति: जिनेंद्र० दीए एम आसीसए, गाथा-१५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर सुखकारी हो; अंति: प्रभु आवागमन निवार, गाथा-५. १११२३६. चोवीसजिन स्तवन व चोवीसजिन मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ., (२१४१०.५, ९४२८). १. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २२९ २४ जिन स्तुति, मु. दयाल, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल कर जिण रायमुणो चोवीस; अंति: थुणतां श्रीसंघ आणंद पूर ए, गाथा-६. २. पे. नाम. चोवीसजिन मंत्र, पृ.१आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह ", प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्री; अंति: सर्वसि सर्व सिधि भवति. १११२४३ (#) चंद्रप्रभस्वामी विद्या स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:ज्वालमाला पद्मावती कल्प., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१४१०, १२४३३). चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः प्रभा; अंति: दायिनी मे वरप्रदा, श्लोक-५, (वि. अंत मे मूलमंत्र दिया है.) १११२४५. १४ गुणस्थान स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२२.५४१०, १३४३२). समतिजिन स्तवन-१४ गणस्थानविचारगर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक है.) १११२४६. १४ राजलोक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२०x१०.५, १९४२५). १४ राजलोक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाथडावर्णन अपूर्ण से राजलोक प्रमाणवर्णन अपूर्ण तक है.) १११२४८. (+) पडिलेहण कुलक, पडिलेहण के ५० बोल व बासठ मारगणानाम, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रावण कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. विदासर, प्र.वि. हुंडी:पडिलेहण., संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, १३४३८). १.पे. नाम, पडिलेहण कुलक, पृ. १अ, संपूर्ण. पडिलेहण कलक-हिस्सा गाथा १-५, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदिः सत्तत्थदिट्ठी १; अंति: निजंतणत्थं मणिबिंति, गाथा-५. २. पे. नाम. पडिलेहण के ५० बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ____ मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्रार्थतत्वचिंतनं; अंति: ५० पचास पडिलेहण जाणवी. ३. पे. नाम, बासठ मारगणा नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ६२ मार्गणा सवैया, म. रुघपति, मा.गु., पद्य, आदि: च्यारिगतांगणि इंद्रीय पंच; अंति: बासठ भेद संभारो, सवैया-१. १११२४९ (#) उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:उप०मा०., मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ५४४०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १११२५०. नववाड, नंदिषेणमनि व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२३४१०.५, ९४३३). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय-ढाल २ से ३, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम, नंदिषेण सज्झाय, प. २अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो रहो रहो वालहा; अंति: रुपविजय जयकार लाल रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंडुर पांन थयो परिपाके; अंति: जपे पून्ये पोहसे जगीसरे, गाथा-७. १११२५१ (+) स्तोत्र, स्तवन व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ६, ले.स्थल. सनाम, प्रले. सा. नथो (गुरु सा. विनाजी); सा. विनाजी (गुरु सा. खेमाजी); गुपि. सा. खेमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११, १६x४५). १. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आपणो स्वामी भवनो गावो रे, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सीतल सीतलनाथ सेवो गर्भ; अंति: उदयरतन कहै. नित दिवाली रे, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: करमा हुंडी चाल जीवडा नहीं; अंति: सांभली रे राय लीनी जाना, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. डुंगरमल, पुहि., पद्य, आदि: सीस उपर मुगट सोहें गले; अंति: फरसत वहंगे सव नार, गाथा-६. ५.पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पहिं., पद्य, आदि: चिंतामण स्वामी साचा; अंति: बनारसी वंदा तेरा, गाथा-४. ६. पे. नाम, पंचषष्टियंत्र स्तोत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्ष लक्ष्मी विलासं, श्लोक-८. १११२५२. सगडायंगजीरो ११ मोक्षमार्ग, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१x१०.५, ११४४१). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा मोक्षमार्ग अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: कयरेमग्रे अक्खाते माहणेण; अंति: केवलिणोमयं त्ति बेमि, गाथा-३८. १११२७१ (+) हितविजय का मोहनविजय को वडीदीक्षा संबंधी पत्र, संपूर्ण, वि. १८१३, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. उपा. हितविजय (गुरु आ. विजयधर्मसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (१२४१०, ७४१३-१६). हितविजय का मोहनविजय को वडीदीक्षा संबंधी पत्र, उपा. हितविजय, पहि., गद्य, वि. १८१३, आदि: ॐ नत्वा भ० श्री श्री विजय; अंति: प्रसाद कीधी छई मिति. १११२७६. सीमंधरजिन विनती स्तवन व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:तवन., दे., (२०x१०,१७४३१). १. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: पुडरिकणी नगरी भलीजी; अंति: रतनचंद करे अरदास, गाथा-१३. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०८, आदि: अरिहंत देवन ओलख्खीस रे; अंति: रामचंद० रे रंगरु, गाथा-१०. १११२७७. शीयलव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४१०.५, ७४२७). शीयलव्रत सज्झाय, मु. करुणासागर, मा.गु., पद्य, आदि: सीयल मुंद्रडी खरी पेआरी; अंति: पालांसी अल तणे परभावजी, गाथा-९. १११२७८. (#) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-नमोस्तुवर्धमानाय सूत्र से अंतिम काउसग्ग तक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४१०, ११४२४). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १११२७९, औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रावण शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. कस्तूर मोतीचंद, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०, ९४२०-२३). औपदेशिक सज्झाय, श्राव. जिनबगस, पुहिं., पद्य, आदि: तुक दिल की चसम खोल जनागम; अंति: जनबक्षो० पालो सिधवो थगा, गाथा-४. १११२८०. लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. अन्नविजय; पठ. मु. शिवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१०, ११४२९). लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: श्रीमानदेव० शासनम्, श्लोक-१९. For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्र संग्रह-तपागच्छादारयावहिसूत्र अपूर्ण तक है.. दे., (१८x१ महि हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २३१ १११२८१. प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:पडक०., जैदे., (२१४१०, ८x२६). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक सामायिक विधि इरियावहिसूत्र अपूर्ण तक है.) १११२८३. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (१८x१०.५, ७७१९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसरि, सं., पद्य, आदि: भगतामर प्रणति मोलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक है.) १११२८४. वासुपूज्यजिन स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, जैदे., (१६४१०, ९x१७). १. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन-चंपापुरी, मु. अबीरचंद, रा., पद्य, वि. १९२५, आदि: सोभागी साहिबा म्हांने दर; अंति: बीरचंद० महिर करीने नीहाल, गाथा-७. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मु. भाण, रा., पद्य, आदि: वासुपूज्य नृपकुलमंडणो; अंति: भाण० लहूं माहरे एह ज कांम, गाथा-७. १११२८५ (#) ऋषभजिन स्तवन व १२ गुण अरिहंत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०, १०४२६). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभनो वंश रयणायरू तशशिर; अंति: सुर लता सेवित तस फल सीखरे, गाथा-६. २. पे. नाम. १२ गुण अरिहंत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वर्ण सिंहासन स्थिताय; अंति: अपाया पगमायतिशय, अंक-१२. १११२८६. सप्तविसन सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४१०.५, १३४३४). १.पे. नाम. सप्तविसन सज्झाय, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु ईम; अंति: गुरु सीस जयरंग कहे, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुमति, मा.गु., पद्य, आदि: दुविधा करम भरम की दासी; अंति: सुमति० खिण नइ होइ षलासी, गाथा-४. १११२८७. (+) शिवजी गुरुगुण भाष, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४१०.५, १५४३२). शिवजी गुरुगुण भाष, मु. खंगार, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: वीर जिणेसर वंदिनइ माउगुण; अंति: खंगारो० जय जयकारो रे, गाथा-११. १११२८८. व्याख्यान पीठिका व इग्यारश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४१०.५, १४४३६). १. पे. नाम. व्याख्यान पीठिका, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अर्हत भगवंत असरण सरण; अंति: श्री मंगलीकमाला संपजै, (वि. प्रारंभ में २ गाथाएँ दी है.) २. पे. नाम. इग्यारश स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: (१)सुदी अगियारस वडी, (२)समयसुंदर० कहो दाहडी, गाथा-१३. १११२८९. औपदेशिक सज्झाय-संयम व्रत पालन व मेघरथराजा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. २, दे., (२०४११, १९४४८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-संयम व्रतपालन, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-संयमव्रतपालन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लेह अक्षय सुखराश, गाथा-५७, (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, मेघरथ राजा स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मेघरथ राजा. मेघरथराजा सज्झाय, म. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९२९, आदि: धन मेगरथराजा राख्यो; अंति: तिलोक० उपज्यो दया रस सोम, गाथा-२३. For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १११२९०. साधारणजिन स्तवन, गौतमस्वामी सज्झाय व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२२, पौष कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य. मु. मनोहरलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९४११, १५४३८). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. धनदास, पुहिं., पद्य, आदि: कौण वखत सोवन की बरीया भज; अंति: धनदास० लग्या अब तेरा रे, गाथा-७. २.पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. धनदास, पुहिं., पद्य, वि. १९१९, आदि: प्रात उठकर सुमरण किज्यौ; अंति: कहे धनदास० गुरचरणाचित आणी, गाथा-८. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋषभ ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९२१, आदि: अनंत ग्यान अरिहंत प्रथम; अंति: अमावस्या रिषभरीषी गुण गाय, गाथा-४. १११२९१ (+) औपदेशिक पद व पूर्व १ संख्यामान गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.१, कल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१७.५४११, १८x२५). १.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-आत्म प्रमोद, रा., पद्य, आदि: ओ जग चलीयो जासी रे; अंति: सही रे नित कीजीये, गाथा-१०. २.पे. नाम. पूर्व१संख्यामान गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा पेन्सिल से लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि: सीतरलाख करोड वरस छपन; अंति: कोडी० वेजदे एक सागर कहीजे. १११२९३. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०४११, १३४१८). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: भावे वंदो रे गोडीपास; अंति: पद्म कहें लहे पार, गाथा-९, (वि. प्रारंभ में सामायिक फल सज्झाय का प्रारंभिक पाठ लिखकर छोड़ दिया है.) १११२९४ (+) आदिजिन पद व औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:तवन., संशोधित., दे., (२१x११.५, १३४२९). १. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. संतोक, पुहिं., पद्य, वि. १९३१, आदि: पहेला ऋषभ जीनराज वंदीये; अंति: संतोष० राजवारहा जारीजी, पद-४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: चेतन ध्यान घरोनी; अंति: धारोनी उपदेश उपगारी को, गाथा-६. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. जगराम, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी मेरी करतां जनम गयो; अंति: जगराम० लियो न लीयो री, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-यौवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जुहार, पुहिं., पद्य, आदि: जोवन जातां वारडी नही लागे; अंति: जोवन मे धरम छे सार, गाथा-७. ५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. पुहिं., पद्य, आदि: कहा भयो ग्घर छाडरे तज्यो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) १११२९५. ११ गणधर स्तवन व औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:तावन., जैदे., (१८x११, १७४२६-३४). १. पे. नाम. ११ गणधर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, आदि: इग्यारे गुणधर दीपता; अंति: सबलदास० भवनो पार लाल रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समज मन उंबर जावे रे लजु; अंति: चोरासी मे गोता खाय रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. श्रावक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३३ औपदेशिक पद-संयमित वाणी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक थोडा बोली जो तो; अंति: श्रावकजी चेतो चतुर जाणेजी, गाथा - ५. १११२९६. वीस विहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३१, आश्विन शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. पीपड, प्र. वि. हुंडी तनली. दे. (२१.५४११, १७४३०). " २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: श्रीमंदरस्वामी वेदेह; अंति: लालचद० सीस वदो वारुवारो, गाथा - २५. १११२९७. इलाचीपुत्रनी सिझाय, कायारी सिझाय व आदिजिन पद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ३, जैदे. (२२x११, १३४२४-३५). १. पे नाम. इलाचीपुत्रनी सीझाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नाम एलासीपुत्र जाणीये; अंति: लबधविजे गुण गाय, गाथा - ९. २. पे. नाम. कायारी सीझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. कायावाडी सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी सींचतो; अंति: पद्मतिलकसूरि ० जो संभार, गाथा ६. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. आदिजिन स्तवन, मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि आय रहो रे दिल बागमे सुण; अंति (-) (पू.बि. गाथा- ३ तक है.) १११२९८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम पू. १, प्र. वि. पत्र १x२=१. वे. (२७.५x११, २१४३२). " 1 " " पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. फतेचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: मरुधर देस देसांसि रे जोधा; अंति: चंद्रफते गुण गाय रे लाल, गाथा - १२. १११२९९. श्रावककरणी सज्झाय, वीतराग स्तोत्र व आत्माप्रमोद स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३ (१ से २,४) =२, कुल पे. ३. दे. (२०x१०, ६- २०x११) १. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. . जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुसनेह करणी दुखहरणी छै एह, गाथा- २३, (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. वीतराग स्तोत्र, पू. ३अ ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. गुणचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भज सर्वज्ञं भज सर्वज्ञं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. आत्माप्रमोद स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है.. आध्यात्मिक पद, मु. श्रीसार, पुहिं., पद्य, आदि (-); अति अव श्रीसार पीछांनी हो, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से " है.) १११३००. (#) जिनदरसण स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २१.५X११.५, ९३५). पंचजिन स्तवन, क. बनारसीदास, पुहिं, पद्य, आदि: तुम तरणतारण भवनिवारण; अति: बीनती सुन लीज्यो भग०, गाथा-९, संपूर्ण. १११३०६. धनदत्त चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है, कृति के आधार पर पत्रांक दिया गया है. दे. (२०x११, १३४२९). धनदत्त चौपाई, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल - २ गाथा- ७ अपूर्ण से ढाल -५ गाथा - ७ तक है.) १११३४९. (+) पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रपुर, पार्श्वजिन स्तवन व गजसुकुमालमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२२x११.५, १५X४८). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रपुरमंडन, आ. जिनकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्म, वि. १८०९, आदि (-); अति दिन कृत जिन गुण सुखकार, ढाल-४, (पू.वि. ढाल - २ गाथा- २ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ____ आ. जिनकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८११, आदि: प्रभु पास जिनेसर स्वामी; अंति: निज निज दरसण पावै हो, गाथा-१८. ३. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. २आ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: द्वारिकानगरी ऋद्धि; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) १११३७२ (+) जीवदया सवैया, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११, १३४३१). जीवदया सवैया, मु. कृपाराम, पुहिं., पद्य, वि. १९३२, आदि: चोथे आरे केरा वृसतीन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ __ अपूर्ण तक है.) १११३७३. (#) श्रावक आचारविचार गाथासंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११, ५४२६). श्रावक आचारविचार गाथासंग्रह-आगमगत, प्रा., प+ग., आदि: अनियाणोदारमणो हरिसवसवि; अंति: (-), (प.वि. "करेमाणे२ जाव आलोए" पाठांश तक है.) श्रावक आचारविचार गाथासंग्रह-आगमगत-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नीयाणु न करइ परनी रिद्धि; अंति: (-). १११३७४. (#) सम्यक्त्व कौमुदी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१.५४१०.५, १२४२७). सम्यक्त्व कौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., प+ग., वि. १४५७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक पाठ वनपालकदृष्ट दृश्य- विरुद्धजातिस्वभाव प्राणीयों की मैत्री प्रसंग अपूर्ण से नगरश्रेष्ठी जिनदत्तपरिवार वर्णन अपूर्ण तक . १११३७५. (+) रत्नाकरपच्चीसी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२१४११, ५४३१). रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२३ तक रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: हे श्रेयः कहीइं कल्याण; अंति: (-). १११३७६. कक्कसूरि गुणाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१७४११, १२४२८). कक्कसूरि गुणाष्टक, मा.गु., पद्य, आदि: जे हे आराध्या तुम्हे; अंति: जिम जाउ आउ गाउ हजूरे सुणि, गाथा-८. १११३७७. (+) तमाकुपरिहार सज्झाय व सुगुरूलक्षण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१७४११, १३४२३). १. पे. नाम. तमाकुपरिहार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आणंद० जु कोडि कल्याण, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सगुरू लक्षण सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, जै.क. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: ते गुरु मेरे मन वसे जे भव; अंति: मम माथे लगै भूधर मांगे एह, गाथा-१४. १११३७८. सप्तस्मरण स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (१७.५४१०.५, ९४२३). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अजितशांति स्तव गाथा-११ अपूर्ण तक लिखा है.) १११३८५ (+-) सती सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२०.५४११, १५४२५-३१). १. पे. नाम. महासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २३५ रा., पद्य, आदि: दया ज माता वीनउ गुणधर; अंति: वरत लीया सुधरे गरजी, गाथा-१३. २. पे. नाम, सती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सतीकु सीवरो सुखकारी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा १११३८६. (+-) दया थोकडो व दान थोकडो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१४११, २०४३२). १.पे. नाम. दयारो थोकडो, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १९०६, माघ शुक्ल, १, सोमवार, ले.स्थल. फलोदी नगर, प्रले. मु. लाभचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. दया थोकडो, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सेवं भंते२ तथा भगवांन२, (पू.वि. श्रावक सवाविस्वा दया वर्णन अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. दानरो थोकडो, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. दान थोकडो, रा., गद्य, आदि: च्यार मद् फल भेला कीया; अंति: बारे बरसताइ खुटे नही. १११३८७. आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. तेजसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४१०.५, १७४३३). आध्यात्मिक पद, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलख अगोचर अकलरूप; अंति: मानविजय० नासे सघला दुख, गाथा-५. १११३८८ (+) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:रात्रभोज., संशोधित., जैदे., (१९.५४१०.५, १७४३३). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, म. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: रात्री भोज मे दोष घणा; अंति: जैमलजी इम० धर्म अराधीयो ए, गाथा-२०. १११३८९ (+) आलोयणाविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-२०(१ से २०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९.५४१०.५, ११४२८). आलोयणा विधि संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिक्रमण आलोयणा अपूर्ण से लोच आलोयणा तक है.) १११३९० (+) सीमंधरजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (१७.५४११, १३-१९४२४-३२). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. हमीरपुर. मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारी वीनतडी अवधारो; अंति: अगरचंद कहे० पद वंदन भास, गाथा-२१. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंधर सामीजी मावडा; अंति: हीरालालजी जोड वीणा इहो, गाथा-१५. १११३९१ (#) संथारापोरसीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४१०.५, १५४३३). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ तक है.) १११३९२. उत्तराध्ययनसूत्र-नमिपवज्जा अज्झयण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, जैदे., (१५.५४११, १३४२३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-५५ अपूर्ण से है.) १११३९३. लघुपट्टावली व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१५.५४११, १४४२०). १. पे. नाम. लघुपट्टावली, पृ. १अ, संपूर्ण. लघपट्टावली-पार्श्वचंद्रसरिगच्छीय, आ. हेमचंदसूरि, सं., पद्य, आदि: विदित सकलशास्त्रान्; अंति: तस्मै श्रीगुरवे नमः, श्लोक-४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जिणेसर वंदे; अंतिः जिनराज० थकी फल लहे से हो, गाथा-७. १११३९४. मेघकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १६२५, चैत्र शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. जयसुंदर (गुरु मु. रत्नचंद्रसूरि); गुपि.मु. रत्नचंद्रसूरि; पठ. सा. माईआ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८x१०.५, १२४२२). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भणिजी ते पामि भवपार रे, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) १११३९५ (-) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, अपर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०.५४१०.५, १५४३१). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, म. रामचंद, पुहिं., पद्य, वि. १९१०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-११ अपूर्ण से है व ढाल-४ गाथा-१० अपूर्ण तक लिखा है.) १११३९६. सीमंधरस्वामी स्तवन व औपदेशिक हरियाली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १७X४०). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १७८२, चैत्र कृष्ण, ६, प्रले. मु. दीपा ऋषि (गुरु मु. विरधा ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: श्रीभगतिलाभ० आस्या मन तणी, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. २आ, संपूर्ण, ले.स्थल. जाजावर. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक पुरुष अति दीपतो रे; अंति: गुणविजय वाचक इणि परि बोलइ, गाथा-८. १११३९७. माजीरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जपुर, जैदे., (२०.५४११, १५४३०). औपदेशिक सज्झाय-वृद्धा, मु. विनयचंद्र ऋषि, रा., पद्य, आदि: यातो नाम धराव माजी रे; अंति: विनयचंद० भवसागर में तीरसी, गाथा-१७. १११३९८. चेलणासती चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. कंवरीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चेलणा., दे., (२१.५४११, १८४३२). चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: ओसर जे नर अटकलै ते; अंति: रायचंद० वचन कीजो प्रमान, ढाल-४. १११३९९. नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०x१०.५, १२४३३). नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउजी रे पीउजी नाम; अंति: पाय भेटे आस्या फली, गाथा-७. १११४०० (+) स्थलिभद्र सज्झाय व वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४१०.५, ७X२७). १. पे. नाम. स्थुलिभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रमणीस्युं रंग रसें रमतां; अंति: शुभवीर० कहे ताम, गाथा-६. २. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. मोतिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध स्वरूपी आतमा रे; अंति: कहे मोतीचंद निरधारी रे, गाथा-७. १११४०१. रविफल श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४१०.५, १४४३६). ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: रविदिन नख संख्या चंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-८ अपूर्ण तक लिखा है.) १११४०२ (-) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२५, कार्तिक शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. कवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०x१०.५, १८४३१). For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २३७ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: चक्री चोथो नरेश जाणए; अंति: सतकवारइ पुता मुकत मजारइ, गाथा-२०. १११४०३. (+) राजलोक विचार, सम्यक्त्वचारित्री लोक स्पर्शना व दस निकायावासादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२२४११,१७४४३-५७). १.पे. नाम. त्रिलोकमध्ये एकेंद्रियादिजीव निवासस्थान गाथा, पृ. ७अ, संपूर्ण. एकेंद्रियादिजीव निवासस्थान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: एगिदिअ पंचिंदिअ उड्ढे अ; अंति: सुरसिद्धा उड्ढलोगंमि, गाथा-४. २. पे. नाम. १४ राजलोक प्रमाण गाथा, पृ. ७अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: मिल्हइ सोहम्माओ कोवि सुरो; अंति: पमाणा एगा रज्जू हवइ लोए, गाथा-३. ३. पे. नाम. १४ राजलोक पृथक्करण विचार, पृ. ७अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सोहम्मंमि दिवड्ढा; अंति: तमतमप्रभा विस्तारि राज७, गाथा-१. ४. पे. नाम. स्वयंभूरमण समुद्र विस्तार गाथा, पृ. ७अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सव्वे वि दीवसमुद्दा; अंति: तत्तो अहिअंसयंबदही, गाथा-१. ५. पे. नाम. सम्यक्त्वचारित्री जीव लोकस्पर्शना गाथा सह व्याख्या, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वचारित्री जीव लोकस्पर्शना गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सम्मत्तचरणसहिआ सव्वं लोग; अंति: भाए पंच य सु अ देसविरईए, गाथा-१. सम्यक्त्वचारित्री जीव लोकस्पर्शना गाथा-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: क्षायिकसम्यक्त्वचरणसहिता; अंति: चतुर्दशरज्जु प्रमाणो भवति. ६. पे. नाम. अरिहंतकाल भरतैरावतक्षेत्र विद्यमानभाव गाथा सह व्याख्या, पृ. ७आ, संपूर्ण. अरिहंतकाल भरतैरावतक्षेत्र विद्यमानभाव गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत१ समय२ बायरविज्ज३; अंति: निग्गमे११ वुड्ढि१२ वयणं च, गाथा-१. अरिहंतकाल भरतैरावतक्षेत्र विद्यमानभाव गाथा-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: अर्हत उपलक्षणं चक्र०; अंति: प्रज्ञापन मनुष्यलोके. ७. पे. नाम. १० निकायावास स्थान गाथा, पृ. ७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: इह मंदरस्स हिट्ठा पुढवी; अंति: विज्जुप्पह मालवंतेसु, गाथा-६. १११४०४. (+) युगबाहुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (१५.५४१०.५, १८x२९). युगबाहुजिन स्तवन, मु. जिनदेव, मा.गु., पद्य, आदि: इण जंबुदीवइ जाणीयै; अंति: जाणू रे जिनवर वांदिसू, गाथा-१५. १११४०५. चक्रेश्वरीदेवी गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४१०.५, १०४२७). चक्रेश्वरीदेवी छंद, शंकर, मा.ग., पद्य, आदि: हां रे मा चक्केसरी; अंति: मा सेवा करे तेहने फल देजो, गाथा-९. १११४०६. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दत्त. श्राव. गुलाबचंद (पिता श्राव. चतुर्भुजजी); गुपि. श्राव. ऋषभदास; गृही. श्राव. केशरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भगतम्र., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२०.५४११, १७४३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. १११४०७. नवपदजी स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०.५४११,११४२६). १. पे. नाम. नवपदजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, पंन्या. आणंदविनय, पुहिं., पद्य, आदि: चेतो चतुर सुजाण नवपद; अंति: आणंदविनय०देजो सुख अपार रे, गाथा-९. २. पे. नाम. नवपदजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनायक जिनवरू रे; अंति: (-), गाथा-५, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १११४०८. तिलोकसुंदरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. नरोली, पठ. मु. रंगसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१६४१०.५, १०४२२). तिलोकसुंदरी सज्झाय, मु. लक्ष्मीहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: तिलोक सुंदरी बेठी एकली; अंति: लक्ष्मीहरख० विचारी काम, गाथा-१७. १११४१५ (#) घंटाकर्ण कल्प, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१x१२, ९४२३). घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य गिरिजाकांतं; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"पग में हां ही हुं न ए अक्षर लिखिजे" तक व "अथ लक्ष्मी ह्रीं ॐ घंटाकर्णे" से "धूप दीप नैवेद करजे" तक है.) १११४३०. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो व सरस्वती छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, दे., (२०४११, १४४२७). १.पे. नाम. जिनपालजिनरक्षित चोढालियो, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पार ज थावै, ढाल-४, गाथा-६८, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-३ से है.) २. पे. नाम, सरस्वती छंद, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमल करणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक है.) १११४३१. मांगलिक सरणा, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २, दे., (२१.५४११.५, ७४२०). ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: प्रह उठीने समरीजे हो; अंति: हो सुणजौ बालगोपाल, गाथा-११. १११४३५. ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, दे., (१८x११.५, १२x२४). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: परमानंदसंपदं, श्लोक-८२, ग्रं. १५०, ___ (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-५० अपूर्ण से है.) १११४३६. (+) कथासंग्रह-वसतिदानादि विषयक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४११.५, १८४४४). कथासंग्रह-वसतिदानादि विषयक, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वस्त्रदाने ध्वजभुजंग कथान्तर्गत ___ गोणीपतन प्रसंग अपूर्ण से मलीन स्त्री द्वारा भोजन प्रसंग अपूर्ण तक है.) १११४३८. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४७, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. धरमचंद (गुरु मु. कानजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भवजिवा., जैदे., (२१४११, १८४३६). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भव जीवो आदिजणेसर; अंति: उपजे क्रोध नर्क ले जाय, गाथा-३१. १११४५६. सरस्वती छंद व शांतिनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, ., (२०४११, १४४३९). १. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सहज० सोय पूजो सरसती, ढाल-३, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, शांतिनाथ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर प्रणमु; अंति: गावे श्रीदयासागरसूर, गाथा-१८. १११४५७. सम्यक्त्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३.५४११.५, १८x१९). सम्यक्त्व सज्झाय, मु. नथमल, पुहि., पद्य, आदि: सुदसमगतरी सद्दहणा सुणो; अंति: कीधा आपरेइज आडा आवसी, गाथा-१७. १११४५८. औपदेशिक सज्झायद्वय व शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२२४११.५, १९४५६). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बावा सुक्रसोणितनी देही आ; अंति: जन्मनाबंधथी जिन छोडावइ, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. मु. जिणदास, मा.गु., पद्य, आदि इसो रे सुभटनर नीकसि अरि अति धर्म के भीर जिणदास गाए. गाथा ९. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सारद माय नमुं सिरनाम अंति 'गुणसागर० निश्चे पावे, गाथा - २१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९१४८४. गच्छभेद विचार, अपूर्ण, वि. १९३२, चैत्र शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, प्रलेय. नेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में "अथ ताभिः वरसप्तकं दत्तं तत् यथा प्रतियामं खरतर श्राद्धो दिप्तिमान भविष्यति लिखा है. दे. (२१४११, १२४३१). गच्छभेद विचार, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: खेमघाटी गच्छोजातः, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पाठ-"प्रायेण खरतर श्रावको निर्धनो न भावी" से है। १११५०५. (#) गौतमस्वामी छंद व धर्मजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की फैल गयी है, दे., ( १७११, ९x१७) - १. पे नाम गौतमस्वामी छंद, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: (-); अंति: करजोड गोतम नामे समे करजोड, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५, आदि हां रे मारे धरमजणदसू लागी अंति (-), (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण तक है.) ११९५०६. नेमिजिन स्तवन व औपदेशिक लावणी, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२१.५x११, १८४३८-४२). १. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. 7 १११५०९. लघुसंग्रहणी सूची, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., ( २२x११, १४x२६). २३९ मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: मत जावो नेम आया राणी; अंति: प्रभुजी का गुण गाया हो, गाथा-२१. २. पे. नाम. उपदेश लावणी, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : उपदेसी. औपदेशिक लावणी, मु. ऋषभ, पुहिं. पद्य वि. १९१७, आदि: सुकरत करले भाइ तोने कहे, अंति: चेतन समजावा उपदेस सुणाइ, गाथा ११. " लघुसंग्रहणी यंत्र, मा.गु, गद्य, आदि: खंडद्वार जंबूद्वीपरा अति: १ हजार योजन पृथवि मे छे. " १९१५१०. शालिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२२.५X१०.५, १५X३९). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि राजगरी बले नगरी जीयो; अंति कर्म खपाय मुकत्या गयाजी, गाथा-२७. १११५११. औपदेशिक छंद व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६९२-६९१(१ से ६९९)-१, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५X११, ३२X७१). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. ६९२अ ६९२आ, अपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक छंद-जीवदया, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुरु विण भुला काई भमो, (पू.वि. "प्राणीय जीव हुइ हाणी" पाठ से है., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे नाम. आलोयणा सज्झाव, पृ. ६९२आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर नाम हीये धरीजी; अंति: तरियानइ आप निद्या थकी ए, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. शीयलव्रत सज्झाय, पृ. ६९२आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: समझ प्रिय चतुर परनारि रस; अंति: गुण वखाण इहहि सुरगदेवा, गाथा- १२. १११५१२. (०) सरस्वतीदेवी छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५X१०.५, ८x२६). For Private and Personal Use Only सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी अंति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १११५१३. (+) जिनप्रतिमासाक्ष स्तवन, मेघमुनि सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२२४१०.५, १४४२८). १.पे. नाम, जिनप्रतिमासाक्ष स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कुमतिसंगनिवारण जिनबिंबस्थापना स्तवन, श्राव. लधो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनपंकज प्रणमीने; अंति: जिम चिरकाले नंदो, गाथा-२५. २. पे. नाम. मेघमुनि सज्झाय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: पुनिम भणैजी तो पामै भवपार, गाथा-२२. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुधा साध निग्रंथ साध; अंति: अने कहै ए जयतसी इम भणै ए, गाथा-१४. १११५२० (+#) नमस्कार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १६४३४). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछतपूरण विध परे; अंति: ऋद्धि वंछीत लहै, गाथा-१३. १११५२२. पार्श्व विधानं, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पार्श्वविधानं., दे., (२१४११, १६४३७). पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित-मंत्रसाधन विधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: एषो अ मट्टे यंत्र; अंति: (-), (पू.वि. अंगलूछना विधि अपूर्ण तक है.) । १११५३०. स्थूलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१४११, १२४३५). स्थूलिभद्रमनि सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कोश्या वेश्या कहे रागीजी; अंति: शुभवीर वचन छै साच जी, गाथा-८. १११५४१. जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२३४१०.५, ११४३७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५९, (पू.वि. गाथा-३९ अपूर्ण से है.) १११५४२ (+#) वृद्धि शांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. मु. कीर्तिविजय; पठ. मु. जीवराज (गुजरातीलुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१x१०.५, १२४१८-२४). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, (पू.वि. "सकलसुरासुरेंद्रे सह समागत्य" पाठ से है.) १११५४३. आध्यात्मिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२२४१०.५, ११४३५). १. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, रा., पद्य, आदि: नीस दीन जोउं वाटडी घर आवि: अंति: आवस्यै सेजडि रंग रोला. गाथा-५. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: क्या सोवै उठि जाग; अंति: शुद्ध निरंजन देव गाउ रे, गाथा-३. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घरि आरे बाउरे मत; अंति: आनंदघन० विरला पावे, पद-३. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: मिल जाज्यो रे साहिब; अंति: ज्ञानविमल० अखय सुखचैन में, गाथा-६. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि अइसी कैसी घरवसी जिन सअने, अति: सुनो सीबंदी अरज कहे सीरी, गाथा - ३. १११५५८. (१) आदिजिन स्तवन, साधारणजिन आरती व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२२x११, १०x३५-४६). " १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. , गिरधर शिष्य, पुहि., पद्य, आदि रेसम रो रेजो कसवी फेटो; अंति: गावो मुगति विहारी जिमो मन, गाथा- १५. २. पे. नाम. साधारणजिन आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जै.. धानतराय, पुहिं., पद्य, आदि आरती श्री जिनराज तुम्हारी अंति द्यानत सेवक को सुख दीजे, गाथा-७. ३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि : करम भरम जग तिमर हरन; अंति: कमठ दलन जिन नमत बनारसी, सवैया- ३. १११५६१. १४ राजलोक विचार व जंबूद्वीप जिनसंख्या परिमाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २०x१०.५, १८x२० ). १. पे नाम. १४ राजलोक विचार, पू. १अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहिला देव लोक चोडा ५ राजु; अंति: लाख ऊपर छोडीय एक हजार. २. पे. नाम. जंबूद्वीप जिनसंख्या परिमाण स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. ज्ञानप्रमोद, मा.गु, पद्य, वि. १८४९, आदि: चुरासीलाखने चुरासीलाख; अति केरा किया ज्ञानप्रकासजी, गाथा- ६. १११५६४. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२२.५x१०.५, ११x२७). १११५९२. मुनिचंद्रसूरि प्रशस्ति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२०x१०, ११४३०). " कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) मुनिचंद्रसूरि प्रशस्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीयशोभद्रसूरि श्रीनेमी; अति ददातु भद्राणि संघाय .. २४१ १११५९४. शांतिजिन स्तवन व सुमतिकुमति लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१५.५X१०, १९X२३). १. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. बीलाडा, प्रले. श्रावि लक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी: संतनाथजीरो तवन. मु. मनरूप स्वामी, पुहिं., पद्य, वि. १८७६, आदि: जाघ झाग जीव सिवण कीजै; अंति: सामी मनरूपजी गुण गाया, गाथा - ११. २. पे. नाम. सुमतिकुमति लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ,जिनदास, रा. पच, वि. १७वी आदि सुण कुमत कलेसण नार लगि कु. अंतिः कुमत की वातखी मत मन खेड गाथा-४. १११५९५. वासुपूज्यजिन स्तवन व युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैदे. (१२.५X१०, १४x२६). १. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि वासुपूज्य जिणंद जयकारी; अंति उत्तमविजय० में वारे, गाधा- ६. २. पे नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. . नवविजयजी - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीयुगमंधर माहरई रे; अंति: रे जयो जयो तु जिनराज, गाथा- ६. १९१५९८. () स॒प्ततिशतमंत्र स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७-१६ (१ से १६) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५X१०.५, १५X३३). For Private and Personal Use Only तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा. पद्य, आदि तिजयपहुत्तपयासय अड अंतिः निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४, " संपूर्ण Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १११६००. महावीरजिन स्तुति व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९x१०,१४४२३). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. चौथमल, रा., पद्य, आदि: चवदे तो सुपना माता थे भेल; अंति: हर वार वो तीर्थंकर पहले, गाथा-१०. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मु. चौथमल, रा., पद्य, आदि: मारे मंदिर ये वेरणा नेहा; अंति: मनोकामना पूरो वीरजिनंद, गाथा-४. १११६०४. (#) अभिनंदनजिन स्तवन व आयुष्य विचार दुहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. चंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०, १३४२८). १.पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि *, मा.गु., पद्य, आदि: दीठो हो प्रभु दीठो जगगुरू; अंति: देजो सुख दरिसण तणो जी, गाथा-६. २. पे. नाम. आयु विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. आयुष्य विचार दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: आठ पहर दहनो चले बदले नहीं; अंति: चालै स्वास भानकी और आवजान, दोहा-४. १११६०५ (+) प्रतापरत्न मुनि लिखित पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (१९x१०, ११४३०). प्रतापरत्न मुनि लिखित पत्र, पुहि., गद्य, आदि: (१)किं कर्पूरमयं सुधारसमयं, (२)स्वस्ति श्री पार्श्वजिनं; अंति: प्रतापरत्नजी माहाराज, (वि. पार्श्वजिन प्रतिमा प्रतिष्ठा मुहूर्त ज्ञात करने के संबंध में पत्र लिखा है.) १११६०७. (+) १० बोल सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४९.५, १३४४५). १. पे. नाम. १० बोल सज्झाय-मनुष्यभव, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरो, पुहिं., पद्य, वि. १९३१, आदि: दोहलो इण संसार मे रे; अंति: गाइयो रे कहे हीरो सुणो एम, गाथा-१२. २. पे. नाम. तेरेपंथीया को तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-तेरापंथी, श्राव. हीरालाल डारचंद, पहिं., पद्य, आदि: सासणनायक वीरजणंदजी जाने; अंति: हीरा०मुरखपड्या रे फंदो रे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. तेरापंथमत निरसन सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. तेरापंथमत निरसन सज्झाय-भीखणजी, पुहिं., पद्य, आदि: संवत अठारे साल पनरा के; अंति: कब होवी तवन करी वसेषी, गाथा-८. १११६०८. स्त्रीऋतबंती असज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. श्रीनवलखाजी., जैदे., (२२४९.५, ९४२५). असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी समरी मात कहस्यू; अंति: न्याये शिवलच्छी ते वरे, गाथा-१६. १११६०९ (+) १४ गुणस्थानक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२४१०, १०४३२). १४ गुणस्थानक विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मिथ्यात्व गुणठाणु१; अंति: (-), (पू.वि. "सम्यक्तमंतरान गणनायां गण्यते" पाठ तक है.) १११६१३. (+#) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ११४३२). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-१ श्लोक-२२ अपूर्ण से ४१ अपूर्ण तक है.) १११६१४. ८ बोल धर्म व पाप परिवार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१७४१०, ८x२१). १. पे. नाम. ८ बोल-धर्मपरिवार, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: धरम को पिता श्रीवितराग; अंति: धरम को मूल बाप खिमा छे. २. पे. नाम. ८ बोल-पापपरिवार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८ बोल-पापपरिवार विषयक, पुहि.,रा., गद्य, आदि: पाप को मूल बाप लोभ छे; अंति: पाप को मूल क्रोध छै. For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४३ C हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १११६१६ (+) प्रदेशीराजा सज्झाय, जिनप्रतिमा स्तवन व आदिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४८, कार्तिक शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ३, कुल पे.६, ले.स्थल. राणकपुर, प्र.वि. प्रत के अंत में १ औपदेशिक दोहा लिखा है., संशोधित., जैदे., (२२४१०, १३४३८). १.पे. नाम, प्रदेशीराजा सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुतं बीकानगरी सोहामणी; अंति: कवियण० सुभ उपगार रे, गाथा-१९. २. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. आगम, मा.गु., पद्य, आदि: क्यूं न करे रे सेवा न करे; अंति: आगम अविचल सुख वरे, गाथा-८. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी ओलंभडे मत; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-७. ४. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभू तुम सेवनां; अंति: रुपनो निरवहयो साचो नेह हो, गाथा-५. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आस्या औरन की क्या कीजे; अंति: जगमां खेलत देखे लोक तमासा, गाथा-४. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नाम हमारा राखे; अंति: मूरति सेवक जिन बलि आहे, गाथा-४. १११६२४. (+#) अक्षरबाबनी व जिनवाणी सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११, २०४३५). १.पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. वा. किसनदास, पुहि., पद्य, वि. १७६७, आदिः (-); अंति: किसन कीनी उपदेशबावनी, गाथा-६२, (पू.वि. गाथा-५५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. जिनवाणी सवैया, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: वीर हेमाचल से नीकसी; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सवैया-२ तक लिखा है.) १११६३५ (#) तेरकाठिया सज्झाय, नेमराजिमती पद व साधारणजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. द्विपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०.५४११, १३४३५). १.पे. नाम. तेरकाठिया सज्झाय, पृ. १७अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हेमविमलसूरि सीसे कही, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १७अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मत जाओ रे पीया तुमे पाहाड; अंति: नेम मगन भयो संजम भार मा, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १७अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: ध्यान में ध्यान में ध्यान; अंति: होवै एह सुअ खय चैन में, गाथा-६. १११६४०. कृष्णराजा बारमासा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१७.५४११.५, ३६४२४-३०). कृष्णराजा बारमासा, मु. कुसलसमय, मा.गु., पद्य, आदि: गुदले बादल गाजियो काली; अंति: माहाराज वस्तु मै कोटडी, गाथा-१२. १११६५० (4) छिनालपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७७११, ३१४१५-१८). छिनालपच्चीसी, मा.गु., पद्य, आदि: पाछो जोवै पैडै चलती; अंति: लोका मांही लाज गमावे, गाथा-२५. १११६५२. पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, १२४३३). For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. १११६५५ (#) चतुर्थीतिथ्यादि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल. खेडवानगर, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १४४३४). १. पे. नाम, चतुर्थीतिथि स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: नय धरी नेह नीहालतो, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणंद परमपद पाया; अंति: नयविमल० विघन हरेवी, गाथा-४. ३. पे. नाम. षष्टितिथि स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. छट्ठतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमि जिनेसर ले दीक्षा; अंति: नयविमल० प्रीति धरो, गाथा-४. ४. पे. नाम. सप्तमीतिथि स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभजिन ज्ञान; अंति: लीला नयविमल गुणवंत, गाथा-४. १११६५८. २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२२४११.५, ११४४०). २४ जिन स्तवन, म. हरी, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से १८ अपूर्ण तक है.) १११६६७. (#) ७ व्यसन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१९४११.५, ९४२१). ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सात विसन मति सेवयो नही; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १११६७०. (#) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)-४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४११, १२४२७-२९). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ ___ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-५० अपूर्ण तक है.) १११६७३. रत्नत्रय पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६३-६२(१ से ६२)=१, दे., (१९.५४११, २४३०). रत्नत्रय पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: ० खदाये, (पू.वि. अंतिम गाथा का अंतिम पाठांश ही है.) १११६८४. भरतबाहुबली सज्झाय, शत्रुजयतीर्थ स्तवन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१०.५, १४४३८). १. पे. नाम, भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणो अति लोभीयो भरत; अंति: समयसुंदर वंदे पाय रे. गाथा-७. २. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहियां मोरी चालो; अंति: अरिहंत श्रीआदिनाथ है, गाथा-१३. ३. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बलिहारी दरसण ताहरा रे; अंति: पलक न छोडूं पाछो रे, गाथा-४. १११६९२. कक्काबत्रीसी, अपूर्ण, वि. १८१५, आश्विन कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्रले. मु. अनोपसागर; पठ. श्रावि. रामाकुंवर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९४११.५, १३४२९). For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ कक्काबत्रीसी, म. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सीस जीवो ऋष इम वीनवै, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से है., वि. अंत में एक औपदेशिक पद लिखा है.) १११७०६. पंचतीर्थ आरती व मंगल दीवो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१३.५४११.५, १७७२०-२२). १.पे. नाम. पंचतीर्थ आरती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: पहली आरती प्रथम जिणंदा; अंति: (१)प्रभुजीनें तोले, (२)जयजय आरती पंचतीर्थ जिनंदा, गाथा-९. २.पे. नाम. मंगल दीवो, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, आदि: दीवो रे दीवो मंगलिक; अंति: संघ घर मांगलिक दीवो, गाथा-५. १११७१२. शांतिजिन स्तवन, पार्श्वजिन अष्टक व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१२, १५४३२). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. ग. वृद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज ओलग; अंति: पंडित रूपनो ललना, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ.१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, आ. भावप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सकल मंगल मंजुल मालिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ३.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण से ७ अपूर्ण तक लिखा है.) १११७१५ (#) पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०x११.५, ३१४१८-२१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८९१, आषाढ़ शुक्ल, १, ले.स्थल. धकारपुर, पठ.पं. हुकमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरत श्रीपास तणी; अंति: पभणे नवनिधि सदा आणंद घणे, गाथा-११. २. पे. नाम. वैराग्य सिज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, म. राजसमद्र, पुहिं., पद्य, आदि: काया कंचन कामनी परदेशी; अंति: स्वारथ को संसार, गाथा-७. १११७१७. नारचंद्र-ग्रहफल लग्नमान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१.५४११.५, ६४१९). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १११७३९ (+) सरस्वती जयमाल, गुरु पूजा व सिद्ध पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१३, १३-१६४३०). १.पे. नाम. सरस्वती जयमाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी जयमाला पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सति श्रुतस्कंधवने; अंति: मनवांछित फल बुधि घणि, गाथा-२५. २. पे. नाम. गुरु पादुका अष्टक, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. गुरु पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सिद्धांतसूत्र संकिर; अंति: परमानंद निस्पंदसाद्रम्, गाथा-२५. ३. पे. नाम. सिद्ध पूजा, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: उर्ध्वाधोरयुतं सबिंदु शपर; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण तक है.) १११७४०, मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१२.५, १३४३४). मौनएकादशीपर्व स्तवन-गणणागर्भित, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर प्रणमुं पाय; अंति: न्यायसागर० दिन वधते वांन, गाथा-१९. १११७४१. नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१३, २२४१९). For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवपद स्तवन, आ. हर्षचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९९, आदि: सुरतरु सुरमणि कामगविये; अंति: हर्षचंद्रसरि० वसायजी, गाथा-२३. १११७४२. (#) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२.५, १४४२९). नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सौरीपुर नगर सुहावणो; अंति: नेमजी मनरूप प्रणमे पाय, गाथा-१५. १११७४५ (-) गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४१२.५, ६x२७). गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक है., वि. संबोध प्रकरण, आराधनापताका आदि से श्रावक व साधु आचार विषयक गाथा संग्रह.) १११७४६. नंदिषेणमनि सज्झाय-ढाल १, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२३.५४१२, ११४३२). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १११७५२ (+#) तपावली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४१२, १६x४५). तपोरत्न महोदधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम क्रममें फूलतप नं.२० से ४० व दूसरे क्रममें नं.१ से ५६ तप तक है.) १११७५३. (+#) पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१२.५, ९४२४). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) १११७५४. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४१२.५, १२४३०). पार्श्वजिन स्तवन-राधनपुरमंडन, मु. रुपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन द्यो मुझ शारदा; अंति: (-), (पू.वि. कलश अपूर्ण तक है., वि. गच्छाधिपति विजयदेवेन्द्रसूरि के द्वारा सं.१८४८ में हुई प्रतिष्ठा का वर्णन है.) १११७५७. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२३४१२.५, १७४३७). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्माज्जन्म कुले; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२७ तक लिखा है.) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: धर्मथी उत्पन कुलने विषे; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १११७५८ (+#) ग्रहशांति, बृहस्पति व शनिश्चर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२.५, १२४३८). १. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिर्विनिर्मिताः, श्लोक-१२. २. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ वृहस्पतिः; अंति: सप्रीतश्च प्रजायते, श्लोक-४. ३. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: यत्पुरा राज्यभ्रष्टाय; अंति: जयं कुरु कुरु स्वाहा, श्लोक-१०. १११७५९. षड्दर्शन समुच्चय, अपूर्ण, वि. १९५७, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ६)=२, दे., (२०.५४१२.५, ७X२२). षड्दर्शन समच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पर्यालोच्य सुबुद्धिभिः, अधिकार-६, श्लोक-८७, (पू.वि. श्लोक-७९ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २४७ नमा १११७६० (#) जीवाभिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४१३, ५४४६). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. पडिवत्ति-१ सूत्र-१ अपूर्ण से सूत्र-७ अपूर्ण तक है.) १११७६१. ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-६(१ से ६)=२, ले.स्थल. मकसूदाबाद, प्रले. य. कस्तूरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१३, ७X२१). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: लभ्यते पदमुत्तमं, श्लोक-६३, ग्रं. १५०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक-४९ अपूर्ण से है.) १११७६२. आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ११४३४). आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-६ अपूर्ण तक लिखा है.) १११७७१. सिद्धचक्र स्तुति व जैनधर्मप्रभावक श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०४१३, ११४२७). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., पद्य, आदि: ज्ञात्वा प्रश्नं; अंति: प्रेमपूर्णे प्रसन्ना, श्लोक-४. २. पे. नाम. जैनधर्म प्रभावक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. नमस्कारमाहात्म्य श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: नमस्कारसमं मंत्र; अंति: न भूतो न भविष्यति, श्लोक-१. १११७७२ (#) सम्मेतशिखर व जिनबिंबपूजा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२.५, २४४२०-२३). १. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि: आज भलै मै भेट्या हो; अंति: थई जात्र सफल जयकार, गाथा-९. २. पे. नाम. जिनबिंबपूजा स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भविका श्रीजिनबिंब; अंति: श्रीजिनचंद सवाइ रे, गाथा-११. १११७७३ (#) पंचतीर्थ स्तवन व माणिभद्रवीर छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१३, १३४२५). १. पे. नाम. पंचतीर्थजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. मु. गुलाबविजय; अन्य. मु. माणेकलाल (गुरु ग. मानविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. मानविजय (गुरु पंन्या. हर्षविजय, तपागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य. ५ तीर्थजिन स्तवन, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदे ए आदे आदिजिणेसरु ए; अंति: लावण्यसमय० सुख पामै सासता, गाथा-७. २. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १११७७४. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ., (२१.५४१२.५, १०x२०). पार्श्वजिन स्तवन, पं. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर वंदीये निरमल; अंति: नामथी पाम्या परमानंद, गाथा-५, संपूर्ण. १११७८५. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१५.५४१३, १९४१७). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मो तो जाउ रे शिखरगिर; अंति: पभणे श्रीजिनचंद रे, गाथा-७. १११७८८. औपदेशिक व मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४१२.५, ११४२६-३१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुम कर रे; अंति: पुण्यथी ऋद्धि कोटानकोटी, गाथा-३. २. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघकुमारने; अंति: छूटीजे भव तणो पाश, गाथा-५. १११७९० माणिभद्र आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१६.५४१२.५, १२४१८). माणिभद्रवीर आरती, श्राव. श्यामसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: रिमझिम रिमझिम करु; अंति: सेवाबंदगी होज्यो सीरनामी, गाथा-५. १११७९१ (+#) षड्दर्शन समच्चय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२.५४१२.५, ११४२८). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४२ अपूर्ण से ६० अपूर्ण तक है.) १११७९२. पचवीस क्रिया नामानि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४१३, ९४५५). २५ क्रिया के नाम, सं., गद्य, आदि: कायेन निवृत्ता कायिकी; अंति: जाता ईयापथिकी. १११७९३. (#) प्रतिक्रमणसूत्र, बीजतिथि स्तुति व ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२.५, १४४२८). १. पे. नाम. देवसिराइप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: देहि मे देवि सारं, (पू.वि. वीरस्तुति अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लब्धिविजय० पुरि मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) १११७९४. ग्रहशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४१२.५, १०४२६). ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: क्षेमं तस्य पदे पदे, श्लोक-११. १११७९७. षड्शीतिनव्य कर्मग्रंथ सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२२.५४१२.५, १-६४३६). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जिय१ मग्गण२; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-अवचरि, सं., गद्य, आदि: नमिय० तत्र जीवंति; अंति: (-). १११८०५ () प्रास्ताविक श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१२.५, ९४२३). १. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. __प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कार्येषु मंत्री कर्णेषु; अंति: कृत्वा कृत्वनमानिती, गाथा-५. २. पे. नाम, श्रावक गृहे ७ गरणा ९ चंद्रवा विधान, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावक गृहे ७ गलणा ९ चंद्रवा विधान, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अत एव श्रीपरम गुरुभिः; अंति: श्रावकेण अवश्यं धार्याः. ३. पे. नाम, उपदेशमाला-गाथा १, पृ. १आ, संपूर्ण.. उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १११८०६. (+) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८३९, माघ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ४, प्रले. श्राव. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१२.५, ११४३०-३३). १. पे. नाम, नरजातक फल, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पुरुषजन्मकुंडली विचार, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विज्ञेयं मुनीनापि संमतं, श्लोक-१३, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. स्त्रीजातक फल, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. १२ भवन विचार, सं., पद्य, आदि: मुर्तो करोति विधवां दिन; अंति: मोद प्रसक्त हृदयारविजः, श्लोक-१२. For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. शिवकीर्ति, रा., पद्य, आदि: प्रभु पद पंकज भेटीया रे; अंति: शिवकीर्ति० छूठा मेहला आज, गाथा-६. ४. पे. नाम. नवपद आरती, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: पेली आरती श्रीजिनराजा भवी; अंति: दीजे सुख मुगत सुखकारी, गाथा-७. १११८०९ (+) साधारणजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१२.५, १३४२७). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ९अ, अपर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुध के नीत्यविजय पद कारणे, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. विशालजिन काव्य, पृ. ९अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: विजयसेन कुलांबर भास्कर; अंति: विशालजिनं प्रणमाम्यहम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. वज्रधरजिन दहा, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. वज्रधरजिन दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: संख लंछण तनु कनक सम; अंति: गुण वज्रसम पामे मोद सुभाय, गाथा-२. ४. पे. नाम, वज्रधरजिन स्तवन, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवज्रधर जिनराय पूजीये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १११८१२ (#) सिद्धचक्र स्तुति, अपूर्ण, वि. १८४१, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पठ. श्राव. सेठ जय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १२४३३). सिद्धचक्र स्तति, ग. कांतिविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: पेले पद जपिइं अरिहंत बीजे; अंति: सेवा पाय कांतिविजय गुणगाय, गाथा-४, संपूर्ण. १११८१३. अंतरिक्षपार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९२७, आषाढ़ कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, ले.स्थल. ठाणे, प्रले. मु. वीरचंद (गुरु मु. रत्नविजय); गुपि. मु. रत्नविजय; अन्य. मु. रिद्धीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपंचतीर्थी प्रसादात्य., दे., (२३.५४१२.५, ९४३४). पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्यो देव जय जय करण, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-५० अपूर्ण से है.) १११८१४. (+) छठ्ठाआरानं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हंडी:छठाआरनो तवन. अंत में ज्योतिष संबंधी कोष्ठक दिया है., संशोधित., जैदे., (२२.५४१२, १४४३१-३४). महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.ग., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाइ नमी पामी; अंति: देवीदास० संघ आणंदणो, ढाल-५, गाथा-६६. १११८१८. कक्काबत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. पंडित. उगरचंद हरीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१२.५, ९x४०). कक्काबत्रीसी, म. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सीस जीवो ऋष इम वीनवे, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा-२४ ___ अपूर्ण से है.) १११८१९ (+#) सगरुपच्चीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४१२, १२४२३). सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू पईछाणो ए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) १११८२१. पार्श्वजिन पद व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२.५, ९४२५-२९). १. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरे मन में; अंति: कनककीर्ति० तीन भवन मे, गाथा-३. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी पासजिनेसर; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) १११८२८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६७, आषाढ़ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४१२.५, १०४२१-२६). पार्श्वजिन स्तवन-बोरनगर मंडण, म. केसरविजय, रा., पद्य, वि. १९४१, आदि: पारस तोरी निरखण दो अ; अंति: जग में केशरविजय जयकारी, गाथा-१०. १११८३४. आदिजिन शकुनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२१x१२.५, १४४२६-३२). आदिजिन शकनावली, म. धर्मविजय, सं., पद्य, वि. १८०२, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से ४८ ___ अपूर्ण तक है.) १११८३७. (+) २४ जिन पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-७(१ से २,४ से ६,८ से ९)=३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१२.५, १५४२९). २४ जिन पूजा, मु. शिवविजय कवि, पुहिं., पद्य, वि. १९०१, आदिः (-); अंति: पंकज सेवी शिवविजय कविराजै, पूजा-२४, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., सुमतिजिन पूजा तक, चंद्रप्रभजिन से शांतिजिन तक व मल्लिजिन पूजा अपूर्ण से महावीरजिन पूजा अपूर्ण तक नहीं है.) १११८३८. (+) अनाथीमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१३, १७४३१-३५). अनाथीमुनि सज्झाय, मु. खेमकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: श्रीअरिहंत सिद्ध नमस्कार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५४ अपूर्ण तक है.) १११८३९ (#) सुलसा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४५ कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. जेतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२, १३४२८). सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन सुलसा साची जैहनि; अंति: विमल गुण गाय रे, गाथा-१०. १११८४१ (#) घाणोरा नगरवर्णन छंद व प्रहेलिका दूहा, अपूर्ण, वि. १८१५, फाल्गुन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. घाणोरानगर, प्रले. पं. जीवणविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र-१४३=१. वस्तुतः यह खडा लेखन पत्र है परंतु बीच का भाग खंडित होने के कारण पत्रांक १ से ३ दिया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२.५, २७४२१). १.पे. नाम. घाणोरा नगरवर्णन छंद, पृ. १अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. घाणेराव शहरवर्णन छंद, मा.गु., पद्य, आदि: समरत सरसति सामनी गुणपति; अंति: धर्मसूरंद०जयजो तपगच्छ धणी, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से ३१ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. प्रहेलिका दहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रहेलिका दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: गिऊ पहली नीपजै सरीखो; अंति: तुम हो सपण अनूप, गाथा-२. १११८४४. (+) सोलसतीरी सिज्झाय व आदिजिन स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, १८४३६-३९). १.पे. नाम. सोलसतीरी सिज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: उदयरतन० लहिसी सुखसंपदा ए, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. कीर्तिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८८२, आदि: आज भलै दिन उगीयो आज घणो; अंति: तवन भणतां संपदा सबही मिले, गाथा-१५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २५१ मु. कीर्तिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: म्हारे सफल फल्यो दिन आज; अंति: किर्ति घणै ससनेह रे, गाथा-११. १११८६० (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२.५, १३४३५). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० आमलकप्पा नाम; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक सूत्र अपूर्ण तक है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: राजप्रश्नीय उपांग; अंति: (-). १११८६१ (#) पार्श्वजिनादि स्तवन संग्रह व गुरुगण गहुंली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१३, १६४३३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रामवीजे० सुखदातार म्हाराज, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संतिजिनेसर साहीबारे संति; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. ३.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, प. २आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: म्हाने रिषभ देव फरसावो हे; अंति: परताप प्रांण तन वार रे लो, गाथा-७. ४. पे. नाम, गुरुगुण गहुंली, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. जै.क. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: वे गुरु मेरे उर वसे भव जल; अंति: चढो भूधर मांगे एह, गाथा-१०. १११८६३. वैदर्भी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ६)=२, जैदे., (२२.५४१२.५, १६४२८). वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: संपजै पांचमे मोख मझार, (पू.वि. 'पुरथी चालीया राजा किसन वधाई ताम' पाठांश से है.) १११८६४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्र की प्रथम ओर गाथा-३ अपूर्ण तक लिखकर छोड दिया है., दे., (२३.५४१३, ९४२४). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमी तप तुमे करो; अंति: न्याननौ पंचमो भेद रे.गाथा-५. १११८६५ (#) दंडकद्वार बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-९(१ से ९)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१३, ११४३२). दंडकद्वार बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. सातमी नरके पांच नरकावास से तीर्यंचपंचेंद्री वर्णन अपूर्ण तक है.) १११८६७. (#) नारचंद्र जैन ज्योतिष-संक्रांति फल, अपूर्ण, वि. १८५९, आषाढ़ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पठ. मु. अनोप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३, १६४३९). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. "जीवनासयरी ९ अतिकाल मुखी __ योग" पाठ से है.) १११८७३. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१५.५४१२.५, १६४२६). आदिजिन स्तवन, ग. कुशलकल्याण, रा., पद्य, वि. १८०७, आदि: पूजो रे रिषभ जिणंदनै जी; अंति: कुसलकल्याण० कीयो तवना काम, गाथा-११. १११८७४ (+) वीरनं पारणं, ११ गणधर सज्झाय व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अंत में एक औपदेशिक गाथा लिखी है., संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, १३४३७). १.पे. नाम. वीरचं पारणं, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, म. माल, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण अतिशे; अंति: तेहने नमे मुनी माल, गाथा-३१. २. पे. नाम. ११ गणधर सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ११ गणधर पद, मु. जिनहरख, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात समे उठि प्रणमिइ; अंति: वंदणा महानंदने त्रिकाला, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: करीइ सुख ने होत दुख कही; अंति: ना मिले जु पंखे कौ पौन, दोहा-४. १११८७७. तीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. श्राव. नागरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१३, १२४२८). तीर्थमाला स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदिः (-); अंति: प्रेमविजय० सीवपुर ठामि, गाथा-४१, (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से है.) १११८८२. १२ व्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१२.५, १२४२९-३१). १२ व्रत सज्झाय, मु. हीरविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर चरणे नमीजे सह; अंति: हीरवीजय० साधवी ने तोले, गाथा-१७. १११८८३. भाव दीपक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०४१२.५, ११४२१-२५). भावदीपक, पुहि., पद्य, आदि: परमपुरुष परमातमा अचर अरेख; अंति: (-), (पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "वृंद अज्ञान समुह" पाठ तक है., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) १११८८४. (#) औपदेशिक सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. १९५४, आषाढ़ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, ९-१२४३६). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, प. १अ, संपूर्ण. मु. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: गरुरी क्या करे प्यार; अंति: कहे धनीदास करजोडी, गाथा-९. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पहला सीमरू० गुरुदेवकु; अंति: मुकतका सुख जहा असासता, गाथा-५. १११८८५ (#) अठावीसलब्धि स्तवन व सुमतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२.५, १२४३०). १. पे. नाम. अठावीसलब्धि स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदिः (-); अंति: धरमवरधन० ग्यान प्रकाश ए, ढाल-३, गाथा-२५, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं... सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १११८८६. महावीरजिन गहुंली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १२४३०-३५). महावीरजिन गहुंली, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: बेहनी अपापानयरी; अंति: वसुद्ध० सहु जे भणो रे लो, गाथा-५. १११८८९ रहनेमि, जंबकमार व सामायिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१२, १६४३०-४७). १.पे. नाम. रहनेमि सज्झाय, प. ३अ, अपर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सास्वतासुख लेस्ये रे, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जंबुकुमार सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. जंबूकुमार सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी राजग्रही जाणीइ ऋषभदत; अंति: तणो रीद्धीविजय गुण गाय रे, गाथा-१४. ३. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय पामि; अंति: श्रीकमलविजय गुरु सीस, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २५३ १११८९०. नेमनाथ विवाहलो, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १८-१७(१ से १७) १, प्रले. संकर केवल भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २३X१२, ८x२१ ). नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि (-); अंति: वीरविजय० झमाला लाल, डाल- २२, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं, ढाल २२ गाथा ४ अपूर्ण से है.) १११८९१. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय व महावीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १५X३३). १. पे. नाम. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय-सज्झाय १ से २, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापधानक पहिलूं कह्यु, अंति: (-), प्रतिपूर्ण २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्म, आदि गंधारे श्रीवीर जिणंद, अति (-), (पू.वि. गावा-४ अपूर्ण तक है ) "" १११८९२ (+) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३.५X१२, १७३६). सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गद्य, आदि श्रीश्रीमंधरस्वामीना; अंति: वार नमस्कार होजो. १११८९४. सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२३.५X१२.५, ८x२५-२८). सुभाषित श्लोक संग्रह पुहिं. प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि दात्रुत्वं प्रीयवक्तुत्वं अंतिः (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२८ तक लिखा है.) १११८९७ (४) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. केसू (गुरु मु. विद्यासागरसूरि); गुपि. मु. विद्यासागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१२.५, १८x४१). १. पे. नाम. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, पू. १अ १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि प्रथम देवसी पडिक्कमणु: अंतिः जुत्तो० सामायक विधि लीधु२. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: तीर्थराज पदपद्मसेवा हेवा अति प्रभावदाता ददतां शिव वः, श्लोक. १. "" १११८९८. चतुर्विंशति छंद व पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जै. (२४४१२.५ १२४२४). १. पे. नाम चतुर्विंशति छंद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर छंद, पंन्या. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमु ऋषभ जिणंद; अंति: पभणे मणिविजय निजदीस, गाथा - ९. २. पे नाम. पार्श्वजिन छंद, पू. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद- नाकोडामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि आपणे घेर बेठा लील; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) १११८९९. लीलावती रास व सवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., ( २४x१२.५, ११-१४x२६-३१). १. पे. नाम. लीलावती रास, पृ. १अ, संपूर्ण. लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, वि. १७६७, आदि परम पुरुष प्रभु पास अति: (-). (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रारंभिक दोहा-४ तक लिखा है.) २. पे. नाम. शृंगारिक सवैया, पृ. १अ संपूर्ण. शृंगारीक सवैया, क. माधु, पुहिं., पद्य, आदि करे सुक्ल सूफुलेल लट लूटी, अंति एतना रस लीजीये छटाक, पद-२. ३. पे नाम, प्रभात दहा, पू. १अ, संपूर्ण प्रभात दोहा, रा., पद्य, आदि प्रह फाटी पगडो भयो अंति: पाउडो धानो मोड, दोहा-१. For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५४ www.kobatirth.org ४. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पहेलो पोहोरो मूज दीवसनो; अंति: तमे काढोने हू पावुजी, गाथा-४. ५. पे. नाम. दीपक गुण सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. दीपकगुण सवैया, पुहिं., पद्य, आदि दीपक तूजमे तीन गुण रूप अंति घर घर दीपक० कीहा मले पतंग, गाथा ३. १११९००. स्तवन, गीत व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२३.५X१२.५, १५X३५). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, रा., पद्य, आदि: सुगुण सनेही जिनजी अरज, अंति: श्रीजिनचंद० तारो राज, गावा-५. २. पे. नाम. नेमराजिमति गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती गीत, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम मोरा ने समजावो रे; अंति: ग्यानसागर गुण गावे रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-केसरीया, मु. मुलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जो लज्या राखस्यो तो रसे; अंति: पुरो भवभवना गुण गासे, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - ३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेनजीरा हो वावा; अंति: थानसुं प्रेम घणो जिणचंद, गाथा - ६. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नृप कुल चंदलोजी, अंति (-), (पू.वि. गाधा- २ अपूर्ण तक है.) १११९०१. कमलावतीसती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैवे. (२३.५x१२.५, १४x२३). कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: महलां में बैठी हो रानी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) १११९०२. नवपद व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी: नवपदवाख्यान. दे. (२४४१२.५, " १५X३६). " नवपद व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवान केहवा छे; अंति: (-), (पू.वि. नरक वर्णन अपूर्ण तक है . ) १११९०३. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. हुंडी : पदमावती. दे., (२४x१२.५, १८x४२). पद्मावती आराधना बृहत्-जीवराशिक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हे राणी पद्मावती जीवरासी; अंति: कहे पापथी छुटे तत्काल, ढाल -३, गाथा-८१. १११९०४ महावीरजिन २७ भव वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १(१) १, प्र. वि. अनुमानित पत्रांक दे. (२४.५x१२.५, १४४३४). יי १. पे. नाम. ९९ प्रकार पूजा विधि सामग्री, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नालेर सर्वथापनारा; अंति दूध दही घृत. " २. पे नाम, आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आयुषा वाला देवता भया, (पू.वि. भव- ९ वर्णन अपूर्ण है.) १११९०५ (+) ९९ प्रकारपूजा विधि सामग्री, आदिजिन पद व औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २४४१३, १३x२८). आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्म, आदि लग्या मेरा नेहरा; अति ग्यान नहीं गहिरा, गाथा ५. ३. पे. नाम औपदेशिक पद. पू. १आ, संपूर्ण. मु. नवल, पु,ि पद्य, आदि: बार वार समजायो रे मनवा अति नवल० आवागमन मिटायो रे, गाथा-३. For Private and Personal Use Only ४. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तुम कैसे तिरोगे भव, अंतिः जब धर्म कीये से, पद-४ (वि. प्रतिलेखक ने संक्षिप्त पाठ लिखा है.) " Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सपूण. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २५५ १११९०६. (+) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. शिवरतन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२.५, २५४१७). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरीयावहि पडिकम; अंति: मणसा मत्थेण वंदामि. १११९०७. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पटणा, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, ११४२८). ___ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. १११९०८. आदिजिन चैत्यवंदन व अधिक मास वर्णनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रावण शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. मु. निधानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२.५, ७४३६). १.पे. नाम, आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत नमो भगवंत नमो; अंति: दानेस ज्ञानविमलसूरीस नमो, गाथा-८. २. पे. नाम. अधिक मास वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदिः सं १८६६ मा अशाढ २; अंति: सं १९२७ वैषाख २. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ.१अ, संपूर्ण.. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: वाघण द्ध मास; अंति: (अपठनीय). ४. पे. नाम, श्रावकदिनकृत्य सज्झाय सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मानवी श्रीवितरागनी; अंति: पालवा श्रावकने समकीतीने. १११९१०. (-) श्लोक संग्रह व शुकनावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४१३, ७४२०). १.पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: (१)पावपदमे बुधु नसेंत, (२)शुभो भूय सदा बुधः, (वि. पंचषष्टियंत्रगर्भित २४जिन स्तोत्र की दो गाथा व ग्रहशांति गाथा.) २. पे. नाम, शुकनावली, पृ. १आ, संपूर्ण.. शुकनावली*, मा.गु., गद्य, आदि: इस जदमति थी सलामति ऊठइ; अंति: नाहि दिलम हुकम राखि१०. १११९१४. अजितशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, जैदे., (२३.५४१२, १२४२५). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पुव्वप्पन्ना विनासंति, गाथा-३९, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-२८ अपूर्ण से है.) १११९१५. गौतमस्वामी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. हेतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२.५, १०४३७-४३). गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: नंद लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. १११९१७. (+) ३६ बोल थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, २०४४५). ३६ बोल थोकडो, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)पेले बोले भाव६ नाम अनुजोग, (२)उदयभाव ते ८कर्म ४गत; अंति: (-), बोल-३६, (वि. ३६वे असज्झाय बोल के लिए यंत्र दिया है.) १११९१९ (#) आरामशोभा कथानक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १५४३७). आरामशोभा कथानक, सं., गद्य, आदि: अथ भो भव्यलोका यदी; अंति: (-), (पू.वि. ब्राह्मणी द्वारा कूपखननवर्णन अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १११९२० (+) होलिकापर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९६८, चैत्र कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. कलकत्ता, प्र.वि. हंडी:होलि.व्या., संशोधित., दे., (२३.५४११.५, ८-१२४२७-३०). होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदिः (-); अंति: व्याख्यानमाख्यानभृत्, (पू.वि. अचलभूत भरड कथा वर्णन अपूर्ण से है.) । १११९२१. (+) ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:बास., संशोधित., दे., (२३.५४१२, १९४२७). ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., आदि: सरबसु थोडा गरवेज मनुष; अंति: सरब जीव विसेसाया. १११९२२. औपदेशिक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४.५४१२, ५४३१). औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं भोगो नाशस्तिस्र; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ तक है.) औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धनना त्रण रस्ता छे कोईने; अंति: (-). १११९२३. (+#) वीरथुई अज्झयण, महावीरजिन स्तुति व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, ११४३३). १. पे. नाम. वीरथुई अज्झयण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: देवाहिव आगमिस्संति, गाथा-२९. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंतिः प्रभवस्वामी जाणिये, गाथा-९. ३.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-बह, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में पेन्सिल से लिखा है. रा., पद्य, आदि: किस विध आउ जी माराजा घर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) १११९२४. (#) इलाचीकुमार सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२, २५४५२). १. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. सा. दीपा, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: तिण कालने तिण समे चौथा; अंति: धिन धिन छे जे केवली, ढाल-४, गाथा-४०. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) १११९२५. प्रभाती प्रतिक्रमण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२३.५४१२, ११४२८). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-), (पू.वि. जगचिंतामणिसूत्र अपूर्ण तक है.) १११९२६. (+) ५६३ जीवभेद विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व., संशोधित., जैदे., (२४४११.५, २१४५१). ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाप भेद-३५ नरक विचार अपूर्ण से नवकाय ___ कलेस के १३ भेद तक है.) १११९२८. पाखी नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. हीराचंद (परंपरा मु. रत्नचंद); गुभा. मु. रत्नचंद, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १२x२४). त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र-हिस्सा सकलाहत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानमधि; अंति: वीरसाक्षात् सुरद्रम, श्लोक-४७. १११९२९. (-2) अभिनंदनजिन स्तुति व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१२, १२४३१). For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. म. शोभनमनि, सं., पद्य, आदि: तुमशोभानभिनंदन मंदीताः; अंति: सुर भया तत् नुनमहारेणं, श्लोक-४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. शोभनमनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविभोजनैकतरणे; अंति: तत्राब्जकांतिक्रमौ, श्लोक-४. १११९३० (+) जीवोत्पत्ति व असज्झाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०३, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. खंभायतबंदर, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२.५, १५४३२). १.पे. नाम. जीवोत्पत्ति सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोज्यो जीव आपणी; अंति: इम कहै सुवि श्रीसार, गाथा-७०. २. पे. नाम. असज्झाय सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. हीर, पुहि., पद्य, आदि: श्रावण काती मिगसिर मास; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१तक लिखा है.) १११९३१. (+) साधारणजिन व पर्युषणपर्व स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२, ९४२४-२९). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तति, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: माइ जो तुंसे देवी अंबाइ, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पर्यषणपर्व स्तति, पृ. २आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ के पाद-२ अपूर्ण से लिखा है व गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १११९३३. (+) आलाप पद्धति, विनय पाठ व श्रुतज्ञानबत्तीसदोष गाथा, संपूर्ण, वि. १९८८, आषाढ़ शुक्ल, १५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, ले.स्थल. बलुदा, अन्य. मु. नंदकवरजी महाराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४१२,१९४३४-४०). १.पे. नाम. आलाप पद्धति, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:आलापपद्धति. आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तरं; अंति: शरीरमिति देवदत्तस्य, अधिकार-१९, सूत्र-२२८. २.पे. नाम. विनय पाठ, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:विनयपाठ. पं. नाथूराम पं., हिं., पद्य, आदि: इह विधि ठाडो होय के प्रथम; अंति: नमि रच्यो पाठ सुखदाय, दोहा-२२. ३. पे. नाम. श्रुतज्ञानबत्रीसदोष गाथा, पृ. ६आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अलिय मुवघाय जणयं निरच्छए; अंति: न पावे ते सूत्र प्रमाणिक, गाथा-१. १११९४३. पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८१, ससीनागअष्टचंद्र, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मुक्तिविजय (गुरु मु. रूपविजय); गुपि. मु. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२.५, ११४३०). पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभुजी जिन राजीया रे; अंति: बेहूं नयणे हुया धन धन, गाथा-५. १११९४४. औपदेशिक सज्झायद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, १३४२६). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासरडे इम जइये रे बाइ; अंति: भावे सिवपुर लहीए रे बाई, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सकल नारि जोय विचारि तत्व; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) १११९४६. (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह व ढुंढिया मत सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:सुभाषित., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, १५४५३). १. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः क्षमाबलमशक्तानां शक्तानां; अंति: पथ्यं निर्व्याधे किमौषधं, गाथा-२८. २. पे. नाम. ढुंढिया मत सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खेतसी, पुहिं., पद्य, आदि: जोगी में न जती में न साधु; अंति: ढूढीया ओलखज्यो इण आरिखे, गाथा-४. १११९४७. चोवीस तीर्थंकर परिवार गणधरसाधुसाध्वीश्रावकश्राविकासंख्या परिमाण व २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२, ११४२३-३०). १.पे. नाम. चोवीस तीर्थंकर परिवार गणधरसाधुसाध्वीश्रावकश्राविका संख्या परिमाण स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन परिवार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस तीर्थंकरनो; अंति: नाम करजोडीने करु प्रणाम, गाथा-७. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-अनागत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. म. देवकलोल, मा.ग., पद्य, आदि: परषद बेठि बार जिवार गौतम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १११९५१ (+#) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५-३४(१ से ३४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१२, ९४२४-३२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल-८ गाथा-२३ अपूर्ण से खंड-३ अंत तक है.) १११९५३. शत्रुजयतीर्थ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४१२.५, ११४३०). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १११९५८. लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. गणेशचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१८.५४१२, १०x१८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. १११९६० (+#) नंदीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:नंदीसू०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२.५, २१४३८). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से गाथा-१९ तक है., वि. कोष्ठकसहित.) नंदीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १११९६१ (-#) जिनपंजर स्तोत्र, शत्रुजयतीर्थ स्तवन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १०४२९). १.पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह; अंति: मनोवांछितपूरणाय, श्लोक-२४. २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो सेव॒जगिरी रे; अंति: जिनह० मंगल वृद्धि रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सिधारथ जिननंदन वीनवं; अंति: विनयविजय गुण गाय, गाथा-५. १११९६२ (+) २३ पदवी विचार, ६ जीवपर्याप्ति विचार व १० प्राण नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:वोलको पाना., संशोधित., दे., (२३.५४१२.५, १९४४४). १. पे. नाम. २३ पदवी विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पदवी २३ पन्नवणा सूत्र; अंति: मंडलिक पदवी पावे. २.पे. नाम.६ जीवपर्याप्ति विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: एकेंद्रीक च्यार पूजा आहार; अंति: भाष्या पूजा मन पूजा. ३. पे. नाम. १० प्राण नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रुतिइंद्री बलप्राण; अंति: बलप्राण आउखो बलप्राण. For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २५९ १११९६३. सीमंधरजिन विनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२३.५४१२.५, १४४२५). सीमंधरजिन विनती स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८७ अपूर्ण से १०३ अपूर्ण तक है.) १११९६४. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (१६.५४१२.५, १६४२०). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-२६ अपर्ण तक लिखा है.) १११९६५. रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४१२.५, १५४३०). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणिदेवत सामणीए मुज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) १११९६६. (-) श्रावक आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३४१२.५, १८४३०). श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीर भगवानकू नमस्कार; अंति: दस उपवासकावि दंड देवे. १११९६७. सिद्धचक्र स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., अ., (२४४१२.५, १०४२९). सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीहों प्रणमुं दिन प्रति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) १११९६९ (4) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११.५, ११४२८-३४). औपदेशिक सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: प्यारो मोहणगारो राज मन; अंति: निश्चल पद निरवांणि, गाथा-१३. १११९७१ (+) पर्युषणपर्व गहुंली, सीमंधरजिन स्तुति व नमिजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४१२.५, ११४२८). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व गहंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे ललित वचननी; अंति: वीरने शासने करशे एक अवतार, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक गहुंली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर मारगमें वसिया वसी; अंति: श्रीशुभवीर चरण नमती, गाथा-९. ३. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चरण करणस्युं शोभता; अंति: सुणत मेले शिव साथ रे, गाथा-५. ४. पे. नाम, गुरुगुण गहंली, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सुकृत तरुनी वेल; अंति: मलती मुगति सहेली पास, गाथा-६. ५. पे. नाम. समोवसरण गहली, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. समवसरण गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहा आया रे चंपावन; अंति: त्रिशला मात मल्हार, गाथा-६. ६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.ग., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीसीमंधरदेव सहकर; अंति: सकलमां सिद्धि जी, गाथा-४. ७. पे. नाम. नमिजिन स्तवन, पृ. ४आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिल भर दरशन पाउं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १११९७४. ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय व मदनरेखासती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२४४१२, १५४२५). १.पे. नाम, ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. हर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तिणकाले ने तिण समैमा; अंति: परभाव वीरजिणंद वखाणीवो, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. मदनरेखासती रास, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., पे.वि. हुंडी:मीगत. मा.गु., पद्य, आदि: जल की सोभा कमल है दल कि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) १११९७५. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, २३४४०). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर सुखकारी हो इक तारी; अंति: प्रभु सुख संपति दातार, गाथा-५. २.पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु आगल नाचे सुरपत; अंति: जोवण उछक छे अति, गाथा-९. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीराउल पास आस हमारी; अंति: दीजे हो अनुभव नवनवेजी, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आप अरूपी होय के प्रभु; अंति: आपीए तुझ पद पंकज वास हो, गाथा-७. ५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: इण डूंगरीए झिणि झिणि; अंति: नयविमल० भव पार उतारो, गाथा-६. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन अमृतध्वनि, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अमृतध्वनि-गोडीजी, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: झिगमग झिगमग जेहनी; अंति: पोहचोदह थुणइ जीतचंदह, गाथा-८. १११९८६. बीजतिथि स्तुति व पंचमीतिथि स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२३४१२, ११x१९-२२). १.पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. २अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे पूरि मनोरथ माय, गाथा-४, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. १११९८७. नंदावर्त आलेखनादि विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२१x१२.५, १३४३९). नंदावर्त आलेखनादि विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो सूर्याय कासब; अंति: (-), (पू.वि. नवग्रह नमस्कार विधि अपूर्ण तक है.) १११९९६. २० विहरमानजिन स्तवन, शांतिजिन स्तवन व दानशीलतपभावना पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२४१२.५, २३४३६). १. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... २० विहरमानजिन स्तवन, मा.ग., पद्य, आदि: पेला बांद श्रीमींदर; अंति: कंचन भरण काया, गाथा-२०. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में पेन्सिल से लिखी गई है. मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, आदि: साता कीजोजी श्रीसंतप्रभु; अंति: चौथमली० जोड़ बणाइ जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. दानशीलतपभाव पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: दानसीलतपभाव आरादो सिवपुर; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) १११९९७. (+) २२ परिषह सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४१२.५, १८४३०). २२ परिषह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी रो मारगे कठण कयो; अंति: गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २६१ १११९९९. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ९ नमिपव्वजा अज्झयण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२२४१२.५, १७४५४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) ११२००० (+) लघुपट्टावली-पार्श्वचंद्रसूरिगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१६.५४१२.५, १४४१८). लघुपट्टावली-पार्श्वचंद्रसूरिगच्छीय, आ. हेमचंदसूरि, सं., पद्य, आदि: विदित सकलशास्त्रान्; अंति: चंद्रमुनिवृंदवरा जयतुं, श्लोक-४, (वि. कृति के अंत में २ प्रास्ताविक श्लोक लिखे हैं.) ११२००१. २४ जिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४१२.५, १७४३३). २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मनाभ पहेला जिणंद; अंति: कहे ज्ञानविमलसूरीश. ११२००४. (+) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१२.५, १२४३३). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से ६५ अपूर्ण तक है.) ११२००६. (#) १६ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. रंगकुशल पंडित; पठ. सा. कस्तुरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२, १३४२४-२८). १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, ग. रूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: एहवी रूपसागर कीधी जोडो रे, गाथा-२८. ११२०११. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४११.५, १०४२४). महावीरजिन स्तवन-कोरटामंडन, म. मक्तिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कोरटेनगर विराजे हो प्रभ; अंति: मक्तिविजय ० बे करजोड, गाथा-७. ११२०१२. शारदाष्टक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. पूना, प्रले. मु. लक्ष्मणसागर; पठ. श्रावि. मेनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४१२.५, ४४२६). शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: वनारसी० तजि संसार किलेस, गाथा-१०, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) ११२०१३. तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२२.५४१२, ८x१८-२२). तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्त पयासीयं; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने प्रारंभ में संतिकरं स्तोत्र की मात्र अंतिम गाथा लिखी है.) ११२०१४. (+) वीरस्तुति अध्ययन व नमिपव्वजा अज्झयण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१२.५, १५४३५). १.पे. नाम. वीरस्तुति अध्ययन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छेसुणे समणा माहणा य; अंति: देवाही आगमसंति त्ति बेमी, गाथा-२९. २. पे. नाम, नमिपव्वजा अज्झयण, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चईऊण देवलोगाउ उववन्न; अंति: नमीरायरिसि त्ति बेमि, गाथा-६२. ११२०१७. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२०४१२, १२४२९). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरवर विमल गिरव; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ११२०२३. श्रावक २१ गुण नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५४१२.५, ९x४०). For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावक २१ गुण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सरल स्वभाव घरइ अक्षुद्र; अंति: होई ते शुद्ध श्रावक कहीइ. ११२०२५. (-) पार्श्वजिन पद व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१४१२, १६४१८). १. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चिंतामण सांमि सच्चा साहिब; अंति: करूं वानारसी वंदा तेरा, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देव निरंजन भव भय; अंति: रूपचंद० बेठा सो तरीया हे, गाथा-३. ११२०३०. अष्टमी स्तवन व सूर्य सलोको, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२१x१२, १२४२०). १.पे. नाम, अष्टमी स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गावै कांति सुख पामि घj, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सूर्य सलोको, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामण करो पसाय बे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११२०३१. सीखरुप बाराखडी, अपूर्ण, वि. १८०७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले.पं. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२, १२४३१-३५). कक्काबत्रीसी, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: कोइ लिखे अंक जे निरमये, गाथा-३३, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., गाथा-२० अपूर्ण से है.) ११२०३७. (4) पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र-१आ पर सामान्य वैदिक जैसी कृति लिखी है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४११.५, १०x१६-१९). पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: नादान पियाजी हो बालुडो; अंति: भावप्रभसूरी० मे यूं गाजे, गाथा-३. ११२०४१. डोहला विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४-८३(१ से ८३)=१, प्र.वि. हुंडी:द्वीतीयपानुं कल्पसूत्रनु., जैदे., (२३४१२.५, १६४३५). कल्पसूत्र-संबद्ध त्रिशलामाता दोहला विचार, मा.ग., गद्य, आदि: त्रिशला राणीने जे डोहला; अंति: ते ते पुरा कीधां, संपूर्ण. ११२०६६ (+) शीतलजिन व श्रेयांसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८१७, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. पाहलणपुर, प्रले. पं. लालविजय (गुरु ग. कुंअरविजय, तपागच्छ); पठ. श्रावि. लाडुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४१२.५, १३४३२-३६). १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुमतिविजय० लेखइ आणजो रे, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तारक बिरूद सुणी करी; अंति: श्रीसुमतिविजय गुरु सीस, गाथा-७. ११२०६७. मुहपत्ति ५० बोल सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२२.५४१२.५, ११४२९). मुहपत्ति ५० बोल सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिरी जंबू रे विनय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११२०६८. स्थूलिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४१२, ११४३१). स्थूलिभद्रमनि सज्झाय, म. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मेघराग उर भेरव रात्रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २६३ ११२०६९ मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२०.५४१२.५, १३४२३-२६). मौनएकादशीपर्व स्तवन-गणणागर्भित, म. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीसंखेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ११२०७३. १८ नातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६२, कार्तिक शुक्ल, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:नाता., जैदे., (२१४१२, १४४४०). १८ नातरा सज्झाय, श्राव. विनोदीलाल, मा.गु., पद्य, वि. १७०५, आदि: प्रथमहि नाभ नरिंद अनुजा; अंति: गावै विनोदीलाल हो प्राणी, ढाल-७, गाथा-१०२. ११२०८८.(+) वीर स्तुति व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१२, १५४३७). १.पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारे महावीर जिणंद; अंति: जसविजय जयकारी, गाथा-४. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेशर; अंति: जिन० भवसायरथी तारो, गाथा-५. ११२०८९ नवकार माहात्म्य सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२०.५४१२.५, १२x२४). नवकार माहात्म्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से १२ अपूर्ण तक है.) ११२०९० (+) जंबूद्वीप विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१२, ११४४४). जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप लांबो पहुलो एक; अंति: (-), (पू.वि. 'आठ हजार चार सो इकिस जो०' ____ पाठांश तक है.) ११२०९१ (#) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१२, ५४२५). प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ऐवहु समापमान तेज रो आलंब, दोहा-४, (पू.वि. दोहा-२ अपूर्ण से है.) ११२०९२. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२१.५४१२.५, १०४३१). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से ३७ अपूर्ण तक है.) ११२०९३. सुपार्श्वजिन स्तवन व महावीरजिन गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. थराद, प्रले. मु. चिमन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७.५४१३, १४४२३). १. पे. नाम, सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल समिहीत सूरतरु रे; अंति: लोका माहि स्याबास, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरजिन गहली, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: कुण वन वीर समोसर्या; अंति: हरखचंद० निज आतम काज रे. ११२०९८. (+) व्याख्यान पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१७.५४१२.५, १२४१९-२३). व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: भगवंत वीतरागनी वाणी; अंति: (-), (पू.वि. '११ अंग १२ उपांग इत्यादिक' पाठांश तक है.) ११२१०१. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९६, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२२४१२, १०-१९x१९-३७). For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: नेत्रानंदकरी भवोदधी; अंति: तत्रैव भूयाद्यत्रगतोभवान्, श्लोक-१५. ११२१०२. कर्म सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, दे., (२१.५४१२, ७X२१). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ११२१०९ चौवीस तीर्थंकर पुत्र पुत्री संख्या, लंछण, वर्णादि नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१४१२, १४४२८). २४ तीर्थंकर के नाम-गणयोनिनक्षत्रराशिलंछनादि सहित, मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ११२११०. जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२२४११.५, १०४३७). जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वार-३ अपूर्ण से ४ अपूर्ण तक है.) ११२१५३. पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१४१२, १०४२८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) ११२१५९ (4) घंटाकर्णमहावीरदेव मंत्र विधिसहित, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ६)=२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११, १०४२१). घंटाकर्णमहावीरदेव मंत्र विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: जाति पुष्प चंपेली का फुल, (पू.वि. ४४००० मंत्र जाप विधि अपूर्ण से है.) ११२१६०. शांतिजिन पद व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११.५, ६x४०). १.पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. दशवकालिकसूत्र-शांतिजिन स्तवन, संबद्ध, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुम्हें रे दिल में; अंति: देव शकलमां हो जिनजी, गाथा-३. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उलग अजित जिनंदनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) ११२१६५ (#) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १६४३७-४८). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ४४३ जघन्य ४४४ उत्तम, (पू.वि. पाशा संख्या २२१ के ____ फल से है.) ११२१६८. (#) जीजाबाहूबहेरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५२, वैशाख शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. भीमजी ऋषि (गुरु मु. राघवजी); गुपि. मु. राघवजी (गुरु मु. दामजी); मु. दामजी (गुरु मु. देवजी); मु. देवजी; अन्य. मु. जीवाजी ऋषि; मु. सवराजजी ऋषि; मु. जगसीजी ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११, ११४२९). बाहुजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: बाहूजणंद माहारा देव; अंति: गावे गणी मेघराज सुखकार, गाथा-११. ११२१६९. वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२४११, ८x२६). वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: मेर समरण दिल बसै; अंति: कमलामली शांति रतन संभाल, गाथा-५. ११२१७० (4) पंचांगुलीदेवीमंत्रजपसाधन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १२-१५४३६-४४). पंचांगलीदेवी मंत्रजपसाधन विधि, सं., प+ग., आदि: अज्ञानतिमिरध्वंसि; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"षत्रिंशतीसहस्त्राणी पुरश्चरणमुदा" तक है.) For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २६५ ११२१८१ (+#) अनंतजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४४११.५, ११४२२). अनंतजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पूजानो तुं बेपरवाही; अंति: तो द्यो शिवपुर राज, गाथा-५, संपूर्ण. ११२१८२. (#) औपदेशिक सज्झाय व कृष्णभक्ति गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, ३६४२०). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-विषयविराग निवारण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-विषयराग निवारण, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनि आणी जिनवाणी प्राणी; अंति: ऋद्धिविजय जय जयकार, गाथा-१७. २. पे. नाम, कृष्णभक्ति गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. क. नरसिंह महेता, मा.गु., पद्य, आदि: वाटडी जोउं घरि घरि आवो; अंति: नरसिंघना० मोरा वाहला, गाथा-३. ११२१९१ (+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन युगल व महावीरजिन विनती, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१८x११.५, १५४२२-२८). १. पे. नाम, पंचमीवृद्ध स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२०. २. पे. नाम, ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, प. २अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: समयसुंदर० पंचमो भेद रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरजिन विनती, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११२१९२. पंचमआरा व चंदनबालासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पार्श्वभाग में "श्रीरामजी स्याहाय छैजी सत्य छै" लिखा है., दे., (२२४११.५, ३१४२०-२६). १. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नित रे नित गांवडै जावणौ; अंति: चोथमल० चाहो तो धर्म करो, गाथा-७. २. पे. नाम, चंदनबालासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दधिवाहन पुत्री जाणी जिणरी; अंति: रतनचंद ढाल जोडी टकसाला, गाथा-११. ११२१९४. (+) वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:वैद्यवल्लभ, संशोधित., दे., (२१.५४१२, ६x२७-३१). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ तक है.) वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसरस्वतीयं नमस्कृत्य; अंति: (-). ११२२०१ (+) वैद्यवल्लभ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१६(१ से १५,१७)=२, प्र.वि. हुंडी:वैद्यवल्ल०., संशोधित., दे., (२२४१२, ८x२९). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., उल्लास-७ ___ श्लोक-३० अपूर्ण से श्लोक-५ तक व उल्लास-८ श्लोक-१७ अपूर्ण से उल्लास-९ श्लोक-१ अपूर्ण तक है.) ११२२०७. (#) औपदेशिक सज्झाय व भरतचक्रवर्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४५, कार्तिक कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. दिल्ली, प्र.वि. हुंडी:सेणकरायतीर्थक पदयासी., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१९x१०.५, १५४३०-३४). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहि., पद्य, आदि: एह संसार खार सागर; अंति: जिन धूर की वेदन खोई, गाथा-१०. २.पे. नाम. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, पृ.१आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: आभरण अलंकार सवही उत्तारे; अंति: सोभागी भरथजी भूपए वैरागी, गाथा-१०. ११२२१० (+#) पांडवचरित्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-३२(१ से ३१,३३)=२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११.५, १५४२९-३२). पांडवचरित्र रास, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल-२० गाथा-१२ अपूर्ण से ढाल-२१ गाथा-१६ तक व ढाल-२२ दोहा-३ अपूर्ण से ढाल-२४ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ११२२११. विजयलक्ष्मीसूरि बारमासा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२१.५४११, १०४२६). विजयलक्ष्मीसूरि बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती ने पाए लागु रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक है.) ११२२२१. (-) प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२४१२.५, २०-२३४३३-३७). प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कारयसुं मंत्र वचनेसु दासी; अंति: जार जुटक मिसरी घोले, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ११२२२८. १० श्रावक सज्झाय व थावच्चापुत्र ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:थावरचा., दे., (२०.५४१२, २२४३१). १.पे. नाम. १० श्रावक सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदिः (-); अंति: ऋष रायचंद इम भास हो, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, थावच्चापुत्र ढाल, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: थावर्चा भोगी भमर बेठो महल; अंति: तिणने छेसा बासो रे, ढाल-६, गाथा-६७. ११२२३४. (+) संतिकरं, पार्श्वजिन स्तोत्र व अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, कल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१२,११४२८). १. पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: सांतिकरं सांतिजिणं; अंति: मणिसुंदर० सुव संपयं परमं, गाथा-१३. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, पठ. मु. चेलाराम, प्र.ले.पु. सामान्य. ___ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: नोस्स ईतस्स दरेण, गाथा-२४. ३.पे. नाम, अजितशांति स्तव, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११२२३५. (+) साधारणजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, ८x२४). साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडलि जाइं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११२२३६. उपदेसी लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:चोक., दे., (२१.५४१२, १८४३५). औपदेशिक पद, मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: तुम सुणो मुगुत का पंथ संत; अंति: नंदलालजी० सतगुर का सरणाजी, गाथा-४. ११२२३७. (+#) शांतिजिन स्तवन व नमोत्थुणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१२.५, १०४२९). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरज करूं प्रभुजी सुणो; अंति: कीरती० भवभव सेव हो जिननी, गाथा-८. २. पे. नाम. नमोत्थुणंसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमोत्थुणं अरिहंताणं; अंति: सव्वे तिविहेण वंदामि. For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २६७ ११२२३८. दशवैकालिकसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हंडी:दशविका०., दे., (२३४११, २२४५३). दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), (पू.वि. भूमिका मात्र है.) ११२२४० (+) बेला तेला की विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१५४१२.५, १३४१५). बेला तेला ग्रहण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम देहरे निसही कह; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ११२२४१. सुसाणीदेवी पद, छंद व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४१२, १५४३१). १. पे. नाम. सुसाणीदेवी पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रसन्न होय माता कह्यो; अंति: फाटी मही हितसुं पुरी हाम, गाथा-३. २. पे. नाम, सुसाणीदेवी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विदाजी, मा.गु., पद्य, आदि: संवत दोय दस से सगत वरस; अंति: बीदो कहे० राजनु लाज माता, गाथा-४. ३. पे. नाम. सुसाणीदेवी वारता, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सुसाणीदेवी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: इणतरे राजा सूरसावलाने; अंति: (-). ११२२४२. (#) नेमिजिन विवाहलो, अपर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, प.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, ११४२५). नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: सरसति चरण सीरोज; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११२२४३. (#) प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१४१२, २५४१६). धारणा प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा.,रा., गद्य, आदि: रात्रे पाणी ओषद सवाय अलण; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नियम-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ११२२५५. (+-#) महावीरजिन निसाणी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, १५४२५). महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से २४ अपूर्ण तक है.) ११२२८०. नेमिपार्श्वजिन स्तवन, नेमराजिमती पद व कक्काबत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२०.५४१२, १२x२३). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सखी श्रावकनी छठ उजली; अंति: नीत आवे छे खीण खीण चीतरे, गाथा-८. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. फते, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन नेमजी आए मेरा मन; अंति: फते० शुक्ल ध्यान जगाया, पद-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, प.१आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्या माटे अंतर जांमी; अंति: तिहां न रहो लाभनो लाछो, गाथा-५. ४. पे. नाम. कक्काबत्रीसी, पृ. २अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: कका क्रोध निवारीयै क्रोध; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा ११२२८६. (#) शनिश्चरदेव छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१६४१२, १२४१९). शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक है.) ११२२८८. माणिभद्रवीर छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२२.५४१२, १३४४२). For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती भगवती भारती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ११२२९०. शत्रुजयतीर्थ स्तवनद्वय व बाहुजिन फाग, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, दे., (१६४१२, १२४१२-२०). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नीहाल तारै जैत कृतारथ कीध, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतम राम कुण दन; अंति: ते दिन परमानंद पद पाशुं, गाथा-७. ३. पे. नाम. बाहुजिन फाग, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: परणै रे बाहु संग सैभरी रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११२२९१. गोडी पार्श्वजिन वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२१४११.५, ९४३१). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपर गोडीजी इतिहास वर्णन, म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी जागे; अंति: प्रीतविमल राम जपंतै, ढाल-५, गाथा-५५. ११२३०५ (#) बंभणवाडजी रो छंद, अपूर्ण, वि. १८३८, पौष कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्रले. मु. रूपचंद (गुरु मु. सकलसोम, तपालोहडीपोसाल गच्छ); गुपि. मु. सकलसोम (गुरु पं. चंद्रसोम, तपालोहडीपोसाल गच्छ); पं. चंद्रसोम (गुरु आ. सोमसूरि, तपालोहडीपोसाल गच्छ); आ. सोमसूरि (तपालोहडीपोसाल गच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:छंदपत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१४४०) जाइसं पुस्तकं दृष्ट्वा , जैदे., (२२४१२, ९-१२४१६-३४). महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, म. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हुइ हर्षमाणिक्य मुनि, गाथा-३७, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-३३ से है.) ११२३१३. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प.१, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१२, ११४२९). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावकतणइ; अंति: (-), (पू.वि. अतिचार का प्रारंभिक पाठ दिया है.) ११२३१७. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२०.५४१२, १४४१८-२२). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धरमना; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ११२३३१ (+) जातकपद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२३.५४११, ११४३६). जातकपद्धति, म. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेशं; अंति: (-), (प.वि. श्लोक-१८ अपूर्ण तक ११२३३४. (+) पुरुषलक्षण चौपाई, आदिजिन सवैया व संभवजिन सवैयादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१२, १८४५३). १.पे. नाम. पुरुषलक्षण चौपाई-सामुद्रिकशास्त्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८८५, माघ शुक्ल, ३, ___ ले.स्थल, ममोइ, प्रले. मु. कमलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ग्रहे वाधे बुद्धि अपार, चौपाई-३८, (पू.वि. चौपाई-२७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गुणे गंभीर अचलज्यू धीर; अंति: मुक्तिवरकंत ऋषभ पदधारी, सवैया-१. ३. पे. नाम. संभवजिन सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यह संभवनाथ अनाथ को नाथ; अंति: जिनवत तात कं सेवक तेरो, सवैया-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २६९ पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: विलोक वाला मुखचंद्र बिंब; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सवैया-२ तक लिखा है.) ११२३३७. सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४११.५, ११४४१). सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सरसति सामण वीनवु आपो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११२३३८. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४१२, १२४२६-३२). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से ३४ अपूर्ण तक है.) ११२३३९ (+) नववाडी स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १८१५, चैत्र शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १५४४८). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., पंचम वाडी गाथा-५ अपूर्ण से है.) ११२३४१. ज्योतिषचक्र विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१ से २)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:जोतिकच०., दे., (२४.५४१२, १४-२१४४०-४८). ज्योतिषचक्र विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अढाई द्वीप गत सूर्य संख्या से मांडला विषय अपूर्ण तक ११२३५० (+#) मूत्रपरीक्षा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नागौर, प्रले. मु. शिवदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १७७३८). मूत्रपरीक्षा, सं., पद्य, आदि: रात्रे चतुर्थयामस्य; अंति: (१)कूपः जल तुल्यं संजायते, (२)पाणी समान मूत्र थाय, श्लोक-१८. मूत्रपरीक्षा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: रात्रिने चोथे पहर पाछिल; अंति: पानी समान मूत्र थाय. ११२३५१. (#) महपति बांधवाना दाखला, संपूर्ण, वि. १९५८, पौष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. डीसानगर, प्रले. श्राव. पानाचंद माणकचंद कोठारी; पठ. मु. ज्ञानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१.५४११.५, २०४५७). मुहपत्ति बांधने के शास्त्रीय पाठ संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सूविहित मुनी जाणिए मांडे; अंति: सक्र० निर्वद्य भाषा बोले. ११२३५४. नमस्कारमंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्रले. मु. लब्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नमस्कार., जैदे., (२१.५४११.५, १७४३३). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., "एसो पंच नमोक्कारो" पद से है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ते भणी सिद्धवडा कहीइ, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ११२३६८.(#) औपदेशिक लावणी, सीमंधरजिन लावणी व तीर्थंकर बल सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२, फाल्गुन, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. हीरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, ८-१३४३४-४०). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: किसी की खोटी नही कही; अंति: जिनदास० जिनदरसण चइयेरे, गाथा-४. २. पे. नाम. सीमंधरजिन लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्राव. जैन, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर नर मनकुं समझाना रे; अंति: भवो भव सोइ साहेब धानाइ, गाथा-३. ३. पे. नाम. तीर्थंकर बल सह टबार्थ, पृ.१आ, संपूर्ण. जिनबलविचार छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वीर्य बोलो विशालो; अंति: अंगुली नेमीनू अग्रते तु, गाथा-१. जिनबलविचार छंद-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: बार नरे मिली एक; अंति: करनी टचलीने अग्रे हवे बल. For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११२३७७. जिनपंजर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., दे., (२२.५४११.५, ११४२५). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५, (पृ.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है.) ११२३७९ (+) जीरावलापार्श्वनाथ स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, ११४२८). १. पे. नाम. जीरावलापार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ___ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावलातीर्थ, मु. विजय, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: जीरावलो गुणह रंग गायो, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन-१० भववर्णन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मु. नित्यप्रकाश, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सारद हो पाय प्रणमेस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११२३८० (+#) २४ जिन पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, १४४३२). २४ जिन पूजा, मा.गु., पद्य, आदि: जिन वाणी आणी हिय वलि; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., सुमतिजिन पूजा अपूर्ण तक है.) ११२३८४ (+) जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१.५४११.५, १३४२८). जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० तक है.) ११२३८५. २४ जिन नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९०२, भाद्रपद शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२३.५४१२, १२४२६). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: श्रीवीरभद्रं दिस, श्लोक-२८, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., श्लोक-१४ अपूर्ण से है.) ११२३८६. पोसो लेवानी विधि, पोसापारवा विधि व साधु भिक्षा फल श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११.५, ११४३६). १.पे. नाम, पोसोलेवानी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषध लेने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पहलि इरियाइ पडकमी धनो; अंति: उपतठाउ उपत पडलेहं. २. पे. नाम. पोसापारवा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पौषध पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इरियावहि पडिकमि जेइ; अंति: ते सहूं मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. साधु भिक्षा फल श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. साधु भिक्षा फल श्लोक-विष्णुपुराणोक्त, सं., पद्य, आदि: वेद विद्यां द्विजातीनां; अंति: ग्रास दानेपि तत्फलं, श्लोक-१. ११२३८७. (+#) सुविधिजिन स्तवन व सिद्ध स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. कृति के अंत में "हीरवीजेराधणपरना" लिखा है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२, १५४३१). १.पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १९०२, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, ले.स्थल. राधिकापुर. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: (-); अंति: गुण देवाधिदेवना रे, ढाल-२, गाथा-२९, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्धनी स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १९०२, भाद्रपद कृष्ण, १०. सिद्धपद स्तवन, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जगतभूषण विगत दूषण; अंति: ध्यानथी सिद्धदर्शनं, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २७१ ११२३८८. (+) मृगापुत्र सज्झाय व महावीरजिन नीशालगरणुं स्तवन, अपूर्ण, वि. १९०६, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)-१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४४१२, १६x४१). १. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: होज्यो तास प्रणाम रे, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीरजिन नीशालगरणुं स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-निसालगरj, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनजिन आणंदा रे सखी; अंति: प्रभुजीनें चरणे नमुंए, गाथा-२०. ११२३८९ (+#) आदिजिनविनती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११.५, ८x२२). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११२३९२ (#) देवालय तथा देवाचरण प्रतिष्ठा संक्षेप विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-३(२ से ४)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८x१२.५, ९४२५). जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि-खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम देव मंदिर कुं पूत; अंति: धूपदानं सप्तस्मरणम्, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., प्रथम दिन पूजा अपूर्ण से द्वितीय दिन पूजा अपूर्ण तक नहीं है व 'जीरावला पार्श्वनाथाय नमः इति लिखितं' पाठ तक है.) ११२३९४. अरणिकमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२१.५४१२, ८४७-१९). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मनवंछित फल सीधो जी, गाथा-१०, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) ११२३९५ (#) अर्द्धपुद्गलपरावर्त्तनविचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१२४११, १६x२४). अर्द्धपुद्गलपरावर्त्तनविचार सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन उपदिसैं सुल; अंति: मोहन पभणई तो उपसम पीजेंजी, गाथा-१३. ११२३९६. २४ जिनपरिवार व श्रावकगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३४१२, १९४३५). १.पे. नाम. २४ जिन परिवार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:राजाराणीरो कटुबो. ___ मा.गु., पद्य, आदि: राजा राणी रो कुडुबो घणो; अंति: जणेश्वर धन हो नचीता जी, गाथा-१४. २. पे. नाम, श्रावकगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. मेवाडी मनि, पहि., पद्य, आदि: तो इणमें आतमा जोडी सचित; अंति: मनि० भवी भव आवसग सुखदाई, गाथा-१३. ११२३९७. नवस्मरण व जीवविचार स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१,३ से ४)=२, कुल पे. २, प्रले. गंगादास आत्माराम साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२३.५४१२, १०४३०). १.पे. नाम, नवस्मरण, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. तिजयपहुत्त स्तोत्र गाथा-९ अपूर्ण से नमिऊण स्तोत्र गाथा-१० अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. जीवविचार स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, म. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: (-); अंति: वृद्धिविजय० आनंदकारी, ढाल-९, गाथा-८३, (पू.वि. ढाल-९ गाथा-१० अपूर्ण से है.) ११२३९८. विपाकसूत्र-श्रुतस्कंध २ सुखविपाक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१२, १२४३६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११२३९९ प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४१२, १३४३४). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए अभत्तट्ठ; अंति: असित्थेण वा वोसरइ. ११२४०० (#) जैनबिंब प्रवेश प्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, १२४३६). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम गुरु शुक्र वच्छ; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., "ॐ रोग जल __जलणधि" पाठ अपूर्ण तक है.) ११२४०१. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२२.५४१२, १३४२९). १. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. कल्याणविजय गुरुगुणस्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने अंत में पार्श्व स्तुति कृति नाम दिया है. कल्याणविजय गुरुगुण स्तुति, मु. कल्याणविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मनवंछित पूरण कल्पतरु; अंति: करयो ___सानिध धर्मतj, गाथा-४. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीलवधिमंडण शंति धणी तस; अंति: श्रीसंघ सहुना विघनहरी, गाथा-४. ४. पे. नाम. पंचजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ११२४०३. (+#) श्रीपाल रास चयनित गाथा संग्रह का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११.५, २१४४५). श्रीपाल रास-चयनित गाथा संग्रह का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: एहथी पहिली जे विधात्राइ; अंति: विरोध ___करवो युक्त नहीं, (वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया गया है.) ११२४०४. (#) लावणी, सज्झाय व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, कुल पे. ११, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४११.५, २६x४८). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ६अ, संपूर्ण.. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्यसु आय मिल्यो मोहे; अंति: जीनदास नही पुन्य एक रति, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ६अ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: सुकृत की बात तेरे; अंति: जीनदास० जोर तेरो नही रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ निर्वाणी नम; अंति: जिनदास० लगी मेरी थाणी, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ.६आ, संपूर्ण. म. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: बीत गयो नरभव को अवसर; अंति: आगमसेती अलग फर्यो, गाथा-४. ५. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: कब देखं जिनवर देव; अंति: जिनदास सुनो जिनवाणी, गाथा-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ.७अ, संपूर्ण.. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम तजौ जगत का ख्याल; अंति: उपदेश धरे मत कांणा, गाथा-४. ७. पे. नाम. सात व्यसननिवारण लावणी, पृ. ७अ, संपूर्ण. ७ व्यसननिवारण लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: तजो ए सात कु विसन; __ अंति: दीवान लावणी सब कुं सुखदाई, गाथा-४. ८. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पहिं., पद्य, आदि: खबर नहीं है जग में; अंति: जिनक विनति अखेमल की, गाथा-११, (वि. गाथांक नहीं दिया गया है.) For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org ९. पे नाम औपदेशिक पद मायावी संसार, पृ. ७आ, संपूर्ण मु. राम शिष्य, पुर्हि, पद्म, आदि एह जग सुपने की माया अतिः प्रभु के चरणां चित लावा, गाथा-५. " १०. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय-साधु आचार, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी है पर उपगारी रे; अति इम कहे हे उत्तम भारी, गाथा ८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११. पे नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ऋ. मनरुपजी, मा.गु., पद्य, वि. १९१२, आदि: मेतारज वंदु पाप; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११२४०५. इलाचीकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले स्थल. रोजरा, प्रले. रामा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३x१२, ११४३५). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्म, आदि नाम इलापुत्र जाणीए अति लब्धिविजय गुण गाय, गाथा - ९. ११२४०६. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८१९, आश्विन शुक्ल, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, प्रले. मु. खिमाविजय (गुरु मु. ज्ञानविजय); गुपि. मु. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२१.५x११.५, ३४२७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: अनंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा ६०, ( पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है., गाथा-४९ अपूर्ण से है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: होइ पुच्छाक० पूछनहार होइ, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र पे. ३. १९२४०७. शत्रुजयतीर्थवृद्ध स्तवन, औपदेशिक कवित्त व औपदेशिक गीत, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल प्र. वि. पत्र १४३ = १, जैदे., (२०.५x१२, २१x१४). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ वृद्धस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ सेजेजी रहि; अति: जुहास्याजी तिण आतम सार्या, गाथा - १४. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त - श्रावक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. . रुघपति, रा., पद्य, आदि: श्रावक देख्या सकज जती; अंति: रूघपति० जडजडजी मै वारणा, गाथा- ४. ३. पे. नाम औपदेशिक गीत-कलियुग, पृ. १आ, संपूर्ण २७३ मु. रुघनाथ, रा., पद्य, आदि: आज कलुकाल मांहे विद्या; अंति: रुघनाथ तिके चेला जातवंत, गाथा-८. ११२४११. (+) सिद्धचक्र स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३X११.५, ११-१५X३६-४३). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुसलवर मंदरु ए; अंतिः ए दिन दिन वाधे नूर, गाथा-८. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि नवपद महिमा सांभलो भविभाव; अंतिः नयविमल कहड़ कर जोडि हो, गाथा - १६. ११२४२२. प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२०.५४११.५, १०x२२). १. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि (-); अति: (-), श्लोक-३. For Private and Personal Use Only २. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १९२४२३. (*) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (१७.५x१२.५, ११x१७) Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., श्लोक-६ तक है.) ११२४२६ (+) आदिजिन पद, साधारणजिन पद व चैत्यवंदन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२०x१२, ५-८x२१-२५). १. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: तुम हो जिनंदा देवा; अंति: रुपचंद० तुंम सुख धंधा, गाथा-३. २.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. हर्षकुशल, पुहि., पद्य, आदि: जिनवर देख दृगन सुख पाए; अंति: हर्षकुसल० चरनन चित लायो, गाथा-३. ३. पे. नाम. चैत्यवंदन विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहि.,प्रा.,सं., गद्य, आदि: प्रथम निसही कहीने खमत; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम सकलकुशलवल्ली चैत्यवंदन अपूर्ण तक ११२४३४ (#) बंधउदयउदीरणासत्ता विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, ४०x२६). बंधउदयउदीरणासत्ता विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गुणस्थानक नामानि मिथ्यात; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उदय विचार तक लिखा है.) ११२४३८. सामायिक ३२ दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अमीचंद; लिख. मु. सुखसागर, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ९४३९-४४). सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: विवेक विना सामायिक करजो; अंति: ११२४५९ (#) मृगावतीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३-३२(१ से ३२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १३४३६). मगावतीसती चौपाई, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. खंड-३ ढाल-९ ___ अंतिम दोहा अपूर्ण से ढाल-११ गाथा-४ तक है.) । ११२४६३. राजीमती इकवीसा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. मलुकचंदजी; पठ. सा. वीराजी (गुरु सा. रामकवरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सीझा०., दे., (२२.५४११, १५४४३). राजिमतीसतीइकवीसा, म. चोथमल ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८५२, आदि: सासननायक सुमरिय; अंति: चोथमल. ____ मन चलीयो तुं घेर, गाथा-२१. ११२४६४. संजती स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपारस्वनाथजी., जैदे., (२२.५४९.५, १४४३५). संयति सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: कंपिलपुर अति दीपतो; अंति: कहे मुनी ऋषभदासो रे, ढाल-२, गाथा-२२. ११२४६५. बहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४१०.५, ९४२९). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"मानसी महानसी षोडस" तक है.) ११२४६९ (+#) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी __है, जैदे., (२३.५४११, १३४३१). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक है.) ११२४७५ (#) जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १६x४०-४३). जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्री ऋद्धिवृद्धि; अंति: (-), (पू.वि. करणज्ञान वर्णन अपूर्ण तक For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११२४८०. आदिजिन व पार्श्वजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५-१४ (१ से १४) = १, कुल पे. २, जैवे. (२१.५४१०, १०x२६). १. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १५अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव अति ऋषभदास गुण गाव, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १५आ, संपूर्ण. २७५ मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिनेसर पूज करू; अंति: सुख संपति हितकार, गाथा-४. ११२४८१. स्थूलिभद्र सज्झाय व सपखरो गीत, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) = २, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है, जैवे. (२२x१०.५, ११४२८). "" १. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. स्थूलभद्रमुनि सज्झाब, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: बालम बेहला आवज्यो, गाथा-४, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सपखरो गीत, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. अन्त में ज्योतिष से सम्बन्धित कुछ अस्पष्ट लिखा है. क. भैरुदास, पुहिं., पद्य, आदि: भ्रंगी उमंगी सुचंगी रंगी; अंति: चुगली मे कीज्यौ कोई आण, दोहा-७, (वि. परिमाण गिनकर लिखा गया है.) ११२४८२. सत्तरिसयजिन स्तवन, अपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-२ (१) = १, पृ. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X१०.५, १३X५२). सत्रसयजिन स्तवन, पं. विनयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण से ३४ अपूर्ण तक है.) . ११२४८३. (4) बगलामुखी स्तोत्र व पार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४-३ (१ से ३) = १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x११, १२४३९). 19 १. पे. नाम. बगलामुखी स्तोत्र, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. सं., पद्य, आदि (-); अंतिः उदेयं यस्य कस्यचित् श्लोक-१२ (पू. वि. गाथा ११ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पू. ४-४आ, संपूर्ण मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि सोनानी अंगी है सुंदर, अंति रामविजय शुभ सौसने जी, गाथा- १०. ११२४८४. (+) साधु अतिचार व आदिजिन पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१० (१ से १०) = १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४४). १. पे. नाम साधु अतिचार, पृ. १९अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. साधुपाक्षिक अतिचार-मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (१)मिच्छामि दुक्कडं, (२) तप लेखे पोचाडवो, (पू.वि. पाठ- "कीधो पदसंपद अक्षरनिरता उचर्या नहीं" से है . ) २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण. मु. विनीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि धुलेवे सहरे श्रीऋषभ जिणंद, अंति संघ में होयज्यो जयजयकारी, गाथा ४. ११२४८५. (#) श्रावकपाक्षिकअतिचार का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१५ (१ से १५ ) = ४, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैये. (२४४११, १९४४३-४८). " श्रावकपाक्षिकअतिचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भोगोपभोग व्रत अपूर्ण से सिद्ध जीव For Private and Personal Use Only समकित वर्णन अपूर्ण तक है.) ११२४८६. (+) रोहिनीतप स्तवन व औपदेशिक श्लोक, अपूर्ण, वि. १८६१ श्रावण कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, कुल पे. २, प्र. मु. हर्षसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४.५x१०.५, १४४४१). १. पे नाम रोहिणीतप स्तवन, पू. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. - मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि (-); अंतिः हिव सकल मन आस्या फली, डाल-४, गाथा २६, (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: कर्त्तव्य देवपूजा श्रुत; अंति: जिनपतिगदित पूत निर्वाण, श्लोक-१. ११२४९९ (+) शंखेश्वरपार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११,११४३०). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ११२५०० (+) संसारदावानल स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११, १०४२५). संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ११२५०१ (+) २४ ठाणा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११.५, ११४३०). २४ ठाणा विचार, मा.गु., प+ग., आदि: गइ इंद्रीए काये जोए वेए; अंति: (-), (पू.वि. "१ देसी ११ सविउव्विदुग्ग" पाठ तक है.) ११२५०२ (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १०, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४४१२, १७४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण तक है.) ११२५०३ (#) चतुःशरण प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११, ८४३४). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से गाथा-४९ अपूर्ण तक है.) ११२५०५. (+#) विजयपताका यंत्राम्नाय स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १३४३७). विजयपताका यंत्राम्नाय स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐह्रीं क्लीं मंत्ररूपे; अंति: निगदितं विदितं जिनशासने, श्लोक-९. ११२५०६. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३४११.५, ९४२८). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद; अंति: (-), श्लोक-४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ११२५०७. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ व ४५ लाख योजन प्रमाण ४ वस्तु, अपूर्ण, वि. १९०४, माघ शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२-१०(१ से ३,५ से ११)=२, कुल पे. २, प्रले. मु. गजेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११, ३४२४). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ४अ-१२अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक व गाथा-१८ अपूर्ण से ५१ अपूर्ण तक नहीं है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः सीद्धांत माहेथी कह्यो छे. २. पे. नाम. ४५ लाख योजन प्रमाण ४ वस्त, पृ. १२अ, संपूर्ण. ४५ लाखयोजन प्रमाण-४ वाना, मा.गु., गद्य, आदि: एक सिद्धशिला बिजो मनुस; अंति: जोजनमे सीद्धनो विचार. ११२५०९ पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१.५४११, ११४२६). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: समयसुंदर० भाव प्रसंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५. ११२५१०. खंधकजीरी ढाल व त्रिसलामाता १४ स्वप्न स्तवन, अपूर्ण, वि. १९५९, आश्विन शुक्ल, १५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. दीपचंद ऋषि (गुरु मु. तोडरमलजी); गुपि. मु. तोडरमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४११.५, १७X४०). १.पे. नाम. खंधकजीरी ढाल, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:खंदक. For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११ आदि (-) अंति: जेमल० कोय करमन छोड़े केहने, ढाल-४, (पू.वि. ढाल २ गाथा - ११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. त्रिसलामाता १४ स्वप्न स्तवन, पू. ३अ ३आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशला हरष घरे, अंति: ठबीया अवतरियाजी गाथा १९. ११२५११. (f) ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी- दूहा, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२१.५X११.५, २२x३५). ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, आ. हर्षसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: तेण काले ने तेण समः अति वीरजीणंद वखांणीवो, गाथा - २१. ११२५१९ भुवनदीपक सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २)=१, दे.. (२४४११, ५X३४-३८). 7 भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३५, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., श्लोक-१७ अपूर्ण से २७ अपूर्ण तक है.) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१७ के टबार्थ अपूर्ण से है व श्लोक-२३ तक का टबार्थ लिखा है.) ११२५२१. (०) रिषभ लावणी, ऋषभजिन लावणी व भोजराजा श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २३x११, १५X३५). २७७ १. पे. नाम. रिषभ लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. आदिजिन लावणी-केसरियाजी, क. ऋषभदास संघवी, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुणज्यो वाता सहा सेवजी मत; अंति: रिषभदास० कीया तब फजरा मे, गाथा - ९. २. पे नाम. आदिजिन लावणी केसरियाजी, पू. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. क. ऋषभदास संघवी, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुणज्यो वाता सहा सेवजी मत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम भोजराजा श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदिः येषां न विद्या न अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. 'भूवी भार भूता मनुष्य' पाठांश तक लिखा है.) ११२५२५ (+४) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४४१०.५, १६४३९). " १. पे. नाम. शंखेश्वरजी स्तवन, पृ. ९अ. संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेसरू जगदीश, अंति: अविचल अक्षय राज, गाथा- ७. २. पे. नाम. पंचासरजी स्तवन, पू. ९अ ९आ, संपूर्ण, शीतलजिन स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि नंदानंदन जुगदाबंदन, अंति रण रमण सुखराज पोतानो लीधो, (२३×११.५, ११४३१-३८). १. पे. नाम. सिद्धाचल पद, पू. १अ संपूर्ण. गाथा-८. ३. पे. नाम. पद्मनाभ स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. पद्मनाभजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीपद्मनाभ जिनराया; अंति: पद्मवि० अक्षयपद लेवा, गाथा-८. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सुरनारी सरखी मीलीजो काई; अंति (-) (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ११२५२६. (#) पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. ज्ञानउद्योत, मा.ग., पद्य, आदि: नरनारी सिधाचल वंदो रै नरन; अंति: भक्ति करुं इक तारी. गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासकि पासकि पासकि; अंति: ऋषभविजय० तमसु लागी आसकी, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण. __ अभयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गौडी गाइयै मनरंग एक; अंति: मांहे कदे न हवे चित्तभंग, गाथा-३. ४.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जायफल तेलीयां मोट कोरीने; अंति: पहला खवरावीइ० प्रह १ थाई. ११२५२७. (4) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १२४३०). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-९ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११२५२८. (#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११.५, १४४४३). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सुमती आपो सुर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ११२५३१. वसंत गुरुगुण गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२०.५४११.५, १३-१७४२८). वसंत गुरुगण गीत, म. गणेशीलाल, रा., पद्य, वि. १९४३, आदि: पांच परमेष्टी देवको ध्याउ; अंति: गणेसीलाल० तारे घने नरनार, ढाल-१, गाथा-३८. ११२५३२. विविध प्रश्नोत्तर-आगमगत चर्चा, अपूर्ण, वि. १९३७, कार्तिक शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, ले.स्थल. देहरादून, अन्य. दयानंदसरस्वती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४३=१., दे., (३०४२०, २३४२५). आगमगत चर्चा बोल-विविध प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विस्तरेण सुधीवर्येषु, (पू.वि. प्रश्न-२ अपूर्ण से ११२५३३. (+) स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १९२७, आषाढ़ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:सनात्र., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२२.५४११, १४४३५). स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.ग., पद्य, वि. १६वी, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: उतारी राजा कुमारपाले. ११२५३४. १४ स्थानक चतुर्दश स्वाध्याय, पार्श्वजिन पद व उदरविकार निवारण औषध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४११.५, १०४२६). १. पे. नाम. १४ स्थानक चतुर्दस स्वध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ समूर्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम गणधर प्रणमीया पाय; अंति: भणै सुर्णे तस लील विलास, गाथा-१२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, वि. १८७५, आदि: डारु गुलाल मुठी भरके मेरो; अंतिः जिनराज० पतीत उधारण पास, गाथा-६. ३.पे. नाम. उदरविकार निवारण औषध, पृ. २आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: हीग टां १ साजी टां २ जव; अंति: रोग जाय चुरण श्रीकार छे. ११२५३५. थंभणपुर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४११.५, १०४२७). For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २७९ पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: अमरविसालो० पारसनाथ सोसालो, गाथा-८. ११२५३६. (#) दर्शन स्तोत्र व नमस्कार महामंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४११, ९४२४-२९). १.पे. नाम, दर्शन स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९२२. सं., पद्य, आदि: दरसण देव देवस्य दरसण; अंति: भोगज्ये पाव मोक्ष तीर बाण, श्लोक-११. २. पे. नाम, नमस्कार महामंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अर्हताण णमो सिद्धाणं; अंति: पढमं होय मंगलं, पद-९. ११२५३७. प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२३४११.५, १८४३८). प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२७ अपूर्ण से ५९ अपूर्ण तक है.) ११२५३८. संथारापोरसीसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१४११, १२४१४). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ११२५४०. अरहन्नक रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, ले.स्थल. भूजनगर, प्रले. ग. गंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १२४२७). अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: (-); अंति: रे काउ रास विलास, ढाल-८, (पू.वि. ढाल-८ के दूहा-२ अपूर्ण से है.) ११२५४४. (#) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१४४११, १२४१२). घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ॐ नरवीर ठः ठः ठः स्वाहा. ११२५५४. (#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०, ११४३३-३६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. कांड-१ श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) ११२५५५. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सत्रु०., जैदे., (२४.५४११, १०४३४). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ तक है.) ११२५६१ (#) श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४०). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणे; अंति: (-), (पू.वि. स्थूल विरमणव्रत तक है.) ११२५६३. दिनमान चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १०४३८-४२). दिनमान चौपाई, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण प्रणमी पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ तक ११२५६४. (#) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:श्रीगोडी पार्श्वस्त., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११, १४४३९). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११२५६५ (+) प्रथम महाव्रत, अदत्तादान पापस्थानक सज्झाय व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १३४२५-३०). १. पे. नाम. प्रथम भावना सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रथम महाव्रत सज्झाय, मु. जस, मा.गु., पद्य, आदि: महाव्रत पहेलुं मुनिवर; अंति: जस वाधे जग मांहो जी, गाथा-७. २. पे. नाम, अदत्तादान स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. अदत्तादान पापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चोरी व्यसन निवारीइं; अंति: जस लहे. पुन्यसुं प्रेम के, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: चेतन एक बात सुण लेना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११२५६८. प्रहेलिका कवित्तद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रारंभ में काणोड नक्षत्र यंत्र दिया हुआ है., दे., (२१.५४११, ११x१९-२२). १. पे. नाम. प्रहेलिका कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: पग तुरंग नही तुरी लंक; अंति: गद० गुणीयना गुणवंत धरे, गाथा-१. २.पे. नाम. प्रहेलिका कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. काल, पुहिं., पद्य, आदि: षट् रति एकमाष माष इग्यारा; अंति: काल० अर्थ करो पंडित जनि, गाथा-१. ११२५७४. चोवीसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२३४११, १०४३२-४३). २४ तीर्थंकर स्तवन, म. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुणिंद तास सीस पभणै आनंद, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ११२५७५ (+#) नेमराजिमती होरी व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१७४११, २२-२५४१९-२२). १. पे. नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जवाहरहंस, पुहिं., पद्य, आदि: सांवरा की वाणी अमृतसम; अंति: अवारहंस जी मथुरा सेहरमे, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. जवाहरहंस, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल को प्यारो पत्री; अंति: जुवारहंस० जोडी अविचल राज, गाथा-९. ११२५७७. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१.५४११, १२४११). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिनेसर चरणकमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ११२५८६ (+) बाहुजिन स्तवन व हरीतकी साधनविधि श्लोक सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (१४४११, १३-२०४२०-२४). १.पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रामति रमवा हूं गई; अंति: जिनहर्षन्थयो अवतार रे, गाथा-८. २.पे. नाम. हरीतकी साधनविधि सह अर्थ, पृ. १आ, संपूर्ण.. हरीतकी साधनविधि श्लोक, सं., पद्य, आदि: ग्रीष्मे तुल्य गुडा च; अंति: नश्यति ते शत्रव, श्लोक-१. हरीतकी साधनविधि श्लोक-अर्थ, पुहि., गद्य, आदि: ग्रीष्म ऋतु जेठ आसाढ; अंति: साधन कीजै सर्व रोग नाश. ११२५९५. पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १६९२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्रले. मु. सागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०, ७४३०-४१). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: गणोयं सत्यापास केवली, श्लोक-७७, (पू.वि. श्लोक-१७४ से है.) For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११२५९७. (+#) रघुवंश सह सगमान्वयाप्रबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-२९(१ से २९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित होने से पत्रांक अनुमानित दिया है., पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२३४१०, ६४३०-३३). रघुवंश, क. कालिदास, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-३ श्लोक-३३ अपूर्ण से श्लोक-४१ अपूर्ण तक है.) रघुवंश-सुगमान्वयाप्रबोधिका टीका, मु. सुमतिविजय पंडित, सं., गद्य, वि. १६३०, आदि: (-); अंति: (-). ११२६०२. (+) मौनएकादशीपर्व व शत्रंजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९.५४१०.५, १३४२९). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १४अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १६८१, आदिः (-); अंति: मगिसिर सुदि इग्यारसि वडी, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. म. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्री विमलाचल सिरितिलउ आदि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११२६१०. पर्युषणपर्व स्तुति व प्रास्ताविक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. चंडावल, प्रले. पं. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७.५४८, ६-११४२१-३०). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद जिन पूजा रचिने; अंति: पूरवे देवी अंबाइजी, गाथा-४. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: हे वड भागण राधका ते कोण; अंति: हुओ तरे खांधे पडे कुहार, गाथा-३. ११२६१२. २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२१.५४९.५,७-११४२६). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जणेसर प्रणमुं; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११२६१३. (+) लक्ष्मीसूरि बारमासा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. प्रीतसोमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२१.५४११, १०४२२-२६). लक्ष्मीसूरि बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जे लखमीसूरो रे गछराया रे, गाथा-१४, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-८ अपूर्ण से है.) ११२६१४. (#) सरस्वतीदेवी छंद व मांगलिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४१०, १९x१९). १. पे. नाम, सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धरा उधरणं वेद; अंति: वदे हेम इम वीनती, गाथा-१६. २. पे. नाम. मांगलिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वत तोसू पसाव लाग पग; अंति: कीलोल एहवी पसरे भरपूर, पद-१. ११२६१५. शनिश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १९०३, आषाढ़ शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. आंजारनगर, दे., (१९.५४१०.५, १९x१५-१८). शनिश्चर छंद, पंडित. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ अं क्रौयं भारतिः; अंति: हंस० सर्व सिद्धि लहे, गाथा-१४. ११२६२०. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (३३.५४९.५, ३४४१२-१६). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. अमरहंस, मा.गु., पद्य, वि. १९५३, आदि: आज भले दिन उगो रे; अंति: (१)अपार हो वरत्या जे जे कार, (२)सारस रहे मंजन पातीक दर, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११२६२४ (#) १८ भार वनस्पति गाथा, नेमराजिमती बारमासा व ज्योतिष गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२०.५४९.५, ८x२१-२७). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. १८ भार वनस्पति गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. क. शुभ, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम कोडि अडत्रीस लघमण; अंतिः कवि शुभ० कहे मोटा यति गाधा-१, (वि. अंत में सुभाषित श्लोक दिया है.) २. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. १आ, संपूर्ण. "" मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमं रे गीरनारे नंदन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-३ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. ज्योतिष गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: मघा मगसरो हस्त स्वाति; अंति: विवाहे मंगल प्रदा, गाथा-१. ११२६३१. (+) औपदेशिक सज्झाय- गर्भावास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित, जैदे. (१७४१०, १५X३५). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा - २५ अपूर्ण से ५९ अपूर्ण तक है व प्रतिलेखक ने गाथा- ३६ से ४३ तक नहीं लिखा है.) १९२६४१. अर्हत् स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., दे. (१६.५४११.५. १५४२८). अर्हत् स्तुति, मु. माधव मुनि, हिं., पद्य, आदि मनाऊँ मैं तो श्रीअरिहंत अंतिः अरु सुख सादि अनंत, कडी-७, ११२६५१ (+) सरोवर- जिनालयनिर्माण कवित्तादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१X१०, १०X३०-३९). १. पे. नाम. सरोवर- जिनालयनिर्माण कवित्त-राव जयसिंह कारापित, पृ. १अ, , संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि संवत संकरवीर चैत्र सुद ४ अति संघ राव जेसंग देरा कह्या, गाथा २. " २. पे. नाम. पृथ्वीराज चौहाण कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. पु,ि पद्म, आदि: ओइ चवाण चहूयाण जाऐ सैया अतिः रावणड तपे ओ चाण तेवै, गाथा- १. ३. पे. नाम. चैक विचार पद, पृ. १आ, संपूर्ण. दिशाभ्रमण पद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रतम चक पुरवह मरण मन सिध; अंति: वधारणी आया चैक वीलंब कर, पद- ३. ४. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पू. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. • ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सूरज एक आउ रे साहस देखवा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११२६५९. (+०) व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ६.५ (१ से ५) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. 7 प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३x११, १४X३४). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान श्लोक-१९ का वर्णन अपूर्ण से श्लोक-२२ का वर्णन अपूर्ण तक है.) ११२६६३. २१ मिथ्यात्व भेद व ८ भंगी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१८ (१ से १८) = १, कुल पे. २, लिख. ग. रामविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी नवका०. दे. (२३.५४११, ९३१). १. पे नाम. २९ मिध्यात्व भेद, पृ. १९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अमुत्ते मुत्त सत्ता कहीइ, (पू.वि. मात्र अंतिम भेद अपूर्ण है.) २. पे. नाम. ८ भंगी, पृ. १९अ - १९आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व ८ वचन भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: न जाणइ न आदरइ न पालइ; अंति: ३ सुश्राविका ४. १९२६७०. होडा चक्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. दे. (२०.५x११, १२x२६). " , होडाचक्रविलास - भाषा, मु. सुंदर ऋषि, मा.गु., प+ग, आदि माता सरस्वति प्रणमीए अति (-). (पू.वि. यम घंटा योग वर्णन तक है.) For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २८३ ११२६७९ (+) देववंदन विधि व पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१x१०.५, १५४३२). १.पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८८१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, गुरुवार. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पर्यंत संपूर्ण कहिवा, (पृ.वि. काउसग्ग नमोर्हत्सि० थुई अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वंदेउताइ दिवसी कीजै; अंति: पछे नित्थार पारगा होह, (वि. संक्षिप्त विधि.) ११२६८० (+#) मोतीकपासीया संबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, ४-१२४३७-४३). मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण से है व ढाल-५ गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ११२६८४. (#) स्तुति व सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ९, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (१९४१०.५, १३४२०). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: दो दौ मृदंग सुरंग गडि गृध; अंति: श्रेणीक जीतसी सज सजै, गाथा-१. २. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया-समस्यागर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: रेयण पीआ की रही रंग संग; अंति: डुबत हाथी हथेरी को पीनी, गाथा-१. ३. पे. नाम. कृष्णभक्ति सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. पृथ्वीराज, पुहिं., पद्य, आदिः श्रूगी दिन दिन थुरत् फपरत; अंति: मृदंग तत् नासत् कानइआ, गाथा-१. ४. पे. नाम. कृष्णभक्ति सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सजलसी नीसी कजलसी नीसी; अंति: सूट सल्यो मन मत कोहथी, गाथा-१. ५. पे. नाम, शृंगाररस सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. क. चंद, पुहि., पद्य, आदि: तोरो मुख जसो अली चंद; अंति: चंद कहि० पट सोडि हठीली, दोहा-१. ६. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: मुआं पीछे सीआल कुकर, गाथा-१, (पू.वि. "जीवता जागतां" पाठांश से है.) ७. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: खोद कोदाल छे सडिएरा सब; अंति: ध्रमसी० कि साथ न जानु, गाथा-२. ८. पे. नाम. घातचंद्र विचार सवैया, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. केशव, पहि., पद्य, आदि: घातचंदक होए ते सण हो; अंति: मीन कहि केशव वखांने हि, गाथा-१. ९.पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: दान दया विन मुरख बांभण; अंति: (-), (पू.वि. "बारह बंध कुआमांहि" पाठ तक है.) ११२६८५ (+) सिद्धांतरत्निका व्याकरण की अनिट्कारिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२१४१०, ११४३६-४२). सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अनिट् स्वरांतो भवति; अंति: विद्ध्यनिट्स्वरान्, श्लोक-११, (वि. अंत में सुभाषित श्लोकादि दिया है.) ११२७२७. अष्टापदतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२३४१०.५, ५४४१-४७). अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: जिनेंद्र वधते नेहो जी, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ११२७२८. (+) नेमराजुलपक्षरूप स्तवन व पंच परमेष्ठी नमस्कार स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१.५४११, १२-१५४४०). For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. नेमराजुलपक्षरूप स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुख कमलें रे सरसती; अंति: रंगविजय० मिलस्यै रे, गाथा-२३. २. पे. नाम, पंच परमेष्ठी नमस्कार स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: संसार सागर रूपेण मीनरूपेण; अंति: सालसी कुण अवसर गया जकानीय, गाथा-५. ११२७३४. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२२४१०.५, १२४२६). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. तप वर्णन अपूर्ण से सामाइक वर्णन अपूर्ण तक है.) ११२७३९. द्वात्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. प्रधानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७.५४११, १०४२६). महावीरजिन-द्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धि वर्धमानो जिनेंद्र, श्लोक-३२, (पू.वि. श्लोक-१९ अपूर्ण से है.) ११२७५२. नमस्कार महामंत्र सज्झाय व महावीरजिन प्रभाति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१८x११, ९४२६). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है., वि. प्रथम गाथा दो बार लिखी है.) २. पे. नाम. महावीरजिन प्रभाति, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. कांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चरण कमल श्रीवीरजिणेश; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११२७६१. पाशाकेवली-भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (१७.५४११, १३४८-२४). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., शकुन अंक-१४४ उत्तम से ३४३ उत्तम तक है.) ११२७६५. (#) क्रोधमानमायालोभ सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२, १२४२९). १. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआ फल से क्रोधना; अंति: उदयरतन उपसम रस नाही, गाथा-६. २.पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मांन न कीजीइ; अंति: उदयरतन० दीजे देसोटो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सत्यवचन सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकीतनू मूल जांणीइ जी; अंति: उदयरतन० मारग शुद्ध रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, म. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोजो लोभ; अंति: लोभ तजइ तेहने सदा रे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २८५ ११२७६७. (+) चोवीसतीर्थंकरजिन स्तवन व चंद्रप्रभुजी पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१३४११.५, ११४३८). १. पे. नाम. चोवीसतीर्थंकरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै णमो आदि अरिहंता जै; अंति: लालविनोद० वंछित फल पाइये, गाथा-५. २. पे. नाम. चंद्रप्रभुजी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जैत, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीचंदाप्रभु जिनवर; अंति: तुम चरणै बलिहारी, गाथा-४. ११२७६९ (+) सप्तभंगीनयप्रदीप प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११.५, १४४२७-४२). सप्तभंगीनयप्रदीप प्रकरण, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: नानास्वभावेभ्यो; अंति: (-), (प.वि. पाठांश 'गुणपर्यायो रतभूता एव द्रव्या' तक है.) ११२७७१ (#) उपदेशछत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १५४३४-३८). उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सवैया-२३ से सवैया-३० अपूर्ण तक है.) ११२७७२. ९ वाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१६.५४११.५, १२४२७). ९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पशु पिंडक तणी रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ११२७७४. (#) इष्टतिथ्यादि सारणी सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११.५, १७४६४). इष्टतिथ्यादि सारणी, मु. लक्ष्मीचंद्र, सं., पद्य, वि. १७६०, आदि: श्रीवामेयं नमस्कृत्य; अंति: शोधनीयाश्च धीजनै. इष्टतिथ्यादि सारणी-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भाग देई उपरिला गण मै हीन; अंति: (-). ११२७८१ (+#) पार्श्वजिन, जिनकुशलसूरि व शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १७-२०४४१-४८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. उदयकीर्ति मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर राया रे सेवइ; अंति: उदयकीरति०तेहि मनवंछित लहइ, गाथा-९. २. पे. नाम, जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसूरि ध्याईयइं; अंति: (-). ३.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: भद्दिलपुरवर राजायउ दृढरथ; अंति: (-). ११२७८८. ज्ञानपंचमी स्तवन व शनिश्वर छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, १२४२७). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. २अ, अपर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बहत, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वीरजिणवर इम कहै, ___ ढाल-३, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-७ से है.) २. पे. नाम. शनिश्वर छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शनिश्चरदेव छंद, मु. दुर्लभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जग जयो रविसुत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ११२७९९ (#) २४ जिन स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०.५, १२४३६-४५). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिन सुहाया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक . For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११२८०४. (+) शालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १३४४१). शालिभद्र रास, मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, वि. १४५५, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७६ अपूर्ण से गाथा-९८ अपूर्ण तक है.) ११२८०७. (+) घंटाकर्णमहावीरदेव, तिजयपहत्त स्तोत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १५-२०४२५-४८). १. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, (वि. यंत्रबद्ध.) २. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेय, गाथा-१५. ३. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ॐ नमो; अंति: शांतिनाथजी री रीख्या छइ, (वि. अंत में एक दहा दिया है.) ११२८०९ विसवेंहरमान विसी व छींकनीवारण विधि, अपूर्ण, वि. १८४२, पौष शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. चांगाग्राम, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि; पठ. श्रावि. चतुरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है, प्रथम पत्रांक-१ है, परन्तु कृति प्रारम्भ से अपूर्ण है. श्रीपार्श्वजिन प्रशादात्., जैदे., (२३.५४११, ४-७४३२-३५). १. पे. नाम, विसवेंहरमान विसी, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जस इम बोले रे, स्तवन-२०, (पू.वि. अंतिम स्तवन की मात्र अंतिम गाथा है.) २.पे. नाम. छींकनीवारण विधि, पृ. ४आ, संपूर्ण. छींक निवारण विधि, मा.गु., प+ग., आदि: पाखी पडीकमणा माहे छींक; अंति: पडीकमणानी क्रीया पुरी करी. ११२८१५. श्रावकपाक्षिकअतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४२). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थूल-४ अपूर्ण से १२ अपूर्ण तक है.) ११२८१७. स्वप्नफल चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२२४१०.५, ९४२९). स्वप्नफल चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ११२८२२. साधुजीवन सुखदुःख वर्णन पद, विचार संग्रह व चंद्रप्रभजिन स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४१०.५, १५४४०-४७). १. पे. नाम, साधुजीवन सुखदुःख वर्णन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो सुख जे सुजस लीयो; अंति: साते दुख ए जती तणुं, पद-२. २. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. विचार संग्रह-विविधविषयक, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नवनाथ ९ सिध ८४ जोगणी ६४; अंति: सूर्य १२ दस नाम सन्यासी. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन-षट्भाषायुक्त, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चंद्रप्रभजिन स्तव-षट्भाषायुक्त, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: नमो महसेन नरेंद्र; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) ११२८२७. स्तवन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२२.५४११, १४४३५). For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २८७ १. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर; अंति: कहै पूरि मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांसजिन ग्यारमो; अंति: चउविह संघ नितु मंगल करों, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदीसर जिणवर सेवै; अंति: श्रीगुणसागर० उदो करे माया, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-दशपुरमंडण, मु. उदयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दसपुर मंडण सोहै नवफण जगमह; अंतिः सूरीराया तास उदो करे माया, गाथा-४. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. तिलकसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशलानंदन वीर त्रि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ११२८२९ (+#) सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १५४३८-४२). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: देवदेवं नमस्कृत्य सर्वज्ञ; अंति: (-), (पू.वि. करतल में ध्वजादि लक्षण वर्णन अपूर्ण तक है., वि. मूल पाठ से अधिकांश पाठभेद मिलता है.) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: वाम डावै पासै स्त्रीनां; अंति: (-). ११२८३१ (#) पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५४११, १३४२५). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक है.) ११२८३६. नमस्कारचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३२). नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पढम जिणवर पढम जिणवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११२८३९. भिक्षगुरुगुण रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२०.५४११, १५४३६). भिक्षुगुरुगुण रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१० गाथा-१४ अपूर्ण से ढाल-१२ दूहा-२ अपूर्ण तक ११२८४१ पंचायती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:पंचायती., दे., (२०.५४१०.५, १६४३२). सत्यासत्य सज्झाय, मु. राममुनि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम न बेसे पंचमै; अंति: मुनीराम० तीरियो बाप तुजो, गाथा-११. ११२८४३. (+) दयारो थोकडा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. २, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दयारोथोकडो, द.थोकडो., संशोधित., दे., (२१४११, ९४२६). साधुकी वीसवसा और श्रावककी सवावसा दया, मा.गु., गद्य, आदि: गोतमस्वामी हाथ जोडमान; अंति: (-), (प.वि. श्रावक सवावीसा वर्णन अपूर्ण तक है.) ११२८५०. साधु कालधर्म विधि, संपूर्ण, वि. १९६५, माघ शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२२.५४११, ११४२९). साधु कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मृतक को स्नान करावे; अंति: जगै लोहे की कील गाडे. ११२८५१ (+#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, १३४३३). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१५ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११२८५२. (#) शाश्वताशाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९x१०.५, १४४३१). शाश्वताशाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से ४० अपूर्ण तक है.) ११२८५४. सरस्वतीदेवी स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२२४११, १२४२४). सरस्वतीदेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसत सुमरू सदा कांइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) ११२८५५ (-) चउदस स्तुति व सीमंधरजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१.५४११, ११४२७). १. पे. नाम. चउदस स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. २. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहबा आ भरते; अंति: उचरे देज्यो मुगती स्वरूप, गाथा-५. ११२८५६. महावीरजिन स्तुति, पार्श्वनाथजी रो छंद व आचार्योपाध्यायसाधुमहिमा कवित्त, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, दे., (२२.५४११.५, १३४४१). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तति, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वंदू श्रीमाहावीर धीर संजम; अंति: जिनवाणी तणो प्रकास कीनो, गाथा-१. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजी को छंद, पृ. ६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: क्षितिमंडल मुकुटं धरमक; अंति: रम्यारम्यं सह रम्यम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. आचार्योपाध्यायसाधुमहिमा कवित्त, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. म. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: परम पंच आचार तासु धारए; अंति: ताही बीलोक करूं पग वंदण, गाथा-३. ११२८६० (+) देवसिप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४११, १०४२६). देवसिप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सामाइक चोवीसथोर वंदण३; अंति: (-), (पू.वि. समकित दृष्टि देवता अधिकार वर्णन तक है.) ११२८६१. द्रव्यमहिमा बोधक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२३४११.५, १५४४५). १. पे. नाम. द्रव्यमहिमा बोधक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-द्रव्यमहिमाबोधक, मा.गु., पद्य, आदि: टका करे कुलरंग टका सिर; अंति: टका सो बेठा जोवे टगा टगा, गाथा-१. २. पे. नाम, औपदेशिक पद-कठिनशब्दगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. पृथ्वीराज, पुहि., पद्य, आदि: कठिन प्रीत की रीत कठिन तन; अंति: प्रथीराज० ग्यान जीतन कठण, गाथा-१. ३. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. वसंतराय, पुहिं., पद्य, आदि: दमरी न होती जिहां कोटि; अंति: होती जहां जरोखे जुखाये है, गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलिया संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... मु. दीन, पुहिं., पद्य, आदि: बंदा बाजी जुठ हे मत; अंति: दीन० राम हे रोक रुपीया, गाथा-७. ५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. क. दिन, पुहिं., पद्य, आदि: रिषभनाथ कु रंग हे जीत्या; अंति: दीन० तु ही अरिहंत वडो हे, गाथा-३. ११२८६३. (#) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११.५, २०४५०-५७). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपत जोइ जीव पणी मनमांहि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११२८६६. सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७७, आश्विन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३०-२९(१ से २९)=१, ले.स्थल. डीसानगर, प्रले. ग. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११.५, ११४३०). सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा हु; अंति: रामविजय०मुज चीत्त हो, गाथा-९, संपूर्ण. ११२८६८. (#) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन व नेमिजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११, १९४४३-४८). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. रूपा, प्र.ले.प. सामान्य. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपाय; अंति: तु लिखल अलवेसरु सीओ, ढाल-३, गाथा-२५. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण, लिख. मु. बेचर, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: सूरीयसुर वंदु पाय पंकज; अंतिः सदा मंगल गाइ० देवी ए, गाथा-४. ११२८७०. कर्मनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (१९x१०.५, ११४३०). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१८. ११२८७१. कामदेव श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:तावन., दे., (२०.५४१०.५, १३४२९). कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन इंद्र प्रसंसी; अंति: श्रीवीरनौ चंपानो वासी रे, गाथा-१७. ११२८७२. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, प्रले. श्रावि. लछमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तवन., जैदे., (२०x१०.५, १७४३०). सीमंधरजिन स्तवन, म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: सीमंधर जिण सायबा जेवंता; अंति: भावसु जाउ तरो भव पारो जी, गाथा-१९. ११२८७४. अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११, ११४२५). अजितजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअजित जिनेसर देवा; अंति: शिष्य मानविजय गुण गाया रे, गाथा-९. ११२८७५. (#) सीमंधरजिन विनती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.,प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, ११४३०-३९). सीमंधरजिन विनती स्तवन, म. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: तीर भवन साहब अरज सुणी जो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ११२८८४ (#) नेमिजिन पद, आदिजिन स्तवन व नमस्कार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१.५४११, ११४३९). १. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नेम मिले तुज वारीया हो; अंति: रूपचंद जस लीजीये होय, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. इस कृति के पाठ अनुक्रम २आ से २अ पर है. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज भले दिन उगो हो; अंति: सीसनो राम सफल अरदास, गाथा-५. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. इस कृति के पाठ अनुक्रम २आ से २अ पर है. मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण सीमरो नित; अंति: प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा-७. ११२८८६. विमलमंत्रीश्वर सज्झाय व शत्रुजयजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १३४३६). १. पे. नाम. विमलमंत्रीश्वर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८४९, माघ शुक्ल, १०. ___ मा.गु., पद्य, आदि: जो इक मोरी अबाव आइ; अंति: पावै रे सुख संपदा, गाथा-१८. २. पे. नाम. शत्रुजयजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८४९, फाल्गुन कृष्ण, ७. For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमाहो अति घणो; अंति: प्रेम घणो जिणचंद रे, गाथा-७, (वि. अंत में एक दोहा दिया है.) ११२८८८. (#) भरतबाहुवली संवाद व मोहवल्ली भास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १८४४२). १. पे. नाम, भरतबाहुबली संवाद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. कुशलराज, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता समरीय; अंति: कुसल० प्रणमु सिरनामी, गाथा-६२. २. पे. नाम, मोहवल्ली भास, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. पद्मचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोह लाग्यो रे चरम जिणेसर; अंति: जोड कह सहु लोक रहो सुखी, गाथा-२३. ११२८८९ (+#) मुहपत्ति पडिलेहण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, ८x२९). मुहपत्ति पडिलेहण सज्झाय, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्र अरथ उपरिं मन धरो; अंति: आदरतां हुंइ जय जयकार, गाथा-९. ११२८९० (+) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र व महावीरजिन जन्मबधाइ पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. देउबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१६) भणजो गुणजो वाचजो, जैदे., (२४४११, ९x१९). १. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. __ हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुसलवली पुसगरावरत मेघो; अंति: वा श्रेयंस पार्श्वदेवा, श्लोक-१. २. पे. नाम. महावीरजिन जन्मबधाइ पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रतन, पुहि., पद्य, आदि: जगनायक के आज आणंद वधाइ; अंति: जाचक आए मनवंछित फल पाइय, गाथा-४. ११२८९३. (#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-४(१,५ से ७)=४, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३४). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. म. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामिनी हंसगामिनी; अंति: मान करइ प्रभुना गुण गान, गाथा-८. २.पे. नाम, अजितशांतिजिन स्तवन, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चिरंजइ जगन्नाथ इंदेविंदा; अंति: केरी अजितशांति जिनवरा, गाथा-१८. ३. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: हां जी एकादशमो जिनवरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं. मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ११२८९५. बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४११, १३४२५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७४ अपूर्ण से गाथा-२८९ अपूर्ण तक है.) ११२८९६ (#) कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १६७६, कार्तिक शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ११-८(१ से ८)=३, प्रले. मु. करमसी (गुरु मु. हरजी ऋषि); गुपि. मु. हरजी ऋषि; पठ. सा. चांपबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कइवन्नाचउपई., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १५४३०). कयवन्ना चौपाई-दानाधिकारे, मु. समयप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १६६३, आदिः (-); अंति: संपद दान घरि सुखवास ए, __गाथा-२५५, (पू.वि. गाथा-१९१ अपूर्ण से है.) ११२८९९. सीतासती चौढालियो व औपदेशिक सज्झाय-तमाकु परिहार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११.५, १५४३९). For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org १. पे. नाम. सीतासती चौडालीयो, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. सीतासती चौडालियो, मु. दोलतसागर, मा.गु, पद्य, वि. १७८४, आदि (-); अति गाया संघ सकल सुख पाया रे, गाथा ४६, (पू. वि. गाथा ३८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-तमाकु परिहार, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि अंति (-). (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण तक है.) ११२९०१ (७) नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२४४११, १६×११-४०). , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सौरीपुर नगर सुहामणो अति मनरूप प्रणमई पाय, गाथा १५. ११२९०२. (a) सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५X११, १०x१९). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल अंतिः सोहे पुजोनी सरस्वती, ढाल ३, गाथा - १४. ११२९०३ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२३.५x११, ११४३३). २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि शत्रुंजे ऋषभ समोसर्या भला अंतिः समयसुंदर कहे एम, गाथा - २१. ११२९०४. (+) औपदेशिक कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५x११.५, ७४३१). १. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: हंस बुग मृग मीन मोर माल अति तेह तेह राजनो काज करे, गाथा-१, संपूर्ण औपदेशिक कवित्त-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हंसरी बेठक सेणच काल, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पाठ- "भोगचर पराटो काचवेल साचो तक लिखा है.) २. पे नाम औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ. संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-समस्यागर्भित, क. गद, मा.गु., पद्य, आदि: एक नर व रण सपेत; अंति: गद्द० अर्थ कोई पंडित करे, गाथा - १. ३. पे नाम, मंत्र-तंत्र संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण, मंत्र-तंत्र-संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आदेश गुरुकुं आदेश; अंति: पछै सुटी उपर मेलीजै वेला, गाथा-१. ४. पे नाम औपदेशिक कवित्त समस्यागर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. २९१ औपदेशिक कवित्त, क. गद, पुठि, पद्य, आदि: तीस दिनां कहा होय काहा; अंति: गद० अक्षर हिरदे घरो गाथा-१. , ११२९०५. (#) भुवणभानुकेवली चरित्र बालावबोधमय, अपूर्ण, वि. १८वी, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. २-१ (१)=१, ले.स्थल. सीणोरानगर, प्रले. ग. कमलसागर (गुरु पं. नयसागर गणि); गुपि. पं. नयसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भुवनभानुकेवली. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., कुल ग्रं. ३२००, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X११, १९५८). भुवनभानुकेवली चरित्र - बालावबोध, मु. हरिकलश, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: रहइं ज्ञानवृद्धि हुई, (पू.वि. पंचविधविषय सौख्यलील्यता वर्णन अपूर्ण से है. ) १९२९०६ पार्श्वनाथजीरी निसांणी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२३.५x११, १३४४२). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर, अंति: गुण जिनहरष गावंदा है, गाथा - ५५. ११२९०७ (d) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, स्तुति व शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१ (१) -१, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५X११, १२x२४). १. पे नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. विनयविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: कीरत्तिविजय० धरे वहमान, गाथा-३. २. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ पद, पृ. २आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे नरनारी सिद्धाचल; अंति: ज्ञानउद्योत० एक तारी, गाथा-५. ११२९११. दसयतिधर्म सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२२४११, १८४४३). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः सुकृत लता वन सींचवा नव; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-९ तक है.) ११२९१९ मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९९, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२२४११.५, १०४३०). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: समयसुंदर०कहो द्यावडी, गाथा-१३. ११२९२७. (+-) गौतमगणधर सज्झाय व जैनगाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३४११.५, १२४२६). १. पे. नाम. गौतमगणधर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. २०वी, ले.स्थल. अलवर, प्रले. श्राव. सरदारमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: भगवंत वाणी वागरी जिणवाणी; अंति: निरभेय ठाम बैठाय, गाथा-१८. २. पे. नाम. जैन प्राकृतगाथा संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. गाथा संग्रह जैन*, प्रा., पद्य, आदि: तेरसय पणवीसा टंके; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११२९२८. पंचपरमेष्टि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२३४१२, ९x४२). पंचपरमेष्ठि स्तवन, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से ५२ अपूर्ण तक है.) ११२९२९ (#) मेघकमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३४११.५, १३४२७). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२० तक लिखा है.) ११२९३३. महावीरजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. श्रावि. सदाकुंवरबाई, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२२.५४१२, १६७३१). महावीरजिन चरित्र-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं णमो, (२)असोकवृक्षांस्वरपुष्पवृष्ट; अंति: समुद्री तीरनै पार पांमै. ११२९३५ (2) शीयलप्रकाश रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्रले. मु. क्षमाहंस; राज्ये गच्छाधिपति जिनवर्द्धनसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (४३९) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२३४११.५, २१४५५). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसरि, मा.ग., पद्य, वि. १६३७, आदिः (-); अंति: एम श्रीविजयदेवसरि, गाथा-६९, ग्रं. २५१, (पू.वि. गाथा-६२ अपूर्ण से है.) ११२९५४. (#) पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६९, कार्तिक कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १७४५०). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, म. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: सुख थाय सदा, गाथा-३१. ११२९५८. नेमजिन स्तवन व नमस्कार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, ११४३४). १.पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २९३ नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ससनेही रे साहेबो भेट्या अति राम० सेवतो पोति सयल जगीस, गाथा-७. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १० अपूर्ण तक लिखा है) ११२९६३. पंचमआरा काल विवरण, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२१.५x११.५, १०x३०). " 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचमआरा काल विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: नगर ते गाम सरिखा होसी; अंति: साधु की पूजा थोड़ी होसी. ११२९७३. व्याख्यान संग्रह व औपदेशिक लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. ११-८ (१ से ८-३, कुल पे. २, दे., (२२४११.५, १५४४६). १. पे. नाम. व्याख्यान संग्रह सह बालावबोध, पृ. ९अ -११अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. , व्याख्यान संग्रह, प्रा.मा.गु. रा. सं., पग, आदि (-); अंति: मंगलीक माला संपजे (पू.वि. जिनेश्वरपूजा वर्णन प्रसंग अपूर्ण से है.) व्याख्यान संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः श्रीमंगलीकमाला संपजै. २. पे नाम औपदेशिक लोक संग्रह, पू. ११अ संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि धर्म्मरागः श्रुतीचिंता, अंतिः क्षांति धर्मस्य चरितागति, श्लोक-१०. ११२९७८. (*) चौवीसजिन आंतरा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. वे. (२३४११.५, १२x१६-३७). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्री ऋषभनाथतः एक कोडाकोड; अंति: २५० श्रीपार्श्वनाथः २३. ११२९७९. एकादशी स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे. (२२x११.५, १३x२९-३२). , १. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि आज एकादशी ऐतिहने काइ नही; अति अवसर सूखडा लहस्ये, गाथा- ९. २. पे. नाम. रामभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: केवली रघुनाथ विना दुसरो; अंति: कहो तुलसी भगत मेरो, गाथा-२. ३. पे. नाम, कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मीराबाई, मा.गु., पद्य, ई. १७वी, आदि मेरे एक राम नांम दुसरो, अंति: लग्न लम्बा हो वणी सो होइ, गाथा-४. ४. पे. नाम. विष्णुभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पीपा भगत, पुहिं, पद्य, आदि ऐसो तेरो भजन को प्रमान अति पीपा भगत० हमारी तुमने लाज, गाथा ४. ५. पे. नाम रामभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. गोस्वामी तुलसीदास, पु, पद्य, आदि ऐसो ते नामरो परमाण अति दासतुलसी० षांनाजाद गुलाम गाथा-४. १९२९८२. (+) महावीर, शत्रुंजयतीर्थ व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. दे., "" (२४१०.५, १७x४३). १. पे नाम, महावीरवृद्ध स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति यो त्रिभुवनतिल गाथा- १९. २. पे. नाम. सिद्धाचलवृद्ध स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल सिरतिलौ; अंति: अविचल लील विलास, गाथा - ११. ३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी पू. १आ, संपूर्ण 1 मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि बाल्हेसर मुझ बिनती; अंति इम जंपे जिनराज, गाथा- ७. For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११२९८८ (+#) औपदेशिक पद व स्वयंप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, १०x२८). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. म. अखेचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अहो अहो कालजी रे; अंति: अखेचंद० एहज दीसे ग्यान हो, गाथा-२. २. पे. नाम. स्वयंप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी स्वयंप्रभ; अंति: एरे वांछितसुख निर्वाण रे, गाथा-६. ११२९९१. त्रिपुराभवानी व भारती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०.५, १२४३८). १. पे. नाम, त्रिपुराभवानी स्तोत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: यस्मान्मयापि ध्रुवं, श्लोक-२१, (पू.वि. श्लोक-२० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, भारती स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ११२९९२. साधुअतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२३४११, १२४३२). साधुपाक्षिकअतिचार-म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. दर्शनाचार अपूर्ण से ११२९९४. अजितजिन स्तवन, सीमंधरजिन स्तुति व प्रभुसन्मुख बोलवानी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१४११, १२४३२). १. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. मु. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: विजयनंदन जिनजी मुझ; अंति: गुणचंदना० पदवी थाय, गाथा-५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __मा.गु., पद्य, आदि: पूरव देश इसां कूणि पुष्कल; अंति: केवली वांदु बे करजोडि, गाथा-४. ३. पे. नाम. प्रभु सन्मुख बोलवानी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रभु सन्मुख बोलने की स्तुतियाँ, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अद्याभवत्सफलतानयनद्वयस्य; अंति: द्विरयंचलुक प्रमाणं, गाथा-१. ११२९९५. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, दे., (२३.५४१०.५, १०-११४२८-४१). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ___ मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जीव मंगलाकर देविय, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: कुसल० तुझ सासनदेवता, __ श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: पमज्जन शस्तनिजाघ, श्लोक-४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषेद्राय युगादि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११२९९७. माणिभद्रवीर विधि व जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०.५, १०४२४). १. पे. नाम. माणिभद्रवीर विधि, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. मु. मुनिचंद्रविजय; अन्य. मु. राम, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २९५ मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: स्वरन आवे तो कष्ट देखावे, (पू.वि. "तो राखो आपाण ससि डावी" पाठ से है.) २. पे. नाम. विविध प्रश्नोत्तर संग्रह, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर-विविधग्रंथोक्त, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: केवलीने समुद्धात करता; अंति: रायपसेणीरी टीका० कहीयो छै. ११२९९८. सिद्धचक्र, कृष्णपंचमी व ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, दे., (२३.५४१०.५, ११४३५). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से २. पे. नाम. कृष्णपंचमी स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय पंकज; अंति: करो ते अंबा देवीए, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११२९९९. २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४४१०.५, १०४३५). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ११३००० विजयजिनेंद्रसूरि विज्ञप्ति पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१०.५, ११४२९). विजयजिनेंद्रसूरि विज्ञप्ति पत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वस्तिश्री सीरोहीनगरे; अंति: चरणकमलान पत्रे लिखिता. ११३००६. महावीरजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२३.५४१०, ८४६०). महावीरजिन चरित्र-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जिनजन्म उत्तमकुलवर्णन अपूर्ण से है व १० अछेरावर्णन तक लिखा है.) ११३००७. काजलमेघा चौढालिया, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१,३)=२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे., (२३४११, ३०x२२). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-७ गाथा-१ अपूर्ण तक व ढाल-१० गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-१३ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११३००८. (#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०.५, २३४६१). पार्श्वजिन स्तवन, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिन मुख सरसति वरसति; अंति: लब्धिरुचि जय जय करो, गाथा-३३. ११३००९ (#) नेमिनाथराजीमती द्वादशमास प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, ५४४७). नेमिजिन बारमासा, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जयवंत० सुणतां हुइ आनंद, गाथा-७५, (पू.वि. गाथा-७४ अपूर्ण से है.) ११३०११. अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२१४१०.५, १२४३४). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ११३०१२. ज्ञानपंचमीपर्वद्वय व पार्श्वजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१२.५४१०.५, १२४१९). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. सं., पद्य, आदि: समुद्रभूपालकुलप्रदीपः; अंति: देवी जगतः किलांबा, श्लोक-४. २. पे. नाम. कृष्णपंचमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: समुद्रभूपालकुलप्रदीपः; अंति: देवी जगतः किलांबा, श्लोक-४. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. सं., पद्य, आदि: प्रणत विबुधनाथ; अंति: (-), (पृ.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ११३०१३. सरूपीया चौढालियो, पुंडरिककंडरीक व अरणिकमनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३ जैदे., (२२४१०.५, १५४४०). १.पे. नाम. सरूपीया चौढालियो, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है., पे.वि. हंडी:चौढाली. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नइ करीया सहु आप समाए, गाथा-३५, (पू.वि. गाथ-२८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पुंडरिककंडरीक सज्झाय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कुडरी. मा.गु., पद्य, आदि: कुडरीक रिद्ध तज नीकल्यौ; अंति: खेवो पार रे लाला, ढाल-२, गाथा-३५. ३. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: एक दिन अरणक नाम उठ्या; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११३०१४. (#) २१ स्थान प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०,१४४३०). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाण नयरी जिणया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५१ ____ अपूर्ण तक है.) ११३०१५ (+) भाव कुलक व तप कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:तप कुलं., संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, १५४५१). १. पे. नाम, भाव कुलक, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: कमट्ठां सुरेण रइयंमि भीस; अंति: यं अइरा सो लहइ सिद्धिसुहं, गाथा-२१. २. पे. नाम. तप कलक, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, आदि: सो जयउ जगाइजिणो; अंति: तत्थ तवो कारणं चेव, गाथा-२०. ११३०१६. १४ गुणस्थानक व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:१४ थान., जैदे., (२०x१०,११४२७). १. पे. नाम. १४ गुणस्थानक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: चवद थांन कीयांरा जीव ए; अंति: ग्राज ए आवै ग्यांनी तण ए, गाथा-१०. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मनवस, पृ. १आ, संपूर्ण. पंडित. हरसुख, पुहि.,रा., पद्य, आदि: कुमत कु छोड दे भाई; अंति: सुख कर वीणती चरणं चीत लाई, गाथा-७. ११३०१९ (#) साधु अतिचार, अपूर्ण, वि. १७७८, माघ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, ले.स्थल. कोरटानगर, प्रले. पं. सकलरुचि; पठ. मु. चतुरशिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वजिन प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, ११४३३). साधुपाक्षिकअतिचार-मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कायाइ करी मिच्छामि दुक्कड, (पू.वि. अंतिम स्थूल अपूर्ण से है.) ११३०२०. स्तवन व स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १३, प्र.वि. हुंडी:स्तवन., जैदे., (२२४१०.५, १८x२९). १.पे. नाम. नेमिनाथजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदोय पाय पंक; अंति: मंगल करहुं अंबक देवीयं, गाथा-४. २. पे. नाम. सीधाचल स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय तीरथसार; अंति: ऋषभदास गुण गाया, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर मोटो जगनाथ मुगत; अंति: रूचिने दोलित करे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २९७ ४. पे. नाम, संसारदावानल स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसार दावानल दाहनीरं; अंति: भवरवीरं देही मे देवसारं, श्लोक-४. ५. पे. नाम, मोनइग्यारस स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादसी इति रूवडी गोविंद; अंति: गुणहरख० संघतणा निसदीस, गाथा-४. ६. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति-फलवर्द्धि, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. देवकुशल, रा., पद्य, आदि: फलवधिनो मंडण संत घणी; अंति: देवकुशलनी० सफल करै, गाथा-४. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ___ मु. महिमारुचि, मा.गु., पद्य, आदि: शंखेसर पास जिणंद; अंति: महिमा० दोलत मुझ माई, गाथा-४. ८. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अरिहंत भगवंत; अंति: जयो तुहि देवाधिदेवा, गाथा-५. ९. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलजिन दीठां लोयणे दुख; अंति: दीजीये रे आनंदघन पद सेव, गाथा-७. १०. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धार तारवारनी सोहीली दोही; अंति: नियत आनंदघन राज पावे, गाथा-७. ११. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मजीणेसर गावं रंगस्यु; अंति: आनंदघन० जिनेश्वर, गाथा-८. १२. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. __ आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रिषभ जिणेसर पीतम; अंति: आतम आपणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. १३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्राव. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: आज थकी में पामीयो रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११३०२१. मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (१८x१०, १३४२९). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्या रे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ११३०२२ (#) भक्तामर गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०.५, १२४३०). भक्तामर स्तोत्र-गीत, संबद्ध, ग. सोमकुंजर, मा.गु., पद्य, आदि: मनसमरो चक्केसरी वंछितदायक; अंति: चक्केसरि हो कीउ जय जयकार, गाथा-११. ११३०२७. (+#) आराधकविराधकचौभंगी सज्झाय व परमार्थ अष्टपदी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१x१०.५, १२४३४). १. पे. नाम. आराधकविराधकचौभंगी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: सदगुरु समजावे आगोथा एगतार, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. परमार्थ अष्टपदी, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. __ पुहिं., पद्य, आदि: ऐसो यु प्रभु पाइये सुन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ११३०२८. १४ गुणस्थानक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४१०.५, १२४३१). १४ गुणस्थानक विचार, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दूसरे गुणस्थानक वर्णन अपूर्ण से शुक्ललेश्या वर्णन अपूर्ण तक है.) ११३०२९. सातवार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४६, आषाढ़ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. वनीतविजय; पठ. श्राव. राजसीग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १३४३१). For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७ वार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: सिखामण सदगुरू तणी सुणतां; अंति: इम भणै वंदो श्रीमहावीर, गाथा-९. ११३०३०. (+#) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १७४४४). शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधो १ दय २; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५९ अपूर्ण तक है.) ११३०३४. सामुद्रिकशास्त्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२३.५४११, १७४३४-४०). सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३४ के बालावबोध अपूर्ण से श्लोक-५३ के बालावबोध अपूर्ण तक है.) ११३०४३. (+) अतीतजिनचौवीसी पंचकल्याणक तिथि व अतीत चौवीसी जिननाम, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-२७(१ से २७)=१, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:कल्याणक., संशोधित. कुल ग्रं. ६१, जैदे., (२३४१०.५, ५४१०). १.पे. नाम. अतीतजिन चौवीसी पंचकल्याणक तिथि, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. अतीतजिन चौवीसी पंचकल्याणक तिथि-पुष्करार्द्ध पश्चिम ऐरावत क्षेत्र, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). २. पे. नाम. अतीत चौवीसी जिननाम, पृ. २८आ, संपूर्ण. अतीत चौवीसी जिननाम-पुष्करार्द्ध पश्चिम ऐरावत क्षेत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. कल्याण आराधना विधि सहित है.) ११३०४६. एकवीसगुण श्रावक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४१०, १२४४१). श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो गुण अक्षुद्र; अंति: कहत समान तुरत समझै, अंक-२१. ११३०४७. आदिजिन स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२३.५४११, ११४३६-३९). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यदंह्रिनमनादेव देहिन; अंति: जनानवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अंति: काज चढे प्रमाणै, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनार सिहर पर नेम; अंति: जिनलाभ० फलै सुजगीस, गाथा-४. ५. पे. नाम, अनध्याय श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अष्टमी गुरुहंती च; अंति: प्रतिपदा पाठ नासणी, श्लोक-१. ११३०४८. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१०.५, १२४३२). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जैनो धर्मः प्रकटविभव; अंति: प्राज्यं भोज भवत्यसुखकृतं, गाथा-२०. ११३०५०. जिनदत्तसूरि जिनकुशलसूरि मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४१०,८४३१). जिनदत्तसूरि जिनकुशलसूरि मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ऐं श्रीं क्रॉ हीं; अंति: ०कुशलसूरिसद्गुरुभ्यो नमः, (वि. अंत में पूजासामग्री की सूची दी गई है.) ११३०५१. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८११, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. बिनातटनगर, पठ. वसंतकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, १८४५०). For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २९९ १.पे. नाम. पार्श्वदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, म. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर प्रणमो हेजे; अंति: भंडार लाभविजय जयकार, गाथा-४. २.पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: सवि मिल करी आवो भावना; अंति: ज्ञानविमल नित्त भद्धा, गाथा-४. ३. पे. नाम, अष्टमी महावीर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: संप्रात संसारसमुद्र; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ४. पे. नाम. नेमिजिन इग्यारस स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.ग., पद्य, आदि: सुर असुर विंदित; अंति: मंगल कर हु अंबा देवीइं, गाथा-४. ५. पे. नाम. बीजदिन सीमंधर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण... सीमंधरजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: जोरज्यं पविहित्तु; अंति: (अपठनीय), गाथा-४. ११३०५२. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. हुंडी:वंदितुसु., जैदे., (२३४१०.५, ५४३१). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०, (पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है., गाथा-४७ अपूर्ण से है.) ११३०५३ (+-) अभिनंदनजिन व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४२९-३२). १. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कुवरयमरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: भोगव तेरी बडे बडे ओ शेव; अंति: कुवरयमरचंद० मोए पार करणां, गाथा-३. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. गांगा, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जीनवर रुपे रुडा; अंति: अणी परे उच्चरे रे लो, गाथा-६. ११३०५४.(-) जंबूकुमार सज्झाय व सासु वहुसंवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१३.५४१०, १५४२१). १. पे. नाम. जंबूकुमार सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. कुशलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: राजग्रही नगरीरा वासीना घर; अंति: कीया सवरांटीये धरमरो पेमो, गाथा-२२. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-सास वह संवाद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हुं आइती देवा ओलंबो सासु; अंति: लागी सासुजी आचरज वाली वात, गाथा-५. ११३०५५ (-) पंचपरमेष्ठि वंदना व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११, १६४३८). १. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि वंदना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नमूं श्री अरिहंत करमको; अंति: गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सुणए दासी रायाकी वात; अंति: हुवा ओ दुख लाग्यो मोय, गाथा-१०. ११३०५६. (+#) पांचइंद्रीय सज्झाय, स्वार्थ गीत व औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४१०, १८४५७). १.पे. नाम. पांचइंद्रीय सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. करण, मा.गु., पद्य, आदि: गुणनिधि जीव कहुं सीख ए छइ; अंति: कहें करण जिको नर बूझइं, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. अनाथ निग्रंथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. __ अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी पेखी; अंति: पाय वांद्रे बे करजोडि, गाथा-९. ३. पे. नाम. स्वार्थ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: स्वारथ की सब हे रे सगाई; अंति: समयसुंदर० एक हे धरम सखाई, गाथा-६. ४. पे. नाम. माया गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औवदेशिक गीत-माया, उपा. समयसंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जीव विमास नहीं कुछ; अंति: जीती तिण काहं चेरा, गाथा-४. ५. पे. नाम, अध्यात्म गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, पुहि., पद्य, आदि: हम अपने मानस्युं दिन दस; अंति: संगति सुरजे आवा गोंनस्य, गाथा-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: साचो भगत प्रभुको सोई पर; अंति: नारायण० अवगुण मत जोई, पद-३. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-दया, श्राव. शांतिदास, मा.गु., पद्य, आदि: मुंढा जनम खोयो स्या माटे; अंति: शांतिदास०खागधारा जिम चाटइ, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. रंगदास, मा.गु., पद्य, आदि: मुढा आले जनम गमायो संसार; अंति: रंगदास० दुकृत पूरि पुलायो, गाथा-३. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. दर्गादास, पुहि., पद्य, आदि: नरनारी तीन लोक की० सुरनर; अंति: दुर्गादास० लागत परम उदासी, गाथा-३. १०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: तजो पर युवती पति प्रेम; अंति: रुषि इम उचरे नारायण मुनि०. ११३०५७. (+) भोजराज भानमती कथा, अपूर्ण, वि. १६७५, मध्यम, पृ. ५-१(४)=४, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. देवराज ऋषि; पठ. सा. हरषा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:राजाभोजरी भानुमान., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०, ९४२८). भोजराज भानुमती कथा, रा., गद्य, आदि: चंपावती० राजा राज्य करइ; अंति: राज्य पाली स्वर्गिय हुतउ, संपूर्ण. ११३०५८. (+) चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४९.५, १३४२७). १. पे. नाम. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुरि समरु श्रीआदिदेव; अंति: कमलविजय० घर जै जैयकार, गाथा-६. २. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीमंदर वीतराग त्रिभन; अंति: विने धरे तुम धांन, गाथा-३. ३. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम जिनंद तणा भला; अंति: नय प्रणमे धरी नेह, गाथा-३. ४. पे. नाम, आठमरो चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: महा सुद आठमने दिने; अंति: पद पद्मने सेव्याथी सुखवास. ११३०५९ श्रावक ३ मनोरथ व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३४१०, ३-१३४३७-५१). १. पे. नाम. श्रावक ३ मनोरथ, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो मनोरथ समणोपासगजी; अंति: एहवो मरण मुझने हुज्यौ. २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: शक पंचदिकचंद ११०५ हीनोर्क; अंति: भवे जीववारादिकोहर्गणोयं, श्लोक-२. For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३०१ ज्योतिष श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जन्म शाक मध्ये पंचदिक; अंति: सो उपरला माहेस हीन. ११३०६०. नेमराजुल बारेमासी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव. सिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०, ९४२७). नेमराजिमती बारमासा, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्यांम मेली; अंति: नवे निधि पामी रे, गाथा-१३. ११३०६१ (#) दंडकना ओगणत्रीस द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४१०.५, १२४३२). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार १; अंति: (-), (पू.वि. आवगाह द्वार-४ अपूर्ण तक है.) ११३०६२. आवश्यक बृहत् वृत्तौ चूर्णी व अढारपापस्थानक आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सोजत, प्रले. पं. नगविजय, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२३४१०, १५४४१). १. पे. नाम, आवश्यक बृहत् वृत्तौ चूर्णी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-देशावगासिक विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: निरारंभ रहीइं जिम पोसह; अंति: पुरु हुई पारवं. २.पे. नाम, अढारपापस्थानक आलोयणा, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: बीनवे जीवहणो जीतो पाप; अंति: इम वीतरागनी सिख जाणवी. ११३०६३. (#) संबोधसप्ततिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, अन्य. पंन्या. हेमविजय; श्राव. पेमा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ९४२२). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-८५, (पू.वि. गाथा-६९ अपूर्ण से है.) ११३०६४ (+) आयुष्य सज्झाय, २४ जिन स्तुति व प्रास्ताविक दोह संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, १२४४५). १. पे. नाम. आयुष्य सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आउखौ तूटौ साधो लागै नही; अंति: सुख मोक्ष तणां श्रीकार रे, गाथा-७. २.पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ग. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथपति त्रिभुवन सुख; अंति: अविचल साधु अनभवि मांनीयै, गाथा-३. ३. पे. नाम, प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: ज्यां घरनो वत वाजती होती; अंति: घर आई रात है अक आव अक जात, गाथा-५. ११३०६६.(#) श्रावकपाक्षिकअतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-८(१ से ८)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १०४३०). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थूल-१४ अपूर्ण से स्थूल-२० अपूर्ण तक है.) ११३०६९ (+#) बाहुबली सज्झायद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १०४२७). १. पे. नाम. बाहुबली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल दीक्षा ग्रही मन; अंति: राम० भाई तसंपदवारो वार रे, गाथा-११. २. पे. नाम, बाहुबली सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबली सुकल ध्याने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११३०७०. पंचमी तीथी, संपूर्ण, वि. १९१०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, पठ. श्राव. लवजीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१०, ९४२५). नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरावण सूद दन पंचमीइ; अंति: ऋषभदास० सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ११३०७५. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०, ११४३१). For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-चेतन, रा., पद्य, आदि: श्रीजिनपद वादजी भावसू; अंति: मिथ्या वाडोजी समकत आदरो, गाथा-१४. ११३०७७. नेमनाथ गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४९.५, १६x४५). नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी रे वीनवं परीतम; अंति: लावन० ईमलीया मूकति मूझार, गाथा-३०. ११३०७८. राजमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रावण शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जयपुर, प्रले.सा. लीछी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:राजमती की., जैदे., (२४४९.५, १५४४२). राजिमतीसती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: जब निकस भवणसं ठानी तब; अंति: गावै तेतो मगत तणा फल पाव, गाथा-१९. ११३०८२. (+#) पार्श्वनाथवृद्ध स्तवन व दादाजी छंदष्टकं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, ११४४१). १.पे. नाम. पार्श्वनाथवृद्ध स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसार हे पाय पणमेवि; अंति: मति विसाल __सुखीया करइ, गाथा-१२. २. पे. नाम. दादाजी छंदष्टकं, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनदत्तजिनचंदजिनकुशलसूरि छंद, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: खरतरगच्छ जाणै खलक; अंति: संघ- सांनिध ___करै, गाथा-८. ११३०८३. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८९०, वैशाख कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ.४, प्रले. आ. दुल्लभसूरि; पठ. मु. खुशालचंद; प्रे. मु. खेतप्रभसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४९.५, १०४३०-३४). गौतमस्वामी रास, श्राव. शांतिदास, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सरस वचन दायक सरसती; अंति: शांतीदास० पुरो मननी आस, गाथा-४५. ११३०८६. औपदेशिक व इलाचीकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४११, १३४२५). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दयाधर्म, म. रायचंद ऋषि, पहिं., पद्य, आदि: जीवा लखचोरासीमे भमीयो रे; अंति: रायचंदजी इम० आछामोले रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय गाथा-२६ व २७, पृ. १आ, संपूर्ण. इलाचीकमार सज्झाय, म. लब्धिविजय, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: लबधीविजय गुण गाय, प्रतिपूर्ण. ११३०८७. नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०, ११४३८). नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: जपे जिनगुण सुंदर सीस रसाल, गाथा-७. ११३०८८ (+#) चंद्रप्रभजिन स्तवन व साधगण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४१०,१३४२८-४०). १. पे. नाम, चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: सयो मोरा चंदराएण जिण; अंति: जांरा सुरनर दासो ए, गाथा-६. २. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय-उपमा युक्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बंठा संमरक सींगासण; अंति: राइचंद० ढाल जोडी जी, गाथा-१४. ११३०९० (-) नेमिजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२४१०.५, १०४२९). नेमिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४८ अपूर्ण से गाथा-६० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३०३ ११३०९१. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जीवराजजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०, ११४३०). शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: अमृत वचने रे पारी पीओरने; अंति: स्तवीयो गिर सोहंकर, गाथा-२७. ११३०९२ (+#) कलंकी राजारी जन्मपत्री, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१६४१०, १३-१६४३३-३७). कलंकी जन्मपत्री फलकथन, प्रा.,मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (१)मम निव्वाणं गोयमा, (२)तिथौ गाली प्रकरणादिक; अंति: वीरवचन प्रमाण छे सही. ११३०९४. (+) अणगार वंदना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१०.५, १५४२७). अणगार वंदना, पुहि., पद्य, आदि: पाप पंथ परिहरे मोक्ष पथ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११३०९५ (+#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-२(३ से ४)=४, प्रले. मु. वैणा ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१०.५, १४४३७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-२४ से गाथा-३५ अपूर्ण तक नहीं है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि प्रदिप; अंति: सिधांत समुद्र सरीखो. ११३०९६. (*) औपदेशिक व नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, माघ शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-साध्वी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., ले.स्थल. हरसाला. म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३६, आदिः (-); अंति: रायचंद०कोई रागने रीस, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नववाड, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, आदि: नवपाड सहित व्रतपालै० सगला; अंति: रुखसबदार जो भवनी खोडी रे, गाथा-१०. ११३०९७. (+) अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४३०). अजितजिन स्तवन-तारंगागढ, मु. आगम, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा अजितजिणेसर; अंति: आगम० सीवसुख आपज्यो रे लो, गाथा-८. ११३०९८. (+) सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४४१). सुभाषित श्लोक संग्रह *, मा.ग.,सं., पद्य, आदि: यदि न क्रियते मित्र रिपु; अंति: भाव जिणा समवसरणत्था, श्लोक-२२, (वि. प्रत्येक श्लोक के अलग-अलग श्लोकांक दिए गए हैं.) ११३०९९ (+) सारदा स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४३८). १.पे. नाम. सारदा स्तोत्र, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: देवी सारदा वरदायिनी, श्लोक-११, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं; अंति: पूर मे वाछितं नाथ, श्लोक-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिनमंत्र स्तोत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं धरणो; अंति: नमामः कुशलं लभामः, श्लोक-५. For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नायगर्भित, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ___ आ. अजितसिंहसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्री; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११३१००. (+#) पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १८०४, भाद्रपद कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ८-४(१ से २,५,७)=४, ले.स्थल. मेडता, प्रले. भावसिंघजी; पठ. सा. सोभागश्रीजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १०४३२). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल-१ गाथा-१४ से ढाल-४ गाथा-५ अपूर्ण तक, ढाल-६ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-४ अपूर्ण तक है व कलश-१ अपूर्ण से है.) ११३१०१ (+#) ५ महाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ___ जैदे., (२४४११, १९४५०). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ रे संखेसर; अंति: कांतिवि० धन अवतार रे, ढाल-५, गाथा-३२. ११३१०२. (+) मौनएकादशीपर्व गणणं, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १२४२०-२५). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजस सर्वज्ञाय; अंति: (-), (पू.वि. अनागत चौवीसी तक है.) ११३१०३. (+) आदिजिन स्तवन-शत्रंजयतीर्थमंडन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:स्तवन, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३९). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. ऋद्धिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आवो आवोजी सुद्धा संवेगी; अंति: बिजु काइं न कामइजी, गाथा-२७. ११३१०५. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १०४३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं तेण: अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-३ 'महाविजय०पुंडरीकयाओ' पाठांश अपूर्ण तक है.) ११३१०६. (#) सिद्धाचलजी स्तवन, हितशिक्षा व चेलणासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, पत्रांक खंडित है., जैदे., (२४.५४११.५, १५४२८). १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: महारुं मन मोह्यं रे; अंति: कहेतां नावे हो पार, गाथा-५. २. पे. नाम, हितसिख्या सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. निंदा परिहार सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: चावत म करो परतणी; अंति: मानवी पांमस्यै देव विमान, गाथा-५. ३. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: (अपठनीय), गाथा-७. ११३१०७. (-) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:उपदेसी., अशुद्ध पाठ., दे., (२४४१०.५, १७X४२). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, प. १अ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: जोबन धन पावणा दीन च्यारा; अंति: साधु प्रभु भज उतरोनी पारा, गाथा-६. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भाण, मा.गु., पद्य, आदि: भुलता नही रे बंदा भुलता; अंति: भाण० मेटीप सही मेटीप, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धनीदास, पुहि., पद्य, आदि: जीतो रे चेतन मोह; अंति: जीतो रे चेतन मोह महीपत, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-यौवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जुहार, पुहिं., पद्य, आदि: जोवन जातां वारडी नही लागे; अंति: जुहार रे जोवन मे धर्म छे, गाथा-७. ५. पे. नाम. हरिकेशीमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ऋ. चोथमल, मा.गु., पद्य, आदि: अंति: चोथमल त्या मंगल च्यार रे, गाथा-१२. ११३१०८. (+#) बाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४३८). भरतबाहबली सज्झाय, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदिः स्वस्ति श्रीवरवा; अंति: गाता रामविजय श्रीवरे, ढाल-४, गाथा-३८. ११३१०९. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दशवैका., जैदे., (२४४१०.५, १२४४९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ११३११०. (१) चेलणासती सज्झाय व सीतासती सज्झायद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ४६-४५(१ से ४५)=१, कल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११, १५४४४). १. पे. नाम, सीतासती सज्झाय, पृ. ४६अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जळजळती मिळती घणी रे; अंति: अपनी रेपछै जी सीमोषरे, गाथा-९. २. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. ४६अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वखाणी राणि चेलणा; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा-७. ३. पे. नाम. सीताजी स्वाध्याय, पृ. ४६आ, संपूर्ण. सीतासती गीत, म. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो प्रीया छोडी; अंति: प्रणम् हो हो धरम हीइ धरी, गाथा-११. ११३१११ (#) १० श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४४३). १० श्रावक सज्झाय, मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: दश श्रावक भगवंतना; अंति: कहे सोभाग्यरतन हो, गाथा-१४. ११३११२ (#) सातभय नाम व व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १८४६०). १. पे. नाम. सातभय नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ७ भय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: इहलोक भय १ परलोक भय २; अंति: ए साते भय द्रव्यना जाणिवा. २. पे. नाम, व्याख्यान संग्रह, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.ग.,रा.,सं., प+ग., आदि: चत्तारि परमंगाणी दल्लहाण; अंति: (-), (प.वि. 'काक आदि जन्मा लघु वृद्धक' पाठांश तक है., वि. गाथा क्रमांक भिन्न भिन्न दिया है.) ११३११३. (+#) अक्षरबावनी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:केसवबावनी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,१५४४३). अक्षरबावनी, म. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से गाथा-५१ अपूर्ण तक है.) ११३११४. (#) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८१, आषाढ़ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. विद्युतपुर, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १६x४६). १. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. जगरूप, मा.गु., पद्य, आदि: अंगर अदभूत ओपमकी वलि हारी; अंति: गुर जोता भलौ काम लहओ भारी, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. नेमराजीमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. चतुरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम कुंमार; अंति: चतुरकुसल० कांइ तजे रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. जिनपद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.ग., पद्य, आदि: प्रीऊडा जिन चरणांनी सेवां; अंति: मोहन अनुभव मांगे, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर सूरत सोहै सकला पूजा; अंति: पासजीनी छबि अति भली रे, गाथा-७. ५. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १७८१, आषाढ़ कृष्ण, ७. पंन्या. बुद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीनतडी अवधारज्यो जिनवर; अंति: सु बुधिने भवजल पार उतारजी, गाथा-७. ११३११५. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, १४४३०-३७). महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ अपूर्ण तक लिखा है.) ११३११६. महावीरकल्याणक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७८५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. उनाऊआ, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद्र; पठ. मु. हर्षचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०, ३२४१६). दीपावलीपर्व सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: तीरथनायक वंदिये; अंति: हरख धरी श्रीपासचंद, गाथा-२२. ११३११८. (+#) महीपालराजा कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८-१०७(१ से १०७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ७X४४). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८०९ अपूर्ण से १८२६ अपूर्ण तक महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११३११९ (#) प्रतिष्ठा कल्प-अभयदेवसूरि सामाचारी, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, प.६५-६४(१ से ६४)=१,प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (११६०) तैलात् रक्षेत् जलात् रक्षेत्, जैदे., (२५४११, १३४४६). प्रतिष्ठा कल्प-अभयदेवसूरि सामाचारी, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (१)पूजाकरणं यथाशक्त्या, (२)भवत् अंकतोपि १५००, ग्रं. १५००, (पू.वि. ध्वजारोहण विधि अपूर्ण से है.) ११३१२० (+) सत्तरिसयंजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:सत्तरिसयंजिन स्तवनं., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १३४४०). तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तयासं अट्ठम; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१३. ११३१२१. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२-४१(१ से ४१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे.. (२४.५४११, १३४३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२९ सूत्र-२० अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक है.) ११३१२२. (+-#) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११, १५-१७४३६-५३). १. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अष्ट लबध नवनंध भंडार गोतम; अंति: कृष्ण जीवदया प्रतीपाल, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३०७ २.पे. नाम. नेमजिन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी सामलीहो सांमलीहो; अंति: रुचिरविमल०फली रे लोल, गाथा-११. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रहने रहने रहने अलगी; अंति: मोहन० स्तुति लटकाली, गाथा-५. ४. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), (वि. किनारी खंडित होने के कारण आदि अंतिमवाक्य अपठनीय है.) ११३१२३. (-) मडवा श्रावक स्तवन, औपदेशिक स्तवन व ६ द्रव्य पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:ढालउपदेसी., अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४१०.५, १६x४१). १.पे. नाम. मडवा श्रावक स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मडवाश्रावक सज्झाय, म. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: नगरीता राजग रीरीवाग मेरे; अंति: रतनचंद० श्रावक एह वीर, गाथा-७. २.पे. नाम. उपदेसी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कुसालचंद, रा., पद्य, वि. १८८६, आदि: ओतो विनोधरम जिनराज रो; अंति: कुसाल० जीवण रो कोड रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. ६ द्रव्य पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: षटधर वज्यो मै कयो है; अंति: आण सुधमन ध्यान ए, गाथा-४. ११३१२४. २२ परिषह सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२०४११.५, १६x२४). २२ परिषह सज्झाय, मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी रो मारग कठन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक ११३१२५ (#) चैत्रीपूनम देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४९). चैत्रीपूर्णिमा पूजा, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अवस्सप्पिणी हि पढमं; अंति: तीर्थयात्रा फलं भवेत, पूजा-५. ११३१२६. बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, पठ. श्राव. गोविंदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १२४४९). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, (पू.वि. 'वोनित्यं स्वाहा' पाठ से है.) ११३१२७. संखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन व सुभाषित श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, दे., (२४४१०.५, २३४१४). १.पे. नाम, संखेश्वरापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लगी लगी आंखीआने रही; अंति: उदयरतन० पुगी छै आस, गाथा-७. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोकसंग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: यावच्चंद्र दिवाकरौ ग्रहगण; अंति: कलह करै सगुण जोडि हत्थ, गाथा-२. ३. पे. नाम. प्रहेलिकादि श्लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रहेलिका श्लोक, सं., पद्य, आदि: त्रंबासुत गुसाइयां ताभूषण; अंति: दिहडा सोवैत्र अलेखे जाय, श्लोक-५. ४. पे. नाम, ज्योतिष श्लोकसंग्रह, प. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिष लोक संग्रह, से, पद्य, आदि आसनिसदाय पुरावयसः उत्तरहथा अतिः विसाई उषाढा श्रवणरेवति श्लोक-३. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे. नाम. चंद्रावणा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि छल होवे खुसीयाल मिगसिर अंति: कामनी तोवाहजी वानीवाह, गाथा-८, (वि. कुल गाथा परिमाण गिनकर लिखा गया है.) ६. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: भमरो हो बेरक सीआल के बंधण; अंति: प्यार लगावे ढोरीया, दोहा-१. ७. पे नाम ज्योतिष दोहासंग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तिनीवय उत्तरा पुनर्वसु; अंति: मूहता प्रवदंती तज्ञा, गाथा-१. ११३१२८ (+) पाक्षिक सूत्र व पाक्षिकखामणा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३०-२७(२ से २८) -३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२४.५X१०.५, ७४२९). , १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-२९अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. आवश्यक सूत्र- साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, प्रा., पद्य, आदि तित्थंकरे व तित्थे अंति: जेसिं सुअसायरे भत्ति, (पू.वि. पाठांश 'राई भोअण विरमण' से 'अहारिहतवोकम्म' तक नहीं है.) २. पे. नाम. पाक्षिकखामणा, पृ. २९-३०आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि पिअं च मे जंभे हड्डा; अति नित्थारग पारगा होह, आलाप-४, ११३१२९. पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१४४१०.५, ८x२०). 1 पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., सं., गद्य, आदि: श्री सरस्वति नमूजी सूमति, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., झवेरवर्धन तक लिखा है.) ११३१३० (+) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १७६१, माघ कृष्ण, ७ सोमवार, मध्यम, पू. १०-६ (१,३ से ७)=४, प्रले. मु. गणेशरत्नसागरः पठ. श्रावि. वीरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: साधुवंदना, संशोधित, जैवे. (२४४१०.५, ९४२८). महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., प+ग., वि. १७२९, आदि: (-); अंति: नामे पुन्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा - १०१, (पू.वि. डाल- १ गाथा-८ अपूर्ण से डाल- २ गाथा २० अपूर्ण तक व ढाल ८ गाथा-८२ अपूर्ण से है.) ११३१३१. (+) चरमजिनसमवसरण स्तवन, गुरुगुण गुंहली व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४x११, १३x४७). १. पे. नाम. चरमजिनसमवसरण स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. चिमन, प्र.ले.पु. सामान्य. समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक वार वच्छ देश आवजो; अंति: ओच्छव रंग वधामणा, गाथा-१५. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चरण करणस्यु शोभता; अंतिः शुभ० मिले शिव साथ रे, गाथा-५. ३. पे नाम औषध संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण. (२४१०.५, १२X३४). १. पे. नाम. आगमगुण स्तुति, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. औषध संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: अमृतामल की त्रिवंकनाना; अंति: (-). ११३१३२. आगमगुण स्तुति, गौतमस्वामी व सुधर्मास्वामी गहुंली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) =१, कुल पे. ३, जैदे., मु. पुण्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लहिइं मंगलमाल रसाल, गाथा-११, (पू.वि. गाथा- ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम गौतमस्वामी गहुली, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वालो माहरो वाहि छे वांसली; अंति: गावति रे गुरुगुण० अविलास, गाथा-६. ३. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुली, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि आमल कमलपा उद्यांमा ए अति (-) (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण है.) For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३०९ ११३१३३ (+) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. रत्नसंचयादि विविध ग्रंथों से विविध विषयक संकलित गाथाश्लोकादि संग्रह., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १६x४८-५२). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: निबफल कृपणधणं सागरसलिलं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है., वि. विविध क्रमों में गाथाक्रम है.) ११३१३४. (+) जंबूद्वीपादि परिधि परिमाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १८४४६). जंबूद्वीपादि परिधि परिमाण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ११३१३६ (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१०.५, १५४३३). प्रास्ताविक श्लोकादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७१ अपूर्ण से ९२ तक है.) ११३१३७. (+) पार्श्वनाथ स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३५). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: महानंदलक्ष्मीघना; अंति: श्रीहंसरत्नायितं, श्लोक-११. २. पे. नाम. जीराउलापार्श्वनाथाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरापल्ली, सं., पद्य, आदि: नत्वा प्रभुपार्श्व; अंति: शिवसंपतिदायको भवतु, श्लोक-८. ३. पे. नाम. नवतत्त्व क्षेपक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ३२ पर्याप्ता जीव-नवतत्त्व प्रक्षिप्त गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पण थावर सुहमियरा; अंति: जीव बत्तीसं. ११३१३८. दीपावलीपर्व कल्प, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४१०.५, ७४३६). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसंदरसरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-), (प.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक है.) ११३१३९ (+#) पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४४१०.५, ९४२५). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-७१ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ११३१४० (+) दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन ४, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०, १३४३३). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. गाथा-१७ से है.) ११३१४१. २४ जिन यंत्रराज स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१०.५, १४४४३). २४ जिन यंत्रराज स्तोत्र-बीजमंत्राक्षरगर्भित, सं., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रीसिद्धिमूलं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१८ तक ११३१४२. (+#) प्रास्ताविक श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७-३६(१ से ३६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक ६३७ लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १३४३६). प्रास्ताविक श्लोकादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अद्यापिनोब्भत्तिहरःकिलकाल; अंति: मंडनैकतिलकाः कियोतोजनाः, (संपूर्ण, वि. श्लोक क्रमांक अलग-अलग लिखा है.) ११३१४५. सम्यक्त्व कौमुदी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, १०४४५). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., प+ग., वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्यक्त्वकौमुदी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्री वर्धमान स्वामीनें नम; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११३१४६. (+#) एलाचीपुत्र स्वाध्याय, औपदेशिक सज्झाय व महासाधु नामग्रहणं कुलं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४४५). १.पे. नाम. एलाचीपुत्र स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत जांणिये; अंति: लबधिविजै गुण गाय, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपता त्याग, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडली रे जीभडली तुं ढाल; अंति: पापभ्रंति हवइ भागी रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. महासाधुनाम ग्रहणं कुलं, पृ. १आ, संपूर्ण. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जासिं जसपढओ तिहणे सयले, गाथा-१३. ११३१४७. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३-३१(१ से ३१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१०.५, १३४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२३ गाथा-३० अपूर्ण से गाथा-८९ तक है.) ११३१४८ (+#) मोतीकापासीआनो रास, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रावण कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. तेजविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १२४२७). मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सुंदर रूप सोहामणो आदीसर; अंति: सीस वहो नित आण, ढाल-५, गाथा-१०३. ११३१४९ (+#) नेमजिन, पार्श्वजिन, महावीरजिन संपदा-कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:कलपसूत्रमधेछेजी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १७४४५). नेमपार्श्वमहावीरजिन संपदा-कल्पसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: आठ गणधरना नाम शुभ १; अंति: पाली श्वामी मोक्ष पहता. ११३१५०. खरतरगच्छ तपागच्छ विवाद पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११, १२४३६). खरतरगच्छ तपागच्छ विवाद पद, रा., पद्य, आदि: प्रणमु भविचारथी ध्यान धरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ११३१५१ (#) औपदेशिक सज्झाय-अर्जुन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. श्रावि. लछमाबाई; पठ. सा. गुणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपदेसीतवन., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४९,१५४४०). औपदेशिक सज्झाय-अर्जुन, मु. अर्जुन ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: अनंत चोवीसी आददे सकल जीवा; अंति: नर नारी पाम्या हुल्लास, गाथा-२५. ११३१५४. (#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १३४३५-४०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भयहर स्तोत्र गाथा-२२ अपूर्ण से ___ भक्तामर स्तोत्र श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) ११३१५५. (#) वंदित्तसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२४.५४१०.५, १२४४६). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण तक है.) ११३१५६. १४ गुणस्थानक विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२४.५४११, २१४५७). १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिच्छे सासण मीसे अविरय; अंति: नइ पुणि चउद गुणठाणा हुइ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३११ ११३१५७. (#) शत्रंजयतीर्थ स्तवन व नमस्कार महामंत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४२६). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम किण दिन; अंति: परमानंद पद पास्यु, गाथा-७. २.पे. नाम. नवकार महामंत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ___मा.गु., पद्य, आदि: सर्व मंगल धुरे मांगलीक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११३१६१ (#) महावीरजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १३४३४). महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक लिखा है.) ११३१६२. (#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १८४५३). १. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १३अ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: बार गुण अरिहंत देव; अंति: तणो नय प्रणमे जगसार, गाथा-३. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण. नवपद स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: आसौ चेत्र आंबिल ओली नव; अंति: सासन नित नित जय जय कारीजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. मु. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर भुवण; अंति: जिन महिमा छाजेजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण.. मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधिय; अंति: ज्ञानविनोद० लाल रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १३आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र सेवो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११३१६४. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११, ११४३४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-पार्श्वजिन चिंतामणि, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमनमोहन पार्श्व; अंति: इम कहे जिनवर वाणी रे, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मनस्थिरीकरण, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मन थिर करजो रे समकित; अंति: वरजो रे चिदघन रासीने, गाथा-७. ११३१६५ (#) पार्श्वजिन स्तवन, अजितजिन स्तवन व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १६-४७४७-६८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. क्षेमकरण, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारी प्यारी प्यारी; अंति: खेमकरण सानिधकारी, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १७८३, ज्येष्ठ, १, प्रले. मु. नगराज ऋषि; पठ. मु. टीला, प्र.ले.पु. सामान्य. मु.क्षेमकरण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय अजियजिणंद; अंति: खेमकरण० सुख राखिजो ए, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही राउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ के प्रारंभिक पाठ तक लिखा है.) ११३१६६. सीमंधरजिन विनती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२१.५४१०.५, १३४३७). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३१६७. (#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१.५४११, २७४५२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-बालावबोध, ग. मेरुसंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२५, आदि: शिवाय श्रीमहावीरः; अंति: (-), (पू.वि. चैत्यवंदन बालावबोध अपूर्ण तक है.) ११३१७३. (#) औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०.५, ११४२६). औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, म. नरसिंग, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: नवघाटी माहे भटकत; अंति: तुम जावो छो हार रे, गाथा-९. ११३१७४. (#) महावीरवृद्धि स्तवन, पार्श्वजिन स्तवन व इरियावही मिच्छामिदक्कडं भेद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. विद्याविशाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १६४४८). १. पे. नाम, महावीरवृद्धि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इरियावही मिच्छामि दक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: पद पंकज रे प्रणमी; अंति: करि इम __ संथुव्यो भावै करी, ढाल-४, गाथा-१५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-लघु, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तवन, मु. विशाल, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर परगडौरे परता; अंति: विशाल० सुनि जर नयण निहाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. इरियावही मिच्छामिदक्कडं भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. इरियावही १८२४१२० भेद, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ५६३ अभियावतीयादि१०; अंति: (अपठनीय). ११३१७५. प्रत्याख्यान फल व पौषध फल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (११४११, १७४१८). १. पे. नाम. प्रत्याख्यान फल, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नारकानो आउखो खपावै; अंति: कोड वर्ष १०००००००००० नरक. २. पे. नाम. पौषध फल, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में अक्षौहिनी सेना का मान बताया है. मा.गु., गद्य, आदि: एक दिन रात्रैनो पोसा करे; अंति: पल झाझे रीत्यो देवतानो. ११३१७६. कृष्णरुक्मिणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:-ढालसागर., दे., (२०x१०.५, १६४२६). कृष्णरुक्मिणी सज्झाय-ढालसागर, रा., पद्य, आदि: सुण रुषमणए मानेति तु; अंति: करसा दुषमण न हेरानजी, ढाल-१, गाथा-२२. ११३१७७. (+) पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. अबीरेंदु ऋषि (वडतपागच्छ); पठ. श्राव. मुन्नीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१४११, ९४२६). पार्श्वजिन स्तोत्र-फलवर्द्धि, सं., पद्य, आदिः फलवर्धिपराधीशो जीयात; अंति: वंदे पार्श्वजिनेश्वरं, श्लोक-४. ११३१७९. नंदिषेणमुनि सज्झाय, वैराग्य सज्झाय व दिनमान श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. सकलवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, १७४४९). १. पे. नाम. नंदिषेणमनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसयां धणि परिहरी; अंति: लब्धि कहि निसदीसो रे, गाथा-१६. २. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि प्राणी रे; अंति: सोहामणी आणो हिदय मज्झारि, गाथा-९. ३. पे. नाम. दिनमान श्लोक सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में हनुमानजी का मंत्र दिया है. दिनमान श्लोक, सं., पद्य, आदि: अयनादिक वास राम हता; अंति: दिनकर्कादिनिशा, श्लोक-१. दिनमान श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जेतला अयन गया हुइ तेहने; अंति: पलनुं प्रमाण जाणवू. For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३१३ ११३१८० पंचपद नवकारमंत्र स्तवन व साधारणजिन पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२३४११, १३४३२). १. पे. नाम, पंचपद नवकारमंत्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, म. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: सूरवर सीस रसाल, गाथा-७. २.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. मालदास, पुहिं., पद्य, आदि: भलै मुख देख्यौ; अंति: भव भव हं तुम्ह चेरौ, गाथा-२. ३. पे. नाम. अजितजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: तब प्रभु अजित कहायौ; अंति: चक्रधर उर पर तखत सुहायो, गाथा-३. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. ध्रमसी, मा.गु., पद्य, आदि: मानी जिनवर सेवा मेरे मन; अंति: पारस परसे लोह कनक कर लेवा, पद-३. ५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. साधकीर्ति, पहिं., पद्य, आदि: आज ऋषभ घरि आवै देखो; अंति: (-), (प.वि. प्रथम गाथा अपर्ण मात्र है.) ११३१८१. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (१७.५४११, १८४३४). १. पे. नाम. नारकी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नारकी नरकनै विषै; अंति: करे बरस कोडा कोड, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: ध्रगपडो रे संसार; अंति: मुगतमारग नडो करे, गाथा-१६. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-कर्म, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन पाप करे भाइ ए कर्म; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११३१८२. मल्लिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३४११, ११४३४). मल्लिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभोवन प्रभु रे मल्लि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११३१८३. ७ नय सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३१, चैत्र शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. श्रावि. लिछमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:७ नय., दे., (२०४११, १२४३०). १. पे. नाम. ७ नय सज्झाय-सामायिक, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नगमनय नोधणीतो समायकना; अंति: परिणामने ही ज समायक माने, गाथा-७. २. पे. नाम. ७ नय सज्झाय-मुहपत्ति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेगमनय नोधणी सुतने ही; अंति: लीया वचन उचाह बोले तेमु, गाथा-७. ३. पे. नाम. ७ नय सज्झाय-रजोहरण, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेगमनय नीउ नने ओघो मान; अंति: भेद लीया होय ते ओघो कहे, गाथा-७. ४. पे. नाम. ७ नय सज्झाय-प्रतिक्रमण, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेगमनय दिन प्रते दोष लागो; अंति: थकी तेहने पडीकमणो कहे, गाथा-७. ५. पे. नाम. ७ नय सज्झाय-साधु, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेगमनय जथा प्रव्रतकरण करी; अंति: कर्मबंध रह्यो नही ते साध, गाथा-७. ६. पे. नाम. ७ नय सज्झाय-ज्ञान, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेगमनय व्यावहारनय; अंति: नय एक केवल लग्या न माने, गाथा-७. ७. पे. नाम. ७ नय सज्झाय-राजा, पृ. २आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: नेगमनय राजाना लखण सहित ते; अंति: चलावतो हवे ते राजा, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३१८४. (+) निश्चयव्यवहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैये. (२३x१०.५, १३-१६५३६). निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर रे देसना; अंति: वीतराग एणि परे कहे, गाथा-८. ११३१८७. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा व प्रत्याख्यानसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, वे. (२३४११, ७X२१). १. पे. नाम. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पृ. १आ - २अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि नमुक्कार पोरसीए अति हवंति सेसेसु चत्तारि गाथा ४. २. पे. नाम, प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उग्गए नमुकार सहियं; अंति: (-), (पू.वि. पुरमिढ्ढसूत्र अपूर्ण तक है.) ११३१९१ चैत्यवंदनचीवीसी-२ से ६, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२२४११, १०x२८). चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अजितजिन चैत्यवंदन से सुपार्श्वजिन चैत्यवंदन अपूर्ण तक है.) " ११३१९२. नेमराजिमती बारमासो, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पु. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे. (२२x११, १३३०). नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि सीवाले खाटु भली रे लाल आ; अति (-). (पू.वि. गाथा-२१ तक है.) " ११३१९३. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जै. (१९११, १५३३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-समता, मा.गु., पद्म, आदि: देहकोट बधन कारिमो कारिमो अति तिमतिम सुखनिधान, गाथा- १३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. ३३ वंदना के बारे में उल्लेख किया है.. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: जिम पंखी वासो वसइ संसार; अंति: स्वामी पारि उतारि रे चेतन, गाथा- ६. , " " १९३१९५ (+) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ३-२ (१ से २) १. प्र. वि. संशोधित दे. (२२.५X११, ७३७). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक *, प्रा.सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३८ अपूर्ण से है व ४४ तक लिखा है., वि. संभवतः दिगंबर ग्रंथ महापुराणगत जिनचरित्र है.) ११३१९६. पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. हुंडी : स्तवनपत्र., जैदे., (२२.५X११, ४X३०). पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगभिंत, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: प्रणमुं पासनाह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ३ अपूर्ण तक है.) पार्श्वजिन स्तवन २४ दंडकविचारगर्भित टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमु के नमस्कार करू; अंति: (-). १९३१९७. शांतिजिन स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. तलकवर्द्धन (गुरु मु. नितवर्द्धन ), प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. कर्ता द्वारा लिखित प्रत प्रतीत होती है. दे. (२०.५x१०.५, ९४२५). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. तलकवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि सोलमा शांति जिनेसरु रे; अति तलकनी नोडो मोह जंजाल रे, गाथा ६. २. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. " मु. तलकवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि इष्ट मीले सब आय के मले; अंतिः मनमांहि पुण्य करो सहु कोइ, गाथा-२. १९३२०२. (*) औपदेशिक सज्झाय, सम्यक्त्व सज्झाय व रात्रिभोजन परिहार पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. ३. प्र. वि. संशोधित. दे. (२३४१०.५, १३४३५) १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३१५ औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्य, म. खीमसी, मा.गु., पद्य, आदि: देखो काम महाबल जोद्धा; अंति: सगो बन सवारथ दुषदाइ. २.पे. नाम. सम्यक्त्व सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. मु. नथमल, पुहिं., पद्य, आदि: सुधसमगतरी सुणो नरनारी; अंति: नथमलजी० कीया आप ही पासी. ३. पे. नाम. रात्रिभोजन परिहार पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. रत्न, पुहिं., पद्य, आदि: आधो जीमण राति को करे; अंति: रतन कहे त्याग करो नरनार, गाथा-८. ११३२०३. ५ इंद्रिय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:पांच., दे., (२०.५४१०.५, १४४२७). ५ इंद्रिय सज्झाय, रा., पद्य, वि. १९५३, आदि: प्राणी पांच इंदरी वस; अंति: ते आतमकु उजवाली, गाथा-९. ११३२०५. जीवाभिगमसूत्र-२४ दंडक २७ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११, १४४४८). जीवाभिगमसूत्र-२४ दंडक २७ द्वार विचार, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: शरीर१ अवगाहना२ संघयण३; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-२५ देवागत, मनुष्यागत तक लिखा है.) ११३२०६ (#) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५-३(१ से ३)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, १८४३६). पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८११, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-१० गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११३२०७. (+) रोहिणी वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३६, फाल्गुन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. श्राव. खुशालचंद मलुकचंद वसा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०.५, ११४३१). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. ११३२०८. आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. पं. हेतवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०.५, ११४२८). आदिजिन स्तवन, पंन्या. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेश्वर पूजीइंरे; अंति: प्रमोदसागर सुख थाय रे, गाथा-५. ११३२०९ (+) असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७१, भाद्रपद कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. लसकर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १२४३८). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीगौतम गणधार; अंति: वीरविमल करजोडी कहै, गाथा-१९. ११३२१०. (+) श्रावक गुण सज्झाय, गजसुकुमालमुनि सज्झाय व साधुमनोरथ पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१०.५,१५४३१). १. पे. नाम. श्रावक गुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावकगुण सज्झाय, मु. मेवाडी मुनि, पुहि., पद्य, आदि: तो इणमें आतमा जोडी सचित; अंति: मेवाडी मनी० भवी भव आव सग, गाथा-१३. २. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हो सोरठ देश; अंति: इम करजोडी रतनचंदजी भणे. ३. पे. नाम. साधुमनोरथ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हजारीमल, पुहिं., पद्य, आदि: तीन मनोरथ धारो साधु; अंति: हजारीमल० मोक्ष सीदावे, गाथा-४. ११३२११ (+#) सिद्धचक्र स्तति व शत्रंजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १०४३३). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिले पद जपीये अरीहंत बीज; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरीक तीर्थं पाय; अति सौभाग्य यो सुखआणंदाजी, गाथा १. ११३२१२. (#) जिनदासश्रावक कथा व चंडपिंगलचोरनी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२३४१०.५, १३४४३). १. पे. नाम जिनदास श्रावक कथा, पृ. ४अ ४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जिनदासश्रावक कथा-नवकारप्रभाव बिजोराफलप्रदाने, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इललोकै नोकारनो फल कह्यो, (पू.वि. "सिरसाटइ छइ ए शब्द सांभली पाठ से है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. चंडपिंगलचोरनी कथा, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चंडपिंगलचोर कथा नवकार विषये, मा.गु, गद्य, आदि वसंतपुर नगर जितशत्रु अति (-) (पू.वि. "पुरंदरकुमर नाम दीधो" पाठ तक है.) ११३२१३ (#) माणिभद्रवीर छंद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २२x१०.५, ११x२१). माणिभद्रवीर छंद. पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दो सरसती; अति: (-) (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११३२१४. (४) माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x१०, १७४३३). माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरस्वती; अति: उदयकुसल० रीझां लहे. ११३२१५. (+) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२४.५४११.५, ४४१८). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग, आदि मुहपत्तिवंदणय; अति जारयसक्ती करी " पोवजो "3 १९३२१६. सर्वज्ञ स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. मु. हेमविमल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५४११, ११४३३). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. ११३२१८. (*) औपदेशिक सज्झाय, आध्यात्मिक पद व चउदै सुपनारो स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३-२ (१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी:तवन., संशोधित., जैदे., (२३×११, ११X३०). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: आनंदघन० इम सेव भगवान, (पू.वि. अंतिम गाथा का अंतिम पाठांश मात्र है.) २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. जै. क. बनारसीदास, पु,ि पद्य, वि. १७वी, आदि: तू आतम गुन जानि रे; अति वनारसी० कौन उतारै पार, गाथा- ५. ३. पे. नाम. चउदै सुपनारो स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. १४ स्वप्न स्तवन-त्रिशलामाता, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सिद्धारथ घर पट्टराणी; अंति: धण जननी सुख भोगवस्यो रे, गाथा- ७. ११३२१९. (+४) धन्नाअणगार सज्झाब, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२१.५x१०.५, १६५३३). धन्ना अणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवुजी मांगु; अंति अधिकार हो महामुनि, गाथा- १६. ११३२२० (+) धिरावली व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८५९, मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४११.५, १७४४१) "" १. पे. नाम थिरावली. पू. १अ १आ, संपूर्ण, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, ले. स्थल, राजपुर. नंदीसूत्र स्वाध्याय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि जयह जगजीवजोणीवियाणओ अंति: केवलनाणं च पंचमं तिबेमी, गाथा २७. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण, वैशाख कृष्ण, ८, ले.स्थल. बद्री. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: द्रवेसु वजं गृहेसु सार; अंति: घर वाछरुयां मुज घर गयंवरा. For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३१७ ११३२२१. (+) जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १६८२, चैत्र शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.६३, जैदे., (२४.५४११.५, ११४२५-३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: रुद्दाउ सुयसमुद्दाउ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण से है.) ११३२२२. (#) विमलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १४४३४). विमलजिन स्तवन, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल सुणो मुज वीनती रे; अंति: दयासूरि० करु सिरनामी, गाथा-६. ११३२२३. (-) पार्श्वजिन स्तुति, वर्णमाला व १६ शृंगार नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३.५४११, १०x२३-३०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. लालसागर (गुरु मु. हेमंतसागर); गुपि. मु. हेमंतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. लब्धिरुचि, मा.गु., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), (वि. पाठानुसंधान व्यतिक्रम व अशुद्ध है.) २. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ; अंति: ल व श ष स ह ल्लं क्ष. ३. पे. नाम. १६ शृंगार नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आदौ मंजन चारु चिर तिलकं; अंति: श्रृंगारक षोडसः, श्लोक-१. ४. पे. नाम. रोहिणीतप की स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासुपूज्य; अंति: देवी लब्धिविजय जयकार, गाथा-४, (वि. अंत में किसी अज्ञात कति का प्रारंभिक भाग दिया है.) ११३२२४. (#) औपदेशिक पद व पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ४४३४).. १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., ले.स्थल. नाडोल, प्रले. ग. विनीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. दीन, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: दीन० सत्त परमान तर्हि, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मुहपत्तिवंदणयं; अंति: ए सवे पखी पडिकमण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवसीउ आलोइ पछे बंदणा दोय; अंति: पाखी प्रतिकमण जाणवं. ११३२३४. संथारा की पाटी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, १४४४१). संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अपच्छिम मारणंतीय; अंति: पासे मिच्छामि दक्कडं. ११३२३५ (+) मंत्रावली, अपूर्ण, वि. १८४४, भाद्रपद शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, ले.स्थल. खंभायत बंदर, प्रले. मु. फतेचंद्र; अन्य. मु. लालचंद; मु. लाभनंद (गुरु आ. विवेकचंद्रसरि, पार्श्वचंद्रसरिगच्छ); गुपि. आ. विवेकचंद्रसरि (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३१). नवग्रह जापमंत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: शांतिं श्रियं कुरु, श्लोक-१०, (पू.वि. श्लोक-३ से है.) ११३२३९ (#) पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३६-३९). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आपि सुरराणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३२४१. ६२ मार्गणा १०२ बोल यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४४११.५, ५४१०). ६२ मार्गणा १०२ बोल यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: जीवगइइंदिकाए जोए वेए; अंति: (-), (पू.वि. बोल-३४ तक है.) ११३२४७. औपदेशिक श्लोकसंग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३६). औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ से ३ तक है.) औपदेशिक श्लोक संग्रह-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ११३२४८. (#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १०४२६). स्तवनचौवीसी, आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ ऋषभ जिणंद निरखी; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक ११३२४९ (+) शारदामाता छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १४४३८). सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदिः (-); अंति: होउ सया संघकल्लाणम्, गाथा-४२, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) ११३२५१. विवाहशोधन उपाय, संपूर्ण, वि. १८९१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अलायनगर, जैदे., (२३.५४११.५, १५४३१). विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु वाणी समरि; अंति: जोतिस तणो मरम्म, गाथा-३८. ११३२५८. (+#) कल्पसूत्र-चतुर्थव्याख्यानगत प्रधानचंद्रयोग वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११.५, ६४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. महावीरस्वामी के जन्मोदय पर ग्रह उच्च राशि व प्रधानचंद्रयोगादि वर्णन का उल्लेख है.) ११३२६२ (+#) औपदेशिक जकडी, औपदेशिक सज्झाय व हित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १३४४१). १. पे. नाम, औपदेशिक जकडी, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक जकडी-जीवकाया, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: काया कामनि बेलाल; अंति: वीनय० जूं अभेदि तुज मिलउ, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धोबीडा तुं धोए मनमुं; अंति: सहज० छे अमृत वेल रे, गाथा-६. ३. पे. नाम, हित सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. भाण, मा.गु., पद्य, आदि: मारग वहे रे उतावलो; अंति: भाममुनीवर० उलगो जगनाथ, गाथा-७. ११३२६४. इक्षकारी संधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, जैदे., (२४.५४११, ११४३४-३७). इक्षकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: (-); अंति: खेम भणै० कोडि कल्याण, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-४ से है.) ११३२७०. धनंजय नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:नाम., जैदे., (२४.५४११.५, ९४३१). धनंजय नाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. श्लोक-१०७ अपूर्ण से १२१ अपूर्ण तक है.) ११३२७१. भक्तामर स्तोत्र, औषध संग्रह व प्रश्नव्याकरण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, १७४३३-३८). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य सह प्रभावदर्शक विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org ३१९ भक्तामर स्तोत्र- शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि गंभीरताररवपूरित: अंति: परिणामगुणैः प्रयोज्याः, श्लोक-४. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य का प्रभावदर्शक विवरण, मा.गु., गद्य, आदि तथा ए काव्य ४ दिनप्रति अंतिः राजाप्रमुख सर्वजन वश्य. २. पे नाम औषध संग्रह, पृ. १अ संपूर्ण. औषध संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: पारेवानी वीठ भाग२ साकर; अंति: लीजइ सास उधरस शमइ. ३. पे. नाम. प्रश्नव्याकरणसूत्र श्रुतस्कंध ९ अध्ययन ४ अब्रह्माश्रवे चक्रवत्र्त्यादि अधिकार, पू. १आ, संपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-) अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वासुदेव विशेषण 'रामकेशवाभावरो सपुरिसा' तक लिखा है.) " ११३२७९. साधारणजिन स्तुति व साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५X११.५, ११४३९). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पच, आदि श्रीमते वीरनाथाय अति: विसंवंदामि तिथवरो, गाथा- ११. २. पे. नाम. साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार-मू. पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: लागो हुइ ते सवि हुं मनवचन. ११३२८१. (#) ८ प्रकारी पूजा काव्य व आदिजिन प्रभातीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४x११.५, १४X३४). १. पे. नाम. ८ प्रकारी पूजा काव्य, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १८९०, कार्तिक कृष्ण, २ शुक्रवार, ले. स्थल, पाल्हणपुर. सं., पद्य, आदि: विमलकेवलभासनभास्करं; अंति: मूलं दर्शनं सल्लभंति, श्लोक- ९. २. पे. नाम. आदिजिन प्रभातीयु, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहज्य साहज्य ऋषभनाथ; अति: (-) (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११३२८२. सिद्धचक्र स्तोत्र, ऋषभजिन स्तवन चक्रेश्वरीदेवी छंद, संपूर्ण वि. १८५९ पौष शुक्ल ७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य. पं. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४४११, १२४२८-५०). " 1 १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंतिः सिद्धचक्कं नमामि गाथा ६. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पच, आदि उंचा रे गढ सेत्रुन का अति वाधे अविहड रंग हो, गाथा-६, ३. पे. नाम. चक्रेश्वरीदेवी छंद. पू. १आ, संपूर्ण. शंकर, मा.गु., पद्य, आदि मा चक्रेसरी सिद्धाचलवसीया अति: कहे संकर० फल मने देवो, गाथा-७. ११३२८४. अट्ठाइस सीखामण बोल, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. माना आर्या पठ. सा. चनणा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१२x११, २२x१७). २८ शिखामण बोल, रा., गद्य, आदि: सरदना परुपणा परसंणा; अंति: धरम की रीज ० चुतर कजे. 1 " ११३२८६. (+४) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी माहवीर स्तवन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३.५x११, १३-१५४४१-४५). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिउ मि चंगी, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ९ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११३२८७ (+४) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-९ (२ से १० ) = २. पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., 1 प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x१०.५, १५-१६४४४-४८). For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण से २३ अपूर्ण तक व श्लोक-४७ अपूर्ण से नहीं है.) ११३२९२. मुहूर्तसंग्रह व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२२, माघ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १४-१५४४०-४५). १.पे. नाम. महतसंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: जेष्टा १ अनुराधा २ स्वाति; अंति: मास जन्म नक्षत्र टालीजे. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय; अंति: मतिविसाल सुखीया करो, गाथा-११. ११३३०९. बोधिदुर्लभ भावनानी सज्झाय व बार भावना, अपूर्ण, वि. १७०३, भोजननभगुण, आषाढ़ शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १०-८(१ से ८)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. जैसलमेर, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३६). १. पे. नाम. बोधिदर्लभ भावनानी सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. बोधिदर्लभ भावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वार अनंती फरसीओ छाली; अंति: बोधि रमण संभारो रे, गाथा-७. २. पे. नाम. बार भावना, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण.. दर्लभभावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: परिहर हर देवी सवी सेवि; अंति: भणता घर घर होवे वधावो रे, गाथा-१०. ११३३११. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (१७.५४११, १७४२७-३०). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: ए ममता दीन दोरी न रहै मन; अंति: कबीर० साधू बीरला पार लहै, गाथा-३. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कायापींड काचो राज; अंति: जान मै नटबा थइ मत नाचो, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. विनय, पुहि., पद्य, आदि: मेरो दिल लाग्यो प्रभु; अंति: वीनै साराबक गुण ग्यानसु, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, रा., पद्य, आदि: रे चेतन पोते तुं पापी; अंति: नीद्या भव भव दुकरत टीरतो, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: करणी फकीरी जव क्या दलगीरी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ११३३१२. पंचांगगणित विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, १३४३३). पंचांगगणित विधि, उपा. महिमोदय, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: परम जोति प्रभुकुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ अपूर्ण तक लिखा है.) ११३३१५. चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १८०६, कार्तिक शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८-४७(१ से ४७)=१, ले.स्थल. बलूंदा, प्रले. मु. गुणचंद (गुरु मु. बलराम); गुपि. मु. बलराम (गुरु मु. देइदान); मु. देइदान (परंपरा मु. जीवराज); गुभा. मु. जीवराज (गुरु मु. शांतिकुशल); गुपि.मु. शांतिकुशल, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२३.५४११.५, १९४३८). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: सीलवंतनि जाउ भामणि, खंड-६, गाथा-२५०५, ग्रं. ३०५५, (पू.वि. खंड-६ ढाल-१०२ दोहा-२ अपूर्ण से है., वि. ढाल-१०३) ११३३१७. रूपीअरूपी बोल, ३४ असज्झाय काल विचार व चरणसित्तरी करणसित्तरी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१४, माघ शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. मसुधा, दे., (१२४१०.५, १६५१९-२४). १. पे. नाम. रूपीअरूपी बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.ग.,रा., गद्य, आदि: १५ रूपी अट्ठफरसि ६ काय ४; अंति: ३ पुरसाकार ४ प्राक्कर्म ५. २. पे. नाम, चरणसित्तरी करणसित्तरी सह बालाबोध, प. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३२१ चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय समणधम्म संजम; अंति: विग्रह चेव करणत्तो, गाथा-२. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पांचमहाव्रत १० दसवीध जती; अंति: भावथकी ४ पदपुर्ण ७० बोल. ३. पे. नाम. ३४ असज्झाय काल विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तारो तुट १ दिशा लाल २; अंति: पड्यो होइ तो असज्झाइ ३४. ११३३१८. औपदेशिक सज्झाय व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२१४११, १२४२५). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, आदि: मोह माया मे मगन भओ मनमान; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ के प्रारंभिक पाठांश तक लिखा है.) २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. कबीरदास संत, मा.गु., पद्य, आदि: कोइ चणा वे बाग बगीचा कोइ; अंति: मरी जावु छे माया मेली रे, पद-४. ११३३२१. क्षमाछत्रीसी व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२५४११.५, ११४२५-३४). १. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८४६, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, ले.स्थल. नागोर, प्रले.सा. ग्यानाजी आर्या; पठ.सा. रुखमा (गुरु सा. ग्यानाजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सीस तणै इम चतुर्विध संघजी, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सोभागी साहब; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ११३३२५. (#) १५ तिथि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४११.५, ११४२६-३१). १५तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम अविरति; अंति: (-), (प.वि. नवमी तिथि स्तुति अपूर्ण तक है.) ११३३२६. प्रभंजनासती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, जैदे., (२५४११.५, १२४३०-३७). प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यने उपरे; अंति: देवचंद्र०लील सदाई रे, ढाल-३, गाथा-४९, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है.) ११३३२८. इलाचीकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.१, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४४). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदाई सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ११३३३० (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १८४४०). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: अंबा कुप्यति तात मूर्द्धि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२० तक है.) ११३३३३. नेमिजिन स्तवन, सकलतीर्थ वंदना व १० पच्चक्खाण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, कुल पे. ३, दे., (२०x१०.५, ८x२६-२९). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ तक है., वि. आदिवाक्य अपठनीय है.) २. पे. नाम. सकलतीर्थ वंदना, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. म. जीवविजय, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: जीव कहे भवसायर तरुं, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. १० पच्चक्खाण, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. ११३३३४. (#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, ११४३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११ अपूर्ण तक है.) ११३३३५. (+) पार्श्वजिन स्तुति, षट्भाषा स्तवन व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य. मु. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१.५४११, २१-२७४२२-२५). १.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: त्रिभुवनजनतारणगुण; अंति: कुशलांबुजबोधनं वासरेश, श्लोक-७. २. पे. नाम. षट्भाषा स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तव-षट्भाषायुक्त, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: नमो महसेन नरेंद्र; अंति: सुखानि विभो वितरा, श्लोक-१३. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सद्विवेक दशाकर्ष; अंति: धेयमानं संबुधैः, गाथा-५. ११३३३९. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२४४१२, १४४२९). स्तवनचौवीसी, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो; अंति: (-), (पू.वि. चंद्रप्रभस्वामी स्तवन गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११३३४१. होलिकापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, ८४४०). होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जयचर्म राजा वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ११३३४५. पल्लीपतन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, ११४२७-३०). पल्लीपतन विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: बार उघाडतां उपर गिरोली; अंति: कहे धुम स्थानक आगभय कहे. ११३३४९. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४१२, १३४३२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक है.) ११३३५१ (+#) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६८९, कार्तिक शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, प्रले. मु. भीमविजय मुनि (गुरु ग. देवराज); गुपि. ग. देवराज; पठ. श्रावि. राजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आदि/तव०, संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४४). आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा-४१, (पृ.वि. गाथा-३७ अपूर्ण से है.) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: यती तवनुकरण हार जाणवु. ११३३५४. (+) तिडंतधातुरूप प्रत्ययबोध व्याकरण व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १६५७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. लाडण (खरतरगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ६४२३). १.पे. नाम. तिङतधातुरूप प्रत्ययबोध व्याकरण, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. अज्ञात व्याकरण, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. अंत में मृगी यंत्र दिया गया है.) २. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ; अंति: ह्व द्वश्व व्य ष्ट ष्ण. ११३३५५. षट् अट्ठाई स्तवन व औपदेशिक दोहा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, ११४४३-४६). For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १.पे. नाम. षट् अट्ठाई स्तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. प्रधानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीनवलखापार्श्वनाथजी प्रसादात. ६ अट्ठाइपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदिः (-); अंति: बहु संघ मंगल पाइया, ढाल-९, गाथा-५४, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, औपदेशिक दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: निसी भोजन नवि करीये माय; अंति: एक कुल रीत विणक कहवाय, गाथा-१. ११३३५६ (+#) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १८४५०-५३). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: राम नाम न्यारो ओर रमताई; अंति: बहुना केन दृष्टेन सृष्टा, गाथा-२०, (वि. गंग, जसवंत आदि रचित पद, श्लोक, गाथादि संग्रह.) ११३३५९ (#) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५०-५३). महावीरजिन स्तवन-बामणवाडा, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिन मुख सरसति वरसति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७८ अपूर्ण तक है.) ११३३६१. गुणस्थानक जीवभेद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १४४३८). १४ गणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मिथ्यात गुण ठाणे; अंति: जोगए त्रय काया पामी, (वि. यंत्र सहित दिया है.) ११३३६२ (+) उत्तराध्ययनसूत्र की सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३२-३६). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्त धरी; अंति: (-), (पृ.वि. सज्झाय-२ प्रारंभ की गाथा अपूर्ण तक है.) ११३३६५ (+-) ३ वेद अल्पबहुत्व बासठीयो विचार-जीवाभिगमे व १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तर देव आयुष्य बोल यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. दीपचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४११, ६२४३३). १. पे. नाम. जीवाभिगमसूत्र-३ वेद अल्पबहुत्व विचार बालठीयो यंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जीवाभिगमसूत्र-३ वेद अल्पबहुत्व विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सव थोवा छपन अंतरदीपनी; अंति: वनस्पति काय निपोसक अनंत. २. पे. नाम. १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तर देव आयुष्य बोल यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ११३३६७. चतुर्विंशतिजिननामयंत्रोद्धत्यं स्तवन, पंचपरमेष्टिरक्षामंत्र स्तोत्र व शक्रस्तव, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२१.५४११.५, १२४३८). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिननामयंत्रोधृत्यं स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी निवासः, श्लोक-८. २.पे. नाम, पंचपरमेष्टिरक्षामंत्र स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि नमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३. पे. नाम. शक्रस्तव, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमो अहंत परमात्मने; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३३६८. (#) आदिजिन स्तवन व चेलणासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १५४४३). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ____ मु. किसन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभजिनेसर जगत सिरे; अंति: इम कीरतमुनी निज किसन भनी, गाथा-१८. २. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वखाणी राणि चेलणा; अंति: समय० पामसी भवतणो पार, गाथा-६. ११३३६९ सिद्धाचलतीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १९०३, आश्विन शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, ले.स्थल. मेडता, प्रले. ग. रविविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२, १०४२६). शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदिः (-); अंति: नित नमो गिरिराया रे, ढाल-१०, गाथा-१५२, (पू.वि. अंतिम ढाल गाथा-१४ से है.) ११३३७०. सिद्धस्तति व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२४४१२, १५-२०४३९-४४). १.पे. नाम. सिद्धस्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. वीतरागाष्टक, सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्धं; अंति: श्रीमानभ्युदच्युत, श्लोक-८. २. पे. नाम. एकादशी चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीरजी बहु; अंति: जिनसासनें जिम पामो भवपार, गाथा-९. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण... मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीगडे बेठा वीरजिन; अंति: परे रंगविजय लहो सार, गाथा-९. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल परव श्रृंगार हार पजु; अंति: प्रमोद० जय जयकार, गाथा-१२. ११३३७१. विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२३.५४११.५, १५४३४). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-३ तक है.) ११३३७२. आदिजिन, नेमराजीमति पद व सवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. भीमजी स्थविर; अन्य. मु. जीवाजी ऋषि; मु. सवराजजी ऋषि; मु. जगसीजी ऋषि; मु. देवजी ऋषि; मु. दामजी ऋषि; मु. राघवजी ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:तवसीडा., जैदे., (२४४१२, ११४३५). १.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: आदिजीनंद मया करो लागो; अंति: प्रभू हमही तमारी आस्या रे, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमराजीमति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. देवसंदर, पुहिं., पद्य, आदि: सखी मोहे जांनदे गीरना गीर; अंति: दर की दआथे० दीओ नेम मुगती, दोहा-३. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: गोकल घेजदुनाथ चले तजी; अंति: ब्रह्म ससी पर सामघटा, दोहा-२. ४. पे. नाम. प्रहेलीका संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: पीलो पण पोपट नही कालो पण; अंति: तेहने सीव वकूण भुपाल, गाथा-२. ११३३७७. (#) श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ९४२९-३४). श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., दर्शनाचार अतिचार अपूर्ण से चारित्राचार आकांक्षा वर्णन अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११३३८० (#) स्थूलिभद्रएकवीसो व विविध दृष्टांत गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २०४५१). १. पे. नाम. स्थूलिभद्रएकवीसो, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: (-); अंति: बोलइ अंगी निरमल थाईइ, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-१४ शा २. पे. नाम, विवध दृष्टांत गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक विविध दृष्टांत गीत, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव नंदी अरिहंत सरीषउ; अंति: लावण्य समय०बोलिउं बहु मूल, गाथा-१३. ११३३८१. पद्मावतीराणी आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५४१२, १२४३३). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० छुतइ तत्काल, ___ ढाल-३, गाथा-३८, (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से है.) ११३३८४. (#) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१ व रुक्मिणीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२, १८४३८). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१, पृ. १अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) २. पे. नाम. रुक्मिणीसती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: हो जी पटराणी गोवींद की; अंति: भावां लायो संजम भार, गाथा-१०. ११३३८६. (+) आगमिक विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-२९(१ से २६,२८ से ३०)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १२४५०). आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अगुरुलघु भेद अपूर्ण से अपायविचय धर्मध्यान अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ११३३९६. पडीकमणो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. केकीदडा, प्रले. सा. रे कवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पडीकमणो., दे., (२४४११.५, २०४३७). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: आवस्सही इच्छाकारेण; अंति: जाणहं अहं नयाणामी. ११३३९७. सरस्वतीदेवी छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३४११, १५४४५). सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ११३३९८. नेमनाथजी सीलोको, अपूर्ण, वि. १८७८, श्रावण शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. रीङ, प्रले. श्रावि. चतुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ९४२५). नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: जेरो सीलोको कहे नरनारी, (पू.वि. 'जांझर घुघर धुम' पाठांश से है., वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक नही लिखा.) ११३४००. आषाडभूत ढालो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्राव. सदार्मल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अषाढभुतनोचोढा. पुजजि माहाराज अनेकगुणोसकल करे पिडत १००८ श्री जेतसीजीमाहाराजरे प्रसादे., दे., (२४४१२, १७४४८). अषाढभूति चौढालीया, मा.गु., पद्य, आदि: सासण घणीय सानिध करो वचन; अंति: गुर प्रामे आणि रे लोय, ढाल-९. ११३४०४. (+) धन्ना की सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. शिवलाल (गुरु मु. बगसीराम ऋषि); गुपि. मु. बगसीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धन्नांकी, संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४११.५, ९४३३). धन्नाऋषि सज्झाय, म. विनयचंद्रजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन सासण साम्मी अतंर; अंति: खकर विनयचंद गुणगाया, गाथा-२०. For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३४०७. ज्ञानमुनि गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११.५, १४४३२). ज्ञानमुनि गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १९३५, आदि: सरसति माता दया करो आपो; अंति: गाया मन सगला रे भायाजी, गाथा-११. ११३४०८. ८ प्रवचनमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७६, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. बीलारा, अन्य. सा. नंदकवर कलाश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पांचसुमतति., दे., (२४४१२, १७४३५). ८ प्रवचनमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: पांचसुमत तीनगुप्त आठ; अंति: चंद कहे। जे जेकार हो, ढाल-८. ११३४०९ रथनेमिराजिमती पंचढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य. श्राव. अगरचंद भेरोदान सेठिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रहनेमी५ढाल, दे., (२४४१२, १४४३१). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरी; अंति: रीख रायचंदजी कनी जोड, ढाल-५. ११३४१०. नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१२, ९४३४). नेमराजिमती गीत, मु. राजऋद्धि, पुहि., पद्य, आदि: अजी नेमीश्वर बनड़ा परण; अंति: चढ्यासरे दोनों मुक्ति पाय, गाथा-१३. ११३४१७. ऋषिमंडल स्तोत्र यंत्रलेखन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, दे., (२३.५४१२, १३४२९). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्-यंत्रलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्थान पवित्र; अंतिः विधि अम्नाय थोडे स्थानके, संपूर्ण. ११३४२२. स्तुति, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. १५, दे., (२३.५४११.५, १७X४१-५०). १. पे. नाम. उदयचंदगुरु स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. म. हीरालाल, पहिं., पद्य, आदि: पूज उदेचंदजी को सरणो; अंति: हीरालाल० का गरजी रे. गाथा-५. २. पे. नाम. शिवलाल स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शिवलालगुरु स्तुति, मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: करले पूज चरण का; अंति: हीरालाल दिन चढते वान, गाथा-९. ३. पे. नाम. शिवलाल स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शिवलालगुरु स्तुति, म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९४४, आदि: पूजजी का दर्शन की; अंति: हीरालाल० हित विचारी, गाथा-७.. ४. पे. नाम. शिवलाल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शिवलालगुरु स्तुति, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: पूजजी आया रतनपुरी; अंति: हीरालाल०पावा लागसूजी, __गाथा-८. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदू पारस जिनंद वंदू; अंति: चोथमल० गायो तवन रसाल, गाथा-१४. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. चौथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: समज मन कोई नहीं थारो; अंति: चोथमल० रामपुरा मुझारो, गाथा-७. ७. पे. नाम. धर्मरुचिअणगार सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन तपसीजी हो मुनिवर; अंति: चोथमल०नित प्रणमु थारा पाय, गाथा-८. ८. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. गुलाबकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: सोला सीणगार बतीसो; अंति: गुलाबकीर्ति० कियो थिररी, गाथा-११. ९. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आद जिनेसर आनंदकारीजीरी; अंति: प्रसादे चोथमलने गाइ रे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३२७ १०. पे. नाम. दस बोल सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. १० बोल सज्झाय, मु. मगन, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन चेतो रे दस बोल; अंति: पुरुष महिमा कहावे रे, गाथा-७. ११. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: चंद्रप्रभु चितमोह; अंति: विनवै दासू चरनारो, गाथा-१२. १२. पे. नाम. दसार्णभद्र सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, म. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: पधार्या वीरजिणंद भार; अंति: पुरामे चारसंत की लेर, गाथा-११. १३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्य, मु. चौथमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: पंछी काहे कू प्रीत लगावे; अंति: चोथमल० ज्ञानी यू फरमावे, गाथा-५. १४. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. __मा.गु., पद्य, आदि: पदम प्रभुजी सुप्रीत लगाणी; अंति: मगन नीत भगति जीगर उरठाणी, गाथा-५. १५. पे. नाम, जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: अतुल वैरागी जंबुकुमार; अंति: हीरालालजी ज्ञान तणा दातार, गाथा-३०. ११३४२५ (#) गौतमस्वामी छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १०४२६). गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११३४२६. (+-) महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सतुती., अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१२, १८४३९). महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदिः (१)णमो अरीहंताणं णमो सिद्धाण, (२)आसोख वीरखं सुरपुप वीस्टी; ___ अंति: ओर छोरो की का हानी हे, गाथा-८. ११३४२७. कायस्थिति विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. ३, प्र.वि. हुंडी:काय., दे., (२४.५४१२, २१४५२). कायस्थिति विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: कायथिति जीव गय इंद्र; अंति: चर्म अचर्म औतरो नथी. ११३४२८. (#) आगमिक विविध विचारसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-५(१,३ से ६)=२, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१२, ११४१४-३४). विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गुरुलघुपणा विचार अपूर्ण से धर्मध्यान विचार तक है व बीच के पाठ नहीं हैं.) ११३४२९ (+#) श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १४४३५). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: श्रीमते वीरनाथाय सनाथाय; अंति: विसंभवनिचूइयं वंदे, श्लोक-५०, संपूर्ण. ११३४३७. सरस्वतीदेवी स्तोत्र व शारदाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११.५, १४४५२). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. २. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ऐं ह्रीं श्रीं मंत्र; अंति: कल्याणदात्री मम मनसि, श्लोक-९. ११३४४७. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: (-), (पू.वि. महावीरस्वामी के देव क्षय वर्णन अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३४५२. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., ___ जैदे., (२३४१२, ११४३०). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम चैत्यवंदन अपूर्ण से शत्रुजयतीर्थ प्रथम थोय तक है.) ११३४५३. मंत्रसंग्रह व आणुपूर्वी स्तवन व औषधसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३४११, १४४३४). १.पे. नाम. मंत्रसंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र आदि संग्रह, उ.,ग.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. आणुपूर्वी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक-८. ३. पे. नाम. औषधसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: हिंगलु तोधोलक रोगीने पाए; अंति: ३ सुपारी ४ फुलेल. ११३४५४. सिद्धचक्र व शत्रुजयतीर्थ स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२३४१२, १३४३३). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ४अ, अपूर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ४अ-४आ, पूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय गिरि तीरथसा; अंति: (-), (पू.वि. अन्तिम गाथा का किंचित् पाठ नहीं है.) ११३४५५ (+) नेमराजिमती तेरमासा व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. दांता, अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, १७४४६). १.पे. नाम. नेमराजिमती तेरमासा, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १७९९, आषाढ़ शुक्ल, ८, मंगलवार. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: प्रणमं विजया रे; अंति: तेर मासा० अचल थाई, गाथा-१२१. २.पे. नाम. गाथासंग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण... गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मोर वसिगिरगहवरिंग अणवसंता; अंति: परिसो नेह छार उपरें लेपणो, गाथा-३. ११३४५६. (+#) समवसरणविस्तार गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४९.५, १४४४१). १. पे. नाम, समवसरण विस्तार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. समवसरणविस्तार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: रिसहो बारस जोयण; अंति: पासे वीरेण पंच चउ, गाथा-१. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जं अन्नाणि कम्मं सवेई बह; अंति: माहाविदेयस्स विक्खंभो, गाथा-७. ३. पे. नाम. जीवआयु विचार गाथा सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी प्रकरण-जीवआयुष्यबंध विचारगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: वासासयं तु सवीसं; अंति: सुक्खहसणंतु पणवीसं, गाथा-२. बृहत्संग्रहणी प्रकरण-जीवआयष्यबंध विचारगाथा संग्रह का टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: एक १०२० मनुष्यनो० एकसो; अंति: उत्कृष्टउ२५ वरस आयु जाणवओ. ४. पे. नाम. १२ चक्रवर्ती द्वार विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हासिया में लिखी है.. १२ चक्रवर्ती द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: ब्रमदत्तचक्र नरगे गयो, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११३४५८. १८ हजार शीलांगरथ का यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४८.५, ५४१०). १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा के यंत्र तक है.) ११३४५९. परमेष्ठि के १०८ गुण व आचारज की आठ संपदा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५४९.५, १०x४५). १. पे. नाम. १०८ परमेष्ठि के गुण, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतना गुण बारा; अंति: मधुर वचन २७. २. पे. नाम, आचारज की आठ संपदा, पृ. २आ, संपूर्ण. आचार्य ८ संपदा, मा.गु., गद्य, आदि: १ आचार संपदा २ रूपसं; अंति: शरीरसंपदा संग्रसंपदा. ११३४६० (+) प्रश्नोत्तररत्नमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १५७०, भाद्रपद, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. हंडी:प्रश्नोत्तरमालिका., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४४९, ६४३४). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कंठगता कं न भूषयति, श्लोक-३०, (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण से है.) प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: पहिरी कुनइ सोभइ नही. ११३४६१. नवग्रह स्तोत्र, सूर्याष्टक व वनस्पति भार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४८.५, १०४४०). १.पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: जिनपतिपरतोवतिष्ठंति, श्लोक-९. २. पे. नाम. सूर्याष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८०७, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, बुधवार, ले.स्थल. केलवानगर, प्रले. मु. मुक्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. क. सिंह, सं., पद्य, आदि: रक्तवर्णं महातेजो; अंति: सर्यनामे न गच्छता, श्लोक-८. ३. पे. नाम. वनस्पति भार, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पति मान श्लोक, सं., पद्य, आदि: अपुष्पिता भार चत्वारि; अंति: निरगंधा भामष्टादशंविद्, श्लोक-४. ११३४६२. (#) पार्श्वनाथजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०, ९४२९). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दै सरस्वती; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ११३४६३. युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४९, ७X४२). युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयुगमिंधर भेटवा; अंतिः (१)जिनसागर० अविचल राज, (२)जिणंदराय तुम सुलागोरंग, गाथा-६. ११३४६४. बत्रीस योग आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४९.५, १०४२६). ३२ योग विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हवइ बत्रीस जोगसंग्रह दोष; अंति: करी शुद्ध मरणा साधजी करइ. ११३४६६. सीमंधरजिन विनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४९.५, १४४३४). सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: पुर्व पुखलावती बीजै; अंति: जेमल० पइ उगता सूर, गाथा-१६. ११३४६७. (#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, ७४३५). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ११३४६८. (#) मेघकमार चौढालिया, अपूर्ण, वि. १७८६, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४९, ९४३३). For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मेघकुमार चौढालिया, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: जादव० भणता सुख थाय, ढाल-५, गाथा-२२, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१७ अपूर्ण से है.) ११३४६९. सीझणद्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्रावि. उमाछोटी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:सीझण., दे., (२४.५४८.५, १०४३५-४०). सिद्धद्वार, मा.गु., गद्य, आदि: पेहली बीजी तीजी नरकना; अंति: सिद्ध एक समय १०८ सिद्धे. ११३४७०, नेमजिन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४९, १२४३२). १.पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. म. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल छोडि नेमजी; अंति: इम जंपे सीस जिनेंद्र, गाथा-८. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, प. १आ, संपूर्ण. उपा. हितविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: अजिन जिणेसर वीनती रे; अंति: हीतविजय० चोथ सनिवार के, गाथा-७. ११३४७१. (#) चौवीसजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४९.५, १५४५९). २४ जिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंद सुखकंद आणंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंद्रप्रभजिन पद तक लिखा है.) । ११३४७२. औपदेशिक श्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४९.५, १२४४४). औपदेशिक श्लोक, सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरु; अंति: वृक्षस्य फलान्यमूनि, श्लोक-१, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत भगवंत अशरण शरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ-"द्रव्यपूजा करी पछे भावपूजा कर" तक लिखा है.) ११३४७४. अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४९, १९४४८). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. चंद्रभाण शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: साधु कहे अरणकजी सुणो सुणो; अंति: चंद्रभाण० सील पालौ नरनार, गाथा-३७. ११३४७५ (+) औपदेशिक पद, औपदेशिक सज्झाय व दशार्णभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४९, १२४४३). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: सुख दुख दोनों पीहा मारे; अंति: जीते मुकुं मेहल गडनाजी. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जिनभक्ति, आ. हर्षसूरि, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिनवर नमी करुं रे; अंति: हरख सूरे ढाल सुणो नरनार, गाथा-८. ३. पे. नाम. दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: में तो वे मछराला हो राजा; अंति: मझार साधुजी गुण गाया, गाथा-१०. ११३४७७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:हटवा, दे., (२४४९, १३४३०). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: हटवाडो मेलो मड्यो; अंति: शुभभावस्यु जुउ तरो भवपार, गाथा-१८. ११३४७८. समस्तविंशतिपद स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४८.५, ११४३५). २० पद स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वित हरख धरी अनुभव; अंति: प्रभु अरज अवधरणा, गाथा-५. ११३४८०. पार्श्वजिन स्तवनयुगल व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२०.५४८.५, ३२४१९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: मन मोहनगारो साम सहि; अंति: सफल अपणौ करौ जी लो, गाथा-१०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ.१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ऊँचा रानीजीरा गोखडा कोई; अंति: पासजी कांई महिमा थाहरी, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३३१ ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: स्ववर्गं द्विगुणं कृत्वा; अंति: अधिकं यस्य अर्थदं, श्लोक-१. ११३४८२. नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४९.५, ११४२३). नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: गोख चढी राजीमती जोवै; अंति: गुण गाता सुख थाय, गाथा-१३. ११३४८३. (#) मुनिसुव्रतवर्षाभाव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४९, १२४४५). मुनिसुव्रतजिन स्तवन, म. हंसरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ऐन असाढो उमस्योजी; अंति: नीरें सिच्यो समकित छोडि, गाथा-९. ११३४८४. (+) द्रौपदीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:दरोप. यह प्रत सं.१८९९ जेठ वद-१५ बुधवार साहेपुरा में श्री रायकवरी द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि है, क्योंकि अंत में "दत्रो उतार्यो पानो" ऐसा उल्लेख मिलता है., संशोधित., दे., (२४४९, ९४३५). द्रौपदीसती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: हो सुरपतजी अरज करु; अंति: देउं हाथो हाथोज पकडाई, गाथा-१०. ११३४८५ (+) २० विहरमानजिन स्तवन व नवकारवाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२२.५४८.५, १०४५०). १.पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीस विहरमान जिनवरराय; अंति: समयसुंदर० पाय सेवा, गाथा-४. २. पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: लबध कहइ० नित नित नवकार, गाथा-९. ११३४८६. नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४९.५, १०x२५). नेमराजिमती गीत, म. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कहे करजोडी राजुलनारि; अंति: मान के मुझने तारजो रे लो, गाथा-१३. ११३४८७. श्रेयांसनाथजी रो,पार्श्वनाथजी रोव पन्नरतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४७.५, १३४५३). १.पे. नाम, श्रेयांसनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रेयांसजिन स्तवन, मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: प्रभु श्रीअसजीन राय; अंति: संमत अठारईकोतर रे लो, गाथा-१४. २.पे. नाम. पार्श्वनाथजी रो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, श्राव. देवब्रह्मचारी, पहिं., पद्य, आदि: काशीदेश बनारस नगरी; अंति: देवब्रह्मचारी० मारग चार, गाथा-१०. ३. पे. नाम. पन्नरतिथि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. १५तिथि स्तवन, मु. कनीराम, मा.गु., पद्य, आदि: हाथ जोडीनै कामण बोले कर; अंति: वीणती श्रीकनीरामजी गाइ, गाथा-१८. ११३४८८. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, ले.स्थल. रहणगाम, प्र.वि. हुंडी:ढाल उप. अंत में सं.-१८९० महा सुद २ सोमवार को लिखित प्रत की प्रतिलिपि किए जाने का उल्लेख मिलता है., दे., (१२.५४८.५, १२४१९). औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: हारे ओ जुग जाण सपन की; अंति: बचना बुदसु धरम दीपाणा, गाथा-८. ११३४८९ (#) सरस्वतीदेवी छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१८४८, १०x२०-२४). For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन; अंति: शांतिकुशल० आस फले ताहरी, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से गाथा-२६ अपूर्ण तक नहीं है.) ११३४९०. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२२४८.५, ९४३०-३८). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: परमानंदसंपदाम्, श्लोक-८०, ग्रं. १५०. ११३४९१. औपदेशिक गाथा व नवकार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, कल पे. २, प्र.वि. द्विपाठ., दे., (२०४९, ८४३२). १.पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कोटगढ देश गांम उत्तम अनुप; अंति: चलेंगे ऐसे खलक के देखते, गाथा-१. २. पे. नाम. नवकार विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. चिंतामणिकल्पे जाप विचार, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अंगुष्टजाप मोक्षाय उपचारे; अंति: सहस सहस्स फटिक ए लहई, श्लोक-३. ११३४९३. बारभावना वेल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. रेणुकापुर, प्रले. मु. मोहनरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४९, ५४२९). १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: (-); अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२८, ग्रं. २००, (पृ.वि. ढाल-१३ दहा-४ अपूर्ण से है.) ११३४९४. श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१७४८.५, १२४२९). श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक धर्म करो सुखदाइ; अंति: नेम कहइ० धर्म करो सुखदाइ, गाथा-११. ११३४९५. गौतमस्वामीनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४८.५, ९४३३). गौतमस्वामी छंद, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष्य; अंति: गौतम तरी संपति कोड, गाथा-७. ११३४९७. सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१४८.५, ९४२६). सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक मन सुधे करो; अंति: सामाइक करौ निसदीस, गाथा-५. ११३४९८. पार्श्वजिन पद द्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४८.५, ७X४०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, म. वीरविजय, पहिं., पद्य, आदि: देखो भाई अजब ज्योति; अंति: वीरविजय० मेरे मन की, गाथा-३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे मन मानी साहिब; अंति: लोह कनक करि लेवा, गाथा-३. ११३५०२. (+) पार्श्वजिन स्तुति-नाकोडा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१७.५४८.५, १०४२४). पार्श्वजिन छंद-नाकोडामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपणे घेर बेठा लील; अंति: कहै गुण जोडो, गाथा-८. ११३५०३. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८२, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. उदैपुर, प्रले. पं. गौतमविजय; पठ. श्रावि. चंपाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसीतलनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२२.५४९.५, ८४३८). आदिजिन स्तवन, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा वालेसर अरिहंत के; अंति: के न छोड़ उपासना रे, गाथा-७. ११३५०४. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१२.५४८.५, ७४१६). नेमिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नंदसलोणा नंदणारे; अंति: उदेरतन०भाविइं रे लोल, गाथा-४. ११३५०५ (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४८.५, ९४३८). For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३३३ ऋषिमंडल स्तोत्र-बहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: परमानंद नंदितः, श्लोक-६३, ग्रं. १५०. ११३५०८.(-) भरहेसर सज्झाय व अंबामाता छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१.५४८.५, २०-२९४९-१८). १. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जासिं जसपढओ तिहूणे सयले, गाथा-१३. २. पे. नाम. अंबामाता छंद, पृ.१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. सं., पद्य, आदि: धुवे वाला वडाला धूह; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ तक है.) ११३५१० (-) सीमंधरजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:श्रीमीद्र., अशुद्ध पाठ., दे., (११.५४८, १३४१९). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सीमंधर स्वामी; अंति: हीरालाल० जिणंद जसै जुग मे, गाथा-१०. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ओर संसार जीव कर रे सटापटा; अंति: संजम वार मुगत जासी पाधरो, गाथा-५. ११३५११. (-) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०४८.५, १५४३३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-१, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन मान ले साडीया वतिया; अंति: के पामोगे सुव गतिया, गाथा-११. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-२, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: खलक एक रेहन का सुपना समझ; अंति: वेडी कहे घणी दास करजोडी, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-३, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, श्राव. रामसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: देख भाई दिल में सोच विचार; अंति: गाई विनती तीतरबाडे मझार, गाथा-८. ११३५१३. (-) औपदेशिक सज्झाय व प्रास्ताविक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. चंदणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (१९.५४८.५, १२४२९). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-चेतन, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन अनंत गुणारो रे जाण; अंति: उदे आवसी चेतन नते सक तोर, गाथा-८. २. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक सवैया संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: देखे सो काम नाम नही मन मे, गाथा-३. ११३५१५. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१४८.५, १५४३८). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-वाणोतरशेठ, म. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेठ कहे सांभल रे; अंति: धरम करे ते जीते रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नंदलाल, पुहिं., पद्य, आदि: अवसर मत चूको मुगतिरो मेलो; अंति: में सांवण महिने गाया जी, गाथा-५. ११३५१६. नेमिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४८.५, ९४३६). For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तजकर राजुलनार तज; अंति: करे जिनदास सुनो जिनवर रे, गाथा-४. ११३५१७. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२५४९, १२४५०). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-५ उद्देश-१ गाथा-३९ अपूर्ण से है व गाथा-७१ अपूर्ण तक लिखा है.) ११३५१९. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४x७.५, ७४३५). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. गुणानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: अजितादिक जिनबीसजी पायापद; अंति: सुपसायथी फलीवंछित आस, पद-५. ११३५२१. चंडप्रद्योत व औपदेशिक दृष्टांत कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४८, १६४५३). १. पे. नाम. चंडप्रद्योत कथा, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: धर्मपुरननगर धर्मराजाने; अंति: करणीने बले भली गत गयो. २. पे. नाम. औपदेशिक दृष्टांत कथा, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: शेठ परदेस जाइ कमाइ कर; अंति: शीख माने तो सुखी होवे. ११३५२२. विहरमानजिन नाम-उत्कृष्ट संख्या, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२४.५४१५, ५४१०). विहरमानजिन नाम-उत्कष्ट संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजयदेवनाथ१; अंति: ३४ श्रीबलभद्र. ११३५२३ (+#) नेमराजिमती सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:तवन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४८, ११४३२). १.पे. नाम, नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हो जी छान छान कुर कमायो; अंति: गिर जडा कछोडी हो वाला, गाथा-८, (वि. पाठांतर होना संभव २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: काशी देश वणारसी नगरी तारी; अंति: जी हमारी आवागमन निवार, गाथा-७. ११३५२५. (#) १० श्रावक विचार, संपूर्ण, वि. २०२०, फाल्गुन शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:१०श्रावक., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४८, ११४३९). १० श्रावक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भगवान का दस श्रावका को; अंति: भार्या गोकल गाया छे. ११३५२६. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३.५४८, ७X४६). मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: श्री वीरं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. १५० कल्याणक वर्णन अपूर्ण तक ११३५२८. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय व चेलणासती सत्तरढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(२ से ३)=२, कुल पे. २, दे., (२०.५४७.५, १०४३०). १.पे. नाम. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु जिनवर वीरजी समरु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. चेलणासती सत्तरढालियो, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-१ अपूर्ण से है व ढाल-४ दोहा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ११३५२९ (+-) आहार गवेषणा व धन्नाशालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. माहीकुंवर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२२.५४८, ११४३३). १. पे. नाम, आहार गवेषणा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३३५ मा.गु., पद्य, आदि: तिजा सुमीतजे यषणा आहाररो; अंति: जोगी रसत हुव भोलोय साधु, गाथा-८. २. पे. नाम, धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:धनो. मा.गु., पद्य, आदि: भांगी छे कलपवरष डाल कठण; अंति: ठाम जनम मरण दुख मेटीआरे, गाथा-११. ११३५३० (-) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४७.५, ९४२५). सीमंधरजिन स्तवन, म. गोविंदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नित होयजो हमारी जी मनवचन; अंति: इम कहह वाजे जे ____ नंदाजी, गाथा-८, (वि. अंत में एक दहा लिखा है) ११३५३१. साधुगुण पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (११४७.५, १३४२२). साधगण पद, पुहिं., पद्य, आदि: गहि सुधग्यान धरे है; अंति: धन धन साधुगुणधारी जी, गाथा-५. ११३५३३. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२०४८, ५४१८). प्रतिक्रमणसत्र संग्रह-श्वे.म.प.* संबद्ध, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: सूअदेवया भगवई नाणावरणीय; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतदेवता व कमलदल स्तुति है.) ११३५३७. पार्श्वजिन स्तवन व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:तवन., जैदे., (२१.५४७.५, ६x२१). १. पे. नाम, संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसरि, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: सयल रिप जीपतो, गाथा-५. २. पे. नाम. गोडी पार्श्वनाथ गीत, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. विद्याविलासजी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमं गवडी मंडन पासजी; अंति: त्रिभुवन केरो राज रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. वरकाणा पार्श्वनाथ गीत, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवरकाणे पास सदा संपठ; अंति: ज्यो चरण कमल हरखै करी, गाथा-५. ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुसु निजर धारीये; अंति: वंदै श्रीजिनलाभ हो, गाथा-५. ११३५३८. मनोरथ चिंतवणी, पौषध सज्झाय व अभव्य कलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४x७, ८-१२४३६-४०). १. पे. नाम. मनोरथ चिंतवणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति का प्रारंभिक पाठ १आ से १अ की ओर पढना है. श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले मनोरथे समणो पासकजी; अंति: अंतकाले एहवो मुझने होज्यो. २.पे. नाम. पौषध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति को १आ के स्थान पर १अ पर पढ़ें. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरुवएसेणं, गाथा-५. ३. पे. नाम. अभव्य कुलक, पृ. २अ, संपूर्ण. संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्य कलक, प्रा., पद्य, आदि: जह अभविय जीवेटिं; अंति: हावि तेसिं न संपत्ता, गाथा-९. ११३५३९ (#) नेमराजिमती चातुर्मासिक व शत्रुजयतीर्थ पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४x७.५, ९x४१). १. पे. नाम. नेमराजिमती चातुर्मासिक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मा.ग., पद्य, आदि: श्रावण आये सालले जलधर बार; अंति: पहिली मुगति राजुल की सही, गाथा-५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ पद, पृ. १आ, संपूर्ण... मा.गु., पद्य, आदि: देखें देखें सितगिरि तीर; अंति: तनु भयो भूमि विरह भयो सीर, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३५४० (#) पार्श्वनाथ स्तवन व नेमिजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४७.५, १०४३८). १. पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सारा गुणवंतानै उवारी जावू; अंति: धन धन श्रीजिन ध्यावै, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमिजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: अज बसु रंगी हो चंगी मूरत; अंति: सही स्थिवरन निगजी सुखसाय, गाथा-५. ११३५४१. औपदेशिक सज्झाय संग्रह व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:उपदेसी., दे., (१२४७,१५४२५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. हरसुख, पुहिं., पद्य, आदि: थोडो जगत मे जीवेणो रे हां; अंति: कुनी प्रभुजी रो ध्यान रे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ऋ. दलीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मनवा समज ले रे वीर; अंति: नी ज्युं उतरो भव पार, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चउदतो सपना माता थे भले; अंति: गावै जी मोतीडा वधावेजी, गाथा-७. ११३५४२. (#) अभिनंदनजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४७.५, ८x२५). अभिनंदनजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: त्वमशुभान्यभिनंदन नंदिता; अंति: सुरभियाततनुंतमहारिणा, श्लोक-४. ११३५४३. (+) ५ परमेष्ठि १०८ गण वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१.५४७.५, ५४१०). ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: बारस गुण अरिहंता; अंति: साधरा सत्तावीस गुण. ११३५५०. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (१४.५४६, ७७२१-२५). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकर निकर समुज्जलज्ञान; अंति: सदा सोई पूजे सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४. ११३५५१ (+) महादेव स्तोत्र-श्लोक ४४वा, महावीरजिन स्तुति व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४६.५, ४४१५). १. पे. नाम, महादेव स्तोत्र-श्लोक ४४वा, पृ. १अ, संपूर्ण. महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनो वा नमस्तस्मै, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंतिः सन्नो देवी देयादंबा, श्लोक-१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-घोघातीर्थमंडन नवखंडा, म. विजयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब नवखंड पासजी रे अरज; अंति: देव देज्यो सन्मुख जोई रे, गाथा-७. ११३५५२. चक्रेश्वरीदेवी गरबो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४६,५४४२). चक्रेश्वरीदेवी गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलबेली चकेसरीमात जोव; अंति: जो छे बहु सोभा ताहरी, गाथा-९. ११३५५३. (+) चतुर्दशीपक्ष निरसन पूर्णिमापक्ष मत स्थापन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४६.५, ६४१९). चतुर्दशीपक्ष निरसन पूर्णिमापक्ष मत स्थापन विचार, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: दीवाली कल्प मध्ये अमुक; अंति: छे कोई मांहि लिखिस्योमां. For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११३५५५. (+) २० स्थानकतप चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., ५x१९). ११३५६२. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. १, जैदे. (२८x१०.५, १४९५०-५४). २० स्थानकतप चैत्यवंदन-कायोत्सर्गसंख्यागर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: चोवीस पन्नर पीस्तालसनो अति नमी निज कारज साधे, गाथा ५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי ... (१४.५४५, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, उपा. अनंतहंस, अप., प्रा., पद्य, आदि सिरि शत्रुंजय मंडण दुह; अति: जिणवरदे उसया बोहि बीअ फलं गाथा- ३९. १९३५६५. (+०) आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १८८९ फाल्गुन शुक्ल, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, रूपनगर, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: चवदस., संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैदे. (२७.५X१०, १२X३८). , अंति: आध्यात्मिक सज्झाय-सुरता, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: नदी सुतर मे चवदे सुदता; ऋष आसकरणीजी इम भासोजी, गाथा १८. " १९३५६७. जैन व्याकरण-विसर्गव्यंजनसंधे, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२५.५४१०.५, १४४४९). जैन व्याकरण, सं., पद्य, आदि: अवस् अग्रे मंडली, अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११३५६८. माताजी रो छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५.५x१०, १२x४१). יי मा.गु., को., आदि (-); अति: (-). ६. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सच्चियायदेवी छंद, मु. हेम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: सानंद सावल मात तणी घर; अंति: रतन मोल वैरी मारे विसहथ, गाथा - १०. ११३५६९. (-#) नेमराजिमती गीत, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की फैल गयी है, दे., ( २६.५X१०.५, १०X२९). नेमराजिमती गीत, रा., पद्य, आदि : उजड खेडा फेरा वसे कांइ नर; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ६ अपूर्ण तक है.) ११३५७२. ३६ राजकुल नाम, ३६ राजविनोद वर्णन व ३६ राजविनोद विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे. (२६४१०.५. १७४४). " १. पे. नाम. ३६ राजकुल नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि सूर्यवंश १ सोमवंश २ अति होडवंश३५ मारवंस३६. २. पे. नाम. ३६ राजिविनोद विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ३६ राजपात्र विचार, मा.गु., गद्य, आदि धर्मपात्र अर्धपात्र काम अंतिः पूज्यपात्र अभिचारिकापात्र. ३. पे. नाम. ३६ राजविनोद वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: गीत विनोद विद्या दर्शन; अंति: सूत्र लेखन विनोदाश्चेति. ४. पे. नाम. ३६ शस्त्र प्रकार, पृ. १अ, संपूर्ण. ३३७ ३६ आयुध प्रकार, सं. गद्य, आदि चक्र धनुष वज्र अंकुश खड्ग; अंति: भाला बरवी कसांकलिवरू .पे. नाम वासुदेवबलदेव माता पिता आयुष्यादि कोष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ज्योतिष*, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: स्त्री सुंजो डोवोनजुडइ; अंति: विधु विष विनाश. ११३५७३. (+०) मोटीशांति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७१०.५ १२४३७). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. "मुगटाभ्यर्चितां" पाठ तक है.) १९३५७४. २५ भावना विवरण ५ महाव्रत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (२६४११, २५४१४). २५ भावना विवरण-५ महाव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: पेलु महाव्रत सवाओ पाणाइ; अंति: होय तो मिच्छामि दुक्कडं. Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३५७५. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ८, प्र.वि. हुंडी:उपदेसरीढाल., जैदे., (२५४१०.५, १७४६३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. औपदेशिक सज्झाय-बारमासा, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे जेतसी पाली सुवथानी, गाथा-१३, ___ (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. म. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: चेत चतुर नर कहते सतगुरु; अंति: जेतसी पाली प्रगट चाइहै, गाथा-१४. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. म. रतनचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: ए जुग जाल सुपने की; अंति: रतनचंद० मिटाणा रे, गाथा-८. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: थारी फूल सी देह पलक; अंति: सुखरी आवी लाखे रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, म. रतनचंद, पहिं., पद्य, आदि: मानव को भव पायके मत; अंति: सकल फले मन आसा रे, गाथा-६. ६. पे. नाम. समता सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: समता रस का प्याला; अंति: पामे केवलज्ञान, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कर्मतणी गतन्यारी कोइ पार; अंति: करीने तीयांथी नरक सिधावे, गाथा-५. ८. पे. नाम. उपदेशछत्रीसी, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. म. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: सबद करी सतगुरु समझाव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक ११३५७७. हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२५.५४११, १०४३९). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: सूरि० हंस अनै वछराज, खंड-४, गाथा-९०५, (पू.वि. खंड-४ ढाल-४८ गाथा-२ अपूर्ण से है., वि. ढाल-४८) ११३५७८. (#) ६३ शलाकापुरुष नाम, आय, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन व २४ जिन अंतरा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, २३४१०). १. पे. नाम. ६३ शलाकापुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जिन२४ चक्रवर्ति१२ बलदेव९; अंति: वरस१०० वरस ७२. २.पे. नाम. २४ जिन अंतरा, पृ. १आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर श्रीपार्श्वनाथ; अंति: लाख कोडि सागरनु आंतरु. ११३५८० (+#) आदिजिन व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३६). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-सिरोहीमंडण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदीसर जिनराज तणी भवि; अंति: संघ ने नित सानिधिकारी, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण... मा.गु., पद्य, आदि: एक चैत्र वदि चोथि दिन पोस; अंति: करै वंछित पूरे पद्मावतीए, गाथा-४. ११३५८१ (#) साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. घडसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४४२). For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org ३३९ साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव जिणवर अरिहंत; अंति: मोक्ष सुख निश्चल करा, गाथा - १५. ११३५८२. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १८२० आषाढ़ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २१(१)=१. प्र.वि. संशोधित, जैदे. (२४.५४११, १२४४९). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: कारन समकित शुद्धि, गाथा ४४, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. गाथा २४ अपूर्ण से है.) " ११३५८३. (+) हस्तप्रतगत कृति बीजक, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, दे. (२४.५४१०.५, २४४१६). 7 हस्तप्रतगत कृति बीजक, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ११३५८४. पार्श्वनाथ स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. हुंडी: छंद., दे., ( २४.५X१०.५, १७x४६). पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि सरसति पव प्रणमी करी आपो अति (-) (पू.वि. गाथा २५ अपूर्ण तक है.) ११३५८५. १८ पापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४६ वैशाख कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल, बीलाडा, प्रले. सा. लिछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सविया., दे., ( २४.५X१०.५, १९x४४). १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: महावीर वर्धमानजी; अंति: लालचंद ० दयाधर्म सुधो रे, गाथा-३७. ११३५८७. (#) मौनएकादशीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १२X४५). मौनएकादशीपर्व देववंदन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल नयर सिणगार हार, अंति: (-), (पू.वि. मल्लिजिन स्तवन तक है.) १९३५८८. () इलायचिपुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., १०X३४). 1 (२५.५X११, इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि नाम इलापुत्र जाणीयौ, अंति लब्धिविजय गुण गाय, गाथा - ९. ११३५८९. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-३ (१ से ३) = ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है. जैदे. (२६.५४११, १८४५९). ', १९३५९० (+) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. गाथा २१७ अपूर्ण से ३८६ अपूर्ण तक है.) ) पुण्यसार चरित्र, अपूर्ण, वि. १८९९ चैत्र शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) ४, ले. स्थल, जैपुर, प्रले. मु. भैरुदास शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: पुण्यसार चोप., संशोधित, जैवे. (२६११, १९४५२). पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि (-); अंति नवनिधि होय तस गेह, ढाल-९, गाथा २०५ (पू.वि. डाल-२ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ११३५९१. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१ (१) ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११. ११४४३). "" नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. तिजयपहुत्त स्तोत्र गाथा- २ से अजितशांति गाथा - ८ तक है., वि. पत्रांक २आ से ३अ तक लघुशांति है.) १९३५९२. (") कथाष्टक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-५ (१ से ५) = २, ले. स्थल. अहमदाबाद, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैसे, (२५.५x११, १९४५०-५९). कथासंग्रह - वसतिदानादि विषयक, प्रा. सं., गद्य, आदि (-); अंति: तृतीयभवे मोक्षः, कथा-८, (पू.वि. वीरोभेषज दान रेवती कथा अपूर्ण से है.) ११३५९३. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैये. (२६४११, १६x४२). " "" For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन- भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., पद्य वि. १६६१, आदि: सरसति भगवति नमीय पाय अति (-), (पू.वि. गाथा - ३३ अपूर्ण तक है. ) १९३५९४ पौषध, देववंदन व राईयप्रतिक्रमण विधि आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २५-२४(१ से २४)-१, कुल पे. ४ जैवे. (२६४११. १२४४९) १. पे. नाम. पौषध विधि, पृ. २५अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही तीसोत्तरी; अंति: पछै राइपडिकमणो राई. २. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. २५अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रा. मा. गु., गद्य, आदि प्रथम इरियावही खमासमण; अंति: जयवीराय जेनं जयति सासनं, ३. पे. नाम रायप्रतिक्रमण विधि, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम इरियावही यावत्; अंति: च्यार खमासमण भगवन आचार्य. ४. पे. नाम. पडिहेलण विधि, पृ. २५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. आवश्यक सूत्र- प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही खमासमण इच्छाकारे; अंति: (-), (पू.वि. पडिलेहण विधि प्रारंभिक पाठांश तक है.) ११३५९५ (४) पौषधव्रत विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११५-११३(१ से ११३) -२, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X१०.५, १७X४०). पौषधव्रत विचार संग्रह, प्रा., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पंचम अतिचार अपूर्ण से सामाचारी दृष्टांत-इभ्यपुत्रद्वय कथा प्रसंग अपूर्ण तक है.) ११३५९६. (+#) जिनपूजाविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६११, १२४३० ). पूजा प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि स्नानं पूर्वोन्मुखी; अति तदिह भाववशेन योज्यम्, श्लोक-१९. ११३५९७. (४) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २५-२४ (१ से २४) = १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., " (२६११, १२४३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू. वि. श्लोक-३५ अपूर्ण से है . ) १९३५९८. अइमुत्तामुनि सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२६४१०.५. १७x४२). १. पे नाम अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि वीरजिणंद बांदीने अंतिः ते मुनिवरना पाया, गाथा १९. - २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-साधुगुण, रा., पद्य, आदि लख चोरासी जोनमे रे लाल; अंति जी री मानज्यो रे लाल, गाथा -११. ११३५९९. हीरविजयसूरि भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X११, ११×३२). हीरविजयसूरि भास, मु. लक्ष्मण, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सोभागी सुंद करे महिमा; अंति: संपदकारी जी हीरजी जीहो, गाथा-८. ११३६०० नेमिजिन गीत, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १५-१४ (१ से १४) = १ पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५x१०.५, १४४४९). नेमिजिन गीत- गोपीसंवाद, मु. चौथमलजी म., मा.गु., पद्य, आदि: देवरनै रुखमण हसे हरनिरवाह; अंति: तेल चढीने छोडी रे बाई, गाथा-१५. संपूर्ण ११३६०१ (+) अरणिकमुनि रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ ( २ ) - ३, प्र. मु. कान्हसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१०.५, १३x४३-४६). For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३४१ अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: सरसति सामिणि वीनवू; अंति: महिमासागर० विलास कि, ढाल-८, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-२ से गाथा-१२ अपूर्ण तक नहीं है.) ११३६०३. वीरजिन स्तुति, प्रतिक्रमण स्तुति व २४ जिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, ११४३०). १. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. २.पे. नाम. आवश्यकसूत्र की प्रतिक्रमण स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ आवश्यकसूत्र-हिस्सा प्रतिक्रमण स्तुति, सं., पद्य, आदि: कमलदल विपुल नयना; अंति: शिव सदा सर्व साधुनां, श्लोक-३. ३. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. सं., पद्य, आदि: जिनर्षभप्रीणितभव्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) ११३६०४. षट्त्रिंशज्जल्पविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७१९, पौष कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ४३-४२(१ से ४२)=१, ले.स्थल. अहिमदपुर, पठ. मु. रत्नविजय (गुरु ग. धर्मविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. धर्मविजय (गुरु वा. देवविजय, तपागच्छ); वा. देवविजय (गुरु ग. मुनिविजय, तपागच्छ); ग. मुनिविजय (गुरु उपा. राजविमल, तपागच्छ); उपा. राजविमल (गुरु आ. विजयदानसूरि, तपागच्छ); आ. विजयदानसूरि (गुरु आ. विजयराजसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (७५) यादृशं पुस्तकं दष्टं, जैदे., (२५.५४११, १७४४९). षट्त्रिंशज्जल्पविचार संग्रह, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६७९, आदि: (-); अंति: (१)संतानाभ्युदय लक्ष्मीरिति, (२)ग्रंथश्चिरं नंदतात्, (प.वि. अंत के पत्र हैं., "स्यते इति चेन्मेवं एवं" पाठ अपूर्ण से है.) ११३६०६ (#) २४ तीर्थंकर गीत, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हंडी:चउवीसतीर्थंकरगीतछे., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५२). स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विमलजिन स्तवन गाथा-२ अपूर्ण से मल्लिजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११३६०७. (+) चेतनबत्तीसी, जीवरास व गउडीपार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४४७). १.पे. नाम. चेतनबतीसी, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. चेतनबत्रीसी, मु. राज, मा.गु., पद्य, वि. १७३९, आदि: (-); अंति: बोलै राजबत्तीसी, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण २. पे. नाम. जीवरास, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: समयसुंदर० छुतइ तत्काल, ढाल-३, गाथा-३४. ३. पे. नाम. गउडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. समतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडीपुर पासजी एक करूं; अंति: कहे राजग्रहीव निवास रे, गाथा-८. ११३६०८. जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-३१(१ से ३१)=२, जैदे., (२६४१०.५, १२४४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा नहीं लिखी है.) ११३६०९ (#) रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, १८४५७). रोहिणीतप स्तवन, म. श्रीसार, मा.ग., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: हिव सकल मन आसा फली, ढाल-४, गाथा-३२. For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३६११ (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र व महावीरजिन स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, १४४५७). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदिः (-); अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से २.पे. नाम. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक है.) ११३६१२. चर्चाबोल विचार, अपूर्ण, वि. १८८५, वैशाख कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, जैदे., (२६.५४१०.५, १९४५४). ढुंढिया नवबोल चर्चा, मु. दीपविजय, रा., गद्य, वि. १८७६, आदिः (-); अंति: थंकर के आज्ञा होय हे, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., मेवाड विहार वर्णन अपूर्ण से है.) ११३६१३. चमत्कारपंचविंशतिका व ज्योतिष श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.२, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०, १४४४८-५३). १.पे. नाम, चमत्कारपंचविंशतिका, प. १अ-२अ, संपूर्ण. ग. हस्तिकशल, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य गणाधीशं; अंति: विचरति गणि हस्तकुशलेन, श्लोक-२५. २.पे. नाम, ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: लंबत्वंष्ट थुलत्वेन० पदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ११३६१४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२(१,५)=४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०, ४७१९-२२). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. अध्ययन-२ की अरति परिषह कथा अपर्ण से अध्ययन-३ की मूलराज कथा तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ११३६१५ (#) ५ इंद्रिय चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१०.५, २०४४७). ५ इंद्रिय चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, वि. १७५१, आदि: परथम प्रणमुं जिणदेव कु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२८ तक है.) ११३६१९ (#) मौनएकादशीपर्व गणणं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०, १२४५०-५३). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीते; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ११३६२०. श्वेतांबरदिगंबर के ८४ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १६x४३). दिगंबरश्वेतांबर के ८४ भेद विचार, पहिं., गद्य, आदि: राजान घोडे का जीव; अंति: वार आहार लेइ दिगंबर न लेइ. ११३६२३. अजारीमाता छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, जैदे., (२५.५४१०,४४४२). सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. प्रताप, मा.गु., पद्य, आदि: सबल भरोसो तेरो जगदंबे सबल; अंति: गोकला साधु संगत राखो नेरो, गाथा-५. ११३६२४. पार्श्वजिन स्तवन-चतुर्विंशतिजिनगुरुनामगर्भित सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५४१०.५, १५४२५-३३). पार्श्वजिन स्तवन-चतुर्विंशतिजिनगुरुनामगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, सं., पद्य, आदि: ऋषभ धुरंधर उद्योतन वर अजि; अंति: संपूर्णचंद्रद्युतेः, श्लोक-७. पार्श्वजिन स्तवन-चतुर्विंशतिजिनगुरुनामगर्भित-टीका, मु. जिनेंद्रचंद्र, सं., गद्य, आदि: हे पार्श्व ध्रुव पृथिव्या; अंति: श्री जिनेंद्रचंद्र. For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३४३ ११३६२५ (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-५३(१ से ५३)=१, प्र.वि. श्रीरामरत्नजी महाजन दशमीकाल सुगवाईकु दिधो छे., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, ५४३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०, (पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है., अध्ययन-१० गाथा-१९ अपूर्ण से है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षगति इति प्रवेमि, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ११३६२६ (+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय सह टबार्थ व १४ गुणस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१०, ११४४८). १. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र सज्झाय सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उक्कोसो सज्झाउ चउदसपुवीण; अंति: परमपदं तेपि पावंति, गाथा-१२, (वि. गाथाक्रम नहीं है.) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उत्कृष्टि सज्झाय करउ; अंति: करीनइ उत्कृष्ट मोक्षनइ. २. पे. नाम. १४ गुणस्थानक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणिसर पाय नमी सह; अंति: कर्मसा० जिणवर आणो रे, गाथा-१७. ११३६३० (#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४९.५, ११४५३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. काण्ड-१ श्लोक-५३ से श्लोक-८५ अपूर्ण तक है.) ११३६३२. (+) श्रेयअतिचार, अपूर्ण, वि. १८३६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. जैनगर, प्रले. पं. मेघविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२५४१०, ५४१०). साधुपाक्षिकअतिचार-म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अनेरो जे कोई अतिचार, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., वीर्याचार अतिचार के अंतिम पाठ अपूर्ण से है.) ११३६३३. (#) आध्यात्मिक होरी व पुण्योपार्जन सज्झाय-९ प्रकार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४९.५, १८४६३). १. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-होरी, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: परघर खेलत मेरो पीयो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. पण्योपार्जन सज्झाय-९ प्रकार, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: नव प्रकारे पुन नीपजै ते; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) ११३६३४. (+) शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८७, भाद्रपद अधिकमास, ५, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. रचना व लेखन के तिथि और वार अवाच्य है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४१०.५, ११४४०). शीतलजिन स्तवन, म. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८७, आदि: शीतलजिन० जइ मानवभवनो; अंति: विनीतसागर सेवक इम जंपइ, गाथा-११. ११३६३५. (+) बारव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४४०). १२ व्रत सज्झाय, मु. सोमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६०, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम गणधार; अंति: बारइ व्रत मन भावइ, गाथा-३३. ११३६३६. (+) पच्चक्खाणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४९.५, ६x४९). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)वत्तियागारेणं वोसिरइ, (२)धीरेहिं अणंतनाणीहि, (पू.वि. तिविहार पच्चक्खाण अपूर्ण से है., वि. ३ आगार गाथा भी समाहित है.) For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: पच्चक्खाण अभिग्रह कहियें, (वि. अंत में भांगा यंत्र दिया गया है.) ११३६३७. (+#) पार्श्वजिन छंद व प्रास्ताविक दोहा संग्रह व नेमिराजिमती स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२५४१०, १४४४६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, म. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि: गवरीपुत्र गणेशवर; अंति: पार्श्वनाथ अपरंपार, गाथा-८. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: चाली जे कुल वट्टडी बोली; अंति: आदर सीख रे दरु रात हे, दोहा-४. ३. पे. नाम. नेमिराजिमती स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पावस को समो आयो नेमिगिरि; अंति: साथ गई मोक्ष दोरिके, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: लाल मुगट्ट सुघट्ट विरजित; अंति: की लाल गुलाल वनी अंगीया, गाथा-२. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ.१आ, संपूर्ण. मु. राम कवि, मा.गु., पद्य, आदि: पशूकी सुनी पुकारिन जी हे; अंति: दुहाइ भाइ जो न बोलइ नेमने, गाथा-४. ११३६३८. पार्श्वजिन आरती व गौतमस्वामी स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. कडीनगर, प्रले. पं. रंगविजयजी गणि; अन्य. पं. गुलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वप्रसादात्., जैदे., (२५४१०, १०४२७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: कोई विस्तार कहे प्रभु का, गाथा-७, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा-७वी अपूर्ण है.) २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: गौतम नाम प्रभात जपो नित; अंति: मनबंछित सुख फतेरी फतेरी, गाथा-१. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वामी तणो अंगुठो; अंति: गौतम तुठा संपत वीर, गाथा-१. ११३६३९ (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १३४२९-४२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ११३६४०. (+) वंदित्तुसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, ९४२७). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्ध धम्मा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ११३६४२. कथा संग्रह-८ प्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४१०, १५४५८). कथा संग्रह-अष्टप्रकारी पूजा, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा-२७ अपूर्ण से ३३ अपूर्ण तक है.) ११३६४३. आदिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४९.५, १२४३८). आदिजिन लावणी, मा.गु., पद्य, आदि: विमलगिरी वंदन कु जाइरे; अंति: जिनवर जी को ध्याइरे, गाथा-४. ११३६४४. पार्श्वनाथ निसाणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४९.५, १३४४४). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: गुण जिनहरष गावंदा है, (वि. गाथाक्रम नहीं है.) ११३६४५ (#) खंडाजोयण द्वारविचार व बार भावना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक का भाग खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४१०, १०४३२). १.पे. नाम. खंडाजोयण द्वारविचार, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३४५ मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: १४५६०९० नंदी होई छे, (पू.वि. नंद्यादेवी उत्पत्ति द्रह वर्णन अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. बार भावना, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. १२ भावना पद, रा., पद्य, आदि: हां रे जीव गढ मड पौल; अंति: (-), (पू.वि. भावना-३ अपूर्ण तक है.) ११३६४६. १७ भेदी पूजा वर्णन, जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा सह व्याख्या व १० आशातना गाथा आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२६-२२५(१ से २२५)=१, कुल पे.८, जैदे., (२७.५४९.५, १३४७४). १. पे. नाम. १७ भेदी पूजा वर्णन, पृ. २२६अ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: ण्हवण विलेवण अंगंमि वच्छ; अंति: कहाए जीवाभिगमाइ गंधेस, गाथा-१. २. पे. नाम. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा सह दुर्गपद व्याख्या, पृ. २२६अ, संपूर्ण. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलि१ केलि२ कलि३ कला; अंति: वज्जेह आसायणा, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-दुर्गपद व्याख्या, सं., गद्य, आदि: खेले१ श्लेष्मक्षेपणं केले; अंति: जलपानं८३ स्नानं८४. ३. पे. नाम. १० आशातना गाथा-जिनभवन, पृ. २२६आ, संपूर्ण. १० आशातना श्लोक-जिनभवन, सं., पद्य, आदि: विलास१ हास२ निष्ट्रत३; अंति: जिनेंद्रभवन० च चतुर्विधं, गाथा-१. ४. पे. नाम. देवग्रह प्रवेश विधि गाथा, पृ. २२६आ, संपूर्ण. देवगृहप्रवेशविधि गाथा, सं., पद्य, आदि: खड्गं१ छत्रं२ किरीटं च३; अंति: च कर्त्तव्यं सुश्रावकेण, गाथा-१. ५. पे. नाम. १८ पुराण नाम, पृ. २२६आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: भागवतपुराण भविष्य; अंति: गरुडपुराण शिवपुराण. ६. पे. नाम. १८ स्मृति नाम, पृ. २२६आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: मनु१ अत्रि२ विष्णु३; अंति: लिखिता१६ दक्षा१७ गौतम१८. ७. पे. नाम. १२ उपांग नाम, पृ. २२६आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: ओवाई रायपसेणी जीवाभिगम; अंति: पुष्पचूलिया वह्निदशा. ८. पे. नाम. १० प्रकीर्णक नाम, पृ. २२६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: देवेंद्रस्तव तंदुलवेयाली; अंति: नरविसोधि मरणविधि. ११३६४७. (+#) ऋषभजिन गीत द्वय, सम्यक्त्व पद व पार्श्वजिन पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४९.५, १२४४१). १. पे. नाम. ऋषभजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मूलजी, मा.गु., पद्य, आदि: चालो जईए सिद्धाचल जात्रा; अंति: जिनेसर चरण कमल चित लाइ रे, गाथा-४. २. पे. नाम. ऋषभजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: देख्या श्रीनाभ के नंदा; अंति: करजोडि जनसे अरज हे मोरी, गाथा-३. ३. पे. नाम. सम्यक्त्व पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जागे सो जिनभक्त कहाव; अंति: ताकुं वंदना हमारी है, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: आज हमारे भाएग जाग्या गोडि; अंति: सेवक प्रभू गुण गावेरे, गाथा-३. ११३६४८. (4) पोषह भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. माडण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४९,१०४४२). पौषधव्रत सज्झाय, म. गणलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलं समरस आणीइ निजीइ; अंति: खपइ कर्मनी कोडिरे, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३६४९. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. १९, ले.स्थल. शुद्धदंती, प्रले. पं. प्रेमविलास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष हेतु १८ व ८१ का उल्लेख अलग अलग है., जैदे., (२५.५४९.५, १२-१६x४४-५४). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तारण वाला रे जीउं जीउं; अंति: लालन सब जग हे राता भला, पद-२. २.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: एही स्वभाव पड्याहोइण; अंति: पातिक सकल जराव जड्या होइ, गाथा-२. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: किन देखावे शिवगामी हमारा; अंति: महागुन प्रगट भये निजधामी, गाथा-५. ४. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: विमलस्वामीनो रूप जोता रढ; अंति: आस्ति हंतो ताहरो रागीरे, गाथा-३. ५. पे. नाम. सद्गुरु पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. गंगाराम, पुहिं., पद्य, आदि: अरे मे एसा देखाओ सतगुरु स; अंति: गंगारा० आवागमन मिटाई, गाथा-४. ६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: क्या हम कुं तुम छांड चलो; अंति: राम जवा हीर ध्यान धरो भला, पद-३. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: काल सकल जग जीता हो कोइ का; अंति: प्रबल मोह रस कीता हो कोइ, गाथा-४. ८. पे. नाम. जिनवाणी पद, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंदा ताहरी वाणीयै चित्त; अंति: प्रेमे गावे इम कवि कंतरे, गाथा-५. ९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: देखी तेडी देखी रीत हां रे; अंति: वस कर मन कुंजीत अरे, पद-३. १०. पे. नाम. जिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, म. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: सुमरन मन वंछित फल खेती सु; अंति: प्रीत करो प्रभु सेती, गाथा-३. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. आतमराम, पुहिं., पद्य, आदि: पुदगल जीवकुं भिन्न पेंचान; अंति: सब जीवन भये मुक्त प्रधाना, गाथा-४. १२. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मनडे भांदीया तूं जिन; अंति: जिन पूजे से बहु होत नफा, गाथा-२. १३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, श्राव. जिनबगस, पुहि., पद्य, आदि: टुक दिल के चसमे खोल; अंति: कहे सो पांमे सिंध भव थगा, गाथा-६. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: चरखा भया पुराना वे चरखा च; अंति: इंधण होगा भधर चेत सवेरा, गाथा-५. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: अब मोय तारी ये सांवल; अंति: अरज० मुक्तधाम दो पारसनामी, गाथा-३. १६. पे. नाम. गुरु देशना पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. गुरुदेशना पद, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वरखत वचन झरी सुगुरु मेरे; अंति: शिव सुख सहज सुभाव फली, गाथा-५. १७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण.. मु. जगराम, पुहिं., पद्य, आदि: पुनः यो अवसर फिर; अंति: पायो सदगुरु तै समझाइ हो, गाथा-३. १८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि समकित श्रावण आयो री अब अंतिः निज निश्चे घर पायो री, गाथा ४. १९. पे. नाम. ४ कषाय पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: जेन धरम नही कीतावो नर देह; अंति: नंद नंदन भारी करम रस पीता, गाथा-४. ११३६५१. ११ गणधर स्थापना गहुंली व जिन गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५x९, १०x४२). १. पे. नाम. ११ गणधर स्थापना गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि महसेन वन मुझार रे श्रीवीर; अंतिः हवे मोझो चतुरविध संघ, गाथा ४. २. पे नाम. जिन गहुंली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. साधारणजिन गहुंली, मु. न्यायसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि रुडी गहूंली रंग रसाली जिन; अति रे सीस जे जेहो ज्यो जगदीश गाथा ६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११३६५२ (+#) नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : गुणवर्ण स्तवनं . हुंडी अवाच्य है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, जैवे. (२७.५४८.५, १०६१-६४). पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहस्तुतिगभिंत, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. पद्य वि. १४वी आदि दोसावहारदक्खो नालिया अंति " , " जिणप्पहसूरि०न पीडंति, गाथा-१०. पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहस्तुतिगधिंत टीका, सं., गद्य, आदि पार्श्वजिनो जयति किं अंतिः न पीडयति न बाधते. ११३६५३. महावीरजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, रूपनगर, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी महावीर, दे. (२८.५४८.५, ९४४०). महावीरजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि द्यो नरमली मांग एक पसाये; अंति: वीनव मुक्त 'आपो सामी हमने, गाथा - १७. १९१३६५४. (+) मुनिराज स्तवन व वीरजिन स्तवन- शिष्यागर्भित व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५४७.५, ९३७-४२). " For Private and Personal Use Only ३४७ १. पे. नाम मुनिराज स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुस्तुति स्तवन, पु,ि पद्य, आदि प्रीत तो मुनीराज स्युं अंतिः यो होत आपसु भावमि पीनी, गाथा- ६. " २. पे. नाम. वीरजिन स्तव - शिष्यागर्भित, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन- शिष्यागर्भित, मु. रंगविलास, मा.गु., पद्य, आदि मकरो परस्युं प्रीत पीउ घर; अंति घर अपने चाहो यो पद अमृत. ३. पे. नाम वीर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: मीठो मने लागे छे एहनु अति नमता अमृत सुख दाता रे, गाथा-५. ११३६५५. पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५६, २२x६-१०). पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: पूज्य मनोहरदासजी धर्मदास अंतिः पदारथजी मुलकचंदजी. ११३६५७. औपदेशिक पद व गजसुकमाल पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७८.५, ९४२९). १. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: किलय अ आतंकी वेलय जाय; अंति: मंगदे रो रो हाल सुनामे गा, गाथा - ९. २. पे. नाम. गजसुकमाल पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि हा जी सीर जलत अंगीठी अति जिन सिमर्या नवनिध तूठीहा, गाथा-९, ११३६५८. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २४.५४८.५, ६x२२-२६). साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं., पद्य, आदि खतरा दूर करना एक अंतिः पढना शिवसुंदर सुख वरणा, गाथा ५. ११३६५९. ८ कर्म सज्झाय व नेमिराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४X१२, ९x३१). १. पे. नाम. ८ कर्म सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. य. अगरचंद, पुहिं., पद्य, आदि बताव रे घर तेरा साहिब, अंतिः भारी अगरचंद रहे न्यारे, गाथा- ६. Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. नेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कुण वन ढूंढन जाउं नेमी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ११३६६०. जपमालिका नवकरवाली विचार, संपूर्ण, वि. १९४४, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४८.५, ८४३९). जाप फलाफल श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अंगुल्यग्रेण यः यप्तं; अंति: फलं पृच्छति जापतः, श्लोक-९. ११३६६१ (#) आदिजिन स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४८, ८x३०). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो वधाई राजा नाभि के; अंति: जिनेश्वर आदेश्वर दयाल रे, गाथा-६. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: चुगलन के मुख पर हजार लाख; अंति: कबीरा० चुगलन के मुख पे, पद-१. ११३६६२ (#) ११ गणधर भास व धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, कुल पे. २,प्र.वि. हंडी:अपदानणय., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४९, ९४३४-५६). १.पे. नाम. ११ गणधर भास, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, आदि: पहिलो गणधर वीरनो वर; अंति: गुरु होज्यो धर्म सनेही रे, गाथा-६. २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८४७. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: हां रे मारे धर्मजिणंदस्यु; अंति: मन आणी उलट अति घणो रे लो, गाथा-७. ११३६६३. समोसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४८.५, ७X३५). समतिजिन गीत-समवसरण, ग. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज गयता हमे समोसरणमां; अंति: जाणी जीतना डंका वाजे रे, गाथा-७. ११३६६४. (+) गाथा संग्रह, अक्षप्रभा व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४८, ९४३५-३९). १.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: गहिऊण सयल अत्थं अत्थ; अंति: एएहिं विभूषिया गाहा, (वि. वस्तुपालाशिर्वाद, आयुर्वेद, शृंगार, करणसित्तर्यादि श्लोक-गाथा संग्रह.) २. पे. नाम. अक्षप्रभा विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: अवंतियाम्योत्तर योजनानि; अंति: भागः लब्धं प्रत्यंगुलानि. ३. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्योतिष१ सौधर्मर ईशान३; अंति: गति नहीं एतलो विशेष छै. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प. २आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: नो नद्योवाहिनी मद्यः; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम श्लोक है.) ११३६६६. (+) कल्पसूत्र सुबोधिका टीका-कार्तिकश्रेष्ठी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४७, १०४५८-६२). कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. सुबोधिका टीका-व्याख्यान १ कार्तिकश्रेष्ठी कथा.) ११३६६७. चैत्रीपूनम देववंदन विधि, पंडरीक पूजाविधि व पांचमी अष्टमी लेवानी विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, जैदे., (२३.५४६.५,१२४६०). १. पे. नाम. चैत्रीपूनम-देववंदन विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३४९ देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार कही शक्रस्तव; अंति: वडी शांति उद्घोषणा करणी. २. पे. नाम, पुंडरीक पूजाविधि, पृ. १आ, संपूर्ण. चैत्रीपर्णिमा पूजाविधि, मा.ग., गद्य, आदि: श्री आदिनाथरी प्रतिमा; अंति: चैत्र पूर्णिमां. ३. पे. नाम. पांचमी अष्टमी लेवानी विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. तपग्रहण विधि-पंचमीअष्टमी, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: राई प्रायचित्त सगलेही न; अंति: नमः पांच जैती करावीये. ४. पे. नाम. २० स्थानकतप उच्चारण विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिक्कमी; अंति: पछे पच्चक्खाण करावीये. ५. पे. नाम. चतुर्थव्रत उच्चारण विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इरियावही पडिकमा वीजे पछे; अंति: दंडक वार त्रीणि वरा वीजे. ६. पे. नाम. ३२ अनंतकाय गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. __प्रा., पद्य, आदि: सव्वाउ कंदजाई सूरण; अंति: परिहरियव्वा पयत्तेण, गाथा-५. ७. पे. नाम. १३ काठिया नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. १३ काठिया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आलस्स१ मोह२ वन्ना३; अंति: कोउहला१२ रमणा१३, गाथा-१. ११३६६८. विमलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२=१., जैदे., (२४x७, १७४१०). विमलजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वांदिये श्री विमल जिणेसर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ११३६६९ (+) औपदेशिक सवैया, औपदेशिक पद व दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन गाथा आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४६.५, १०४४६-५०). १. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नंदलाल, पुहिं., पद्य, आदि: कुंजर कुं देखि जैसे रोस; अंति: कवि नंदलाल० जनम खोया है, सवैया-२. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रीषजी, पुहि., पद्य, आदि: हालै नही रसना मुख मांहि; अंति: की उपमा पखाण कुं आणी, पद-२. ३. पे. नाम. दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शिवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हाथि सहसअढार लाख; अंति: हू हार्यो तु जितिओ, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: बादल की छाया सुपनां; अंति: पतासा ऐसे तन का तमाशा है, गाथा-२, (वि. गाथांक क्रमशः नहीं है.) ११३६७०, नवकार तप प्रमाण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४७, ६x४९). नवकार तप प्रमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीनवकार तप ६८ उपवासे; अंति: अठसठि उपवासे करी आराधिवा. ११३६७१. चतुर्थीतिथि चंद्रयोग पद, गणपति वंदन गाथा व औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४६.५, ११४५८). १. पे. नाम. चतुर्थीतिथि चंद्रयोग पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: चुथिया चहचंद मंदिरा राजा; अंति: ज्योखिमा जये चथु जोगणी, गाथा-१. २. पे. नाम, गणपति वंदन गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पुत्त तसु गणपति पासे कर; अंति: मोदिक माल चौल० चुथिरो, गाथा-१. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. समति कविराज, मा.ग., पद्य, आदि: बालपणि समज्यो न भज्यो हरि; अंति: नर है दिग चंचल अंचल मै, गाथा-३. ४. पे. नाम. सभाषित संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: एका भार्या प्रकृति कुटिला; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-७ तक लिखा है., वि. श्लोकानुक्रम अव्यवस्थित है.) For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३६७३. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मगधदे. कृति के अंत में "उमाजी कीने सराय" ऐसा लिखा है., दे., (२४.५४७.५, १०x४०). महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: मगध देशमांहि बिराजे सुंदर; अंति: रायचंद कहे०महल में जासीजी, गाथा-२२. ११३६७४. शीलोपदेश सज्झाय, औपदेशिक सज्झाय व औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:तवन., दे., (२५४७, १३४५५). १.पे. नाम. शीलोपदेश सज्झाय, पृ.१अ, संपूर्ण. मु. रतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९६६, आदि: मत ताको नार विराणी हरीए; अंति: के साल जस उत्तम प्राणी, गाथा-६. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतन, रा., पद्य, आदि: पुद्गल जढ मोय संग अनाद की; अंति: रतन भणे० दल नाटो राज, पद-४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, प. १अ-१आ, संपूर्ण. कबीर, रा., पद्य, आदि: थारी काया मै गुलजार; अंति: कबीर० आवागमण निवार, पद-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कपट, मा.गु., पद्य, आदि: इण कपटी मीन खरो वे सासने; अंति: वले जायने टुंपो दीधो रे, गाथा-१०. ५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कंचण मे रस मेर दे दीज; अंति: जी हाज छे भभसायर तीरीए, गाथा-४. ११३६७५. (+) आदिजिन स्तति, गौतमस्वामी स्तुति व परचरण स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४७, १२४५४). १. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रथमं जिनपं वंदे०गुण; अंति: सकलं चित्त चिंतितं, गाथा-३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: स्तवीम्यहं पार्श्वजिनं; अंति: सद्बोधन चारु हंसं, गाथा-४. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह पेटांक १आ पर स्थित है. सं., पद्य, आदि: श्रीगौतमं गौतमवंशवंश; अंति: नीरागिभावं भजतं मुनिंद्र, श्लोक-२. ४. पे. नाम. परचुरण लघु स्तुति संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह पेटांक पत्र के दोनों हिस्सों पर स्थित है. परचुरण लघु स्तुति संग्रह*, सं., पद्य, आदि: वासुपूज्यं जिनं वंदे; अंति: निशाकरं शारद शुद्धकांतिं. ११३६७७. मन्हजिणाणं सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०१, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सज्झायपत्र., दे., (२८.५४६, ६x४७). मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. ११३६७९. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १८८२, कार्तिक शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. सादडी, प्रले. मु. लालराज; पठ. सा. तेजश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वदेवजी प्रसादात्., जैदे., (२५४११, ११४३३). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म.ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरूपदकज; अंति: ज्ञानविमल० उदय होवे आज, ढाल-३, गाथा-१४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-निद्रात्याग, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: हो मुनि कनकनिधान के, गाथा-७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ से है., वि. लेखनक्रम में भूल होने से प्रारंभिक २ गाथाएँ किसी और प्रत में मिलने की संभावना है.) For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३५१ ११३६८१ कक्काबत्रीसी, आदिजिन स्तवन व चंद्रप्रभजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १३४३६). १. पे. नाम, कक्काबत्रीसी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. म. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सीस जीवो ऋष इम वीनवे, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. नगजय, मा.गु., पद्य, आदि: विद्याधर किन्नर नरा रे; अंति: सुख संत ए गिरि एकंतवि, गाथा-९. ३. पे. नाम, चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. नगजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभु जिनराजजी रे; अंति: नग कहे मुझ दे अक्षय भाव, गाथा-६. ११३६८२ (+) सागरचंद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३५). सागरचंद्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१९ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-१०९ अपूर्ण तक ११३६८३. (#) नवपद चैत्यवंदन व पांचमा आरानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.पं. दोलतहस गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १९x४६). १.पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: उवज्झायनो रुप नमे करजोड, गाथा-१४. २. पे. नाम. पांचमा आरानी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहंस, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गौतम सुणो; अंति: करी देखीइ भाख्या वयण रसाल, गाथा-२१. ११३६८४. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १६x४८). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ग्यानावरणी कर्म की; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., तिर्यंच वर्णन अपूर्ण तक है.) ११३६८५. नेमिजिन सज्झाय, नेमिराजिमती गीत व छींक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १२४३९). १.पे. नाम. नेमिजिन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण आ. रतनसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय को नेमिकमरजी; अंति: जिनचरणे चित ल्यावउनां, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमिराजिमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, म. दयातिलक, मा.गु., पद्य, आदि: गौष चढी राजलि कहे हो लाल; अंति: रहीयो हो गिरिनारि छाय, गाथा-७. ३. पे. नाम. छींक विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. छींकविचार * मा.ग.,ग., पद्य, आदि: छींक थई मन धीर थयो; अंति: मनमानी आस्या फले. ११३६८६. (#) औपदेशिक पद, औपदेशिक लावणी व महावीरजिन ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हंडी:ढाल., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २०४५४). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. देवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: समझ दया को मरम धरम चित; अंति: देव० गुरु से वसु जाण नरो, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. देवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हां रे चतुरनर मनकुं; अंति: चालो सावधान स्याना, गाथा-६. ३. पे. नाम. महावीरजिन ढाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: सासणनायक वीरजणंद; अंति: चंद्रभाणजी० अभिराम, गाथा-३०. For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३६८८. वंदित्तुसूत्र, सिकोत्तरी छंद व अध्यात्म गीत आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १२-१८४३७-५४). १.पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिकोत्तरीदेवी छंद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रामतिरमाती भावे भगति; अंति: माता कानझवकत कुंडल, गाथा-२. ३. पे. नाम, अध्यात्म गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सवैया, म. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सीख भली एक सांभलो ये; अंति: पद पामीये इम जंपै जिनरंग, गाथा-११. ४. पे. नाम. ५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. गंगदास, मा.गु., पद्य, आदि: वात कहुं सुणि कान्ह चतुर; अंति: गंगदास कहइ० धरम जिणवरतणा, गाथा-६. ११३६८९. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, जैदे., (२६४११, १६४३९). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: एम० मनोरथ सवि फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४, (पू.वि. ढाल-८ गाथा-२ अपूर्ण से है., वि. कृति के अंत में सूर्य-चंद्र उदय होने पर यात्रा आदि का मांगलिक फल वर्णन दिया है.) ११३६९०. नाडूलमंडण पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४३१-३५). पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्री पद्मप्रभु जिनराया हो; अंति: संघने दी इम आसीस ए, गाथा-१५. ११३६९१ (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११,५४४३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा-३६ अपूर्ण तक है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार रिषभादि २४; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने मात्र प्रथम गाथा का टबार्थ लिखा है.) ११३६९२. (+#) नंदिषेणमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९४४२). नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: (-); अंति: सिद्धि नित गेहइ रे, ढाल-१६, (पू.वि. ढाल-१५ अपूर्ण से है.) ११३६९३. (+#) १० पच्चक्खाण फल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११,१४४१७-२५). १० पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, आदि: नवकारसी १०० पोरिसी १०००; अंति: सयाई कोडाकोडीहिने रईया. ११३६९४. शील रास, अपूर्ण, वि. १८६९, मध्यम, पृ. १०-७(१ से ७)=३, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. सा. जीत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शीलरास., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४११, १२४३३). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: (-); अंति: शील अखंडित सेवयो, गाथा-६८, (पू.वि. गाथा-५६ अपूर्ण से है.) ११३६९५ (+) क्षामणकसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५४५८). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिअं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. क्षामणकसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११८०, आदि: ततो यथा राजानं पुष्प; अंति: पडिलेहणवेला भवइत्ति. For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३५३ ११३६९८. (+) शनिश्चर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४११, १७४५३). शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिपति असुरापति अमर करे; अंति: तु प्रसन्न हुइ शनिश्चरा, गाथा-१७, (वि. कृति के अंत में एक सुभाषित श्लोक लिखा है.) ११३६९९ (+) जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ तक है.) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन भणियइ त्रिभुवनु; अंति: (-). ११३७००. जंबूस्वामीनी सज्झाय, महावीरजिन समये तीर्थंकरनामकर्मधारी ९ जीव सज्झाय व शालिभद्रमनि सज्झाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:उपदेसरीलाढाला., जैदे., (२५४११, १७४६१). १. पे. नाम. जंबूस्वामीनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी ढाल, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: साहजी रे घर एकज दीवो दीपक; अंति: घर कदे न आवे तोटो, ढाल-१, गाथा-१९. २.पे. नाम. महावीरजिन समये तीर्थंकरनामकर्मधारी ९ जीव सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वीस बोल अदेन आठ मे कह्यो; अंति: एक ढाल मे घाल्यो जी, गाथा-९. ३. पे. नाम. शालिभद्रमनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. रा., पद्य, आदि: मेतो पूरब सूकरत ना क; अंति: कुमर इसो मन चितवै, गाथा-१५. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. औपदेशिक सज्झाय-बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: भवकजन सुण सतगुरु ग्याना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) ११३७०१. (#) बुद्ध रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १७४५२). बद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ए तिहा सवि टालि कलेस तु, गाथा-६४, (पू.वि. गाथा-४५ अपूर्ण से है.) ११३७०४. श्रेणिक चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-२८(१ से २८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, १५४५५). श्रेणिक चरित्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रेणिक-चेलणा प्रभु वीर वंदन प्रसंग से हल्लविहल्ल कुमार का चंपापुरी में परिभ्रमण प्रसंग अपूर्ण तक है.) ११३७०५ (-) पार्श्वजिन छंद व नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११, १०४३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८३१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, मंगलवार, ले.स्थल. विद्युत्पुर, राज्यकाल रा. सांवताजी राणावत, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दानविजय, पुहि., पद्य, आदि: वाणारसी राया पास; अंति: दानविजय तुम बंदा हो, गाथा-११. २. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकाशं; अंति: चैव भवदुख प्रणनाशितं, श्लोक-११. ११३७०६. (+#) तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह, धर्ममूल श्लोक सह अवचूरि व पक्वान्न प्रमाण गाथा आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ३४३०). १. पे. नाम. तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तत्त्वविचार श्लोक, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि९ व्रत१२; अंति: ज्ञेया सुधीभिः सदा, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तत्त्वविचार श्लोक-अवचरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्त्वानि नवतत्त्व; अंति: इंद्रियार्थउ अनुकूल पणउं. २.पे. नाम. धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट, सं., पद्य, आदि: त्रैकाल्यं द्रव्यषड्कं; अंति: मतिमान्यः सवैसुद्ध दृष्टी, श्लोक-१. धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट-अवचरि, सं., गद्य, आदि: त्रैकाल्यं अतीत१ अनागत२; अंति: यथाख्यान चारित्र५. ३. पे. नाम. पक्वान्न प्रमाण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. सचित्त-अचित्त वस्तु काल निर्णय, प्रा., पद्य, आदि: पणदिणमीसो लुट्टो; अंति: कप्पइ आरब्भ पढमदिणं, गाथा-२. ४. पे. नाम. नवप्रासुक पानी गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ९प्रासक पानी गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: उस्सेइमं१ संसेइमर चाउलोदग; अंति: सिरेवासासु अतिपहरस्सु वरि, गाथा-२. ५. पे. नाम, समूर्छिम पंचेंद्री मनुष्योत्पत्ति गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ अशुचिस्थान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उच्चारे १ पासवणे २; अंति: मुच्छिमामणुअपंचेंदि, गाथा-२. ११३७०७. (+-#) ढाईद्वीप विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३-८(१ से ७,१०)=५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १८४३५). ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नरक वर्णन अपूर्ण से चंद्र-सूर्य वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ११३७०८.(+) आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १९४५४). आलोयणा विधि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: इग चउसग वीस खवण वरिमाणं; अंति: (१)मधु भोजने षट्गुरु, (२)नालच्छे दे षष्ठो देय. ११३७०९ (+) प्रत्याख्यानसूत्र व पच्चक्खाण पारने का सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. लालविजय; पठ. मु. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०४३१-३४). १.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: समाहिवत्ति आगारेणं वोसिरइ. २. पे. नाम. पच्चक्खाण पारने का सूत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (१)इच्छाकारेण संदिसह भगवन्, (२)नमुक्कारसी मुठसी; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ११३७११. (+) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४३३). प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७१ अपूर्ण से ८४ तक है.) ११३७१२. कल्पसूत्र की कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१८(१ से १८)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., जैदे., (२५.५४११, १३४३९). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथमाश्चर्यवर्णन अपूर्ण से पंचमाश्चर्यवर्णन अपूर्ण तक है.) ११३७१३. चतुःशरण प्रकीर्णक, ४ शरण सज्झाय व परकीका चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३६). १. पे. नाम, चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ___ ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, ४ शरण सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण, प्रले. पं. कर्मसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य. ४ मंगल सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपहिलो मंगलीक कह; अंति: गर्भावास जीवडो नवि लहे, गाथा-६. ३. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रिसहनाह श्रीनाभिराय; अंति: देव तिहुयण गये मंगल, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३५५ ११३७१४. (+) मालारोपण विधि व तपावली यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-६(१ से ६)=३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १७-२०४४८-५२). १. पे. नाम. मालारोपण विधि, पृ. ७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: चैत्ये समुदायेन गम्यते, (पू.वि. गुरुआशीर्वाद अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. तपवली यंत्र, पृ. ७अ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. तपावली, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "यथाशक्ति विंशतिनिर्विकृतिकादिभिः" पाठ तक है., वि. यंत्रसहित.) ११३७१५. (+) कृष्णभक्ति पद, औपदेशिक सज्झाय व २५ भावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२-१६४३७-४७). १. पे. नाम, कृष्णभक्ति पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: मिलन कू ए गोपन के चित चोर, पद-१३, (पू.वि. पद-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेत प्राणीया रे; अंति: केसव०वात तणो एह मर्म, गाथा-११. ३. पे. नाम. २५ भावना सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. २५ भावना सज्झाय-५ महाव्रत, पं. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मुनि पंचमहाव्रत पाले रे; अंति: चाले जिनहर्ष नीको नीहाले, गाथा-११. ११३७१६. (+) १२ व्रत अतिचार आलोयणा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १६x४०). १२ व्रत अतिचार आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)अश्वि१ ह० श्रधश पुन अन०, (२)प्रथम इरियावही पडिकमइ; अंति: (-), (पू.वि. व्रत-४ आलोयणा अपूर्ण तक है.) ११३७१७ (+#) रत्नाकरपच्चीसी, शत्रंजयतीर्थ स्तवन व पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, पठ. मु. रविसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४४२). १.पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. २. पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ३. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम पार्श्वनाथ स्तवन लिखा है. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचउ राजा; अंति: देजो भवोभव सेवरे, गाथा-९. ११३७२० (+) वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठ "सर्वबुद्धबोधितसत्वेभ्यो" से पाठ "सुनिर्दिष्टा च सर्वसत्त्वानां" तक है.) ११३७२१ (+) आध्यात्मिक पद, भक्तामर व उवसग्गहर स्तोत्र की भंडार गाथा आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३-२०४३४-४४). १. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. भैरवदास, पुहि., पद्य, आदि: मत को उपरउ प्रेम कइ; अंति: त परवसी कहत भैरवदास, पद-३. २. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररविपुरि; अंति: परिणतगुणैः प्रयोज्या, श्लोक-४. ३. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा *, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तुह दरसणेण सामी पणासए; अंति: अट्ठगुणाधीसरे वंदे, गाथा-२. ४. पे. नाम, जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: परमेसर सिरिपासनाह; अंति: सिद्धि मह वंछियपूरण, गाथा-२. ५. पे. नाम. पद्मावतीदेवी मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वधरणेद्रपद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं पद्म पद्मा; अंति: मुख बंधय ह्रीं स्वाहा. ६. पे. नाम. चक्रेश्वरीदेवी मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ नमो चक्रेश्वरीदेवी; अंति: क्षेत्रना खीजे टीड न लागे. ७. पे. नाम. २४ जिन गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समरि समरि मन प्रथम; अंति: (-), (पू.वि. सुमतिनाथ गीत अपूर्ण तक है.) ११३७२२. (+) सिद्धदंडिका स्तव सह टबार्थ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४३२). १.पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तव सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाओ; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे श्री आदिनाथइ केवलज्ञान; अंति: दिउ मुगतिनां सुख. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: न निर्मितायं च दृष्टपूर्व; अंति: न दीसइ काइ वाजरए टाकर, श्लोक-४. ११३७२३. (#) अइमुत्तामुनि सज्झाय, परनारीपरिहार सज्झाय व औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १७४२०-५०). १. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बालिक माहि रमतु हिमतु आवत; अंति: जोवन वय० बइ इणि परि गायु, गाथा-५. २. पे. नाम, गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कलजगि कलपवृख्यमइ दिठा; अंति: पूर्या संसारसागरना तारा, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद-मन भ्रमर, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानकुंजर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल संसार ज मोजि आगि; अंति: भमरा कहो हमारा कीजिइ, गाथा-३. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह पेटांक अवशेष जगह पर लिखा गया है. मा.गु., पद्य, आदि: रावण पणि खय गया माल पेखि; अंति: पामहि०रह खेत्त सु०हेत, गाथा-५, (वि. वाक्य खंडित है.) ५.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, प. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह पेटांक अवशेष जगह पर लिखा गया है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. पत्र खंडित होने से आद्यंत गाथाएँ अनुपलब्ध है.) ६.पे. नाम, औपदेशिक पद-मन, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. शंकर, मा.गु., पद्य, आदि: काया पेखि कुमन मच्छ तंदल; अंति: शंकर० जिम अनंत सुख पावइ, गाथा-३. ७. पे. नाम. सुकदेव गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. शुकदेव गीत, सोम, मा.गु., पद्य, आदि: कुक केसर मोती मुहवटउ सइथउ; अंति: सोम० जइ वीनवज्यो व्यास, गाथा-१०. ११३७२४. (#) जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७७०, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. कल्याणहंस गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १३४३३). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर सीस सुजाण रे; अंति: सिद्धि दीयो रे, गाथा-७. ११३७२५. ८ मद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. हरिवंश ऋषि (गुरु मु. कर्मसीह ऋषि); गुपि. मु. कर्मसीह ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १३४३६). For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३५७ ८ मद सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम ऋषभ नमउं श्रीजिणराज; अंति: इंद्री पंचमहाव्रत मनि धरइ, गाथा-१७. ११३७२६. सुमतिनाथजिन स्तवन-प्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्रले. पं. रिषभदास; पठ. सा. सुखा बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पडकमू०., जैदे., (२५४१०.५, १३४३६). मतिजिन स्तवन-प्रतिक्रमणविधिगर्भित, संबद्ध, वा. विमलकीर्ति, मा.ग., पद्य, वि. १६९०, आदि: (-); अंति: कीध हरख भर सुजगीस ए, ढाल-६, गाथा-२०, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., ढाल-६ गाथा-१८ अपूर्ण से है.) ११३७२७. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४१०.५, १०४४२). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली; अंति: (-), (पू.वि. प्रत्येकबुद्ध ३ सज्झाय गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११३७२८. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद व प्रश्नाष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४८). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम जोति परमातमा परम; अंति: कारन समकित शुद्धि, गाथा-४४. २.पे. नाम. प्रश्नाष्टक, पृ. २आ, संपूर्ण. श्राव. दलपतराय श्रमणोपासक, सं., पद्य, आदि: अनाद्येयं सिद्धि; अंति: महिमाश्वासनविधिम्, श्लोक-८. ११३७२९. (#) जिनरतनसूरि गीत व चैत्यपरिपाटी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४२८-४०). १. पे. नाम. जिनरतनसरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. कृति का प्रारंभिक भाग १आ से प्रारंभ होकर १अकी ओर समाप्त होता मु. त्रिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुहव आवो मलकरी रे पूज्य; अंति: रे विद्यासिद्धि सुख पायकि, गाथा-५. २. पे. नाम. चैत्यपरिपाटी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चैत्यपरिपाटी स्तवन-बीकानेर आठ जिनालय, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्यप्रवाडै चौवीसटै; अंति: सांझ सवेर जिणवर वीकानेर, गाथा-११. ११३७३०. महावीरजिन गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:गुवली., दे., (२५.५४१०.५, ९४३१). _महावीरजिन गहुंली, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जग उपकारी रे वीर; अंति: अमृतवाणी रंगसुंरे, गाथा-८. ११३७३१. सिद्धचक्र पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, ६-१०x२४). सिद्धचक्र पद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यान धरो रे; अंति: शिवतरु बीज खरो रे, गाथा-३. ११३७३२. (+) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन, ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन व अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७-४(१ से ४)=३, कुल पे. ३,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४४६). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय श्रीगुरुपाय; अंति: वीरजिनवर इम कहे, ढाल-३, गाथा-२५. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. ३. पे. नाम, अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्मना; अंति: कांति सुख पावे घणो, ढाल-२, गाथा-२४. ११३७३३. (+#) औपदेशिक सज्झाय, सीमंधरजिन स्तवन व आत्मशिक्षा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २०४५३). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति करइ गर्भवासिते नवि अवतरड़, गाथा २६ ( पू. वि. गाथा २१ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पू. ३अ-३आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि सीमंधरजिन त्रिभुवन अंतिः सेवक सकलचंद दया करो, गाथा-३०. ३. पे नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. उत्तम मनोरथ सज्झाय, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि धन धन ते दिन कहीइ आवस्यइ; अति: लहिवासि शिवपुर ठाम, गाथा-१५. ११३७३४ (#) महावीरजिन स्तवन व गौतमस्वामी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अं खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १६x४८-५५). १. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि कंसारिक्रमनिर्यदापणा अंतिः भावना भावितानाम्, श्लोक-२५. २. पे. नाम गौतमस्वामी स्तोत्र. पू. १आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं मगधेषु अंति (-) (पू.वि. श्लोक ५ अपूर्ण तक है.) " ११३७३६. (४) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५०-४९ (१ से ४९) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x१०.५ १३X२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. स्थविरावली पाठ 'अज्जकुमेरे घरे अज्जइसिपालिए" से "अज्जेसंघपालिए थेरे अंतेवासी" तक है.) " ११३७३७. (+) पार्श्वजिन गीत, सुविधिजिन स्तवन व पार्श्वजिन पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५४११, १३४३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्म, आदि: मुगट परि वारीयां अति दरसण दुख टारीवां रे, गाथा-४. २. पे नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हां रे नरत करत थेई थेई वा; अंति: करो तो जि तिल हूं तेई मेई, गाथा-३. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन पद. पू. १अ संपूर्ण. मु. वृद्धिकुशल, रा., पद्य, आदि तेवीसमो जिनराज हां रे; अंतिः वीनवे भव भव वेज्यो दीदार, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पृ. १अ - १आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि भाव भगति घर भेटियो रे, अंति (-), (पू.वि. गाथा १० तक है.) १९३७३९. (+) आधाशीशी मंत्र कथा व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित., जैवे. (२५.५x११, १२४३५). १. पे. नाम. आधाशीशी मंत्र कथा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आधाशीशी निवारण मंत्र विधिसहित, मा.गु., गद्य, आदि: अधो ओलीवन गहनमांहि हिमाचल; अंति: ३ सांभली सत्यप्रत्ययः. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: नीली पीली वादली राजेंद; अंति: कांति नमे वारंवार, गाथा- ७. ११३७४० (+) घडपण सज्झाय व अनाधीमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे २ प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११, १०x३०). १. पे. नाम घडपण सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि घडपण कहे तुझ तेडीउं रे; अंतिः रे रूपविजय गुण गाय, गाथा- ६. २. पे नाम अनाथीमुनि सज्झाय, पू. १आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३५९ ११३७४१ (+#) गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ८४२३). गाथा संग्रह , प्रा., पद्य, आदि: आणंदो ओहीए लवणंमि पंचजोअ; अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ११३७४२. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७५३, ज्येष्ठ शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पल्लिका, प्रले. पंन्या. रामचंद्र (गुरु वा. ज्ञानमूर्ति, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. वा. ज्ञानमूर्ति (गुरु ग. गुणवर्द्धन, बृहत्खरतरगच्छ); पठ. मु. कर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्वपत्रं., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. ११३७४३. (+) आबूगढ गीत, क्षमाछत्रीसी व नेमराजिमति पद, अपूर्ण, वि. १६९६, माघ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ९-६(१ से ६)=३, कल पे. ३, प्रले. पं. कल्याणविजय; राज्ये गच्छाधिपति जिनसागरसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ११४४२). १. पे. नाम. आबूगढ गीत, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विमलकीरति गुण गाया रे, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: संघ जगीश जी, गाथा-३६. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: कोइ अपराध आणि मनि भीत; अंति: श्रीभावहर नित् वंदइ, गाथा-३. ११३७४४. सीमंधरजिनविनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १२४३३-३९). सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के __ पत्र हैं., गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ११३७४५. पार्श्वजिन स्तवन व नेमनाथजी रो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. सा. मैनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:स्तवनप., जैदे., (२५४१०.५, १२४३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वयण हमारा लाल हीयडै; अंति: तुम्हारा हुं बंदालाल, गाथा-७. २.पे. नाम. नेमनाथजी रो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण मध सहेलडी सखी; अंतिः प्रणमै श्रीरुधपाय, गाथा-७. ११३७४६. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:गोतमरा०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४४१). गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गौतम तणा; अंति: रायचंदजी० चोमास जी, गाथा-१३. ११३७४७. (+#) स्थूलिभद्रमुनि चरित्र, वैराग्य सज्झाय व नंदिषेणमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १६x४३). १. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि चरित्र, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछलदे मात मल्हार बह; अंति: ससनेही समकीत सुखडीजी, गाथा-१६. २. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ते गिरुआरे भाई ते; अंति: कीजइ तेहना पग प्रणमीजे रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसयां धण परहरी थई; अंति: लबधिविजय निसदीसो रे, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३७४८. आसनदाने करिराज कथा व कनकरथराजा कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १७४५०). १. पे. नाम. आसनदाने कररिराज कथा, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. करेराज कथा, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: मुक्तिं यास्यति, (पू.वि. "ब्रह्मांडमंडलं अन्यदा तत्रागताः" पाठ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आहारदानविषये कनकरथराजा कथा, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. कनकरथराजा कथा-सुपात्रदानविषये, प्रा.,सं., गद्य, आदि: आहारविरहिआणं सिझासण; अंति: (-), (पू.वि. "समागतं सेनाचतं खेचरराजं प्रणम्यो" पाठ अपूर्ण तक है.) ११३७४९. तेरह काठियारी सज्झाय व आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १४४४३). १. पे. नाम. तेरह काठियारी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, म. उत्तम, मा.ग., पद्य, आदि: जी गुणवंता भविका तुम; अंति: तणो जी सीस उत्तम गुण गेह, गाथा-१६. २. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इक नारी बहुपुरुष मिलीने; अंति: तिण सज्जननी बलिहारी, गाथा-५. ११३७५० (+#) कायोत्सर्ग दोष, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२-३१(१ से ३१)=१, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १५४५०). कायोत्सर्ग दोष, मा.गु., पद्य, आदि: कवि कहइ घोटक लक्षण; अंति: एहवो लक्षण जाणि, गाथा-३३, संपूर्ण. ११३७५१ (+#) कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. द्विपाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १६४५३). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मषीपुंज होइ तु लख्यां जाइ, (पू.वि. पर्युषणमाहात्म्य वर्णन अपूर्ण से है.) ११३७५२ (#) दृष्टांतरत्नावली-हंसाष्टकादि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४८-५१). __दृष्टांतरत्नावली, क. अरिमल्ल, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. भ्रमराष्टक गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११३७५३. (+) चेलणासती सज्झाय व जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:नीगलाना., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, १८४५३). १. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८७४. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि: चेडा राजा रे बेटी सात हुइ; अंति: रायचंद० रत्नसी जादा जाणी, गाथा-२२. २. पे. नाम. जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणवर प्रणमु हो क भव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ११३७५४. ४ मंगल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १५४३६). ४ मंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसीजिन नमुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक ११३७५५. आदिजिन पद व नेमजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, वैशाख शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. सुमतचंदन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१०४५, ७४२०-२४). १.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि: आदि जिणंद मया करो; अंति: आनंदवर्द्धन० आसा रे, गाथा-३. २. पे. नाम. नेमजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org नेमिजिन स्तुति, मु. लब्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: म्हेतो थाने जाणा छाजी, अंति: लब्धविजय० दिनदिन जय जयकार, गाथा-४. २. पे. नाम. ९ बलदेव आयुष्यदेहमानादि विचार, पृ. २अ संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: अचलबलदेव आयूवर्ष लाख ८५; अंति लाख १२०० बेहमान धनुष१०. ३. पे. नाम. ९ नारद नाम, पू. २आ, संपूर्ण 1 ११३७५६. (+) प्रियमेलक चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १३x४०). प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १६७२, आदि प्रणमु सद्गुरु पाय अति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल -१ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११३७५७. ९ वासुदेव, ९ बलदेव व ५ मेरुमान विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ५, दे., (२५X११, १७X३६-४५). १. पे. नाम. ९ वासुदेव शरीरमानादि विवरण, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., गद्य, आदि (-); अति वर्ष सहिस१ देहमान धनुष १० (पू.वि. वासुदेव-८ का देहमानवर्णन अपूर्ण से है., वि. माता-पितानाम भी दिये है.) मा.गु., गद्य, आदि: १ भीमनारद २महाभीम; अंति: नरमुखनारद ९अनमुखनारद. ४. पे. नाम. २१ बोल-सबल दोष, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: एकवीस सबल की चारित्रनइ; अंति: सीतोदग भोगवइ २१.. ५. पे. नाम. ५ मेरुमान विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अचलमेरु पुखरार धनइ उगमणि; अति आथमणि छइ उचउ ८५००० जोवण. १९३७५८. नेमनाथ स्तुति, साधारणजिन स्तुति व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १(१ ) = १, कुल पे. ३, जैवे., ३६९ (२५X११, ९X२७ ). १. पे नाम. नेमनाथ स्तुति, पृ. २अ अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मंगल करो अंबक देवीयै, गाथा-४, (पू. वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि न कोपो न लोभो न मान; अंति: जिन साक्षात् सुरद्रुमं, गाथा-४. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि मोरा आदिजिन देव आज तोने अति (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) १९३७५९ (०) जिनप्रतिमापूजन हुंडी संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४४१०.५, २४४५१). जिनप्रतिमापूजन हुंडी, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि पैंतालीस आगम नाम मूल; अंति: धम्माणु ठाणकायव्वंति. १९३७६० (+) शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५x१०.५, १६x४६). " शांतिजिन स्तवन- जीवदया, मा.गु., पद्य, आदि समरीय सरसतिमाय पाय नमः अंति: (-), (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण तक स्तवन-जीवदया, ; है.) १९३७६१ (+) सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३. पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५x११, " १५X३५). For Private and Personal Use Only सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जंबू कचासनै नाहर मोर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ७१ अपूर्ण तक है.) ११३७६२. २४ जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : चउवी० स्तुति., जैदे., (२५X१०.५, १६x४८). २४ जिन स्तुति, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि बीनतडी अवधारउ रिसहेसर, अंति: सुमतिहंस ० सुणतां सुख अपार, दाल- २४. Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३७६३. (#) श्रावकपाक्षिकअतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०४३४). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: (-), (पू.वि. दर्शन अतिचार अपूर्ण तक है.) ११३७६४. (+#) आलोचना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७-३५४४०-४३). आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: तप करि तो लेखे आवै, (पृ.वि. परिग्रहनियमभंग अपूर्ण से है., _ वि. यंत्रसहित.) ११३७६५. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. हुंडी:नवरसो०., जैदे., (२४.५४१०, १७४४७). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: उदयरतन० सर्व फल्या रे, ढाल-९, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-४ अपूर्ण से है.) ११३७६६. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १०४३५). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: एक मन वंधु श्रीवीर; अंति: करो प्रभु पुरो आसा हम तणी. ११३७७०. (#) समवायांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३५). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकीर्णक समवाय पाठ "अमगे एस सद्दाए" से "पाढोआगास पयाई" तक है.) ११३७७१ (+#) शाश्वतचैत्य स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सुरतबंदिर, पठ. पं. जसविजय गणि, प्र.ले.प. साम प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४२४-३०). शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवनाधि; अंति: श्रीधर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. ११३७७२ (#) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:बृहतश., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४११, १२४३५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ११३७७३. (#) अठावीस लब्धि विचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १६४५४). २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आमोसहि१ विप्पोसहि२; अंति: लद्धीवि नेयसेसाउ अविरद्धा. २८ लब्धिविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आमोषधी हस्तपादादिकना; अंति: पुलाक लबधि २८. ११३७७४.(#) षडावश्यकसूत्र सह वति व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८५-८४(१ से ८४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:षडावसक., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४३३). १. पे. नाम. षडावश्यकसूत्र सह वृति, पृ. ८५अ-८५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.पू.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं, (पू.वि. गाथा-४७ से है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वृत्तितोवरचूर्णितश्च, ग्रं. २७२०. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ८५आ, संपूर्ण.. श्लोक संग्रह*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: एतावत सरसिसरो रुहस्य; अंति: दिन करस्य कृत्यमामनंति, श्लोक-१. ११३७७५. दीक्षा उच्चार विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३४). दीक्षा उच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: करेमि भंते सामाइयं सव्वं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "नमुकारपुवं कट्टे" तक लिखा है.) त्य, For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३६३ ११३७७६. कल्पसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९-६८(१ से ६८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१०,१०४४७). कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. देवप्रदत्त महावीर नाम प्रसंग अपूर्ण से आमल क्रीड़ा प्रसंग तक है.) ११३७७७. (+) आत्मनिंदाष्टक, साधारणजिन स्तुति व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४७). १. पे. नाम. आत्मनिंदाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि*, सं., पद्य, आदि: श्रुत्वा श्रद्धाय; अंति: मिदं कर्मः पुनर्बोधये, श्लोक-१०. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कोय नाथ जिनो न किं तव; अंति: नृपइव कस्य नस्यान्नमस्यः, श्लोक-२. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा क्रमशः ३ से है. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सारका सीर तीरस्छो वारिणि; अंति: रम्मं तेणमे कुक्कडा जाया, गाथा-९. ११३७७८. (#) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, ११४३७). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धम्मेण कुलुप्पत्ती धम्मेण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ११३७७९. संथारापोरसीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५४१०.५, ५४२९). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: तत्तं ए असमत्तं महि गहिअं, गाथा-१५, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ११३७८१. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ११३७८२. (+) नवतत्त्व प्रकरण व जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२३(१ से २३)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४६). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २४अ-२५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से २.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. २५अ-२५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. शांतिसरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भवणपईवं वीरं नमिऊंण; अंति: (-), (प.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ११३७८३. ४ मंगल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१०.५, १२-१४४३५-३७). ४ मंगल सज्झाय, म. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसीजिन नम; अंति: जैमलजी० मती मंगल दीपती, गाथा-३८. ११३७८४. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पार्श्वजिन स्तोत्र व सर्वतोभद्र श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, पठ. पं. चांपसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४६). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनेश्वर स्तुति सह अवचूरि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. चतुर्विंशतिजिन स्तवन-यमकांकित, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भनाथनिभानन; अंति: सुतनुभातनुभातनुभारती, श्लोक-३१.. चतुर्विंशतिजिन स्तवन-यमकांकित-संक्षेपावचरि, सं., गद्य, आदि: हे ऋषभनाथ भानि नक्षत्राणि; अंति: यस्य सातनभा तनुभारता. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघु स्तवन सह अवचूरि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-यमकमय, उपा. समयराज, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वमूर्तिः सकला; अंति: समय प्रभुणा प्रसिद्ध, श्लोक-७. For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-यमकमय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे श्रीपार्श्वनाथ; अंतिः कृतमिति शेषं सुगममिति. ३. पे. नाम. सर्वतोभद्र श्लोक-अनुलोमविलोमगर्भित, पृ. २आ, संपूर्ण... सं., पद्य, आदि: समानाललनामास मालमोक्ष; अंति: ननमेमोना लक्षनक्षक्षनक्षल, श्लोक-१. ११३७८५ (#) नंदीश्वरद्वीपादि विचार, धातकीखंड गाथा व पुष्करावर्तद्वीप गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५२). १. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीप विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तेह तणउ विखंभ विस्तार कही; अंति: पिहुला बहुत्तरिजोयण उचा. २. पे. नाम. रुचकमानुषोत्तरकुंडल पर्वत विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ए तीनइ माडला तणइ आकारि; अंति: चारि जाणवी एतलइ ५६. ३. पे. नाम. धातकीखंड वर्णन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: छसहसछस्सयचउदस तहय कला; अंति: भागेणं लद्धमेयंति, गाथा-९. ४. पे. नाम. पुष्करार्धवर्तद्वीप वर्णन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: इगचत्तसहसपणसय गुणसीइ तह; अंति: सयं बारुत्तर लाग लद्धमिणं, गाथा-१०. ११३७८६. नमस्कार महामंत्र पद, संपूर्ण, वि. १७६९, फाल्गुन शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रामचंद्र (गुरु पं. उद्धव ऋषि); गुपि.पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५२). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे इयाण चिंतउ; अंति: वल्लभसूरि० देज्यो नित्त, गाथा-२६. ११३७८७. पार्श्वनाथ स्तवन,नमस्कार महामंत्र छंद व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १५४४१). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. परबतसर, प्रले. मु. जगनाथ, प्र.ले.प. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: सानिधकारी पासजिनेसर सांमी; अंति: हो परतख श्रीपदमावती, गाथा-७. २.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: गुणप्रभु० सीस रसाल, गाथा-१३. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: सारदमात नमु सिरनामि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) ११३७८८.(+) दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८६२, फाल्गुन, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, ले.स्थल. आमेट, प्रले. सा. देउजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४३१). दशवकालिकसत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.ग., पद्य, वि. १७२३, आदिः (-); अंति: दिन रे पगे वंछित आसो रे, अध्याय-१०, (पू.वि. ढाल-९ गाथा-१० अपूर्ण से है.) ११३७८९ (+) ककाबत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १८४४०). ककाबत्तीसी, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक है.) ११३७९० चौवीसतीर्थंकर स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५४११, ११४३६). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदिः (-); अंति: तासु सीस पभणे आणंद, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ११३७९१ (+) सूक्तावली सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५४१०.५, ७X४१). सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: राज्यं निःसचिवं गतप्रहरणं; अंति: (-), (पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३६५ सूक्तावली संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: राज्य प्रधान बिना न शोभई; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ११३७९२. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२९-२२८(१ से २२८)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१०.५, ५४१०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१० का अंतिम सूत्र अपूर्ण से अध्ययन-११ के प्रथम सूत्र अपूर्ण तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११३७९३. भक्तामर स्तोत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६३०, चैत्र शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. २५-२४(१ से २४)=१, ले.स्थल. कपिस्थलनगर, प्रले. मु. दरगहमल्लर्षि (गुरु म्. धर्मदास); गुपि. म. धर्मदास, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२५.५४११, १६x४८). भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: (-); अंति: गुणाकरसूरि० प्रायशः संति, (पू.वि. अन्तिम श्लोक की टीका अपूर्ण है.) ११३७९४. (#) गजसका मालमनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १६x४८). गजसुकुमालमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२५ की गाथा-५ से ढाल-२७ की गाथा-८ तक है.) ११३७९५. बाहुबली सज्झाय व ७ वार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १२४३१). १. पे. नाम. बाहुबली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. न्यानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीराजी मानो वीनती; अंति: न्यायसागर वंदना होयो खास, गाथा-९. २.पे. नाम. ७ वार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आणंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रवि उगमति आदरु रे दान शील; अंति: सेवे आणंद सुख थाइरे, गाथा-९. ११३७९६. बुद्धि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १७X४६). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवि अंबाई पंचानन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण तक है.) ११३७९७. (+) पापबुद्धिनृप धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, अपूर्ण, वि. १७११, माघ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, ले.स्थल. वीसानगर, प्रले. मु. सौभाग्यचंद्र (गुरु ग. विवेकचंद्र); गुपि.ग. विवेकचंद्र (गुरु ग. देवचंद्र); ग. देवचंद्र; पठ. मु. गोविंदचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११,१५-२०४३९-५१). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथा, सं., गद्य, आदि: (१)धनदो धनमिच्छूनां कामदः, (२)पृथ्वीभूषणपुरे पाप; अंति: मत्याद्यमोक्षजग्मु, (पू.वि. पुण्यफलप्रदान वर्णन अपूर्ण से वेश्या द्वारा प्रताडित कन्या गृहागमन प्रसंग अपूर्ण तक नहीं मु. ११३७९८. पार्श्वनाथ स्तवन व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १७X४५). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: का मे वामेयशक्तिर्भवतु तव; अंति: जिनप्रभसूरिवर्ण्यः, श्लोक-१७. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: तं वंदे त्रिशला सुतं; अंति: कृच्चकार रचने० ठठठ ठठठ, श्लोक-१. ११३७९९ (#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्यय०बो., टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४११, ६४४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-७ तक उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग ससारना संबंध थकी; अंति: (-). ११३८००. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३२). For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. चतुर्दश्या वर्द्धमानजिन स्तुति, पृ. १७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. शुक्लपंचम्या स्तुति, पृ. १७अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपस्त्रिदशप; अंति: कुसलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसार दावानल दाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पंचतीर्थीजिन स्तुति, पृ. १७आ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: सुहाअसा अंब सया पसत्था, गाथा-४. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण मात्र है.) ११३८०१. तप फल व जंबूद्वीप ज्योतिषचक्रादि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, १६x४२). बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. एकलठाणा तप वर्णन ____ अपूर्ण से देवी उत्पत्ति वर्णन अपूर्ण तक है.) ११३८०२. (+#) उगनतीस भावना प्रकरण व नवकारमहामंत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१०.५, १५४४६). १. पे. नाम. उगनतीस भावना प्रकरण, पृ. २अ, संपूर्ण. इगुणतीसी भावना, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ तक लिखा है.) २. पे. नाम. नवकारमहामंत्र का बालावबोध, पृ. २आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं कहता; अंति: देवाधिदेवने नमस्कार हुवौ. ११३८०३. (#) चंद्रगुप्त के सोल स्वप्न विचार-व्यवहारचूलिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, ९x४२). चंद्रगुप्त १६ स्वप्न विचार, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सो सुही भविस्सइ, (पू.वि. स्वप्न-१४ अपूर्ण से है.) ११३८०४. (+#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४४). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., आशातना आलापक अपूर्ण तक है.) ११३८०५ (+) सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १७७५८). सुभाषित श्लोक संग्रह *, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: यदि भवति धनेन धनी; अंति: देखि दीन जलगृह नेत्र, श्लोक-४३, (वि. प्रतिलेखक ने प्रत्येक श्लोक के स्वतंत्र श्लोकांक दिये है.) ११३८०६. (+) पार्श्वजिन प्रभाती व धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, ११४२५-४६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन प्रभाति, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सारद वदन अमृतनी वाणी; अंति: भाग्यदसा अब जागी रे, गाथा-७. २. पे. नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: हां रे मारे धरमजिणंद; अंति: उलट अति घणे रे लो, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३६७ ११३८०७. (+#) ८ कर्म विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५४१०.५, १३४४०). ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ज्ञानावरणी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पंचम आयुष्यकर्म वर्णन ___अपूर्ण तक है.) ११३८०८. गौडीपार्श्वनाथस्य लघु स्तवन व पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ९४३७). १.पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथस्य लघु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. विद्याविलास, मा.गु., पद्य, आदि: तूं जगजीवन बाल हो स्वामी; अंति: विद्याविलास० सुखवास हो, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, प. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: यत्रीलच्छविरीक्षितापि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) ११३८०९ (#) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १७X४३). पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानसूरि, मा.ग., पद्य, वि. १५९६, आदि: वाहनि सारंगि चडि करी चालि; अंति: (-), (प.वि. गाथा-४० अपूर्ण तक है.) ११३८१० (+#) नवतत्त्व विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४११, २३४५५). नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. अजीव तत्त्व के ५६० भेद वर्णन अपूर्ण तक है.) ११३८१२. (#) चतुःशरण प्रकीर्णक व ४ शरण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ४-९४३४-४०). १. पे. नाम, चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-६१ अपूर्ण से है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षनां सुखनउदेणहार छइ. २. पे. नाम, ४ शरण सज्झाय, पृ. १०आ, संपूर्ण. ४ शरणा सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहली मंगलीक कहु एह उत्तम; अंति: विजैभद्र० गरभवास नवि __लहे, (वि. अंत में ४ शरण की एक मांगलिक गाथा लिखी है.) ११३८१३. (+#) नंदीसर स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका जीर्ण, अस्पष्ट व खंडित है., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४३६). १. पे. नाम, नंदीसर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शाश्वतजिन स्तवन-नंदीश्वरद्वीप, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसरवर दीप मझारि; अंति: अन्नवि सासय नमु सेवेवि, गाथा-११. २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदंह्रिनमनादेव देहिन; अंति: जनानवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंति: यच्छताद्वस्सदा, श्लोक-४. ४. पे. नाम. नंदीश्वर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., पद्य, आदि: नंदीश्वरद्वीप महीपर; अंति: प्रसादं निज दर्शनेन, श्लोक-१. ११३८१४. (#) पार्श्वजिन स्तवन व जिनकुशलसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, ८, सोमवार, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३९). For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम, तिमरीपार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. सा. हर्षश्री, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन, ग. गुणरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १६८६, आदि: पारसनाथ० कलापजी नाम; अंति: गुणरतन० मनह आणंद अतिघणइ, गाथा-८. २. पे. नाम. कुशलसूरि गीत, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १९वी कृष्ण, ८, सोमवार, प्रले. मु. गुणरत्नमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. लेखन संवत वाला भाग खंडित है. मा.गु., पद्य, आदि: सेवक घारा सदा सुखी हो; अंति: दयाल तू तो सेवक० नइ उठाना, गाथा-६. ११३८१५. (+) महावीरजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १७४५०). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ.१अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पुत्र मोहाइंदोजी तस; अंति: तुम उपमा किम कहीएजी, गाथा-१४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुणि मातवचन मुझि रुंडा; अंति: सबही आवागमण न कबही री, गाथा-८. ३. पे. नाम, अजितजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, ग. तेजसिंहजी, मा.गु., पद्य, आदि: चोथो आरो जीनवर वारो अजीत; अंति: भांखे जीनवरना गुण जुगते, गाथा-५. ४. पे. नाम, अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधो जी, गाथा-८. ११३८१६. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. श्रुतरंग गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३२-४०). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवइ मंगलं. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पंचपरमेष्टि प्रति गुण; अंति: (१)पहिलं मंगलिक जाणवं, (२)संसारो ___तस्स किं कुणइ. ११३८१७. (+) लीलावती का भाषानुवाद, अपूर्ण, वि. १७९७, पौष कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. २१-१८(१ से १८)=३, ले.स्थल. बलुदीनगर, प्र.वि. हुंडी:भा.ली., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४३९). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: ऐ वरतो जनसुख काज, अध्याय-१६, गाथा-७०७, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अध्याय-१४ अपूर्ण से है., वि. अंत में आयुर्वेद संबंधित श्लोक लिखे है.) ११३८१८. अमरसिंह श्लोको व जसवंत गुरुगुण गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १४४४२). १. पे. नाम. अमरसिंहजीरो सिलोको, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अमरसिंघ श्लोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण तुज पायेज; अंति: जुगजग माहे घणो जस लीधो, गाथा-३६. २. पे. नाम. जसवंत गुरुगुण गीत, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीआचार्य प्रतै सिर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ११३८१९ (+#) पर्युषणा स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९४२३). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पुरो देवी सिद्धाइजी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण ११३८२०. (+) महावीरजी, शांतिनाथजी व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, कल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १५४४०). १. पे. नाम. महावीरजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. लायककुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज वीनती; अंति: लायककुशल० मुझ वास के, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३६९ २.पे. नाम. शांतिनाथजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. ऋषभकुशल शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: श्रीसाहिब शांतिजिणंद; अंति: ऋषभकुशल० तुं ईस, गाथा-७. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. लायककुशल, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन गुण गावता; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११३८२१ (#) मौन एकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १०४३२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्या रे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११३८२२. आदिजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२६४११,११४३२). आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सफल भव आपणो गिणी, ढाल-४, गाथा-५२, (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण से है.) ११३८२३. (+#) बृहत्क्षेत्रसमास-पदार्थ विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, २२४५०). बृहत्क्षेत्रसमास-पदार्थ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: खर कंडेरा १६ भेद १रतनकंड; अंति: (-), (पू.वि. माहेन्द्राभ्यंतरपर्षदा देवायु विचार अपूर्ण तक है., वि. १६ प्रकार के रत्नकुंड, वैताढ्य सिद्धायतन स्थित १०८ प्रतिमा व चमरेन्द्रादि की पर्षदाओं का वर्णन.) ११३८२५. (+#) औपदेशिक सज्झाय संग्रह व चोघडीया चक्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १५४३६). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-वनमाली, पृ. १अ, संपूर्ण.. म. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: कायारी वाडी कारणी सीचंताइ; अंति: पदमतलक० रखे खटज लागै काट, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कायाविषे, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मनभमरा काई भम्य; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-९. ३. पे. नाम. चोघडीया चक्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: रविदिने उद्वेगवेला चलवेला; अंति: कलहवेला लाभवेला. ११३८२६. (+) तिजयपहत्त स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ७४३८-४२). तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण्य जगनुं प्रभू; अंति: पूजाइ सर्व कार्य सीही. ११३८२७. (+) पार्श्वजिन स्तवन, पार्श्वजिन पद व नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १२४४०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. चिमन, मा.गु., पद्य, वि. १९७०, आदि: सफल दिवस थयो आज अमारो; अंति: चिमनमुनि सुखकर अलवेसर, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. चिमन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर स्वामी तुं; अंति: चिमन करो कल्याणाजी, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन गहुंली, मु. चिमन, मा.गु., पद्य, आदि: वरषो वरषो नेमीश्वरलाल तूं; अंति: प्रत पोबहु ससनूर, गाथा-७. ११३८२८. (+#) प्रव्रज्या कुलक सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. आणंदयश (गुरु ग. महीकलश); गुपि.ग. महीकलश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,७-११४३९). For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: धम्मो ता किं न पज्जत्तं, गाथा-३०, संपूर्ण. प्रव्रज्या कुलक-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: अत्र प्रकरणे; अंति: बुद्ध्या काष्टभारिकः, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२६ तक की वृत्ति लिखी है.) ११३८३० (+) निगोदषटत्रिंशिका प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२६४११, ७-११४३७-४२). भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सेगपएसे जहंणयपय; अंति: ते अणंता असंखा वा, गाथा-३६.. भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसरि, सं., गद्य, आदि: अथ पंचमांग एवैकादशशत; अंति: प्यसंख्येया अवसेयाः. ११३८३२. (+#) स्तुति, स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, कुल पे. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३२). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पहिं., पद्य, आदि: आगे पूरव वार नीवाण; अंति: सिद्धि हमारी जी, गाथा-४. २. पे. नाम. कल्याणसागरसूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. कल्याणसूरि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: वीतरागपद वंदीयै; अंति: सागरसूरि कल्याणजी ए, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिश्वर की स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदीसर जिणवर सेवै; अंति: गुणसागर०उदो करी माया, गाथा-४. ४. पे. नाम, पार्श्वनाथजी की स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-दशपुरमंडण, मु. उदयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दशपुरमंडण सोहै नवफण; अंति: मोखनगरमां मैं जिम साधौ, गाथा-३. ५. पे. नाम. महावीर की स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: वर्धमान जिनवर परम; अंति: सिद्ध मंगलकारिणी, गाथा-४. ६. पे. नाम. नेमजिन स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय पंकज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७. पे. नाम. एकादशी की स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांसजिन ग्यारमो; अंति: जीनवर तेह मंगल करूं, गाथा-४. ८. पे. नाम. अष्टमी की थई, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: तस विघन दरे हरे, गाथा-४. ९. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. __ मा.गु., पद्य, आदि: सुविधिनाथ जिन जनम; अंति: जेह तेहने सुखकरणी, गाथा-४, (वि. गाथा-४ का अंतिम शब्द नहीं है.) ११३८३३. (#) खंधकमनि चोढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. सा. मानकुवर आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०.५, १६४३५). खंधकमनि चौढालिया, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: नमूं वीर शासनधणी जी; अंति: जेमलजी० दक्कडं मोहे, ढाल-४. ११३८३४. (#) नेमिजिन बारमासो व पाक्षिक अतिचार-श्रावक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२५.५४११, १३४४०). १.पे. नाम, नेमिजिन बारमासो, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: आषाढह धुरिउ नयोजी गयण; अंति: (-), गाथा-१५, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक ___ द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. पाक्षिक अतिचार-श्रावक, पृ. १आ-३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३७१ श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावकतणइ; अंति: (-), (पू.वि. स्थूल-१२ अपूर्ण तक है.) ११३८३५. पच्चक्खाण व स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४५०). १.पे. नाम. पच्चक्खाण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सूरत (सूरतबंदर, प्रले. ग. कमलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. २. पे. नाम. स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जयवंतसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रंगडो रमी नि रे उंचा उघाय; अंति: जयवंत० जयो कोशा तोरे आधार, गाथा-९. ११३८३६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०१-१००(१ से १००)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४११, १५४४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. आदिजिन चरित्र पाठ "उसभे णं अरहा एगं वाससहस्सं" से "जावमाणे पासमाणे वहरइ" तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ+कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११३८३८. (+) दंडकप्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १७X४४-५१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-३० तक है.) दंडक प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, वि. १५७९, आदि: ऋषभ प्रमुख चौवीस तीर्थंकर; अंति: (-). ११३८३९. कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-४१(१ से ४१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, १३४३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-८४ स्वप्नलक्षणपाठकों से फलादेश सुनकर सिद्धार्थ राजा के खडे होने के प्रसंग अपूर्ण से सूत्र-८९ देवों द्वारा सिद्धार्थ राजा की कोषवृद्धि प्रसंग तक है.) कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११३८४० (+#) प्रश्नोत्तरसमुच्चय, संपूर्ण, वि. १६५२, वैशाख शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पत्तननगर, प्रे. आ. विजयसेनसूरि (गुरु आ. हीरविजयसूरि, तपागच्छ); प्रसं. ग. लाभविजय (गुरु ग. कल्याणकुशल, तपागच्छ); ग. लब्धिसागर (बृहत्तपागच्छ); ग. कल्याणकुशल (तपागच्छ); उपा. सोमविजय गणि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १९४५८-६२)... हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अपेक्षानुसार प्रथम व चतुर्थ प्रकाश से चयनित प्रश्न लिखे हैं.) ११३८४२. (#) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५-१(१)=४, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १६४३६). चंद्रप्रभजिन स्तोत्र-षड्भाषामय, अप.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ से ६ तक है.) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र-षड्भाषामय-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११३८४३. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, १०४५४). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवका दे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ११३८४५. (+) सज्झाय, पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१०.५, २१४५४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शोक, म. भगवान ऋषि, रा., पद्य, वि. १८८५, आदि: समरुं श्रीजिनराजनै; अंति: कुसालचंदजी रे पास, गाथा-२७. २.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, प. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: नगरी द्वारका कृष्णजी; अंति: लीधो संजमभारो जी, गाथा-९. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नाभराजारो नंनरी योन; अंति: आपे आदेसरजी गावां, गाथा-५. ४.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. देवीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आसुसीण घरे लाडला रे; अंति: लुललुल लाग पावै नांनरीया, गाथा-९. ११३८४६. (#) उवसग्गहर स्तोत्र सह वत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५४११, २८४७६). उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की टीका*, सं., गद्य, आदि: स्तोत्रस्यास्पष्टाति; अंति: पासजिभंदत्तिसिद्धं. ११३८४७. (+#) संख्याताअसंख्याताअनंता मान विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अबरखयुक्त अक्षर, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १२४३७). संख्याताअसंख्याताअनंता मान विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नव नववार अभवस्थिति वर्णन __ अपूर्ण से केवलज्ञान केवलदर्शन वर्णन अपूर्ण तक है.) ११३८४८. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६४११,१४४४३). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. नमिऊण गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११३८४९ (+) चतःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ४४३५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से १४ तक है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११३८५१ (+#) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४५०). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दर्वाररागादि; अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्रकाश-२ श्लोक-१७ तक है.) ११३८५२. (+) औपदेशिक सज्झाययुगल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१०.५, १४४४०). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ए ससार अरथ कर जाणो सुख; अंति: जलणा एता पर एता ही करणा, गाथा-२४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नारी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हरहथी के कारणै, वलननसु; अंति: नारी तणो हुं भमरे लाला, गाथा-७. ११३८५३. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:सज्झाय, दे., (२५.५४१०.५, ९-१२४३५-४५). मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: पुर सुग्रीव सोहावणौ; अंति: खेम०दिन दिन मुझ प्रणाम हो, गाथा-१२. ११३८५४.(+) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित-संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, १४४४८). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक ११३८५५. (#) नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, ६x२१). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवइ मंगलं, पद-९. For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३७३ नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.ग., गद्य, आदि: बारगणे सहित श्री अरिहंत; अंति: अडसट्ठि६८ नोकारना होइ, (वि. टबार्थ शैली में बालावबोध लिखा है.) ११३८५६. (+#) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ९४३७). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसमण संघ तिलकोपम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ११३८५८. (#) राजाहरिचंद चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२(१,३)=२, ले.स्थल. शेषपुर, प्र.वि. कुल ग्रं. ३७६, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, २४४५६). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदिः (-); अंति: अंगणइ पामइ सुख संसारि, गाथा-३०२, (पृ.वि. गाथा-१३८ अपूर्ण से २०१ अपूर्ण तक व २५० से है.) ११३८५९. सम्यक्त्वसप्ततिका गाथा संग्रह, १४ अशुचिस्थान विचार व १० वैयावच्च भेदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, ६४३८). १.पे. नाम. सम्यक्त्वसप्तति गाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सम्यक्त्वसप्ततिका-चयन सम्यक्त्व ६७ भेद गाथासंग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सिवं तदुवाउ नाणा० छठाणाई, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) सम्यक्त्वसप्ततिका-चयन सम्यक्त्व ६७ भेद गाथासंग्रह का-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: सतसट्ठि भेदा सम्यक्त्वस्य. २. पे. नाम. १४ अशुचिस्थान विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. १४ स्थान समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उचारेसुवा१ पासवणेसुवार; अंति: असूइ ठाणेसूवा१४. ३. पे. नाम. १० वैयावच्च भेद, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: दशविहावेयावच्चेयतं; अंति: गण साधमिया वेयावच्चे. ४. पे. नाम. औदारिक वैक्रीय आहारक शरीरपर्याप्ति कालमान, पृ. ३आ, संपूर्ण. शरीर पर्याप्ति विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (१)उदारिक शरीरआश्री आहार, (२)आहार पर्याप्ति करता एकसमै; अंति: मन पर्याप्ति करता एक समय१. ११३८६०. अक्षर बत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. राणीसर, दे., (२५४११.५, १६x४२). अक्षरबत्रीसी, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८००, आदि: (-); अंति: सुपत श्रवण भरपीजौ, गाथा-३४, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-५ अपूर्ण से है.) ११३८६१. धर्मनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९७, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १०४३४). धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: हां रे मारे धरमजिणंद; अंति: मोहन० उलट अति घणु रे लो, गाथा-७. ११३८६२. चक्रवर्ती नाम, माता, पिता, आयु, दीक्षादि विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५.५४११, १७४४२). चक्रवर्ती जन्मस्थल माता-पितादि विचार, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-), संपूर्ण. ११३८६३. (+) राजसिंहरत्नवती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५४४२). राजसिंहरत्नवती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. राजसिंघ राजा के द्वारा अपने पुत्र प्रतापसिंघ को राज्यधूरा सोंपने के प्रसंग से प्रायश्चित-आलोयणा प्रसंग अपूर्ण तक है.) ११३८६५. (+) जंबवृक्ष वर्णन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. वीरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जंबूवृक्ष., संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ६४२१-४६). For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जंबूवृक्ष वर्णन, प्रा., पद्य, आदि: मूलतिन्नि सोले सत्ततीसइ; अंति: ए जंबू हुति दस होय नामाइ, गाथा-२५. जंबूवृक्ष वर्णन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मूल परिधि मि ३१६ जोजन अनइ; अंति: करजोजी धर्म जाणीनइ सहीइ. ११३८६६. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति सह भाष्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२५४११, १७X४९). आवश्यकसूत्र-निर्यक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२०९ से २४४ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने नियुक्ति व भाष्य के गाथांक क्रमशः दिए हैं.) आवश्यकसूत्र-भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से ३० तक है.) ११३८६८. दृष्टांतरत्नावली, वैदिक स्तोत्र व अविनीतशिष्य स्वरूपादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. ६, जैदे., (२६४११, १२-१५४५६-६०). १. पे. नाम. दृष्टांतरत्नावली-गजाष्टक तक, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. दृष्टांतरत्नावली, क. अरिमल्ल, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. मात्र गजाष्टक है.) २. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. ११अ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह *, सं., पद्य, आदि: न दुर्जनः सज्जनतामुपैति; अंति: न लिंबवृक्षो मधुरतामेति, श्लोक-१. ३. पे. नाम. ब्रह्माविष्णुमहेश स्तोत्र, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः जातः कृतयुगे ब्रह्मा; अंति: विष्णु एकमूर्ति कथं भवेत्, गाथा-८. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ११आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अकंठस्य कंठे कथं पुष्पमाल; अंति: नाशिका स्यात् कथं गंधधूपः, श्लोक-१. ५. पे. नाम. गुरु दुखित वचनम्, पृ. ११आ, संपूर्ण. व्रत वचन, उपा. समयसंदर गणि, सं., पद्य, वि. १६९८, आदि: क्लेशोपार्जितवित्तेन; अंति: चक्रे गणिः समयसुंदरः. ६. पे. नाम, अविनीत शिष्य स्वरूप गाथा-२, पृ. ११आ, संपूर्ण. अविनीत शिष्य स्वरूप, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चेला नही तउ म करउ चिंता; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११३८६९. औपदेशिक सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, १५४४२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन विनती स्तवन, जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: अहो जगत गुर एक सुणिय; अंति: हे प्रभु ढील न कीजै, गाथा-१२. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुलदीपक चंद; अंति: पहोंचाडो मुज भवजल तीर, गाथा-१०. ११३८७०. २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. १, दे., (२५४११, ११४३७). १. पे. नाम. महाभद्र गीत, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विहरमान जिनवीस, स्तवन-२०, (पू.वि. महाभद्रजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण से है.) ११३८७१. विक्रमादित्य चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१०.५, १७X४९). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ ___गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११३८७२ (+#) १८ नातरा कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-२९(१ से २९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ६x४१). १८ नातरा कथा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पितापुत्री संबंध प्रसंग अपूर्ण से पुत्रजन्म प्रसंग अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३७५ १८ नातरा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११३८७४. कृष्णाष्टक, आदिजिन बधाई, जिनदत्तसूरि गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१०.५, १३४३४). १.पे. नाम. कृष्णाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: नमो बालगोपालवेणाविनोदं; अंति: सहस्राणि वैकंठे रमते नर, श्लोक-८. २. पे. नाम, आदिजिन पद-जन्मदिन की बधाई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-जन्मबधाई, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: आज तो बधाई राजा नाभ; अंति: रूप निरंजन आदिसर दरबार रे, गाथा-६. ३. पे. नाम, जिनदत्तसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सदगुरुजी तुम्हे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) ११३८७८.(+) ९ निधि ध्यानाधिकार व २८ लब्धिसमास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १४४५०). १. पे. नाम. नव निधि ध्यानाधिकार, पृ. १अ, संपूर्ण. ९निधि ध्यानाधिकार, मा.गु., गद्य, आदि: नेसर्प १ पंडक २ पिंगल ३; अंति: करवानी सर्वबाजींत्र निकले. २. पे. नाम. २८ लब्धि समास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आमोसही लब्धी हस्तादिक फरस; अंति: १ एवं १४ नहुइ बाकी १४ हुइ. ११३८७९ (4) साधुपाक्षिकअतिचार, अपूर्ण, वि. १८५५, आषाढ़ कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ.५-२(१ से २)=३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४३१). साधपाक्षिकअतिचार-म.प., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: यथासक्तिं करी तप पोहचाडवो. (पू.वि. अष्टप्रवचनमाता स्थूल अपूर्ण से है.) ११३८८० (+) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१०.५, १७X४७). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., पद्य, आदि: कक्का करत सदी फिर्यो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ११३८८१ (#) आत्मरक्षा स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १३४४४). १. पे. नाम, आत्मरक्षा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ११३८८२. (#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४११, ८x२०). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ११३८८३. पार्श्वजिन पद व सीमंधरजिन विनती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०, ९४३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पारसनाथ अनाथ को नाथ मुगति; अंति: सब दुख दारित्र जाय टले, गाथा-१. २. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर _ विनती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११३८८४.(+) महावीरजिन स्तुति व मोक्षमार्ग अध्ययन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक-१अ पर दैनिक जीवन की व्यक्तिगत बातें लिखी हुई हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१०.५, १५४३६). For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. __सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९.. २. पे. नाम. मोक्षमार्ग अध्ययन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सूत्रकतांगसूत्र-हिस्सा मोक्षमार्ग अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: कएरेमग्गे अक्खाते; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ तक है.) ११३८८५. (+) अक्षरबावनी व कवित्तादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १६४५०). १. पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. म. उदैराज, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: ॐकाराय नमो अकल अवतार; अंति: तिको अनैक वातां कहे, गाथा-५९. २.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति पत्रांक-१अ के हासिये में है. क. गद, मा.गु., पद्य, आदि: सूब कवित संभों सीस पट; अंति: कवि गद० सुबन के लंछन इस, गाथा-२, (वि. अंत में ब्रह्मचारि वंदन श्लोक दिया है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति पत्रांक-१अ के हासिये में है. म. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: कंठो बीली कंठ पेख करि लगा; अंति: केसव० कपटी संग न कीजीयै, गाथा-१. ४. पे. नाम. त्रिपुरासुंदरी अमृत ध्वनि, पृ. ४आ, संपूर्ण. त्रिपुरसुंदरी अमृत ध्वनि, मा.गु., पद्य, आदि: कह कह कलिलित कालिका निरख; अंति: हित लग गाय रन सग गणसुर अग, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: के सूर छिपै घन वादल भितर; अंति: (-), (पू.वि. पद-४ अपूर्ण तक है.) ११३८८६. (#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.११-१०(१ से १०)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४३१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२७ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक है.) ११३८८७. मौनएकादशीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १८३९, चैत्र शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. मेदिनीपुर, प्रले. पं. कर्मसुंदर (गुरु आ. देवगुप्तसूरि, उपकेशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१०.५, १४४४४). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंति: श्रीरपुर संश्रितैः, श्लोक-११३. ११३८८८. (#) लघुशांति, कल्याणमंदिर स्तोत्र व मांगलिक स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११,१३४३८). १. पे. नाम. लघुशांति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आ. मानदेवसरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८, (पू.वि. श्लोक-१७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, प. २अ-४आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३. पे. नाम, मांगलिक स्तोत्र, प. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक है.) ११३८८९ (#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३०). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि *, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३७७ ११३८९० (+#) गौतमकूलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले.ऋ. मनोहर ऋषि (गुरु ऋ. सूराजी ऋषि); गुपि. ऋ. सूराजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:लुधानरा., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १३४२९). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लुद्धा० लोभीया नर; अंति: पालीनइ अनंतसुख पामइ. ११३८९१ (+) पार्श्वजिन, आदिजिन व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १२४३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., पद्य, आदि: माई रंगभर खेलेगे; अंति: भक्ति रमे जिनवर सहाय, गाथा-४. २. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-फलवर्द्धिपरमंडण, क. रूप, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय हो सामी जैनराय; अंति: रूप कहत० रहो सनाथ, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: नहि छांडो हो जिनराज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११३८९२. (+#) पार्श्वजिन स्तोत्र व सीता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १४४३७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७२४, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, ले.स्थल. व्यापारी, प्रले. मु. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभ; अंति: प्रभुपार्श्वजिनस्तवं, श्लोक-७. २.पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ.१आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीचंद, पुहि., पद्य, आदि: मुनिसुवरतस्वामी; अंति: लिखमीचंद० सिरनाम. ११३८९३. (+) अट्ठाईमहोत्सव व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-२५(१ से २५)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:अट्ठाईमहो०., संशोधित., दे., (२४.५४११, १२४३४). अट्ठाईमहोत्सव व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. राजा के द्वारा बैल प्रदर्शन प्रसंग अपूर्ण से दासी के द्वारा होने वाले पश्चात्ताप प्रसंग अपूर्ण तक है.) ११३८९४. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:कर्मग्रंथसूत्र, दे., (२४.५४११, १२४३०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११३८९५. बृहच्छांति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२४४१०.५, १३४४५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., २४ जिन नाम अपूर्ण से है.) ११३८९६. (+) २४ जिन च्यवनागम, माता, पितादि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१०.५, १२४३७). २४ जिन च्यवनादि २१ स्थान बोल, मा.ग., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी तिथंकर १; अंति: हेमवर्ण २४ पावापुरी नगरी. ११३८९७. (+#) दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, प्रले. मु. अमरसी (गुरु ग. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४१). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धर्ममंगल महिमा निलो; अंति: जयतसी जय जय रंग, अध्याय-१०, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-४ गाथा-३ अपूर्ण से अध्ययन-९ तक नहीं है.) ११३८९८. महावीरजिन विनती, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, ११४२८). For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीर जिनविनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि वीर सुणो मुज विनती अंति (-), (पू.वि. गाथा- ११ अपूर्ण तक है.) ११३८९९ (+#) जिनप्रतिमास्थापना रास व उपदेश रहस्य गीत, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१ (२) = ३, कुल पे. २, प्रले. जगन्नाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११, १२X३८). १. पे. नाम जिनप्रतिमास्थापना रास, पृ. १अ ३अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सार वचन जिन भाखीयो; अंतिः श्रुतनो पक्ष म मेलज्यो, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से ४१ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. उपदेसि रहिस्य गीत, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. उपदेश रहस्य, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जे छइ जिनधर्म्म जाणि; अंति: पासचंदसूरि इम बोलइ, गाथा ४०. ११३९००. कल्पसूत्र की कल्पमंजरी टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२१ (१ से २१) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जैसे. (२४.५४१०.५, १६x४८). कल्पसूत्र- कल्पमंजरी टीका, मु. रत्नसार, सं., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. आश्चर्य ५ अपूर्ण से आश्चर्य १० तीर्थकाल वर्णन अपूर्ण तक है.) ११३९०१. (#) रांणपुर स्तवन, सीतासती सज्झाय व ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१०, १७४२). " १. पे. नाम. राणपुर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: स्तवनरांणपुरानो. आदिजिन स्तवन -राणपुरमंडन, मुं. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि राणपुरइ मन मोहीयो रे लाल; अंतिः लाल सिवसुंदर सुख धाय गाथा १५. २. पे नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १२-१आ, संपूर्ण सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छंडि हो पीया छंडि चल्यो व; अति हो पीया पय भाव ज धरी, गाथा - ११. ३. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दिसथी च्यारे; अंति: गाया हे पाटण परसिद्ध, गाथा-५. ११३९०२. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तव व ८ सिद्धिनाम, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X१०.५, ५X३३). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि लोगस्स उज्जोअगरे, अंतिः सिद्धिं मम दिसंतु, गाथा- ७. लोगस्ससूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोक कहतां चउद राजलोक; अंति: सिद्धि कहतां मोक्ष आपतु. २. पे नाम. ८ सिद्धि नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., सं., पद्य, आदि: लधिमा १ वश्यता २ ईशत्व ३; अंतिः शांयित्वं ७ प्राप्ति ८, श्लोक-१, (वि. अंत में ओघ संज्ञा संबंधित भेद दिया है.) १९३९०४. कर्मप्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५ ) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैवे., (२५.५X१०.५, ९४३२). कर्मप्रकृति विचार *, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. मनुष्य गति वर्णन अपूर्ण से संस्थान नाम कर्म वर्णन अपूर्ण तक है.) ११३९०५ (+) बिंबप्रवेश विधि, ८ प्रातिहार्य श्लोक व ज्योतिष श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४१०.५, १४४३५-३७). "" १. पे. नाम. बिंबप्रवेश विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बिंबप्रवेशविधि. जिनबिंवप्रतिष्ठा विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: गुरुशुक्रोदव भलु मुहूर्त, अति जिमश्रेय कल्याण नीपजइ. For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३७९ २.पे. नाम.८ प्रातिहार्य श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अशोकाख्यं वृक्षं १; अंति: (अपठनीय). ३.पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: मगसिर पोस माघ आषाढ श्रावण; अंति: फागुण चैत्र श्लेष्मराजा, श्लोक-१. ११३९०६. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १८५८, श्रावण शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. मढाग्राम, प्रले. मु. जीवणचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत मे 'सं. १८६० भादवासुदि १४ बुधे धरती धूजी आश्विन कृष्ण ५ शुक्रेअर्धरात्रौ' वाक्य लिखा है., जैदे., (२६४१०.५, १२४३५). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विनय० साखा वीस्तरो ए, ढाल-६, गाथा-६२, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१४ अपूर्ण से है.) ११३९०७. कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१०.५,१५४४०). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. 'कालिकाचार्य संबंदोवाच्यते-अस्मिन् जंबुद्वीपे' पाठांश तक है.) ११३९०८. (#) पार्श्वजिन स्तवन, अध्यात्मपक्ष स्तवन व प्रास्ताविक दूहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. नेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १२४३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८५८, ज्येष्ठ शुक्ल, ५. मु. नेमसागर, पुहि., पद्य, आदि: मुज चितडोजी माहाराय तुमसु; अंति: सीस नेम सागर गुण गाय, गाथा-५, (वि. अंत मे दूहा दिया है.) २. पे. नाम. अध्यात्मपक्ष स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. चेतनसुमतिमिलन सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अवीनासीनी सेजडीइं; अंति: हांथी प्रती बंधाणी जी रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. दहासंग्रह, पृ.१आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: जाहीतें कछु पाईयें करीयें; अंति: आरसी भले बुरे झदेत, गाथा-२. ११३९०९. असज्झाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, ११४३८). असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी समरी मात; अंति: शिवलच्छी तस वरै, गाथा-१६. ११३९१० (#) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १२४३०). अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनीय, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सखि; अंति: श्रीमेरुनंदन उवझाय ए, गाथा-३२. ११३९११ (+#) जीवविचार सूत्र व दंडकप्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४११, ५४४१). १.पे. नाम. जीवविचार सूत्र सह टबार्थ, पृ. ११अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., प्रले. पं. पासदत्त मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण से है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: समुद्र थकी उधरिउ छइ. २. पे. नाम. दंडकप्रकरण, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक ११३९१२. (#) ज्ञातानामुद्धार, भैरवाष्टक व २० स्थानक नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४५४). For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. ज्ञातानामुद्धार, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा चतर्थ कर्मअध्ययन का ज्ञातोपनय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उखित्तणाए १ संघाडे; अंति: रोहिणी सालिकण ७. २.पे. नाम. भैरवाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: एकं खट्वांगहस्तं; अंति: सर्वसिद्धिमवाप्नुयात्, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. २० स्थानक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमोसिद्धाणं; अंति: तित्थस्स २० नमो पवयणस्स. ११३९१३. (#) अढारनातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७७०, भाद्रपद कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. खदिरपुर नगर, प्रले. म. तिलकविजय; पठ. सा. दीपाजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३७). १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलु ने समरूं रे; अंति: हरख भरपूर रे तुमे सांभलो, ढाल-३, गाथा-३४. ११३९१४. (+) विमलमंत्री रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. १, प.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३४४३). विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि: आदिजिनवर २ प्रथम प्रणमेस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ तक है.) ११३९१५ (+) देवलोकां रो तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्राव. लीछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:देवलोका., संशोधित., दे., (२५४१०.५, १८४४५). देवलोकसख सज्झाय, म. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३७, आदि: देवलोकारा साताकारी: अंति: रभाखतो पुनवंत इण प्रजागजी, गाथा-२०. ११३९१६. (+) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ३४३७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ अपूर्ण से है व गाथा-२१ अपूर्ण तक लिखा है.) ११३९१७. (+#) इगवीस ठाणा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:इकवीस., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १३४४५). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा १ नयरी २; अंति: गब्भट्टिईयं हीरं, गाथा-७२. ११३९१८. (+) जिनसहस्रनाम स्तोत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५१). जिनसहस्रनाम स्तोत्र-टीका, आ. अमरकीर्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मंत्रनाम-९९ की टीका अपूर्ण से ११९ की टीका अपूर्ण तक है.) ११३९२०. (#) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-११(१ से ३,५ से १२)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:खेत्र समा., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०, १८४४२). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ से ____ गाथा-२२ तक व गाथा-६६ से गाथा-७८ तक है.) लघक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध *, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११३९२१. जिनवाणी गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४९.५, ७४३२). जिनवाणी गहुंली, वा. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अमृत सरखी रे सुणीय; अंति: देवचंद० प्रभुता दीजे, गाथा-७. ११३९२२. (+#) चउसरण पईन्नो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:चउसरण., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४९.५, १३४५४). For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३८१ चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ११३९२३. (4) पंचपरमेष्ठिमंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५२, पौष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. माणकचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०,१५४३७). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: नमो लोए सव्वसाहणं, पद-५. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो कहतां नभसकार हो; अंति: पावरी वंदणा होज्यो. ११३९२७. (+#) षोडशनाम सरस्वती स्तोत्र, मुहपत्ति ५० बोल व सातलाख सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३९). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमस्ते सारदादेवी; अंति: पुजनीया सरस्वती, (वि. ॐकार व पार्श्वनाथ का एक-एक श्लोक दिया है.) २. पे. नाम. मुहपत्ति ५० बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: त्रसकाय की रिष्या करु. ३. पे. नाम. सातलाख सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावकदेवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: सातलाख पृथ्वीकाय; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. ११३९२८. (#) उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७०-६९(१ से ६९)=१, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्ययन बालावबोध. पत्रांक का भाग खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १३४५१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मएत्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन-३६ गाथा-२६९ अपूर्ण से है.) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुख श्रेय कल्याण हुइ. ११३९३०. दोषाकेवली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., अ., (२५४१०.५, १५४४३). दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, आदि: १११ शरीरे वातादि कष्टं; अंति: (-), (पू.वि. अंक-४२४ के फल तक है.) ११३९३३. (+) थूलभद्रनवरस सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८०३, श्रावण कृष्ण, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४२). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: मनोरथ वेगै फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ११३९३४.(+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १७४४०). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२३ से ५० अपूर्ण तक है.) ११३९३५. २० विहरमानजिन गीत, अपूर्ण, वि. १६९०, आश्विन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, ले.स्थल. फतेपुर, प्रले. शिवदास वसताणी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १३४४३). २० विहरमानजिन गीत, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमाण जिण वीसमउए; अंति: वीनवइ ए तुहि ज देव प्रमाण, संपूर्ण. ११३९३७. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. जयवंतीनगरे, प्रले. म. चेतनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संतिनाथ प्रसाद., जैदे., (२४.५४१०,१७४३३). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.ग., पद्य, वि. १४१२, आदिः (-); अंति: इम० वड जिम साखा विस्तरो ए, गाथा-५१, (प.वि. गाथा ४१ से है.) ११३९३८. (+) क्षमाछत्री व क्षुद्रोपद्रवकाउसग्ग विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. पं. हरिचंद गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १२४३८). For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम क्षमाछत्रीसी, पू. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति संघ जगीश जी, गाथा- ३६, (पू.वि. गाधा ३२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवकाउसग्ग विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः ॐ उन्मिष्ट रिष्ट दुष्ट; अंति: (अपठनीय). ११३९४०. (+) गजसुकमाल स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४४१०, १५X४३). गजसुकुमालमुनि सज्झाब, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि सोरठ देश मझार, अंति सिंघसौभाग्य० मुनिराजीउ जी, गाथा - ३५. १९३९४१. (१) शांतिनाथ जमावसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. आनंदसिद्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४४१०.५, १३४४२) शांतिजिन स्तव-जन्माभिषेक, मा.गु., पद्य, आदि: जय सयल सुरासुर; अंति: विजय सिरि संति करो, गाथा - १८. ११३९४५. (+) वीरस्तुति अध्ययन व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२४.५४१०.५, १७५०). " १. पे नाम वीरस्तुति अध्ययन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पुच्छिसणं. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समणा; अंतिः आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा - २९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा. मा.गु., सं., पद्य, आदि: पंचमहिव्वमुब्वमुल समण; अति तोविणसजेझा जीवते मरणे तहा, गाथा-४. " ११३९४६. पंचतीर्थी चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५X१०, ६x२६). ५ तीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि नमः श्रीमदर्हता सिद्धि, अंति (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ११३९४७. (+) लघुशांति व मणिभद्रवीर स्तुति, अपूर्ण, वि. १८९३, पौष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १६-१५ (१ से १५) १, कुल पे. २, ले. स्थल, बालोचर, पठ. मु. सानिध विजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैये. (२४.५X१०, ११x२८). १. पे नाम, लघुशांति, पृ. १६अ १६आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक - १९, (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से है.) २. पे नाम मणिभद्रवीर स्तुति, पृ. १६आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि वंदेभूतगणेशवृंदमहित्त, अतिः श्रीयक्षवृंदार्च्चितम् श्लोक-१. ११३९४८. (१) बाहुबल गीत संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पू. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे (२४४१०, १३x४१). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि चारित लीयउ; अंति: विमलकीरति सुखदाइ, गाथा - ११. ११३९४९. (+) सीमंधर चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२४X१०, ८X२८). २० विहरमानजिन स्तव, सं., पद्य, आदि द्वीपेत्र सीमंधर तं नमामि अंति: गतिचतुष्कं कर्मणामष्टकं च श्लोक-४. ११३९५०. (#) नेमराजीमति स्तवन व गुरुभास गुहली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. पं. क्षमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीगोडीजी प्रसादात, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२३.५X१०, १२४३४). १. पे नाम. नेमराजीमति स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. "" नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रे सामी सुणो अरदास, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम गुरुभास गुहली, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३८३ लक्ष्मीसागरसूरि गहुंली, मु. विनयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सखी गहुली करो गुरु आगले; अंति: विनयसुंदर० फूल मांगवायरे, गाथा-७. ११३९५१. (#) जीवविचार बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.१, ५४१०). जीवविचार बोल*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ११३९५२. (#) गौतमस्वामी स्तोत्र, अष्टमी स्तुति व पार्श्वजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-३३(१ से ३३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४९.५, १३४४३). १.पे. नाम. गौतम स्तोत्र, पृ. ३४अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूती वसूभूत; अंति: नंदं लभंते सुतरां क्रमेण, श्लोक-९. २. पे. नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: देवि विघ्न दूरै हरै, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३४आ, संपूर्ण. मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रय उठी प्रणमुं; अंति: शीश धीरनी पुरो जगीश, गाथा-४. ११३९५३. अवंतिसुखमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १२४२४). अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: संज्यमथि रे सुख पामि; अंति: थइ हणज्यो करम कठोर, गाथा-९. ११३९५४. (#) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-९(१,३ से १०)=२, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२३.५४१०, १३४३९). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, खंड-१ ढाल-१ गाथा-११ अपूर्ण से ढाल-२ गाथा-३४ अपूर्ण तक है व खंड-२ ढाल-१ गाथा-१५ अपूर्ण से ढाल-३ के दोहा क्रमशः गाथा-३६ अपूर्ण तक है.) ११३९५५ (+) विजयकुवरजी चोढालियो व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१०.५, ८x२४). १.पे. नाम. विजयकुवरजी चौढालियो, पृ. ३अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. पाली. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, म. रामचंद, पुहिं., पद्य, वि. १९१०, आदिः (-); अंति: रामचंद० मिथ्या दकृत मोय, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रात उठ श्रीसंतजिनं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११३९५६. चउद पूर्वनाम सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३७). रत्नसंचय-हिस्सा गाथा ३०४ से ३०५ चतुर्दश पूर्वनाम, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उप्पाय पुव्वमग्रणी यंच तई; अंति: पुव्वं ततह बिहु सारं च. रत्नसंचय-हिस्सा गाथा ३०४ से ३०५ चतुर्दश पूर्वनाम का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउदें पूर्व कह्या ते कहि; अंति: बिंदु सार चउदमुं पूर्व. ११३९५८. (#) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, ९४४२). आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर सुखकारी हो एक तारी; अंतिः प्रभु आवागमन निवार, गाथा-५. ११३९६०. १२ व्रतपूजा-सप्तमव्रत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१०, ९४२९). १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३९६१ (#) सारस्वत व्याकरण व ४५ आगमनाम श्लोक संख्या आदि विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१०.५,१०४२६-३२). १.पे. नाम, सारस्वत व्याकरण, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., विसर्गसंधि सूत्र-६ अतोत्युः से है व सूत्र-१४ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. ४५ आगमनाम श्लोक संख्या आदि विवरण-उपांगसूत्र से चूलिका तक, पृ. २आ, संपूर्ण. ४५ आगमनाम श्लोक संख्या आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: एवं आगम पेंतालीस जाणवा, प्रतिपूर्ण. ११३९६४. कृष्णमाहाराजा ढाल-पांडव रास ढाल-१४२, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. केसरजी ऋषि; पठ. सा. देउजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०,१४४४२). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ११३९६५ (#) रीषभजी बाललीला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१०,१३४३९). आदिजिन बाललीला स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: हारे म्हारा रिषभजी देव; अंति: तुम्ह सेवा मागु एहिज राज, गाथा-१८. ११३९६६. औपदेशिक सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०, ९-१३४३७). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. मुनिंदा, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-जीव, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन युं जीवने समझावने समझा; अंति: कीर्ति० जिनकुं ध्याय, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: धर्म म मुकीस विनय म; अंति: सो चिरकाले नंदो रे, गाथा-८. ११३९६७. बासठि मार्गणा कायस्थिति व २८ बोल श्रावक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२३.५४९.५, १५४३९). १. पे. नाम. ६२ मार्गणा यंत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___मा.गु., को., आदि: देवगति जघन्य दस सहिस वलस; अंति: महारीज० त्रिणि समय संसार. २. पे. नाम. २८ बोल श्रावक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: ॐ कार सहित जागिq समरण; अंति: गुरुनु संयोग दुर्लभ भावइं. ११३९६८. पार्श्वनाथ संबंध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०, १७X४५). पार्श्वजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ नाम; अंति: तपकरी मेघमाली देवता थयो. ११३९६९ (+) नेमिजिन बारमासो व लावणी आदिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०, १०४३१). १. पे. नाम. नेमनाथजी बारमासो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासा, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: काती कंत वीना किम जास्ये; अंति: सखी लेख लिख्या नवि छुटे, गाथा-१३. २. पे. नाम, राजिमतीसती विलाप लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: दे गया दगा दिलदार; अंति: जिनदास बैठ वीनती गाई, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: मै नमुं नेम कै पाय गया; अंति: जिनदास सुणो जिनवर रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३८५ मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ११३९७० (#) चित्रसंभूति सज्झाय व ४ शरणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, ., (२१.५४९.५, १२४३२). १. पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: बंधव बोल मानो हो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) २. पे. नाम. ४ शरणा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. चोथमल ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८५२, आदि: सदाय उठी नित समरी वहो भवी; अंति: चोथमल सुणजो बाल गोपाल, गाथा-११. ११३९७१. १४ पूर्व गरj, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. रत्नविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०, ८x२२). १४ पूर्व नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीउत्पादपूर्वाय नम; अंति: श्रीलोकबिंदुसारपुरवायनमः. ११३९७२. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्रावि. चंपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तान., जैदे., (११४१०,१६४१७). औपदेशिक सज्झाय-वणजारा, मु. जीवणदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रांणी वीणजीरा वणज करी; अंति: अवसरनी वे वारुवारी प्राणी, गाथा-१०. ११३९७५. पर्यंताराधना सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३.५४१०, ५४३२). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) पर्यंताराधना-गाथा ७०-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमीऊणक० नमस्कार करीने कही; अंति: (-). ११३९७६. (#) महावीरजिन स्तुतिद्वय व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४५, भाद्रपद शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. जीत ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०.५, १७४६४). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति-गाथा १ से ३, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहि.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: सारं दंसण नाणं सारं तव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११३९७७. (#) इलापुत्र सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १४४२७). १. पे. नाम. इलापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-बाडमेरमंडन, म. विजयसेखर, मा.गु., पद्य, वि. १६१९, आदि: नगर बाहडमेर दीपतौ; अंति: नगर मझार विजेंयसेखर०, गाथा-९. ११३९८१ (+) आदिनाथजी वीनती, अपूर्ण, वि. १८४०, पौष शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, प. ९-५(१ से ५)=४, प्र.वि. संशोधित., __ जैदे., (२०x१०, ८x२६). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: (-); अंति: मुनि वैरागी ईम भणी, गाथा-४५, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३९८२. आत्मशिक्षा सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४९.५, ९-१३४३१). १. पे. नाम, आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण रे चंचल जीवडा परभव; अंति: जाये जाये मुगत मझार, गाथा-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सुधो धर्म मकिस विनय; अंति: नोता गांठ थकी नवी छुटे रे, गाथा-९. ११३९८३. (+) औपदेशिक श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२३४९.५, १४४३२). १.पे. नाम, औपदेशिक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अंधा पसंति रूवाणि सदं; अंति: भासंति चक्र मतिज पुगमा, श्लोक-१. २. पे. नाम, ८ प्रातिहार्य श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: असोगवृक्षसुरपुष्पवृष्टि; अंति: जिनेश्वराणाम, श्लोक-१. ३. पे. नाम. २४ जिन समवसरणमान विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १२ जोजन रिषभदेवनो समोसरण; अंति: संसारमाहि कोइ वसतु नथी. ४. पे. नाम, वीस उपगरण-प्रश्नव्याकरणगत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुसाध्वी २५ उपकरण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पात्रा३ झोली१ वीटणो१; अंति: सिद्धांतनइ अनुसारि जाणवा. ५. पे. नाम, व्यवहारसूत्र उद्देसा-८ सूत्र-२०१-साधु आचार, पृ. १आ, संपूर्ण. व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: देसाट्टनं पंडितं मित्रतां; अंति: नेत्रहीणा कनकं अलंकरतम्, श्लोक-३. ११३९८४. (+) कुगुरुपच्चीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४९.५, १३४३३). कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी सदा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ तक है.) ११३९८५. (#) स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१५.५४१०, ९x१८). स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आज आणंद वधामणा वीनति सुणि; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-८ अपूर्ण तक है., वि. प्रारंभ में पार्श्वजिन स्तवन का नाम दिया गया है.) ११३९९३. वीस स्थानकतप आराधनाविधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७-४६(१ से ४६)=१, ले.स्थल. सांडेरानगर, प्रले. पं. विनयविजय गणि,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१४४४) जिहां जगमेर अडीग है, जैदे., (२४४९.५, १४४२९-४२). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: श्री अरिहंत० आयरिहांताणं; अंति: यवयणस्स २००० गुण त्रिकाल, संपूर्ण. ११३९९४. भगवतीसूत्रगत शतकविषय द्वारगाथा आलापक व ४ कषायादि भांगाविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र-१४२=१., जैदे., (२३४९, १४४४०-५०). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र-शतकविषयद्वारगाथा आलापक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: रायगिह चलण१ दुक्खे२ कंखय; अंति: चंपा चंदिमाय दस पंचमंमिसए, (वि. पत्र-१आ पर शतक-१,२,३ व ५ में उपलब्ध विषयों की द्वारगाथा है.) २.पे. नाम, भगवतीसूत्र-शतक १ क्रोधमानमायालोभकषायादि भांगाविचार, पृ. १अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-शतक १गत क्रोधमानमायालोभकषायादि भांगा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नेरईयाणं भंते किं कोहोवउव; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जीवसंख्यातप्रदेश भांगा-२७ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११३९९५. २४ तीर्थंकरना अधिष्ठाता यक्षना नाम, संपूर्ण, वि. १७४९, आश्विन शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. धोराजी, प्रले. मु. देवमुनि (गुरु मु. विरधा ऋषि); गुपि. मु. विरधा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४९.५, २९x१२). २४ जिन यक्षयक्षिणीनाम, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), अंक-२४. ११३९९६. चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२२४९.५, १२४२९). १. पे. नाम. सीमंधर चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: वीनय करे तस ध्यांन, गाथा-३. २.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: पुज्यो पास जिणंद कमठ हठ ग; अंति: सीधसेनने समर्या सानिध किध, गाथा-३. ३. पे. नाम, चोवीस तीर्थंकर जिन चैत्यवंदन, प. १अ-१आ, संपूर्ण.. २४ जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ प्रभु प्रथमदैव शिव; अंति: ग्यान० जिम लहीइं लीलवीलास, गाथा-१४. ४. पे. नाम. नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: नेम नमुं निसदिस जनम; अंति: जश महिमा जगमा रह्यो, गाथा-३. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व दिसि इशांनकुंण; अंति: लाभ द्यो पुरवो संघ जगीस, गाथा-४. ११३९९८. शत्रुजयतीर्थ होरी व वर्णमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२१४९, ८x२७). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालो सखि सेव॒जे जइ; अंति: पभणे जन्म जन्म तोरो दास, गाथा-५. २. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बाराक्षरी, सं., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ; अंति: (-), (पू.वि. 'प्न' तक है.) ११३९९९. रामविनोद-पुरुष लक्षणसूक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२१.५४९.५, १०४२९). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से ११४००० (+) चोत्रीसअतिशय तीर्थंकर अनक्रम, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१०, १२४३१). ३४ अतिशय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत तु शरीर नीरोग परसोव; अंति: (-), (पू.वि. द्रव्यक्षेत्रकालभाव वर्णन अपूर्ण तक है.) ११४००१. प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४९.५, १२४४०). गुरुप्रतिमा प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ शुभ दिने शुभ; अंति: पाले नैवेध मूकीजै. ११४००२. आत्मप्रबोधजिन स्तवन व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४९.५, १०x४२). १. पे. नाम, आत्मप्रबोधजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वीतराग स्तोत्र, मु. गुणचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भज सर्वशं भज सर्वज्ञं; अंति: प्रणमत सेव्यं रे, गाथा-१५. २.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन, म.क्षमाकल्याण, मा.ग., पद्य, आदि: प्रात ऊठ समरिये श्री ऋषभ; अंति: क्षमाकल्याण चरण की सेवा, गाथा-५. ११४००३. जीवहित सज्झाय व वरकाणा पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४९.५, १४४४५). १.पे. नाम. जीवहित सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. खेरवा, पठ. मु. गुमानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-जीवशिक्षा, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडला रे जीवडला तूं; अंति: कहे० चढत सवाई रे, गाथा-११. २. पे. नाम. वरकाणा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, अन्य. मु. उदेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, म. नित्यप्रकाश, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सारद हो देवी पाय; अंति: नितपरकार ने सुखया करे, गाथा-१३. ११४००४. (#) नवग्रह जाप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४९.५, १७X४१). नवग्रह जाप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सूर्य सपुज होवै जदी धोलो; अंति: ए गुणीजै कालो दान दीजै. ११४००५ (+) खिमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४९.५, १३४३६). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण आदर म; अंति: समयसुंदर० संघ जगीस जी, गाथा-३६. ११४००६. गौतम केवली, प्राकृत गाथा व स्त्री-पुरुषजन्म पृच्छा कवित्त, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४९.५, ११४४०). १.पे. नाम. गौतम केवली का बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतम केवली-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगौतमाय नमः ईणइं; अंति: भक्ष चडिसइं भला काज होसइ. २. पे. नाम. प्राकृत गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ गाथा संग्रह जैन*, प्रा., पद्य, आदि: बालुकेण रोआ विउकेण; अंति: सुप्पइ जाण विहाण. ३. पे. नाम. स्त्री-पुरुषजन्म पृच्छा कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: स्री नामाक्षर सप्त गुणी; अंति: समे परिसो समे नारी, गाथा-१. ११४००७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४७, पौष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ.१, ले.स्थल. खीरजा, जैदे., (२१.५४९, ९४२१). पार्श्वजिन स्तवन, मु. धन्नो, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल साहिब वीनती मोरी ए; अंति: धन्नो मुज पुरो वंछीत आस, गाथा-९. ११४००८. (4) पाशाकेवली की भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, ५४१०). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ३ नवकार गुणीया सो; अंति: पूजा करे महालाभ होसी. ११४०१० (#) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०, १५४५२). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ ___अपूर्ण तक है.) ११४०११. खामणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. आणंद (गुरु मु. धनाजी); गुपि. मु. धनाजी (गुरु मु. वर्द्धमानजी); मु. वर्द्धमानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, १३४३८). खामणा सज्झाय, म. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नम अरिहंतने; अंति: गणसमर्या० करो भव खामणाजी, गाथा-१४. ११४०१३. (#) पार्श्वजिन छंद व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४९.५, १०४३६-४०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिपार्श्वजिन स्तवन, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: ससनेही सुदर परणिमंदरि; अंति: वीरविमल० तुज सासन जयवंत, गाथा-५. २. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयसागर, पुहि., पद्य, आदि: अब हमकुं ग्यान दियो; अंति: रिद्ध दियो मुज कुं, पद-७. For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११४०१४. रामयशोरसायन चौपाई व पांडव चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४९.५, १३४३७). १. पे. नाम. रामयशोरसायन चौपाई-प्रारंभिक दोहा १ से १०, पृ. १आ, संपूर्ण.. रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: मुनिसुव्रत सामजी; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रारंभिक दहा-१० तक लिखा है.) २. पे. नाम. पांडव चरित्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. रामचंद्रसूरि, पुहि., पद्य, आदि: सिरिमतपरमेष्टि ध्याउ गुरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ से ३ तक लिखा है.) ११४०१५. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०२०, चैत्र कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रनारी., दे., (२१.५४९.५, १२४३५). औपदेशिक सज्झाय-नरनारी, मु. उमेदचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंथा रे सीख; अंति: आग पास उदम जस बीसतर, गाथा-१०. ११४०१६. सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२२.५४९.५, १५४५४). १. पे. नाम. नंदिषणमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी म जाज्यो परधरि; अंतिः जिनराज० पगमण निवारि, गाथा-१०. २. पे. नाम. भीमसागरगुरु सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण, प्र.ले.श्लो. (१४४१) चिरंजीवि चिरंनंदी. ___पुहि., पद्य, आदि: पुज्य श्रीभीमसागर सुगण; अंति: चित्त मांहि आनिये, गाथा-१. ३. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुं; अंति: पाप पुलाय रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, रा., पद्य, आदि: पांचइ इंद्री रे अहिनिस; अंति: इम भणे विजयदेवसूरोजी, गाथा-१२. ११४०१७. सुदर्शनशेठ अभयाराणी सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२०.५४९.५, १६४३८). १.पे. नाम. सुदर्शनशेठ अभयाराणी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९४७, चैत्र कृष्ण, ११, शनिवार, ले.स्थल. केकीद, पे.वि. हुंडी:सुदर्सण. मा.गु., पद्य, आदि: सील तणा गुण छै घणा; अंति: जठै वरस्या जै जैकार, गाथा-३८. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:उपदेसी. मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात की नींद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ११४०१८. स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. हुंडी:उपदेसीतवन., दे., (२०.५४९.५, १९x४४). १.पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चोथमल शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: ऋषभ जिनेस वंदीयै रे लाल; अंति: प्रणम्या पातक जाय रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-बुढापा, मु. सुखानंद, पुहिं., पद्य, आदि: तेर सीर पर आया केस; अंतिः सुखानंद० पद भज रे, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम तजो जगत का ख्याल इसका; अंति: उपदेस सुनो मत काना, गाथा-४. सुमतिकुमति लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, रा., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं कुमत कलेसण नार; अंति: तुं बात खोटी मत खेडे, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ४. पे. For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. तीलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९४८, आदि: ध्रिग तेरा जिवडा न करता; अंति: तिलोक० थोडीय कर्म कमाई, गाथा-१४. ६.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-श्रावक धर्म, म. चोथमल, पुहिं., पद्य, आदि: सतगुरु देव सिख प्रभव; अंति: ऋष चोथमलजी कहे एम केसे, गाथा-२६.. ११४०२१ (+) औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:तवन., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१२४१०, १६४२१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जसरूप ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोहरू जीव हो जीवी तो न; अंति: जाणी नही जीव हो, गाथा-४. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: किसी संग वीरवा न बोल; अंति: नही कीणसु सुजाण सुखदाई, गाथा-७. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दया विन करणी दुखदानी; अंति: हरखचंद० नही सरदी जीनवाणी, गाथा-४. ११४०२२. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१३.५४९.५, १२४२६). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. नयविजय, मा.ग., पद्य, आदि: धिंग धवल अलवेसरू रे गिरूउ; अंति: नवविजयी० शुभ रंगस्यो रे, गाथा-७. ११४०२३. (+) स्थानकवासीमतस्थापन विचार व परचुरण कृति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४९.५, ४२४१९). १.पे. नाम. स्थानकवासीमतस्थापन विचार, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. पेटांक पत्र के चार हिस्सों में है योग्य मिलान करके पढ़ें. मा.गु., गद्य, आदि: (१)गीयत्थो य विहारो बीयो, (२)अप्पडिलद्धसम्मत्तरयण० अण; अंति: कह्या तिके पिण सेवता हुसो. २. पे. नाम. विविध विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अव्यस्थित परचूरण पेटांक. विविधविचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जं अन्नाणि कम्मं, १० परिग्रह प्रकार, ___ जघन्यादि पात्र विचार, ३ निश्रा, २ आसातनादि सामान्य उल्लेख., वि. अव्यवस्थित कृति.) ११४०२५. औपदेशिक कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२३४१०, ९४२५-४२). १.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. म. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अही शशी एन उतंग पिक केहर; अंति: अती वदे हेम इण परिविगत, गाथा-१, (वि. मूल शब्द पर शब्दार्थ दिया हुआ है.) २.पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथमेस जिणेस तूहारोय; अंति: हेम भण० नाभी सुतण देख, गाथा-२. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: जेठ वेसाख कीया ही हगाम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ४. पे. नाम. वासुपूज्यजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: लाल ही लाल बन्यो मेरे; अंति: देखन जोति जिनेश्वरजी की, गाथा-१. ११४०२६. (+#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, ११४३९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक है.) ११४०२७. (#) पगामसज्झायसूत्र की लघुटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४९.५, १९४५६-५९). For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३९१ पगामसज्झायसूत्र-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. अट्ठारसविहे अबंभे की टीका अपूर्ण तक है., वि. आदिवाक्य खंडित है.) ११४०२८ (+#) २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. फतीव्यावाद, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १२४३६). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदिः (-); अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) ११४०२९. औपदेशिक दोहा आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४१०, १२४३५). १. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: एसो कोइ नवि मिलि जिणिसुं; अंति: राजा समुद्रमुदेरं गृहं, गाथा-९. २. पे. नाम. स्थानांगसूत्र-स्थान४ उद्देश३ चतुर्विध शूर पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. प्रहेलिका पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चउसठि चावल एक गासु बत्ती; अंति: चावल थया पूरण कह्यो विचार, गाथा-२. ४. पे. नाम, सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह , मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मेघहीन हतं देसं पुत्रहीना; अंति: लोह जिम टचका घणा सहेस, श्लोक-६. ११४०३० (#) पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८९७, पौष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:थुई., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४९.५, ८x२४). ___ पार्श्वजिन स्तुति, मु. कुशल, सं., पद्य, आदि: द्वे द्वे क द्वे द्वे; अंति: शं दिशतु शासन देवता, श्लोक-४. ११४०३१ (+#) भक्तामर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.७, प्रले. पं. अमरगिरि गणि (गुरु उपा. रत्नरंग, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. रत्नरंग (गुरु मु. पुण्यनंदि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४९.५, १९४६९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सम्यग् जिनपादयुगं प्रणम्य; अंति: पद्मे महत्वस्थितिः. ११४०३२ (#) सभद्रासती सज्झाय, पंचतीर्थ चैत्यवंदन व औपदेशिक दोहा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४९.५, १२४३६). १. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, वि. १७९४, फाल्गुन शुक्ल, ४. सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. संधो, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सुजे परज्या जीव; अंति: तणो गाम उतारी गाल, ___ गाथा-१७. २. पे. नाम. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ५आ, संपूर्ण. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरं आदीदेव विमलाचल; अंति: कमलविजय० ज्या घर जै जैकार, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: दारी नारी दायमो दावानल; अंति: आपणा मोची पनग मसांण, दोहा-१. ११४०३३. औपदेशिक दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०४९.५, १२४१०-३९). औपदेशिक दोहा संग्रह, मु. उदयराज, पुहि., पद्य, आदि: ओर कछु पायो नही ना कछु ओर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दूहा-१४ तक लिखा है.) ११४०३६. अनाथीमहामुनी सज्झाय व गौतमजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५४, वैशाख शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. तिरपाल, प्रले. मु. जेठमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तवन., जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३४-४८). १. पे. नाम, अनाथीमहामुनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणक रेवाडी चढ्यो; अंति: वंदणा रे बे करजोडि, गाथा-९. २. पे. नाम. गौतमजीरो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रहे ऊठी गोत्म समरीजै; अंति: उदै प्रगट्योजी प्रधान, गाथा-८. ११४०३७. बीजतिथि स्तुति, नेमिजिन स्तुति व अष्टमीनी थुई आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६,प्र.वि. पत्र ३४२६., दे., (२३४११, ९x१७). १.पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लब्धिविजय० मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ऋषभदास० करो अवतार तो, गाथा-४. ३. पे. नाम. अष्टमीनी थुई, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण... अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोविशे जिनवर हुं; अंति: जिनसुख० जनम प्रमाण, गाथा-४. ४. पे. नाम. एकादशीनी थई, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ५. पे. नाम, चउदस की थुई, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ६. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमूरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ११४०४१ (+#) सिंदरप्रकर की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-२(१,४)=३, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२४४१०.५, १५४५३). सिंदूरप्रकर-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ की टीका अपूर्ण से श्लोक-२९ की टीका अपूर्ण तक व श्लोक-३९ की टीका अपूर्ण से श्लोक-४८ की टीका अपूर्ण तक है.) ११४०४२. (+) बृहत्संग्रहणी की चयनित गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १६x४६). बृहत्संग्रहणी-चयनित गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: वितरियाणं जहन्नं दसवाससहस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ तक लिखा है.) ११४०४३. (+#) श्रावकपाक्षिकअतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३५). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: (-), (पू.वि. दर्शन अतिचार तक है.) ११४०४४. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५-२३(१ से १८,२७ से २८,३१,३३ से ३४)=१२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४१०.५, १०४२४). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-१९ दोहा-१ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ११४०४५ (#) उठामणा पद्धति, संपूर्ण, वि. १९०१, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१०.५, ११-१४४३२-३५). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: धर्म चिंतामणि श्रेष्ठो; अंति: विस्तरै श्रेय कल्याण. १९४०४६. नेमराजिमती बारमासा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३३). For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३९३ नेमराजिमती बारमासा, म. श्यामगलाब, मा.गु., पद्य, आदि: अंति: भइ अव जाह श्रीनेम को बंदन, गाथा-१३, (वि. अंत में किसी अन्य कृति की प्रारंभिक दो गाथाएँ लिखकर छोड दी है.) ११४०४७. (+-#) अंतकृद्दशासूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उपस०., अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, २४४६१). अंतकद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "एवं खलु जट्ठाए० अरिट्ठनेमिण" पाठ अपूर्ण तक है., वि. प्रारंभिक दो पंक्ति के पाठ उपासकशांग के तथा बाद के पाठ अंतकृद्दशा के है. पाठानुसंधान क्रमशः नहीं है.) ११४०४८. दंडक विचार व १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तर देव आयुष्य बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, १३४४२). १. पे. नाम. दंडक विचार, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: एतले समे केतला मोक्ष जाइ, (पू.वि. भंडोवगरण परिग्रह द्वार ___ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तर देव आयुष्य बोल यंत्र, पृ. १४आ, संपूर्ण. मा.गु., यं., आदि: सोधर्म देवलोक जघन्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'सागरोपमउ २२ __सागरोपउ' पाठांश तक लिखा है.) ११४०४९ (+) बृहत्शांति स्तोत्र व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ११४३८). १.पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयति सासनं, (पू.वि. 'भवंतु स्वाहा उपस्वर्गाक्षयंजांति' पाठांश से है.) २. पे. नाम, लघुशांति, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक है.) ११४०५० (+#) श्रमणसूत्र व दीक्षा विधि, अपूर्ण, वि. १८५१, फाल्गुन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १७४४६). १. पे. नाम, श्रमणसूत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-३७, (पू.वि. सूत्र-२९ "लोगस्स आसायणाए परलोगस्स आसायणाए" पाठांश से है.) २. पे. नाम. शिष्यनै संयम देवा विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम सचित्त वस्तुनौ; अंति: (-), (वि. पत्र खंडित होने से अंतिम वाक्य नहीं भरा ११४०५१ (+) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४४३). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिण वंदिअ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ११४०५२ (#) कातंत्र व्याकरण, पत्रलेखन पद्धति व आध्यात्मिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१८, ?, फाल्गुन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, अन्य. तेजसी; विबुधीराम; कपूरचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में रुपयों के लेन-देन का विवरण लिखा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, २३४६१). १. पे. नाम. कातंत्रव्याकरण-प्रारंभिक ५ संधी व विभक्ति, पृ. १अ, संपूर्ण. कातंत्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं., प+ग., आदि: सिद्धो वर्णसमाम्नायः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पत्रलेखन पद्धति-साधु उपमा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.ग.,सं., प+ग., आदि: स्वस्ति श्रीआदिजिनं; अंति: (१)पछे विशेष समाचार लिखीय, (२)तिके विशेषण लिख्या छै. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अविनासीरी सेजडीए रंग लागो; अंति: रूपचंद० प्रीति बंधाणी जी, गाथा-६. ४. पे. नाम, साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अनंत२ प्रभाकर से अधिकी२; अंति: मेरे चेतन याद करो उछरंगै, गाथा-१. ५. पे. नाम, जैन श्लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीपूज्य राज चरणाराधन; अंति: आढ्यो नरो धन्यो धरातले, श्लोक-१. ११४०५३. (+#) कीर्तिध्वजराजा ढाल व प्रदेशीराजा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १५४४५). १.पे. नाम. कीर्तिध्वजराजा ढाल, पृ. ३अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९३१, आदि: (-); अंति: ढाल करी एक मन हो, गाथा-७४, (पू.वि. गाथा-६२ से है.) २. पे. नाम. प्रदेशीराजा सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: दया माताने वीनमु वंदु सीस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ तक है.) ११४०५४. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५,११४३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२९ अपूर्ण से ४४ अपूर्ण तक है.) ११४०५६ (+#) जिनपंजर स्तोत्र व लघुसहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, ११४३६). १.पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जि०पंजर. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ; अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. २. पे. नाम, लघुसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: नम त्रिलोकनाथाय सर्वज्ञाय; अंति: मुच्यते नात्र संशयः, श्लोक-४१. ११४०५८. तीर्थंकर स्तुति व शांतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, ११४३६). १. पे. नाम. तीर्थंकर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके रविशशि; अंति: तत्र चैत्यानि वंदे, श्लोक-१०. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___सं., पद्य, आदि: अंही कूर्मयुगं करौ; अंति: शकुनानीक्षध्वमेनं जिनम्, श्लोक-१. ११४०५९ (+#) ८ कर्म १५८ प्रकृति व विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.६, २२४४९). १. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीय कर्म १ मति; अंति: एवं अंतरायकर्म भेदा. २.पे. नाम. विविध बोल संग्रह, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इरिया भासेसणा दाणे उच्चार; अंति: (-). ११४०६० (+) श्रावकपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १७५९, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १३४४०-४३). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: पक्षदिवस मांहि. For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३९५ ११४०६१. (+) पद व सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. १७, प्र.वि. हुंडी:सवैया., संशोधित., जैदे., (२४.५४११, २०४४९). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: आद ही अनाददेव सेवै साधु; अंति: तिणारी पुजा भावसु भगत है, गाथा-१. २. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___ पुहि.,प्रा., पद्य, आदि: देख देख गोरो गात काहे कुं; अंति: स्याल कुता कागला ही खायगा, गाथा-२. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: कपडी की रूंस जाणै; अंति: जाणै ताते बूडो सब जाणवो, गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सीखीयै संसार रीत कवित नाद; अंति: तातै सीखै गयै धूर मै, गाथा-१. ५. पे. नाम. धर्मपरीक्षा कथन सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मपरीक्षाकथन सवैया, ग. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: धर्म धर्म कहै मरम कोउक; अंति: जिनहरख० कंचन कुं लीजीये, गाथा-१. ६. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-दृष्टांतगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: करत करत धंध कछु न जाणै; अंति: आय तो कुं लेह गोट पाक दै, गाथा-१. ७. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-अनित्यता, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वाट को वैटउ सोव देसी आण; अंति: देखण में चलण भए आपनो, गाथा-१. ८. पे. नाम, औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: काहे काया रूप देख गर्व कर; अंति: काया हुंती सनतकुमार की, गाथा-१. ९. पे. नाम, औपदेशिक पद-कायोपरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: काया है असुच ठाम रे; अंति: जिनहर्ष पचै है दुख जालसूं, गाथा-३. १०. पे. नाम. रात्रिभोजन कथन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनकथन सवैया, ग. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: रैण चोर वहै वाट सब रोक; अंति: जिनहरख भोजन केसै खाइयै, गाथा-१. ११. पे. नाम. शीलमाहात्म्यकथन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: वेट को करइया महाजिन को; अंति: सील सलिल जिनहर्ष कहतु है, गाथा-१. १२. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-अल्पायु, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी है अल्प अव तूं तो; अंति: जिनहर्ष० आण कोट लूटैगो, गाथा-१. १३. पे. नाम, औपदेशिक पद-नवकारमहिमा, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुख को करणहार दुख को; अंति: समर नित प्रत नवकार ज्यू, गाथा-३. १४. पे. नाम. सम्यक्त्वभावना सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: पूर्व कर्म दहै सर्वज्ञ पद; अंति: चिदानंद की अकेली एक भावना, गाथा-१. १५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-वंदनमहिमा, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. खस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: साधन से धुमधाम चोरनका करै; अंति: हुइ निहालज के जाणे बंदगी, गाथा-१. १६. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-माया परिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नंदन की नवै गिरी वीसल की; अंति: मुठी आय कै पसार हाथ जाउगे, सवैया-१. १७. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: कंचननि भंडार पाय रंचन मगन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण है.) ११४०६२. कायस्थिति प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. हुंडी:कायस्थिति स्तोत्र वृ०., जैदे., (२५४१०.५, १७४४०). For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-२२ से है.) कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: दत्स्व ममेति शेषः, (पू.वि. गाथा-२१ की टीका अपूर्ण से है.) ११४०६३. (#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १५४५४). स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: जिनराजदउलति पावउ जी, स्तवन-२४, (पू.वि. स्तवन-१७ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ११४०६४. (#) पार्श्वजिन निसाणी, अपूर्ण, वि. १८५१, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ.८-७(१ से ७)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १४४४०). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: गुण जिनहर्ष कहंदा हे, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) ११४०६५ (+) हितरंगमुनि परंपरा पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पुनरासर, प्रले. ग. लक्ष्मीविलास (गुरु पं. दयानंदन, खरतरगच्छ); अन्य. पं. हुकमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "पं. हुकमचंद्रेण समं ऊपरलै पुस्तक ऊपर पत्र मंडितः" ऐसा लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१०.५, ९४३४). हितरंगमुनि परंपरा पट्टावली, सं., गद्य, आदि: श्रीमद्गृहद्भट्टारक; अंति: पं हितरंग मुनि. ११४०६६ (+#) कल्पसूत्र की टबार्थ+व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५७-१५६(१ से १५६)=१, प्र.वि. संशोधित-द्विपाठ. कुल ग्रं. ५२००.१०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३९). कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सोमविमल० सर्वथा मति, (पू.वि. कल्पसूत्र श्रवण विधि से है.) ११४०६८ (+) इकवीसठाणा सूत्र, अपूर्ण, वि. १७८२, आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्रले. पं. लाखणसी; पठ. श्रावि. केसरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४३४). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रिद्धसेणसूरि० भणिया, गाथा-७०, (पू.वि. गाथा-५६ अपूर्ण से है.) ११४०६९. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०.५, ११४४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१५ अपूर्ण तक है.) ११४०७० (+#) इष्टोपदेश की टीका, अपूर्ण, वि. १७८५, वैशाख शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, प्रले. ग. श्रीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४३). इष्टोपदेश-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वने वा रागद्वेषं न करोति, (पू.वि. श्लोक-१० की टीका अपूर्ण से है.) ११४०७१. (+#) बृहत्शांति स्तोत्र, लघुशांति व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१६(१ से १६)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४३८). १. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १७अ-१८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदिः (-); अंति: जयनं जयति सासनं, (पू.वि. २४ तीर्थंकर नाम अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण, वि. १८६२, पौष कृष्ण, ३, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. मु. अमरविजय (गुरु मु. ऋद्धिविजय); गुपि. मु. ऋद्धिविजय; पठ. मु. उदयचंद (गुरु मु. अमरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीफलवरद्वीपार्श्वनाथजी प्रसादात्, श्रीमाणभद्रजी प्रसादात्, श्रीदादाजी प्रसादात्. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: श्रीमानदेवश्च० जयति शासनं, श्लोक-१९. For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३९७ ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १९आ, संपूर्ण, वि. १८६६, माघ कृष्ण, १, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. मु. जयवंतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अंबलकलपा उद्यान में; अंति: राम० शिवमंदिर तणी जी, गाथा-८. ११४०७२. पगामसज्झायसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४६). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमोअ० करेमि० चत्तारिमं०; अंति: (-), (पू.वि. 'छवीसाएदसा कप्पववाहारा' पाठांश तक है.) ११४०७३. (#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-२१(१ से २१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:गन्याता., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४६). ___ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ सूत्र-४० मेघमुनि के __ कालधर्म के बाद का अधिकार अपूर्ण से अध्ययन-२ सूत्र-४६ भद्रा की पुत्रप्राप्ति चिंता का अधिकार अपूर्ण तक है.) ११४०७४. (+) महानिशीथसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४५). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-१ सूत्र-४१ अपूर्ण से है व सूत्र-५१ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४०७५ (+#) लघुशांति स्तोत्र व सुपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १३४४३). १. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. २.पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब हो साहिब मुझ; अंति: जिनहरख०आपो अविचल वास, गाथा-७. ११४०७६. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:भक्तामर., संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४३१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२४ अपूर्ण तक ११४०७७. चातुर्मास योग्य स्थान व ज्योतिष यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०, ११४४८). १.पे. नाम. चातुर्मास योग्य स्थान, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. १३ बोल-चातुर्मास योग्य स्थानविषये, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-१० अपूर्ण से है व साधु करणी पाठ तक लिखा है.) २.पे. नाम, ज्योतिष यंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिष, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ११४०७८.(+) वंदित्तुसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १४४४३). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ११४०७९ क्षेत्रपाल मंत्रजप विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२४.५४१०.५, १४४३०). १.पे. नाम. क्षेत्रपाल मंत्रजप विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं क्षा क्षीं हूं; अंति: तथा २१ वार जाप्य करणीयं. २. पे. नाम. जैनगायत्री मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं ऐं श्रीं भूः ॐ; अंति: भवतु ह्रीं नमः स्वाहा. ३. पे. नाम. जैन मंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो सिद्धाणं भगवान; अंति: सर्वोषधीक्षेपनं मंत्र छै. ४. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र भंडारवानि काव्यानि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:भक्तामर. For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: ये संस्तवे गुणभृतां सुमनो; अंति: जिनपतौ प्रथमो जिनेशः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडार प्रथमगाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा *, संबद्ध, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तुह दंसणेण सामिय; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. विधि सहित. अंत में पुनः सूरिमंत्र दिया है.) ६. पे. नाम. शांतिक विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते भगवते प्रक्षीण; अंति: मंत्रेण निक्षिपते. ११४०८० (#) वंदित्तसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५४१०.५, १४४३५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्व सिद्धे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ११४०८१ (+) शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५,११४३५). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके रविशशि; अंति: जायते मानवानाम्, श्लोक-९. ११४०८२ (+) दानशीलतपभावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४८). दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भावना-२ की गाथा-३ अपूर्ण से भावना-३ की गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ११४०८३. माणभद्रजी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८७०, आश्विन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. मु. महतावचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१४४२) यादृसं पूस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१०.५, १०४३७). माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राजरतन० जय जय करण, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) ११४०८५ (#) सुभद्रासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, पठ. मु. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०,१२४३०). सुभद्रासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोझय ईरया जीव जतन; अंति: कवियण सोणा केरे ठाण, गाथा-२१. ११४०८६ (#) पंचम कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५४). शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, ___गाथा-१००, (पू.वि. गाथा-७० अपूर्ण से है.) ११४०८७. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध धम्मा; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ११४०८८. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पठ. श्राव. माणकचंद, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२५४१०.५, ५४३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदिः (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक-४२ अपर्ण से है.) ११४०८९. पंचप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-७(१ से ७)=२, जैदे., (२५.५४१०.५, ७X३३). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पोसहपारण सूत्र गाथा-४ अपूर्ण से है व क्षेत्रदेवता स्तुति तक लिखा है.) ११४०९०. रुघपतिसाधु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०, १०४४५). For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ रुघपतिसाधु सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिध नै आयरिया रे; अंति: जैमल० वचन प्रमाण हो, गाथा-२५. ११४०९१ (+) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव. त्रिभोवन कल्याणदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१०, १२४३४). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. ११४०९३. (#) विद्वद्गोष्ठी व पुराणहंडी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, ४३४२३). १. पे. नाम. विद्वद्गोष्ठी, पृ. १अ, संपूर्ण. पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदिः येषां न विद्या न तपो; अंति: नैव च किदृशाः स्युः, श्लोक-१६. २. पे. नाम, पुराणहुंडी, पृ. १अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: यावज्जीवं च यो मांस; अंति: (-), (पू.वि. क्षमाधिकार श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) ११४०९४. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०, ६-१४४४२-५१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१५१ अपूर्ण से १५२ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११४०९५. जिनदत्तसूरि स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. १३, जैदे., (२५४१०,४९४२८). १. पे. नाम, जिनदत्तसूरि गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिरिसुइदेव पसाइ करि गुरु; अंति: मंगलकरण करउ पुन्य आणंद, गाथा-९. २.पे. नाम. जिनचंद्रसूरि अष्टक, पृ. ३अ, संपूर्ण. उपा. पुण्यसागर, अप., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीजिनदत्तसुरिंद पय; अंति: ए सुहगुरु होई प्रसन्न, श्लोक-९. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवधमान जिनेसरु; अंति: तणा एम क्षमाकल्याण, गाथा-११. ४. पे. नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: सदगुरु को ध्यान हृदे; अंति: करज्यो गुरु मेरे, गाथा-३. ५. पे. नाम. जिनदत्तसूरि स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि स्तुति-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: दासानुदासा इव सर्व; अंति: श्रीजिनदत्तसूरि, श्लोक-२. ६. पे. नाम. जिनभद्रसूरि स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सर्वे पदा हस्त पदे; अंति: भट्टारका श्रीजिनभद्रसूरि, गाथा-१. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: शिवमस्तु सर्व जगतः परहित; अंति: तस्य पाप शांतिर्भवेदपि, गाथा-१. ८. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कुशल वडो संसार कशल; अंति: नामयो कहायो है, गाथा-४. ९. पे. नाम. जिनदत्तसूरि छंद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. दानविजय, पुहिं., पद्य, आदि: वरगंग तरंग जिसी जगउ झाल; अंति: दानविजै० ही सवकाज सरे, गाथा-१. १०. पे. नाम. जिनदत्तसूरि सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: बावन वीर कीए अपने वस चोसठ; अंति: धर्मसी० की एक दहाई, सवैया-१. ११. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कुशल गुरु अब मोहि; अंति: अपनौ करि जाणीजै. गाथा-३ For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसरि, मा.ग., पद्य, आदि: दादोजी परतिख देवता दादोजी; अंति: जिनलाभसूरीस० सह काज, गाथा-५. १३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: काम क्रोध तथा लोभ स्वाद; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ११४०९६. शीयल नववाड विचार, श्रावक ११ प्रतिमा विधि व श्रावक १२ व्रत विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१०.५, १२४४३). १.पे. नाम. शीयल नववाड विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: वसहि१ कह२ निसिज्जं३ दिय४: अंति: तेल आलेपन न करे. २. पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा विधि, प. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दरसन प्रतिमा१ ज्ञान; अंति: अपनै निमित्त न करावे. ३. पे. नाम, श्रावक १२ व्रत विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम प्राणातिपात अतीचार; अंति: व्रत अतीचार ५. ११४०९८. (#) ऋषिबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:रिषबत्री., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४९.५, १२४४८). ऋषिबत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्रीआदिजिणंद चंपा; अंति: कहे जिनहरख नमे करजोडी, गाथा-३२. ११४०९९ आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०, ११४३३). आदिजिन स्तवन-अर्बदगिरितीर्थ मंडन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि: आबु शिखर सोहामणो जिह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११४१०० (+) पार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०,१०४२९). पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीशारद हो पाय प्रणमी; अंति: पाय सेवकने सखीया करो, गाथा-१२, संपूर्ण. ११४१०१ (+) विचारषट्त्रिंशिका प्रकरण व श्रावक अतिचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-८(१ से ८)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १३४४०-४३). १.पे. नाम, विचारषट्त्रिंशिका प्रकरण, प. ९अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-३९, (पू.वि. अंतिम गाथा-३९ अपूर्ण है.) २.पे. नाम, श्रावकअतिचार-खरतरगच्छीय, पृ. ९अ-१०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणम्मिअ; अंति: (-), (पू.वि. "उंघ आवी बेठा पडिकमणो" पाठ अपूर्ण तक है.) ११४१०२. (#) ज्योतिषसार, सुभाषितश्लोक संग्रह व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १८४५७). १.पे. नाम. ज्योतिषसार-अन्नसंग्रह विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिषसार हीरकलश, पंन्या. हीरकलश, प्रा., पद्य, वि. १६२७, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सिंहोदेकं बकोदेकं; अंति: पुरषस्य परमं निधानं, गाथा-११. ३. पे. नाम, औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नागकेसर ग.४ पारेवाविष्टा; अंति: मध्ये देवी योनि शधिस्तथा. ११४१०३. दीपावलीपर्व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०, १०४३०). For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४०१ दीपावलीपर्व गीत, आ. हीरानंदसरि, मा.ग., पद्य, वि. १५वी, आदि: तीरथ मांहि जेवड़ सेज; अंति: इम बोलइ हो हीराणंद, गाथा-९. ११४१०४. (+) मेघकुमार चौढालिया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०, १५४३९). मेघकुमार चौढालिया, रा., पद्य, आदि: ऋषभादिक चौवीसनै वांद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-१ तक लिखा है.) ११४१०५. (+) विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १६४३२). १. पे. नाम. ५ बोल पाप, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ बोल-पाप, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोल बनेव नीच जात; अंति: रात्री भोजन म्हे कवामे. २. पे. नाम. ३२ सामाइक का दोष, पृ. १अ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १ ववेक वना करन्ही २ जस की; अंति: ११ भणता० १२ नींद ले नही. ३. पे. नाम.६ कायषट विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.. षट्काय जीवविचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. शीयलव्रत १६ उपमा बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सुद्ध मन सील पाले तो कुल; अंति: मेरगिरपरबत समान दीषा समान. ५. पे. नाम. पच्चक्खाण बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११४१०६. नेमराजिमती बारमासा, संपूर्ण, वि. १७८१, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सांगानेरनगर, पठ. मु. लाला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, १२४३४). नेमराजिमती बारमासा, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजल इणपरि वीनव; अंति: जीवहरख०प्रीत उदार रे, गाथा-१३. ११४१०७. (+) २४ तीर्थंकर नामगाममातापितालंछन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १६x४९). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, म. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणम; अंति: तास सीस प्रणमु आणंद, गाथा-२९. ११४१०९ (+#) बलदेवमनि सज्झाय व अइमत्तामनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४९.५, १५४६१). १. पे. नाम. बलदेवमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगीआगीर शिखर सोहे; अंति: सकल मुनि सुख देइ रे, गाथा-८. २. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा-१८. ११४११०. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक १४२१ पत्रांक न लिखा होने के कारण गिनकर दिया गया है., जैदे., (२०x१०, ४२४१४). चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: चक्रदेव्याः स्तवेन, श्लोक-९. ११४१११. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०, १३४३४). औपदेशिक पद-परनारीपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: परनारी सुमरख बोल हस हस; अंति: अवतरी तापीणती सोले हजारी, गाथा-१८. ११४११२. चतुर्दशीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१०, ८४३८). For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुर्दशीतिथि स्तवन, मु. हर्षचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भविजन हो भविजन हो चउदस तप; अंति: मुनि० जग मै जय जय कार, गाथा-७. ११४११३. (+) नेमराजिमती बारमासा, नेमराजिमती पद व सुविधिजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०,११४३३). १.पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: मागसिर मासइ मोहिउ; अंति: विनय० गाया उल्हास, गाथा-२७. २.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: अली हां हा हो मेरा नेम; अंति: ३. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मैं कीनो नहीं तो विण; अंति: लीजें भक्ति पराग, गाथा-५. ४. पे. नाम, सुमतिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: सुमतिनाथ साचा हो; अंति: तोसुं दिल राच्या हो, गाथा-५. ११४११६. (+#) जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय व साधुपद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०, १४४४७). १.पे. नाम. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदन; अंति: जस० कीजइ तास वखाण रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. साधुपद सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति गुपति सुधी परिपालइ; अंति: हर्षविजय हितकारी रे, गाथा-६. ११४११७. (+#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४९). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देश मझार; अंति: सिंघसोभाग० राजीयो जी, गाथा-३६. ११४११८. (+#) कल्पसूत्र-सामाचारी अध्ययन सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४४०). कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक पाठ है.) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन-टीका, सं., गद्य, आदिः तस्मिन् काले तस्मिन्; अंति: (-). ११४११९ (+) मौनएकादशीपर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, ७४३९). मौनएकादशीपर्व माहात्म्य, सं., पद्य, आदि: द्वारावत्यां महापुर्यां; अंति: संतातफलं मोक्षोपि जायते, श्लोक-२७. मौनएकादशीपर्व माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भव्यप्राणी ए मौन; अंति: अजर अमर पदवी मुक्ति पामइ. ११४१२० (#) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१६(१ से १६)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ७५२४). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. रात्रिभोजनविरमण आलापक अपूर्ण से लेश्यावर्णन गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ११४१२१ (#) महावीरजिन थोय व साधारणजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ८x२२). १.पे. नाम. महावीरजिन थोय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८७४. महावीरजिन स्तुति, मु. विमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भणजो विमल विजय जय जय कार, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४०३ २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: मम करे जीवडा रे नंद्या; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११४१२३. (+#) पार्श्वजिन स्तवन, ऋषभजिन स्तवन व २४ जिन सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. ४, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४४५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. नेम, मा.गु., पद्य, आदि: वारु वारु रे मारा तन धन; अंति: नेम० करी मानो हो राज, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण. सुरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गोडी गामने गुदरे; अंति: ताहरो मुझने पार उतार, गाथा-७. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगनायक जगगुरु रे आदिसर; अंति: दरसण सुखकंद, गाथा-७. ४. पे. नाम. चोवीसजिन सज्झाय, पृ.१आ, संपूर्ण. २४ जिन परिवार सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनना सुखकार; अंति: नयविमल० करो कल्याण, गाथा-५. ११४१२७. (+) दशार्णभद्रऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सोजत, प्रले. पं. माणिक्यविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १२४३५). दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाईक सेवक नयणानंद; अंति: पभणे लालविजय निसदीस, गाथा-१८. ११४१३२ (#) नेमिजिन बारमासा, औपदेशिक कवित्त व आध्यात्मिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३३-४६). १.पे. नाम. नेमिजिन बारमासा, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८४२, माघ कृष्ण, २, ले.स्थल. जालोर. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कवियण सिरेसुर नेम, गाथा-४५, (पू.वि. गाथा-४२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: थरक धण थर थर हरे सहस; अंति: नमै सव वलै ही कटो तजे. ३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद-गंगा, पृ. ३आ, संपूर्ण. जगदीश, मा.गु., पद्य, आदि: जटा मद गांगव भूत है अंग; अंति: रीत रसायरं अख्यर मझ दीवाण, पद-१. ११४१३३. श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२४४११, १३४४०). श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: बभुक्षिने किं न करोति पाप; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८६ अपूर्ण तक है.) ११४१३४. (#) वैराग्य सज्झाय, पार्श्वजिन बारमासा व समतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, २०४४९). १.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. म. राजसमद्र, पुहिं., पद्य, आदि: एक कनक और कामिनी; अंति: राजसमुद्र० के सब कोई, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन बारमासा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण पावस उलयो; अंति: मुझ पासजी संभरइ, गाथा-१३. ३. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. समतिजिन स्तवन-उदयापरमंडण, म. मोहनविजय, मा.ग., पद्य, आदि: प्रभुजीथी बांधी; अंति: मुने वालो जिनवर एह, गाथा-७. ११४१३५. प्रियमेलक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. हरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३४). प्रियमेलक सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रियवंदन परबति चडी हो; अंति: मुनिवर संभलि सीख सुजाण, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४१३६. (#) खंधकमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १६४३२). खंधकमनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ११४१३८. चतर्गति वेलि व उपदेशरत्नमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, २०४६०-६६). १. पे. नाम. चतुर्गति वेलि, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ४ गति वेलि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: (-); अंति: पासइ हुं वंछउ गुणठाण, गाथा-१३४, (पू.वि. गाथा-५९ अपूर्ण से और २.पे. नाम. उपदेशरत्नमाला, पृ. ३अ-३आ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उपएसरयणकोसं उपदेस रूपी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ११४१३९ (+) औपदेशिक सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१ से २)-४, कुल पे. १६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३१-३४). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-माया परिहार, म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: माया काहे करइ मूढ छोरि दे; अंति: जिनहर्षअविकार ज्यु, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-संसार, म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: यों तोहे संसार रस विकार; अंति: जिनहर्ष० जाणिले संसार जू, गाथा-४. ३. पे. नाम. ५ महाव्रत सवैया इकतीसा, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: जीउ कुं जु मारे नरपात को; अंति: जिनहरख भोजन कैसै खाइये, गाथा-४. ४. पे. नाम. दानशीलतपभावना सवैया इकतीसा, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: देहु दान सीख मानि दान ते; अंति: जिनहरख अचल होत जाइकै, गाथा-४. ५. पे. नाम. अल्पायुकथन सवैया इकतीसा, पृ. ५अ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक सवैया-अल्पायु, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी है अल्प आउ तुं तो; अंति: जिनहरख० काया कोट लुटैगो, गाथा-१. ६. पे. नाम. शिक्षाकथन सवैया इकतीसा, पृ. ५अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-शिक्षा, पहिं., पद्य, आदि: जागिरे अग्यानी जागि काहे; अंति: आप लत जैसे बाझे है, गाथा-३. ७. पे. नाम. एकत्वभावनाकथन सवैया इकतीसा, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-एकत्वभावना, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: काकै कहौ घोरे हाथी काहु; अंति: जिनहरख० चेत आउ धर्म ओट रे, गाथा-४. ८. पे. नाम. धर्मप्रीतिकथन सवैया इकतीसा, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-धर्मप्रीति, म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: जैसी तेरी मति गति रहत; अंति: जिनहरख० पद मुगति कौ वेहे, गाथा-४. ९.पे. नाम. आयस्वरूपकथन सवैया इकतीसा, पृ.५आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-आयुस्वरूप, म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: जैसे अंजुरी को नीरको ऊगहै; अंति: सुधीर जस भौनमे लहा तुहै, गाथा-४. १०. पे. नाम. वीतरागस्वरूपकथन सवैया इकतीसा, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वीतरागस्वरूप, म. जिनहर्ष, पहिं., पद्य, आदि: जोऊ जोग ध्यान धरै काह; अंति: जिनहरख कहावै वीतरागज, गाथा-४. ११. पे. नाम, सद्गुरुकथन सवैया इकतीसा, पृ. ६अ, संपूर्ण. आप For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ औपदेशिक पद-सुगुरु, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: गैर उपदेश हरे आगम अरथ धरै; अंति: जिनहरख० सुगुरु जिहा जहै, गाथा-४. १२. पे. नाम. महामढव्यवस्थाकथन सवैया इकतीसा, पृ. ६अ, संपूर्ण. __औपदेशिक पद-मूढ, पुहि., पद्य, आदि: अरे हो अग्यानी अभिमानी; अंति: जैसे कि धूसर्दगा जिहे, गाथा-४. १३. पे. नाम. गुरुहितोपदेशकथन सवैया इकतीसा, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-हितोपदेश, म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: चौगति को फेर एसो पातज्यू; अंति: बीज जागै जिनहरख नकी जीये, गाथा-४. १४. पे. नाम, स्वभावमिलनकथन सवैया इकतीसा, पृ. ६आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-स्वभावमिलन, म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: जैसे घन घोर जोर आइ मिले; अंति: मिले आइ जाइयो विचरजूं, गाथा-४. १५. पे. नाम. पापकथन सवैया इकतीसा, पृ. ६आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-पाप, म. जिनहर्ष, पहिं., पद्य, आदि: पाप ते बढे है कर्म कर्म; अंति: जिनहरख कहं तो कसं धीजरे, गाथा-४. १६.पे. नाम. नवकारमहिमाकथन सवैया इकतीसा, प.६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. __ औपदेशिक पद-नवकारमहिमा, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुख को करणहार दुख को; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ११४१४०. जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२.५४१०, १७४३५). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. कनीराम ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो बासी; अंति: कनीराम० बैगा मग तम जासी, गाथा-२०. ११४१४१. सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. झटा, प्रले. सा. हसतु; पठ.सा. मांजी-शिष्या (गुरु सा. मांजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुमतनाथना., जैदे., (२०.५४१०.५, १५४३३). सुमतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतनाथ सुमताफल दीजो; अंति: समतनाथ समता फलदाता, गाथा-१७. ११४१४२ (#) मुहपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १५४४५). महपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, ग. लब्धिवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वरधमान जिनवर तणाजी; अंति: लब्धिवल्लभ गणि कही, गाथा-१५. ११४१४३. कठीयारारी सज्झाय, मेतारजऋषिनी सज्झाय व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, १९४५२). १. पे. नाम. कठियारारी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कान्हडदृष्टांत सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनवर रे गोयम गणधरने; अंति: गुण० जंपइ परम पदवी पामइं, गाथा-७. २. पे. नाम. मेतारजऋषिनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मेतारजमनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मेतारज मुनि; अंति: राम० लहीयै उत्तम ठाम, गाथा-१५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. क. गंग कवि, पुहि., पद्य, आदि: पिया न पिया लिया न लिया; अंति: मूर्ख मित्र किया न किया, पद-१. ११४१४७. (+) अमरकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:अमरकुर., संशोधित., दे., (२१.५४१०, १६४३२). अमरकुमार सज्झाय, मु. दलीचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: पुन्न किया सुख संपजेन पुन; अंति: दली० मे मा अति गणी रे लाल, ढाल-११, गाथा-९६. For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४१५२ (+#) छ आवश्यक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१०.५, १४४४८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ आवश्यक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नमिय सुगुरु असिआउसाइ समरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - २१ अपूर्ण तक है.) ११४१५३. (+) ज्ञानकीर्तिसूरि गच्छपति भास संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२४.५X११.५, १४४४१). १. पे. नाम. ज्ञानकीर्तिसूरि गच्छपति भास, पृ. १अ, संपूर्ण. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपूज्यजी पाटि पधारु; अंति: कहे विमल सदा चिरनंदो, गाथा-५. मु. २. पे. नाम. ज्ञानकीर्तिसूरि गच्छपति भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: चालि मोरी सजनी श्री पूज्य; अंति: विमल० सफल हुइ दिन आजजी, गाथा-६. ३. पे. नाम. ज्ञानकीर्तिसूरि गच्छपति भास, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: चालोचालो श्रीपूज्य वांदवा अति करे विमल सदा गुण ग्राम, गाथा- ७. ४. पे नाम ज्ञानकीर्तिसूरि गच्छपति भास, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. . विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: रसी आनी पाटणनगरे होवेगे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११४१५४. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२३.५४११.५, १२x२३). आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि राणपुरी रत्तीयामणी रे; अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) ११४१५५. (+) खुम्माणकुवररो बारमासो, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १(१ ) = १, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२३.५x११.५, १२x२९). खुम्माण कुवर बारमासा, ग, दलपतविजय, रा., पद्य, आदि (-); अंति सातमी दलपतविजय गणीवरे, डाल-७, गाथा-२६, (पू. वि. अंत के पत्र हैं. गाथा १५ अपूर्ण से है.) " ११४१५६. भगवतीसूत्र - शतक- ७ उद्देशक- २ पच्चक्खाण थोकडा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४४११.५, २०x३५)भगवतीसूत्र थोकडा", संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि गोतमसामी पुछता हुवा है; अति भाग पावर मनुसमे भागा पाव३. १४१५७ (+४) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४४११, १४X३२). " जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाण; अति (-) (पू.वि. मात्र नवकार मंत्र के अपूर्ण पद तक है.) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि (१) श्रीसिद्धार्थनराधिप ( २ ) नमस्कार थाओ श्री अरिहंतनइ अति: (-). ११४१५८. समकित सडसठि बोल ढालबंध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) = १, जैदे., ( २४४११.५, २२४५१). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जस इम बोले रे, डाल- १२, गाथा ६८, (पू.वि. गाथा ३६ से है.) ११४१५९. बावनाचंदन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५-२४ (१ से २४) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पत्रांक न लिखा होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैवे. (२३.५४११, १६४५४). वैरसिंहकुमार चौपई-जीवदयाशील विषये, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. डाल- ३५, गाथा-२६ अपूर्ण से ढाल ३७, गाधा-५ अपूर्ण तक है.) " ११४१६०. शांबप्रद्युम्न चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७५-७३ (१ से ७३ ) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. चोरपत्रांक-१ व २ दिया गया है. दे., (२३.५x११, १३x४२). शांबप्रद्युम्न चरित्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - ६९ अपूर्ण से १३८ अपूर्ण तक है.) ११४१६१. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित, जैये. (२४.५x११.५, , " १७X३८). For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. वी आदि धम्मो मंगलमुक्किट्ठे, अंति: (-), (पू.वि. छज्जीवणीया अध्ययन ४ सूत्र- १ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४१६२. २० स्थानकगुण नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५X११.५, १५X२४-४२). २० स्थानक गुणनाम, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं २४ लोगस्स; अंति: माला २० लोगस्स ५ खमासमण ५. १९४१६३. महावीरजिनविनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैये. (२२.५x११, ११x२०). महावीरजिनविनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती अंति (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ', ११४१६४ (०) गुणरत्नाकर छंद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १४-१० (१ से १०) =४. पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४११, १५X४३). ११४१६६. आगमपूजा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४x११, १०x२७). गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड- २ गाथा - १५५ अपूर्ण से खंड-३ गाथा-८७ अपूर्ण तक है.) ४०७ आगमपूजा स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि आगमनी आशातना नवि अंतिः सुखमांहो मगन्न, गाथा-५, (वि. १अ पर लग्नवेध विवाहमुहूर्तफल श्लोक-४७ से ५४ अपूर्ण तक लिखा है.) १९४१६७ () भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ', (२४x१०.५, १०X२३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - ८ अपूर्ण तक है.) ११४१६८. (+) पोतियाबंध रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६-१३ (१ से १३ ) = ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२३X११, १७५१). पोतियाबंध रास, पु,ि पद्य, आदि केई जैनी नाम धराव के अंति: (-) (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ढाल ३ दोहा-१ " अपूर्ण तक लिखा है.) ११४१७२. (+#) नवतत्त्व प्रकरण व नंदीसूत्र-स्थविरावली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४११, १३४३७). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागवद्धा अनंतगुणा, गाधा ४४. २. पे नाम. नंदीसूत्र-स्थिवरावली, पृ. २आ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. नंदी सूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि जयइ जगजीवजोणी विआणओ; अति (-), (पू.वि. गाथा - २७ अपूर्ण तक है.) ११४१०३. औपदेशिक पद, नेमिजिन लावणी व अंबिकादेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, जै. (२३४११, १३४३१). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, , संपूर्ण. मु. आनंदराम, पु,ि पद्य, आदि छोटी सी जान जरा सा अति: भवदुख फंदन करणारे, गाथा- ३. २. पे. नाम, नेमिजिन लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. . जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तज्या कर राजुल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only ३. पे. नाम. अंबिकादेवी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सदा पूर्ण ब्रह्मांड अति: (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ४ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४१७४ (F) अष्टापदतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X११, १६x४६). "" अष्टापदतीर्थं स्तवन, मु. जयसागर मा.गु., पद्य, आदि एक सरिस अतिसय गुणवंत अंति (-), (पू.वि. गाथा ३४ अपूर्ण तक है.) " Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४१७५ (+) आदिजिन व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, पौष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, ९-१०x२२-२७). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय नायक जग गरुरे; अंति: केसर कहैदरसण सुखकंद, गाथा-५. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य जिन बारमाजी अरज; अंति: इम जीत कहे नीतमेव रे, गाथा-५. ११४१७६.(#) खंडाजोयण द्वारविचार, संपूर्ण, वि. १८४३, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:खंडाजोयण., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, २०४४५). खंडाजोयण द्वारविचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: सर्व १४५६०९० नदी जाणवी, (वि. उपरी भाग खंडित होने से आदिवाक्य अचयनीय लिया है.) ११४१७७. बलभद्रमनि सज्झाय, ४ मंगल शरण व ऋषभदेव स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२४४११, १५४३९). १.पे. नाम. बलभद्रमनि सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सरीखा तीनोरा भावरे, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. च्यार शरणा रो स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: सदा पो उठीने समरीये हो; अंति: चोथमल० बाल गोपाल, गाथा-११. ३. पे. नाम. ऋषभदेवजी रो स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. चोथमल ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: सफल घडी हो जिनजी सफल घरी; अंति: सवाईजैपुर में हितधरी, गाथा-७. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: वाणारसी नगरी रिद्ध भरी; अंति: प्रदेशी भणा मन मोहे हो, पद-१. ५. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजै सुत लाडलो राणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११४१७९ (+) विजयदेवसूरि गुरुगुण गीत संग्रह व शांतिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, ३४४१५). १. पे. नाम. विजयदेवसूरि गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवितु सेवितु सेवि भविकाज; अंति: लहि ग्यान लक्ष्मी विशाला, गाथा-३. २. पे. नाम. विजयदेवसूरि गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: ध्याउ श्रीगुरु ध्यान धरी; अंति: मंदिर सेवु तुह्म विनय करी, गाथा-४. ३. पे. नाम. विजयदेवसूरि गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: शोभित गुरु मुखक मटकु; अंति: मोही संसार समुंद तटकु, गाथा-३. ४. पे. नाम. शांतिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जयति जगति वरो शांति; अंति: प्रेमभर उपनोचित्त मोरि, गाथा-३. ११४१८१. १०६ गोचरी दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६८, वैशाख कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. कणरा, प्रले. सा. फुली (गुरु सा. पनाजी); गुपि. सा. पनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:साधुनादोष., दे., (२५४११, ४४२८). बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति के लघुभाष्य का हिस्सा १०६ गोचरी दोष, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: __ आहाकम्म उद्देसीय पुइकम्म; अंति: पारासीए कप्पे. बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति के लघुभाष्य का हिस्सा १०६ गोचरी दोष का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकर्मा आहार छ कायनो; अंति: यो दोष वेदकप मदकप्पा छे. For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४०९ ११४१८२ (+) पापछत्तीसी व क्षमाछत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से २,४)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४३९). १. पे. नाम. पापछत्तीसी, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., पे.वि. हुंडी:पापछती०. आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पाप आलोय जीव आपणा सुद्ध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ तक है.) २.पे. नाम. क्षमाछत्तीसी, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., पे.वि. हंडी:क्षमाछ०. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) ११४१८३. (+#) श्रावककरणी सज्झाय, २४ जिन तीर्थमाला स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११, १५४५०). १. पे. नाम, श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावकनी करणी सांभलो; अंति: लहइ समयसुंदर नउ साचउ कहइ, गाथा-१४. २.पे. नाम. तीर्थावलि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेजेज रिष समोसर्या भला; अंति: इहां रे समयसुंदर कहइ एम, गाथा-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. म. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणंद जुहारीयै अहनिसि; अंति: करजोडी पय अरविंदो रे, गाथा-९. ११४१८४. (+) जीवविचार प्रकरण व देवसिप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १३४४१). पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., पे.वि. हंडी:जीवविचार. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण से २. पे. नाम, देवसीप्रतिक्रमण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिकमी; अंति: नोकार पछे शांति कहीइ. ११४१८५. (#) क्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८६६, कार्तिक कृष्ण, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, प्रले. श्राव. नेमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ५२५, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, ११४३२). बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, गाथा-१८८, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-१७३ अपूर्ण से है.) ११४१८६. साधारणजिन पद, नेमिजिन पद व पार्श्वजिन होरी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. नाडुल, प्रले. पंन्या. तिलोकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १२x२७). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: इक सुणजो नाथ अरज मेरी एह; अंति: दायक लायक विनती अलवेसर की, पद-४. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: दरसण कियो आज शिखर गिर को; अंति: आयो रसतो पायो मुगत पद को, पद-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. वल्लभसागर, पुहि., पद्य, आदि: पासजि के दरबार चलो; अंति: वल्लभ० आज सफल अवतार, गाथा-५. ४. पे. नाम, राधाकृष्ण होरी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सूरदास, पुहि., पद्य, आदि: कुण खेले तोसु होरी रे संघ; अंति: मलनकु राधाकिसन की जोरी रे, पद-४. ११४१८७. (+) औपदेशिक सवैया, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, २०४५३). For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सवैया, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि (-); अंति: बनारसी विवेक मन आनीय, सवैया ३३, (पू.वि. सवैया-१७ अपूर्ण से है.) ११४१८८. (+) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२५x११, ११५३६). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि आवंतीतलि वारु बसइजी पदम, अंति (-), (पू. वि. गाथा १९ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४१८९ पौषध विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैये. (२४.५x१०.५, १२x४१). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि प्रथम इरिवावही पडिक्कमी; अति मिच्छामि दुक्कडं. ११४१९०. जिनवंदनविधि स्तवन, वैराग्य गीत व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५X११, १३x४३-४७). १. पे. नाम. जिनवंदनविधि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि जिन चीवीसे करूं, अंति: किरतिविमल सुख वरवा, गावा- ११. २. पे. नाम वैराग्य गीत, पु. १आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: क्या करूं मंदिर क्या अंति आ दुनिया में फेरा, गाथा- ११. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. आदिजिन लावणी-केसरियाजी, क. ऋषभदास संघवी, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुनहो बाता सदासिवजी नही; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११४१९२. प्रज्ञापनासूत्र-४२ भाषाभेद गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४X१०.५, ३२x१७). प्रज्ञापनासूत्र- ४२ भाषाभेद गाथा, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: जणवय सम्मय ठवणा नामे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "प्राक्रित संहसक्रित" पाठ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४९९३. पद्मावतीदेवी छंद, संपूर्ण वि. १८८२, पौष कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पू. २ ले स्थल मेदनीपुर प्रले. मु. जैतकरण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : देवी., जैदे., (२३.५X१०.५, १३X३५-४२). पद्मावतीदेवी छंद, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकति सदा सानिधि करो; अंतिः शिष्य कल्याण जयकारिणी, गाथा-२८, (वि. अंत में नेत्ररोग की औषधि बनाने की विधि दी गई है.) ११४१९५ (f) १४ गुणस्थानके १२० प्रकृति विचार, भरतक्षेत्रादि परिमाण व ६७ समकित बोल नाम आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७७५, फाल्गुन शुक्ल, १९, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२४४१०, १७X५३-५६). १. पे. नाम. १४ गुणस्थानके १२० प्रकृति विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मिध्यात्वगु० आहारक; अति अयोगि गुण ठाणे अबंधी छे. " २. पे नाम, भरतक्षेत्रादि परिमाण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्र ५२६ योजन; अंति: देश एक चक्रवर्ति नइ हुवे. ३. पे. नाम. सम्यक्त्व रा ६७ भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. ६७ समकित बोल नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रद्धा४ लिंग३ विनय१०; अंतिः भावना६ थानक६. ४. पे. नाम. ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि नवतत्व विचार जाणे सुणे; अंति: जीव सदा ६७ भेद समज्यो. ५. पे. नाम. मोहनीय कर्म स्थिति विचार, पू. २अ संपूर्ण मोहनीय कर्मस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, आदि मोहनी कर्मरी उत्कृष्टी अंति: पंचेंद्रिय ७० कोडा कोडसागर ६. पे. नाम. चरणसित्तरी के ७० व करणसित्तरी के ७० बोल, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि महाव्रत५ भेदसंयम १० अंतिः कषाय४ विकथा४. For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org ७. पे. नाम. जिन भवन १० आशातना नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा. मा. गु, गद्य, आदि: तंबोल१ पाण२ भोवण३: अंति: बज्जे जिनमंदिरस्संतो, ८. पे. नाम. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा. पद्य, आदि खेलं केलि वचन कलहं कला; अंति: सेज्जं जलं मज्जणं, गाथा-४. ११४९९६. (+) नवकारमंत्र सज्झाय, अर्बुदगिरितीर्थं स्तवन व पांचमाआरा मध्ये आराधकसाधु संख्या, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., ( २४४१०, १३X३७). १. पे. नाम. नौकारवालि सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति रे नित नित नवकार, गाथा - ९. २. पे. नाम. आबुजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि : आबुगढ तीरथ ताजा अष्टादश; अंति: गाया जिनेंद्रसागरे, मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल मोराने समझावो रे; अंति: ग्वान० गुण गावो रे, गाथा-५, ३. पे. नाम. ४ कषाय पद, पृ. १अ संपूर्ण. गाथा-८. ३. पे. नाम. पांचमा आरामध्ये आराधकसाधु संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: इग्यारलाख सोलहजार एह अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. बत्तीस हजार ए ऊणा ८०० ए साध्वी" पाठ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४१९७. पार्श्वजिन स्तवन, नेमराजिमती पद व ४ कषाय पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५X१०.५, १३X३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन द्रुपद, मु. धर्मशील, पुहिं., पद्य, आदि केवल वाला रे केवल वा अंतिः सो भ्रमसील संभाला, गाथा-४. २. पे नाम. नेमराजिमती पद, पू. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: वो दिल भाय मेरे सांइ, अंति: ज्ञानसार गुण गाया, गाथा - ३. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: जैन धर्म नही कीतावो; अंति: नंद नंदन भारी करम रस पीता, गाथा-४. ४. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पू. १अ संपूर्ण. . ४११ " महावीरजिन पारणं, मा.गु., पद्य, आदि माता त्रिशला झूलावि पूतर, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११४१९९. (+) स्थूलिभद्र व नेमराजिमती बारमासा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : गीतबारमा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैवे. (२४.५x१०.५, १६x४३). "" १. पे. नाम. स्थूलिभद्र द्वादशमास, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १७२८. स्थूलिभद्र बारमासो, आ. लाभोदयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सखी रे सांभल मोहि; अंति: रेमास सुखकारी हो लाल, For Private and Personal Use Only गाथा - १५. २. पे. नाम. राजिमती बारमासा, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: चंदला प्राऊनइ वारि रे कंत; अंति: नरे लाभउदय राजरंग रे, गाथा- १६. ११४२०१ (४) रेवतीश्राविका सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम पू. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२४९.५, १२X३०). रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभविजय, मा.गु., पद्य, आदि सोवन सिंघासणे रेवती; अंति दानवी जय जयकार रे, गाथा - १०. Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४२०३. (#) ४ मंगल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ११४४२). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जे नमु; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-९ तक लिखा है.) ११४२०६. (#) पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.६, प्रले. मु. कस्तुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०, १२४४३). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ महाउत्तम थानिक लाभ; अंति: वृद्धि होसी सही करि मानजे. ११४२०७. (#) मायाबीजकल्प वार्ता व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४१०.५, १८४५६). १. पे. नाम, मायाबीज कल्पवार्ता, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, मा.ग., प+ग., आदि: अजुआलै पखी पूर्णा; अंति: वली प्रीति थाइ. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वृद्धवादी आचार्यउ शिष्य; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ११४२०८. (#) माणिभद्र, आदिनाथ व पद्मप्रभजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १२४४३). १. पे. नाम. माणिभद्र स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदयकुशल०लाख लीला लहे, गाथा-२६, __(पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: आदीसर अष्टापद सीधा; अंति: भावे चैत्यवंदन करी, गाथा-६. ३. पे. नाम. प्रद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: दिज्यो ___ भवभव सेव रे, गाथा-९. ११४२०९ (+) सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०.५, १३४३२). त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.) ११४२१० (+#) विजयकुंवरजी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४१०, १०x२६). विजयकुंवर सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: आदिनाथ आदेसरो सकल; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११४२११ (#) सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय व राधाकृष्ण पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०.५, ३२४१८-२१). १.पे. नाम. सनत्कुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल सनतकुमार हो राजेसर; अंति: समयसुंदर०सुख वितासौ सदाजी, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४१३ २.पे. नाम. राधाकृष्ण पद, पृ.१अ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: सांम समाग कामणिकुं सझि; अंति: प्राण पीया अब नाहीजी, पद-१. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. ललितसागर, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब संत जिनंद अब मांरा; अंति: ललितसागर दोलत करेजी, गाथा-१०. ४. पे. नाम. प्रहेलिका पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अधर फारत त्रिसूल अधर सिर; अंति: गीर कहो भट एह कुण अर्थ, पद-१. ११४२१२. पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पद्मा०, ., (२३.५४१०.५, ११४३१-३५). पद्मावती स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाण चक्र स्फुट; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.) ११४२१३. चेलणा नृपश्रेणिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, प्र.वि. हुंडी:सेणकचेलणा, दे., (२३.५४१०.५, ७४४१). श्रेणिकचेलणासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुनिवर आया छै नजीथानजीसु, गाथा-३७, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., गाथा-२८ अपूर्ण से है.) ११४२१४. (#) भरतबाहुबली सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४८). भरतबाहुबली सवैया, मु. सभाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से १९ अपूर्ण तक है.) ११४२१५ (+#) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १७८४, चैत्र शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, पृ. २२-२१(१ से २१)=१, पठ. मु. घासीराम ऋषि; प्रले. मु. राजसिंहशिष्य (गुरु मु. राजसिंह ऋषि); गुपि. मु. राजसिंह ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३१). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१९६, (पू.वि. पाशांक-४४३ अपूर्ण से है.) ११४२१६. (#) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १६x४६). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, म. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणम; अंति: ___बोधवीज साची जिन सेव, गाथा-२७. ११४२१७. (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०, १७X४५). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: सिद्धि पामीस सही, श्लोक-१९६. ११४२२० (#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ५)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४४१०.५, १५४३८). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति गाथा-३१ अपूर्ण से बृहच्छांति पाठ-"षोडशविद्या देव्यो रक्षतु" तक व भक्तामर स्तोत्र है.) ११४२२१. (+) मौनएकादशीपर्व गणना, अपूर्ण, वि. १७५१, कार्तिक शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्रले. मु. विनीतविजय (गुरु मु. प्रीतिविजय, तपागच्छ); पठ. श्रावि. कुंअरिबाई; श्रावि. कल्याणीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १३४२४). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीआरणनाथाय नमः, (पू.वि. धातकीखंड ऐरावतक्षेत्र की अतीत चौवीसी से है.) ११४२२२. शांति व नेमिनाथ बोली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२४४१०.५, १३४४२). १. पे. नाम. शांतिनाथ बोली, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन बोलिका, आ. जिनेश्वरसूरि, अप., पद्य, आदि: (-); अंति: नंदिउ दुरिउ पणासइ दूरि, गाथा-४, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमनाथ बोली, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मजिन बोली- गिरनारतीर्थमंडन, अप., पद्य, आदि: ता धन धन सोरठ देस; अंति: परमेसर याम गयणि ससिभाण, गाथा-७. ११४२२३. (४) नोकारवाली सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २- १ ( २ ) = १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ', 19 (२४१०.५, १०X२८). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु, लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अति लब्धि० नित नित नवकारतो, गाथा-९, संपूर्ण. ११४२२४ (+) सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ४-३ (१ से ३) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है... प्र. वि. हंडी: सप्तस्मरण, संशोधित. दे. (२४.५४१०.५, १२४३९). सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. . भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. लघु अजितशांति गाथा-३ अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक है.) " ११४२२५. शिवदत्तकुमार रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३-२ (१ से २) १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जै.. (२४x१०, १४X३९). शिवदत्तकुमार रास, आ. सिद्धसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२३, आदि (-) अति (-) (पू.वि. गाथा ४४ अपूर्ण से ६८ अपूर्ण तक है.) ११४२२६. (+४) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७-५(१ से ३५ से ६) =२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४११, ४४३१) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १५ अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक व ३४ अपूर्ण ४१ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). ११४२२७ वीसस्थानकतप गाथा सह टवार्थ, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२४.५४१०.५, ३x२९). २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि अरिहंतर सिद्ध२ पवयण३ अति तित्थतं लहइ जीवो, गाथा ३. २० स्थानकतप गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंत कहिता अरिहंतना गुण; अंति कर्म उपार्ज ११४२२८ अजितशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. वे. (२४.५४११, ११४३६). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जियसव्वभयं संतिं च अंति (-) (पू.वि. गाथा-७ तक ', है.) "" ११४२२९. (७) भक्तामरस्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १५X३७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१९ अपूर्ण तक है.) ११४२३०. (४) तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२४४१०.५, ८x२२). तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ११४२३२. साधुआचार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३.५X११, १४४४६). साधु आचार सझाय, मा.गु., पद्य, आदि उनो पाणी गणो ठर्ये पुरी, अंति (-), (पू.वि. गाथा ४६ तक है.) ११४२३३. पार्श्वनाथ स्तवन, आदिजिन पद व धर्मजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २-२ (१) = १, कुल पे. ३, दे., " For Private and Personal Use Only (२३.५X११, १२X३२). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कुन करे रे प्राणी कुन करे, अंतिः विजयधर्मसूरि० सुखजीव रे, गाथा- ७. Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४१५ २.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ मु. वृद्धिकुशल, पुहि., पद्य, आदि: मन ही मेरे तू वस्यौ करुणा; अंति: वृद्धिकुशल की छतीया, पद-३. ३. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. वल्लभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: धर्मजिनेसर ध्याईये; अंति: सागरवल्लभ०अधिक फली मन पाश, गाथा-७. ११४२३४. (#) १४ सुपन भास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११, १२४१८). १४ स्वप्न भास, म. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पहीलो गज मांहि दीठो लोचन; अंति: तिलय तोरण हर्ष होय वधामणा, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ११४२३५ (#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १६x४०). १. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९४, आदि: अवसर पामीने रे कीजे; अंति: मुगतितणा फल लहसे, गाथा-६. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७३५, आदि: सरसति माता पाये नमी रे; अंति: देवकुशल गुण गाया, गाथा-७. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो केसुं; अंति: जपे हो बहु सुख पाया, गाथा-५. ४. पे. नाम, सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: उत्तमसागर सीस०महिमा जाणीए, गाथा-५. ५. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सहु नरनारी मिल आवो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११४२३८. २८ लब्धि नाम, नंदीसूत्रगाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७४९, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. धरमसी ऋषि (गुरु मु. ठाकुरसी); गुपि. मु. ठाकुरसी (गुरु मु. वर्द्धमान ऋषि); पठ. सा. लखमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १५४३३). १.पे. नाम. २८ लब्धि नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आमोसही१ विप्पोसही२; अंति: विन्नेया सेसाउ अविरुद्धा. २. पे. नाम. नंदीसूत्र गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ से ५ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथासंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: इस अग्यानी जीवकु गुरु; अंति: रीजिनराज० को सहज न मिटावै, गाथा-३. ४. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो आदेश गुरु; अंति: जानतो मेर गुरा जाणै. ११४२३९. सारस्वतव्याकरण-धातुपाठ की टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४४११, ९x४०). सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ की स्वोपज्ञ धाततरंगिणी टीका, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महोनंतं; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"प्रनमविकरणारुधादयः ६ उपविकरणास्तना" तक है.) For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४२४३, (+) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९२५, माघ शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. सुखलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४११, ८x१९). __पार्श्वजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: अनूपम भव निसतर रे, गाथा-७, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१ अपूर्ण से है.) ११४२४९ (+) पार्श्वजिन पद, स्तवन व औपदेशिक श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१८x१०.५, १६४३१). १. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. ध्रमसीह, पुहि., पद्य, आदि: पूजा घनी संखेसर पास की; अंति: ध्रमसी० दिल सुध सेवादासकी, गाथा-३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, पृ. १अ, संपूर्ण.. उपा. ध्रमसी, मा.गु., पद्य, आदि: ध्यावो फलवर्धी पास घणी; अंति: ध्रमसी०सुखदायक शंखेसरसामी, गाथा-७. ३. पे. नाम, गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गुण गावो रे गुण गावो रे; अंति: जिनसुखसूरि० सफल जगीसै रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोक अस्पष्ट है. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ११४२५५. गौतमाष्टक, ज्योतिष श्लोक व साधारणजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३४१०.५, १३४३५). १. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. २.पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: ग्रहे ग्रामे तथा क्षेत्रे; अंति: नामराशि न चिंतयेत, श्लोक-२. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. ११४२५६. पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१०.५, १२४३२). पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ११४२५७. शिव स्तुति, पार्श्वजिन निसाणी व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, १०-१५४४२). १.पे. नाम. शिव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. क. गंग, मा.गु., पद्य, आदि: करत तांम विभूतजाम अहिरावस; अंति: गंग० जटाधर संकर जयौ, गाथा-१. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजी री निसाणी, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १८६३, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, ले.स्थल. वडलू, प्रले. मु. चतुर्भुज (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनधर्मसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनधर्मसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: जिनहरष० कहंदा है, गाथा-२८. ३. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कोलवचन वेठण न दे जांणनदे; अंति: छवि इस्क मस्तहाल देखा, गाथा-१४. ११४२५८. (#) जंबूस्वामी सज्झाय व पार्श्वजिनादि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३४११, १२४४३). For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४१७ १.पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: पभणे रे जंबु सुण मो; अंति: भणै श्री जंबु स्वामी, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नित्यविजय, रा., पद्य, आदि: हांजी सूरति प्यारी हो; अंति: चालो हो नेम डुंगरा, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाल्हा ऋषभसागर गुण गाय, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से ४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसर इकमनां; अंति: ऋषभसागर० चितडो मुझ जोइकै, गाथा-५. ५.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज विलासी सुदरं; अंति: करज्यो सेव सवाइ हो राज, गाथा-९. ११४२६०. दानशीलतपभावना रो समवादो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, प्रले. मु. उमेदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, ९४३०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५, (पू.वि. गाथा-९१ अपूर्ण से है.) ११४२६१. सरस्वती स्तोत्र व छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १०x२८). १.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., पद्य, आदि: जलधिनंदनचंदनचंद्रमा; अंति: कल्पलताफलमश्नुते, श्लोक-९. २. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोक संख्या का उल्लेख नहीं है. सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धुरा उच्चरणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४२६२. (#) मुंहपत्तिना ५० बोल, अतीत-अनागत-वर्तमानजिन नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे.६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०.५, १२४३४). १. पे. नाम. महपत्तिना ५० बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मुहपत्ति ५० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व करी; अंति: त्रसकायनी वीराधना परीहरु. २.पे. नाम. वीसविहरमान नाम, पृ. १अ, संपूर्ण... २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधरस्वामी श्रीजुगमंदर; अंति: अमितवीर्जजी २०. ३. पे. नाम, अतीतचौवीसी नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: केवलज्ञानी निर्वाणी; अंति: चंदणा २३ संप्रतिनाथ २४. ४. पे. नाम, अनागतचौवीसी नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. अनागत चौवीसी नाम, मा.गु., प+ग., आदि: पद्मनाभ सूरदेव सुपास; अंति: अनंतवीर्य भद्रकृतनाथ. ५. पे. नाम. वर्तमानचौवीसी नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभ १ अजित २ संभव ३; अंति: पारसनाथ २३ महावीर २४, अंक-२४. ६. पे. नाम. सोलह सती नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ सती नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ब्राह्मी१ चंदन२ बालि; अंति: १५ पदमावती १६ सुंदरी. (#) वडी शांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १०x२३). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ११४२६४. (+#) जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४१०.५, ११४३८). For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३९ अपूर्ण तक है.) ११४२६५. (+) सीमंधरस्वामी व ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१०.५, १२४३१). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सिद्धिनाणं, गाथा-४. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ११४२६६. सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२३४१०.५, १०४३२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक है.) ११४२६७. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, ले.स्थल. पूर्णानगर, प्रले. पं. जालमविजय (गुरु ग. देवेंद्रविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. देवेंद्रविजय (गुरु ग. कस्तूरविजय, तपागच्छ); ग. कस्तूरविजय (गुरु ग. इंद्रविजय, तपागच्छ); राज्ये आ. विजयराजसूरि (गुरु आ. विजयानंदसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. विजयानंदसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, ४४३१). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: तिन्निवि एए उवाएया, गाथा-५५, (पू.वि. अंतिम गाथा-५५ अपूर्ण मात्र है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्ष ३ ए३ आदरवा योग्य छे. ११४२६८. (+) महेंद्रप्रभसूरिगुरु स्तुति, मेरुतुंगसूरिगुरु स्तुति व प्राकृत अपभ्रंश संस्कृत कोष, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४९.५, १२-१७४६२-६५). १. पे. नाम, महेंद्रप्रभसूरिगुरु स्तुति, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __सं., पद्य, आदि: (-); अंति: गुरुभि सद्गुणैनंदिषीष्ट, श्लोक-७, (पू.वि. अंतिम श्लोक-७ पाद-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मेरुतुंगसूरिगुरु स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सन्मानसेवस्थितिमादधानाः; अंति: गुरुचरणा भाग्यभाजो जयंतु, श्लोक-९. ३. पे. नाम. प्राकृत अपभ्रंश संस्कृत कोष, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं... अप.,प्रा.,सं., गद्य, आदि: जु अद्याकालिकल्पो परमपरे; अंति: (-), (पू.वि. घडामंची घटमंचिका पाठ तक है.) ११४२७१. पार्श्वजिन स्तवनत्रय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४९.५, १०४३०). १. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथजी लघुस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. पुनसी, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर मुझ विनती; अंति: इम जपे जिनराज हो, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर; अंति: जिनहर्ष० सागरथी तारो, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, पा. सदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा पासजिनराय सूरत; अंति: कांई सीधा सगला काज, गाथा-५. ११४२७२. नंदिषेण चौढालियो व स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१०, १६४३५). १. पे. नाम. नंदिषेण चौढालियो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: कोण तोले हो मुनिवर वैरागी, ढाल-३, गाथा-१६. २. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न किजीये; अंति: कीजै हो ले ग्रंथ सीधसु जी, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११४२७६. पंचमीतिथि व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १०४३०). १. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवैकालिकसूत्र-शांतिजिन स्तवन, संबद्ध, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मेरा मन में तुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ११४२७७. (+) सीमंधरजिन विनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४५९). सीमंधरजिन विनती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., ढाल-१ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-२ गाथा-४ अपूर्ण तक है., वि. ढाल संख्या अनुमानित दी गई है.) ११४२७८. अक्षरबावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१०, १७७५७). अक्षरबावनी, मु. उदैराज, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से ५० अपूर्ण तक ११४२७९. रथनेमिराजिमती सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. १९४२, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२५४१०.५, १२४३२-३९). १.पे. नाम. रहनेमीजीनी सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. मुमाइ, प्रले. मु. माणेकलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. ___ रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहनेमि अंबर विण; अंति: नित्य वंदन करे जो, गाथा-४०. २. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: संजम लेई ध्यांने; अंति: सोल सतीमां सिरदार रे, गाथा-११. ११४२८४. साधुसंगति सज्झाय व डुडुंगरसिजिनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. वर्धमान (गुरु मु. पूंजा); गुपि. मु. पूजा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०, ११४३६). १.पे. नाम. साधुसंगति सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन वचन सोहामणां; अंति: भावे मुनि धरमदास रे, गाथा-७. २. पे. नाम. डुंगरसिजिनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. वर्धमान (गुरु मु. पूंजा); गुपि. मु. पूजा, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. इंगरशी गरुगण गीत, सा. नदडाई, रा., पद्य, वि. १८७१, आदि: सरसति सारदा मायक् समरू; अंति: नदडाई० अब ग्रहो अमारि बाज, गाथा-१३. ११४२८९ (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, १७X४८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: (-), (पू.वि. नक्षत्र नाम तक है.) ११४२९१. नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५.५४१०.५, १३४४१). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-३ तक है.) ११४२९६. शांतिजिन स्तवन व दशार्णभद्रऋषि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४४७). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा शांति जिणंद की; अंति: थापज्यो संघ मंगलकारी, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. दशार्णभद्रऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाईक सेवक नयणानंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ११४२९७ (#) सरस्वती छंद व जिनपालजिनरक्षित चौढालिया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ८x२८). १.पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:सरस्वति छंद. सरस्वतीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तरण जय जय देवी सरस्वती, गाथा-६, (पू.वि. कलश पाठ की अंतिम गाथा-६ अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम. जिनपालजिनरक्षित चौढालिया, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११४३०१ (+) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८४२, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. सिवाणा, प्रले. पं. पद्म, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४३५). पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तवन जिनहरखै कीयौ, ढाल-३, गाथा-१८, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-१ अपूर्ण से है., वि. कृति के अंत में वृक्षों के नाम दिये हैं.) ११४३०२. बुध रास व शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:बुधरासपत्र सेजाउधार., जैदे., (२४४११, १७४५३). १. पे. नाम. बुध रास, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सालभद्र०टलीय कलैस तो, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ११४३०३. नेमिजिन स्तवन, १० पच्चक्खाणफल सज्झाय व जिनप्रतिमामंडन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, १४४३३). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. विजयप्रभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिहां लगि शशि दिनकार रे, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण.. ____ मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी; अंति: जिम पामो निश्चै निरवाण, गाथा-८. ३. पे. नाम. जिनप्रतिमामंडन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिके उद्धारज; अंति: वाचक जसनी वाणी हो, गाथा-१०. ११४३११. नवग्रह षट्परुष फलाफल श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्र-१आ पर नवग्रह पुत्तलक चक्र है., जैदे., (२५.५४१०.५, १२-१९४४६-५७). नवग्रह षट्पुरुष फलाफल श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: जहि सणिच्छरु ठाइ नक्खत्ति; अंति: (१)ऋक्षं यावद्गण्यते केतुः, (२)जन्मऋक्षं यावदत्र न संशयः, श्लोक-१६, (वि. सभी ग्रहों के स्वतंत्र श्लोकों को अनुक्रम में गिनकर श्लोकसंख्या का उल्लेख किया गया है.) ११४३१२. बोल संग्रह व कलियुग वर्णन दहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२४१०.५, १२४३०). १. पे. नाम, बोल संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नरदेव चक्रवर्त्त१ सुरदेव; अंति: पछै पांचमो आरो लागो छै. २. पे. नाम. कलियुग वर्णन दहा, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४२१ कलियुग वर्णन दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: चलतीकुं गाडी कहे आवतकुं; अंति: कलियुग ए ए सभाव, दोहा-१. ११४३१७. (+) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३५). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कल्पसूत्र की भूमिका का प्रारंभिक पाठ अपूर्ण तक है.) ११४३१८. आगमग्रंथाग्र परिमाण विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:ग्रंथसंख्या., जैदे., (२६४१०.५, १५४५०). आगमग्रंथाग्र परिमाण विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: आचारांग सूत्रं २५००; अंति:१०१०००० तिलकमंजरी. ११४३१९ (+) शालिभद्रमनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. हंडी:शालिभद्रचउपई., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४६). शालिभद्रमनि चौपाई, म. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीइं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ११४३२० (+) नेमिजिन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४६). नेमिजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४२ अपूर्ण से ५६ अपूर्ण तक है.) ११४३२१ (#) योगचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-२७(१ से २७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:योगचिंताम०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४४६). आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-२ अपूर्ण से ३ अपर्ण तक है.) योगचिंतामणि-बालावबोध *, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११४३२२. योगचिंतामणि का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३८). योगचिंतामणि-बालावबोध *, मा.ग., गद्य, आदि: प्रथम स्त्री योग्य; अंति: (-), (प.वि. पीपल पाक वर्णन अपूर्ण तक है.) ११४३२५. (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:नारचंद्रज्योति., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४४०-५०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नक्षत्र राशि विचार अपूर्ण से कुलिक योग अपूर्ण तक है.) ११४३२६. सीमंधरजिन विनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, ९x४५). सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुण सीमंधर साहिबाजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ११४३२९ प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४.५४९, १४४३८-४८). प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: अम्हाणं गुणवल्ली तुम्हाणं; अंति: अंतरि उतउ सुपनंतरि जोइ, गाथा-३२, संपूर्ण. ११४३३० (+#) सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १६६५, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. प्रतपासिंह मुनि (गुरु ग. हंसप्रमोद गणि); प्रले. ग. हंसप्रमोद गणि (गुरु ग. शिवनिधान गणि); गुपि. ग. शिवनिधान गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, २१४६५-६७). सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अनिट् स्वरांतो भवति; अंति: विद्ध्यनिट्स्वरान्, श्लोक-११. सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, सं., गद्य, आदि: अनिट् सेट कारिका; अंति: सेजनिहारिका विवरणं. For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४३३२. (+) औपदेशिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, २१४६७). औपदेशिक व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: विरला जाणंति गुणा विरला; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५१ तक लिखा है.) ११४३३९. ८ कर्म १५८ प्रकति विचार, १० प्राणी विवरण व श्रावक ११ प्रतिमा विचार आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. १५, ले.स्थल. गुढली, जैदे., (२५.५४११, १६-२०७५०-७२). १.पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. ३अ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धर्मने विषे उद्यम करवो, (पू.वि. नामकर्म वर्णन अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. १० प्राणी विवरण, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: एकेंद्रीने ४ प्राण; अंति: सासुसान आवखोबलप्राण. ३. पे. नाम, श्रावक ११ प्रतिमा विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रावकनी प्रतिमा सम्यक्त; अंति: च्यारमासनी पांचमी ५ मासनी. ४. पे. नाम. ५ इंद्रिय २४ विषय विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कानना विषय३ सचित्त१; अंति: स्वाद आवे तिम फरस जणाइ. ५. पे. नाम.६ पर्याप्ति नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आहारपर्याप्ति १ शरीर: अंति: मनःपर्याप्ति ६. ६. पे. नाम. ९ ग्रैवेयक नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भद्दे १ सुभद्दे२ सुजाणे३; अंति: प्रियदसणे८ जसोधरे९. ७. पे. नाम. ५ अनुत्तरविमान नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: विजय१ विजयवंत२; अंति: सर्वार्थसिद्ध५. ८. पे. नाम. १४ गुणठाणा विचार, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात गुणठाणो सम्यक्त; अंति: हुइ ४ गति आ गति टाले. ९. पे. नाम. २४ दंडकनी गति आगति द्वार विचार, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. गति आगति द्वार विचार-२४ दंडके, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नारकी१ भवनपतीना १० दंडक; अंति: देवता परिमाणसमां भावइ. १०.पे. नाम. १२ भावना विचार, प. ४आ-५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहिली अनित्य भावना जे; अंति: यइ भावि उद्यमी करिवा. ११. पे. नाम. ४ प्रकार धर्मदेशना, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ४ प्रकार-धर्मदेशना, मा.गु., गद्य, आदि: अक्षेवणी कहवा परमत्त सगला; अंति: पचखाण करवानो भाव उपजइ. १२. पे. नाम. जीवना शरीरनी स्थिति, पृ. ५आ, संपूर्ण. गर्भगत जीव विकास विचार, मा.गु., गद्य, आदि: स्त्रीनो रक्त पुरुष नउ; अंति: ९ मासे संवृद्धि पामइ. १३. पे. नाम. शरीरनी जीवनी उत्पत्ति, पृ. ५आ, संपूर्ण. १४ भेद-देहगत अन्यजीवोत्पत्ति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जू लीख मांकडा नाकहरस; अंति: पुरुष नपुंसक जाणवा. १४. पे. नाम. ८ जीवभेद नाम, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: अंडया१ पोउआ२ जराउआ३; अंति: गब्भया७ उवाइया८. १५. पे. नाम. ८ जीवभेद नाम का बालावबोध, पृ. ५आ, संपूर्ण. ८ जीवभेद नाम-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अंडजा कहता अंड थकी उपना; अंति: कहीइ एवं ८ भेद संक्षेपथी. ११४३४९ (#) प्रभावती कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जैतारण, प्रले. मु. गुणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं होने से अनुमानित नंबर दिया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४३८). प्रभावतीगुटीका कल्प, मा.गु., गद्य, आदि: हरड१ नींब पत्र२ मीरी३; अंति: छोकडा मूत्री सुन कसीर जाइ. For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४२३ ११४३६० (+#) प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, ज्योतिषचक्र ग्रहनक्षत्र तारादि योजनमानविचार गाथा व औपदेशिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक खंडित है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १४४४२). १.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: मूनत्वं बालस्य हृदनं बलम्, गाथा-१६१, (पू.वि. श्लोक-७९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ज्योतिषचक्र ग्रहनक्षत्र तारादि योजनमानविचार गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. सोभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: जोयण नेऊसय सात उपरि तारा; अंति: सोभाग्य० ए समभूतलथी जाणीइ, पद-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पहि.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: नमंति सफला व्रिक्षाः; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४३६३. (#) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय व औपदेशिक सवैया, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १४४३५). १. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. म. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे; अंति: मुनीखेम कहे गाया सुख पावो, गाथा-१६. २. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण.... मु. रामभगत, मा.गु., पद्य, आदि: कियो नारसु अव हेत मात; अंति: अव तास बोयो काली धार, गाथा-१४. ११४३६६. (+) पूजानी जोड, संपूर्ण, वि. १८८१, आश्विन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, लिख. श्राव. डूगरसी संघाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४.५४११, ११४२८-३२). डूंगरसी गरुगण सज्झाय, म. रवजी, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: सरसती समरूं शारदा प्रणम; अंति: संतनाथ दे साता गरुजी, गाथा-१३. ११४३७०. (#) छप्पन अंतरद्वीप विचार, १४ स्थान समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार व जीवादि विविधद्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११,१६४३६). १. पे. नाम, छप्पन अंतरद्वीप विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ५६ अंतीप विचार, पुहिं., गद्य, आदि: छप्पन्न अंतरद्वीप छै जिहा; अंति: चौरासी जोजननी दाढा छे. २.पे. नाम. १४ स्थान समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उचारेसुवा१ पासवणेसुवा२; अंति: सर्व असुचेसुवा१४. ३. पे. नाम. जीवादि विविधद्वार विचार, पृ. १आ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदि: सरीरना पंचनाम ऊदारिक१; अंति: (-), (पू.वि. मनुष्यशरीर द्वार वर्णन अपूर्ण तक है.) ११४३७३. (+) अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११,११४३०). अष्टप्रकारी पूजा, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चंदनपूजा अपूर्ण से धूपपूजा अपूर्ण तक है.) ११४३७४. (+) स्थानांगसूत्र की टीका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १९४५७-६२). स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवीरं जिननाथं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारम्भिक भाग तक लिखा है.) स्थानांगसूत्र-टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्रकृत नामे वीजो अंग; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११४३७५. नेमराजिमती सज्झाय व गुरुगुण गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १२x२४-३३). For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण, प्रले. मु. नंदलाल, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कांइ रिसाणा हो नेम रंगीला, अंति: मुगति पुहति मारा लाल, गाथा- ९. २. पे नाम. गुरुगुण गीत, पू. ४आ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि पगलाटक ने कहजो मारी वंदना; अंति: धरम तणी सनेह जी, गाथा-७. ११४३७९. (+#) नंदिषेणमुनि रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४x११, १७x४९-५४). नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सूत सिद्धारथ भूपनो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा - १ अपूर्ण तक है.) ११४३९१. (+) महादेवी सूत्र की दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२१ (१ से २१) = १, पू. वि. मात्र बीचका पत्र है., प्र.वि. हुंडी:महादेवीदीपिका., संशोधित., जैदे., (२५.५X११, २१x४९). महादेवी सूत्र- दीपिका टीका, वा. धनराज, सं., गद्य वि. १६९२, आदि (-) अति (-) (पू.वि. अंश साधन वर्णन से भुजफल साधन वर्णन अपूर्ण तक है.) ११४३९२. (१) उत्तराध्ययनसूत्र के विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४११.५, १३४४६). "" उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. सज्झाय-२ गाथा-३ अपूर्ण से सज्झाय-६ गाथा- २ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने गाथाक्रम नहीं दिया है.) "9 ११४३९५. (४) चंद्रयशाजिन व अजितजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४) = १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १३X३१-३७). १. पे. नाम. चंद्रयशाजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रयशाजिन जिन राजीउ; अंति: जस कहे तस जय थाय, गाथा-७. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. अजितवीर्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दीव पुष्करवर पश्चिम; अंतिः सेवक वाचक यश एम बोले, गाथा- ७. ११४३९९ (4) सुमति पच्चीसी व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है, अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२६४११.५, १५X४०). १. पे नाम. सुमति पच्चीसी, पू. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: एते पर एता ही करना, ढाल -२, गाथा-२५, (पू. वि. गाथा- २३ से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तु मेर प्रीती साजना, अंति: मिलै रे तो पामै सुख कोड, गाथा-१०. 1 ', ११४४०२. (+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, प्र. वि. हुंडी: पंचमीतवन, संशोधित. वे., (२५.५X११.५, ११x२४-२७). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि (-); अंतिः सकल भवि मंगल करे, डाल-६, गाथा-६८, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., ढाल-६ गाथा- २ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only ११४४०७. नाडीपरीक्षाद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, १०x४५). १. पे नाम. नाडीपरीक्षा सह बालावबोध, पू. १अ - २आ, संपूर्ण. नाडीपरीक्षा, सं., पद्य, आदि सुप्ता च सरला दीर्घा अति नाडी दूरेण वर्जयेत् श्लोक-१४. नाडी परीक्षा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि सूती सीत जाणीजे पाधर, अंति जोईने चिकित्सा करणी. Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४२५ २.पे. नाम. नाडीपरीक्षा, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दक्षिण करकी पुरुष के वामा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४४१०. अमीझरा पार्श्वजिन स्तवन सह अव पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, २४७). पार्श्वजिन लघुस्तवन-अमीझरा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ से ४ अपूर्ण तक है.) पार्श्वजिन लघुस्तवन-अमीझरा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११४४१८ (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नारचंद्र सू., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १७४४४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३१ अपूर्ण से श्लोक-४७ अपूर्ण तक व श्लोक-८३ अपूर्ण से नहीं है.) ११४४२४ (+) व्याख्यान पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हंडी:श्लोक., संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३५). व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. धर्मध्यान वर्णन अपूर्ण से गिरनार आबू अष्टापद वर्णन अपूर्ण तक है.) ११४४२५. ५ पांडव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १३४२९). ५ पांडव सज्झाय, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वरलो जिहा; अंति: पावे वांदता मनमोह रे, गाथा-१९. ११४४२६. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५-५३(१ से ५३)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११,१७-१९४२०). १. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ५४अ-५४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: असुभ करम करे दूर जी, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ५४आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:वदेसुख. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर पहेला जिणंद; अंति: नहीं थारी भव भव री सेवा, गाथा-९. ३. पे. नाम, धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. ५४आ-५५आ, संपूर्ण, वि. १८९४, पे.वि. हुंडी:रतनकाम. मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहीया नगरी जी ए; अंति: सुरंगा का सुख पाइया जी, गाथा-४२. ४. पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. ५५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. म. कवियण, मा.ग., पद्य, आदि: चित्त कहे ब्रह्मराय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ११४४२७. (+#) महावीरजिन गीत व वैराग्यपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १८४४५). १.पे. नाम. महावीरजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन गीत-रसोई, मा.गु., पद्य, आदि: शारद मात नमूं सिरनामी हूं; अंति: घरि मंगल नित नित होई, गाथा-३३. २. पे. नाम. वैराग्यपच्चीसी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. गोपालदास, पुहिं., पद्य, आदि: इह प्रमादी जीव जग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ११४४२८. (#) सौधर्मईशानेंद्र देवलोकवर्णन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-३५(१ से ३५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४२७). सौधर्मईशानेंद्र देवलोकवर्णन चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७५ अपूर्ण से ९२ अपूर्ण तक For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४४२९ (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. अरटवाडा, प्रले. पं. लाभविजय गणि; पठ. मु. जीवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १२४३०). चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-४६ अपूर्ण से है.) ११४४३०. विनयअध्ययन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१७४११.५, ९४२८). उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१ विनयसुत्तं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी चीत ____धरीजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४४३१ (+#) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:साल च०.,संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४३७). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१४ से ढाल-१५ गाथा-४८ अपूर्ण तक है.) ११४४३२. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, १४४३९). १. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. शिवनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: अचित चिंतामणि सारिखओ छोडइ; अंति: अवचल ध्यानसु वासो रे, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-लघु, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. शिवनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: पुरुष आदे य जसु सुजस जगि; अंति: संखेसर थुणियउ शिवनिधान, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भाभातीर्थमंडन, मु. शिवनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: कालइ सुरतणा भाभा अतिशय; अंति: तणी भाभा माने जो नितु सेव, गाथा-९. ११४४३३. (+#) श्लोकसंग्रह-जैनधार्मिक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, प्र.वि. हुंडी:श्लोकपत्र., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३९-४२). श्लोकसंग्रह-जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भव्यां भोरुहे भास्कर; अंति: यशोधर्म विततो विधीयतां, गाथा-१३, (पृ.वि. श्लोक-६ से ९ तक नहीं है.) श्लोकसंग्रह-जैनधार्मिक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीयुगादिदेव वो युष्माकं; अंति: करउ करता श्रेयकल्पा संपजइ. ११४४३४. (+#) २५ साधुक्रिया बोल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १४४३७). २५ साधुक्रिया बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: काइय अहिगरणीया; अंति: क्रिया कहीयै छै. ११४४४० (#) कुरुकुल्लादेवी आराधना विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १८४६८). कुरुकुल्लादेवी आराधना विधि, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: श्रोतृणां विषं नाशयति, (पू.वि. प्रारम्भिक पाठांश नहीं ११४४४२. (#) १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४३९). १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्याद्वादमत श्रीजिन; अंति: निश्चयने विवहार जादजी, गाथा-१९. ११४४४८. अष्टापदतीर्थ स्तवन व दुषमकाल साधुश्रावक लक्षण गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४१०.५, १०४२२). For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४२७ १. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रावण कृष्ण, ७. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: प्रह उगमते सूर जी, गाथा-५. २. पे. नाम. दुषमकाल साधुश्रावक लक्षण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई हो ऐसा प्रतीत होता है. प्रा., पद्य, आदि: संपइ दषमकाले धम्मत्थि; अंति: विनिरक्खओ न कप्पंति, गाथा-३. ११४४४९. शीतलजिन व ९६ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं होने पर अनुमानित नंबर दिया है., जैदे., (२४४११, ११४२९). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशीतलजी जिनराज थे गरीब; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. ९६ जिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. उपा. मूला ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: केवलनाणी श्रीनिरवाणी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ अपूर्ण तक है.) ११४४५०. आध्यात्मिक पदद्वय, साधारणजिन स्तवन व शीयलव्रत सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३४). १. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: प्यारे आनंदघन महाराज, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे घट ग्यान भान भयो भोर; अंति: आनंदघन० और न लाख किरोर, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, म. कांति, पुहिं., पद्य, आदि: जिणंदा तारी वाणीय मन; अंति: गावे इम कवि कांति रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. शीयलव्रत सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. हर्षकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: सिल हे परधान सब पर सिल हे; अंति: अपणी शियल सुख हे निदान, गाथा-६. ११४४५१ (+) शाश्वतजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४४). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके रविशशि; अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-९, संपूर्ण. ११४४५२ (+) कारक विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(३)=४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३०-३५). कारक विवरण, पं. अमरचंद्र पंडित, सं., पद्य, आदि: कारकाणि कर्ता कर्म; अंतिः प्रोक्तान्यमन्यहो, का.-७४, (पू.वि. कारक-२६ अपूर्ण से ४४ अपूर्ण तक नहीं है., वि. अंत में राहुकेतु दृष्टि श्लोक दिया है.) ११४४५६. उत्तमनगर शोभा वर्णन व २० विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १६x४९). १. पे. नाम. उत्तमनगर शोभा वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यत्र श्रीफल शाखिनां०; अंति: दृग धर्मक्रिया तत्परा, श्लोक-९. २.पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: द्वीपेत्र सीमंधर; अंति: गतिचतुष्कं कर्मणामष्टकं च, श्लोक-४. ११४४५८. समस्यापद काव्य संग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६४५, चैत्र शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, ६-९४२१-३८). For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समस्या श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: एकद्वित्रिचतुः पंचतुः पंच; अंति: विनाशकौ अमरौ दुरितं हरतां, श्लोक-९, (वि. श्लोक-१ व ५ देववोधाचार्यकृत दोनों एक ही है. श्लोक-२ व ४ अज्ञात. श्लोक-३ काव्यलता वृत्तिगत.) समस्या श्लोक संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: मयि देवबोधे क्रुद्धे सति; अंति: पाप स्फेटकः अकलः अज्ञेयः, (वि. अन्त में "इयं समस्या रामव्यासेन पृष्टा श्वेताम्बरशिष्येण पूरिता" उल्लिखित है.) ११४४६०. पार्श्वजिन ढालिया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४१०.५, १२४४०-४३). पार्श्वजिन ढालिया-गोडीजी, पं. वीरविजय, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. "गिरी आसन उग्यो पतंग रे" पाठ से "गो पयमांहि देस्ये काजल जेहरे"पाठ तक है, वि. ढाल संख्या नहीं लिखी है.) ११४४६५. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४३५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२६ अपूर्ण तक व श्लोक-५३ अपूर्ण से श्लोक-७८ अपूर्ण तक है.) ११४४६८. सागरचंदमुनि रास व सुरप्रियमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(२ से ५)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४४२). १. पे. नाम. सागरचंदमुनि रास-सामायिकविषये, पृ. १अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. मु. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १६७९, आदि: सारद सार सदा दीयइं; अंति: विजयशेखर कहि० गाता रली, ढाल-८, ___ गाथा-१२८, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१९ से ढाल-७ गाथा-१० अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. सुरप्रियमुनि सज्झाय, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देव सदा मनि धरूं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११४४७५ (+) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४४०-४४). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६८ अपूर्ण से ११० अपूर्ण तक है.) ११४४८२. (#) औपदेशिक हरियाली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४३५-३९). औपदेशिक हरियाली, मा.ग., पद्य, आदि: डूंगर कडखे घर करे सरली; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२३ तक लिखा है.) ११४४८५. तीर्थमाला-सम्मेतशिखरादि तीर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११, ११४३७). तीर्थमाला-सम्मेतशिखरादि तीर्थ, मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. गाथा-३० अपूर्ण से ५३ अपूर्ण तक है.) ११४४८६. (+#) महावीरजिन पूजाविधि स्तवन व २४ जिन स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १७४५१). १. पे. नाम, महावीरजिन पूजाविधि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पूजाविधि दिल्लीमंडन, मु. गुणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पणिमिय वीर जिणेसर देव; अंति: गुणविमल जयो जगदीस, गाथा-२७. २. पे. नाम. २४ जिन स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक-८. ११४४८९ (+) वाग्भटालंकार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, ११४३९). For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२९ . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ वाग्भट्टालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-४ श्लोक-१४२ अपूर्ण से परिच्छेद-५ श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) ११४५०४. (+#) शाश्वतजिनबिंबसंख्या विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १९४४०). १. पे. नाम. शाश्वतजिनबिंबसंख्या विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: उर्दध्वलोके अधोलोके; अंति: कोडि ६० लाख बिंब सर्व छै. २. पे. नाम. २५० अभिषेक गाथा सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. २५० अभिषेक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: इंद १९४ सम १ तायत्तीसा ३३; अंति: पंचयणे या संखा कमेणेसिं, गाथा-२. २५० अभिषेक गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: अढीद्वीपवर्तिनां चराणां; अंति: रीत्या संख्या समायाति. ३. पे. नाम. रत्नसंचय सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. रत्नसंचय-हिस्सा गाथा १७०-ज्ञानक्रियाश्रद्धा अष्टभंगी दृष्टांत, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सामन्नलोअ तव लिंग; अंति: पक्खिणो अट्ठमेसु जई, गाथा-१. रत्नसंचय-हिस्सा गाथा १७०-ज्ञानक्रियाश्रद्धा अष्टभंगी दृष्टांत-टीका, सं., गद्य, आदि: न जानाति नांगी करोति न; अंति: सुसाधुवत इत्यष्टभंगाः. ४. पे. नाम. २० स्थानकरी गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत १ सिद्ध २; अंति: काउसग्गोकारे इभवेनिच्चं, गाथा-२. ११४५०५ (#) वीरप्रभ तप संख्या व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १०x२६). १. पे. नाम. वीरप्रभु तप संख्या, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: घणा आपो स्वामी सुख घणा, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर साहीबा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११४५०६. (+) महावीरस्वामी झलणुं पालj, आदिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४३०). १.पे. नाम. महावीरस्वामी झलणुं पालणुं स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. राधिकापुर, प्रले. मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन हालरडं, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला झुलावे; अंति: दीपविजय कविराज, गाथा-१८. २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केशरिया, म. दयाविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: सगुण सनेही साचो एतो खंड; अंति: तुमे जपो अविचल वाणी हो, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भटेवातीर्थ, मु. दया, मा.गु., पद्य, आदि: पास भटेवा जीवंदो ए तोवा; अंति: मुझ देज्यो वंछित कोडी हो, गाथा-५. ११४५०७. (+) विचारषट्त्रिंशिका प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पठ. श्राव. चिरंजीवण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ५४४२). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-३८, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-३४ अपूर्ण से है.) ११४५०८. २० स्थानकतप स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२५४११.५, ५४१२-१६). For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति खीमाविजय० सुजस जमाव, गाथा- १४, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-१२ अपूर्ण से है.) ११४५०९ (5) ढंढणमुनि चौडालियो, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, प्र. वि. हुंडी दंदण पत्रांक नहीं होने से अनुमानित नंबर दिया है. अक्षर फीके पड़ गये हैं. दे., (२५.५४११.५, १०४३७). יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढंढणमुनि चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रे हो तुल्य नावेली गार, (पू.वि. ढाल -३ गाथा-५ अपूर्ण से है.) ११४५१०. (+#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९९वी, मध्यम, पृ. १०-७ (१ से २, ४ से ८) = ३, कुल पे. ८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशे पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८). " १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं., वि. १८३७, पौष शुक्ल, २. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति सीस रामविजयनी पोहती जगीश, गाथा-८, ( पू.वि. गावा-२ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन अरिहंतजी ओलगडी; अंति: राजविजय० सेवो चित्त चंग, गाथा-८. ३. पे. नाम. शत्रुंजय स्तवन, पू. ३आ, संपूर्ण, शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि डुंगर टाढो रे डुंगर सीयलो; अंति: उदयरत्न कहे० रे कल्याणो, गाथा-७. ४. पे नाम. पंचमीतिथि स्तवन, पृ. ९अ- ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति तवन भाखे गुणविजय रंगे भणी, ढाल ६, गाथा ४९, (पू.वि. डाल-५ गाथा ३ अपूर्ण से है.) ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पच. वि. १८वी, आदि अवल गोखने अजब झरुखे अंति: पंकज सेवक देव कहे हितकारी, गाथा-७. ६. पे. नाम नेमजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतमसुं मुझ प्रीत; अंति: तिलक नमे सूविहाण, गाथा - ९. ७. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सांभलो विनती तुमे; अंति: मान० वीनती छे छेक, गाथा-८. ८. पे नाम. अनंतजिन स्तवन, पू. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि धारि तरवारनी सोहली; अंति: (-). (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११४५११. (+) स्नात्रपूजा विधिसहित अपूर्ण, वि. १८१९ भाद्रपद शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १०-८ (१ से ८) = २, प्रले. मु.मयाचंद (गुरु मु. माणिकचंद्र, विजयगच्छ); गुपि. मु. माणिकचंद्र (गुरु पं. हेमराज ऋषि, विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैदे. (२४.५४११.५, १५३४). " स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि (-); अति जय व्यवहारे पंचधरि विवेक, (पू.वि. अंत पत्र हैं. पूजा पूर्ण से है.) ११४५१४. (४) वर्णमाला, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११, ६x२२). " " वर्णमाला, मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ; अंति: ४५ ६ ७ ८ ९ १०. ११४५१५. नंदीश्वरद्वीप देवकृत अष्टान्हिकामहोत्सव विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१ (१) = ३, जैदे., ( २४.५X११.५, १०X३७). नंदीश्वरद्वीप देवकृत अष्टान्हिकामहोत्सव विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., व्यंतर नाम अपूर्ण से पंचवर्ण फूल पूजा अपूर्ण तक है.) "" ११४५१६. () सुदर्शनसेठ सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५X३८). For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४३१ सुदर्शनसेठ सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संयमीधीर सुगुरुपय; अति (-) (पू.वि. ढाल ३ गाथा-१ तक है.) ११४५१७. (+) बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५४११.५, १४४३९). 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: हणंतंनाणु जाणिज्जा; अंति: (-), (पू.वि. "ठाणांग वर्णन अपूर्ण तक है.) "" ११४५१९. (+) सिंदूरप्रकर सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११.५, ५४३४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३वी आदि (-); अति (-) (पू.वि. बीच के पत्र हैं, श्लोक १३ अपूर्ण से १८ अपूर्ण तक है.) " सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. १९४५२१. पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे ६, जैवे. (२५x११, १५X३९-४२). " १. पे. नाम महावीरजिन पद. पू. १अ संपूर्ण. मु. . जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज हमारे भाग वीर; अंति: चित आनंद बधाए है, गाथा-४. २. पे नाम पार्श्वनाथ पद, पू. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरै मन मै तुं मेरे; अंति: तूं ही साहिब तीन भुवन में, गाथा-३. ३. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारे भले उगो रे अति जिनलाभसूरि० राजनो रे, गाथा ५. ४. पे नाम. पार्श्वचितामणि स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि हेली जैशलगढ जास्या हे अति रभूसु प्रीतबंधाणी हे, गाथा-४. ५. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण, शांतिजिन स्तवन-भुजनगर, आ. जिनलाभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि हां रे हुं तौ गईती गईती; अति जिनलाभ० सुख करू रे लो, गाथा-५. ६. पे. नाम सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि ते दिन क्यारे आवस्ये; अंति चाहे नित जिणचंद, गाथा- ७. १९४५२२. ऋषिमंडल प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६-१ (२) -५, जैदे. (२६११, १५X४७). "" ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी आदि भत्तिभर नमिरसुरवर, अंतिः धम्मघोस० सिद्धिसहं, गाथा - २२८ . २५९, (पू. वि. गाथा ४१ से ८२ अपूर्ण तक नहीं है.) " ११४५२३. (+) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. हुंडी शांतिनाथचरित्र, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११, १२४३८). " शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३०७, आदि: श्रेयोरत्नकरोद्भूतामर्ह; अंति: (-), (पू. वि. प्रस्ताव- १ श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) ११४५२५. चउसरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५X११, १५X३९-४२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६२. ११४५२६. (+४) बृहत्संग्रहणी सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६८-६७(१ से ६७) = १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है... प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११, ४X४२). बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७पू, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ३५१ से ३५८ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४५३० (+) युधिष्ठिरस्वप्नफल दृष्टांतकथा सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १५-१४ (१ से १४) २, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११.५, ५X४०). www.kobatirth.org युधिष्ठिरस्वप्नफल दृष्टांतकथा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६९ अपूर्ण से ८१ अपूर्ण तक है.) युधिष्ठिरस्वप्नफल दृष्टांतकथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४५३२. (+#) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, १०X२४-२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊंण; अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा - ५३. "" ११४५३९. पार्श्वनाथजी रो लोको, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी पार्श्वनाथ०. जैवे. (२५.५४११.५, १४४३९). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा. पद्य वि. १८५१, आदि प्रणमुं परमातम अविचल अंतिः जोरा० राजरो " " १. पे नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, अंतरजामी, गाथा-५६. ११४५४०. (#) २४ जिन स्तवन व जंबूस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२५x११.५, १६३०). रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि समरु श्रीआदिजिणंद अंतिः प्रभु मोहि दरसन दीजो गाथा-२५. मु. २. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं.. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि राजग्रही नगरी बसे ऋषभदत्त, अति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ११४५४१. महावीरजिन चौढालिया, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी:महावीरजीरोचोढालीयो., वे. (२५x११.५, १७४३२). महावीर जिन चौडालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि सिद्धारथ कुल उपना तिसलावे; अंति (-), (पू. वि. ढाल - २ गाथा - ९ अपूर्ण तक है.) ११४५४२. (१) सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, अपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है... प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५४११, ५३४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३१ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण है.) " सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १९४५४३. जंबूवती चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ४, प्रले. मु. सायमल ऋषि पठ सा. चंदूजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी जंबवतीजी, जैवे. (२५.५४११, १८-२२४५९). जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि पेहली ढाल सुहावणी जंबवती; अति सूरसागर० दीघो अवचल पाटतो, ढाल १३. १९४५४४. २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे. (२४.५५११.५, ११४३३). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुक्खलवई विजये जयो; अति (-), ( पू. वि. युगमंधर जिन स्तवन गाथा- २ अपूर्ण तक है.) १९४५४५. स्नात्र विधि व कुसुमांजलि विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी स्नात्रवि, जैदे. (२५X११, १०-१३X३२-३५). १. पे. नाम. स्नात्र विधि, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा. सं., पद्य, आदि मुक्तालंकार विकार, अंतिः इव कुसुमांजली ताह, गाथा- १५. २. पे नाम. कुसुमांजली विधि, पू. २अ २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४३३ आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मा.ग., पद्य, आदि: विणयनयरी विणयनयरी; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ तक लिखा है.) ११४५४६. (#) उपदेशरत्नकोश, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उपदेशरत्नकोश., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०४३२). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से २४ अपूर्ण तक है.) ११४५४९. नमस्कार महामंत्र सवैया, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४.५४११.५, १७७३२). नमस्कार महामंत्र सवैया, मु. लालचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: नमोक नमोक अरिहंत नमो; अंति: (-), (पू.वि. सवैया-९ अपूर्ण तक है.) ११४५५० (+#) भगवतीसूत्र-शतक ७ उद्देश २, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:भगवतीसूत्र., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३८-४५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-३४३ देव संबंधी पच्चक्खाण प्रश्नोत्तर तक लिखा है.) ११४५५२ (+#) संकोसल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १०४२८). कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: कीरतधज राजान सूरज; अंति: क्षमाकर भवसायर तिरै, गाथा-१५. ११४५५३. (#) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन उपसर्ग प्रसंग अपूर्ण है.) कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११४५५४. (#) हीरविजयसूरि प्रबंध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २१४६०). हीरविजयसूरि प्रबंध, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: पछी जालोर चोमासे गया, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., "नगर भलो ___ सणगारियो रे" पाठ अपूर्ण से है.) ११४५६०. औपदेशिक व आध्यात्मिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १२४४४). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: इहा तोरणा नही चालणदा कछु; अंति: जंगल में तेरा घर रेइ, गाथा-५. २. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: सुमति सखी इम वीनवे रे; अंति: रूप के अब घर आवोजी, गाथा-१०. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: ए जुग जाल सुपन की माया इस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ११४५६१ (#) २४ तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. लालचंद ऋषि; पठ. श्रावि. कुसालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १०४३०-३३). २४ जिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथं कीजे सुनाथं; अंति: भक्ति द्यो कंठ मेरै, गाथा-३१. ११४५६२. सूत्रकृतांगसूत्र-श्रुतस्कंध १ मोक्षमार्ग अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९४५, चैत्र शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. श्रावि. लिछमाबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:मोखमारग., दे., (२४.५४११.५, २०४३९). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४५६४. वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८८३, कार्तिक कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, ले. स्थल. कानपुर, प्रले. मु. सुमतिसागर (गुरु मु. लालसागर); गुपि. मु. लालसागर (गुरु पं. नित्यसागर); पं. नित्यसागर (गुरु पं. जीवणसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२५.५४११.५, ११४३९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (१) श्रेयस्करी संपद्यते मिति, (२) वृद्धि करोतु सदाश्रेयं, (पू.वि. "नानदोहृष्ट स्तुष्ट उदग्र पाठ अपूर्ण से है.) ११४५६५. (#) बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १६८९, मध्यम, पृ. ३- २ (१ से २ ) = १, प्रले. मु. तेजसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११.५, ४x२७). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि (-); अंति सिवं भवंतु स्वाहा, (पू.वि. अंत के पत्र हैं, "भवंतुभूतगणो दोषा" पाठ अपूर्ण से है.) ११४५७१. (+) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशे पाठ. जैवे. (२४.५x११, १७४४२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३३ अपूर्ण तक है.) ११४५७५ (+) भारती स्तोत्र, पुष्प दोहा व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैये., (२४.५X११, ८-१२x१६). १. पे. नाम भारती स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी अंति: निःशेषजाड्यापहा श्लोक ७. २. पे. नाम. पुष्प दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पूष्प दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: मधुर शीतलबास गुलाबकी, अंति: प्रगटबाससु सुंदर केवडौ, गाथा-१. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं., मा.गु., रा., पद्य, आदि: सुश्री कुं चंपा नगरी; अंति: हेमांग कवि कालिदास, गाथा - १. ११४५७७. भावना बारमासा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, ले. स्थल. नाडोल, प्र. वि. हुंडी : बारमास पत्र, जैदे.. (२४.५x११.५, १४४३६). नेमिजिन बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कवियण० सिरेसुर नेम, गाथा- ४८, ( पू. वि. गाथा-२५ अपूर्ण से है.) ११४५७९ समकित पच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (२६४११.५, ५X३७). " सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा - २५. ११४५८० (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, नवकार महामंत्र सज्झाय व चंद्रप्रभजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी कल्या०., पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैवे. (२४.५x११.५, १०-१३४३५-३८). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र. पू. १आ-४आ, संपूर्ण, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. नवकार महामंत्र सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. आ. सुमतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमरि श्री नवकार रे नर; अंति: लहे पामे भवनो पार रे, गाथा-५. " ३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है... मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चंदकला बिणचंदपुरी पतिचंद अति चंदकला जिमचंद विराजे, गाथा- १. ११४५८१. बृहत्शांति स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है. जैदे. (२५४११.५, १४४४०). १. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. बृहत्शांति स्तोत्र तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि (-); अंति सा श्रीजैन शक्ति सदा, (पू.वि. "संघस्य शांतिर्भवतु श्री जिनपदानां पाठ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४३५ २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में प्रस्तुत कृति भक्तामर स्तोत्र के ऊपर १ श्लोक अपूर्ण है. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५.. ११४५८३. ज्ञानदानमहिमा संदर्भ गाथा सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १००-९९(१ से ९९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १४४४०). ज्ञानदानमहिमा संदर्भ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. मात्र ६५वीं गाथा है.) ज्ञानदानमहिमा संदर्भ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ज्ञानदानमहिमा संदर्भ गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ज्ञानदान संदर्भ में भील कथा है.) ११४५८६. (+) उपदेशबावनी, अपूर्ण, वि. १९३४, आषाढ़ कृष्ण, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ.७-५(१ से २,४ से ६)=२, ले.स्थल. बिलाडा, प्र.वि. हुंडी:अथपरनी., संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १४४३५). अक्षरबावनी, मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८७०, आदि: (-); अंति: बाबनि इसडी मन मान्या है, गाथा-५७, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-१५ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक व गाथा-५० अपूर्ण से है.) ११४५८७. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १०४३८). शांतिजिन स्तवन, मु. जयविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: सरस सुधारस वरस तीरे समरी; अंति: स्तवीओ नामी सीस साहिब, गाथा-७. ११४५९१. औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, ४४३१). औपदेशिक कवित्त, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान जीहाज वठ गणपति से; अंति: हाथ जोर हम पाय परे है, गाथा-१. ११४५९४. (+) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:६२ मार्गणा नाम., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १०४२६). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: नरकगति १ तिर्यंचगति; अंति: संज्ञी अनाहारि आहारि. ११४५९६. (+) नेमराजिमती बारमासो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १४४४०). नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सीयाले खाटु भली रे लाल आ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ११४५९८. शक्रस्तव, पार्श्वजिन मंत्रविधान व नवकार कल्प विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०१२, पौष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, प्रले. छगनलाल अविचलभाई लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १२४४०-४४). १.पे. नाम. शक्रस्तव, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कल्प०. __ हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमोत्थुणं अरिहंताणं; अंति: सर्व भय रक्षा भवति, गाथा-१६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्रविधान, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्रविधान-नमिऊण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहँ नमीऊण पास; अंति: ह्रीं श्रीं नम स्वाहा, मंत्र-१. ३. पे. नाम. नवकार कल्प विधि, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवका०क. नमस्कारमहामंत्र कल्प, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं वा० २७; अंति: इति मयूर वाहिनी विद्या. ४. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-मात्राक्षर फल, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:लोग०क. लोगस्ससत्र-लोगस्सकल्प, संबद्ध, सं.,प्रा., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं ऐं; अंति: धन प्राप्त थाइ महाफल होइ. ५. पे. नाम. पार्श्वजिनमंत्र विधान, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चोवीस. पार्श्वजिनमंत्र विधान-कलिकुंड, सं., गद्य, आदि: ॐहीं श्रीं तं नमहपासना; अंति: (१)कलिकुंड स्वामिने स्वाहा, (२)सर्वत्र जयवाद थाय, (वि. विधिसहित.) ११४५९९. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१२, १३४३५). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुं नित्य परमेश्वरी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४६०२ (+) महावीरजी की विनती, संपूर्ण, वि. १८६५, भाद्रपद कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. स्याहजेहनाबाद, प्रले. मु. जुहारमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४३७). महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: समयसुंदर० त्रिभवनतिलउ, गाथा-१९. ११४६०४. (+) चंदनबालामहासती पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १८११, श्रावण शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. पं. अमरविजय गणि (गुरु ग. विनीतविजय); गुपि.ग. विनीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चंदनबाला स्वाध्यायपत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १३४३३-३६). चंदनबालासती रास, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६४, आदि: प्रणमी प्रेमें सरसती; अंति: धरि वाध्या रंग रसाला रे, ढाल-५, गाथा-७२. ११४६०५. (+) उपदेशपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सोजत, प्रले. सा. करासताइ (गुरु सा. चंपा); गुपि.सा. चंपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपदस., उपदेशरीकु., उपदसकरे., उपदसराकत., संशोधित., दे., (२५४११.५, १४४३२-३४). उपदेशपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८२०, आदि: जीनवर दिए एसो उपदेश; अंति: रायचंद० छांड संसारना फंद, गाथा-२६. ११४६०९. १८ नातरा लावणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:नातरा., दे., (२५.५४११.५, १६४५०). १८ नातरा लावणी, मा.गु., पद्य, आदि: कर्मगत वर्णाना जाइ भाव फल; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ___गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ११४६१० (+) चराणु बोल बासठियो, संपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कुंचामण, प्र.वि. हुंडी:चराणुबोल., संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१४४३) पानो पोथी प्यारथी, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४७). ९४ बोल का ६२ भांगा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ गरभेज विना जीवना भेद; अंति: ९४ सोपकरमी परत में. ११४६११. (#) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ९, प्र.वि. हुंडी:तवनपत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६४३४). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु आगल नाचे सुरपत; अंति: ते नाटिक ___जोवण ओछक अती, गाथा-९. २. पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवना, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लोक चौवद के पार किनारे; अंति: वीनती चरन कमल को दासा हैं. गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मानो मानो मानो रे; अंति: मोहन० सेवक करी जाणो रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आज चित चेत प्यारे; अंति: देवो दो कर दानो रे, गाथा-३. ५. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: आदि अंत जानु नही तुम हो; अंति: वीर हैं रूपचंद गुण गावै, गाथा-६. ६. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज घरे नाथ पधारे कीजे; अंति: रूप० चरणकमल जाउं वार, पद-५. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घरीयारे वावरे मत घरीय; अंति: आनंदघन० वीरला कोइ गावे, पद-३. ८. पे. नाम. कृष्णराधा होरी पद, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४३७ राम, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे संग की सब वन आइ; अंति: राम० लाल फगवा दो भरजोरी, पद-५. ९.पे. नाम. रामसीता पद, पृ. २आ, संपूर्ण. क. सुरदासजी, पुहिं., पद्य, आदि: कसतुरंगी धनु कहर वारे है; अंति: सुरदास० सीताराम सुखपाइ है, पद-५. ११४६१२. (#) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. १३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११.५, १४४२५-२९). १.पे. नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंडित. खीमाविजय, पुहिं., पद्य, आदि: इक सुणले रे नाथ अरज मेरी; अंति: लायक अनुपम कीरत जुग तेरी, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जादव मेरो मन हर लीयो रे; अंति: जिनचंद कहै तुम हरखीयो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: काया मांजत कौन गुना; अंति: दांनकहे० खोयो भया रे, गाथा-४. ४.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, पुहिं., पद्य, आदि: अब क्या सुवे उठ जाग रे; अंति: जीनेसर भेटत हीवड भाग रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: प्रभु तेरो रूप वण्यो हद; अंति: समयसुंदर० सफल जनम ताहि को, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.. मु. उदयसागर, पुहिं., पद्य, आदि: अब हमकुं ग्यानज द्यो; अंति: उदयसागर० प्रभु मुझकुं, पद-७. ७. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पावापुरीतीर्थ, मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: पावापुरी पुकरा चालो राजा; अंति: नवल लगावो प्रभुजीसु नेहरा, गाथा-५. ८.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरो मानीने लेजो हो; अंति: मोहन गोडीचाराय अरज सुणीने, गाथा-४. ९. पे. नाम. मल्लिजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मोहे केसे तारोगे दीनदयाल; अंति: रूपचंद गुण गाय, गाथा-५. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण, प्रले. पं. चेनभाग, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. द्यानत, पुहि., पद्य, आदि: अब मोहि जान परी; अंति: नही जान्यौ मुरदा संग जरी, गाथा-४. ११. पे. नाम. होरी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. धर्मजिन होरी, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवन मे जाय मची; अंति: क्षमा कहै करजोरी, पद-८. १२. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: दरस कीयो आज सीखर गीर को; अंति: आयो रसतो पायो मुगत पद को, पद-५. १३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नित ध्यावो ऋषभ; अंति: जिनचंद० नित नित गुण गावो, गाथा-५. ११४६१३. महावीरजिन गणवर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, दे., (२५४११, १७X५८). महावीरजिन गुणवर्णन, रा., गद्य, आदि: इहां कने कुणजे जाणवा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ 'इहां कने कोण सिद्धांत कुण आगम' पाठांश तक लिखा है.) ११४६१६. (#) चवदस की थुई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ७X४०). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्व पजुसण पुण्ये; अंति: सुजस महोदय कीजे, गाथा-४, (वि. अंत में पर्युषणपर्व से संबंधित १ गाथा दी है.) For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४६२२. (#) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५-१(१)=४, प्र.वि. हुंडी:गोडीपार्श्वनाथ., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १७४३७-४१). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदिः (-); अंति: इम नेमविजय जयकार, ढाल-१५, ___ गाथा-१३७, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-३ अपूर्ण से है.) । ११४६२४. (+#) ज्योतिषसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नारचंद्रट., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३९-४२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ तक है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत भणी; अंति: (-). ११४६२६. अवयद केवली व शक्रचंद्रादिमासफल श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १४४३३-४७). १.पे. नाम. अवयद केवली, पृ. ४अ-६आ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अवजदी शुकनावली, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सुकुन माहा उत्तम छै, प्रकरण-४, (पू.वि. 'य' प्रकरण अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शुक्रचंद्रादिमासफल श्लोक, पृ. ६आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, सं., पद्य, आदि: दिनत्रयं धर्मघ्रणी प्रमाण; अंति: पौरस्तराशिर्फलमाददाति, श्लोक-२. ११४६३९ (#) चंदकुमार वार्ता, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७X४८). ___ चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरसती मात मनाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण तक है.) ११४६४० (+) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३३-३८). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सिद्धांत बुद्धांत सूत्र __ अपूर्ण से आयरिय उवज्झाये काउसग्ग तक है.) ११४६४१. (#) सकोशल कीर्तिधरमनिरास, शांतिजिन स्तवन व प्रास्ताविक गाथा आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५१). १.पे. नाम. सुकोशल कीर्तिधरमुनि रास, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. विद्याचारित्र, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: इम भणइ ऋषि वंदु सिरनामी, गाथा-३१, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदररूप सोहामणु; अंति: भणइ मुझ आपु परमाणंद रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण.. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नित बारस मिलइ धली धली; अंति: गिर तउ काठा थई वेचाइ, गाथा-३. ४. पे. नाम. तापाछिपति स्तुत्यष्टक, पृ. २आ, संपूर्ण. तापाधिपति स्तुत्यष्टक, मु. अरिमल्ल, सं., पद्य, आदि: श्रीतापाधिपतिस्तृतीयदिवस; अंति: यदि मे तुष्टो ददासि प्रभो, श्लोक-८, (वि. अंत में ज्वरनिवारक मंत्र दिया गया है.) ११४६४२. योगचिंतामणी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, ६४३१). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (पू.वि. मुंशली पाक विधि तक है.) ११४६४३ (4) बारखडी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. पाटण, प्रले. पं. अमीविजय; पठ. श्रावि. गणेशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचासरजी प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, ८x२५). वर्णमाला, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्री वीरजिन प्रणम्य, (पू.वि. "दो दौ दं दः" पाठांश से है.) For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४३९ ११४६४४.(#) ईलाकमर चोपई-भावविषये, अपूर्ण, वि. १७२७, कार्तिक शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, प.५-१(१)=४, प्रले. मु. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १९x४०-५२). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु.ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदिः (-); अंति: न्यानसागर० अजुआलइ छे, ढाल-१६, गाथा-१८७, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-४ से है.) ११४६४५ (+) नेमिजिन स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. १७३५, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. जीर्णदुर्ग, पठ. श्रावि. रंभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५४४३). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. म. गणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सीसो ए तवन कहइ निसदीसो, गाथा-४६, (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण से २. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: प्रीतडली मुझ मनि षट; अंति: कहि लबधिविजय तस बेली, गाथा-१५. ११४६५४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४०). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवि चित्त धरी; ___ अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय-४ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११४६५५ (#) नेमगोपी संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४४६). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसे नेम कुंवर निज; अंति: (-), (पू.वि. चोक-५ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ११४६५७. सिद्धांतरत्निका व्याकरण की अनिट्कारिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, ७X३२). सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अनिट् स्वरांतो भवति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४६५८ (#) साधारणजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १०४२४-२८). साधारणजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कवियण कहे सांभलजो मोके, गाथा-१०, (पृ.वि. शिव वेष उपमा वर्णन अपूर्ण से है., वि. अंत में गरमी निवारण औषध लिखा गया है.) ११४६६१. उपधानतपविधि यंत्र व नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ६४३१). १. पे. नाम. उपधानतपविधि यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम, नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ से ७ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४६६२. महावीरजिन २७ भव वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२५४११, १६४३९). महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: इंद्रे जाण्यु इति २७ भव, (पू.वि. भव-६ वर्णन अपूर्ण से है.) ११४६६३. स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६, दे., (२५४११.५, १६४३०). १.पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शेजे श्रीरीषभ जिणंद; अंति: लबधी० नीत जन प्रणमे सरेद, गाथा-१. २. पे. नाम. तीर्थमाला स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा क्रमशः २ है.. मु. हीरविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गीरनारे श्रीनेमीजिन भाणो; अंति: धराणो जिन दरसण करे वांणो, गाथा-१. ३. पे. नाम. समवशरण स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा क्रमशः ३ है. 1. म. For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समवसरण स्तुति, मु. हीरविजय- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन केवल लोक प्रकाश अति: घरो जिन मनसु विलास, गाथा- १. ४. पे नाम. चक्रेश्वरीदेवी स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा क्रमशः ४ है. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि देवीचक्रेश्वरी आनंदकारी, अंतिः कांतिविजय सुखकारी, गाथा- १. ५. पे. नाम गौतमगणधर गहली. पू. २आ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरी रे वने आव्या; अंति: कहि कांतीविजय करजोड, गाथा-६. ६. पे. नाम. प्रास्ताविक दूहा, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. " प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं. मा. गु., पद्य, आदि: वाडीका रस फूल हे सब रसकार; अति (-) (पू.वि. गाथा ३ तक है.) ११४६६४. हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, १४४३५). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि (-); अंति (-), (पू.बि. डाल-१ गाथा-११ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १९४६६५. पट्टावली ऐतिहासिक घटना सहित, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२४-१२३(१ से १२३) १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी पट्टावली., जैदे., (२५X११, १५X३३). पट्टावली*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आगरा चातुर्मास प्रसंग अपूर्ण से सं. १६८६ वर्ष आगरा में आठ ब्राह्मणों के साथ वाद विवाद प्रसंग अपूर्ण तक है.) ११४६७१ (०) ज्ञानप्रदीप, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे., (२५x११.५, 7 १४४३८-५७), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानप्रदीप, सं., पद्य, आदि: चर लग्ने चरे सूर्ये चर रा; अंति: सर्व सौख्यं जयं यशः, श्लोक-३०. ११४६७२. (#) शुकबहोत्तरी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. हुंडी : ब० तरी. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११.५, १८x४६). शुकबहोत्तरी कथा, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: सवल सुरासुर माया अति: (-). (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ११४६७८. (+) प्रज्ञापनासूत्र- ४२ भाषाभेद गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२६४११, २२-२५४६२-६५). , " १. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र-४२ भाषाभेद गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र ४२ भाषाभेद गाधा हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि कति विहाणं भंते भासा अति भासा बोगडा अवोगडा चेव, गाथा-४. प्रज्ञापनासूत्र- ४२ भाषाभेद गाथा का बालावबोध, मा.गु., सं., गद्य, आदि: जनपद सत्यभाषा सत्य जे जिण; अंति: न जाइ अव्वो० ० प्रकटभाषा. २. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र १६ वचन सह वालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा १६ वचन, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि कति विहाणं भंते वयणे; अंति: चक्खवणे १५ परोक्खवयणे १६. י प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा १६ वचन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै १६ प्रकारना वचन कहै; अंति: परोक्ष० कार्य इणे कीधो १६. יי ३. पे. नाम. अनुयोगद्वारसूत्र -८ विभक्तिनवरस सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा ८ विभक्तिनवरस, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा. प+ग, आदि से कि त अट्टणामे अड; अति कलुणोय ८ पसंत्तोय ९. For Private and Personal Use Only अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा ८ विभक्तिनवरस का वालावबोध, मा.गु. गद्य, आदि: जिणे करी अर्थ प्रकट करीये अति: पंडितानां सुगममिति Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४४१ ११४६८० (+#) अनिट्कारिका सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११.५, ४४३९). सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अनिट् स्वरांतो भवति; अंति: ___(-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) सिद्धांतरनिका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, सं., गद्य, आदि: स्वरांतो धातुरनिट; अंति: (-). ११४६८३. संजोगद्वात्रिंशकायां व छींक शकुन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १५-१८४४२-४५). १.पे. नाम. संजोगद्वात्रिंशकायां, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: बुधि वचन वरदायनी सिधि करण; अंति: मान रचीयु संयोगबत्तीसी, गाथा-७६. २. पे. नाम. छींक शकुन विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. पहिं., प+ग., आदि: कहे पंडित छींक की बात; अंति: पाताले धन संपदा. ११४६८५ (+#) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ संयुक्त गाथा क्रमांक-२०६ अपूर्ण से ढाल-१० संयुक्त गाथा क्रमांक-२३४ अपूर्ण तक है.) ११४६९१ (#) औपदेशिक सवैया व कवित्त संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १६४३५-३८). १. पे. नाम, औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: काठहर घातहर त्रिणघर नाम, (पू.वि. सवैया-२१ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: सब के सहि में कविता कमावे; अंति: मेलीयो घरै धरमरे दौआर. ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ४आ, संपूर्ण. क. दयाल, पुहिं., पद्य, आदि: काहा मन मोह धरै उ दिन; अंति: कवि दलाल० चीती हाथ परमरै, गाथा-१. ११४६९४. रीषभजिन स्तुति व शत्रुजयतीर्थ रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ., (२४.५४११.५, ९४३१). १. पे. नाम. रीषभजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९०५, आश्विन कृष्ण, १०, ले.स्थल. राश, प्रले. पं. पुन्यसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्र उठी वंदु रीषभदेव; अंति: रिषभदास गुण गाय, गाथा-४. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ रास, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१ तक है.) ११४६९५. भक्तामर-भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३८). भक्तामर स्तोत्र-श्लोक ४८-पद्यानवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहि., पद्य, आदि: आदिपुरुष आदिसजिन आदिसुविध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ११४६९६. अजितजिन स्तवन, साधारणजिन पद व सीमंधरजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४४११, १३४३२). १.पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उलग अजित जिनंदनी; अंति: मोहन कहे० जिनजी अंतरजामी, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, म. भानविजय, पुहि., पद्य, आदि: तेरी मेरी अंखिया लग गई; अंति: प्रेमप्रकासर है हसिया, पद-५. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मोहन तज चालो सजनी व्रज; अंति: गिरबा लगावै री, पद-१. ११४६९७. (+#) प्रदेशी सज्झाय, अध्यात्म गीत व अनंतजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, २२४४५). १. पे. नाम, प्रदेशी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १० प्रश्न प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: श्रीसंखेसर प्रणमुं पास; अंति: मेरूविजयरंग गुण गाय, गाथा-३१. २. पे. नाम. अध्यात्म गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रेयांसजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांसजिन अंतरजामी; अंति: विचारे आनंदघन मत बासी रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धार तरवारनी सोहली; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण तक है.) ११४६९८. उपदेशपच्चीसी व उपदेशी कडा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:उपदेशी., दे., (२४.५४११, १३४४०). १.पे. नाम, उपदेशपच्चीसी, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. म. रायचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८२०, आदिः (-); अंति: रायचंद० वर्ते परमानंद के, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. उपदेशी कडा, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-स्त्री, पुहि., पद्य, आदि: ज्ञानी हु का ज्ञान जाय; अंति: एक त्रियाके प्रसंगते, पद-१. ११४६९९ (4) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १३४२३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) ११४७०० (-) कातंत्रव्याकरण व सरस्वतीदेवी छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १६x४०). १.पे. नाम. कातंत्रव्याकरण-अध्याय १ से अध्याय २ प्रथमपाद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कातंत्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं., प+ग., आदि: सिद्धो वर्णसमाम्नायः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम, सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रा., पद्य, आदि: सरसती सरसती तू जग; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ११४७०७. (+#) भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१०(१ से १०)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:श्रीभुवनदीपक., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, ६४३९). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११२ अपूर्ण से श्लोक-१३६ अपूर्ण तक है.) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११४७०८. पोषध विधि व चउथाव्रतउच्चारनी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२५४११, १३४४८). १. पे. नाम. पोषध विधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पोसहवि. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: थापनाचार्य प्रथम; अंति: तस्स० दुक्कडं. For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २.पे. नाम. चउथाव्रतउच्चारनी विधि, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इरियावही पडिक्कमी वांदणा; अंति: व्रत उच्चार विधि जाणवी. ११४७०९ जिनपालजिनरक्षित चौढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. पेमाजी (गुरु सा. संतोषाजी); गुपि. सा. संतोषाजी; सा. गंगाजी (गुरु सा. माया); सा. लाबाजी आर्याजी; सा. महासत्याजी (गुरु सा. उदाजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हंडी:जिनपालजिणरिष, दे., (२५४११, १८४३८-४२). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.ग., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: माहाविदेह जासी मोक्ष, ढाल-४, गाथा-६८. ११४७१० (+#) पार्श्वजिन स्तवनद्वय व २० विहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११, १५४३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. विमल, मा.ग., पद्य, आदि: वारि जाउ साहीबाउ वारी; अंति: विमल पर पगा दाव हो, गाथा-५. २. पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन समरी सरसती होकै भगवती; अंति: महिमा० तुम पाय सेवो, गाथा-१३. ३. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन-मातापितालंछनादिनामगर्भित, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: चरणकमल सदगुरु चित धरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ११४७१२. (#) अर्जुनजैत्रपताका यंत्र व २४ जिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४४२-४८). १. पे. नाम. अर्जुनजैत्रपताका यंत्र, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जयपताकायंत्र कल्प, संबद्ध, सं., प+ग., आदिः (-); अंति: वर्द्धते च दिने दिने, श्लोक-१८, (पू.वि. उत्तम मध्यम विजययंत्र वर्णन से अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, प. ९आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथमजितं प्रभु; अंति: सर्गहरणानि सुमंगलानि, श्लोक-३.. ११४७१५ (+#) पोसा पारणरी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:पोसा पारण विध., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११, ८x२१-२४). पौषधविधि-अष्टप्रहरी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरिया० तसउ० अनत्थउ०; अंति: सामायक पारणरी गाथा कइजे. ११४७१६. (+#) पार्श्वजिन स्तवन व सनत्कुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १७४३७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, प.१अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:सुगरचं. मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि; अंति: प्रभु पारसनाथ कीयै, गाथा-१५. २. पे. नाम. सनत्कुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सनतकु. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे; अंति: कहे गाया सुख पावे, गाथा-१८. ११४७२२. (+) स्थूलिभद्र गीत व श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १७४४९-५३). १. पे. नाम. स्थूलिभद्र गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: आणइ आंगणडइ प्री रमिउ रस; अंति: सहजसुंदर० जोए चउमासइ रे, गाथा-६. २.पे. नाम. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अपूर्वायं धनुर्विद्या भवत; अंति: कहइ ईसा पुरुष दीसइ बहु, (वि. राजप्रशंसा श्लोक, युधिष्ठीर श्लोक, जवराजर्षि गाथा, गंग कवि कवित, दोहा आदि.) ११४७३१ (+) मूत्रपरीक्षा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., अ., (२५४१२, ८x२८-३४). मनपरीक्षा, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधीशं; अंति: दोषो ध्रवे देयो विचक्षणे, श्लोक-२३, संपूर्ण. मूत्रपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-११ अपूर्ण का टबार्थ तक लिखा है.) ११४७३५ (१) तत्त्वसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२६४१२, १४४३०-३४). तत्त्व संग्रह, सं.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: बारस गुणा अरिहंता; अंति: (-), (पू.वि. ११ अंग नाम तक हैं.) ११४७३७. नेमराजिमती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२५.५४१२, ३४३४). नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रंगवीजय चढते रंगे, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से है.) ११४७३८. (+) भाव प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १३४३५). भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: आणंदभरिय नयणो आणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपर्ण तक है.) ११४७४०. नेमगोपी संवाद व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १४४३२). १.पे. नाम. नेमगोपी संवाद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, म. अमृतविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक ही वस वसे नीमीकुमर निज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-स्त्री, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-स्त्री कथला, श्राव. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्यकारण पाखीने दि; अंति: न करो केहनी तांतजी, गाथा-१३. ११४७४१. दृष्टांतरत्नावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., जैदे., (२६४१२, १८४५०-५३). दृष्टांतरत्नावली, क. अरिमल्ल, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चक्रवाकाष्टक श्लोक-८ अपूर्ण से हरिणाष्टक श्लोक-९ अपूर्ण तक है., वि. अष्टक के अंत में दिये गये अंक से प्रतीत होता है कि प्रतिलेखक को प्रारंभिक अंश की जगह हंसाष्टक से ही लिखना अभिष्ट है.) ११४७४६. अष्टाविंशति नक्षत्र शुकनावली, संपूर्ण, वि. १८८२, आषाढ़ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. युक्तसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शुकनाव., दे., (२६४१२, १३४३९-४२). २८ नक्षत्र शुकनावली, मा.गु., गद्य, आदि: अ१ भ२ कृ३ रो४ मृ५ आ६; अंति: धनलाभ सुख संतोष होई. ११४७४९ (#) सिद्धपद स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १०४२६). सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम पृच्छा करे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ११४७५०. सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४१२, १२४२९). सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीश्रीमंधरस्वामीना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-"पद अनुसारनी लबधि पुष्ट अनुसार" तक है.) ११४७५९. ६० संवत्सर फल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:प्र.स्वा., जैदे., (२५.५४११.५, ९४३७). ६० संवत्सर फल, सं., गद्य, आदि: अथ विस्तरित षष्टिवर्षाणां; अंति: (-), (पू.वि. शुक्ल संवत्सर वर्णन अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ११४७६० (#) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, १२ चक्रवर्ती व ९ वासुदेव नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, ७-१०४२७-३०). १.पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हरी किया ने वेल० छठीरा; अंति: जथा राजा तथा प्रजा, गाथा-९. २.पे. नाम. १२ चक्रवर्ती नाम, पृ.१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: भरत मोक्ष १ सगर मोक्ष २; अंति: ब्रह्मदत नरक १२ चक्री. ३. पे. नाम. ९ वासुदेव नाम, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: वासुदेव त्रिपृष्ट १; अंति: नरक ३गता १अवतारी छै. ११४७६४. (#) रोहिणीनी थुई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ७X१४-२८). रोहिणीतप स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: धीरने सोख्य संजोग, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ११४७७२. रहनेमिराजुल संवाद गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. श्राव. मोतिलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ११४२५). रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहनेमि अंबर विण; अंति: विवेकी नीत वंदन करो जो, गाथा-४०. ११४७७३. (#) प्राकृत छंदकोश, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ८४४०). प्राकृत छंदकोश, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जुयाइं इह छंदकोसम्मि, गाथा-८४, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., गाथा-६६ अपूर्ण से है.) ११४७७५ (4) कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४०). कयवन्ना चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: सासण नायक समरीये; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ११४७७७. (+#) श्रीपाल रास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५३-५२(१ से ५२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. द्विपाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-४ ढाल-११ गाथा-२२ अपूर्ण से गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) श्रीपाल रास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११४७७८. उपदेशमाला गाथा शकनज्ञान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १०४३२). उपदेशमाला गाथा शकुन-शकुनज्ञान विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलुं छए मींडे मुकीइ; अंति: ३५ मी गाथा जाणवी इम जोइजे. ११४७८३. तारातंबोलनगरी वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १८४३५). तारातंबोलनगरी वर्णन, मा.ग., गद्य, आदि: तिहांथी ३०० कोस आगरा तिहा; अंति: (-), (पू.वि. "तिहा देहरे की पीठ सोने की" पाठांश तक है.) ११४७८४. (+#) कल्पसूत्र व्याख्यान-महावीरजिननामकरणादि वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २+१(२)=३, प्र.वि. अंतिम पत्रांक-१ अनुपूरित पत्र है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १४४२२-२८). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. वर्द्धमान नाम स्थापन, रात्रिभोजन वर्णन व वर्षीदान वर्णन दिया गया है.) For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४७८६. (#) संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, २०४५९). संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, म. मान, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उन्माद-२ स्वामि मिलन सवैया अपूर्ण से उन्माद-३ परस्पर मिलन सवैया अपूर्ण तक है.) ११४७८७. (#) आदिजिन सुखड़ी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १६x४०). आदिजिन सुखडी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता देवी चरण; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३९ अपूर्ण __तक है.) ११४७९४. (+#) लघुसंग्रहणी का जंबूद्वीप विचार व ढाईद्वीप विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १६-१९४४९-५४). १.पे. नाम. लघुसंग्रहणी का जंबुद्विप विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___लघुसंग्रहणी-जंबूद्वीप विचार *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपनै विषै जेह; अंति: करी जंबूद्वीप संग्रहणी. २. पे. नाम. ढाईद्वीप विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सकल द्वीप असंख्याता छै ते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चूलागिरि पर्वत वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ११४७९५. प्रस्ताविक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५३, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ८, प्रले. मु. सोभागचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १९४५८). १. पे. नाम. ९ दंडकना भेद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: तत्र पहिला दंडक ८१ भेद; अंति: दंडकना भेद सर्व ८८६२५ थया. २. पे. नाम. कर्मप्रकृति विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. कर्मप्रकृति विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: ध्रुवबंधिनी प्रकृति ४७; अंति: सत्ता २८ प्रकृति जाणवी. ३. पे. नाम. जीवाभिगमसूत्रना ६२ बोलनो अल्पबहूत्व विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जीवाभिगमसूत्र-३ वेद अल्पबहुत्व विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: स्त्री वेदना ठिकाणा १४ ते; अंति: जोतषी पु०वेदी संख्यातगुणा. ४. पे. नाम.६२ बोल अल्पबहत्व विचार, प. २आ-३अ, संपूर्ण. ६२ बोल-अल्पबहत्व विचार, मा.ग., गद्य, आदि: सरवथोडा छपन अंतरदीपना छे; अंति: ६२ वनस्पति न० अनंतगुणा. ५. पे. नाम. महावीरजिनशासन ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, पृ. ३अ, संपूर्ण. महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्ष, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कडेमाणे कडे करवा मांड्यो; अंति: ए चोभंगी जाणवी सही ४. ६. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र के बोल संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जे जीवने एकवारनो कीधो; अंति: असंख्यातीवार उदय आवइ. ७. पे. नाम, यति आतापना बोल, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: यती आतापना लेतो हुइ काऊसग; अंति: अंतराय पडे छइ ते जाणवू. ८. पे. नाम. भगवतीसूत्र-बोल संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नारकि जे आहारना पुद्गल; अंति: कोई सिद्धमे जाइ उपजे नही. ११४७९६. (+) माया व लोभपरिहार सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १५४४२). १.पे. नाम. मायापरिहार सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, ग. पद्मसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्मसुंदर वारवारोरि, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ २. पे. नाम. लोभपरिहार सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीतराग वाणी कहइ छइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ११४७९७. (#) २४ जिनपरिवार स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२६). २४ जिनपरिवार स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भवियां भावे वंदिरे लाल; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ११४७९९ (#) राज बत्रीसी व आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, ., (२६४११.५, १५४५०). १. पे. नाम. राज बत्रीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चेतनबत्रीसी, मु. राज, मा.गु., पद्य, वि. १७३९, आदि: चेतन चेत रे अवसर मत; अंति: बोलै राजबत्तीसी, गाथा-३२. २. पे. नाम. आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. रूपवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: एकाकी आषाढमुनि सुमति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११४८१७. वज्रपंजर स्तोत्र व नवकार महामंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १४४३१-३६). १.पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २.पे. नाम. नवकार महामंत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. पद-२ पाठ-"नमो सिद्धाणं" तक है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरउ; अंति: (-), (पू.वि. पद-२ पाठ-"नमो सिद्धाणं" के बालावबोध अपूर्ण तक है.) ११४८१९ (+#) गौतमस्वामी सज्झाय द्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १२४३०-३३). १. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेसर केरो शीश; अंति: गौतम तुटै संपति कोड, गाथा-९. २.पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम आव्या वाद करेवा; अंति: गणे तिहां अविहड रंग, गाथा-७. ११४८२०. ज्योतिष विचार व ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १०-१३४२८-३४). १.पे. नाम. ज्योतिष विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु.,सं., प+ग., आदि: घातचंद्रथी अनुक्रमै एक एक; अंति: रेवती षट्स्वर्णका. २. पे. नाम. ज्योतिषसार, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-८ तक लिखा है.) ११४८२२. २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, ११४२८). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे नयर; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., बाहुजिन स्तवन, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११४८२३. (+) १५ तिथि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, १३४३१). १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम अविरति; अंति: (-), (पू.वि. चौथ तिथि स्तुति गाथा-२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४८२५. (+) विजयसेठविजयासेठानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १४४३९). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, म. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४८२६. (#) साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४११.५, ११४२२). साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु आगल नाचे सुरपत; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४८३०. ज्ञानपचवीसी, संतिकरं स्तोत्र, व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११.५, १४४४२). १.पे. नाम. ज्ञानपचवीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: उदै करण के हेत, गाथा-२५. २. पे. नाम, संतिकरं स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., __ श्लोक-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: आद्राद्रोदशस्त्रीणां; अंति: वृष्टिश्च प्रचरा भवेत्, श्लोक-२. ११४८३२. सिंहासनबत्रीसी कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-३(१ से ३)=४, दे., (२५.५४१२, १८४४०). सिंहासनबत्रीसी कथा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कथा-६ अपूर्ण से है व कथा-१६ तक लिखा है.) ११४८४१ कर्महिंडोल सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२, १४४४०). १. पे. नाम. कर्महिंडोल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कर्महींडोल सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: करम हीदोलना झुलत; अंति: भवीजन पूरो मननी आस, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: जगत सुखनो सुपनानी बाजी रे; अंति: एकलो नर भूत, गाथा-५. ११४८४२. (+) प्रज्ञापनासूत्र व पाप परिमाण विचार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२, १९४५४-५८). १.पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र-शीलविषयक चयनितगाथा, पृ.१आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-चयनितगाथा, प्रा., पद्य, आदि: जेन्हवणं जिणाणं सुद्धी; अंति: तं नीरं सीयलं चेव, गाथा-१. २. पे. नाम. पाप परिमाण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. पापपरिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अनंते सत्वे विराधि एक भूत; अंति: पाप इम पाप संज्ञा कही. ३. पे. नाम. ३२ योगसंग्रह विस्तार, पृ. १आ, संपूर्ण. ३२ योग विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आलोयण गुरु आगल आपणौ पाप; अंति: तो स्वर्गादिक सुख पावै. ४. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तव सह स्वोपज्ञ वृत्ति, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तव, संबद्ध, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परमिट्ठि नमुक्कारं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) नमस्कार महामंत्र स्तव-स्वोपज्ञ वत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १४९७, आदि: जिनं विश्वत्रयी; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १९४८४५. (+) जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४-३ (१ से ३) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११.५, ६X३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि (-); अति (-) (पू.वि. गाथा २९ अपूर्ण से गाथा ४० अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. प्रहेलिका दोहा-कागल, पृ. ८आ, , संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि पदम अक्षर विण सह ने भावे; अति सो सजन मोकलयो वहेलो, गाथा-१. ३. पे. नाम, मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ. पुडि प्रा. मा. गु. सं., प+ग, आदि (-); अति: (-). " ११४८४६. (+०) अष्टादस पापधानक वर्जन सज्झाय, प्रहेलिका दोहा व मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९१९ पीष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. ३, प्रले. मु. हीरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५x१२, १०-१३X२६-३४). १. पे. नाम. अष्टादस पापथानक वर्जन सज्झाय, पृ. ८अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पयसेवक वाचक इम आखै जी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११, (पू.वि. स्थानक - १८ गाथा-४ अपूर्ण से है.) ४४९ , ११४८४७. (+) ४२ दोष गोचरी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. नारदपुर, 1 (२५X१२, प्रले. मु. लीखमीचंद (गुरु मु. भैरुदास); गुपि. मु. भैरुदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : ४२ दोषश्री., संशोधित., जैदे., । १८४५२). ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: आहा कम्म १ उदेसिय; अंति: ११ लिख १२ सजाय १३, गाथा-७. ४२ गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० साधनै काजै आरंभ करी; अंति: सिज्झायनी भूमिका हुई १३. १९४८४८. (+) सीमंधरजिन स्तवन व नमस्कामहामंत्र छंद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७) = १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सीमरी०स., संशोधित., जैदे., (२५x१२, ९३९). , १. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ८अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पूरि आस्या मनतणी, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा- ११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र छंद, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सुंदर सी रसाल, गाथा - १३. ११४८४९. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-५ (१ से ५ ) = ४, प्र. वि. हुंडी : बोलना पाना., दे., (२५X१२, १५X३९-४२). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., बोल- ३२ से बोल -७२ अपूर्ण तक है.) १९४८५० (+) ह्रींकारकल्प विधि, मायाबीज स्तव व मायाबीज कल्प, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१)-३, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१२, ११३३-३८). १. .पे. नाम. ह्रींकारकल्प विधि, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ह्रीँकार कल्प विधि, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: तापं ४ पीते स्तंभ ५, (पू.वि. संकल्प पाठ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, मायाबीज स्तव, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मायाबीज स्तुति, सं., पद्य, आदि ॐनमः सवर्णपार्श्व अंतिः पदं लभते क्रमात्सः, श्लोक १६. ३. पे. नाम. मायाबीज कल्प, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. हीँकार कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: मायाबीजबृहत्कल्पात अंतिः सस्वप्नं वान्छितं लभेत् श्लोक-३० ११४८५३. (+०) अकबर फरमानद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४x१२, ४०X३१). १. पे. नाम. अकबर फरमान का अनुवाद. पू. १अ १आ, संपूर्ण Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अकबर फरमान-सुबेदारवर्ग-अनुवाद, देवीदास मुंशी, पुहि., गद्य, आदि: सुबे मालवा अकबराबाद लाहोर; अंति: रवि उल अबल सने २७ जुलसि. २. पे. नाम. अकबर फरमान का अनुवाद, पृ. १आ, संपूर्ण. अकबर फरमान-जयचंदसूरि-अनुवाद, भीमा लकम, पुहिं., गद्य, आदि: सुबे सुलतान के बडे बडे; अंति: सन १९१८ मे साफ लिखा हे. ११४८५४. आषाढभूतिमुनि चोढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, २२४६२). आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परिसोह बावीसमो; अंति: ऋषरायचंदजी कहै आम हो, ढाल-५. ११४८५५. (+) चार शरणा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १८४३७). ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो शरणो अरिहंत; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"समीयामण गुतिया वायगु" तक है.) ११४८५७. चोंतीस अतिशय विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:चोती०प०., दे., (२५४११, १९x४२). ३४ अतिशय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलई अतिसय के समं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ३५ वाणी गुण वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ११४८५८. (+) मोक्षमार्ग वचनिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १३४३५). मोक्षमार्ग वचनिका, मा.गु., गद्य, आदि: तिहा प्रथम जीव अनादि; अंति: (-), (पृ.वि. "ज्ञान उपादेय " वर्णन अपूर्ण तक है.) ११४८५९ (+) औपदेशिक हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ५४३२). औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहेयो रे पंडित ते; अंति: जस० सुख लहस्य, गाथा-१४. औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देखीइं जाणीइं ते; अंति: नयविजय० कही हरियालीय मनह. ११४८६०. मायाबीज अक्षर कल्प, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४३९). मायाबीज कल्पवार्ता, आ. जिनप्रभसूरि, मा.गु., प+ग., आदि: अजुआलै पखी पूर्णा; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र __ है., सूरिमंत्र का एक लाख बार जाप करने की विधि अपूर्ण तक है.) ११४८६१ (#) गौतमस्वामी गहुंली, औपदेशिक सज्झाय व सिद्धचक्र स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४३०). १. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुंली, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चाहती अमृत शर्म, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कां नवि चिंते हो चित; अंति: लबधि० सूख पामे अपार, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: एक सुरंगी उतरीओ आगमथी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११४८६३. अजितसंति, संपूर्ण, वि. १८९७, आश्विन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हंडी:अजि०. मास व पक्ष अस्पष्ट है., जैदे., (२४.५४१२,११४३१). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: अजयसंतिनाहस्स, गाथा-४०. ११४८६६. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२, ५४४६). औपदेशिक पद, म. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु नाम की निज; अंति: गई भ्रमना मीटी, गाथा-४. ११४८६८. (+) आवश्यकसूत्र की पदसंपदालघुगुरु अक्षरादि संख्या, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १७X२९). For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवश्यकसूत्र-पदसंपदालघुगुरु अक्षरादि संख्या, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि सूत्र सूत्रनाम पद संख्या अति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अधिकार १२ तक है.) ', ११४८६९. (१) जीवोत्पत्तिभव्यजीव बोधिक स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १२X३८). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि : उतपति जो जो आपणी मन; अंति: रंगे इम कहे श्रीसार, गाथा - ७२. ११४८७१. पंचोपचार पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५X११.५, ३९X२४). पंचोपचारपूजा विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: ॐ भूरसी भूत धात्री, अंति: पुनरागमनाय स्वस्थानं गच्छ. ११४८७२ (+) संबोहसत्तरि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ ( २ ) = ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १३x२९-३५). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य, आदि नमिऊण तिलोअगुरु; अति जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा- १२५, (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण से ४७ अपूर्ण तक नहीं है.) , ४५१ ११४८७६. (+) षोडसविद्यादेवी पूजन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२६११.५ १२४४४). १६ विद्यादेवी पूजा, मा.गु. सं., गद्य, आदि आ मंत्र पदैर्विशिष्ट महिम, अंति (-), (पू.वि. मानवीदेवी पूजा अपूर्ण तक है.) ११४८८० (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी : ऋषमंडल., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ... (२४.५x११.५, १४४३७). ऋषिमंडल स्तोत्र- वृहद् आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक - ५५, ग्रं. १५०. 3 ११४८८२. पड्शीतिनव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-१४ (१ से १४)-१, दे. (२४४११.५, १०२७). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., गद्य, आदि: (-); अंति : देवेंद्रसूरि लिख्यो, (पू. वि. जघन्य अनंतवर्ग अपूर्ण से है.) ११४८८६. (+#) रहनेमजी रो चोढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी रहेनेमी., रहेनेमे., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५x१२, १६X३७). रथनेमिराजिमती पंचडालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य वि. १८५४, आदि अरिहंत सिद्धनें आयरी, अंति रायचंद ० थारी आतमा, ढाल -५. १९४८८८. नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२५x११.५, १४४३३). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुन्नं पावा, अंति (-), (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण तक है.) ११४८९० (4) सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x१२, " १३X२८). सिद्धचक्र स्तुति, मु. मुक्तिसौभाग्य, सं., पद्य, आदि: अर्हन्मूले प्रकांडो अति मुक्तिसौभाग्यबीज, श्लोक ८. १९४८९९. (+) ॐकार ह्रीँकारमंत्र साधना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५.५४११.५. १४४४७). " " जैन मंत्र संग्रह - सामान्य", प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. ॐ कार मंत्र विधि अपूर्ण से ह्रींकार मंत्र विधि अपूर्ण तक है.) ११४८९२. (+) मौनएकादशीपर्व गणनु, संपूर्ण वि. १९०४ आषाढ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, राजपुरा, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२४.५४१२, १८४३४-४०). " मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., गद्य, आदि श्रीमहायश सर्वज्ञाय; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः . For Private and Personal Use Only ११४८९४. (+) सम्यक्त्व सुरूपकुल, संपूर्ण, वि. १८८१, वैशाख शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२५.५X११.५, ९४३४-३८). " सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: होउ सम्मत्त संपत्ती, गाथा - २५. Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४८९५ (+#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१० (१ से १० ) = ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी : दश., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५x१२, १२x२८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ५ गाथा - २१ अपूर्ण से ७८ अपूर्ण तक है.) ११४८९७ (५) पद्मावती स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११.५, १२X४०). १. पे नाम गाथा संग्रह जैन, पृ. १अ, संपूर्ण. . पद्मावतीदेवी स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनशासन सामिनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १४ अपूर्ण तक लिखा है.) ११४८९८. गाथा संग्रह जैन, विविध जीव आयुष्य विचार व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पे. ३, जैदे., (२५x१२, ५-१४X६-५०). गाथा संग्रह जैन, प्रा., मा.गु.से., पद्य, आदि: तक्रं तैलं च दुग्धं फल दल, अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे नाम. विविध जीव आयुष्य विचार, पृ. १आ, संपूर्ण विविध जीव आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि मनुष्यनुं आउषु वर्ष १२० अंतिः सिंहनुं वर्ष १०० नं. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: समवसरणे मृत्यु जन्म; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ९ तक लिखा है.) ११४८९९ (#) औपदेशिक सज्झाय- परलोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५x११.५, ११४२५). औपदेशिक सज्झाय- परलोक, मा.गु., पद्य, आदि मानव तु परलोक रो कर साधन; अति नही पामसो अहो नर वेह रतन, गाथा- १०. " ११४९००. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४३-४१(१ से ४०, ४२) = २, प्र. वि. हुंडी: उत्त० कथा. दे., (२५.५X११.५, १७x४९). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., ब्राह्मणी कथा अपूर्ण से अध्ययन-८ कथा-१ अपूर्ण तक है.) ११४९०१. (+४) फाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, ज्योतिष श्लोक व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, वे (२८x१२, १५x२२-४०). . पे नाम. फाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. १अ संपूर्ण. आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य वि. १७८२, आदि: नत्वा पार्श्वजिनेशाय अति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. पाठ- पुष्यमरणिशिशुमधुका देत्याज्यं प्रावृषितंडू" तक लिखा है.) २. पे नाम ज्योतिष लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मस्तक हस्त रवी कहें मंदो; अंति: हस्त केतो को बंधावे. ३. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- आत्मबोधगर्भित, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि में तो नजरें रहेवु जी; अंति: उदयरतन० जय श्रीमहावीर गाथा ६. ११४९०२. (+) महावीरजी की निसाणी, अपूर्ण, वि. १९०३ भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३- २ (१ से २) = १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२४.५x१२, १६४३२). " महावीरजिन निसाणी, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति मांगे मनवंछित पुरंदा है, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा- २३ अपूर्ण से है.) ११४९११. (#) औपदेशिक श्लोक व दानशीलतपभावना प्रभाती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे. (२४.५x११.५ ९४३६). " For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४५३ १. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: बभुक्षितः किं न करोति पाप; अंति: गंगदत्तः पुनरेति कूपं, श्लोक-१. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण.. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: ए छे मुगतिदातार, गाथा-६. ११४९१२. तीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१२, १३४४४). तीर्थमाला स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: सरसति भगवति माता जे जगमां; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) ११४९२० (+-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२४.५४१२, १५४४१). औपदेशिक सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: वभीयणइ रीषभइ पडकमीय अरे; अंति: रीष रायचंदजी कह० पडकमीय, गाथा-१८. ११४९२१. (#) विचारषट्, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४३३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) ११४९२६. प्रद्युम्नकुमार लावणीद्वय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:लावणी., दे., (२४.५४१२, १६४३५). १. पे. नाम. प्रद्युम्नकुंवर लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. खूबचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९६४, आदिः ये प्रजनकंवर कि; अंति: नंदलालगुरु बताया जी, गाथा-२२. २. पे. नाम. प्रद्युम्नकुमार लावणी, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रा., पद्य, आदि: प्रजनकुंवर कहे सांभलो सुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ११४९३०. इंद्रकृत नंदापुष्करणीसिद्धायतनसुधर्मासभा जिनदाढादि पूजन बोल विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, अन्य. सा. वखतबाई महासती, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १७४३९). इंद्रकृत नंदापुष्करणीसिद्धायतनसुधर्मासभा जिनदाढादि पूजन बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: थी माडीने बलीपीठ लगे, (पू.वि. चैत्यथुभ बोल अपूर्ण से है.) ११४९३१. सूतक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२४.५४११.५, १५४४१). सूतक विचार, पुहिं., गद्य, आदि: जो व्यवहारभाष्य वृत्ति; अंति: देवपूजा नित्यकर्मा मरगणै. ११४९३२. संतनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१,प्र.वि. हुंडी:संतनाथ., दे., (२५.५४१२,११४४८). शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनेसर जाय विराज्या मोखां, गाथा-२६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ११४९३४. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४२९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) ११४९३५. औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उपदेशी., दे., (२५.५४१२, १२४३७). औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: जीणवर दीयो इसो उपदेस; अंति: (-), (प.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ११४९३६. आठ प्रवचन सुमतगुपतरी चोपी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. हुंडी:पांचसुमत., दे., (२५.५४१२,१६x४९). For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टप्रवचन माता चौपाई. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि (-); अंति: सुणताइ जेजेकार हो, गाथा - १९, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा- २ अपूर्ण से है.) "" १९४९३७ मुनिपति चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. हुंडी खंडित एवं अस्पष्ट है.. दे.. (२५X१२.५, १९x४२). मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु, पद्म, वि. १७२५, आदि शंखेसर सुखकरू नमतां अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल १ गाथा १२ अपूर्ण तक है.) 1 " ११४९३८ (+) मौनएकादशी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें... दे., (२५X१२, १४४४२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंति: (-), (पू.वि. पाठ- "केवलज्ञानमवाप्यं समोक्षं शप्तः" तक है.) ११४९३९ (+) चैत्रीपूनम की कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : चैत्रीपुनिम की कथा ., पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२५.५४१२, १०४२९). चैत्री पूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य वि. १८६९, आदि तीर्थराजं नमस्कृत्य अंति: (-) (पू.वि. पुंडरीक गणधर के सौराष्ट्र विहार वर्णन अपूर्ण तक है.) . " १९४९४१. (+) आलोयणाविचार दोहा, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. हुंडी: उपदेशीदू, संशोधित.. दे. (२६४१२, १२४३८). आलोयणा विचार दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध श्रीपरमातमा, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ११४९४२. (#) गुरुगुण गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५x१२, ११x२५). गुरुगुण हुंली, पं. विवेकधर्म, मा.गु., पद्य, आदि आज कलपतरु फल्यी मुझ; अंतिः विवेकधर्म० सुखकारा रे, गाथा - १२. ११४९४३. (f) दस प्रत्याख्याण व दुविहारएकासणा पच्चक्खाण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, १४X३७). १. पे. नाम. दस प्रत्याख्यान, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. . प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि (-); अति वृत्तियागारेण वोसिरइ (पू.वि. "आंबिल एकासणा पच्चक्खाण" अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. दुविहारएकासणा पच्चक्खाण, पृ. २आ, संपूर्ण. आवश्यक सूत्र - हिस्सा एकासणा-ये आसणानुं पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, आदि उणए सूरे नमुक्कार; अंतिः हिवत्ति यागारेणं वोसिरामि. ११४९४७. धर्मजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पार्श्व भाग में अज्ञात संस्कृत ग्रंथ की पुष्पिका की मात्र दो पंक्तियाँ हैं., वे. (२६४१२, ८४१५-४१). धर्मजिन पद, मु. जयपद्मविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कोण विध नाथ निकट; अंति: पद्मजय० फल पाउ, गाथा-३. ११४९४८. (f) उपदेशरत्नमाला-बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६x१२, ५६x२१-२४). उपदेशरत्नमाला-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: रागद्वेष न करइ, (वि. प्रारंभिक बोल के पाठ आंशिक रूप से खंडित है.) ११४९४९. दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५X११.५, २०-२२X४६-६०). दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर कुं माणिक्क मइ अवर; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-५३ अपूर्ण तक है.) ११४९५०. (#) पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६१२, १२X३६). मूल For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४५५ पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-७ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११४९५१. देवजशाजिन स्तवन, अजितवीर्यजिन स्तवन व विहरमानजिन कलश, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-३२(१ से ३२)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १०४३६). १.पे. नाम. देवजशाजिन स्तवन, प. ३३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. देवयशाजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मामृत सुखकार लाल रे, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अजितवीर्यजिन स्तवन, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण.. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अजित वीर्य जिन विचरता रे; अंति: परम महोदय युक्ति रे, गाथा-९. ३. पे. नाम, विहरमानजिन कलश, पृ. ३३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो वंदो रे जिनवर व; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११४९५२.(#) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, ले.स्थल. पालनपुर, प्र.वि. जिन प्रसादात्., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ९४३५). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पूजीइ विजयलक्ष्मी शुभ जेह, पूजा-५, (पू.वि. पूजा-५ गाथा-१ अपूर्ण से है.) ११४९५३. थूलिभद्र सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ९, जैदे., (२६४१२, २५४६४-६९). १. पे. नाम. थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लीला लखमी घणी जी, गाथा-१७, __(पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धन्ना सालिभद्र; अंति: लब्धिविजय कहे रमणि देह रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम, जीवकाय सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर विहारी आतम माहरा; अंति: बलिहारी नाम तुमारे, गाथा-८. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. ५अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन जो तुंग्यान; अंति: अंतरदृष्टि प्रकाशी, गाथा-८. ५. पे. नाम. शांतिजिन गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भए प्रभुध्यान; अंति: जीत लीओ मेदान मे, गाथा-६. ६.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: पांचे घोरो रथ एक; अंति: राज विनय जीउ पाया, गाथा-५. ७. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय- अध्ययन ५, पृ. ५आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन ५ सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुझता आहारनो खप करो; अंति: वृधवीजय पामयो सार, गाथा-१३. ८. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय- अध्ययन ६, पृ. ५आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन ६-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गणधर धरम इम उपदेशे; अंति: वृद्धिविजय लहो तेह रे, गाथा-७. ९.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउडा जिनचरणानी सेवा; अंति: मोहन अनुभव मांगे, गाथा-६. ११४९५४. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६१२, १२४३६). " कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि (-); अति (-), (पू.वि. श्लोक ७ अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४९५५. (#) स्तुति, चैत्यवंदन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३ (१ से ३) = २, कुल पे. ६, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१२, १३४३७-४०). "" १. पे. नाम. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. ४अ अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नमुं साधु सवे निसदीस, गाथा-२, (पू. वि. गाथा - १ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. ३. पे. नाम. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, पू. ४आ, संपूर्ण, कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: तुसे देवी अंबाई, गाथा-४. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहेला जिनवर विहरमान; अंति: नय वंदे करजोडि, गाथा-८. ४. पे. नाम. गौतमगणधर सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी अष्टक, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि पहिलो गणधर वीरनो रे; अंति धीर नमे निसवीस, गाथा-८. ५. पे. नाम. रत्नसागर सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. सोहमस्वामी, मा.गु., पद्य, आदि: नयरि रतनपुरि जाणीयें; अंति: सोमविमलसूरि इम भणइ ए, गाथा-७. ६. पे. नाम बाहुबली सज्झाव, पृ. ५१-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. . मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबली सुकल ध्यानें; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११४९६०. दीपागरगुरुगुण भास व जीवणदासगुरुगुण गीत, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२५.५x११, १३४३३). १. पे. नाम. दीपागरगुरुगुण भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सांमण वीनवुं मांगु; अंति: श्रावक बहोत हजारजी, गाथा - १०. २. पे नाम. जीवणदासगुरुगुण गीत, पू. १ आ. संपूर्ण. जीवणगुरुगुण गीत, मु. सहसा, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि सरसति देवीजी बीनव गणपति: अंति: सहसोजी० गायो गीत रसाल, गाथा-७. ११४९६८. (+) नवकारनो तवन व चोवीस तीर्थकरा रो तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०-१९(१ से १९) = १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५४११.५, १४४२८-३२). " १. पे. नाम. नवकारनो तवन, पृ. २०अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. नवकार महामंत्र स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम भाष गया जिणराह्यो, गाथा-११, (पू. वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चोवीस तीर्थकरा से तवन, पृ. २०अ २०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अति (-), (पू.वि. गाथा - १५ अपूर्ण तक है.) "" १९४९६९ (+) ज्योतिष संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५-४ (१ से ४) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. संशोधित.. जैदे. (२५.५४११.५, १३४३२). ज्योतिष*, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "आगली पिडा थासै पाठ से जैनधर्मनां प्रसाद करावसै" पाठ तक है.) (+) गुणरत्नाकर छंद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) -१, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र. वि. हुंडी : गुणरत्नाकर छंद. संशोधित, जैवे (२५.५४१२, १२४४७-५०). For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४५७ गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-१ गाथा-११ अपूर्ण से ३१ अपूर्ण तक है.) ११४९७८. (+) सिद्धाचलतीर्थ स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. मूलि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२,१३४३७). १. पे. नाम. सिद्धाचलतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देसमांहि सोरठ देस जांणो; अंति: कीनो ए जिनवरजी सरीखो. गाथा-७. २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: आज आंगणे मोतिडे मेहवु; अंति: गिरपद्मविजय पुण्ये पायो, गाथा-८. ११४९९३. (+) ग्रामनगरराजामंत्रीसभादि विविध पदार्थ वर्णन विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६x४२-४६). ग्रामनगरराजामंत्रीसभादि विविध पदार्थ वर्णन विचार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पदार्थ-३ ८४ चौटा वर्णन अपूर्ण से पदार्थ-१९ वस्त्र वर्णन अपूर्ण तक है.) ११४९९४. (+) पार्श्वजिन प्रतिष्ठा स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:प्र.स्त., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३८). पार्श्वजिन प्रतिष्ठा स्तवन-कुज्जरावालपंजाब तीर्थमंडन, मु. मोहनलाल, मा.गु., पद्य, वि. १९२१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-२३ अपूर्ण से ढाल-५ संयुक्त गाथा क्रमांक-६४ तक है.) ११४९९५ (#) कथा कल्लोल सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १४४४७). कथा कल्लोल, सं., पद्य, आदि: पंचांधा गजमीक्षणार्थमगमत्; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ तक है.) कथा कल्लोल-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: पांच आंधा एक नगरमांहि; अंति: (-). ११४९९६. शाश्वतसिद्धायप्रतिमासंख्या स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२४.५४११, ९४३३). शाश्वतजिनप्रतिमासंख्या स्तवन, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विमल० मुझ जिनजी करउ पसाय, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से है.) ११४९९७. (+#) पंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १४४४०). पंचमीतिथि सज्झाय, म. देवकलोल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनचउवीसि प्रणमीइ; अंति: पंडित देवकलोल, गाथा-२४. ११४९९९. भुवनदीपक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३७-४०). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२४ अपूर्ण से ८० अपूर्ण तक V. ११५००९ प्रश्नचूडामणि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-६(१ से ६)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१२, १२४२७-३२). प्रश्नचूडामणि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. चिंता प्रकरण श्लोक-७ अपूर्ण से ग्रामभंग प्रकरण श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ११५०१३. (+#) सुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, ५, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४३३-३८). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ महाउत्तम थानक लाभ; अंति: सिद्ध हुवे सुकन महाउत्तम. For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५०२६. वीसस्थानक रास, अपूर्ण, वि. १७६३, वैशाख शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १७७-१७६(१ से १७६)=१, ले.स्थल. राजनगर, लिख. ग. वृद्धिविजय (गुरु ग. नरविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. नरविजय (गुरु उपा. विनयविजय', तपागच्छ); उपा. विनयविजय (गुरु उपा. कीर्तिविजय *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:थानक. प्रत के अंत में "पं.लालविजयगणि समरथ० संवत १८५२ चै.शु. भाभेरनगरे अडाणी लीधी छे आग्लयो पत्र ८५ आप्यो छे सेसराख्यो छे" ऐसा लिखा हुआ है., कुल ग्रं.५०२५, जैदे., (२५.५४१२, ७४३३). २० स्थानक विचारसार रास, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका है.) ११५०२९ (+) सुभाषित श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११,१४४३८-४५). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से २५ तक है.) ११५०३०. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४११.५, ११४३१). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणंदा स्वामी ऋषभ; अंति: (-), (पू.वि. अजितजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ११५०३१ (+) निरागार-आगार पच्चक्खाण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३४-४०). निरागार-आगार पच्चक्खाण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: वेसण विरहाली आम्लक सैधव; अंति: (-), (पू.वि. चित्त शुद्धि वर्णन अपूर्ण तक है.) ११५०३३. पंचम पर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५४११.५, ८x३५). पंचमीतिथिपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्री गुरु चरण नमी करी रे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१२ तक है.) ११५०३४. (#) हस्तकांड, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x११.५, १३४५८). हस्तकांड, मु. पार्श्वचंद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., चिंता प्रकरण श्लोक-४१ अपूर्ण से कांड प्रकरण श्लोक-८० तक है.) ११५०३६. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७९६, वैशाख शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, ले.स्थल. पहूनापत्तन, पठ. मु. आनंदचंद्र (गुरु मु. माणिकचंद्र, विजयगच्छ); प्रले. मु. माणिकचंद्र (गुरु पं. हेमराज ऋषि, विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कन्टीका., जैदे., (२५४११.५, १६४५१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-४३ से है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: विशोध्यं विचक्षणैः. ११५०३९. अविनीत शिष्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, १४४५०). अविनीत शिष्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरांकानै संजम लीनो पिण; अंति: गुरांरी सदा करे नरसी, गाथा-२०. ११५०४०. आलोचनासूत्र-देवसिप्रतिक्रमणगत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४२). आलोचनासूत्र-देवसिप्रतिक्रमणगत, हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह देवसी; अंति: दिवस नै विषै तस मिछामि०. ११५०४१. खंदकजी सज्झाय व मृगापत्र चौढालिया, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १३४३९). १. पे. नाम. खंदकजी सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. खंधकमुनि चौढालियो, मु. संतोषराय, मा.गु., पद्य, वि. १८०५, आदिः (-); अंति: पायके रतन निरभौ पाये के, ढाल-४, (पू.वि. अंतिम ढाल की गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मृगापुत्र चौढालिया, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४५९ मु. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: प्रथम नमो अरहंत को हजै सत; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११५०४२. (+) श्रावक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१९.५, १४४३९). श्रावकसंक्षिप्तअतिचार , संबद्ध, प्रा.,मा.ग., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थूल-१ से स्थूल-७ अपूर्ण तक है.) ११५०४३ (#) शांतिजिन स्तवन, कमलावतीसती सज्झाय व पार्श्वनाथजी को छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११.५, १२-१६४३५-४०). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. शांतिजिन स्तव-जन्माभिषेक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हवइ विजय सिरि संति करे, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, कमलावतीसती सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. __ मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: कहइ रांणी कमलावती सुणि; अंति: हंसला रे सुगणनिधान, गाथा-९. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजी को छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, प्रा.,फा., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: तिलकदि गर्नदी दम्दर्दनी, गाथा-६. ११५०४४. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय व शंखराजा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३-५२(१ से ५२)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४३८). १. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ५३अ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वाटजोवंती निशदिने हो; अंति: लक्ष्मीवल्लभ० करु प्रणाम, गाथा-९. २.पे. नाम, शंखराजा सज्झाय, पृ.५३अ-५३आ, संपूर्ण. शंखराजा सज्झाय-अहंकारपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: मथुरापुर पति शंख नरेसर; अंति: जे सुध संझम पालै, गाथा-१३. ११५०४५. (+) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, अन्य.सा. तेजुबाई महासती (गुरु सा. हेमकुवरबाई महासती); दत्त. सा. जेठीबाई; गृही.सा. लधाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १२४३१-३५). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: बोल होय तिवारे मोक्ष जाइ, (पू.वि. तिर्यंच भेद वर्णन अपूर्ण से है.) ११५०४७. (+) अनिट्कारिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६२८, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. गुणविमल गणि; पठ. मु. रत्नहर्ष (गुरु मु. कीर्तिहर्ष, तपागच्छ); गुपि. मु. कीर्तिहर्ष (परंपरा गच्छाधिपति सेनसूरि *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (११३६) यादृशं चरित्रं दृष्टं मया, जैदे., (२५.५४११, ९४३१-३५). सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अनिट् स्वरांतो भवति; अंति: _ विद्ध्यनिट्स्वरान्, श्लोक-११, (वि. १६२८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८) सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका की अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, आदि: जैनेंद्रव्याकरणस्येयं; अंति: ___ बोधाय कृता स्वयम अवचूरि, (वि. १६२८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, रविवार) ११५०६०.(#) औपदेशिक सज्झाय व जंबूकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १७४३९). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, म. जेतसी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: कहै वभीषण सुण द्वो रावण; अंति: जेतसी० सांभलजो सहु नरनारी, गाथा-१७. २. पे. नाम. जंबूकुमार सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. कुशलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: राजग्री नगरी रोवासी घर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक ११५०६१ पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३४११.५, १२४३०). For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन- वाराणसी, मा.गु., पद्य, आदि गोयम गणहर प्रणमी पाय सरसत; अंति (-), (पू. वि. गाधा १७ अपूर्ण तक है.) ११५०६२. (+#) शंखेश्वर छंद व औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, ले. स्थल. राधनपुर, अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२३.५x११.५, १३x४१). १. पे नाम औपदेशिक सवैया व्याज उधार, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: एकम सवाडा ने कार्जे मुलतो; अति: उधारो से गयानो भाई. २. पे नाम औपदेशिक सवैया- ज्ञानादि वृद्धि. पू. २अ संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि ज्ञान वधें नर पंडीत संगत; अंति: गोवेद गोवेद के गुण गाए, गाथा-२. ३. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि नृप मार चली अपनें पीउपें; अंतिः बास की सोस कहा करहूं, पद- १. ४. पे. नाम, शंखेश्वर छंद, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: पास शंखेसरो आप तुठा, गाथा-७. ११५०६३. शांतिजिन स्तवन व द्रौपदीसती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५x१२, १४X३३). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि सांतिजिणेसर सांभलो रे, अंतिः साहेब माल मुंनी गुणगाय, गाथा- १३. २. पे. नाम. द्रौपदीसती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आव्या नारदमुनीवर पांडव, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ११५०६७ (#) भुवनेश्वरी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १(१ ) = १, ले. स्थल. मधुमतिबंदिर, प्र. वि. मूल पाठ का अंशखंड है. दे. (२६११.५, १४४३२). भुवनेश्वरी छंद, मु. गुणानंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: शिश्रु कहें जय जय जगदिसरी, गाथा-३५, (पू.वि. गाथा - २१ अपूर्ण से है.) ११५०७२ (#) दोहा संग्रह व जगन्नाथपुरी गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२१ (१ से २१) = १, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x१२.५, १२x२३-२५). १. पे. नाम. दोहा संग्रह - जैनधार्मिक, पृ. २२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नही ते परघर काम करंत, (पू.वि. अरिहंत आराधना दोहा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जगन्नाथपुरी गीत, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. (२६.५X१२, १३X३४-३७). १. पे. नाम. ९ वाड सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तो भले विराजे जी; अंति: दासी नाचे गाये दास कबीरा, गाथा-११. ११५०७५. (+) ९ वाड सज्झाय व रेवतीश्राविका सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पसु पंडकतणी रे; अंति: उणजेर ब्रह्मचारी जगी शकै, गाथा - ९. २. पे. नाम. रेवती सज्झाय, पृ. १९आ, संपूर्ण. रेवतीविका सज्झाय, मु. वल्लभविजय, मा.गु., पद्य, आदि सोवन सेंहासरण रेवती बैठी अति उबरें दानथी जयजय कार रें., गाथा - १०. युक्त ११५०८१ (+४) महावीरजिन स्तवन व मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ३५-३४ (१ से ३४ ) = १, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६.५४११.५, १३४४१). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३५अ - ३५आ, संपूर्ण. महावीरजिनविनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि वीर सुणो मोरी वीनती अंति समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा - १८. २. पे. नाम मंत्र संग्रह, पू. ३५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४६१ मंत्र संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११५०८३. (+-) औपदेशिक दोहा संग्रह व अमरचंद महाराज सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२५४१२, १६४४४). १. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.. म. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,मा.ग., पद्य, आदि: तादिन फिर वह झांकी; अंति: अहोगो अनुभव पयध्यान, गाथा-५. २. पे. नाम, अमरचंद महाराज सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. श्राव. कनैयालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९२१, आदि: दो कर जोडि प्रणमोनी सला; अंति: नाम कनईया लालौरे, गाथा-४८. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: देहे हंसै सुन हो नर मुरख; अंति: चार कषाय को उत्तम जालै, गाथा-५. ४. पे. नाम. बारमासा भावार्थ चंद्रायणा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण... औपदेशिक बारमासा, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: चेत कहे तुं चेतन; अंति: प्रकाश किया चंद्रायणा, गाथा-१३. ११५०८८. (+) विवाहशोधनउपाय, संपूर्ण, वि. १९४६, आश्विन कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. विदासर, प्रले. मु. केवलचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५४१२, १२-१५४३४-३७). विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु वाणी समरि; अंति: लिख्यौ जोतिस तणो मर्म, गाथा-३८. ११५०८९. नेमिनाथना चोवीस चोक, अपूर्ण, वि. १८७६, पौष शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, प्रले. मु. सूमतिसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३७-४०). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: सीसे अमृत गुण गाया, चोक-२४, (प.वि. चोक-२१ गाथा-१ अपूर्ण से है.) ११५०९० (+) प्रास्ताविक दहा व जलयात्राकरण विधि, संपूर्ण, वि. १९०९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. लेश्चनगर, प्रले.पं. खुस्यालविजय; लिख. ग. माणिक्य विजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १४४३८-५०). १. पे. नाम. प्रास्ताविक दहा, पृ. १अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वयण वीणति महवे अशरणभाव, (अपूर्ण, - पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४ अपूर्ण से लिखा है., वि. पत्रांक सुधारा हुआ है. वास्तव में कृति अपूर्ण है.) २. पे. नाम, जलयात्राकरण विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सयवारक बेहडा ४ सिंहा; अंति: वादित्राणि वाद्यंते. ११५०९१ (#) नेमगोपी संवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:चोक०, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२.५, ११४३४-३९). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, म. अमतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चोक-४ गाथा-१ अपूर्ण से चोक-११ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११५०९२. ५ समकित स्वरूप विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१२.५, १०x२१-३४). ५ समकित स्वरूप विचार, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. लिंग वर्णन से समकित भूषण वर्णन अपूर्ण तक है.) ११५०९४. (#) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३३). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से गाथा-४९ अपूर्ण तक है.) ११५०९५. अदितवारनो रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४१२, १४४३९). रविव्रत कथा, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जनेस्वर पाय नमी नमु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५०९७. सीमंधरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, ११४३२). सीमंधरजिन स्तुति, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिमंधर तुझ मिलने दिलमें; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ११५१०० (#) औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, ९४१६-३२). औपदेशिक गाथा संग्रह-विविध विषयक विविध ग्रंथोद्धत, प्रा.,सं., पद्य, आदि: महीषी पक्षकंखिर गोखीरं च; अंति: न गच्छेत् जीन मंदिरे, (वि. गाथा-६) ११५१०१ (+#) सिद्धराजजयसिंहप्रबंध रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-११(१ से ९,१५ से १६)=९, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १७४४९). सिद्धराजजयसिंहप्रबंध रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७० अपूर्ण से ४४७, ५१६ से ५५१ एवं ६२३ अपर्ण से ६५९ अपूर्ण तक है.) ११५१०२. (#) प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १५४४०-४४). प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: धुरि समरु सामिन सरसती; अंति: सयल सुख संपति वरौ, ढाल-२, गाथा-१७. ११५१०४. (+#) नेमगोपी संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-२२(१ से २२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, १४४४०). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चोक-१५ गाथा-२ अपूर्ण से चोक-२० गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ११५१०५. सप्तभंगीस्वरूप गाथा व मोटका बोलनी आलोचना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, १७X५९). १. पे. नाम. सप्तभंगीस्वरूप गाथा सह अर्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. विसलनगर. सप्तभंगीस्वरूप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सिया अत्थि १ सिया; अंति: सव्वभावे सुसम्मया, गाथा-३. सप्तभंगीस्वरूप गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल पदार्थ आप आपणे रूपे; अंति: सर्वपदार्थे संमतम्. २.पे. नाम. मोटका बोलनी आलोचना, प. १आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रावक मोटकाबोल की आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: अगलितजल व्यापारे १ अमलितज; अंति: (-), (पृ.वि. 'खोटु बोलवै उपवास २ अदत्त' पाठांश तक है.) ११५१०६. (+) साधुपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १७७८, चैत्र शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. ईडरनगर, प्रले. पं. लावण्यविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१२, ११-१५४३५). साधुपाक्षिकअतिचार-मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. ज्ञानाचार अपूर्ण से ११५१०८. गिरनारतीर्थोद्धार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१२, ९४३९). गिरनारतीर्थोद्धार रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सयल वासव सयल वासव वसइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ११५११० (+#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, ११४३४). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव सुखकारी जगत; अंति: (-), (पू.वि. सुविधिनाथ स्तवन-९ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ११५११४. सौभाग्यपंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १८३४, चैत्र कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. मनरूपसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १६४३२-३६). For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४६३ पंचमीतिथिपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: (-); अंति: सेवक केसरकुसल जयकरो, ढाल-५, गाथा-७५, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१२ से है.) ११५११५. मौनएकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. पालणपुर, लिख. सा. पानसरीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपल्लवियाजी प्रसादात्., जैदे., (२५४११.५, ७४२५-२८). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: (-); अंति: घणो पामीये मंगल घणो, ढाल-३, गाथा-२५, (पू.वि. कलश गाथा-१ अपूर्ण से है.) ११५११८. (+#) ११ अंग सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १५४३८). ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: आचारंग पहिलो वडो कह्यो रे; अंति: (-), (पू.वि. स्वाध्याय-७ गाथा-१ तक है.) ११५१२७. (#) ब्रह्मबावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२६.५४१२.५, ११-१३४३९-४७). ब्रह्मबावनी, मु. निहालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८०१, आदि: ॐकार आप परमेश्वर ज्योति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) ११५१२८. (#) अवंतीसकमाल प्रबंध चौपाई व गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६x४९). १.पे. नाम. अवंतीसुकमाल प्रबंध चौपई, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. पत्तन, प्रले. मु. ढालसागर गणि (गुरु ग. नेमिसागर); गुपि. ग. नेमिसागर, प्र.ले.प. सामान्य. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदिः (-); अंति: शांतिहरख सुख पावैरे, ढाल-१३, गाथा-१०३, (पू.वि. ढाल-१२ गाथा-९५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर मुझ वीनती; अंति: इम जंपइ जिनराज हो, गाथा-७. ११५१३५ (#) सम्यक्त्वपच्चीसी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, २७४८८). सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२६, (प.वि. गाथा-१९ से है.) सम्यक्त्वपंचविंशतिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: थकी समकितनी प्राप्ति हुउ. ११५१३६. सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्र०., जैदे., (२४४१२.५, १३४३३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७२ अपूर्ण से ८३ अपूर्ण तक ११५१३७ (+#) शत्रुजयऋषभदेव स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १०४३२). शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेāजो तीरथसार; अंति: ऋषभदास गुण गाया, गाथा-४. ११५१३९ (+#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१२, ११४४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ गाथा-८ अपूर्ण से अध्ययन-४ सूत्र-१ अपूर्ण तक है.) ११५१४०. आदिजिन स्तव, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ., (२५४१२, १६४५०). आदिजिन स्तव-देउलामंडन, ग. शुभसुंदर, प्रा.,सं., पद्य, आदि: जय सुरअसुरनरिंदविंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५१४१ (#) धर्ममंगल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले. मु. शिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ११-१४४३३-३६). धर्ममंगल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: धमोमंगल छे मोट को धरम समो; अंति: चेतन होय जावै सुद्ध, गाथा-२६. ११५१४२. (#) गौतमस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५१, माघ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीदासर, प्रले. मु. शिखरचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११.५, १८४४१). गौतमस्वामी रास, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गोतम तणा लबध तणा; अंति: रायचंद० श्रीगौतम सामीजी, गाथा-१२. ११५१४३. (+) महावीरजी की स्तुति, चिंतामणिपार्श्व स्तोत्र व शांतिजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १३४३६). १. पे. नाम, महावीरजी की स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, म. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ तात जगविख्यात; अंति: जिनचंद० एहवी वाणी, गाथा-४. गावा-४. २. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमो देवनागेंद्रमंदार; अंति: स जयति चिंतामणिपार्श्वनाथ, श्लोक-७. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: नाना वित्रं बहु दुखरासि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) ११५१४४. पार्श्व स्तवन, पार्श्वनाथ समरण मुल मंत्र व विश थानक चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. कूडारद, प्रले. पं. मेघविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १४४२९). १.पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाअ नित्यं भगव; अंति: सर्वसिद्धिं लभेत् ध्रुवम्, श्लोक-१३, (वि. गाथा-१० के बाद पुनः गाथा क्रम-१ से दिया है किन्तु संपूर्ण एक ही कृति है.) २.पे. नाम. पार्श्वनाथ समरण मुल मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वपद्मावती मंत्र-अट्टेमट्टे, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीपार्श्व; अंति: आनय पूरय पूरय स्वाहा. ३. पे. नाम. विश थानक चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, मु. रतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पेहले पदे अरीहंत नमो बीजे; अंति: पद शेवता रत्न लहें भव पार, गाथा-६. ११५१४५. पोसह लेवा गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०४१२.५, ८x१८). पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसहं आहार; अंति: गरहामि अपाणं वोसरामि. ११५१४७. स्वरोदय विचार, संपूर्ण, वि. १८७७, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. देवचंदजी; पठ. प्रेमचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, १२४२७). स्वरोदय विचार, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी चरण सदा गुरुतणो जे; अंति: विनयचंद० पसाइ सवि सुख लहे, गाथा-१४. ११५१४९ (+) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१२.५, ११४२७). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११५१५०. (#) १७० तीर्थंकर नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२.५, १६४३८). For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (१)जंबु द्वीप में ३४ घातकी, (२)श्रीजयदेव१ करणभद्र२; अंति: (-), (पृ.वि. ११७-जिन नाम अचलनाथजी तक है.) ११५१५५. नेमराजुल सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नेमना०., दे., (२५४११.५, १०४३१). नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति ने करी प्रणाम वंदु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण तक है., वि. गाथाक्रम का उल्लेख न होने से गिनकर लिखा है.) ११५१५६. चंद्रसूर्य दर्शनविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १३४२४-३३). चंद्रसूर्य दर्शनविधि, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: हवे भगवंतना मातपीता जनमथी; अंति: ते गुरुनै घणु दान द्ये. ११५१५८. तेसठ सिलाखापुरुष स्तवन, अपूर्ण, वि. १९४५, आषाढ़ शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. जालोर, प्रले. भभूतराम हिमतराम व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १०४२७-३०). ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नमे मुनी वसतो सदा, ढाल-५, गाथा-१८, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१० अपूर्ण से है.) ११५१५९. पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२.५, १२४३१). पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात मया करी आपो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ११५१६०. संखेश्वरपार्श्वनाथ छंद व जीवदया छंद, अपूर्ण, वि. १८९५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्रले. पं. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:छंद., जैदे., (२४.५४१२.५, १६४३८). १. पे. नाम, संखेश्वरपार्श्वनाथ छंद, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थमंडन, ग. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदिः (-); अंति: सेवक नित्यविजय जयकार, गाथा-३८, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा-३८ अपूर्ण है.) २. पे. नाम, जीवदया छंद, प. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी पाये नमी; अंति: भूधर०वीतराग वाणी लहे, गाथा-११. ११५१६१ (#) देसावगासीक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२.५, ९४३६). देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहणं भंते तुम्हाणं समीवे; अंति: जुत्तो ए पाठ कहीजै. ११५१६२. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., दे., (२४४१२.५, ११४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समणेनं; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक पाठ तक लिखा है.) कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नवकारमंत्र माहात्म्य वर्णन अपूर्ण से महावीरजिन कल्याणकवर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ११५१६३. (#) मल्लिजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२.५, ४६५३६). १.पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरुं मन सुधे; अंति: धरमराग मन में धरी, ढाल-५, गाथा-४१. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: लोद्रवपुरे आज महिमा घणी; अंति: समयसुंदर कहे० चिंतामण पास, गाथा-९. ११५१७०. चतुर्थकर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९७५, माघ कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. आहोरनयर, प्रले. पीतांबर श्रीमाली ब्राह्मण; पठ. सा. रत्नश्रीजी महासती, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२४४१२, १२-१४४२६). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-६२ मार्गणास्थानक यंत्र, संबद्ध, सं., यं., आदिः (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५१७१. त्रिभूवनस्वखेति चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९२५ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. खूबचंद (गुरु भट्टा. दलिचंद); गुपि. भट्टा. दलिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, १३४३६). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: तत्र चैत्यानि वंदे, श्लोक-१०. ११५१७३. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५४१२.५, १२४३६). १.पे. नाम. सुपार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. अबीरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हम चाकर हे जिन चरणा के अंति: अबीर० हरो भव फिरणां के, गाथा-३. २. पे. नाम, चंद्रप्रभजिन होरी पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अबीरचंद, पुहि., पद्य, आदि: होरी कहा तें धूम मचावे रे; अंति: प्रभू गुण गावे रे कुमता, गाथा-२. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. अबीरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुजी सदा सुख दीजै टुक; अंति: गाया मनवंछित आस पूरीजै, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. अबीरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: पारसनाथ दया कर मोपे द्यो; अंति: तामणपारश जयजयजय जिनराज रे, गाथा-३. ११५१७४. रावणमंदोदरी संवाद सज्झाय व गजसुकुमालमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:स्तव., दे., (२४४१२.५, २१४३६). १.पे. नाम. रावणमंदोदरी संवाद सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: में राजभ भी क्षण पाय रे, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लाल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: वासुदेवजी का दीकरा रे; अंति: लाल० जोडु दोनु हाथ हो, गाथा-७. ११५१७८. श्रावकपाक्षिकअतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, १०४३१). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थूल-१ अपूर्ण से स्थूल-४ अपूर्ण तक है.) ११५१७९ चोवीस मंडला करे तिण की विधि व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, ९४३२). १.पे. नाम. चोवीस मंडला करे तिण की विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ स्थंडिल, प्रा., गद्य, आदिः (१)दरे उच्चारे अहियासे, (२)उपाश्रय थकी बाहर बारणे; अंति: (१)आसन्ने पासवणे अहियारे, (२)प्रतिक्रमण करीस्य ध्ययै. २.पे. नाम, औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सोसो पारो सुरमो मोती; अंति: पीपल गुलाब जल में पीसणा. ११५१८१. (+) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. हुंडी:गोतमपृ०., संशोधित., दे., (२४.५४१२, ८४३०). गौतमपृच्छा , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण से है व गाथा-१७ तक लिखा है.) गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गौतमपृच्छा-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: वसंतपुर नगरने विषे; अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११५१८२. नोकरवाली गुण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१२, ७X२२). पंचपरमेष्ठी नवकार छंद, ग. उदयसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: पहला प्रणमु श्रीजिनपास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ११५१८३. पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२४.५४१२.५, १४४३४). vaal For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६७ . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मु. चंदखुसाल, मा.गु., पद्य, आदि: नानडीयो गोद खीलावे छे; अंति: चंदखुस्याल० सुख पावे छे, पद-८. २.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-केसरीया, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारा केसरीया जिणंदने; अंति: ऋषभदास पूरो आस गुण गाउ रे, गाथा-३. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-नरभव प्रमाद, मा.गु., पद्य, आदि: खोयो रे गमार तें; अंति: विषदाग न धोयो, पद-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कोण नींद सूतो मन मेर; अंति: चैनविजै० सतगुरु का चेरा, गाथा-३. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋषभदास, पुहिं., पद्य, आदि: यह चेतन या होरी रे; अंति: बनी एक अदभुत होरी, गाथा-३. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, प. १आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: चेतन खेलत होरी चे० सत्ता; अंति: चिर जीवो यह जोरा जोरी, गाथा-४. ७. पे. नाम, औपदेशिक पद, प. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. नगविजय, पहिं., पद्य, आदि: नायक विणजारा रे अंख्या; अंति: (-), (प.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ११५१८४. मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. उदयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १६x४६). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपतिनायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, गाथा-४२. ११५१८५. शय्यंभवसूरि कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४४११, ५४१०). शय्यंभवसूरि कथा, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण से है व २१ तक लिखा है.) ११५१८६. (#) आदिजिन सुखडी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १५४३५-४०). आदिजिन सुखडी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत देये माता चरण कमल; अंति: पुतर संपत दातार, गाथा-३५. ११५१८७. नेमराजिमती बारमासा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२.५, १३४२४). नेमराजिमती बारमासा, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हारे श्रावण मासै स्वाम मे; अंति: कवियण० नवनिध पामी रे, गाथा-१३. ११५१८९ (#) समवसरणमान, नदी नाम, १२ परषदा व १४ रत्न विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १६४४३). १. पे. नाम. समवसरणमान, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन समवसरणमान विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभ समोसरण गाउ ४८ अजित; अंति: पासो पण गाउ चउवीरो. २.पे. नाम. नदी नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. गंगादि नदी परिवार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गंगा १ सिंधू २ सहस्र; अंति: नदी ३९२००० परिवार. ३. पे. नाम. १२ परषदा विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ पर्षदा समवसरण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: साधू १ साध्वी २ श्राविका; अंति: पोले पेसे इसान कूणे बेसे. ४. पे. नाम. १४ रत्न विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ रत्न विचार-चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, आदि: चक्रवर्ति १४ रत्न उपजे; अंति: रत्न ४ घरमाहिथी उपजे. ११५१९० (#) नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१३, १७४३६). For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वांछितपुरे विविधि परे; अंति: कुशल०रिद्ध वंछित लहै, गाथा-१७. ११५१९२. (+) २१ स्थान प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२.५, १४४५१). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवणविमाणा १ नयरी; अंति: रिद्धसेणसूरि० भणिया, गाथा-७३. ११५१९४. प्रत्याख्यानसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४.५४१२.५, ११४२२). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमोक्कारसहिय; अंति: (-), (पू.वि. साढ पोरसी पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) ११५१९७. सरस्वतीदेवी छंद व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९०४, वैशाख कृष्ण, ४, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. भीनमाल, पठ. श्राव. ओटाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, १३४२९). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. ग. मोतीविज, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुध विमल करणी; अंति: दयासूरी० नीत नमेवी जगपति, गाथा-९. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. ग. जीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सुभाषित संग्रह *, सं., पद्य, आदि: आयु वित्तं गृह छिद्रं; अंति: नव गुप्तानि कारएत्, श्लोक-१. सुभाषित संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आयुषो धन घर दोष; अंति: ए नव वस्तु गुप्त राखीइ. ११५१९८ (+) जलयात्रा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, १४४३३). जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सयवारक बेहडा ४ सिंहा; अंति: (-), (पू.वि. शांतिदेवता काउसग्ग अपूर्ण तक ११५१९९ (+#) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१६(१ से १६)=४, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ३४३३). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-६४ अपूर्ण से गाथा-८० अपूर्ण तक है.) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११५२०० (+) श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५१-४७(१ से ४७)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १४४३६). श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७४६ अपूर्ण से ८१९ अपूर्ण तक है.) ११५२०१. (+) जिनकुशलसूरि गुर्वष्टक, संपूर्ण, वि. १९२७, आषाढ़ शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कीट्ठल, प्रले. मु. निहाल ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:श्रीकुशलम्०., संशोधित., दे., (२५४१२, १३४४१). जिनकुशलसूरि गुर्वष्टक, सं., पद्य, आदि: पद्मा कल्याणविद्या; अंति: स्याद भोक्ता च वक्ता च, श्लोक-९. ११५२०२. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१२, ८४३९). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: जंबूदीप भरथ में पामलीपुर; - अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) । ११५२०३. सामायिकसूत्र-दिगंबर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१२, १२४३९). सामायिकसूत्र-दिगंबर, सं.,प्रा., पद्य, आदि: पडिक्कमामि भंते पडिक्कमा; अंति: (-), (पू.वि. नापाक्तानि इत्यादि छंद अपूर्ण तक है.) ११५२०४. (+) सूक्तमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-२(१ से २)-८, प.वि. बीच के पत्र हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १२४३८). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-१ गाथा-२८ अपूर्ण से वर्ग-४ गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४६९ ११५२०५ (+) रुपसेनकुमार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित., दे., (२५.५४१७.५, १३४३८). __ रुपसेनकुमार रास, मु. हुलासचंदजी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१९ से ढाल-२० दूहा-७ अपूर्ण तक है.) ११५२०८. ६ अट्ठाइ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-६(१ से ६)=३, ले.स्थल. फलोधी, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४४२). ६ अट्ठाइपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्याद्वाद शुद्धोदधि; अंति: बहु संघ मंगल पाइया, ढाल-९, गाथा-५४, संपूर्ण. ११५२१२. अक्षरबावनी कुंडलिया, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, दे., (२६४१२.५, ९४५५-५८). अक्षरबावनी कुंडलिया, मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: अरथ कहि अक्खर अक्खर, गाथा-५७, (पू.वि. गाथा-५२ अपूर्ण से है.) ११५२१३. दीपावलीपर्व व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२.५, ११४३५). १. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मारे दीवाली थई आज; अंति: इम भणे प्रभु आवागमन नीवार, गाथा-६. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणु करीए वि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११५२१५. बहत्शांति स्तोत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.,प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२५.५४१३, १७४५३). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५६, आदि: सिद्धि श्रीः स्ताच्छांतिः; अंति: (-), (पू.वि. "मा भवंतु इत्यर्थः" पाठ अपूर्ण तक है.) ११५२१८. (#) आदिजिनविनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७४, फाल्गुन कृष्ण, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. पं. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११४३०). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: (-); अंति: विनयविजय - करीने वीनव्यो रे, गाथा-५८, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-४५ अपूर्ण से है.) ११५२२१. चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:दरासप०., जैदे., (२६४१२, १५४४३). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धरा धवति प्रथम; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-१ ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११५२२२. आध्यात्मिक पद, मधुबिंद व जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२.५, १८x२९). १. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मधुबंदुसीझाय. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझने रे मात; अंति: सुसीस जयइ परमसुखइ मागीइ, गाथा-१०. २.पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: किसके रे चेले किसके पूत; अंति: विनय० सुखे भरपूर, गाथा-७. ३. पे. नाम, जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) ११५२२४. (#) ७ वार सज्झाय व ४ मंगल पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०x२८). १. पे. नाम. ७ वार सज्झाय, पृ. ६अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: माणिक ज राग जस सुजस पाआ, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-७ से For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहेलु ए मंगल जिनतणु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) ११५२२५. समवसरण स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४१२.५, १०४३०). समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ओच्छव रंग वधामणां, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ११५२२६. (+) नेमिजिन गीत व नंदिषेणमनि सज्झाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे.८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १९४५२). १.पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. ३आ को ३अ समझना है. मु. सोमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: भींजइ भींजइ मेरी लाल; अंति: अब पहोती गढ गिरिनारि, गाथा-३. २. पे. नाम, नंदिषणमुनि सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. ३आ को ३अ समझना है. म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृह रलीयामणुं रुडउ; अंति: कवियण नही रहइठा मोरे, गाथा-९. ३. पे. नाम. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. ३आ को ३अ समझना है. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: उलट भरी दशारणभद्र आवइ हय; अंति: पाछु भणइ शिरनामी रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. शांतिजिन गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. श्राव. वीरपाल सोनी, मा.गु., पद्य, आदि: महीमंडली षटखंड भोगवता; अंति: भरि त्रिभुवन होइ प्रसन्न, गाथा-३. ५. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वारी हूं तेरे वयणनी; अंति: जंबूनी का करइ गुण ग्यान, गाथा-६. ६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन पद, मु. पंचायणमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर पदवी ऊंची ए तालू; अंति: सामी पंचायण कहइ शिरनामी, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि प्रीतम प्राणिया रे; अंति: थकी रे मूंकउ क्रोध कषाय, गाथा-५. ८. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. ग. जीवकलश, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी सुंदर पास मिल्यो; अंति: इम जंपइ दिन दिन देह वल्यु, गाथा-२. ११५२२७. पंचकारण स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२६४१२, १०४३४). ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदिः (-); अंति: विनय कहै आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५८, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-६ अपूर्ण से है.) ११५२२८. अनेकार्थ एकाक्षरी नाममाला, अनेकार्थमंजरी व एकाक्षरनाममालिका आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५७, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. श्राव. पीतांबर हरि भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:एकाक्षरीऽनेकार्थनाममाला पत्र, एकाक्षरऽनेकार्थ०., दे., (२५४११.५, ३२४७६). १. पे. नाम, अनेकार्थ एकाक्षरी नाममाला, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., पद्य, आदि: शुद्धवर्णमनेकार्थं; अंति: समयो बंधुसोमयोः, अधिकार-३, श्लोक-२१९. २. पे. नाम. अनेकार्थमंजरी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: शिवः शर्वः शिवः शुक्रः; अंति: कातिर्विजगीष गतिः स्तथा, श्लोक-४२. ३. पे. नाम. एकाक्षरनाममालिका, पृ. २आ, संपूर्ण. एकाक्षर नाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: मिति विश्वाभिधानि कोशानि; अंति: माला प्राकसूरसम्मत्ता, श्लोक-२०. ४. पे. नाम. क्षेत्रवर्गफल विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. क्षेत्र वर्गफल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जेतला योजननें चोरस; अंति: तिवारे त्रंस ना त्रंस थाइ. For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ४७१ ११५२३१. (+) श्लोक संग्रह व विजयहंसादि गर्वावली सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१२, १७४३८). १. पे. नाम, श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: एकेनापि कुवृक्षेण दह्यमान; अंति: अस्मदीयं न ही तत्परेषां, श्लोक-२३. २. पे. नाम. विजयहंसादि गुर्वावली सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: विजय हंस रुच विमल कुसल; अंति: तपे तपो तेज अविचल प्रतपै, सवैया-१, (वि. अंत में १ श्लोक दिया गया है.) ११५२३२. (#) महावीरजी दसोठण भोजन विच्छत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १७४३८). भोजन विच्छित्ति, मा.गु., गद्य, आदि: मांड्यो उतंग तोरण; अंति: एहवी कुटंब भक्ति कीथी. ११५२३५. ९ वाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, १४४३५-४०). ९ वाड सज्झाय, मु. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ११५२४२. स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. १९, जैदे., (२६४१२.५, १६x४२). १. पे. नाम. सुबाहुजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सुबाहु सुहंकरू; अंति: नयविजय० सुयश वखाणे रे, गाथा-५. २. पे. नाम. सुजातजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: साचो स्वामी सुजात; अंति: कहे गुण हेज हिल्यौरी, गाथा-६. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुष्कलवइ विजये जयो; अंति: यशोविजय०भयभंजन भगवंत, गाथा-८. ४. पे. नाम. विशालजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: घातकीखंडे हो के पछिम; अंति: जस० के धरिइं चित्त खरें, गाथा-५. ५. पे. नाम. चंद्राननजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नलिनावती विजये जयकार; अंति: देशो धर्मनेह निरवहेशो रे, गाथा-७. ६.पे. नाम. ९ वाड सज्झाय-ढाल ५, पृ. २आ, संपूर्ण. ९वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७. पे. नाम, कलियुगनी सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण, वि. १८७२, आषाढ़ कृष्ण, ११. कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामीने पाय नमीने; अंति: रथ सुकृत एक सवायो छे, गाथा-१२. ८. पे. नाम. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय-स्थानक १७, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय-हिस्सा मायामषावाद पापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९.पे. नाम. बीजनी सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: बीज तणे दिन दाखव्योरे; अंति: देवना सिद्धा सह काज रे, गाथा-९. १०. पे. नाम. जंबूस्वामीनी सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी भास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जाउं बलिहारी जंबू; अंति: नाम जपु निसदिस रे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७२ www.kobatirth.org ११. पे नाम, शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजय सिद्ध: अंतिः जिनवर करूं प्रणाम, गाथा-३. १२. पे नाम पजुसणपर्व स्तुति, पू. ४अ ४आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेद जिनपूजा रचिने; अंति: पुरो देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. १३. पे. नाम. आत्महितशिक्षा सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जीव धरम म चूकिस विनय न; अंति: ते चिरकाले नंदो रे, गाथा- ९. १४. पे. नाम. एकादशीनी सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि आज एकादशी नणदल मौन; अंति: उदयरतन० लीला लहेसे, गाथा-७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५. पे. नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरुना हुं प्रणमु; अंति: सीस वाचक देवनी पुरो जगीश, गाथा-५. १६. पे नाम. पंचमीतिथि स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा - ५. १७. पे नाम. अष्टमीतिथि सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतिने चरणे; अंति: वाचक देव सुसीस, गाथा- ७. १८. पे नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पू. ५आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम सीमंधरस्वामी स्तवन लिखा है. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि काया पामी अति कूडी; अति पंडित जिनविजये गायो, १. पे. नाम. १२ चक्रवर्ति नामआयुष्यादि विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. , को., आदि: (-); अंति: (-). गाथा - ९. १९. पे नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. .लीबो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला स्वामी सीमंधर; अंति: राज सरो भविकना काज, गाथा-१८. ११५२४४ (+) १२ चक्रवर्ति, ११ रुद्र व वासुदेववलदेवप्रतिवासुदेव नाम आयुष्यादि विवरण, संपूर्ण, वि. १९५३, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. वढवाण, प्रले. मु. अमरचंद (गुरु मु. सोभागमल); गुपि. मु. सोभागमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे. (२५.५x११.५, १४४४८-५२). मा.गु., २. पे. नाम. ११ रुद्र नामआयुष्यादि विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. वासुदेवबलदेवप्रतिवासुदेव नाम देहायुमानादि विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि (-); अति: (-). For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४ निक्षेप विचार, प्रा.,मा.ग., गा. १, प+ग., श्वे., (नाम निक्षेप स्थापना), १०६४६३-५ (2) ५ तीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, म्पू., (नमः श्रीमदर्हता सिद्धि), ११३९४६($) ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (बारस गुण अरिहंता), ११३५४३(+) ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमेट्ठिमंतसारं सारं), १०८५०९-१ ५ समकित स्वरूप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (पहिलो उपशम समकित), ११५०९२($) ६ दर्शन ९६ पाखंडी नाम, सं., श्लो. १०, पद्य, मप., (जैनं सांख्यं तथा बोध), ११०३८८-२ ८ जीवभेद नाम, प्रा., गद्य, मपू., (अंडया१ पोउआ२ जराउआ३), ११४३३९-१४ (२) ८ जीवभेद नाम-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंडजा कहता अंड थकी उपना), ११४३३९-१५ ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, गा. ६६, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि औषध), १०६७०२-३(+#) ८ प्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., ढा. ८, पद्य, मपू., (तिर्थोदकैर्मिश्रित), ११०५१९-३($) ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (विमलकेवलभासनभास्कर), १०६६७६(+), १०८२९०(१), ११३२८१-१(#) ८ प्रकारी पूजा दोहा, प्रा.,मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (सयं पमज्जणे पुनं सहस), १०८६२२-२ ८ प्रकारी पूजा श्लोक, मु. देवचंद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विमलकेवल भासनभास्कर), ११०२६० ८ प्रवचनमाता, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (ईर्याभाषेषळादाननिक्ष), ११११५४-१ ८ प्रातिहार्य श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अशोकवृक्षसुरपुष्पवृष्टि), ११३९०५-२(+), ११३९८३-२(+) ८ सिद्धि नाम, मा.ग.,सं., श्लो. ३, पद्य, जै., वै., बौ., (अणिमा १ महिमा २), १०९६४०-१(+), ११३९०२-२(+) ९निह्नव स्वरूप, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (तिसगुत्त १ रोहगुत्ते २), १०९९९९(+) १० आशातना श्लोक-जिनभवन, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (विलास१ हास२ निष्टुत३), ११३६४६-३ १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., पद. १०, प+ग., श्वे., (ॐ नमो इंद्राय पूर्व), १०७७८०-२(+), ११०५१०-१(+) १० निकायावास स्थान गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (इह मंदरस्स हिट्ठा पुढवी), १११४०३-७(+) १० लक्षणपूजा विधि, मु. ब्रह्मजिनदास, अप., पद्य, दि., (उत्तमादिक्षमाद्यंत), १०६६७४-२(5) १० वैयावच्च भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (१ आचार्य २ उपाध्याय), ११३८५९-३ १० श्रावक कुलक, प्रा., गा. १२, पद्य, मूप., (वाणियगामपुरम्मि आणंद), १०९७८१-२(+) ११ गणधर संदेहभंजक वेदपद, सं., गद्य, मूपू., (स वै अयमात्मा ज्ञानमय), १०९०७१(+), १०७६६३(#) (२) ११ गणधर संदेहभंजक वेदपद-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आत्मनास्ति च पक्षे विज्ञा), १०९०७१(+), १०७६६३(#) १२ उपांग नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (१ उववाई उपांग १५००), ११३६४६-७ १२ गुण अरिहंत, मा.गु.,सं., अंक. १२, गद्य, मपू., (अशोकवृक्ष प्राति), १११२८५-२(#) १२ तपभेद विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (अणसण उमोयरिया),११०९५७(#$) १२ भवन विचार, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., इतर, (लग्नस्थितो दिनकरः), १११८०६-२(+) १२ राशि दोष, सं., श्लो. २, पद्य, इतर, (मेषे च देव्या दोष वृषे), १०९०५३-२(+) १२ व्रत अतिचार आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अश्वि१ ह० श्रधश पुन अन०), ११३७१६(+$) १३ काठिया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (आलस मोह अवन्ना थंभा),१०८८६१-२, ११३६६७-७ (२) १३ काठिया गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (आलस मोह अवर्णवाद), १०८८६१-२ १४ अभ्यंतरग्रंथि गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (मिच्छत्तं वीय तिगं), १०९५३६-४(+) १४ अशुचिस्थान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (उच्चारे १ पासवणे २), ११३७०६-५(+#) परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ १४ गुणस्थानक विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (मिच्छे १ सासण २ मीसे ३), १११६०९(+$) १४ पूर्व नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (उपायं च मगोणिय), १०८३४२-४(+) १४ राजलोक पृथक्करण विचार, मा.गु.,सं., गा. १, प+ग., मूपू., (सोहम्मंमि दिवड्ढा), १११४०३-३(+) १४ राजलोक प्रमाण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (मिल्हइ सोहम्माओ कोवि सुरो), १११४०३-२(+) १४ श्रावकनियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (सचित्त दव्व विगई वाहण), १०८३४२-६(+),१०९८१६-२(-) (२) १४ श्रावकनियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (पाणी फल बीज दातण ते), १०९८१६-२(-१) १४ स्थान समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (उच्चारेसु वा क०), ११३८५९-२, ११४३७०-२(2) १५ तिथि जिनकल्याणक गणणु विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (१ने दिवसे श्रीकुंथुनाथ), ११०२५१-१ १६ कारण पूजा, अप., पद्य, दि., (ऐंद्रं पदं प्राप्य परं), १०६६७४-१ । १६ कोष्ठकयंत्र विधि, सं., श्लो. २, पद्य, मप., (वांछा कृतार्द्धं कृतरूप), १०८६८९-५(#) १६ विद्यादेवी पूजा, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (आ मंत्र पदैर्विशिष्ट महिम), ११४८७६(+$) १६ शृंगार नाम, सं., श्लो. १, पद्य, इतर, (आदौ मज्जनचारुचीरतिलक), ११३२२३-३(-) १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), ११०३७८-२(+) १८ नातरा कथा, प्रा., गद्य, मूपू., (--), ११३८७२(+#$) (२) १८ नातरा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (--), ११३८७२(+#$) १८ पुराण नाम, सं., गद्य, वै., (ब्राह्मं पद्म वैष्णव), ११३६४६-५ १८ भार वनस्पति मान श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मूप., (दसकोटि दसलक्षाणी सत्यासी), ११३४६१-३, १०८५६६-२(#) १८ स्मति नाम, सं., गद्य, वै., (मानवी स्मृति आत्री), ११३६४६-६ १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., (जे नो करंति मणसा), प्रतहीन. (२) १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (--), १०७१००(६), ११३४५८() २० विहरमानजिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (द्वीपेत्र सीमंधर), ११३९४९(+), ११४४५६-२ २० स्थानक गुण व काउसग्ग प्रमाण, प्रा.,हिं., गद्य, मपू., (पेले पदे नमो अरिहंता), ११०९५६(5) २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ११३९९३ २० स्थानकतप उच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावहि पडिकम), १०६५००(+$), ११३६६७-४ २० स्थानकतप उच्चारविधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नांदि सर्व उपधान समकित),११०६०५-२ २० स्थानकतप गणणं, प्रा.,मा.गु., को., मपू., (नमो अरिहंताणं १ नमो), १०८७०७(+), ११०००३ २० स्थानकतप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ११४५०४-४(+#), ११४२२७ (२) २० स्थानकतप गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (अरिहंतभक्ति सिद्ध), ११४२२७ । २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, मपू., (नमो अरिहंताणं २०००), १०९२६१-१(+) २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीदयदर्हत्पदवीदवी), १०६६४६(+$) २० स्थानक नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (अरिहंत १ सिद्धा २), १०८९३३-२(+), ११३९१२-३(#) २१ मिथ्यात्व भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (जे लौकिक देवता हरिहर), १०८३४०-२(+#), ११२६६३-१(६) (२) २१ मिथ्यात्व भेद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (राग द्वेष सहित एहवा लोकना), १०८३४०-२(+#) २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ११३९१७(+#), ११४०६८(+$), ११५१९२(+), ११३०१४(#$) २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचुंबर चउविगई हिम), १०९८१६-१(-) (२) २२ अभक्ष्य गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वड पीपल उंबरि अंजीर), १०९८१६-१(-) २४ जिनकल्याणक स्तव, जै.क. आशाराज, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (तिथिक्रमाज्जिनेंद्रा), १०९५९६(#) २४ जिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, म्पू., (जिनर्षभप्रीणितभव्य), ११३६०३-३($) २४ जिन नाम वर्ण लंछन माता-पितादि, पुहिं.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ऋषभदेव पीत वृषभ नाभि), १०८२१४-१(+) For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ २४ जिन पंचकल्याणक पूजा, पुहि.,प्रा.,सं., प+ग., दि.?, (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं लब्ध), १०७०२३(+$) २४ जिन पूजा, सं., प+ग., दि., (विघ्नौघाः प्रलयं), १०६५३६($) २४ जिन प्रतिमा स्थापन यंत्र, सं., गद्य, मूपू., (आदिनाथ धनराशि उत्तराषा०), ११०३०६ २४ जिन यंत्रराज स्तोत्र-बीजमंत्राक्षरगर्भित, सं., पद्य, मप., (स्वस्तिश्रीसिद्धिमूलं), ११३१४१(६) २४ जिन स्तव-चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., श्लो. ८, पद्य, मपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), १०६७३९-२(+), ११०४५८-१ २४ जिन स्तवन, मु. ऋद्धिविजय, सं., श्लो. २९, पद्य, मपू., (प्रणयतः प्रणिपत्य सरस्वती), १०९५९४(+) २४ जिन स्तवन, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (आदिनाथं महादेवं), १०९११७-१(+) २४ जिन स्तवन, प्रा.,मा.गु., गा. १३, पद्य, स्पू., (सिरिरिसहेसर अजियजिण), १०७०३७-८(+-2) २४ जिन स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (यत्राखिलश्रीः), ११११५६-१(६) २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, पू., (अव्याद्धो नाभिजातजितसुमति), १०९६३८-२(+#) २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (नतसुरेंद्रजिनेंद्र युगादि), १०९२४८ २४ जिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथाजितसंभवेश), ११४७१२-२(#) २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ११११५३(+), १११२५१-६(+), ११४४८६-२(+#), ११३३६७-१, ११३४५३-२ २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्ठियंत्रगर्भित, मु. नेतृसिंह कवि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (वंदे धर्मजिनं सदा), १०९४९५-३(+) २४ जिनानुपूर्वी स्तुति-नवग्रहगर्भित, मु. सत्यरत्न गणि, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (भास्वंतसोममहत), १०८४४२(+) २४ तीर्थंकर के नाम-गणयोनिनक्षत्रराशिलंछनादि सहित, मा.गु.,सं., को., मूपू., (--), ११२१०९ २४ स्थंडिल, प्रा., गद्य, मपू., (आघाडे आसन्ने उच्चारे), ११५१७९-१, १०८३१०-१(#) २५ क्रिया के नाम, सं., गद्य, मप., (कायेन निवृत्ता कायिकी), १११७९२ २५ साधक्रिया बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (काइय अहिगरणीया), १०६९४७(+$), ११४४३४(+#) २७ भवनिबद्ध संक्षिप्त महावीरजिन चरित्र, सं., गद्य, मपू., (पश्चिम महाविदेहे), १०८८८९(+#$) २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (आमोसहि विप्पोसहि),११३७७३(#) (२) २८ लब्धिविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (आहव० हस्तपादादिकना), ११३७७३(#) ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (सव्वाउ कंदजाई सूरण), ११३६६७-६ ३२ असज्झाय गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (उक्कावाए दिसादाहे), १११०८६(+#$) (२) ३२ असज्झाय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उका० तारा तुटै ते), १११०८६(+#) ३२ पर्याप्ता जीव-नवतत्त्व प्रक्षिप्त गाथा, प्रा., पद्य, मपू., (पण थावर सुहमियरा), ११३१३७-३(+) ३६ आयुध प्रकार, सं., गद्य, श्वे., इतर, (चक्र धन वज्र खड्ग), ११३५७२-४ ३६ बोल थोकडो, प्रा.,मा.गु., बो. ३६, गद्य, श्वे., (पेले बोले भाव६ नाम अनुजोग), १११९१७(+) ४२ गोचरी दोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मूप., (अहाकम्म १ देसिअ २), ११४८४७(+), १०९१०६-१ (२) ४२ गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (आ० आधाकरमी ते कहीइ),११४८४७(+) (२) ४२ गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोल उद्गम दोष लिखियै), १०९१०६-१ ४५ आगमतप गणj, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रीनंदीसूत्र), १०६९५१-२ ६० संवत्सर फल, सं., गद्य, मूपू., इतर, (अथ विस्तरित षष्टिवर्षाणां), ११४७५९(६) ६३ शलाकापुरुष विचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (उत्तमा शरीर सट्ठि जीवा), १०९०४५-३ (२) ६३ शलाकापुरुष विचार गाथा-नामयंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), १०९०४५-३ ७२ स्वप्न विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (इत्थि वा पुरिसो वा), १०९३०८(+) ८४ तकार काव्य-गुढार्थश्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., इतर, (तातांतातीततेतांतततिततत), ११११७०-३ २५० अभिषेक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (इंद १९४ सम १ तायत्तीसा ३३),११४५०४-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७६ (२) २५० अभिषेक गाथा टीका, सं., गद्य, म्पू., (अडीद्वीपवर्तिनां चराणा), ११४५०४-२(१०) ५६० अजीव भेद विचार, प्रा., मा.गु. सं., प+ग. म्पू. (प्रोक्ता वर्णरसाकृति), १०९४२९-२ ', अंग स्फुरण फल, सं., श्लो. ७, पद्य, म्पू, इतर (सिरसः स्यंदने राज्यं), ११००८६-१(००) संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अ. ९२ नं. ८९९, गद्य, मृपू. ( तेणं कालेनं० चंपा० ). १०६८६१(+), ११४०४७(+१६) , 2 (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंतगड शब्दस्य कः), १०६८६१(+) अंतिम आराधना संग्रह, प्रा., मा.गु., प+ग, श्वे. (प्रथम इरियावही), १०९४४३-१ अंबामाता छंद, सं., पद्य, वै., (धुवे त्रंवाला वडाला धूह), ११३५०८-२ (-$) अंबिकादेवी मंत्रजाप विधि, सं., श्लो. २० प+ग. म्पू. (ॐ ह्रीं आम कूष्मांडिनी), ११०४६०-३ अंबिकादेवी मूलमंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ अंबिके हाँ), ११०४६०-२ अंबिकादेवी स्तोत्र-मूलमंत्रगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू ( ॐ महातीर्थं रेवतगिरिमंडने), ११०४६०-१ अकडमचक्र, सं., लो. १५, पद्य, भूपू (द्वादशरेखाचक्रं च), प्रतहीन. (२) अकडमचक्र विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेने विशे अरी पड्यो तो), ११०३३२-३ अक्षप्रभा विधि, सं., प+ग, मूपू., (अवंतियाम्योत्तर योजनानि), ११३६६४-२ (+) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं. ग्रं. ७०, गद्य, मूपू (प्रणिपत्य प्रभु), ११०६०९-१(+) " अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा., रा., सं., गद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खु), १०९४७४(#) अक्षौहिणी सैन्यमान श्लोक, प्रा.सं., श्लो. १, पद्य, श्वे. ( दशलक्षदंति त्रिगुणां), १०८५६६-५(१) " अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (अजियं जियसव्वभयं संतिं च), १०६५७६ (+), १०८७३५(+), ११२२३४-३(०४), १०८९१६, ११४८६३, १११९१४ (६), ११३०११(३) ११४२२८(३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजितशांति स्तव लघु खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू.. (उल्लासिक्कमनक्ख), १०७६५१. १०७२०६ (#) अजिरादि एकाक्षरी नाममाला से श्लो. ४६, पद्य, मूपू, इतर (अजिरे कथितोकारो हरिहर कमठ), १०९५२४-२ (+) " अजीवकल्प प्रकीर्णक, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (आहारे उवहिं सिय उवस), १०६५०३-११(+) अज्ञात व्याकरण, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, ? (रते भवः दंत्य देत), ११३३५४-१(+) अट्ठाईमहोत्सव व्याख्यान, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, श्वे. (तेणं कालेणं० रायगहे नगरे), ११३८९३(+$) " अढीद्वीप १७० उत्कृष्टजिन नाम, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीजयदेवनाथाय), ११०३२६ अतीत अनागतवर्तमान २४ जिन नाम, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (अथ जंबूद्वीपे दक्षिण), ११०५२७-२(०) " अनध्याय श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, वै., इतर (अष्टमी गुरुहंती च), ११३०४७-५ अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३ नं. १९२, प+ग, मूपू (तेण कालेनं० नवमस्स), प्रतहीन. (२) अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र टीका, आ. अभयदेवसूरि सं. वर्ग. ३. वि. १२वी गद्य म्पू., (अधानुत्तरौपपातिकदशा). 1 "" " 1 ११०३४० (+) अनुयोगद्वारसूत्र आ. आर्यरक्षितसूरि प्रा. प्रक. ३८, ग्रं. २०८५ प+ग. म्पू, (नाणं पंचविहं), प्रतहीन. " 1 "" (२) अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा ८ विभक्तिनवरस, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा. प+ग, म्पू, (से किं तं अट्ठणामे अड्ड), ११४६७८-३(+) "" १०६५१४(०३) (३) अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा ८ विभक्तिनवरस का बालावबोध, मा.गु, गद्य, मूपू (जिणे करी अर्थ प्रकट करीये), १९४६७८-३(+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र. बीजक, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, म्पू. ( आचारांगादि बिंदूसार १४), १०७०४३(०) अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., अधि. ३, श्लो. २१९, पद्य, मूपू., इतर, (शुद्धवर्णमनेकार्थ), ११५२२८-१ अनेकार्थमंजरी, सं. लो. ४२, पद्य, म्पू, इतर (शिवः शर्वः शिवः शुक्र), ११५२२८-२ अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानमतीत), १०६५१४(+$) (२) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिशिका स्वाद्वादमंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं. श. १२१४, गद्य, मृपू., (यस्य ज्ञानमनंतवस्तु), For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ अपराजितवास्तुशास्त्र, विश्वकर्मा, सं., पद्य, जे. वै., इतर (--), प्रतहीन. " "" (२) अपराजितवास्तुशास्त्रगत जिनमूर्तिलोक हिस्सा, विश्वकर्मा, सं., श्लो. ३५, पद्य, जै. वै., इतर (सुमेरुशिखरं दृष्ट्वा गौरी), १०९९९५-२($) अभव्यजीव गाधा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू (संगमय १ कालसूरय२ कविला३) १०८३४२-५ (०) अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणिपत्यार्हतः ), १०६७३५(+), १०७००९ (+), ११४४६५ (+४), १०६९४६, ११२५५४(१), ११३६३० (१), १०६८००(३), १०७१३८(४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., इतर, (अहं श्रीहेमचंद्राचार्यः), १०९९९४(+$) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-बीजक, सं., गद्य म्पू, इतर ( नाममाला पीठिका जिनेश), १०९९९० 3 अभिधानादि एकाक्षरी नाममाला, सं., श्लो. ३७, पद्य, वै., (अभिधानं प्रवक्ष्यामि), १०९५२४- १(+#) अभिनंदनजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (त्वमशुभान्यभिनंदन नंदिता), ११३५४२(१), १११९२९-१(*) " अरिष्टाध्याय, मु. कुमारसेन, सं., श्लो. ३८, पद्य, जे. इतर ? ( शरीरं प्रथमं लिंगं), १०९३३८-१(+) " " " अरिहंतकाल भरतैरावतक्षेत्र विद्यमानभाव गाधा, प्रा. गा. १, पद्य, मूपू (अरिहंत‍ समय २ बायरविज्जू३), १११४०३-६(*) (२) अरिहंतकाल भरतैरावतक्षेत्र विद्यमानभाव गाथा व्याख्या, सं., गद्य, भूपू (अर्हत उपलक्षणं चक्र०), १११४०३-६(+) अरिहंतजाप गणणु, सं., गद्य, मूपू., (अनंतज्ञानगुणधारकाय नमः), ११०३२४-१ अरिहाण स्तोत्र, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (अरिहाण नमो पूयं), १११२२८-१(#$) अर्धकांड, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १९, पद्य, मूपू. इतर ( तपसिंद नरिंद नयं पणमिय), १०९६९२ - १( +०) १०९६०६(क) अर्धकांड, मा.गु., सं., प+ग. म्पू, इतर (अर्धकांड प्रवक्षामि), १०९६९२-२ (+०६) " . अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, श्लो. ११७, वि. १२वी -१३वी, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामापि कर्णाभ्यां), १०८५३२ (+$) अष्टप्रकारी पूजा, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, मूपू., (--), ११४३७३(+$) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू, (संप्रात संसारसमुद्र), १९३०५१-३ अष्टापदतीर्थ स्तवन-षड्भाषामय, अप., पै., प्रा., माग. शौ., सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (सानंदमुद्यत्पुलाकेः), १०९५०६-१(+#) (२) अष्टापदतीर्थ स्तवन - षड्भाषामय- टिप्पण, सं., गद्य, म्पू, (० महागजेंद्रघटाविनिर्घात), १०९५०६-१(+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य म्पू. (शांतीश शांतिकर्त्ता), २०६५५७-२(०) आगमग्रंथाग्र परिमाण विवरण, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (पणयालीसं आगमं सव्वगंथाण), ११४३१८ आगमिक विचार संग्रह, प्रा. मा. गु., सं., प+ग, वे., ( नमो अरिहंताणं नमो) १०८८४६-१(+४), ११३३८६ (+) "" , " आचारोपदेश, उपा. चारित्रसुंदर, सं., वर्ग. ६, श्लो. २४६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (चिदानंदस्वरूपाय), प्रतहीन. (२) आचारोपदेश- अष्टप्रकारीपूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपु. ( तीर्थोदकैर्धुतमलैरमल), १०९४४० आचार्यविज्ञप्तिपत्र पद्धति, प्रा.सं., गद्य, मूपू., इतर, ( ॐ स्वस्ति श्रीपासं पणमिऊण), १०७५१६ ($) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१ वि. ११वी प+ग. म्पू.. (देसिक्कदेसविरओ), १०६५०३-२(०) आत्मनिंदाष्टक, आ जिनप्रभसूरि सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू. (श्रुत्वा श्रद्धाय), ११३७७७-१(+), १०८१०७ आत्मप्रदीप शतक, आ. बुद्धिसागरसूरि सं., श्लो. १०३ वि. १९६१, पद्य, मूपु., (हदि ध्यात्वा गिरामौरी), ११०५९५०) आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प्रका. ४, श्लो. १८१, वि. १८३३ प+ग. मूपू. (अनंतविज्ञानविशुद्ध), १०६८२६ (+४) (२) आत्मप्रबोध-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनलाभसूरि. सं. वि. १८३३, गद्य, मूपू (अनंतविज्ञानविशुद्धरूपं), ९०६८२६ (+३) आत्मशिक्षाशतक, मु. रामचंद्र यति, सं., श्लो. १११, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंद चिद्धनं), १०८८३०(+) आत्मानुशासन, आ. गुणभद्र, सं., श्लो. २७१, वि. ९वी, पद्य, दि. (लक्ष्मीनिवासनिलयं विलीन) १०६७२१(३) (२) आत्मानुशासन-भाषाटीका, पुहिं., गद्य, दि., (श्रीजिनशासन गुरु नमौ), १०६७२१ ($) , 1 " "" " (२) आत्मानुशासन-भावार्थ, पंडित. टोडरमल, पुहिं., वि. २०वी, गद्य, दि., (ऐसे अपने इष्टदेव का), १०६७२१ ($) आदिजिन चैत्यवंदन, सं. लो. २, पद्य, मू, श्रीनाभेय जिनेश्वरस्य जयत), १०६५३८-९ "" For Private and Personal Use Only ४७७ Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ " " आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा. सं. गा. १६, पद्य, मूपु., (मुक्तालंकार विकार), ११०२४६, १९४५४५-१ आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा., मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू. (विणयनवरी विणयनवरी), ११४५४५-२(5) आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि सं., श्लो. ३८, वि. १५वी, पद्य, मूपू (महिम्नः पारं ते परमलभमाना), १०६७८७/+S), १११७६२७) आदिजिन शकुनावली, मु. धर्मविजय, सं., श्लो. ४९, वि. १८०२, पद्य, जे. इतर (अकारादि ह्रकारांता) १११८३४(३) आदिजिन स्तव, प्रा. गा. १०, पद्य, भूपू (सिरिसिद्धचककनवपवपयमह), १०९५०५ " ', (२) आदिजिन स्तव टवार्थ, पुहिं. गद्य, मृपू., (श्रीसिद्धचक्र का नवपद), १०९५०५ 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तव-देउलामंडन, ग. शुभसुंदर, प्रा., सं., गा. २५, पद्य, मूपू., (जय सुरअसुरनरिंदविंद), ११५१४० ($) आदिजिन स्तवन, मु. धर्मसिंह, सं. श्री. २५, पद्य, म्पू. (-), ११०९५०-११) " आदिजिन स्तवन, वा. विनयविजय, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (श्रीमरुदेवातनुजन्मानं), १०९४४१-४ आदिजिन स्तवन, सं., पद्य, मूपू (परमज्योति प्रकाश कारण), १११२२५-३(३) "" आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (भव्यांभोजविबोधनैक), १०७०९८(३), १११९२९-२(१) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (आनंदानप्रकप्रत्रिदशपति), ११०५८७-२ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (प्रथमं जिनपं वंदे० गुण), ११३६७५-१(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( युगादिपुरुषेंद्राय युगादि), १०७८६३ -२ (#), ११२९९५-४ ($), ११३०४७-१ ($) आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, भूपू (वरमुत्तियहार सुतारगुणं), ११०००४-३ (+) ', आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथिपर्व, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू. (उद्यत्सारं शोभागार), ११०९६५- १(+४) आदिजिन स्तुति- प्रबंधकोश, सं., श्लो. १, पद्य, मृपू. (राज्याभिषेके कनकासनस्था), १०८६८९-१(१ आदिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपु. ( महेंद्रादिदेवावलीसेवितां), १०९१४२-१(+) आदिजिन स्तोत्र-शत्रुंजयतीर्थमंडण, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (पूर्णानंदमयं महोदयमय), ११०३३५ (+), ११०३६५-३(+) आधाशीशी निवारण मंत्र, मा.गु., सं., गद्य, जै., इतर, (ॐ नमो पार्श्वनाथाय), १०९५८१ आयुर्ज्ञान लोक सं., श्लो. १, पग, मूपू इतर (ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू), १०९६७९-६(+) आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., विम. ५, श्लो. ४१३, ग्रं. ४६०, वि. १३वी, पद्य, मूपू., इतर, (ॐ नमः सकलारंभसिद्धि), १०९८६२ (०६) आराधनासार, आ. देवसेन, प्रा., गा. ११५, वि. ९९०, पद्य, दि., (विमलयरगुणसमिद्धि), १०६७७४(+) (२) आराधनासार बालावबोध, पुहिं. गद्य, दि., ( श्रीमतदेवसेनाचार्या ग्रंथ), १०६७७४(+) (२) आराधनासार-छाया, सं., गद्य, दि., (विमलतर गुण समुद्रं सिद्धं), १०६७७४(+) आरामशोभा कथानक, सं., गद्य, म्पू, सद्धर्ममूलसम्यक्त्व), १११९१९(०३) आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., अधि. १९ सू. २२८, वि. १०वी, पद्य, दि., (गुणानां विस्तर), १०८५०२-१(+), १११९३३-१(+) आलोयणा विधि, प्रा., सं., प+ग, मूपू., (पणगं १ मासलहुं २), ११३७०८ (+) आलोयणा विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (प्रथम गृहसधी अविरत ). ११०४३२-२ " आवश्यकसप्तति, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा. गा. ७०, वि. १२वी, पद्य, मूपू आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६. सू. १०५, प+ग. म्पू., (णमो अरहंताणं (२) आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), १०७०७१(+), ११३८६६ (३) (देविंदविदवंदि अपवपमं बंद), १०८९६२ (+) सव्च). १०७०६९ (+३) (३) आवश्यकसूत्र नियुक्ति की टीका, सं., प+ग. म्पू., (--), १०७१३० (+०६) (३) आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति की शिष्यहिता टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), १०७०७१(+) (३) आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति का हिस्सा सामायिक अध्ययन निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं सुचना), १०६६५९(+) For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ४७९ (४) विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अध्य. प्रथम, गा. ३६०३, पद्य, मप., (कयपवयणप्पणामो वोच्छं), १०६६५९(+) (५) विशेषावश्यकभाष्य-शिष्यहिता बृहट्टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., ग्रं. २८०००, वि. ११७५, गद्य, मपू., (श्रीसिद्धार्थनरेंद्र), १०६६५९(+$) (२) आवश्यकसूत्र-भाष्य, प्रा., पद्य, मूपू., (जह गणहरेहिं भणियं), ११३८६६(६) (२) आवश्यकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), १०७०६९(+$) (२) आलोचनासूत्र-देवसिप्रतिक्रमणगत, हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (इच्छाकारेण संदेसह), ११५०४० (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा एकासणा-बेआसणानुं पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), १०९०६३-२(+), ११४९४३-२(#) (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा प्रतिक्रमण स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मपू., (कमलदल विपुल नयना), ११३६०३-२ (२) चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) चैत्यवंदनसूत्र-विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (इछामि खमासमणो कही), १०७१४२($) (२) लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. ७, पद्य, मप., (लोगस्स उज्जोअगरे),११३९०२-१(+) (३) लोगस्ससूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (लोक कहतां चउद राजलोक), ११३९०२-१(+) (३) लोगस्ससूत्र-लोगस्सकल्प, संबद्ध, सं.,प्रा., गद्य, श्वे., (ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं),११४५९८-४ (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमुत्थुणं अरिहंताणं), ११२२३७-२(+#), ११४५९८-१ (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त), १०८९२९-२(+#), ११२८९०-१(+), १०६६०६-२,११११३६-२ (२) जं किंचिसूत्र, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जं किंचि नामतित्थं), १०७६०७-३ (२) ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४४, पद्य, मप., (चोवीसइं जिन चीतवीं), १०९९३९(+), ११०४९१-१($) (२) आवश्यकसूत्र-(प्रा.,मा.गु.)पौषध विधि-चउप्रहरी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां जिणै प्रथम चौ), ११०५२१(#) (२) आवश्यकसूत्र-देशावगासिक विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (निरारंभ रहीइं जिम), ११३०६२-१ (२) आवश्यकसूत्र-पंचप्रतिक्रमणविधिगर्भित सुमतिजिनस्तवन, संबद्ध, वा. विमलकीर्ति, मा.गु., ढा. ६, गा. २०, वि. १६९०, पद्य, मूपू., (सुमति कर सुमति जिन), ११३७२६ (६) (२) आवश्यकसूत्र-पच्चक्खाण आगार यंत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (--), १०९५६१-१(+) (२) आवश्यकसूत्र-पच्चक्खाण आगार विवरण, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मप., (उग्गए सूरे नमुक्कार), १०८६२२-१ (२) आवश्यकसूत्र-पदसंपदालघुगुरु अक्षरादि संख्या, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र सूत्रनाम पद संख्या), ११४८६८(+$) (२) आवश्यकसूत्र-प्रतिक्रमणशब्दार्थ विचार, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (यदाह पुनरुक्ति दोषना),११०३५५-३(+) (२) आवश्यकसूत्र-प्रतिक्रमण सामाचारी-विधिपक्षगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (तत्रादावनगारस्य दैवस), १०८३१०-२(#$) (२) आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमी), १०८७८९-४(+), १०७१८६-२(#), ११३५९४-४(१) (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतने नमस्कार), १०७०६९(+) (२) आवश्यकसूत्र-सामायिक के ३२ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम १० मन संबंधी), ११३१२२-४(+-#), ११४१०५-२(+), ११०५४२-२, ११२४३८ (२) इरियावही १८२४१२० भेद, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (१५ करम भूम ५ भरत ५), ११३१७४-३(#) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (इरियावही पडिक्कमशुं), ११०५६४ (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मपू., (कल्लाणकंदं पढम), १०६४८७-७(+), ११२४०१-४, ११३८००-४, ११०७४८(#) For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८० (२) गुरुस्थापना सूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मृपू. (पंचिंदिय संवरणो तह), ११०२७८-३ (३) गुरुस्थापना सूत्र-सूत्रार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (पंचिदियक० फर्सनरसन) ११०२७८-३ (२) देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम दोय गाथारो नम), ११२६७९ -१(+$), ११३६६७-१ (२) देवसिप्रतिक्रमण विधि- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू (इरीयावही तसुतरी) ११२८६० (+), ११४१८४-२ (+) (२) देवसिप्रतिक्रमणविधि सज्झाय संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, गा. २२, पद्य, म्पू.. (सुगुरु गणधर पाय प्रण), १०६७८०-१९(+) (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., ( नमो अरिहंताणं), १११९०६ (+), ११४६४०(+$), १०६४७७) १११२७८ (२) देवसियराईय प्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, गु., प्रा., मा.गु., प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं नमो), १०६८३९ (०) "" (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो ), १०६८५६-१(+), १११७९३-१ (४७) (२) देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), ११५१६१(#) (२) पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छामि० इरियावहि०), १०६६२७ (-s) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, मूपु. ( णमो अरिहंताणं० जयउ), १०६४७६ (+), ११४०८९(5) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय का वालावबोध, मु. सहजकीर्ति कवि, मा.गु., वि. १७०४, गद्य, म्पू, (--), १०६४७६ (+) (३) आवक अतिचार- खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, (नाणंमि दंसणम्मिअ), ११४१०१-२ (०३) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं), १०६४८७-१ (६), १०६४९४-१, १०६६०६- १($), १०९०५९($), १११२८१ ($) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय पक्खीचीमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मृपू., (मुपत्तिवंदणय समुदा), १०८७८९-१०) १०६७७९-२(४) (४) पंचप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय पक्खीचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि गाथा-टबार्थ, प्रा. मा. गु., गद्य, मूपू.. (इच्छाकारेण संदेसह), १०८७८९-१(+) (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, म्पू, (करेमि भंते पोसह), ११५१४५ (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), १०९७२०-१ (+), १०८२७२, १११९०८-४, ११३५३८-२, ११३६७७, १०७१८६-१(१) (४) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय-टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (मानवी श्रीवितरागनी), १११९०८-४ (२) पच्चक्खाण पारने का सूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, म्पू. ( नमुक्कारसी मुठसी), ११३७०९-२(+) (२) पच्चक्खाणसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, म्पू, (पाणहार दिवसचरिमं पच्) प्रतहीन. , (३) निरागार- आगार पच्चक्खाण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मृपू., (हवि छठउ अध्ययन), ११५०३१(०६) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., पग, मूपू. (मुहपत्तिवंदणयं), ११०४१६ (+), ११३२१५ (+), १११८९७-१(#), ११३२२४-२(#), १०९५३५-२(s), ११११३७(s) (३) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु. ( प्रथम देवसी पडिकमणो), ११३२२४-२(१), १०९५३५-२(३) ११११३७ (5) (३) आवश्यकसूत्र- क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वे यक्षांबिकाद्या), १०९१०६-२, १०९३१९-२ (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसी अर्धनु वंदेतु), ११२६७९-२(+) (२) पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( स्नातस्याप्रतिमस्य), १०६४८७ - ४(+), ११०९७०-२(+#), १११११५-५(+३), ११०९७३-२, ११३६०३-१, ११४०३७-५, १०७२०५(१) ११३८००-१(5), ११०२६१-२ (-१) (३) पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नान कराव्यु छे), १०७२०५ (#) (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य म्पू (प्रथम इरियावही पडिक), ११३५९४१, ११४१८९, ११४७०८-१ "" (२) पौषधविधि- अष्टप्रहरी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (रात्रि पिछली घडी २), ११४७१५ (००१, १०६७७९-१ For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ (२) प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीप्रवचनसारोद्धार), १०६५२७(+#$), ११०२०४ (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलोइय पडिक्कं), १०९४७२(#), १११९२५(5) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १०९०६३-३(+$) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १०९५९९, ११३५३३(६) (२) प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १९, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर प्रणमी), १०६७१७(#$) (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), १०८६००-१(+#), १०९२९७-१(+), १०९५५६-१(+), १०९६४२-१(+), १०९७९१(+), ११३६३६(+$), ११३७०९-१(+), १०६५३८-१,१०७६९६-२, १०८६७०, ११२३९९, ११३३३३-३, ११३८३५-१, ११०७४९-१, १०७७०३-१(#), ११०९०९-५(#), ११४९४३-१(#$), १०८७३४(६), ११३१८७-२(६), ११५१९४($) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूरिजना उदय हूंती), १०९६४२-१(+) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यनइ उदये बै घटिक), ११३६३६(+$) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दो चेव नमोक्कारे), १०७०९६-१(+#), १०७६९६-१, ११११४८-१, ११३१८७-१ (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूप., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त्वमोह), १११२४८-२(+), १०८३१०-३(#) (२) राइ प्रतिक्रमणविधि सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मपू., (वस्तु प्रथम जागि), १०६७८०-२०(+) (२) राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ११३५९४-३ (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), १०६४८७-३(+), १०८७३६(+#), ११३१४६-३(+#), १०६९९२-२, ११३५०८-१(-) (२) रात्रिप्रतिक्रमणविधि गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, म्पू., (कुसुमिण दसुमिण राईय), १०८७८९-२(+), १०९५३५-१ (३) राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा-टबार्थ, रा., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदि०), १०८७८९-२(+), १०९५३५-१ (२) वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), १०७२४०(+#), १०८६३२(+#), १०९६४७(+#), ११००३०(+#), ११३६४०(+$), ११४०७८(+), ११४०८७(+#), ११०४३४, ११३१५५(#$), ११४०८०(#$), ११३०५२(s), ११३६८८-१(६) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (णमो अरिहंताणं णमो), प्रतहीन. (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., वि. १५२५, गद्य, मूपू., (शिवाय श्रीमहावीरः), ११३१६७(#$) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), १०७०३१-१(+), ११३७७४-१(#S) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. २७२०, गद्य, मूपू., (वृंदारुबंदारकवृंदवं), ११३७७४-१(#$) (३) श्रावकदेवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मूपू., (सातलाख पृथ्वीकाय), ११३९२७-३(+#) (३) श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (नाणंमि दंसणंमि०), ११०४६२(+), ११२३१३(+5), ११४०४३(+#$), ११४०६०(+), १०६४८५(#), ११२५६१(#$), ११३०६६(#$), ११३७६३(#$), ११३८३४-२(#$), ११२८१५(), ११५१७८($) (४) श्रावकपाक्षिकअतिचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११२४८५ (#$) (२) श्रावकसंक्षिप्तअतिचार*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., भूपू., (पण संलेहणा पनरस), ११५०४२(+$) (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह), १०६४८७-६(+), १११११५-३(+-), ११२५००(+), ११०९७३-३, ११३०२०-४, ११३८००-३ (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं), ११०६१६-३(+) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० आवस्स), ११३३९६ For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मप., (नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण), १०९२७७(+), १०६७३२(#) (३) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह(श्वे.मू.पू. का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्व), १०६७३२(#) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आवसही कहेतउ सावधान), १०६७३२(#) (३) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग., मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ११११६०(+$), ११४१२०(#s) (३) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, प्रा., पद्य, मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ११३१२८-१(+$) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), १०९५५६-२(+), ११३१२८-२(+), ११३६९५(+) (४) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह के हिस्से क्षामणकसूत्र की टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., वि. ११८०, गद्य, मपू., (ततो यथा राजानं पुष्प), ११३६९५(+) (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मूप., (करेमि भंते० चत्तारि०), १०६६६६(+), १०७४५४(+), ११३८०४(+#$), ११४०५०-१(+#$), १०९२३३, ११४०७२($) (४) पगामसज्झायसूत्र-टीका, सं., गद्य, मप्., (शुभयोगेभ्यो शुभयोग), १०६८६०(+#$) (४) पगामसज्झायसूत्र-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं. २९६, गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनाधिपति), ११४०२७(#$) (४) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पगाम सज्झायसूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (निवर्तवा वांछुउ), १०६६६६(+) (३) साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार-मू.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ठाणे कमणे चंकमणे), ११३२७९-२ (३) साधुपाक्षिकअतिचार-म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), ११२४८४-१(+$), ११३६३२(+$), ११५१०६(+$), ११०४७६(#), ११३०१९(#$), ११३८७९(#s), ११२९९२(६) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र गाथा संग्रह, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पडिकमण१ गमण२ भोअण३), ११०५३०-२(#) (३) साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार- श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, पू., (संथारा उवट्टणकि परिय), १०७१८६-३(#), १११०६८(#$) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण), १०७०८४(#$) (२) सामायिक पारने की विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (इच्छाकारेण तस्स), १११११८-२(+) (२) सामायिक लेने की विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (इच्छामि खमासमणो), १११११८-१(+) आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वसुखमागारं), १०६६४५ आहार के ९६ दोष, प्रा., गद्य, मूपू., (आहाकम्मे१ उद्देसिक२), ११०५५५(+#), १०७०१३ (२) आहार के ९६ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (आ० आधाकरमी आहार), ११०५५५(+#), १०७०१३ आहारादिमान गाथा-भरतादिक्षेत्रे, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (बत्तीसं कवलाहारो), १०९२०३-१(+) इंद्र कवच-आत्मरक्षा, सं., पद्य, मपू., (ॐनमोअरिहंताणं क्रौं हृदयं), १०९१४२-३(+) इगुणतीसी भावना, प्रा., गा. ३०, पद्य, श्वे., (संसारम्मि असारे), ११३८०२-१(+#$) इरियावही कुलक, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (दवा अडनउयसयं १९८ चउद), १०९५३६-१(+) इष्टतिथ्यादि सारणी, म्. लक्ष्मीचंद्र, सं., वि. १७६०, पद्य, मप., (श्रीवामेयं नमस्कृत्य), ११२७७४(#) (२) इष्टतिथ्यादि सारणी-अर्थ, मा.गु., गद्य, मप., (भाग देई उपरिला गण मै हीन), ११२७७४(#) इष्टोपदेश, आ. देवनंदी, सं., श्लो. ५१, वि. ५वी, पद्य, दि., (यस्य स्वयं स्वभावाप्ति), प्रतहीन. (२) इष्टोपदेश-टीका, सं., गद्य, दि., (इदं इष्टोपदेशग्रंथस्य), ११४०७०(+#$) । उत्तमनगर शोभा वर्णन, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (यत्र श्रीफल शाखिनां०), ११४४५६-१ उत्तमादि पद विवरण श्लोक, सं., पद्य, म्पू., (उत्तमैरिक्ष्यसेनत्वं), १०९१९५-३(+#) (२) उत्तमादि पद विवरण श्लोक-टीका, सं., गद्य, मप., (आउत्तमः उत्तम इतीपदर्थे), १०९१९५-३(+#) For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), १०६६३५(+$), १०६९१०(+$), १०८७९८+), १०९२३८+), १०९८२८),११०३०४-१(+#$), ११२५०२(+६), १०८९१५,१०९४६०, ११०१९७#), ११३३८४-१(#S), ११३७९९(#$), ११३९२८(#s), १११३९२(5), १११९९९($), ११३१२१(६), ११३१४७($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, मूपू., (भिक्षो विनयं प्रादुष्करि), प्रतहीन. (३) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भिक्षु महात्मानइ), ११३९२८(#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. १५३००, वि. १८पू, गद्य, मूपू., (अहँतो ज्ञानभाजः), ११०१९७(4) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (संयोग बे प्रकारे), १०६९१०(+६), ११०३०४-१(+#$), १०८९१५, ११३७९९(#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., कथा. ४, गद्य, मूपू., (एक आचार्यनइं एक चेलो), ११३६१४(+$), ११४९००() (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ७४, पद्य, मूपू., (सुअं मे आउसं तेणं), प्रतहीन. (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., बो. ७३, गद्य, मूपू., (संवेग१ ते मोक्षनो अभिलाष), १०६८६२-२(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूपू., (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न), ११२०१४-२(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१ विनयसुत्तं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पवयण देवी चीत धरीजी), ११४४३०(5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्त धरी), ११३३६२(+$), ११४६५४(+$), ११४३९२(#$) उपकेशगच्छीया पट्टावली, सं., गद्य, म्पू., (इशिक ऐश्यर्ये ओकेषु), प्रतहीन. (२) उपकेशगच्छीया पट्टावली-ओकेशोपकेशपदद्वय दशार्थी, संबद्ध, उपा. श्रीवल्लभ वाचक, सं., वि. १६५५, गद्य, मपू., (ईशिक ऐश्वर्ये उकेषु), १०९९४०-३(+) उपदेशमणिमाला कुलक, आ. जिनेश्वरसूरि , प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (जीवदयाइ रमिज्जइ इंदियवग्ग), १०८८६९-२(+) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मप., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), १११२४९(#$), १११८०५-३(१), ११३५८९(5) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), १११२४९(#$) (२) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा वीरजिन), १०७०३४(+$) (२) उपदेशमाला गाथा शकुन, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चं भासइ अरिहा), प्रतहीन. (३) उपदेशमाला गाथा शकुन-(प्रा.+मा.गु.+सं.)शकुनज्ञान विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (उपदेसमालानी गाथाना),११४७७८ उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मप., (उवएसरयणकोसं नासिय नीसेस), ११४५४६(#$), ११४१३८-२(5) (२) उपदेशरत्नमाला-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ११४९४८(#) उपधानतपविधि यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (उपधाननाम१ सूत्रनाम२), ११४६६१-१ उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (शुभमुहूते पूर्व), ११३७१४-१(+$) उपसर्गगण, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., इतर, (प्रपरापसमन्ववनिर्दुरभिः), ११००१०-१(+) (२) उपसर्गगण-दीपिका टीका, सं., गद्य, मप., इतर, (अयं उपसर्ग गणः प्राक्तनैः), १०७३६९(+), ११००१०-१(+) उपसर्गार्थ प्रकरण, सं., गद्य, जै., इतर?, (प्रादीनामुपसर्गाणां), १०९६३२(+) । उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मूपू., (तेणं० चंपा नामं नयरी), १०७१२०, १०९५६०($) (२) उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., अध्य. १०, वि. १११७, गद्य, मपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १०९५६०(5) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १०७१२० उवसग्गहरं यंत्र पूजन विधि, सं., गद्य, मूपू., (--), १०९२५७-१(६) उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूप., (उवसग्गहरं पासं पास), १०८१६४-१,११०१९६-२, १०७२०८-१(#), १०८१५२(१), ११३८४६(#) For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की टीका , सं., गद्य, मूपू., (अहो भव्या अहं), ११३८४६ (#) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा , संबद्ध, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (तुह दंसणेण सामिय), ११३७२१-३(+), १०७०९९-२, ११४०७९-५, १०७२०८-२(#), ११०४७३-४(#) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १०, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (उवस्सग्गहरं पास), ११०३३२-१ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ९, पद्य, मप., (उवसग्गहरं पासं पासं०), १०७६६४(+) ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २०९, ग्रं. २५९, वि. १४वी, पद्य, मपू., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), ११४५२२(5) ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं), १०८७०४(+), ११३५०५(+), ११४८८०(+), १०८०७३, १०९८०८, ११०३४८, ११०४७१, ११३४९०, १११४३५(६), १११७६१(६), १११११६-१(-६) (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-बहद-यंत्रलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (प्रथम स्थान पवित्र), ११३४१७ ऋषिमंडल स्तोत्र-लघु, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६३, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), १०६७३९-१(+), १०६७४६($) एकाक्षर कोश, सं., श्लो. ३८, पद्य, वै., इतर, (अकारो वासुदेव स्याद), १०८७२६-२ एकाक्षर नाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूप., इतर, (विश्वाभिधानकोशानि), १०८५६८(+), १०९२०९(+), १०८७२६-१,११५२२८-३ एकाक्षर नाममाला, मु. सुधाकलश मुनि; आ. हिरण्याचार्य, सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., इतर, (श्रीवर्धमानमानम्य), १०८७५४(+). १०७६१६(#) एकाक्षर विचित्रकाव्य, सं., श्लो. ४, पद्य, मूप., (रोरारेरां रीरीर रैर), १०९८६९-१(+) (२) एकाक्षर विचित्रकाव्य-टीका, सं., गद्य, मप., (कोपि पुमान् निज भक्ति), १०९८६९-१(+) एकेंद्रियादिजीव निवासस्थान गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (एगिदिअ पंचिंदिअ उड्ढे अ), १११४०३-१(+) ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ११६४, पद्य, मूपू., (अरहते वंदित्ता चउदस), १०६८५८(+#) (२) ओघनियुक्ति-टीका#, आ. द्रोणाचार्य, सं., ग्रं. ६८२५, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अर्हद्भ्यस्त्रिभुवनराज), १०६८५८(+#) औपदेशिक कुलक, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (हयं नाणं कियाहीणं हया), १०९७२०-३(+) औपदेशिक गाथा संग्रह*, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (अजो कृष्ण अवतार कंस), १०८४७६-२(+), १०९००४-२(+), १०९९४०-६(+), १०९७१२-३ औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, मपू., (इह१ परलोया२ याण३ सकह्या४), १०७१८५() औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (जं जं समयं जीवो), १०८३०१-२(+), ११३४५६-२(+#) औपदेशिक गाथा संग्रह-विविध विषयक विविध ग्रंथोद्धत, प्रा.,सं., पद्य, मप., (पुआ जिणंदेस रई वएस), ११५१००(#) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ९, पद्य, श्वे., (काम वली सवही पुरहे), १०९४५६-२(+), ११२३३४-४(+$), १०८६२२-४, १०८९७८-२,११४०२९-१, ११४०९५-१३(5) औपदेशिक व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (धर्मः कामगवी यदीय), ११४३३२(+$) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., (क्रोध मान यथा लोभं), १०९११७-३(+) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (जिनेंद्रपूजा गुरु), ११३४७२ (२) औपदेशिक श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (अरिहंत भगवंत अशरण शरण), ११३४७२(5) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मपू., (संवत्सरेण यत्पापं), ११३९८३-१(+) औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), ११४३६०-३(+#$), १०९७७९, ११२९७३-२, ११४९११-१(#), १११९२२(5), ११३२४७($) (२) औपदेशिक श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (अर्हत भगवंत सर्ण), ११३२४७($) (२) औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अल्त भगवंत असरणसरण), १११९२२($) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २६९, पद्य, जै., वै., (महतामपि दानानां काले), १०८६०६-२(+), ११४२४९-४(+), ११३४८०-३, ११४८३०-३ For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ " औपदेशिक श्लोक संग्रह- वर्णमालागर्भित, सं., श्लो. १६, पद्य, वे (टः पुमान् वामने पादे), १०६५३८-२ औपदेशिक सवैया, हिं., प्रा., गा. ३, पद्य, खे, (देख देख गोरो गात), ११४०६१-२(+) औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु. सं., सबै २५, पद्य, जे. वै. 2 (पांडव पांचेही सूरहरि), ११४६९१-१(०३) औपपातिकसूत्र, प्रा. सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, म्पू., (तेणं काले० चंपा० ), ११०३०४-२+०६) " (२) औपपातिकसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (चउथा आरानइ विषइ वरस), ११०३०४-२ (+४७) 3 औषधमंत्रादि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, वे, इतर ( खोरासाणी अजमो रटी), १०९०३५-४/+), ११०७६७-२०१ कथा कल्लोल, सं., श्लो. ४७, पद्य, मूपू वै. पंचांधा गजमीक्षणार्थमगमत् ). ११४९९५ (३) " औषधवैद्यक संग्रह, पुहि प्रा. मा. गु. सं., गद्य, इतर (अनार दाणा टो. ८०), १०६८१६-२(+), १०७७२३-३(+१), १०७९७२-३ (+), "" " ११२५३४-३, ११५१७९-२, १०८५६७-७१, १०८६५५-२०१, ११२५२६-४१ औषध संग्रह, सं., गद्य, इतर (--). १०८८७४-४ (२) कथा कल्लोल-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (पांच आंधा एक नगरमांहि), ११४९९५ (४४) कथा संग्रह, सं., गद्य, म्पू., (पश्चिम विदेहे गंधिला), २०६७९९ **३, १०७६१७-१०), १०९१५८(३) कथा संग्रह-अष्टप्रकारी पूजा, सं., पद्य, मूपू., (--), ११३६४२ (६) कथासंग्रह-वसतिदानादि विषयक, प्रा., सं., कथा. ८, गद्य, मूपू., (वसही सयणासण भत्तपाणे), १११४३६ (+$), ११३५९२(#$) कनकरथराजा कथा-सुपात्रदानविषये, प्रा. सं., गद्य, म्पू, (अत्रैव भरते वैताढ्य), ११३७४८-२(६) करेराज कथा, सं., गद्य, मूपू., (मंगलपुरे राजा पृथ्वी), ११३७४८-१($) कर्णिकागणना विचार, सं., गद्य, थे. (विषमात्पदतसत्यक्त्वा), १०९७८२-२(*) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्पूरचक्र, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू, इतर (पणमिय पयारवंदे तिलुक), १०९२३७ (२) कर्पूरचक्र बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, इतर (-), १०९२३७ कर्मदहन पूजा, आ. वादिचंद्रसूरि सं., प+ग. दि., (ॐ ऊर्ध्वाधारयुतं स बिंदु), १०६७४९-१ कर्मभूपाल चरित्र, उपा. चारित्रसुंदर, सं., वि. १५११, पद्य, मूपू., (--), १०७१३१(+#$) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १ आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. ६१, वि. १३वी ९४वी, पद्य, म्पू, (सिरिवीरजिणं बंदिय), १०६६२२-१ (५), " १०७०८६-१(+), १०९७८० (+), ११४०५१(७) ११३८९४६) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - १-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन वांदी), १०७०८६-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १- हिस्सा ८ कर्मबंध कारण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८. वि. १३वी १४वी, पद्य, भूपू., निन्हव उवधाय ११०२८५*) (३) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-हिस्सा ८ कर्मबंध कारण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवै ग्यानावरणी दरसणावरणी), ११०२८५ (+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - १-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., यं., मूपू., (श्रीवीरजिन प्रते), १०७११३-१(+) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ -२, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. ३४, वि. १३वी १४बी, पद्य, मूपू (तह थुणिमो वीरजिणं) १०६६२२-२(+), १०७०८६-२(१) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - २-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (बंध ते स्यु कहीयइ), १०७०८६-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ- २-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., मूपू., (बंध प्रकृतिओ छे), १०७११३-२(+) कलंकी जन्मपत्री फलकथन, प्रा., मा.गु. रा. गद्य, भूपू. ( मम निव्वाणं गोयमा), ११३०९२(+) " कलशचक्र श्लोक सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू (गण योनि राशि भेदा हिंसक ), १०९८३१-३(+) , कलशस्थापन विधि, सं., गद्य, वै., इतर, (ॐ ह्रीं भूः स्वाहा ॐ), १०९३०१-२(#$) कलिकुंड पूजा, सं., प+ग. दि., (35 हूंकारं ब्रह्मरुद्ध), १०७०२२-१(०) " ४८५ For Private and Personal Use Only (पडिणीयत्तण Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मपू., (तेणं कालेणं० समणे), १०६५२६(+#$), १०६५३२(+), १०६५९५(+#$), १०६६०९(+#$), १०६६२४(+), १०६७९५(+#), १०६८३२(+#), १०६९०१(+), १०७०१६(+5), १०७०३२-१(+#$), १०७०८९(+$), ११३१०५(+$), ११३२५८(+#), ११४०९४(+$), १०६६२३, १०६७७०, ११३७३६(#$), ११४५५३(#$), १०६६१२(), १०६६४४(5), १०६७५४(६), ११३४४७($), ११३८३६(१), ११३८३९(१), ११५१६२() (२) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. ४१०९, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्य), १०७०३२-१(+#S) (२) कल्पसूत्र-कल्पमंजरी टीका, मु. रत्नसार, सं., गद्य, मूपू., (श्रीनाभेयजिनेश्वरोत), ११३९००(६) (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूप., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), ११३७१२($) (२) कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेषखंडलं), ११४५५३(#$), ११३७७६($), ११३८३९($) (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., ग्रं. ६५८०, वि. १६९६, गद्य, म्पू., (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), ११३६६६(+), १०६७७० (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, उपा. रामविजय, मा.गु., वि. १८१९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १०७०७९($) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं), १०६५३२(+), १०६५६२(+$), १०६६०९(+#$), १०६६२४(+), १०६८३३(+#), ११४३१७(+$), १०६६४४(s), १०९९६९(१), ११५१६२($) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूप., (अरिहंतनइ माहरो), १०६५३२(+), १०६६२४(+), १०७०८९(+$), ११४०९४(+$), १०६६४४(६) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ+कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ११३८३६($) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), ११४०६६(+#$) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेषाखंडलं), १०७११७(१), १०८९३९(5) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा , मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), १०७०८९(+), ११४७८४(+#), १०६६३०(६), १०७०३५() (२) कल्पसूत्र-हिस्सा महावीरजिनजन्माधिकार, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, मपू., (सुमिणा दीट्ठा जाव), प्रतहीन. (३) कल्पसूत्र-हिस्सा महावीरजिनजन्माधिकार का-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (नमो अरिहंताणं० भगवंत), १०६९८२($) (२) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समय), ११४११८(+#$) (३) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन-टीका, सं., गद्य, म्पू., (तस्मिन् काले तस्मिन्), ११४११८(+#$) (२) कल्पसूत्र-जिनेश्वर गर्भकाल व महावीरजिन जन्मवांचन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (ऋषभदेवस्वामी नवमास ९), १०८२०५ (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (अर्हत भगवंत उत्पन्न), ११३७५१(+#$) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (देवाणं जिणदेवो), १०९९५६(+#) (३) कल्पसूत्र-पीठिका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरना चरित्र वृक्ष), १०९९५६(+#) (२) कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (५० कोडि लाख सागर), ११२९७८(+), १०९४८०, ११३५७८-२(#) (२) कल्पसूत्र-संबद्ध त्रिशलामाता दोहला विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवै त्रिसला मातान), ११२०४१ (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, आ. जयसुंदरसूरि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (मंत्रे श्रीपरमेष्टिमंत्र), १०८३४१(६) कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), १०६५०१-२(+), १०६४५६-२ (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे भगवंत समण०), १०६५०१-२(+), १०६४५६-२ कल्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं०), १०६५०१-१(+), १०६४५६-१ (२) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस्कार), १०६५०१-१(+), १०६४५६-१ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मप., (कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि), १०६९६३(+$), १०७१२८(+#), १०९०२६(+), १०९६९७(+#), १११५६४(+६), ११४५८०-१(+), ११४९३४(+5), १०९९२०-२, ११०२२६, १०७०३०(#), १०९५९५(#), १०९८९२(१), १११२३२-१(#$), ११३५९७(#s), ११३६११-१(#s), ११३८८८-२(१), ११४०५४(#$), ११४२०७-२(#$), ११४६९९(#$), ११४९५४(#$), १०६६१५-२(६), ११४०६९($),११४०८८(६), ११५०३६($) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा), ११५०३६($) For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ४८७ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (केहq छे कमल ते), १०६९६३(+$) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), ११४२०७-२(#$) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., दि., (परम ज्योति परमातमा), ११३५८२(+$), ११३७२८-१(#) कातंत्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं., अ. ४ पाद २५, सू. १४०१, प+ग., वै., इतर, (सिद्धो वर्णसमाम्नायः), ११४०५२-१(#), ११४७००-१(-2) कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मप., (जह तुह दंसणरहिओ काय),११४०६२(5) (२) कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ११४०६२(5) कायस्थिति विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (कायथिति जीव गय इंद्र), ११३४२७ कारक विवरण, पं. अमरचंद्र पंडित, सं., का. ७२, पद्य, मूपू., इतर, (कारकाणि कर्ता कर्म), ११४४५२(+$) कालभैरवाष्टक-काशीखंडे, सं., श्लो. ११, पद्य, जै., वै., (यं यं यं यक्षरूपं दश), ११०८६७(#) काला औषध गाथा, सं., श्लो. १, पद्य, मप., इतर, (सूतकं गंध मिरचं टंकणं), ११०१६९-२ (२) काला औषध गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (पारो टां४ गंधकआंवलसारो), ११०१६९-२ कालिककुमार गुणवर्णन पद, मा.गु.,सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (उच्चै सूर इति हि मनोहर इस), १०८९५७-१(+#) कालिकाचार्य अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (प्रवरसेखाग्रे चूर्णि), १०७०९७-१(+) कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६६, गद्य, मूप., (प्रणम्य श्रीगुरुं), ११३९०७($) कुरुकुल्लादेवी स्तवन-सम्मेतशिखर, आ. वादिदेवसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (प्रणवहृदि यदीयं नाम), १०७०३७-७(+-#) कष्णाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (नमो बालगोपालवेणाविनोद), ११३८७४-१ क्षुद्रोपद्रवकाउसग्ग विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलउं क्षुद्रोपद्रव), ११३९३८-२(+) क्षेत्रपाल छंद, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (यं यं यं यक्षरूपं), १०८३७४-३(+#) क्षेत्रपाल मंत्रजप विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं), ११४०७९-१ खंजरीट प्रथमदर्शन फल, सं., श्लो. १२, गद्य, मप., इतर, (मेषलग्ने प्रथमं दृष्टः), १०९०२८-२(+#) खड्गबंधकमलबंधादिचित्रकाव्य श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ६, पद्य, मपू., इतर, (भारती भक्तगीर्वाणगणस्तुत), १०९८३०-१(+#$) खरतरशब्द व्युत्पत्ति, सं., गद्य, मूपू., (शाब्दिक प्रष्टाव्रप्), १०९९४०-१(+) गंगाष्टक, ऋ. वाल्मीकि, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (मातः शैलसुता सपत्निवसुधा), १०९३४४-३(+) गच्छभेद विचार, सं., गद्य, मूपू., (--), १११४८४(६) गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., गा. १३७, पद्य, मप., (नमिऊण महावीर), १०६५०३-१२(+) गजसिंघकुमार चरित्र, आ. विनयचंद्रसूरि, सं., गद्य, मपू., (प्रणम्य भारतीदेवीं), १०८६२४(-#$) गणधर स्तोत्र, मु. शांतिसूरि, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम चिरं जियात्), १०६५३८-५ गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., (वुच्छं बलाबलविहिं), १०६५०३-८(+) (२) गणिविद्या प्रकीर्णक-हिस्सा गाथा-२३ ज्ञानवृद्धि कारक नक्षत्र गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (दस नक्खत्ता नाण बुढिकरा), ११००८८-१(+) (३) गणिविद्या प्रकीर्णक-हिस्सा गाथा-२३ ज्ञानवृद्धि कारक नक्षत्र गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (दश नक्षत्र ज्ञानना __ वृद्धि), ११००८८-१(+) गति आगति द्वार विचार-२४ दंडके, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (नारकीदंड २ गति), ११४३३९-९ गर्भाधानज्ञान विचार, सं., प+ग., जै., वै., इतर, (यदा कश्चित्पृच्छति अस्याः), १०९६७९-५(+) गांगेयभंग प्रकरण, मु. श्रीविजय, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वद्धमाणं), प्रतहीन. (२) गांगेयभंग प्रकरण-चयनित गाथा, मु. श्रीविजय, प्रा., पद्य, मप., (एगंमि उ नरगंमि भंगा सग), १०७६२२(६) गाथा विचार गाथा, अप., गा. ४, पद्य, जै., इतर?, (गाहाणं कवण कुलौ कवण बप्पो), १०९५३६-२(+) गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (कज्जल विज्जल गुंद), ११३४५५-२(+), ११३४९१-१, ११४२५७-३ For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८८ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, श्वे. (सत्तइ रत्ता मत्तइ), १०८५०२-२ (+), ११३७४१ (+#$), १११७४५ (-$) " गाथा संग्रह जैन, प्रा., पद्य, श्वे. (उस्सासारमे भागे). ११२९२७-२ (३), ११४००६-२ . , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा संग्रह जैन, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (सललमधप्रतकाज निक्खु), १०७०९६ १०+१), ११३६६४-१(+), ११४८९८-१(३) गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि से, श्लो. १३५. वि. १४४७, पद्य, म्पू. ( गुणस्थानक्रमारोहहतमोह), २०६८७४(+), , १०७०९५ (+०६), १०६९२२ "" (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. १४४७, गद्य, मूपू., (अर्हं पदं हृदि), १०६९२२(#) (२) गुणस्थानक्रमारोह प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुणठाणनइ विषइ क्रमइ जे), १०७०९५(+#$) गुरु दुखित वचन, उपा. समयसुंदर गणि, सं., श्लो. १९, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (क्लेशोपार्जितवित्तेन), ११३८६८-५ गुरुपारतंत्र्य स्मरण-खरतरगच्छीय, आ जिनदत्तसूरि, प्रा. गा. २१, पद्य, मृपू (मयरहियं गुणगणरवणसावर), १०९७६५-१(+०) (२) गुरुपारतंत्र्य स्मरण- खरतरगच्छीय-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (महइकी रहित गुणज्ञानादिक), १०९७६५-१(+४) गुरु पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, मा.गु., सं., गा. २५, प+ग. दि., (सिद्धांतसूत्र संकिर), १११७३९-२(+) गुरुप्रतिमा प्रतिष्ठा विधि, मा.गु., सं., गद्य, म्पू. (शुभ नक्षत्रेषु शुभवेलायां), १०७७८०-१(०), ११४००१ गुरुलघुक्रियामात्रा छंदोविषयक विचार, सं. प+ग. म्पू, इतर (संख्यांकसजेत्पृष्टान् ) १०९६५९(-) गुरुवंदना, प्रा., गा. ३, पद्य, भूपू (तित्थयरे भगवंते), १०९०६३-४०) " गुरुशिष्यप्रश्नोत्तर विचार, प्रा., गद्य, भूपू (जे भिक्खू असणाईदिज्जा), १०८३३३-२(+) गुरुस्वरलक्षण श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., इतर, (संयुक्ताद्यं दीर्घं), १०९९४०-४(+) गृहद्वार अष्टमंगल स्थापन श्लोक, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., इतर, (नंद्याआवर्त्त मलिंदे शाला), १०९२६७-३(+) गृहस्थधर्म स्वरूप, प्रा.सं., प+ग, मूपू (सम्यक्त्वमूलानि ), ११११५४-२ , गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), १०८३४०-१ (+#), १०८९७०-१ (+), १०९८०७(+), ११३८९०(+#) (२) गौतम कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (लोभीया मनुष्य अर्धन) १०८३४०-१(+), १०८९७०-१(+), १०९८०७(+), ११३८९० (+) गौतम केवली, सं., गद्य, मूपू., इतर, (--), प्रतहीन. (२) गौतम केवली-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर ( श्रीगौतमाय नमः ईणइं), ११४००६-१ गौतमपृच्छा, प्रा., प्रश्न. ४८, गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाहं), १०७०१५ (+#$), ११५१८१ (+), १०६४९५, १०६९६४($) (२) गौतमपृच्छा- टीका, मु मतिवर्द्धन, सं. ग्रं. १६८२, वि. १७३८, गद्य, भूपू (वीर जिनं प्रणम्यादी), २०६४९५ , (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), १०७०१५ (+#S), ११५१८१(+$), १०६९६४($) (२) गौतमपृच्छा-कथा संग्रह, मा.गु., कथा. ३५, गद्य, भूपू (बसंतपुर नगरने विषे), ११५१८१ (+३), १०६९६४(७) गौतमस्वामी छंद, आ. पाचंचंद्रसूरि, प्रा., मा.गु. सं., गा. १७, पद्य, मृपू (सिरिवसुभुई पुत्तो माया), ११०३७८-१(+) गौतमस्वामी स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, म्पू, (कणवमयसहस्सपते कमलं). ११०६८८-२ " गौतमस्वामी स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू (श्रीगौतमं गौतमवंशवंश), ११३६७५-३(+) गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (श्रीमंतं मगधेषु), ११३७३४-२ (#$) गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू (श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति), १०७७१०-१(+), १०८५१५-२(+), १०७२१०, ११०६८८-१, ११११५५, १११९१५. ११४२५५-१. ११३९५२-१(१) 1 गौरीदेवी आवरण प्रमाण श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, वै., ( षट्त्रिका पंच षट्का), १०९८६९-३(+) (२) गौरीदेवी आवरण प्रमाण लोक अवचूरि, सं., गद्य, वै., (३३३३३३६६६६६७ गुणा ३३), १०९८६९-३(*) ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू. (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), १०७०९७-२ (+), १०९४९५-४(१), १११७५८-१+०) १०९२४० १. १११७९४, ११३४६१-२, १११११६.५ (७) " घंटाकर्ण कल्प, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., वै., (प्रणम्य गिरिजाकांत), १०६९४२-१(+), १११४१५ (०३) घंटाकर्णमहावीरदेव मंत्र विधिसहित, मा.गु. सं., गद्य, मूपू (ॐ हाँ ह्रीं श्रीं). १९२१५९ (७) For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ४८९ घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ११२८०७-१(+), १०९६१४, ११०६२४-१(#), ११२५४४(#) चंद्रगुप्त १६ स्वप्न विचार, प्रा., गद्य, भूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ११३८०३(#$) चंद्रप्रभजिन स्तव-षट्भाषायुक्त, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. १३, पद्य, मप., (नमो महसेन नरेंद्र), ११३३३५-२(+), __ ११२८२२-३(६) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू., (ॐ चंद्रप्रभः प्रभा), १११२४३(#) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र-षड्भाषामय, अप.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., पद्य, मपू., (--), ११३८४२(#S) (२) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र-षड्भाषामय-टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), ११३८४२(#$) चंद्रसूर्य दर्शनविधि, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हवे भगवंतना मातपीता जनमथी), ११५१५६ चंद्रावेध्यक प्रकीर्णक, प्रा., गा. १७५, पद्य, मूपू., (जगमत्थयत्थयाणं विगसि), १०६५०३-९(+) चंद्रोन्मीलन शास्त्र, सं., प्रक.५५, पद्य, मपू., इतर, (चंद्रप्रभं नमस्कृत्य), १०७१०५($) चक्रेश्वरीदेवी मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐनमो चक्रेश्वरीदेवी), ११३७२१-६(+) चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीचक्रे चक्रभीमे), ११०३३०(+), ११४११० चक्रेश्वरीमंत्राराधन विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., इतर, (अयं जपः सिद्धविनयः), १०८५८६(#$) चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सावज्जजोग विरई), १०६५०३-१(+$), १०६५१०-१(+s), १०६६९६-२(+$), १०८४८५(+#), १०९६१८-३(+#), १०९६६९(+#), १०९८१०(+), ११३६३९(+#$), ११३८४९(+s), ११३९२२(+#), ११४४२९(+$), १०८०७९, ११०२८८, ११४५२५, ११२५०३(#$), ११३८१२-१(#s), ११३७१३-१(६) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टिप्पण*, सं., गद्य, मूपू., (सामायिकं करेमि भंते), १०९६६९(+#$) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), १०६६९६-२(+$), ११३८४९(+$), ११३८१२-१(#$) चतुर्विंशतिजिन स्तवन-यमकांकित, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ३१, पद्य, मप., (ऋषभनाथ भनाथनिभानन), ११३७८४-१(+) (२) चतुर्विंशतिजिन स्तवन-यमकांकित-संक्षेपावचूरि, सं., गद्य, मूप., (हे ऋषभनाथ भानि नक्षत्राणि), ११३७८४-१(+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन-यमकालंकारगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २४, पद्य, मपू., (नाभेयशोचिर्निचयैर्निरस्ते), १०८७४५(+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, आ. धर्मघोषसूरि , सं., श्लो. २८, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जय वृषभजिनाभिष्ट्रयसे), १०८९६८ चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र-चित्रबंधकाव्य, मु. सत्यसागर, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (दिवादिवादेवविदेवदेवं), ११०४३८ चतुषष्ठिदेव्याष्टक स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (ईश्वरी विजया गौरी), १०८५०९-२ चमत्कारचिंतामणि, नारायण भट्ट, सं., गद्य, वै., इतर, (लसत्पीत पट्टांबरं कृष्ण), प्रतहीन. (२) चमत्कारचिंतामणि-पद्यानुवाद, मु. श्रीसार, पुहि., दोहा. १०८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., वै., इतर, (युं विचार ज्योतिष को), ११०१६८-१ चमत्कारपंचविंशतिका, ग. हस्तिकुशल, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणिपत्य गणाधीशं), ११३६१३-१ चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (एवय समणधम्म १० संजम), १०९६१८-४(+#), ११३३१७-२ (२) चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंचमहाव्रत), ११३३१७-२ चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. ४०१, गद्य, मपू., (स्मारं स्मारं स्फुरज्ज्ञा), १०७०१८(+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (सामाइकावश्यकपौषधानि), ११२७३४(5) चातुर्मासिक व्याख्यान, प्रा.,सं., प+ग., म्पू., (प्रणम्य श्रीमदहँत), १०७०९१(+$) चारित्र विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम सचित्त वस्तु), ११०३४२-४(+) चिंतामणिकल्पे जाप विचार, प्रा.,सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (अंगुष्टजापो मोक्षाय), ११३४९१-२ चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मप., (वंदित्तु वंदणिज्जे), १०८४४३(+) (२) चैत्यवंदनभाष्य-हिस्सा १९ कायोत्सर्गदोष गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (घोडग१ लयर खंभाइ३ माल), १०९७९४-२(+-) (३) चैत्यवंदनभाष्य-हिस्सा १९ कायोत्सर्गदोष गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (अश्वदोष१ घोटिकनी परइ), १०९७९४-२(+-) (२) चैत्यवंदनभाष्य-छूटक बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (तीन ठेकाणे निसीही २), १०९४८९(+) For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ चैत्यवंदन विधि, पुहिं.,प्रा.,सं., गद्य, मपू., (मंदिर के अग्रद्वार), ११२४२६-३(+$) चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदनविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम पवित्र स्थानकै), १०७००३ चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., वि. १८६९, गद्य, मूप., (तीर्थराजं नमस्कृत्य), ११०६०९-३(+), ११४९३९(+$) चैत्रीपूर्णिमा पूजा, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पूजा. ५, पद्य, मपू., (उसप्पणइ पढम से), ११३१२५ (2) चोरपरीक्षाज्ञान गाथा, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., इतर, (चिंतितमंकं पंचगुणं दशसहित), ११०१६९-३ (२) चोरपरीक्षाज्ञान गाथा-बालावबोध, सं., गद्य, मूपू., इतर, (ततश्चौरनामांक पंचगुणं), ११०१६९-३ छंदगण विचार, सं., गद्य, मूपू., इतर, (मोभूमिस्त्रि गुरुः शुभं), १०९०२८-५(+#) छंदरूचाक्षर संख्या विवरण, सं., गद्य, मूपू., इतर, (श्रीस्त्रिंशन्नवविंशति), १०९८३०-२(+#) छींक विचार, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., इतर, (पूर्व छिका भवेत्मृत्यु), १०९०७८-२ जंबूद्विपपरिधि विचार, प्रा., गद्य, मूपू., (विक्खंभवग्रदह गुण मूलं), १०९०२२(+) जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मप., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ११४१५७(+#$) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (ते. ते काल चउथा आरा), ११४१५७(+#$) जंबूवृक्ष वर्णन, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (मूलतिन्नि सोले सत्ततीसइ), ११३८६५(+) (२) जंबूवृक्ष वर्णन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल परिधि मि ३१६ जोजन अनइ), ११३८६५(+) जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, मप., इतर, (नीचोनितास्पष्टतरा), ११२४७५(#$) जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अधि. ३३, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणम्य सारदां), प्रतहीन. (२) जन्मपत्री पद्धति-हिस्सा अष्टोत्तरीमहादशा श्लोक, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., इतर, (स्फुटतरो हिमगुः ___ कलिकात्मक), १०७७९०-१(+) (३) जन्मपत्री पद्धति-हिस्सा अष्टोत्तरीमहादशा श्लोक का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (इष्टजन्मकालनौ स्पष्टचंद्र), १०७७९०-१(+) जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, म्पू., (जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय), ११००९४(+), १०८७३२ (२) जयतिहअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (परमेसर सिरिपासनाह), ११३७२१-४(+) जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जलयात्रा योग्य उपगरण), ११५०९०-२(+), ११५१९८(+$), १०९३०१-१(#) जाण आदर पालन अष्टभंगी, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (न जाणइ न आदरइ न पालइ), १०८३४०-३(+#) (२) ज्ञान आदर पालन अष्टभंगी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सुद्ध देव सुद्ध गुरु), १०८३४०-३(+#) जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लो. ९३, वि. १७६५, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणम्य पार्श्वदेवेशं), १०८४६८(+$), ११२३३१(+$) जाप फलाफल श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ८, पद्य, श्वे., (अंगुल्याग्रेण यज्जप), ११३६६० जिनकुशलसूरि अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (पद्मकल्याणविद्याकमल), १०९५४७(+), ११५२०१(+) जिनकुशलसूरिचरणपादुकाप्रतिष्ठा विधि-दिल्लीनगर, पुहिं.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम दिन ७ पहली अथवा दिन), १०६७३६-१ जिनकुशलसूरि स्तोत्र, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. २२, पद्य, मूप., (श्रीमज्जिनाधीश), १०८०७२-२(+), १०८१५८-१(+#) जिनचंद्रसूरि अष्टक, उपा. पुण्यसागर, अप., श्लो. ९, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (जिनदत्तसुरिंदपय), ११४०९५-२ जिनदत्तसूरि अष्टक, पं. चारित्रोदय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (अस्तिस्वस्तिसमस्त), १०८३७२-१(+#) जिनदत्तसूरि जिनकुशलसूरि मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ऐं श्रीं क्रॉ ही), ११३०५० जिनदत्तसूरि स्तुति-खरतरगच्छीय, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (दासानुदासा इव सर्व), ११४०९५-५ जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, सं., श्लो. ८, पद्य, मपू., (अद्य प्रक्षालितं गात्र), ११०५२०-१ जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ११४०५६-१(+#), ११२३७७($), १११९६१-१(-2) जिनपूजा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., दि., (णमो अरहंताणं णमो सिद), १०६५६१(+) जिनप्रतिमापूजन हुंडी, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पेंतालीस आगम नाम मूल), ११३७५९(2) जिनप्रतिमा स्तोत्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७, पद्य, म्पू., (नमिउणं सव्वजिणे सिद्धे), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ (२) जिनप्रतिमा स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (नमिऊणं नमीनइ सर्व जिन), १०८३९७-१(+) जिनप्रतिमा स्थापना, दीक्षा तथा विवाह मुहुर्त श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., इतर, (दीक्षा वारौ गुरु शनी), १०८८५८-२ जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.ग.,सं., गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ११२३८४(+$) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), १०७०४२(+), ११३९०५-१(+), ११२४००(#$) जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि-खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम देव मंदिर कुं पूत), ११२३९२(#S) जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.ग.,सं., गद्य, मपू., (पहिलु मुहूर्त भलु), १०९३०९-१ जिनभद्रसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (सर्वे पदा हस्त पदे), ११४०९५-६ जिन भवन १० आशातना नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तंबोल१ पाण२ भोयण३), ११४१९५-७(#) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मपू., (खेलं १ केलि २ कलि ३), १०८३७७(+), १०८८६१-१, ११३६४६-२, ११४१९५-८(#) (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-दर्गपद व्याख्या, सं., गद्य, मप., (खेले१ श्लेष्मक्षेपणं केले), ११३६४६-२ (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (श्लेष्मां १ क्रीडां), १०८३७७(+), १०८८६१-१ जिनसहस्रनाम लघस्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., श्लो. ४०, पद्य, मप., (नमस्त्रिलोकनाथाय), ११०३८९(+), ११४०५६-२(+#) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेन, सं., श्लो. १६६, पद्य, दि., (प्रसिद्धाष्टसहस्रद), प्रतहीन. (२) जिनसहस्रनाम स्तोत्र-टीका, आ. अमरकीर्ति, सं., गद्य, दि., (--), ११३९१८(+$) जिनस्तुति प्रार्थना, सं., श्लो. ११, पद्य, मपू., (प्रशमरसनिमग्नं दृष्ट), १०८१६७-३ जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतो भगवंत), ११२७२८-२(+) जिनाज्ञा कुलक, प्रा., गा. ६, पद्य, मपू., (धन्नाविहि पक्खजुआ विहि), १०९७२०-२(+) जीतकल्पसूत्र, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १०५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (कयपवयणप्पणामो), १०७०२०-१ जीवगर्भस्वरूप कुलक, प्रा., गा. १९, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीर किंचि सरूवं), १०८९६७-२ जीवभेद गाथा, प्रा., प+ग., म्पू., (नारयतिरिनरदेवा चउद्द), १०७०५९-३(+) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मप., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), १०६५३०(+), १०६८५७(+), १०९००६(+), १०९११८(+#), ११०३६२(+), ११२५०७-१(+%), ११३०९५(+#S), ११३२२१(+$), ११३६९९(+$), ११३७८२-२(+$), ११३९११-१(+#$), ११४१८४-१(+$), ११४२६४(+#$), ११४५३२(+#), ११४८४५ (+$), ११०२९९, १०६५०४-१(६), १०६९०९(६), १११५४१(६), ११३६०८($) (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवनमाहि मिथ्यात्व), ११३६९९(+$) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रै विषै), १०६५३०(+), १०६८५७(+), ११२५०७-१(+$), ११३०९५(+#$), ११३९११-१(+#$), १०६९०९($) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मप., (णमो उसभादियाणं चउवीस), १११७६०(#$) (२) जीवाभिगमसूत्र- २४ दंडक २७ द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर अवगाहणा संधैण), ११३२०५(६) (२) जीवाभिगमसूत्र-३ वेद अल्पबहत्व विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (१ सुक्ष्मनिगोद अप्रज), ११३३६५-१(+-), ११४७९५-३ जैनकेवली सुकनावली, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., इतर, (ॐ ह्रीँ अहँ सर्व), ११०१८६(१) जैनगायत्री मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ११४०७९-२ जैन ज्योतिष मुहूर्त विचार, प्रा.,सं., प+ग., मूप., इतर, (प्रवेशनक्षत्राणि पुष्य१), १०८४१७-१(+#) जैनधर्मप्रभावक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २४३, पद्य, मूप., (कुलं विश्वश्लाघ्यं च), १०८३१२-२ जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर-विविधग्रंथोक्त, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, श्वे., (द्वादशव्रतधारक केवल), ११२९९७-२ जैन पारिभाषिक संख्यावाचकशब्द, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (तत्वानि ९ व्रत ५/१२), १०९१६१-१(+) (२) जैन पारिभाषिक संख्यावाचकशब्द-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (तत्वानि नवतत्व जीव१), १०९१६१-१(+) जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (श्रीनवकार मंत्र में), ११११३८(5) For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ११४८९१(+$), ११४०७९-३, १०६७१०(#S), १०८१८८-४(६) जैन व्याकरण, सं., पद्य, मूपू., इतर, (अवस् अग्रे मंडली), ११३५६७ जैन श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (दर्शनज्ञानचारित्रात), ११४०५२-५ (2) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २२५, ग्रं. ५५००, प+ग., मपू., (तेणं कालेणं० चंपाए), १०६७५८(+#), १०७१०२(+), १०७००५(#$), ११४०७३(#$), ११३७९२($) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मप., (नमस्कार श्रीमहावीरने), १०६७५८(+#), १०७१०२(+), १०७००५(#$), ११३७९२(६) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा चतर्थ कुर्मअध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मप., (जइ णं भंते समणेणं भग), प्रतहीन. (३) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा चतुर्थ कुर्मअध्ययन का ज्ञातोपनय, संबद्ध, प्रा., पद्य, मूपू., (उखित्तणाए १ संघाडे), ११३९१२-१(#) ज्ञानदानमहिमा संदर्भ गाथा, प्रा., पद्य, मूपू., (--), ११४५८३(5) (२) ज्ञानदानमहिमा संदर्भ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), ११४५८३($) (२) ज्ञानदानमहिमा संदर्भ गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११४५८३($) ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (तिहां प्रथम खमा० इरि), ११०६०५-३ ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (तिहां प्रथम पवित्र), ११०३२८-१(+) ज्ञानपंचमीपर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (ज्ञानं सारं सर्व), १०६८२२-२(+$) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद), १०७७२४-१(+), ११४२६५-२(+$), ११२५०६(5) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति), १०६४८७-५(+), १११११५-२(+-), १११९८६-२, ११३८००-२, १११७९३-३(#$), ११२९९८-३($, ११०२६१-१(-#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (समुद्रभूपालकुलप्रदीपः), ११३०१२-१, ११३०१२-२ ज्ञानप्रदीप, सं., श्लो. ३०, पद्य, मप., इतर, (चरे लग्ने चरे सूर्ये), १०७३७५(+), १०७४०६(+#), १०८६०६-१(+), १०८२२९, ११४६७१(#) ज्ञानभद्र गणि प्रति पत्र, सं., गद्य, मपू., (स्वस्ति श्री मिश्रिभूत), १११२०६-१(#) ज्ञानार्णव, आ. शुभचंद्र, सं., स. ४२, श्लो. २०७७, पद्य, दि., (ज्ञानलक्ष्मीघनाश्लेषप्रभव), प्रतहीन. (२) ज्ञानार्णव-तत्वत्रयप्रकाशिनी टीका, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., गद्य, दि., (शिवोयं वैनतेयश्च), १०६८५९(+#) ज्योतिष, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., जै., वै., इतर, (आदित्यं १सोम मंगल), १०७२६५-२(+), १०७७१०-२(+), १०८५१७-८(+#), ११०३३७-२(+६), ११४९६९(+$), १०७७५७-२,१०८७७१-२,११३५७२-६,११४०७७-२, १०८२९२-३(-2) ज्योतिषग्रहभावफल, सं., पद्य, वै., (गणाधीशं गुरुंदेवीं), ११०१०७-१(#$) (२) ज्योतिषग्रहभावफल-टबार्थ, मा.गु., पद्य, वै., (--), ११०१०७-१(#$) ज्योतिष विचार, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., इतर, (बुधचंद्रोत्तरे मार्ग), ११४८२०-१, १०८५६७-१(2) ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (ज्येष्ठार्क पश्चिमो), ११४९०१-२(+#), १०७३७२-३(#) ज्योतिष श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., इतर, (ध्रुवघटी पुटपंक्ति), १०८५१७-१(+#), ११४६२६-२ ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., इतर, (अच्चिबुहविहप्पिसणिवारा), १०९८८९-२(+), १०९९३७-२(+#), १०७२८३-५, १०९८१९-२, ११३१२७-७, ११२६२४-३(१), ११३६१३-२(६) ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २५, पद्य, वै., इतर, (इष्टस्यावधिसंस्थितौ), १०८३४२-२(+), ११३०५९-२, ११३१२७-४, ११४२५५-२ (२) ज्योतिष श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (माघादि पांच मास ने), ११३०५९-२ ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, इतर, (चैत्र १ वैशाख २ जैष्ट ३), ११३९०५-३(+) ज्योतिष श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, इतर, (नैव गोचरविधिं न चाष्टम), १०९७१८-२(+) For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ज्योतिष लोक संग्रह, सं., श्लो. ३, पद्य, से. इतर (मेषे च मीने त्रियुगा), ११०१४७-२ ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ३०, पद्य, श्वे., इतर, ( राजयोग अजवृषकर्क), १११४०१($) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि सं श्लो. २९४ पद्य म्पू. इतर (श्रीसर्वज्ञजिन नत्वा नार), १०६५१३(+), १०६५१५ (०४), , " 3 יי www.kobatirth.org " १०६९३४(+०६), १०९०३३+४) १०९८३८(०६) १०९९३७-१(+४) ११२४६९(+०६), ११३२८७(+०६), ११४२८९(+४), ११४३२५(+$), ११४४१८(+), ११४६२४(+#$), १११७१७, १११८६७(#$), १०६५२२($), ११३३४९($), ११४८२०-२ ($) (२) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (श्रीअरिहंतभगवानने), १०६५१३(+), ११४६२४(+#$), १०६५२२ ($) (२) ज्योतिषसार भाषा, क. कृपाराम, मा.गु., वि. १७९२, पद्य, मूपू. वै. इतर (हा सकल जगत सुर असुर), ९०७११४(३) (२) ज्योतिषसार- लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु. सं., प+ग, मूपु., इतर (अर्हतं जिनं नत्वा), १०९१९३ (०७), १०९१६३, १०७०७६(३) " , " ज्योतिषसार हीरकलश, पंन्या. हीरकलश, प्रा., श्लो. २०८, वि. १६२७, पद्य, मूपू., (पण परमिट्ठ णमेयं), ११४१०२-१(#) ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं., अ. ३, श्लो. ३३७, ग्रं. ५००, पद्य, म्पू, इतर तं नमामि जिनाधीश) १०७०८३(४) ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र - सबीज, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), १०९२५२-१ (+), १०८४१४-१ (#) " तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा. प+ग, मूपू (निज्जरिय जरामरणं). १०६५०३-६(+) तत्त्वविचार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (तत्त्वानि७ व्रत१२), ११३७०६-१(+#) (२) तत्त्वविचार श्लोक-अवचूरि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (तत्त्वानि नवतत्त्व), ११३७०६-१(+#) (२) तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह - विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव १ अजीव २ पुण ३), १०७६३७ तत्त्व संग्रह, सं., प्रा., मा.गु., पद्य, म्पू. (आरस गुणा अरिहंता), ११४७३५(३) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति सं., अ. १०, गद्य, मूपू., दि., (सम्यग्दर्शनशुद्धं), १०६४६२ (+) י* Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , י (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-स्वोपज्ञ भाष्य, वा. उमास्वाति सं., अ. १० . २२००, गद्य, दि., (सम्यग्दर्शनं सम्यग् ), १०६४६२ ( **७) " तप कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (सो जयउ जुगाइजिणो), ११३०१५-२(+) तपग्रहण विधि-पंचमी अष्टमी, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू (राई प्रायचित्त सगलेही न), ११३६६७-३ " ४९३ तपग्रहण विधि-पंचमीअष्टमीएकादशी आदि, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (शुद दिन इदरा), १०८७८७-१ (+), ११०२८३(+) तपविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (नांदल मांडीजे), १०९४३४ तपागच्छशब्द व्युत्पत्त्यर्थ, सं., गद्य, मूपू., (तान् तस्करात् आर्थात), १०९९४०-२(+) तपावली, प्रा.,मा.गु.,सं., तप. ५७, प+ग., मूपू., (उपधानानि सर्वाणि), ११३७१४ - २(+$), १०९५५९(#) तपोटमतकुट्टनशत, आ, जिनप्रभसूरि से श्लो १९ नं. ११०, पद्य, मूपू (निलठित शठ कमठे), ११०२८६ (+) तपोरत्न महोदधि, प्रा., मा.गु. सं., तप. १६३, प+ग. म्पू. (इंदो जीवो सब्बोवलद्ध), १११७५२(+/$) ताजिकसार, हरिभट्ट, सं., द्वा. ४४, श्लो. ४००, श. ११०५, पद्य, वै., इतर, (श्रीरामस्य पदारविंद), १०६८८३($) (२) ताजिकसार- कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., वि. १६७७, गद्य, म्पू., वै., इतर (श्रीसूर्यचंद्रारबुधे), १०६८८३ (६) , तापाधिपति स्तुत्यष्टक, मु. अरिमल्ल, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीतापाधिपतिस्तृतीयदिवस), ११४६४१-४ (#) विजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा. गा. १४, पद्य, मूपू (तिजयपहुत्तपयासव अट्ठ), १०७७२२-२(+), १९०५६८), "" ११२८०७-२(+), ११३१२०(+), ११३८२६ (+), १०८४७५-१, १०९९२०-१, ११०४१७-१, ११२०१३, १०८३८१ (#), १११५९८(#), ११४२३०(#) (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन जगत्रन प्रभुताना), ११०५६८ (+), ११३८२६(+) तिथी चक्र, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., इतर, (अथात संप्रवक्ष्यामी पुष्प), ११००१७ (#) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, पु. ( सद्भक्त्या देवलोके रविशशि ) १०८५१५-१(०) १०९०१०-२००, ११४०८१(०), १९४४५१(०), १०७४९२, ११४०५८-१. ११५१७१ त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लो. २४, पद्य, वै., (ऐंद्रस्यैव शरासनस्य), १०८९५५-२, ११२९९१-१($) (२) त्रिपुराभवानी स्तोत्र ज्ञानदीपिका टीका, आ. सोमतिलकसूरि, सं. ग्रं. ४७०, वि. १३७९, गद्य, म्पू.. .वै.. (सर्व्वज्ञ पुंडरीक). १०८९५५-२ For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), प्रतहीन. (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), १०९४९८(+), १०९४९९(+), ११०५००(+), ११४२०९(+#$), १०६६०६-३, ११०४८८, १११९२८, ११०६८९(s), ११२३८५(६) । दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४४, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउं चौवीस जिणे), १०६९५५(+), १०७०११(+), १०९४३८(+#), १०९५५१(+#), १०९५६२(+), १०९५९३(+#), ११०३६०(+), ११३६९१(+$), ११३८३८(+$), ११३९११-२(+#$), ११४१०१-१(+$), ११४५०७(+$), १०६५०४-३, ११०२६८,१०६९४९(#$), ११४९२१(#$) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध', मा.गु., वि. १५७९, गद्य, मप., (चउविश तिर्थंकरने नमस), ११३८३८(+$) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, ग. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, मूप., (नमस्कार करीनइ ऋषभ प्रमुख), १०७०११(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), १०६९५५(+), १०९५५१(+#), ११३६९१(+$). १०६९४९(#$) दक्षिणावर्त्तशंख विधि, सं., गद्य, वै., (ॐ ह्रीँ श्रीधर), ११०००५-२(+) दर्शन स्तोत्र, सं., श्लो. १३, पद्य, मपू., (दर्शनं देव देवस्य दर्शन), ११२५३६-१(#) दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. २वी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), १०६५०८(+$), १०६८७५(+६), १०९०६३-१(+), १०९४३७(+), ११०१९५-१(+), ११०७५५(+#$), ११३१४०(+$), ११३६२५(+#$), ११४१६१(+$), ११४८९५(+#$), ११५१३९(+#$), १०६९०३, १०७१८७(5), ११३१०९(६), ११३५१७(६) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (धर्म सर्वोत्तम मांगल), ११२२३८(5) (२) दशवकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मप., (ध० जीवनइ दुर्गति), १०६८७५ (+$), ११३६२५(+#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), १०९७२०-४(+), ११०९५१ (२) दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन ५ सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुझता आहारनो खप करो), ११४९५३-७ (२) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन ६-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (गणधर धरम इम उपदेशे), ११४९५३-८ (२) दशवैकालिकसूत्र-शांतिजिन स्तवन, संबद्ध, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (शांति जिनेश्वर साचो), ११२१६०-१, ११४२७६-२() (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., अ. १०, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (मंगलिक महिमा निलो रे), ११३७८८(+$) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मप., (धर्ममंगल महिमा निलो), ११३८९७(+#$) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (देवाहिदेवं नमिऊण), १०९६४०-३(+) दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, मूपू., (परिहरिय रज्जसारो), १०९६१७(+), ११००८० दानाधिकार गाथा, प्रा., श्लो. ८, पद्य, श्वे., (अभयं१ सुपत्तदानं२), १०८३०१-१(+) दिनमान श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., इतर, (अयनादिक वास २ राम), ११३१७९-३ (२) दिनमान श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (अयनना दिन गया होवें), ११३१७९-३ दीक्षा उच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम नवकार भणी पछै), ११३७७५(5) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (योग्य पुरुष स्त्री), ११०२९७ दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, पू., (संध्यायां चारित्रो), ११४०५०-२(+#) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., वि. १३८७, गद्य, मूपू., (पणमिय वीरं वुच्छं), १०६७५३(+), १०६६२९ For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ४९५ (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (प्रणाम करी श्रीमहावी), १०६६२९ दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, मप., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), ११३१३८(5) दीपावलीपर्व व्याख्यान, पा. उमेदचंद्र, सं., वि. १८९६, गद्य, मूपू., (श्रीनेमीशं जिन), १०६६३२($) दीपावली वधुप्रवेश विचार, सं., गद्य, मूपू., इतर, (न शुक्रास्तादिकं चिंत्यं), १०९८१२-२(+) दीपावली व्याख्यान, सं., गद्य, मपू., (प्रणम्य परया भक्त्या), १०६५५७-१(+$) दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू., (दुरिअरयसमीरं मोहपंको), ११०४२१(+) दुषमकाल साधुश्रावक लक्षण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूप., (संपइ दुषमकाले धम्मत्थि), ११४४४८-२ दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (रे दालिद्दवियक्खणवत्), १११२०६-२(#) दृष्टांतरत्नावली, क. अरिमल्ल, सं., प्रक्र. ३२, पद्य, मूपू., (वर्धमानं जिनं नत्वा गौतम), ११३७५२(#$), ११३८६८-१(६), ११४७४१(६) देवगृहप्रवेशविधि गाथा, सं., गा. १, पद्य, मूपू., (खड्गं१ छत्रं२ किरीटं च३), ११३६४६-४ देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं कहीने भगवन), १०६८६६, ११३५९४-२, ११०६६५($) देववंदन विधि-प्रतिष्ठादि विधान अंतर्गत, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., मप., (प्रथम इरियावही० प्रगट), १०७८७१(+) देवसिप्रतिक्रमण विधि-संक्षिप्तविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मप., (इच्छाकारेण संदेसह भगवनजी), ११११३४(+) देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., गा. ३११, पद्य, मप., (अमर नरवदिए वंदिऊण), १०६५०३-१०(+) देहस्थज्ञान विवरण, सं., श्लो. ७७, पद्य, मूपू., इतर, (नत्वा वीरं प्रवक्ष्यामि), ११०१३४(+#) दोधकचंद्रिका, उपा. राजसोम पाठक, मा.गु.,सं., अधि. ३, गा. ७८, पद्य, मूपू., इतर, (सरसतिमाता समरिनइ प्रणमी), १०९७३१(+) दोषावली, मा.ग.,सं., गद्य, वै., इतर, (मेषे देवी १ वृषो), १०९७४६-२, १०८३८५-२(#) व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. २०, पद्य, मपू., (अर्हमित्यक्षरं ब्रह), १०६५२८(+$) (२) व्याश्रयमहाकाव्य-टीका, ग. अभयतिलक, सं., स. २०, ग्रं. १७५४७, वि. १३१२, गद्य, मूपू., (श्रीभूर्भुवः स्वस्त्रितया), १०६५२८(+9) धनंजय नाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, दि., इतर, (तन्नमामि परं ज्योति), ११३२७०($) धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (त्रैकाल्यं द्रव्यषड्कं), १०९१६१-२(+), ११३७०६-२(+#) (२) धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट-अवचूरि, सं., गद्य, श्वे., (त्रैकाल्यं अतीत१), १०९१६१-२(+), ११३७०६-२(+#) धर्मोपदेश काव्य, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., प्रक्र. १२, श्लो. ११०, पद्य, म्पू., (ओमित्यक्षरमक्षरधुत), १०६९६२(१) धर्मोपदेशपीयषवर्ष श्रावकाचार, म. नेमिदत्त ब्रह्मचारी, सं., अधि. ५, पद्य, दि., (श्रीसर्वज्ञं प्रणम्य), १०६८७६-१(+#) धर्मोपदेश श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (संसारेमावन्नपरस्स), १०८६४६-१(#) (२) धर्मोपदेश श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (आर्यदेश भलो कुल भलो रूप), १०८६४६-१(#) धातकीखंड वर्णन गाथा, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (छसहसछस्सयचउदस तहय कला), ११३७८५-३(#) धारणागति यंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (इह देवस्य तद्विंबकार), १०९७१८-१(+) धारणा प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा.,रा., गद्य, श्वे., (अरिहंतसक्खियं सिद्ध), ११२२४३(#$) धूपपूजा श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वनस्पती रसोत्पन्न), १११११६-३(-) धूर्ताख्यान, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., आख्या. ५, पद्य, मूप., (नमिऊण जिणवरिंदे तिअ), प्रतहीन. (२) धूर्ताख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (सदपनिषदनेकग्रंथसंदर), ११०४०४(#$) नंदमुनि कथा, प्रा., गा. १९, पद्य, मूपू., (अहेव जंबूदीवे दाहण), १०८८०३(+) (२) नंदमुनि कथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, स्पू., (जंबूद्वीपनी विषइ दक्षिणा), १०८८०३(+) नंदावर्त आलेखनादि विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मप., (कपरकंकमसंमिश्र), १११९८७(5) नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (नंदीश्वरद्वीप महीपर), ११३८१३-४(+#) नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, प्रा., गा. २५, पद्य, म्पू., (वंदिय नंदियलोअं), १०८८८६(+) (२) नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र-टीका, ग. साधुसोम, सं., वि. १५९१, गद्य, मूपू., (वंदित्वा प्रणम्य), १०८८८६(+) For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४९६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७, गा. ७००, प+ग., मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), १०७०१७ (+), १११९६०(+#$), ११३८५४(+$), १०७२०४ (#$), १०७०८८($) (२) नंदीसूत्र बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू.. (अध नंदि इति कः), १११९६० (+) (२) नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ११४२३८-२($) (२) नंदीसूत्र स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा. गा. ५०, पद्य, म्पू, (जयइ जगजीवजोणी विआणओ), १०९७८१-१(+), " " ११४१७२-२(+०६) (२) नंदीसूत्र स्वाध्याय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. २७, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ११३२२०-१(+#) नक्षत्रयोनि वैरमित्रादि विचार, सं., गद्य, म्पू, इतर ( मकरवृषमीनकन्यावृश्चिक), १०९८३१-१(+४) नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं), १०९५५६-३ (+), ११०१९६ -१, ११०२७८-१, ११०२७८-२, ११३८१६, १०९०००(१), ११०४६६-१(०), ११२५३६-२०) ११३८५५(१), ११३९२३(१), ११२३५४(३), ११४८१७-२ (३) (२) नमस्कार महामंत्र - वालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (अरिहंतन माहरउ) ११२३५४(३) (२) नमस्कार महामंत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, (पंचपरमेष्टि प्रति) ११३८१६ (२) नमस्कार महामंत्र बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता) ११३८०२-२(+४) ११३८५५(१), ११९३९२३(५), १९४८१७-२(३) (२) नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमो क० नमस्कार हूवो), १०९०००(#) (२) नमस्कार महामंत्र-सूत्रार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (रागादिक वेरि प्रते हणन ), ११९०२७८-२ (२) नमस्कार महामंत्र स्तव, संबद्ध, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (परमिट्टि नमुक्कार), ११४८४२-४(+$) " (३) नमस्कार महामंत्र स्तव-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिरि सं. वि. १४९७, गद्य म्पू, (जिनं विश्वत्रयी), ११४८४२-४ (०७) (२) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, संबद्ध, प्रा., गा. १२, पद्य, म्पू., (उकोसो सज्झाउ चउदस), ११३६२६-१(+) ! י (३) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्कृष्ट सज्झाय करउ), ११३६२६-१(+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमस्कारमहामंत्र कल्प, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (पंचादिपदानां परमेष्ट), ११४५९८-३ नमस्कार महामंत्र महिमा, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिण सासणस्स सारो चउदस), १०८७८५ नमस्कारमाहात्म्य श्लोक, प्रा. सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (नमस्कारसमं मंत्र), १११७७१-२ "" नमिकण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा. गा. २४, पद्य, म्पू., (नमिऊण पणय सुरगणा), १०९८०९(+), ११२२३४-२(+), १०८१९४, १०९४५१, १०९४५८, १०९८२३, ११०४१७-२ (२) नमिऊण स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आदी कविमंगलाभिधान०), १०९८२३(३) (२) नमिऊण स्तोत्र-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी चरण कमल), १०९८०९(+) नरक विचार, मा.गु., सं., गद्य, वे. (पहिली नरग एक लाख), १०६७५१-२(+), १०७११८-१७) " नरपतिजयचर्या, श्राव. नरपति, सं., अ. ६, वि. १२३२, प+ग, जै. वै., इतर ( अव्यक्तमव्ययं शांत), १०९६७९-१(+३) " नवग्रह जापमंत्र, सं., श्रो, ९, पद्य, भूपू (पद्मप्राभ जिनेंद्रस्य), ११३२३५ (+5) , नवग्रह जाप विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मृपू (सूर्य सपुज होवे जदी धोलो), ११४००४(१) १ नवग्रह प्रतिष्ठा विधि, सं., गद्य, मूपू., (पूर्वं प्रासादे वा ग्रहे), ११०६२२(+), ११००२० (२) नवग्रह प्रतिष्ठा विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेहली जिनमंदिरमां अथवा ), ११०६२२(०), ११००२० नवग्रह षट्पुरुष फलाफल श्लोक संग्रह, प्रा., सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., इतर, (जहि सणिच्छरु ठाइ नक्खत्ति), ११४३११ नवग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १२, पद्य, वै. ( जपाकुसुमसंकाशं), ११३७०५-२) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), १०६५०२ (-१), १०७०३९ (+) " (२) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू. (जीवतत्त्व जे प्राणनइ), १०७०३९(+5) (२) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य म्पू, (श्रीवीरजिनं नत्वा), १०६५०२(+) For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ४९७ नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., गा. ६०, पद्य, मपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), १०६६९६-१(+),१०६९०४(+#), १०७०२९(+), १०८५३९(+#), १०९९२१(+), ११२४०६(+#$), ११३७८२-१(+S), ११३९१६(+$), ११४१७२-१(+#), ११४२२६(+#s), ११४२६७(+$), १०६५०४-२, ११०४९७, ११३७४२, १०६४८८($), १०७७१७($), १०९०५५-२(६), ११०२०३(s), ११४८८८(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टीका, मु. रत्नचंद्र, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पादौ जिनराज), १०६७३१(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, मपू., (जयति श्रीमहावीर), १०६४८८($) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मप., (सम्यक् दृष्टि जीवनइ), १०६६६४(+), १०७०६०(+#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), ११४२६७(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतां च्यार), १०६६९६-१(+), १०६९०४(+#S), १०७०२९(+), ११२४०६(+#$), ११४२२६(+#s) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बोल संग्रह, संबद्ध, श्राव. दलपतराय, मा.गु., वि. १८१२, गद्य, मूपू., दि., (श्रीवर्धमानाय श्री), १०६९५३(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ११५०४५(+$) नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पूजा. ९, पद्य, मपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), १०६६४९(+), १०६८०६(+) नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मपू., (अरिहंत पद ध्यातो), १०९४५४ नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्), १०६४६७(+$), १०९४८४+), ११३५९१(+#$), १०६५३५(#), ११३१५४(#$), ११४२२०(#$), १०६६४०($), ११२३९७-१(६), ११३८४८($) (२) नवस्मरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनई माहरो नमस्कार), १०९४८४(+) नष्टद्रव्य चक्र, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., इतर, (नह घउबयल्ल मज्जे ९), १०९६७९-७(+) नागदत्त दृष्टांतकथा-तीर्थसेवाविषये, प्रा., गा. ११८, पद्य, मूपू., (सुरवर नयरायारे कुसुमपुरे), ११०५३३(+) नाडीपरीक्षा, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., इतर, (करस्यागुष्टमूलेया), ११००४६-१(+) नाडीपरीक्षा, सं., श्लो. १४, पद्य, मूप., इतर, (सुप्ता च सरला दीर्घा), ११४४०७-१ (२) नाडी परीक्षा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., इतर, (सती सीत जाणीजै पाधर), ११४४०७-१ नित्य प्रातःकर्म मंत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (अश्वकांते रथकांते विष्णु), १११११६-२(-) निर्मोही दोहा संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (गावंती गोपी वाजंती वेणा), १०९५६६-२(+) निर्वाणकांड, प्रा., गा. ४७, पद्य, दि., (अट्ठावयंमि उसहो चंपा), १०६९१४(+) (२) निर्वाणकांड-अवचूरि, सं., गद्य, दि., (अष्टापदे कैलासे वृषभः), १०६९१४(+) निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मप., (जे भिखु हत्थकम्म), १०७०२०-२ नेमिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ३, पद्य, मूप., (यस्मिन् सदा पक्षिगणा), १०६५३८-७ नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (मानेनानून मानेनानोन्), १०८५९६(+#) (२) नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र-व्याख्या, सं., गद्य, दि., (आनुमः स्तुमः के), १०८५९६(+#) नेमिजिन बोली-गिरनारतीर्थमंडन, अप., गा. ७, पद्य, मूपू., (ता धन धन सोरठ देस), ११४२२२-२ नेमिजिन स्तवन, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (श्रीमदैवतमौलिमंडनमणि), १०८४०७-१(+) नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूप., (राज्यां जोनि समीहते), १०८९२९-३(+#) नेमिजिन स्तुति-विलोम पाठ गर्भित, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (तं भु सता मुग्ती मुदार हा), ११०३११-३ नेमिनाथ स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हरिहर विश्वनाथो वंदितो), १०८२९५-२(#) नैषध चरित्र, क. श्रीहर्ष, सं., स. २२, श्लो. २८३०, ई. ११वी, पद्य, वै., इतर, (निपीय यस्य क्षितिरक्षिणः), १०९०३५-३(+) पंचजिन पूर्वभवनमस्कार स्तवन, सं., श्लो. ६, पद्य, मप., (ग्रामेशस्त्रिदशोमरीचिरमरः), १०८३१२-३ पंचपरमेष्ठि आराधना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (प्रथम भलो दिन देखीनै गुरु), ११०९६७(+) पंचपरमेष्ठिपद आम्नाय, सं., गद्य, मप., (ॐ नमो अरिहंताणं), १०८८४७-४(+#) For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पंचपरमेष्ठि पूजन, सं., प+ग., दि.?, (कल्याण कीर्ति कमला कमला), १०७११६($) पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम गुरु आगल आवी), ११०३२८-२(+) पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९९१, पद्य, मप., (नमिउण जिणं वीरं सम्म), प्रतहीन. (२) पंचसंग्रह-४ गतिजीव उदयबंधादि गाथा संग्रह, प्रा., गा. २२, पद्य, मपू., (चत्तारि२ वीस२० सोलस१६ भंग), १०९२४६ पंचांगुलीदेवी मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ॐ पंचागुली २ परिसर), १०९२५२-२(+), १०९००७-२ पंचांगुलीदेवी मंत्रजपसाधन विधि, सं., प+ग., मपू., वै., (अज्ञानतिमिरध्वंसि), ११२१७०(#$) पंचाख्यान, विष्णु शर्मा, सं., आख्या. ५, प+ग., वै., इतर, (सकलार्थशास्त्रसारं जगति), प्रतहीन. (२) पंचाख्यान कथानक संग्रह, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (यस्यबुद्धिर्बलं तस्य), १०८३३०-३(2) पंचोपचारपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ भूरसी भूत धात्री), ११४८७१ पच्चक्खाण आगार गाथा, प्रा., पद्य, मूपू., (नवकार १ पोरिसीए २), १०९६४२-२(+) पच्चक्खाण कल्पमान-पोरसी, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (सावण वद पडवाक दिन), १०८६८७ पच्चक्खाणछायामान गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (पोसेय तणुछाया नवहिं पएहिं), १०९५६१-३(+) पच्चक्खाणफल कुलक, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (नमिऊण सुगुरु चलणं), १०८६००-३(+#) पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३०, गद्य, मपू., (प्रणिपत्य जगन्नाथं), १०६६३४(+) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (प्रणम्य त्रिविधं), ११०९०७(६), ११३१२९(६) पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), १०९१७१ पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (पडिलेहणाविसेस), प्रतहीन. (२) पडिलेहण कुलक-हिस्सा गाथा १-५, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुत्तत्थदिट्ठी १), १११२४८-१(+), १०९४२६-२(#) पत्रपद्धति-संस्कृत पत्राचार पत्र संग्रह, सं., पत्र. १०, प+ग., मूपू., (स्वस्ति श्रीमद), १०८२३८ पत्रलेखन पद्धति-जिनचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ११०९७२-१(+$) पत्रलेखन पद्धति-श्रावक प्रति, सं., गद्य, मप., (सदाचारचतुरान् देवशास्त्र), ११०९७२-२(+) पत्रलेखन पद्धति-साधु उपमा, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (स्वस्ति श्रीआदिजिन), ११४०५२-२(#) पद्मावतीदेवी अष्टक, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (चिदानंदसंपविलासैकदक्षः), १०८५०९-३ पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मप., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ११०३३४(+) पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., गा.१०, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ कलिकुंडदंड), १०७१३९-२(+$) पद्मावतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ आँ क्रॉ ह्रीं ए), १०७१८२-२ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मप., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), १०७०२२-६(+) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, मप., (श्रीपार्श्वनाथजिन), १०७०२२-५(+) पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, मु. ब्रह्मजिनदास, सं., श्लो. १७, पद्य, दि., (ॐ नमो विश्वनाथाय युगादि), १०७६८७ पद्मावती स्तोत्र, सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाण चक्र स्फुट), ११४२१२(5) पद्मिनीपत्रचक्र विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., इतर, (कत्तिअ चउक्कए जइ फिरंति), १०९८१९-१ परचुरण लघु स्तुति संग्रह, सं., पद्य, मपू., (वासुपूज्यं जिनं वंदे), ११३६७५-४(+) परमाणुमान गाथा, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, श्वे., (पुढवाइ आसत्ता सव्व), १०९१४६-८ परमात्मद्वात्रिंशिका, सं., श्लो. ३३, पद्य, मप., (ॐकाररूपः परमेष्टि), १०७०३७-६(+-#) परमानंद स्तोत्र, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (परमानंदसंपन्न), ११०३०८(+#), ११०६१९(+) (२) परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमात्माने नमस्कार), ११०६१९(+) (२) परमानंद स्तोत्र-अर्थ, गु., गद्य, मूपू., (श्री सुधर्मास्वामी), ११०३०८(+#$) पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं. २४५, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), १०८९३८, १०९६९६, ११३९७५(5) For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ (२) पर्यंताराधना-गाथा ७०-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीनइ नमस्करीनई), १०९६९६ (२) पर्यंताराधना-गाथा ७०-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करिने), ११३९७५($) पर्यंताराधना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही), १०७०१९ पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा पार्श्व), १०६७५९(5) (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ भगवंत), १०६४७९(+$) पल्लीपतन विचार, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., इतर, (पल्ली भुजेऽपसव्ये), १०९०२८-३(+#) पल्लीपतन विचार, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., इतर, (बार उघाड पडतां गिलोई), १०७९३१-१, १०९०७८-१, ११३३४५ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथा, सं., गद्य, श्वे., (प्रथ्वीभूषणपुरे पाप), ११३७९७(+$) पार्श्वजिन १० गणधर आराधनविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (श्रीसुभग गणधराय नमः), १०९०४०-१ पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्देवेंद्रवृंदा), ११०१७१-१(#) पार्श्वजिन-कलिकुंड पद्मावतीदेवी छंद, मु. हेम, मा.गु.,सं., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीकलिकुंडं तुंड), १०९०३५-५(+$) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (नमो देवनागेंद्रमंदार), १०८७८८, १०९३१९-१, १०८२९५-१(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (वरसं वरसं वरसं वरसं), १०९६०७-२(+#), ११०७५४-१(+#) (२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (वरं प्रधाना संवरस्य), १०९६०७-२(+#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, प्रा.,फा., गा. ६, पद्य, मपू., (--), ११५०४३-३(#) पार्श्वजिन पूजा जयमाला-चिंतामणि, आ. सोमसेन, सं., श्लो. १८, पद्य, दि., (श्रीशारदाधारमुखारविंद), १०७०२२-३(+) पार्श्वजिन पूजा विधि-चिंतामणि, सं., गद्य, दि., (शांतं विंदुद्धरफं), १०७०२२-२(+) पार्श्वजिनमंत्र विधान-कलिकुंड, सं., गद्य, मूपू., (ॐह्रीं श्रीं तं नमहपासना), ११४५९८-५, ११०१७१-२(#) पार्श्वजिन मंत्रविधान-नमिऊण, प्रा.,मा.गु., मंत्र. १, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं अहँ नमीऊण पास), ११०४५८-२, ११४५९८-२ पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मप., (श्रीपार्श्वः पातु वो), ११०४७३-१(#), १११११६-४(-१) पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., श्लो. ४१, वि. १८५७, पद्य, स्था., (महिम्नः पारं ते परम), ११०२९८(+), ११०६२०(#) पार्श्वजिन मालामंत्र स्तोत्र, सं., गद्य, मप., (ॐ नमो भगवते पार्श्व), १०८३९८(+) पार्श्वजिन लघुस्तवन-अमीझरा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (अस्त्युत्तरस्यां दिशि), ११४४१०($) (२) पार्श्वजिन लघुस्तवन-अमीझरा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ११४४१०(६) पार्श्वजिन लघुस्तोत्र, उपा. पद्मराज, सं., श्लो. ६, पद्य, ., (समानो समानोऽसमानो), १०९१९२-१(+) (२) पार्श्वजिनलघस्तोत्र-टीका, उपा. पद्मराज, सं., गद्य, मप., (समानो गमामा इत्यादि), १०९१९२-१(+) पार्श्वजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूप., (का मे वामेयशक्तिर्भवतु तव), ११३७९८-१ पार्श्वजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १६, पद्य, म्पू., (कस्तूरीतिलकं भुवः), १०९७४८ पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नायगर्भित, आ. अजितसिंहसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (ॐ नमो भगवते श्री), ११३०९९-४(+$) (२) पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित-मंत्रसाधन विधि, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (कुंकुमगोरोचनकर्पूर), १११५२२(5) पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण), १०८३७६-४(१) पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., श्लो. ७, पद्य, मप., (स्फुरदेवनागेंद्र), १०७०२२-४(+), ११५१४३-२(+), ११०१९८ पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, सं., श्लो. ११, पद्य, मपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), १०९५६३(+), १०८३७६-२(2) पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., गा. ४, पद्य, मपू., (तं नमह पासनाहं धरणिं), १०८८४७-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (पूर्णानंदमयं महोदयमयं), १०९५९७(#) पार्श्वजिन स्तवन-एकस्वरवर्णवृत्त, ग. पद्मराज, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (अमल कमल समतमकमल घन), १०९१९२-२(+) (२) पार्श्वजिन स्तवन-एकस्वरवर्णवृत्त-अवचूर्णि, उपा. पद्मराज, सं., गद्य, मूपू., (अमल० अत्र सर्वाण्यपि), १०९१९२-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-चतुर्विंशतिजिनगुरुनामगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (वृषभ धुरंधर उद्योतन), ११३६२४ (२) पार्श्वजिन स्तवन-चतुर्विंशतिजिनगुरुनामगर्भित-टीका, मु. जिनेंद्रचंद्र, सं., गद्य, मूपू., (हे पार्श्व ध्रुव पृथिव्या), ११३६२४ For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पार्श्वजिन स्तव फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा. गा. ३, पद्य, मृपू., (ॐ नमो हरउ जरं मम हरो) ११००२२-१ पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा. सं., गा. ३७, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जसु सासणदेवि वएसकया), १०८०७२-१(+), १०८७६९ (+१६), ११०९५३(क (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, से. गद्य, मूपू, (जं संथवर्ण विहिव तस्स) १०८०७२-१(+) "" (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जं संथवणं विहिअ तसे), १०८७६९(+#$) पार्श्वजिन स्तुति, मु. कुशल, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (द्वे द्वे कि धपमप), १०९४११-१(+), ११४०३०(०) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनजनतारणगुण), ११३३३५-१(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मृपू. (अमरगिरिशिरस्थस्कार), १०७६५२-१ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (निधिमितकरमानं), १०८३७६- १(क) पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, भूपू (प्रणत विबुधनाथ), ११३०१२-३(३) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू. (स्तवीम्यहं पार्श्वजिनं). ११३६७५-२(+) (यः संसार विगाहमान), १०६५३८-६ (सुप्रभातं सुदिवस), १०८३७६-३(4) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (हें हैं कि धप), १०९६३८-१ (+४), ११०७५४-२(४), , . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२९९५-२, ११२८५५-११ पार्श्वजिन स्तुति -पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू. ( शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ११०००४-५ (+) " , पार्श्वजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू. (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), ११९१३६-१ पार्श्वजिन स्तुति समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू. (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), ११२९९५-३ पार्श्वजिन स्तुति-स्नातस्यापादपूर्ति, मु. उदयविजय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्याप्रतिमस्य), १०८६६३-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (धर्ममहारथसारथिसारं), ११०००४-१० (+) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू, (ॐ ह्रीं श्रीं धरणो ), ११३०९९-३(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपु., (सिन्धमवहरउ विग्धं) १०९७६५-२(६०) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (शीघ्र अपरउपरहारकरउ), १०९७६५-२(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., श्लो. ३९, पद्य, भूपू (धरणोरगेंद्र सुरपति), ११०४७३-२ (०) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( क्षितिमंडल मुकुटं धार्मिक), ११२८५६-२ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं. सो. ४९, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), ११३८८८-३(३) श्लो. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमामि सदा प्रभु), ११३८९२-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, मूपू., (यत्रीलच्छविरीक्षितापि), ११३८०८-२($) " पार्श्वजिन स्तोत्र - कलिकुंड, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू, (ॐ ह्रीं तं नमः), १०७७२३-१(+४), १०९०३५-६(०) पार्श्वजिन स्तोत्र-गाथा १७, प्रा. सं., गा. १७, पद्य, मूपू., ( उवसग्गहरं पासं पासं), ११०१७१-४(#) पार्श्वजिन स्तोत्र- गोडीजी आ. भावप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू (सकल मंगल मंजुल मालिन), १११७१२-२(३) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), १०८४७६-१(+), יי " १०८२७४ -२, ११०२८७, १०८४१४-२ (#) पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू. श्रीपार्थं किल चित्रसम), १०७६९७ पार्श्वजिन स्तोत्र- जीरापल्ली, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू (जीरापल्ली प्रभु), १११११६-६(१ पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरापल्ली, सं., भो. ७, पद्य, म्पू. (नत्वा प्रभुपार्थ), ११३१३७-२(+) " पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमो देवदेवाय नित्य), ११५१४४-१ पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. गा. १०, वि. १४बी, पद्य, भूपू., (दोसावहारदक्खो नालिया), ११३६५३(०) For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ (२) पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहस्तुतिगर्भित टीका, सं., गद्य, मृपू., (पार्श्वजिनो जयति किं), ११३६५२ (+) पार्श्वजिन स्तोत्र फलवद्धिं सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू फलवर्धिपुराधीशो जीयात्), ११३१७७(+) "" पार्श्वजिन स्तोत्र - यमकमय, उपा. समयराज, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू (श्रीपार्श्वमूर्तिः सकला), ११३७८४-२() (२) पार्श्वजिन स्तोत्र- यमकमय अवचूरि, सं., गद्य, म्पू. (हे श्रीपार्श्वनाथ), ११३७८४-२(०) पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (लक्ष्मीर्महस्तुल्य), १०९६०७-१(+#), ११११५८-२(+) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र- लक्ष्मीनामांकित टीका, आ. मुनिशेखरसूरि, सं. गद्य, म्पू, दि., (लक्ष्मी इत्यादि), १०९६०७-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), १०९४६६ (+), , ११२९५४ (#), ११३८८१-२(#$) וי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (महानंद लक्ष्मीघना), १०७९०८(+), ११३१३७-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), १०७०३७-५ (+#$), ११०३७८-४(+), ११३०९९-२(+), १०७२०१-२, १०८२१५, १०८२९१-२, ११४५८१-२, ११३८८२(५) पार्श्वजिन स्तोत्र षोडशदल, मा.गु. सं., गा. ४, पद्य, मूपू (जिनपारसतारनतरनं पारसनाम), १०६८७६-२ (+) ', पार्श्वजिन स्तोत्र-समंत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते), १०७७२३-२(+#) , पार्श्वजिन स्तोत्र- समस्याबंध, सं. लो. १३, पद्य, मृपू. (२) पार्श्वजिन स्तोत्र- समस्याबंध- टीका, सं., गद्य, मूपू (अहं श्रीपार्श्वनाथ), १०९६६४(०१), ११०४५९(३) पार्श्वजिनाष्टक शंखेश्वर, आ. भावप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू. (श्रीसद्यपद्यापतिपूजितांगं), १०८५६७-६(१) पार्श्वधरणेंद्रपद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, म्पू, नमो भगवते श्री), ११३७२१-५ (+) (श्रीपार्श्वनाथ तमहं ). १०९६६४(+), १९०४५९ पार्श्वपद्मावती मंत्र-अट्टेमट्टे, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीपार्श्व), ११५१४४-२ पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, मूपू वै., इतर ( महादेवं नमस्कृत्य) १०९२३४(४) ११०१५४/काळा ११४२१५ (+०३), ११४२१७(*), १०७३८१, १०७७५२-२०७), ११०१२३(४) ११०१२८(१) ११०३९५(४) १०६५०९(३), ११०१२९ ($), ११०४५७ ($), ११२५९५ ($) (२) पाशाकेवली-पाशा ढालन विधि, संबद्ध, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., वै., इतर, (ॐ नमो भगवती कुष्मांडनी), १०९८३५-२(+#) (२) पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (१११ उत्तम थानक लाभ), १०७३४५ (+), १०७७७७(+), १०८०५८(०), १०९१९६ (+०), १०९३३१(+), ११५०१३(४०) १०७१४५, १०७८९९, १०७९९७, १०९०१७, १०९६५१, १०९७४५, ११०११३, १०७५१५ (#), १०८५९० (# ), १०९३०५ (#$), १०९९६५ (#), ११२१६५ (#$), ११४००८ (#), ११४२०६(#), १०९९३१($), ११२७६१ ($) पुण्य कुलक, प्रा. गा. १०, पद्य, भूपू (संपुन्न इंदिअत्त), १०९७९४-१(+) (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच इंद्री पडवडां), १०९७९४-१ (+) पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिणसहस्सा वाससय होइ), १०९५७९ (+), १०९५४३(०) (२) पुण्यपाप कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू. (हवै सो वर्षना दिन), १०९५७९/१ " पुराणहुंडी, मा.गु. सं., लो. २७८, पद्य, वे, वै. (श्रूयतां धर्म्म) १०६९०२(+), १०९९८३ (०६), ११४०९३.२(०३) (२) पुराणहुंडी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वे, वै., (धर्म सघलोह सांभलीह), १०६९०२(+), १०९९८३ (०३) . पुरुष ३२ लक्षण लोक, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू, इतर (प्रमाणं सुकृतं २ सील) १०८३४२-३(५) ५०१ For Private and Personal Use Only पुरुषजन्मकुंडली विचार, सं., श्लो. १३, पद्य, वै., इतर (--), १११८०६-१(+) पुष्करार्धवर्तद्वीप वर्णन गाथा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., ( इगचत्तसहसपणसय गुणसीइ तह), ११३७८५-४(#) पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा. अध्य. १०, गद्य, म्पू, (जइ णं भंते समणेणं०) १०६५०१-४४०) १०६४५६-४ (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस), १०६५०१-४(+), १०६४५६-४ . पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., द्वा. २०, गा. ५०५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सिद्धं कम्ममविग्गह), ११११६१($) पुष्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), १०६५०१-३ (+), १०६४५६-३ Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य०), १०६५०१-३(+), १०६४५६-३ पूजा प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (स्नानं पूर्वोन्मुखी), ११३५९६(+#), १०८६८९-६(#) पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, मप., (अभिनवमंगलमालाकरणं), १०८७७५(+) पौषध पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (इरियावही पडिकमी), ११२३८६-२ पौषध पारने की विधि, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (सामाइक पोसो सिंठियस), १०८७८९-३(+), १०९३१९-३($) पौषध लेने की विधि, प्रा.,मा.ग., प+ग., मप., (प्रथम इरियावही पडिकम), ११२३८६-१ पौषधव्रत विचार संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (--), ११३५९५(#$) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मपू., (नमो अरिहंताणं० ववगय), १०६६५८(+#), १०६९२५(+#$), ११०६३१ (२) प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., पद. ३६, ग्रं. १६०००, गद्य, मपू., (जयति नमदमरमुकुटप्रति), १०९०३२(#$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नमो वीतरागाय नमस्कार), १०६६५८(+#), १०६९२५(+#$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-४२ भाषाभेद गाथा, हिस्सा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जणवय सम्मय ठवणा नामे), ११४६७८-१(+), ११४१९२($) (३) प्रज्ञापनासूत्र-४२ भाषाभेद गाथा का बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (जणवय कहीइ जे जे देस), ११४६७८-१(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा १६ वचन, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, मूप., (कति विहाणं भंते वयणे), ११४६७८-२(+) (३) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा १६ वचन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवै १६ प्रकारना वचन कहै), ११४६७८-२(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-चयनितगाथा, प्रा., पद्य, मूपू., (नमिऊण वीरनाहं पन्नवण), ११४८४२-१(+) प्रतिष्ठा कल्प-अभयदेवसूरि सामाचारी, प्रा.,सं., ग्रं. १५००, प+ग., मप., (--), ११३११९(#$) प्रतिष्ठादीक्षादि विधिमहर्त संग्रह, सं., प+ग., श्वे., (अंशक यामित्रपतौ पश्यंति), १०९१८२ प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वपादाब्ज), १०७००४(+) प्रत्याख्यान कुलक, मु. दानसूरिशिष्य, प्रा., गा.७, पद्य, मूपू., (नमिऊण सुगुरुचलणं पच), १०७०५९-२(+) प्रत्याख्यान कुलक, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (काऊण नमुक्कारं सिद्ध), १०८९६७-१ प्रभातिमंगल स्तति, प्रा., गा. १८, पद्य, मप., (गोयम सोहम जंबू पभवो), १०९१२६ प्रभु सन्मुख बोलने की स्तुतियाँ, मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (अद्याभवत्सफलतानयनद्वयस्य), ११२९९४-३ प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३०, पद्य, मपू., (संसार विसमसायर भवजल), ११३८२८(+#) (२) प्रव्रज्या कुलक-अवचूर्णि, सं., गद्य, मपू., (अत्र प्रकरणे), ११३८२८(+#$) प्रश्नचूडामणि, सं., प्रक. ४०, पद्य, मूपू., इतर, (सप्तेंदुश्च पिताशत्रु), ११५००९(5) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), ११३२७१-३($) प्रश्नाष्टक, श्राव. दलपतराय श्रमणोपासक, सं., श्लो. ८, पद्य, मप., (अनाद्येयं सिद्धि), ११३७२८-२(2) प्रश्नोत्तर-जिनपूजा विषये, पुहिं.,प्रा.,सं., प+ग., श्वे., (केसरि करि लिप्त अर फूलमाल), १०७००१(+) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मप., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ११३४६०(+$), ११०४१५(#) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (नमी करी श्रीमहावीर), ११३४६०(+$) प्रश्नोत्तररत्नमाला, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (भगवं किमुवादेयं गुरुवयणं), १०९५९८(+) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-सह टबार्थ, मु. उत्तम ऋषि, मा.गु., गद्य, मपू., (हे पूज्य किसु आदरीइं), १०९५९८(+) प्रहेलिका श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, इतर, (जीव चोरासी लख तु), ११३१२७-३ प्राकृत अपभ्रंश संस्कृत कोष, अप.,प्रा.,सं., गद्य, मप., इतर, (जु अद्याकालिकल्पो परमपरे), ११४२६८-३(+$) प्राकृत छंदकोश, प्रा., गा. ८०, पद्य, मपू., इतर, (आजोयणट्ठियाणं सुरनर), ११४७७३(#$) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., वै., (पूआए मन चिंतए पाहा), ११३३५६(+#) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), १०८३१२-४($) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मूप., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), १०९२०३-२(+), १०९२६१-२(+), ११३१३३(+#5), १०८३३०-४(#), ११३९७६-३(#$), ११४६४१-३(#), ११४७६०-१(#), ११४८९८-३(5) For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ५०३ प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ३७३, पद्य, श्वे., वै., (भमरा भमत नभ जिइ निगुणन), ११४३६०-१(+#$), ११२२२१(-) प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, जै.?, (संताप्यो सज्जन घणु भंडू), १०७२४६-९, ११४३२९ प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (चलंति तारा विचलंति), ११३८६८-४ प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., इतर, (देयं भोजधनं धनं), १०८९०७-३(+-), १०८९३२-२ प्रास्ताविक श्लोक, मा.ग.,सं., श्लो. १४, पद्य, श्वे., (परत्रिय से मन की कहै सो), १०८२१०(+), १०९४६३-३(-2) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, सं., पद्य, वै., इतर, (अधरस्यमधुरमाणं), १०९३५२-२(#$) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., गा. ३६, पद्य, श्वे., (जिवदया जिण धमो सावय), १०७३०६-२ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ५७, पद्य, जै., इतर?, (दाता दरीद्री कृपणो), १११७५७(5) (२) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु.,रा., गद्य, जै., इतर?, (संसारमाहि जीव आयनइ), १११७५७(5) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ६१, पद्य, मप., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), १११९४६-१(+), ११३२२०-२(+#), ११३३३५-३(+), ११३७७७-३(+), ११३९३४(+$), १०९२४०-२, ११३०४८, १११८०५-१(#) प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, मा.गु.,सं., गा. ११३, पद्य, मपू., (विद्या भल पण अधांग जल उंच), ११२५३७() प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २४, पद्य, श्वे., इतर, (श्रिष्टे संगः श्रुते), १०८३३३-५(+), १०९०३५-३(+), ११३३३०(+$), ११३९८३-६(+), १०६५३८-३, ११२१०१, ११२४२२-१ प्रास्ताविक श्लोकादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २२, पद्य, श्वे., इतर?, (आहारनिद्राभयमैथुनानि), १०८२६५-२(+), ११३१३६(+$), ११३१४२(+#), ११११७०-२ फाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं., वि. १७८२, गद्य, मूपू., (नत्वा पार्श्वजिनेशाय), ११४९०१-१(+#$) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुक्कं), १०७०८६-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्म बंधना प्रकारथी), १०७०८६-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., मपू., (श्रीवर्धमान जिनचंद), १०७११३-३(+) बगलामुखी स्तोत्र, सं., श्लो. २७, पद्य, वै., (ॐ अस्य श्रीबगलामुखी), ११२४८३-१(#$) बरडावीर स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (नमदसुरसुराली मौलीकोटार), १०९९६०-१ बाराक्षरी, सं., गद्य, इतर, (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ), ११३९९८-२(६) बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), ११०००४-१(+), ११४२६५-१(+), ११२९०७-२(#) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), प्रतहीन. (२) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मपू., (--), प्रतहीन. (३) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति का लघुभाष्य#, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ६४९०, पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (४) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति के लघुभाष्य का हिस्सा १०६ गोचरी दोष, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, मूपू., (आहाकम्म उद्देसीय पुइकम्म), ११४१८१ (५) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति के लघुभाष्य का हिस्सा १०६ गोचरी दोष का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आधाकर्मा आहार छ कायनो), ११४१८१ बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), प्रतहीन. (२) बृहत्क्षेत्रसमास-पदार्थ विचार, मा.गु., गद्य, मप., (खर कंडेरा १६ भेद १रतनकंड), ११३८२३(+#$) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, पू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), ११४१८५(#s) बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत वचनं), ११४०७१-१(+#$) For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), १०६५५८(+), १०८७१६(+-), १११५४२(+#s), ११३५७३(+#$), ११४०४९-१(+$), १०८०८०, १०९२५१-१,११०२८९, ११०५०१(#), ११३७७२(#), ११४२६३(#), ११४५६५ (#S), ११०५४६(s), १११२०५(s), १११२२७(5), ११२४६५(), ११३१२६(s), ११३८९५(s), ११४५८१-१(5) (२) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५६, गद्य, मपू., (स्ताच्छांतिः शांति), ११५२१५(६) बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), १०६५११(+#$), १०६९०८(+#), १०६९५२(+), १०७०९४(+s), १०७०६८(s), ११२८९५(६) (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., (अत्यद्भुतं योगिभिरप्यगम्य), १०६५११(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार अरिहंता), १०६९०८(+#), १०७०९४(+$), १०७०६८($) (२) बृहत्संग्रहणी-चयनित गाथा संग्रह, प्रा., गा. ६८, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ११४०४२(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू., (असुरकुमार नागकुमार), १०७१०४($) बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ३५३, वि. ७पू, पद्य, मूपू., (निट्ठवियअट्ठकम्म), ११४५२६(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), ११४५२६(+#$) बृहत्संग्रहणी प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ५७९, वि. १२७८, पद्य, मपू., (नियट्ठवियअट्ठकम्म), प्रतहीन. (२) बृहत्संग्रहणी प्रकरण-जीवआयुष्यबंध विचारगाथा संग्रह, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (आउस्स बंध कालो अबाह), ११३४५६-३(+#) (३) बृहत्संग्रहणी प्रकरण-जीवआयुष्यबंध विचारगाथा संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आउखानो बंधकाल ते), ११३४५६-३(+#) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा), १०८३२४-४(+), ११०६३५-२($) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (बृहस्पतिर्देवगुरुं देवोसि), १११७५८-२(+#) बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय २), ११३६६४-३(+) बोल संग्रह*, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछे हे भगवन), १०९१९०-३(+#$), ११४०५९-२(+#), ११४३१२-१, १०७११८-४(#$), ११४८४९(5) बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., श्वे., (सर्वथी थोडा चरित), १०६८६५(+$), ११४५१७(+$), १०८७५१(#$), ११३८०१(६) ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ११०३३३, ११०६०५-१ ब्रह्माविष्णमहेश स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (जातः कृतयुगे ब्रह्मा), ११३८६८-३ भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महाइसयं महाणुभावं), १०६५०३-३(+) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), १०६५६०(+), १०६५८१(+), १०७७२२-१(+), १०९०६७(+#$), १०९४८५-१(+#), ११०१४८(+$), ११०३७८-५(+), १११२२६(+$), १११४०६(+), १११९०७(+), ११२४२३(+$) ११४०२६(+#$), ११४०३१(+#), ११४०७६(+$), १०६६१५-१, १०७०५८, १०९२७८, ११३७८१, १०७५८८(#), १११२३२-२(#$), ११३३३४(#$), ११३८८६(#$), ११४१६७(#$), ११४२२९(#$), १०७०५४(६), १११२८३() (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., ग्रं. १५७२, वि. १४२६, गद्य, मूपू., (पूजाज्ञानवचोपायापगमा), ११३७९३) (२) भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति निश्चये अहम), १०६६२६(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सम्यग् जिनपादयुगं), ११४०३१(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (कांसा भक्ताः अध्दुषिताः), ११०१४८(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., दि., (गंभीरताररविपरि), ११०३७८-६(+), ११०५५३(+#), ११३७२१-२(+), १०७०९९-१, ११३२७१-१, ११४०७९-४, १११०८९(#) । (३) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य का प्रभावदर्शक विवरण, मा.गु., गद्य, मूप., दि., (तथा ए काव्य ४ दिनप्रति), ११३२७१-१ (२) भक्तामर स्तोत्र-गीत, संबद्ध, ग. सोमकुंजर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मन समरु चकेसरी वंछत), ११३०२२(2) For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो वृषभनाथाय), १०७०५४(६) (२) भक्तामर स्तोत्र-यंत्र, अज्ञा., अज्ञ. ४४, यं., म्पू., (--), १०७०५४(६) भक्तामर स्तोत्र-श्लोक ४८, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४८, पद्य, दि., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), प्रतहीन. (२) भक्तामर स्तोत्र-श्लोक ४८-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., गा. ४८, पद्य, मूपू., दि., (आदिपुरूष आदिसजिन आदि), ११४६९५() भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपू., (नमो अरहंताणं० सव्व), १०८८७८(+#$), १०९५५५-१(+), ११४५५०(+#s), १०८०२८, ११११६३ (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), १०९५५५ १(+), १०९५५५-२(+), १०९५५५-३(+) (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (लोगस्सेगपएसे जहणयपय), ११३८३०(+) (४) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, मपू., (अथ पंचमांग ___ एवैकादशशत), ११३८३०(+) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१० उद्देशक-४ चमरेंद्र त्रायस्त्रींशकदेव अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मप., (तेणं कालेणं२ वाणियगामेनगर), १०९८७६-१ (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१० उद्देशक-४ चमरेंद्र त्रायस्त्रींशकदेव अधिकार टीका, सं., गद्य, मप., (त्रायस्त्रिंशामंत्रिकल्पा), १०९८७६-१ (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ११ उद्देशक ११ सुदर्शनश्रेष्ठी अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समयेणं), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ११ उद्देशक ११-पोरसीऔपदेशिकमान विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (आसाढ सुद१५ में १८ मूहुर्त), १०८६८९-३(#) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक २५ उद्देश ७ प्रतिसेवनादिसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (दसविहा पडिसेवणा पन्नता), १०६६६९-२(#s) (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक २५ उद्देश ७ प्रतिसेवनादिसूत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (द० दस प्रकारना प०), १०६६६९-२(#s) (२) भगवतीसत्र-शतक श्गत क्रोधमानमायालोभकषायादि भांगा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, मप., (नेरईयाणं भंते किं कोहोवउव), ११३९९४-२($) (२) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह , संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (कहण्णं भंते जीवा गुर), ११३९९४-१ (२) भगवतीसूत्र-थोकडा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (गौतमस्वामी हाथजोडी), ११४१५६, ११०५९४ (२) भगवतीसूत्र-प्रश्नोत्तर, संबद्ध, मा.गु., वि. २०वी, गद्य, मूप., (भगवती सूत्रमा एक), ११०४७० (२) भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मासनी दिक्षा सुभ), १११२२१-३(+), ११४७९५-८ भद्रापुच्छ श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., इतर, (दशम्यांमष्टम्यां प्रथम घट), १०८८५८-१ (२) भद्रापच्छ श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., इतर, (दसमि१० आठमि८ पांचघडी पछि), १०८८५८-१ भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., वि. १५वी, गद्य, पू., (देवदेवं नमस्कृत्य), प्रतहीन. (२) भरटकद्वात्रिंशिका-श्लोक, संबद्ध, ग. आनंदरत्न, सं., श्लो. ४८, पद्य, मप., (देवदेवं नमस्कृत्य), १०८३३०-१(#) भवनदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिगुणयुतानां), १०९१०६-३ । भवानी अष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (न तातो न मातो नबंधुर), १०९३४४-४(+) भाव कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (कमठासुरेण रइयम्मि), ११३०१५-१(+) भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मूपू., (आणंदभरिय नयणो आणंद), १०९२२६(+#), ११४७३८(+$) (२) भाव प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (आनंदइ करि भरिय कहतां), १०९२२६(+#$) भावसप्ततिका, पं. यशस्वत्सागर, सं., श्लो. ७१, वि. १७४०, पद्य, मूपू., इतर, (तात्कालिकः स्पष्टदिन), १०९८१२-१(+) For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ भिक्षप्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (मासाए सत्तंता पढमा बीया), १०९५३६-३(+) (२) भिक्षप्रतिमा गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम प्रतिमा १एक मास लगी), १०९५३६-३(+) भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३पू, पद्य, मूपू., इतर, (सारस्वतं नमस्कृत्य), १०६८८८(+), १०८३४७(+), ११४७०७(+#$), १०६५२१,११२५१९(), ११४९९९(5) (२) भुवनदीपक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (सरस्वती नाम जो देवी), १०८६१८(+#$) (२) भुवनदीपक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (सरस्वती संबंधीओ मह), ११४७०७(+#$), ११२५१९($) भुवनभानुकेवली चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गद्य, मपू., (सिरिरिसहपहु पणमिय), प्रतहीन. (२) भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मा.गु., गद्य, ., (सिरिवीरं नमीअ जिणं), ११२९०५ (#$), ११०३२९($) भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., ग्रं. १८००, गद्य, स्पू., (अस्तीह जंबूद्वीपे), १०६९२०(+#) (२) भुवनभानुकेवली चरित्र-टबार्थ, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., ग्रं. ५०००, वि. १८०१, गद्य, मूपू., (एहीज जंबूद्वीपने), १०६९२०(+#) भूतबलि मंत्र, प्रा., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), १०८३०९ भूमिगत द्रव्य परीक्षा, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू., इतर, (वर्गं वर्णं स्वरं चैव), १०९०२८-१(+#) भैरवाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (एकं खट्वांगहस्तं), ११३९१२-२(#) भो आमंत्रणे सिद्धसूत्र विवरण, सं., गद्य, मपू., इतर, (ननु भो आमंत्रणे सिद्धि), १०८९५०-२ भोजराजा श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., इतर, (येषां न विद्या न), १०८५१७-६(+#), ११२५२१-३(#$) मणिभद्रवीर स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वंदेभूतगणेशवृंदमहित्त), ११३९४७-२(+) मदनधनदेव कथा-चंडाप्रचंडाविषये, सं., गद्य, मूपू., (विचार्य कुरुते कार्य), १०६५०५-२(+$), १०७०१४(+) मनुष्यमृत्यु ज्ञान, सं., गद्य, जै., वै., इतर, (प्रश्नाक्षरमात्रा), १०९६७९-४(+) मनुष्यसंख्या विचार गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (मणुआण जहन्नपए), १०८३१३-२(#) (२) मनुष्यसंख्या विचार गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (एतेषां च पूर्वोक्ता), १०८३१३-२(#) मनुष्यसंख्यास्तव, प्रा., गा. ११, पद्य, मपू., (जिणवत्त चरित्तेणं), १०८३१३-१(१) (२) मनुष्यसंख्यास्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिनोक्तचारित्रेण), १०८३१३-१(#) मरणसमाधि प्रकीर्णक, प्रा., गा. ६६३, पद्य, म्पू., (तिहुअणसरीरिवंदं सप्प), १०६५०३-१३(+$) महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४४, पद्य, मप., (प्रशांतं दर्शनं यस्य), ११०२५५(+), ११३५५१-१(+), १०९९९५-१ महादेवी सूत्र, महादेव, सं., श्लो. ३९, पद्य, वै., इतर, (सिद्धिं करोति राजकेंद्र), प्रतहीन. (२) महादेवी सूत्र-दीपिका टीका, वा. धनराज, सं., ग्रं. १५००, वि. १६९२, गद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीनाभेयं जिनं नत्वा), ११४३९१(+$) महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मप., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), ११४०७४(+$) महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. १४२, पद्य, मपू., (एस करेमि पणामं तित्थयराणं), १०६५०३-५(+) महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (आद्यं प्रणवस्ततः), ११०००५-१(+), १०८५५३ महावीरजिन ११ गणधर आराधनाविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूति गणधराय), १०९०४०-२ महावीरजिन अष्टक, मु. नेतृसिंह कवि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूप., (श्रीमत्सुधीरं प्रणिपत्य), १०९४९५-१(+) महावीरजिन-द्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेन, सं., श्लो. ३२, पद्य, मप., (स्तोष्ये जिनं महावीरं), ११२७३९(5) महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्ष, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (१. श्रीवीर केवलात् १४), ११४७९५-५, १०७७२५(२), ११११५२(६) महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मप., (कंसारिक्रमनिर्यदापगा), ११३७३४-१(#) महावीरजिन स्तवन, मु. मुनिसुंदर, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जयश्रीजिणवर तिहुअण जयमण), १०६६०६-५ महावीरजिन स्तवन, आ. विजयदानसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूप., (श्रीसिद्धिदं सत्पथ साध), १०९१४२-२(+) महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइज्जा समणे भगवं), १०९५८९-१(#) For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), १०८२७६, ११३६११-२(#$) महावीरजिन स्तुति, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (श्रीमद्वीरजिनस्य), १०९५६४-१ महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा.८, प+ग., मूपू., (णमो अरीहंताणं णमो सिद्धाण), ११३४२६(+-) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (तं वंदे त्रिशला सुतं), ११३७९८-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (नताऽशेषलेषं कृतद्वेष), १०८२६१-१(+#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (नानंदोकलेशलंपटपुटं), १०८४५७-१(+#) महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), १०८९८५-२(+), १११९२३-२(+#), ११३९४५-२(+), ११३९७६-३(#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदेहिनमनादेव देहिन), ११०००४-२(+), ११३८१३-२(+#), ११३०४७-२ महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, मूपू., (वचोति सुंदर्यगुणैपटीरं), १०८६६३-२(६) । महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (वीरं देवं नित्यं), १०६४८७-८(+), ११३५५१-२(+), ११३८००-५(5) महावीराष्टक, मु. शांतिसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (कंदप्पैंक दृठोवीर येन), १०६५३८-४ महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., गा. १८०९, ग्रं. २५००, पद्य, मपू., (नमिऊण रिसहनाहं केवल), ११३११८(+#$) (२) महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी श्रीऋषभनाथने), ११३११८(+#$) महेंद्रप्रभसूरिगुरु स्तुति, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (--), ११४२६८-१(+$) माथुरीवल्लभीवाचनागत पूर्वांगादि वर्षसंख्याप्रमाण विचार, सं., गद्य, मूप., (माथुरवाचनायां यथा), १०९०२८-४(+#) मायाबीज स्तुति, सं., श्लो. १६, पद्य, मूप., (ॐनमः सवर्णपार्श्व), ११०५७३(+), ११४८५०-२(+) मुद्रा विधि, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (वाम हस्तोपरि दक्षिण), १०९४०७-१ मुनिचंद्रसूरि प्रशस्ति, सं., गद्य, म्पू., (श्रीयशोभद्रसूरि श्रीनेमी), १११५९२ मुनिवंदना प्रकरण, सं., पद्य, मूपू., (--), १०६४६१(+$) मुहपत्ति बांधने के शास्त्रीय पाठ संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (ढूंढिये कहते हैं कि), ११२३५१(#) महतमक्तावली, आ. परमहंस परिव्राजक, सं., श्लो. ४५, पद्य, वै., इतर, (श्रीशं श्रीहरशारदां), १०६६८५(+$) (२) मुहर्तमुक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीपार्श्वनाथं), १०६६८५(+$) मुहर्तसंग्रह, सं., पद्य, इतर, (मघा मृगशिरो हस्त), ११३२९२-१ मुहर्तसंग्रह, सं., पद्य, इतर, (मासे षष्टेष्ट मेवापि), १०९९१६-२(#) मूत्रपरीक्षा, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., इतर, (रात्रे चतुर्थयामस्य), ११२३५०(+#) (२) मूत्रपरीक्षा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., इतर, (रात्रिने चोथे पहर पाछिल), ११२३५०(+#) मूत्रपरीक्षा, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., इतर, (विकासितं तैलमता च मूत्रे), ११००४६-२(+) मूत्रपरीक्षा, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., इतर, (श्रीमत्पार्श्वजिनाधीशं), ११४७३१(+) (२) मूत्रपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (श्रीपार्श्वनाथजी), ११४७३१(+$) मूत्रपरीक्षा, सं., श्लो. ३०, पद्य, श्वे., इतर, (श्रीमत्पार्धाभिधं), १०९१९१-२(+) मृषाभाषा अधिकार पाठ, प्रा., गद्य, मूपू., (अप्पणो इच्छाए सुयं), १०९८७६-२ मेरुतुंगसूरिगुरु स्तुति, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सन्मानसेवस्थितिमादधानाः), ११४२६८-२(+) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, मु. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), १०७०३८(+$) मेरुपरिधिमान विचार, सं., गद्य, मूपू., (मेरोश्चतुसृषुदिक्षु पंचास), १०९०२३-२(+) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), १०६५७०(+$), १०९४३०(+), ११३८८७ (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (एकदा श्रीनेमिनाथजी), १०६५७०(+$) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, भूपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), १०९४९७(+), ११४९३८(+$) For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मपू., (श्रीवीरजिणं नत्वा), ११०२३८ मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., म्पू., (जंबूद्वीपे भरते क्षेत्रे), ११०४६१(+), ११३६१९(#), १११०९८-२($) मौनएकादशीपर्व गणj, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहाजस सर्वज्ञाय), १०८७८४(+#), ११०३१६(+), ११३१०२(+६), ११४२२१(+$), ११४८९२(+#), १०७७५२-१(१) मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गणj, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते अतीत), १०६८८२ मौनएकादशीपर्व माहात्म्य, सं., श्लो. २७, पद्य, मूप., (द्वारावत्यां महापुर्या), ११४११९(+) (२) मौनएकादशीपर्व माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (अहो भव्यप्राणी ए मौन), ११४११९(+) मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, सं., गद्य, मप., (श्री वीरं जिनं नत्वा), ११३५२६(६) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन), ११४०३७-४ यवराजर्षि बोध गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (उहावसीहा पुयावसहा), ११११६६-१ यशोधर चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., स. ८, श्लो. ९६०, पद्य, दि., (श्रीमंतं वृषभं वंदे), १०७०२५(+$) युधिष्ठिरस्वप्नफल दृष्टांतकथा, सं., पद्य, मपू., (--), ११४५३०(+$) (२) युधिष्ठिरस्वप्नफल दृष्टांतकथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (--), ११४५३०(+$) योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., इतर, (यत्र वित्रासमायांति), १०७१०७(+), ११४३२१(#S), ११४६४२(5) (२) योगचिंतामणि-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (प्रथम स्त्री योग्य), ११४३२१(#S), ११४३२२($) (२) योगचिंतामणि-टबार्थ, पं. नरसिंह मुनि, मा.गु., गद्य, मपू., इतर, (योति सुगम), ११०११६(#$) (२) योगचिंतामणि-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, म्पू., इतर, (जबइ वित्रासनइ), १०७१०७(+) योगरत्नावली, आ. नागार्जुनाचार्य, सं., श्लो. १४०, पद्य, वै., इतर, (विमलमति किरणनिकर), १०६४९१ (२) योगरत्नावली-टीका, मु. गुणाकर भिक्षु, सं., ग्रं. ७८०, वि. १२९६, गद्य, म्पू., वै., इतर, (गुरुचरणकमलमंगलं प्रणम्य), १०६४९१ योगविधि कालमांडलादि-साध, प्रा.,मा.ग., गद्य, मप., (अथ मोटा जोग वहे तेने), १०६९५१-१ योगविलास मालोपधान क्रिया, सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (श्रीवीरं प्रणिपत्य), १०९२२२(+), १०९२४९-१(#) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), १११६१३(+#$), ११३८५१(+#$), ११११७०-१(६) योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., को., म्पू., (आवश्यकश्रुतस्कंधे), ११००१२(+) रंभाशुकसंवाद, सं., श्लो. ३९, पद्य, वै., (मार्गे मार्गे नूतनं), १०९०५५-१ रघवंश, क. कालिदास, सं., स. १९, पद्य, वै., इतर, (वागर्थाविव संपृक्तौ), १०६४५८(+$), ११२५९७(+#S), १०६९१९ (२) रघुवंश-विशेषार्थबोधिका वृत्ति, पं. गुणविनय गणि, सं., स. १९, वि. १६४६, गद्य, मूपू., वै., इतर, (ध्यात्वा तां ब्रह्म), १०६९८०() (२) रघुवंश-शिशुहितैषिणी टीका, आ. चारित्रवर्धनसूरि, सं., वि. १६वी, गद्य, मूपू., वै., इतर, (यस्य भुंगावलि कंठे), १०६९१९ (२) रघुवंश-सुगमान्वयाप्रबोधिका टीका, मु. सुमतिविजय पंडित, सं., वि. १६३०, गद्य, मूपू., वै., इतर, (प्रणम्य जगदाधीशं गुरुं), १०६४५८(+5), ११२५९७(+#$) (२) रघुवंश-हिस्सा प्रथम श्लोक, क. कालिदास, सं., पद्य, वै., इतर, (वागर्थाविव संपृक्तौ), १०८९५०-३ (३) रघुवंश-हिस्सा प्रथम श्लोक की टीका, सं., गद्य, वै., इतर, (अस्यार्थो वाच्य कथनांतर), १०८९५०-३ रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा.५५०, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे उवया), प्रतहीन. (२) रत्नसंचय-हिस्सा गाथा १७०-ज्ञानक्रियाश्रद्धा अष्टभंगी दृष्टांत, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (सामन्नलोअ तव लिंग), ११४५०४-३(+#) (३) रत्नसंचय-हिस्सा गाथा १७०-ज्ञानक्रियाश्रद्धा अष्टभंगी दृष्टांत-टीका, सं., गद्य, मूपू., (न जानाति नांगी करोति न), ११४५०४-३(+#) For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ५०९ (२) रत्नसंचय-हिस्सा गाथा ३०४ से ३०५ चतुर्दश पूर्वनाम, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (उप्पाय पुव्वमग्रणी यंच तई), ११३९५६ (३) रत्नसंचय-हिस्सा गाथा ३०४ से ३०५ चतुर्दश पूर्वनाम का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (चउदें पूर्व कह्या ते कहि), ११३९५६ रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १४वी, पद्य, मपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), १०८२६४(+), १११११४-१(+#$), १११३७५ (+$), ११३७१७-१(+#), १०८२७४-१,११०३६८, १०९८९३-१(#$) (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो कल्याणक लक्ष्मी), १११११४-१(+#), १११३७५ (+$) राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), १०६४६८(+), १११८६०(+$), १०६६२५(5) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ३७००, गद्य, मूपू., (प्रणमत वीरजिनेश्वर), १०६४५७(+) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. ५५००, गद्य, मपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), १११८६०(+$) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवउ० चउथा), १०६४६८(+), १०६६२५(६) रात्रिभोजन परिहारश्लोक संग्रह, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (मेधां पिपीलिका हंति यूका), १०८६८९-४(#) राम शुकनावली, सं., श्लो. ३, पद्य, वै., इतर, (सर्व सिधकरं रामस्य सीताय), १०९८३५-४(+#) रोगी प्रश्न गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., इतर, (आइचआइ धुर विभु अंगह पनर), १०९६७९-३(+) (२) रोगी प्रश्न गाथा-टीका, सं., गद्य, मपू., इतर, (यस्मिन्नक्षत्रे रविः), १०९६७९-३(+) लंघनपथ्य निर्णय, मु. दयातिलक शिष्य, सं., श्लो. ३०४, वि. १७९२, पद्य, मप., इतर, (श्रीसर्वज्ञं नमस्कृत्य), १०९०९७(5) लग्नदोषावली, मा.गु.,सं., प+ग., इतर, (जे समे जे लग्न होइ ते समे), १०८९५२-१(#) लग्नानुसार क्षेत्रपालादि दोषज्ञान, सं., श्लो. १३, पद्य, वै., इतर, (लग्नेष्टमे व्यये सूर्ये), १०८५१४-१ लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपट्ठिय), १०७०३६(+$), १०७०२४, ११३९२०(#5), १०७११९६) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. खेम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं देवं), १०७११९($) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं० ग्रंथनोकरणहार), ११३९२०(#$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर श्रीमहावीर केहवा), १०७०३६(+$) लघुजातक, वराहमिहिर, सं., अ. १६, पद्य, वै., इतर, (यस्योदयास्तसमये), १०९२८८(+$) (२) लघुजातक-अवचूरि, उपा. भक्तिलाभ, सं., वि. १७१५, गद्य, मूपू., वै., इतर, (यस्येति यस्य सूर्य), १०९२८८(+$) (२) लघुजातक-बालावबोध, उपा. मतिसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (प्रणम्य परमानंदः संपदः), १०७६४७($) लघुपट्टावली-पार्श्वचंद्रसूरिगच्छीय, आ. हेमचंदसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विदित सकलशास्त्रान्), ११२०००(+), १११३९३-१ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मप., (शांतिं शांतिनिशांतं), १०६६७२(+$), १०६८५६-२(+), ११०५२९-१(+#), ११३९४७-१(+$), ११४०४९-२(+$), ११४०७१-२(+#), ११४०७५-१(+#), १०८०७१, १०८६२३-१, १०८७९०, १११२८०, १११९५८, ११३८८८-१(#$) (२) लघशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीशांतिनाथ शांति), ११०५२९-१(+#) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, पू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), १०९५३८(+), १०९७८२-१(+), १०९४९६($) (२) लघुसंग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमिय क० नमस्कार करी), १०९७८२-१(+) (२) लघुसंग्रहणी-जंबूद्वीप विचार*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीप मांहि केतल), ११४७९४-१(+#) (२) लघुसंग्रहणी-यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंडद्वार जंबूद्वीपरा), १११५०९ लीलावती, पंडित. भास्कराचार्य, सं., श्लो. २७९, प+ग., वै., इतर, (प्रीतिं भक्तजनस्य), प्रतहीन. (२) लीलावती-पद्यानुवाद, पं. रतनचंद, मा.गु., पद्य, मूप., वै., इतर, (श्रीपारस परमेश्वर), १०६५९६(+$) (२) लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., अ. १६, गा. ७०७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (सोभित सिंदूर पुर), ११३८१७(+$), १०८८३१, १०८९९१(६) लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मपू., (जिणदंसणं विणा जं), १०९०६०(+#) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-व्याख्या, सं., गद्य, पू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १०९०६०(+#) For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ लोकप्रकाश , उपा. विनयविजय, सं., स. ३७, ग्रं. २०६२१, वि. १७०८, पद्य, मूपू., (ॐ नमः परमानंदनिधानाय), १०६७९६(६) लोच विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (खमासमण इरियावही पडिक), ११११४८-२ वंकचल कथा, आ. सोमतिलकसरि, सं., श्लो. १०९, पद्य, मपू., (महार्द्धिभिर्जनैः सेव्यं), १०६६१६(+) वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमियसुरवर), १०६६७३(+) वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं), ११३३६७-२, ११४८१७-१, ११३८८१-१(#) वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानं सारं सर्व), १०८४५१-१ वरदत्तगणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मप., (श्रीमत्पार्श्वजिन), १०७०१२, १०७४५३(#) वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., उल्ला. १०, ग्रं. ४३००, गद्य, मूपू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), १०६५१२($) वर्षराजा फल, प्रा., गा. ९, पद्य, मपू., इतर, (आइच्चे आरोगं लोआणं हवेसि), १०८०९७-२(#) वसुदेवहिंडी, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण; ग. धर्मसेन, प्रा., उपा. २८, ग्रं. १०४८०, प+ग., मपू., (जयइ नवनलिणिकुवलयवियस), १०६८२५ (#$) वसुधारा-लघु, सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ), ११११५८-१(+), १०८६२१ वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह), १०९९४८(+#), ११३७२०(+$), ११४५६४(६), १०९७३३(-2) वाग्भट्टालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., परि. ५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., इतर, (श्रियं दिशतु वो देवः), ११४४८९(+$) वासक्षेप मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण), १०९३०९-२ वासुपूज्यजिन पूजाष्टक, मा.गु.,सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (वरोशील शीतलपणु सत्य आप), १०९२४७-१(#) वासुपूज्य मंत्र-जाप विधि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (ॐ नमो भगवते), १०९३३८-२(+) वास्तुमंडल देवस्थान श्लोक, सं., श्लो. १४, पद्य, मूप., इतर, (चतुःषष्टापदैर्वास्तू पुरै), १०९२६७-२(+) विचारगाथा संग्रह, प्रा., गा. ९९, पद्य, श्वे., (दव्वत्थएण पावइ आराहे), १०८३१२-१ विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ५१, पद्य, मूपू., (वीरपयकयं नमिउं देवा), १११०८४(+#$) (२) विचारपंचाशिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, मूपू., (वीरपदकजं श्रीमहावीर), १११०८४(+#$) विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (समरवीर राजा महावीरनउ), ११३४२८(#$) विजयक्षमासूरि को पर्युषणापर्व आराधना पत्र, सं., प+ग., मूपू., (तीर्थावतंस तीर्थेशे विमले), १०७१५३-२(+) विजयजिनेंद्रसूरि विज्ञप्ति पत्र, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (स्वस्तिश्री सीरोहीनगरे), ११३००० विजयपताका यंत्राम्नाय स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐह्रीं क्लीं मंत्ररूपे), ११२५०५(+#) विद्वद्गोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., श्लो. २१, पद्य, मपू., इतर, (येषां न विद्या न तपो), १०९२२९(#), ११४०९३-१(#) विधिपंचविंशतिका, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., श्लो. २६, पद्य, श्वे., (यदकुलांबरचंद्रक नेम), १०९००४-१(+) (२) विधिपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.ग., गद्य, श्वे., (यादव- कुल ते रूपी), १०९००४-१(+) विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ११२३९८(5) विवाहपटल, मु. क्षेम, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., इतर, (नत्वादेवीं सुबोधाय), १०९९१६-१(#) (२) विवाहपटल-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (नत्वा क० नमस्कार करी देवी), १०९९१६-१(#$) विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., इतर, (जंभाराति पुरोहिते), प्रतहीन. (२) विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूप., वै., इतर, (वाणी पद वांदी करी), ११०१४७-१(६) विविधतपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथ पिस्तालिस आगमनो), १०८८६६(#) विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवंति), ११००१०-२(+), ११४७२२-२(+), १०८६६०-१६ विविधविचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (जईया होही पुच्छा), ११४०२३-२(+) विविधविचार संग्रह, प्रा., गा. ११०, पद्य, मूपू., (वासासु सगदिण उवरि), १०७०५९-१(+) विशालजिन काव्य, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (विजयसेन कुलांबर भास्कर), १११८०९-२(+) For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ५११ विष्ण १० अवतार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (वनजो वनजो खर्व त्रीरामी), ११०११७-२(+#) विष्णु २४ अवतार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (श्रीमत्मत्स वराह कूर्म), ११०११७-३(+#) विष्णु स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (जराकर्णमूलेकृतं तस्य), १०७२४६-२ विष्णु स्तुति-समस्यागर्भित, सं., श्लो. ३, पद्य, वै., (कोध्येय कुटिल भुवां नयनयो), १०९८६९-२(+) वीतराग अष्टक, आ. जैत्रसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (शीतं शिवं शिवपदस्य), १०७०३७-९(+-#) वीतराग स्तोत्र, मु. गुणचंद्र, मा.गु.,सं., गा. १५, पद्य, जै., (भज सर्वशं भज), ११४००२-१,१११२९९-२($) वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मप., (यः परात्मा परं), १०९८२१(+$) वीतरागाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (शिवं शुद्धबुद्ध), ११३३७०-१ वीरसेनत्रैलोक्यसुंदरी कथा, सं., गद्य, मूपू., (पत्नी प्रेमवती सुतश्च), १०६६२१(+#) वीरस्तव प्रकीर्णक, प्रा., गा. ४३, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणं जयजीवबंधव), १०६५०३-७(+) वृष्णिदशासूत्र, प्रा., अध्य. १२, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते० पंचमस्स), १०६५०१-५(+), १०६४५६-५ (२) वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (जौ हे पूज्य० पांचमान), १०६५०१-५(+), १०६४५६-५ वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मप., इतर, (सरस्वतीं हृदि), १०६८१६-१(+), ११२१९४(+$), ११२२०१(+$), १०९२२७(#$) (२) वैद्यवल्लभ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., इतर, (--), १०९५११(+#$), १०९२२७(#$) (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मपू., इतर, (श्रीसरस्वती देवता), १०६८१६-१(+), ११२१९४(+$) वैराग्यभावना श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (यादृक् संध्यारागः), ११०३५५-१(+) (२) वैराग्यभावना श्लोक-अन्वय, सं., गद्य, श्वे., (सकलरूपं आयुः कुटुंब), ११०३५५-१(+) व्यंकटाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (मुखे चारु हस्यं करे), १०९३४४-२(+) व्यभिचारिभाव विचार, सं., श्लो. ६, पद्य, जै., वै., इतर, (हासश्च शोकश्च क्रोध),१११२०६-४(2) व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. १०, ग्रं. ३७३, गद्य, मूपू., (जे भिक्खू मासियं), ११३९८३-५(+) व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (अशरणशरण भवभयहरण), ११२०९८(+$), ११४४२४(+$), १११२८८-१, १०९३६१-२(#), ११०१६३-१(#) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १००, पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), १०९११३-१ (२) व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंत असरण सरण), १०९११३-१(६) व्याख्यान संग्रह , प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., मूप., (देवपूजा दया दान), ११०३२८-४(+), ११०५२७-१(+), ११२६५९(+#$), ११३११२-२(#$), ११४०४५(३), ११२९७३-१(६) (२) व्याख्यान संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (अरिहंत भगवंत गुरु), ११२९७३-१(६) व्रत उच्चार अधिकार, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (एएहिं पंचहिं असंवरेह), १०९६१८-५(+#$) शंखपूजा विधि, सं., गद्य, म्पू., (प्रथम तीन बाजोठ तस्योपरि), ११०४७३-५(#) शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., मप., (ॐ नमोर्हते भगवते), १०९४५०(+), ११३३६७-३($) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), १०७०८६-५(+), ११३०३०(+#$), ११४०८६(#) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमात्मानई भव्य), १०७०८६-५(+) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-प्रकृति यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (४७ ध्रुवबंधनी प्रकृत), ११०४८३ (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, पंन्या. सुमतिवर्धन, मा.गु., ग्रं. ९००, वि. १८७५, गद्य, मप., (श्रीजिन प्रते नमस्कार), १०७११३-४(+$) शत्रुजयतीर्थ १०८ नामावली, सं., सू. १०८, पद्य, मपू., (श्री शत्रुजय गिरि न), ११०३८४ शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटिका, सं., श्लो. २४, पद्य, मप., (नमेंद्रमंडलमणिमयमौलिमाल), १०७०३७-१०(+-#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूप., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), १०८८४७-३(+#), ११०२२८-२(+), ११३७१७-२(+#), ११०९७६, १०७७०३-२(#), १०६६०६-६($) For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन-अवचरि, सं., गद्य, मप., (--), १०८८४७-३(+#) शत्रुजयतीर्थ छट्ठ अट्ठम गुणर्नु, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपुंडरीकगणधराय), ११०३२४-२ शत्रुजयतीर्थ स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, मपू., (धरणेंद्रप्रमुखा नागाः), ११०३६५-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. अनंतहंस, अप.,प्रा., गा. ३९, पद्य, मूप., (सिरि शत्रुजय मंडण दुह), ११३५६२ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (सिद्धोविज्जायचक्की), १०९६३८-४(+#) शनिश्चर स्तोत्र, मु. केसरकीर्ति, सं., श्लो. १७, पद्य, मप., (सुखदम–कृतं च शनिश्चरं), १०९३४४-१(+) शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टाय), १०८३२४-२(+), १११७५८-३(+#) शब्दनित्यत्वमनंतत्त्ववादस्थल विचार, सं., गद्य, मूपू., (द्वयोर्विवादिनोर्विप्रति), १०८३७२-२(+#) शब्दसंचय, सं., गद्य, मपू., इतर, (शब्दांभोधिसमुल्लासरस), १०८२९१-१(६) शय्यंभवसूरि कथा, सं., पद्य, मूपू., (--), ११५१८५(६) शांतसुधारस, उपा. विनयविजय, सं., भा. १६, श्लो. २३४, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (नीरंध्रे भवकानने परिगलत्), ११०५३६(+) शांतिक विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम विशाल जिनभुवन), ११४०७९-६ शांतिजिन अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (भक्त्या क्रमाब्ज), १०९४९५-२(+) शांतिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (वंदे श्रीशांतीनाथं च), ११०४७३-३(#) शांतिजिन बोलिका, आ. जिनेश्वरसूरि, अप., गा. ४, पद्य, मूपू., (ता उत्तर दक्षिण पुरब), ११४२२२-१(६) शांतिजिन स्तवन, मु. जयतिलक, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (पणमिर सुरवरसेहर विलसिरमणि), १०९५०६-२(+#) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अंघ्री कूर्मयुगं करौ), १०९६३८-३(+#), ११४०५८-२ शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (इति सूकृति विपाका शांति), ११०५३०-३(2) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (देवदेवाधिपैः सर्वतो), ११३८१३-३(+#) शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (नाना विचित्रं बहुदख), ११५१४३-३(+$) शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ विश्वातिशायिमहिम), १०८३००(+) शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., प्र. ६, श्लो. ४८९०, ग्रं. ५०००, वि. १३०७, पद्य, मप., (श्रेयोरत्नकरोद्भतामह), ११४५२३(+#$) शांतिपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (ननु संघादीनां विघ्नो), ११०५१०-२(+), १११२२८-२(#) शांबप्रद्युम्न चरित्र, सं., पद्य, दि., (--), ११४१६०() शाकुनसारोद्धार, आ. माणिक्यसूरिजी, सं., प्रक. ११, पद्य, मूपू., इतर, (उपास्महे परं ज्योति), ११०११७-१(+#$) शारदादेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, श्वे., (अविरल शब्द मयौघा), १०८३७४-१(+#), १०९००८ शारदाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (ऐं ह्रीं श्रीं मंत्र), ११३४३७-२ शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (नित्ये श्रीभवनाधिवासिभवन), ११३७७१(+#) शास्त्रपूजा अष्टक, आ. पद्मनंदि, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (प्रकटितपरमार्थे), १०६७३६-२($) शीघ्रबोध, काशीनाथ भट्ट, सं., अ. ४, ग्रं. ५६१, पद्य, वै., इतर, (भासयंतं जगद्भासा०), १०८२१४-२(+$) शीयल नववाड विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., म्पू., (वसहि कह निसिज्जेदिय), ११४०९६-१ शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., म्पू., (अहं भंते तुम्हाणं), ११३६६७-५, ११४७०८-२ श्रमणसूत्र, प्रा., प+ग., मपू., (करेमि भंते सामाइअं), ११०३५१-१(+) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (दंसण वय सामाई पोसह), १०९५३६-५(+) (२) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (एक मास लगइ समकित),१०९५३६-५(+) श्रावक ५३ क्रिया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, दि., (गुण८ वय१२ तप१२ सम१ पडिमा), १०९५३६-६(+) (२) श्रावक ५३ क्रिया गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, दि., (गुण८ तेहना नाम मद्य१ मांस), १०९५३६-६(+) श्रावक आचारविचार गाथासंग्रह-आगमगत, प्रा., प+ग., मूप., (अनियाणोदारमणो हरिसवसवि), १११३७३(#$) (२) श्रावक आचारविचार गाथासंग्रह-आगमगत-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मप., (नीयाण न करइ परनी रिद्धि),१११३७३(#$) For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ श्रावक गृहे ७ गलणा ९ चंद्रवा विधान, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (अत एव श्रीपरम गुरुभिः), १११८०५-२(#) " आवक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमि दंसणंमि अ चरणमि), १०७०५२+३) १०६८२३ ११३३७७/७), ११०३१५ (६) आवक षट्कर्म श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, मूपू (देवपूजा गुरुपास्ति), १०८५१७७) " श्रेणिक चरित्र, सं., गद्य, म्पू., (--), ११३७०४(३) " श्रुतज्ञानवत्रीसदोष गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (अलिय मुवधाय जणयं), १११९३३-३(+) श्रुतसेवाजिनपूजादि श्लोक संग्रह, प्रा., सं., गा. ६, पद्य, मूपू., (ये लेखयंति जिनशासन), १०८३३३-३(+) श्लोक संग्रह*, पुहिं., प्रा.,मा.गु., सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता श्यामलवर्ण), ११०५२९-२ (#), १११११४-२(+#), ११३७२२-२ (०), ११११४८-३, १०८६८९-७(१) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोक संग्रह, सं., श्लो. १००, पद्य, जे. वे., (जिनेंद्र पूजा गुरु), ११५२३१-१(+), ११४१३३(३) " "" लोक संग्रह, प्रा. सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपु लोक संग्रह, प्रा.सं., श्लो. १०, पद्य, इतर (स्नाने सिंह समारणे), १०७०४४-२, ११३७७४-२(०) लोक संग्रह-गूढार्थगभिंत, सं., श्लो. २५, पद्य, भूपू वै. (गोश्राव: किमयंग), १०७०३३(#) , , " श्लोकसंग्रह - जैन धार्मिक, प्रा.सं., गा. २०, पद्य, वे., ( एगग्गचित्ता जिणसासणं), ११४४३३ (+#$), १०८६३१-१ (२) लोकसंग्रह - जैनधार्मिक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, खे, (श्रीयुगादिदेव वो युष्माकं), ११४४३३(+) (२) श्लोकसंग्रह- जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे. (आर्यदेश भलो कूल भलो रूप ), १०८६३१-१ " श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा., सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), १०६६३६ (+), १०७०९६-८ (+#), ११०६९१-५ (+), ११३१९५ (+5), ११३४२९ (+), ११३६६४-४(७) ११०३३२-२, ११३७७८ (AS), १११९१०-१() (नेत्रानंदकरी भवोदधितरी) ११२४८६-२ (१), ११५२०० (+६) יי श्लोक संग्रह-मांगलिक, प्रा., मा.गु.,सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्तं), ११०३७८-३(+), ११०५३० - ४(#) श्लोक संग्रह-लोकोक्तिगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, वे (भाभी देवर शालाए काका मामा), १०८३३३-४(०) षटुकाय जीवविचार, प्रा. सं., गद्य, खे, (--), ११४१०५-३(०) " षट्त्रिंशज्जल्पविचार संग्रह, मु. भावविजय, सं., वि. १६७९, गद्य, मूपू., (ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथ), ११३६०४($) " , षडशीति नव्य कर्मग्रंथ ४ आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. ८६, वि. १३वी १४बी, पद्य, भूपू (नमिय जिणं जिवमग्गण), १०७०८६-४ (+), ११५१९९(+०३), १११७९७३) (नमनि० तत्र जीवंति) १११७९७(5) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४- अवचूरि, सं. गद्य, मूपू (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ ४-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (हवई चथा कर्मग्रंथ), १०७०८६-४(+), ११५१९९($) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-६२ मार्गणास्थानक यंत्र, संबद्ध, सं., यं., मूपू., (जीवस्थानक १४ गुणस्थल), ११५१७० (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा. गद्य, म्पू., (जीवरा भेद१४ ६२मार्गण), ११४८८२ (३) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-४ आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ८६, पद्य, म्पू, (निच्छिन्नमोहपासं), १०९७६३ (+) ५१३ षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि. ६ श्रो, ८७, पद्य, भूपू वै. बौ. अन्य, (सदर्शनं जिनं नत्वा वीर). १९१७९१+०७), " १११७५९(३) षष्टिशतक प्रकरण, श्राव नेमिचंद्र भंडारी, प्रा. गा. १६१, पद्य, म्पू, (अरिहं देवो सुगुरू), १०७०२१(+), १०६५२०(१) (२) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (राग अनइ द्वेषरुप), १०७०२१(+), १०६५२० (3) संख्याता असंख्याता अनंता मान विचार, मा.गु. सं., गद्य, म्पू. (पाला च्वार ते मधे), ११३८४७ (+०७) संख्यारूप विचार, उपा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मपू., इतर (एक एका एक द्वी), १०८८०९(+४), १०९६०३/०१ संख्यावाची शब्दकोश, सं., गद्य, म्पू, इतर (द्वौ२ चार्क १२ बाण५ तिथय१५) १०७२८३-६ संग्रामवर्णन पद, मा.गु. सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू (मादल बाज्या जइ ढक बाजी), १०८९५७-२ (+) संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू, (वह्निज्वालावलीढं कुपथ), १०६९०६ (+) (२) संघपट्टक अवचूरि, वा. साधुकीर्ति, सं. वि. १६१९, गद्य म्पू, ( श्रीमत्पार्श्वजिन) १०६९०६ (+४६) * , " For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि प्रा. गा. १४. वि. १५वी, पद्य, मृपू (संतिकरं संतिजिणं), १०७७२२-३(+), ११२२३४-१(+), ११०१९६ - ३, ११०५४०, ११११३०, ११४८३०- २ ($) " (२) संतिकर स्तोत्र आम्नाय संबद्ध, सं., गद्य, म्पू, ( एतत्स्तोत्रं त्रिकाल), ११०९८४१०), ११०२७१ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा १४, पद्य, मूपु. ( निसीहि निसीहि निसीहि), १०६४८७-२(+), १०८९३३-१(+), १०९०५८(०), , १०८९३२-१, ११०६३०, १०८६२३-२, ११०२६९(# ), १११३९१(#$), ११२५३८ ($), ११३७७९ ($) (२) संथारापोरसीसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार विना बीजो), ११०२६९(०) संबोध प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. अधि. ११ गा. १६१७, पद्य, म्पू, (नमिऊण वीवरायं सव्वन), प्रतहीन. ', (२) संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्य कुलक, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (जह अभविय जीवेहिं), १०८२७७, ११३५३८-३ संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. गा. १२५, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरुं), १०७६८८ (+९), ११४८७२(७), " , ११३०६३ (#$) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ तिन), १०७६८८ (+) संलेखना पाठ, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (अहं भंते अपछिम मारणं), ११३२३४ संविज्ञसाधुयोग्यनियमकुलक, आ. सोमसुंदरसूरि, प्रा. गा. ४७, वि. १५वी, पद्य, मूपू. (भुवणिक्कपइवसमं वीरं), १०९२७९(+*) संसक्तनिर्युक्ति, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू (उसभाइवीरचरिमे सुरासुर), १०९८५६ (+) संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मूपु., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), १०६५०३-४(+) सचित्त-अचित्त वस्तु काल निर्णय, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे. (वासासु सगदिणो उवरिं), ११३७०६-३(५०) सच्चीयादेवी स्तवन, प्रा., गा. १२, पद्य, म्पू., (गिरिकूडतडनिविद्या), १०९५६४-२ "" सत्तरभेदी पूजा, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., प्रा., पूजा. १७, पद्य, मूपू., (भाव भलै भगवंतनी पूजा), १०६५१९($) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९१, पद्य, मूपू., ( सिद्धपएहिं महत्थं), १०७०८६-६ (+) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्धपदा निश्चला ), १०७०८६-६(+) सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३६०, वि. १३८७, पद्य, म्पू, (सिरिरिसहाइ जिणिदे), १०६९३५ (+) सप्तभंगीनयप्रदीप प्रकरण, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, मूपू., (ऐंद्रादिप्रणतं देवं), ११२७६९(+$) सप्तभंगीस्वरूप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिया अत्थि १ सिया), ११५१०५-१ (२) सप्तभंगीस्वरूप गाथा अर्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (सकलपदार्थ आपणई रुपई), ११५१०५-१ सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं० हवइ), ११४२२४(+$), १११३७८($) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा. अधि. ९, पद्य, दि., ( वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन. . (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ९, श्लो. २७८, प+ग, दि., ( नमः समयसाराय स्वानुभूत्या), प्रतहीन. (३) समयसार आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं. अधि. १२, श्लो. २७८, पद्य, वि., (नमः समयसाराय), प्रतहीन. (४) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जे.क. बनारसीदास, पुहि., अधि. १३, गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर हरन), ११०३००(S) समवसरणविस्तार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (रिसहो बारस जोयण), ११३४५६ - १(+#) " समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अध्य. १०३. सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू (सुर्य मे० इह खलु समणे), ११३७७० (१) समस्या श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (वंध्या : योंध: कुहुनि), १९४४५८ (२) समस्या श्लोक संग्रह - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (मयि देवबोधे क्रुद्धे सति), ११४४५८ समूर्च्छिमजीवोत्पत्ति विचार गाथा, प्रा., पद्य, मूपू (सुक्क पिउणो माऊए सोणियं), १०८३११ (+०३) "" (२) समूर्च्छिमजीवोत्पत्ति विचार गाथा- बालावबोध, रा., गद्य, म्पू. (जिवारी पुरुषस्त्रीनं), १०८३११(+०३) सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि सं. ग्रं. १६७५ वि. १४५७ प+ग. म्पू. (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १११३७४(३), १०७०९३(७), ११३१४५ (६) " For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ५१५ (२) सम्यक्त्वकौमुदी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरस्वामि), ११३१४५($) (२) सम्यक्त्व कौमुदी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीवर्द्धमान चतुर), १०७०९३(३) सम्यक्त्वचारित्री जीव लोकस्पर्शना गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (सम्मत्तचरणसहिआ सव्वं लोग), १११४०३-५(+) (२) सम्यक्त्वचारित्री जीव लोकस्पर्शना गाथा-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (क्षायिकसम्यक्त्वचरणसहिता), १११४०३-५(+) सम्यक्त्व पंचविंशतिका, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्तसरूव), १०९७४३(+#$), ११४८९४(+), १०८३१४, ११४५७९, १०९८९३-२(#), ११५१३५(#$) (२) सम्यक्त्वपंचविंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, पू., (यथा येन औपशमिकत्वादि), १०९७४३(+#$) (२) सम्यक्त्वपंचविंशतिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोवांछितदातारं), ११५१३५(#$) (२) सम्यक्त्वपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (जह कहतां जे उपशमादिक), १०८३१४(६) (२) सम्यक्त्वपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (जिम सम्यक्तवनउ), १०९८९३-२(2) सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं.७७११, पद्य, मूपू., (दसणसुद्धिपयास), प्रतहीन. (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-चयन सम्यक्त्व ६७ भेद गाथासंग्रह, प्रा., गा. १२, पद्य, मपू., (--), ११३८५९-१($) (३) सम्यक्त्वसप्ततिका-चयन सम्यक्त्व ६७ भेद गाथासंग्रह का-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ११३८५९-१(६) सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (प्राग्वाग्देवि जगज्जन), १०९१३२(+) सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (जिनादेशजाता जिनेंद्र), ११०२९३-२, ११०१०७-२(#) सरस्वतीदेवी कंठ मणिमाला प्रमाण श्लोक, प्रा., श्लो. १, पद्य, मप., (चउदस आठावीसक सत्तावन्नासय), १०९८६९-४(+) (२) सरस्वतीदेवी कंठ मणिमाला प्रमाण श्लोक-अवचूरि, प्रा., गद्य, मपू., (१००००००००१ अयं विधिर पर), १०९८६९-४(+) सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४४, वि. १६७८, पद्य, श्वे., (सकलसिद्धिदातारं), १०९२६८(+), ११३२४९(+६), ११००१५(#S) सरस्वतीदेवी जयमाला पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, मा.गु.,सं., गा. २५, पद्य, दि., (सति श्रुतस्कंधवने), १११७३९-१(+) सरस्वतीदेवी जाप मंत्र, सं., गद्य, म्पू., (ॐ अर्हन्मुखकमलवासिनी), १०९०३५-१(+) सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, श्वे., इतर, (ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वद), १०८६२०-२(+#) सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, जै., वै.?, (ॐ नमो एँ ह्रीं), १०८६२०-३(+#) सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, जै., वै., इतर, (ॐ ह्रीं क्लीं छू श्री), १०९७२१-२ सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., वै., (नमस्ते शारदादेवी), ११३०९९-१(+$), ११३९२७-१(+#), ११४५७५-१(+), १०८०५१, १०९५७४-२, १०७५६०-२(#) सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (प्रथम भारती नाम), १०९३२७-३(+$) सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (वादीमूकतिरंकति क्षतियति), १०८३७४-२(+#) सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सुवर्ण वर्णा सुखरा च), १०६५३८-८ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. दानसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (संपूर्णशीतद्युति), १०८९५५-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), १०७५५९, १०७७९६, १०७९८१, १०९७२१-१, १०९७३४, ११२९९१-२, ११३४३७-१, १०७३७२-२(#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, ब्रह्मा, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (रविरूद्रपितामह विष्णनुतं), १०९१६५-१(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (जलधिनंदनचंदनचंद्रमा), ११४२६१-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., श्लो. ११, वि. १५२७, पद्य, मूपू., (कमलभूतनया मुखपंकजे), १०७१३९-१(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., वै., (नमामि भारति देवी), १०९८२५ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता भारती), १०८१५८-२(+#$), १०९३२७-२(+), १०९००७-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (वाग्वादिनी नमस्तुभ्यं), १०७८८५(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १५, पद्य, श्वे., (विपुलसौक्षमनंतधनागम), १०८४०३, १०७३७२-१(#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (व्याप्तानंतसमस्तलोक), १०८६२०-१(+#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (शभ्राकार मनोहरारतिकरा), १०८४१४-३(2) For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र-१०८ नाम गर्भित, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (धिषणा धीर्मतिर्मेधा), १०९५७४-१ । सरस्वतीदेवी स्तोत्र-अष्टोत्तरशतनामयुक्त, श्राव. वस्तुपाल महामात्य, सं., श्लो. १५, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (धिषणा धीमतिर्मेधा), १०९९१७(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (ॐ नमस्त्रिदशवंदित), १०७७८३(+#) सरस्वती पूजा, सं., श्लो. १०, पद्य, दि., (जनममृत्युजराक्षयकारण), १०९३०६ सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., इतर, (--), प्रतहीन. (२) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., इतर, (प्रणम्य परमात्मानं), ११३९६१-१(#$) (३) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण का धातुपाठ, संबद्ध, सं., गद्य, श्वे., वै., इतर, (प्रणम्य० बालधीव्युत्पत्ति), १०९१९५-१(#) (३) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६६३, पद्य, पू., इतर, (श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा), १०६६१४($) (४) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ की स्वोपज्ञ धातुतरंगिणी टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (नमस्कृत्य महोनंत), ११४२३९(s) (२) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., इतर, (नमस्कृत्य महेशानं मतं), प्रतहीन. (३) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका का हिस्सा मंगलाचरण श्लोक, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., इतर, (नमस्कृत्य महेशानं मतं), प्रतहीन. (४) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका का हिस्सा मंगलाचरण श्लोक की अर्थलेश टीका, सं., गद्य, मूपू., वै., इतर, (प्रणम्य प्रणयात्पूर्वे), १०९१९५-२(+#) सर्वज्ञमहिम्न स्तोत्र-समस्या गर्भित, पं. चंद्रराजगणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (महिम्न पारंते परम विदुषो), १०९११६ सर्वतोभद्र श्लोक-अनुलोमविलोमगर्भित, सं., श्लो. १, पद्य, मप., इतर, (समानाललनामास मालमोक्ष), ११३७८४-३(+) साधारणजिन अभिषेक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (चक्रे देवेंद्रराजै), ११०५२५-२(+) साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ७, वि. १५वी, पद्य, मप., (जयश्रीजिनकल्याणवल्लि), १०८८४७-१(+#) (२) साधारणजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे श्रियायुक्तो जिन), १०८८४७-१(+#) साधारणजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (मूर्तिस्ते जगतां महार्ति), १०६५३८-१० साधारणजिन नमस्कार-स्तुति संग्रह, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (कल्याणपादपाराम), १०८९२९-१(+#) साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूप., (देवाः प्रभो यं), १०६५३८-११, ११३२१६, ११४२५५-३ साधारणजिन स्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, मप., (न पुनव्रीडामंगलातंकदायिभि), १०८४५७-२(+#) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूप., (श्रीतीर्थराजः पदपद्मसेवा), १०६४८७-९(+), १११८९७-२(#) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (कोय नाथ जिनो न किं तव), ११३७७७-२(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखकारं सकल), १०७१५३-१(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ८, पद्य, श्वे., (--), ११११५६-२(क) साधारणजिन स्तुति-नैवेद्यगर्भित, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (घात्या घेवर लापसी), १०९१३८(+) (२) साधारणजिन स्तुति-नैवेद्यगर्भित-टीका, सं., गद्य, मूप., (अयीति को० हे प्रभो), १०९१३८(+) साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो मंगल), १०९६३८-५(+#), ११०६८५(+), १०६६०६-४, १०८६२२-३, ११३२७९-१, ११३७५८-२,११४०९५-७ (२) साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो मानुभाव श्रीजिनपुंगव), ११०६८५(+) साधु अविहित आचार-संदर्भ पाठ संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १८, पद्य, मूप., (ये सिद्धांतनिषिद्धवेष), १०९२४९-२(#) साधु भिक्षा फल श्लोक-विष्णुपुराणोक्त, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (वेद विद्यां द्विजातीनां), ११२३८६-३ साधुसाध्वी उपकरण, प्रा., गा.७, पद्य, मूपू., (पत्तं पत्ताबंधो पाय), १०९२६१-३(+$) सामवेदसंहिता, सं., अ. २७, श्लो. १८७५, पद्य, वै., (अग्न आ याहि वीतये), प्रतहीन. (२) सामवेदसंहिता-चयन, सं., पद्य, वै., (सर्वान्नं कामन्नं न अशि), १०८९०७-२(+-) For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ सामायिकसूत्र-दिगंबर, सं., प्रा., पद्य, दि., (पडिक्कमामि भंते इरिवावहि ), ११५२०३(३) सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, लो. २७१, पद्य, म्पू, इतर (आदिदेवं प्रणम्यादी). १०८८७१(३) ११२८२९(+४७) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (आदिदेव प्रते प्रथम), ११२८२९ (+#$), ११३०३४ ($) सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. द्वा. २२, श्लो. १००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः), १०६५१७(+5), "" १०६६२० (+), ११४५१९(०३), ११४५४२ (३), १०६६६७ (३) ११४२६६ (३) ११५१३६(३) (२) सिंदूरप्रकर- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं. वि. १६५५ गद्य, म्पू. श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा), १०६५१७(+5) " (२) सिंदूरप्रकर-टीका *, सं., गद्य, मूपू., (--), ११४०४१+#$) (२) सिंदूरप्रकर- टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (सिंदूरनउ समूह तापरूप), ११४५१९ (०३), ११४५४२ (०३) (२) सिंदूरप्रकर- बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (शारदाचरणयुग्ममतीतपापं), १०६६६७/६) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., गा. ६. वि. १८वी, पद्य, भूपू (उप्पन्नसन्नाणमहोमवाण). ११३२८२-१ सिद्धचक्र जयमाल, आ. पद्मनंदि, सं., श्लो. ११, पद्य, दि., ( त्रीलोक्येश्वर वंदनीय चरण), १०८९०५ सिद्धचक्र पूजाविधान नवपदमहिमा मंत्राद्वान विधि, मा.गु. सं., प+ग, मूपू. (सुलग्ने प्रथम उद्यापनकर्म), २०७०८५(१) सिद्धचक्र यंत्रोद्धार मूलमंत्र पूजनविधि, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ अरिहंताय नमः), १०९४३९ सिद्धचक्र स्तुति, मु. मुक्तिसौभाग्य, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अर्हन्मूलं प्रकांडो), ११४८९० सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ज्ञात्वा प्रश्नं), १११७७१-१ , सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. १३, पद्य, मूपू., (जं उसहकेवलाओ अंत), १०९५३१(४०), ११३७२२-१(+), ११०६१७, ११०१४१(३) (२) सिद्धदंडिका स्तव टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (आदित्ययशोनृपप्रभृतयो, १०९५३१ (+४) (२) सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जं क० जे उस क० ऋषभ), ११३७२२-१(+), ११०६१७ सिद्धपद स्तवन, मा.गु. सं. गा. १४, पद्य, भूपू (जगतभूषण विगत दूषण), १०९०८६(+), ११२३८७-२ (+४) " (२) सिद्धपद स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज० चौद राजलोकनु भू०), १०९०८६ (+$) सिद्ध पूजा, सं . २५, पद्य, दि., (ॐ उर्ध्वाधारयुतं), १११७३९-३ (+३) " ५१७ सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, प्रा. गा. ११९, ग्रं. १३५, पद्य, मूपू. (तिहुयणपणए तिहुयणगुणा). १०९५०४ सिद्ध स्तुति, सं., श्लो. १०, पद्य, दि. १, (यस्यानुग्रैतो दुराग्रह), १०६७४९-२ सिद्धमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८. सू. ४६८५ नं. २९८५, वि. १९९३, गद्य, म्पू. इतर (अर्ह सिद्धिः स्याद्वादात ), प्रतहीन. " (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. ग्रं. १८०००, वि. ११९३, गद्य, मूपू., इतर, (प्रणम्य परमात्मानं ), प्रतहीन. (३) सिद्धमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति का न्यायसंग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. सू. ५७, गद्य, मूपू., इतर, (स्वं रूपं शब्दस्याशब्द), १०९०८० (+) सिद्धांतनिका व्याकरण, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं. गद्य म्पू, इतर ( श्रीमडुरुपदाम्भोज), प्रतहीन. " (२) सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. जिनचंद्रसूरि सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू. इतर (अनिट् स्वरांतो भवति), १०८७४२(+#), १०९५४४(+#), ११२६८५ (+), ११४३३० (+#), ११४६८० (+#$), ११५०४७(+), १०८७५५ ($), ११४६५७($) (३) सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, म्पू, इतर ( कारिकानिट् स्वरांतस्य), , १०९५४४९००) (३) सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, सं., गद्य, मूपू., इतर, (वृङ् संभक्तौ क्रैयाद), १०८७४२(+#), ११४३३० (+४), ११४६८०१+०३), १०८७५५(३) (३) सिद्धांतरत्निका व्याकरण अनिट्कारिका की अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, मूपू., इतर (जैनेंद्रव्याकरणस्येयं), ११५०४७(+) सिद्धांत स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं. श्री. ४६, पद्य, मूपू (नत्वा गुरुभ्यः श्रुतदेवता), १०६४९२ For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) सिद्धांत स्तव-टीका, आदिगुप्त, सं., गद्य, मूप., (ध्यायंति श्रीविशेषाय), १०६४९२ सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, ग्रं. १६७५, वि. १४२८, पद्य, मूप., (अरिहाइ नवपयाइं झायित), १०६९०५(६) (२) सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, आ. हेमचंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४०२२, गद्य, मूप., (ध्यात्वा नवपदी), १०६९०५(5) सीमंधरजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूप., (जोरज्यं पविहित्त), ११३०५१-५ सुभाषित श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (दुरितवनघनालीशोककासार), १०८५१५-३(+), ११०९७५-४(+), ११०७४५-२ सुभाषित श्लोक संग्रह*, मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (अपुत्रस्य गृहं सुनं), १०६५१०-२(+$), १०७६१७-२(+), १०७९३३-१(+), १०९३२४-१, ११४०२९-४, १०८३३०-२(2) सुभाषित श्लोक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद्धं च), १०६७१८(+5), ११०६९१-४(+), ११५०२९(+$), ११५०९०-१(+$), १०८९५०-४, ११३१२७-२,११४१०२-२(#), १११८९४(६) (२) सुभाषित श्लोक संग्रह- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल क० समस्त कुसल), १०६७१८(+$) सुभाषितश्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., श्लो. १३६२, पद्य, श्वे., वै., (यत्नकल्याणकरोवतारसमय), ११०३५५-२(+) सुभाषित श्लोक संग्रह*, मा.गु.,सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., इतर, (विद्यालक्ष्मीसंपन्नाद), ११०३५४(+), ११३०९८(+), ११३८०५(+), १०७६१८, १०९१७३, १०८४४९ (#$), १०८६४६-२(#) सुभाषित संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २००, प+ग., श्वे., (ॐकारबिंदु संयुक्तं), ११३६७१-४($) सुभाषित संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ७७, पद्य, श्वे., (अन्ना सत्थे पेमं पाव), ११३७६१(+$) सुभाषित संग्रह , सं., श्लो. ८, पद्य, इतर, (नागो भाति मदेन), ११३८६८-२, ११५१९७-२ (२) सुभाषित संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (घणा घणा साधर्मी ल्यो), ११५१९७-२ सुमतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (सुमतिनाथमनंतसुखालयं जनित), १०९११७-२(+) सरप्रिय कथा-आत्मनिंदाविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १२५, वि. १६५६, पद्य, मप., (प्रणम्य महिमागारं), १०६५०५-१(+$) सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., वर्ग. ४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मप., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), १०७१०८(+$), १०९५६६-१(+), ११०९६०(+), ११५२०४(+$), १०६५१६(#), १०६६१७($) (२) सूक्तमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (सकल सर्व जे शुभ करणी), १०७१०८(+$) सूक्तावली, सं., श्लो. १३८, पद्य, श्वे., इतर, (राज्यं निःसचिवं गतप्रहरणं), ११३७९१(+$) (२) सूक्तावली संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (राज्य प्रधान बिना न शोभई), ११३७९१(+$) सूक्ति संग्रह-औपदेशिक, सं., श्लो. ६१, पद्य, मपू., (भुवनांभोजमार्तंड), १०६५०६(+) सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज), १०६७७६(+), १०६९०७(+), १०७०६३(+#$), १०७०९०(+$), १०९२२३+#), ११४५६२ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (बुज्झि० छकाय जीवना), १०६७७६(+), १०६९०७(+), १०७०६३(+#$), १०७०९०(+$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १६, प+ग., मूपू., (बुज्झेज्झ), १०६५३७(+#) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (छकाय, स्वरूप जाणी), १०६५३७(+#) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा मोक्षमार्ग अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ३८, प+ग., मूपू., (कएरेमग्गे अक्खाते), ११३८८४-२(+$), १११२५२ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), १०८९८५-१(+), ११०१४५(+), १११९२३-१(+#), ११२०१४-१(+), ११३८८४-१(+), ११३९४५-१(+), १०८४६३, ११०२९६, ११३९७६-१(#) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (२३ सुगडांगजी के), ११४७९५-६ सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. २२००, गद्य, मूपू., (नमो अरि० तेणं० मिथिल), प्रतहीन. (२) सूर्यप्रज्ञप्ति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ९०००, गद्य, मपू., (यथास्थितं जगत्सर्वमीक्षते), १०६९००(+#) For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ सूर्याष्टक, क. सिंह, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (रक्तवर्णं महातेजो), ११३४६१-२ सूर्याष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (सप्ताश्वसमारुढं अरूण), १०९९६०-२ सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, मपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), १०९९९८(#) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. मेरुविजय, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (ऋषभदेवमहं महिमालयं), १०९०६८(+) स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं तेणं), १०९१४०(+$), ११४०२९-२ (२) स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., स्था. १०, ग्रं. १४२५०, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं जिननाथं नत्वा), १०९१४०(+s), ११४३७४(+$) (३) स्थानांगसूत्र-टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्रकृत नामे वीजो अंग), ११४३७४(+$) (२) स्थानांगसूत्र-हिस्सा १० सुखवर्णन गाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मपू., (दसविहे सोक्खे पण्णत्ते तं), १०८३२१(+) (३) स्थानांगसूत्र-हिस्सा १० सुखवर्णन गाथा की टीका, सं., गद्य, मूपू., (प्राग्वनवासिनो देवा उक्ता), १०८३२१(+$) (२) स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक ४ उद्देश ४ मेघपद से परिनिंदिता पद, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूप., (चत्तारि मेहा प० तं०), १०८६८९-२(2) (३) स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक ४ उद्देश ४ मेघपद से परिनिंदिता पद की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रथमोमेघः श्रीऋष्भात्), १०८६८९-२(#) (३) स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक ४ उद्देश ४ मेघपद से परिनिंदिता पद का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (आ चुवीसीइ ४ महामेघ), १०८६८९-२(#) (२) स्थानांगसूत्र-चयनित सूत्र संग्रह, प्रा., गद्य, मूपू., (सत्तहिं ठाणेहिं), १०९१०५-२(5) स्थूलिभद्र चरित्र, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ६८४, पद्य, मपू., (वीरोवर्यः श्रिये), १०७०१०(+) स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., कुसु. ५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (पवित्र उदक लेइ अंग), ११२५३३(+) स्वयंभूरमण समुद्र विस्तार गाथा, प्रा., गा. ११, पद्य, मप., (सव्वे वि दीवसमुद्दा), १११४०३-४(+) स्वार्थ श्लोक, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (वृक्षं क्षीणफलं त्यजंति), १०८६३१-२ हरिवंशपुराण, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं., स. ३९, ग्रं. ६९६५, वि. १६वी, पद्य, दि., (सिद्धं संपूर्णभव्यार्थ), १०६९५०(+#$) हरिवंशपुराण, आ. जिनसेनाचार्य, सं., स. ६६, श. ७०५, पद्य, दि., (सिद्धं ध्रौव्यव्ययोत्पाद), प्रतहीन. (२) हरिवंशपुराण-भाषाटीका, मा.गु., गद्य, दि., (--), १०७१३६(६) हरीतकी साधनविधि श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., इतर, (ग्रीष्मे तुल्य गुडा च), ११२५८६-२(+) (२) हरीतकी साधनविधि श्लोक-अर्थ, पुहि., गद्य, वै., इतर, (ग्रीष्मे ऋतु जेठ आसाढ), ११२५८६-२(+) हस्तकांड, मु. पार्श्वचंद्र, सं., श्लो. १००, पद्य, पू., इतर, (वर्धमानं जिनं नत्वा), ११५०३४(#$) हिंसानिवारण गाथा, प्रा.,सं., गा. ६, पद्य, श्वे., (हंतूणपरमाणे अप्पाणं ये), १०८३३३-१(+) हितरंगमुनि परंपरा पट्टावली, सं., गद्य, मपू., (श्रीमगृहद्भट्टारक), ११४०६५(+) हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय , सं., प्रका. ४, गद्य, स्पू., (स्वस्ति श्रियो निदान), १०६६३३(+), ११३८४०(+#) होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मप., (ऋषभस्वामिनं वंदे ऋषभैक), १०६७४३ होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., श्लो. ३४, वि. १४८५, पद्य, मपू., (प्रणम्य सम्यक्), १०८८४५(+#), १०९८४०(+#) होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), १११९२०(+$), १०९४५२, ११३३४१(६) ह्रींकार कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (मायाबीजबृहत्कल्पात्), ११४८५०-३(+) (२) ह्रींकार कल्प विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अजुआल पक्ष ५।१०।१५), ११४८५०-१(+$) For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ मनोरथ सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू (श्रीवीर वांदिने पुछे गौतम), १९०५२६-३(०) ४ कषाय पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मृपू., (जैन धर्म नही कीतावो), ११३६४९-१९, ११४१९७-३ ४ गति बेलि, मा.गु.. गा. १३५. वि. १६वी, पद्य, मूपू. (आदि देव अरिहंतजी आदि), ११४१३८-१(३) " ४ निक्षेपा सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ३३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सीध ने आयरिया), १०६४६३-६(#) , ४ प्रकार- धर्मदेशना मा.गु., गद्य, मूपू., (अक्षेवणी कहवा परमत्त सगला ), ११४३३९-११ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (चिहुं दिसथी च्यारे), ११३९०१-३(# ) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ५, पद्य, भूपू (नगर कंपिलानो धणी रे) ११३७२७ (३) ४ मंगल पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहेलुं ए मंगल जिनतणु), ११५२२४-२(#$) ४ मंगल पद, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( धरम उछव समे जैनपद), ११०५२०-२ " ४ मंगल पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद. ५, पद्य, मूपू., (आज घरे नाथजी पधारे), ११४६११-६(#) ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, स्था., (अनंत चोवीसी जे नमु), ११४२०३(#$) ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५२, पद्य, वे (पो उठीनें समरीजे ही), १११४३१, ११४१७७-२ ४ मंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, स्था., (पहिलो मंगल अरिहंतनो), ११३७८३, ११३७५४($) ४ मंगल सज्झाब, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (श्रीपहिलो मंगलीक कहुँ), ११३७१३-२ ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १२, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मुजने चार शरणा होजो), ११०३९७ ४ शरणा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो शरणो अरिहंत), ११४८५५ (+$), १०६६१३ ($) ४ शरणा सज्झाय, मु. चोवमल ऋषि, मा.गु.. गा. ११, वि. १८५२, पद्य, स्था. (हीरदे धारीजे हो), ११३९७०-२(४) ४ शरणा सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहिलो मंगलिक कहुं), ११३८१२-२(#) ४ शाश्वतजिन नाम, मा.गु., गद्य, म्पू., (ऋषभ १ चंद्रानन२), ११०७६६-४(०) ५] अनुत्तरविमान नाम, मा.गु., गद्य, भूपू (विजय १ वैजयंत २ जयंत), ११४३३९-७ ५ इंद्रिय २४ विषय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कानना विषय ३ सचित्त१), ११४३३९-४ ५ इंद्रिय चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. डा. ६, गा. १५४, वि. १७५१, पद्य, दि., (प्रथम प्रणमी जिनदेव), ११३६१५ (०३) ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. करण, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (गुणनिधि जीव कहुं सीखसाची), ११३०५६-१(+#) ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. गंगदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वात कहुं सुणि कान्ह चतुर), ११३६८८-४ ५ इंद्रिय सज्झाय, रा. गा. ९. वि. १९५३, पद्य, वे (प्राणि पांच इंदव), ११३२०३ " " ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ११५२२७($) ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धुर समरुं श्री आदिदेव), ११३०५८-१(१), ११४०३२-२(१) ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु. गा. ११, पद्य, भूपू (आदि हे आदिजिणेसर ए) १११७७३-१(७) " ५ तीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आबु अष्टापद गिरनार), ११०७६६-२(#) ५ दान नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अभयदान १ अनुकंपादान २), १०७३२१-३ ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, दि., (इहविधि मंगल आरती), १०८२५३-४ ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू (हस्तिनापुर नगर भलो), ११४४२५ ५ बांधव सज्झाय-रत्नमाला, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (रत्नवती नयरी भली), १०६७८०-३१(+) ५ बोल-पाप, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहले बोल बनेव नीच जात), ११४१०५-१(+) ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३१, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवै रे), १०६७८०-३५ (+$), ११३१०१(+#), ११०२५२-२ ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुरतरुनी परि दोहिलो), १०९१४७-१, १११२२९ For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ५ महाव्रत सवैया इकतीसा मु. जिनहर्ष, पुर्हि, सवै ६, पद्य, मूपू (जीउ कुं जु मारे नरपात को), ११४१३९-३(*) " ५ मेरुमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अचलमेरु पुखरार धनइ उगमणि), ११३७५७-५ ५ शरीर ६ पर्याप्ति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच शरीरना लक्षण५ औदारिक), १०७०९६-६(+#) ५ सम्यक्त्व नाम, मा.गु., गद्य, मृपू., ( औपशम समकित १) १०९०२३- ४(५) ५ स्थान जीवगति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेहनो जिव पगे निकले ते) ११०५४२-१ ६ अड्डाइपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु. दा. ९, गा. ५४, वि. १८३४, पद्य, भूपू (श्रीस्याद्वाद शुद्धोदधि), ११५२०८, ११३३५५-१(३) ६ अट्ठाइपर्व स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (परम पजुसणमां सदा अमारो ). ११०२७७-१ ६ आवश्यक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू. (नमिय सुगुरु असिआउसाह समरी), १९४९५२ (+०६) ६ जीवपर्याप्ति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकेंद्री ४ पर्याप्ती), १९१९६२-२ (*) ६ दर्शन वर्णन सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सौग्य १ तसां २ खजै ३) १०९४६३-२(#) ६ द्रव्य नाम, मा.गु., गद्य, श्वे. (जीवद्रव १ अजीवद्रव २) १०७३२१-४ " ६ द्रव्य पद, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (षटद्रव्य ज्यामे कह्य), ११३१२३-३ (-) ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (धर्मद्रव्य शुद्ध लोक), १०७०९६-४+४) ६ पर्याप्ति नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आहारपर्याप्ति १ शरीर), ११४३३९-५ ६ लेश्या नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (कृष्ण लेश्या १ नील), १०७११८-३ (#) ७ नय सज्झाय - ज्ञान, मा.गु.. गा. ७, पद्य, मूपू (नेगमनय व्यावहारनय), ११३१८३-६ ७ नय सज्झाय-प्रतिक्रमण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( नेगमनय दिन प्रते दोष लागो), ११३१८३-४ ७ नय सज्झाय-मुहपत्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (नेगमनय नोधणी सुतने ही). ११३१८३-२ ७ नय सज्झाय-राजा, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., ७ नय सज्झाय-साधु, मा. गु, गा. ७, पद्य, म्पू. ७ नय सज्झाय-रजोहरण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नेगमनय नीउ नने ओघो मान), ११३१८३-३ (नेगमनय राजाना लखण सहित ते), ११३१८३-७ नेगमनय जथा प्रव्रतकरण करी). ११३१८३-५ ७ नय सज्झाय-सामायिक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नगमनय नोधणीतो समायकना), ११३१८३-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७ भय नाम, मा.गु., गद्य, मूप.. (इहलोक भय १ परलोक भय २) १०७३२१-१, ११३११२-१(१) ७ वार सज्झाय, मु. आणंदविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (रवि उगमति आदरु रे दान शील), ११३७९५-२ ७ वार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (--), ११५२२४-१(S) ७ वार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सीखामण सद्गुरु तणी), ११३०२९ ७ व्यसननिवारण लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (तजो ए सातौ दुखदाई कुविसन), ११२४०४-७(4) ७ व्यसन निवारण लावणी, पुहिं., पद्य, श्वे., (कहे संत सुणो इसी जगतमे), १०६६६८-२४(-$) ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( पर उपगारी साध सुगुरु), १११२८६-१ ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, भूपू (सात विसन मति सेवयो नही). १९१६६७ (४) ८ कर्म १५८ प्रकृति बोल, मा.गु., गद्य, श्वे. (८ कर्मनी मूल प्रकृति), ११०५०५ " ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पुहिं., मा.गु., गद्य, श्वे. (न्यानावरणी की ५) १०७०९६-७०वा , ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ११४०५९-१(+#), ११०४९०, १०८२०६-१(#), ११३६८४($), ११४३३९-१ ($) ८ कर्मबंध भेदविचार कोष्टक. मा.गु., को. भूपू (-), १११११४-३(+०६) "" ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी कर्म आंख), ११३८०७(+#$) ८ कर्म सज्झाय, व. अगरचंद, पुहिं. गा. ९, पद्य, वे (बताव रे घर तेरा मुझे), ११३६५९-१ ८ कर्म सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (आठ करम जिणवर कह्या), १०६५३४-१७(#) For Private and Personal Use Only ५२१ Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ८ कर्मस्थिति विचार, मा.ग., गद्य, मप., (ज्ञानावरणीनी स्थिति), १०८२०६-२(#) ८ दृष्टि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चिदानंद परमातमरूप), १०६७८०-१२(+) ८ प्रवचनमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ८, वि. १८२१, पद्य, श्वे., (पांचसुमत तीनगुप्त आठ), ११३४०८ ८ बोल-धर्मपरिवार, रा., गद्य, श्वे., (धरम को पिता श्रीवितराग), १०८१८८-२, १११६१४-१ ८ बोल-पापपरिवार विषयक, पुहि.,रा., गद्य, श्वे., (पाप को बाप लोभ छे), १०८१८८-१, १११६१४-२ ८ मद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (जातिमद), १०७३२१-२ ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (मद आठ महामुनि वारिये), ११०५१८-१ ८ मद सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रथम ऋषभ नमो जिनराज), ११३७२५ ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), १०७०७५(+#) (२) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मपू., (ऐंद्रश्रेणिनतं), १०७०७५(+#$) (२)८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मपू., (निरुपद्रव्य सुखनुं कारण), १०७०७५(+#) ९ ग्रैवेयक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (भद्दे १ सुभद्दे२ सुजाणे३), ११४३३९-६ ९नारद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ भीम २ माभीम ३ रुद), ११३७५७-३ ९निधि ध्यानाधिकार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नेसर्प १पंडक २ पिंगल ३), ११३८७८-१(+) ९प्रासुक पानी गाथा, मा.गु., गा. २, पद्य, मूप., (उस्सेइमं१ संसेइम२ चाउलोदग), ११३७०६-४(+#) ९ बलदेव आयुष्यदेहमानादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अचलबलदेव आयूवर्ष लाख८५), ११३७५७-२ ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), १०९४९२(+), ११०४६४(+), ११२३३९(+$), १०६४९४-४, १०६६०३-१, ११५२४२-६, ११४२९१(६) ९वाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., ढा. ९, गा. ७२, वि. १८वी, पद्य, मपू., (वीर जिणेसर इम भणे), १११२५०-१ ९ वाड सज्झाय, मु. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११५२३५($) ९ वाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ११०९५८-१(#$), १०६६०३-२(5) ९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (रमणी पशु पंडग तणी रे), ११५०७५-१(+), ११२७७२($) ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., ढा. ९, गा. ५६, पद्य, मूपू., (आदि आदि जिणेसर नमु), १०८९०७-१(+-) ९वाड सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (नववाडि मुनिसर मनधरो), १०९४११-२(+) ९ वाड सज्झाय, मु. सबलदास, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (नवपाड सहित व्रतपालै० सगला), ११३०९६-२(#) ९ वाड सवैया-ब्रह्मचर्यविषयक, मु. रुघपति, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (एक ठामि स्त्रीपुरुष), १०८३४२-७(+) ९ वासुदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (त्रिपृष्ठि१ द्विपृ०), ११४७६०-३(१) । ९ वासुदेव शरीरमानादि विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (त्रिपुष्टवासुदेव धनु), ११३७५७-१(६) १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (नवकारसी सागार पोरसी), ११०७४९-२ १० पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पच्चक्खाणना नाम नवकारशी), ११३६९३(+#) १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूप., (दसविह प्रह उठी), ११४३०३-२ १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमु), ११०५३८ १० प्रकीर्णक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरण पइनू १ संथारा),११३६४६-८ १० प्रश्न प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ३१, वि. १७२५, पद्य, पू., (शंखेश्वर प्रणमुं), ११४६९७-१(+#) १० प्राण नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (स्पर्शन १ रसन २), १११९६२-३(+) १० प्राणी विवरण, मा.गु., गद्य, मपू., (एकेंद्रीने ४ प्राण), ११४३३९-२ १० बोल सज्झाय, मु. मगन, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (चेतन चेतोरे दशबोल), ११३४२२-१० १० बोल सज्झाय-मनुष्यभव, मु. हीरो, पुहि., गा. १२, वि. १९३१, पद्य, श्वे., (दोहलो इण संसार मे रे), १११६०७-१(+) १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्याद्वादमत श्रीजिनवरनो), ११०४८७, ११४४४२(#) For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ १० भवनपतीदेव नाम भवनादि बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (असुरकुमार नागकुमार), १०७११८-२(#) १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ११, गा. १३६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृत लता वन सींचवा नव), ११२९११(६) १० श्रावक विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (भगवान का दस श्रावका को), ११३५२५(2) १० श्रावक सज्झाय, मु. गढमल ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आनंदी आणंद हुवै), १०९४८५-२(+#) १० श्रावक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८२९, पद्य, श्वे., (आणंदने सेवानंदा रे), ११२२२८-१(६) १० श्रावक सज्झाय, मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (दश श्रावक भगवंतना), ११३१११(#) ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्वा. ११, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (आचारांग पहेलुं का), ११५११८(+#$) ११ अंग सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., ढा. १२, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (पहिलो अंग सुहामणों), १०६६६१-१(+), ११०३२३-१, १०६५३४-१(#) ११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इंद्रभूति अग्निभूति वायु), १०७०३१-४(+) ११ गणधर पद, मु. जिनहरख, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रात समै उठि प्रणमी), १११८७४-२(+) ११ गणधर भास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (पहिलो गणधर वीरनो वर), ११३६६२-१(#) ११ गणधर सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीर पटोधर वंदीयें), १०९९३०-२(+) ११ गणधर सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (श्रीगौतमस्वामीजी के चौदे), ११०२१७-२ ।। ११ गणधर स्तवन, मु. सबलदास, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (इग्यारे गुणधर दीपता), १११२९५-१ ११ गणधर स्थापना गहुंली, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महसेन वन मुझार रे श्रीवीर), ११३६५१-१ ११ गुणस्थानक क्रमारोह चौपाई-१४ गुणस्थानकगत, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., दोहा. २१, पद्य, दि., (करम कलंक खपाई कै भए), ११०४४३(#) ११ रुद्र नामआयुष्यादि विवरण, मा.गु., को., म्पू., (--), ११५२४४-२(+) १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. १२, गा. ७५, वि. १६७८, पद्य, मूप., (सरसति भगवति भारती), ११०५०८(#) १२ चक्रवर्ति नामआयुष्यादि विवरण, मा.गु., को., भूपू., (--), ११५२४४-१(+) १२ चक्रवर्ती द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेला भरतचक्रवर्ती), ११३४५६-४(+#) १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम भर्थजी१ सगर२), ११४७६०-२(#) १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तर देव आयुष्य बोल यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (१ सोधर्मदेवलोके आउख), ११३३६५-२(+-), ११४०४८-२(5) १२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो सौधर्मइ देवलोक), ११०५२७-३(+) १२ पर्षदा समवसरण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्व दिसिने बारणे), ११०२०७, ११५१८९-३(#) १२ भावना पद, रा., भा. १२, पद्य, मूपू., (हे रे जीव गढ मड), ११३६४५-२(#$) १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पहिली अनित भावना ते),११४३३९-१० १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), ११३४९३(६) १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १३, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), ११३९६०, ११०३९२() १२ व्रत सज्झाय, मु. सोमविजय, मा.गु., गा. ३३, वि. १६६०, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगौतम गणधार), ११३६३५(+) १२ व्रत सज्झाय, मु. हीरविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर चरणे नमीजे सह),१११८८२ १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आलस सो धरम उद्यम रहित १), १०८५६६-४(#) १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुं गौतम), १११६३५-१ (#$) १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (सोभागी भाई काठीया),११३७४९-१ १३ बोल-चातर्मास योग्य स्थानविषये, पहिं., गद्य, श्वे., (किचड गारा थोडा होवे), ११४०७७-१(६) For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १४ गुण वर्णन-श्रोता, रा., पद. १, पद्य, श्वे., (चोदश है गुन श्रोता तणा नर), १०८८६८-५ १४ गुणस्थानक विचार, पुहि., गद्य, मपू., (नामद्वार ते १४ गुणठाणा), ११३०२८(६) १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासां), ११४३३९-८ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा), ११३१५६ १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (पासजिनेसर पय नमी रे), ११३६२६-२(+), १०९०८५(#) १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मुक्तिविजय शिष्य, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (निजगुरु केरा प्रणमी), १०६७८०-३९(+$) १४ गुणस्थानक सज्झाय, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (चवदे थानकरा जीवए), ११३०१६-१ १४ गणस्थानक स्थितिकाल, मा.गु., गद्य, मप., (मिथ्या० स्थिति अनंतो), १०७०९६-५(+#) १४ गुणस्थानके १२० प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्वगु० आहारक), ११४१९५-१(#) १४ गुणस्थानके ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), १०८३०५-१ १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी ५ दर्शना), १०८३०५-२,११३३६१ १४ जीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुक्ष्म एकंद्री बादर), १०८३४२-८(+) १४ नियम नाम-श्रावक, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचितद्रव्य १ अचित), १०८१६४-२, १०८१६५-१ १४ पूर्व तप खमासमण दोहा, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पूजो प्रेम विशुद्धथी धुरि), १०९४२४(+) १४ पूर्व नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्पाद पूर्व १ अग्र), ११३९७१ १४ भेद-देहगत अन्यजीवोत्पत्ति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जू लीख मांकडा नाकहरस), ११४३३९-१३ १४ रत्न विचार-चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, मूपू., (चक्र छत्र दंड ए तीन), ११५१८९-४(#) १४ राजलोक परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, मप., (सातमी प्रथवी तेहनी), १११२०४(+#$) १४ राजलोक विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (पहेली नरके पहेलो राज), १११५६१-१,१११२४६(5) १४ विद्या नाम, मा.गु., प+ग., मपू., (विद्याकला रसायण), ११११७०-४ १४ समूर्च्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर प्रणमी पाय), १०९४७५, ११२५३४-१ १४ स्वप्न भास, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, मप., (पहीलो गज मांहि दीठो लोचन), ११४२३४(#) १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, म्पू., (श्रीदेव तीर्थंकर केरडि), ११०५२६-१(+) १४ स्वप्न स्तवन-त्रिशलामाता, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राए सिद्धारथ घर पट), ११३२१८-३(+) १५ तिथि सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (आतम अनुभव चित्त धरो), १०६७८०-१४(+) १५ तिथि स्तवन, मु. कनीराम, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (हाथ जोडीनै कामण बोले कर), ११३४८७-३ १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्तु. १६, गा. ६४, पद्य, मूपू., (एक मिथ्यात असंयम अविरति), ११४८२३(+$), ११३३२५(#$) १६ गुण वर्णन-वक्ता, रा., पद. २, पद्य, श्वे., (आगम माय कया गुण सोडस बोल), १०८८६८-४ १६ सती नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ब्राह्मी१ चंदन२ बालि), ११४२६२-६(#) १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), ११०५९३(+), १११२३०-२(+), १११८४४-१(+$), ११०३७५ १६ सती सज्झाय, मु. त्रिकम, मा.गु., गा. १६, वि. १७७०, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभ तणी धुया), १०६६९८-३(+$), १०६६९८-४(+$) १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (सील सुरंगी भांलि ओढी), १११२०३-१(+) १६ सती सवैया, ग. रूपवल्लभ, पुहिं., गा. २, पद्य, मप., (अडगबनगरी की धुस बजै),११०६२५-४(+) १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, ग. रूपसागर, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (पाडलीपुर नामे नगर), ११२००६(#) १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), १०७४६०-२(#$) १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. १७, वि. १६१८, पद्य, पू., (भाव भले भगवंतनी पूजा), १०६६६२(+) १७ भेदी पूजा वर्णन, मा.गु., गा. १, पद्य, मप., (न्हवण विलेवण वच्छ), ११३६४६-१ For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ १८ नातरा चौढालीयो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (लख चोरासी भटकतां), ११०१७६(#) १८ नातरा लावणी, मा.गु., पद्य, मपू., (कर्मगत वर्णाना जाइ भाव फल), ११४६०९($) १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू., (पहला ते प्रणमुं पास), ११३९१३(#) १८ नातरा सज्झाय, श्राव. विनोदीलाल, मा.गु., ढा. ७, गा. १०२, वि. १७०५, पद्य, श्वे., (प्रथमहि नाभ नरिंद अनुजा), ११२०७३ १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (वेदन सही मानव भव लही), १०९४४५(#) १८ पापस्थानक आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोई भव्यजीव कोई), ११३०६२-२ १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मप., (पापस्थानक पहिलुं कहि), १०६७८०-३४(+), ११४८४६-१(+#$), १११८९१-१ (२) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय-हिस्सा मायामृषावाद पापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सत्तरमुं पापर्नु ठाम), ११५२४२-८ १८ पापस्थानक परिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., ढा. १८, ग्रं. ३५०, पद्य, श्वे., (सुंदर रूप विचार चतुर), १०६५३४-२३६#), १०८९०२($) १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३८, वि. १८९१, पद्य, श्वे., (महावीर वर्धमानजी), ११३५८५ १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, मप., (१ बोले पोसानी रातने), ११०४४६-२(-2) १८ भार वनस्पति गाथा, क. शुभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (प्रथम कोडि अडतीस), ११२६२४-१(#) १८ लिपि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (हंसलिपि १ भूयलिपि २), ११०५६९-१(+) २० पद स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वित हरख धरी अनुभव), ११३४७८ २० बोल असमाधि, मा.गु., कडी. २०, गद्य, मपू., (उतावलो चालें तो), १०८२४६-१ २० विहरमानजिन गीत, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विहरमाण जिण वीसमउए), ११३९३५ २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. जीव, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीमंधर युगमंधर प्रभु), ११०२२८-१(+) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मपू., (पहेला जिनवर विहरमान), ११४९५५-३(#) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८६८, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरस्वामि), १११२९६ २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूप., (अनंत चउवीसी जिन नमु), ११४९५५-१(#$) २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मप., (सीमंधर १ युगमंधर), १०७०३१-३(+) २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (सीमंधरस्वामी श्रीजुगमंदर), १०९४२९-३, ११४२६२-२(#) २० विहरमानजिन परिवारादि कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ११०३८८-१ २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहि., गद्य, मूपू., (श्रीमंधरस्वामि श्रेयांस), ११०७६६-३(#) २० विहरमानजिन विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपने विषे पूरब महा), १०८७८७-२(+) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. जीवणजी, मा.गु., गा. १२, वि. १८२२, पद्य, मप., (श्रीमीदर पहला नम), १०८७५९-१(-) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. लीबो ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (पहिला स्वामी सीमंधर), १०८७०८-१, ११५२४२-१९ २० विहरमानजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (वीस विहरमान जिनवरराय), ११३४८५-१(+) २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (पेला बांदु श्रीमींदर), ११०९६९(+$), १११९९६-१ २० विहरमानजिन स्तवन-मातापितालंछनादिनामगर्भित, मा.गु., पद्य, मूपू., (चरणकमल सदगुरु चित धरी), ११४७१०-३(+#$) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (मुज हीयडौ हेजालूवौ), ११३८७०-१(६) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मप., (पुखलवई विजये जयो रे नयर), ११२८०९-१(६), ११४५४४(६), ११४८२२($) । २० स्थानक गुणनाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतना गुण१२ सिद्धना), ११४१६२, ११०७६६-५(#) २० स्थानकतप काउसग्ग सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (अरिहंत प्रथम पदे), १०६७८०-९(+) २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूप., (पहेले पद अरिहंत नमुं), १०९४४१-१ २० स्थानकतप चैत्यवंदन, मु. रतनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (पेहले पदे अरीहंत नमो बीजे), ११५१४४-३ For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २० स्थानकतप चैत्यवंदन-कायोत्सर्गसंख्यागर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (चोवीस पन्नर पिस्तालीशनो), ११३५५५(+), १०९४४१-२ २० स्थानक तपविधि, मा.गु., गद्य, मप., (अरिहंतभक्ति ३ कालजा), १०९१९०-१(+#) २० स्थानकतप सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनचरणे करी), १०९१९०-२(+#) २० स्थानकतप सज्झाय, मु. शिवसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (सरसति सामणि समरु माया), १०८५९१(+#) २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (सरसत हां रे मारे), १०९४४१-३, ११०२५०, ११०५२२ २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, पू., (सुअदेवी समरी कहूं), ११४५०८($) २० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३१, गा. ३४०३, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि संपतिकरण), ११५०२६() २१ बोल-सबल दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (हस्तकर्म करै तो सबल दोष), १०८२४६-२, ११३७५७-४ २१ श्रावकगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रुतदेवी), १०६७८०-१७(+) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनशासन रे शुद्धि), ११०६९१-३(+) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मु. समरसिंघ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (गोयम गणहर पय नमी कहिस्यु), १०६५३४-१८(#) २२ परिषह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (साधुजी रो मारगे कठण कयो), १११९९७(+) २२ परिषह सज्झाय, मु. सबलदास, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (साधुजी रो मारग कठन), ११३१२४($) २३ पदवी गतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे कहि गतीनो आव्यो), ११०५२४(+) २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), १११९६२-१(+), १०६४६३-१(2) २४ जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव नाम, आय, शरीर, समयादि विचार-वर्तमान, मा.गु., को., मप., (--), १०८३४२-१(+) २४ जिन १७० द्वार,भव, पूर्वभव, आयु, देहमान,चक्रि,वासुदेव समयादि कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), १०७०९२(+) २४ जिन २० विहरमानजिन स्तवन, रा., पद्य, श्वे., (प्रणमो ऋषभ अजत संभव), ११०७५३-३(+$) २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३५, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (सारद सारदना सुपरे), ११०५६६, ११०२६६(६) २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ४९, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रणमी जिन चोवीशने), १०९९३०-१(+) २४ जिन कवित्त, मु. चेतन, पुहिं., गा. १६, पद्य, मपू., (आदजिन संभव सुमति सुपारस), १०९५०३-३(+) २४ जिन गीत, आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु., गी. २४, पद्य, मपू., (समरि समरि मन प्रथम), ११३७२१-७(+$) २४ जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (आदिनाथप्रभु प्रथमदेव), ११३९९६-३ २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पद्मनाभ पहेला जिणंद), ११०५३१-२, ११०५७९, ११२००१ २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकरतणा), ११३०५८-३(+) २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभुने वासपूज्य दोय), ११०७६६-११(2) २४ जिन च्यवनादि २१ स्थान बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (चवण नगरी पिता माता), ११३८९६(+), १०९४६७ २४ जिन छंद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मपू., (आर्या ब्रह्मसुता), ११०५६५ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुजे ऋषभ समोसर्या भला), ११४१८३-२(+#), __ १०७४१३-२, १०७९१८, ११२९०३, १०९४१३-३(#), ११०९०९-१(#$) २४ जिन नाम, मा.गु., अंक. २४, गद्य, मूपू., (श्रीरिषभनाथजी), ११४२६२-५(#) २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, स्पू., (श्रीकेवलज्ञानी निर्वाणी), ११०७६६-१(२), ११४२६२-३(2) २४ जिननाम स्तवन-अतीत, मु. राजविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (अनंत चोवीसी ध्याइई), ११०५३१-१ For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ २४ जिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, मपू., (ऋषभ जिणंद सुखकंद आणंद), ११३४७१(#$) २४ जिन पद, मु. टोडर ऋषि, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (श्रीअरिहंत जिनेंद्र जगत), ११११९६-२ २४ जिन परिवार सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (चोवीसे जिनना सुखकार), ११४१२३-४(+#) २४ जिन परिवार सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (राजा राणी रो कुडुबो घणो), ११२३९६-१ २४ जिनपरिवार स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (भवियण भावे वंदीइ रे लाल), ११४७९७(#$) २४ जिन परिवार स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (चोवीस तीर्थंकरनो), १११९४७-१। २४ जिन पूजा, मु. शिवविजय कवि, पुहिं., पूजा. २४, वि. १९०१, पद्य, मूपू., (--), १११८३७(+5) २४ जिन पूजा, मा.गु., पद्य, मूपू., (जिन वाणी आणी हिय वलि), ११२३८०(+#$) २४ जिन प्रथमदेशना पर्षदासंख्या मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे प्रथमदेशना भगवंत), १०९१४६-७ २४ जिन यक्षयक्षिणीनाम, मा.गु., अंक. २४, को., मूपू., (--), ११३९९५ २४ जिन समवसरणमान विवरण, मा.गु., गद्य, मपू., (ऋषभ समोसर्ण गाउ ४६), ११३९८३-३(+), ११५१८९-१(#) २४ जिन समवसरण विचार, रा., गद्य, मूपू., (ऋषभदेवनो समवसरण बार), १०६७५१-१(+#) २४ जिन सवैया, ग. रूपवल्लभ, पुहि., गा. २७, वि. १८०२, पद्य, मूपू., (उरधार महाव्रत पंच उचार), ११०६२५-५(+) २४ जिन स्तवन, मु. चेतन, पुहिं., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीआदेश्वर सुमरियै प्रथम), १०९५०३-१(+) २४ जिन स्तवन, मु. भगवानदास ऋषि, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (ऋषभ अजत संभव अरजी अवधार), ११११५७-२(+) २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (समरू श्रीआदि जिणंद), ११४५४०-१(#) २४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि नमुं अरिहं), ११२७६७-१(+) २४ जिन स्तवन, मु. हरी, पुहि., पद्य, मूपू., (--), १११६५८($) २४ जिन स्तवन, पुहि., गा. ३२, पद्य, म्पू., (श्रीआदिनाथ करिजे), ११४५६१(#) २४ जिन स्तवन, पुहि., पद्य, मप., (श्रीचौविसजिनंदजी को बनणा), १११२१८-३(#$) २४ जिन स्तवन-अनागत, मु. देवकलोल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (परषद बइठी बार जिवार), १११९४७-२(६) २४ जिन स्तवन-पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (श्रीनेमीश्वर संभव), ११०६२४-२(#) २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमु), ११०९०८(+$), ११४०२८(+#$), ११४१०७(+), ११४९६८-२(+$), १०९४१६, ११४२१६(#), ११२६१२(६), ११२९९९($), ११३७९०६) २४ जिन स्तुति, ग. अमृतधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तीरथपति त्रिभुवन सुख), ११३०६४-२(+) २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (ऋषभजिन सुहाया), ११२७९९(#$) २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मसुता गिर्वाणी सुमति), ११०५४३ २४ जिन स्तुति, मु. दयाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (मंगल कर जिणराय मणै),१११२३६-१ २४ जिन स्तुति, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., ढा. २४, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (वीनतडी अवधारउ रिसहेसर), ११३७६२ २४ जिन स्तुति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (फलवर्धिपुर मंडण फलदाई), १०९७२६-४ २४ ठाणा विचार, मा.गु., प+ग., मूपू., (गइ इंद्रि काय जोग), ११२५०१(+$) २४ तीर्थंकर छंद, पंन्या. मणिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पेला प्रणमु श्रीऋषभ), १११८९८-१ २४ तीर्थंकर नाम राशि विचार, मा.गु., को., म्पू., (--), ११०३२१ २४ तीर्थंकर स्तवन, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, पद्य, मपू., (--), ११२५७४($) २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर अवगाहणा संघयण), १०७०८० २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), १०६८०७(+$), १०७१०१, ११४७९५-१, ११३०६१(#$) २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक लेश्या ठित्ति), १०६७७५(+$), ११०४९३(+), ११४०४८-१($) २४ दंडक भेदगमा विस्तार, रा., गद्य, मूपू., (--), १०६६५५(+#$) २४ नाम, जिन राशि, नक्षत्र, योनि, गण, वर्ग, हंसक विवरण कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), १०९८३१-२(+#), १०९३३४(#) For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २५ क्रिया भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (क्रिया दोय प्रकारनी), १०९१०५-१ (२) २५ क्रिया भेद बोल संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (काय शरीर अजयआइ प्रवर्ता), १०९१०५-१ २५ बोल थोकडा-जीवगती शरीरादि, मा.गु., गद्य, श्वे., (नरकगति १ तिर्यंचगति २), १०९४८८(+) २५ भावना विवरण-५ महाव्रत, मा.गु., गद्य, मप., (मनोगुप्ति १ एषणासमिति २),११३५७४ २५ भावना सज्झाय-५ महाव्रत, पं. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मुनि पंचमहाव्रत पाले रे), ११३७१५-३(+) २६ क्रियाविधि बोल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मपू., (स्थापनाचार्य पडिलेही), १०८८४६-२(+#) २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार-दिशा आदि, मा.गु., गद्य, मूपू., (दिसि गति इंदिय काए), १०६४६३-२(#) २८ नक्षत्र यंत्र, मा.गु., को., श्वे., इतर, (--), १०८८७४-५ २८ नक्षत्र शुकनावली, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (अ१ भ२ कृ३ रो४ मृ५ आ६), ११४७४६ २८ बोल श्रावक, मा.गु., गद्य, मपू., (ॐ कार सहित जागिq समरण), ११३९६७-२ २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (आमोसही विप्पोसही), ११३८७८-२(+), ११४२३८-१ २८ शिखामण बोल, रा., गद्य, मपू., (जीणरी सरदणा परुपणा), ११३२८४ ३२ योग विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आलोयणा १ निरवलेवे २), ११४८४२-३(+), ११३४६४ ३२ लक्षण कवित्त, मा.गु., गा. १, पद्य, इतर, (बत्तीस लक्षण को हंस० मीन), ११०९९२-३(+) ३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (संयम धर सुगुरु प्राय), १०६७८०-८(+), १०६६४३-२ ३४ अतिशय नाम, मा.गु., अंक. ३४, गद्य, मपू., (अद्भुतरूप अद्भुत अंग), ११४०००(+$) ३४ अतिशय विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम अतिशय शरीरनी), ११४८५७($) ३४ असज्झाय काल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (उकावाए१ गजीए२ बीजीए३), ११०४९८, ११३३१७-३ ३४ क्रिया श्रावक सज्झाय, मु. मोहनरुचि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुण भवीयण है चररमजदिणै), १०६७८०-७(+) ३५ बोल असज्झाय, मा.गु., बो. ३५, गद्य, मूपू., (धुंआरी षडे तासीम असज्झाय), १०९४७७ ३५ बोल-गत्यादि थोकडो, मा.गु., गद्य, मपू., (पहेले बोले गति चार), १०६८१०(+) ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यवंश १ सोमवंश २), ११३५७२-१ ३६ राजपात्र विचार, मा.गु., गद्य, जै., इतर, (धर्मपात्र अर्थपात्र), ११३५७२-२ ३६ राजविनोद वर्णन, मा.गु., गद्य, जै., इतर, (दर्शनविनोद श्रवण), ११३५७२-३ ४५ आगमनाम श्लोक संख्या आदि विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआचारांग २५००), ११३९६१-३(#) ४५ लाखयोजन प्रमाण-४ वाना, मा.गु., गद्य, मपू., (सीमंत नामे नरकावासे), ११२५०७-२(+) ५६ अंतीप विचार, पुहिं., गद्य, मप., (एगरु१ अद्रस२ वसेलक३), ११४३७०-१(#) ६२ बोल-अल्पबहत्व विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (सरवथोडा छपन अंतरदीपना छे), ११४७९५-४ ६२ मार्गणा १०२ बोल यंत्र, मा.ग., गद्य, मप., (जीवगइइंदिकाए जोए वेए), ११३२४१($) ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मपू., (देवगति मनुष्यगति), ११०२७९(+), ११०३५७(+), ११०४६७(+), ११४५९४(+), ११३९६७-१, ११००४३(#), ११०७६६-७(#$) ६२ मार्गणा सवैया, मु. रुघपति, मा.गु., सवै. १, पद्य, भूपू., (देवगति मनुष्यगति), १११२४८-३(+) ६३ शलाकापुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ- ८४ लाख), ११३५७८-१(2) ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, श्वे., (सदगुरु चरणकमल मनधारं), ११५१५८(5) ६४ कला नाम-स्त्रीसंबंधी, मा.गु., गद्य, मपू., (नृत्य १ उचित्य), ११०५६९-३(+) ६५ गुण-आत्मा के, मा.गु., गद्य, मपू., (असंख्यात प्रदेशी अनंत), १०९४१४(+#) ६७ समकित बोल नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सद्दहणा ४ लिंग ३ एवं),११४१९५-३(#) ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन सुद्ध मन सुद्ध ते), ११४१९५-४(#) ७२ कला नाम-पुरुषसंबंधी, मा.गु., गद्य, मूपू., (लेखककला भणवोकला कवित), ११०५६९-२(+) ७२ शिक्षा नाम-श्रावकसंबंधी, मा.गु., गद्य, मपू., (इष्टदेवता उपरी मति दृढ), ११०४४९-१(+) For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ८४ आशातनापरिहार स्तवन-जिनभवन, मा.गु. गा. २८, पद्य, मूपु., (सकल सुरासुर प्रणमइ), १०७०२८-१(००), ११०३०९१०) ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, मृपू.. (ओसवालगच्छ १ खरतरगच्छ), ११०३४२-१(+) ८४ लाख पूर्वमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपु (८४ लाख वरस तेहनइ पूर्वांग), १०७०९६-११(+) ८५ लक्षण- मूर्ख, रा. गद्य थे. (बालकरो संग करे ते मूर्ख), १०७२६७ ९४ बोल का ६२ भांगा बोल, मा.गु., गद्य, म्पू. (१ गरब विना जीवमांही), ११४६१०+) ९६ जिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (अनंत चोविसी करुं प्रणाम), १०८७०८-२ ९६ जिन स्तवन, उपा. मूला ऋषि, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू. (केवलनाणी श्रीनिरवाणी), ११४४४९-२(६) , ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., श्वे., (सरवथी थोडा गर्भज), १११९२१(+) ९९ प्रकार पूजा विधि सामग्री, मा.गु., गद्य, मूपू., (२० नाले २ सर्वधापनारा), १११९०५-१०) ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ११०२७०(+#) १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपु. ( श्रीप्रसन्नचंद्र), ११५१५० (45) १७० जिन स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सोलजिणेसर सांमला रात), ११०२२८-३(+) ५६० अजीव भेद, मा.गु., गद्य, मूपु. ( पांच संस्थान तेनां), १०७०९६-२(+४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, स्था., (जीव गइ इंदीये काए), १०८२५२ ($), ११०४३० ($) ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं., मा.गु., गद्य, मूपू., (उंचा लोक में ५६३ भेद), ११०३९६ (+), १११९२६ (+), १०९४२९-१, ११०३०१ ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (नारकी सात नरकना पर्याप्त), १०७०९६-३(०) ५६३ भेद जीवराशि क्षमापना, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवना पांचसइंत्रिसठ ), १०७०९६-९(+#) ७५० ओसवालगोत्र कवित्त, मु. जैमल ऋषि, रा., पद. १, पद्य, स्था., (सरस्वती देओ सुमति गुण मुझ), १०९२०० (#) अंगस्फुरण चौपाई, पं. हेमाणंद, मा.गु., गा. २३, वि. १६३९, पद्य, मूपू. इतर ( श्रीहर्ष प्रभु गुरू), १०९३२४-२ अंगस्फुरण विचार, मा.गु., गद्य, जै., इतर ?, (मांथो फूरकें तो), १०७५०५, १०७७५७-१, १०७९३१-२($) अंगस्फुरण विचार, मा.गु., गा. २०, पद्य, म्पू. इतर ( सरसति गोयम गुरु बंदि), ११००८८-२(१) अंबामाता स्तुति, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (माताजी हो आठमने रविवार के), ११०१५६-३ " " अंबिकादेवी छंद, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (मुख वदंती ॐकारधुनि), १०८१६७-२ अंबिकादेवी छंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, वै., (सदा पूर्ण ब्रह्मांड), ११४१७३-३($) अमुत्तामुनि सज्झाय, मु. कहानजी ऋषि, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू, ( इक दिन रित वरसातनी) ११००९०-१(७) अमुत्तामुनि सज्झाव, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु. गा. १८, पद्य, म्पू., (वीरजिणंद वांदीने), १०६७८०-६(+), ११४१०९-२(१), ११०४००, ११३५९८-१, १०६५३४-१०(#) अइमुत्तामुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू (बालिक माहि रमतु हिमतु आवत), ११३७२३-१ (४) अकबर फरमान - जयचंदसूरि, उ., गद्य, भूपू (--), प्रतहीन. " (२) अकबर फरमान-जयचंदसूरि - अनुवाद, भीमा लकम, पुहिं., गद्य, मूपू., (सुबे सुलतान के बडे बडे ), ११४८५३ -२(+#) अकबर फरमान- सुबेदारवर्ग, उ., गद्य, भूपू (-), प्रतहीन. ५२९ (२) अकबर फरमान-सुबेदारवर्ग-अनुवाद, देवीदास मुंशी, पुहिं., गद्य, मूपू., (सुबे मालवा अकबराबाद लाहोर), ११४८५३-१(+#) अक्षरबत्रीसी, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ३४, वि. १८००, पद्य, मूपू., (ॐकार आराधियै जामै ), ११३८६० ($) " ', " अक्षरबावनी, मु. उदैराज, मा.गु. गा. ५९. वि. १६७६, पद्य, श्वे. (अकल अवतार अपरंपर). ११३८८५-१(०), ११४२७८(5) अक्षरबावनी, वा. किसनदास, पहिं. गा. ६१, वि. १७६७, पद्य, ओ., (ॐकार अमर अमार आज ), १११६२४-१(+४६) अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहिं., गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, मूपू., ( ॐकार सदा सुख देत), ११३११३ (+#$), १०६७४४-२($) अक्षरबावनी, मु. जसराजजी मु. जिनहर्ष, पुहिं. गा. ५६, वि. १७३८, पद्य, म्पू., (ॐकार अपार जगत आधार), १०६७४४- १(३) अक्षरबावनी, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ५८, वि. १८७०, पद्य, स्था., (सरस वचन सरस्वति तणा), ११४५८६ (+$) " अक्षरवावनी कुंडलिया, मु. कविराज, मा.गु., गा. ५७, पद्य, श्वे. (--), ११५२१२(६) अजितजिन गीत, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तब प्रभु अजित कहायौ), ११३१८०-३ For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , , अजितजिन स्तवन, मु. उदैराज, मा.गु., गा. १०, वि. १७९६, पद्य, मूपू., (श्रीअजितजिणेसर भेटीयै), ११०७४०-१(#) अजितजिन स्तवन, पन्या, ऋषभसागर, मा.गु.. गा. ५, पद्य, मूपू (अजित जिनेसर इकमना), ११४२५८-४( अजितजिन स्तवन, मु. क्षेमकरण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय अजियजिणंद), ११३१६५-२(#) अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (तार किरतार संसार), १०८२९२-४/०१ अजितजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजित अरिहंत भगवंत), ११३०२०-८ अजितजिन स्तवन, ग. तेजसिंहजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चोथो आरो जीनवर वारो अजीत), ११३८१५-३(+) अजितजिन स्तवन, पन्या, बुद्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (वाडी माहे वड घणा पीपलगुहि), ११३११४-५ (# अजितजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीअजित जिनेसर देवा), ११२८७४ "" अजितजिन स्तवन, मु, मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८बी, पद्य, मूपू, (अजित जिणंदस्यु प्रीत), १११०९९-१(+४), (ओलग अजित जिणंदनी), ११४६९६ ९, ११२१६०-२(३) (ओलगडी अजित जिणंदनी), ११०९७८-२ " "" १०६४९४-१० अजितजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विजयनंदन जिनजी मुझ) ११२९९४-१ अजितजिन स्तवन-सारंगागढ, मु. आगम, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (साहिबा अजितजिणेसर), ११३०९७(+), ११०३८२-२ अजितवीर्यजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु. गा. ९, पद्य, म्पू., (अजित वीर्य जिन विचरता रे), ११४९५१-२ अजितवीर्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दीव पुष्करवर पश्चिम), ११४३९५-२(#) अजितशांति स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (चिरंजइ जगन्नाथहेइं), ११२८९३-२(#) अजितशांति स्तवन- मेरुनंदनीय, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (मंगल कमलाकंद ए सुख), ११३९१०(०) अणगार वंदना, पुहिं., पद्य, वे (पाप पंथ परिहरे मोक्ष पथ). ११३०९४/०३ ', अणाहारीवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, भूपू (हरडे १ बहेडा २ आंवला) १०८६००-२(००) अतीत अनागत वर्तमान चौवीशी चैत्यवंदन, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू. (जंबूद्वीपना भरतमा तिन), १९०५१४ अतीत चीवीसी जिननाम- पुष्करार्द्ध पश्चिम ऐरावत क्षेत्र, मा.गु.. , को.. , भूपू., (--), ११३०४३-३(०) अतीतजिन चौवीसी पंचकल्याणक तिथि-पुष्करार्द्ध पश्चिम ऐरावत क्षेत्र, मा.गु., को. मूपू. (-), ११३०४३-१(०) अदत्तादान पापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. गा. ६, पद्य, म्पू, (चोरी व्यसन निवारीये) ११२५६५-२(*) अधिकमासफल विचार, रा., गद्य, श्वे. इतर (चैत्र २ समो भलो मेह घणो ), १०८८७४-२ "" अधिक मास वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे. इतर (सं १८६६ मा अशाद २) १११९०८-२ " अधिकमासवृद्धि विचार, रा. गद्य, खे, इतर (चंद्रमा का मंडला १५) ११०३४२-३(+) " अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू (प्रणमियै विश्वहित) १०९४५६-१ (+), १०७०६७ " (२) अध्यात्म गीता वालावबोध, मु. कुंअरविजय, मा.गु. ग्रं. १२५०, वि. १८८२, गद्य, म्पू, (संवेगी सिरदार सिरोमणि जिन), १०७०६७ अध्यात्मपच्चीशी, मु. दीपचंद, पुहिं. गा. २५, पद्य, भूपू (--), १०६९९३-१(७) अध्यात्म पद, मु, कुशल, पुहिं. गा. १०, पद्य, मूपू., (चितानंद मन कहारे) १०८२५१-१(+) " अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुध वचन सदगुरु कहें), १०७०४४-३, १०६७८५ (#$) अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि पुहिं. गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), ११०५२३(5) " अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धार तलवारनी सोहली), ११४५१०-८(+#$), ११४६९७-३(+#$), ११३०२०-१० अनंतजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु गा. ५, पद्य, मृपू.. (पूजानो तु बेपरवाही), ११२१८१(+) अनंतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनंतजिनशुं करो सहेलडीया), १११०९९-२(+) अनागत चौवीसी नाम, मा.गु., पग, मूपू (पद्मनाभ सूरदेव सुपास), ११४२६२-४० अनाधीमुनि सज्झाय, मु, खेमकीर्ति, मा.गु गा. ६८, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत सिद्ध नमस्कार), १११८३८(+) For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ अनाथीमनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.ग., गा. ३०, पद्य, मप., (मगधाधिप श्रेणिक), १०८६५० अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ११३०५६-२(+#), ११३७४०-२(+#$), ११४०३६-१, ११०६४९-१(#$), ११०९०९-३(#) अनानपूर्वी कवित्त, मा.गु., पद्य, मपू., (प्रथम नम परमातमा कर पद), १०९२०६-२(+) अनानुपूर्वी विधिसहित, मा.गु., गद्य, मूपू., (जोणसा भांगा नीकालना), १०९२०६-१(+) अबयद शुकनावली, मा.गु., प्रक. ४, पद्य, पू., इतर, (महावीर कुं ध्याय कं), ११४६२६-१(६) अबयद सुकनावली, मा.गु., प्रक. ४, गद्य, मूपू., इतर, (गुरुणां प्रशाद अनंत), १०९६५४(+) अभयकुमारमंत्री सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११०७५६($) अभिगमन विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम करे पेसाब उपासरा), १०७०२७($) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. कुवरयमरचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भोगव तेरी बडे बडे ओ शेव), ११३०५३-१(+-) अभिनंदनजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (तुम्हे जोज्यो जोज्यो), ११०२५२-१ अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु तुम दर्सण मलियो), १०७२०१-१ अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (दीठी हो प्रभु दीठी), १०६४९४-१२($) अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि*, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (दीठो हो प्रभु दीठो जगगुरू), १११६०४-१(#) अभिनंदनजिन स्तवन, म्. राजविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (अभिनंदन अरिहंतजी ओलगडी), ११४५१०-२(+#) अमरकुमार लावणी-नवकार प्रभाव, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, स्था., (देखो जगत की रीत), १०६६६८-५(-) अमरकुमार सज्झाय, मु. दलीचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ११, गा. ९६, वि. १८७१, पद्य, श्वे., (पुन्न किया सुख संपजेन पुन), ११४१४७(+) अमरचंद महाराज सज्झाय, श्राव. कनैयालाल, मा.गु., गा. ४८, वि. १९२१, पद्य, मूपू., (दो कर जोडि प्रणमोनी सला), ११५०८३-२(+-) अमरसिंघ श्लोको, मा.गु., गा. ३५, पद्य, वै., इतर, (सरसति सामण तुज पायेज), ११३८१८-१ अमृतचंद्रसरि लंपकगच्छाधिपति भास, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (सारद मात नमी करी सद्गुरु), १०९४९१(+) अमृतवेल सज्झाय-बृहत्, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान अजुवालीए), ११०४३७-२, ११०७४६($) अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १७०२, पद्य, मूप., (सरसति सामिणि वीन), ११३६०१(+s), ११२५४०(5) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (इक दिन अरणक नाम उठया), ११३०१३-३(१) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (इक दिन अरणक जाम), ११०६०१(#) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. चंद्रभाण शिष्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (साधु कहे अरणकजी सुणो सुणो), ११३४७४ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ११३८१५-४(+), १०६५३४-९(#), ११२३९४(६) अरिहंतपद सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (नवलउ नवलइ वेस वहिरण), १०९६४३-२(#) अरिहंतादि नाम, गुण वर्णनादि बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीआदेस्वर१ संभव३ सुमति५), १०९५०३-२(+) अर्घ विचार, मा.गु., गद्य, जै., वै., इतर, (मेष संक्रांति वेलायइ जे), १०९६७९-८(+) अर्जुनमाली सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., गा. १६, वि. १७४३, पद्य, श्वे., (सदगुरु चरण नमी कहू), ११०२१९-३ अर्द्धपुद्गलपरावर्त्तनविचार सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिन उपदेशें सुलल), ११२३९५(#) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आबुगढ तीरथ ताजा अष्टादश), ११४१९६-२(+), ११०९७७-२ अर्बदगिरितीर्थ स्तवन, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (--), ११३७४३-१(+$) अर्हत् स्तुति, मु. माधव मुनि, हिं., गा. ७, पद्य, स्था., (मनाऊँ मैं तो श्रीअरिहंत), ११२६४१ अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), १०६६९८-२(+), १०८२४५-२(#$), ११५१२८-१(#$) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जगचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंदो अयवंती सुकुमालने रे), १०६५३४-२१(#) For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (ए संसार असार छे साचो), ११३९५३ अविनाशी लावणी पद, श्राव. जयरामदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (चमक चमक चम विजुरी चमकै), १०८०४१-२ अविनीत शिष्य सज्झाय, मा.गु., गा.२०, पद्य, मप., (गरांकानै संजम लीनो पिण), ११५०३९ अविनीत शिष्य स्वरूप, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेला नही तउ म करउ चिंता), ११३८६८-६ अषाढभूति चौढालीया, मा.गु., ढा. ९, पद्य, मूपू., (सासण घणीय सानिध करो वचन), ११३४०० अष्टप्रवचन माता चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८२१, पद्य, स्था., (--), ११४९३६(5) अष्टभंगी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मप., (सुगुरुदेव सुधर्मनू), १०६७८०-१३(+) अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (महा सुदी आठमने दिने), ११३०५८-४(+), ११०४६६-४(#) अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसतिने चरणे), १०७९७२-१(+), ११५२४२-१७, १०८२५५(#) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (वीर जिनवर इम उपदिशे), ११२०३०-१(६) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूप., (हां रे मारे ठाम धर्मना), ११३७३२-३(+), १११२१७-१(#), ११२३१७($) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.ग., ढा. ४, गा. २४, वि. १८३९, पद्य, मप., (पंच तिरथ प्रणमं सदा), ११०३१९(+) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमु), ११४०३७-३ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू, (मंगल आठ करी जिन आगल), ११०९६२ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (अष्टमी अष्ट परमाद), ११३८३२-८(+#), ११३९५२-२(#) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंद्रकंति चंद्रप्रभ), ११०७६९(+#) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), ११०००४-४(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (इक सरसति अतिसय गुण), ११४१७४(#S) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (तिरथ अष्टापद नित), ११२७२७($) अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिरि जात्रा करणकुं), १०९४२७-१(#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (मनडो अष्टापद मोह्यो), १०६७०२-८(+#), ११४४४८-१ अष्टोत्तरीमहादशाभुक्तभोग्य करणविधि, मा.गु., गद्य, इतर, (विधैकलाखा भ्रगजैर्वि), १०७७९०-२(+) असज्झाय सज्झाय, मु. हीर, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रावण काती मिगसिर), १११९३०-२(+$) असज्झाय सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पवयण समरी सासणमाता), १०९४५५, १११६०८, ११३९०९ असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगौतम), ११३२०९(+) अहिराव राठोर कीर्ति कवित्त गाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., इतर, (अभेपुरा जेवंत सुखा), ११०००२-२(#) अहिवलय चौपाई, आ. सोमकलशसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., इतर, (रवि उदयादिक गई घडी), १०९६७९-२(+) आगमगत चर्चा बोल-विविध प्रश्नोत्तर, मा.गु., प्रश्न. ४९, गद्य, श्वे., (श्रीउत्ताधेन सुत्त मधे २८), ११२५३२($) आगमगुण स्तुति, मु. पुण्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मंगलकेली निकेतन), ११३१३२-१(६) आगमपूजा स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आगमनी आशातना नवि), ११४१६६ आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (हिवै भव्यजीवने), १०७०४०(#$) आचार्य ८ संपदा, मा.गु., गद्य, मप., (१ आचार संपदा २ रूपसं), ११३४५९-२ आचार्योपाध्यायसाधुमहिमा कवित्त, मु. दीप, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परम पंच आचारता सुधारण), ११२८५६-३ आत्मबोध, मु. जिनदास, पुहि., गा. १२१, वि. १९०३, पद्य, मपू., (आद नमु अरिहंत न चोवीस), १०६९९९-१(+) आत्मराज रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १०१, वि. १५८८, पद्य, मूपू., (सिरिसरसति सरसति आपु), १०६७८०-१(+$) आत्महितशिक्षा सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (सुगुरु सुदेव सुधर्मा), १०६७८०-१०(+) आदिजिन १०२ पुत्र-पुत्री नाम, मा.गु., गद्य, मप., (भरत बाहुबलि श्रीमस्त), १०८२७३ For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ५३३ आदिजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रिसहनाह श्रीनाभिराय), ११३७१३-३ आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मप., (अरिहंत नमो भगवंत), १११९०८-१, १०९२४३(#) आदिजिन चौढालिया, ग. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, पद्य, मूपू., (रूप मनोहर जुगतानंदण), १०८७०६(+) आदिजिन छंद, मु. लाल कवि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बे कर जोडी वीन), १०९७४४(#$) आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (प्रमोदरंगकारणी कला), १०९५००(+$), १०८२४८-१ आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. ६३, वि. १८७५, पद्य, मूप., (आदि करण आदि जग आदि), ११०४५५(-) आदिजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु.,रा., गा. ३, पद्य, मपू., (आदिजिणंद मया करो), ११३३७२-१ आदिजिन पद, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदि जिणंद मया करो), ११३७५५-१ आदिजिन पद, मु. जिनराज, रा., पद. १, पद्य, श्वे., (आदजनेसर देव भलो सुखकारण), १०८८६८-३ आदिजिन पद, क. दिन, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (ऋषभनाथ कुं रंग है), ११२८६१-५ आदिजिन पद, मु. राजसिंह, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूप., (लगी हो लगन कहो केसै), ११०९९१-२ आदिजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (तुम हो जिनंदा देवा), ११२४२६-१(+) आदिजिन पद, मु. विनीतसागर, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूप., (धुलेवे सहरे श्रीऋषभ जिणंद), ११२४८४-२(+) आदिजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, पुहिं., पद. ३, पद्य, मूपू., (मनदी मेरे तूं वस्यो), ११४२३३-२ आदिजिन पद, मु. संतोक, पुहिं., पद. ४, वि. १९३१, पद्य, म्पू., (पहेला ऋषभ जीनराज वंदीये), १११२९४-१(+) आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), ११३१८०-५(5) आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, पू., (उगत प्रभात नाम जिनजी), १०८३५२-२ आदिजिन पद, मु. हेम, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (प्रथमेस जिणेस तूहारोय), ११४०२५-२ आदिजिन पद, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (सेव करुं चित्तलाय कंचन), ११०६२५-२(+) आदिजिन पद-केसरीया, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मारा केसरीया माहाराजने), ११५१८३-२ आदिजिन पद-केसरीया, मु. मुलचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (केसरिया वाला जो लज्या राख), १११९००-३ आदिजिन पद-जन्मबधाई, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (आज तो बधाई राजा नाभ), ११३८७४-२ आदिजिन पद-शत्रुजयतीर्थ, बाल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (हां रे डुंगर जास्या मे तो), १०८९०१-१(+#) आदिजिन पारj, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, पू., (आहे जश घर जावेजी वहो), १०९४४२-२(+) आदिजिन प्रभातीयु, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सारकर सारकर श्रीऋषभ),११३२८१-२(#$) आदिजिन बारमासा-धुलेवामंडन, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (प्रथम जिणंद प्रणमु), १०९८७७-१(+) आदिजिन बाललीला स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. १८, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (हारे म्हारा रिषभजी देव), ११३९६५(#) आदिजिन राज्यस्थापना विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (इंद्रे रीसभदेव भगवानने), १०९४६३-१(-2) आदिजिन लावणी, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सुणीये रे वातां सदा), ११०४०६-६ आदिजिन लावणी, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., गा. ६९, वि. १८९३, पद्य, स्था., (श्रीआद० श्रीआदि जिणेसर), ११००९१-१(+) आदिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ निर्वामी), ११२४०४-३(#) आदिजिन लावणी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विमलगिरी वंदन कु जाइ रे), ११३६४३ आदिजिन लावणी, पुहि., गा. २५, वि. १८६०, पद्य, मपू., (सरसती माता सुमति की), ११०४३६(#) आदिजिन लावणी-केसरियाजी, क. ऋषभदास संघवी, पुहि., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सुनीओ बात सदासीवजी), ११२५२१-१(#), ११२५२१-२(#$), ११४१९०-३($) आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सुण जिनवर शेजा), ११०४८२(+), १०९४१०, ११०२५७, ११०४४४, ११०४५३, ११०६२८ For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिणेसर), ११२३८९(+#$), ११३९८१(+$) आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७उ, पद्य, मपू., (आदिश्वरप्रभुने विनंत), ११५२१८(#) आदिजिन सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.ग., गा. ५१, पद्य, मप., (सरस्वती माता द्यो मुज), ११११९७(5) आदिजिन सवैया, मा.गु., सवै. १, पद्य, मप., (गुणे गंभीर अचलज्यू धीर), ११२३३४-२(+) आदिजिन सुखडी, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मूप., (सरसति माता देवी चरण), ११४७८७(#$), ११५१८६(#) आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम), १०९४७१-२(+#), ११३०२०-१२ आदिजिन स्तवन, मु. करमसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आय रहो दिल बाग में), १११२९७-३() आदिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (साहिबा वालेसर अरिहंत के), ११३५०३ आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.ग., गा. १८, पद्य, स्था., (श्रीऋषभजिणेसर जगत), ११३३६८-१(2) आदिजिन स्तवन, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., गा. १५, वि. १८८२, पद्य, मपू., (आज भलै दिन उगीयो आज घणो), १११८४४-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., गा.११, वि. १८९३, पद्य, मपू., (म्हारे सफल फल्यो दिन आज), १११८४४-३(+) आदिजिन स्तवन, ग. कुशलकल्याण, रा., गा. ११, वि. १८०७, पद्य, मूपू., (पूजो रे रिषभ जिणंदनै जी), १११८७३ आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक जगगुरु जी), ११४१२३-३(+#), ११४१७५-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (प्रात उठि समरिय), ११४००२-२ आदिजिन स्तवन, मु. गिरधर शिष्य, पुहि., गा. १४, पद्य, मपू., (रेसम रो रजो कसबी रो), १११५५८-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (सफल घडी हो जिनजी सफल घरी), ११४१७७-३ आदिजिन स्तवन, मु. चोथमल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मोरादे मइया वाली लगे), १०७८४२-१(६) आदिजिन स्तवन, मु. चोथमल शिष्य, मा.गु., गा. १२, वि. १८५७, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिनेस वंदीयै रे लाल), ११४०१८-१ आदिजिन स्तवन, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, स्था., (आद जिनेसर आनंदकारीजीरी), ११३४२२-९ आदिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (नित ध्यावो रे रिषभ), ११४६१२-१३(#) आदिजिन स्तवन, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (नही मानू रे रीखब विन आण), ११०२१२-१(+#) आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मधुकर मोही रह्यउ), १०६७०२-११(+#), ११०४७८-२, ११३१६५-३(#$) आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आदिसर सुखकारी हो), १११९७५-१(+#), १११२३५-२, ११३९५८(#) आदिजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंतजी रे), १०७१९७-२ आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूप., (लग्या मेरा नेहरा), १११९०५-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. नगजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (विद्याधर किन्नर नरा रे), ११३६८१-२ आदिजिन स्तवन, पंन्या. प्रमोदसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेश्वर पूजीय), ११३२०८ आदिजिन स्तवन, मु. मनरूप ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १८५४, पद्य, मपू., (नगरी वनीता हो सोभे अती), ११०९७४-१ आदिजिन स्तवन, मु. महानंद, रा., गा.७, पद्य, मप., (प्यारो लागे प्यारो), ११०५२६-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., गा.३, पद्य, मपू., (देख्या श्रीनाभ के नंदा),११३६४७-२(+#) आदिजिन स्तवन, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (बलीहारी दरीसण तारा), १११६८४-३ आदिजिन स्तवन, मु. मूलजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (चालो जईए सिद्धाचल जात्रा), ११३६४७-१(+#) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ११४९५३-९, ११३११४-३(#) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (बालपणे आपण ससनेहि), १११६१६-३(+), ११०२२० आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवाल हो), १०६४९४-९, १०८७५८-१(-) आदिजिन स्तवन, मु. रतन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (हारे मोरा आदिजिन), ११३७५८-३($) For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ! आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज भले दिन उगो हो) १११२१९-१(१), ११२८८४-२(१) आदिजिन स्तवन, मु. लायककुशल, मा.गु. गा. ७, पद्य, म्पू.. ( नाभिनंदन गुण गावता), ११३८२०-३(+5) आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन), ११०५६३-२ (+) आदिजिन स्तवन, मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु. गा. ११, पद्य, भूपू (सरस सुंदर ताहरी गुण भरी), १०८९१४-३ आदिजिन स्तवन, मु. शिवकीर्ति, रा. गा. ६, पद्य, मूपू. (प्रभु पद पंकज भेटीया रे), १११८०६-३(+) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (आदिमराया पोहोत लाजमा), १०८७०८-३ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू. (ऋषभनो वंश स्वणायरू तशशिर), १११२८५-१(७) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नाभराजारो नंनरी योन), ११३८४५-३(+) . आदिजिन स्तवन रा. गा. ७, पद्य, मूपू म्हाने रिषभ देव फरसावो हे). १९१८६१-३(१) " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, मा.गु., वि. १७७५, पद्य, मूपू., (सरसति गुण गावु मांगु), ११०९६१ (४) आदिजिन स्तवन- २८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु. डा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू (प्रणमं प्रथम जिनेसर), १११८८५-१(०३) आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरितीर्थ मंडन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., गा. ३४, वि. १७७९, पद्य, मूपू., (आबु शिखर सोहामणो जिह), ११४०९९ (६) आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीअष्टापद ऊपरे जाण), ११०३६५-१(+) आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, पद्य, मूपू., (आदीसर पहिलो अरिहंत भयभंजण), १९३८२२(३) आदिजिन स्तवन- केशरिया, मु. दयाविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८९३, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही साचो एतो खंड), ११४५०६-२(+) आदिजिन स्तवन- केशरियाजी, मु. सुमति, मा.गु, गा. ११, वि. १९२२, पद्य, मूपू (सरसती भगवती श्यामनी देवी), ११०४२४(०) आदिजिन स्तवन-छिपियापुरमंडण, मु. विद्यारत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( रिषभ जिणेसर राजीयो), १०९४१३-५ (#) आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), ११३६६१-१(#) आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु, गा. २१, पद्य, मूपू. (पहिलु पणमिअ देव), १०८९८३ (+#), ११३३५१ (+#$) (२) आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित अवचूरि, सं., गद्य, मूपू (श्रीविजयतिलकमहोपाध्याय), १०८९८३(०) (२) आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपु., (हुं पहिलु धुरि), ११३३५१(+०७) आदिजिन स्तवन-फलवर्द्धिपुरमंडण, क. रूप, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय हो सामी जैनराय), ११३८९१-२(+) आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७. वि. १६७६, पद्य, मूपू (राणपुरे रलीयामणो रे). १०७४९३-४२३) ११४१५४(३) ܕ ५३५ आदिपार्श्वजिन स्तवन, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, आदिजिन स्तवन-राणपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १६, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (राणपुर नमौ हियो रे ), ११३९०१-१(#) आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वइ तस मानने अर्थ समा), १०७११९ आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. ऋद्धिविमल, मा.गु., गा. २७, पद्य, म्पू. (आवोजी आवोजी सुधा), ११३१०३(५) आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, म्पू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), १०९७२६-२, ११२४८०-१, ११४६९४-१ आदिजिन स्तुति, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू. (श्रीआदीसर जिणवर सेवै) ११३८३२-३(+४), ११२८२७-३ आदिजिन स्तुति, मु, परमानंद, मा.गु. गा. ५, पद्य, म्पू. (आज बधाई नाभराय घर मरुदेवा), ११०२४७-४ आदिजिन स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (शेत्रुजे श्रीरीषभ जिणंद), ११४६६३-१ " आदिजिन स्तुति, पुहिं. गा. ११, पद्य, खे, ( उज्वल सिखरी दिणंदो प्रभु), ११०२४७-३ . " आदिजिन स्तुति, मा.गु., गा. २, पद्य, म्पू, (लाल मुगट्ट सुघट्ट विरजित), ११३६३७-४(+०) आदिजिन स्तुति - सिरोही मंडण, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू. (श्रीआदीसर जिनराज तणी भवि), ११३५८०-१ (ख) . वीरविमल, मा.गु. गा. ५. पद्य भूपू (ससनेही सुंदर परणिमंदरि ), ११४०१३-१(०) For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आधाशीशी निवारण मंत्र विधिसहित, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (ॐ अट्ठावली वनगहनमांहि), ११३७३९-१(+) आध्यात्मिक गीत, मु. राज, रा. गा. ८, पद्य, श्वे. (आतममृग तम आफले पडिसि), १०८८६८-२ आध्यात्मिक जकडी, मु. दीपचंद, पुहिं, सवै. ४, पद्य, वे., (चेतन ग्याइ कहो तुम निज पद), १०६९९३-२( आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, म्पू, (अवधू नाम हमारा राखे), १११६१६-६ (+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (आस्था औरन की कहा), १११६१६-५(१) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं, गा. ३. वि. १८वी, पद्य, मूपू. (ऐसी कैसी धरवरी), १११५४३-५ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३, वि. १८वी, पद्य, म्पू., ( क्या सोवै उठि जागा), १११५४३-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ग्यान भाण भयो भोर मे), ११४४५०-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, रा. गा. ५, पद्य, मृपू. (निसदीन जोडं थांरी), १११५४३-१ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (निसाणी कहा बतावु रे), ११४४५०-१($) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. पद ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू.. (रे घरिवारी बाउ रे मत), १११५४३-३, १९४६११-७) " आध्यात्मिक पद, मु. ऋषभदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (यह चेतन या होरी रे) ११५१८३-५ आध्यात्मिक पद, कबीर, रा., पद. ४, पद्य, वै., (थारी काया मै गुलजार), ११३६७४-३ आध्यात्मिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (काम क्रोध दिल लोभ निवारो), १०८२८८-१ आध्यात्मिक पद, कबीरदास संत, मा.गु., पद. ४, पद्य, वै., (कोइ चणा वे बाग बगीचा कोइ), ११३३१८-२ आध्यात्मिक पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू (किन देखावे शिवगामी हमारा), ११३६४९-३ आध्यात्मिक पद, मु. दीन, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (बंदा बाजी झूठ हे मत साची), १०८६६०-१ आध्यात्मिक पद, मु. दीन, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे., (सब कै वेद की ते वहै सबकै), १०८६७२(+#) आध्यात्मिक पद, मु. दीपचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू (असाडे प्रीतम ऐसी जैनी राग), १०६९९३-५ (-) आध्यात्मिक पद, मु. दीपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेर प्यारा मन का भावता), १०६९९३-६ (-) आध्यात्मिक पद, मु. दीपचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, म्पू, मैं कच परमातम पाउंगा सकल), १०६९९३-१२ (-) आध्यात्मिक पद, मु. दीपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू. (मोरी अदभूत महिमा की जाने), १०६९९३-७/-) आध्यात्मिक पद, मु. दीपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (संतो आपा अंदर दरसौ), १०६९९३-१३ () आध्यात्मिक पद, मु. दीपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिव तिया वरजी कौ बेगिल), १०६९९३-१० (-) आध्यात्मिक पद, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुमता संग रमीजे हो चेतन), ११०३११-२ आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद. १, पद्य, दि., (जैन करै न पक्ष विवाद धेरै), १०८९७०-४(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. बनारसीदास पुहिं. गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (तुं आतमगुण जाण रे). ११३२१८-२(*) आध्यात्मिक पद, ब्रजमल दास, मा.गु., गा. ७, पद्य, जै. वै., (समरण को लिखीयो हर आगे इस) १०८२८८-२ " " ', आध्यात्मिक पद, मु. भूधर, पुहिं. गा. ४, पद्य, वे (समकित श्रावण आयो री अब ). ११३६४९-१८ आध्यात्मिक पद, भैरवदास, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., ( मत को उपरउ प्रेम कइ), ११३७२१-१(+) आध्यात्मिक पद, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (अलख अगोचर अकलरूप), १११३८७ आध्यात्मिक पद, मीराबाई, मा.गु., गा. ५, ई. १७वी, पद्य, वै., (अबतो मेरा राम नाम), ११२९७९-३ आध्यात्मिक पद, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अविनाशीनि सेजडीयें), ११४०५२-३(#) आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (किसके बे चेले किसके), ११५२२२-२ आध्यात्मिक पद, मु. श्रीसार, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेरी आतमा अति अभिमान), १११२९९-३($) आध्यात्मिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कबहिं मिलइ मुझ जउ), १०७१९८-२ आध्यात्मिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (कंचण मे रस मेर दे दीज), ११३६७४-५ आध्यात्मिक पद, पुहि गा. ४, पद्य, दि., (हम बैठें अपनी मोनसी), ११३०५६-५(ख) " आध्यात्मिक पद-अनुभव, मु. दीपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (--), १०६९९३-३( आध्यात्मिक पद-गंगा, जगदीश, मा.गु., पद. १, पद्य, वै., (जटा मद गांगव भूत है अंग), ११४९३२-३(१) For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ आध्यात्मिक पद-योगी, मु. दीपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (अरे हूँ तो सहज स्वरस भोगी), १०६९९३-४(-) आध्यात्मिक पद-साधु, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (मुनिवर खेल रह्या एतो आतम), ११०३११-१ आध्यात्मिक पद-होरी, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (परघर खेलत मेरो पीयो), ११३६३३-१(#$) आध्यात्मिक लावणी पद, श्राव. जयरामदास, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (कर कर भजन सजन साहेब से), १०८०४१-१ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (इक नारी बहुपुरुष मिलीने), ११३७४९-२ आध्यात्मिक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (चेतना राणी रे रायजी), १०६५३४-२०(#) आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, पू., (चेतन जो तुंग्यान), ११४९५३-४ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (सुमति सखी इम वीनवे रे), ११४५६०-२ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. हीरालाल ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (वाजा नगारा जीत्या), ११११०३-२ आध्यात्मिक सज्झाय-आत्महित, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सूण वहिनि पीउडो परदेशि आज), १०८२५४-२(#) आध्यात्मिक सज्झाय-कयसीदा, मु. ग्यानचंद, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (हजी करैरै कयसीदै गिनकौ), ११०७३९-१(#) आध्यात्मिक सज्झाय-सुरता, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (नदी सुतर मे चवदे सुदता), ११३५६५(+#) आध्यात्मिक सवैया, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (सीख भली एक सांभलो द्ये), ११३६८८-३ आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वरसे कांबल भींजे पाणी), १०९४८१-२(+) (२) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कांबली कहतां इंद्री), १०९४८१-२(+) आध्यात्मिक होरी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चेतन खेले होरी हो), ११५१८३-६ आध्यात्मिक होली पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (होरी खेलीये चितानंद), १०८३०६-३ आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, मप., (वर्द्धमानजिनवर चरण), १०६९४१-१(+) आयंबिलतप सज्झाय, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीमुनिचंद्र मुनिसर), १०९४६१(+#) आयुष्य विचार दोहा, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (आठ पहर दहनो चले बदले नहीं), १११६०४-२(#) आयुष्य विचार-संथारा की आमना, रा., गद्य, श्वे., (आउखारा तीन दीन बाकि रहै), १०८८७४-१ आयुष्य सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (आऊ तूटीनै सांधो लागै), ११३०६४-१(+) आराधकविराधकचौभंगी सज्झाय, पुहि., गा. ३१, पद्य, श्वे., (एक आडी अढाइदीप का), ११३०२७-१(+#$) आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (पाप आलोयु आपणां सिद), ११४१८२-१(+$) आलोयणाप्रदान बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञान आसातनाई जघन्य), ११०४३२-१ आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञाननी आशातना जघन्य), ११३७६४(+#$) आलोयणा विचार दोहा, मा.गु., गा. ८८, पद्य, श्वे., (सिद्ध श्रीपरमातमा), ११४९४१(+$) आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (णमो अरिहंताणं० पहिली), ११०२६७($) आलोयणा विधि, मा.गु., ग्रं. ११७, गद्य, मप., (देववंदन अकरणे पुरिमढ), ११०४३९(+) आलोयणा विधि संग्रह, मा.गु., गद्य, मपू., (१ वरस नानि आलोयण), १११३८९(+$) आलोयणा सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर नाम हीये धरीजी), १११५११-२ आशिकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूप., इतर, (आसिक मोह्यो तुझ रूप), १०९९७८, ११०५६७(#) आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), ११४८५४ आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, ग. रूपवल्लभ, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (एकाकी आषाढमुनि सुमति), ११४७९९-२(#$) आहार गवेषणा सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (तीजी समती एषणा आहार), ११३५२९-१(+-) इंद्रकृत नंदापुष्करणीसिद्धायतनसुधर्मासभा जिनदाढादि पूजन बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (--), ११४९३०($) इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु.खेम, मा.गु., ढा. ४, वि. १७४७, पद्य, मूपू., (परम दयाल दयाकरु आसा), ११३२६४(६) इरियावही मिच्छामि दक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. ४, गा. १५, पद्य, मपू., (पद पंकज रे प्रणमी), ११३१७४-१(#) For Private and Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धदाय सदा), १९४६४४०६), ११३३२८(६) " इलाचीकुमार छढालिये, मु, माल, मा.गु. डा. ६, वि. १८५५, पद्य, स्था. (मात मया करो सरस्वती), १०६६६५-२०१ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., ( धनदत्त शेठनो दीकरो ए), ११३०८६-२ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ११३१४६-१ (+#), १०९९७१-२, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १११२९७-१, ११२४०५, ११११२९(१), १११९२४-२ (४७), ११३५८८(०), ११३९७७-१(०) इलाचीकुमार सज्झाय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४०, पद्य, मूपू.. (तिण कालने तिण समे चौथा), १११९२४-१(१) उत्तमकुमारचरित्र रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २९, गा. ५८७, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (चरमजिणेसर चित्त धरुं), १०६४७२(+) उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., ढा. ५१, गा. १२४५, ग्रं. १६३६, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सरसति सामण पय नमी), १०७०५० (#) उत्तम मनोरथ सज्झाय, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू. (धन धन ते दिन क्यारे आवशे), ११३७३३-३(+० उदयचंदगुरु स्तुति, मु. हीरालाल, पुहिं. गा. ५, पद्य, स्था. (पूज उदेचंदजी को सरणो), १९३४२२-१ . " उदयपुरनगर वर्णन छंद, मु. जसवंतसागर कवि, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू., (समरी मातासरसती मांगु), १०८५०८(#) उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु. गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल सरूप यामे), ११२७७१(७) उपदेशछत्रीसी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३६, वि. १८६६, पद्य, स्था., (सबद करी सतगुरु समझाव), ११३५७५-८ ($) उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सांभलज्यो सज्जन नर), १०९४७८, ११००६४-१, ११०२८४ उपदेशपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., गा. २५, वि. १८२०, पद्य, स्था., (जीनवर दिए एसो उपदेश), ११४६०५ (+), ११४६९८-१($) उपदेश रहस्य, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, श्वे. (सिद्धचक्रपद वंदोरे), ११३८९९-२(+#) ऋतुवंती असज्झायनिवारण सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (सरसती माता आदि नमीने) १०९४११-३ (+) ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, आ. हर्षसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (तिणकाले ने तिण समे), १११९७४- १, ११२५११(#) ऋषिबत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (अष्टापद श्रीआदिजिणंद), ११४०९८(#) " एकादशी तिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु. गा. ९, पद्य, म्पू. (शासननायक वीरजी प्रभु), ११३३७०-२ एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (आज एकादसी रे नणदल), ११०३६१-१, ११५२४२-१४, १०९३७७०) एकादशीतिथि स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज एकादशी ऐ तिहने काइ नही), ११२९७९-१ एकादशी तिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांसजिन ग्यारमो ) ११३८३२-७(+), ११२८२७-२ ओसियामाता छंद, मु. हेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु., (देवी सेवी कोड कल्याण), १०९५२९-२(+), ११०१५६-१ औपदेशिक कथा-सिंहवानर, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै., इतर ? ( एक समै सुणि सिंघकुं), ११०९४१ औपदेशिक कवित्त, मु. केशव, मा.गु., गा. १, पद्य, वे., (कंठो बीली कंठ पेख करि लगा), ११३८८५-३(+) औपदेशिक कवित्त, क. गंग, पुहिं., दोहा. १२, पद्य, वै., इतर, (गंग तरंग प्रवाह चलै), १०८६६०-१४ 1 "" , औपदेशिक कवित्त, क. गंग, पहि., गा. २, पद्य, वे (वाल से ख्याल बडा से विरोध), १०८६६०-१५ औपदेशिक कवित्त, क. गद, पुहिं. गा. १, पद्य, क्षे., (तीस दिनां कहा होय काहा), ११२९०४-४(+) औपदेशिक कवित्त, क. गद, मा.गु., गा. २, पद्य, वे. (सूच कवित संभर्यो सीस पट) ११३८८५-२(+) औपदेशिक कवित्त, मु. जसराज, रा., पद्य, श्वे., (जिहांरा घर में धन गोहीडा), ११०८२५-२(#) औपदेशिक कवित्त, क. दयाल, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे. (कहा मन मोह धरै उ दिन), ११४६९१-३ (#) औपदेशिक कवित्त, मु. दीन, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (इंद्र के अगराज आगे), १०८६६०-२ औपदेशिक कवित्त, मु. नंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, म्पू., ( को सरनी जग में किसकी वस), १०८२३९-२ औपदेशिक कवित्त, मु. हेम, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (अही शशी एन उतंग पिक केहर), ११४०२५-१ औपदेशिक कवित्त, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे. (म्यान जीहाज वठ गणपति से), ११४५९१ औपदेशिक कवित्त, मा.गु., पद्य, थे., (धरक धण थर थर हरे सहस), १९४१३२-२ (४) " For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ५३९ औपदेशिक कवित्त, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (हंस बुग मृग मीन मोर माल), ११२९०४-१(+) (२) औपदेशिक कवित्त-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (हंसरी बेठक सेणच काल), ११२९०४-१(+$) औपदेशिक कवित्त-गरुभक्ति, पुहिं., पद्य, वै., (कलियुग के पाखंड भक्ति सब), १०७३२३-२ औपदेशिक कवित्त-श्रावक, मु. रुघपति, रा., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रावक देख्या सकज जती), ११२४०७-२ औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, मूपू., इतर, (कीमत करन बाचजो सब), १०९५२९-३(+), ११४६९१-२(2) औपदेशिक कवित्त-समस्यागर्भित, क. गद, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (एक नर व रण सपेत), ११२९०४-२(+) औपदेशिक कुंडलिया संग्रह, मु. दीन, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (बंदा बाजी जुठ हे मत), ११२८६१-४ औपदेशिक गहुँली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मुनिवर मारगमां वसिया), १११९७१-२(+) औपदेशिक गीत, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३१, वि. १७वी, पद्य, दि., (मेरा मन का प्यारा), १०९६३० औपदेशिक गीत-कलियुग, मु. रुघनाथ, रा., गा.८, पद्य, मूपू., (आज कलुकाल मांहे विद्या), ११२४०७-३ औपदेशिक गीत-ननदभौजाई, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., गा. २३, पद्य, मप., (देह देह नणद हठीली), ११०९९३-२ औपदेशिक छंद-जीवदया, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), १११५११-१(६) औपदेशिक जकडी-जीवकाया, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (काया कामनी वेलाल), ११३२६२-१(+#) औपदेशिक दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (शेठ परदेस जाइ कमाइ कर), ११३५२१-२ औपदेशिक दोहा, पुहिं., पद्य, मपू., (अहि नकला नेहो जह नय नेहो), १०९८७७-४(+) औपदेशिक दोहा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (निसी भोजन नवि करीये माय), ११३३५५-२ औपदेशिक दोहा, मा.गु., दोहा. १, पद्य, श्वे., (मन भगं चीत उतरो), ११११६६-२ औपदेशिक दोहा, पुहि., दोहा. १, पद्य, वै., इतर, (सिद्ध कसिवै कुं काल), ११३१२७-६ औपदेशिक दोहा, पुहिं., दोहा. १, पद्य, इतर, (सोरठ गढथी उतरी कंस), ११४०३२-३(#) औपदेशिक दोहा संग्रह, मु. उदयराज, पुहिं., पद्य, मूपू., (ओर कछु पायो नही ना कछु ओर), ११४०३३($) औपदेशिक दोहा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., दोहा. ५, पद्य, मपू., (करि खंजन अंजन रेख वणी), १०८६३०(#$) औपदेशिक दोहा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, श्वे., (गइ संपत फर आवे), ११५०८३-१(+-) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., दोहा. ४६, पद्य, वै., इतर, (चोपड खेले चतुर नर), १११८७४-३(+) औपदेशिक दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, मप., (सिद्ध श्रीपरमातमा), १०७२९०-२(-) औपदेशिक पद, मु. अखेचंद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (अहो अहो कालजी रे), ११२९८८-१(+#) औपदेशिक पद, मु. आतमराम, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (पुदगल जीवकु भी न पीछ), ११३६४९-११ औपदेशिक पद, मु. आनंदराम, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (छोटी सी जान जरा सा), ११४१७३-१ औपदेशिक पद, मु. उदयराज, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (खंजन माम कुरंग अंखीयां), १०८६६०-७ औपदेशिक पद, मु. कपूरचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जबसै सुना अनघट का माहातम), ११०७१०-४(+) औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., पद. १, पद्य, वै., इतर, (चुगलन के मुख पर हजार लाख), ११३६६१-२(#) औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (जोबन धन पाहुनो दिन), ११३१०७-१(-) औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., इतर, (संतो दो पख दोनुं वाटे आदि), ११०९५८-२(#) औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (ममता वीन दोरी न रहै), ११३३११-१ औपदेशिक पद, मु. चेनविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कोण नींद सुतो मन), ११५१८३-४ औपदेशिक पद, मु. चेनविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (समरन मनवंछत फल खेती), ११३६४९-१० औपदेशिक पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (प्रात भयो सुमर देव), १११०६९-१(#$) औपदेशिक पद, मु. जगराम, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (पुनः यो अवसर फिर), ११३६४९-१७ औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मपू., (तुम तजौ जगत का ख्याल), ११४०१८-३, ११२४०४-६(#) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (प्रभु नाम की निज), ११४८६६ औपदेशिक पद, म. जिनराज, मा.ग., गा. ३, पद्य, मपू., (रे जीव काहे करत गुमान कुण), ११४२३८-३ For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (हो जी आली जाने थारी चाहि), ११०७७९ औपदेशिक पद, मु. तलकवर्द्धन, मा.गु., गा. २, पद्य, मपू., (इष्ट मीले सब आय के मले), ११३१९७-२ औपदेशिक पद, त्रिलोचन, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., (रे मन पंछीया म पडिस), १०८२८८-३ औपदेशिक पद, मु. दीन, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (कनक कामनी जोर है कीआ), १०८६६०-९ औपदेशिक पद, मु. दीन, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (कमर कटारी ग्यांनकी), १०८६६०-८ औपदेशिक पद, मु. दीन, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (जम झपटो दैन है दिन मै), १०८६६०-१३ औपदेशिक पद, मु. दीन, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (तंत न जाण्यो नाह पीछाण्यौ), १०८६६०-५ औपदेशिक पद, मु. दीन, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (तनमद धनमद जवानीमद है), १०८६६०-१२ औपदेशिक पद, मु. दीन, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (देह आज पडौ भावै काल पडौ), १०८६६०-११ औपदेशिक पद, मु. दीन, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (भडवा भेख लजावत है सौजन), १०८६६०-४ औपदेशिक पद, मु. दीन, पुहिं., गा. १५, पद्य, श्वे., (--), ११३२२४-१(#$) औपदेशिक पद, श्राव. दुर्गादास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (०नरनारी तीन लोक की० सुरनर), ११३०५६-९(+#) औपदेशिक पद, मु. देवचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (समझ दया को मरम धरम चित), ११३६८६-१(2) औपदेशिक पद, मु. द्यानत, पुहि., गा. ३, पद्य, मूप., (अब मोहि जान परी), ११४६१२-१०(#) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (काया मांजत कौन गुना), ११४६१२-३(#) औपदेशिक पद, मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (तुम सुनो मुगत का), ११२२३६, १०६६६८-१७(-) औपदेशिक पद, मु. नगविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (नायक विणजारा रे अंखीयो),११५१८३-७($) औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (वार वार समजायो रे मनवा), १११९०५-३(+) औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (वे कोई काल न जीत्या), ११३६४९-७ औपदेशिक पद, मु. नारायण, मा.गु., पद. ३, पद्य, मूपू., (साचो भगत प्रभुको सोई पर), ११३०५६-६(+#) औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुणि सुणि जीवडा रे), १०८१९७-२(2) औपदेशिक पद, क. बनारसीदास, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., (बीते काल अनंत अरे वेवरा), १०८३०६-२ औपदेशिक पद, मु. ब्रह्म, पहि., गा. २, पद्य, श्वे., (वह रत्तीयै छत्त अवत्तीय), १०८६६०-६ औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (चरखा भया पुराना रे), ११३६४९-१४ औपदेशिक पद, श्राव. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु बिन पालक कोइ नहीं), १०८३०६-१ औपदेशिक पद, मु. मानविजय, मा.गु., वि. १८३२, पद्य, मूपू., (मन धरी सारदमातजी वली), ११०७४७-२(+) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (परम गुरु जैन कहो), १०९७१२-१ औपदेशिक पद, मु. रंगदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (मुढा आले जनम गमायो संसार), ११३०५६-८(+#) औपदेशिक पद, मु. रतन, रा., पद. ४, पद्य, श्वे., (आंटो करमांरो राज), ११३६७४-२ औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (मानव को भव पायके मत), ११३५७५-५ औपदेशिक पद, मु. रीषजी, पुहिं., पद. २, पद्य, श्वे., (हालै नही रसना मुख मांहि), ११३६६९-२(+) औपदेशिक पद, मु. लालचंद ऋषि, रा., पद. १, पद्य, मूपू., (एक गर हरख वदावो केइ लाग), ११०९५२-२ औपदेशिक पद, मु. विनयचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (रे चेतन पोते तुं पापी), ११३३११-४ औपदेशिक पद, मु. सुमति कविराज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (बालपणि समज्यो न भज्यो हरि), ११३६७१-३ औपदेशिक पद, मु. सुमति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दुविधा करम भरम की दासी), १११२८६-२ औपदेशिक पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (आप अपलक्षण जोइने चालये), ११०२८१-६(-) औपदेशिक पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (ओलखे अनाथ परजीवनी प्राणी), ११०२८१-४(-) औपदेशिक पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कपट कु भांडथी नासीइ वेगला), ११०२८१-३(-) औपदेशिक पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (छांड्य मन कुटिलता भजे), ११०२८१-२(-) औपदेशिक पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (ज्ञानदसा तो जाए पूना), ११०२८१-८(-) For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ औपदेशिक पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (धिख तुझ तातने धिख तुझ मात), ११०२८१-७(-) औपदेशिक पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वली-वली कहिए जीवसु तुझने), ११०२८१-९-) औपदेशिक पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समकित सानमा राख्य मन), ११०२८१-१(-) औपदेशिक पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (स्वादथी जीवने चटाल वाध्यो),११०२८१-५(-) औपदेशिक पद, मु. हजारीमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (भग जावो रे कर्म सब दर), ११११९४-३(+) औपदेशिक पद, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (दया विन करणी दुखदानी), ११४०२१-३(+) औपदेशिक पद, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (नहि छांडो हो जिनराज), ११३८९१-३(+$) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरे भववासी जीव जड), १०७२८३-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज चेत चेत प्यारे), ११४६११-४(#) औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, मपू., (कनई कसे दे घरा जी पातु तो), १०८१८८-७ औपदेशिक पद, पुहि., पद्य, श्वे., (करणी फकीरी जव क्या दलगीरी), ११३३११-५($) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (करमा हुंडी चाल जीवडा नहीं), १११२५१-३(+) औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, श्वे., (कहा भयो ग्घर छाडरे तज्यो), १११२९४-५(+$) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कायापिंड काचो राज), ११३३११-२ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (किलय अ आतुंकी वेलय जाय), ११३६५७-१ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (चेतन एक बात सुणी), ११२५६५-३(+$) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जगत सुखनो सुपनानी बाजी रे), ११४८४१-२ औपदेशिक पद, पुहि., पद. १, पद्य, मूपू., (जो जग वसत हसत तुम जेम), ११०९५२-१ औपदेशिक पद, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (तुम कैसे तिरोगे भव), १११९०५-४(+) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देख्या दोयसीन्या सीये माय), ११००९२-२ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (निसपादन साधु को संग भज्यो), १०७२८३-४ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (बादल की छाया सुपनां), ११३६६९-४(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (मनडे भांदीया तूं जिन), ११३६४९-१२ औपदेशिक पद, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (मन मै कर विचार चलत न लागै), १०७२८३-३ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (मौलाहक मालकजी सै मै), १०८६६०-१० औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सुख दुख दोनों पीहा मारे), ११३४७५-१(+) औपदेशिक पद-आत्म प्रमोद, रा., गा. १०, पद्य, मपू., (ओ जुग चलीयो जासी रे), १११२९१-१(+) औपदेशिक पद-आयस्वरूप, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (जैसे अंजुरी को नीरको ऊगहै), ११४१३९-९(+) औपदेशिक पद-एकत्वभावना, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (काकै कहौ घोरे हाथी काहु), ११४१३९-७(+) औपदेशिक पद-कठिनशब्दगर्भित, पृथ्वीराज, पुहि., गा. १, पद्य, वै., इतर, (कठिन प्रीत की रीत कठिन तन), ११२८६१-२ औपदेशिक पद-कर्कशानारी परिहार, श्राव. भगो साह, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (करगसानारी विनतिजी), १०८९०६-१(#) औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. १, पद्य, मपू., (काहे काया रूप देखी), ११४०६१-८(+) औपदेशिक पद-कायोपरि, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूप., (काया हे असुच ठाम), ११४०६१-९(+) औपदेशिक पद-दया, श्राव. शांतिदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (मुंढा जनम खोयो स्या माटे), ११३०५६-७(+#) औपदेशिक पद-द्रव्यमहिमाबोधक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (कोलाहल करे टका सिर), ११२८६१-१ औपदेशिक पद-धन, मु. दीन, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (रीपीआं तौकुं रंग है भगत), १०८६६०-३ औपदेशिक पद-नरभव प्रमाद, मा.गु., पद. ४, पद्य, मूपू., (खोयो रे गमार तें), ११५१८३-३ औपदेशिक पद-नवकारमहिमा, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुख को करणहार दुख को), ११४०६१-१३(+), ११४१३९-१६(+$) औपदेशिक पद-नवकारवाली, मु. हजारीमल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (माला प्यारी रे माला), ११११९४-४(+) For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद-नारीपरिहार, क. गद, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (धानरो करै कुधांन पीसती), १०७६४२-३ औपदेशिक पद-नारीपरिहार, क. जैत, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (वीसभुजा दशसीस कुं धारी), १०७६४२-४ औपदेशिक पद-नारीपरिहार, मु. भद्रसेन, मा.गु., पद. १, पद्य, मपू., (कांमनी की वात मानै जाकै), १०७६४२-१ औपदेशिक पद-नारीपरिहार, मा.गु., पद. २, पद्य, मूपू., (नाक नकेल गलै दीया फंदा), १०७६४२-२ औपदेशिक पद-नारीपरिहार, मा.गु., पद. २, पद्य, मूपू., (नारी के कारण रावण कुं), १०७६४२-५ औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (निंदरडी वेरण हुइ), ११३६७९-२($) औपदेशिक पद-परनारीपरिहार, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (परनारी सुमरख बोल हस हस), ११४१११ औपदेशिक पद-पाप, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (पाप ते बढे है कर्म कर्म), ११४१३९-१५(+) औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), १११७८८-१ औपदेशिक पद-मन, शंकर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (काया पेखि कुमन मच्छ तंदुल), ११३७२३-६(2) औपदेशिक पद-मन भ्रमर, मु. ज्ञानकुंजर, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (सकल संसार ज मोजि आगि), ११३७२३-३(#) औपदेशिक पद-ममता त्याग, मु. खेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मै मते मत किज्यो राज मन), ११०६९०-१ औपदेशिक पद-माया परिहार, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ४, पद्य, मूप., (माया काहे करे मुझ), ११४१३९-१(+) औपदेशिक पद-मायावी संसार, मु. राम शिष्य, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (एह जग सुपने की माया), ११२४०४-९(2) औपदेशिक पद-मूढ, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरे हो अग्यानी अभिमानी), ११४१३९-१२(+) औपदेशिक पद-वीतरागस्वरूप, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जोऊ जोग ध्यान धरै काहु), ११४१३९-१०(+) औपदेशिक पद-वृद्धावस्था, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (दांत डाड सब हालण लागा), ११०७६४-२() औपदेशिक पद-वैराग्य, मु. अमरचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (इस तन पिंजरे को छोड), ११०३५० औपदेशिक पद-वैराग्य, मु. चौथमल ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, स्था., (पंछी काहे कू प्रीत लगावे), ११३४२२-१३ औपदेशिक पद-शिक्षा, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (जागिरे अग्यानी जागि काहे), ११४१३९-६(+) औपदेशिक पद-संयमित वाणी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रावक थोड़ा बोलीजे), १११२९५-३ औपदेशिक पद-संसार, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (यों तोहे संसार रस विकार), ११४१३९-२(+) औपदेशिक पद-सासु वहु संवाद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (हुं आइती देवा ओलंबो सासु), ११३०५४-२(-) औपदेशिक पद-सुगुरु, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (गैर उपदेश हरे आगम अरथ धरै), ११४१३९-११(+) औपदेशिक पद-स्वभावमिलन, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जैसे घन घोर जोर आइ मिले), ११४१३९-१४(+) औपदेशिक पद-हितोपदेश, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (चौगति को फेर एसो पातज्यूं), ११४१३९-१३(+) औपदेशिक बारमासा, मु. लघुद, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (आज सखी आसुर अथिर संसार), १०७३२२-१(+) औपदेशिक बारमासा, मा.गु., गा. १३, वि. १९२०, पद्य, श्वे., (चेत कहे तुं चेतन), ११५०८३-४(+-) औपदेशिक रेखता, जादराय, पुहि., गा.५, पद्य, श्वे., (खलक इक रेणका सुपना), ११०७१०-३(+) औपदेशिक लावणी, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (खबर नही आ जगमे पल), ११२४०४-८(२) औपदेशिक लावणी, मु. ऋषभ, पुहिं., गा. ११, वि. १९१७, पद्य, मूपू., (सुकरत करले भाइ तोने कहे), १११५०६-२ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कब देखुं जिनवर देव), ११२४०४-५(#) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मप., (चल चेतन अब उठकर अपने), ११२३६८-१(#) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (पुन्यसु आय मिल्यो मोहे), ११२४०४-१(#) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (बीत गयो नरभव को अवसर), ११२४०४-४(#) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुकृत की बात तेरे), ११२४०४-२(#) औपदेशिक लावणी, मु. देवचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (चतुर नर मनकुं रे समज), ११३६८६-२(#) औपदेशिक लावणी, मु. नंदलाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जो भव सायर तिरै वृथा ही), १११०९८-१ औपदेशिक लावणी-दःख सुख, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (वणी वणी के सबे कोई साथी), १०७६९८-१ औपदेशिक विविध दृष्टांत गीत, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (देव नंदी अरिहंत सरीषउ), ११३३८०-२(2) For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ५४३ औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पांडुर पान थके परिपा), १११२५०-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. कुशल, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (परमहंस कुं चेतना रे), १०९९७१-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. कुसालचंद, रा., गा. १३, वि. १८८६, पद्य, मप., (ओतो विनोधरम जिनराज रो), ११३१२३-२(-) औपदेशिक सज्झाय, ग. केशव, मा.ग., गा.११, पद्य, श्वे., (चेतन चेत प्राणीया रे), ११३७१५-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. जगराम, पुहिं., गा. ६, पद्य, जै., वै., (मेरी मेरी करतां जनम गयो), १११२९४-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. जयतसी, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुधा साध निग्रंथ साध), १११५१३-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. जसरूप ऋषि, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मोहरू जीव हो जीवी तो न), ११४०२१-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. जिणदास, मा.ग., गा. ९, पद्य, श्वे., (इसो रे सुभटनर नीकसि अरि), १११४५८-२ औपदेशिक सज्झाय, श्राव. जिनबगस, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (तुक दिल की चसम खोल), १११२७९, ११३६४९-१३ औपदेशिक सज्झाय, मु. जेतसी, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (चेत चतुर नर कहते सतगुरु), ११३५७५-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. तीलोक ऋषि, पुहि., गा. १४, वि. १९४८, पद्य, श्वे., (ध्रिग तेरा जिवडा न करता), ११४०१८-५ औपदेशिक सज्झाय, मु. तेजसिंघ, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (पंचप्रमाद तजी पडिकमण), १०९६४४-१(#) औपदेशिक सज्झाय, ऋ. दलीचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (मनवा समज ले रे वीर), ११३५४१-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. धनदास, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (कौण वखत सोवन की बरीया भज), १११२९०-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (गरुरा क्या केरा), १११८८४-१(२) औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (जीतो रे चेतन मोह), ११३१०७-३(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. नंदलाल, पुहि., गा. ५, पद्य, स्था., (अवसर मत चूको मुगतिरो मेलो), ११३५१५-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. भाण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (मारग वहे रे उतावलो), ११३२६२-३(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. भावविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सासरडे इम जइ रे बाइ), १११९४४-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. भीमविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (मारग वहे रे उतावलो उडे), ११०५१८-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (चतुर विहारी आतम माहरा), १०७१६४-३(+#$), १०८४७५-२, ११४९५३-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. मलुकचंद, रा., पद्य, मूपू., (पांच सुखी मीलि मोहियो हो), १०८४०५-१(+-) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, पुहि., गा. ८, पद्य, स्था., (हां रे ए जग जाल सुपन), ११३४८८, ११३५७५-३, ११४५६०-३($) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (थारी फूल सी देह पलक), ११३५७५-४ औपदेशिक सज्झाय, श्राव. रामसिंघ, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (देख भाई दिल में सोच विचार), ११३५११-३(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (इथर संसार मर जावैणो मानवी), १११२०३-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (प्यारो मोहनगारो राज), १११९६९(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (वभीयणइ रीषभइ पडकमीय अरे), ११४९२०(+-) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २४, वि. १८०८, पद्य, स्था., (श्रीजिण दे इसडो), ११४९३५(5) औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मप., (जिणवर इम उपदिसै आगै), १०८८१३ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), ११३९६६-२, ११३९८२-२, ११५२४२-१३ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजे चरण), १०६७८०-३(+), ११३७३३-१(+#s), १०६६४३-१(६) औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (क्या करुं मंदिर क्या), ११४१९०-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (पांचे घोरो रथ एक), ११४९५३-६ औपदेशिक सज्झाय, मु. विसनचंद, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (समझ बूझ मन खोज पिया रे), ११११९६-१ औपदेशिक सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (सायु से दिल्लगा प्रानी), ११०४०६-३ For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८६९, पद्य, मूप., (आलै जनम महारो रे कीजै), १०७२०३ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,रा., गा. ६, पद्य, मपू., (स्वारथ की सब हे रे), ११३०५६-३(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (धोबीडा तुं धोजे मननु), ११३२६२-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. हरसुख, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (थोडो जगत मे जीवेणो रे हां), ११३५४१-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (संसार मै रे जीव दुख अपार), १०९६१८-१(+#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (अवगुण अंग न आणीय), १०९५८९-३(#) औपदेशिक सज्झाय, पहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (इहा तोरणा नही चालणदा कछु), ११४५६०-१ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (एह संसार खार सागर), ११२२०७-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (ओर संसार जीव कर रे सटापटा), ११३५१०-२०) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (कर्मतणी गतन्यारी कोइ पार), ११३५७५-७ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (किसी संग वीरवा न बोल), ११४०२१-२(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (खलक एक रेहन का सुपना समझ), ११३५११-२(-) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (चली जा चली जा रे), ११०१५७(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (चेतन ध्यान धरो), १११२९४-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (चेतन मान ले साढीया), ११३५११-१०) औपदेशिक सज्झाय, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (जेहवा वृक्ष सेवीइ तेहवां), ११००९०-३(#) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ९, पद्य, मपू., (तु मेर प्रीती साजना), ११४३९९-२(-#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देहे हंसै सुन हो नर मुरख), ११५०८३-३(+-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (ध्रगपडो रे संसार), ११३१८१-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नवो लोक जाणी करी कीजो जो), ११०२१४-१(+-#) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (पहला सीमरू० गुरुदेवकु), १११८८४-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (प्राणी पंच इंद्री), १०७६९८-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (बावा सुक्रसोणितनी देही आ),१११४५८-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (भवि जीवो आदिजिणेसर), १११४३८ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १३, पद्य, मूपू., (राजा पढे तो राजनीत मंत्री), १०६७४१-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वारी हूं तेरे वयणनी), ११५२२६-५(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (समज मननुं वरजावे रेलजु), १११२९५-२ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (समझ कहा सदगुरु की कहनी), १०८९१३-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (सुणए दासी रायाकी वात), ११३०५५-२(-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुणि मातवचन मुझि झंडा), ११३८१५-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (हटवाडो मेलो मड्यो), ११३४७७ औपदेशिक सज्झाय-अर्जुन, मु. अर्जुन ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३६, पद्य, मप., (अनंत चोवीसी आददे सकल जीवा), ११३१५१(#) औपदेशिक सज्झाय-असार संसार, पं. सोमविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आ संसार असार छे रे), १०९४२१-२(#) प्रतिबोध, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (मायाने वश खोटं बोले), १०९४१५-१ औपदेशिक सज्झाय-आत्मशिक्षा, मु. पासचंद, मा.गु., गा. ५९, पद्य, मूपू., (मानुष्यजन्म दुर्लभ हे), १०९२५० औपदेशिक सज्झाय-आत्मा, पं. विजयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (इम सद्गुरु जीवने समज), १०७५४७(#S) औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (आउखु तुट्याने सांधो), ११०५१२-२ औपदेशिक सज्झाय-कपट, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (इण कपटी मीन खरो वे सासने), ११३६७४-४ औपदेशिक सज्झाय-कपटोपरि, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २४, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (कपटी माणसरो विश्वास), १०८२५१-२(+) For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ औपदेशिक सज्झाय-कर्म, मा.गु., पद्य, मूपू., (चेतन पाप करे भाइ ए कर्म), ११३१८१-३($) औपदेशिक सज्झाय-कलियुग, हिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (जमाना आ गया खोटा वदी काम), १०८१८८-३ औपदेशिक सज्झाय-कायाकामिनीबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूप., (सुगुण सोभागी हो), १०६७८०-२४(+) औपदेशिक सज्झाय-कायाविषे, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (भुलो मनभमरा काई भम्य), ११३८२५-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (कडवां फल छे क्रोधनां), ११२७६५-१(#) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. दयाशील, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (सांभलि प्रीतम प्राणिया रे), ११५२२६-७(+) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ११०३८१(+), ११११६७(+$), १११९३०-१(+), ११२६३१(+$), ११२८६३(#$), ११४८६९(#) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गरभावासमे चिंतवइ है), ११३९८२-१ औपदेशिक सज्झाय-घडी, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (कुंजी ले दे घडी के चालने), १०८१८८-६ औपदेशिक सज्झाय-चेतन, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (चेतन अनंत गुणारो रे जाण), ११३५१३-१(-) औपदेशिक सज्झाय-चेतन, रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनपद वादजी भावसू), ११३०७५ औपदेशिक सज्झाय-चौपटखेल, आ. रत्नसागरसूरि, पुहि., गा. २३, पद्य, मपू., (प्रथम अशुभ मल झाटिके), ११०९०९-२(#) औपदेशिक सज्झाय-जिनभक्ति, आ. हर्षसूरि, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर नमी करुं रे), ११३४७५-२(+) औपदेशिक सज्झाय-जीव, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मन युं जीवनै समझाय), ११३९६६-१ औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वाणि तो सुणी श्रीजिन), १०९१४७-२ औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., पद्य, श्वे., (सकल नारिय जोउ विचारी), १११९४४-२($) औपदेशिक सज्झाय-जीवशिक्षा, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मपू., (बापडला रे जीवडला), ११४००३-१ औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. आणंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती विनवे), १११३७७-१(+$), १०९४२१-३(#) औपदेशिक सज्झाय-तमाकु परिहार, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती वीनवे), ११२८९९-२(5) औपदेशिक सज्झाय-तृष्णा, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (क्रोध मान मद मच्छर), १०६५३४-१५(#) औपदेशिक सज्झाय-तेरापंथी, श्राव. हीरालाल डारचंद, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (सासणनायक वीरजणंदजी जाने), १११६०७-२(+) औपदेशिक सज्झाय-दयाधर्म, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (तुं तो लख चोरासी), ११३०८६-१ औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. नरसिंग, मा.गु., गा. ९, वि. १८१९, पद्य, श्वे., (नवघाटी माहे भटकत), ११३१७३(#) औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. हीरा, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (नवघाटी उलंघन हो पायो), ११०६९०-२ औपदेशिक सज्झाय-नारी, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (नांनी सीक नाजकपना शाहजादी), ११०५७८-२(+) औपदेशिक सज्झाय-नारी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (हरहथी के कारणै, वलननसु), ११३८५२-२(+) औपदेशिक सज्झाय-निंदक, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २८, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (नवरो माणस तो नंदक), ११०७५२(+$) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (म कर हो जीव परतांत), १०८४०४-१(+) औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक काया दुजी कामनी), ११०३२३-२, १११७१५-२(#) औपदेशिक सज्झाय-परनारी, मु. सेवाराम, मा.गु., गा. ९, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (रावण मोटो राय कहीजे), ११०९१० औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंता रे सिख), १११२३३ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. जेतसी ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८७३, पद्य, मप., (कहै वभीषण सुण द्वो रावण), ११५०६०-१(-१) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, मपू., (तजो पर युवती पति प्रेम), ११३०५६-१०(+#) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुण चतुर सुजाण परनारीसुं), १०९४१५-२ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (रावण पणि खय गया माल पेखि), ११३७२३-४(#) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११३७२३-५(#) औपदेशिक सज्झाय-परलोक, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (मानव तुं परलोक रो कर साधन), ११४८९९(-2) For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-पार्श्वजिन चिंतामणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमनमोहन पार्श्व), ११३१६४-१ औपदेशिक सज्झाय-प्रमाद, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (दस दृष्टांते दोहिलो), १०८२४८-२ औपदेशिक सज्झाय-बहु, रा., पद्य, मूपू., (किस विध आउ जी माराजा घर), १११९२३-३(+#$) औपदेशिक सज्झाय-बारमासा, मु. जेतसी, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (--), ११३५७५-१(६) औपदेशिक सज्झाय-बारमासा, मा.गु., पद्य, मपू., (भवकजन सुण सतगुरु ग्याना), ११३७००-४($) औपदेशिक सज्झाय-बढापा, मु. सुखानंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (तेर सीर पर आया केस), ११४०१८-२ औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्य, मु. खीमसी, मा.गु., पद्य, श्वे., (देखो काम महाबल जोद्धा), ११३२०२-१(+) औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनाजी तुं तो जिन), ११३२१८-१(+$) औपदेशिक सज्झाय-मनवस, पंडित. हरसुख, पुहि.,रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (कुमत कु छोड दे भाई), ११३०१६-२ औपदेशिक सज्झाय-मनस्थिरीकरण, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (मन थिर करजो रे समकित), ११३१६४-२ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (रे जीव मान न कीजीए), ११२७६५-२(2) औपदेशिक सज्झाय-माया, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, स्था., (मोह माया मे मगन भओ मनमान), ११३३१८-१(६) औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (समकितनुं मुल जाणीये), ११२७६५-३(#) औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, ग. पद्मसुंदर, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (--), ११४७९६-१(+$) औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, इतर, मु., (भूलो ज्ञान भमरा कांई), १०६६६१-६(+), १०९४६८, १०६५३४-६(#) औपदेशिक सज्झाय-यौवन, मु. जुहार, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (जोवन जातां वारडी नही लागे), १११२९४-४(+), ११३१०७-४(-) औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपता त्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (बापलडी रे जीभलडी तुं), ११०९७५-१(+) औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपता त्याग, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बापडली रे जीभडली तुं ढाल), ११३१४६-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (तमे लक्षण जो जो लोभ), ११२७६५-४(#) औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मा.गु., पद्य, मपू., (श्रीवीतराग वाणी कहइ छइ), ११४७९६-२(+$) औपदेशिक सज्झाय-वणजारा, मु. जीवणदास, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्राणी वीणजारा वीणज), ११३९७२ औपदेशिक सज्झाय-वनमाली, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (काया रे वाडी कारमी), ११३८२५-१(+#) औपदेशिक सज्झाय-वाणोतरशेठ, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (सेठ भणे सांभल वाणोतर), ११३५१५-१ औपदेशिक सज्झाय-विषय, आ. पद्मचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (विषयतणां सुख पाडुआं), १०६५३४-१९(#) औपदेशिक सज्झाय-विषयराग निवारण, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, म्पू., (मन आणी जिनवाणी जिनवा), ११२१८२-१(2) औपदेशिक सज्झाय-वृद्धा, मु. विनयचंद्र ऋषि, रा., गा. १९, पद्य, श्वे., (आतो नाम धरावे माजी), १११३९७, १०७७९२(5) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. चौथमल ऋषि, रा., गा.७, पद्य, स्था., (समज मन कोई नहीं थारो), ११३४२२-६ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहि., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ११४०१७-२($) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज की काल चलेसी रे), १०६७८०-३८(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. सेवक, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (जिम पंखी वासो वसइ संसार), ११३१९३-२ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., गा. २४, पद्य, मपू., (ए ससार अरथ कर जाणो सुख), ११३८५२-१(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., पद्य, मूपू., (कक्का करत सदी फिर्यो), ११३८८०(+$) औपदेशिक सज्झाय-व्यसनवर्जनविषये, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जिनवाणी मन धरी), १०८२७५ औपदेशिक सज्झाय-शील, मु. कुमुदचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (सुणि सुणि कंता रे), १०९२५५-१(+$) औपदेशिक सज्झाय-शीलपालन, मु. चौथमलजी; मु. खुबचंद, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (सिलरतन्न का करो), १०६६६८-१६(-) For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्री शिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम शिखामण कही), १०६७८०-३६(+३) १०९२५५-२० ११०३१३(०) औपदेशिक सज्झाय-शोक, मु. भगवान ऋषि, रा., गा. २९, वि. १८८५, पद्य, श्वे., (समरुं श्रीजिनराजनै), ११३८४५-१(+) औपदेशिक सज्झाय श्रावक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (सनी सरावका चोपरी धारीक), ११०७४४/-) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय-श्रावक धर्म, मु. चोथमल, पुहिं., गा. २६, पद्य, श्वे., (सतगुरु देव सिख प्रभव), ११४०१८-६ औपदेशिक सज्झाय-संयमव्रतपालन, मा.गु., गा. ५७, पद्य, मूपू., (--), १११२८९-१($) औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (वीर जिणेसर गौतमने) ११०२३६-१(०) औपदेशिक सज्झाय-समता, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., ( देहकुट बधन कारिमु), ११३१९३-१ औपदेशिक सज्झाय सात व्यसनत्याग, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु.. गा. १०, पद्य, मूपू., (वार तु वार तु), १०६७८०-२२(*) औपदेशिक सज्झाय साधु आचार, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपु. (साधुजी है पर उपगारी रे) ११२४०४-१०(१) औपदेशिक सज्झाय-साधुगुण, रा. गा. ११, पद्य, वे (चोरासी लख जोनमे रे), ११३५९८-२ " " औपदेशिक सज्झाय-साधु दान, मु. धीर कवि, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (नहीं आरंभ गृह काजि नही), ११११४० (#) औपदेशिक सज्झाय साधुधर्म, मु. चोधमल ऋषि, रा., गा. १३, वि. १८६२, पद्य, खे, (मुगत जावणारो रे मारग), ११११०३-१, ११०७२५ (म) औपदेशिक सज्झाय-साध्वी, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २३, वि. १८३६, पद्य, श्वे. (थे सुणजो हे आरजीयां), ११०७४१, ११३०९६-१ (#$) "" ५४७ औपदेशिक सज्झाय सासुबह, मु. देवाब्रह्म, मा.गु., गा. १७, पद्य, मृपू., (सासु कर बहुसुं वात), १०९३५१(००) ११००८४-१ औपदेशिक सज्झाय-स्त्री कथला, श्राव. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (पुण्यकारण पाखीनें दि), ११४७४०-२ औपदेशिक सवैया, क. गंग कवि, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., इतर, (पिया न पिया लिया न लिया), ११४१४३-३ औपदेशिक सवैया, क. गद, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (मधुमाखी बहु बाल रातिदिन), १११०९९-४(+) औपदेशिक सवैया, मु. धर्मसी, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (खोद कोदाल छे सडिएरा सब), ११२६८४-७(#) औपदेशिक सवैया, मु. नंदलाल, पुहिं., सवै. २, पद्य, श्वे. (कुंजर कुं देखि जैसे रोस), ११३६६९-१(+) औपदेशिक सवैया, मु. बनारसी, पुहिं., पद्य, श्वे., (जगत के प्राणी० गुमानी एसो), १०९०४५-२($) औपदेशिक सवैया, जै. क. बनारसीदास, पुहिं. गा. १, पद्य, दि., (कंचननि भंडार पाय रंचन मगन), ११४०६१-१७(+४) औपदेशिक सवैया, जै. क. बनारसीदास, पुहिं. सवै ३३, पद्य, वे (--), १९४९८७(+) श्वे., औपदेशिक सवैया, मु. रामभगत, मा.गु., गा. १४, पद्य, खे (कियो नारसु अव हेत मात), ११४३६३-२(५) औपदेशिक सवैया, मु. संग्रामदास, रा. गा. १, पद्य, श्वे. (कहै दास संग्राम काम), १११२२१-४(+) औपदेशिक सवैया, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (अकल बड़ी संसार अकल आपदा), १०७४१३-१ (कपडी की रूस जाणे), ११४०६१-३ (+) वे औपदेशिक सवैया, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे. औपदेशिक सवैया, मा.गु., सबै १, पद्य, (घटा घनघोर जामै चमकत है), ११०५७८-३(०) औपदेशिक सवैया, पुहिं. गा. ३, पद्य, श्वे. (जब फलास फूलन कु आवे पातर), ११०६५०-२ औपदेशिक सवैया, पुहिं. पद. १, पद्य, वै., इतर (जीन कुं हुवा कपखान), १९२६८४.९(३) औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, वै., इतर (नृप मार चली अपनें पीउपें), ११५०६२-३ (+) औपदेशिक सवैया, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै., वै., इतर ?, (पहेलो पोहोरो मूज दीवसनो), १११८९९-४ औपदेशिक सवैया, पुहिं. मा. गु., गा. ३१, पद्य, मूपू (सास बता सब आस करै सासमि), १०९६८३ औपदेशिक सवैया, पुहिं. गा. १, पद्य, वे (सीखीये संसार रीत कवित नाद), ११४०६१-४(०) औपदेशिक सवैया, पुहि, सबै ४, पद्य, थे. (स्वारथ के साचे), १११२२५-२ औपदेशिक सवैया, पुहिं. गा. १, पद्य, वे (-). ११२६८४-६ (०३) "" "" औपदेशिक सवैया - अनित्यता, पुहिं, गा. १, पद्य, श्वे. (वाट को बैटउ सोव देसी आण), ११४०६१-७ (+) औपदेशिक सवैया-अल्पायु, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (तेरी है अल्प आउ तुं तो), ११४०६१-१२ (+), ११४१३९-५(+) For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सवैया-ज्ञानादि वृद्धि, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (ज्ञान वधें नर पंडीत संगत), ११५०६२-२(+#) औपदेशिक सवैया-दृष्टांतगर्भित, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., ( करत करत धंध कछु न जाणे), ११४०६१-६ (+) औपदेशिक सवैया-धर्मप्रीति, मु. जिनहर्ष, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपु., ( जैसी तेरी मति गति रहत), ११४१३९-८(+) औपदेशिक सवैया- पुण्य पाप, मु. भ्रमसीह, पुहिं सबै १, पद्य, मूपू., (एक के पाव अनेक परे अरु एक), १११०९९-३(+) औपदेशिक सवैया-माया परिहार, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे. (नंदण की नवे निधान वीसल की), ११४०६१-१६(+) औपदेशिक सवैया-वंदनमहिमा, पं. खुस्याल, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., ( साधन से धुमधाम चोरनका करे), ११४०६१-१५ (+) औपदेशिक सवैया व्याज उधार, मा.गु., पद्य, मूपू. (एकम सवाडा ने काजें मुलतो), ११५०६२-१(०३) औपदेशिक सवैया संग्रह, पुहिं., पद. ६, पद्य, मूपू., (सूर छिपें घन वादलथें), ११३८८५-५ (+$) औपदेशिक सवैया स्त्री, पुहिं. पद. १, पद्य, वे. (ग्यानी हु का म्यान), १९४६९८-२ "" औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( उठी सवेरे सामायिक), १०९२३९(+) (२) औपदेशिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक भव बाल्यक बीजो), १०९२३९(+) औपदेशिक हरियाली, मु. गुणविजय, मा.गु. गा. ८, पद्य, मूपू. (एक पुरुष अति दीपतो रे) १११३९६-२ औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहेयो रे पंडित ते), १०९४८१-१ (+), ११४८५९(+), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११०४१३ (२) औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दिसे जाणि ते चेतना), १०९४८१-१(+$), ११४८५९(+) औपदेशिक हरियाली, मा.गु., पद्य, श्वे., (डूंगर कडखे घर करे सरली), ११४४८२(#$) " वदेशिक गीत माया, उपा. समवसुंदर गणि, पुहिं, गा. ३, पद्य, म्पू, (जीव विमास नहीं कुछ), ११३०५६-४+६ औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (घोडानें चर्म पड्या), १०९०३५-७ (+$), १०९८३५-३ (+#), १०७२४६-४, ११४१०२-३(#) औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (लूंग टा१ जाईफल टा२), ११३१३१-३ (+), १०८८३५-३, १०९२५७-२, १०९८१९-३, १११९०८-३, ११३२७१-२, ११३४५३-३ कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., ढा. २७, गा. ४३, पद्य, श्वे., (गाफल मत रहे रे मेरी), १०७४९९($) ककबत्तीसी, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कका कहा कहुं किरतार), ११०२७५(क) ककाबत्तीसी, पुहिं., गा. ३२, पद्य, श्वे. (--), ११३७८९(+$) " कक्कसूरि गुणाष्टक, मा.गु.. गा. ८, पद्य, मूपु (जे आराध्या तुम एक). १९१३७६ कक्कावत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, म्पू. (कका करमनी वात करी). ११०३३१, १११६९२ (३), १११८१८(३), ११३६८१-१ ($) " कक्कावत्रीसी, पुहिं. गा. ३३, पद्य, छे., (कका कर कुछ काज धर्म), ११२०३१ (६) कक्कावत्रीसी, मा.गु. गा. ३४, पद्य, वे (कका क्रोध निवारी) ११२२८०-४(३) "" कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., गा. २९, पद्य, श्वे., (महिला में बेठी राणी), १११९०१($) कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (कहे राणी कमलावती), ११५०४३-२(०) " कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक ), १०६६४८($) (#S) कयवन्ना चौपाई, मा.गु., पद्य, थे. (सासण नायक समरीये), ११४७७५ (०६) कयवन्ना चौपाई-दानाधिकारे, मु. समयप्रमोद, मा.गु., गा. २५५, वि. १६६३, पद्य, मूपू., (--), ११२८९६ (#$) करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. ६, पद्य, मूपू. (चंपानगरी अतिभली हु), ११४०१६-३ कर्मछत्रीसी, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पच, मूपू (कर्म थकी छूटे नही), १०७०४४-१ कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मृपू., (श्रीसहरु प्रणमी), ११४७९५-२, ११३९०४(३) कर्मविपाकफल सज्झाच, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू. (देवदाणव तीर्थंकर), १०७१८० (+०) १०९४७१-१(+०), ११२८७०, ११२१०२(३) कर्महींडोल सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कर्म हींडोल नामाई), ११४८४१-१ कलियुग लक्षण, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (घर की कह्या न माने साधो ), ११००८४-२ For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ कलियुग वर्णन दोहा, पुहिं., दोहा. १, पद्य, श्वे., (चलतीकुं गाडी कहे आवतकुं), ११४३१२-२ कलियुग सज्झाय, मु. करमचंद, पुहिं. गा. ११, पद्य, थे. (वारौ कूडो कलियुग आयो), १०९६४४-२ (#) " कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु. गा. १२, पद्य, मूपू (सरसति सांमणि पाय). ११५२४२-७ कुगुरु सज्झाय, मु, साधुजी ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, वे. (गुरु तारे ज्वारा आधा दीसे) ११०६९९ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणविजय गुरुगुण स्तुति, मु. कल्याणविजय - शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मनवंछित पूरण कल्पतरु), ११२४०१-२ कल्याणसूरि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( वीतरागपद वंदीयै), ११३८३२-२ (+#) काउसग्ग १९ दोष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा. गु, गा. १४, पद्य, मूपू., (सकल देव समरी अरिहंत) १०६७८०-१८(+) कागस्वरसकुन विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर (ग्रामांतरि चालनां). ११००३१(७) " कान्हडदृष्टांत सज्झाच, मु, गुणविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (वीरजिनवर रे गोयम गणधरने) ११४१४३-१ कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (एक दिन इंद्रे), ११२८७१ कायावाडी सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कायावाडी कारमि सिचंत), १११२९७-२ कायोत्सर्ग दोष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, श्वे. (कवि कहइ घोटक लक्षण), १९३७५०(mm) कालीसती सज्झाय, मु. नंदलाल शिष्य, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (काली हो राणी सफल किय), १०७२४९ काशीविश्वनाथ लावणी, चिदानंद, पुहिं., गा. १०, पद्य, वै., (विश्वनाथ विस्वशर होए रे), १०६५०७-५ कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहिं. गा. ७४. वि. १९३१, पद्य, वे (श्रीआदि जिनेश्वरू), १९४०५३-१ (+०३), ११०३२०-१ " कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (कीरतधज राजान सूरज), ११४५५२ (+) कुंडलियाबावनी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु. गा. ५७, वि. १७३४, पद्य, मूपू (ॐनमो कहि आदिथी अक्षर), १०९६७६ (*) , कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपु., (जिनवर प्रणमी सदा). ११०१९९(०), ११३९८४(+३), १०९४७० " ५४९ For Private and Personal Use Only कुमतिसंगनिवारण जिनविंवस्थापना स्तवन, श्राव लयो, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू, (श्रीजिनपंकज प्रणमीने), १११५१३-१(०) कुरुकुल्लादेवी आराधना विधि, मा.गु. प+ग., म्पू., (--), ११४४४० (३) कुशलसूरि गीत, मा.गु, गा. ६, पद्य, भूपू (सेवक घारा सदा सुखी हो), १९३८१४-२(१) कृष्णजन्म कवित्त-कटिबंध, पुहिं., पद्य, वै., (जदा अवतरि यदुराज्ये तब), १०९४६३-४-*) कृष्णभक्ति गीत, क. नरसिंह महेता, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (वाटडी जोउं घरि घरि आवो), ११२१८२-२(#) कृष्णभक्ति पद, क. नरसिंह महेता, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (गुजरी बोलाइ न बोले हो), ११०७१०-२ (+) कृष्णभक्ति पद, वसंतराय, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., (दमरी न होती जिहां कोटि), ११२८६१-३ कृष्णभक्ति पद, सूरदास, पुहिं. पद. १३, पद्य, वै. (--), ११३७१५-१(+३) "" कृष्णभक्ति सवैया, पृथ्वीराज, पुहिं, गा. १, पद्य, वै., (भ्रूणी दिन दिन धुरत् फपरत), ११२६८४-३(१) कृष्णभक्ति सवैया, पुहिं. गा. १, पद्य, वै., (सजलसी नीसी कजलसी नीसी) १९२६८४-४(१) कृष्णमहाराजा लावणी, मु. हीरालाल, रा., पद्य, स्था. (कृष्णमुरारी महाजस), १०६६६८-४) कृष्णराजा बारमासा, मु. कुसलसमय, मा.गु., गा. १२, पद्य, ओ., (गुडलाबाद गरजीया काली). १११६४० कृष्णराधारुक्मणी गीत, पुहिं., गा. ७, पद्य, जै. वै.? (हे देखी म्हरे० राधाजीरौ), ११०७३९-२(१) कृष्णराधा होरी पद, राम, मा.गु., पद. ५, पद्य, वै., (मेरे संग की सब वन आइ), ११४६११-८(#) कृष्णरुक्मिणी सज्झाय - ढालसागर, रा. डा. १, गा. २२, पद्य, श्वे. (सुण रुषमणए मानेति तु), ११३१७६ " " कृष्णवासुदेव लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ४, वि. १९६२, पद्य, स्था., (एक दया धर्मकी जाहाज पार), १०६६६८-१२) कृष्ण सज्झाय, मु. नंदलाल शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे (पुरसीतम प्रगट्या, १०८८६८-१ " केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू. (ए दोय गणधर प्रणमीये), ११०२९२(१) केशीप्रदेशीराजा सज्झाय, पुहि., गा. १४, पद्य, मूपू., (जैसे लोहे पारस मिल्या जी), १०९७४७ " कोटिशिलातीर्थ विधि, मा.गु., गा. ६, प+ग., मूपू., (कोटिशिला उपर छ तीर्थ), ११०४४७ क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), १०९४५७(+), ११०४२६(*), ११३७४३-२(+), ११३९३८- १(+३), ११४००५ (+), १९४१८२-२ (०३), ११३३२१-१(३) Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ יי क्षेत्रपाल छंद, माधो, मा.गु., गा. ५, गद्य, वै., (धूवै मादलां मृदंग), १११०६९-२(#) क्षेत्र वर्गफल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (जेतला योजननुं चोरस), ११५२२८-४ खंडाजोयण द्वारविचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंडा १ जोयण २ वासा), ११३६४५-१(#$), ११४१७६(#) खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा. डा. ४, वि. १८९१, पद्य, स्था. (नमुं वीर सासनधणीजी), ११२५१०-१(8) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י' खंधकमुनि चौढालिया, रा., ढा. ४, वि. १८११, पद्य, श्वे., ( नमूं वीर शासनधणी जी), ११३८३३(#) खंधकमुनि चौडालियो, मु. संतोषराय, मा.गु., डा. ४, गा. ५३, वि. १८०५, पद्य, झे. (आदि सिद्ध नमोकार), ११५०४१-१(३) " खंधकमुनि सज्झाय, रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर पाय नमुजी), ११४१३६ (#$) खरतरगच्छ तपागच्छ विवाद पद, रा., पद्य, मूपू., (प्रणमु भविचारथी ध्यान धरु), ११३१५० ($) खरतरगच्छराज जिनसुखसूरि मजलस, पुहि. रा. पद्य, भूपू (अहो आओ बेयार बेटो), १०९६५३(+) खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं अरिहंतने ), ११४०११ खुम्माण कुवर बारमासा, ग. दलपतविजय, रा. डा. ७, गा. २६, पद्य, मूपू., (--), ११४१५५ (०३) "1 खेटसिद्धि शुद्धिकरण उपाय, मु. महिमाउदय, पुर्हि, गा. ४५, वि. १७३१, पद्य, म्पू, इतर (चिदानंद चित मै धरी), ११०३३७-१(+) खेतसीस्वामी ढाल, रा., ढा. १३, वि. १९०५, पद्य, श्वे., (नितप्रति धर्म ध्यान चित), १०६७८१-१ गंगादि नदी परिवार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गंगा नदीनओ परिवार सह), १०९०२३-३(+), ११५१८९-२(१) गजसिंहनृप रास-सीलमहात्म्ये, मु. देवरत्न, मा.गु., खं. ४ ढाल ५१, गा. १५००, वि. १८१५, पद्य, मूपू., (प्रथम इष्ट पदेष्ट), १०७१६५ (+१३) (२) गजसिंहनृप रास - सीलमहात्म्ये- टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू.. (प्रथमथी पार्श्वदेवने), १०७१६५ (+४३) गजसुकुमालमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., डा. ३०, गा. ५००, वि. १६९९, पद्य, भूपू (नेमीसर जिनवरतणा चरण), १९३७९४०३) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, कविअण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एहवा एहवा मुनीवर मे), ११०२४५ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, थे. (गजसुखमाल देवकीनंदन), १०८२४९-१ श्वे., गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु. डा. ३, गा. ३८, वि. १८वी, पद्य, मपू., (द्वारिकानगरी ऋद्धि), १११३४९-३+३) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, वे., (श्रीजिन आया हो सोरठ), ११३२१०-२ (+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. लाल ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, खे. (वासुदेवजी का दीकरा रे), ११५१७४-२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., सोरठ देश मझार), १०९९७० (+), ११३९४० (+), , ११४११७(+#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हा जी सीर जलत अंगीठी), ११३६५७-२ गणपति वंदन गाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., (पुत्त तसु गणपति पासे कर), ११३६७१-२ गम्मा यंत्र - जीवादि चोविसदंडक, मा.गु., गद्य, खे, (संख्याता जीव उपजे ते), १०६६१९-१, ११०४५४(०) " गरोली विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. इतर. (गाम चालतां आगल स्वर), १०८५१७-३(+) " , गर्भगत जीव विकास विचार, मा.गु., गद्य, मूपु., (स्त्रीनो रक्त पुरुष नउ), ११४३३९-१२ गाय अर्जी-अंग्रेज, पुहिं., गा. १०, पद्य, ओ., (सुणो सुणो अंगरेज बादर गउ), ११०७६४-१(१) गिरनारतीर्थोद्धार रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १३, गा. १८४, पद्य, मूपू., (सयल वासव सयल वासव), ११५१०८($) गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., अ. ४, गा. ४२५, वि. १५७२, पद्य, मूपू., (शशिकरनिकर समुज्वल), ११४९७३ (+$), १९४१६४ (०३) गुणसागर चोढालियो, मु. इंवचंद्र, पुहि., डा. ५, पद्य, मूपू., (वनीता नगरी हूती अरीसेण), १०७००२-२ " गुणावलीराणी लिखित पत्र, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. १, गा. ३३, पद्य, भूपू (श्रीवरदा जगदंबिका शारदा), १०९७८५ (६) गुरुगुण गहुंली, जै. क. भूधर, पुहिं., गा. १३, पद्य, दि. ?, (ते गुरु मेरे उर वसे), १११३७७-२ (+), १११८६१-४(#) गुरुगुण गहुँली, पं. विवेकधर्म, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपू., (आज कलपतरु फल्यौ मुझ), ११४९४२(४) गुरुगुण गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (चरण कमल सुसोभता व्रत) १११९७१-३०), ११३१३१-२(५) " For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ५५१ गुरुगुण गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सुकृततरूनी वेल), १११९७१-४(+) गुरुगुण गहंली, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मप., (श्रोता रे सुणो गुरु), १०९४२३(+) गुरुगुण गीत, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पगलाटक ने कहजो मारी वंदना), ११४३७५-२ गुरुगुण पद, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कीजिये प्रतिपाल सद्गुरु), १०६७०२-१६(+#) गुरुगुण सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (आज नैणभर मुख निरख्यो), १११०८० गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कलजगि कलपवृख्यमइ दिठा), ११३७२३-२(# गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (जंबूद्वीप सारासीरजी भरत), १०८०६८-२ गुरुगुण स्तुति, मु. जसरूप ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सेवा करजर भाया पुनजोग), ११०३०७-१ गुरुणी गुण लावणी, रा., गा. ५, वि. १९००, पद्य, श्वे., (सांसणरा सिरदार मुगत का),११११६४ गुरुदेशना पद, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वरषित वचन झरी हो), ११३६४९-१६ गुरुवाणी गीत, मु. शंभुनाथ, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (पुज्यजीरी वाणी प्यार), ११०१६१-२ गुरु सज्झाय, ग. मानसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (सकल मनोरथ पूरवा सुरत), १०९५५०(#) गृहगोधा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (घिरोली जो माथै पडि तो), १०७२८६ । गोरख महर्तयात्रातिथि पत्र, मा.गु., गद्य, वै., (एकमथी ते बारस सुधी दिवस), ११०४३७-१ गोराबादल रास, श्राव. जटमल नाहर, मा.गु., गा. १४६, वि. १६८०, पद्य, जै., (चरण कमल चितलाय कै), १०६७४१-१(+) गौतमगणधर गहंली, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरी रे वने आव्या), ११४६६३-५ गौतमगणधर सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (भगवंत वाणी वागरी जिणवाणी), ११२९२७-१(+-) गौतमस्वामी अष्टक, मु. धीरविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (पहिलो गणधर वीरनो रे), ११४९५५-४(#) गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (प्रह ऊठी गौतम प्रणमी), १०७१९७-१, ११४०३६-२, ११०६३४($) गौतमस्वामी गहंली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (राजगृही उद्यानमा गुर), ११४८६१-१(#$) गौतमस्वामी गहंली, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (वालो माहरो वाहि छे वांसली), ११३१३२-२ गौतमस्वामी छंद, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (इंद्रभूति गौतमस्वामी), १११०८७-१ गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष्य), ११४८१९-१(+#), १०८८३२, ११०६३५-१, ११३४९५, १११५०५-१(#$), ११३४२५(#$) गौतमस्वामी छंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (गौतम आव्या वाद करेवा), ११४८१९-२(+#) गौतमस्वामी रास, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ५, गा. ६७, पद्य, मप., (वीर जिणेसर चरण कमला), १०६९६५(#$) गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), १११०९०-१(+#$) गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १४, वि. १८३४, पद्य, स्था., (गुण गाउ गौतम तणा), ११३७४६(+), ११५१४२(2), १०६७८१-३($) गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ११३९०६($) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमला), ११५०९४(#$), ११२५७७(६), ११३९३७($) गौतमस्वामी रास, श्राव. शांतिदास, मा.गु., गा. ६६, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सरस वचन दायक सरसती), ११३०८३ गौतमस्वामी रास, मा.गु., ढा. ६, गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर चरण कमल), १११९६४(६) गौतमस्वामी रास-बृहत्, मु. उदयवंत, मा.गु., ढा. ६, गा. ६३, पद्य, मप., (वीरजिनेसर चरणकमल कमला), १०६७०२-१(+#) गौतमस्वामी सज्झाय, मु. धनदास, पुहिं., गा.८, वि. १९१९, पद्य, मपू., (प्रात उठकर सुमरण किज्यौ), १११२९०-२ गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभाते गोतम प्रणमी), १०६७०२-६(+#), ११०९५४(#) गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (गौतम नाम प्रभात जपो),११३६३८-२ गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामी तणो अंगुठो), ११३६३८-३ For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ग्रामनगरराजामंत्रीसभादि विविध पदार्थ वर्णन विचार, मा.गु., पद्य, मूपू., इतर, (--), ११४९९३(+$) घंटाकर्ण मंत्रसाधन विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (धतुरा धुतारा धरति), १०६९४२-२(+) घडपण सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (घडपण तुझ केणे तेडिओ), ११३७४०-१(+#) घनकरण विधि-क्षेत्रमान, रा., गद्य, मपू., (२५६ दोइसै छपननै दोइसै छपन), १०८९३० घाणेराव शहरवर्णन छंद, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., इतर, (समरत सरसति सामनी गुणपति), १११८४१-१(#$) घातचंद्र विचार सवैया, केशव, पुहि., गा. १, पद्य, वै., इतर, (घातचंदक होए ते सुण हो), ११२६८४-८(#) चंडपिंगलचोर कथा-नवकार विषये, मा.गु., गद्य, मप., (वसंतपुर नगर जितशत्रु), ११३२१२-२(#$) चंडप्रद्योत कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्मपुरननगर धर्मराजाने), ११३५२१-१ चंदनबालासती गीत, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मपू., (कांसांबिते नगरी पधार), ११००२४(+) चंदनबालासती रास, ग. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, गा.७२, वि. १७६४, पद्य, मूपू., (प्रणमी प्रेमें सरसती), ११४६०४(+) चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (बालकुंआरी चंदनबाला), ११०२९१ चंदनबालासती सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (दधिवाहन पुत्री जाणी जिणरी), ११२१९२-२ चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहिं., अ.५, गा. १९९, पद्य, मप., (स्वस्ति श्रीविक्रम), १०६७४०, ११०७४३(#s), ११०९४९(5) चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., गा. १२५, पद्य, मूपू., (समरु सरसती मात मनाय), ११४६३९(#$) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. चिमन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीचंदाप्रभु० आइजो मोह), ११०५१९-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभु प्राह), ११०४७८-१ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जैत, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीचंदाप्रभु जिनवर), ११२७६७-२(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. नगजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (चंद्रप्रभु जिनराजजी रे), ११३६८१-३ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५४, पद्य, स्था., (चंद्रप्रभु चितमोह), ११३४२२-११ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (चंदपुरी नगरी अतिसुंदर), १०८९०३(-६) । चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे.?, (सयो मोरा चंदराएण जिण), ११३०८८-१(+#) चंद्रप्रभजिन स्तुति, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (चंदकला बिणचंदपुरी पतिचंद), ११४५८०-३(+) चंद्रप्रभजिन होरी पद, मु. अबीरचंद, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (होरी कहा तें धूम मचावे रे), ११५१७३-२ चंद्रयशाजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूप., (चंद्र यशाजिन राजीओ), ११४३९५-१(#) चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मपू., (प्रथम धराधव तीम), १०६८२८(+#), १११२२३(६), ११५२२१(६) चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मपू., (श्रीजिननायक समरीइं), ११३३१५(६) चंद्रराजा लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., वि. १९५६, पद्य, स्था., (मुनिसुव्रत माहाराज), १०६६६८-३(-) चंद्रसूर्यसंख्या विचार-विविध द्वीपसमुद्रे, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ जंबूद्वीपे २ चंद्र), १०९०२३-१(+) चंद्राननजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नलिनावती विजये जयकार), ११५२४२-५ चंद्रायणा, मा.गु., गा. १५, पद्य, ?, (सिध श्री हेतप्रीत), ११३१२७-५ चक्रवर्ती जन्मस्थल माता-पितादि विचार, मा.गु., को., मप., (भरत ऋषभ सुमंगला), ११३८६२ चक्रेश्वरीदेवी गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (अलबेली रे चक्केसरी), ११३५५२ चक्रेश्वरीदेवी छंद, शंकर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मा चक्रेसरी सिद्धाचल), १११४०५, ११३२८२-३ चक्रेश्वरीदेवी स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (देवीचक्रेश्वरी आनंदकारी), ११४६६३-४ चतुर्थीतिथि चंद्रयोग पद, मु.खेम, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., इतर, (चुथिया चहचंद मंदिरा राजा), ११३६७१-१ चतुर्थीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सर्वारथसिद्धथी चवी ए), १०९४०४-२(#), १११६५५-१(#s) चतुर्दशीतिथि स्तवन, मु. हर्षचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (भविजन हो भविजन हो चउदस तप), ११४११२ For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ चतुर्दशीपक्ष निरसन पूर्णिमापक्ष मत स्थापन विचार, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (दीवाली कल्प मध्ये अमुक), ११३५५३(+) चरखा सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुण चरखा वालि चरखो), ११०७६८ चरणसित्तरी के ७० व करणसित्तरी के ७०बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (५ महाव्रत १० जतिधर्म), १०९०७८-३, ११४१९५-६(2) चातुर्मास में ५ प्रकार से साधुविहार कल्प, मा.गु., गद्य, पू., (तथा पांचे प्रकारे चउमासाम), १०९१४६-२ चातुर्मासिक व्याख्यान*, रा., गद्य, मूपू., (पंचापि परमेष्टिन), १०७१२७(+#) चारित्रमनोरथमाला, मा.गु., गद्य, जै., (--), प्रतहीन. (२) चारित्रमनोरथमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावक ग्रहस्थ वासमा), १०६८६२-१(+$) चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहि., गा. ५७, वि. १७४८, पद्य, मपू., इतर, (चरण चतुरभुज घाईऐ चित), १०९४७३(+), १०८७६८(६) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), ११४४२६-४(+$) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (बांधव बोल मानो जी), ११३९७०-१(#$) चेडाराजा की सात पुत्री नाम, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चेडाराजानी सात बेटी ते), ११०९७५-३(+) चेतनबत्रीसी, मु. राज, मा.गु., गा. ३२, वि. १७३९, पद्य, मप., (चेतन चेत रे अवसर मत), ११३६०७-१(+$), १०८२०१(#), ११४७९९-१(२) चेतनसुमतिमिलन सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (अवीनासीनी सेजडीई), ११३९०८-२(#) चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो ते), १११३९८ चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १३, पद्य, श्वे., (चोवीसमा महावीरजी), ११११५७-१(+) चेलणासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८४६, पद्य, स्था., (चेडा राजा रे बेटी सात हुइ), ११३७५३-१(+) चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), १०६६६१-५(+), १०८२९६, १०६५३४-५(#), ११३१०६-३(#), ११३११०-२(#), ११३३६८-२(#) चेलणासती सत्तरढालियो, मा.गु., पद्य, म्पू., (--), ११३५२८-२($) चैत्यपरिपाटी स्तवन-बीकानेर आठ जिनालय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चैत्यप्रवाडै चौवीसटै), ११३७२९-२(#) चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., चैत्यव. २४, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंत नमु), ११३१९१(६) चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., चैत्यव. २५, गा. ७५, पद्य, मप., (प्रथम नमुं श्रीआदि), १०८८९८(६) । चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., देवजो. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रतिमा ४ माडी), ११३४५२(६) चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, पं. लब्धिविजय गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल सुंदर), ११०३१० चैत्रीपूर्णिमा पूजाविधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलउ आखा चंदनादिक), ११३६६७-२ चोघडीया चक्र, मा.गु., गद्य, इतर, (उद्वेगवेला चलवेला), ११३८२५-३(+#) चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), १०६९९४(+), १०६९८६(5) छट्ठतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (श्रीनेमि जिणेसर लैं), १११६५५-३(#) छिनालपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूप., (परमुख देखी अपण मुख), ११०५७८-१(+) छिनालपच्चीसी, मा.ग., गा. २५, पद्य, मप., (पाछो जोवे पेडे चलती),१११६५०(#) छींकदिशाफल विचार, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (पहिलई पूर्व दिशि छींक), १०८८१६-२ छींक निवारण विधि, मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम ईरियावही पडिक्), १०९४४३-४, ११०३२४-३, ११२८०९-२ छींकविचार*, मा.गु.,गु., पद्य, श्वे., (छींक थई मन धीर थयो), ११३६८५-३ छींकविचार सज्जाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (छींक शुकननो कहुं), १०८८१६-१ छींक शकुन विचार, पुहिं., प+ग., इतर, (कहे पंडित छींक की बात), ११४६८३-२ छींक शकुन विचार, रा., गद्य, इतर, (रविवारे पूर्व दीसा), १०७१६४-४(+#) जंगमस्थावर जीव सवैया, मु. बनारसी, पुहिं., सवै. २, पद्य, श्वे., (जे ते जगवासी जीव थावर जंग), १०९०४५-१ For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जंबूकुमार सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (नयरी राजग्रही जाणीइ ऋषभदत), १११८८९-२ जंबकुमार सज्झाय, मु. कुशलचंद ऋषि, मा.गु., गा.१८, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (राजगरी नगरीरो वासी), ११३०५४-१(-), ११५०६०-२(-#s) जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूदीपमइ १८४ माडला), १०८३९७-२(+) जंबुद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, मा.ग., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप एक लक्ष), १०६८७६-३(+#$), १०९२६७-१(+), १११२२२(#$), ११२११०) जंबद्वीप जिनसंख्या परिमाण स्तवन, पं. ज्ञानप्रमोद, मा.ग., गा. ६, वि. १८४१, पद्य, मप., (चुरासीलाखने चुरासीलाख), १११५६१-२ जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीप लांबो पहुल), ११२०९०(+$) जंबूद्वीपादि परिधि परिमाण, मा.गु., को., मपू., (--), ११३१३४(+) जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., ढा. १३, पद्य, मूपू., (पहिली ढाल सोहामणी), ११४५४३ जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमु हो के), ११३७५३-२(+$) जंबूस्वामी ढाल, मु. चोथमल, मा.गु., ढा. १, गा. १९, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (साहजी रे घर बेटो), ११३७००-१ जंबूस्वामी भास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जाउं बलिहारी जंबू), ११५२४२-१० जंबूस्वामी सज्झाय, मु. कनक, मा.गु., गा.११, पद्य, मप., (पभणे रे जंबु सुण मो),११४२५८-१(२) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. कनीराम ऋषि, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (राजग्रही नगरीनो बासी), ११४१४० जंबूस्वामी सज्झाय, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (महावीर सीस सुजाण रे), ११३७२४(#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे ऋषभदत्त), १११२३०-३(+$), ११४५४०-२(#$) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ३०, पद्य, स्था., (अतुल वैरागी जंबुकुमार), ११३४२२-१५ जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (ये आठुइ कामनी रे),११०२१७-३ जगन्नाथपुरी गीत, कबीरदास संत, पुहि., गा. ११, पद्य, वै., (तुम तो भले विराजे जी), ११५०७२-२(#) जयभूषणसाधु सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नमो नमो जयभूषण मुनि), १०६७८०-२८(+) जलंधरनाथ कवित्त, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., वै., (मुंस मुंगट करसल वदत), ११०८२५-१(#) जलयात्रादि विधि उपकरण सूचि, मा.गु., गद्य, मूपू., (कडछी४ बाजोठ खीला), ११०४३५ जसवंत गुरुगण गीत, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीश्रीआचार्य प्रतै सिर), ११३८१८-२($) जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (दादैजी दीठां दोलत), १०७१७५-२(+) जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (सदगुरु सुनिजर कीजीय), ११३५३७-४ जिनकुशलसूरि गीत, पा. साधुकीर्ति, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (विलसे रिद्धि समृद्धि), ११०४८४ जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल वडो संसार कुशल), ११४०९५-८ जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसूरि ध्याईयइं), ११२७८१-२(+#) जिनकुशलसूरिगुरुगुण गीत, मु. राज, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (श्रीगणधर गुरु कुसलसूरिंद), १०६७०२-१५(+#$), ११०६९१-१(+) जिनकुशलसूरिगुरुगुण गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., (विघनहरण संपतिकरण), १०६७०२-१७(+#S) जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनराज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु अब मोहि), ११४०९५-११ जिनकुशलसूरि पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कैसे कैसे अवसरमें), ११०६९१-२(+) जिनकुशलसूरि सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनेसरू शासन), ११४०९५-३ जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दादौ परतिख देवता), ११४०९५-१२ जिनगण गरबो, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (हां रे हुं पूजीसुरे), ११४५१०-१(+#$) जिनगणप्रशस्ति बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (भगवान त्रिलोक्य तारण), १०९४०६-१(#) जिनचंदसूरि गच्छाधिपति गुरुगीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनचंदसुरिंदजी रे सैह), ११०७३९-४(#) जिनदत्तजिनचंदजिनकुशलसूरि छंद, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (खरतरगच्छ जाणै खलक), ११३०८२-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ५५५ जिनदत्तसूरि गीत, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सदगुरु को ध्यान हृदै), ११४०९५-४ जिनदत्तसूरि गीत, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिरिसुयदेव पसाइ करो), ११४०९५-१ जिनदत्तसूरि छंद, मु. दानविजय, पुहि., गा. १, पद्य, मप., (वरगंग तरंग जिसी जगउ झाल), ११४०९५-९ जिनदत्तसूरि सवैया, मु. धर्मसी, पुहि., सवै. १, पद्य, पू., (बावन वीर कीए अपने वस), ११४०९५-१० जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी तुम्हे), ११३८७४-३($) जिनदासश्रावक कथा-नवकारप्रभाव बिजोराफलप्रदाने, मा.गु., गद्य, मूपू., (पोतनपुर नगर तिहां एक नदी), ११३२१२-१(#s) जिननामादि शुकनावली, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (२४ तीर्थंकरमांहि १ चिंतवइ), १०८६५५-१(#) जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ६८, पद्य, मप., (अनंत चोवीसी आगे हुई), ११४७०९, ११४२९७-२(#s), १११४३०-१(६) जिनपूजा विधि, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मप., (सरसति भगवति दे मात चंग), ११०५७६-१(2) जिनप्रतिमामंडन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भरतादिके उद्धारज), ११०४२३, ११४३०३-३ जिनप्रतिमा स्तवन, मु. आगम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कुन करे वारी कुरे), १११६१६-२(+) जिनप्रतिमास्थापना रास, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (सार वचन जिन भाखीयो), ११३८९९-१(+#$) जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, भूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदन), ११४११६-१(+#), ११५२२२-३(६) जिनबलविचार छंद, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सुणो वीर्य बोल), ११२३६८-३(2) (२) जिनबलविचार छंद-टबार्थ, मा.ग., गद्य, श्वे., (बार नरे मिली एक), ११२३६८-३(#) जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (भविका श्रीजिनबिंब), १११७७२-२(#) जिनरतनसूरि गीत, मु. त्रिलोकसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुहव आवो मलकरी रे पूज्य), ११३७२९-१(#) जिनराजसूरि गुरुगुण गीत, आनंदकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनसिंह सूरीसरू रे), १०९६४३-१(#) जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु), ११४१९०-१ जिनवाणी गहली, वा. देवचंद, मा.ग., गा. ७, पद्य, मप., (अमृत सरखी रे सुणीय), ११३९२१ जिनवाणीमहिमा स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (जय जिनराया सुत्र सुणाया), ११०९६८-३(-) जिनवाणी सवैया, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (वीर हेमाचल से नीकसी), १११६२४-२(+#S) जिनशासनमहिमा स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिधनी गांठडीलि), ११०४१८-२ जिनसुखसूरि गीत-खरतरगच्छाधिपती, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सहुधरमां सिरसेहरौ रे), ११०७३९-३(#) जीवकाया सज्झाय, मु. रंगविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (प्रीतम तणो मुझ ओपरइं), १०९५८९-२(#) जीवगतिआगति विचार, मा.ग., गद्य, श्वे., (प्रथम नरके २५ जीवभेद), १०६४६३-३(#) जीवणगुरुगुण गीत, मु. सहसा, मा.गु., गा. ७, वि. १७७९, पद्य, पू., (सरसति देवीजी वीनवु गणपति), ११४९६०-२ जीवदया छंद, मु. भूधर, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी पाए नमी), ११०२६२(+), ११५१६०-२ जीवदया सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (रे जीवदया पालज्यो), १०७२३९ जीवदया सवैया, मु. कृपाराम, पुहि., गा. २६, वि. १९३२, पद्य, श्वे., (चोथे आरे केरा वृसतीन), १११३७२(+$) जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, पू., (पृथिवीकाय लक्ष अप्का), १०९८१६-३(-) जीवविचार बोल*, मा.गु., को., मपू., (--), ११३९५१(१) जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ८३, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती रे वरसती), ११२३९७-२($) जीवादि विविधद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (सरीरना पंचनाम ऊदारिक१), ११४३७०-३(#$) ज्ञानकीर्तिसूरि गच्छपति भास, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चालि मोरी सजनी श्री पूज्य), ११४१५३-२(+) ज्ञानकीर्तिसूरि गच्छपति भास, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चालोचालो श्रीपूज्य वांदवा), ११४१५३-३(+) ज्ञानकीर्तिसरि गच्छपति भास, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, मपू., (रसी आनी पाटणनगरे होवेगे), ११४१५३-४(+$) For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ज्ञानकीर्तिसरि गच्छपति भास, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (श्रीपूज्यजी पाटि पधारु), ११४१५३-१(+) ज्ञानगुण आरती, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूप., (जयजय आरती ज्ञान), ११०३२८-५(+) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (त्रिगडे बेठा वीर), ११३३७०-३, ११०४६६-३(#) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पूजा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रगट नवकार), ११४९५२(#$) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., देवजो. ५, गा. १५०, पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), १०६८२२-१(+) ज्ञानपंचमीपर्व मतिज्ञान चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमीतणो सयल), ११०३५१-२(+) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, पू., (प्रणमुं श्रीगुरु पाय), ११०४०७-१(+), १११०६३-१(+), ११२१९१-१(+), ११३७३२-१(+), १०९५१४, ११२५०९, ११२८६८-१(#), ११२७८८-१($) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (सद्गुरुना प्रणमु), ११५२४२-१५ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर वयण), १०९३८९(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ११४५१०-४(+#$), १०६४९४-६, ११०४१२,१११२१७-२(#$) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ११४४०२(+$), १०९४३१-१ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुपदकज), ११३६७९-१ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ११२१९१-२(+), ११३७३२-२(+), १११८६४, ११४२७६-१,११५२४२-१६ ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), ११४८३०-१, ११०७६७-१(#) ज्ञानमुनि गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ११, वि. १९३५, पद्य, श्वे., (सरसति माता दया करो आपो), ११३४०७ ज्योतिषचक्र ग्रहनक्षत्र तारादि योजनमानविचार गाथा, मु. सोभाग्य, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (जोयण नेऊसय सात उपरि तारा), ११४३६०-२(+#) ज्योतिषचक्र विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (चदरमाना पदरा माडला), ११२३४१(5) ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चंद्रमानौ आउखो), १०८३९१-२($) ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., इतर, (ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल), ११०१२५(+) ज्वर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (नमो आनंदपुरनगर अजयपा), ११००२२-३ ज्वर मंत्र, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (ॐ नमो ज्वर हुं जां), ११००२२-२ झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मपू., (सरसति चरणे शीश नमावी), १०८२४७ टाकरियापच्चीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (लांबा जुहार करे), १०७३०६-१ डुंगरशी गुरुगुण गीत, सा. नदडाई, रा., गा. १३, वि. १८७१, पद्य, श्वे., (सरसति सारदा मायकु समरू), ११४२८४-२ डूंगरसी गुरुगुण सज्झाय, मु. रवजी, मा.गु., गा. १३, वि. १८७५, पद्य, स्था., (सरसती समरूं शारदा प्रणमु), ११४३६६(+) ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (ढंढणऋषिने वंदणा), १०६६६१-७(+$), १०८२५९(+), १०६५३४-७(#) ढंढणऋषि सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (क्रसन नरसर पुछीयो जी), ११०४०३ ढंढणमुनि चौढालियो, मा.गु., पद्य, पू., (--), ११४५०९(#$) ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (खंडा ८ हजार ५५०), ११३७०७(+-#S), ११४७९४-२(+#$) ढुंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सरसती चरण नमी करी), १०९४२८(2) ढुंढिया नवबोल चर्चा, मु. दीपविजय, रा., वि. १८७६, गद्य, मूपू., (श्रीमंत्तपागछिय भेद), ११३६१२($) ढंढिया मत सवैया, मु.खेतसी, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जोगी मै न जती मै न), १११९४६-२(+) ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ७००, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सामिनी), १०६७३७($) तपपद सज्झाय, मु. हीरालाल, रा., गा. १२, पद्य, स्था., (सुरायो तप में पूंजीय), १११२३०-१(+$) तारातंबोलनगरी वर्णन, मा.गु., गद्य, पू., इतर, (लाहोरथी गाऊ १५०), ११४७८३($) For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ तिलोकसुंदरी सज्झाय, मु. लक्ष्मीहर्ष, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (तिलोक सुंदरी बेठी एकली), १११४०८ तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (तित्थयरा गणहारी चक्क), ११०३४९(+), १०९३६१-१(#) तीर्थमाला-सम्मेतशिखरादि तीर्थ, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११४४८५(5) तीर्थमाला स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४१, वि. १६५९, पद्य, मूप., (सरसती भगवती मात जे), १११८७७($), ११४९१२(5) तीर्थमाला स्तुति, मु. हीरविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (गीरनारे श्रीनेमीजिन भाणो), ११४६६३-२ तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निसिहि त्रण),११०३१८(#) तेरापंथमत निरसन सज्झाय-भीखणजी, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे.?, (संवत अठारे साल पनरा के), १११६०७-३(+) त्रिपुरसुंदरी अमृत ध्वनि, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (कह कह कलिलित कालिका निरख), ११३८८५-४(+) त्रिसलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., गा. १९, पद्य, मप., (त्रिशला हरष धरे), ११२५१०-२ थरादनरेश भीमसिंहराजा गरबो, मा.गु., पद्य, वै., इतर, (रूडा थरादगामे राज्य), १०७४६०-१(#) थावच्चाकुमार चौढालियो, मु. हर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ५६, वि. १७९५, पद्य, श्वे., (द्वारामती नयरी वसो), ११०२१९-१ थावच्चापुत्र ढाल, मा.गु., ढा. ६, गा. ६७, पद्य, मपू., (थाव! भोगी भमर), ११२२२८-२ थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. तेजमुनि, मा.गु., ढा. ३, गा. २१, पद्य, श्वे., (श्रीजिन नेम समोसा), ११०२१९-२ दंडकद्वार बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, मपू., (सरीर३ वैक्रीय१ तेजस२), १११८६५ (#$) दंतधावणफल कोष्ठक, मा.गु., को., इतर, (--),१०८५६७-४(#) दयाचंदगुरुगुण गीत, सा. पानाबाई महासती, मा.गु., गा. ११, वि. १९७७, पद्य, स्था., (मेहं सीरसती सीवरु माता), १०७१९१-१ दयाचंदगुरुगुण गीत, सा. पानाबाई महासती, मा.गु., गा. १०, वि. १९७०, पद्य, स्था., (हां रे जीवा सरसती सीमरु), १०७१९१-२ दयाछत्रीसी, मु. साधुरंग, मा.गु., गा. ३६, वि. १६८५, पद्य, पू., (दयाधर्म मोटो जिन), १०७४८१-२(#) दया थोकडो, रा., गद्य, श्वे., (--), १११३८६-१(+-$) दयाधर्म माहात्म्य श्लोक, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (दयासू खारी वेलडी), १०७७२४-३(+) दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन गाथा, मु. शिवचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (हाथि सहसअढार लाख), ११३६६९-३(+) दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन सवैया, मा.गु., सवै. ३, पद्य, श्वे., (चोसठ सहस गयंद इंद्र विकुर), ११०६५०-१ दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाईक सेवक नयणानंद), ११४१२७(+), ११४२९६-२(5) दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ११, वि. १९३३, पद्य, श्वे., (पधार्या वीरजिणंद भार), ११३४२२-१२ दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (उलट भरी दशारणभद्र आवइ हय), ११५२२६-३(+) दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मा.गु., पद्य, मप., (प्रणम् जिनवर वीरजी समरु), ११३५२८-१(६) दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (में तो वे मछराला हो राजा), ११३४७५-३(+) दसोटण विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (मांडयो उतंग तोरण), ११५२३२(2) दादाजी स्तवन-नागोरीगच्छ, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (देव सकल सेहरो हो),११०२४७-२ दादाजी स्तवन-नागोरीगच्छ, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (दौलत दो दादा सदगुरु), ११०२४७-१ दान थोकडो, रा., गद्य, श्वे., (च्यार मदु फल भेला कीया), १११३८६-२(+-) दानशीलतपभावना गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (दानशीयलतपभावना च्यारे), १०८२५७-१ दानशीलतपभावना पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (दानसील तप भाव च्यार), १११९९६-३(5) दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.६, वि. १७वी, पद्य, मप., (रे जीव जिन धरम कीजीय), १०६७०२-५(+#), ११०७६५,११४९११-२(#) दानशीलतपभावना लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, स्था., (ये दान सितलत भाव), १०६६६८-२२(८) दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मप., (प्रथम जिनेसर पाय), १०६६९८-१(+$), १०९३५३(+$), ११४५७१(+$), ११५१४९(+$), ११०९९३-१, ११०९६४(#$), १११६७० (#$), ११०९५९(), ११४२६०() For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. भाण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भुलता नही रे बंदा भुलता), ११३१०७-२(-) दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११४०८२(+$) दानशीलतपभावना सवैया इकतीसा, मु. जिनहर्ष, पुहि., सवै. ४, पद्य, मूपू., (देहु दान सीख मानि दान ते), ११४१३९-४(+) दिगंबरश्वेतांबर के ८४ भेद विचार, पुहि., गद्य, मपू., (१ केवली कुं आहार न), ११३६२० दिनमान चौपाई, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मप., (सरसति सामिणि समरी मा), ११२५६३($) दिनमान दोहा, मु. हीर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (हीर कहै सत्तांगुली तुली), १०८४१७-२(+#) दिनमान दोहा, मा.ग., गा. १, पद्य, वै., इतर, (ऐन मयादि न दसमे लेवा), ११०००२-३(#) दिशाभ्रमण पद, मा.गु., पद. ३, पद्य, इतर, (प्रतम चक पुरवह मरण मन सिध), ११२६५१-३(+#) दीपकगुण सवैया, पुहिं., गा. ३, पद्य, जै., इतर?, (दीपक तूजमे तीन गूण रूप), १११८९९-५ दीपागरगुरुगुण भास, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (सरसत सांमण वीनवं मांगु), ११४९६०-१ दीपावलीपर्व गीत, आ. हीरानंदसरि, मा.गु., गा. ९, वि. १५वी, पद्य, मप., (तीरथ माहिई जगि वडउऊ), ११४१०३ दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दुःखहरणी दीपालिका रे), ११०२८० दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ११०३५३(+) दीपावलीपर्व सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २२, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (तीरथनायक वंदिये), ११३११६ दीपावलीपर्व सज्झाय, पं. हर्षविजय गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धन धन मंगळ सकल तरेस), ११०५६३-३(+) दीपावलीपर्व स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मारे दीवाली थई आज), ११५२१३-१ दीपावलीपर्व स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (मारे दीवाळीरे थइ), ११०२६५ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (सिद्धारथ ताता जग), ११५१४३-१(+) दीपावलीपर्व स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर कोडि हाथ जोडी), १०८२५७-२ दुर्लभभावना सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (परिहर हरिहर देव सवि), ११३३०९-२ देवकी ६ पुत्र सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (नेमिजिणंद समोसर्याजी), ११०४७४, ११०४५६(#) देवकुंजर राजऋषि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सहज सुंदर मुनिपुरंदर), १०६७८०-२६(+) देव-नारकी बोल संग्रह, मा.ग., को., मप., (--), ११०४११(+) देवयशाजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (देवजसा दरिसण करो), ११४९५१-१(६) देवलोक सज्झाय, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (देया पडह वजडावीयो तुमे), ११०४७२(+) देवलोकसुख सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. २१, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (देवलोकारा साताकारी), ११३९१५(+) देवानंदामाता सज्झाय, सा. लछमा, रा., गा. ११, वि. १९१८, पद्य, मूपू., (शासणनायक श्रीविरजीणंदा भव), ११११२८ देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., गा. १२, पद्य, मप., (जिनवर रूप देखी मन), ११००९२-१ दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ शरीर वेदना छे), १०९०५३-१(+), १०९०६२(+), १०९०६४(+६), १०९७४६-१, १०८३८५-१(#), १०८४०९(#), १०९६७७(s), ११३९३०(5) दोहा संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, जै., इतर?, (गांमंतरं घर गोरडी), ११०९७४-३ दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहि.,मा.गु., दोहा. १, पद्य, मपू., (अष्टापद श्रीआदजिनवर), १०७२८३-७, ११५०७२-१(#S), ११४९४९(5) द्रौपदीसती सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (आव्या नारद मुनिवर), ११५०६३-२($) द्रौपदीसती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (हो सरपतजी अरज करु), ११३४८४(+) द्वादशलग्न विचार, पुहि., गद्य, वै., इतर, (मेष लगन मंद करै १), ११०१६८-२ धनदत्त चौपाई, रा., पद्य, श्वे., (--), १११३०६(5) धन्नाअणगार सज्झाय, पं. प्रमोदसुंदर, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (एक दिन वीरवाणी सुणी), ११०५६० धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सरसत सामण विनवुजी), ११३२१९(+#) धन्नाऋषि सज्झाय, मु. विनयचंद्रजी ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, स्था., (जिन सासण साम्मी अतंर), ११३४०४(+) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी रे धन्ना), १०६५३४-११(#) For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ५५९ धन्नाकाकंदी सज्झाय, म. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (धन धन्नो ऋषि वंदीयै), १०६५३४-१२(#) धन्नाशालिभद्र लावणी, मु. चौथमलजी, पुहिं., गा. ७, वि. १९५७, पद्य, स्था., (श्रीसालभद्र महाराज जगतमें), १०६६६८-१५(-) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (धन धन धन्ना सालिभद्र), ११४९५३-२ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., गा.११, पद्य, श्वे., (भांगी छे कलपवरष डाल कठण),११३५२९-२(+-) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (राजग्रहिपुर नगरी), ११४४२६-३(+) धर्मजिन पद, मु. जयपद्मविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कोण विध नाथ निकट), ११४९४७ धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.८, पद्य, पू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ११३०२०-११ धर्मजिन स्तवन, मु. केसर, पुहि., गा.७, वि. १८४२, पद्य, मूपू., (धर्मजिनेस्वर साहिवा), १०६९४१-२(+) धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (इक सुणलौ नाथ अरज), ११४६१२-१(#) धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८पू. पद्य, मूपू., (हां रे मारे धरमजिणंद), ११३८०६-२(+), ११०२४७-११, ११३८६१, १११५०५-२(#$), ११३६६२-२(#) धर्मजिन स्तवन, मु. वल्लभसागर, मा.गु., गा.७, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (धर्मजिनेसर ध्याईये), ११४२३३-३ धर्मजिन होरी, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद. ८, पद्य, मूपू., (मधुवन मै धूम मची होर), ११४६१२-११(#) धर्मपरीक्षाकथन सवैया, ग. जिनहर्ष, पुहि., गा. १, पद्य, मपू., (धरम धरम कहै मरम न कोउ लहै), ११४०६१-५(+) धर्म पण्य भेद बोल, मा.गु., गद्य, मप., (केतलाक जीव धर्म पुण्यनें), १०७७८०-३(+) धर्म भावना, मा.गु., गद्य, श्वे., (धन्य हो प्रभु संसार), १०९४४४(+) धर्ममंगल सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल छे मोटको), ११५१४१(2) धर्मरुचि अणगार लावणी, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, स्था., (चंपानगरी धर्मघोष),१०६६६८-६(-$) धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, स्था., (धन धन तपसीजी हो मुनिवर), ११३४२२-७ धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १८६५, पद्य, श्वे., (चंपानगरनी रुप सुंदर), ११०९७४-२ ध्वजारोपण विधि, आ. गुणरत्नसूरि, मा.गु., प+ग., मूपू., (तथाही भूमि शुद्ध गंगोदक), ११०५३५ नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. २८४, ग्रं. ४२१, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ११३६९२(+#$), ११४३७९(+#s) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजगृह रलीयामणुं रुडउ), ११५२२६-२(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, क. चतुरंग, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुनिवर महियल विचरे), ११०९७८-३ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजी न जइए रे परघर), ११४०१६-१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), ११०५३७, ११४२७२-१, १११७४६, १०६५३४-८(#) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रहो रहो रहो वालहा), १११२५०-२ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (पंचसयां धणि परिहरी), ११३७४७-३(+#), ११३१७९-१ नंदीश्वरद्वीप देवकृत अष्टान्हिकामहोत्सव विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११४५१५(5) नंदीश्वरद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेह तणउ विखंभ विस्तार कही), ११३७८५-१(#) नक्षत्रतारा विचार सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., इतर, (वीरजिनेश्वर चरण), १०८७७१-१ नक्षत्रदिनघटीपलायंत्र, अज्ञा., को., इतर, (--), ११०१२१-१(+) नक्षत्र शुकनावली, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (नवकार तीन कहीने सोपारी), १०७२८५ नगरजनसंख्या बोल, मा.गु., गद्य, इतर, (--), १०८५६७-२(#) नगरथ ऋषि सज्झाय, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., पद्य, स्था., (अणमती कोउ वास हस्या म), ११००९१-२(+) नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., गा. २५, वि. १६वी, पद्य, श्वे., (पढम जिणवर पढम जिणवर), ११२८३६($) नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मप., (वंछित० श्रीजिनशासन), १११५२०(+#), ११५१९०(#) For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सुखकारण भवियण समरो), ११४८४८-२(+), ११३०८७, ११३१८०-१, ११२८८४-३(#) नमस्कार महामंत्र छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (सुखकारण भवियण समरो), ११२९५८-२($) नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), १०९३२७-१(+s), ११३७८६, १०९२५१-२(5) नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पहिलो लीजि), १०८८९५(+#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (श्रीनवकार जपो मनरंग), १०६७०२-१०(+#), ११२७५२-१($) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), १०६७८१-२, ११३७८७-२ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कहेजो चतुर नर एकोण), १०६६६१-२(+), १०६५३४-२(#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (बार जपुं अरिहंतना), ११३४८५-२(+), ११४१९६-१(+), ११४२२३(#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (अष्ट लब्धि नवनिधि), १११०६९-३(#s) नमस्कार महामंत्र सवैया, मु. लालचंद ऋषि, पुहि., सवै. ५, पद्य, श्वे., (नमो अरिहंत नमो सीध), ११४५४९(६), ११०९६८-२(-) नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (अष्ट लबध नव नीध भंडा), ११३१२२-१(+-#) नमस्कारमहामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, स्था., (प्रथम श्रीअरिहंतदेवा), १०७८९१,१०८५४२-१ नमस्कार महामंत्र स्तुति, मु. लालचंद, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (णमो अरिहंताणं० इहां), ११०९६८-१०) नमिजिन स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (दिल भर दरशन पाउं), १११९७१-७(+$) नमिराजर्षि लावणी, मु. हीरालाल, पुहि., ढा. २, पद्य, स्था., (विदेह देश और मिथिला), १०६६६८-१४(-) नरकदुखवर्णन सज्झाय, मु. सोमकलस, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (ढंक० धरंत छेदंत देह विल), १०८८९७-१(+#) नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३५, पद्य, मप., (वर्द्धमानजिन विनवू), ११०४६५ नरनारी सिखामण सज्झाय, मु. उमेदचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (सुण सुण कंथा रे सीख), ११४०१५ नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६ ढाल ३९, गा. ९३१, ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी प्रमुख), १०८८०५(#$) नलदमयंती सज्झाय, आ. हीरानंदसूरि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मपू., (आजोध्यानगरि रो राजियो), १०७९३८ नवअंगपूजा दोहा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जल भरी संपुट पत्रमा), १०९४२६-१(#) नवकार तप प्रमाण विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीनवकार तप ६८ उपवासे), ११३६७० नवकारमंत्र छंद, मा.गु., पद. १, पद्य, मपू., (पढो मंत्र नवकार ताप), १०७०३१-२(+) नवकार महामंत्र सज्झाय, आ. सुमतिसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (सुमरि श्री नवकार रे नर), ११४५८०-२(+) नवकार महामंत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सर्व मंगल धुरे मांगलीक), ११३१५७-२(#$) नवकार महामंत्र स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (--), ११४९६८-१(+$) नवकार महिमा सवैया, ग. रूपवल्लभ, पहिं., गा.११, पद्य, मप., (ॐ कार बडो सब अक्षर मे),११०६२५-३(+) नवकार माहात्म्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ११२०८९(६) नवकार सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूप., (ए नवकार तणुंफल), १०६७८०-११(+) नवग्रह पद, मा.गु., पद. १, पद्य, इतर, (श्रीसूर्यदेव सवाडुयौ), १०८४१९-२ नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, गा. २०४, पद्य, मूपू., (सकल जिनेसर प्रणमी), १०६८०३(+#) नवतत्त्व बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना रागी समकीत), ११०१२१-२(+) नवतत्त्ववर्णन दोहा, पुहि., दोहा. १५, पद्य, श्वे., (चेतनवंत अनंतगुण पर्य), ११०६६३ नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुन्नं पावा), ११३८१०(+#$) नवपद आरती, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (पेली आरती श्रीजिनराजा भवी), १११८०६-४(+) For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ नवपद चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (सिद्धचक्र आराधतां), ११३६८३-१(#) नवपद जाप गणणु, मा.गु., गद्य, मपू., (अशोकवृक्षः सुरपुष्प), १०९२०२ नवपद दोहा, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (परममंत्र प्रणमी करी), १०८९०१-२(+#) नवपद नाम गुण संख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतना गुण१२ सिद्धनागुण), ११०७६६-६(#) नवपद व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीअरिहंत भगवान केहवा छे), १११९०२($) नवपद स्तवन, पंन्या. आणंदविनय, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (चेतो चतुर सुजाण नवपद), १११४०७-१ नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोयम नाणी हो कहै), ११४२३५-३(#) नवपद स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तीरथनायक जिनवरू रे), १११४०७-२($) नवपद स्तवन, आ. जिनपद्मसूरि, मा.गु., स्त. ९, पद्य, मूपू., (अरिहंतपद आराधीयै आणी ऊलट), ११०४९९ नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७८८, पद्य, मूप., (सहु नरनारी मली आवो), ११४२३५-५(#$) नवपद स्तवन, आ. हर्षचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २३, वि. १८९९, पद्य, मूपू., (सुरतरु सुरमणि कामगविये), १११७४१ नवपद स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (आसौ चेत्र आंबिल ओली नव), ११३१६२-२(#) नववाड सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (सतगुरु पाय नमी कहुं), १०६५३४-१३(#) नागश्री सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., ढा. २, गा. ४६, पद्य, मूपू., (धर्मघोष आचार्यना),१११०९७ नाडीपरीक्षा, मा.गु., पद्य, मूपू., इतर, (दक्षिण करकी पुरुष के वामा), ११४४०७-२($) नारकी सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (नारकी नरकनै विषै), ११३१८१-१ निंदा परिहार सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (चावत म करो परतणी), ११३१०६-२(#) निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (श्रीय जिनवर रे देशना), ११३१८४(+) नीयतबत्तीसी, श्राव. बदन सूरतराम मेहता, पुहि., गा. ३८, वि. १८९९, पद्य, मपू., (रमयति राम कहे रे भाइ), १०६९९९-२(+) नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (एक दिवसे नेमकुमर निज), ११५१०४(+#$), ११४६५५(#s), ११५०९१(#s), ११४७४०-१(६), ११५०८९(६) नेमपार्श्वमहावीरजिन संपदा-कल्पसूत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (आठ गणधरना नाम शुभ १), ११३१४९(+#) नेमराजिमति पद, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (जादव मेरो मन हर लीयो रे), ११४६१२-२(#) नेमराजिमति स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांवलिया घर आवके राजुल), १०८२४२-१ नेमराजिमती गीत, मु. कपूरचंद, पुहिं., पद. ४, वि. १९३५, गद्य, मप., (चंद्रवदन दिल में दिलगिरि), १०८९०० नेमराजिमती गीत, उपा. कुशलसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सामलिया रे सोभागी तुझ मुख),१०७४१३-३ नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आया हे सखी कहे), १०९८७४-२(+) नेमराजिमती गीत, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रीतम मोरा ने समजावो रे),१११९००-२ नेमराजिमती गीत, म. थलचंद्र, पहिं., पद्य, श्वे., (चालो जलदी वहिली गिरवर), १११२१८-२(#) नेमराजिमती गीत, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (कहे करजोडी राजुलनारि), ११३४८६ नेमराजिमती गीत, मु. राजऋद्धि, पुहिं., गा.१३, पद्य, मपू., (अजी नेमीश्वर बनड़ा परण), ११३४१० नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (नेम मले तो बातां), ११२८८४-१(#) नेमराजिमती गीत, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (दीधी लाभि लिखमी घणीए), १०७३२२-२(+) नेमराजिमती गीत, आ. विनयसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तोरणथी रथ फेरीयो सखी विनओ), १०९६१८-२(+#) नेमराजिमती गीत, उपा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रिउ विन कुं सखी रयण), १०७१९८-३ नेमराजिमती गीत, रा., पद्य, श्वे., (उजड खेडा फेरा वसे कांइ नर), ११३५६९(-#$) नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गोख चढी राजीमती जोवै), ११३४८२ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (दमणोरे दमणो नेमजी जाए), १०७३२२-४(+$) नेमराजिमती चातुर्मासिक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु., (श्रावण आये सालले जलधर बार), ११३५३९-१(#) नेमराजिमती तेरमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२८, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं विजया रे), ११३४५५-१(+) For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमतीपच्चीसी, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसत्त सांमण विनउ सारद), १०७३०७($) नेमराजिमती पद, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बोल बोल रे प्रीतम), १११२५१-१(+$) नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (हरियालो डुंगर प्यारो), १०७०३७-१(+-#) नेमराजिमती पद, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (वालिम मोरा न समजावो), ११४१९७-२ नेमराजिमती पद, मु. दीपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (मोरे पिया काहे के वैरागी), १०६९९३-८(-) नेमराजिमती पद, मु. देवसुंदर, पुहि., दोहा. ३, पद्य, मूपू., (सखी मोहि जाणदे गिरना), ११३३७२-२ नेमराजिमती पद, मु. फते, मा.गु., पद. ४, पद्य, मपू., (मनमोहन नेमजी आए मेरा मन), ११२२८०-२ नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, म्पू., (तुझ वन मेरी कुन खबर), ११०४०६-४ नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मत जाओ रे पीया तुम), १११६३५-२(#) नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (मोल चडी रे मारा नाथ), १०८०४२-४ नेमराजिमती पद, पुहि., पद. १, पद्य, मूपू., (अली हां हा हो मेरा नेम), ११४११३-२(+) नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (कोइ अपराध आणि मनि भीत), ११३७४३-३(+) नेमराजिमती पद, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (क्या हम कुं तुम छांड चलो), ११३६४९-६ नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११४६६१-२($) नेमराजिमती पद-केशरीया, मु. वल्लभकुशल, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जो थे चालो सिवपुरी रे), ११०२३६-२(#) नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सांवण मासे स्वाम), ११३०६०, ११५१८७ नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (राणी राजुल इण परि), १०८८३५-१,११४१०६, १०८२९२-१(-2) नेमराजिमती बारमासा, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मप., (चंदला प्राऊनइ वारि रे कंत), ११४१९९-२(+) नेमराजिमती बारमासा, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (मागसर मासे मोहिनीयो), ११४११३-१(+) नेमराजिमती बारमासा, मु. श्यामगुलाब, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (फुली चैतवसंत सोहंत), ११४०४६ नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, मूप., (प्रणमुरे गीरनारे नंदन), ११२६२४-२(#$) नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, पू., (सारद पय पणमी करी), ११०९७१(#$), ११०६९३($) नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूप., (एजी तुम तजकर राजुल), ११३९६९-३(+) नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीरेवंतगिर), ११०२५६ नेमराजिमती विंझणो, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आव्या आव्या उनालाना), ११०३२७ नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७५९, पद्य, पू., (समरु गणपतिनै सारिद), ११०६२५-१(+), ११३३९८(६) नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (काइ रिसाणो हो नेम), ११४३७५-१ नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (नेम कांइ फिर चाल्या), १०७१९८-१ नेमराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीनवै राजुलबाला वीनत), १११२१९-२(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (प्रीतमसुं मुझ प्रीत), ११४५१०-६(+#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. दयातिलक, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (गौष चढी राजलि कहे हो लाल), ११३६८५-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पियुजी पियुजी रे), १११३९९ नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मपू., (बे कर जोडीने वीनवं), ११३०७७ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (कण वन ढूंढन जाउं नेमी), ११३६५९-२(६) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (जी छान छान कुड कमायो), ११३५२३-१(+#) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (नगरी द्वारका कृष्णजी), ११३८४५-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वाला समुद्रविजय सुत लाडला), १०८०६८-१ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति ने करी प्रणाम वंदु), ११५१५५($) नेमराजिमती स्तवन, मु. चतुरकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेम), ११३११४-२(#) For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ नेमराजिमती स्तवन, मु. जवाहरहंस, पुहिं. गा. ९, पद्य, मृपू., (राजुल को प्यारो पत्री) ११२५७५-२(+) "" नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवल गोखने अजब जरोखे), ११४५१०-५(+#) नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नेमनाथ अरज सुणो अरज), ११३९५०-१(७) " मराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजी), १०८३९२(१) नेमराजिमती स्तवन, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (समुद्रविजजीरो लाडलो), ११०५१२-१ नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (सुणि २ मूंद सहेलडी), ११३७४५-२ नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु. गा. २३, पद्य, म्पू., (जे जिनमुखकमले विराजे), ११२७२८-१(+), ११४७३७ ($) नेमराजिमती स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पावस को समो आयो नेमिगिरि), ११३६३७-३(+#) नेमराजिमती होरी, मु. जवाहरहंस, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (सांवरा की वांणी अमृतसम), ११२५७५-१(+#) नेमिजिन गहुली, मु. चिमन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वरषो वरषो नेमीश्वरलाल तूं), ११३८२७-३(+) नेमिजिन गीत, मु. सोमकुशल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भींजइ भींजइ मेरी लाल), ११५२२६-१(+) नेमिजिन गीत-गोपीसंवाद, मु. चौथमलजी म., मा.गु., गा. १५, पद्य, स्था., (देवरनै रुखमण हसे हरनिरवाह), ११३६०० नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( नेमि नमुं निशदिश जन), ११३९९६-४ नेमिजिन चौमासो, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सोभागी नेमजी चतो), १०९१६५-२ (+) नेमिजिन धमाल, मु. सुमतिसागर, पुहिं. गा. ६, पद्य, म्पू., (सात पाच सखियन की टोली), ११०५३९-२ (+) नेमिजिन पद, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे. (समुद्रविजयरा नंद बाइसमा ). ११०९६८-४) नेमिजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऐसे नेम कुंवर खेले), ११०५३९-४(+) नेमिजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (घरे आवो रे पूछें एक), १०८०४२-२ नेमिजिन पद, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (दरसण कियो आज शिखर गिर को ), ११४१८६-२, ११४६१२-१२ (#) नेमिजिन फाग, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (भोगी रे मन भावीयो रे), १०७८०१ (६) मिजिनबहुत्तरी स्तवन, मु. मूलचंद्र, मा.गु., गा. ७४ वि. १८३६, पद्य, मूपू. (प्रथम जिणेसर पाव), ११०२४४(१) नेमिजिन बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू., (प्रेम बिलूधी पदमणी), ११४५९६ (+), ११४१३२ - १(#$), ११३१९२($), ११४५७७) नेमिजिन बारमासा, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., गा. ७७, पद्य, म्पू., (विमल विहंगमवाहिनी), ११३००९ (45) नेमिजिन बारमासा, मु. जिनदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (काती कंत वीना किम जास्ये), ११३९६९-१(+) नेमिजिन वारमासा, मा.गु., गा. ३०, पद्य, म्पू, (आसडह धुरिक नयउ घण). ११३८३४-१(३) , नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७३६, पद्य, मृपू. (समुद्रविजय कुलचंदलो), १०८३०७-१ नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम तजीय कर राजुल), ११३५१६, ११४१७३-२ ($) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं, गा. ६, पद्य, मृपू., (मैं अबला अब जाण लाल तेरे), १०७१९० " नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, म्पू., (श्रीनेमि निरंजन बाल), १०९३७४(+), १९०५२८ नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. २२, गा. १५१, वि. १८४९, पद्य, म्पू, (सरसती सरण नमी रे) ११२२४२(७), १११८९० ($) नेमिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, म्पू. (-), ११११६८ (०३), ११३०९० (७) नेमिजिन सज्झाब, आ. रतनसागरसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (समुद्रविजय को नेमिकुमरजी), ११३६८५-१ U नेमिजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, भूपू., (-), ११४३२० (+६) नेमिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नंदसलोणा नंदणा रे), ११३५०४ नेमिजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (मत जावो नेम आया राणी), १११५०६-१ नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कालीने पीली वादली), ११३७३९-२(+), ११०२१९-४ नेमिजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू., ( शिवादेवी सुत सुंदरू ), १०९४५३(१) For Private and Personal Use Only ५६३ Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन स्तवन, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (--), ११४६४५-१(+$) नेमिजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आवी कंत पाछा), ११०५४१-२(2) नेमिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (राजुल छोडी नेमजी), ११३४७०-१ नेमिजिन स्तवन, मु. डुंगरमल, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (जाके सिस उपर मुकट), १११२५१-४(+) नेमिजिन स्तवन, मु. तीकम, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मप., (मंगल कर रे नरवर नेमि), ११०४८९-१ नेमिजिन स्तवन, मु. नित्यविजय, रा., गा. ५, पद्य, मपू., (सूरति थाहरी हो), ११४२५८-२(#) नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नगर सुहामणो), १११७४२(१), ११२९०१(2) नेमिजिन स्तवन, श्राव. महमद जैन, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (तासु कौन सरवर करै), १०८३३१-२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (ससनेही रे साहेबो भेट्या), ११२९५८-१ नेमिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मारा नेम पीयारा), ११३१२२-२(+-#) नेमिजिन स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूप., (प्रीतडली मुझ मनि षट), ११४६४५-२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. विजयप्रभ, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (--), ११४३०३-१(६) नेमिजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सखी श्रावणनी छठ उछली), ११२२८०-१ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (अज बसु रंगी हो चंगी मूरत), ११३५४०-२(#) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (समुद्रविजै सुत लाडलो राणी), ११४१७७-५(६) नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ११३३३३-१(६) नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रावण सुदि दिन), ११३०७०, ११४०३७-२ नेमिजिन स्तुति, मु. राम कवि, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (पशूकी सुनी पुकारिन जी हे), ११३६३७-५(+#) नेमिजिन स्तुति, मु. लब्धिविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (म्हेतो थाने जाणा छाजी), ११३७५५-२ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय पंकज), ११०००४-९(+), ११०९६५-२(+$), ११३८३२-६(+#S), ११२९९८-२,११३०२०-१, ११३०५१-४, ११२८६८-२(१), ११२९९५-१(६), ११३७५८-१($) नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (गिरनारसिहरि पर नेमि), ११३०४७-४ पंचजिन स्तवन, क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १३, पद्य, दि., (तुम तरणतारण भवनिवारण), १११३००(#) पंचतीर्थ आरती, पुहिं., गा. ९, पद्य, मपू., (पहली रे आरती प्रथम), १११७०६-१ पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मपू., (आज देव अरिहंत नमु), ११०७६६-१०(#) पंचपरमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतना गुण बारा), ११३४५९-१ पंचपरमेष्ठि वंदना, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., स्तु. ७, गा. ७, पद्य, मूपू., (नमुं श्री अरिहंत), ११०९६८-५(-), ११३०५५-१(-) पंचपरमेष्ठि स्तवन, पुहिं., गा. ६४, पद्य, म्पू., (श्रीगुरुदेव के चरणार), ११२९२८($) पंचपरमेष्ठी नवकार छंद, ग. उदयसौभाग्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (पहेलां प्रणमुं जिनवर), ११५१८२($) पंचभावनागर्भितसीमंधरजिनस्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ६, पद्य, जै., (स्वस्ति श्रीमंदर), १०६७८०-२(+) पंचमआरा काल विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (नगर ते गाम सरिखा होसी), ११२९६३ पंचमआरा सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (नित रे नित गांवडै जावणौ), ११२१९२-१ पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहंस, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (वीर कहै गौतम सुणो), ११०३०२, ११३६८३-२(2) पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मप., (वीर कहे गौतम सुणो), १०९४२१-१(#) पंचमीतप पारने की विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (तपकरी उजमणो कीजै), ११०३२८-३(+) पंचमीतिथिपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., ढा. ५, गा. ७५, ग्रं. ११०, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु चरणे नमी), ११५०३३(5), ११५११४(६) पंचमीतिथि सज्झाय, मु. देवकलोल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (जिनचउवीसि प्रणमीइ), ११४९९७(+#) पंचमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (धरमजिणंद परमपद पाया), १११६५५-२(#) पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सुविधिनाथ जिन जनम), ११३८३२-९(+#) For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ पंचांगगणित विधि, उपा. महिमोदय, मा.गु., गा. १६४, वि. १७३३, पद्य, म्पू, इतर (परम जोति प्रभुकु), ११०१२२ (७), ११३३१२ (३) ܕ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचांगविधि दोहा, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५८, वि. १७२३, पद्य, मूपु इतर (गवरीनंद आनंद करि) १०७३७१ (+#5), १०९८५५ (०४) पंजाबी बोलीशब्द संग्रह, पं., गद्य, जै., इतर ?, (त्रीषो वेगो१ त्रोकै अबके२), १०८९०६-२ (#) पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (आसाढ मासे दुपया कहता), १०९५६१-२(+), १०९७५३ पच्चक्खाणफल सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मृपू., (प्रभु पगलां प्रणमी), १०६७८०-३२(+) पच्चक्खाण बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ११४१०५-५ (+) पट्टावली, मा.गु., गद्य थे (पूज्य मनोहरदासजी धर्मदास), ११३६५५ पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरस्वामी २), १०७०३२-२ (+#) पट्टावली*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानतीर्थं), ११४६६५ ($) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य भूपू (वर्द्धमानस्वामि शिष), १०८७४८(०) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान), १०७१९२(+), १०७५१७ पतिस्वागत गीत, मा.गु., पद. ७, पद्य, इतर. (मारुजी गेंद नेणारे वच), ११०६५५-१ , पद्मनाभजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु. गा. ८. वि. १८४५, पद्य, मूपू., (जगचिंतामणी जगगुरु जग), ११२५२५-३(+) . पद्मनाभ नृप सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मृपू (पद्मावती सम पद्मपुरी), १०६७८० २९(+) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपद्मप्रभू राजियो), १११९४३ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (कागलीवु करतार भणी), १०६७०२-१२ (०) पद्मप्रभजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पदमप्रभु जिन ताहरो), ११०६४९-३(#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभु तुम सेवना), १११६१६-४(+) पद्मप्रभजिन स्तवन मा.गु. गा. ५, पद्य, भूपू (पदम प्रभुजी सुप्रीत लगाणी ) ११३४२२-१४ पद्मप्रभजिन स्तवन- नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, भूपू (श्रीपद्मप्रभु जिनराय), १११२३५-१, ११३६९० पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु, गा. ९, पद्य, श्वे. (धन धन संप्रति साचो), ११३७१७-३(+), ११०३६४, १०९४०८(०) ११४२०८-३१४ "" पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), १०९४०९(+), १०९४६२(+), ११०५३४ (+), १११७५३ (+#$), ११३६०७-२ (+), ११४०९१ (+), १०९५१३, ११००३२, ११०१६१-१, ११२८३१(७), ११२१५३(5), ११३३८१(३), ११४२५६(३) पद्मावती आराधना बृहत् उ १११९०३ पद्मावतीदेवी छंद, हीरो, मा.गु., गा. ४१, पद्य, श्वे. (देवीतो दीवाणं अनंत), १०७२१३(+) पद्मावतीदेवी स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू (जय जय जिनशासन सामिनी), ११४८९७०७) "" " परदेशीराजा केशीकुमार संवाद, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ६, वि. १९६२, पद्य, स्था. (ये मुनिराज महाराज), १०६६६८-१० परमार्थ अष्टपदी, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसे ज्यौं प्रभु पाईइ), ११३०२७-२ (०९) - जीवराशिक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ८२, पद्य, मूपू., (हिवे राणी पद्मावति), ५६५ For Private and Personal Use Only पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वडा कल्प पुरव दिने), ११०५४८-८(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (सकलपर्व शृंगारहार), ११०३८७, ११०५८२-३, ११३३७०-४ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परवराज संवत्सरी दिन), ११०२४९-७, ११०५५६-५, ११०५९६-७, ११०५४८-७) पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. ( कल्पतरुवर कल्पसूत्र), ११०२४९-३, ११०५९६-३, ११०५४८-३(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू (जिननी बहिन सुदर्शना), ११०२४९-५, ११०५५६-३, ११०५९६-५, ११०५४८-५११ Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (पास जिणेसर नेमनाथ), ११०२४९-६, ११०५५६-४, ११०५९६-६, ११०५४८-६(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, पू., (प्रणमुं श्रीदेवाधि), ११०२४९-२,११०५९६-२, ११०५४८-२(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (श्रीशत्रुजय शृंगार), ११०२४९-१, ११०५९६-१, ११०५४८-१(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, पू., (सुपन विधि कहे सुत), ११०२४९-४, ११०५५६-२, ११०५९६-४, ११०५४८-४(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर्व पर्युषण गुणनीलो), ११०५८२-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशेजो शिणगार), ११०५५६-१ पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (श्रीशजयमंडणो), १०९८२७ पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. विनयविजय, मा.गु., चैत्यव. ७, गा. २१, पद्य, मपू., (श्रीशेजो सिणगार), ११०३७२ पर्युषणपर्व माहात्म्य, मा.गु., गद्य, मपू., (सर्वसाधु मांहि श्री केवली), १०८२५६(5) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (प्रथम प्रणमु सरस्वती), ११०२१३ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (पर्व पजुषण आवीया रे), ११०२१८-१(+#), ११०३६७-१ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुण्ये), १०८९७९-२(+#), १०७३२०,११०४८६ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुं ध्या), ११०००४-८(+), १०८३९१-१ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमां अषाड), १११९३१-२(+$) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ११०५०३-१, ११४६१६(#) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (एक पनोति पदमणि पभणई), ११०५०३-२ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. भावलब्धिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुण्यवंत पोशाळे आवे), ११०३४४(+) पर्यषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (सत्तर भेदे जिन पूजा), ११३८१९(+#s), ११२६१०-१,११५२४२-१२, १०९४०६-२(#), ११०५७६-२(#) पल्ली विचार, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., इतर, (पय प्रणमी हरखप्रभु), १०८९४७(#) पांचमाआरामध्ये आराधकसाधु संख्या, मा.गु., गद्य, मप., (इग्यारलाख सोलहजार एह), ११४१९६-३(+$) पांडव चरित्र, आ. रामचंद्रसूरि, पुहि., गा. २५३, पद्य, मूपू., (गर्व मत करो रे मेरी), ११४०१४-२() पांडवचरित्र रास, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., खं. ६ ढाल१५०, ग्रं. ३७९७, वि. १७६७, पद्य, मपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ११२२१०(+#$) पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूप., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), ११३९६४ पानसुपारचनाकत्थाकलह पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., इतर, (पान कहै मैं नाजुक),११०७१०-५(+) पापपरिमाण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (छिन वे जीव हणोजि तो), ११४८४२-२(+) पार्श्वकुमार विवाहलो, पं. देवकुशल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पासकुमर मैहमानिलो), ११०३३९-२(+) पार्श्वजिन अमृतध्वनि-गोडीजी, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ८, पद्य, मप., (झिगमग झिगमग जेहनी), १११९७५-६(+#) पार्श्वजिन आरती, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (आरती करुं श्रीपार्श्वनाथ), ११३६३८-१(६) पार्श्वजिन आरती-खंधोरपुरमंडन, म., गा. ७, पद्य, मपू., (जयदेव जयदेव जय करम च हरणा), १०८८९९ पार्श्वजिन गीत-गोडीमंडन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (उभी तो राण्यां अरज कडेंजी), ११०६५५-२ पार्श्वजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ दीधा), ११३९६८ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पूजो पास जिणंद कमठ), ११३९९६-२ पार्श्वजिन चौढालियो-गोडीजी, मु. लावण्यचंद्र, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मपू., (पासजिणंद प्रसिद्ध), ११०४२५(5) पार्श्वजिन छंद, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (मागडध्राम् ध्री धंसगरंग), १०८०४२-१ पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., गा. ६३, पद्य, मपू., (सरसत मात मना करी), १११८१३(६), ११५१५९(5) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (सरस वचन दियो सरसति), १११२२०(+#$) For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ ५६७ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. करमसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गवरीपुत्र गणेशवर), ११३६३७-१(+#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (सरसति सुमति आपि सुरराणी), ११२५२८(#$), ११३२३९(#S) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दानविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (वाणारसी राया पास), ११३७०५-१(-) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २९, पद्य, मपू., (सरस वचन दे सरसती एह), ११३४६२(#$), ११३४६७(#$) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुवचन आपो शारदा मया), ११०५५९(+) पार्श्वजिन छंद-नाकोडामंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), १०६७०२-७(+#), १०६७०२-९(+#), १०८५११-२(+#), ११३५०२(+), १११८९८-२($) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ११२४९९(+), ११५०६२-४(+#), १११६५२ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थमंडन, ग. नित्यविजय, मा.गु., गा. ३७, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (सारदा माता सरस्वति,), ११५१६०-१(६) पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपूर श्रीपासजिणंदो), ११०२१२-२(+#), ११२५३५, १०८८११(#) पार्श्वजिन ढालिया-गोडीजी, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मप., (सानिध्यकारी भारती पद), ११४४६०($) पार्श्वजिन द्रुपद, मु. धर्मशील, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूप., (केवल वाला० कोइ बतावे), ११४१९७-१ पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. २७, पद्य, म्पू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ११२९०६, ११३६४४, ११४२५७-२, ११४०६४(#$) पार्श्वजिन पद, मु. उदयसागर, पुहि., पद.७, पद्य, मप., (अब हम कुं ज्ञान दीयो), ११४०१३-२(#), ११४६१२-६(2) पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (तूं मेरे मन में तूं), १११८२१-१, ११४५२१-२ पार्श्वजिन पद, मु. क्षेमप्रकाश, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऐसै संत वसंत खेलत), ११०५३९-३(+) पार्श्वजिन पद, मु. चंदखुसाल, मा.गु., पद. ५, पद्य, मप., (नन्नडायो गोद खिलावै),११५१८३-१ पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (माई रंगभर खेलेगे), ११०५३९-१(+), ११३८९१-१(+) पार्श्वजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., गा.७, पद्य, मप., (होरी के खिलईया हारे), ११४२४३(+$) पार्श्वजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूप., (वो दिल भाय मेरे सांइ), ११४१९७-४ पार्श्वजिन पद, श्राव. दानमल्ल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पास पीयारो लागो पीयारो), १०९१६५-३(+) पार्श्वजिन पद, श्राव. देवब्रह्मचारी, पुहि., गा. ७, पद्य, दि., (काशीदेश बनारस नगरी), ११३४८७-२ पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (मेरे मन मानी साहिब), ११३४९८-२ पार्श्वजिन पद, मु. विमलचारित्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (दीठा पास जिणेसर आज), १०८२५४-१(2) पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा., गा. ३, पद्य, मप., (तेवीसमा जिनराज जोडी), ११३७३७-३(+) पार्श्वजिन पद, मु. हीरालाल ऋषि, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (अब मोय तारी ये सांवल), ११३६४९-१५ पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पारसनाथ अनाथ को नाथ मुगति), ११३८८३-१ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, अभयचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (गोडी गाइएं मन रंग), ११२५२६-३(#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मा.गु., गा. ३, वि. १८६६, पद्य, श्वे., (आज हमारे भाएग जाग्या गोडि), ११३६४७-४(+#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. अबीरचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (पारसनाथ दया कर मोपे द्यो), ११५१७३-४ पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. अबीरचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (प्रभुजी सदा सुख दीजै टुक), ११५१७३-३ पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पासकि पासकि पासकि), ११२५२६-२(#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा), १११२५१-५(+), ११२०२५-१(-) पार्श्वजिन पद-फलवर्द्धि, मु. ज्ञानहर्ष, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (फलवधि पासजिनंदा मनमोहन), १०८५६६-१(#) पार्श्वजिन पद-फलवर्द्धिपुर मंडण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (भयभंजण श्रीजिनवरपास टालै), १०७६५२-२ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. ध्रमसीह, पुहि., गा. ३, पद्य, स्था., (पूजा घनी संखेसर पास की), ११४२४९-१(+) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (नादान पीआजी हो बालुड), ११२०३७(#) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. वीरविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजब जोत मेरे प्रभु), ११३४९८-१ For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अब क्या सुवे उठ जाग रे ), ११४६१२-४(#) पार्श्वजिन प्रतिष्ठा स्तवन-कुज्जरावालपंजाब तीर्थमंडन, मु. मोहनलाल, मा.गु., ढा. ९, गा. १०९, वि. १९२१, पद्य, मूपू., (शासन नायक वंदीये), ११४९९४(+$) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारद वदन अमृतनी वाणी), ११३८०६-१(+) पार्श्वजिन बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रावण पावस उलह्यो), १०८३७८, ११४१३४-२(#) पार्श्वजिन लघु स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. ( आजने वधावो हे सहीयर माहरइ), ११०७४०-२(४) पार्श्वजिन लघुस्तवन, मु. विशाल, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू., ( पास जिणेसर परगडी रे परता), ११३१७४-२ (०) पार्श्वजिन लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, स्था., (एस मुनीराज माहाराज बीदं), १०६६६८-२१ (-) पार्श्वजिन लावणी, मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, स्था., (पार्श्वनाथ महाराज आप) १०६६६८-१(-) " पार्श्वजिन सज्झाय, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., गा. २५, पद्य, स्था., (श्रीकासीदेस वाराणसी नगरी), ११००९१-३ (+) पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., गा. ५६, वि. १८५१, पद्य, श्वे. वै., (प्रणमुं परमातम अविचल ), ११४५३९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयकीर्ति मुनि, मा.गु गा. ९, पद्य, मूपू.. (पास जिणेसर रावा रे सेवइ), ११२७८१-१ (+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुंदर सूरत सोहै सकला पूजा), ११३११४-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु. गा. १५, पद्य, श्वे. (श्रीसुगुरु चिंतामणि), ११४७१६-१(+४) "" पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू (निरमल होय भज ले प्रभु), १०८३५२-३, १०९१९१३-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षेमकरण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (प्यारी प्यारी प्यारी), ११३१६५-१(१) " पार्श्वजिन स्तवन, ग. गुणरत्न, मा.गु.. गा. ८. वि. १६८६, पद्य, भूपू (पारसनाथ० कलापजी नाम ) १९३८१४-१(A) पार्श्वजिन स्तवन, मु. चिमन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर स्वामी तुं), ११३८२७-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, स्था. (बंदू पारस जिनंद वंदू), १९३४२२-५ पार्श्वजिन स्तवन, पं. जगरूप, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अंग२ अदभूत ओपमकी वलि हारी), ११३११४-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मन मोहनगारो साम सहि), ११०९७७-१, ११३४८०-१ पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनकीर्तिसूरि, मा.गु. गा. १८. वि. १८११, पद्य, मूपू (प्रभु पास जिनेसर स्वामी), १९१३४९-२(*) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अश्वसेनजीरा वावा), १११९००-४ " पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू (जीनवर माहा तेवीसमां), १११०९०-२(+०३) " पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., ( आज बिहाडी रूवडी), १०६७०२-१४(+०७) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनराज, पुहिं. गा. ६, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (डारु गुलाल मुठी भरके मेरो ). ११२५३४-२ " ', पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु. गा. १५ वि. १४७१, पद्य, मूपू (अश्वसेन नरपतिराय), १०८४०४-३(०) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., डा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू (अकल अजर प्रभु एण कले). ११४३०१ (०४) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वयण अम्हारा लाल हीयड), ११३७४५-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु. ( सुगण सोभागी साहब), ११३३२१-२(5) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानसूरि, मा.गु., डा. ६, गा. ६४, वि. १५९६, पद्य, मूपू (वाहन सारिंग चडी करी). ११३८०९ (४३) י पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवीचंद, पुर्हि, गा. ९, पद्य, भूपू (आसुसीण घरे लाडला रे), १९३८४५-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धन्नो, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (सांभल साहिब वीनती मोरी ए), ११४००७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नेम, मा.गु., गा. ५, पच, मूपू., (वारु वारु रे म्हांरा), ११४१२३-१ (क) पार्श्वजिन स्तवन, मु. नेमसागर, पुहिं., गा. ५, पद्य, म्पू., (मुज चितडोजी माहाराय तुमसु), ११३९०८-१(४) पार्श्वजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु. गा. ४, पद्य, भूपू (मुगट परि वारीयां), ११३७३७-१ (+) " पार्श्वजिन स्तवन, पं. परमानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( पास जिणेसर वंदीये निरमल), १११७७४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. महिमाविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मन समरी सरसती होकै भगवती), ११४७१०-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., ( पासजिणंद जुहारीयै अहनिसि), १९४९८३-३ (+) पार्श्वजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (-), १११८६१-१०६) For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मन भावन जिन तनमन तोसे), १०७३२३-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविनय, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (पास जिणराय जगता नमियइ सदा), १०८८१२-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ३३, पद्य, पू., (जय जय जिन मुख सरसति वरसति), ११३००८(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (क्युं न करे रे), ११४२३३-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरती श्रीपास), १११७१५-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भगति पास जिणेसर गाईय), १०८८६९-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, पा. सदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मोरा पासजिनराय सूरत), ११४२७१-३ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (अश्वसेन नृप कुल चंदलोजी), १११९००-५($) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज सुदिन भाइ मे जिन), १०८२५३-१ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूप., (ऊँचा रानीजीरा गोखडा कोई), ११३४८०-२ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (काशी देश वणारसी नगरी तारी), ११३५२३-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (पारसमणि साचो रे फरसे लोह), ११०४२९-२ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. १८, वि. १९४८, पद्य, म्पू., (ये तो पारस प्राण आधार रे), १०९५०१ पार्श्वजिन स्तवन, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (सानिधिकारी पाशजिणेसर), ११३७८७-१ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूप., (सारा गुणवंतानै उवारी जावु), ११३५४०-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११२०९२($), ११२३३८(६) पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीसारद हो पाय), ११३०८२-१(+#), ११३२९२-२ पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूप., (श्रीसारद हो पाय), ११४१००(+) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मप., (प्रणमं पारसनाथ प्रह), ११३१९६(5) (२) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रह समै पारस्वनाथजी), ११३१९६($) पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (तपवर कीजे रे अक्षयनिधि), ११०५५० पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), १०९४९०(+), १११०९६(+9), ११२२९१, ११२५६४(#$) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरतन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गोडी पासजी दरीसण), १११२३४ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तें गुन आगर साहिबा गोडी), १०८९१३-४ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मपू., (अमल कमल जिम धवल विराजे), १११०७७-२(+), १०९४१३-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (वाल्हेसर मुझ विनती), १०७१६४-२(+#), ११२९८२-३(+), ११४२७१-१,११५१२८-२(2) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (गुण गावो रे गुण गावो रे), ११४२४९-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गोडी चारे एक करूं), १०७१६४-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (मूरति मननी मोहनी सखी), ११०९६६ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (धिंग धवल अलवेसरू रे गिरूउ), ११४०२२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १५, गा. १३७, वि. १८१७, पद्य, भूपू., (प्रणमुं नित परमेश्वर), ११२५२७(#$), ११४६२२(#S), ११३००७६), ११४५९९(5) । पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. पद्म, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भावे वंदो रे गोडीपास), १११२९३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. प्रमोदचंद्र, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (ब्रह्माणी वरवाणी मुझ दियो), ११०८९८-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. फतेचंद, मा.गु., गा. १२, वि. १९वी, पद्य, मूप., (मरुधर देस देसांसि रे जोधा), १११२९८ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (मुजरो मानीने लेजो हो), ११४६१२-८(#) For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुम बिन कोन खबर ले गोडी), ११०४०६-५ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सोनानी आंगी हे सुंदर), ११२४८३-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. विद्याविलासजी, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुंगवडी मंडन पासजी), ११३५३७-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. विद्याविलास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (तुं जग जीवन वालहो), ११३८०८-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सुमतिसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीगोडीपुर पासजी एक करुं), ११३६०७-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, सुरचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (गोडी गामने गुदरे), ११४१२३-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. हस्तसागर ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीगौडी प्रभु पास), ११०६६४ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., गा. ४, वि. १९२१, पद्य, मपू., (चांदी रे बंगले वीराजे), १०९१६५-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-घोघातीर्थमंडन नवखंडा, मु. विजयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (साहिब नवखंड पासजी रे अरज), ११३५५१-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (सिद्धि सुगुरु प्रणमी), ११४२५८-३(#$) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (हेली जेसलनगरे रे), ११४५२१-४ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीचिंतामणि पास जिनेसर), १०६७०२-१३(+#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. शिवनिधान, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अचित चिंतामणि सारिखओ छोडइ), ११४४३२-१ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, पू., (आणी मनसुध आसता देव), ११११४१-१, १०९४१३-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, म. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (श्रीजीराउल पास आस हमारी), १११९७५-३(+#) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावलातीर्थ, मु. विजय, पुहिं., गा. ११, पद्य, स्पू., (--), ११२३७९-१(+$) पार्श्वजिन स्तवन-दशपुरमंडण, मु. उदयसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (दशपुरमंडण सोहै नवफण), ११३८३२-४(+#), ११२८२७-४ पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९४५, पद्य, मूपू., (घनघटा भुवन रंग छाया), ११०४०९-२ पार्श्वजिन स्तवन-नवपल्लव, मु. हरख, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), १०८७५८-३(-) पार्श्वजिन स्तवन-नारंगामंडन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (विषय त्रेवीस नीवारी), ११०५४१-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (परमातम परमेश्वरु), १०९८८९-१(+), ११२५२५-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (परम पुरुष परमेसरु), १०७३१९-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-पारकरतीर्थमंडन गोडीजी, मु. हर्षनंदनजी, मा.गु., गा. ७, वि. १६८३, पद्य, मूपू., (पारकर काने सुण्यउ नयणे), १११२०६-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सरसति माता सेवका दे), ११३८४३($) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, उपा. ध्रमसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ध्यावो फलवी पास घणी), ११४२४९-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-बाडमेरमंडन, मु. विजयसेखर, मा.गु., गा. ९, वि. १६१९, पद्य, म्पू., (नगर बाहडमेर दीपतौ), ११३९७७-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-बोरनगर मंडण, मु. केसरविजय, रा., गा. १०, वि. १९४१, पद्य, मपू., (पारस थारि निरखण दो), १११८२८ पार्श्वजिन स्तवन-भटेवातीर्थ, मु. दया, मा.ग., गा. ५, पद्य, श्वे., (पास भटेवा जीवंदो ए तोवा), ११४५०६-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-भाभातीर्थमंडन, मु. शिवनिधान, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (कालइ सुरतणा भाभा अतिशय), ११४४३२-३ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्या माटे साहिब सामु), ११२२८०-३ पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., गा. ५३, वि. १६६१, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमीय पाय), ११३५९३(5) पार्श्वजिन स्तवन-भीलडी, मा.गु., गा. ६, वि. १९५०, पद्य, मपू., (वामादेवीना जाया रे), ११०४०९-३ पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (मनमोहन पावन देहडीजी), १०७४९५(2) पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मोहन मूरति ताहरी जी), १०७४८१-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, वा. विमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वारी जाउं साहिबा वार), ११४७१०-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-राधनपुरमंडन, मु. रुपचंद, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (सुवचन द्यो मुझ शारदा), १११७५४($) पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रपुरमंडन, आ. जिनकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ४, वि. १८०९, पद्य, मूपू., (--), १११३४९-१(+$) For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (लोईयपुरइ आज महिमा घण), ११५१६३-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काइ रे जीव तुं मन), १०७५१८ पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मु. देवरतन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी मनि ध्यावओ मन), १०८४४५ पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मु. नित्यप्रकाश, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (सारद हो पाय प्रणमवी), ११२३७९-२(+$), ११४००३-२ पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (श्रीवरकाणै पास सदा संपठ), ११३५३७-३ पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसी, मा.ग., पद्य, मप., (गोयम गणहर प्रणमी पाय सरसत),११५०६१(६) पार्श्वजिन स्तवन-विचारगर्भित, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २२, पद्य, मप., (पणमिय पास जिणंद), १०९२७२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आप अरुपी होय नय प्रभ), १११९७५-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (लगी लगी आंखीआने रही), ११३१२७-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कृष्णविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (प्यारा लागो प्रभु), १०६४९४-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. चिमन, मा.ग., गा.८, वि. १९७०, पद्य, मप., (सफल दिवस थयो आज अमारो), ११३८२७-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), १०६७०२-४(+#), १०७१७५-१(+), ११३५३७-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (अंतरजामी सुण अलवेसर), १११०७७-१(+), ११२०८८-२(+), ११४२७१-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (प्रणमुं श्रीसंखेसर), १११०७८-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूप., (रहिने रहिने रहिने), ११३१२२-३(+-#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (समय समय सो वार संभार), ११४६११-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जी प्रभु पासजी पासजी), १०९४२७-२(#$) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (आंगी अनोपम श्रीजिनवर की), ११०४०६-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. वीरविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १८७८, पद्य, मपू., (नित्य समरूं साहेब), १०९४८२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मा.गु., पद्य, मप., (भाव भगति धर भेटियो रे), ११३७३७-४(+$) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (प्रह उठी प्रणमे), १११०६३-३(+$) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. शिवनिधान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पुरुष आदे य जसु सुजस जगि), ११४४३२-२ पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थमंडन, मु. अजयराज, मा.गु., गा. ६, वि. १९३४, पद्य, मपू., (समेतशिखर गिरराज आज), ११०७१०-७(+) पार्श्वजिन स्तवन-सांवलिया, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (चालो भविजन चालो भविजन),११०२४७-९ पार्श्वजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सजनी मोरी पास जिणेश्वर), ११०३७७, ११०४१८-१, १११८२१-२(६) पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, ग. जीवकलश, मा.गु., गा. २, पद्य, मपू., (प्रभुजी सुंदर पास मिल्यो), ११५२२६-८(+) पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. २८, गा. ३२३, वि. १८११, पद्य, मूपू., (सरसतीने समरं सदा), ११३२०६(#$) पार्श्वजिन स्तुति, मु. टीकमचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (जिनवरजी भाषे नित दया), ११०२४७-१० पार्श्वजिन स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (प्रह ऊठी प्रणमो श्री), ११३९५२-३(#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपास जिणेसर पुजा), ११२४८०-२ पार्श्वजिन स्तुति, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., सवै. ३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमर हरन),१११५५८-३(#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (पास जिणेसर प्रणमो हेजे), ११३०५१-१ पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक चैत्र वदि चोथि दिन पोस), ११३५८०-२(+#) 145) For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७२ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (वाणारसी नगरी रिद्ध भरी), ११४९७७-४ पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, भूपू (सरसति पय प्रणमी करी आपो), ११३५८४(३) पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. लब्धिरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिन गोडीपार्श्व), ११३२२३-१(-) पार्श्वजिन स्तुति-मगसीतीर्थ मंडन, मु, लाल, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. मगसीरो सांमी प्यारो लागे), १०९४०६-४२० पार्श्वजिन स्तुति-मगसीतीर्थ मंडन, पुहिं., पद्य, मूपू., (पूरो मेरी आस हो मगसीपास), १०९४०६-३(#) पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. महिमारुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शंखेसर पास जिणंद), ११३०२०-७ पार्श्वजिन स्तुति- स्थंभनपुर, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (थंभणपुर प्रभु पासजी तेवीस), ११०२४७-५ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसकल सार सुरतरु), १११०६३-२ (+) पार्श्वजिन होरी, मु. वल्लभसागर, पुहि गा. ५, पद्य, म्पू, (पासजि के दरबार चलो), ११४९८६-३ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי , पालामान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप लाख जोजन), ११०५०७ पुंडरिककंडरीक सज्झाय, मा.गु., डा. २ गा. ३५, पद्य, वे. (कुंडरीक रीद्ध तज), ११३०१३-२ पुण्यपाल चरित्र-दानाधिकारे, मु. रामदास ऋषि, मा.गु., ढा. ३५, वि. १९०९, पद्य, वे., (संतिनाथ साता करन अरी), १०६६७० (+#), १०७०४८-२ पुण्यपाल चौपाई, मु. केसर, मा.गु., ढा. १९, पद्य, म्पू (आदेसर आये करी चौवीस), १०७०४९(३) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., डा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, म्पू, (सकल सिद्धिदायक सदा), १०६९९५ (+), ११३१०० (+#$), ११३१३९ (+#S), ११४९५० (#$) पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. ९, गा. २०५, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (नाभिरायनंदन नमुं शांति), ११३५९० (+$) पुण्योपार्जन सज्झाय ९ प्रकार, मा.गु., पद्य, क्षे., (नव प्रकारे पुन नीपजे ते), ११३६३३-२ (०४) " पुगलगीता, मु. चिदानंद, पुहिं. गा. १०८, पद्य, मूपू (संतो देखीयें बे), १०६९९२-१ " पुरुषलक्षण चौपाई - सामुद्रिकशास्त्र, मा.गु., चौपा. ३८, पद्य, मूपू., इतर, (--), ११२३३४-१(+$) पूर्व १ संख्यामान गाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सीतरलाख करोड वरस छपन), १११२९१-२(+) पूष्प दोहा, पुहिं. गा. १, पद्य, मूपु वै. इतर (मधुर शीतलबास गुलाबकी), ११४५७५-२(०) " "" पृथ्वीराज चौहाण कवित्त, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., इतर, (ओइ चवाण चहूयाण जाऐ सैया), ११२६५१-२ (+#) पोतियाबंध रास, पु,ि पद्य, थे. (केई जैनी नाम धराय कै), १९४९६८ (+३) " " पौषध फल, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक दिन रात्रैनो पोसा करे), ११३१७५-२ पौषव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पहिलु समरण आणीय). १०६७८०-४(+), ११३६४८) प्रताप चरित्र व अवीरचंद्र ऋषि, मा.गु., खं. ६, वि. १९४२, पद्य, मृपू., (सिद्धचक्र सब दुख है सुख), १०६८८७ (+) हरे प्रतापरन मुनि लिखित पत्र, पुहिं., गद्य, मूपू. (किं कर्पूरमयं सुधारसमयं), १११६०५ (ख) " , प्रतापसिंघ चंद्रायण चतुर्दशरत्नगर्भितसमुद्रवद्धचित्र, पुहिं. वि. १८५२, पद्य, मूपू (सारद श्रीधर समर के इष्ट), १०९३९८ (+) प्रत्याख्यान फल, मा.गु., गद्य, श्वे., (नउकारसीइ वर्ष शत), ११३१७५-१ प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (धुरि समरुं सामिणी), ११५१०२(#) प्रथम महाव्रत सज्झाय, मु. जस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (महाव्रत पहेलुं रे मु), ११२५६५-१ (+) प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सेतंबिका नयरि सोहांम), १११६१६-१(+) प्रदेशीराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू.. (दया माताने वीनमु वंदु सीस), १९४०५३-२ (००६) प्रद्युम्नकुंवर लावणी, मु. खूबचंद ऋषि, पुहिं., गा. २२, वि. १९६४, पद्य, श्वे. (ये प्रजनकंवर कि), ११४९२६-१ प्रद्युम्नकुमार लावणी, रा., पद्य, श्वे., (प्रजनकुंवर कहे सांभलो सुण), ११४९२६-२ ($) प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु. दा. ३, गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू (गिरि वैताद्यने उपरे) १०९३७८(*), ११३३२६(३) 5 ', प्रभात दोहा, रा., दोहा. १, पद्य, इतर, (प्रह फाटी पगडो भयो), १११८९९-३ प्रभावतीगुटीका कल्प, मा.गु., गद्य, म्पू, इतर (हलद्र १ नींबपत्र २) १९४३४९() For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं तुमारा पाय), १०६६६१-३(+), १०६५३४-३(#) प्रस्ताविक-दोहा, मा.ग., गा. २८, पद्य, मप., (श्रीजिन सद्गुरू), १०९०४८-२(+) प्रहेलिका कवित्त, मु. काल, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., इतर, (षट् रति एकमाष माष इग्यारा), ११२५६८-२ प्रहेलिका कवित्त, क. गद, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (पग तुरंग नही तुरी लंक), ११२५६८-१ प्रहेलिका दोहा, मा.गु., गा. २, पद्य, जै., इतर?, (गिऊ पहली नीपजै सरीखो), १११८४१-२(#) प्रहेलिका दोहा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (चार मील्या चोसठ हसे), १०८५६७-५(#) प्रहेलिका दोहा-कागल, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., इतर, (पढम अक्षर विण सह ने भावे), ११४८४६-२(+#) प्रहेलिका पद, पुहिं., पद. १, पद्य, इतर, (अधर फारत त्रिसूल अधर सिर), ११४२११-४(#) प्रहेलिका पद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (चउसठि चावल एक गासु बत्ती), ११४०२९-३ प्रहेलिका संग्रह, मा.गु., पद्य, इतर, (खाट खटक नेलोनां कडा), ११३३७२-४ प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (पवन को करें तोल गगन), १०८०५२ प्रहेलिका संग्रह, मा.गु., गा. ८, पद्य, जै., इतर?, (सरोवर पाय पखारति), ११०७१०-६(+) प्रास्तविक पद, पुहिं., गा. १, पद्य, जै., इतर?, (दरीयो खारो सब कहत को करहै), १०७२४६-७ प्रास्ताविक कवित्त, मा.ग., गा. १, पद्य, इतर, (छत्रहि कनिया जान मिल आइ), ११०९९२-२(+) प्रास्ताविक कवित्त, पुहि., का. १, पद्य, वै., इतर, (धीर कह्यो वीर कह्यो भारी), १०७२४६-५ प्रास्ताविक कवित्त-विनाश के स्थान, क. नारायणदास, पुहिं., का. १, पद्य, वै., इतर, (नीच को नेह अनाथ को जीवन), १०७२४६-६ प्रास्ताविक चौपाई-व्यक्तिवस्तु उपमा, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (दाता कवीता उगरे मतवाले), ११०४४९-२(+) प्रास्ताविक दोहा, पुहिं.,मा.गु., दोहा. ४, पद्य, मूप., (कासा कसिकु ना लेत हे), ११४०२५-३($) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., दोहा. ७१, पद्य, श्वे., इतर, (पडिवन्नइ माछा भला), ११३६३७-२(+#), ११३७११(+$), ११२०९१(#S), ११४६६३-६(s) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं.,मा.गु.,रा., गा. २५, पद्य, वै., इतर, (बुरी प्रीत भमर की कली कली), ११२७२८-३(+), ११३०६४-३(+), ११४५७५-३(+), १०८१६७-१, ११२६१०-२,११३९०८-३(#) प्रास्ताविक सपखरो गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., इतर, (दाता झाली यासै यसौ नेकी), १०८२३९-१ प्रास्ताविक सवैया, ब्रह्म, मा.गु., दोहा. २, पद्य, वै., (गोकल घेजदुनाथ चले तजी), ११३३७२-३ प्रास्ताविक सवैया संग्रह, पुहि.,मा.गु., गा. ३, पद्य, जै.?, (एक ही मातपिता तसु), १०८२३९-३(s), ११३५१३-२(-) प्रास्ताविक सवैया-समस्यागर्भित, पुहिं., गा. १, पद्य, इतर, (रेयण पीआ की रही रंग संग),११२६८४-२(#) प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मपू., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), ११३७५६(+$) प्रियमेलक सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (प्रियवंदन परबति चडी हो), ११४१३५ बंधउदयउदीरणासत्ता विचार, मा.ग., गद्य, मप., (मिथ्यात्वगुणठाणइ११७), ११२४३४(#$) बंधेजगुटिका रेखता, मु. न्यानविजय, पुहि., गा. १, पद्य, मपू., इतर, (दारू ऐक बंधेज का कहूं), ११०१६९-१ (२) बंधेजगुटिका रेखता-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (जायफल टांक१ जावंत्री टां१), ११०१६९-१ बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तुंगीआगीर सीखर सोहे), ११४१०९-१(+#) बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (मासखमणने पारणे तपसी), ११४१७७-१(६) बादरजीव पर्याप्तापर्याप्त विचार, मा.ग., गद्य, मप., (बादर मध्ये जीव पर्याप्ता), १०९१४६-१ बाहजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (परणे रे बाहू रंग), ११२२९०-३($) बाहजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मूप., (रमत रमिवा मैं गईथी), ११२५८६-१(+) बाहजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा. ११, वि. १८३६, पद्य, मपू., (बाहूजणंद माहारा देव), ११२१६८(#) बाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साहिब बाहु जिणेसर), १०९४३३-२ For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ बाहुबली सज्झाय, मु. न्यानसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (वीराजी मानो वीनती), ११३७९५-१ बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहूबली वन काउसग), ११३०६९-२(+#$), ११४९५५-६(#S) बाहुबली सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बाहुबल दीक्षा ग्रही), ११३०६९-१(+#) बीजतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मप., (दुविध धर्म जिणे), ११०४६६-२(#) बीजतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (बीज तणे दिन दाखवू), ११५२४२-९ बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (बीज कहे भव्य जीवने), ११०२३९ बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. १९, वि. १८१९, पद्य, म्पू., (श्रीश्रुतदेवि पसाउले), १०८४२१ बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), १०७७२४-२(+), १११११५-१(+-), ११२४०१-१, ११२८२७-१, ११४०३७-१, १११०७९(#), १११७९३-२(#), १०९७२६-१(६), १११९८६-१($) बुढ़ापा रास, श्राव. मोतीचंद, रा., ढा. २२, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (दया ज माता वीन), १०७००२-१ बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं देवी अंबाई), ११३७०१(#S), ११३७९६($), ११४३०२-१(६) बृहद् आलोचना, श्राव. रणजीतसिंह लालाजी, मा.गु., गा. ८९, प+ग., दि., (सिद्ध श्रीपरमात्मा अरि), ११०९५२-३($) बेला तेला ग्रहण विधि, मा.गु., गद्य, मप., (प्रथम देहरे निसही कह), ११२२४०(+) बोधिदुर्लभ भावना सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (वार अनंती फरसीओ छाली), ११३३०९-१ बोल संग्रह-जीवादि भेद, मा.गु., गद्य, स्था., (एगेंदीएस पंचसु बार), ११०४६३(5) ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती लावणी, मु. खुबचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (ये धर्मदत दुवादसमो चक्री), १०६६६८-१८(८) ब्रह्मदत्त चौपाई, मु. कनीराम, मा.गु., खं. ४, वि. १९०२, पद्य, श्वे., (प्रथम देव जुगादधर), १०६८०४ ब्रह्मबावनी, मु. निहालचंद, पुहिं., गा.५२, वि. १८०१, पद्य, मपू., (ॐकार अपार परमेश्वर), ११५१२७(#$) भडलीपुराण, पुहि., गा. १११, पद्य, मूपू., इतर, (सारद मात पसाव करि), १०९३५२-१(#) भरतक्षेत्रादि परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (भरतक्षेत्र ५२६ योजन), ११४१९५-२(#) भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आभरण अलंकार सवही उत्तारे), ११२२०७-२(2) भरतबाहुबलि सज्झाय, मु. चौथमलजी, मा.गु., गा.८, वि. १९६६, पद्य, श्वे., (हो मुझ बंधव प्यारा कुरणा), १०७८४२-२ भरतबाहुबली संवाद, मु. कुशलराज, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मपू., (सारद माता समरीW), ११२८८८-१(#) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (तव भरतेश्वर वीनवे), ११०५८७-१ भरतबाहबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३८, वि. १७७१, पद्य, मपू., (स्वस्ति श्रीवरवा), ११३१०८(+#) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहुबल चारित लीयो), ११३९४८(#) भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया),१११६८४-१ भरतबाहुबली सवैया, मु. सभाचंद, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूप., (परम पुरुष धरा जुगल), ११४२१४(#$) भरतेश्वरबाहुबली लावणी, मु. हीरालाल, रा., गा. ६, वि. १९६२, पद्य, स्था., (या करी तपस्या भाग उद), १०६६६८-८(-) भवणद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (सातमी नारकीनां नाम), १०६६६९-१(#) भवानी स्तोत्र, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (सकति सदा सानिधि करो), ११४१९३ भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३९, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (क्रिया अशुद्धता कछु), १०९०४८-१(+) भावदीपक, पुहिं., पद्य, श्वे., (परमपुरुष परमातमा अचर अरेख), १११८८३($) भावसारपुत्र कवित्त, पुहि., का. १, पद्य, वै., इतर, (कुल भावसार के वंस मै भये), १०७२४६-८ भिक्षगुरुगण रास, मा.गु., पद्य, ते., (--), ११२८३९($) भीखनजीगुरु गहुँली, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (भीखू येतो वालपण वुधवंता), ११०७५३-२(+) भीखनजीगुरु गहुँली, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (--), ११०७५३-१(+$) भीमसागरगुरु सवैया, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (पुज्य श्रीभीमसागर सुगण), ११४०१६-२ भीलडी सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सरसती सांमीने वीन), ११०२०६ भुवनेश्वरी छंद, मु. गुणानंद-शिष्य, मा.गु., गा. ३६, पद्य, श्वे., (प्रणमी पार्श्व जिनंद), ११५०६७(#$) For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ भूमिका फास के भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (अवावरु क्षेत्रनी), ११०९७५-२(+) भूमिपूजन विधि, पुहिं गद्य, मूपु (प्रथमसें नींव खोदी गई है), ११०२४१ भोजराज भानुमती कथा, रा., गद्य, श्वे., ( चंपावती० राजा राज्य करइ), ११३०५७(+) मंगल दीवो, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दीवो रे दीवो मंगलिक), १११७०६-२ मंदोदरी लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, स्था., (तुम सुणों पियाजी अर्ज एक), १०६६६८-१३(-) मडवाश्रावक सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (नगरीता राजग रीरीवाग मेरे), ११३१२३-१(-) मदनकुमार लावणी-शीलव्रत, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ५. वि. १९६२, पद्य, स्था. (ये सील करत अरथ मोक्ष को), १०६६६८-१८) मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., गा. १७९, पद्य, मूपू., (वापै सु आपै धनन्नी), ११०५९९(+) मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १८८, पद्य, म्पू, (जुआ मांस दारु तणी). १९१९७४-२ (5) मधुबिंदु सज्झाय, मु.चरणप्रमोद शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), ११५२२२-१ मनुष्य क्षेत्र पर्वत नद्यादि विचार कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ११०४०२(#) मनुष्यगति से देवगति में उत्पत्ती विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (तथा मनुष्य देवता थाई), १०९१४६-३ मनोरथ भावना, मु. हुकमचंद मा.गु., वि. १९०५ प+ग. वे. (समरी सरसति भगवति), १०६७९३(१६) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. कल्याण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपु. ( रिषभ जीवन वासइ वसइ), १०८४०५-२(+) मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., खं. ४ डाल ९१. गा. १०५२, वि. १७७५, पद्य, भूपू (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), १०८९२८(+#$) मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., डा. ५, गा. ४१, वि. १७५६, पद्य, मूपू. (नवपद समरी मन शुद्धे), ११५१६३-१(क) मल्लिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु. गा. १९, पद्य, म्पू, (त्रिभुवन प्रभु रे), ११३१८२(६) " मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोहे केसे तारोगे दीन), ११४६१२-९(#) "" महाबलमलयासुंदरी चौपाई, मु, भक्तविमल, मा.गु., खं. ४, वि. १८५२, पद्य, मूपू. (श्रीपार्श्वनाथ प्रणम), १०७०४८-१(३) महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८३०, पद्य, श्वे. (ढाल कोयल प्रक्त), १११०९१ महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ हिवइ श्रीमहावीरस्वामी) १११९०४(३), ११४६६२(३) महावीरजिन गहुंली, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जग उपकारी रे वीर), ११३७३० महावीरजिन गहुंली, मु. अमृतसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जी रे जिनवर वचन), १०९४३६ महावीरजिन गहुंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभु मारो दीइ छें), ११०४३३ महावीरजिन गहुली, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बहिनी अपापानवरी), १११८८६ महावीरजिन गली, मु. हर्षचंद, पुहिं, गा. ५, पद्य, मूपू., ( कौने वन वीर समोसर्या), ११२०९३ २ महावीरजिन गहुंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु मारो भोग करम), ११०४०९-१ महावीरजिन गीत- रसोई, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपु., (शारद मात नमुं सिरनामी हूं), १९४४२७-१(१०) महावीरजिन गुणवर्णन, रा. गद्य, भूपू (हवे इहां कुणजे जाणवा), ११४६१३(३) ', महावीरजिन चरित्र - संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, मूपु., (णमो अरिहंताणं णमो ), ११२९३३, ११३००६ (5) महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नव चोमासी तप कर्या), ११०५४८- ९(४) महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, स्था., (सिद्धार्थकुलमई जी), ११०३७३(+), ११४५४११६) For Private and Personal Use Only ५७५ महावीरजिन जन्मबधाइ पद, मु. रतन, पुहिं, गा. ४, पद्य, भूपू (जगनायक के जगनायक के), ११२८९०-२(+) " + महावीरजिन ढाल, मु. चंद्रभाण ऋषि, रा. गा. ३०, वि. १८५१, पद्य, ओ., (सासणनायक वीरजणंद), ११३६८६-३(५) महावीर जिन निसाणी, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू. (--). ११४९०२ (+) महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीमाता सरसती सेवक), ११२२५५ (+#$), १०८०२६ (#s), ११२३०५ (#$) Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन पंचकल्याणक चोढालियुं, मु. नित्यलाभ, मा.गु., ढा. ४, गा. ५७, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (प्रेमे प्रणमुं सरस्वती), १०९४२२-१ महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज हमारे भाग वीर), ११४५२१-१ महावीरजिन पद, मु. देवीलाल, पुहि., गा. ४, वि. १९६०, पद्य, श्वे., (श्रीत्रिसलादे के नंद बसत), १०६६६८-२३(-) महावीरजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूप., (नाही रे कोई जिनजी), १०७९३३-२(+) महावीरजिन पद-पावापुरमंडन, मा.गु., गा. ३, पद्य, पू., (पावापुर महावीररी सखि), १०८३५२-१ महावीरजिन पारणं, मु. अमीविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (माता त्रिशलाए पुत्र), १०९४६४ महावीरजिन पारj, मा.गु., पद्य, मूपू., (माता त्रिशला झूलावि पूतर), ११४१९७-५(६) महावीरजिन प्रभाति, आ. कांतिसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (चरण कमल श्रीवीरजिणेश), ११२७५२-२($) महावीरजिन विनती चौपाई-संकटहरण, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मपू., (शारद दीजे ज्ञान अपार), ११०५११ महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, भूपू., (वीर सुणो मुज विनती), ११२१९१-३(+$), ११२९८२-१(+), ११४६०२(+), ११५०८१-१(+#), ११०११०, ११३१६१(#s), ११३८९८६), ११४१६३($) महावीरजिन सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (द्यो नरमली मांगु एक पसाये), ११३६५३ महावीरजिन सज्झाय-उपसर्ग, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूप., (सिद्धार्थ कुल उपना), १०९६४५(#) महावीरजिन समये तीर्थंकरनामकर्मधारी ९ जीव सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, स्था., (वीस बोल अदेन आठ मे कह्यो), ११३७००-२ महावीरजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सूर एक आयो रे साहस), ११२६५१-४(+#$) महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर साहिब मेरा), १०९४२२-२, १०९४४१-५ महावीरजिन स्तवन, मु. चौथमल, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (मारे मंदिर ये वेरणा नेहा), १११६००-२ महावीरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीवीर जिणेसर वंदे), १११३९३-२ महावीरजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (म्हारे भले उगो रे), ११४५२१-३ महावीरजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुपाय जगजीवन चरम), १०८४०४-२(+) महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (के आज मारे देरासर दीवाली), ११०२१५(२) महावीरजिन स्तवन, मु. धरमचंद, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (सिवसुखकारण दुख निवारण), १०८८१२-१(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीसीद्धार्थकुल), ११११४१-२ ।। महावीरजिन स्तवन, मु. नेमकुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर जगउपगारी), ११०९९२-१(+) महावीरजिन स्तवन, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रभु सांभल अरज सेवग केरी), ११०२४७-६ महावीरजिन स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., गा. २०, पद्य, मूपू., (मोहराय से लडीया रे), १११०७८-१(+$) महावीरजिन स्तवन, मु. मोतिचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिद्ध स्वरूपी आतमा रे), १११४००-२(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरुआ रे गुण तुम तणा), १०६५०७-६ महावीरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आमलकल्प उद्यानमां), ११४०७१-३(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (सिद्धारथ कुलदीपक चंद), ११३८६९-२ महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, म्पू., (आदि अंत जानु नही तुम हो),११४६११-५(2) महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (कैसे चलुं महाराज कैसे चलु), १०८९१३-५ महावीरजिन स्तवन, मु. लायककुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज वीनती), ११३८२०-१(+) महावीरजिन स्तवन, ग. वल्लभ, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान जिनवर तणाज), १०९४४३-३ महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. ७९, वि. १७२९, प+ग., मूपू., (सकलसिधदायक सदा चोवीस), ११३१३०(+$) महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मप., (सिद्धारथना रे नंदन), १११९६१-३(-2) महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (त्रिसलानंदन चिंदन), १०९४७९, ११०२७७-२ For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ " ', महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू (माताजी तुमे धन धन रे), ११०३७० (आणंदजी कहत जोडी वनणा करुं), ११०२१४-२(+०) (चउदतो सपना माता थे भले) ११३५४१-३ (यसमा सुरग थकी चल्या), ११४४२६-१(+३) (पुत्र मोहाईदोजी तस) १९३८१५-१(+) (मीठो मने लागे छे एहनु), ११३६५४-३०) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. महावीर जिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू. महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. २३, पद्य, मृपू., महावीरजिन स्तवन, मा.गु. गा. १५, पद्य, श्वे. महावीरजिन स्तवन मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू (श्रीइकमनबंदु स्वामी), १०८६११/-) महावीरजिन स्तवन- १४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., गा. २८, पच, मूपू. (एक मन बंधु श्रीवीर), ११३७६६ (०) महावीरजिन स्तवन- २७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., डा. ६, वि. १६६२, पद्य, म्पू., (विमल कमलदल लोयणा), ११०५१७/*) महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., डा. ५, गा. ५२, वि. १९०१, पद्य, भूपू (श्रीशुभविजय सुगुरू), "" " " ११०३७६(१) ५७७ महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति दिओ मति), ११३२८६ (+#$), ११०४९१-३ ($) महावीरजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (वीरजिण नाह बहु भावि), ११०९५०-२(६) महावीरजिन स्तवन- आत्मबोधगर्भित, मु. उदयरत्न, रा.. गा. ७, पद्य, म्पू, (नीजरां रहस्यांजी), ११४९०१-३ (००) महावीरजिन स्तवन- उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७३, पद्य, मृपू. (श्रीवीरजिणेसर सुपरे), (+#) ११०३८२-१, ११०४८१, ११०५०२ महावीरजिन स्तवन- कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., गा. ४०, वि. १७२६, पद्य, म्पू. (श्रीश्रुतदेवीने चरण), ११०३३८(A) महावीरजिन स्तवन- कोरटामंडन, मु. मुक्तिविजय, पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपू., (कोरटेनगर विराजे हो प्रभु), ११२०११ महावीर जिन स्तवन छट्टाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५. गा. ६६, वि. १६११, पद्य, म्पू, (सकल जिणंद पाय नमी), १०९४१९ (+), १११८१४(+), १०९७१२-४ महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति सामण दो मति), ११४५०५-१(#$) महावीरजिन स्तवन-जन्ममहोत्सव, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सपना तीसलादेजी थेहंव लहया), १०८२८७ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व गर्भित, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. १५, ई. १९वी, पद्य, मूपू., ( सरस्वतिस्वामिने विनव), ११०१९४(०) महावीरजिन स्तवन- दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२५, पद्य, मूपू. (श्रमणसंघतिलकोपम), ११३८५६ (+#$) महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (मगध देशमांहि विराजै), ११०३६६(+), ११३६७३ महावीरजिन स्तवन- निसालगरणुं, मा.गु., गा. २३, पद्य, म्पू. (त्रिभुवन जिण आणंदा), ११२३८८-२(+) महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु), ११०३५२, ११०४०१(३) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), १११८७४-१(+), ११११००(#$) महावीरजिन स्तवन- पावापुरीतीर्थ, मु. नवल, पुहिं. गा. ५, पद्य, खे., (पावापुरी मुकरा). ११४६१२-७ (०) महावीरजिन स्तवन-पूजाविधि दिल्लीमंडन, मु. गुणविमल, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (प्रणमी वीर जिणेसर), ११४४८६-१(+#) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), ११३११५($) महावीरजिन स्तवन- वामणवाडा, मा.गु., पद्य, मूपू (जय जय जिन मुख सरसति वरसति), ११३३५९(AS) For Private and Personal Use Only महावीरजिन स्तवन-राजनगरमंडण, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सुण सुगुण सनेही रे), १०९०१०-१ (+#$) महावीरजिन स्तवन- वडलीमंडण, ग. नगा, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरणो), १०९८२२०) Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन स्तवन-शिष्यागर्भित, मु. रंगविलास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मकरो परस्युं प्रीत पीउ घर), ११३६५४-२(+) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. १४८, ग्रं. २२८, वि. १७३३, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), १११२२४(+), १०६४९४-५ महावीरजिन स्तुति, मु. चौथमल, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (चवदे तो सुपना माता थे भेल), १११६००-१ महावीरजिन स्तुति, मु. जयतसी, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (दौ दौ मृदंग सुरंग), ११२६८४-१(#) महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (मुरति मनमोहन कंचन), ११०००४-७(+), ११४०३७-६ महावीरजिन स्तुति, आ. तिलकसरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (त्रिशलानंदन वीर त्रि), ११२८२७-५($) महावीरजिन स्तुति, मु. दीप कवि, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (जिनौ से बंदगी करना जीया), ११०४०६-२ महावीरजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महावीर मोटो जगनाथ), ११३०२०-३ महावीरजिन स्तुति, मु. विमलविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (--), ११४१२१-१(#$) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (बालपणे डाबो पाय), १०८२६१-२(+#), ११३०४७-३, १०७८६३-१(#) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मप., (वंद श्रीमाहावीर धीर संजम), ११२८५६-१ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (वर्धमान जिनवर परम), ११३८३२-५(+#) महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (गंधारें श्रीवीरजिणंद), ११२०८८-१(+), ११०२१७-१, १११८९१-२(६) महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (सेवो वीरने चित्तमा), ११०३३९-१(+६), ११०३४६(+) महावीरजिन हालरडं, पं. दीपविजय कवि, मा.ग., गा. १७, पद्य, मप., (माता त्रिशला झलावे), ११४५०६-१(+), ११०४४६-१(-2) महासती सज्झाय, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (दया ज माता वीनउ गुणधर), १११३८५-१(+-) महासेनमनि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (सहज सोभागी हो साधु), १०६७८०-२७(+) महीपालराजा चौपाई, मु. विनयचंद, मा.गु., खं. ४ ढाल १२३, ग्रं. ५५०४, पद्य, स्था., (श्रीनाभेय युगादिजिन), १०६४८२(+#) मांगलिक पद, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (सरस्वत तोसू पसाव लाग पग), ११२६१४-२(#) माणिभद्र पूजा विधि, मा.गु., प+ग., मूपू., (ॐनमो भगवउ अहँतसिद्ध), १०७१८२-१ माणिभद्रवीर आरती, श्राव. श्यामसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (रिमझिम रिमझिम करु), १११७९० माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मपू., (सरस वचन द्यो सरसती), ११३२१४(#), ११४२०८-१(#$) माणिभद्रवीर छंद, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २९, पद्य, म्पू., (सरस वचन दो सरसती), ११३२१३(#$) माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सरसति भगवती भारती), ११२२८८(5) माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मपू., (सरसति सामनि पाय),१११७७३-२(#$) माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रीमाणिभद्र सदा), ११०१९५-२(+$) माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), ११४०८३($) माणिभद्रवीर विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ११२९९७-१(६) माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ५५२, वि. १६१६, पद्य, मूपू., (देवि सरसति देवि), ११३८५८(#$) मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), १०६५२३(), ११४०४४($) मायाबीज कल्पवार्ता, आ. जिनप्रभसूरि, मा.गु., प+ग., मूपू., इतर, (अजुआलै पखी पूर्णा), ११४२०७-१(#), ११४८६०(६) मुनिगुण सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (वे मुनि मेरे मन वस्य), ११०३१२ मुनिगुण सज्झाय, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (आरति सवि दूरई करी), १०६५३४-१६(#) मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., खं. ४ ढाल ६५, गा. १०२०, वि. १७२५, पद्य, मपू., (शंखेसर सुखकरू नमतां), ११४९३७(5) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ऐन असाढो उमस्योजी), ११३४८३(#) मुमुर्घजीव कालमर्यादा कोष्ठक, मा.गु., को., मूपू., (--), १०८६९०(+) मुहपत्ति ५० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र अर्थ तत्त्व), ११०६१६-१(+), ११३९२७-२(+#), ११४२६२-१(#) For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ मुहपत्ति ५० बोल सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (सिरि जंबू रे विनय), ११२०६७(5) मुहपत्ति पडिलेहण ५० बोल, रा., गद्य, मूपू., (प्रथमदृष्टि पडिलेहण जे), १०९२९७-२(+), १०९४४३-२ मुहपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, ग. लब्धिवल्लभ, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनवर तणा), ११४१४२(2) मुहपत्ति पडिलेहण सज्झाय, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सूत्र अरथ उपरिं मन धरो), ११२८८९(+#) महपत्तिपडिलेहण सज्झाय, आ. नयविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (पडिलेहण मुहपत्ति), १०६७८०-१६(+) मनपरीक्षा, मा.गु., श्लो. ३४, पद्य, वै., इतर, (पश्चात रजनीयामे घटि),१०९१९१-१(+) मूर्तिपूजामतनिरसन सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, स्था., (धरम कारण जीव हणन कहो न), १०७२९०-१(-) मृगापुत्र चौढालिया, मु. प्रेमचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८२०, पद्य, श्वे., (प्रथम नमो अरिहंतकू), ११५०४१-२(5) मृगापुत्र सज्जाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (भवि तुमे वंदो रे), ११०१८३(#) मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (सुगरीपुर नगर सोहामणौ), ११३८५३ मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनयर सुहामणो), ११२३८८-१(+$) मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ३ ढाल ३७, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (समरु सरसति सामिणी), ११२४५९(#$) । मेघकुमार चौढालिया, मु. जादव, मा.गु., ढा. ४, गा. २३, पद्य, श्वे., (प्रथम गणधर गुणनिलो), ११३४६८(#$) मेघकुमार चौढालिया, रा., ढा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक चौवीसनै वांद), ११४१०४(+$) मेघकुमार पंचढालिया, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (मेघकवर धारणी माता), १०७२१७ मेघकुमार सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, पू., (वीरजिणंद समोसर्या), ११२९२९(#$) मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, मप., (वीरजिणंद समोसर्या जी), १११५१३-२(+),१११३९४(६) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (धारणी मनावे रे मेघ), १११७८८-२ मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), १०८९१४-१ मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. १२, वि. १९३६, पद्य, श्वे., (त्यागि वैरागि मेहा), १०८२४९-२ मेघकुमार सज्झाय, रा., पद्य, श्वे., (दयाधर्म केरे परभाव मे सुख), १०६६६८-१९(-) मेघरथराजा लावणी, मु. खुबचंद; मु. चौथमलजी, पुहिं., वि. १९५४, पद्य, स्था., (मुनीराज प्रधम देवलोग के), १०६६६८-२०(-) मेघरथराजा सज्झाय, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १९२९, पद्य, स्था., (सुधर्मी सभा समने), १११२८९-२ मेतारजमनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.ग., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रेणिक राजा तणौ रे), १११०७८-२(+) मेतारजमुनि सज्झाय, ऋ. मनरुपजी, मा.गु., गा. ९, वि. १९१२, पद्य, श्वे., (मेतारज वंदु पाप), ११२४०४-११(#$) मेतारजमुनि सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुमती गुपतीना आगरु), १०६६६१-४(+) मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूप., (धन धन मेतारज मुनि), ११४१४३-२ मेतारजमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (सुमत गुपतना आगरुजी पंचमहा), १०६५३४-४(2) मेरु १० दशा विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (मेरुप्रबत १०००००), १०९०२३-५(4) मेह इंद्रराजा गीत, रा., गा. ५, पद्य, वै., इतर, (मेहकरि मेहकरि मेहमोटा), १०८३०७-२ मोक्षपयडी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २४, वि. १७वी, पद्य, दि., (इक्क समय रुचिवंतनो), १०९७१२-२ मोक्षमार्ग वचनिका, मा.गु., गद्य, दि., (तिहा प्रथम जीव अनादि), ११४८५८(+$) मोक्ष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (मोक्षनगर मारुं सासरु), ११०३७९-२ मोक्ष स्वरूप वर्णन, पुहि., गद्य, श्वे., (श्रीगरां पासि शिष्य प्रश), १०६७५१-४(+#$) मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ५, गा. १०३, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सुंदर रुप सोहामणो), ११२६८०(+#$), ११३१४८(+#) मोहजीतराजा चौढालियो, मु. जीतमल, पुहि., ढा. ५, वि. १९३७, पद्य, मूपू., (सुधर्म सुरग सुधर्म सभा), १०७००२-३ मोहनीयकर्मस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मोहनी कर्मरी उत्कृष्टी), ११४१९५-५(#) मोहवल्ली भास, आ. पद्मचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (मोह लाग्यो रे चरम जिणेसर), ११२८८८-२(#) For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मौनएकादशीपर्व देववंदन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, मपू., (सकल नयर सिणगार हार), ११३५८७(#$) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसर्या रे), ११२८५१(+#$), ११०४४२, ११३८२१ (#$), ११३०२१(६), ११५११५(६) मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद), १०६९३७, ११५१८४ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ४२, वि. १७८१, पद्य, मप., (शांतिकरण श्रीशांतिजी), ११०३४१-१ मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ११२६०२-१(+$), १११२८८-२,११२९१९ मौनएकादशीपर्व स्तवन-गणणागर्भित, मु. उदय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीसंखेस्वर), १११७४०, ११२०६९(5) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ११०९७०-१(+#$), १११११५-४(+-), ११३०२०-५, ११०९७३-१(६) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमिजिणंदे श्रीपति आगल), १०८९७९-१(+#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (गौतम बोले ग्रंथ संभाली), १०९४४८, १०९४४९ यति आतापना बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (यती आतापना लेतो हुइ काऊसग), ११४७९५-७ युगबाहुजिन स्तवन, मु. जिनदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (इण जंबुदीवइ जाणीय), १११४०४(+) युगमंधरजिन स्तवन, मु. चंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बे कर जोडी हो), १११०८७-२ युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काया रे पामी अति), ११५२४२-१८ युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (श्रीयुगमिंधर भेटवा),११३४६३ युगमंधरजिन स्तवन, मु. नयविजयजी-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (श्रीयुगमंधर माहरे रे), १११५९५-२ युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ९, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (महाविदेह मे प्रभु रो), १०८५४२-२ युगलिक जीवोत्पत्ति विचार-जंबूद्वीपपन्नती, मा.गु., गद्य, मपू., (यूगलीयानो छ मासनो आउ थाक), १०९१४६-५ योगसंग्रह सज्झाय, ग. उदयसिंह, मा.गु., गा. १४, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (श्रीजिणवर प्रणमु), ११०२१८-२(+#) रतनगुरु सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण आगला रे), ११११६२(+$) रतनसिंह राजवंशवर्णन छंद, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, मूप., इतर, (सरसतिय मात ओकत दीय बहुभत), ११०९९१-१ रत्नत्रय पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ५१, वि. १८वी, पद्य, दि., (चहुँगति फणि विषय हरन मणि), १११६७३($) रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ६६, गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, मपू., (सकल श्रेणि में दुर), १०६५३१(+) रत्नप्रभापथ्वी विचार, मा.गु.,रा., गद्य, श्वे., (एक लाख असी हजाररो), ११०३४२-२(+) रत्नसागर सज्झाय, मु. सोहमस्वामी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (नगर रतनपुर जाणिइ), ११४९५५-५(#) रथनेमिराजिमती गीत, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू., (रहनेमी राजुल दीयर), ११०२१६-१(#) रथनेमिराजिमती गीत, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (कहती है राजुलनार ह्यारी), १०७८४२-३ रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ५, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी), ११४८८६(+#), ११३४०९ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहि., गा. १९, पद्य, मप., (देखी मन देवर का), १०८२८८-४ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. गुलाबकीर्ति, पुहिं., गा. १३, पद्य, मपू., (गिरनारी की पहारी पर), ११३४२२-८ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूप., (काउसग व्रत रहनेम), ११०२५४, १११८८९-१(5) रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, पू., (रहनेमि अंबर विण), ११४२७९-१, ११४७७२, ११०२६३(#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. श्रीदेव, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (देवर दूर खडो रहो के), १०६७८०-३७(+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (राजुल घरथी नीसरी रे), १०८९३२-३ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (संजम लेई ध्यांने), ११४२७९-२ For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ रमल शुकनावली, पुहि., गद्य, म्पू, इतर (अरे यार बहुत दिन), १०९८३५-१(+४) १०७७२९(०) " , रविव्रत कथा, मा.गु., गा. ११४, पद्य, मूपू., ( प्रथम जिणेसर पाय नमी लागु), ११५०९५ ($) राजसिंहरत्नवती रास, मा.गु., पद्य, श्वे. "" (--), ११३८६३(+$) राजावंशावली बोल, मा.गु., गद्य, इतर (--), १०८५६७-३) " राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (प्रथम हि समरुं), १०९८७४-१(+) राजिमतीसतीइकवीसा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८५२, पद्य, वे. (सासननायक सुमरिय), १९२४६३ राजिमतीसती विलाप लावणी, मु. जिनदास, पुहिं, गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपु. ( दे गया दगा दिलदार), ११३९६९-२ (०) राजिमतीसती सज्झाय, रा. गा. १९, पद्य, भूपू (जब निकस भवणसुं ठानी तब ), ११३०७८ " रात्रिभोजनकथन सवैया, ग. जिनहर्ष, पुहिं. गा. १, पद्य, म्पू., (रैण चोर वह बाट सब रोक), ११४०६१-१० (+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., ( अवनितलि वारू वसइजी), ११४१८८(+$) राधाकृष्ण पद, पुहिं., पद. १, पद्य, वै. (सांम समाग कामणिकुं सझि) ११४२११-२(१) " रात्रिभोजन परिहार पद, पं. रत्न, पुहिं., गा. ८, पद्य, वे., (रात्रीभोजन दोष अती), ११३२०२-३(+) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, आ. कल्याणरत्नसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवी देवी रे सरस्वती), ११०९०९-४(#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल धरममां सारज कहिइ), ११०२५२-३ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. जैमल, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे. (रात्रिभोजनमांहे दोष), १११३८८(+) "" रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., डा. ४, गा. ३५, पद्य, मूपू., (गुरुपद प्रणमी आणी), ११३८८९(१) राधाकृष्ण होरी पद, सूरदास, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., (कुण खेले तोसु होरी रे संघ), ११४१८६-४ रामचंदतपसी सज्झाय, मु. देव, मा.गु., गा. २०, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (करीज्या कुमी नहि), १०८८९७-२(+#) राम चौपाई, पुहिं., गा. १३, पद्य, वै., (लंक से चंडे राम रत्नासकर), १०८१८८-५ा रामभक्ति पद, गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (ऐसो ते नांमरो परमाण), ११२९७९-५ रामभक्ति पद, गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., गा. २, पद्य, वै., (केवली रघुनाथ विना दुसरो), ११२९७९-२ रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु. अधि. ४ ढाल ६२ गा. ३१९९ ग्रं. ४३७५. वि. १६८३, पद्य, मूपू.. (मुनिसुव्रतस्वामीजी), ११४०१४-१ रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., समु, ७ गा. १६१७ नं. ३३२५, वि. १७२०, पद्य, म्पू, इतर (सिद्धबुद्धिदायक सलहीये), १०६४७३(०३) १०६६१८(४) ११३९९९ (5) रामसीता पद, क. सुरदासजी, पुडि., पद. ५, पद्य, वै. (कसतुरंगी धनु कहर वारे है). १९४६११-९(१) रावण मंदोदरी पद, मु. कवि, पुहि., गा. ४, पद्य, वे., (तुझ रसोइ रवि तपै अगनि आई), १०८२९२-२ (-१) " रावणमंदोदरी संवाद सज्झाय, पुहिं., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीरामचंद्रजी आया), ११५१७४-१($) रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ११०५६३ -१(+), ११०२५८ रुक्मिणीसती सज्झाय, रा. गा. १०, पद्य, मूपु. ( हो जी पटराणी गोवींद की), ११३३८४-२(४) " " , रुपपतिसाधु सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, रा. गा. २५, पद्य, स्था. (अरिहंत सिध नै आयरिया रे), ११४०९० रुचकमानुषोत्तरकुंडल पर्वत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए तीनइ माडला तणइ आकारि), ११३७८५-२(#) रुपसेनकुमार रास, मु, हुलासचंदजी, मा.गु., पद्य, थे., (--), ११५२०५ (+8) रूपीअरूपी बोल, मा.गु., रा., गद्य, श्वे. (कर्म ८ पाप १८ मन), ११३३१७-१ ', रेटिया सज्झाय, श्रावि. रतनबाई, मा.गु., गा. २५, वि. १६३५, पद्य, म्पू., (बाई रे अमने रेंटीयो), ११०४०६-७ , रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सोवन सिहासन रेवति), ११५०७५-२ (+), ११४२०१(#) रोहिणीतप चैत्यवंदन, मु. हंसविजयजी म., मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिन बंदी), ११०५८२-१ रोहिणीतप स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (समरी सरसती माय), १०८६५७-२(#$) रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे वासुपूज्यनो), ११०२९४ (+) रोहिणीतप स्तवन, मु. भूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु. ( रोहणीतप भवि आदरो रे), ११०४०७-२ (+) For Private and Personal Use Only ५८१ Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.ग., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मप., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ११२४८६-१(+S), ११३२०७(+), ११३६०९(#), १११९६५(5) रोहिणीतप स्तति, मु. कांति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (शिवसुखदायक नायक ए), १०९४०४-१(#) रोहिणीतप स्तुति, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सकल मंगलउजल सूखदायक), ११११४५ रोहिणीतप स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ११४७६४(#$) रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासुपूज्य), ११३२२३-४(-) रोहिणीयाचोर प्रबंध, मा.गु., गा. ११८, पद्य, श्वे., (जिण चउवीसइ पय प्रणमेवि), ११११३९(+#$) लक्ष्मीसागरसूरि गहुंली, मु. विनयसुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सखी गहुली करो गुरु आगले), ११३९५०-२(#) लक्ष्मीसूरि बारमासा, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (--), ११२६१३(+$) लीलापतझणकारा चरित्र, कालू, हिं., गा. ३४, वि. १९६८, पद्य, श्वे., (यह शीलतणा श्रृंगार), १०६४६०(+$) लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष प्रभु पास), १११८९९-१(६) वज्रधरजिन दोहा, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (संख लंछण तनु कनक सम), १११८०९-३(+) वज्रधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीवज्रधर जिनराय पूजीये), १११८०९-४(+$) वज्रस्वामी गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सखी रे में कौतुंक), ११०२७७-३ वरकन्या आशीर्वाद पद, मा.गु., पद. ३, पद्य, इतर, (सुरज उग्या पछि जमवो कंसार), १०८७०८-४ वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (शुक्लकार्तिकपंचम्यां), १०८८२९($) (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (कार्तिक शुदि पंचमी तेहनु), १०८८२९($) वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लु), ११३३५४-२(+), ११४५१४(#), ११४६४३(#$), ११३२२३-२(-) वर्षराजा निर्धारण विधि, मा.ग., गद्य, मप., इतर, (उजैणीना ध्रुवंका दिशा), १०८०९७-१(#) वर्षाज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (जियै वरस दिनरा जितरा), १०८६५७-१(#) वसंत गुरुगुण गीत, मु. गणेशीलाल, रा., ढा. १, गा. ३८, वि. १९४३, पद्य, श्वे., (पांच परमेष्टी देवको ध्याउ), ११२५३१ वार दिनमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (चैत्रमाससु डोढा किजै), १०८८७४-३ वासुदेवबलदेवप्रतिवासुदेव नाम देहायुमानादि विवरण, मा.गु., को., मूपू., (--), ११५२४४-३(+) वासुदेवबलदेव माता पिता आयुष्यादि कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ११३५७२-५ वासुपूज्यजिन सवैया, पुहिं., गा. १, पद्य, मूप., (लाल ही लाल बन्यो मेरे), ११४०२५-४ वासुपूज्यजिन स्तवन, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (हां रे वासुपूज्य), १०८२४२-२, १११५९५-१ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (वासुपूज्य जिन बारमा), ११४१७५-२(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भाण, रा., गा. ७, पद्य, मूप., (वासुपूज्य नृपकुलमंडणो), १११२८४-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (स्वामि तुमे कांइ),११००६४-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १९१७, पद्य, मूपू., (मेर समरण दिल बसै), ११२१६९ वासुपूज्यजिन स्तवन-चंपापुरी, मु. अबीरचंद, रा., गा. ७, वि. १९२५, पद्य, मूपू., (सोभागी साहिबा म्हांने दर), १११२८४-१ वासुपूज्यजिन स्तवन-पूजागर्भित, मा.गु., गा. २८, पद्य, मपू., (जिनवरसिरि वसुपूज्य), १०९२४७-२(#) वासुपूज्यजिन स्तुति, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवासुपूज्यजीए), ११०९९४ विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, भूपू., (वीणा पुस्तक धारणी), ११३३७१($) विक्रमराजा चौपाई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., खं. ६ ढाल ७५, गा. ३१६८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (प्रणमु पासजिणंद पय), १०६९९६(+$) विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., ढा. २७, गा. ५८५, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी प्रणमीइं), ११३८७१(६) For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ विगयनिविगय सज्झाय, आ. नयविमल, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रुत अमरी समरी शारद), १०६७८०-१५(+) विचाररत्नसार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), १०९७९३ विचार संग्रह-विविधविषयक, मा.गु.,रा., गद्य, मपू., (समजवा हेतु सूत्रमाहि), १०७३२१-५, ११२८२२-२ विजयकुंवर सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८१०, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदेसरो सकल), ११४२१०(+#$), ११०४५० विजयदेवसूरि गुरुर गण गीत, मु. विनय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ध्याउ श्रीगुरु ध्यान धरी), ११४१७९-२(+) विजयदेवसूरि गुरुगुण गीत, मु. विनय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शोभित गुरु मुखकु मटकु), ११४१७९-३(+) विजयदेवसूरि गुरुगुण गीत, मु. विनय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सेवितु सेवितु सेवि भविकाज), ११४१७९-१(+) विजयप्रभसूरि सज्झाय, मु. कृपाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (सूरि सिर ताज मुनिराज मोटे), १०८९१४-२ विजयलक्ष्मीसूरि बारमासा, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (हु तो सरसतिने पाये), ११२२११(६) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रामचंद, पुहि., ढा. ४, वि. १९१०, पद्य, श्वे., (आदिनाथ आदिसरु सकल), ११३९५५-१(+$), ११०३२०-२, १११३९५(-६) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, स्था., (मनुष जमारो पायने जे), ११४८२५(+$) विजयहंसादि गुर्वावली सवैया, मा.गु., सवै. १, पद्य, मूपू., (विजय हंस रुच विमल कुसल), ११५२३१-२(+) विद्याविलास चौपाई, मु. यशोवर्द्धन, मा.गु., ढा. ४८, वि. १७५८, पद्य, पू., (सरसति सामणि करि सदा), १०६८११ विनय पाठ, पं. नाथूराम पं., हिं., दोहा. २२, पद्य, दि., (इह विधि ठाडो होय के प्रथम), १११९३३-२(+) विमलजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दुख दोहग दूरे टळ्या), ११३०२०-९ विमलजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विमल ताहरु मुख जोता), ११३६४९-४ विमलजिन स्तवन, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (विमल सुणो मुज वीनती रे), ११३२२२(#) विमलजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (वांदिये श्री विमल जिणेसर), ११३६६८($) विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. ९, गा. ३८७, ग्रं. १७००, वि. १५६८, पद्य, मूपू., (आदिजिनवर आदिजिनवर), ११३९१४(+$) विमलमंत्रीश्वर सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (जो इक मोरी अबाव आइ), ११२८८६-१ विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., इतर, (सदगुरु वाणी समरि), ११५०८८(+), १०९६२४, ११३२५१ विविध ग्रामनगरादि ध्रुवांक यंत्र, मा.गु., यं., म्पू., (--), १०८०९७-३(१) विविध जीव आयुष्य विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२० हाथीनो आयु १२०), ११४८९८-२ विशालजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (घातकीखंडे हो के पछिम), ११५२४२-४ विष्णुभक्ति पद, पीपा भगत, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (ऐसो तेरो भजन को प्रमांन), ११२९७९-४ विहरमान २० जिन स्तवन, उपा. अनंतहंस, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (सरसति देवि नमउं), १०८४०७-२(+) विहरमानजिन कलश, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (वंदो वंदो रे जिनवर व), ११४९५१-३($) विहरमानजिन नाम-उत्कृष्ट संख्या, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीजयदेवनाथ१), ११३५२२ विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मपू., (सामि सीमंधर विनती), १०९१२४(६) वैकुंठपंथ सज्झाय, मु. भीम, मा.गु., गा. ५९, वि. १६९९, पद्य, श्वे., (वैकुंठ पंथ बीहामणो), १०९७९२(+$) वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., ढा.७, गा. २०९, पद्य, श्वे., (जिणधरमसुं जागता हुवो), १११८६३($) वैरसिंहकमार चौपई-जीवदयाशील विषये, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु., ढा. ३८, गा. ८७६, वि. १७५८, पद्य, मप., (प्रणमुं सारद सामनी), ११४१५९(६) वैराग्यपच्चीसी, मु. गोपालदास, पुहिं., गा. २५, पद्य, श्वे., (इह प्रमादी जीव जग), ११४४२७-२(+#$) वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., ढा. २, गा. २५, पद्य, मप., (ए संसार अथिर करि जाण), ११४३९९-१(-#$) वैराग्यबोध सवैया-रावण दृष्टांतगर्भित, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (रही नंदन की न वदन रही), ११०१६३-२(2) वैराग्य सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि प्राणी रे), ११३१७९-२ वैराग्य सज्झाय, मु. राजसमुद्र, पुहि., गा. ५, पद्य, म्पू., (एक कनक और कामिनी), ११४१३४-१(#) For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (कां नवि चिंते हो चित), ११४८६१-२(#) वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (ते गिरूआ भाइ ते), ११३७४७-२(+#) शंखराजा सज्झाय-अहंकारपरिहार, मा.ग., गा. १२, पद्य, मप., (मथुरापुरि पति संख नर), ११५०४४-२ शंभुनाथ स्तुति, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., (प्रथम वासकिवलास गवरी), १०८३२४-३(+) शतौषधि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मोरशिखा सहदेवी तुलसी), १०९४०७-२ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), ११२००४(+$), ११४४७५(+s), ११२०१७(s), ११२५५५(s), ११४३०२-२(६) शत्रुजयतीर्थउद्धार स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११०७२४(६) शQजयतीर्थ गजल, उपा. कल्याणविजय गणि, मा.गु., गा. ४६, श. १६२३, पद्य, मूपू., (सारदमात की सेवाकू), ११०५१३(#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (शत्रुजय सिद्ध), १०७६०७-२, ११५२४२-११, ११०७६६-९(#) शत्रुजयतीर्थ पद, मु. धर्मसी, पुहि., गा. ३, पद्य, पू., (विमलगिर क्युं न भए), १०८२५३-३ श@जयतीर्थ पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (देखं देखुं सितगिरि तीर), ११३५३९-२(#) शत्रुजयतीर्थ पद-औपदेशिक, मु. माणिक, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (आवो आवौ जी ओरा रे कहु), १०८९१३-६ शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, गा. १५२, वि. १८४०, पद्य, मपू., (विमलाचल वाल्हा वारु रे), १०६६४३-३, ११३३६९($) शत्रंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.ग., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मप., (श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी), ११०४४१(), १११९५३(६), ११४६९४-२(5) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. अमरहंस, मा.गु., गा. ११, वि. १९५३, पद्य, मूपू., (आज भले दिन उगो रे), ११२६२० शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (डुंगर ठंडो रे डुंगर), ११४५१०-३(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ११०४१४-१ शत्रंजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (सहीयां मोरी चालो), १११६८४-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अंग उमाहो अति घणो), ११२८८६-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ११४५२१-६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नमो रे नमो सेज), १११९६१-२(-2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जैतसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (--), ११२२९०-१(६) शत्रंजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.ग., गा.५, पद्य, मप., (सिद्धाचल वंदो रे), १०९८७७-२(+), ११२५२६-१(३), ११२९०७-३(#) शत्रंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (आवो भवि भविक), ११०४१४-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (इण डुंगरीयानी झिणी), १११९७५-५(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बापडला रे पातिकडा), ११०४१४-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (माहरुं मन मोह्यं रे), ११३१०६-१(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (मोरा आतमराम कुण दिन), ११२२९०-२, ११३१५७-१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (तीरथ सेजेजी रहि), ११२४०७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (उंचा रे गढसेज), ११३२८२-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (पालीताणुं नगर सोहामण), १०६४९४-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.८, वि. १८३७, पद्य, मूपू., (आजे आनंद धणो श्री सि),११४९७८-२(+) शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मप., (जात्रा नवाणु करीए वि),११५२१३-२($) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (देशमां सोरठ देश वखाण), ११४९७८-१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (वीरजी आव्या रे), ११०३४१-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सहिया सेचूंजगिर), १०९४१३-४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (विमलाचल सिर तिलो), ११२६०२-२(+$), ११२९८२-२(+) For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १८७८, पद्य, मपू., (चालो सखी सिद्धाचल), १०९४२०(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मप., (अमृत वचने रे प्यारी), ११३०९१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा.१२, पद्य, मप., (सिद्धाचलमंडण सांमी रे जग), १०९४२१-४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ११११९८(#$) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीश@जय तीरथसार), ११५१३७(+#), ११३०२०-२, ११३४५४-२, १०८७५८-२(-) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (सवि मली करी आवो), ११३०५१-२ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिकमंडण पाय), ११३२११-२(+#), ११०५७६-३(#) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), ११३८३२-१(+#), १०९७२६-३, १०८५१४-२(६) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल मंगल लीला मुनि), ११०२५१-२, ११०३०५ शत्रुजयतीर्थ होरी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (चालो सखी विमलाचल जइय), ११३९९८-१ शनिश्चर छंद, पंडित. धर्महंस, मा.गु., गा. १४, पद्य, मप., (ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं), ११२६१५, ११०५३०-१(#) शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (छायानंदन जग जयो रवि), १०७६०७-१ शनिश्चरदेव छंद, मु. दुर्लभविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (छाया नंदन जगज्यो), ११२७८८-२(६) शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (अहि नर असुर सुरपति), १०८३२४-१(+), १०९७८६(+), ११३६९८(+), १०८१९५, १०८४१९-१, ११०८२६, १०७९८४(#), ११२२८६(#$) शरीर पर्याप्ति विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (आहारपर्या० पूरी करता), ११३८५९-४ शल्यछत्रीशी सज्झाय, म. जेमल ऋषि, मा.ग., गा. ३६, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्ध छे आयरि), १०७७२८(+) शांतिजिन गीत, श्राव. वीरपाल सोनी, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (महीमंडली षटखंड भोगवता), ११५२२६-४(+) शांतिजिन गीत, मा.गु., गा.३, पद्य, मूपू., (जयति जगति वरो शांति), ११४१७९-४(+) शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), १११४५८-३, ११०३१४(#$) शांतिजिन जन्माभिषेक कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (श्रीजयमंगलकृत्स्न), ११०५२५-१(+) शांतिजिन लेख स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ३३, वि. १७११, पद्य, मूपू., (--), ११०९७८-१(६) शांतिजिन स्तव-जन्माभिषेक, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (जय सयल सुरासुर नमिय), ११३९४१(#), ११५०४३-१(#$) शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.१०, पद्य, मप., (सुणो शांतिजिणंद), १०९४४२-१(+), ११०४०५, ११२४२२-२(5) शांतिजिन स्तवन, मु. ऋषभकुशल शिष्य, मा.गु., गा. ७, वि. १७९०, पद्य, मप., (श्रीसाहिब शांतिजिणंद), ११३८२०-२(+) शांतिजिन स्तवन, श्राव. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज थकी में पामीयो रे), ११३०२०-१३($) शांतिजिन स्तवन, पं. कांतिविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (संति जीनेसर मूरति), ११०६९२ शांतिजिन स्तवन, पंन्या. कीर्तिविजय , मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूप., (सुण दयानिधि तुज पदपं), १०९४३१-२ शांतिजिन स्तवन, आ. कीर्तिसरि, मा.ग., गा.८, पद्य, मप., (अरज करूं प्रभुजी सुणो), ११२२३७-१(+#) शांतिजिन स्तवन, आ. कीर्तिसूरि, पुहिं., गा. १२, वि. १७२३, पद्य, मपू., (सकल मुरत श्रीशांतिजिणंदा), १०८२८९-१(+) शांतिजिन स्तवन, मु.खेम, मा.गु., गा. १३, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिजिणेसर शांत), ११०३०७-२ शांतिजिन स्तवन, मु. चिमन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सुखकारीजी जगपति शांति),११०५१९-१ शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (नगर हथिणापुर अतिहि), १०८७५९-२) शांतिजिन स्तवन, मु. जयविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ७, वि. १७७२, पद्य, मूप., (सरस सुधारस वरस तीरे समरी), ११४५८७ शांतिजिन स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ११२८९३-४(#$) शांतिजिन स्तवन, मु. तलकवर्द्धन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सोलमा शांति जिनेसरु रे), ११३१९७-१ शांतिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर प्रणमु), १११४५६-२ शांतिजिन स्तवन, मु. मनरूप स्वामी, पुहि., गा. ११, वि. १८७६, पद्य, श्वे., (जाघ झाग जीव सिवण कीजै), १११५९४-१ For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शांतिजिन स्तवन, मु. माल, मा.गु., गा. १३, वि. १८४३, पद्य, भूपू., (सांतिजिणेसर सांभलो रे), ११५०६३-१ शांतिजिन स्तवन, आ. मुक्तिसागरसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८९८, पद्य, भूपू., (शांतिप्रभु वीनती एक), ११०३७९-३ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिबा रे), ११०४६९-१, १११८६१-२(#), ११४५०५-२(#$) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सोलमा श्रीजिनराज उलग), १११७१२-१ शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हम मगन भए प्रभुध्यान), ११४९५३-५ शांतिजिन स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (शांतिकरण श्रीय शांति), १०७३१९-१(+) शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रात उठ श्रीसंतिजिण), ११३९५५-२(+$) शांतिजिन स्तवन, मु. रामचंद, रा., गा. ५, पद्य, मपू., (सन प्रभुजी संत व्रते), १०९४०५(+) शांतिजिन स्तवन, मु. ललितसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साहिब संत जिनंद अब मारा), ११४२११-३(#) शांतिजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मपू., (सेवा शांति जिणंदनी), ११४२९६-१ शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (सुंदररूप सोहामणो), ११४६४१-२(#) शांतिजिन स्तवन, मु. सुखलाल, मा.गु., गा.११, पद्य, श्वे., (सोलमा जिनजी शांतिनाथ), १०९४७६(+) शांतिजिन स्तवन, उपा. हितविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८७३, पद्य, मपू., (अजिन जिणेसर वीनती रे), ११३४७०-२ शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जयो शांतिजिन चंद्रमा), ११०५३०-५(#) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २६, पद्य, मपू., (--), ११४९३२(६) । शांतिजिन स्तवन-जीवदया, मा.ग., पद्य, मप., (समरीय सरसतिमाय पाय नम्), ११३७६०(+#$) शांतिजिन स्तवन-पाटण, मु. रतनरूप, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (नमो अचिरादेवीनो नंद), ११०२९५(-) शांतिजिन स्तवन-भुजनगर, आ. जिनलाभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (हां रे हुं तो गइती), ११४५२१-५ शांतिजिन स्तवन-मंगलपुर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर सोलमा ए मंगल), १०८७५८-४(-) शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, पुहि., गा. २२, पद्य, मूपू., (सारदमात नमु सिरनामि), ११३७८७-३($) शांतिजिन स्तुति, मु. चौथमलजी, पुहि., गा. ४, पद्य, स्था., (साता कीजो जी साता कीजो जी), १११९९६-२ शांतिजिन स्तति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (श्रीलवधिमंडण शंति धणी तस), ११२४०१-३ शांतिजिन स्तुति-फलवर्द्धि, मु. देवकुशल, रा., गा. ४, पद्य, मपू., (फलवधीरो मंडण सांति), ११३०२०-६ शारदामाता छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सकल वचन समता मन आणी), १०८५११-१(+#) शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. १०, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो केवल रुप भगवान), १०८३३१-१(+), ११२०१२(5) शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १०७०४५(+$) शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मपू., (सासननायक समरिय), ११४३१९(+$), ११४४३१(+#s), ११४०१०(#s), १०६६५०(६) शालिभद्रमनि लावणी, मु. हीरालाल, रा., गा. ५, वि. १९५६, पद्य, श्वे., (शालभद्र महाराज आपकी), १०६६६८-२(-) शालिभद्रमुनि सज्झाय, ग. समयसुंदर, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मपू., (प्रथम गोवालीया तणे), १०६६६५-१(+$) शालिभद्रमुनि सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (मे तो पूरब सुक्रत न), ११३७००-३ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (राजगृहीय नयरीए वणजार), १११५१० शालिभद्र रास, मु. साधुहंस, मा.गु., गा. २१९, वि. १४५५, पद्य, मूपू., (देवि सरसति २ सकल), ११२८०४(+$) शाश्वतजिनप्रतिमासंख्या स्तवन, मु. विमल, मा.गु., गा. २९, पद्य, मपू., (--), ११४९९६($) शाश्वतजिनबिंबसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (पहिले त्रि छेलो किं), ११४५०४-१(+#) शाश्वतजिन स्तवन-नंदीश्वरद्वीप, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (नंदीसरवर दीप मझारि), ११३८१३-१(+#) शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ चंद्रानन वंदन), ११०३६७-२ शाश्वताशाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११२८५२(#$) शिव आरती, चिदानंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., (इंद्रजि आडति लेकर आये रे), १०६५०७-३ For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ शिवजी गुरुगुण भाष, मु. खंगार, मा.गु., गा. ११, वि. १६९३, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर वंदिनइ माउगुण), १११२८७(+) शिवथाल लावणी, चिदानंद, पुहि., गा. १०, पद्य, वै., (पाट बिछा दो बेठो हरजी जल), १०६५०७-४ शिवदत्तकुमार रास, आ. सिद्धसूरि, मा.गु., गा. २९१, वि. १६२३, पद्य, मूपू., (सरस सुवचन दीउ सरसति), ११४२२५($) शिवलालगुरु स्तुति, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ९, पद्य, स्था., (करले पूज चरण का), ११३४२२-२ शिवलालगुरु स्तुति, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ८, पद्य, स्था., (पूजजी आया रतनपुरी), ११३४२२-४ शिवलालगुरु स्तुति, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ७, वि. १९४४, पद्य, स्था., (पूजजी का दर्शन की), ११३४२२-३ शिव लावणी, चिदानंद, पुहि., गा.८, पद्य, वै., (देखो सोनारत आडती लावते), १०६५०७-२ शिव स्तुति, क. गंग, मा.गु., गा. १, पद्य, जै., वै., (करत ताम विभूतजाम अहिरावस), ११४२५७-१ शीतलजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (शीतल शीतलनाथ सेवो), १११२५१-२(+) शीतलजिन स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नंदानंदन जुगदावंदन), ११२५२५-२(+#) शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (शीतलजिन सहजानंदी थयो), १०६४९४-७ शीतलजिन स्तवन, पंडित. प्रेमविजय, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (सरसति माता वीनवु हो लाला), १०७१९६(+) शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सितलजिननी सेवना), ११०४६९-२ शीतलजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ११२०६६-१(+$) शीतलजिन स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. ११, वि. १७८७, पद्य, मप., (शीतलजिन० जइ मानवभवनो), ११३६३४(+) शीतलजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (भद्दिलपुरवर राजायउ दृढरथ), ११२७८१-३(+#) शीतलजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (श्रीशीतलजी जिनराज थे गरीब), ११४४४९-१($) शीतलजिन स्तवन-उदयापुरमंडन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा.६, पद्य, मपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), १०८१६५-२($) शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, वि. १६३७, पद्य, मपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), १०६८९६(#$), ११२९३५(#S), ११३६९४($) शीयलव्रत १६ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहली सुद्धमन सील), ११४१०५-४(+) । शीयलव्रत सज्झाय, मु. करुणासागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (शीयल मुंद्रडी खरी रे), १११२७७ शीयलव्रत सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, पुहि., गा. ६, पद्य, पू., (सिल हे परधान सब पर सिल हे), ११४४५०-४ शीयलव्रत सज्झाय, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (समज पीउ चपल मति रमे), १११५११-३ शीलमाहात्म्यकथन सवैया, ग. जिनहर्ष, पुहिं., गा. १, पद्य, मपू., (वैढ को करैया महाजन को मरै), ११४०६१-११(+) शीलवती चौपाई, मु. देवरतन, मा.गु., खं. ३, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी परगडउ), १०६६२८(#$) शीलोपदेश सज्झाय, मु. रतनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९६६, पद्य, मूपू., (मत ताको नार वेराणी), ११३६७४-१ शुकदेव गीत, सोम, मा.गु., गा. १०, पद्य, वै., (कुक केसर मोती मुहवटउ सइथउ), ११३७२३-७(#) शुकनावली*, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (कागना बार शब्द जाणवा), १११९१०-२(-) शुकनावली यंत्र, अज्ञा., को., मूपू., इतर, (--), ११००८१ शुकबहोत्तरी कथा, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., कथा. ७२, गा. २४०१, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (सयल सुरासुर माया), ११४६७२(#$) शुभाशुभकर्म सज्झाय, मु. मोहनरुचि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (कर्मशुभाशुभ होय ऐ जाणी), १०६७८०-५(+) शृंगाररस सवैया, क. चंद, पुहिं., दोहा. १, पद्य, इतर, (तेरो मुख्य जिसो आली), ११२६८४-५(#) शृंगारीक सवैया, क. माधु, पुहिं., पद. १, पद्य, जै., इतर?, (करे सुकल सूफूलेल लट लूटी), १११८९९-२ शृंगारीक सवैया, मु. मान, पुहि., गा. १, पद्य, मपू., इतर, (चंदवदन माहामृगलोचन मान), १०८५१७-४(+#) शृंगारीक सवैया, मु. सुरूपचंद, पुहि., पद्य, मूपू., इतर, (आवतथी अलबेल अकेली के), १०८५१७-५(+#) श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दरसन प्रतिमा१ ज्ञान), ११४०९६-२, ११४३३९-३ श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपात अतिचार), ११४०९६-३ श्रावक २१ गुण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्म रत्ने व्यवहारे), १०६९८१-२, ११२०२३ श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., अंक. २१, गद्य, मप., (धर्मनई विषइ १ मन वचन), ११३०४६ For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir וי श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ११३०५९-१, ११३५३८-१ श्रावक आचार सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (भिन भिन जाणै रे श्रा), १०९४६९($) श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपु., (श्रावकने सकल पातक), १११९६६ (-) आवककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, म्पू. (श्रावक तु उठे परभात), ११३९६९-४(+), १११२३१(७), १११२९९-१(३) (श्रावक धर्म करो सुखदाइ), ११३४९४ श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे. श्रावककरणी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, म्पू, (श्रावकनी करणी सांभलो), ११४१८३-१(+) श्रावकगुण सज्झाय, मु. मेवाडी मुनि, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे. (तो इणमें आतमा जोडी सचित), ११३२१०-१(+), ११२३९६-२ श्रावक मोटकाबोल की आलोयणा, मा.गु., गद्य, भूपू (अगलित जल व्यापारे), ११५१०५-२(5) श्राविकागुण सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, खे., (सरव सुलक्षण रूप रसाल), १०९६९३ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. ख. ४ ढाल ४९ गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू. (कल्पवेल कवियण तणी), १०६५३३(+), १०६८०८(०३), १११९५१ (+०३), ११४७७७[+#5), ११०५४४, १०९३२६(४७) १०६७८२(३) (२) श्रीपाल रास-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिगुणसुंदरी चौसठकला ), ११४७७७(+#$) (२) श्रीपाल रास-टवार्थ *, मा.गु., गद्य, म्पू, (त्रीजो खंड पूरो भयो), १०९३२६ (ड) (२) श्रीपाल रास-चयनित गाथा संग्रह, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (३) श्रीपाल रास-चयनित गाथा संग्रह का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहथी पहिली जे विधात्राइ), ११२४०३(+#) श्रेणिकचेलणासती सज्झाय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (--), ११४२१३($) श्रेणिक दृष्टांत पद, मु. सूर्यमुनि, पुहिं., गा. ७, पद्य, स्था., (पूछे श्रेणिक अति), ११११९४-१(+) श्रेणिकराजा लावणी-सम्यक्त्व, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, स्था., (कीधो धर्म तरो उद्योत होवा), १०६६६८-७(-) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांसजिन अंतरजामी), ११४६९७-२(+#) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडुं ते सहियां मोरु मोहि), ११०७४७-१(+) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. कुसालचंद, मा.गु., गा. १४, वि. १८७१, पद्य, वे (प्रभु श्रीअसजीन राव), ११३४८७-१ श्रेयांसजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तारक बिरूद सुणी करी), ११२०६६-२ (+) श्रेयांसजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (हां जी एकादशमो जिनवरु), ११२८९३-३(#$) "" सोश्वास बोल संग्रह-प्रज्ञापनासूत्रगत, मा.गु. रा. गद्य, म्पू.. (राजगरी नगरी सीणकराजा), १११२२१-१ (+) संख्यावाची शब्दकोश कवित्त, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., इतर, (प्रथमपंकजा कमल विहंगा गरड ), १०७२८३-१ संभवजिन विज्ञप्ति छंद, मु. हंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुणो संभव स्वामी), ११०२२९(+) संभवजिन सवैया, मु. नयविजय, मा.गु., सवै १, पद्य, मूपू. (यह संभवनाथ अनाथ को नाथ), ११२३३४-३(+) संभवजिन स्तवन, मु. गांगा, मा.गु., गा. ११, पद्य, वे. (संभव जीनवर रुपे रुडा), ११३०५३-२(+) संभवजिन स्तवन, उपा मानविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (साहिब सांभलो विनती तुमे). ११४५१०७(+) " संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर विनती), १०६४९४-११ संभवजिन स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १११७१२-३(३) संयति सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., ढा. २, गा. २२, पद्य, मूपू., (कंपिलपुर अति दीपतो), ११२४६४ " संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., अध्य. ४ उन्माद, गा. ७४, वि. १७३१, पद्य, वे (बुद्धिवचन वरदायनी), ११४६८३-१, ११४७८६ (AS) संसारीजीव सूता जागता विचार - पन्नवणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारमाही जीव सूता घणा), १०९१४६-४ सकलतीर्थं वंदना, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू. (सकल तीर्थ बंदु कर), ११३३३३-२(७) सचियादेवी स्तुति, मु. ज्ञानसुंदर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (साची देवी साचल कहियै अरज), ११०१५६-२ सच्चियायदेवि छंद, हेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सानिधि साचल मात तणी), १०९५२९-१(+) सच्चियायदेवी छंद, मु. हेम कवि, मा.गु. गा. १०, पद्य, म्पू, (सानंद सावल मात तणी घर). १९३५६८ For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ सती सज्झाय, रा., पद्य, श्वे., (सतीक सीवरो सुखकारी), १११३८५-२(+-$) । सती सज्झाय, रा., गा. ३०, पद्य, श्वे., (सहुसरीसी नर नही नही), १०६६१९-२(६) सत्तरिसयजिन स्तवन, पं. विनयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मूपू., (समरी सरसति भगवति), ११२४८२($) सत्यासत्य सज्झाय, मु. राममुनि, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रथम न वेसे पंच में), ११२८४१ सदारंग आचार्य गीत, मु. खेमदास, मा.गु., गा. १०, वि. १७३२, पद्य, स्था., (आज मनोरथजी माहरा सह), १०८८४१ सद्गुरु पद, मु. गंगाराम, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (सतगुरु साधु सिपाई), ११३६४९-५ सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सांभलि सनतकुमार हो), ११४२११-१(#) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, वि. १७४६, पद्य, पू., (सुरपति प्रशंसा करे), ११४७१६-२(+#), ११४३६३-१(-2) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, रा., गा. २०, पद्य, श्वे., (चक्री चोथो नरेश जाणए), १११४०२-) सपखरो गीत, क. भैरुदास, पुहि., दोहा. ५, पद्य, वै., इतर, (भुंगी ऊमंगी सुचंगी), ११२४८१-२ सप्तनय विवरण-नैगमादि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नैगम संग्रह व्यवहार), १०६४६३-४(#) सप्तमीतिथि स्तति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (चंद्रप्रभजिन ज्ञान), १११६५५-४(#) समकित पच्चीशी स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., ढा. १०, गा. ६८, पद्य, मपू., (वंदु वीर जिणंदने समर), ११०१७३(#$) समता सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (समता रस का प्याला), ११३५७५-६ समवसरण गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अरिहा आया रे चंपावन), १११९७१-५(+) समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (समोसरणनी शोभा जेणे), ११३१३१-१(+), ११५२२५(5) समवसरण स्तवन, मु. हंसविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्रभु तुम समवसरण भारी देख), ११०२८२ समवसरण स्तुति, मु. हीरविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (श्रीजिन केवल लोक प्रकाश), ११४६६३-३ समाधिपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अपुरव जीव जिनधर्मने), १०९४१८ समाधिमरण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम वस्त्र साधविने), १०९४२५(+) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज बधाई मेरे आज बधाई), ११०२४७-८ सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. सत्यरत्न, मा.गु., ढा. ७, गा. १९६, वि. १८८०, पद्य, मप., (अजितादिक प्रभु पाय नमी), १०६७८६(5) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. गुणानंद, मा.गु., पद. ५, वि. १८८६, पद्य, मपू., (अजितादिक जिनबीसजी पायापद), ११३५१९ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (हुं तो जाउं रे सिखर), १११७८५ ।। सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८४६, पद्य, मूपू., (आज भलै मै भेट्या हो), १११७७२-१(2) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, वि. १७४४, पद्य, मपू., (अष्टापद आदिसर सीद्धा), ११४२०८-२(#) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सम्मेतसिखर गिरराज दिठो), ११०२४७-७ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (आज सफल दिन उग्यो), ११०४४५-१ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू., (चालो हे सहेली जावा), ११०४४५-२ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. सुखलाल, मा.गु., गा. ६, वि. १९३३, पद्य, श्वे., (भवि भेटो रे समेतशिखरगिरकु), ११०७१०-१(+) सम्यक्त्व ६७ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (समकितनी चारिसदहण कही), ११०३५६ सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, पद्य, मप., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), १०६९३०(+), ११४१५८(s) सम्यक्त्व ८ वचन भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (न जाणइ न आदरइ न पालइ), ११२६६३-२ सम्यक्त्व पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागे सौ जिनभक्ति), ११३६४७-३(+#) सम्यक्त्व भावना सवैया, मु. चिदानंद, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (पूर्व कर्म दहै सर्वज्ञ पद), ११४०६१-१४(+) सम्यक्त्व लावणी, मु. हीरालाल, रा., वि. १९६२, पद्य, मूपू., (शुद्ध समकित् और धर्म), १०६६६८-११(२) सम्यक्त्व सज्झाय, मु. नथमल, पुहिं., गा. १७, पद्य, श्वे., (सुदसमगतरी सद्दहणा सुणो), ११३२०२-२(+), १११४५७ सम्यक्त्व सार प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, मपू., (भस्मग्रह उतर्यानो), १०७१०९(+#) For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सरस्वतीदेवी कवित्त, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (ओपै ओपै मोतीनो हार जिसउ), १०७२४६-१ सरस्वतीदेवी छंद, मु. खुशालकपूर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (सरस वचन आपे सदा तुं), ११०४८५ सरस्वतीदेवी छंद, मु. दयानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (मा भगवती विद्यानी), १०८१४८, ११०३७९-१ सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बुद्धि विमल करणी), ११५१९७-१, ११०००२-१(#), १११४३०-२($) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मपू., (सरस वचन समता मन), १११५१२(#S), ११३४८९(#$), १०८३०४(-) सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा.१४, पद्य, मपू., (शशिकर जिनकर समुज्ज्व), १०८२६५-१(+), १०९६९४(+), ११३५५०, १०७५६०-१(१), ११२९०२(#), १११४५६-१(६) सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूप., (ॐकार धुरा उच्चरणं), १०७२६५-१(+), १०८७४७(+#), १०९८९५, ११२६१४-१(#), ११४२६१-२() सरस्वतीदेवी छंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (वीणापुस्तकधारणी), ११४२९७-१(#S) सरस्वतीदेवी छंद, रा., पद्य, म्पू., (सरसती सरसती तू जग), ११४७००-२(-#$) सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. प्रताप, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (सबल भरोसो तेरो जगदंबे सबल), ११३६२३ सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूप., (सरसति सरस वचन समता), ११०७५१, ११०४३१(#, ११३३९७() सरस्वतीदेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीसरसत सुमरू सदा कांइ), ११२८५४(६) सरूपीया चौढालियो, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (--), ११३०१३-१(६) सरोवर-जिनालयनिर्माण कवित्त-राव जयसिंह कारापित, मा.ग., गा. २, पद्य, मप., (संवत संकरवीर चैत्र सुद ४), ११२६५१-१(+#) सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पं. धर्महर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरवारथ सिद्ध चंद्रुइ), ११०३४२-५(+) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ ढाल २२, गा. ५३५, ग्रं.८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर गुणनिलउ), ११४६८५(+#$) सागरचंदमुनि रास-सामायिकविषये, मु. विजयशेखर, मा.गु., ढा. ८, गा. १२८, वि. १६७९, पद्य, मूपू., (सारद सार सदा दीयइं), ११४४६८-१(६) सागरचंद्र रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११३६८२(+$) साढापच्चीसदेशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (मगधदेस राजग्रहीनगर), ११०३८०(+) साधारणजिन आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (आरती श्रीजिनराज), १११५५८-२(#) साधारणजिन गहुंली, मु. न्यायसागर शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (रुडी गहूंली रंग रसाली जिन), ११३६५१-२ साधारणजिन गहंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (जी रे ललित वचननी), १११९७१-१(+) साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंत देव), ११०७६६-८(#$), ११३१६२-१(#) साधारणजिन पद, मु. दीपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (मन जिनवर जिनवर भजि रे), १०६९९३-९(-) साधारणजिन पद, मु. दीपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर मोहि लागे), १०६९९३-११-) साधारणजिन पद, मु. द्यानत, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (हम आये हो जिनराज), १०८९१३-३ साधारणजिन पद, उपा. ध्रमसी, मा.गु., पद. ३, पद्य, मपू., (मानी जिनवर सेवा मेरे मन), ११३१८०-४ साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (पडाउ इन नैनो दाय), ११३६४९-२ साधारणजिन पद, क. बनारसीदास, पुहिं., पद. ३, पद्य, दि., (भेद विग्यांन जग्यौ), १०८९७०-२(+), १११२२५-१ साधारणजिन पद, मु. मालदास, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (भलै मुख देख्यौ), ११३१८०-२ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (देख्या दरसण तिहारा), ११०६४९-४(#) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (देव निरंजन भव भय), ११२०२५-२) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुनरो हमारो लीजो जिनराज), १०७०३७-३(+-#) साधारणजिन पद, श्राव. विनय, पहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मेरो दिल लाग्यो प्रभु), ११३३११-३ For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ साधारणजिन पद, मु. हर्षकुशल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनवर देख दृगन सुख पाए), ११२४२६-२(+) साधारणजिन पद, पुहि., गा. १, पद्य, मपू., (अनंत२ प्रभाकर से अधिकी२), ११४०५२-४(#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (आद ही अनाददेव सेवै साधु), ११४०६१-१(+) साधारणजिन पद, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (इक सुणजो नाथ अरज मेरी एह), ११४१८६-१ साधारणजिन पद, पुहिं., पद. २, पद्य, श्वे., (तारण वाला रे जीउं जीउं), ११३६४९-१ साधारणजिन पद, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (देखी तेडी देखी रीत हां रे), ११३६४९-९ साधारणजिन पद, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभुजी मेतो थारो दरसण), १०९८७७-३(+) साधारणजिन विनती स्तवन, जै.क. भूधरदास, पुहि., गा. १२, पद्य, दि., (अहो जगत गुर एक सुणिय), ११३८६९-१ साधारणजिन स्तवन, मु. ऋषभ ऋषि, पुहि., गा. ४, वि. १९२१, पद्य, मूपू., (अनंत ग्यान अरिहंत प्रथम), १११२९०-३ साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहिं., गा. १२, पद्य, मप., (वंद श्रीजिनराय मन), १०८२८९-२(+) साधारणजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (--), ११४६५८(#$) साधारणजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (जिणंदा ताहरी वाणीइं), १०७९७२-२(+), ११३६४९-८ साधारणजिन स्तवन, जै.क. खूब, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु चरण मेरे काज हमसे), १०७०३७-४(+-#) साधारणजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, रा., गा. ५, पद्य, मपू., (सुगुण सनेहियो प्रभुज), १११९००-१ साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (खतरा दूर करणा दूर), ११३६५८ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (मिली जायो रे साहिबा), १०८४५१-२, १११५४३-४, १११६३५-३(#) साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (आबोलो स्याना ल्यो छो), १०९४१७ साधारणजिन स्तवन, मु. नथमल, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (जिनराज थे तो तीनलोक का), १११२१८-१(#) साधारणजिन स्तवन, मु. नित्यविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), १११८०९-१(+$) साधारणजिन स्तवन, मु. पुण्यमहोदय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (नयनों की गति न्यारी जिनंद), १०८९१३-१ साधारणजिन स्तवन, मु. भानुविजय, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूपू., (तेरी मेरी अंखिया लग गई), ११४६९६-२ साधारणजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. १०, वि. १९०८, पद्य, मपू., (अरिहंतदेवने औलखीसरे),१११२७६-२ साधारणजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. ५, पद्य, मप., (रूप वण्यो अति नीको), ११४६१२-५(#) साधारणजिन स्तवन, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (तुम तो मेरे सचे शाई साचि), ११०४२९-१ साधारणजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (मम करे जीवडा रे नंद्या), ११४१२१-२(#$) साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (लागी लगन मने तारी जिणंद), ११०४९१-२ साधारणजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुरनारी सरखी मीलीजो काई), ११२५२५-४(+#$) साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, मु. कांति, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (जिणंदा तोरी वाणीइ), ११४४५०-३, ११०६४९-२(#) साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभु आगल नाचे सुरपत), १११९७५-२(+#), ११४६११-१(#), ११४८२६(#$) साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (चंपक केतकी पाडल जाई), १०८२६१-३(+#), १११९३१-१(+S), ११२२३५(+$), ११४९५५-२(#) साधु अतिचार-१२१ नाम, मा.गु., गद्य, स्पू., (अठार पाप ८ कर्म मनरो जोग), १११२२१-३(+) साधुआचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (उनो पाणी गणो ठर्ये पुरी), ११४२३२(६) साधु कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (कोटिकगणवइरी शाखा), ११२८५० साधकी वीसवसा और श्रावककी सवावसा दया, मा.गु., गद्य, मप., (जीवना बे भेद सुक्ष्म), ११२८४३(+$) साधु के १४ उपकरण नाम, मा.गु., गद्य, मूप., (पात्रो१ झोली२ तलै), १०८५६६-३(#) साधुगुण पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (गहि सुधग्यान धरे है), ११३५३१ साधु गुणवर्णन सज्झाय, रा., पद्य, श्वे., (साधुजीरी संगति रे भवियण), ११११४४-१($) साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सकल देव जिणवर अरिहंत), ११३५८१(२) For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५९२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ " साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, रा. गा. ९, पद्य, मूपू (पांचेइंद्रीरे अहनिस), ११४०१६-४, १०६५३४-२३(४) साधुगुण सज्झाय-उपमा युक्त, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (बेठा समवसरण सिंघासण), ११३०८८-२(+#) साधुजीवन सुखदुःख वर्णन पद, मा.गु., पद. २, पद्य, खे ( पहिलो सुख जे सुजस लीयो), ११२८२२-१ साधुपद सज्झाय, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुमति गुरु शुद्ध), ११४११६-२(+#) साधुमनोरथ पद, मु. हजारीमल, पुहिं. गा. ४, पद्य, वे (तीन मनोरथ धारो साधु), १११९९४-२ (०), ११३२१०-३(*) साधुमहिमा सज्झाय, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू, (साथ चरण नित्य वांदीइ रे), ११००९०-२(१) साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू (पंच भरत पंच एरवय), १०६८९५ (+) साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. १८, गा. ५१९, ग्रं. ७५०, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिन सोलमउ), १०९४४७ יי साधुवंदना, मा.गु., पद्य, म्पू. (--), १०९९५५( साधुवंदना तेरहढाला, मु. देवमुनि, मा.गु., ढा. १३, गा. १६७, पद्य, मूपू., (पंचभरत पंचएरव जाण), १०६७२६ (+) साधुसंगति सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रवचन वचन सोहामणां), ११४२८४-१ साधुसाध्वी २५ उपकरण नाम, मा.गु., गद्य, थे. (पात्रओ१ पात्राबंधन २) ११३९८३-४(*) " साधुस्तुति सवैया, जै. क. बनारसीदास पुहिं. पद २, वि. १७वी, पद्य, दि., (ग्वान्न को उजागर), १०८९७०-३(+) साधुस्तुति स्तवन, पुहिं. गा. ६, पद्य, वे. (प्रीत तो मुनीराज स्युं). ११३६५४-१ (+) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सामायक व्रत शुद्ध), १०८९५०-१ " सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु. गा. १३, पद्य, मूपु (प्रणमिव श्रीगौतम) १९१८८९-३, १०८१९७-१(७) " सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु. ( सामायिक मन सुधे करो), ११०७४५-१, ११३४९७ सिंहासनवीसी कथा, मा.गु., कथा. ३२, पद्य, वे. (पंचाख्यान इस कहइ), ११४८३२(३) ,י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י' सिकोत्तरीदेवी छंद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (रामतिरमाती भावे भगति), ११३६८८-२ सिचीयायदेवी स्तुति-ओसिया, मु. जुगति पाठक, पुहिं., गा. ७, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन आया गढ़), १०७२७९ सिद्धगतिद्वार विचार कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (उरधलोकमाही एक सम ४), ११०२९३-१ सिद्धचक्र पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू, (नवपद ध्यान धरो रे), ११३७३१ सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (नवपद महिमा सार सांभल), ११४२३५-४०) सिद्धचक्र स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८. वि. १७९४, पद्य, मूपू. (अवसर पामीने रे कीजे), ११४२३५-१(१) सिद्धचक्र स्तवन, मु. कुशलसागर शिष्य, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर वाणी इम), १०८०४३ (नवपदना गुन गावो तुम), ११०३४३-१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू. सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा सांभलो), ११०४२२-१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (श्रीसिद्धचक्र आराधिय), ११३१६२-४(१) सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सकल कुसलवर मंदरु ए), ११२४११-१(+) सिद्धचक्र स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा सांभलो भविभाव), ११२४११-२ (+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ७, वि. १७३५, पद्य, मूपू., (सरसति माता पाये नमी रे ), ११४२३५-२(#) सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., डा. ४, गा. २५, पद्य, मृपू., (जी हो प्रणमुं दिन प्रतें), ११०४४८, १११९६७/६) सिद्धचक्र स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू. (एक आगमधी रो हो जउ), ११४८६१-३(४६) सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहिले पद जपीइं अरिहंत बीज), ११३२११-१(+#), १११८१२(4), ११२९९८-१(३), ११३४५४-१(5) " सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक ), ११०००४-६(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (वीरजिणेसर अति अलवेसर), ११०४२२-२ सिद्धचक्र स्तुति, मु. महिमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर भुवण), ११३१६२-३ (#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू.. (सिद्धचक्र सेवो), ११३१६२-५(४४) सिद्धार, मा.गु., गद्य, मूपू. (पहेली नर्कना निकल्या), ११३४६९ " For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ सिद्धपद दोहा-गूढार्थगर्भित, मा.गु., दोहा. १, पद्य, मपू., (कवण लभै कवण लभै सिद्धनो), १०७०२८-२(+#) सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम पृच्छा करे), ११०३२२(+-), १०९२९५, ११०४६८, १०६५३४-२४(#), ११४७४९(#$) सिद्धपद स्तवना, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (लोक चउद के पार कनारे), ११४६११-२(#) सिद्धमंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (बीजो मंगल मन सुध धाव), १०८१३२(+) सिद्धराजजयसिंहप्रबंध रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ११५१०१(+#$) सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (छोडी हो पिउ छोडि), ११३११०-३(#), ११३९०१-२(#) सीतासती चौढालियो, मु. दोलतसागर, मा.गु., गा. ४६, वि. १७८४, पद्य, पू., (--), ११२८९९-१(६) सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुं नाम), १०६४९४-८, ११०३६३ सीतासती सज्झाय, मु. लक्ष्मीचंद, पुहिं., गा. १६, पद्य, मपू., (मुनिसुवरतस्वामी), ११३८९२-२(+#) सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), १०८५१२, १०६५३४-१४(#), ११३११०-१(#) सीमंधर गणधर सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गणधर गुणमणि रोहण), १०६७८०-२५(+) सीमंधरजिन ३२शिष्य केवली सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (पोतनपुरी पृथ्वीपति), १०६७८०-३०(+) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीसीमंधर साहबा आ भरते), ११२८५५-२(-) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मप., (श्रीसीमंधर वीतराग), ११३०५८-२(+), ११३९९६-१, ११२९०७-१(#) सीमंधरजिन पद, मु. पंचायणमुनि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (सीमंधर पदवी ऊंची ए तालू), ११५२२६-६(+) सीमंधरजिन पद, पुहि., पद. १, पद्य, मप., (मोहन तज चालो सजनी व्रज), ११४६९६-३ सीमंधरजिन लावणी, श्राव. जैन, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (चतुर नर मनकुं समझाना रे), ११२३६८-२(#) सीमंधरजिन विनती पत्र, क. नर, मा.गु., पत्र. २, गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीमहाविदेह),११११९५(+$) सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, मपू., (त्रिभुवनस्वामी अरज), ११२८७५ (#S), ११०९५५(६) सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. जैमल ऋषि, पुहि., गा. ८, पद्य, स्था., (पुर्व पुखलावती बीजै), ११३४६६ सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३५, वि. १८वी, पद्य, मप., (सुण सीमंधर साहिबाजी), ११४३२६($) सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हुँ), ११४८४८-१(+5), १११३९६-१(६), ११३७४४(६) सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (पुंडरीगिणी नगरी भली), १११२७६-१ सीमंधरजिन विनती स्तवन, मा.ग., पद्य, मप., (--), ११४२७७(+$) सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामी सीमंधर विनती), ११३१६६(), ११३८८३-२(5) सीमंधरजिन विनती स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३५०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिब), १११९६३($) सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (मारी वीनतडी अवधारो), १०९४८३(+), १११३९०-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहज विलासी सुदरु), ११४२५८-५(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. गोविंदसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (नित होयजो हमारी जी मनवचन), ११३५३०(-) सीमंधरजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८५३, पद्य, स्था., (सीमंधर सहव दीपता), ११२८७२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसति स्वामिनी हंसगामिनी), ११२८९३-१(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. प्रमोदचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (अरज सुणो सीमंधर साहबा हो), ११०८९८-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (सीमंधरस्वामी सुणज्यो), ११०४७९ सीमंधरजिन स्तवन, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुमे साचा छो सिव परगामी), ११०२६४ For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५९४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (धन्य ते मुनिवरा रे), १०९४३५ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुष्कलवइ विजये जयो), १०९४३३-१, ११५२४२-३ सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (श्रीसीमंधर साहिबा हु), १०६५०७-१, ११२८६६ (श्रीसीमंधरजी सुणजो) ११०३४३-२ " सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., डा. ७, गा. ४०, पद्य, मूपू.. (सुण सुण सरसती भगवती तोरी), ११०३४५ सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (सीमंधरजिन त्रिभुवन), ११३७३३-२(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीश्रीमंधर सामी मह), १११३९० - २(+), ११३५१०-१(-) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीश्रीमंधरस्वामीना), १११८९२ (+), ११४७५० ($) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सीमंधर पहेला जिणंद), ११४४२६-२(+) सीमंधरजिन स्तुति, मु. नेत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सीमंधर रे जिणवर पय प) ११०४८९-२ ७ सीमंधरजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९ वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरदेव सुहंकर), १११९७१-६(+) सीमंधरजिन स्तुति, मु. वीरविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १५, पद्य, मूपू., (सीमंधर तुज मिलने जिन), ११५०९७($) सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पूरव दिशि इशान कुण), ११३९९६-५ सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (पूरव देश इस कूणि पुष्कल), ११२९९४-२ सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, म्पू. (सीमंधरस्वामी केवला), ११०५०३-३ सुंदरी सज्झाच, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (रुडे रुपें शीळ सोहाम), १०६७८०-२१ (+) सुकोशल कीर्तिधरमुनि रास, मु. विद्याचारित्र, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (--), ११४६४१-१(#$) सुखडी सज्झाय, मा.गु., गद्य, वे., (रमता रमता रंग डोलडी), १०७१८८ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुपच्चीसी, मुजिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपु. ( सुगुरू पिछाणो एणे). १११८१९(+४३), १०८८९६ सुजातजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (साचो स्वामि सुजात), ११५२४२-२ सुदर्शनशेठ अभयाराणी सज्झाय, मा.गु., डा. ५, गा. ३८, पद्य, मूपू (सील तणा गुण छै घणा). ११४०१७-१ सुदर्शनसेठ सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., डा. ६, गा. ६८, पद्य, मूपू, (संयमीधीर सुगुरुपय), १०६७८०-३३(+), ११४५१६ (०६) सुधर्मास्वामी गहुली, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, क्षे. (जी रे गुणसील चैत्य), ११०३६१-२ " सुधर्मास्वामी गहुली, मा.गु., पद्य, म्पू., (आमल कमलपा उद्यांमा ए) ११३१३२-३४) सुपार्श्वजिन पद, मु. अबीरचंद, पुहिं., गा. २, पद्य, वे., (हम चाकर हें जिन चरणा के), ११५१७३-१ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (सकल समिहीत सूरतरु रे), ११२०९३-१ " सुपार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (साहिब हो साहिब मुझ) ११४०७५-२(+४) सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसुपास जिनराज), १०६५०७-८(ई) सुपार्श्वजिन स्तवन- जयपुर मंडन, मु. रत्नविजय, पुहिं., गा. १०, वि. १९००, पद्य, म्पू, (हो जिनवरजी मरजी करने, १०७२३२ सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १८९३, पद्य, मूपू., (हवे सुबाहुकुमार एम), ११०५८३ सुबाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (स्वामि सुबाहु सुहंकर), ११५२४२-१ " सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीनवुं), ११२३३७($) सुभद्रासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २१, पद्य, भूपू (मुनिवर सोधइ ईरजा), ११४०८५ (४) सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. संधो, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे. (मुनीवर सोधे इरया जीव), ११४०३२-१(#) सुमतिकुमति लावणी, मु. जिनदास, रा., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हां रे तुं कुमति), १११५९४-२, ११४०१८-४ सुमतिकुमति सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. १३, पद्य, मूपु., (सुमति सदा सुलेणी वीनवे), १०६७८०-२३(+) सुमतिजिन गीत- समवसरण, ग. जीतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (आज हुं गइती रे समवसर), ११३६६३ सुमतिजिन पद, मु. खूबचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कहो रि माइ केसे छूट), १०७०३७-२(+#) सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभुजी जो तुम तारक), १०७९३३-३(+) सुमतिजिन स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू. (सुमति जिणेसर साहेबा रे), १०८२५३-२ " For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२५ सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. गा. ५. वि. १८वी, पद्य, भूपू (सुमतिनाथ गुणस्युं), २०६५०७-७ सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू. (सुमतिनाथ साचा हो), १९४११३-४(*) सुमतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू (सुमतनाथ सुमताफल दीजो), ११४१४१ "" सुमतिजिन स्तवन १४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., डा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, म्पू, (सुमतिजिणंद सुमति), १११८८५-२(०३), १११२४५ (8) सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुस्युं तो बांधी), ११४१३४-३(#) सुरप्रियमुनि पंचढालियो, मु. कुशलचंद ऋषि, मा.गु., डा. ५, वि. १८७७, पद्य, मूपु. ( वरतमांन बरते खरा श्रीवीर), ११०५०६ सुरप्रियमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ७०, पद्य, श्वे., (सरसति देव सदा मनि धरूं), ११४४६८-२($) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू (धन धन सुलसा साची), १०८२६८ (+), १११८३९(4) सुविधिजिन स्तवन, उपा. उदवरन, मा.गु., ढा. २ गा. २९, वि. १७६९, पद्य, मूपू. (श्रीसुविधि जिणंद), ११२३८७-१ (+) सुविधिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (में कीनो नहीं तुम), ११४११३-३(+) सुविधिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मृपू. (हां रे नरत करत थेई घेई वा), ११३७३७-२(+) " साणीदेवी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (इणतरे राजा सूरसावलाने), ११२२४१-३ ($) सुसाणीदेवी छंद, मु. विदाजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (संवत दोय दस से सगत वरस), ११२२४१-२ सुसाणीदेवी पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रसन्न होय माता कह्यो), ११२२४१-१ सूतक विचार, पुहिं., गद्य, मूपू., (जो व्यवहारभाष्य वृत्ति), ११४९३१ सूतक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म्यां १०). ११०२७३(०), ११०४१०, ११०४८० (३) सूरजदेव सलोको, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु. गा. २८, पद्य, मूपू. वै., (प्रणमुं सारदा गणपतरा), १०८९७८-१ सूरसेन चौपाई, ऋ. हीराचंद, मा.गु., डा. ४१, वि. १९६२, पद्य, स्था., (पद पंकज पारस नमु), १०६६४२ (+) . सूर्य सलोको, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सरसति सांमणि करोने), ११२०३०-२($) सैन्यसज्जतावर्णन गीत, मा.गु., पद्य, वै., इतर (ढोल गीडगड ढोल गीडगड आयो), ११०९९१-३ सौधर्मईशानेंद्र देवलोकवर्णन चौपाई, मा.गु., पद्य, म्पू. (--). १९४४२८(०३) सौभाग्यपंचमी चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (परम पंचपरमेष्टीना वंदू), १०९४९३ (+$) स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, म्पू. (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), १०६७५२ (०३) स्तवनचीवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु. स्त. २४ वि. १७वी, पद्य, भूपू (मनमधुकर मोही रह्यो रिषभ) ११३६०६ (३), , 1 ११४०६३(#$) " ', स्तवनचौवीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., स्त. २५, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (आदिसर अवधारीइं जी सेवकनी), १०७८९० स्तवनचौवीसी, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, म्पू, (सेवो रे श्रीरीषभ जिणेसर), ११०६५१(5) स्तवनचीवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु. स्त. २४ वि. १८वी, पद्य, भूपू (ऋषभ जिनंदा ऋषभ जिणंदा), ११५०३०(३) स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू. (ऋषभदेव सुखकारी जगत), ११५११० (MS) स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपु., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ११३३३९(5) स्तवनचौवीसी, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभ ऋषभ जिणंद निरखी), ११३२४८ (#$) स्त्री-पुरुषजन्म पृच्छा कवित्त, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., इतर, (स्री नामाक्षर सप्त गुणी), ११४००६-३ स्थानकवासीमतस्थापन विचार, मा.गु., गद्य, स्था., (गीयत्थो य विहारो बीयो), ११४०२३-१(+) स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू.. (शुद्ध स्वरूपने घ्याउ), ११०६१६-२(+), ११०२१६-२(४) स्थापनाचार्यजी परीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीभद्रबाहुस्वामी), ११०२७२(४) स्थूलभद्रएकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४२, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (आव्यो आव्यो रे जलहर), ११३३८०-१(AS) स्थूलभद्रकोशा सज्झाय, आ. जयवंतसूरि, मा.गु गा. ९, पद्य, म्पू, (रंगडो रमी नि रे उंचा उपाय), १९३८३५-२ स्थूलभद्रकोशा सज्झाय, मा.गु., पद्य, भूपू (आज आनंद वधामणा वीनति सुणि), १९३९८५ (३) स्थूलभद्रकोशा सज्झाय, रा., पद्य, श्वे. (आवौ रे थुलभद्र आंगणे आंखै), ११११४४-२ ($) स्थूलभद्र बारमासो, आ. लाभोदयसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सखी रे सांभल मोहि), ११४१९९-१(+) For Private and Personal Use Only ५९५ Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५९६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मु, दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४. वि. १७५९, पद्य, मूपू (सुखसंपत दायक सदा पायक जास), ११३९३३ (०३), ११३६८९(३) ११५२०शा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९, गा. ६७, वि. १७५९, पद्य, मूपू. (सुख संपति दायक सदा). ११३७६५ (३) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू. ( श्रीस्थूलिभद्र मुनि) १०६९८१-१, १०९४१२ स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (वाट जोवंती निशदिन), ११५०४४-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (लाछलदे मात मल्हार बह), ११३७४७-१(+#), ११४९५३-१($) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपु.. (कोश्या वेश्या कहे रागीजी), १११५३० स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मेघराग ओर भैरव रात्र), ११२०६८($) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (रमणी सुरंग रसे रमता), १११४००-१ (+) " स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतडली न किजीये), १०९४६५ (+#), ११४२७२-२, १०८२४५-१(#) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू.. ( चंवलीया तुं वेहलो), ११४७२२-१(+) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, थे., (--), ११२४८१-१(३) स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., डा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, म्पू (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), १०६७०२-२ (+), २०७०८१०, ११४५११००७), १०६९८९ स्पर्शेद्रिय एवं कालबल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तथा फरसेंद्री ते सुं अने), १०९१४६-६ स्वप्नफल चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु. गा. ४२, वि. १५६०, पद्य, म्पू, इतर ( पहिलो मन जोइ करि) ११२८१७ (४) " स्वयंप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामी स्वयंप्रभ), ११२९८८-२(+#) स्वरलक्षण कवित्त-हस्वगुरु, पं. जसवंत, पुहिं, गा. ५, पद्य, श्वे. टप टप टप क्यी जात है जैसे, १०९९४०-५(१) स्वरोदय विचार, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू. इतर (प्रणमी चरण सदा गुरुतणो जे), ११५१४७ " स्वरोदयसार, मु. कपुरचंद, मा.गु., गा. ४५३, ग्रं. ५५०, वि. १९०७, पद्य, मूपू., इतर ( नमो आदि अरिहंत देव), १०६६६३(+#) स्वर्ग वर्णन, पुहिं., गद्य, श्वे. (हे परम उपगारी हे संसार), १०६७५१-३(+#) " हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४८ गा. ९०५ वि. १६८०, पद्य, मूपू. (आविसर आये करी चोवीसे), ११३९५४०३), ११३५७७६) ११४६६४(७) हनुमान गीत, सोम, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (कपी कहि सुनि रे कट्टीवार), १०७३२२-३(+) हरिकेशीमुनि सज्झाय, क्र. चोधमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, म्पू., ( नीच कुल आय उपनारे), ११३१०७-५ हरिभक्ति गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (आज आव्या रे हरि दावमा भला, १०७२४६-३ हस्तप्रतगत कृति बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ दस दाना की सीझा), ११३५८३(+) हितविजय का मोहनविजय को वडीदीक्षा संबंधी पत्र, उपा. हितविजय, पुहिं. वि. १८१३, गद्य, म्पू (ॐ नत्वा भ० श्री श्री विजय), १११२७१(+) हीरविजयसूरि प्रबंध, मा.गु., प+ग. मूपू., (--), ११४५५४(ड) " हीरविजयसूरि भास, मु. लक्ष्मण, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू., (सकल सोभागी सुंद को महिमा), ११३५९९ " हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २०, पद्य, म्पू.. (जे कर जोडीजी वीनवें), १०८९५२-२(७) हुतासनी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (एवे सुगुरु पधार्या त्यां), ११०३४७ होडाचक्रविलास-भाषा, मु. सुंदर ऋषि, मा.गु., प+ग., जै., इतर ?, (माता सरस्वति प्रणमीए), ११२६७०($) For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir teahayat NERARMERATHAMARPUR mommon Anford DetaKiaalaa SERA AL 4 आराधना हावीर जैन काबा. श्री // अमृतं तु विद्या तु Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org 'Website : www.kobatirth.org [ISBN: onnesama-280 Set: T0177-001 For Private and Personal use only