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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५
प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी;
अंति: जस० देयो मंगल कोडि, ढाल-१९, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं है.) १०६७१८. (+) प्रास्ताविक काव्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९०३, आश्विन कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०-७(६ से ९,३१ से
३३)=३३, ले.स्थल. भुज नगर, प्रले. कल्याणजी जोशी; लिख. श्राव. ओटाराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:काव्य०, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, ४४२५-२८). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: राज्यंनिः सचिवंगतः प्रहरण; अंति: नमतीवान संजीवनं
पुस्तकां, गाथा-१४०, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१५ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक व १०३ अपूर्ण से ११४
अपूर्ण तक नहीं है.) सुभाषित श्लोक संग्रह- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: राज्य प्रधान विना न सोभे,; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१३७ तक टबार्थ लिखा है.) १०६७२१. आत्मानुशासन सह भावार्थ व भाषाटीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६२-१८०(१ से १७९,२०८)-८२, प्र.वि. हुंडी:आ०भा०., दे., (२१४१२.५, १०४२१-२४).
आत्मानुशासन, आ. गुणभद्र, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: (-); अंति: कृतिरात्मानुशासनं, श्लोक-२७१, (पू.वि. प्रारंभ व
बीच के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१ से १७१ तक व १९३वा नहीं है.) आत्मानशासन-भावार्थ, पंडित. टोडरमल , पुहि., गद्य, वि. २०वी, आदि: (-); अंति: ए दो अर्थ प्रमाण है, पृ.वि. प्रारंभ
के पत्र नहीं हैं.
आत्मानुशासन-भाषाटीका, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: इह आत्मानुशासन का वर्णन, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १०६७२६. (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. सिरदार शहर, प्रले. मु. छोटुलाल (लुकागच्छ-बृहन्नागोरी);
पठ. श्राव. पोकरचंद (पिता श्राव. अमेदमल); गुपि. श्राव. अमेदमल (पिता श्राव. जयकरमदास); श्राव. जयकरमदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:साधुवंदना., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२०.५४१३, १६४२५-२८). साधवंदना तेरहढाला, म. देवमनि, मा.ग., पद्य, आदि: पंचभरत पंचएरव जाण; अंति: देवमुनि गुण संथण्या, ढाल-१३,
गाथा-१६०. १०६७३१ (+) नवतत्त्व प्रकरण की व अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(११)=१४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१३,१५४३९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टीका, मु. रत्नचंद्र, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पादौ जिनराज; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं., मोक्ष तत्त्व वर्णन अपूर्ण तक है.) १०६७३२. (4) प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१३, आषाढ़ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १८,
ले.स्थल. तितडवाड, प्रले. मु. चंदनलाल (गुरु मु. गुलजारीमल); गुपि. मु. गुलजारीमल; पठ. मु. रुडमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:पडकमणा साधु का., मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, २१४५५-६०). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: आवसही इच्छाकारेण; अंति: (अपठनीय),
(वि. अंतिमवाक्य वाले पत्र चिपके हुए हैं.) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), (वि. किनारी खंडित है व पत्र
*चिपके हुए हैं.) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रहबालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जे जिन वचन समासरदहां; अंति:
(अपठनीय), (वि. अंतिम वाक्य वाले पत्र चिपके हुए हैं.) १०६७३५. (+) अभिधानचिंतामणिनाममाला-कांड १ से २, संपूर्ण, वि. १८३६, आषाढ़ शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १५,
ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. पं. हंसविजय (गुरु पंन्या. गजविजय); पठ. मु. भांणाजी (गुरु मु. वणारसी); गुपि. मु. वणारसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथजी प्रसादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४२७) जहां सूरज जहां चंद्रमा, जैदे., (२५४१३, ११-१५४३३).
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