Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 25
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४६०२ (+) महावीरजी की विनती, संपूर्ण, वि. १८६५, भाद्रपद कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. स्याहजेहनाबाद, प्रले. मु. जुहारमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४३७). महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति:
समयसुंदर० त्रिभवनतिलउ, गाथा-१९. ११४६०४. (+) चंदनबालामहासती पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १८११, श्रावण शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. पं. अमरविजय
गणि (गुरु ग. विनीतविजय); गुपि.ग. विनीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चंदनबाला स्वाध्यायपत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १३४३३-३६). चंदनबालासती रास, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६४, आदि: प्रणमी प्रेमें सरसती; अंति: धरि वाध्या रंग
रसाला रे, ढाल-५, गाथा-७२. ११४६०५. (+) उपदेशपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सोजत, प्रले. सा. करासताइ (गुरु सा. चंपा);
गुपि.सा. चंपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपदस., उपदेशरीकु., उपदसकरे., उपदसराकत., संशोधित., दे., (२५४११.५, १४४३२-३४). उपदेशपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८२०, आदि: जीनवर दिए एसो उपदेश; अंति: रायचंद० छांड
संसारना फंद, गाथा-२६. ११४६०९. १८ नातरा लावणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:नातरा., दे., (२५.५४११.५, १६४५०).
१८ नातरा लावणी, मा.गु., पद्य, आदि: कर्मगत वर्णाना जाइ भाव फल; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
___गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ११४६१० (+) चराणु बोल बासठियो, संपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कुंचामण, प्र.वि. हुंडी:चराणुबोल., संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१४४३) पानो पोथी प्यारथी, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४७).
९४ बोल का ६२ भांगा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ गरभेज विना जीवना भेद; अंति: ९४ सोपकरमी परत में. ११४६११. (#) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ९, प्र.वि. हुंडी:तवनपत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२५४११, १६४३४). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु आगल नाचे सुरपत; अंति: ते नाटिक
___जोवण ओछक अती, गाथा-९. २. पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवना, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लोक चौवद के पार किनारे; अंति: वीनती चरन कमल को दासा हैं.
गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मानो मानो मानो रे; अंति: मोहन० सेवक करी जाणो रे,
गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: आज चित चेत प्यारे; अंति: देवो दो कर दानो रे, गाथा-३. ५. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: आदि अंत जानु नही तुम हो; अंति: वीर हैं रूपचंद गुण गावै, गाथा-६. ६. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज घरे नाथ पधारे कीजे; अंति: रूप० चरणकमल जाउं वार, पद-५. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घरीयारे वावरे मत घरीय; अंति: आनंदघन० वीरला कोइ गावे, पद-३. ८. पे. नाम. कृष्णराधा होरी पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
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