Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 25
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 439
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण, प्रले. मु. नंदलाल, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कांइ रिसाणा हो नेम रंगीला, अंति: मुगति पुहति मारा लाल, गाथा- ९. २. पे नाम. गुरुगुण गीत, पू. ४आ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि पगलाटक ने कहजो मारी वंदना; अंति: धरम तणी सनेह जी, गाथा-७. ११४३७९. (+#) नंदिषेणमुनि रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४x११, १७x४९-५४). नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सूत सिद्धारथ भूपनो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा - १ अपूर्ण तक है.) ११४३९१. (+) महादेवी सूत्र की दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२१ (१ से २१) = १, पू. वि. मात्र बीचका पत्र है., प्र.वि. हुंडी:महादेवीदीपिका., संशोधित., जैदे., (२५.५X११, २१x४९). महादेवी सूत्र- दीपिका टीका, वा. धनराज, सं., गद्य वि. १६९२, आदि (-) अति (-) (पू.वि. अंश साधन वर्णन से भुजफल साधन वर्णन अपूर्ण तक है.) ११४३९२. (१) उत्तराध्ययनसूत्र के विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४११.५, १३४४६). "" उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. सज्झाय-२ गाथा-३ अपूर्ण से सज्झाय-६ गाथा- २ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने गाथाक्रम नहीं दिया है.) "9 ११४३९५. (४) चंद्रयशाजिन व अजितजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४) = १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १३X३१-३७). १. पे. नाम. चंद्रयशाजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रयशाजिन जिन राजीउ; अंति: जस कहे तस जय थाय, गाथा-७. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. अजितवीर्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दीव पुष्करवर पश्चिम; अंतिः सेवक वाचक यश एम बोले, गाथा- ७. ११४३९९ (4) सुमति पच्चीसी व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है, अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२६४११.५, १५X४०). १. पे नाम. सुमति पच्चीसी, पू. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: एते पर एता ही करना, ढाल -२, गाथा-२५, (पू. वि. गाथा- २३ से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तु मेर प्रीती साजना, अंति: मिलै रे तो पामै सुख कोड, गाथा-१०. 1 ', ११४४०२. (+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, प्र. वि. हुंडी: पंचमीतवन, संशोधित. वे., (२५.५X११.५, ११x२४-२७). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि (-); अंतिः सकल भवि मंगल करे, डाल-६, गाथा-६८, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., ढाल-६ गाथा- २ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only ११४४०७. नाडीपरीक्षाद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, १०x४५). १. पे नाम. नाडीपरीक्षा सह बालावबोध, पू. १अ - २आ, संपूर्ण. नाडीपरीक्षा, सं., पद्य, आदि सुप्ता च सरला दीर्घा अति नाडी दूरेण वर्जयेत् श्लोक-१४. नाडी परीक्षा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि सूती सीत जाणीजे पाधर, अंति जोईने चिकित्सा करणी.

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