Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 25
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 408
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२५ ३९३ नेमराजिमती बारमासा, म. श्यामगलाब, मा.गु., पद्य, आदि: अंति: भइ अव जाह श्रीनेम को बंदन, गाथा-१३, (वि. अंत में किसी अन्य कृति की प्रारंभिक दो गाथाएँ लिखकर छोड दी है.) ११४०४७. (+-#) अंतकृद्दशासूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उपस०., अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, २४४६१). अंतकद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "एवं खलु जट्ठाए० अरिट्ठनेमिण" पाठ अपूर्ण तक है., वि. प्रारंभिक दो पंक्ति के पाठ उपासकशांग के तथा बाद के पाठ अंतकृद्दशा के है. पाठानुसंधान क्रमशः नहीं है.) ११४०४८. दंडक विचार व १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तर देव आयुष्य बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, १३४४२). १. पे. नाम. दंडक विचार, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: एतले समे केतला मोक्ष जाइ, (पू.वि. भंडोवगरण परिग्रह द्वार ___ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तर देव आयुष्य बोल यंत्र, पृ. १४आ, संपूर्ण. मा.गु., यं., आदि: सोधर्म देवलोक जघन्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'सागरोपमउ २२ __सागरोपउ' पाठांश तक लिखा है.) ११४०४९ (+) बृहत्शांति स्तोत्र व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ११४३८). १.पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयति सासनं, (पू.वि. 'भवंतु स्वाहा उपस्वर्गाक्षयंजांति' पाठांश से है.) २. पे. नाम, लघुशांति, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक है.) ११४०५० (+#) श्रमणसूत्र व दीक्षा विधि, अपूर्ण, वि. १८५१, फाल्गुन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १७४४६). १. पे. नाम, श्रमणसूत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-३७, (पू.वि. सूत्र-२९ "लोगस्स आसायणाए परलोगस्स आसायणाए" पाठांश से है.) २. पे. नाम. शिष्यनै संयम देवा विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम सचित्त वस्तुनौ; अंति: (-), (वि. पत्र खंडित होने से अंतिम वाक्य नहीं भरा ११४०५१ (+) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४४३). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिण वंदिअ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ११४०५२ (#) कातंत्र व्याकरण, पत्रलेखन पद्धति व आध्यात्मिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१८, ?, फाल्गुन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, अन्य. तेजसी; विबुधीराम; कपूरचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में रुपयों के लेन-देन का विवरण लिखा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, २३४६१). १. पे. नाम. कातंत्रव्याकरण-प्रारंभिक ५ संधी व विभक्ति, पृ. १अ, संपूर्ण. कातंत्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं., प+ग., आदि: सिद्धो वर्णसमाम्नायः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पत्रलेखन पद्धति-साधु उपमा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only

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