Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 1
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 426
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३७२ पे. ९.पे. नाम. सूत्रकृताङ्गसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. ३३आ-३५अ सूत्रकृताङ्गसूत्र-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः सूत्रकृतमिति सूचा; अंतिः कार्यारम्भकत्वम्. पे. १०.पे. नाम. पञ्चस्थानकसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. ३५अ-३७आ पंचस्थानकसूत्र-विषमपद पर्याय, सं., गद्य, आदिः तत्सन्तानस्येति; अंतिः कल्पे इति जिनकल्पादौ. पे. ११.पे. नाम. स्थानाङ्गसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. ३७आ-३८अ स्थानाङ्गसूत्र-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः पालयति वेति वस्त्र; अंतिः दिक्पालमनुज्ञापयति. पे. १२. पे. नाम. समवायाङ्गसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. ३७आ-३८अ समवायाङ्गसूत्र-विषमपद पर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः दुरितानि इति योजनशत; अंतिः अवस्यमुत्पत्तव्यम्. पे. १३. पे. नाम. भगवतीसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. ४०आ-४४अ भगवतीसूत्र-विषमपद पर्याय, सं., गद्य, आदिः घनोदार इति अग्राम्य; अंतिः ठिउ इति पठितः. पे. १४. पे. नाम. जीवाभिगमसूत्र का विषमपद पर्याय, पृ. ४४अ-४६अ जीवाभिगमसूत्र-विषमपदपर्याय, सं., गद्य, आदिः इह खलु इति; अंतिः करेन्तस्स परिवडियम्. पे. १५.पे. नाम. प्रज्ञापनोपाङ्ग का विषमपद पर्याय टिप्पण, पृ. ४६अ-४७अ प्रज्ञापनासूत्र-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः वचनादिति वचनाज्जिन; अंतिः आदि इति भाषया. पे. १६. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र-विवरण का विषमपद पर्याय टिप्पण, पृ. ४७अ-४८आ प्रज्ञापनासूत्र-विवरण का विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः सिन्तमिति जीवे बद्धं; अंतिः इति सेतस्यायुः शेषम्. पे. १७. पे. नाम. साधुजितकल्प का विषमपद पर्याय टिप्पण, पृ. ४८आ-५१आ जीतकल्पसूत्र-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, आदिः शास्त्रारम्भे; अंतिः सहलं होइ सव्वं तु. पे. १८. पे. नाम. जीतकल्प का यन्त्र, पृ. ५१आ जीतकल्पसूत्र-यन्त्र, संबद्ध, सं., यंत्र, आदि:#; अंतिः#. ३४७३. कर्मविपाकविचार यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., (२६.५४१२.५, १३-१४४२८-३०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, राज., गद्य, आदिः श्रीवीरजिन प्रते; अंतिः अन्तराय कर्म बांधे. ३४७५. सूक्तावली सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.१४००, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४१२.५, ९-१३४३४-३५). सूक्तावली, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः वीरं विश्वगुरुं; अंतिः ताहं हूसिज्झइ लीह. ३४७६. सन्थारापइन्नासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१२०; प्र.पु. मूल-ग्रं. ४००., (२७४१३.५, ५४३३-३५). संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंतिः सुहसंकमणं मम दितु. संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरन्द प्रणेदौ; अंतिः पामीइ अम्हनइ सन्तु. ३४७७. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., (२७.५४१३.५, १२४३०-३४). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः (१)वत्तियागारेणं वोसिरइ (२)सव्वस्स अहयम्पि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अर्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रथम सकल मङ्गलिक०; अंतिः विशें भक्ति छे. ३४७८." थूलीभद्र चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२७.५४१२.५, ५४३७). स्थूलिभद्र चरित्र, आ. जयानन्दसूरि, सं., पद्य, आदिः वीरोवर्यः श्रिये; अंति: पुण्यशीलप्रवृद्धिम्. For Private And Personal Use Only

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