Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 1
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 452
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १ ३९८ ३७२४. कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५.५४११.५, १६-१७४४२). कल्पसूत्र-बालावबोध* , मागु.,राज., गद्य, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. ३७२५. कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. २१८, जैदेना., ले.स्थल. करीरपुरनगर, ले. पं. देवभक्ति (गुरु मु. सिद्धविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२५४१०.५, १३४४१-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः (१) प्रणम्य परमं ज्योतिः (२) तेणं कालेणं० ते इति; अंतिः तावन्नन्दतु सापि हि. ३७२६." कल्पसूत्र सह कल्पदीपिका टीका व टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४२-२(१,३२)+२(३३,१०६)=१४२, जैदेना., ले. मु. मानसागर (गुरु गणि जीतसागर, तपागच्छ), पठ. गणि त्रैलोक्यसागर,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. टीकाकार पं. मानसागर गणि लिखित प्रति होने की संभावना है., संशोधित, कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-टबार्थादि, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१०.५, ५४४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पदीपिका टीका, मु. मानसागर, सं., गद्य, वि. १७५४, आदि:-; अंतिः विमलमतयो दूषणमिदम्. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) तेणइ कालि जे (२) चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंतिः देखाड्या इम कहुं. ३७२७. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १७७०, श्रेष्ठ, पृ. १४५-४५(५३ से ९७)=१००, जैदेना., ले.स्थल. जीर्णदुर्ग, ले. मु. हरिरुचि (गुरु पं. कनकरुचि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. व्याख्यान का किंचित् पाठ मारुगुर्जर भाषा में भी है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. व्याख्यान-५ से आंशिक व्याख्यान-७ तक नहीं है., (२६.५४११.५, ६x४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमंअंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) तेणइ कालि जे (२) चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंतिः भद्रबाहुस्वामीए. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदिः पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति:३७२८. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६-६(१,२८,७७,८१,८४ से ८५)=८०, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११.५, ९४३१-३३). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंति:३७२९. बारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९, जैदेना., प्र.वि. ९-व्याख्यान, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२६.५४१२, ७४२७-२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३७३०. बारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. १३८, जैदेना., ले. कुशाल ब्राह्मण, प्र.वि. ९-व्याख्यान, संशोधित, (२६x१२, ८x१९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ३७३१. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८०६, श्रेष्ठ, पृ. १९४-१(१९३)=१९३, जैदेना., ले.स्थल. पिच्चयाषनगर, ले. ऋ. दुलीचन्द (गुरु ऋ. तिलोकजी, गुर्जरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-परिमाण व्याख्यान ९., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. अन्तिम कुछ गाथाएं नहीं है., (२६.५४११.५, १४४४०-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (पूर्ण), आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिःकल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः (१) नमः नमस्कारोस्तु (२) ते इति प्राकृत; अंति:कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, (पूर्ण), आदिः प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: For Private And Personal Use Only

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