Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 1
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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४३९
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः हे वासे सिज्झिहिंति.
पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: ज० जो हे पूज्य; अंतिः पूर्व पाठ कहिवउ. पे. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ८१अ-८८
वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि.
वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जो भं० हे पुज्य; अंतिः सूत्रबन्ध समाप्त. ४१८२.” उपदेशप्रासाद सह टबार्थ - १ से २ स्तम्भ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५३+२(६३,१२८)=१५५, जैदेना.,प्र.वि.
संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, (२५४११.५, ५४३७). उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., प+ग, वि. १८४३, आदिः स्वस्ति श्रीदो नाभि; अंति:
उपदेशप्रासाद-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रेयः सम्पदाना दायक; अंति:४१८३." नन्दीसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक
चिह्न, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११.५, १३x४३).
नन्दीसूत्र-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः जयति भुवनैकभानुः; अंति:४१८४." आचाराङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैदेना., प्र.वि. २५अध्ययन, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें,
(२६४११, १३४२९).
आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि. ४१८५. ज्ञाताधर्मकथागसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. ९७, जैदेना., पठ. मु. जीवविजय (गुरु ऋ. यादवजी),
प्र.वि. ग्रं. ३७००; प्र.पु.टीका-ग्रं. ४२००, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-कुछ पत्र, (२५.५४११.५,
१५४४७). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः संशोधिता
चेयम्. ४१८६. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., प्र.वि. ३६अध्ययन, संशोधित, (२६.५४११, ११४४२).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. ४१८७." शान्तिनाथ चरित्र व अढारभार वनस्पतिमान, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११०, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित,
(२५४११.५, १८-१९४५१). पे. १. शान्तिजिन चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, (पृ. १-११०), आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः स करोतु
शान्तिः ., पे.वि.६ प्रस्ताव; प्र.पु. ग्रं.७०००.
पे. २. १८ भार वनस्पतिमान, सं.,मागु., गद्य, (पृ. ११०आ), आदिः #; अंतिः #. ४१८८." मोक्षमार्ग प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., ले.स्थल. अलम, ले. मु. मङ्गलसेन (गुरु ऋ.
ख्यालीराम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, १६-१८४४८).
मोक्षमार्ग प्रकाश, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८९८, आदिः चतुर्विंशति अरिहन्त; अंति: चरण सरण श्रीकार. ४१९०." उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३, जैदेना., प्र.वि. ३६अध्ययन. अंत में प्रत्येक अध्ययन की गाथासंख्या
दी गई है., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११.५, १०-११४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुव्वरिसी एव
भासन्ति. ४१९१.” उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९-५१(१ से ४९,५३ से ५४)=३८, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच
के पत्र हैं. अध्ययन-२३ से अध्ययन-३६ गा.२६७ तक है., (२५.५४११.५, १३४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
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