Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 1
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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४५३
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
दृष्टान्तशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनई श्री; अंतिः माटे विचारी करवु. ४३४६." जीवविचार सह टबार्थ व बत्तीस अनन्तकाय नाम, पूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पे. २, जैदेना., प्र.वि.
संशोधित, पू.वि. गा.१ से गा.५ तक नहीं है., (२५४१२, ५४३७-४२). पे. १. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. -२-६, पूर्ण
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः-; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः तेहथी उद्धर्यो.. पे.वि. मूल-गा.५१. प्रथम पत्र नहीं है.
___गा.१ से ५ नहीं है. पे. २.३२ अनन्तकाय विचार, मागु., गद्य, (पृ. ६आ, संपूर्ण), आदिः सूरणकन्द वज्रकन्द; अंतिः ते अनन्तकाय कहीइ. ४३४८." शन्त्रुजयगिरिसङ्घ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-६, संशोधित, (२७४११.५, १०
११४३०-३९).
शत्रुजयतीर्थ सङ्घस्तवन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, आदिः विमलगिरी ध्यान विमल; अंतिः होजो मङ्गलिक माला रे. ४३४९." सीमन्धरजिनवीनती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि.
अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-१७ गा.४३ अपूर्ण तक हैं., (२६४१२, ११-१२x२७-३४). सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन साडात्रणसोगाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि: सीमन्धर साहिब आगइं;
अंति:४३५२.” कर्मग्रन्थ १-३ सह टबार्थ व शरीरपर्याप्ति यन्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, (२५४११.५, ५४३९-४१). पे. १.पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिणन्द वान्दी; अंतिः अर्थ लाउ जाणिवउ., पे.वि.
मूल-गा.६०. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ७आ-११आ
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तथा श्रीमहावीरनी; अंतिः नमउ अहो प्राणी., पे.वि. मूल
गा.३४. पे. ३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. ११आ-१५
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः बन्धना कारणथी मूकाणा; अंतिः कर्मस्तवथी साम्भलीनइ.,
पे.वि. मूल-गा.२५; टबार्थ-गा.२५. पे. ४. शरीरपर्याप्ति यन्त्र, सं., यंत्र, (पृ. १अ), आदिः#; अंतिः#. ४३५३." कर्मग्रन्थ १-३ सह टबार्थ व सम्यक्त्व स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ५-६x४७). पे. १. पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १अ-६अ
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर तीर्थङ्कर; अंतिः देवेन्द्रसूरि आचार्य., पे.वि. मूल
गा.५८. पे. २. पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी सह टबार्थ, पृ. ६अ-८अ
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