Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 1
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य भाग - १
४२८
पे. २. पे. नाम. अनुज्ञानन्दीसूत्र सह टबार्थ, पृ. ७९अ-८४आ __ लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदिः से किं तं अणुण्णा; अंतिः वीसमणुण्णाए णामाई.
लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः ते० ते कुण अ०; अंतिः अनुग्याना नाम जाणवा. पे. ३. योगनन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. ८४आ-८६अ), आदिः नाणं पञ्चविहं; अंतिः अणुजाणामि., पे.वि.
प्रारंभ की कुछेक पंक्तिओ में ही टबार्थ लिखा है. ४०७९." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२९, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, प्र.वि. त्रिपाठ,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, २०-२१४६४-६६). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः जाइं अनन्तसुख पामे. ४०८०." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व सोलसती स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०६, पे. २, जैदेना., दशा
_ वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अंत के कुछ पत्र, (२५.५४११, ६x४६-५१). पे. १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पृ. १-१०६
उत्तराध्ययनसूत्र , मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्बुडे त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः तुझ प्रतइ कहुं छु., पे.वि. मूल-अध्याय
३६अध्ययन; टबार्थ-ग्रं.११७१५उभ. पे. २. पे. नाम. सोलसती स्तुति सह अवचुरि, पृ. १०६अ
१६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदिः ब्राह्मी चन्दनबालिका; अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्.
१६ सती स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ब्राह्मी चन्दनबाला; अंतिः वः युष्माकं मङ्गलं., पे.वि. मूल-श्लो.१. ४०८१." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९६-१५(९ से १०,२५,३० से ३२,११७ से १२५)=१८१,
जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन. प्र.पु.ग्रं. ३०५०., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२७४११, ५-६४३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्बुडे त्ति बेमि.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः साधु केहवा छइं; अंतिः तेहनइ इष्ट वल्लभ छइ. ४०८२. सप्तितिका कर्मग्रन्थ सह टीका, संपूर्ण, वि. १५५४, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, प्र.वि. प्र.पु. टीका-ग्रं.
४०८०., प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (१०१) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२६.५४११.५, १५४४८). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः पूरेऊणं परिकहन्तु.
सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः अशेषकर्मांशतमासमूह; अंतिः तेनाश्नुतां लोकः. ४०८३.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., ले.स्थल. हरदुवागंज, ले. ऋ. जोतिरूप (गुरु
ऋ. परसराम, गुज.लुङ्कागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०चूलिकार., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, ४-५४३७-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वि. पू.४, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि
(२)आलणा सचे.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः धम्मो० दुर्गति पडता; अंतिः छूटै इ० इम कही. ४०८५.” पण्णवणासूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १५८, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-३६ पद; प्र.पु. मूल-ग्रं. ७७८७, संशोधित,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x११, १५४५७).
प्रज्ञापनासूत्र, वाचक श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. ४०८६." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७७३, श्रेष्ठ, पृ. १८६-१(३९+४०)=१८५, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन. प्र.पु.
मूल-ग्रं. २१००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ५४३६).
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