Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 1
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
हस्तलिखित जैन साहित्य भाग १
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४०६०. आठकर्म विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना, (२५.५X१३, १०X३३).
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः आठ कर्म ते केहा; अंतिः मनवञ्छित सफल थास्यै..
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४०६१." स्थुलीभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. स्थल. पाली, ले. पोखरदास ब्राह्मण, प्र. वि. ढाळ - ९,
संशोधित, (२५.५४१२.५ १२४२७).
स्थूलिभद्र नवरसो वाचक उदयरत्न, मागु पद्य वि. १७५९ आदि सुखसंपति दायक सदा अंति: ( १ ) कहा भणतां
मङ्गलमाल (२) मनोरथ वेगे फल्या रे.
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४०६२.” तिलोकसुन्दरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. स्थल. नारनवलनगर, ले. ॠ. रघुनाथ (गुरु मु.
मङ्गलसेन ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाळ - २२, संशोधित, ( २६१२.५, १९×३७).
त्रैलोक्यसुन्दरी चौपाई, ऋ. कनीरामजी मागु पद्य वि. १८११ आदि अरिहन्त सिद्ध अनन्त: अंतिः फल लुणसी रे लो.
४०६३. चौमासी देववन्दन, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. स्थल. स्थंभनपुर, ले. कामेश्वर सीवलाल व्यास, (२५४१२, १३४३४).
चौमासी देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः विमल केवलज्ञान कमला; अंतिः पास सांगलनुं चेइ रे.. ४०६४. शान्तिस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९२१, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. प्र.पु. श्लो. २७५., (२६×१२, ११x४०). शान्तिस्नात्र विधि, मु. सकलचन्द, सं., मागु., पद्य, आदिः प्रतिष्ठायां वा; अंतिः वाजते धारावाडी देवी.
४०६५." रात्रीभोजन चौपाई, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. स्थल. हिलवाडीग्राम, ले. साध्वीजी चम्पा (गुरु
साध्वीजी दुर्गाजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित, (२५.५x१२, २०x४१).
रात्रिभोजन चौपाई. मु. जिनहर्ष, मागु पद्य वि. १७५९ आदि श्रीसखेश्वर पास अंतिः पडवा केरे दीस.
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४०६६. अनुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९१२ श्रेष्ठ, पृ. १५ जैदेना. ले. स्थल. नवानगर, ले. मु. कीर्तिहंस,
"
प्र. वि. मूल- अध्याय - ३३. प्र. पु. सर्वग्रं. १५००., (२५.५X१२.५, ७५२).
अनुत्तरीपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स: अंति कहाणं तहा णेयव्वं. अनुत्तरीपपातिकदशाङ्गसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि ते काल चउथाआराने अंतिः धर्मकथानी परे जाणवा
४०६७." राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५१-२ (१ से २) ४९ जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष
"
पाठ, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५x१२, ६-९३८).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
राजप्रश्नीयसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि-: अंति:
"
४०६८." सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ- श्रुतस्कन्ध १, प्रतिपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., ले. स्थल. नागोर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २४.५x१२, ५-६×३६).
सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति:
सूत्रकृताङ्गसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि मागु, गद्य, आदि आदिदेवं आदिः आदिदेवं नमस्कृत्य; अंतिः
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४०६९.” प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना. ले. स्थल मदादरी प्र. वि. मूल गा. १२५०,
"
अध्याय- १० टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५४१२, ६९५१)
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प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (संपूर्ण), आदि: जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः अगं जहा
आयारस्स.
प्रश्नव्याकरणसूत्र- टवार्थ मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि: अहो जम्बू हुं धुरै: अंति:
४०७०." चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा.६३, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५x१२.५, ४x२४).

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