Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 1
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatith.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
३८९
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६४९.” अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ३९४, जैदेना., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित,
(२७४१२, १०x२७).
अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, मु. अमीकुंअर, मागु., गद्य, वि. १८८२, आदि: जय भगवान त्रिलोक्य; अंतिः लीला पामे अपार. ३६५१.” उत्तराध्ययनसूत्र सह सूत्रार्थदीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. ३२०-१७(३ से ९,१६ से २५)=३०३, जैदेना.,
ले. पं. गङ्गविनय, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन. प्र.पु. टीका-ग्रं. ११३००., द्विपाठ, पू.वि. कहीं कहीं ही मूलपाठ है. अधिकतर मूलपाठ के लिये जगह खाली है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अधिक, (२५.५४१०.५, २४३८-४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, (अपूर्ण), आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिःउत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, (पूर्ण), आदिः अर्हन्तो ज्ञानभाजः; अंतिः
(१)सुदीपिकेयम् (२)महतामपीत्युक्तेः. ३६५३. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. १११, जैदेना., ले.स्थल. जाबूवा, ले. मु. धनरूप (गुरु पण्डित नथमल),
प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. अध्याय-४ उल्लास. खंड-१ पीथापुर, खंड-२ नीबडी, खंड-३ भगोर, खंड-४ जाबूवा मे लिखा गया है., (२६.५४१२, १५४४०).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ३६५४." अध्यात्मकल्पद्रुम सह अध्यात्मकल्पलता वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६७८, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., ले.स्थल. गंधारबंदर, ले.
उपा. रत्नचन्द्र (गुरु उपा. शान्तिचन्द्र, तपागच्छ), पठ. गणि मतिचन्द्र,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.२७८, १६अधिकार; टीका-ग्रं. २४५९., संशोधित, कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-टबार्थादि, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५) सुर्याचन्द्रमसौ यावतु, (२५.५४१०.५, ३४४२-५०). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीरान्तरारीणां०; अंति: जयश्रिया शिवश्रीः. अध्यात्मकल्पद्रुम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचन्द्र, सं., गद्य, वि. १६७४, आदिः (१) प्रणत सुरासुर (२)
तत्रोपन्याससूत्रमिदं; अंतिः (१)व्याख्यानमिति (२)वद्धते वर्णयामलम्. ३६५५. पञ्चसङ्ग्रह की टीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३६-१(१)=१३५, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ९०००., (२५.५४११,
१५४४७).
पंचसङ्ग्रह-स्वोपज्ञ टीका, ऋ. चन्द्र महत्तर, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः (१)श्चाविकलं भवत्विति. ३६५६. स्थम्भनपार्श्वजिन स्तवन का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. किलकता, (२४.५४११.५,
१०x२८).
पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: जयतिहुअण वरकप्परुखजन; अंतिः श्लाघित स्तव्या छइ. ३६५८. कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६०, जैदेना., ले. ऋ. चतुरचन्द (गुरु ऋ.
धर्मचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (७४) जब लग मेरु अडिग है, (२५४११.५, ७-२०४४२-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका , उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंतिः समाप्तं
समर्थितं इति.
कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः चतुषष्टीन्द्रकृतां; अंतिः करणा यत्ने करीनइ. ३६५९. गोराबादल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. गा.९१७, (२६४११, १५४३८-४०).
गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मागु., पद्य, वि. १६४७, आदिः सकल सुख दायक सदा; अंतिः कुम्भलमेर मझार.
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615