Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 24
________________ देवभद्दसरिविरइओ ॥ ॐ नमो जिनागमाय ॥ सम्मत्तपडलयं । सम्यक्त्वाधिकारे नर| वमेनृपकथानकम् ॥ कद्दारयणकोसो॥ सम्मत्तपडलयं । ॥१ ॥ मङ्गलम् पडिबिंबियपणयजणा निलीणभवभीरुभवलोय छ । उम्मुहमऊहनिवहा सिवभवणारोहसेणि च ॥१॥ भीमभवोयहिलंघणसजा सजाणवत्तपंति व । चरणनहमालिया सहइ जस्स सो जयह पढमजिणो ॥२ ॥ सुमणोऽभिरामरूवो चारुपओ सुरहिवयणसयवत्तो । जयइ सिवनयरिपत्थियमंगलकलसो व वीरजिणो ॥३॥ स जयइ पुणो वि दुजयकसायसरहोलिविहलिउच्छाहो । लंछणछलेण भीउब केसरी जं समल्लीणो ॥४ ॥ भवचारयबंधं बंधुणो व अॅवर्णितु वोऽवसेसी वि । जिणवाणो मोहमहंधयारहरणम्मि रविणो छ । ॥ ५॥ पासस्स फणामणिणो उम्मुहपसरंतकंतिणो दूरं । विहियावडियदीवूसव ब तिमिरं हरंतु मम । जयइ विलंसंतनिम्मलमऊहमंडलपसाहियसरीरो । पग्गहियपारिवेस व ससिकला भयवई वाणी १ प्रतिविम्बितप्रणतजना निलीनभवभीरुभब्यलोकेव । उन्मुखमयूखनिवहा शिवभवनारोहश्रेणिरिव ॥१॥ भीमभयोदधिलहनसजा सद्यानपात्रपतिरिख । चरणनखमालिका राजते यस्य स जयति प्रथमजिनः ।। २।। २ अस्यामार्यायां श्लिष्टविशेषणः वीरो भगवान् मङ्गलकलशेनोपनीयते, तथाहि-सुमनसाविदुषां सुराणा चाभिरामं रूपं यस्य एवंविधो भगवान् , कलशपक्षे सुष्ठु मनोऽभिरामं रूपं यस्य । 'चारुपदः' शोभनचरणो भगवान् , अन्यत्र चारु पयो-दुग्धं जलं वा यत्र सचारुपयाः। सुरभि-सुगन्धयुकं वदनमेव शतपत्रं यस्यैतादृशो भगवान् , अन्यत्र सुरभि वदने-कलशमुखे शतपत्रं यस्य ॥ ३ दुजेयकषायशरभावलिविफलितोत्साहः । शरभावलिः-अापदपंक्तिः ॥ ४ अपनयन्तु ।। ५ 'सेवा वि इति प्रसौ पाठः ॥ ६ विहिताबस्थितदीपोत्सया इव ॥ ७ विलसन्निर्मलमयूख SACROSAXACCASICASARASWATARNA ग्रन्थनाम अभिधेयं च SAMSTEROSCOACHCECACADCASEARCH संसिरीया सच्चाहिडिया य सच्चकनंदया सुगया । गुरुणो हरिणो व कुणंतु वंछियं निच्छिय मज्झ ॥८॥ इत्थं थोयत्वत्थुइसामत्थेणं जडो वि जंपेमि । सम्मत्ताइपयत्थप्पडिबद्ध कहारयणकोसं ॥९ ॥ एत्थ य जिणिंदैसमयम्मि सम्मया मुत्तिपहपवित्तीए । सुमुणी सुसावगो वि य जेहुत्तकिरियाकलावन्नू ॥ १० ॥ सुमुणित्तणं च पायं सुसावगत्तं विणा न संभवह । फोसियदेसचरित्तो हि सबविरई पि काउमलं ॥११॥ सामन्न-विसेसगुणभिओ य सुरसावगत्तणं लहइ । सो पुण सामन्त्रगुणी नेओ सम्माइदारेहिं ॥ १२ ॥ सम्मत्तजुओ१ तद्दोससंक २कंखा ३ विगिंछय ४ म्मुको । अविमूढदिहि ५ उववूहगो ६ थिरीकरणनिरओ७य।। वच्छल्ल ८ पभावण ९ पंचनमोकारपरमभत्तो १०य । चेइय ११ बिचपइट्ठा १२ पूया १३ कारावणुज्जुत्तो ॥१४॥ जिणदवरक्खगो १४ समयसुइपरो १५ नाण १६ अभयदाई १७ य । साहूवटुंभकरो१८ तह कुग्गहनिग्गहपहाणो १९ ॥ मज्झत्थो य २० समत्थो २१ अत्थी २२ आलोयगो २३ उवायण्णू २४ । उवसंतो २५ दक्खो २६ दक्षिणो य २७ धीरो य २८ गंभीरो २९ ॥ १६ ॥ मण्डलप्रसाधितशरीरा प्रगृहीतपरिवेषा इव । प्रसाधित-अलंकृत । परिवेषः-चन्द्रपरितोवर्ति वर्षांगमनसूचकं जलकुण्डकम् ॥ १ अत्र लिष्टविशेषणगुरबो हरिभिः-बासुदेवैः सहोपमीयन्ते । तथाहि-'सश्रीका: ज्ञानादिलक्ष्मीविभूषिताः गुरवः, अन्यत्र लक्ष्म्यभिधानपत्नीयुक्ताः । सत्यैन अधिष्ठिता गुरवः, अन्यत्र सत्ययासत्यभामापत्न्या युक्ताः । सचक्र-सता समूहः तदाडादकाः गुरवः, अन्यत्र सत् च तत् चक्र च-चकारख्यमायुध तन्नन्दकाः, पूर्वोको वा अर्थः । सु-शोभनं गतं-गमनं ज्ञानं देवादिका वा गतिथेषां से एवंविधा गुरवः, अन्यन्त्र गदारूयमायुधं येषां ते इति ।। २ "त्थुई प्रती ॥३लप्तविभत्यन्तं पदामिदम् ॥४जिनागमै ।। ५ यथोकियाकलापज्ञः ॥ ६ स्पृष्टदेशचारित्रः ॥ ७ सुसाच प्रतौ ॥ सामान्यगुणाः विशेषगुणाव SHARE

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