Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 13
________________ प्रस्तावना। कथारत्नकोशनी ॥१२॥ प्रथमा विजयिणि म, द्वितीया भोलिकाभिधा । शम्भूदेवो विनीतोऽस्ति, भोलीपुत्रः....... .................. ।। १२ ।। परनी का रामदेवस्य दक्षा प्रत्यक्षेयं दृश्यते शुद्धपक्षा । भर्तुर्भक्ता शुद्धशीला विनीता, जाता चेयं रामचन्द्रस्य सीता ॥१३॥ मालवमंडलमध्ये.................................भूपाल... | ...............णोपार्जितसंतत पाण्डित्यं रामदेवो यम् ॥ १४॥ जिनेन्द्रदेवालय पौषधे च, वापीसम्पनिपानकानि। नवीन-जीर्णोद्धरणेषु नित्यं सदोद्यतः पण्डितरामदेवः ॥ १५ ॥ षड्दर्शने पूजनबद्धकक्षः, दाने च दीनोद्धरणे च दक्षः । सन्न्यायमार्गे कृतशुद्धपक्षः.............................. ॥ १६ ॥ ...........................थी.........कुलगोत्र...... । प्रसादमासाद्य बद्रुरीत्या आचन्द्रसूर्य शतशाखमेतु ॥ १७ ॥ त......सुरयो मान्याः , श्रीश्रीपरमेश्वराः । तत्पादाम्बुजरवयः, श्रीजगश्चन्द्रसूरयः (१) ॥ १८॥ धादि....................................... | श्रीरवितिलका ........................... ॥ १९ ॥ श्रीसोमतिलकसूरि रिगुणश्चरितचारचारित्रः । तच्छिष्यः सोमयशास्तस्मादुपदेशमासाद्य ॥ २० ॥ विद्यादानं दानतो मुख्यमेतज्ज्ञात्वा सम्यक् श्रीकथारत्नकोशः । पित्रो..........पुण्यहेतोनं शास्त्रं.................. ॥२१॥ .................. ॥ २२ ॥ हिमकारगज.........दंतैश्च शैलेन्द्रस्य महे ..... गिरिगणेशज्योत्स्ना ......या । यावद्भांग जलौकसो...... ॥ २३ ॥ ॥ छ ।............... .............................................................................. ॥ छ । प्रस्तुत प्रतिनां पानां वचमां कोई कोई ठेकाणे घसाई गएला छे ए बाद करीए तो आ प्रति साद्यंत परिपूर्ण छ. प्रति खंभातना ज्ञानभंडारनी होई तेनी संज्ञा अमे खं० राखी छे. परंतु ज्यां प्र० प्रति खंडित होई फक्त आ एक ज प्रतिना आधारे संशोधन कर्यु AAWAHARANASRASRAEK ॥ १२॥ XKAKARAN6%AKASARKARKxNCARRIAGESAKARE विधिप्रपा पू०१०९ उपर प्रतिष्ठा प्रसंगने लगती केटलीक मुद्राओना वर्णन अंगेनी पांच गाथाओ आपेली छे ते अने त्यार पछी पृ० १११ उपर प्रतिष्ठा संबंधे जे ३९ गाथाओ छे ते बधी अक्षरशः प्रस्तुत कथारत्नकोशमां पृ० ८६ गाथा १७ थी ५५ सुधीमां उपलब्ध छे. तथा पृ० ११४ उपर वजारोपणविधि'ना नाम नीचे जे ४० थी ५० गाथाओ नोंघेली छे ते पण कथारत्नकोशमां आवता विजयकथानकमां पृ०७१ उपर आपेली ११४ थी १२४ गाथाओ छे. विधिप्रपाकारे त्यां कथारत्नकोशना नामनो उल्लेख पण कर्यों छे. आ प्रमाणे अहीं कथारत्नकोशर्नु अनुकरण अने अवतरण करनार सुविहित पुरुषोना बे प्रण ग्रंथोनी तुलना करी छ, परंतु बीजा आचार्योनी कृतिमा पण कथारत्नकोशनां अनुकरणो अने अवतरणो जरूर हशे; परंतु अहीं तो आटलेथी ज विरमुं छ. आ अनुकरणो अने अवतरणोए पण प्रस्तुत कथारत्नकोश ग्रंथना संशोधनमां वधारानी सहाय करी छे एटले ए दृष्टिए पण ते ते अनुकरण करनारा अने अवतरण करनारा आचार्यों विशेष स्मरणाई छे. ७ कथारत्नकोशना संशोधन माटेनी प्रतिओ आजे कथारत्नकोशनी एकंदर त्रण प्रतिओ विद्यमान छ एम जाणी शकायुं छे. जे पैकीनी एक प्रति खंभातना ताडपत्रीय भंडारमा छ, एक प्रवर्तकजी महाराज श्रीकांतिविजयजी महाराजना वडोदराना विशाळ ज्ञानभंडारमा छ अने एक चूरु (मारवाड)ना तेरापंथीय ज्ञानभंडारमा छे. आ रीते आजे जोवा-जाणवामां आवेली त्रण प्रतो पैकी मात्र खंभातना भंडारनी प्रति ज साद्यंत परिपूर्ण छे. ते सिवाय पूज्य प्रवर्तकजी महाराजश्रीना भंडारनी प्रति एककाळे साद्यंत परिपूर्ण होवा छतां अत्यारे एमांथी आदि RANASISRUSAGES

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