Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 12
________________ प्रस्तावना। कबारत्नबोशनी WORKHERAPHARNAKASHIKAACAREERA मध्य-अंतमांनां घणां पानां गूम थएलां होई खंडित प्रति छे ज्यारे चूरुना भंडारनी प्रति कागळ उपर लखाएली ग्रंथना उत्तरखंडरूप छे. आत्रण प्रतो पैकी जे वे अति प्राचीन ताडपत्रीय प्रतिओनो में मारा प्रस्तुत संशोधनमा उपयोग कर्यो छे तेनो परिचय आ ठेकाणे कराववामां आवे छे ख० प्रति-आ प्रति खंभातना "श्रीशान्तिनाथ जैन ज्ञानभंडार"ने नामे ओळखाता प्राचीनतम अने गौरवशाली ताडपत्रीय जैन ज्ञानभंडारनी छे. प्रति अतिसुकोमळ सुंदरतम श्रीताडपत्र उपर सुंदर लिपिथी लखाएली छे. एनी पत्रसंख्या ३१७ छे. तेनी दरेक पुठीमा त्रण, चार के पांच लीटीओ लखेली छे. दरेक लीटीमा १२७ थी १४० लगभग अक्षरो छे. ए अक्षरो ठेक-ठेकाणे नाना-मोटा लखावा छतां लिपिर्नु सौंदर्य आदिथी अंत सुधी एकसरखं जळवाएलु छे. प्रतिनी लंबाई पहोळाई ३१४२॥ इंचनी छे. प्रति लांबी होई तेनां पानां सुव्यवस्थित रीते रही शके ए कारणसर दोरो परोववा माटे तेना वचमां बे काणां पाडी त्रण विभागमा लखाएली छे. प्रति विक्रम संवत् १२८६ मा लखाएली होवा छतां तेनी स्थिति हजु जेवी ने तेवी निराबाध छे. प्रति घणी ज अशुद्ध छे, एटलुज नहि पण एमां घणे ठेकाणे पंक्तिओनी पंक्तिओ जेटला पाठो पडी गया छे, तेमज लेखकनी लिपिविषयक अज्ञानताने लीधे स्थान-स्थान पर अक्षरोनी फेरबदली तथा अस्तव्यस्तता पण बहुज थएलां छे, प्रतिना अंतमां तेना लखावनार पुण्यवान् आचार्य अने श्रावकनी एकवीस श्लोक जेटली लांबी प्रशस्ति लखेली होवा छतां कोई भाग्यवाने ए प्रशस्तिने सदंतर भूसी नाखवानुं पुण्यकार्य उपार्जन कर्यु छ !!! ते छतां ए घसी-भूसी नाखेली प्रशस्तिने अति प्रयत्नने अंते अमे जे रीते अने जेटली वांची शक्या छीए तेटलो उतारो आ नीचे आपीए छीए ॥ ११ ॥ TRAIATERIKAARAKAKARRAHAKAKARANWARRENORRRRRC इति प्रवज्यार्थचिन्तायां श्रीप्रभप्रभाचन्द्रचरितमुक्तम् । तदुक्की च सम्यक्त्वादिपञ्चाशदर्थाधिकारसम्बद्धः कथारत्नकोशोऽपि समाप्तः ॥ छ ॥ छ । छ । मङ्गलं महाश्रीः ॥ शुभं भवतु ॥ शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥ १॥ छ । ६०३ ॥ छ ॥ संबत् १२८६ वर्षे धावण शुदि ३ बुधेऽद्येह प्रहादनपुरे कथारत्नकोशपुस्तकंमलेखीति भद्रंमिति ॥ छ । ।। छ॥ छ । ॥ श्रीमद्वीरशः पान्तु सुधावृष्टेः सहोदराः । स्वर्भूर्भूगर्भशस्यानां फलसम्पत्तिहतुकम् ॥ १ ॥ श्रीमत्प्राग्वाटवंशो जगति विजयते............. .........जगुरुगणनाप्रौढमेधाभिरामः । उको शास्त्रासहस्रः परिकलितवपुः पात्रपूरान्वितोऽसौ, चित्रं छिदं न यस्मिन्नघजडकलितो नैव युक्तो न हीनः ॥ २ ॥ तस्मिन् माभूति...ययनोदया...नमलक्षणाभिदुरि ......... ...............सा.........स ॥ ३ ॥ ...............क्तो, मोढेरके वीरजिनस्य भक्तः। अगण्यपुण्योपचितोऽत्र शस्यो, देदास्यसाधुः स्वजनैकमान्यः ॥ ४ ॥ तस्यात्मजो देलहणनामधेय, औदार्यधैर्यादिगुणैरमेयः । कलत्रमेतस्य बभूव धन्या, दानक......रिरेव...... ॥ ५ ॥ .........प्रभूता ....................... ............ । ............तदानशीलोछीते मिमीतेत्फलयेतनूजे ॥६॥ आद्याऽऽदिमस्याजनि देण्दुकाण्या, कान्ताऽभवडाइणिका द्वितीया। पुत्रोऽपरस्याः किल राजदेवो, ज्येष्ठः कनिष्ठोऽजनि कामदेवः ॥७ राजदेवस्य तो........... ना...कामा विदिता प्रशाम्ता, पतिवता थेहडसाधुकान्ता । विख्यातबंशा पतिभक्तिरक्का, दोपैर्विमुक्ता कुलधर्मयुक्ता ॥ ९ ॥ ...शुभ सुम......समा... ... । तस्य प्रणाम......तकामरामदेव इति निर्मितन ॥ १० ॥ ......त्रुवर्तिकाः ॥ ११ ॥ ....................... . ............ CR

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