Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ कथारत्नकोशनी ॥ १० ॥ सिड्रं जणणीए अक्षया य तु पुत्त ! संतिओ ताओ । साहितो मह कहमयि परितोसगओ गिहादुरे ।। ५२ ॥ अट्ठावयस्त कोडीउ अट्ट चिट्ठेति भूमिनिद्दियाओ । ता वच्छ ! किं न ठाणाई ताई इहि खसि ? ति ॥५३॥ सदनान्तः किञ्चिद्धि द्रव्यमपश्यन्नसौ बहुलेशैः । भोयणमवि अजतो कथा वि जणणी इममुत्तो ||८|| वत्सेह स्थानेऽष्टौ कोट्यः कनकस्य सन्ति निक्षिप्ताः । इत्यादि ॥ तुइ पिउण ता गिण्हसु कयं किलेसेहिं सेसेहिं ॥२९॥ इत्यादि । प्रस्तुत विजय नामना श्रेष्ठिपुत्रनी कथा कथारत्नकोशकारे चैत्याधिकारमां आपेली छे त्यारे ए ज कथा संघाचारविधिना प्रणेताए स्तोत्रना अधिकारमां वर्णवेली छे. कथारत्नकोशमां ए कथा आखी प्राकृतमां छे त्यारे संघाचारविधिकारे ए कथाने वे भाषामा एटले के एक ज गाथामां पूर्वार्ध संस्कृत अने उत्तरार्ध प्राकृत एम वे भाषामां योजेली छे. संघाचारविधिटीकामांनी कथामां जे उत्तरार्ध प्राकृत छे ते आखी कथामां मोटे भागे कथारत्नकोशनां अक्षरे अक्षर उद्धरेल छे अने पूर्वार्ध पण कथारत्नकोशमांनी कथानां लगभग अनुवाद जेवां छे, जे उपर आपेली सामसामी गाथाओने सरखाववाथी स्पष्ट थई जाय एम छे. आचार्य महाराज श्रीविजयनीतिसूरि तरफथी प्रसिद्ध थपल गुरुतत्वसिद्धिमां पृ० ४७ उपर संवेगरंगशालाना नामे उद्धरेल “इत्थंतरम्मि सड्ढो आसधरो नाम भणइ दुनियड्डो" ए गाथाथी शरू थतुं ५९ गाथानुं जे प्रकरण हे ते आसुंय कथारत्नकोशना पृ. १० थी १२ मां गाथा १८५ थी २४३ सुधीमां छे. गुरुतत्त्वसिद्धिमां आ प्रकरण संवेगरंगशालाना उतारा तरीके जणावेल छे पण खरी रीते आ प्रकरण कथारत्नकोशमांनुं ज छे. आ उपरथी गुरुतत्वसिद्धिना रचनासमय उपर पण प्रकाश पडे छे अने कथारत्नकोशनी आदेयता पण पुरवार थाय छे. भंडारमांनी प्राचीनतम खंडित ताडपत्रीय प्रकरणपोथीमांथी मळी आव्यां छे, जेने आधारे तैयार करी प्रसिद्ध करवामां आवेल छे. ए स्तोत्रो जेवा मळ्या छे तेवा ज शक्य संशोधन साथै प्रसिद्ध कर्या छे, एटले एना संबंधमां खास कशुं ज कद्देवानुं नथी; परंतु "प्रमाणप्रकाश” नामनुं जे प्रकरण प्रसिद्ध कयुं छे ए प्रकरणना नामने अथवा एना प्रणेताने सूचवतो कशोय उल्लेख ए पोथीमांथी मी शक्यो नथी. ते छतां ए अपूर्ण अने निर्नामक प्रकरणनुं नाम में 'प्रमाणप्रकाश' आप्युं छे ते ए प्रकरणना श्रीजा लोकमां आवता " प्रमाणमेव यत् सद्भिस्तदेवातः प्रकाश्यते" ए आर्थिक अनुसंधानने लक्षमां राखीने ज आपवामां आव्युं छे. ए ज ते ग्रंथप्रणेता तरीके आचार्य देवभद्रना नामनो उल्लेख करवामां आव्यो छे पनुं कारण ए छे के आ प्रकरण, उपरोक्त ताडपत्रीय पोथीमां देवभद्रसूरिकृत स्तोत्रसंग्रह साथै संलग्न होई तेमज आचार्य देवभद्रनी स्तोत्ररचनामां तेमज बीजी दरेक कृतिमां तेमनी दार्शनिकतानो प्रभाव देखातो होई आ कृति तेमनी होवी जोईए एम मानीने में पोते प्रस्तुत प्रकरणने एमनी कृति तरीके निर्देशी छे. एटले संभव छे अने कदाच शक्य पण छे के— प्रस्तुत प्रकरणनुं नाम " प्रमाणप्रकाश" न होय अने एना प्रणेता आचार्य देवभद्र पण न होय. आम छतां ए प्रकरणमांनो आठमो लोक जोया पछी 'प्रस्तुत प्रकरण श्वेतांबराचार्यविरचित छे' ए विषे तो जरा पण शंका रहेती नथी. वादन्यायस्ततः सर्वविश्वे च भुक्तिसम्भवः । पुंस्त्रियोश्च समा मुक्तिरिति शास्त्रार्थसंग्रहः ॥ ८ ॥ आ लोकमां जणाव्या प्रमाणे "प्रस्तुत प्रकरणमां- केवलज्ञानीने आहारनो संभव छे अने पुरुष अने खीने एकसरखी रीते मोक्ष प्राप्त थई शके छे. आ वे विषयो चर्चवामां आवशे.” आथी प्रस्तुत प्रकरण श्वेतांबराचार्यप्रणीत ज छे, ए निर्विवाद रीते पुरवार थाय छे. प्रस्तावना । 11 20 11

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 393