Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 15
________________ प्रस्तावना। कथारत्न अंतमा प्रस्तुत प्रथना संशोधनमा अने तेनी विषमपदार्थद्योतक टिप्पणी करवामां अति सावधानता राखवा छतां मतिभ्रमथी कोशनी ADI थपली स्खलनाओ जणाय तेने सुधारीने बांचवा विद्वानोने अभ्यर्थना छे. इति शम् । ॥१४॥ पूज्यपाद प्रवर्तकजी महाराज श्री१००८ श्रीकान्तिविजयजीप्रशिष्य पूज्य श्रीचतुरविजयजीमहाराज शिष्य मुनिपुण्यविजय. ॥ १४ ॥ छे त्यां आ प्रतिना अशुद्ध पाठोने टिप्पणमा आपतां आ प्रतिने अमे प्रती ए संकेतथी ओळखावी छे. एटले के आधी अमे एम जणाववा इच्छीए छीए के ज्यां अमे पाठभेद साथे प्रतौ एम नोंभ्यु होय त्यां एम समजवू के ए ठेकाणे प्र० प्रति खंडित होई ते ते विभागने मात्र खं० प्रतिना आधारे ज सम्पादित करवामां आव्यो छे. प्र० प्रति-आ प्रति पूज्यपाद वयोवृद्ध शांतमूर्ति परमगुरुदेव प्रवर्तकजी महाराज श्री१००८ श्री कांतिविजयजीमहाराजना वडोदराना जैन ज्ञानभंडारनी छे. ए प्रति पाटण श्रीसंघना ज्ञानभंडारनां अस्तव्यस्त ताडपत्रीय पानांमाथी मेळवेली होई खरी रीते ए पाटण श्रीसंघना ज्ञानभंडारनी ज प्रति कही शकाय, आ प्रति सुंदरतम श्रीताडपत्र उपर अतिमनोहर एकधारी लिपिथी लखाएली छे. प्रतिना अंतनो भाग अधूरो होई तेना एकंदर केटला पानां हशे एकही शकाय तेम नथी. ते छता अत्यारे जे पानां विद्यमान छेते १३९ थी २९५ सुधी छे. तेमां पण वचमाथी १६७, १६८, २०१ थी २२७, २४६ अने २५९ आ प्रमाणे बां मळी एकंदर एकत्रीस पानां गूम थयां छे. एटले आ प्रतिनां विद्यमान पाना मात्र १२६ होई सामान्य रीते एम कही शकाय के आ प्रतिनां वे भागनां पानां गूम थयां छे ग्यारे मात्र त्रीजा भाग जेटला ज पानां विद्यमान छे. आम छतां आ खंडित प्रति शुद्धप्राय होई एणे प्रस्तुत ग्रंथना संशोधनमां खूब ज मदद करी छे. अनेक ठेकाणे पंक्तिओनी पंक्ति जेटला पाठो, जे खं० प्रतिमा पडी गएला हता ते पण आ खंडित प्रतिद्वारा पूरी शकाया छे. प्रस्तुत प्रतिने कोई विद्वाने वांचीने सांगोपांग सुधारवा प्रयत्न कयों छे अने कोई कोई ठेकाणे कठिन शब्द उपर टिप्पण पण करेल छे. प्रस्तुत प्रति ताडपत्रीय लखाणना जमानामां ज गमे ते कारणसर खंडित थएल होई तेमां घणे ठेकाणे पानां नवां लखावीने उमेरवामां आव्यां छे, जे खं० प्रतिने मळती कोई प्रति

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