Book Title: Jivan ka Utkarsh Author(s): Chitrabhanu Publisher: Parshwanath Vidyapith View full book textPage 2
________________ 'जीवन का उत्कर्षः जैन धर्म की बारह भावनाएँ' ग्रंथ में श्री चित्रभानु की ३५ वर्षों की ज्ञान और ध्यान की साधना का निचोड़ है। ये प्रवचन साधकों को ध्यान की साधना के समय दिये गए थे। इनमें सुस्पष्ट, गंभीर एवं प्रेरणात्मक उद्बोधन हैं। प्रत्येक अध्याय एक-एक भावना का वास्तविक चित्र उपस्थित करता है तथा परिवर्तनशील मनुष्य जीवन में जो अपरिवर्तनशील तत्त्व है, उसकी सम्यक् व्याख्या करता है। इन भावनाओं के द्वारा हम जीवन के सत्य का सही बोध प्राप्त करते हैं। इन भावनाओं के द्वारा प्रत्येक धर्म, वर्ग और संस्कृति का मानव सभी जीवों के प्रति करुणा' का संदेश ग्रहण करता है। ये बारह भावनाएं सत्य की अनुभूति के बारह सोपान हैं। ये हमारी आंतरिक अभिज्ञता को जागृत करने के साधन हैं। प्राचीन काल में इन्हें भावनाएँ या अनुप्रेक्षाएँ कहा जाता था। मूल रूप में ये जैन साधुओं को ध्यान के विषयों के रूप में दिए जाते थे, उन दीक्षार्थियों को जिन्होंने हाल ही में सांसारिक जीवन का त्याग किया था, जिससे वे परिचित थे और जिसका स्वाद अभी तक उनके होठों पर था। उन्हें इन चिंतन तत्त्वों में गहराई से उतरना था ताकि वे अपने अंतर्मन से उन स्वादों को पूरी तरह हटा सकें; आलस्य, चिंता, प्रमाद और आसक्तियों से बाहर निकल सकें तथा जीवन के असली अर्थ को ग्रहण करके अपनी वास्तविकता की गहराई तक पहुँच सकें। n Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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