Book Title: Jinvani Special issue on Jain Agam April 2002 Author(s): Dharmchand Jain Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal View full book textPage 4
________________ "जहा सूई ससुत्ता, पडिया वि न विणस्सइ । तहा जीवे ससुत्ते, संसारे न विणस्सइ ।। - उत्तराध्ययन २९.५९ जैसे सूत्रसहित सूची, गिर कर भी होती नष्ट नहीं । वैसे ससूत्र प्राणी जग में रहकर भी होते नष्ट नहीं ।। जिस प्रकार धागे सहित सुई गिर जाने पर भी खोती नहीं है उसी प्रकार शास्त्रज्ञान सहित जीव संसार में विनष्ट नहीं होता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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