Book Title: Jinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 10
________________ 800000000२९९८४८७865 जिनवाणी - जमातम साहित्य विशेषाङ्क दिये गये हैं। बारहवाँ अंग दृष्टिवाद इस समय अनुपलब्ध है। इसमें परिकर्म, सूत्र, अनुयोग, पूर्व और चूलिका के भेद से विस्तृत निरूपण हुआ था। 12 उपांग सूत्र हैं- औपपातिक, राजग्रश्नीय, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति निश्यावलिका. कल्यावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका और वृष्णिदशा। __ औयपातिक सूत्र में चम्पानगरी, पूर्णभद्र उद्यान, वनखण्ड, अशोक वृक्ष, कोणिक राजा, धारिणी रानी और भगवान महावीर का वर्णन हुआ है। राजप्रश्नीय सूत्र में सूर्याभदेव के द्वारा भगवान महावीर के प्रति नाट्यादि विधि से भक्ति-भाव प्रकट किया गया है। इसके उत्तरार्द्ध भाग में केशी श्रमण के साथ राजाप्रदेशी का रोचक संवाद है, जिसमें आत्मा को शरीर से भिन्न सिद्ध किया गया है। जीवाजीवाभिगम सूत्र में जीव और अजीव द्रव्यों का विस्तार से वर्णन हुआ है। अजीव का वर्णन संक्षेप में तथा जीव का वर्णन विस्तार से हुआ है। इस आगम की ९ प्रतिपत्तियों में जीव के विविध प्रकार से भेद किये गये हैं। प्रज्ञापना सूत्र के ३६ पदों में जीव-अजीव, आसव-संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष तत्त्वों से संबद्ध विभिन्न विषयों का प्रतिपादन हुआ है। इसमें स्थिति, उच्छ्वास, भाषा, शरीर, कषाय, इन्द्रिय, लेश्या, अवगाहना, क्रिया, कर्म-प्रकृति, आहार, उपयोग आदि विषय चर्चित हैं। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र में जम्बूद्वीप, भरतक्षेत्र, भगवान ऋषभदेव, भरत चक्रवर्ती, कालचक्र आदि का निरूपण है। सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति का विषय लगभग एक जैसा है। इनमें खगोल शास्त्र का व्यवस्थित वर्णन है। निरयावलिका आदि पाँच सूत्रों में ऐतिहासिक कथानक हैं। निरयावलिका में नरक में जाने वाले राजकुमारों का वर्णन है। कल्यावतंसिका में कल्प अर्थात् देवलोक में उत्पन्न होने वाले सम्राट श्रेणिक के दस पौत्रों का वर्णन है। पुष्पिका सूत्र में उन दस देवों का वर्णन है जो पुष्पक विमानों में बैठकर भगवान महावीर के दर्शन करने आये। पुष्पचूलिका सूत्र में भी दस देवों का वर्णन है जो पुष्यचूलिका विमान में बैठकर भगवान का दर्शन करने आये। वृष्णिदशा सूत्र में वृष्णिवंश के बलभद्र के निषध कुमारादि बारह पुत्रों का वर्णन है, जो भ. नेमिनाथ के पास दीक्षित हुए और सर्वार्थसिद्ध विमान में देवायु को भोगकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेते हुए मोक्ष प्राप्त करेंगे। __4 मूलसूत्र हैं- उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नन्दीसूत्र और अनुयोगद्वार। उत्तराध्ययन सूत्र ३६ अध्ययनों में विभक्त है। इन अध्ययनों में विनय, परीषह, मरण, अप्रमत्तता, मोक्ष-मार्ग, प्रवचन माता, कर्म-प्रकृति, लेश्या आदि विषयों की चर्चा है। आचार्य शय्यंभव रचित दशवकालिक सूत्र के १८ अध्ययनों में श्रमणाचार का अच्छा प्रतिपादन है। नन्दीसूत्र देववाचक द्वारा रचित है तथा इसमें पंचविध ज्ञानों का सुन्दर निरूपण है। अनुयोगद्वार सूत्र में निक्षेप, उपक्रम, आनुपूर्वी, प्रमाणवार, अनुगम, नय आदि के वर्णन के साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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