Book Title: Jinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ जिनवाणी - जैनागम साहित्य विशेषाङ काव्य शास्त्र आदि के संबंध में भी जानकारी विद्यमान हैं। 4 छेदसूत्र हैं- दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, व्यवहार और निशीथ । छेदसूत्रों में श्रमणाचार के उत्सर्ग एवं अपवाद नियम दिये हैं। प्रायश्चित्त का विधान भी किया गया है । दशाश्रुतस्कन्ध के दस अध्ययनों में २० असमाधि दोष, २१ शबल दोष, ३३ आशातना आदि का वर्णन हैं । कल्पसूत्र इसके आठवें अध्ययन से प्रसूत है । बृहत्कल्पसूत्र में श्रमण- श्रमणियों के लिए कल्पनीय एवं अकल्पनीय वस्त्र - पात्र आदि का विवेचन है । व्यवहार सूत्र में विहार, चातुर्मास, आवास, पद आदि व्यवहारों का निरूपण है । निशीथ सूत्र को आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध की पांचवी चूला माना जाता है। इसमें साध्वाचार में लगे दोषों के निवारण हेतु प्रायश्चित्त की विशेष व्यवस्था है । बत्तीसवें आवश्यक सूत्र में सामायिक आदि षड् आवश्यकों का वर्णन हैं । श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में जीतकल्प एंव महानिशीथ की छेदसूत्रों में गणना करके छ: छेदसूत्र माने जाते हैं। ओघनिर्युक्ति-पिण्डनिर्युक्ति को मूलसूत्रों में गिना जाता है। वे दस प्रकीर्णकों को भी आगम में सम्मिलित करते हैं। दस प्रकीर्णक हैं- १. चतु: शरण २ आतुर प्रत्याख्यान ३. भक्त-परिज्ञा ४ . संस्तारक ५. तंदुलवैचारिक ६. चन्द्रवेध्यक ७. देवेन्द्रस्तव ८. गणिविद्या ९. महाप्रत्याख्यान १०. गच्छाचार | इस प्रकार श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में ४५ सूत्र मान्य हैं (स्थानकवासी द्वारा मान्य ३२ आगम + उपर्युक्त १३ आगम)। इस परम्परा में ८४ आगम भी मान्य हैं, जिसकी सूची इस विशेषांक के प्रारंभिक लेख में दी गयी हैं । दिगम्बर परम्परा इन अर्धमागधी आगमों को मान्य नहीं करती। इनके यहाँ पुष्पदन्त एवं भूतबली द्वारा रचित षट्खण्डागम, गुणधर द्वारा रचित कषायप्राभृत, वट्टकेर कृत मूलाचार, अपराजित सूरि की भगवती आराधना, आचार्य कुन्दकुन्द की समयसार आदि कृतियों को आगम के रूप में मान्य किया गया है। २१वीं शती का यह युग जहाँ एक ओर हिंसा, आतंक, भय, वैमनस्य और आशंकाओं की वृद्धि का युग है, वहां इस युग में ज्ञान-विज्ञान का भी पर्याप्त प्रचार-प्रसार हुआ है । विज्ञान की दृष्टि से यह सूचना के प्रचार-प्रसार का विकसित युग है । इन्टरनेट जैसे साधनों के कारण ज्ञान की विभिन्न शाखाओं के संबंध में प्रत्येक व्यक्ति नवीनतम जानकारी प्राप्त करने में समर्थ हुआ है। बीसवीं शती में जैनागम और उसके व्याख्या-साहित्य का प्रकाशन अनेक स्थानों से हुआ। अधिकांश आगमों के अनुवाद और विवेचन हिन्दी और गुजराती भाषाओं में उपलब्ध हैं। कुछ आगम अंग्रेजी भाषा में भी अनदित और विवेचित हुए हैं। हर्मन जेकोबी, वाल्टर शबिंग आदि विदेशी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 544