Book Title: Jinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 9
________________ जिनवाणी - जैनागम साहित्य विशेषाह मूर्तिपूजकों के मत में ८४ आगम भी मान्य रहे हैं। स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय में ३२ आगमों की गणना इस प्रकार होती हैं- ११ अंग, १२ उपांग, ४ मूलसूत्र, ४ छेद सूत्र एंव आवश्यक सूत्र । 11 अंग आगम हैं- आचारांग, सूत्रकृताङ्ग, स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग, भगवती (व्याख्याप्रज्ञप्ति), ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृत्दशा, अनुत्तरोपपातिक, प्रश्नव्याकरण और विपाक सूत्र । आचारांग सूत्र में अहिंसा, असंगता, अप्रमत्ततारूप साधना के विभिन्न सूत्र बिखरे पड़े हैं। इसमें पुनर्जन्म एवं आत्म-स्वरूप का भी निरूपण है | इसके द्वितीय श्रुतस्कन्ध में भगवान महावीर की साधना का भी विवरण उपलब्ध है । सूत्रकृतांग में भी आचारांग की भांति दो श्रुतस्कन्ध हैं। दोनों श्रुतस्कन्धों में कुल २३ अध्ययन हैं। इसमें विभिन्न दार्शनिक मतों का उपस्थापन कर निराकरण किया गया है तथा अहिंसा, अपरिग्रह, प्रत्याख्यान आदि साधना के विभिन्न विषयों की चर्चा की गई है । अंगसूत्रों में आचाराङ्ग एवं सूत्रकृताङ्ग की प्राचीनता के संबंध में सभी विद्वान् एकमत हैं। इन दोनों आगमों की भाषा एवं विषयवस्तु दोनों प्राचीन हैं। स्थानांग एवं समवायांग सूत्र में संख्या के आधार पर विविध विषयों एवं तथ्यों का संकलन है । स्थानांग सूत्र में एक से लेकर दश संख्याओं में इतिहास, संस्कृति, दर्शन, साधना आदि के विभिन्न विषयं संगृहीत हैं । समवायांग सूत्र में एक से लेकर सौ एवं कोटि संख्या तक के तथ्यों का संकलन हैं, जिनमें तीर्थकर, चक्रवर्ती आदि की सूचनाओं के अतिरिक्त जीवादि भेदों का वर्णन है । व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र का अपर नाम भगवती सूत्र हैं । भगवती सूत्र में प्रश्नोत्तर शैली में स्वसमय, परसमय जीव, अजीव, लोक, अलोक आदि के संबंध में विस्तृत एवं सूक्ष्म चर्चा उपलब्ध होती है । विभज्यवाद की शैली में भ. महावीर ने गौतम गणधर, रोह अणगार, जयन्ती श्राविका आदि के प्रश्नों का सुन्दर समाधान किया है। इसमें गोशालक, शिवराजर्षि, स्कन्द परिव्राजक, तामली तापस आदि का भी वर्णन मिलता है । ज्ञाताधर्मकथा में ऐतिहासिक एवं काल्पनिक दृष्टान्तों से आचार की दृढ़ता का उपदेश दिया गया है। इसका सांस्कृतिक दृष्टि से भी बड़ा महत्त्व है । उपासकदशांग सूत्र में आनन्द आदि दस श्रमणोपासकों की साधना का वर्णन हैं, जो श्रावक समाज के लिए प्रेरणादायी है । अन्तकृत्दशा सूत्र उन ९० साधकों के जीवन का वर्णन करता है जो उसी भव में मोक्ष को प्राप्त हुए । इसमें गजसुकुमाल, अर्जुनमाली और अतिमुक्त कुमार का जीवन चरित्र विशेष रूप से उल्लेखनीय है । अनुत्तरौपपातिक दशा सूत्र में उन साधकों का वर्णन है जिन्होंने अपनी साधना के बल पर अनुत्तर विमान में जन्म ग्रहण किया हैं । प्रश्नव्याकरण सूत्र का प्राचीन रूप लुप्त हो गया है। वर्तमान में जो प्रश्नव्याकरण उपलब्ध हैं, उसमें हिंसा आदि ५ आसव और अहिंसा आदि ५ संवर का वर्णन उपलब्ध है। विपाक सूत्र में शुभ - अशुभ कर्म करने के फल को सतन और हलकी पारित में घटित करते हुए कई कथानक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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