Book Title: Jinmahendrasuriji ko Preshit Prakrit Bhasha ka Vignapti Patra Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ September-2005 11 पाठक, साधुगणों से परिवृत हैं, से प्रार्थना की गई है कि पाली नगर का श्रीसंघ भक्तिपूर्वक वन्दन करता हुआ निवेदन करता है और लिखता है कि आपके प्रसाद से यहाँ का श्रावक समुदाय सुखपूर्वक है और आप श्री साधु-शिष्यों के परिवार सहित सकुशल होंगे। "पयुर्षण के धार्मिक कार्य-कलापों सम्बन्धित आप द्वारा प्रेषित कृपापत्र प्राप्त हुआ और इस पत्र के साथ आपश्री ने श्रावकों के नाम पृथक पत्र भेजे थे, वे उन्हें पहुंचा दिये गये है। आपके पत्र से हमें बहुत आनंद हुआ और शुभ भावों की वृद्धि हुई ।" "यहाँ भी पयुषण पर्व के उपलक्ष्य में तप, नियम, उपवास और प्रतिक्रमण भी अधिक हुए । कल्पसूत्र की नव वाचना हुई । व्याख्यान सुनकर अनेक श्रावकों ने कन्द-मूल, रात्रि-भोजन आदि अकरणीय कार्यों का त्याग किया । बहुत लोगों ने छठ, अट्ठम, दशम, द्वादश आदि अनेक प्रकार की तपस्या की । चम्पा नाम की श्राविका ने मासखमण किया । ७१ श्रावकों ने सम्वत्सरी प्रतिक्रमण भी किया 1 प्रतिक्रमणों के उपरान्त चार श्रावकों ने - गोलेछा भैरोंदास, छोटमल उम्मेदमल कटारिया, गुमानचन्द बलाही, शोभाचन्द सुकलचन्द चौपड़ा ने श्रीफल की प्रभावना की । पंचमी को स्वधर्मीवात्सल्य हुआ जिसमें ३०० श्रावकों ने लाभ लिया ।" "आषाढ़ सुदि २ बुधवार से जयशेखरमुनि के मुख से आचाराङ्ग सूत्र का व्याख्यान और भावना में महीपाल चरित्र श्रवण कर रहे है । बहुत लोग व्याख्यान श्रवण करने के लिए आते है । अभी आचाराङ्ग सूत्र का लोकविजय नामक द्वितीय अध्ययन के दूसरे उद्देशकों का व्याख्यान चल रहा है । सम्वत्सरिक दिवसों में हमारे द्वारा जो कुछ अविनय-अपराध, भूल हुई हो, उसे आप क्षमा करें, हमें तो आपका ही आधार है । हमारे ऊपर आपका जो धर्म-स्नेह है, उसमें कमी न आने दें । जैसलमेर निवासी भव्य लोग धन्य हैं, जो आप जैसे श्रीपूज्यों के नित्य दर्शन करते है और श्रीमुख से नि:सृत अमृत वाणी सुनते हैं । आपके साथ विराजमान वाचक सागरचन्द्र गणि आदि को वन्दना कहें ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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