Book Title: Jinmahendrasuriji ko Preshit Prakrit Bhasha ka Vignapti Patra
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 11
________________ 18 अनुसन्धान ३३ लाभ विशेष हुंवो, सु आवता चोमासारो आदेश ईणांने ही लीखावसी । आगे तो सारी (थारी ? ) मरजादा । उपासरारो हक सारो उठ गयो थो सो ईणांने मेलणासुं सारी वातरी मरजादरी वधोतर हुई । पंडित है, पालिखेत्र लायक है, जीणसु पालीखेत्र में तो वरस दोय तीन अठे ईणांनै ही रखायां खेत्र सुधरसी ने घणा जीव धरम पांमसी, बडो लाभ उपजसी । । लीखतु नाबरीया भगवानदास संतोकचंद री वंदणा वर १०८ अवधारसी घणा मानसुं | ल || परताबचंद रा वंदना बचावसी १०८ । लासा. अमीचंद साकरचंद नी वंदना वार १०८ अवधारसी घणा बहुमानथी द० लखमीचंद | लखतु गोलेछा भेरोंदास रखबचंद रा वंदणा १०८ वंचीओ धरम सनेह रखावसी । लीखतु कटारीया सेरमल उमेदमलरी वंदना १०८ वार अवधारसी | लीखतु कटारीया जेठमल फतहमलरी वंदना १०८ वार वंचावसी धरम सनेह रखावसी । लीखतु संघवी भींवराज नवलमल अर संघवी समस्तकी वंदना १०८ अवधारसीजी घणा मान सद० नवलमल रा छः । लीखतु | लीखतु लालचन्द हरकचन्द हलावार की वंदना १०८ वार अवधारसी । लीखतु संतोकचन्द नथमल गुलेछा री वंदना १०८ वार अवधारसी । लीखतु भंणसाली रूपचन्द रखबदास री वंदणा १०८ वार अवधारसी । लीखतु पारसचन्द सूरचन्द सुकलचन्द री वंदना १०८ वार अवधारसी । लोखतु । लीखतु Jain Education International ********** लालचन्द मोतीचन्दरी वंदना १०८ वार अवधारसी वंदना १०८ वार अवधारसी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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