Book Title: Jinmahendrasuriji ko Preshit Prakrit Bhasha ka Vignapti Patra Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ 4 अनुसन्धान ३३ पश्चात् जिन आचार्यों को यह विज्ञप्तिपत्र भेजा जाता है, उनके चित्र, उनके अधिकाधिक सर्वश्रेष्ठ विशेषण और उनके नाम आदि अंकित कर लेखन प्रारम्भ होता है । आचार्य के गुणों की बहुत प्रशंसा करती है । उपासकों का वर्णन करता है । धर्मकृत्यों का वर्णन रहता है और अन्त में आचार्य को अपने नगर में पधारने के लिए विस्तारपूर्वक प्रार्थना/विज्ञप्ति की जाती है। अन्त में उस नगर के अग्रगण्य मुख्य श्रावकों के हस्ताक्षर होते हैं । इन पत्रों में धार्मिक-इतिहास के अतिरिक्त समाज और राजकीय ऐतिहासिक बातें भी गर्भित होती है। इन विज्ञप्तिपत्रों का प्रारम्भ प्राय: संस्कृत भाषा में और अन्तिम अंश देश्य भाषा में होता है। ये विज्ञप्तिपत्र अधिकांशतः चित्रित प्राप्त होते है और कुछ अचित्रित भी होते हैं। बहुत अल्प संख्या में ये पत्र प्राप्त होते हैं । चर्चित पत्र : प्रस्तुत पत्र प्रथम प्रकार का है । इस पत्र को पाली में स्थित पं. जयशेखर मुनि द्वारा जैसलमेर में विराजमान गच्छनायक श्रीपूज्य जिनमहेन्द्रसूरि को भेजा गया है । विक्रम सं. १८९७ में लिखित है । इस पत्र की मुख्य विशेषता यह है कि यह प्राकृत भाषा में ही लिखा गया है। अन्त में पाली नगर के मुखियों के हस्ताक्षरों सहित आचार्य के दर्शनों की अभिलाषा, पाली पधारने के लिए प्रार्थना अथवा अन्य मुनिजनों को भिजवाने के लिए अनुरोध किया गया है । इस पत्र में कोई भी चित्र नहीं है । पत्र की लम्बाई १ फुट तथा चौड़ाई १० इंच है। यह पत्र मेरे स्वकीय संग्रह में है। पत्र का सारांश प्रारम्भ में दो पद्य संस्कृत भाषा में और शार्दूलविक्रीडित छन्द में है । प्रथम पद्य में भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति की गई है और दूसरे पद्य में जैसलमेर नगर में चातुर्मास करते हुए श्री पूज्य जी के पादपद्यों में प्राकृत भाषा में यह विज्ञप्तिपत्र लिखने का संकेत किया है । . इसके पश्चात् प्राकृत भाषा में शान्तिनाथ भगवान् को नमस्कार कर जैसलमेर नगर में विराजमान गणनायक के विशेषणों के साथ गुण-गौरव । यशकीर्ति का वर्णन करते आचार्य जंगमयुगप्रधान श्रीजिनमहेन्द्रसूरि जो कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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