Book Title: Jinendra Siddhant Manishi
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 3
________________ त फोट २. जीवनी 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष' तथा 'समरणसुत्त' जैसी अमर कृतियों के रचयिता श्रद्धय श्री जिनेन्द्रजी वर्णी से आज कौन परिचित नहीं है । अत्यन्त क्षीण काय में स्थित उनकी अभीक्ष्ण- ज्ञानोपयोगी तथा दृढ़ संकल्पी आत्मा स्व-पर-हितार्थ अध्यात्म मार्ग पर बराबर आगे बढ़ती रही है और बढ़ती रहेगी, जबतक कि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेती । आपका जन्म ज्येष्ठ कृ० २ सं० १९७८ में पानीपत (पंजाब) में हुआ | आप जैन, वैदिक, बौद्ध तथा अन्य जैनेतर वाङ् मय के सुप्रसिद्ध विद्वान् पानीपत निवासी स्वर्गीय श्री जयभगवान जी जैन एडवोकेट के ज्येष्ठ सुपुत्र हैं। पैतृकधन के रूप में यही सम्पत्ति आपको अपने पिता से प्राप्त हुई । अध्यात्म-क्षेत्र में आपका प्रवेश बिना किसी बाह्य प्र ेरणा के स्वभाविक रूप से हो गया । 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात', बाल्य काल में ही शान्ति प्राप्ति की एक टीस हृदय में लिये कुछ विरक्त से रहा करते थे, फलतः वैवाहिक बन्धनों से मुक्त रहे । इलैकट्रिक तथा रेडियो-विज्ञान का प्रशिक्षण प्राप्त कर लेने पर श्रापने व्यापारिक क्षेत्र में प्रवेश किया और पानीपत में हो इण्डियन ट्रेडर्ज नामक एक छोटी सी फर्म की स्थापना की, जो आपकी प्रतिभा के फलस्वरूप दो तीन वर्षों में ही वृद्धि को प्राप्त होकर कलकत्ता एम० ई० एस० की एक बड़ी टेकेदारी संस्था के रूप में परिवर्तित हो गई। इतना होनेपर भी आपके चित्त में धन तथा व्यापार के प्रति कोई आकर्षण उतपन्न नहीं हुआ। आप सब कुछ करते थे, परन्तु बिल्कुल निष्काम भाव से केवल अपने छोटे भाईयों के लिये । 'मेरे छोटे भाई जल्दी से जल्दी अपने पाँव पर खड़े हो जायें,' बस एक यह भावना थी और उसे अपना कर्त्तव्य समझ कर आप सब कुछ कर रहे थे। फर्म में हिस्सा देने के लिये भाईयों ने बहुत आग्रह किया, परन्तु इतना मात्र उत्तर देकर श्राप

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