Book Title: Jinendra Siddhant Manishi
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 17
________________ ( १९ ) (५) पूज्य श्रीगुरुजीने अपनी सरल व मधुर लेखन-शैलीसे इस (कर्म सिद्धान्त नामक पुस्तक) को सुबोध बना दिया है। मन चाहता है कि उस लेखनी को ही चूम लू। जिन श्रीजी की चरण-कृपासे मुझे अल्प-वय में ही इस अमृत की प्राप्ति हुई, जिसे पीकर मैं अमर हो जाऊँगी, उन प्रातः स्मरणीय गुरुजी का हस्त मेरे सरपर सदा बना रहे। लगाकर कुमारी मनोरमा जैन, रोहतक (६) जिनेन्द्र वर्णीजी का उल्लेख किये बिना रहा नहीं जाता । बाबाकी प्ररणा उन्हें स्पर्श कर गई और वे पल-पल इस ( 'समणसुत्त' की रचना ) कार्यमें जुट गये । कृश और अस्वस्थ काया में भी सजग एवं सशक्त प्रात्मा के प्रकाश में आपने यह दायित्व हँसते-हँसते निभाया । वे नहीं चाहते कि उनका नाम कहीं टंकित किया जाय, लेकिन जिसकी सुगन्धि भीतर से फूट रही है, फैल रही है, उसे कौन रोक सकता है । APP प्रतीक की EिFlorisीPि मा कृष्णराज मेहता ..सकी गली -नापार PिE संचालक सर्व सेवा संघ It is a B 545 SER FPR 13 FIN FTR शिकार किमि SISTERIE की कि किसी को Pि Tama मानी जा 5718 1715 PIR I ŠUSTER FE S T TOPPIE A SPEITE शीशा ISO-TE काफी कलाकी इन iP आमा | TEE हिली

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