Book Title: Jinendra Siddhant Manishi
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 22
________________ ( २४ ) स्वयं इस अभिनन्दन को मुनि श्री विद्यानन्दजी के सान्निध्य ने एवं विद्वज्जनों की उपस्थिति ने अभिनन्दित किया है, यह हमारा सौभाग्य है । महामनस्वी वर्णीजी ! हम कृतज्ञ भाव से आपका अभिनन्दन करतेहुए कामना करते हैं कि आपका दीर्घ जीवन ज्ञान-गरिमा से सदा पल्लवित पुष्पित रहे और हम उसके अक्षय फलों का अवदान प्राप्त करते रहें। समाज का आदर और उसकी आस्था आपकेप्रति उसी प्रकार उत्कर्ष पर रहे जिस प्रकार आपके गुरुवर्य पर थी । हमारा प्ररणाम निवेदित है । दिल्ली १ दिसम्बर १६७४ ग * कृतज्ञ रमा शान्तिप्रसाद जैन भारतीय ज्ञानपीठ While diff

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