Book Title: Jinendra Siddhant Manishi
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 19
________________ । २१ ) कोश' तो आपकी विद्वत्ता का कीर्तिमान स्तम्भ ही है। जो कार्य अनेक विद्वान लगकर कई वर्षों में भी सम्पन्न नहीं कर पाते, उसे आपने अकेले ही सात वर्षों के अनवरत् कठोर परिश्रम द्वारा सम्पन्न कर दिया । जब ये विशाल-काय ग्रन्थ प्रकाशित होकर विद्वद् समाज के समक्ष आयेगा तो निश्चय ही भारतीय वाङ्गमय के लिए एक विशेष उपलब्धि मानी जायेगी, तथा भारतीय संस्कृति और साहित्य विशेषकर जैन-सिद्धान्त, धर्म, दर्शन और संस्कृति का प्रत्येक अध्येता, प्रमी और प्रशंसक आपके प्रति कृतज्ञता से भर उठेगा, कि आपने ऐसी अद्भुत और बहुमूल्य निधि उन्हें प्रदान की। शिशिशिर स्मरणीय! 13 किया TEE कीटकशा कि हम काशी वासियों के मन पर जो अमिट छाप पड़ी है, उसे कोई मिटा नहीं सकता। आपका दुर्बल तन और विराट मन, कोमल हृदय और कठोर साधना, अगाध विद्वता और अतिशय सरलता हमें हमेशा आपका स्मरण दिलाते रहेगें। आप जहाँ भी रहें स्वस्थ रहें, आपकी साधना अनवरत चलती रहे तथा समाज आपके अमृतोपदेश से उपकृत होता रहे, ऐसी कामना है। कि शिका-शा ISISTEF काम हम हैं आपके गुणानुरागी वाराणसीकारकीर की दि० जेन समाज दिनांक १९ अक्टूबर १९६८ 18 किगका वा रा ण सी कड़ी Sोगीक कीwspap का काकीचर BSF किरिशाद कायतका Eि का मारकरी किया कि कनाडकी की कील का IFS किमाइ कोक का शिकाकाई कमिट कोक का किला का-का विमामा-मामी जाम firsीणा op milite p e pias

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