Book Title: Jinendra Siddhant Manishi
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 6
________________ इष्ट है कि इसका उदभ्व एक चमत्कारिक घटना है, अन्यथा कोई भी एक व्यक्ति अकेला ऐसा महान कार्य कर सके यह सम्भव प्रतीत नहीं होता। आपने स्वयं भी कभी कोश बनाने का संकल्प किया हो, ऐसा नहीं है। स्वाध्याय करते हुए सहज रूपसे नोट किया करते थे। धीरे-धीरे उनका संग्रह इतना बढ़ गया कि वह जंगल प्रतीत होने लगा। इस संग्रह को अधिक विशद तथा उपयोगी बनाने के लिये दोबारा पुनः सकल वाङ्गमयका अध्ययन किया और इसी प्रकार तृतीय बार पुनः किया । जो-जो पढ़ते गए उसे अनुभव की कसौटी पर कस कसकर समझते भी गए। फलतः ज्ञान विशद होता गया और नोटों का संग्रह अत्यन्त विशाल हो गया। लगभग एक मन कागज एकत्रित हो गए। उपयोगी बनाने के लिये 'इन्हें ठीकसे संजो दिया जाय', ऐसी बुद्धि उत्पन्न हुई और केवल ५-६ वर्ष में कोश का प्रारुप तैयार हो गया, जिसे प्रकाशनार्थ पुनः ठीकसे लिखने में दो वर्ष और लगे। जल की की गि आपका हृदय अतशान्ति व प्रेमसे-अोतप्रोत साम्यता तथा माधुर्यका आवास है, बौद्धिक जगतकी अपेक्षा हार्दिक जगतको अधिक सत्य समझते हैं और मुखसे कहने तथा कानों से सुनने को अपेक्षा अपने जीवन में उतारना तथा दुसरों की आंखोंमें पढ़ना आपको अधिक महत्वपूर्ण लगता है। अपनी तथा दूसरोंकी बातों को वैज्ञानिक कसौटीपर कसना आपका स्वभाव है, इसलिये किसी भी प्रकारकी साम्प्रदायिक रूढ़ि आपको स्पर्श नहीं कर सकी । निजकी स्वतन्त्र अनुभूतियों पर अाधारित होने के कारण आपकी साधना समाज में प्रसिद्ध अन्य साधकों की अपेक्षा कूछ विलक्षण है। बाह्याचार को आप साधना का अत्यावश्यक ग्रंग समझते हैं, और इस लिये बड़े से बड़े त्याग व तप करते हैं, परन्तु इन सब में आपकी दृष्टि अन्तर्मल शोधन अर्थात् इन्द्रिय-वासनाओंके तथा कषायोंके निग्रह पर रहती है, लोक-दिखावे पर नहीं। इसलिये जो कुछ करते हैं गुप्त रीति से करते हैं और वह सब सुयुक्ति युक्त होता है अन्धा नहीं। यदि कोई बाह्य क्रिया आपको अपने भीतर में विकल्पों की और बाहर में विविध कृत्रिमताओं

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