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आत्म शक्ति का दिग्दर्शन कराता है। राग छूटेगा तो विरागता से | कारण बन याचना वृत्ति से विराम ले राम की ओर चलती है यदि जनहित रखता है, वैसे ही राग आग का कारण है, खाने का भाव | उपवास का संकल्प है तो कोई भोजन की थाली भी दिखा दे तो संसार की वृद्धि का कारण खाना पड़ रहा है एक दिन ऐसा आये भी इच्छा नहीं मचल सकती, साध्य को प्राप्त करने वाले ऐसे ही खाना ही छूट जाये तो ऐसा भाष रखता है वह नीरस भोजन करने साधक हुआ करते । गला सूखते हुए भी पानी पीने की इच्छा नहीं वाला ही होता है। जिसका संसार बहुत कम हो सकता है, ऐसा | करते हैं कई तो ऐसे हैं जो शरीर की सेवा से भी विराम ले आत्मा उपवास शीतल धाम वन दुनियाँ के भोगियों को उपदेश बिना बोले सेवा में लग जाते हैं। इसी साधना काल में यदि साधक को कोई देता है कि शांति, सुख, समृद्धि चाहते हो तो भोग से विराम लेना | वेदना हो जाये तो वे आह जन्य शब्द का प्रयोग नहीं करते पंचपरमेष्ठी सीखो तो तुम्हें स्व की अनुभूति होगी।
वाचक शब्द का ही प्रयोग करते हैं और आगम वाक्य है, उपवास वैसे भी दोषों का परिमार्जन करने की विधी उपवास की | तप आत्मा का परम उपकारक है। चर्या में निहित है। मोक्ष के धाम का पहुँच मार्ग के पास रहना मौन मराठी में एक कहावत है किकी अवस्था है। एक बात और स्मरणशाली बनी की उपवास के "साधाकांची दशा उदास असावी" समय चर्या में निखार लाने के लिये विशेष साधना करना जिससे साधक की दशा विषय भोगों से उदास रहना चाहिये तब शरीर को अधिक पीड़ा है। शरीर को जितना अधिक पीड़ित | कहीं वह होश पूर्वक मरण कर सकता है ये साधना उपवास के करोगे उतना अधिक शीतल शांति का अनुभव होगा परिणाम | वशीभूत व्यक्ति सल्लेखना (समाधी) के निकट आ सकता है। और स्वरूप मोह, ममता, अपनापन छूटता जायेगा। इन्द्रियों से लगातार आत्मा में वास कर पंचपरमेष्ठी के स्मरण में काल व्यतीत करके काम लेने से वे कमजोर नहीं, श्रमशील बनती हैं और मन को उपवास नाम को सार्थक कर सकता है क्योंकि उपवास का दिवस खीचे रहने से संकोच की स्थिति नहीं बन सकती। मन ढीला होते | पंचपरमेष्ठी के स्मरण का काल होता है। ही चर्या में प्रमाद जन्य दोष लगने का पूरा-पूरा अवसर रहता है। एक आहार एक उपवास साथ की साधना का प्रतिफल उपवास ही ऐसी अग्नि है जो विकारी भावों को जलाने में सहकारी | चिन्तन के रूप में पूर्ण हुआ।
ध्वजारोहण एवं शोभायात्रा बिजौलिया, 10 दिसम्बर । बिजौलिया पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र पर दिनांक 11 से 16 दिसम्बर के जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का ध्वजारोहण एवं शोभायात्रा हर्ष उल्लासमय वातावरण में सम्पन्न हुआ।
पूज्य आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज के सुयोग्य शिष्य पूज्य मुनि श्री 108 सुधासागर जी, 105 क्षुल्लक श्रीगंभीर सागर जी महाराज, 105 क्षुल्लक श्री धैर्यसागर जी महाराज ससंघ सान्निध्य में बैण्ड, बाजे, ढोल-नगाड़े के साथ ऐतिहासिक जलूस, सुसज्जित वेशभूषा में, अनुशासित ढंग से शोभायात्रा कृषि उपज मण्डी से प्रारंभ होकर पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र पर पहुँची। ध्वजारोहण श्री अशोक पाटनी (आर.के. मार्बल्स लि. किशनगढ़), श्री गणेश राणा, जयपुर द्वारा सम्पन्न हुआ। सभी अतिथियों ने मुनिश्री को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
पिच्छिका परिवर्तन समारोह बिजौलिया, 10 दिसम्बर। श्री पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र, बिजौलिया के श्री 1008 जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के मण्डप स्थल पर दोपहर में श्री 108 मुनि सुधासागर जी महाराज ससंघ का पिच्छिका परिवर्तन समारोह सम्पन्न हुआ।
पूज्य 108 मुनि श्री सुधासागर जी महाराज की पुरानी पिच्छिका श्री पी.सी.जैन, भीलवाड़ा ने, पूज्य 105 क्षुल्लक श्री गम्भीर सागर जी महाराज की पुरानी पिच्छिका श्री शांतिलाल ने, पू. 105 क्षु. श्री धैर्यसागर जी महाराज की पिच्छिका श्री कुन्तीलाल गोधा, बिजौलिया ने त्याग, संयम, व्रत लेकर ग्रहण की और नवीन पिच्छिकाएँ कमेटी, नवयुवकमण्डल, सुज्ञान जाग्रति मण्डल बिजौलिया ने भेंट की।
पूज्य मुनि ने श्री पिच्छिका परिवर्तन समारोह में बोलते हुये कहा कि श्रमण संस्कृति के सूत्र दिगम्बर जिनमुद्रा रुढ़िवादिताओं से परे मानवता का संदेश देती है और पूरे विश्व के कल्याण की भावना का प्रतीक है। दि. जैन मुनियों के पास यह कोमल मयूर पिच्छिका छोटे जीवों की रक्षा के लिये है।
-जनवरी 2003 जिनभाषित
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