________________
(ब) कोचिनिएल एक लाल रंग का जर है जो सकैल कीट-पतंगों को (पूँछ वाले) मारकर उनके मृत शरीर को सुखाकर प्राप्त किया जाता है। (स) शेलैक कीट-पतंगों के मृत शरीर को बोला जाता है। 11 ग्राम शेलैक प्राप्त करने के लिए एक लाख कीटपतंगों की बलि दी जाती है।
(ट) ग्लसरीन ग्लाइसरोल कफी ग्लैसरीन जानवरों के शरीर से ही प्राप्त की जाती है, लेकिन इसे पेट्रोलियम से बनाया जा सकता है।
उत्पादक भी इस बात से वाकिफ नहीं होते हैं कि ग्लैसरीन मुख्यत: जानवरों से ही प्राप्त होती है और शायद यही कारण है कि वे इसे बार-बार अपने उत्पादों में प्रयोग करते हैं और कहते हैं कि उनका उत्पाद विशुद्ध रूप से प्राकृतिक है ।
(त) स्टेआटिक एसिड यह भी पशुओं के शरीर से प्राप्त होने वाला पदार्थ है और उसे साबुन, सौन्दर्य प्रसाधनों व मोमबत्ती बनाने में भी प्रयोग किया जाता है।
-
शायद अब तो आपको मालूम हो ही गया होगा कि वे उत्पाद जिन्हें आप भी प्राकृतिक या वनस्पति आधारित मान चुके है, वास्तव में कई बहुपयोगी जानवरों की बलि के बाद ही आप तक पहुँचते हैं। आप इसे रोक सकते हैं। हाँ, यह बात सच है कि इन उत्पादों को बिना जानवरों के अंगों के प्रयोग के भी बनाया जा
न्यायमूर्ति ए. डी. सिंह और न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल की खंडपीठ ने गैर वनस्पति अवयवों से निर्मित सभी दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के पैकेटों पर लाल डाट से जबकि वनस्पति आधारित दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के पैकेटों पर हरे डाट. से वर्गाकार आकृति बनाने का आदेश दिया। इन आकृतियों में महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ लिखी होनी चाहिए।
न्यायालय ने गंभीर हालत वाले रोगियों का हित ध्यान में रखते हुए जीवनरक्षक दवाओं को इन निर्देशों के पालन से मुक्त रखा है। खंडपीठ ने स्वास्थ्य महानिदेशक को दो महीने के भीतर जीवन रक्षक दवाओं की सूची जमा करने का निर्देश भी दिया है।
दवाओं व सौंदर्य प्रसाधनों के अवयवों की जानकारी देना आवश्यक
नई दिल्ली 13 नवम्बर, वार्ता । दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में खाद्य सामग्रियों की तरह ही दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के पैकेटों पर यह उल्लिखित करना अनिवार्य कर दिया है कि उनका निर्माण वनस्पति आधारित अवयवों से हुआ है या जीव जंतु आधारित अवयवों से।
खंडपीठ के उक्त निर्देश श्री उजैर हुसैन की याचिका को निपटाते हुए दिया। उन्होंने जीव जंतुओं के अवयवों से निर्मित सौंदर्य प्रसाधनों और दवाओं के पैकेटों पर इससे संबंधित सूचनाएँ दिये जाने के निर्देश देने की अपील की थी।
सरकार की ओर से अधिसूचना जारी होने तक न्यायालय के निर्देशों पर अमल किया जाना है। केन्द्र सरकार ने पहले सौंदर्य प्रसाधनों के बारे में न्यायालय में मसौदा प्रस्तुत किया था ।
Jain Education International
सकता है और बनाए भी जा रहे हैं, लेकिन इसके लिए आपको अमूमन थोड़ा सा अधिक खर्च करना होगा और उन पदार्थों का बहिष्कार करना होगा जिनके निर्माण के लिए जानवरों के अंगों का प्रयोग होता है। एक भारतीय का उदाहरण भी हमारे सामने है। जिसने अमरीका में कोर्ट के सामने मेक्डॉनल्डस की पोल खोली। वर्षों तक मैकडॉनल्डस ने लोगों से झूठ बोला कि वे चिप्स को वेजिटेबल ऑयल में तलते हैं। सच्चाई सामने आ चुकी है कि मैकडॉनल्डस चिप्स को बेजिटेबल ऑयल में तलने से पहले उन्हें गाय की चर्बी में डुबोते हैं। संभवत: उसी के समान हमारे देश में भी वे चिप्स जो दूसरे देशों से आयात किये जाते हैं, उनमें इस तरह की सामग्री मिली होती है।
अब निर्णय आपके हाथ में है कि आप ऐसे उत्पादों का प्रयोग करते हैं या नहीं, लेकिन एक बात तो मैं ही आपको जरूर कहना चाहूँगी कि भले ही ये उत्पाद कुछ सस्ते व स्वादिष्ट हो सकते हैं, लेकिन आपकी सेहत के लिए ये अत्यंत हानिकारक हैं। यदि आप अपने आपको पूरी तरह शाकाहारी बनाना चाहते हैं तो प्राकृतिक तत्त्वों से निर्मित उत्पाद ही अपनाएँ।
राजस्थान टाइम्स अलवर से साभार प्रेषक- निर्मल कुमार पाटौदी 22 जाय बिल्डर्स कॉलोनी इन्दौर-452003
याचिका में उन सौंदर्य प्रसाधनों और दवाओं पर चेतावनी अंकित करने की माँग की गई थी जिनका निर्माण जंतुओं के अवयवों से होता है। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि ऐसी चीजों में जंतुओं के अवयवों के इस्तेमाल पर कुछ उपभोक्ताओं को आपत्ति है और उन लोगों को इस बारे में जानकारी हासिल करने का अधिकार है।
याचिका में जीव-जन्तुओं के अवयवों से बनी वस्तुओं के डिब्बों पर भूरे रंग में एक वृत्ताकार संकेतक लगाने की माँग की गई थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि देश की जनसंख्या के लगभग 60 प्रतिशत लोग शाकाहारी हैं और लगभग 90 प्रतिशत लोग अंग्रेजी में लिख पढ़ नहीं सकते।
केन्द्र सरकार ने खाद्य अपमिश्रण अधिनियम के तहत खाद्य सामग्रियों पर उसमें प्रयुक्त अवयवों की जानकारी अंकित करने की तर्ज पर ही सौंदर्य प्रसाधनों के लिए भी दिशा-निर्देश देने पर विचार करने के संकेत दिये थे।
-जनवरी 2003 जिनभाषित 25
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org