Book Title: Jinabhashita 2003 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 32
________________ सपन श्री विद्यार्थी जहाँ भी रहे, खूखार दस्युओं एवं बदमाशों के आतंक | साधु को संस्कारित कर मुक्तिमार्ग में लगाने वाले होते हैं। संग्रह से क्षेत्र की जनता को भयमुक्त कराने में अपनी जान की बाजी | निग्रह और अनुग्रह कर साधु-संघ को अनुशासित रख धर्मप्रभावना लागने से भी नहीं चूके। करते हैं। श्रावकों को धर्मप्रवृत्ति हेतु सत्प्रेरणा दे स्व-पर को संसार श्री विद्यार्थी के बड़े भाई डॉ. सुमति प्रकाश जैन के अनुसार सागर से पार उतारने में नौका सदृश आचार्य श्री विद्यासागर इस राष्ट्रपति शौर्य पदक हेतु तुषारकांत के नाम के चयन की अधिसूचना युग के प्रणेता हैं।" मुनि श्री प्रमाणसागरजी ने उनके अनूठे व्यक्तित्व भवन से हाल ही में प्राप्त हुई है। उल्लेखनीय है श्री विद्यार्थी शुरु से पर प्रकाश डालते हुए कहा कि "आम मानव पद, प्रतिष्ठा, प्रभुता, ही मेधावी एवं परिश्रमी रहे हैं। महाराजा कॉलेज छतरपुर में प्रवेश | पैसा और प्रशंसा के पंच पकार के पीछे भाग रहा है, परन्तु आचार्य लेने के कुछ समय बाद ही उनका चयन एम.ए.सी.टी. भोपाल श्री विद्यासागर इन सबसे दूर निवृत्तिमार्ग के नि:स्पृह सन्त हैं'। जैसे प्रतिष्ठित रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया था। यहाँ से ऐलक निश्चय सागर ने अपनी विनयांजलि में कहा कि आचार्य बी.ई. आनर्स करने के बाद सन् 1992 में वे एम.पी. पी.एस.सी. | श्री ने सैकड़ों आगम ग्रन्थ लिखे हैं, वे निर्ग्रन्थचर्या के आदर्श की परीक्षा में बैठे और पहले ही प्रयास में प्रावीण्य सूची में तीसरा | श्रमण हैं। स्थान पाते हुए उप पुलिस अधीक्षक चुने गये। प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जी ने कहा कि आचार्य विद्यासागरजी इंजी.एन.सी.जैन के महान् व्यक्तित्व और कृतित्व स्वरूप ये तीनों शिष्यप्रवर विराजमान अध्यक्ष-जैन समाज, छतरपुर (म.प्र.) हैं। इनके चातुर्मास की स्थापना आचार्य विद्यासागर के 34वें दीक्षा कल्पद्रुम महामंडल विधान संपन्न दिवस से तथा समापन इकतीसवें आचार्यपदारोहण दिवस पर हुई आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से आ.कल्प विवेक सागर जी महाराज की सुयोग्य शिष्या आर्यिका है। 27 वर्ष पहले आचार्यश्री का चातुर्मास इसी महावीर बाहुबली विज्ञानमति माता जी ससंघ के सान्निध्य में श्रमण संस्कृति संस्थान जिनालय प्रागंण में हुआ था। पं. उमेश जैन ने अपनी काव्यांजलि सांगानेर से पधारे ब्र. संजीव भैया कटंगी के निर्देशन में 6 नवम्बर में आचार्य श्री को भगवान् की अनुकृति कहा। डॉ. विमला जैन ने से 18 नवम्बर तक कल्पद्रुम महामंडल विधान का आयोजन | काव्य विनयांजलि में आचार्य श्री को अनूठे शिष्य और अपूर्व किया गया। महान गुरु बताया। इस अवसर पर मंगलाचरण कवि युगल जी ने 400 इन्द्र-इन्द्राणियों के बीच फिल्मी धुनों से रहित | किया. इकतीस दीपकों से आचार्यश्री के विशाल चित्र की आरती आध्यात्मिक भजनों के स्वर से भरी भक्ति, परम पूज्य आर्यिका | उतारी गयी। पं. अनूप जैन एडवोकेट ने मंच संचालन किया। विज्ञान मति माता जी की सहज प्रवचनशैली और विधानाचार्य ब्र. उत्सव के आरंभ में जैननगर-मन्दिर से विभव नगर शान्ति नाथ भैया के विधान को अर्थ सहित समझाने के ढंग ने जनता को मंत्र जिनालय तक आचार्यश्री के विशाल चित्र के साथ शोभा यात्रा मुग्ध कर दिया। ब्र.संजीव भैया के तथ्यपरक, प्रभावपूर्ण रात्रिकालीन निकाली गयी। प्रवचनों की श्रृंखला जैनाजैन जनता के आकर्षण का मुख्य केन्द्र रहा। चातुर्मास समापन की अन्तिम धर्म सभा 24.11.2002 को विधान की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह रही कि पूज्य माताजी | सम्पन्न हुई जिनमें चातुर्मास की उपलब्धि बताते हुए पं. नरेन्द्र के आशीर्वाद से सभी ने विधान समाप्ति के पूर्व ही अपनी बोलियों | प्रकाश ने कहा "चार माह दस दिन का सान्निध्य फिरोजाबाद के की राशि जमा कर दी थी। विधान से हुई 20 लाख की आय को इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा जायेगा। अनेक गहन विषय पर बड़े मंदिर आरोन के जीर्णोद्धार के लिए दान की घोषणा की गई। अनवरत प्रवचन, वारह चिकित्साशिविर (नि:शुल्क) भाग्योदय प्रमोद वर्षद सागर द्वारा, त्रिदिवसीय वृहद् विद्वत्संगोष्ठी (मोक्षशास्त्र), पंच फिरोजाबाद में आ. विद्यासागरजी का दिवसीय विविध विधान, अनेक सार्वजनिक स्थानों पर धर्म सभायें, इकतीसवाँ आचार्य-पदारोहण समारोह प्रतिदिन के प्रवचनों का अनेक समाचार पत्रों में सचित्र बृहद् श्रमणपरम्परा के वाहक आचार्य शिरोमणि श्री विद्यासागर विवरण तथा पूरे प्रवास काल में दूर-दूर से आने वाले भक्तों की जी का 31वाँ आचार्यपदारोहणदिवस अभूतपूर्व धर्म प्रभावना तथा भीड़ यह सब अमिट और अविस्मरणीय धर्मप्रभावना ऐतिहासिक विशेष उत्साह के साथ मुनि श्री समतासागर जी, श्री प्रमाण सागर जी, ऐलक श्री निश्चय सागर जी के सान्निध्य में अपार जन समूह और अभूतपूर्व है। सन्तत्रय के शुभाशीष के बाद सन्तों का विहार के मध्य 22.11.2002 को 'श्री शान्ति नाथ पार्क' विभव नगर, कम्पिला जी मंगल क्षेत्र की ओर हो गया है। श्रद्धालुओं ने छल फिरोजाबाद में सानन्द सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर मुनि श्री छलाती आँखों और रुंधे कंठ से जयघोष के साथ अपने गुरुओं को समतासागर जी ने 'आचार्य' का महत्त्व बताते हुए कहा“आचार्य | विदाई दी।" सिद्ध परमेष्ठी और अरिहन्तों की छाया होते हैं तथा उपाध्याय और | डॉ. विमला जैन 30 जनवरी 2003 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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