Book Title: Jina Sutra Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 2
________________ महावीर की भाषा संघर्ष की है। महावीर के पास शरणागति जैसा कोई शब्द ही नहीं है। महावीर कहते हैं, अशरण-भावना। किसी की शरण मत जाना। अपनी ही शरण लौटना है। घर जाना है। किसी का सहारा मत पकड़ना। सहारे से तो दूसरा हो जाएगा। सहारे में तो दूसरा महत्वपूर्ण हो जाएगा। नहीं, दूसरे को तो त्यागना है, छोड़ना है, भूलना है। बस एक ही याद रह जाए, जो अपना स्वभाव है, जो अपना स्वरूप है-इसलिए कोई शरणागति नहीं। महावीर गुरु नहीं हैं। महावीर कल्याण मित्र हैं। वे कहते हैं, मैं कुछ कहता हूं, उसे समझ लो; मेरे सहारे लेने की जरूरत नहीं है। मेरी शरण आने से तुम मुक्त न हो जाओगे। मेरी शरण आने से तो नया बंधन निर्मित होगा, क्योंकि दो बने रहेंगे। भक्त और भगवान बना रहेगा। शिष्य और गुरु बना रहेगा। नहीं, दो को तो मिटाना है। इसलिए महावीर ने भगवान शब्द का उपयोग ही नहीं किया। कहा कि भक्त ही भगवान हो जाता है। महावीर कहते हैं, संघर्ष न हो तो सत्य आविर्भूत न होगा। जैसे सागर के मंथन से अमृत निकला, ऐसे जीवन के मंथन से सत्य निकलता है। सत्य कोई वस्तु थोड़े ही है कि कहीं रखी है, तुम गए और उठा ली, कि खरीद ली, कि पूजा की, प्रार्थना की और मांग ली! शेष अगले कवर-फ्लैप पर ___JainEducation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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