Book Title: Jin Vani
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 748
________________ dhātakī ēvam puskarārdha dvīpām kē āryakhandām mēm hī kāla-cakra ka visésa parinamana hota hai, sésa-khandom mem nahim | प्रकृति के नियम भी शाश्वत हैं। आधुनिक विज्ञान का विकास भी प्रकृति के नियमनुसार ही हुआ है, जैसे पहिये का घूमना, चक्की का चलना, विद्युत उपकरणों की गति, घड़ी की गति आदि। जब भी विज्ञान ने प्रकृति के विरुद्ध कार्य किया, हानि उठानी पड़ी तथा विनाश का कारण बना, चाहे वह पर्यावरण पारिस्थितिक, जैविक, रासायनिक या भौतिक कोई भी कार्य हो | Prakrti kē niyama bhī śāśvata haim. Ādhunika vijñāna kā vikāsa bhī praksti kē niyamanusāra hī hu’ā hai, jaisē pahiyē kā ghūmanā, cakkī kā calanā, vidyuta upakaraņām kī gati, gharī kī gati ādi. Jaba bhī vijñāna nē prakyti kē virud’dha kārya kiyā, hāni uthānī parī tathā vināśa kā kāraņa banā, cāhē vaha paryāvarana pāristhitika, jaivika, rāsāyanika yā bhautika koi bhī kārya ho प्रकृति ने स्वयंसिद्ध होने के साथ-साथ मानव-शरीर के निर्माण को भी निश्चित-आकार एवं स्थान दिया है। आचार्य श्री वीरसेन स्वामी ने 'धवला'-टीका में स्पष्ट उल्लेख किया है। नारकी ८ ताल, देव १० ताल, मनुष्य ९ ताल, एवं तिर्यंच विभिन्न-ताल वाले होते हैं। इसीप्रकार वास्तु अर्थात् निर्माण-व्यवस्था भी अनादि-अनिधन है। जैनदर्शन ने नव-देवताओं को आराध्य/पूज्य माना है, जिनमें चैत्य व चैत्यालय भी हैं। अकृत्रिम-चैत्यालयों एवं प्रतिमाओं की दिशा एवं माप-अनुपात निश्चित हैं। अकृत्रिम-चैत्यालय पूर्व एवं उत्तराभिमुख हैं, प्रतिमायें गर्भगृह में स्थापित हैं। शिखर-युक्त जिनालयों में मुख्यद्वार एवं लघुद्वार हैं, प्रतिमा की दृष्टि द्वार से बाहर निकलती है। प्रतिमाएँ समचतुरस्रसंस्थान-युक्त हैं। प्रतिष्ठा-शास्त्रों एवं वास्तु-शास्त्रों में मंदिर एवं प्रतिमा के माप का विस्तृत उल्लेख है। उसी अनुसार यदि कृत्रिम-जिनालयों की रचना की जावे, तो वह लौकिक एवं पारलौकिक विकास में सहयोगी होती है। वर्तमान में इसमें कई विसंगतियाँ सामने आ रही हैं। विपरीत-निर्माण से प्रतिष्ठाकारक, प्रतिष्ठास्थल एवं समाज पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। आचार्यों ने वास्तुग्रंथों के उल्लंघन न करने का भी स्पष्ट कथन किया है | Prakrti nē svayamsiddha hānē kē sātha-sātha mānava-śarīra kē nirmāņa ko bhī niścita-ākāra ēvam sthāna diyā hai. Ācārya śrī vīrasēna svāmī nē 'dhavala'-tika mem spasta ullekha kiya hai. Naraki 8 tala, deva 10 tala, manuşya 9 tāla, ēvam tiryanca vibhinna-tāla vālē hōtē haim. Isī prakāra vāstu arthāt nirmāna-vyavasthā bhí anādi-anidhana hai. Jainadarśana nē nava-dēvatā'āṁ ko ārādhya/pūjya mānā hai, jinamēm caitya-caityālaya bhī haim. Akrtrima-caityālayām ēvam pratimā’ām kī diśā ēvam māpa 748

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