Book Title: Jin Vani
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 752
________________ जैन-दर्शन में अन्य दर्शनों की अपेक्षा ईश्वर का स्वरूप कुछ विलक्षण है | यहाँ किसी पुरुष विशेष का नाम ईश्वर नहीं, वरन् जैन दर्शन की दृष्टि से अरिहंत (अर्हन्त, अरुहन्त) और सिद्ध अवस्था को प्राप्त प्रत्येक जीव 'ईश्वर' कहलाता है| Jaina-darśana mēm an'ya darśanom kī apēkņā īśvara kā svarūpa kucha vilakṣaṇa hai yahāṁ kisī purusa viśēşa kā nāma īśvara nahīm, varan jaina darśana kī drsti sē arihanta (ar'hanta, aruhanta) aura siddha avasthā kā prāpta pratyēka jīva ‘īśvara' kahalātā hai जैन दर्शन में ईश्वर एक नहीं वरन् अनन्त ईश्वर हैं | संचित कर्मों को नाश करके अभी तक जितने जीव मुक्त हो चुके हैं ओर जो आगे भी मुक्त होंगे वे सब ईश्वर पद के वाच्य हैं | ज्ञानावरणादि चार घातिया कर्मों का क्षय करके यह जीव अरिहन्त बन जाता है, इसे सर्वज्ञ, जिन, जीवनमुक्त और केवली भी कहते हैं | Jaina darśana mēm īśvara ēka nahīm, varan anantom īśvara haim | sañcita karmām kā nāśa karakē abhī taka jitanē jīva mukta ho cukē haim ūra jā āgē bhī mukta hõngē vē saba īśvara pada kē vācya haiṁ | jñānāvaraṇādi cāra ghātiyā karmom ko kşaya karakē yaha jīva arihanta bana jātā hai, isē sarvajña, jina, jīvanamukta aura kēvalī bhī kahatē haim अरिहन्तः अरि अर्थात् शत्रु, एवं उसके हनन अथवा नाश करने वाले को अरिहन्त संज्ञा प्राप्त होती है | आत्मा का परम अरि (शत्रु) आठों कर्मों के राजा मोह को कहा गया है | मोह- कर्म पर विजय पाने वाला जीव अरिहंत कहलाता है। Arihanta: Ari arthāt satru, ēvam usakē hanana athavā nāśa karanē vālē ko arihanta sanjñā prāpta hötī hai ātmā kā parama ari (satru) āthom karmom kē rājā mōha ko kahā gayā hai moha-karma para vijaya pānē vālā jīva arihanta kahalātā hai अर्हन्त : अर्थात अतिशयपूज्य | तीर्थंकर भगवान के गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान एवं निर्वाण इन पांच कल्याणकों के समय देवताओं द्वारा पूजा और प्रभावना की जाती है | इस प्रकार देवताओं, असुरों एवं मानवों द्वारा की जाने वाली पूजा के उत्कृष्टतम पात्र होने के कारण वे अर्हन्त कहे जाते हैं | 752

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