Book Title: Jeevvichar
Author(s): J R Shah
Publisher: J R Shah

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Page 356
________________ No. (340 340 Date : : (रपणा, शध्य मने तो, घर सिपाय पीपार्नु पाणी यामरपार्नु राणपुं. डारणा संमूर्थिम पो संधी छीपी समठ , मोटो लागनां टोडो मासे न होपाथी, मेंहा सासने लूंध्या पिना, पारंपार घडामा नजाय | છે. તેથી, એઠા ગ્લાસને લીધે, ઘSાનું સંપૂર્ણ પાણી સંમૂરિઈમ જુવોવાળું थापाथी, तेषां पाणीने सऽपा मात्रयी पए। मसंप्य संमूर्छिम पंन्द्रियः मनुष्य अपोनी पिराधना थाय छे. हुपे, मायुं पाएी ने खडाय पए नहीं, तो पछी पीपाय छ रीते? (राम। स्नातन , उपडां धोयेडं, हाथ धोयेट् परोपाषाणुं भेडं पाही, जायमानानपाने बोले राज्य जने तो, मुटदी भीनमा नांजपुं.धी, मसंप्य संमूर्णिम मनुष्योनी पिराधिनाथी जयी शाय. घरमा पोतुं रवा भाटे पपरायेल भेलां पहनने , यो वाणीने मेठो न जाय. परंतु, प्यपस्थित मुस्लीमीन पर नीयोपीने पछी सूपी पाय. मेवी डापानु-भगृति रानपायी संमूर्थिभ योनी पिराधिनाथी नयी शडाय छे. एर पायेखां नमने सीधे-सीधां इंडी नपाय. परंतु, ते नप्तने लेगां डरीने, यूना मथपा रामसाये लेणपी हेवाय. मेथी, नजमा रहेल भेलने सीधे संझिम पंयेन्द्रियानुयोनी उत्पत्ति सने विशपिना नाथाय. शरीरसाथै नजोडायेस होय, त्यां सुधी नजनां मेलमांसंमूर्छिम मनुष्योनी उत्पत्ति न थायला परंतु, मेड पजत शरीरथी पूर्ण थया जा , मेरले नाम पायां जा, ४८ मिनीटमां तेनां मेटने राण मधवा यूना साथ न लेणवाय, तो तेभां मसंप्य संमूर्छिम पिंयेन्द्रिय मनुष्योनी उत्पत्ति-पिराधनाशरथी लय छे. यनो-राज गरम होपाधी, नाजनां भेलमा नुवोत्पत्तिनी संलापना रहेती नथी. (ख) जोरनां हणियां, जमुनां हणियां, सीताइणनां जीर, प्लम माहिनां जी , रीनी छाल, रीनी गोटली, लिंगरना जी , शेरडीना छोतरां पोरने मोंढामाथी यूसीने में बहार इंडी हेपाय तो मनुष्यनी ताण साथै लणेस होवाथी , ते मियां-छाल-जीतहिमां नसंध्य संछिभ पंयेन्द्रिय मनुष्योनी उत्पत्ति श घई नय छे. , ते उपरांतमा डीडी साहि प्रस जुवानी विराधना पा घर्छ शर्ड छ. तेथी, खा विरापनाथी जयपां भाट, गिया-मीठ-छाल- गोरली कोरे મોઢામાંથી કાઢયાં બાદ , પાણીમાં ધોઈને , તે પાણી વાપરી જવું. KOKUYO W-N82800

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