Book Title: Jambudwip Pragnaptisutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्री बीतगगाय नमः श्रीजनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्य श्री घासीलाल महाराज विरचितया
प्रकाशिकाख्यया व्याख्यया समलङ्कृतम् ॥श्री-जम्बूद्वीपखूनम् ॥
(छिनीयो भागः)
अथ चतुर्थवनस्कार:मृलम्-कहि णं संते ! जंबहीवे दीवे चुल्लाहिमवए णामं वालहरपवर एण्णत्ते ?, गोयमा! हमवयस्स बासस्स दाहिणेणं भरहवासस्से उत्तरेण पुरथिम लवणसमुहस्त पञ्चस्थिमेणं पञ्चस्थिमलवणसमुदस्स पुरस्थिमेणं, एत्थ णं जंबुढीवे दीवे चुल्लहिमवंते णामं वासहरपव्वए पपणने, पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविस्थिपणे दुहा लवणसमुदं पुढे पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुढे, पञ्चस्थिमिल्लाए कोडीग पञ्चस्थिसिल्लं लवणसमुह पुढे एग जोयणसयं उद्धं उच्चत्तेणं पणवीसं जोयणाई उठवेगं एगं जोवणसहस्सं वावण्णं च जोयणाई दुवालस व पगणवीसइभाए जोयणस्स विकावंभेणंति । तस्स वाहा पुरस्थिमपञ्चस्थिमेगं पंच जोयणसहस्साई तिपिण य पण्णासे जोयणसए पण्णरस व पगूणवीसइभाए जोयणस्ल अद्धमागं च आयामेणं, तस्स जीवा उत्तरेणं, पाईणपडिणायया जाब पञ्चस्थिमिल्लाए कोडीए पञ्चस्थिमिल्लं लवणसमुदं पुटा, चउम्धीसं जोयणसहस्साई णव य बत्तीसे जोयणसए अद्धभागं च किंचि विसेसूणा आयामेणं पण्णत्ता, तीसे धणुपुट्टे दाहिणेणं पणवीसं जोयणसहस्साई दोषिणय तीसे जोयणसए चत्तारि य एगूणवीसइमाए जोयणस्त परिक्खेवेणं पण्णत्ते रुयगसंठाणसंठिए सव्वकणगामए अच्छे सण्हे तहेव जाव पडिरूवे उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते दुण्ह वि पमाणं
ज०१
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