Book Title: Jainagmo Me Parmatmavad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashanalay
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११३६७ २०।११८ ७।१६८
११३६५ २०१११८ ७।१६७
२।४,५ ८.५१ २।१३६ २।१३६ पा२ ३।१५६ ६।१५६-१५६
प० २८।१
८.५१ २।१३६ २।१३६ २।१३६
३।१५४ वृति, जी ३
वि निसिरणयाए वि दहणयाए वि ताव च ण से पुरिसे काइयाए जाव पचहिं एक्केण वा जाव उक्कोसेण एगरूव जाव हता एगवण्णाइ आणमति वा पाणमति वा ऊससति वा नीससति वा आहारगमो नेयम्बो जाव पचदिसिं
एगिदिय जाव परिणए एगिदियदेसा जाव अणिंदियदेसा एगिदियपदेसा जाव अणिदियपदेसा एगिदियपयोगपरिणया जाव पचिदिय० एतेण अभिलावेण चत्तारि भगा एत्तो आढत्तं जहा जीवाभिगमे जाव से एत्य वि तह चेव भाणियन्व, नवर अणुदिण्ण उवसामेइ सेसापडिसेहेयन्वा तिण्णि । ज त भते । अणुदिण्ण उवसामेइ त किं उट्ठाणेण जाव पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा। से नूणं भते । अप्पणा चेव वेदेइ अप्पणा चेव गरहइ एत्थ वि मच्चेव परिवाडी, नवरं उदिण्ण वेदेइ नो अणुदिण्ण वेदेइ एव जाव पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा। से नूण भते । अप्पणा चेव निज्जरेइ अप्प० एत्य वि, सच्चेव परिवाडी, नवर उदयअणतरपच्छाकड कम्म निज्जरेइ एव जाव परक्कमेइ वा एमहिड्ढीए जाव एमहाणुभागे एयति जाव अते एयति जाव त एयति जाव नो एयति जाव परिणमइ एयाणि वि तहेव नवर सत्त संवच्छराई सेस त चेव एव अगणिकायस्स मज्झमज्झेण तहिं नवर झियाएज्ज भाणियव्व । एव पुक्खलसवट्टगस्स महामेहस्स मझमझेण तहिं उल्ले सिया।
१४१५१-१६२ ३१४ ३११४८ ३११४३ ३।१४६-१४८ ३।१४५
१११४७-१५०
३।४ ३११४४ ३३१४३ ३११४३ ३।१४३
६।१३१
६।१२६

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