Book Title: Jainagmo Me Parmatmavad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashanalay
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केणट्टेण जाव केवली
केणट्टेण जाव गेण्हित्तए
केण जाव जरा
जावण
केट्टेण जाव नो केण जाव नो
द्वेण जावो
केणट्टेण जाव पभू ण श्रणुत्त रोववाइयां
देवा जाव करेत्त
केणद्वेण जाव परायिज्जति
केट्टे जाव पासइ
केणट्टेण जाव पासति केणट्टेण जाव पासति
केणट्टेण जाव भवइ
केणट्टेण जाव वत्तव्व केणट्टेण जाव सपराइया
जाव समया
कोलट्ठिमायमवि जाव उवदसेत्तए कोहे जाव मिच्छादसण सल्ले
खलु जाव दव्वम्रो
खीणे जाव प्रत
खीरघाई जाव अट्ठ
खेत्त जाव पभासेइ
१७
खेत्तादेसेण वि एव चेव कालादेसेण वि भावादेसेण
वि एव चेव
खेत्तोहिमरणे जाव भवो ० गगेया जाव उववज्जति
गच्छमाणस्स जाव श्राउत्त
गतिनामनिहत्ता जाव अणुभाग०
गमणिज्ज जाव तहा जाव सणाति
५१०६
३।११८
१६।३१
!
५।१०२
१।४५
१।६७
५/७०
खदया जाव अणता
२४६
खदया जाव किं प्रणते सिद्धे तं चैव जाव दव्व २४८
खदया पुच्छा
२४७
२४६
१४१६
११।१५६
१।२५७
५।१०४
१।३७४
३।२३०
५।१०६
१४।७६
३।१४८
२।१३७
७५
५।२४६
६।१७३
११२८६
५।२०५
१३।१३६
१२६
७।१२५
६।१५२
१।१३६
७१७५
५/६७
३।११७
१६।३०
५।१०१
१।३४,४४
१।६१
५/६६
५।१०३
१/३७३
३।२२४
५।१०५
१४।७८
३।१४७
२/१३६
७।४
५।२४८
६।१७१
११३८४
२।४५,४४
२।४५,४४
२।४५,४४
२१४५
११४१६
आयारचूला १५।१४
१।२५७
५।२०५
१३।१३१
१२६
३।१४८
६।१५१
१११३६
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