Book Title: Jain aur Bauddh Paramparao me Nari ka Sthan Author(s): Nemichandramuni Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 2
________________ चतुर्थ खण्ड / १७६ वाले कारणों को दोनों ही धर्मों ने मान्यता नहीं दी। जैन और बौद्ध आगमसाहित्य में वैदिक धर्ममान्य षोडश संस्कारों को भी महत्त्व नहीं दिया गया है। धार्मिक उत्कर्ष को प्राप्त करने के लिए दोनों ही धर्मों में गृहस्थावास को छोड़कर अनगारावस्था में साधु और साध्वी दोनों के लिए शुद्ध ब्रह्मचर्य के पालन पर जोर दिया गया है, जबकि वैदिकधर्म में मासिकधर्म प्राप्त कन्या का . विवाह करना अनिवार्य माना जाता था। प्रागैतिहासिक काल में भ० ऋषभदेव के युग में पुत्र और पुत्री में कोई भेदभाव नहीं रखा जाता था । भ० ऋषभदेव ने तो अपनी दोनों पुत्रियों-ब्राह्मी और सून्दरी को स्वयं कलाओं की शिक्षा दी थी। बौद्ध और जैन आगमों में धार्मिकदृष्टि से नारी को पुरुष के समकक्ष माना गया । नर एवं नारी दोनों को अनगारावस्था में साधना करने तथा मुक्ति या वीतरागता प्राप्त करने का समान अधिकार दिया गया है। धार्मिक क्षेत्र में नारी को पुरुष के समान अधिकार प्राप्त होने से पुत्री के जीवन-विकास के लिए वह वरदानरूप सिद्ध हया। पुत्री-वर्ग ने इस नये धार्मिक अधिकार का सर्वाधिक उत्साह के साथ उपयोग किया । में परिवार में माता के आचार-विचार-संस्कारों की विरासत कन्याओं को परिवार में पुत्री अपनी माता के अनुशासन में रहती थी, इस कारण उसे माता के प्राचार-विचार एवं धार्मिक संस्कार विरासत में मिलते थे। जनयुग में स्वतंत्र धार्मिक जीवन के संस्कार साधुवर्ग से यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि पारिवारिक जीवन में माताओं द्वारा कन्याओं के हृदय में धार्मिक भावना उत्पन्न करने की प्रथा का उल्लेख बौद्धागमों में पाया जाता है। जैनागमों में नहीं । इसका कारण यह प्रतीत होता है कि जैनागमों के काल तक नारी-जीवन विकसित हो चुका था, उनके प्रति उत्तरवैदिक कालीन व्यवहार प्रायः समाप्त हो चुका था। अतः वे माताओं से धार्मिक शिक्षण न पाकर भी साधु-साध्वियों के पास जा कर जीवन धर्ममय एवं सुख-शान्ति से व्यतीत कर लेती थीं। यही कारण है कि कन्याएँ बाल्यावस्था में धार्मिक पुरुषों-साधु-साध्वियों के उपदेश एवं दर्शन से जो धार्मिक आचार-विचार के संस्कार पाती थीं, अपनी युवावस्था में वे उसी का परिशीलन किया करती थीं। अगर कोई धर्मसम्बन्धी शंका जाग्रत होती तो उसके समाधानार्थ धार्मिक महापुरुषों के पास जाती थीं। 'चुन्दी' नामक राजकुमारी एक कथन के स्पष्टीकरण के लिए ५०० कुमारियों के साथ तथागत बुद्ध के पास गई थी। जयन्ती राजकुमारी ने भगवान महावीर के पास जाकर गम्भीर तात्त्विक एवं धार्मिक शंकाएँ प्रस्तुत करके १. सद्धा भिक्खवे....तादिसा अय्ये भवाहि यादिसा खुज्जुत्तरा च उपासिका.... । अगारस्मा अवगारियं पव्वजसि, तादिसा अय्ये भवाहि यादिसा खेमा च भिक्खणी उप्पल वण्णा, का' ति ।-संयुत्तनिकाय २।१९६-१९७ २. साहं भंते ! भगवंतं पुच्छामि....अंगुत्तरनिकाय २१३०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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