Book Title: Jain Yug 1933
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 73
________________ तार्नु सरना :- Regd. No. B 1996. HINDSANGHA' ॥ नमो तित्थस्स ॥ HWशासकी aK PROIN हैन युग The Jaina Vuga. १R VOREसा पर बनवतांम२३२न्सनुभुज-५३.) IIIIIIIIIIIIIIIIIITHHTHHATHIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII तत्री:-मानanageीय देशा भी. से. असयस मी. मेडवोट. વાર્ષિક લવાજમ રૂપીયા બે. छुट न होट.मानो. અંક ૧૩, તારીખ ૧૫ મી નવેમ્બર ૧૯૩૩. न 3g વિષય સૂચિ १. समान वेश २ ५। ... श्री गुलाम .. श्री स्थान प्रवासी २' ... २ न समानुष मानचित्र, श्री महाल यश. साथे ये पत्र व्य८८२ ... 3 अवसान ... ... ... ... तत्री. ७ सुरतना सधपतिना पत्र ... ४ नांव... ... ... ... ... तत्री. ૮ વીર વિઠ્ઠલભાઈના અવસાન ५, भाराष्ट्रीय परिषद अवार... मान२. समय ४राब... २. असि . , , " " अन, वैसा होवे मन का है तो उन भाव रखने वाले समाज क्लेश दूर करो. "कहणात मशहूर है कि "जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन्न". हमारे मुनिराजोंका निरभा हमारे अन्न पर होता है. अगर हमारा अन्न शुद्ध न्यायोपार्जित द्रव्य का है तथा विना क्लेश का है तो उन महात्माओं की आत्माको भी शान्ति प्राप्त होकर उच्च श्रेणीपर चढने के अधिकारी होवेंगे. अगर हम आपस में मैत्रीभाव रखने वाले हैं, क्लेष से दूर भागनेवाले हैं, सब जीवों को शासनके रसिया बनाने की उत्कंठा वाले हैं तो जो साधू महात्मा पुन्योदय से हमारे अंदर से त्यागी वैरागी होकर साधू होवेंगे उनका प्रचार शान्तमय होगा. लेकिन इस वक्त हम जो हमारे पहीले श्रेणी अथवा पहीले वर्ग के महात्माओं का प्रायः करके वर्ताव देखते हैं तो हमको खेद उत्पन्न हुवे बगर नहीं रहता. जिन महात्माओं के मुखारविंदसे चन्द्रमाके जैसी शीतल वाणी निकलना चाहीये उनके मुखारविंद से प्रचण्ड सूर्य की ताप मुवाफिक वाणी के प्रहार हो छापों के द्वारा एक दूसरे पर बोछाड़ की जावें, सूत्रों का अर्थ एक दूसरे से खिलाफ किये जावे, इस वक्त मारवाडी भाद्रवावद ०)) को सूर्य ग्रहण के समय उसही भगवान महावीरके शासन में होते हुवे उन्हीं शास्त्रों को मानते हुए जुदी जुदी प्रकारसे बांचनाका समय मुकर्रर किया जावे, इस विषय पर छापा द्वारा चलेंज बाजीका बाजार गरम होवे, कोई भादवा सुद ६ को तोडे ओर ४ को सम्वत्सरी करे, कोई ४ के पहीलेकी तीथी को तोड कर एक दिन पहिले ही सम्वत्सरी कर लेवे, कोई अबलाओं को रोती हुई निराधार रखकर उनके भरण-पोषण करने वालों को उनसे उड़ाकर उनको जन्मभर के लिये दुखी कर देवे, कोई विना विचारे कमसिन बच्चे को धर्म का मर्म जाने बगर वक्त बेवख्त छुपे छुपाये मूंड मेवे जिसका अखीर परिणाम शोक जनक हो, किसी को इन कारखाईयों के सबबसे कोटों में जाना पडे, जहां पंच महाव्रत को हानी पहुंचे इत्यादि बहुतसा वर्ताव एसा प्रचलित हे कि जिससे हमारी समाज छिन्न भिन्न हो रही है. इस तरफ अगर ध्यान जल्दी से जल्दी नहीं दिया जावेगा तो न मालुम हमारी हस्ती कहां तक कायम रह सकेगी. लेकिन इन बातों का दोष हमारे ही उपर लगाया जा सकता है कि हमारा अन्न खाने से हमारे पहली श्रेणी के जेष्ट भ्राताओं का एसा बर्ताव होने लगा हैं." श्री गुलाबचंदजी ढढ्ढा, एम्. ए. प्रमुख, महाराष्ट्रीय जैन श्वे. कॉन्फरस, अहमदनगर अधिवेशन के भाषण पर से उदृत ई भादवा सुदनाका समय मुकर्रर किया जान महावीरके शासन महान

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