Book Title: Jain Vivah Vidhi Tatha Sharda Pujan Vidhi Author(s): Saubhagyavijay, Muktivijay Publisher: Nandishwar Dwip View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देवें । || ॐ अर्हं नमः ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री जैन विवाह विधि विवाह सम्बन्ध (सगाई) वर और कन्या का विवाह संबंध निश्चय करने के बाद उसके विषय में लेख लग्न के मुहूर्त पहले करना चाहिये और वह लेख कन्या पक्ष के बडेरे पुरुष को चाहिये कि वर के पक्ष के बडेरे पुरुष को स्वजन जाति के रूबरू कुंकुम के छटि डालकर चावल सुपारी और दुर्वा (धरो) से पूजन कर श्रीफल तथा रूपये के साथ अर्पण करे और उस वक्त विवाह विधि कारक (विवाह की विधि कराने वाला) नीचे लिखे मुजब शुद्ध मंत्र पढ़े । ॐ अर्हं परम सौभाग्याय परमसुखाय परमभोगाय परमधर्माय परमयशसेपरमसंतानाय भोगोपभोगान्तरायव्यवच्छेदाय अमुक नाम्नी कन्या अमुकगोत्रां अमुकनाम्ने वराय अमुकगोत्राय ददाति प्रति गृहाण अहं ॐ । इस मुजब बोलकर हमेशा के रिवाज मुजब पान सुपारी सबको वर के पक्ष वालों का फर्ज है कि कन्या के लिये अच्छे कपड़े व जेवर भेजे और परस्पर आमंत्रण देकर अपनी हैसियत के मुताबिके संबंधियों को जिमाकर उनका सत्कार करें । For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26