Book Title: Jain Vivah Vidhi Tatha Sharda Pujan Vidhi
Author(s): Saubhagyavijay, Muktivijay
Publisher: Nandishwar Dwip

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Page 2
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - प्रस्तावना 'आचारः परमो धर्मः' इस नियमानुसार प्रथम अपने आचार को शुद्ध बनाना यह हर एक जैन श्रावक का खास कर्तव्य है। बिना आचार शुद्धि के गृहस्थ धर्म नहीं झलक उठता इसीलिये जैन आचार्य वर्धमानसूरि ने अपने आचार दिनकर ग्रंथ में गृहस्थों के गर्भाधान आदि १६ संस्कार बताये हैं उनमें १४ वां संस्कार विवाह विधि भी शामिल है, प्रकृत पुस्तक में विवाह विधि का अच्छी तरह बयान किया गया है, इसमें लिखे मुताबिक जैन मंत्रों से विवाह की क्रिया करानी चाहिये इसका प्रचार जैन समाज में बहुतायत से होना जरूरी है। आजकल जहां देखते हैं, वहां ज्यादातर ब्राह्मण लोगों की विधि से तमाम विवाह शादी की क्रिया कराई जाती है मगर धार्मिक दृष्टि से तो जैन शैली से ही होनी चाहिये कारण कि प्राचीन आचार्यों ने जो विधि बताई है उसका मतलब यह नहीं कि ग्रंथों में पड़ी रहे बल्कि उसका यथा समय उपयोग करना चाहिये । यह विवाह विधि मूल संस्कृत भाषा में है उसका गुजराती भाषांतर कराकर बहुत अर्से पहले 'जैन विवाह विधि' तथा 'जैन लग्न विधि' इस नाम से छोटी सी पुस्तकें गुजराती महाशयों ने छपवाई थी वे पुस्तकें तमाम फरोक्त हो चुकीं अब वे किसी बुकसेलर के यहां नहीं मिलती। इन पुस्तकों की आजकल मारवाड़ में पुछताछ होने लगी है For Private and Personal Use Only

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