Book Title: Jain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
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Page 8
________________ धन्यवाद। जैन तत्त्व कलिका विकास के प्रकाशन का कुल व्यय श्रीमान् राय साहिव लाला रघुवीर सिंह जी ने प्रदान किया है जिसके लिये हम समस्त जैन जाति की ओर से उनका हार्दिक धन्यवाद करते हैं / आपका जन्म 23 जनवरी सन् 1884 को हुआ था। आप एक सुप्रसिद्ध खानदान कानूनगोयां कस्वा हांसी के हैं। आपके पिता लाला शेरसिंह जी हांसी के प्रसिद्ध मालगुज़ार थे और बहुत समय म्युनिसिपल कमेटी हांसी के उपप्रधान (वायस प्रेजीडेंट) रहे। आप एक अच्छे जैलदार गिने जाते थे। आपके पितामह (दादा) ला० रणजीत सिंह जी भी चिरकाल तक कस्टम डिपार्टमेंट में अच्छे अच्छे पदों पर नियुक्त रहे। पिछले दार ताजपोशी के समय श्राप देहली में नायब तहसीलदार थे और तत्पश्चात् अम्बाले में बहुत दिनों तक श्राप S.V.O. रहे / अम्बाला दिगम्बर जैन सभा के श्राप प्रधान भी रहे / वहां पर आपको जैनधर्म वा स्वधर्मी भाइयों की सेवा का अच्छा अवसर मिला / आप हर एक की उन्नति का विशेष ध्यान रखते थे / आपकी योग्यता का लक्ष्य रखकर गवर्नमेंट ने आपको शिमला के निकटवत्ती अर्की रयासत का मैनेजर बनाकर भेजा / प्रजा के हितार्थ आपने वहां अनेक कार्य किए और अच्छी प्रशंसा प्राप्त की / तत्पश्चात् गवर्नमेंट ने आपको नालागढ़ रियासत का वज़ीर बनाकर भेजा। वहां के शासन को दृढ़ता के साथ न्याय पूर्वक चलाकर प्रजा को सन्तुष्ट किया और रियासत की माली हालत को अच्छा बनाया। जनता के हित के लिये आपने नालागढ़ में बहुत सारे कार्य किए। और उनके लाभ के लिए बड़ी बड़ी इमारतें वनवाई। जैनधर्म के मुख्य सिद्धान्त 'अहिंसा' का आप सदैव सुचारु रूप से पालन करवाते थे / जैनियों के सर्व प्रधान संवत्सरी पर्व के आठ दिनों में आपने राजाज्ञा से उक्त रियासत में शिकार खेलना और मांस भक्षणादि करना तथा कसावखाना वगैरह सब बन्द करा दिए थे। आप के कार्य से सन्तुष्ट होकर सन् 1924 में सरकार ने आपको राय साहिब के टाइटिल (पदवी) से विभूषित किया। ___ तत्पश्चात् मिंटगुमरी, रोहतक, मियांवाली व लुधियाने में आप अफसर माल रहे / जव श्राप लुधियाने में थे तब आपको श्रीश्रीश्री 1008 गणावच्छे

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