Book Title: Jain Tark Sangraha Jain Muktavali cha
Author(s): Vijaynandansuri
Publisher: Godi Parshwanath Jain Temple Trust

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Page 255
________________ २० पृष्ठम् । ५७५८ शब्दः । पृष्ठम् । । शब्दः। पर्याय ४,५,६,७,८,११; प्रदेशबहुत्व १३,१४,३४,४९, | प्रदेशत्व ५२,५३,५४५५ प्रदेशराशि पर्यायत्व ५.८ प्रदेशान्तर पर्यायपद प्रमत्तयोग पर्यायवियुत प्राणपर्याप्ति पर्यायात्मन् प्राणव्यपरोपण पारमार्थिक प्राणातिपात पुग्गल १४,१८५० प्राणातिपातविरमण पुद्गल ६,७,८,१३,१४,१७; . बहिरात्मा . १८,१९,२०,२४; बहिरात्मदशा २६:५०:५१:५३ बहुप्रदेशस्वभाव पुद्गलास्तिकाय १३,१७ प्रजातिशय बुद्धबोधित , पोग्गलविकाए बोहिलाभ पौगलिक १७:१९:२३ भवनपति २४;५० भव्यत्वपरिणामिन् । पौद्गलिको भव्यस्वभाव पौद्गलिकत्व . १७१८:५० भावेन्द्रिय प्रत्येक २७ भाषा प्रत्येकबुद्ध भाषापर्याप्ति प्रत्येकबुद्धसिद्ध भाषावर्गणा प्रदेश १३,१४,१८,२०; मतिज्ञानावरण २१:२९,५० मनः बादर . २४:२६ • २४

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