Book Title: Jain Tark Sangraha Jain Muktavali cha
Author(s): Vijaynandansuri
Publisher: Godi Parshwanath Jain Temple Trust
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२१६ ..
पृष्ठम् । १३८,१४१
उपकरण
१३.९
१२८
शब्दः ।
पृष्ठम् । शब्दः । उद्वर्तना १३८,१३९ कषाय
कषायसमुद्घात उपकरणेन्द्रिय
१०४ कर्मक्षय उपयोग ८५,१०३,१०४,१०५ कर्मक्षयोपशम उपयोगात्मन्
कल्पातीत उपयोगेन्द्रिय
९० कल्पोपन्न उपलब्धि ११६११७११८ कापोत उपशम
१३९ कापोता उपशमना १३८:१३९ काययोग उपशमाभाव
कार्मण उपशान्तमोह
१३६ कार्मणकाययोग ऊर्ध्वगौरव ।
कार्मणवर्गणा ऋजुमति
८९ कार्मणादि ऋजुमतिमनःपर्यायज्ञान ८९
कार्मिकी ऋजुसूत्र १३०,१३१,१३४
कालिकश्रुत एकसामयिक ८७;८८.. कालोदसमुद्र एकसामयिकत्व .. ८८ किम्पुरुष एवम्भूत १३०,१३१,१३४ औत्पातिकी
कृष्ण औदारिक १३७:१४२,१४५ कृष्णा औदारिकमिश्र
केवल औदारिकाङ्गिन् १४२
केवलज्ञान औपशमिक करण
१३८ । केवलदर्शन
M. 2006
1 9 9
9 Om ० ० ०.००००
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१०७
१४३
किन्नर
१४२
८६८९;१२५ ८५,८६८९; १०९:१२५ ८६,१०९
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